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मेरी आंखों के पास साइन औफ ऐजिंग आने लगे हैं, बताएं मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं केवल 35 साल की हूं और अभी से मेरी आंखों के पास साइन औफ ऐजिंग दिखने लगे हैं, बताएं मैं इससे छुटकारा कैसे पाऊं ?

जवाब

हमें आंखों के पास लाइन औफ ऐजिंग दिखने से पहले ही अपनी स्किन की देखभाल शुरू कर देनी चाहिए और अंडर आई क्रीम का इस्तेमाल करना चाहिए.

आंखों के नीचे मसाज हमेशा रिंग फिंगर से चारों और करनी चाहिए, क्योंकि इस से स्किन पर बहुत कम प्रैशर लगता है. अंडर आई क्रीम के अंदर आंखों को आराम व पोषण पहुंचाने वाले तत्त्व होते हैं. मार्केट में आई क्रीम उपलब्ध है जैसे जैल बेस्ड क्रीम.

यह त्वचा में जल्दी औब्जर्व हो जाती है और स्किन को हाईड्रेट करती है. इस के अलावा जैल का एहसास आंखों को ठंडक भी पहुंचाता है. जैल क्रीम का इस्तेमाल रात और दिन दोनों वक्त कर सकती हैं.

सीरम- इस में त्वचा को रिपेयर करने वाले तत्त्व कौन्संट्रेटेड फौर्म में होते हैं जिस कारण यह बहुत कम मात्रा में लगता है और ज्यादा असरदार होता है. जबकि क्रीम माइल्ड होती है. इसी कारण सीरम क्रीम से ज्यादा बेहतर होता है.

कैप्सूल्स- सीरम की तरह कैप्सूल्स में भी इन्ग्रीडिएंट्स कौन्संट्रेटेड वर्जन में होते हैं. इन कैप्सूल्य को फोड़ कर इन का लिक्विड निकाल कर लगाने से काफी फायदा होता है.

डॉ. प्रिया आईएएस : भाग 3

उस दिन मैं खूब रोई थी. मैं समझ नहीं पाई थी कि लाइन में लगने से किसी पिता को कैसे

झुकना पड़ता है? इस में सूसाइड करने वाली क्या बात है? वे मेरे पिता कैसे हो सकते हैं जो बातबात पर सूसाइड की धमकी देते हैं. मन हुआ था, मैं अभी उठ कर घर चली जाऊं. पर बीमार थी, इसलिए जा नहीं पाई.

डाक्टर ने चैक किया, सब ठीक था. कहा, ‘सब ठीक है. इसे खूब खेलने और खाने को दो. खूब

बातें करे. यह डिप्रैशन का शिकार है. ये कुछ दवाइयां हैं, खाती रहे. इस से भूख लगेगी और नींद आएगी.’

उस दिन से मैं खेल न सकी, खाने को मिला लेकिन कई बातों के साथ. खुद बना कर खाना पड़ता था. मन के भीतर पिता को ले कर आज भी जबरदस्त आक्रोश है. क्या सच में पिता ऐसे होते हैं? यह प्रश्न उस समय भी पीड़ा देता था और आज भी पीड़ा देता है. यह सब सोचतेसोचते जाने कब आंख लग गई.

नींद खुली तो इंटरकौम की घंटी बज रही थी. मैं ने हैलो कहा. उधर से आवाज आई, “हैलो, डा. प्रिया, गुडमौर्निंग. मैं नागौर की जिलाधीश, डा. रजनी शेखावत बोल रही हूं. नागौर की डीएम

पोस्ट पर आप का स्वागत है और बधाई.’’

“गुडमौर्निंग मैम, थैंक्स मैम.’’

‘‘मैं ने आप को इसलिए फोन किया है कि पूछूं, आप ठीक से सैटल हो गईं? रैस्ट हाउस में कमरा

ठीक मिला? सब तरह की सुविधाएं हैं? कोई तकलीफ तो नहीं?”

“बिल्कुल सैटल हो गई हूं, मैम. हर तरह की सुविधा है. 2 इंस्पैक्टर चौबीस घंटे मेरा ध्यान

रखने के लिए डिटेल हैं.”

‘‘ठीक है, अपना ध्यान रखना. इंस्पैक्टर को बताए बिना कहीं नहीं जाना है, ओके. सोमवार को

मिलते हैं, बाय.’’

“बाय मैम.’’

मन खुश हो गया था. एक महिला जिलाधीश के अंडर में काम करने का मौका मिलेगा. बहुतकुछ सीखने को मिलेगा.

मन किया कि चाय पिऊं. मैं ने मैस में और्डर किया. दस मिनट में शानदार चाय आई. चाय पी कर मैं फिर लेट गई. मैं फिर अपने में खोने लगी. एक बार मेरे लिए नवलग से रिश्ता आया था. लड़के का खुद का कपड़े का व्यापार था. नानानानी बोले थे, ‘कर दो शादी.

बहुत पैसा है. पढ़ाई में कहां सिर फोड़ेगी?’

मन गुस्से से भर उठा था. कैसी घटिया सोच है? लड़की को घर से बाहर धकेल दो. चाहे बाहर नर्क हो या गहरा कुआं? इन लागों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. सदियों से चली आ रही इस सोच में अकसर सभी लड़कियां बह जाती हैं. उन को जीवन में कोई थाह नहीं मिलती है. जीवनभर वे नर्कों में जीती हैं. दोष कर्मों को दिया जाता है. सच में यह क्या कर्मविधान है? बचपन से हमें यही सिखाया जाता है.

एक बजने वाला था. एक से तीन बजे लंच करने का टाइम था. मैं धीरेधीरे तैयार हुई और लिफ्ट की ओर बढ़ी. लिफ्ट के आगे बने हौल में बहुत से सोफे लगे थे. उस पर बैठी इंस्पैक्टर संगीता तुरंत मेरे साथ हो ली, कहा, ‘‘मैडम, जब आप कमरे से बाहर निकलने लगें, हमें जरूर बताएं.’’

“पर इतने बंधन क्यों? ये कुछ ज्यादा ही बंधन नहीं हैं?”

‘‘मैडम, ऐसे ही आदेश हैं. हमें इन आदेशों का पालन करते रहना है. कृपया सहयोग करें.’’

मैं कुछ नहीं बोली थी. मैस के डाइनिंग हौल में जब मैं बैठ गई तो इंस्पैक्टर संगीता ने कहा,

‘‘मैडम, मैं बाहर बैठी हूं.’’

खाना खा कर मैं बाहर आई तो इंस्पैक्टर संगीता फिर मेरे साथ हो ली. खाना बहुत टैस्टी और

शानदार था. लिफ्ट में मैं ने बताया, ‘‘इंस्पैक्टर संगीता, मैं शाम को 5 बजे सुपरमार्केट जाना

चाहूंगी.’’

‘‘ठीक है, मैडम. इंस्पैक्टर रवीना आप को एस्कोर्ट करेगी. 5 वजे वह आप को रिपोर्ट करेगी.

मेरी डयूटी 5 बजे तक ही है.’’

मैं अपने कमरे में लौट आई. 5 बजे इंस्पैक्टर रवीना आई और मैं उस के साथ सुपरमार्केट

जा कर सामान ले आई. रात को डिनर किया और सो गई.

दूसरे रोज संडे था. नाश्ते के बाद मेरे लिए कोई काम नहीं था. मैं पलंग पर लेटी और फिर नींद की आगोश में चली गई. लंच के समय मैस में गई. लंच किया और सो गई. नींद पूरी ही नहीं हो रही थी.

शाम को 5 बजे उठी. मन हुआ, स्कूल के सर को फोन करूं. थोड़ी देर में यह विचार भी त्याग दिया. सोचा, सरकारी विजिट पर जाऊंगी तो मिलूंगी. इंस्पैक्टर रवीना से पूछा कि पास में कोई पार्क है जहां घूमा जा सके?

‘‘है, मैडम. आप तैयार हो जाएं. मैं आप को ले चलती हूं.’’

पार्क मैं खूब घूमती रही. लौटी तो काफी थक गई थी. डिनर किया और सो गई.

सुबह बेड टी ली, नाश्ता किया और औफिस के लिए तैयार हो गई. पहले दिन जब मैं औफिस की कुरसी पर बैठी तो यकीन नहीं हुआ कि मैं आईएएस हूं और जिला नागौर की डीएम हूं. मेरी शानदार टेबल पर डा. प्रिया, आईएएस, का छोटा बोर्ड रखा गया.

मैं फिर विचारों में खो गई. मुझे शोध के लिए यानी पीएचडी के लिए नागौर पीजी में आना था.

घर में तूफान मचा हुआ था. मां, पिता, भाई और रिश्तेदार सभी यही कह रहे थे कि पीजी में जाओगी तो घर से सारे रिश्ते तोड़ कर जाओगी.

मेरा पारा भी हाई था. मैं सब को छोड़ कर चली आई थी. उस के बाद मैं जिंदा हूं या मर गई हूं. मैं ने सब कैसे मैनेज किया होगा, घर वालों को इस से कोई मतलब नहीं था. उन के लिए मैं जीतेजी मर गई थी. इस बात को 5 साल बीत गए हैं.

भीतर तक मैं कड़वाहट से भर गई थी.

मैं ने अपने मन और मस्तिष्क से सब को निकाल दिया था. 10 बजे मेरे लिए चाय आई और सरकारी डाक ले कर इंचार्ज हाजिर हुआ.

‘‘मैडम, हर मंगलवार आप को जिले की विजिट

करनी होती है. इस का कार्यक्रम जिलाधीश औफिस से आता है. लेकिन मैडम ने पहला प्रोग्राम आप से पूछने के लिए कहा है कि आप सब से पहले कहां विजिट करना चाहेंगी?’’

‘‘मैं डीडवाना तहसील के जायल कसबे की विजिट करना चाहूंगी.’’

उसी के अनुसार कार्यक्रम बन गया. जायल की पंचायत को बता दिया गया था. उन्हीं के साथ मेरा लंच था. मुझे बता दिया गया था कि मुझे क्याक्या चैक करना है, क्याक्या प्रोग्रैस देखनी है.

मेरे पिता उस कसबे के सरपंच थे. शायद आज भी हों. मेरे घर वालों को यकीन ही नहीं होगा कि मैं डीएम बन गई हूं और सरकारी विजिट पर आऊंगी. मन के भीतर मोह यह था कि मैं उन के चेहरे के भाव देखूं. केवल दादी मेरी पढ़ाई से खुश होती थी, ‘मैडम, बैग ले कर औफिस जाया करेगी.’

मैं मैडम बनी लेकिन इतनी बड़ी मैडम बनूंगी, शायद किसी को भी यकीन नहीं होगा.

उन्होंने तो मुझे कब का मार दिया था. मन कसैला हो गया था. मैं ने सोमवार शाम को ही जाने की सारी तैयारियां कर ली थीं. मुझे सहयोग करने वाला सारा अमला आज

दोपहर को ही वहां पहुंच गया था.

मंगलवार को सुबह मैं ने नाश्ता किया और शानदार रेशमी साड़ी पहनी. अपने को शीशे में देखा तो यकीन नहीं हुआ कि मैं इतनी सुंदर हूं. जीवन में कभी मैं ने अपना ख़याल नहीं रखा था. जो मिला, पहन लिया. जो मिला, खा लिया. साड़ी पहनने के मूल में विचार यह था कि देखने वालों को लगना चाहिए कि मैं डीएम हूं. मन के भीतर कहीं आक्रोश रूप में यह मोह भी था कि अपने मांबाप को बताऊं कि मैं वही प्रिया हूं. कुछ भी हो, मैं चाहे जितना मरजी इनकार करूं, मन में चाहे कितना भी विरोध और आक्रोश हो, संतान तो मैं उन्हीं की हूं. जा तो मैं अपने पैतृक कसबे में ही रही हूं न. अपनी मिट्टी से घुलमिल जाने का अवसर है जिस में रह कर मैं बड़ी हुई हूं. मैं जब तैयार हो कर गाड़ी में बैठी तो दोनों इंस्पैक्टरों ने मुझे सैल्यूट किया. तेजी से जायल

की ओर बढ़े. मैं ने आंखों पर काला चश्मा लगा लिया था इसलिए कि आंखों से मेरे मन के भाव कोई न समझ सके. डीएम औफिस के इंचार्ज पंचायत को मेरे रास्ते की अपडेट दे रहे थे.

जायल पंचायत घर पहुंचतेपहुंचते दोपहर हो गई थी. मेरे स्वागत में पंचों के साथ मेरे पिता भी

हार ले कर खड़े थे. मैं कार से उतरी तो सभी ने मुझे हार भेंट किए. मेरे पिता ने मुझे कभी इस रूप में देखा नहीं था, इसलिए वे जल्दी मुझे पहचान नहीं पाए. जब पहचाना तो आंखें फटी की फटी रह गईं. मुंह से एक शब्द न निकला. कहते भी क्या. कहने लायक थे ही नहीं.

