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विश्वास : राजीव और अंजू के प्यार में दरार क्यों आई थी ?

उस शाम पहली बार राजीव के घर वालों से मिल कर अंजू को अच्छा लगा. उस के छोटे भाई रवि और उस की पत्नी सविता ने अंजू को बहुत मानसम्मान दिया था. उन की मां ने दसियों बार उस के सिर पर हाथ रख कर उसे सदा सुखी और खुश रहने का आशीर्वाद दिया होगा.

वह राजीव के घर मुश्किल से आधा घंटा रुकी थी. इतने कम समय में ही इन सब ने उस का दिल जीत लिया था.

राजीव के घर वालों से विदा ले कर वे दोनों पास के एक सुंदर से पार्क में कुछ देर घूमने चले आए.

अंजू का हाथ पकड़ कर घूमते हुए राजीव अचानक मुसकराया और उत्साहित स्वर में बोला, ‘‘इनसान की जिंदगी में बुरा वक्त आता है और अच्छा भी. 2 साल पहले जब मेरा तलाक हुआ था तब मैं दोबारा शादी करने का जिक्र सुनते ही बुरी तरह बिदक जाता था लेकिन आज मैं तुम्हें जल्दी से जल्दी अपना हमसफर बनाना चाहता हूं. तुम्हें मेरे घर वाले कैसे लगे?’’

‘‘बहुत मिलनसार और खुश- मिजाज,’’ अंजू ने सचाई बता दी.

‘‘क्या तुम उन सब के साथ निभा लोगी?’’ राजीव भावुक हो उठा.

‘‘बड़े मजे से. तुम ने उन्हें यह बता दिया है कि हम शादी करने जा रहे हैं?’’

‘‘अभी नहीं.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे घर वालों ने तो मेरा ऐसे स्वागत किया जैसे मैं तुम्हारे लिए बहुत खास अहमियत रखती हूं.’’

‘‘तब उन तीनों ने मेरी आंखों में तुम्हारे लिए बसे प्रेम के भावों को पढ़ लिया होगा,’’ राजीव ने झुक कर अंजू के हाथ को चूमा तो वह एकदम से शरमा गई थी.

कुछ देर चुप रहने के बाद अंजू ने पूछा, ‘‘हम शादी कब करें?’’

‘‘क्या…अब मुझ से दूर नहीं रहा जाता?’’ राजीव ने उसे छेड़ा.

‘‘नहीं,’’ अंजू ने जवाब दे कर शर्माते हुए अपना चेहरा हथेलियों के पीछे छिपा लिया.

‘‘मेरा दिल भी तुम्हें जी भर कर प्यार करने को तड़प रहा है, जानेमन. कुछ दिन बाद मां, रवि और सविता महीने भर के लिए मामाजी के पास छुट्टियां मनाने कानपुर जा रहे हैं. उन के लौटते ही हम अपनी शादी की तारीख तय कर लेंगे,’’ राजीव का यह जवाब सुन कर अंजू खुश हो गई थी.

पार्क के खुशनुमा माहौल में राजीव देर तक अपनी प्यार भरी बातों से अंजू के मन को गुदगुदाता रहा. करीब 3 साल पहले विधवा हुई अंजू को इस पल उस के साथ अपना भविष्य बहुत सुखद और सुरक्षित लग रहा था.

राजीव अंजू को उस के फ्लैट तक छोड़ने आया था. अंजू की मां आरती उसे देख कर खिल उठीं.

‘‘अब तुम खाना खा कर ही जाना. तुम्हारे मनपसंद आलू के परांठे बनाने में मुझे ज्यादा देर नहीं लगेगी,’’ उन्होंने अपने भावी दामाद को जबरदस्ती रोक लिया था.

उस रात पलंग पर लेट कर अंजू देर तक राजीव और अपने बारे में सोचती रही.

सिर्फ 2 महीने पहले चार्टर्ड बस का इंतजार करते हुए दोनों के बीच औपचारिक बातचीत शुरू हुई और बस आने से पहले दोनों ने एकदूसरे को अपनाअपना परिचय दे दिया था.

उन के बीच होने वाला शुरूशुरू का हलकाफुलका वार्त्तालाप जल्दी ही अच्छी दोस्ती में बदल गया. वे दोनों नियमित रूप से एक ही बस से आफिस आनेजाने लगे थे.

राजीव की आंखों में अपने प्रति चाहत के बढ़ते भावों को देखना अंजू को अच्छा लगा था. अपने अकेलेपन से तंग आ चुके उस के दिल को जीतने में राजीव को ज्यादा समय नहीं लगा.

‘‘रोजरोज उम्र बढ़ती जाती है और अगले महीने मैं 33 साल का हो जाऊंगा. अगर मैं ने अभी अपना घर नहीं बसाया तो देर ज्यादा हो जाएगी. बड़ी उम्र के मातापिता न स्वस्थ संतान पैदा कर पाते हैं और न ही उन्हें अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पूरा समय मिल पाता है,’’ राजीव के मुंह से एक दिन निकले इन शब्दों को सुन कर अंजू के मन ने यह अंदाजा लगाया कि वह उस के साथ शादी कर के घर बसाने में दिलचस्पी रखता था.

उस दिन के बाद से अंजू ने राजीव को अपने दिल के निकट आने के ज्यादा अवसर देने शुरू कर दिए. वह उस के साथ रेस्तरां में चायकौफी पीने चली जाती. फिर उस ने फिल्म देख कर या खरीदारी करने के बाद उस के साथ डिनर करने का निमंत्रण स्वीकार करना भी शुरू कर दिया था.

उस शाम पहली बार उस के घर वालों से मिल कर अंजू के मन ने बहुत राहत और खुशी महसूस की थी. शादी हो जाने के बाद उन सीधेसादे, खुश- मिजाज लोगों के साथ निभाना जरा भी मुश्किल नहीं होगा, इस निष्कर्ष पर पहुंच वह उस रात राजीव के साथ अपनी शादी के रंगीन सपने देखती काफी देर से सोई थी.

अगले दिन रविवार को राजीव ने पहले उसे बढि़या होटल में लंच कराया और फिर खुशखबरी सुनाई, ‘‘कल मैं एक फ्लैट बुक कराने जा रहा हूं, शादी के बाद हम बहुत जल्दी अपने फ्लैट में रहने चले जाएंगे.’’

‘‘यह तो बढि़या खबर है. कितने कमरों वाला फ्लैट ले रहे हो?’’ अंजू खुश हो गई थी.

‘‘3 कमरों का. अभी मैं 5 लाख रुपए पेशगी बतौर जमा करा दूंगा लेकिन बाद में उस की किस्तें हम दोनों को मिल कर देनी पड़ेंगी, माई डियर.’’

‘‘नो प्रौब्लम, सर, मुझ से अभी कोई हेल्प चाहिए हो तो बताओ.’’

‘‘नहीं, डियर, अपने सारे शेयर आदि बेच कर मैं ने 5 लाख की रकम जमा कर ली है. मेरे पास अब कुछ नहीं बचा है. जब फ्लैट को सजानेसंवारने का समय आएगा तब तुम खर्च करना. अच्छा, इसी वक्त सोच कर बताओ कि अपने बेडरूम में कौन सा रंग कराना पसंद करोगी?’’

‘‘हलका आसमानी रंग मुझे अच्छा लगता है.’’

‘‘गुलाबी नहीं?’’

‘‘नहीं, और ड्राइंग रूम में 3 दीवारें तो एक रंग की और चौथी अलग रंग की रखेंगे.’’

‘‘ओके, मैं किसी दिन तुम्हें वह फ्लैट दिखाने ले चलूंगा जो बिल्डर ने खरीदारों को दिखाने के लिए तैयार कर रखा है.’’

‘‘फ्लैट देख लेने के बाद उसे सजाने की बातें करने में ज्यादा मजा आएगा.’’

‘‘मैं और ज्यादा अमीर होता तो तुम्हें घुमाने के लिए कार भी खरीद लेता.’’

‘‘अरे, कार भी आ जाएगी. आखिर यह दुलहन भी तो कुछ दहेज में लाएगी,’’ अंजू की इस बात पर दोनों खूब हंसे और उन के बीच अपने भावी घर को ले कर देर तक चर्चा चलती रही थी.

अगले शुक्रवार को रवि, सविता और मां महीने भर के लिए राजीव के मामा के यहां कानपुर चले गए. अंजू को छेड़ने के लिए राजीव को नया मसाला मिल गया था.

‘‘मौजमस्ती करने का ऐसा बढि़या मौका फिर शायद न मिले, स्वीटहार्ट. तुम्हें मंजूर हो तो खाली घर में शादी से पहले हनीमून मना लेते हैं,’’ उसे घर चलने की दावत देते हुए राजीव की आंखें नशीली हो उठी थीं.

‘‘शटअप,’’ अंजू ने शरमाते हुए उसे प्यार भरे अंदाज में डांट दिया.

‘‘मान भी जाओ न, जानेमन,’’ राजीव उत्तेजित अंदाज में उस के हाथ को बारबार चूमने लगा.

‘‘तुम जोर दोगे तो मैं मान ही जाऊंगी पर हनीमून का मजा खराब हो जाएगा. थोड़ा सब्र और कर लो, डार्लिंग.’’

अंजू के समझाने पर राजीव सब्र तो कर लेता पर अगली मुलाकात में वह फिर उसे छेड़ने से नहीं चूकता. वह उसे कैसेकैसे प्यार करेगा, राजीव के मुंह से इस का विवरण सुन अंजू का तनबदन अजीब सी नशीली गुदगुदी से भर जाता. राजीव की ये रसीली बातें उस की रातों को उत्तेजना भरी बेचैनी से भर जातीं.