मैं मन से सख्त हो गई थी. सख्ती से इंस्पैक्शन भी किया. कमियां तुरंत पूरी करने के लिए कहा. मैं नागौर लौटने लगी तो पिता मेरे सामने हाथ बांध कर खड़े हो गए. सिर झुका हुआ था, कहा, ‘‘मैडम जी.’’ वे मुझे मेरे बचपन के नाम से पुकार नहीं पाए. ‘‘मानता हूं, मैं इस लायक भी नहीं हूं कि आप को अपनी बेटी कह सकूं. आप के साथ मैं ने ही नहीं, सारे परिवार और

रिश्तेदारों ने बहुत बुरा किया है. जो हुआ, सदियों से चले आ रहे विचारों और संस्कारों के कारण हुआ.

बच्चियों के लिए आज भी यही सोच है. आज भी बच्चियां पढ़ नहीं पाती हैं, जल्दी ब्याह दी जाती हैं. सारी जिंदगी नर्क भोगती हैं. इन से कब उबरेंगे, पता नहीं.

“मैं, मैडम जी, यह प्रार्थना ले कर हाजिर हुआ हूं कि मेरी पत्नी बहुत बीमार है.’’ वे यह नहीं

कह सके कि मेरी मां बीमार है. ‘‘यदि आप घर चल कर उन को देख लेतीं तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

मैं भीतर से पिघलने लगी थी. मैं अपने पिता को इस तरह गिड़गिड़ाते हुए तो देखना नहीं चाहती थी. वे मेरे पिता हैं. मेरी मां ने मुझे जन्म दिया है और बड़ा किया है. मैं तो केवल उन के चेहरे के भावों को देखना चाहती थी. इन्होंने मेरे साथ वही किया जो उस दौर की सभी बच्चियों के साथ होता था. आंखों के कोर गीले हो गए थे. चश्मा पहने होने के कारण दिखाई नहीं दिए.

मैं पंचायत औफिस में वापस आ कर बैठ गई, इंचार्ज से बोला, ‘‘यहां की डिस्पैन्सरी की डाक्टर से मेरी बात करवाएं.

फोन मिलाया गया. उधर से हैलो कहने पर मैं ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘क्या आप अभी मेरे साथ चल कर एक सीरियस पेशेंट को देख सकती हैं? मैं गाड़ी भेजूं? मैं जायल के पंचायत घर में बैठी हूं.’’

‘‘मैं अभी हाजिर होती हूं,’’ डा. प्रोमिला ने कहा.

मैं डाक्टर को ले कर घर पहुंची तो मां बिस्तर पर लेटी हुई थी. शरीर से कमजोर हो गई थी.

मैं ने डाक्टर प्रोमिला से कहा, ‘‘डाक्टर साहिबा, यह मेरी मां है और मेरे पिता इस कसबे के सरपंच हैं.

“मैं इसी कसबे की मिट्टी में पल कर बड़ी हुई हूं. आप चैक करें और इन्हें ठीक कर दें.’’

मेरी आवाज सुन कर मां ने एक बार आंखें खोलीं. कुछ बोलना चाहा, लेकिन कमजोरी के कारण बोल न पाईं.

‘‘ओह, अच्छा. अच्छा हुआ आप ने मुझे बता दिया. मैं चैक कर के बताती हूं.’’

चैक करने के बाद डाक्टर ने कहा, ‘‘कमजोरी है. लेकिन कमजोरी से अधिक इन्हें मानसिक संताप है. मैं अभी से ताकत के इंजैक्शन दे रही हूं. कुछ दवाइयां हैं जो डिस्पैन्सरी से मिल जाएंगी.’’

डाक्टर ने परची मेरे पिता की ओर बढ़ा दी

और कहा, ‘‘कोई पैसा नहीं देना है. मैं ने कंपाउंडर को फोन कर दिया है.’’

पिता ने भाई को परची दे कर भेज दिया.

‘‘अगर आप कहें तो मैं इन्हें नागौर ले जा सकती हूं,’’ मैं ने डाक्टर से कहा.

‘‘नहीं, जरूरत नहीं है. मैं यहां हूं. रोज आप को अपडेट देती रहूंगी. आप को अपने औफिस से इन का डिपैंडैंट लैटर भेज देना है.’’

मैं मां के पास भीतर गई. सिर पर हाथ रखा.

एक बार आंखें खोल कर मां ने मुझे देखा. आंखों से अश्रुधारा बह निकली. मैं ने आंसू पोंछे और जल्दी से आ कर गाड़ी में बैठ गई. मुझे मां का संताप मिटाने के लिए इस से अच्छा रास्ता कोई नहीं सूझा.

घर के सारे लोग और आसपास के लोग भी मुझे देखने और विदा करने को आ कर खड़े हो गए थे.

मेरी कार तेजी से नागौर की ओर भाग रही थी.

गर्म चाय पीने वाले हो जाएं सावधान, हो सकता है कैंसर

अधिकतर लोगों को सुबह जागते ही गर्म चाय पीने की आदत होती है. ये चाय उन्हें फ्रेश करने का काम करती है. पहले भी कई शोधों में ये बात सामने आ चुकी है कि चाय के प्रयोग से सेहत का काफी नुकसान होता है. इसमें पाए जाने वाली कैफीन से बहुत सी बीमारियां हो सकती हैं. ऐसे में हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम चाय के अत्यधिक प्रयोग से बचें. इन सब के बीच चाय से होने वाले स्वास्थ नुकसान पर एक और खबर सामने आई है जो चाय के प्रेमियों को उदास कर सकती है.

हाल में सामने आई एक स्टडी की रिपोर्ट की माने तो गर्म चाय पीने से एसोफैगल कैंसर होने का खतरा अधिक हो जाता है. यह स्टडी इंटरनेशनल जर्नल औफ कैंसर में प्रकाशित हुई है. रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि जो लोग 75 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक गर्म चाय पीते हैं, उन्हें दूसरों के मुकाबले एसोफैगल कैंसर होने का खतरा दुगना होता है.

आपको बता दें कि इस शोध में 40 से 75 साल के करीब 50 हजार लोगों को शामिल किया गया. स्टडी के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया प्रतिदिन 700 मिलीलीटर तेज गर्म चाय पीने से एसोफैगल कैंसर होने का खतरा 90 फीसदी तक बढ़ सकता है. शोधकर्ताओं ने बताया कि चाय के अलावा ग्रम कौफी, हौट चौकलेट और दूसरी गर्म चीजों का सेवन भी सेहत के लिए हानिकारक होता है.

जानकारों ने आगे से भी बताया कि एसोफेगल कैंसर से बचने के लिए ये जरूरी नहीं कि आप चाय पीना ही छोड़ दें. बल्कि इसे बिल्कुल गर्म स्थिति में ना पिएं. चाय के ठंडा होने का इंतजार करें. ऐसी छोटी सावधानियों से आप कैंसर के खतरे से बच सकते हैं.

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जमीं और आस्मां मुट्ठी में : पति की बेवफाई से तप कर सोना हुई युवती की कहानी

“शिव्या… शिव्या कहां हो? हर समय कमरे में घुसी रहती हो. कभी तो बाहर निकला करो. तुम तो बस अपनी बहन में ही रमी रहती हो. तुम तो भूल रही हो कि तुम्हारा एक अदद इकलौता जीजा भी इसी घर में रहता है,” कियान ने अपनी पत्नी देबोमिता की बड़ी बहन शिव्या से उपहास करते हुए कहा.

“नहीं कियान, ऐसी तो कोई बात नहीं. बस जरा कल के लैक्चर की तैयारी कर रही थी. देबू कहां है? मैं उसे अभी तुम्हारे पास भेजती हूं.”

“तुम्हारी देबू तो सोने चली गई. वह तो हर समय आने वाले बच्चे के सपनों में खोई रहती है. दिनरात बस उसी की बातें. मैं तो भई उस से और उस की बातों से पक गया हूं. अच्छीभली फिगर का सत्यानाश कर लिया है उस ने तो.”

कियान की बातें सुन शिव्या के जेहन में मानो घंटी बज गई, ‘यह कियान को क्या हुआ? कितनी फालतू बात कर रहा है! अब देबू प्रैगनैंट है तो फिगर तो खराब होगी ही. किस किस्म का इंसान है यह?’

“शिव्या, चलो जरा लौंग ड्राइव पर चलते हैं. यहां पास ही बेहद शानदार तवा आइसक्रीम पार्लर खुला है. वहां तवा आइसक्रीम खा कर आते हैं.”

“कियान, मुझे अप्रैल फूल बना रहे हो क्या? यह तवा आइसक्रीम कौन सी आ गई?”

“शिव्या, कौन सी दुनिया में रहती हो भई? पार्लर वाला आइसक्रीम तवे पर तुम्हारे सामने लाइव बना कर देगा. वहीं देख लेना, कैसे बनती है. कोई अप्रैल फ़ूल नहीं बना रहा मैं तुम्हें. बस, अब तुम झटपट तैयार हो कर आ जाओ.”

“ओके, अभी आई. जरा देबू को भी देख लूं. वह चले तो उस का भी जी बहल जाएगा. पूरे दिन घर ही घर में बंद रहती है.”

“अरे, उसे तो रहने ही दो. वह इतना बड़ा ढोल सा पेट ले कर कहां इस वक्त जाएगी?”

“क्यों? हमारे साथ जाने में हरज ही क्या है? वह भी फ्रैश फील कर लेगी.”

“देबू… अरे ओ देबू… चल रही है क्या आइसक्रीम खाने?” वह धड़धड़ाती हुई अपनी 8 माह की प्रैगनैंट छोटी बहन देबोमिता के कमरे में घुस गई जहां वह दीवार की ओर मुंह किए लेटी हुई थी.

“देबू… देबू… कियान और मैं जरा लौंग ड्राइव पर जा रहे हैं. पूरा दिन घर में बंद रहती है तू. हमारे साथ जाएगी तो अच्छा लगेगा.”

“न शिवि, मुझे नहीं जाना. तू ही चली जा कियान के साथ. मुझे तो बहुत जोरों की नींद आ रही है,” उस ने उबासी भरते हुए कहा.

“श्योर नहीं जाना?”

“हां… हां…कह तो दिया, नहीं जाना. तू चली जा.”

जून का महीना आधा खत्म होने आया था, लेकिन तूफान के चलते कल शहर में घनघोर बारिश हुई थी, जिस के चलते फिजा में अभी तक ठंडक थी.

कियान ने अपनी गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश की लेकिन वह स्टार्ट नहीं हुई,”अरे, यह तो चालू ही नहीं हो रही? अब क्या करें? मेरे मुंह में तो भई आइसक्रीम का जबरदस्त स्वाद आ रहा है. मौसम भी इतना खुशगवार हो रहा है. आज तुम्हारी मोटरसाइकिल पर लौंग ड्राइव का मजा लेते हैं.”

“नहीं कियान, अब मोटरसाइकिल चलाने का मेरा मन नहीं.”

“अरे, अभी रात के 10 ही तो बजे हैं. अब आइसक्रीम का मूड बन गया तो बन गया. डोंट बी ए स्पौयल सट शिव्या. कमऔन, मैं चलाऊंगा मोटरसाइकिल,” कियान का आखिरी वाक्य सुन शिव्या चिहुंक पड़ी.

“नहीं, मैं अपनी बाइक किसी को भी नहीं देती.”

“छोड़ो न कियान, अब तो देबू भी सो चुकी है. कल पक्का उसे ले कर तुम्हारी यह तवा आइसक्रीम खाने जाएंगे. पक्का…”

“ नहीं… नहीं, वह तो आज ही खाने जाएंगे.”

“तुम नहीं मानोगे. शिव्या ने बाहर पोर्च में जा कर कियान को अपने पीछे बैठा कर बाइक स्टार्ट कर दी और तेज गति से बाइक खाली सड़क पर दौड़ा दी. बाइक के दौड़ते ही कियान गुनगुनाने लगा, “मौसम है आशिकाना…” शीतल मंद हवा से बातें करते हुए शिव्या भी बेफिक्री के आलम में बह चली. उस ने बाइक की स्पीड और बढ़ा दी.

तभी कियान बोल पड़ा, “तू जिस से शादी करेगी वह बहुत खुशकिस्मत इंसान होगा. काश…” कहते हुए कियान ने एक लंबी सांस भरी.

“यों लंबीलंबी सांसें क्यों ले रहे हो कियान? तुम ने ही तो देबू को चाहा और वह तुम्हें मिल गई. फिर यह काश क्यों कियान?”

“बस ऐसे ही…कुछ नहीं.”

“नहींनहीं, कियान. कुछ तो है जो तुम छिपा रहे हो. बोलो न क्या बात है?”
शिव्या के कुरेदते ही वह जैसे फट पड़ा,”कभीकभी मुझे लगता है कि देबू मेरे लिए नहीं बनी. पार्टनर के रूप में उस का चुनाव कर के मैं ने बहुत बड़ी गलती की.”