अपने अच्छे व्यवहार और दिलकश बातों से राजीव ने उसे अपने प्यार में पागल सा बना दिया था. वह अपने को अब बदकिस्मत विधवा नहीं बल्कि संसार की सब से खूबसूरत स्त्री मानने लगी थी. राजीव से मिलने वाली प्रशंसा व प्यार ने उस का कद अपनी ही नजरों में बहुत ऊंचा कर दिया था.

‘‘भाई, मां की जान बचाने के लिए उन के दिल का आपरेशन फौरन करना होगा,’’ रवि ने रविवार की रात को जब यह खबर राजीव को फोन पर दी तो उस समय वह अंजू के साथ उसी के घर में डिनर कर रहा था.

मां के आपरेशन की खबर सुन कर राजीव एकदम से सुस्त पड़ गया. फिर जब उस की आंखों से अचानक आंसू बहने लगे तो अंजू व आरती बहुत ज्यादा परेशान और दुखी हो उठीं.

‘‘मुझे जल्दी कानपुर जाना होगा अंजू, पर मेरे पास इस वक्त 2 लाख का इंतजाम नहीं है. सुबह बिल्डर से पेशगी दिए गए 5 लाख रुपए वापस लेने की कोशिश करता हूं. वह नहीं माना तो मां ने तुम्हारे लिए जो जेवर रखे हुए हैं उन्हें किसी के पास गिरवी…’’

‘‘बेकार की बात मत करो. मुझे पराया क्यों समझ रहे हो?’’ अंजू ने हाथ से उस का मुंह बंद कर आगे नहीं बोलने दिया.

‘‘क्या तुम मुझे इतनी बड़ी रकम उधार दोगी?’’ राजीव विस्मय से भर उठा.

‘‘क्या तुम्हारा मुझ से झगड़ा करने का दिल कर रहा है?’’

‘‘नहीं, लेकिन…’’

‘‘फिर बेकार के सवाल पूछ कर मेरा दिल मत दुखाओ. मैं तुम्हें 2 लाख रुपए दे दूंगी. जब मैं तुम्हारी हो गई हूं तो क्या मेरा सबकुछ तुम्हारा नहीं हो गया?’’

अंजू की इस दलील को सुन राजीव ने उसे प्यार से गले लगाया और उस की आंखों से अब ‘धन्यवाद’ दर्शाने वाले आंसू बह निकले.

अपने प्रेमी के आंसू पोंछती अंजू खुद भी आंसू बहाए जा रही थी.

लेकिन उस रात अंजू की आंखों से नींद गायब हो गई. उस ने राजीव को 2 लाख रुपए देने का वादा तो कर लिया था लेकिन अब उस के मन में परेशानी और चिंता पैदा करने वाले कई सवाल घूम रहे थे:

‘राजीव से अभी मेरी शादी नहीं हुई है. क्या उस पर विश्वास कर के उसे इतनी बड़ी रकम देना ठीक रहेगा?’ इस सवाल का जवाब ‘हां’ में देने से उस का मन कतरा रहा था.

‘राजीव के साथ मैं घर बसाने के सपने देख रही हूं. उस के प्यार ने मेरी रेगिस्तान जैसी जिंदगी में खुशियों के अनगिनत फूल खिलाए हैं. क्या उस पर विश्वास कर के उसे 2 लाख रुपए दे दूं?’ इस सवाल का जवाब ‘न’ में देते हुए उस का मन अजीब सी उदासी और अपराधबोध से भी भर उठता.

देर रात तक करवटें बदलने के बावजूद वह किसी फैसले पर नहीं पहुंच सकी थी.

अगले दिन आफिस में 11 बजे के करीब उस के पास राजीव का फोन आया:

‘‘रुपयों का इंतजाम कब तक हो जाएगा, अंजू? मैं जल्दी से जल्दी कानपुर पहुंचना चाहता हूं,’’ राजीव की आवाज में चिंता के भाव साफ झलक रहे थे.

‘‘मैं लंच के बाद बैंक जाऊंगी. फिर वहां से तुम्हें फोन करूंगी,’’ चाह कर भी अंजू अपनी आवाज में किसी तरह का उत्साह पैदा नहीं कर सकी थी.

‘‘प्लीज, अगर काम जल्दी हो जाए तो अच्छा रहेगा.’’

‘‘मैं देखती हूं,’’ ऐसा जवाब देते हुए उस का मन कर रहा था कि वह रुपए देने के अपने वादे से मुकर जाए.

लंच के बाद वह बैंक गई थी. 2 लाख रुपए अपने अकाउंट में जमा करने में उसे ज्यादा परेशानी नहीं हुई. सिर्फ एक एफ.डी. उसे तुड़वानी पड़ी थी लेकिन उस का मन अभी भी उलझन का शिकार बना हुआ था. तभी उस ने राजीव को फोन नहीं किया.

शाम को जब राजीव का फोन आया तो उस ने झूठ बोल दिया, ‘‘अभी 1-2 दिन का वक्त लग जाएगा, राजीव.’’

‘‘डाक्टर बहुत जल्दी आपरेशन करवाने पर जोर दे रहे हैं. तुम बैंक के मैनेजर से मिली थीं?’’

‘‘मां को किस अस्पताल में भरती कराया है?’’ अंजू ने उस के सवाल का जवाब न दे कर विषय बदल दिया.

‘‘दिल के आपरेशन के मामले में शहर के सब से नामी अस्पताल में,’’ राजीव ने अस्पताल का नाम बता दिया.

अपनी मां से जुड़ी बहुत सी बातें करते हुए राजीव काफी भावुक हो गया था. अंजू ने साफ महसूस किया कि इस वक्त राजीव की बातें उस के मन को खास प्रभावित करने में सफल नहीं हो रही थीं. उसे साथ ही साथ यह भी याद आ रहा था कि पिछले दिन मां के प्रति चिंतित राजीव के आंसू पोंछते हुए उस ने खुद भी आंसू बहाए थे.

अगली सुबह 11 बजे के करीब राजीव ने अंजू से फोन पर बात करनी चाही तो उस का फोन स्विच औफ मिला. परेशान हो कर वह लंच के समय उस के फ्लैट पर पहुंचा तो दरवाजे पर ताला लटकता मिला.

‘अंजू शायद रुपए नहीं देना चाहती है,’ यह खयाल अचानक उस के मन में पैदा हुआ और उस का पूरा शरीर अजीब से डर व घबराहट का शिकार बन गया. रुपयों का इंतजाम करने की नए सिरे से पैदा हुई चिंता ने उस के हाथपैर फुला दिए थे.

उस ने अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के पास फोन करना शुरू किया. सिर्फ एक दोस्त ने 10-15 हजार की रकम फौरन देने का वादा किया. बाकी सब ने अपनी असमर्थता जताई या थोड़े दिन बाद कुछ रुपए का इंतजाम करने की बात कही.

वह फ्लैट की बुकिंग के लिए दी गई पेशगी रकम वापस लेने के लिए बिल्डर से मिलने गया पर वह कुछ दिन के लिए मुंबई गया हुआ था.

शाम होने तक राजीव को एहसास हो गया कि वह 2-3 दिन में भी 2 लाख की रकम जमा नहीं कर पाएगा. हर तरफ से निराश हो चुका उस का मन अंजू को धोखेबाज बताते हुए उस के प्रति गहरी शिकायत और नाराजगी से भरता चला गया था.

तभी उस के पास कानपुर से रवि का फोन आया. उस ने राजीव को प्रसन्न स्वर में बताया, ‘‘भाई, रुपए पहुंच गए हैं. अंजूजी का यह एहसान हम कभी नहीं चुका पाएंगे.’’

‘‘अंजू, कानपुर कब पहुंचीं?’’ अपनी हैरानी को काबू में रखते हुए राजीव ने सवाल किया.

‘‘शाम को आ गई थीं. मैं उन्हें एअरपोर्ट से ले आया था.’’

‘‘रुपए जमा हो गए हैं?’’

‘‘वह ड्राफ्ट लाई हैं. उसे कल जमा करवा देंगे. अब मां का आपरेशन हो सकेगा और वह जल्दी ठीक हो जाएंगी. तुम कब आ रहे हो?’’

‘‘मैं रात की गाड़ी पकड़ता हूं.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘अंजू कहां हैं?’’

‘‘मामाजी के साथ घर गई हैं.’’

‘‘कल मिलते हैं,’’ ऐसा कह कर राजीव ने फोन काट दिया था.

उस ने अंजू से बात करने की कोशिश की पर उस का फोन अभी भी बंद था. फिर वह स्टेशन पहुंचने की तैयारी में लग गया.

उसे बिना कुछ बताए अंजू 2 लाख का ड्राफ्ट ले कर अकेली कानपुर क्यों चली गई? इस सवाल का कोई माकूल जवाब वह नहीं ढूंढ़ पा रहा था. उस का दिल अंजू के प्रति आभार तो महसूस कर रहा था पर मन का एक हिस्सा उस के इस कदम का कारण न समझ पाने से बेचैन और परेशान भी था.

अगले दिन अंजू से उस की मुलाकात मामाजी के घर में हुई. जब आसपास कोई नहीं था तब राजीव ने उस से आहत भाव से पूछ ही लिया, ‘‘मुझ पर क्यों विश्वास नहीं कर सकीं तुम, अंजू? तुम्हें ऐसा क्यों लगा कि मैं मां की बीमारी के बारे में झूठ भी बोल सकता हूं? रुपए तुम ने मेरे हाथों इसीलिए नहीं भिजवाए हैं न?’’

अंजू उस का हाथ पकड़ कर भावुक स्वर में बोली, ‘‘राजीव, तुम मुझ विधवा के मनोभावों को सहानुभूति के साथ समझने की कोशिश करना, प्लीज. तुम्हारे लिए यह समझना कठिन नहीं होना चाहिए कि मेरे मन में सुरक्षा और शांति का एहसास मेरी जमापूंजी के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है.