“यह तुम क्या कह रहे हो? याद है, तुम ही तो देबू के पीछे नहाधो कर पड़े थे.”

“सब याद है शिव्या. उसी बात का तो रोना है कि मैं उसे पहले पहचान ही नहीं पाया. तुम्हारी बहन तो बहुत घरेलू है, बिलकुल बहनजी टाइप. मुझे तो तुम जैसी बिंदास, ऐडवैंचरस और बोल्ड लड़की चाहिए थी, जिस के साथ हर लमहा एक ऐडवैंचर होता. तुम्हारी यह देबू तो बेहद बोर है.”

तभी सामने तवा आइसक्रीम पार्लर आ गया और शिव्या ने एक झटके से अपनी बाइक रोक दी. सामने पार्लर में एक मशीन के ऊपर गोल तवा सा बना हुआ था, जिस पर एक पार्लरकर्मी 2 स्पैटुला से तेज गति से खटखट करते हुए फ्रूट्स, दूध, ड्राई फ्रूट्स आदि के मिक्सचर को तेज गति से चला रहा था.

“क्यों भैया, यह तवा क्या गरम है? गरम तवे पर आप की आइसक्रीम पिघलती नहीं?”

“मैम, यह बस देखने भर का ही तवा है. यह गरम नहीं ठंडा है, जिस का टैंपरेचर माइनस में जाता है.”

“अरे, मैं तो कुछ और ही सोच बैठी थी. गरम तवे पर आइसक्रीम कैसे बनेगी?”

उस की हैरान मुखमुद्रा देख कियान बहुत जोरों से हंस पड़ा, “बना दिया न अप्रैल फूल तुम्हें.”

अपने मनपसंद फ्लैवर की आइसक्रीम खा कर दोनों फिर से बाइक पर बैठ गए, लेकिन पार्लर में बैठे हुए और फिर घर वापसी के दौरान शिव्या के अंतर्मन में गहन उठापटक चल रही थी,’यह कियान इतना गलत कैसे हो सकता है? साफसाफ कह रहा है कि देबू बहनजी टाइप बोर है.’

शिव्या इन्हीं विचारों में गुम तेज गति से बाइक दौड़ा रही थी कि तभी उस ने महसूस किया कि कियान के हाथों ने उस की कमर को अपने शिकंजे में जकड़ लिया और अपना चेहरा उस के कंधों में गड़ा बुदबुदा रहा था, “शिव्या, माई डियर, मुझे तो बिलकुल तुम्हारी जैसी स्मार्ट और बोल्ड बीवी की ख्वाहिश थी…” तभी उस की नजदीकी और अल्फाजों से असहज होते हुए क्षण भर को कुछ सोचने के बाद वह बेहद गुस्से से चिल्लाई, “कियान, तुम्हें होश भी है कि तुम क्या कर रहे हो और क्या कह रहे हो? मेरी बहन तुम्हारी बीवी है और तुम अपनी ही साली पर डोरे डाल रहे हो? मैं इतनी गिरी हुई नहीं हूं कि तुम्हारे झांसे में आ जाऊं. मैं तुम्हें और टौलरेट नहीं कर सकती. मैं जा रही हूं बाय…” कहतेकहते शिव्या कियान को बीच सड़क पर छोड़ हवा की गति से फुर्र हो गई.

कियान के इस ओछेपन से उस के मन में मानो ज्वारभाटा उठ रहा था. तो कियान की असली सूरत यह है? वह इतना सस्ता और छिछोरा टाइप इंसान है उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. मेरी देबू की तो जिंदगी खराब हो गई. ऐसे लीचड़ इंसान के साथ वह पूरी उम्र कैसे काटेगी? जब कियान को मुझ पर डोरे डालने से गुरेज नहीं, तो वह तो किसी को भी नहीं छोड़ता होगा. उस के अंतर्मन में खयालों का जलजला आया हुआ था. सगी बहन की चिंता उसे खाए जा रही थी कि वह ऐसी विकृत मानसिकता के इंसान के साथ पूरी जिंदगी कैसे बिताएगी?

रात को शिव्या की आंखों में नींद का दूरदूर तक नामोनिशान नहीं था. वह घोर बेचैनी के आलम में करवटें बदल रही थी. यों ही गहन विकलता के समंदर में डूबतेउतराते देर रात उस की आंखें लगीं. सुबह नाश्ते पर डाइनिंग टेबल पर कियान से उस की मुलाकात हुई, लेकिन उस बेगैरत बंदे के चेहरे पर रात की बात का तनिक भी मलाल न था.

“गुड मौर्निंग साली साहिबा, मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि आप के सीने में दिल नहीं पत्थर है पत्थर. अमां यार, छोटी सी जिंदगी है. इसे मौजमस्ती से गुजारी जाए तो आखिर इस में हरज ही क्या है? आखिर साली आधी घरवाली तो होती ही है न फिर आगबबूला होने की जरूरत क्या है आखिर?”

“मिस्टर कियान, कितनी घटिया सोच है आप की? मस्ती करनी है तो आप के पास देबू है न. खबरदार जो आइंदा मेरे साथ किसी भी किस्म की लिबर्टी लेने की कोशिश की,” कहते हुए शिव्या घोर गुस्से से उठ कर वहां से चली गई.

कियान के स्वाभाव की असलियत जान कर वह अपने आपे में न थी. वह सोच रही थी, ‘यह कियान तो बेहद लंपट इंसान निकला.’

दिन यों ही गुजर रहे थे. शिव्या की कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इन परिस्थितियों में वह क्या करे? अभी प्रैगनैंसी के आखिरी दौर में वह उस के सामने कियान की असलियत जाहिर भी नहीं कर सकती. नियत समय पर देबोमिता ने एक स्वस्थ और सुंदर बेटे को जन्म दिया. कियान की असलियत से अनजान देबोमिता बेहद खुश थी. हर समय चहकती रहती, लेकिन शिव्या जबजब उसे देखती, यह सोच कर उस का कलेजा मुंह को आ जाता कि कभी कियान की वास्तविकता देबोमिता पर जाहिर हो गई तो क्या होगा?”

कियान के चरित्र के बदसूरत पक्ष से परिचित शिव्या अब कियान के ऊपर कड़ी नजर रखने लगी थी. उस की रीयल फितरत से वाकिफ होने के लिए. उस के पास किसी का फोन आता तो उस के कान खड़े हो जाते, कहीं किसी लड़की का फोन तो नहीं. वह देबोमिता के भविष्य को ले कर बेहद फिक्रमंद हो गई थी. अभी साल भर पहले ही कोरोना के चलते उन दोनों के पेरैंट्स की असमय मौत के बाद से छोटी देबोमिता अब उस की जिम्मेदारी थी.

तभी एक दिन उस के सामने कियान की वास्तविकता का खुलासा हो ही गया. उस दिन शिव्या देबोमिता के बैडरूम में भांजे कृष को खिला रही थी कि तभी उस ने देखा कियान अपना मोबाइल वहीं छोड़ कर नहाने चला गया. तभी देबोमिता भी अपने रूम से किसी काम से बाहर गई और शिव्या बहनोई की जासूसी की मंशा से झटपट उस का व्हाट्सऐप चेक करने लगी. व्हाट्सऐप पर जो उस ने देखा उस के हाथों के मानो तोते उड़ गए .

कियान की 5-6 लड़कियों से चैटिंग थी, जिन्हें जल्दीजल्दी पढ़ कर वह जैसे आसमान से गिरी. सभी लड़कियों के साथ अश्लीलता की हद लांघते हुए चैटिंग थी. उन्हें भेजी हुई पोर्न वीडियो की क्लिपिंग्स भी थी. तभी देबोमिता के बैडरूम में आने की आहट हुई और उस ने झपट कर कियान का फोन वापस पलंग पर रख दिया.

कियान के बाथरूम से बाहर निकलते ही देबोमिता बाथरूम में घुस गई.
कियान के दोगलेपन का प्रत्यक्ष प्रमाण पा शिव्या गुस्से में उबल रही थी और कियान को देखते ही उस के फोन की अश्लील चैट उसे दिखाते हुए उस पर फट पड़ी, “कियान, यह सब क्या है? मैं ने क्या सोच कर तुम्हारे साथ अपनी बहन की शादी की थी और तुम क्या निकले? इतनी खूबसूरत, जहीन और प्यारी बीवी के होते हुए तुम जगहजगह मुंह मार रहे हो? उसे खुलेआम धोखा दे रहे हो?”

गुस्से में शिव्या को यह खयाल भी न रहा कि देबोमिता बाथरूम में उन दोनों की बातें सुन सकती है. शिव्या की बातें सुन कियान का चेहरा जर्द पड़ गया और अपना परदाफाश होते देख वह बौखलाते हुए उस पर दांत भींच कर घोर गुस्से से उस पर आंखें तरेरते हुए चिल्लाया, “मेरा फोन चेक करने की तुम्हारी जुर्रत कैसे हुई? मेरी जिंदगी मेरी है. मैं अपनी निजी जिंदगी में कुछ भी करूं, तुम्हें इस से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. तुम्हारी बहन को मैं कुछ कहूं या करूं तो मुझ से कुछ कहना. उसे पूरा मानसम्मान देता हूं, फिर भी?”

तभी एकाएक बाथरूम का दरवाज़ा खुला और धारधार बिलखती देबोमिता बाहर आई और वह झपट कर कियान का फोन उठा कर दौड़ कर अगले ही लम्हे यह कहते हुए बाथरूम में बंद हो गई कि उस ने शिव्या और कियान की बातें सुन ली हैं.

यह सब पलक झपकते ही इतनी जल्दी हुआ कि शिव्या कुछ समझ ही नहीं पाई. कुछ देर बाद जब उसे होश आया तो वह बाथरूम का दरवाजा पीटने लगी.

उधर जान से प्यारे पति की सचाई जान देबोमिता की दुनिया एक ही लम्हे में उलटपुलट हो गई. उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उस के पांव तले जमीन ही खिसक गई हो. बेहद गुस्से में उस ने सामने शेल्फ में रखी कैंची उठाई और ताबड़तोड़ उस से अपने हाथों की नसें काट लीं और चीखने के साथ बेहोश होते हुए जमीन पर कटे पेड़ की भांति ढह गई. इधर उसकी चीत्कार सुन शिव्या बाथरूम का दरवाजा पीटते हुए चिल्लाई, “देबू… देबू… दरवाजा खोलो. देबोमिता… ” लेकिन भीतर से बहन की घुटीघुटी कराहों की आवाजें आ रही थीं.
अनहोनी का अंदाजा लगा कर शिव्या कियान पर चिल्लाई, “कियान, दरवाजा तोड़ो जल्दी.”

कुछ ही देर में दरवाजा टूट गया. भीतर का नजारा देख शिव्या और कियान का खून मानो बर्फ बन गया. भीतर शिव्या खून से लथपथ फर्श पर पड़ी हाथपांव मारते हुए छटपटा रही थी. कियान और शिव्या आननफानन में उसे सब से नजदीकी अस्पताल ले गए.

समय पर मैडिकल सहायता मिलने की वजह से देबोमिता की जान बच गई. देबोमिता को अस्पताल से डिस्चार्ज हुए माह भर होने आया.
इस 1 माह में वह 21-22 साल की बेफिक्र बिंदास युवती से एक परिपक्व संजीदा शख्सियत में बदल गई,”शिव्या, मुझे कियान से डाइवोर्स चाहिए. मैं अपनी पूरी जिंदगी इस लीचड़ इंसान के साथ कतई नहीं बिता सकती.”

“ठीक है, मैं क्या कहूं अगर तेरा यही फैसला है तो मुझे कोई दिक्कत नहीं.”

कियान और देबोमिता के डाइवोर्स को पूरे 3 साल बीत चुके हैं. इन 3 सालों में देबोमिता अपनी मेहनत और शिव्या के सहयोग से आत्मविश्वास से भरपूर एक वर्किंग प्रोफैशनल में तबदील हो चुकी है. तलाक की अरजी कोर्ट में देने के बाद 1 साल के भीतर उस का तलाक हो गया था. कम उम्र में अपनी शिक्षा पूरी किए बिना कुछ सोचेसमझे एक चरित्रहीन युवक के प्यार में अंधी हो कर मात्र सालभर की पहचान में उस से विवाह करने का भारी खामियाजा वह उठा चुकी थी.

कियान से तलाक की अरजी कोर्ट में देने के बाद वह जीजान से एमबीए के लिए कैट के ऐग्जाम की तैयारी में जुट गई थी. इतना सबकुछ सह कर पढ़ाई में जी रमाना आसान न था, लेकिन अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर और बहन के सहयोग और प्रोत्साहन से उस ने कैट क्लीयर किया और एक नामचीन बिजनैस स्कूल से एमबीए पूरा किया. संस्थान में पढ़तेपढ़ते आखिरी साल में कैंपस प्लेसमैंट में उस की नौकरी एक प्रतिष्ठित एमएनसी में लग गई.