‘‘तुम्हारे प्यार में पागल मेरा दिल तुम्हें 2 लाख रुपए देने से बिलकुल नहीं हिचकिचाया था लेकिन मेरा हिसाबी- किताबी मन तुम पर आंख मूंद कर विश्वास नहीं करना चाहता था.

‘‘मैं ने दोनों की सुनी और रुपए ले कर खुद यहां चली आई. मेरे ऐसा करने से तुम्हें जरूर तकलीफ हो रही होगी…तुम्हारे दिल को यों चोट पहुंचाने के लिए मैं माफी मांग रही…’’

‘‘नहीं, माफी तो मुझे मांगनी चाहिए. तुम्हारे मन में चली उथलपुथल को मैं अब समझ सकता हूं. तुम ने जो किया उस से तुम्हारी मानसिक परिपक्वता और समझदारी झलकती है. अपनी गांठ का पैसा ही कठिन समय में काम आता है. हमारे जैसे सीमित आय वालों को ऊपरी चमकदमक वाली दिखावे की चीजों पर खर्च करने से बचना चाहिए, ये बातें मेरी समझ में आ रही हैं.’’

‘‘अपने अहं को बीच में ला कर मेरा तुम से नाराज होना बिलकुल गलत है. तुम तो मेरे लिए दोस्तों व रिश्तेदारों से ज्यादा विश्वसनीय साबित हुई हो. मां के इलाज में मदद करने के लिए थैंक यू वेरी मच,’’ राजीव ने उस का हाथ पकड़ कर प्यार से चूम लिया.

एकदूसरे की आंखों में अपने लिए नजर आ रहे प्यार व चाहत के भावों को देख कर उन दोनों के दिलों में आपसी विश्वास की जड़ों को बहुत गहरी मजबूती मिल गई थी.

परिवर्तन : मोहिनी को कुशल विभा से क्या तकलीफ थी ?

गेट पर तिपहिया के रुकने का स्वर सुन कर परांठे का कौर मुंह की ओर ले जाते हुए खुदबखुद विभा का हाथ ठिठक गया. उस ने प्रश्नवाचक दृष्टि से मांजी की ओर देखा. उन की आंखों में भी यही प्रश्न तैर रहा था कि इस वक्त कौन आ सकता है?

सुबह के 10 बजने वाले थे. विनय और बाबूजी के दफ्तर जाने के बाद विभा और उस की सास अभी नाश्ता करने बैठी ही थीं कि तभी घंटी की तेज आवाज गूंज उठी. विभा ने निवाला थाली में रखा और दौड़ कर दरवाजा खोला तो सामने मोहिनी खड़ी थी.

‘‘तुम, अकेली ही आई हो क्या?’’

‘‘क्यों, अकेली आने की मनाही है?’’ मोहिनी ने नाराजगी दर्शाते हुए सवाल पर सवाल दागा.

‘‘नहींनहीं, मैं तो वैसे ही पूछ…’’ विभा जब तक बात पूरी करती, मोहिनी तेजी से अंदर के कमरे की ओर बढ़ गई. विभा भी दरवाजा बंद कर के उस के पीछे हो गई.

मांजी अभी मेज के सामने ही बैठी थीं, वे मोहिनी को देख आश्चर्य में पड़ गईं. उन के मुंह से निकला, ‘‘मोहिनी, तू, एकाएक?’’

मोहिनी ने सूटकेस पटका और कुरसी पर बैठती हुई रूखे स्वर में बोली, ‘‘मां, तुम और भाभी तो ऐसे आश्चर्य कर रही हो, जैसे यह मेरा घर नहीं. और मैं यहां बिना बताए अचानक नहीं आ सकती.’’ मोहिनी का मूड बिगड़ता देख विभा ने बात पलटी, ‘‘तुम सफर में थक गई होगी, थोड़ा आराम करो. मैं फटाफट परांठे और चाय बना कर लाती हूं.’’ विभा रसोई में घुस गई. वह जल्दीजल्दी आलू के परांठे सेंकने लगी. तभी मांजी उस की प्लेट भी रसोई में ले आईं और बोलीं, ‘‘बहू, अपने परांठे भी दोबारा गरम कर लेना, तुझे बीच में ही उठना पड़ा…’’

‘‘कोई बात नहीं, आप का नाश्ता भी तो अधूरा पड़ा है. लाइए, गरम कर दूं.’’

‘‘नहीं, जब तक तू परांठे सेंकेगी, मैं मोहिनी के पास बैठ कर अपना नाश्ता खत्म कर लूंगी,’’ फिर उन्होंने धीमी आवाज में कहा, ‘‘लगता है, लड़ कर आई है.’’ मांजी के स्वर में झलक रही चिंता ने विभा को भी गहरी सोच में डाल दिया और वह अतीत की यादों में गुम हो, सोचने लगी :

जहां मां, बाबूजी और विनय प्यार व ममता के सागर थे, वहीं मोहिनी बेहद बददिमाग, नकचढ़ी और गुस्सैल थी. बातबात पर तुनकना, रूठना, दूसरों की गलती निकालना उस की आदत थी. जब विवाह के बाद विभा ससुराल आई तो मांजी, बाबूजी ने उसे बहू नहीं, बेटी की तरह समझा, स्नेह दिया. विनय से उसे भरपूर प्यार और सम्मान मिला. बस, एक मोहिनी ही थी, जिसे अपनी भाभी से जरा भी लगाव नहीं था. उस ने तो जैसे पहले दिन से ही विभा के विरुद्ध मोरचा संभाल लिया था. बातबात में विभा की गलती निकालना, उसे नीचा दिखाना मोहिनी का रोज का काम था. लेकिन विभा न जाने किस मिट्टी की बनी थी कि वह मोहिनी की किसी बात का बुरा न मानती, उस की हर बेजा बात को हंस कर सह लेती.

हर काम में कुशल विभा की तारीफ होना तो मोहिनी को फूटी आंख न सुहाता था. एक दिन विभा ने बड़े मनोयोग से डोसा, इडली, सांबर आदि दक्षिण भारतीय व्यंजन तैयार किए थे. सभी स्वाद लेले कर खा रहे थे. विनय तो बारबार विभा की तारीफ करता जा रहा था, ‘वाह, क्या लाजवाब डोसे बने हैं. लगता है, किसी दक्षिण भारतीय लड़की को ब्याह लाया हूं.’ तभी एकाएक मोहिनी ने जोर से थाली एक तरफ सरकाते हुए कहा, ‘आप लोग भाभी की बेवजह तारीफ करकर के सिर पर चढ़ा रहे हो. देखना, एक दिन पछताओगे. मुझे तो इन के बनाए खाने में कोई स्वाद नजर नहीं आता, पता नहीं आप लोग कैसे खा लेते हैं?’

अभी मोहिनी कुछ और कहती, तभी बाबूजी की कड़क आवाज गूंजी, ‘चुप हो जा. देख रहा हूं, तू दिन पर दिन बदतमीज होती जा रही है. जब देखो, तब बहू के पीछे पड़ी रहती है, नालायक लड़की.’ बाबूजी का इतना कहना था कि मोहिनी ने जोरजोर से रोना शुरू कर दिया. रोतेरोते वह विभा को कोसती भी जा रही थी, ‘जब से भाभी आई हैं, तभी से मैं सब को बुरी लगने लगी हूं. न जाने इन्होंने सब पर क्या जादू कर दिया है. भैया तो बिलकुल ही जोरू के गुलाम बन कर रह गए हैं.’ अब तक चुप तमाशा देख रहा विनय और न सुन सका, उस ने मोहिनी को डांटा, ‘बहुत हो गया, अब फौरन अपने कमरे में चली जा.’

मोहिनी तो पैर पटकती अपने कमरे में चली गई परंतु विभा इस बेवजह के अपमान से आहत हो रो पड़ी. उसे रोता देख विनय, मां और बाबूजी तीनों ही बेहद दुखी हो उठे. बाबूजी ने विभा के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटी, हमें माफ कर देना. मोहिनी की तरफ से हम तुम से माफी मांगते हैं.’’ जब विभा ने देखा कि मां, बाबूजी बेहद ग्लानि महसूस कर रहे हैं और विनय तो उसे रोता देख खुद भी रोंआसा सा हो उठा है तो उस ने फौरन अपने आंसू पोंछ लिए. यही नहीं, उस ने अगले ही दिन मोहिनी से खुद ही यों बातचीत शुरू कर दी मानो कुछ हुआ ही न हो. मांजी तो विभा का यह रूप देख निहाल हो उठी थीं. उन का मन चाहा कि विभा को अपने पास बिठा कर खूब लाड़प्यार करें. परंतु कहीं मोहिनी बुरा न मान जाए, यह सोच वे मन मसोस कर रह गईं. एक दिन मोहनी अपनी सहेली के घर गई हुई थी. विभा और मांजी बैठी चाय पी रही थीं. एकाएक मांजी ने विभा को अपनी गोद में लिटा लिया और प्यार से उस के बालों में उंगलियां फेरती हुई बोलीं, ‘काश, मेरी मोहिनी भी तेरी तरह मधुर स्वभाव वाली होती. मैं ने तो उस का चांद सा मुखड़ा देख मोहिनी नाम रखा था. सोचा था, अपनी मीठी हंसी से वह घर में खुशियों के फूल बिखेरेगी. लेकिन इस लड़की को तो जैसे हंसना ही नहीं आता, मुझे तो चिंता है कि इस से शादी कौन करेगा?’

मांजी को उदास देख विभा का मन भी दुखी हो उठा. उस ने पूछा, ‘मांजी, आप ने मोहिनी के लिए लड़के तो देखे होंगे?’ ‘हां, कई जगह बात चलाई, परंतु लोग केवल सुंदरता ही नहीं, स्वभाव भी तो देखते हैं. जहां भी बात चलाओ, वहीं इस के स्वभाव के चर्चे पहले पहुंच जाते हैं. छोटे शहरों में वैसे भी किसी के घर की बात दबीछिपी नहीं रहती.’ कुछ देर चुप रहने के बाद मांजी ने आशाभरी नजरों से विभा की ओर देखते हुए पूछा, ‘तुम्हारे मायके में कोई लड़का हो तो बताओ. इस शहर में तो इस की शादी होने से रही.’