आज ही उस की पहली तनख्वाह की मोटी रकम उस के बैंक अकाउंट में आई थी. औफिस में अपने केबिन में लैपटौप पर अपनी पहली पेस्लिप देखते हुए अपूर्व खुशी से उछल रही थी. अनायास न जाने क्यों बरसों से भूलेबिसरे कियान का चेहरा उस के जेहन में कौंध उठा और वह मुंह ही मुंह में बुदबुदाई,’थैंक यू कियान. थैंक यू वेरी मच. जिंदगी में तुम न मिले होते तो आज मुझे यह मुकाम न मिला होता.’

औफिस से निकल कर एक अनूठे आत्मविश्वास से भरपूर आंखों में एक सुनहरे भविष्य का सपना संजोए वह तेज चाल से गुनगुनाते हुए एटीएम की ओर चल पड़ी. आज जमीं और आसमां दोनों उस की मुट्ठी में थे.

मां और मोबाइल : क्या थी मां की ख्वाहिश ?

‘‘मेरा मोबाइल कहां है? कितनी बार कहा है कि मेरी चीजें इधरउधर मत किया करो पर तुम सुनती कहां हो,’’ आफिस जाने की हड़बड़ी में मानस अपनी पत्नी रोमा पर बरस पड़े थे.

‘‘आप की और आप के बेटे राहुल के कार्यालय और स्कूल जाने की तैयारी में सुबह से मैं चकरघिन्नी की तरह नाच रही हूं, मेरे पास कहां समय है किसी को फोन करने का जो मैं आप का मोबाइल लूंगी,’’ रोमा खी?ापूर्ण स्वर में बोली थी.

‘‘तो कहां गया मोबाइल? पता नहीं यह घर है या भूलभुलैया. कभी कोई सामान यथास्थान नहीं मिलता.’’

‘‘क्यों शोर मचा रहे हो, पापा? मोबाइल तो दादी मां के पास है. मैं ने उन्हें मोबाइल के साथ छत पर जाते देखा था,’’ राहुल ने मानो बड़े राज की बात बताई थी.

‘‘तो जा, ले कर आ…नहीं तो हम दोनों को दफ्तर व स्कूल पहुंचने में देर हो जाएगी…’’

पर मानस का वाक्य पूरा हो पाता उस से पहले ही राहुल की दादी यानी वैदेहीजी सीढि़यों से नीचे आती हुई नजर आई थीं.

‘‘अरे, तनु, मेरे ऐसे भाग्य कहां. हर घर में तो श्रवण कुमार जन्म लेता नहीं,’’ वे अपने ही वार्त्तालाप में डूबी हुई थीं.

‘‘मां, मु?ो देर हो रही है,’’ मानस अधीर स्वर में बोले थे.

‘‘पता है, इसीलिए नीचे आ रही हूं. तान्या से बात करनी है तो कर ले.’’

‘‘मैं बाद में बात कर लूंगा. अभी तो मु?ो मेरा मोबाइल दे दो.’’

‘‘मु?ो तो जब भी किसी को फोन करना होता है तो तुम जल्दी में रहते हो. कितनी बार कहा है कि मु?ो भी एक मोबाइल ला दो, पर मेरी सुनता ही कौन है. एक वह श्रवण कुमार था जिस ने मातापिता को कंधे पर बिठा कर सारे तीर्थों की सैर कराई थी और एक मेरा बेटा है,’’ वैदेहीजी देर तक रोंआसे स्वर में प्रलाप करती रही थीं पर मानस मोबाइल ले कर कब का जा चुका था.

‘‘मोबाइल को ले कर क्यों दुखी होती हैं मांजी. लैंडलाइन फोन तो घर में है न. मेरा मोबाइल भी है घर में. मैं भी तो उसी पर बातें करती हूं,’’ रोमा ने मांजी को सम?ाना चाहा था.

‘‘तुम कुछ भी करो बहू, पर मैं इस तरह मन मार कर नहीं रह सकती. मैं किसी पर आश्रित नहीं हूं. पैंशन मिलती है मु?ो,’’ वैदेही ने अपना क्रोध रोमा पर उतारा था पर कुछ ही देर में सब भूल कर घर को सजासंवार कर रोमा को स्नानगृह में गया देख कर उन्होंने पुन: अपनी बेटी तान्या का नंबर मिलाया था.

‘‘हैलो…तान्या, मैं ने तुम से जैसा करने को कहा था तुम ने किया या नहीं?’’ वे छूटते ही बोली थीं.

‘‘वैदेही बहन, मैं आप की बेटी तान्या नहीं उस की सास अलका बोल रही हूं.’’

‘‘ओह, अच्छा,’’ वे एकाएक हड़बड़ा गई थीं.

‘‘तान्या कहां है?’’ किसी प्रकार उन के मुख से निकला था.

‘‘नहा रही है. कोई संदेश हो तो दे दीजिए. मैं उसे बता दूंगी.’’

‘‘कोई खास बात नहीं है, मैं कुछ देर बाद दोबारा फोन कर लूंगी,’’ वैदेही ने हड़बड़ा कर फोन रख दिया था. पर दूसरी ओर से आती खनकदार हंसी ने उन्हें सहमा दिया था.

‘कहीं छोकरी ने बता तो नहीं दिया सबकुछ? तान्या दुनियादारी में बिलकुल कच्ची है. ऊपर से यह फोन. स्थिर फोन में यही तो बुराई है. घरपरिवार को तो क्या सारे महल्ले को पता चल जाता है कि कहां कैसी खिचड़ी पक रही है. मोबाइल फोन की बात ही कुछ और है…किसी भी कोने में बैठ कर बातें कर लो.’ उन की विचारधारा अविरल जलधारा की भांति बह रही थी कि अचानक फोन की घंटी बज उठी थी.

‘‘हैलो मां, मैं तान्या. मां ने बताया कि जब मैं स्नानघर में थी तो आप का फोन आया था. कोई खास बात थी क्या?’’

‘‘खास बात तो कितने दिनों से कर रही हूं पर तुम्हें सम?ा में आए तब न. अरे, जरा अक्ल से काम लो और निकाल बाहर करो बुढि़या को. जब देखो तब तुम्हारे यहां पड़ी रहती है. कब तक उस की गुलामी करती रहोगी?’’

‘‘धीरे बोलो मां, कहीं मांजी ने सुन लिया तो बुरा मानेंगी.’’

‘‘फोन पर हम दोनों के बीच हुई बात को कैसे सुनेगी वह?’’

‘‘छोड़ो यह सब, शनिवाररविवार को आप से मिलने आऊंगी तब विस्तार से बात करेंगे. जो जैसा चल रहा है चलने दो. क्यों अपना खून जलाती हो.’’

‘‘मैं तो तेरे भले के लिए ही कहती हूं पर तुम लोगों को बुरा लगता है तो आगे से नहीं कहूंगी,’’ वैदेही रोंआसे स्वर में बोली थीं.

‘‘मां, क्यों मन छोटा करती हो. हम सब आप का बड़ा सम्मान करते हैं. यथाशक्ति आप की सलाह मानने का प्रयत्न करते हैं पर यदि आप की सलाह हमारा अहित करे तो परेशानी हो जाती है.’’

‘‘लो और सुनो, अब तुम्हें मेरी बातों से परेशानी भी होने लगी. ठीक है, आज से कुछ नहीं कहूंगी,’’ वैदेही ने क्रोध में फोन पटक दिया था और मुंह फुला कर बैठ गई थीं.

‘‘क्या हुआ, मांजी, सब ठीक तो है?’’ उन्हें दुखी देख कर रोमा ने प्रश्न किया.

‘‘क्यों? तुम्हें कैसे लगा कि सब ठीक नहीं है?’’ वैदेही ने प्रश्न के उत्तर में प्रश्न ही पूछ लिया.

‘‘आप का मूड देख कर.’’

‘‘मैं सब सम?ाती हूं. छिप कर मेरी बातें सुनते हो तुम लोग. इसीलिए तो मोबाइल लेना चाहती हूं मैं.’’

‘‘मैं ने आज तक कभी किसी का फोन वार्त्तालाप नहीं सुना. आप को दुखी देख कर पूछ लिया था. आगे से ध्यान रखूंगी,’’ रोमा तीखे स्वर में बोली और अपने काम में व्यस्त हो गई.

वैदेही बेचैनी से तान्या के आने की प्रतीक्षा करती रही कि कब तान्या आए और कब वे उस से बात कर के अपना मन हलका करें पर जब सां?ा ढलने लगी और तान्या नहीं आई तो उन का धीरज जवाब देने लगा. मानस सुबह से अपने मोबाइल से इस तरह चिपका था कि उन्हें तान्या से बात करने का अवसर ही नहीं मिल रहा था.

‘‘मु?ो अपनी सहेली नीता के यहां जाना है, मांजी. मैं सुबह से तान्या दीदी की प्रतीक्षा में बैठी हूं पर लगता है कि आज वे नहीं आएंगी. आप कहें तो मैं थोड़ी देर के लिए नीता के घर हो आऊं. उस का बेटा बीमार है,’’ रोमा ने आ कर वैदेही से अनुनय की तो वे मना न कर सकीं.

रोमा को घर से निकले 10 मिनट भी नहीं बीते होंगे कि तान्या ने कौलबेल बजाई.

‘‘लो, अब समय मिला है तुम्हें मां से मिलने आने का? सुबह से दरवाजे पर टकटकी लगाए बैठी हूं. आंखें भी पथरा गईं.’’

‘‘इस में टकटकी लगा कर बैठने की क्या बात थी, मां?’’ मानस बोल पड़ा, ‘‘आप मु?ा से कहतीं मैं तान्या दीदी से फोन कर के पूछ लेता कि वे कब तक आएंगी.’’

‘‘लो और सुनो, सुबह से पता नहीं किसकिस से बात कर रहा है तेरा भाई. सारे काम फोन कान से चिपकाए हुए कर रहा है. बस, सामने बैठी मां से बात करने का समय नहीं है इस के पास.’’

‘‘क्या कह रही हो मां. मैं तो सदासर्वदा आप की सेवा में मौजूद रहता हूं. फिर राहुल है, रोमा है जितनी इच्छा हो उतनी बात करो,’’ मानस हंसा.

‘‘2 बेटों, 2 बेटियों का भरापूरा परिवार है मेरा पर मेरी सुध लेने वाला कोई नहीं है. यहां आए 2 सप्ताह हो गए मु?ो, तान्या को आज आने का समय मिला है.’’

‘‘मेरा बस चले तो दिनरात आप के पास बैठी रहूं. पर आजकल बैंक में काम बहुत बढ़ गया है. मार्च का महीना है न. ऊपर से घर मेहमानों से भरा पड़ा है. 3-4 नौकरों के होने पर भी अपने किए बिना कुछ नहीं होता,’’ तान्या ने सफाई दी थी.

‘‘इसीलिए कहती हूं अपने सासससुर से पीछा छुड़ाओ. सारे संबंधी उन से ही मिलने तो आते हैं.’’

‘‘क्या कह रही हो मां, कहीं मांजी ने सुन लिया तो गजब हो जाएगा. बहुत बुरा मानेंगी.’’

‘‘पता नहीं तुम्हें कैसे शीशे में उतार लिया है उन्होंने. और 2 बेटे भी तो हैं, वहां क्यों नहीं जा कर रहतीं?’’

‘‘जौय और जोषिता को मांजी ने बचपन से पाल कर बड़ा किया है. अब तो स्थिति यह है कि बच्चे उन के बिना रह ही नहीं पाते. दोचार दिन के लिए भी कहीं जाती हैं तो बच्चे बीमार पड़ जाते हैं.’’

‘‘तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को कठपुतली बना कर रखा है उन्होंने. जैसा चाहते हैं वैसा नचाते हैं दोनों. सारा वेतन रखवा लेते हैं. दुनिया भर का काम करवाते हैं. यह दिन देखने के लिए ही इतना पढ़ायालिखाया था तुम्हें?’’

‘‘किसी ने जबरदस्ती मेरा वेतन कभी नहीं छीना है मां. उन के हाथ में वेतन रखने से वे लोग भी प्रसन्न हो जाते हैं और मेरे सासससुर भी वह पैसा अपनी जेब में नहीं रख लेते बल्कि उन्हें हमारे पर ही खर्च कर देते हैं. जो बचता है उसे निवेश कर देते हैं. ’’

‘‘पर अपना पैसा उन के हाथ में दे कर उन की दया पर जीवित रहना कहां की सम?ादारी है?’’

‘‘मां, आप क्यों तान्या दीदी के घर के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करती हैं,’’ इतनी देर से चुप बैठा मानस बोला था.