बहुत सोचनेविचारने के बाद एकाएक उसे रंजन का ध्यान आया. रंजन, विभा के पिताजी की मुंहबोली बहन का लड़का था. एक ही शहर में रहने के कारण विभा अकसर उन के घर चली जाती थी. वह रंजन की मां को बूआ कह कर पुकारती थी. रंजन के घर के सभी लोग विभा से बहुत स्नेह करते थे. रंजन भी विभा की तरह ही बुराई को हंस कर सह जाने वाला और शीघ्र ही क्षमा कर देने में विश्वास रखने वाला लड़का था. ‘यह घर मोहिनी के लिए उपयुक्त रहेगा. रंजन जैसा लड़का ही मोहिनी जैसी तेजतर्रार लड़की को सहन कर सकता है,’ विभा ने सोचा.

फिर मां, बाबूजी की आज्ञा ले कर वह अपने मायके चली गई. जैसा कि होना ही था, मोहिनी का फोटो रंजन को ही नहीं, सभी को बहुत पसंद आया. लेकिन विभा ने मोहिनी के स्वभाव के विषय में रंजन को अंधेरे में रखना ठीक न समझा. मोहिनी के तीखे स्वभाव के बारे में जान कर रंजन हंस पड़ा, ‘अच्छा, तो यह सुंदर सी दिखने वाली लड़की नकचढ़ी भी है. लेकिन दीदी, तुम चिंता मत करो, मैं इस गुस्सैल लड़की को यों काबू में ले आऊंगा,’ कहते हुए उस ने जोर से चुटकी बजाई तो उस के साथसाथ विभा भी हंस पड़ी. लेकिन विभा जानती थी कि मोहिनी को काबू में रखना इतना आसान नहीं है जितना कि रंजन सोच रहा है. तभी तो उस के विवाह के बाद भी वह और मांजी निश्ंिचत नहीं हो सकी थीं. उन्हें हर वक्त यही खटका लगा रहता कि कहीं मोहिनी ससुराल में लड़झगड़ न पड़े, रूठ कर वापस न आ जाए. अभी मोहिनी के विवाह को हुए 4 महीने ही बीते थे कि अचानक वह अजीब से उखड़े मूड में आ धमकी थी.

‘न जाने क्या बात हुई होगी?’ विभा का दिल शंका से कांप उठा था कि तभी परांठा जलने की गंध उस के नथुनों से टकराई. अतीत में खोई विभा भूल ही गई थी कि उस ने तवे पर परांठा डाल रखा है. फिर विभा ने फटाफट दूसरा परांठा सेंका, चाय बनाई और नाश्ता ले कर मोहिनी के पास आ बैठी.

पता नहीं, इस बीच क्या बातचीत हुई थी, लेकिन विभा ने स्पष्ट देखा कि मांजी का चेहरा उतरा हुआ है. नाश्ता करते हुए जब मोहिनी चुप ही रही तो विभा ने बात शुरू की, ‘‘और सुनाओ, ससुराल में खुश तो हो न?’’ शायद मोहिनी इसी अवसर की प्रतीक्षा में थी. उस ने बिफर कर जवाब दिया, ‘‘खाक खुश हूं. तुम ने तो मुझे इतने लोगों के बीच फंसवा दिया. दिनरात काम करो, सासससुर के नखरे उठाओ,  और एक देवर है कि हर वक्त उस के चोंचले करते फिरो.’’ मोहिनी का धाराप्रवाह बोलना जारी था, ‘‘रंजन भी कम नहीं है. हर वक्त अपने घर वालों की लल्लोचप्पो में लगा रहता है. मेरी तो एक नहीं सुनता. उस घर में रहना मेरे बस का नहीं है. अब तो मैं तभी वापस जाऊंगी, जब रंजन अलग घर ले लेगा.’’ इसी तरह मोहिनी, रंजन के परिवार को बहुत देर तक भलाबुरा कहती रही. परंतु मांजी और विभा को क्या उस के स्वभाव के बारे में मालूम न था. वे जान रही थीं कि मोहिनी सफेद झूठ बोल रही है. वास्तव में तो संयुक्त परिवार में रहना उसे भारी पड़ रहा होगा, तभी वह खुद ही लड़ाईझगड़ा करती होगी ताकि घर में अशांति कर के अलग हो सके.

वैसे भी विभा, रंजन के परिवार को वर्षों से जानती थी. उसे पता था कि रंजन और उस के परिवार के अन्य सदस्य मोहिनी को खुश रखने की हर संभव कोशिश करते होंगे. उस से दिनरात काम करवाने का तो सवाल ही नहीं उठता होगा, उलटे बूआ तो उस के छोटेबड़े काम भी खुश हो कर कर देती होंगी.

मांजी ने मोहिनी को समझाने की कोशिश की, ‘‘देख बेटी, तेरी भाभी भी तो खुशीखुशी संयुक्त परिवार में रह रही है, यह भी तो हम सब के लिए काम करती है. इस ने तेरी बातों का बुरा मानने के बजाय हमेशा तुझे छोटी बहन की तरह प्यार ही किया है. तुझे इस से सीख लेनी चाहिए.’’ लेकिन मोहिनी तो विभा की तारीफ होते देख और भी भड़क गई. उस ने साफ कह दिया, ‘‘भाभी कैसी हैं, क्या करती हैं, इस से मुझे कोई मतलब नहीं है. मैं तो सिर्फ अपने बारे में जानती हूं कि मैं अपने सासससुर के साथ नहीं रह सकती. अब भाभी या तो रंजन को अलग होने के लिए समझाएं, वरना मैं यहां से जाने वाली नहीं.’’

मोहिनी का अडि़यल रुख देख कर विभा ने खुद ही जा कर रंजन से बातचीत करने का फैसला किया. रास्तेभर विभा सोचती रही कि वह किस मुंह से रंजन के घर जाएगी. आखिर उसी ने तो सबकुछ जानते हुए भी मोहिनी जैसी बददिमाग लड़की को उन जैसे शरीफ लोगों के पल्ले बांधा था. परंतु रंजन के घर पहुंच कर विभा को लगा ही नहीं कि उन लोगों के मन में उस के लिए किसी प्रकार का मैल है. विभा को संकोच में देख रंजन की मां ने खुद ही बात शुरू की, ‘‘विभा, मैं ने रंजन को अलग रहने के लिए मना लिया है. अब तू जा कर मोहिनी को वापस भेज देना. दोनों जहां भी रहें, बस खुश रहें, मैं तो यही चाहती हूं.’’

विभा ने शर्मिंदगीभरे स्वर में कहा, ‘‘बूआ, मेरी ही गलती है जो रंजन का रिश्ता मोहिनी से करवाया…’’ तभी रंजन ने बीच में टोका, ‘‘नहीं दीदी, आप ने तो मुझे सबकुछ पहले ही बता दिया था. खैर, अब तो जैसी भी है, वह मेरी पत्नी है. मुझे तो उस का साथ निभाना ही है. लेकिन मुझे विश्वास है कि एक दिन उस का स्वभाव जरूर बदलेगा.’’ वापस घर पहुंच कर जब विभा ने रंजन के अलग घर ले लेने की खबर दी तो मोहिनी खुश हो गई. लेकिन विनय खुद को कहने से न रोक सका, ‘‘मोहिनी, तू जो कर रही है, ठीक नहीं है. खैर, अब रंजन को खुश रखना. वह तेरी खुशी के लिए इतना बड़ा त्याग कर रहा है.’’

‘‘अच्छा, अब ज्यादा उपदेश मत दो,’’ मुंह बिचका कर मोहिनी ने कहा और फिर वापस जाने की तैयारी में जुट गई. फिर एक दिन रंजन का फोन आया. उस ने घबराए स्वर में बतलाया, ‘‘दीदी, मोहिनी को तीसरे महीने में अचानक रक्तस्राव शुरू हो गया है. डाक्टर ने उसे बिस्तर से बिलकुल न उठने की हिदायत दी है. आप को या मांजी को आना पड़ेगा. मैं तो मां को ला रहा था, लेकिन मोहिनी कहती है कि अब वह किस मुंह से उन्हें आने के लिए कह सकती है.’’ सास की तबीयत खराब थी, इसलिए विभा को ही जाना पड़ा. लेकिन वहां पहुंच कर उस ने देखा कि रंजन की मां वहां पहले से ही मौजूद हैं.

विभा ने सुखद आश्चर्य में पूछा, ‘‘बूआ, आप यहां?’’

‘‘अरी, यह मोहिनी तो पागल है, भला मुझे बुलाने में संकोच कैसा? मुसीबत में में काम नहीं आएंगे तो और कौन काम आएगा? यह तो अपने पूर्व व्यवहार के लिए बहुत ग्लानि महसूस कर रही है. बेटी, तू इसे समझा कि इस अवस्था में ज्यादा सोचा नहीं करते.’’ रात को विभा मोहिनी के कमरे के पास से गुजर रही थी कि अंदर की बातचीत सुन वहीं ठिठक गई. रंजन मोहिनी को छेड़ रहा था, ‘‘अब क्या करोगी, अब तो तुम्हें काफी समय तक मां के साथ रहना पड़ेगा?’’ ‘‘मुझे और शर्मिंदा मत कीजिए. आज मुझे परिवार का महत्त्व समझ में आ रहा है. सच, सब से प्यार करने से ही जीवन का वास्तविक आनंद प्राप्त होता है.’’

‘‘अरे, अरे तुम तो एक ही दिन में बहुत समझदार हो गई हो.’’

‘‘अच्छा, अब मजाक मत कीजिए. और हां, जब मैं ठीक हो जाऊं तो मुझे अपने घर ले चलना, अब मैं वहीं सब के साथ रहूंगी.’’

बाहर खड़ी विभा ने चैन की सांस ली, ‘चलो, देर से ही सही, लेकिन आज मोहिनी को परिवार के साथ मिलजुल कर रहने का महत्त्व तो पता चला.’ अब विभा को यह समाचार विनय, मांजी और बाबूजी को सुनाने की जल्दी थी कि मोहिनी के स्वभाव में परिवर्तन हो चुका है.

सिसकता इश्क़ : क्या थी हनीफ की सच्चाई

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लौरेंस बिश्नोई गैंग के शार्प शूटर दिल्ली में पकड़े गए

जयपुर में 5 दिसंबर को दिनदहाड़े 3 बदमाशों ने राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी को उन के घर में घुस कर उन्हें गोलियां से भून डाला. इस शूटआउट में जेल में बंद बदमाश लौरेंस बिश्नोई के गैंग का हाथ होने की बात कही गई.

ह्त्या की जिम्मेदारी लौरेंस से दोस्त रोहित गोदारा ने ली है. सुखदेव सिंह गोगामेड़ी को कई दिन से जान से मारने की धमकी लौरेंस बिश्नोई गैंग की तरफ से मिल रही थे. सुखदेव सिंह गोगामेड़ी ने पुलिस सुरक्षा की भी मांग की थी मगर उन्हें सुरक्षा नहीं दी गई. लौरेंस बिश्नोई इस वक्त पंजाब जेल में बंद है. पंजाब पुलिस की उस की गतिविधियों पर नजर है.

जेल में उस से कौन मिलने आता है. जेल में उस के साथ रहे कैदी जेल से छूटने के बाद किसकिस से मिल रहे हैं इस की जानकारी पुलिस रख रही थी. इसी के चलते ये इनपुट मिला था कि सुखदेव सिंह गोगामेड़ी को मारने की योजना ये गैंग बना रहा है.

इस बाबत राजस्थान पुलिस को बताया भी गया था मगर समय रहते सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की सुरक्षा चाकचौबंद नहीं हो पाई और शूटर अपना काम कर गए.

राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या के बाद अब करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष सूरजपाल अम्मू को जान से मारने की धमकी मिली है. कथित तौर पर लौरेंस बिश्नोई के गुर्गों ने सोशल मीडिया पर ये धमकी दी है.

सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा गया है कि, “तूने लौरेंस को गाली दे कर गलती कर दी. अब की तेरी बारी ‘RIP IN ADVANCE’. ताऊ तुझे कब उठा लेंगे, पता ही नही चलेगा.”

इस धमकी के बाद अब पुलिस नींद से जागी है. रोहित गोदारा और उस के सहयोगियों की तलाश में जुटी राजस्थान और दिल्ली की पुलिस धड़ाधड़ बदमाशों का एनकाउंटर कर रही है.

8 दिसंबर की रात दिल्ली के बसंत कुंज इलाके में तड़ातड़ गोलियों की आवाज से लोग थरथरा उठे.

दरअसल पुलिस को यह जानकारी मिली कि लॉरेंस गैंग के 2 शार्प शूटर वसंत कुंज इलाके में हैं. इस के बाद स्पेशल सेल के दस्ते ने इलाके को घेर लिया. दोनों तरफ से कई राउंड फायर हुए और दिल्ली पुलिस ने बड़ी सफलता हासिल करते हुए लौरेंस बिश्नोई गैंग के 2 शार्प शूटरों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस की स्पैशल सेल एनकाउंटर के बाद आरोपियों को गिरफ्तार किया है. यह मुठभेड़ बीती रात 9.00 बजे वसंत कुंज के एक पांच सितारा होटल के पास हुई. बदमाशों ने 5 राउंड और पुलिस ने दो राउंड फायरिंग की.

क्राइम ब्रांच ने इन के पास से 2 विदेशी पिस्टल, 4 कारतूस और एक बाइक बरामद की है. ये दोनों अपराधी रोहतक में 6 आपराधिक मामले में शामिल रहे हैं और अब लौरेंस ग्रुप से जुड़ कर उस के लिए काम कर रहे हैं.

शूटरों की पहचान आकाश कासा और नितेश के रूप में की गई है. दोनों हरियाणा के सोनीपत और चरखी दादरी इलाके के रहने वाले हैं. इन्हीं दोनों ने दिल्ली के पंजाबी बाग इलाके में रहने वाले पंजाब के फरीदकोट से एक्स एमएलए दीप मल्होत्रा के घर 3 दिसंबर की शाम फायरिंग की थी. हैरानी की बात है कि दोनों में से एक अभी नाबालिग है.

अदालत तय न करे कि कौन कब कितना और किस से सैक्स करे

सबरीमाला मंदिर में मासिक धर्म के दौरान महिलाएं प्रवेश नहीं कर सकती यह मुकदमा तीन दशक तक चला था. तब कहीं जा कर सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर, 2018 को यह फैसला दिया था कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का बहिष्कार असंवैधानिक है. तब विवाद या धार्मिक एतराज इस बात को ले कर था कि 10 से 50 साल तक की महिलाएं मासिक धर्म से होती हैं इसलिए उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाना चाहिए.

तब सब से बड़ी अदालत के अलावा देशभर के बुद्धिजीवी वर्ग में संविधान के अनुच्छेद 14 के आलावा जो शब्द चर्चा में रहे थे वे पवित्रता, अशुद्धि, वगैरह थे. मामला महिलाओं के लिहाज से अहम था जिस में धर्म, परंपराओं, बंदिशों, संस्कृति, प्रथाओं जैसे विषयों पर कई तारीखों में व्यापक चर्चा हुई थी.

कोलकाता हाई कोर्ट की हद

इस मामले पर अब भी यदाकदा चर्चा होती रहती है. लेकिन आजकल कोलकाता हाई कोर्ट का एक फैसला चर्चा में है जिस में उस ने कहा है कि कम उम्र की लड़कियों को अपनी यौन इच्छाएं कंट्रोल में रखनी चाहिए और 2 मिनिट के सुख के लिए अपनी गरिमा से समझौता नहीं कर लेना चाहिए. बकौल हाई कोर्ट के जस्टिस चितरंजन दास एवं जस्टिस पार्थ सारथी, जब वे 2 मिनट के सुख के लिए खुद को सौंप देती हैं तो समाज की निगाह में लूजर हो जाती हैं.

लड़कियों को ले कर अदालत की कुंठा ने और विस्तार लेते हुए यह भी कहा कि युवा लड़के लड़कियों समझना चाहिए कि यौन इच्छाएं खुद की तमाम गतिविधियों से पैदा होती हैं. ये नौर्मल नहीं हैं. युवाओं को हर हाल में इन्हें काबू में रखना चाहिए ताकि वे किसी गलत स्थिति में या किसी कानूनी पचड़े में न पड़ें.

सुप्रीम कोर्ट की फटकार

इस हैरान और सकते में डाल देने वाले फैसले पर अच्छी बात यह है कि किसी को सुप्रीम कोर्ट नहीं जाना पड़ा जिस ने 8 दिसंबर को खुद संज्ञान लेते हुए कोलकाता हाई कोर्ट को फटकार लगा दी कि जजों को अपनी राय नहीं व्यक्त करनी चाहिए. ऐसा आदेश किशोर वय के अधिकारों का हनन है. नाबालिग लड़की के एक दोस्त से रोमांटिक अफेयर पर हाई कोर्ट ने दोषी को बरी भी कर दिया था इसे भी सुप्रीम कोर्ट ने अनुचित माना.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका और जस्टिस पंकज मिथल ने हाई कोर्ट की इस टिप्पणी को गैरजरूरी और आपत्तिजनक बताते हुए कहा कि जजों से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे उपदेश दें.

उपदेशों का हाल तो यह है कि

मामला अभी आयागया नहीं हुआ है, जिस पर दुखद बात समाज की उदासीनता और जानबूझ कर की गई अनदेखी रही जिस से लगता है कि हम तेजी से पौराणिक होते माहौल के गुलाम होते जा रहे हैं. 18 अक्तूबर, 2023 को कोलकाता हाई कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था जिस पर किसी के कान पर जागरूकता, संवैधानिक अधिकारों या नारी स्वतंत्रा की जूं नहीं रेंगी और आखिरकर खुद सुप्रीम कोर्ट को ही संज्ञान लेना पड़ा.

बात जहां तक उपदेशों की है तो देश में उन्हीं का दौर है, खासतौर से लड़कियों और उन की आजादी के मामलों में तो धर्म के पैरोकारों ने मुहिम सी छेड़ रखी है. सोशल मीडिया पर उन के फैशन, नौकरी, प्यार और शादी करने के तौरतरीकों तक पर एतराज जताया जाता है.

सैक्स पर हालात या ताजी मानसिकता क्या है इस की एक बानगी करवाचौथ के दिन एक भगवानवादी वैबसाइट पर देखने में आई जिस में नसीहत दी गई थी कि धर्म को जानने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि करवाचौथ व्रत के दिन दंपति को शारीरिक संबंध नही बनाने चाहिए यहां तक कि इस प्रकार के विचार भी अपने दिमाग में नहीं आने देना चाहिए. इस प्रकार के कामों को व्रत में वर्जित माना गया है. हिंदू धर्म ग्रंथों में यह भी लिखा है कि चाहे व्रत कोई भी हो करवाचौथ तीज या नवरात्रि का महापर्व, इन दिनों में किसी भी पुरुष या स्त्री के मन में गलत विचार रखना गलत होता है इस से वैवाहिक जीवन को नुकसान होता है.