‘‘अरे, वाह, अपनी बेटी के हितों की रक्षा मैं नहीं करूंगी तो कौन करेगा. पर मेरी बेटी तो सम?ा कर भी अनजान बनी हुई है.’’

‘‘मां, मैं आप के सुझावों का बहुत आदर करती हूं पर साथ ही घर की सुखशांति का विचार भी करना पड़ता है.’’

‘‘वही तो मैं कह रहा हूं. अपनी समस्याएं क्या कम हैं, जो आप तान्या दीदी की समस्याएं सुल?ाने लगीं? और मां, आप ने तो दीदी के आते ही अपने सुझावों की बमबारी शुरू कर दी. न चाय, न पानी…कुछ तो सोचा होता,’’ मानस ने मां को याद दिलाया.

‘‘रोमा अभी तक लौटी नहीं जबकि उसे पता था कि तान्या आने वाली है. फोन करो कि जल्दी से घर आ जाए.’’

‘‘फोन करने की जरूरत नहीं है. वह स्वयं ही आ जाएगी. उस की मां आई हुई हैं, उन से मिलने गई है.’’

‘‘मां आई हुई हैं? मुझ से तो कह कर गई है कि नीता का बेटा बीमार है. उसे देखने जा रही है.’’

‘‘उसे भी देखने गई है. कई दिनों से सोच रही थी पर जा नहीं पा रही थी. नीता के घर के पास रोमा के दूर के रिश्ते के मामाजी रहते हैं. वे बीमार हैं और रोमा की मम्मी उन्हें देखने आई हुई हैं.’’

‘‘ठीक है, सब समझ में आ गया. मां से मिलने जा रही हूं यह भी तो कह कर जा सकती थी, ?ाठ बोल कर जाने की क्या आवश्यकता थी. रोमा अपना फोन तो ले कर गई है?’’

‘‘हां, ले गई है.’’

‘‘ला, अपना फोन दे तो मैं उस से बात करूंगी.’’

‘‘क्या बात करेंगी आप? वह अपनेआप आ जाएगी,’’ मानस ने तर्क दिया.

‘‘फोन कर दूंगी तो जल्दी आ जाएगी. तान्या आई है तो खाना खा कर ही जाएगी न…’’

‘‘आप चिंता न करें मां, मैं खाना नहीं खाऊंगी. आप को जो खाना है मैं बना देती हूं,’’ तान्या ने उन्हें बीच में ही टोक दिया.

‘‘फोन तो दे मानस, रोमा से बात करनी है,’’ वैदेही जिद पर अड़ी थीं.

‘‘एक शर्त पर मोबाइल दूंगा कि आप रोमा से कुछ नहीं कहेंगी. बेचारी कभीकभार घर से बाहर निकलती है. दिनभर घर के काम में जुटी रहती है.’’

‘‘ठीक है, रोमा को कुछ नहीं कहूंगी, उस की मां से बात करूंगी. कहूंगी आ कर मिल जाएं. बहुत लंबे समय से मिले नहीं हम दोनों.’’

मां को फोन थमा कर मानस और तान्या रसोईघर में जा घुसे थे.

‘‘हैलो रोमा, तुम नीता के बीमार बेटे से मिलने की बात कह कर गई थीं. सौदामिनी बहन के आने की बात तो साफ गोल कर गईं तुम,’’ वैदेही बोलीं.

‘‘नहीं मांजी, ऐसा कुछ नहीं था. मु?ो लगा, आप नाराज होंगी,’’ रोमा सकपका गई.

‘‘लो भला, मांबेटी के मिलने से भला मैं क्यों नाराज होने लगी? सौदामिनी बहन को फोन दो जरा. उन से बात किए हुए तो महीनों बीत गए,’’ वैदेहीजी का अप्रत्याशित रूप से मीठा स्वर सुन कर रोमा का धैर्य जवाब देने लगा था. उस ने तुरंत फोन अपनी मां सौदामिनी को थमा दिया था.

‘‘नमस्ते, सौदामिनी बहन. आप तो हमें भूल ही गईं,’’ उन्होंने उलाहना दिया.

‘‘आप को भला कैसे भूल सकती हूं दीदी, पर दुनिया भर के पचड़ों से समय ही नहीं मिलता.’’

‘‘तो यहां तक आ कर क्या हम से मिले बिना चली जाओगी? मेरा तो सब से मिलने को मन तरसता रहता है. इसीलिए बच्चों से कहती हूं एक मोबाइल ला दो, कम से कम सब से बात कर के मन हलका कर लूंगी.’’

रसोईघर में भोजन का प्रबंध करते मानस और तान्या हंस पड़े थे, ‘‘मां फिर मोबाइल पुराण ले कर बैठ गईं, लगता है उन्हें मोबाइल ला कर देना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैं ने भी कई बार सोचा पर डरती हूं अपना मोबाइल मिलते ही वे हम भाईबहनों का तो क्या, अपने खानेपीने का होश भी खो बैठेंगी.’’

‘‘मुझे दूसरा ही डर है. फोन पर ऊलजलूल बात कर के कहीं कोई नया बखेड़ा न खड़ा कर दें.’’

‘‘जो भी करें, उन की मर्जी है. पर लगता है कि अपने अकेलेपन से जू?ाने का इन्होंने नया ढंग ढूंढ़ निकाला है.’’

‘‘चलो, तान्या दीदी, आज ही मां के लिए मोबाइल खरीद लाते हैं. इन का इस तरह फोन के लिए बारबार आग्रह करना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘चाय तैयार है. चाय पी कर चलते हैं, भोजन लौट कर करेंगे,’’ तान्या ने स्वीकृति दी थी.

‘‘मैं रोमा और जीजाजी दोनों को फोन कर के सूचित कर देता हूं कि हम कुछ समय के लिए बाहर जा रहे हैं.’’

‘‘कहां जा रहे हो तुम दोनों?’’ वैदेही ने अपना दूरभाष वार्त्तालाप समाप्त करते हुए पूछा.

‘‘हम दोनों नहीं, हम तीनों. चाय पियो और तैयार हो जाओ, आवश्यक कार्य है,’’ मानस ने उन का कौतूहल शांत करने का प्रयत्न किया.

वे उन्हें मोबाइल की दुकान पर ले गए तो उन की प्रसन्नता की सीमा न रही. मानो कोई मुंह में लड्डू ठूंस दे और उस का स्वाद पूछे.

वैदेहीजी के चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे लंबे समय से अपने मनपसंद खिलौने के लिए मचलते बच्चे को उस का मनपसंद खिलौना मिल गया हो.

उन्होंने अपनी पसंद का अच्छा सा मोबाइल खरीदा जिस से अच्छे छायाचित्र खींचे जा सकते थे. घर के पते आदि का सुबूत देने के बाद उन के फोन का नंबर मिला तो उन का चेहरा खिल उठा.

‘‘आप को अपना फोन प्रयोग में लाने के लिए 24 घंटे तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी,’’ सेल्समैन ने बताया तो वे बिफर उठीं.

‘‘यह कौन सी दुकान पर ले आए हो तुम लोग मु?ो? इन्हें तो फोन चालू करने में ही 24 घंटे लगते हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं है, मां जहां आप ने इतने दिनों तक प्रतीक्षा की है एक दिन और सही,’’ तान्या ने सम?ाना चाहा.

‘‘तुम नहीं समझोगी. मेरे लिए तो एक क्षण भी एक युग की भांति हो गया है,’’ उन्होंने उत्तर दिया.

घर पहुंचते ही फोन को डब्बे से निकाल कर उस के ऊपर मोमबत्ती जलाई गई. फिर बुला कर सब में मिठाई बांटी, मानो मोबाइल का जन्म उन्हीं के हाथों हुआ था और उस के चालू होने की प्रतीक्षा की जाने लगी.

यह कार्यक्रम चल ही रहा था कि रोमा, सौदामिनी और अपने मामा आलोक बाबू के साथ आ पहुंची.

वैदेही का नया फोन आना ही सब से बड़ा समाचार था. उन्होंने डब्बे से निकाल कर सब को अपना नया मोबाइल फोन दिखाया.

‘‘कितना सुंदर फोन है,’’ राहुल तो देखते ही पुलक उठा.

‘‘दादी मां, मु?ो भी दिया करोगी न अपना मोबाइल?’’

‘‘कभीकभी, वह भी मेरी अनुमति ले कर. छोटे बच्चों पर नजर रखनी पड़ती है न सौदामिनी बहन.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ सौदामिनी ने सिर हिला दिया था.

‘‘सच कहूं, तो आज कलेजा ठंडा हो गया. यों तो राहुल को छोड़ कर सब के पास अपनेअपने मोबाइल हैं. पर अपनी चीज अपनी ही होती है. आयु हो गई है तो क्या हुआ, मैं ने तो साफ कह दिया कि मु?ो तो अपना मोबाइल फोन चाहिए ही. मैं क्या किसी पर आश्रित हूं? मु?ो पैंशन मिलती है,’’ वे देर तक सौदामिनी से फोन के बारे में बातें करती रही थीं.

कुछ देर बाद सौदामिनी और आलोक बाबू ने जाने की अनुमति मांगी थी.

‘‘आप ने फोन किया तो लगा कि यहां तक आ कर आप से मिले बिना जाना ठीक नहीं होगा,’’ सौदामिनी बोलीं.

‘‘यही तो लाभ है मोबाइल फोन का. अपनों को अपनों से जोड़े रखता है,’’ वैदेही ने उत्तर दिया.

‘‘चिंता मत करना. अब मेरे पास अपना फोन है. मैं हालचाल लेती रहूंगी.’’

‘‘मैं भी आप को फोन करती रहूंगी. आप का नंबर ले लिया है मैं ने,’’ सौदामिनी ने आश्वासन दिया था.

हाथ में अपना मोबाइल फोन आते ही वैदेही का तो मानो कायाकल्प ही हो गया. उन का मोबाइल अब केवल वार्त्तालाप का साधन नहीं है. उन के परिचितों, संबंधियों और दोस्तों के जवान बेटेबेटियों का सारा विवरण उन के मोबाइल में कैद है. वे चलताफिरता मैरिज ब्यूरो बन गई हैं. पहचान का दायरा इतना विस्तृत हो गया है कि किसी का भी कच्चा चिट्ठा निकलवाना हो तो लोग उन की ही शरण में आते हैं.

‘‘इस बुढ़ापे में भी अपने पांवों पर खड़ी हूं मैं. साथ में पैंशन भी मिलती है,’’ वे शान से कहती हैं. और एक राज की बात. उन के पास अब एक नहीं 5 मोबाइल फोन हैं जो पहले दूरभाष पर उन के लंबे वार्त्तालाप का उपहास करते थे अब उसी गुण के कारण उन का सम्मान करने लगे हैं.

इजराइल-फिलिस्तीन : एक अंतहीन युद्ध

इजराइल का उद्भव लगभग उसी दौर में हुआ था जिस दौरान धर्म के नाम पर पाकिस्तान भारत से अलग हुआ. तब से आज तक इजराइल अपने पड़ोसी देशों से बिलकुल उसी तरह लड़ता आ रहा है जैसे पाकिस्तान. खासकर उस देश के प्रति दोनों में ही नफरत का भाव ज्यादा है जिस देश से टूट कर वे पैदा हुए. दोनों ही देशों में कुछ दिन ही शांति के होते हैं जबकि अधिकांश समय दोनों देशों की सत्ता और सेना लड़ाइयों में व्यस्त रहती हैं और वहां का नागरिक बेचैनी, उग्रता, हिंसा और अपनों के खोने के दुख में डूबा रहता है. रूस-यूक्रेन का युद्ध हो, भारत-पाकिस्तान का युद्ध हो या इजराइल-फिलिस्तीन का, इन के मूल में दूसरे के धर्म के प्रति नफरत और दूसरे की जमीन को हथियाने की साजिश ही निहित है.

गौरतलब है कि हमारी पूरी दुनिया कुल 95 अरब, 29 करोड़, 60 लाख एकड़ जमीन पर बसी है जिस पर दुनियाभर के लगभग 8 अरब इंसान बसते हैं. इस 95 अरब, 29 करोड़, 60 लाख एकड़ जमीन में से सिर्फ 35 एकड़ जमीन का एक ऐसा टुकड़ा है जिस के लिए बरसों से जंग लड़ी जा रही है. जिस जंग में लाखों जानें जा चुकी हैं.

इस जंग को समझाने के लिए उस 35 एकड़ जमीन की कहानी जानना जरूरी है. येरुशलम में 35 एकड़ जमीन के टुकड़े पर एक ऐसी जगह है जिस का ताल्लुक तीनों धर्मों – यहूदी, ईसाई और इसलाम से है. इस जगह को यहूदी ‘टैंपल माउंट’ कहते हैं जबकि मुसलिम इसे हरम अल शरीफ के नाम से पुकारते हैं.