मुहूर्त देख कर करें सैक्स

इस तरह का प्रचारप्रसार कोई नई या अनूठी बात नही है क्योंकि धर्म कोई भी हो वह लोगों को अपने हिसाब से हांकना चाहता है जिस से उस का नियन्त्रण समाज पर बना रहे और दुकान फलतीफलती रहे. धर्म तो सहवास के मुहूर्त भी बताता है. इतनी बंदिशें खासतौर से महिलाओं पर धर्म ने सैक्स को ले कर थोप रखी हैं कि उन का सैक्स करना ही दूभर हो जाए.

कोलकाता हाई कोर्ट का फैसला इसी माहौल की झोंक की देन लगता है. नहीं तो कोई वजह नहीं है कि वह संविधान का उल्लंघन करते फैसला दे, राज धार्मिक टाइप के लोगों का है समाज पर कब्जा उन्हीं का है, घरों के बेडरूम तक में उन का दखल बढ़ रहा है. पूजापाठ, पाखंड व शबाब पर हैं. ऐसे में कोर्ट अगर अदालतें भी बहकने लगें तो फिर देश का भगवान ही मालिक है.

सबरीमाला के फैसले से जो उम्मीद महिलाओं को बंधी थी वह फिर खतरे में है. सुप्रीम कोर्ट की पहल स्वागत योग्य है लेकिन बड़ा दोष उन लोगों का है जो बात बात पर हल्ला मचाते रहते हैं. लेकिन बात लड़कियों की आजादी पर बंदिश की आती है तो धर्म के साथ हो लेते हैं. यही लोग चाहते हैं कि लड़कियां नौकरी कर पैसे तो ला कर दें लेकिन घूमेफिरें नहीं. लड़कों से दोस्ती न करें, शादी पेरेंट्स की मर्जी से करें, सैक्स तो बिलकुल न करें और घर में गाय की तरह बंधी रहें. अब अगर धर्म और अदालत भी ऐसा ही कहने लगे हैं तो ये तो मुंह में दही जमा कर रखेंगे ही.

लोकसभा से महुआ मोइत्रा का ‘हुक्का पानी बंद’

टीएमसी यानी तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा पर पैसे ले कर सवाल पूछने और अपना ईमेल का पासवर्ड कारोबारी हीरानंदानी को देने का आरोप लगा था. लोकसभा की संसदीय समिति ने महुआ मोइत्रा की सदस्यता रद्द कर दी.

महुआ मोइत्रा ने कहा कि ‘सरकार संसदीय समिति को हथियार बना कर विपक्ष को झुकने के लिए मजबूर कर रही है. उपहार और नकदी से ले कर किसी तरह की सुविधा लेने के सबूत के बिना केवल शिकायती शपथ पत्र के आधार पर उन्हें दोषी ठहराया गया. यह कानून और संविधान का मखौल उड़ाना है. समिति ने उन्हें झुकाने के लिए अपने ही तमाम नियम तोड़े हैं और उन को बिना सुबूत के सजा दी है.

तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा ‘भाजपा लोकतांत्रिक रूप से नहीं लड़ पा रही है इसलिए राजनीति प्रतिशोध लेती है. एक महिला विशेष कर युवा पीढ़ी की अगुवाई करने वाली नेता का जिस तरह से उत्पीड़न किया गया है वह लोकतंत्र की हत्या की गई है.

‘मैं उस की निंदा करती हूं और तृणमूल कांग्रेस पूरी तरह से महुआ मोइत्रा के साथ थी, है और रहेगी.’

असल में जिस समय महुआ मोइत्रा अपनी लड़ाई लड़ रही थी बारबार यह बात कहने का प्रयास किया जा रहा था कि तृणमूल कांग्रेस और उस की प्रमुख ममता बनर्जी महुआ के साथ नहीं है. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चैधरी ने 2 घंटे में 400 से अधिक पन्नो की रिपोर्ट पर चर्चा पर सवाल उठाते हुए कहा कि नई संसद में एक महिला सांसद के खिलाफ ऐसा फैसला नहीं होना चाहिए. मामले की सुनवाई के लिए दोचार दिन की मोहलत देनी चाहिए.

संसद में यह सवाल भी उठा कि आचार समिति को किसी सांसद की सदस्यता खत्म करने जैसी सजा देने का अधिकार ही नहीं है.

पौराणिक कानून के सामने सब फेल

संसद में औरत और कानून की बात कही गई लेकिन जो सरकार पौराणिक कानून से चलती है वहां ऐसे तर्क कोई नहीं सुनता. विरोध की आवाज नक्कार खाने में तूती की आवाज बन कर रह जाती है. महाभारत जैसे तमाम पौराणिक ग्रंथों में इस तरह की तमाम घटनाएं मिल जाती है.

महाभारत में भरी सभा में द्रौपदी का अपमान हो या रामायण में सीता का निष्कासन औरत की बात को कभी सुना नहीं गया. सुपर्णखा के साथ जो हुआ इस तरह की घटनाओं से साफ था कि औरतों को अलगथलग कर दिया जाता था. समाज उन के साथ अछूतों का व्यवहार करने लगता था. उन की सफाई को कभी सुना ही नहीं जाता था. इस डर से औरतें सच का समाज के सामने कहने से डरती थी.

महाभारत में कुंती यह जानती थी कि कर्ण उन का बेटा है लेकिन उन्होंने कभी समाज के सामने इस बात को स्वीकार नहीं किया. जिस का पाप जीवन भी कर्ण को झेलना पड़ा. उसे हमेशा ही सूत पुत्र कह कर संबोधित किया गया. अछूत बना कर लोगों को समाज से काट दिया जाता था.

महाभारत में विधुर का महात्मा जरूर कहा जाता था लेकिन उन की बातों को कभी सम्मान नहीं दिया गया. एकलव्य का अगूंठा इसलिए कटवा लिया क्योंकि वह अछूत था. औरतों को एक तरह से समाज से अलगथलग कर उन का हुक्का पानी बंद कर दिया जाता था.

अंग्रेजी सेना के ब्राहमण राजपूत सिपाहियों का हाल

हुक्का बंद करने की शुरूआत पौराणिक काल में अलग तरह से थी. उन को समाज की मुख्यधारा से काट दिया जाता था. बाद में इस ने दूसरा रूप लिया. तब इस को हुक्का पानी बंद करने की सजा के रूप में दिया जाने लगा. इस का देश और समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता रहा है.

अंग्रेज जब भारत आए तो यहां जो मुगलों की सेना थी वह तोप, हाथी और घोड़ों से लड़ाई लड़ती थी. तोपों को इधर से उधर ले जाना कठिन काम होता था. उस में समय भी लगता था. उस समय तक अंग्रेजों ने बंदूक बनाने का काम शुरू कर दिया था.

बंदूक से छिप कर वार करना सरल था. पैदल लड़ने वाले सिपाहियों के हाथ में तलवार और भाला के मुकाबले यह बहुत कारगर हथियार बन गया था. सन 1800 के आसपास अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में राजपूतों और ब्राह्मणों को भर्ती करना शुरू किया. अंग्रेजों को लगा था कि यह लड़ाकू लोग हो सकते हैं. सेना में ब्राह्मणों को खास महत्व दिया गया. यहां भी पौराणिक कानून का हुक्का पानी बंद काम करने लगा.

बन्दूंक को चलाने के लिए सब से पहले उस में एक कारतूस भरा जाता था. इस में जो बारूद प्रयोग किया जाता था वह चर्बी के खोल में होता था. बंदूक में डालने से पहले मुुंह से नोच कर चर्बी को बाहर करना होता था तब कारतूस को बंदूक में डाल कर फायर करना होता था. यह बात पहले तो ब्राह्मणों को पता नहीं थी धीरेधीरे ब्राह्मण समाज में यह बात फैलने लगी.

इस प्रभाव यह हुआ कि जो ब्राह्मण सेना में नहीं थे उन लोगों ने सेना में काम करने वाले ब्राह्मणों का सामाजिक बहिष्कार करना शुरू कर दिया. उन का हुक्का पानी बंद कर दिया. इस के बाद ही अंग्रेजी सेना में ब्राह्मण सिपाहियों ने चर्बी वाले कारतूसों को चलाने से मना करना शुरू कर दिया.

यह हुक्का पानी बंद करने का प्रभाव आजादी के बाद भी समाज के अलगअलग वर्गों में प्रभावी रहा. देश की आजादी के बाद जब देश में संविधान लागू हुआ तो ऐसे कानून दरकिनार होने लगे. नए ऐसे कानून भी बने जिस में महिलाओं को अधिकार दिए जाने लगे.

यूपीए की सरकार के दौरान महिला हिंसा के नाम कानून बनेे. लड़कियों को जायदाद में हिस्सा देने के कानून बने.

‘सेंगोल’ बना राजशाही की निशानी

2014 में जब मोदी सरकार आई तो देश को पौराणिक कानून से चलाने का काम किया जाने लगा. नई संसद में जब ‘सेंगोल‘ को स्थापित किया गया उसी समय यह तय हो गया था कि न्याय अब पौराणिक कानून अब सनातन और संस्कार के हिसाब से चलेगा.

यही नहीं संविधान के साथ ही साथ जिस भारतीय दंड संहिता को अपनाया गया था अब उन कानूनों को भी नई तरह से अपनाए जाने की पहल की जा रही है.

नई संसद ने जिस तरह से महुआ मोइत्रा के खिलाफ फैसला आया वह इस बात पर मोहर लगा रहा है कि अब पौराणिक कानून के हिसाब से राज चलेगा. वाचाल महिलाओं को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. खासकर तब जब वह राजा या राजा के तोते पर सवाल उठाने का काम करेगी.

संसद की समिति ने जिस तरह से महुआ से पूछताछ में व्यक्तिगत सवाल किए वह भी आपत्तिजनक रहे हैं. महुआ ने इस को ले कर समिति का बायकौट भी किया था. उस घटना से ही अंदाजा लग गया था कि सजा देने के पीछे की मंशा क्या है ?

यह सजा कोई बड़ा महत्व नहीं रखती क्योंकि अब 2024 के लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. इस तरह महिला विरोधी फैसले भाजपा के सामने जनता के बीच सवाल बन कर खड़े होंगे.

भारतीय क्षेत्र में अवैध प्रवास रोकने के लिए केंद्र ने क्या किया, बताए – सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6 ए की वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को एक लंबाचौड़ा होमवर्क दे दिया है. कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार बताए कि उस ने –

– देश की सीमा को सुरक्षित बनाने के लिए क्याक्या कदम उठाए हैं और क्या कर रही है ?
– बौर्डर के कितने एरिया में तार का बाड़ क‍िया गया है और इस के लिए कितना पैसा सरकार ने अब तक निवेश किया है?
– अधिनियम की धारा 6ए के तहत सिर्फ असम में ही आने वाले बांग्लादेशियों के लिए क्यों भारतीय नागरिकता का प्रावधान किया गया? पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों को क्यों छोड़ दिया गया?
– क्या सरकार के पास ऐसा डेटा उपलब्ध है कि बांग्लादेश से असम आने वाले लोगों की तादाद पश्चिम बंगाल की अपेक्षा ज्यादा थी?

कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा है कि –

– असम में कितने फौरेन ट्रिब्यूनल है?
– ट्रिब्यूनल के सामने कितने केस पेंडिंग हैं?
– 1 जनवरी 1966 से पहले असम आने वाले कितने प्रवासियों को भारत की नागरिकता दी गई है ?
– जनवरी 1966-71 के बीच बांग्लादेश से असम आने वाले कितने प्रवासियों को भारत की नागरिकता मिल पाई?
– 25 मार्च 1971 के बाद कितने लोग बांग्लादेश से असम आये?
– जो लोग 1971 के बाद असम आए, उन्हें वापस भेजने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए ?

नागरिकता अधिनियम की धारा-6ए के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट का ज्यादा जोर यह जानने पर था कि बार बार एनआरसी और सीएए का डर जनता को दिखाने वाली केंद्र की बीजेपी सरकार ने आखिर देश की सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए क्या कदम उठाए हैं?

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि यदि हम धारा 6ए की पुष्टि करते हैं तो 1971 के बाद हम ने क्या किया है? पीठ के जस्टिस सुंदरेश ने कहा कि आप पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों में आमद का प्रस्ताव कैसे देते हैं?

गौरतलब है कि धारा 6ए असम समझौते के दायरे में आने वाले प्रवासियों को नागरिकता देने से संबंधित है.

धारा 6ए के अनुसार, जो लोग 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच भारत में आए हैं, और असम में रह रहे हैं, उन्हें खुद को नागरिक के रूप में पंजीकृत करने की अनुमति दी जाएगी. इस मामले के परिणाम का राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) सूची पर एक बड़ा असर पड़ेगा. क्योंकि इस धारा के सहारे ही केंद्र सरकार 1971 के बाद आने वाले बांग्लादेशी लोगों को डिटेंशन सेंटर में डालने या देश से बाहर खदेड़ने का मंसूबा पाले बैठी है.

मामले की सुनवाई करते हुए सीजेआई ने कहा कि हम कोई सत्तावादी देश नहीं हैं और हमें कानून के शासन के अनुसार, चलना होगा और यदि इस का पालन नहीं किया गया तो वास्तविक लोगों को बाहर निकाला जा सकता है.

सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कर रही है कि यह एक अभेद्य सीमा है और क्या कार्यकारी कदम उठाए गए हैं? क्या निवेश किया गया है और सीमा पर बाड़ लगाने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?

सीजेआई ने कहा कि “मैं जानता हूं कि आप एक जटिल मुद्दे से निपट रहे हैं, क्योंकि आप ऐसे लोगों से निपट रहे हैं जिन की खानपान की आदतें, पहनावा, शारीरिक विशेषताएं समान हैं.”

इस पर सौलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र का पक्ष रखते हुए कहा कि बिल्कुल यह समान है और केंद्र सभी कदम उठा रहा है ताकि कोई अवैध प्रवास ना हो.

सौल‍िस‍िटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने 6A के चलते प्रवासियों की बड़ी संख्या के चलते राज्य की जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ने, मूल निवासियों के रोजगार घटने, उन के संसाधनों पर कब्जा होने को ले कर जो चिंता जाहिर की है, वो सही हो सकती है पर 6 ए को असंवैधानिक करार देना इस का समाधान नहीं है. 6 ए का दायरा सीमित है. ये प्रावधान एक खास वक़्त में एक राज्य विशेष (असम) में एक देश विशेष (बांग्लादेश) से आने वाले प्रवासियों के लिए है.

सीजेआई ने कहा कि फिर हम जानना चाहते हैं कि पश्चिम बंगाल को नागरिकता देने से बाहर क्यों रखा गया? तर्क यह नहीं हो सकता कि असम में आंदोलन था. पश्चिम बंगाल को अकेला क्यों छोड़ दिया गया? अब पश्चिम बंगाल में क्या स्थिति है?

सीजेआई ने कहा क‍ि सीमा की सुरक्षा के लिए केंद्र क्या कर रहा है? सीमा पर बाड़ लगाई जा रही है या नहीं और सीमा पर कितनी दूरी तक बाड़ लगाई गई है? गृह सचिव को भी इस पर अपना दिमाग लगाना चाहिए.

इस पर तुषार मेहता ने समय मांगते हुए कहा कि इन पहलुओं पर हम एक हलफनामा दायर करेंगे.

कोर्ट ने सरकार को हलफनामा दायर करने के लिए 2 दिन का समय दिया है. हालांकि कोर्ट में सरकार से सख्त और परेशान करने वाले सवाल इस पेचीदा मामले में पूछे, कोर्ट कोई क्रांतिकारी निर्णय देगी इस की आशा कम है क्योंकि हाल में कोर्ट ने कोई ऐसा निर्णय नहीं दिया है जिस से सरकार की अपनी मनमानी रुकी हो.

विंटर में क्या खाएं ?

जिस तरह से हमारे देश में कई तरह के मौसम होते हैं उसी तरह हर मौसम के हिसाब से खानेपीने की चीजें भी उपलब्ध हैं. इन को मौसमी खानपान कहा जाता है. अगर मौसम के हिसाब से डाइट में सीजनल चीजों को शामिल करेंगे तो बौडी को उस मौसम से लड़ने के पोषक तत्त्व मिलेंगे जिस से बीमारी से बचाव होगा और बौडी मौसम के हिसाब से फिट रहेगी. हमारे देश में विंटर सीजन की शुरुआत अक्तूबरनवंबर से फरवरीमार्च तक रहती है. ऐसे समय कई लोग ऐसे होते कि जिन को सीजन बदलते समय दिककत हो जाती है. उन्हें अपनी डाइट और ऐक्सरसाइज का खास खयाल रखना चाहिए.

लखनऊ के स्किन और क्योर क्लीनिक की डाक्टर रुचि सिंह कहती हैं, ‘‘अगर हम मौसम के हिसाब से अपनी डाइट रखें तो न केवल हम बीमारियों से बचे रहेंगे बल्कि हमारी बौडी में ताकत और एनर्जी बनी रहेगी और वह बीमारियों से लड़ सकेगी.’’

कई लोग विंटर में नौनवेज फूड खाना पसंद करते हैं. नौनवेज से बौडी को आयरन और प्रोटीन भरपूर मात्रा में मिलते हैं जो बौडी के मेटाबौलिज्म को बढ़ा कर बीमारी से बचाने का काम करते हैं.

शरीर को गरम रखते हैं हौट ड्रिंक्स : ठंड भगाने के लिए हौट ड्रिंक्स पीना सभी उम्र के लोगों के लिए बेहद जरूरी होता है. इस को अगर बदलबदल कर सेवन करते हैं तो स्वाद भी बना रहता है और हर तरह की बौडी की जरूरत पूरी हो जाती है. विंटर की हौट ड्रिंक्स में चाय, कौफी, फ्लेवर्ड दूध, सूप, जूस और काढ़ा प्रमुख रूप से आते हैं.

घी का सेवन : विंटर सीजन में घी का प्रयोग सब से जरूरी होता है. इस का उपयोग दाल, सब्जियां, चपाती, दूध और पूरीपरांठा के साथ किया जा सकता है. घी के अलावा दही भी शरीर के तापमान को उच्च रखता है. यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत करता है. यह जरूरी है कि आप व्यायाम भी करते रहें.

तुलसी और शहद का मिश्रण लाभकारी : विंटर में तुलसी और शहद के सेवन से इम्यूनिटी बूस्ट होती है. तुलसी और शहद के गुण बौडी को ठंड और बीमारियों से बचाते हैं. तुलसी के पत्ते शहद के साथ चबा सकते हैं. तुलसी के पत्तों को पानी में उबाल कर पी भी सकते हैं. लेकिन बीमार पड़ने पर इसे उपचार न मानें. यह खाने में स्वाद व रंगत के लिए अच्छा है.

पेट और सेहत दोनों के लिए लाभकारी बाजरे की रोटी : सर्दी में बाजरे की रोटी को डाइट में शामिल करना चाहिए. यह शरीर को गरम रखने में मदद करती है. इस में प्रोटीन, कैल्शियम, फाइबर और विटामिन बी भी पाए जाते हैं जो सर्दी में बौडी को फिट रखते हैं.

ठंड से बचाते ड्राईफ्रूट्स : विंटर में ड्राईफ्रूट्स का सेवन बौडी को पर्याप्त एनर्जी देने का काम करते हैं. ड्राईफ्रूट्स गरम होते हैं. इस से बौडी को गरमी और सर्दीजुकाम से बचाव होता है. ड्राईफ्रूट्स में बादाम, किशमिश, मूंगफली, काजू और अखरोट अंजीर, खजूर प्रमुख होते हैं.