ईसाई इस जगह को ईसा मसीह के क्रूस पर चढ़ाए जाने और फिर जी उठने वाली कहानी से जोड़ते हैं. 35 एकड़ जमीन का यह वो टुकड़ा है जिस पर सैकड़ों साल पहले ईसाइयों का कब्जा हुआ करता था लेकिन वर्ष 1187 में यहां मुसलमानों का कब्जा हुआ और तब से ले कर 1948 तक मुसलमानों का ही कब्जा रहा. लेकिन फिर 1948 में इजराइल का जन्म हुआ और उस के बाद से ही जमीन के इस टुकड़े को ले कर जबतब ?ागड़ा शुरू हो गया. हालांकि सचाई यह भी है कि इस 35 एकड़ जमीन पर बसे टैंपल माउंट या हरम अल शरीफ न तो इजराइल के कब्जे में है और न ही फिलिस्तीन के, बल्कि यह पूरी जगह संयुक्त राष्ट्र के अधीन है और इस की देखभाल का जिम्मा जौर्डन के पास है.

दरअसल धार्मिक लिहाज से येरूशलम ईसाइयों के लिए भी बेहद खास है और यहूदियों व मुसलमानों के लिए भी. इजराइल और फिलिस्तीन दोनों येरूशलम को अपनी राजधानी बनाना चाहते थे. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र संघ बीच में आया और उस ने येरूशलम का वह 8 फीसदी हिस्सा अपने कंट्रोल में ले लिया, जिस को तीनों धर्म पवित्र क्षेत्र मानते हैं और जिस पर हरम अल शरीफ या फिर टैंपल माउंट है. 48 फीसदी जमीन का टुकड़ा फिलिस्तीन और 44 फीसदी टुकड़ा इजराइल के हिस्से में रह गया.

फिर सवाल उठा कि हरम अल शरीफ या टैंपल माउंट के रखरखाव की जिम्मेदारी किसे सौंपी जाए? तो इस के लिए तीसरे देश जौर्डन को हरम अल शरीफ या फिर टैंपल माउंट के प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी गई. साथ ही, यह भी समझौता हुआ कि मुसलिम यहूदियों को बाहर से उस टैंपल माउंट के दर्शन की इजाजत देंगे हालांकि वे पूजापाठ नहीं करेंगे.

यही सिलसिला अब भी चला आ रहा है. लेकिन होता यह है कि दोनों ही तरफ के कट्टरपंथी लोग इस समझौते को नहीं मानते. इसीलिए जब कोई यहूदी टैंपल माउंट के दर्शन के लिए आता है तो अंदर से उस पर पथराव किया जाता है. जवाब में इजराइल भी उन पर पथराव करता है.

मुसलिमों का दावा

मुसलिम मान्यताओं के मुताबिक मक्का और मदीना के बाद हरम अल शरीफ उन के लिए तीसरी सब से पाक जगह है. मुसलिम धर्मग्रंथ कुरान के मुताबिक उन के आखिरी पैगंबर मोहम्मद साहब मक्का से हरम अल शरीफ पहुंचे थे और यहीं से वो जन्नत गए. तब येरूशलम में मौजूद उसी हरम अल शरीफ पर एक मसजिद बनी जिस का नाम अल अक्सा मसजिद है.

अल अक्सा मसजिद के करीब ही एक सुनहरे गुंबद वाली इमारत है. इसे डोम औफ द रौक कहा जाता है. मुसलिम मान्यता के मुताबिक यह वही जगह है जहां से पैगंबर मोहम्मद जन्नत गए थे. जाहिर है कि इसी वजह से अल अक्सा मसजिद और डोम औफ द रौक मुसलमानों के लिए बेहद पवित्र है और इसीलिए वे इस जगह पर अपना दावा ठोकते हैं.

यहूदियों का दावा

यहूदियों की मान्यता है कि येरूशलम में 35 एकड़ की उसी जमीन पर उन का टैंपल माउंट है यानी वह जगह जहां उन के ईश्वर ने मिट्टी रखी थी जिस से आदम का जन्म हुआ था. यहूदियों की मान्यता है कि यह वही जगह है जहां उन के पैगंबर अब्राहम से खुदा ने कुरबानी मांगी थी. अब्राहम के 2 बेटे थे. एक इस्माइल और दूसरा इसहाक. अब्राहम ने इसहाक को कुरबान करने का फैसला किया. लेकिन यहूदी मान्यताओं के मुताबिक तभी फरिश्ते ने इसहाक की जगह एक भेड़ को रख दिया था. जिस जगह पर यह घटना हुई उस का नाम टैंपल माउंट है. यहूदियों के धार्मिक ग्रंथ हिब्रू बाइबिल में इस का जिक्र है.

बाद में इसहाक को एक बेटा हुआ जिस का नाम जैकब था. जैकब का एक और नाम था इजराइल. इसहाक के बेटे इजराइल के 12 बेटे हुए. उन को ट्वेल्व ट्राइब्स औफ इजराइल नाम से जाना जाता है. यहूदियों की मान्यता के मुताबिक, इन्हीं कबीलों की पीढि़यों ने आगे चल कर यहूदी देश बनाया. शुरुआत में उस का नाम लैंड औफ इजराइल रखा. वर्ष 1948 में इजराइल की दावेदारी का आधार यही लैंड औफ इजराइल बना.

होली औफ होलीज का एक हिस्सा है वैस्टर्न वौल

लैंड औफ इजराइल पर यहूदियों ने एक टैंपल बनाया, जिस का नाम फर्स्ट टैंपल था. इसे इजराइल के राजा किंग सोलोमन ने बनाया था. बाद में यह टैंपल दुश्मन देशों ने नष्ट कर दिया. कुछ 100 सालों के बाद यहूदियों ने उसी जगह फिर एक टैंपल बनाया.

इस का नाम सैकंड टैंपल था. इस सैकंड टैंपल के अंदरूनी हिस्से को होली औफ होलीज कहा गया. यहूदियों के मुताबिक यह वह पाक जगह थी जहां सिर्फ खास पुजारियों को छोड़ कर खुद यहूदियों को भी जाने की इजाजत नहीं थी.

यही वजह है कि इस सैकंड टैंपल की होली औफ होलीज वाली जगह खुद यहूदियों ने भी नहीं देखी. लेकिन 1970 में रोमन ने इसे भी तोड़ दिया. लेकिन इस टैंपल की एक दीवार बची रह गई. यह दीवार आज भी सलामत है. इसी दीवार को यहूदी वैस्टर्न वौल कहते हैं. यहूदी इस वैस्टर्न वौल को होली औफ होलीज के एक अहाते का हिस्सा मानते हैं.

मगर चूंकि होली औफ होलीज के अंदर जाने की इजाजत खुद यहूदियों को भी नहीं थी, इसीलिए वे पक्केतौर पर यह नहीं जानते कि वह अंदरूनी जगह असल में ठीक किस जगह पर है? लेकिन इस के बावजूद वैस्टर्न वौल की वजह से यहूदियों के लिए यह जगह बेहद पवित्र है.

ईसाइयों का दावा

ईसाइयों की मान्यता है कि ईसा मसीह ने इसी 35 एकड़ की जमीन से उपदेश दिया. इसी जमीन पर उन्हें सूली पर चढ़ाया गया और एक कब्र में दफना दिया गया. मगर 3 दिनों बाद वे कब्र में दोबारा जी उठे, लेकिन एक स्त्री को छोड़ कर उन्हें किसी ने नहीं देखा. ईसाई मानते हैं कि जब ईसा मसीह जिंदा हो चुके हैं तो वे इसी स्थान पर लौटेंगे. जाहिर है ऐसे में यह जगह ईसाइयों के लिए भी उतनी ही पवित्र है जितनी मुसलिमों या यहूदियों के लिए.

9 शताब्दियों तक मुसलिमों का कब्जा

वर्ष 1187 से पहले कुछ वक्त तक हरम अल शरीफ या फिर टैंपल माउंट पर ईसाइयों का कब्जा हुआ करता था. लेकिन 1187 में हरम अल शरीफ पर मुसलिमों का कब्जा हो गया. इसी के बाद से हरम अल शरीफ का पूरा प्रबंधन यानी देखरेख की जिम्मेदारी वक्फ यानी एक तरह से इसलामिक ट्रस्ट को दे दी गई. तब से ले कर 1948 तक इसलामिक ट्रस्ट ही हरम अल शरीफ का प्रबंधन देख रहा था. इस दौरान इस जगह पर गैरमुसलिमों की एंट्री नहीं थी. मगर 1948 में इजराइल के बनने के बाद जब झगड़े बढ़ गए तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे अपने अधीन कर लिया.

आज इजराइल के यहूदी और गाजा के मुसलिम हमास लड़ाकों के बीच इसी जमीन को ले कर जबरदस्त युद्ध छिड़ा हुआ है. धर्म की इन तीनों धाराओं का स्रोत एक ही है, फिर भी ये तीनों एकदूसरे से नफरत करते हैं और कई शताब्दियों से आपस में लड़ते हुए इंसानियत का खून बहा रहे हैं.

इजराइल के यहूदी आज गाजा पट्टी के मुसलमानों का नामोनिशान मिटा देना चाहते हैं. 3 हफ्ते की लड़ाई के दौरान हजारों बम, मिसाइलें और गोलियों दागी जा चुकी हैं और दोनों तरफ के 8,000 से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं जिन में बड़ी संख्या मासूम बच्चों की है. जीत तक युद्ध के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इजराइल 24 घंटे गाजा पर आग बरसा रहा है.

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू कहते हैं, ‘लड़ाई जारी रखते हुए हम गाजा में भीतर तक जाएंगे और हत्यारों, अत्याचार करने वालों से पूरी कीमत वसूलेंगे. हम हमास को जब तक पूरी तरह मिटा नहीं देंगे तब तक नहीं रुकेंगे.’

दरअसल 7 अक्तूबर, 2023 को हमास ने अचानक इजराइली कसबों और शहरों पर हजारों रौकेट दागे और गाजा सीमा से सैकड़ों बंदूकधारियों ने अचानक इजराइल में घुस कर आम नागरिकों पर हमला किया, जिस में अनेक बुजुर्ग और बच्चे घायल हुए या मारे गए. हमास ने अनेक लोगों की हत्या कर दी और अनेक लोगों को बंधक बना कर अपने साथ ले गए. इजराइल का कहना है कि कम से कम 1,400 लोग मारे गए और 199 का अपहरण हुआ है. हमास की इस हरकत से इजराइल बौखला उठा और उस ने जंग का ऐलान कर दिया.

इस के बाद से ही उस ने गाजा पट्टी पर जबरदस्त मिसाइल हमला शुरू कर दिया और तमाम इमारतों को नेस्तनाबूद कर दिया. उधर से हमास भी इस हमले का जवाब दे रहा है मगर ‘प्यार और जंग में सबकुछ जायज है’ की तर्ज पर हमास और इजराइल युद्ध नियमों को ताक पर रख कर आम नागरिकों को भी निशाना बना रहे हैं. हाल ही में गाजा पट्टी के एक अस्पताल पर मिसाइल छोड़ी गई जिस में घायल बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों का इलाज चल रहा था.

इस हमले में सैकड़ों मरीजों की जानें चली गईं. मरने वालों में डाक्टर और नर्सें भी थीं. इजराइल जहां गाजा पट्टी में जमीन के नीचे बने हमास के बंकरों और सुरंगों को नष्ट करना चाहता है, वहीं उस की कोशिश अपने उन बंधकों को भी छुड़ाने की है, जिन्हें 7 अक्तूबर को हमास के लड़ाके अपने साथ ले गए हैं. खबर है कि उन्हें जमीन के नीचे किसी सुरंग में रखा गया है.

क्या है हमास

गौरतलब है कि हमास का गठन वर्ष 1987 में गाजा के शेख अहमद यासिन ने किया था. इजराइल और पश्चिमी मुल्कों में हमास की छवि एक खूंख्वार लड़ाकू की है जिसे आत्मघाती धमाकों से भी परहेज नहीं है. हमास के घोषणापत्र में लिखा है कि जब तक इजराइल का नाश नहीं होता और मौजूदा इजराइल, पश्चिमी किनारे और गाजा पट्टी में फिलिस्तीनी इसलामी राष्ट्र नहीं बन जाता, तब तक हमास की जंग जारी रहेगी. हमास का एक ही सपना है कि वह एक आजाद इसलामिक राष्ट्र फिलिस्तीन बने.

कनाडा, जापान, इजराइल, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और जौर्डन सहित योरोपीय यूनियन व संयुक्त राष्ट्रसंघ तक ने हमास को आतंकी संगठन का दर्जा दे रखा है, मगर हमास इजराइल से जारी इस जंग को ‘आजादी की जंग’ करार देता है. वह फिलिस्तीन की आजादी के लिए एकमात्र रास्ता जिहाद को मानता है. फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (पीएलओ) के नेता यासर अराफात की मृत्यु के बाद हमास ने संसदीय राजनीति का रास्ता भी चुना था.