लहसुन हर तरह से करें सेवन : लहसुन का सेवन सर्दी में करना सेहत के लिए ठीक रहता है. लहसुन को मसाले के साथ और खाने में कच्चा शामिल कर सकते हैं. लहसुन का सूप, चटनी या अचार भी खा सकते हैं. इस के अलावा लहसुन की 1-2 कली सुबह खाली पेट भी खा सकते हैं. लहसुन शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाता है. लहसुन का प्रयोग करने से विंटर इन्फैक्शन से भी बचा जा सकता है.

गुड़ की मिठास देगी ताकत : गुड़ में तमाम पोषक तत्त्व होते हैं. ऐसे में गुड़ का सेवन सर्दी में ठंड से बचाव करता है. गुड़ की चाय, गुड़ के लड्डू आदि का सेवन लाभकारी है.

सूप स्वाद और सेहत का खजाना : विंटर में टमाटर सूप, ब्रोकली सूप, बीन्स सूप, वैजिटेबल सूप, प्याज सूप, चिकन सूप ठंड को भगाने का बेहतरीन उपाय हैं. सूप में चुटकीभर नमक, काली मिर्च, दालचीनी डाल कर स्वाद बढ़ाएं. सूप विंटर में बौडी को एनर्जी देने का काम करते हैं.

विंटर में हरी सब्जियां : विंटर सीजन में तरहतरह की हरी सब्जियां बौडी की इम्यूनिटी को बूस्ट करने का काम करती हैं. इन सब्जियों में पालक, मेथी, सरसों का साग, बथुआ, हरी मटर प्रमुख होती है.

इस तरह से अपने खानपान का ध्यान रखेंगे तो विंटर सीजन का आनंद ले सकेंगे.

घर को ऐसे गरम रखें

सर्दी में घर को गरम रखने के क्याक्या जतन हम और आप नहीं करते. इस के बाद भी ठंड कहीं न कहीं से दाखिल हो ही आती है. लेकिन बहुत सारे उपाय एकसाथ अपनाए जाएं तो ठंड के प्रकोप से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है. आइए जानें वे उपाय जिन से घर को गरम रखा जा सकता है.

  • सर्दी में घर को गरम रखने का सब से आसान और कारगर तरीका सुबह और शाम के वक्त खिड़कियां व दरवाजे बंद रखने का है. इस वक्त ठंडी हवा घर में घुस आती है जिस से घर में ठंडक बनी रहती है.
  • जिन शहरों में प्रदूषण बहुत ज्यादा है वहां खिड़कियांदरवाजे खोलने से पहले जांच लें कि एयर क्वालिटी इंडैक्स क्या है.
  • खिड़की और दरवाजों पर मोटे कपड़े के परदे लगाने से हवा अंदर नहीं आ पाती जिस से घर ठंडा नहीं हो पाता. परदे गहरे रंग के हों तो गरमाहट का एहसास बना रहता है.
  • रोशनदानों को सर्दी के मौसम में बंद ही रखना चाहिए जिस से हवा न आए.
  • खिड़की और दरवाजों में आमतौर पर छोटेमोटे सुराख होते ही हैं जिन से हो कर हवा आती रहती है और हमें इस की हवा नहीं लग पाती कि खिड़की, दरवाजे बंद होने के बाद भी ठंडक कहां से आ रही है. इस से बचने के लिए खिड़की, दरवाजे के गैप मोटे कपड़े, गत्ते या फिर थर्मोकोल से बंद कर देना चाहिए.
  • तेज ठंड पड़ने पर सुबहशाम घंटेदोघंटे के लिए रूमहीटर चालू करने से घर गरम बना रहता है. लेकिन याद रखें, हीटर या वार्मर ज्यादा देर तक नहीं चलाना चाहिए. इस से खर्च भी बढ़ता है और ज्यादा इस्तेमाल से सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है क्योंकि हवा में से ह्यूमिनिडिटी कम हो जाती है.
  • सर्दी का एक दिलचस्प अनुभव ठंडे बिस्तर पर जा कर उस के गरम होने का इंतजार करना है. इस से बचना चाहते हैं तो उन्हीं बैडशीट का इस्तेमाल करें जो जल्द गरम होती हों.
  • अगर बाथरूम अटैच है तो शावर स्टीम को कुछ देर के लिए खोल कर रखना चाहिए. इस से बैडरूम गरम होगा और शुष्क हवा में थोड़ी नमी आ जाती है. इस दौरान दूसरे दरवाजे, खिड़की बंद कर देने चाहिए ताकि ठंडी हवा न आ पाए.
  • सर्दी में फर्श ज्यादा ठंडे हो जाते हैं जिन का सीधा असर पैरों के साथसाथ शरीर पर भी पड़ता है. फर्श की ठंडक से अपनेआप को बचाने के लिए उस पर दरी या कालीन बिछाना चाहिए. इस से घर सुंदर भी दिखता है.
  • सोफे और कुशन के ऊनी कवर इस्तेमाल करने से ठंडक कम होती है.
  • लाइटिंग का हालांकि ठंड से सीधा संबंध नहीं है लेकिन डार्कलाइट से गरमाहट महसूस होती है. इसलिए सर्दी में डार्कलाइट इस्तेमाल करनी चाहिए.
  • इसी तरह कुछ कैंडिल या लैंप जला कर भी कमरों में गरमाहट लाई जा सकती है.
  • तेज सर्दी में हौट वाटर बैग भी एक बेहतर विकल्प है जिसे बिस्तर पर रख कर सोने से ठंड कम लगती है.
  • आजकल पुराने फैशन और चलन वापस लौट रहे हैं जिन में अलावा, अंगीठी या सिगड़ी भी शामिल हैं. इन में अंगारे रख कर घर को गरमाहट दी जा सकती है. इस के लिए पत्थर का कोयला हर कहीं आसानी से मिल जाता है. कुछ घंटों के लिए घर को गरम रखने का यह तरीका नई फीलिंग भी देता है. बाजार में टेराकोटा की अंगीठी, अलाव और सिगड़ी भी आसानी से मिल जाती हैं. इन्हें घर के किसी भी कोने में रखा जा सकता है पर ध्यान रहे, धुआं घर में रह न जाए, इस के लिए इसे ऐसी जगह रखें जहां से धुआं आसानी से घर से बाहर जा सके.
  • चलन तो ह्युमिडीफायर का भी बढ़ रहा है जिस के जरिए नम हवा को सूखी हवा में तबदील होने से रोका जा सकता है. इस से घर में ठंडक नहीं बढ़ती. घरों के लिए अल्ट्रासोनिक ह्यूमिडिफायर उपयुक्त रहते हैं. इन्हें 40 फीसदी ह्यूमिडिटी पर सैट करने से घर गरम बना रहता है. बाजार में 10 हजार रुपए में अच्छा ह्युमिडीफायर मिल जाता है. यह गरमी के लिए भी उपयोगी रहता है.
  • माइक्रोवेव भी घर को गरम रखने में उपयोगी होता है. इस के लिए उपयोग के बाद इसे खुला छोड़ देना चाहिए जिस से इस की गरम हवा आसपास की जगह को गरम कर दें.

शादी से पहले मैं फिजिकल रिलेशन नहीं बनाना चाहता हूं, ये बात मैं अपनी गर्लफ्रेंड को कैसे कहूं ?

सवाल

मैं लड़कियों की इज्जत करता हूं. मेरी उम्र 28 साल की है. इकलौता हूं. शुरू से ही मातापिता ने ऐसे संस्कार दिए कि मैं लड़कियों से तहजीब से पेश आता हूं. उन की हरसंभव मदद करने की कोशिश करता हूं. मेरी सोच के चलते लाइफ में लड़कियां तो बहुत आईं लेकिन सोलमेट जैसी बात किसी में दिखी ही नहीं. अब कुछ महीने हुए एक लड़की की तरफ मैं आकर्षित हो रहा हूं लेकिन वही प्रौब्लम मेरे सामने आ रही है. वह मुझ से बातें करती है, फ्रैंक है. लेकिन कई बार उस के हावभाव से मुझे लगता है कि वह मुझ से प्यार के बजाय कुछ और चाहती है, जो मुझे हरगिज मंजूर नहीं. शादी से पहले फिजिकल रिलेशन मैं हरगिज नहीं बना सकता. मैं कुछ कन्फ्यूज हो रहा हूं या मुझे कुछ गलतफहमी हो रही है. उस का प्यार सच्चा है या लस्ट, कैसे जानूं?

जवाब

वैसे युवकों के सामने भी यह समस्या आती है. कोई लड़की उन्हें प्रेम की नजरों से देख रही है या वह कुछ और चाहती है. ऐसे में कुछ बातें हैं जिन पर गौर कर के आप पता लगा सकते हैं कि लड़की उस से प्यार चाहती है या उस के पीछे है लस्ट.

यदि वह लड़की बारबार आप से बात करने या आप के पास आने का बहाना ढूंढ़ती है तो मामला प्यार के बजाय लस्ट का हो सकता है. अगर वह लड़की आप से किसी दूसरी लड़की की बौडी या उस के किसी खास पार्ट के बारे में आप से खुल कर चर्चा करती है तो मुमकिन है कि वह आप को अंतरंग संबंध बनाने के लिए प्रेरित कर रही हो.

अगर वह आप को टच करते वक्त कुछ अजीब नजरों से देखे तो सम झ जाएं कि मामला लव का नहीं, हर टच का मीनिंग अलग होता है. गौर कीजिए कि वह लड़की आप का ध्यान अपने कुछ खास अंगों की ओर खींचने की कोशिश तो नहीं करती. जानबू झ कर अपने कपड़ों को बारबार संवारने की कोशिश तो नहीं करती तो सम झ जाइए कि वह फिजिकल रिलेशन बनाने में इंट्रैस्टेड है.

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