गाजा, कलकिलिया, नबलूस के स्थानीय चुनावों में छिटपुट जीत दर्ज करने के बाद जनवरी 2006 में हमास ने फिलिस्तीनी संसद के चुनाव में हैरतअंगेज जीत भी दर्ज की. हमास को ईरान सहित कई मुसलिम देशों का सहयोग है. वे हमास को खतरनाक हथियार मुहैया करा रहे हैं.

यहूदियों ने झेले जबरदस्त अत्याचार

ईसाई और मुसलमान हमेशा यहूदियों से ज्यादा ताकतवर रहे और संख्या में भी अधिक रहे. इस की वजह यह रही कि किसी भी दूसरे धर्मसंप्रदाय का व्यक्ति यहूदी नहीं बन सकता है. यहूदी जन्म से ही यहूदी होता है. इस के अलावा दुनिया में यहूदियों के साथ अलगअलग समय में बहुत बुरा व्यवहार हुआ और बहुत बड़ी संख्या में उन को मारा व खदेड़ा गया. जरमनी के नाजी तानाशाह हिटलर ने तो 11 लाख यहूदियों को गैस चैंबरों में डाल कर खत्म किया.

हिटलर का यह होलोकास्ट समूचे यहूदी लोगों को जड़ से खत्म कर देने का सोचासमझा और योजनाबद्ध प्रयास था. द्वितीय विश्व युद्ध के समय जरमनी के तानाशाह अडोल्फ हिटलर ने होलोकास्ट के नाम पर लाखों यहूदियों को नजरबंदी कैंपों में रखा. उन की औरतों के साथ बर्बर अत्याचार किए गए. कइयों के साथ तो नाजी सैनिकों ने तब तक बलात्कार किया जब तक उन की जान नहीं निकल गई.

यहूदी औरतों को नग्न कर के, गंजा कर के गैस चैंबरों में झांका गया. नाजियों ने तो जिस तरह यहूदियों का कत्लेआम किया, उन्हें गैस चैंबरों में डाल कर मारा, उन की औरतों से जिस तरह की हैवानियत की, सदियां गुजर जाएंगी उस मंजर को भुलाया नहीं जा सकेगा. यहूदियों का इतिहास दुख और दमन से भरा हुआ है. यही वजह है कि आज यहूदियों की जनसंख्या ईसाइयों और मुसलमानों की तुलना में बेहद कम है.

यहूदी कौम इन्हीं अत्याचारों के कारण इधरउधर दुनियाभर में बिखरीबिखरी रही. शताब्दियों तक उन का कोई एक देश नहीं बन पाया. 19वीं शताब्दी के अंत में यहूदी मातृभूमि इजराइल की मांग बहुत जोरशोर से उठने लगी. 1906 में विश्व यहूदी संगठन ने फिलिस्तीन में यहूदी मातृभूमि बनाने का निर्णय लिया. इस से पूर्व अर्जेंटीना को यहूदी मातृभूमि बनाने को ले कर भी चर्चा हुई. प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन और फ्रांस के बीच हुए एक गुप्त सम?ाते (स्काइज-पिकोट एग्रीमैंट) के तहत फिलिस्तीन को ब्रिटेन के हवाले कर दिया गया.

1917 में बाल्फोर घोषणापत्र में ब्रिटेन ने फिलिस्तीन को यहूदियों की मातृभूमि बनाने की दिशा में पूरा प्रयास करने का आश्वासन दिया, मगर फिलिस्तीनी मुसलिमों ने इस का जबरदस्त विरोध किया. 15 अप्रैल, 1920 को इटली में मित्र देशों के बीच सैन रेमो कान्फ्रैंस हुई जिस में ब्रिटेन को फिलिस्तीन में ऐसी सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियां तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई जिस से उसे यहूदियों की मातृभूमि बनाया जा सके.

साल 1922 में ब्रिटेन के अधीन फिलिस्तीन का जितना हिस्सा था उसे उस ने 2 भागों में बांट दिया. बड़ा हिस्सा ट्रांसजौर्डन कहलाया और छोटा हिस्सा फिलिस्तीन. बाद में जौर्डन को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता मिल गई. ब्रिटेन के इस कृत्य को यहूदियों ने अपने साथ बड़ा विश्वासघात माना क्योंकि प्रस्तावित यहूदी मातृभूमि का बहुत बड़ा हिस्सा जौर्डन में चला गया. अब यहूदी इस प्रयास में लग गए कि किसी तरह वे फिलिस्तीन पर कब्जा कर लें.

यहूदियों और मुसलमानों के बीच आएदिन ?ाड़पें होने लगीं. वर्ष 1936 में अरबों ने बड़ा विद्रोह कर दिया जिस में हजारों अरब और यहूदी मारे गए. इस विद्रोह के बाद इंगलैंड ने फिलिस्तीन को 2 भागों में बांटने का प्रस्ताव दिया. एक भाग को यहूदी मातृभूमि और दूसरा फिलिस्तीनी अरबों का क्षेत्र घोषित करने की बात हुई. यहीं से फिलिस्तीन की जमीन पर यहूदियों ने ज्यादा से ज्यादा कब्जे के लिए कोशिश शुरू कर दी. वर्ष 1945 में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार आई जिस ने यहूदियों की मातृभूमि का समर्थन किया और कहा कि फिलिस्तीन में दुनिया के हर कोने से यहूदियों को ला कर बसाया जाएगा.

इस के लिए अमेरिका और अन्य देशों ने भी ब्रिटेन का साथ दिया और उस पर ऐसा करने का दबाव बनाया. यह वह समय था जब ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज अस्त हो रहा था. ब्रिटेन ने फिलिस्तीन का मसला संयुक्त राष्ट्र के हवाले कर दिया. 29 नवंबर, 1947 को संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को 2 हिस्सों-अरब राज्य और यहूदी राज्य यानी इजराइल में विभाजित करना तय किया. येरूशलम जो ईसाई, अरब और यहूदी तीनों के लिए धार्मिक महत्त्व का क्षेत्र था उसे अंतर्राष्ट्रीय प्रबंधन के अंतर्गत रखा जाना तय हुआ. मगर इस विभाजन में फिलिस्तीन के 70 प्रतिशत अरब लोगों को मात्र 42 प्रतिशत क्षेत्र मिल रहा था जबकि यही लोग विभाजन के पहले 92 प्रतिशत क्षेत्र पर काबिज थे.

लिहाजा, अरब इस विभाजन के खिलाफ हो गए. उस वक्त तक इजराइल और फिलिस्तीन की वास्तविक सीमारेखा निर्धारित नहीं हो पाई थी. सो, यहूदियों और फिलिस्तीनी अरबों में खूनी टकराव शुरू हो गया. उसी बीच 14 मई, 1948 को यहूदियों ने स्वतंत्रता की घोषणा करते हुए इजराइल नाम के एक नए देश का ऐलान कर दिया, जो यहूदियों के सपनों का देश था.

मगर अगले ही दिन अरब देशों-मिस्र, जौर्डन, सीरिया, लेबनान और इराक ने मिल कर इजराइल पर हमला बोल दिया. यहीं से अरबइजराइल युद्ध की शुरुआत हुई जो आज तक ठंडी पड़ती नहीं दिख रही है. जून 1948 में युद्धविराम जरूर हुआ मगर इस ने अरबों और इजराइलियों को दोबारा तैयारियां करने का मौका दे दिया. चेकोस्लोवाकिया के सहयोग से इजराइल का पलड़ा भारी हो गया. इस के बाद अरबों से हुए युद्ध में इजराइल की जीत हुई और फिर शरणार्थी समस्या शुरू हो गई. 1949 में जोर्डन और इजराइल के बीच एक समझाते के तहत ग्रीनलाइन नामक सीमारेखा का निर्धारण हुआ. जौर्डन नदी का पश्चिमी हिस्सा यानी वेस्ट बैंक पर जौर्डन और गाजा पट्टी पर मिस्र का कब्जा हो गया.

फिलिस्तीन के बड़े हिस्से पर इजराइल का कब्जा

अनेक समझातों के बावजूद साल 1956, 1967, 1973, 1982 में इजराइल व फिलिस्तीन लड़ते रहे और इजराइल लगातार फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा करता रहा. नौबत यह आ गई कि पहले 55 फीसदी और फिर 48 फीसदी से सिमटते हुए 22 फीसदी और अब 12 फीसदी जमीन के टुकड़े पर ही फिलिस्तीन सिमट कर रह गया जबकि आधिकारिक रूप से येरूशलम को छोड़ कर इजराइल लगभग बाकी के 80 फीसदी इलाके पर कब्जा कर चुका है.

लेदे कर फिलिस्तीन के नाम पर अब 2 ही इलाके बचे हैं – एक गाजा और दूसरा वैस्ट बैंक. वैस्ट बैंक अमूमन शांत रहता है जबकि गाजा गरम क्योंकि गाजा पर एक तरह से हमास का कंट्रोल है और मौजूदा जंग इसी गाजा और इजराइल के बीच है.

21वीं सदी में फिर शुरू हुआ बातचीत का दौर

फिलिस्तीन की अधिग्रहित भूमि पर इजराइल द्वारा बस्तियां बसाने की नीति को ले कर सितंबर 2010 से दोनों के बीच शांतिवार्त्ता पर विराम लगा हुआ था. लेकिन अमेरिकी विदेश मंत्री जौन केरी के प्रयासों से अगस्त 2013 में इजराइल और फिलिस्तीन बातचीत के लिए एक मेज पर आए. वाशिंगटन स्थित अमेरिकी विदेश विभाग के फोगी बौटम मुख्यालय में हुई वार्त्ता में इजराइल का प्रतिनिधित्व विधि मंत्री जिपी लिवनी और यित्जाक मोलचो ने किया. वहीं, फिलिस्तीन ने अपना पक्ष रखने के लिए साए एराकात और मोहम्मद सतायेह की अगुआई में एक प्रतिनिधिमंडल वाशिंगटन भेजा.

बातचीत में दोनों देशों के बीच सीमाई मुद्दों, फिलिस्तीनी शरणार्थियों, पश्चिमी तट पर इजराइली बस्तियों का भविष्य और येरूशलम की स्थिति को ले कर किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने की कोशिश हुई.

येरूशलम पर विवाद

येरूशलम, जो यहूदी, ईसाई और मुसलमान तीनों का धार्मिक स्थल है पर आधिपत्य का मुद्दा सब से बड़ा था. इजराइल येरूशलम को बांटना नहीं चाहता है. 1980 के इजराइली संविधान में एकीकृत और पूर्ण येरूशलम को इजराइल की राजधानी घोषित किया गया है. लेकिन अमेरिका पूर्वी येरूशलम पर इजराइल का कब्जा नहीं मानता है. राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस इलाके में इजराइलियों द्वारा बस्तियां बसाए जाने पर भी आपत्ति जताई थी.

वहीं फिलिस्तीन पूर्वी येरूशलम को अपनी राजधानी बनाना चाहता था जो 1967 में इजराइली कब्जे से पहले जौर्डन के अधीन था. दरअसल इसलाम धर्म में पुराने येरूशलम की मान्यता तीसरी सब से पवित्र जगह के रूप में है.

ताकतवर होता इजराइल

आज इजराइल की जनसंख्या करीब 92 लाख है. क्षेत्रफल के मामले में हमारे महाराष्ट्र से भी छोटा इजराइल विज्ञान और तकनीक के मामले में अग्रणी है. इस का लोहा दुनिया मानती है. उस के पास बहुत सशक्त सैन्यशक्ति है. बड़ेबड़े उद्योग हैं. वह दुनिया के अमीर देशों में गिना जाता है. इजराइल की कुल जीडीपी 58,273 डौलर से ज्यादा की है.

भारत एशिया में इजराइल का दूसरा सब से बड़ा व्यापारिक भागीदार और विश्व स्तर पर 7वां सब से बड़ा भागीदार है. वित्त वर्ष 2022-23 में इजराइल का इंडियन मर्चेंडाइज ऐक्सपोर्ट 7.89 बिलियन डौलर था. जाहिर है, उगते सूरज को सभी प्रणाम करेंगे.

मगर फिलिस्तीन जिस की जनसंख्या 54 लाख है और वैश्विक अर्थव्यवस्था में जिस की हिस्सेदारी मात्र 0.01 प्रतिशत है, वैज्ञानिक दृष्टि से काफी पिछड़ा हुआ है और रूढि़वादी दकियानूसी विचारों के मौलानाओं के हाथ की कठपुतली है. जो जिहाद के जरिए अपना हक और जमीन पाने के लिए लड़ रहे हैं और इस के लिए उसे अरब देशों से सहयोग मिलता है.

फिलिस्तीन एक आंशिक रूप से मान्यताप्राप्त राष्ट्र है. फिलिस्तीन लिबरेशन और्गनाइजेशन (पीएलओ) ने 15 नवंबर, 1988 को अल्जीरिया की नेशनल असेंबली की परिषद में फिलिस्तीन राज्य की स्वतंत्रता की घोषणा की थी. फिलिस्तीन अरब राज्यों के लीग का सदस्य है और कुछ राष्ट्रों द्वारा मान्यताप्राप्त है. फिलिस्तीन की प्रशासनिक राजधानी वैस्ट बैंक के मध्य स्थित रामल्लाह शहर है. फिलिस्तीन की आबादी में 80-85 फीसदी मुसलमान हैं. फिलिस्तीन के मुसलमान मुख्य रूप से शफी इसलाम का अभ्यास करते हैं, जो सुन्नी इसलाम की एक शाखा है.

फिलिस्तीन के पास नहीं है अपनी कोई सेना

आज जो युद्ध जारी है उस में सारे रौकेट और बम गाजा पट्टी से इजराइल पर गिराए जा रहे हैं और इजराइल भी इसी गाजा पट्टी पर बम बरसा रहा है. नतीजे में अब तक दोनों तरफ के 8 हजार से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी हैं. वैसे, इजराइल और फिलिस्तीन सालों से एकदूसरे से टकराते रहे हैं. दोनों मुल्कों की इस जंग में अब तक हजारों लोगों की जानें भी जा चुकी हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं, इजराइल बारबार जिस फिलिस्तीन से लोहा लेता है उस फिलिस्तीन के पास अपनी कोई सेना नहीं है? फिलिस्तीन की लड़ाई हमास लड़ रहा है.

दरअसल 150 वर्षों पहले भी फिलिस्तीन के पास कोई फौज नहीं थी क्योंकि तब वह औटोमन राज्य के तहत आता था. 100 साल पहले भी फिलिस्तीन के पास फौज नहीं थी क्योंकि तब फिलिस्तीन का एक देश के तौर पर कोई वजूद नहीं था और वह ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था. 60 साल पहले भी फिलिस्तीन के पास फौज नहीं थी क्योंकि तब वह जौर्डन के हिस्से में आता था.

1988 में फिलिस्तीनी नेता यासर अराफात ने पहली बार फिलिस्तीन को एक आजाद मुल्क का नाम दिया, जिसे जोर्डन और मिस्र ने अपनी रजामंदी दे दी. 1993 में इजराइल और फिलिस्तीन के बीच हुए औस्लो अकौर्ड में इजराइल ने फिलिस्तीन के फौज बनाने पर रोक लगा दी थी. इस के बाद से ही फिलिस्तीन के पास सिर्फ अर्धसैनिक बल हैं जो वैस्ट बैंक इलाके में तैनात रहते हैं, लेकिन कोई स्थायी फौज नहीं है जबकि गाजा में सत्ता चलाने वाले हमास के पास लड़ाके हैं जो अकसर इजराइल को अपना निशाना बनाते रहते हैं.

हमास के पास 80 हजार लड़ाके

दूसरी तरफ फिलिस्तीन की हालत यह है कि वह खुद के हथियार के नाम पर कुछ रौकेट्स ही बना पाता है, जिस से अकसर इजराइल को निशाना बनाता है. हालांकि, जानकारों की मानें तो इन में से भी ज्यादातर रौकेट वह या तो ईरान की मदद से बनाता है या फिर ईरान चोरीछिपे इन रौकेट्स की सप्लाई फिलिस्तीन को करता है. फिलिस्तीनियों के पास कोई स्थायी सेना तो नहीं है, लेकिन गाजा और वेस्ट बैंक में इजराइलियों से लोहा लेने वाले हमास समेत कई लड़ाके गुट हैं और इन की संख्या करीब 80 हजार के आसपास है.

1987 में हुआ था हमास का गठन

सवाल यह है कि अगर फिलिस्तीन के पास अपनी फौज नहीं है तो हमास फिलिस्तीन की ओर से क्यों लड़ता है? तो इस का जवाब हमास के वजूद में आने से है. फिलिस्तीनी इलाके से इजराइली फौज को हटाने के इरादे से 1987 में इस का गठन किया गया था और तब से ले कर अब तक हमास लगातार खुद को मुसलमानों का खैरख्वाह बताते हुए इजराइल से लोहा लेता रहा है. और तो और, हमास इजराइल को मान्यता तक नहीं देता है और पूरे फिलिस्तीनी क्षेत्र में इसलामी हुकूमत कायम करना चाहता है.

फिलिस्तीन की मदद करता है ईरान

लेकिन इन सब के बीच एक बड़ा सवाल यह है कि जब हमास दुनिया के कई बड़े देशों की नजर में एक आतंकवादी संगठन है, इसे किसी की मान्यता तक नहीं है तो फिर इसे इजराइल से लड़ने के लिए हथियार कहां से मिलता है? वह भी तब जब हमास के कब्जे वाली जगह गाजा पट्टी के एक तरफ खुद इजराइल की सीमा है और दूसरी तरफ समुद्र है तो इस का जवाब है, गाजा पट्टी से सटा मिस्र का इलाका. दुनिया जानती है कि फिलिस्तीन और इजराइल के बीच जारी जंग में ईरान शुरू से फिलिस्तीन के साथ रहा है और वही ईरान मिस्र के रास्ते गाजा पट्टी में फिलिस्तीनी गुट हमास को हथियार, गोलाबारूद और रौकेट मुहैया कराता है.

इजराइल के पास है बड़ी फौज

इजराइल डिफैंस फोर्सेज के पास एक लाख 70 हजार फौज के जवान और अधिकारी हैं जबकि उस के पास अस्थाई फौज के तौर पर 30 लाख से ज्यादा शहरी हमेशा फौज में अपनी सेवा देने के लिए तैयार रहते हैं. ये आंकड़े चौंका देने वाले हैं क्योंकि 90 लाख के देश में 30 लाख नागरिक ऐसे हैं जो फौज में सेवाएं देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. इस की वजह यह है कि इजराइल के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए फौजी ट्रेनिंग जरूरी होती है.

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू स्वीकार करते हैं कि एक फिलिस्तीनी राष्ट्र का निर्माण होना चाहिए जिस के लिए वेस्ट बैंक के कुछ इलाकों से इजराइल की वापसी जरूरी होगी. गाजा से इजराइल पहले ही वापस आ चुका है. लेकिन इजराइल यह भी चाहता है कि गाजा और वेस्ट बैंक के आसपास बसाई गई उस की बस्तियां उस की सीमा में आएं. इजराइल वेस्ट बैंक और पूर्वी येरूशलम में अपनी बस्तियों के अधिकांश भाग को अपनी सीमा के अधीन रखना चाहता है. नेतन्याहू सरकार को डर है कि इस से पीछे हटने पर उन की सरकार का गठबंधन टूट सकता है क्योंकि उन की सरकार में कुछ दक्षिणपंथी नेता फिलिस्तीन को उस का हक देने के बिलकुल खिलाफ हैं और वे नेतन्याहू पर दबाव बनाए हुए हैं कि हमास को पूरी तरह कुचल कर फिलिस्तीन को कमजोर बनाए रखा जाए.

इजराइल को हमास का बहुत डर है. उस को लगता है कि एक दिन फिलिस्तीन पर हमास का शासन हो जाएगा, जो उस के लिए घातक साबित होगा. इसलिए वह जौर्डन घाटी की सुरक्षा व्यवस्था अपने हाथ में रखना चाहता है. साथ ही, वह अपनी सीमा से सटे फिलिस्तीन के एक बड़े हिस्से पर भी नजर बनाए हुए है. इजराइल पूर्व के युद्धों में बेघर हुए फिलिस्तीनी लोगों की घरवापसी यानी इजराइल में आने के भी पुरजोर विरोध में है. उस का मानना है कि इस से इजराइल के गठन के मकसद पर ही कुठाराघात होगा. यह एक यहूदी राष्ट्र है. शरणार्थियों की वापसी से यहूदियों के देश का भूगोल ही बदल जाएगा.

फिलिस्तीन की मांग

फिलिस्तीन 1967 में फिलिस्तीनी भूभाग पर हुए इजराइली कब्जे को पूर्णतया हटाना चाहता है. वैस्ट बैंक, पूर्वी येरूशलम और गाजा को वह भविष्य के फिलिस्तीन के रूप में देखता है. अगर इस में कोई भी भूभाग इजराइल को दिया जाता है तो इस के बदले बराबर के महत्त्व वाला भूभाग वह चाहता है. फिलिस्तीन गाजा में इजराइल की बसाई बस्तियों पर भी अपना कब्जा चाहता है. हालांकि, वह कुछ हिस्सों को इजराइल को देने पर राजी हो सकता है. शरणार्थियों के विषय में फिलिस्तीन का मानना है कि शरणार्थियों की घरवापसी के बिना उन पर हुए अत्याचार का समुचित न्याय उन्हें नहीं मिल पाएगा. वे इस के लिए किसी भी तरह के मुआवजे का विकल्प भी स्वीकार नहीं करते हैं. इजराइल के यहूदी राष्ट्र घोषित करने को वे गैरजरूरी मानते हैं.

अमेरिका का रुख

अमेरिका का कहना है कि 1967 से पहले की स्थिति पर बातचीत सही है. लेकिन वह जमीन के बदले जमीन का विकल्प खुला रखने के पक्ष में है. अमेरिका वेस्ट बैंक में इजराइली बस्तियों को अवैध मानता है. हालांकि वह हालात की नजाकत को समझ रहा है. अमेरिका शरणार्थियों की घरवापसी पर इजराइल के विरोध को देखते हुए मुआवजे के विकल्प पर गौर कर रहा है. जिन की घरवापसी संभव नहीं है, उन के विकास में मदद की योजना पर काम करने की जरूरत अमेरिका समझाता है.

अमेरिका सहित कई पश्चिमी देश आज इजराइल के साथ खड़े हैं. इस युद्ध में ईसाई जमात भले ही आज यहूदियों के साथ खड़ी है लेकिन यही ईसाई जमात यहूदियों से बेइंतिहा नफरत भी करती है क्योंकि वह मानती है कि उन के पैगंबर ईसा मसीह को सूली पर चढ़वाने के लिए यहूदी कौम जिम्मेदार है. वहीं, दूसरी तरफ अरब देशों ने फिलिस्तीन के समर्थन में एकजुट होना शुरू कर दिया है. गाजा पट्टी के हमास लड़ाकों का इजराइल पर हमला और उस के बाद शुरू हुई लड़ाई धीरेधीरे विश्व युद्ध की तरफ बढ़ रही है.

घर पर ही अपने पैर के नाखुन की देखभाल कैसे करूं?

सवाल

मैं 21 साल की हूं. मेरे दोनों पैर के अंगूठों के नाखुन अंदर की ओर किनारे से मुड़े हुए हैं जो स्किन में धंस जाते हैं. इस कारण एक बार मैं डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने उंगली को सुन्न कर के मेरे नाखुन की कटिंग की थी. मैं नहीं चाहती कि यह नौबत दोबारा आए. इसलिए पैर के अंदर बढ़े हुए नाखुनों का अगर जल्दी पता चल जाए तो डाक्टर के पास जाए बिना घर पर ही इस का इलाज किया जा सकता है. अब आप ही बताइएं घर पर ही मैं कैसे अपने पैर के नाखुन की देखभाल करूं?

जवाब

दिन में 2-3 बार, एक बार में 20 मिनट के लिए, गरम पानी में नमक डाल कर अपने पैर के अंगूठे को उस में डुबो कर रखें. बाद मैं पैर को तौलिए से साफ करें. नाखुन तब नरम पड़ जाते हैं. उस वक्त पैर के नाखुनों को सीधा और इतना काटें कि कोने त्वचा में न धंसें. बाद में अंगूठे के आसपास एंटीबायोटिक क्रीम लगाएं ताकि संक्रमण का खतरा न रहे.

गुड्डन : भाग 2

अगली दोपहर जब वह आई तो निशा तापाक से बोल पङीं,”आज बड़ा सजधज कर आई है… यह सूट बड़ा सुंदर है. तुझे किस ने दिया है? यह तो बहुत मंहगा दिख रहा है.”

इतना मंहगा सूट भला कौन देगासोसाइटी में नाम के बड़े आदमी रहते हैं लेकिन दिल से छोटे हैं सब. कोई कुछ दे नहीं सकता. मैं ने खुद खरीदा है.”

साफसाफ क्यों नहीं कहतीं कि तेरे आशिक राजेंद्र ने दी है तुम्हें.”

नहीं आंटीजीरंजीत दिल्ली से मेरे लिए ले कर आया है. मुझ से कहता रहता है कि तुझे रानी बना कर रखूंगा…’’ वह शर्मा उठी थी.

वे तो बंदूक में जैसे गोली भरी बैठी हुई थीं,”काहे री गुड्डनअभी तक तो राजेंद्र के साथ तेरा लफड़ा चल रहा था अब यह रंजीत कहां से आ मराउस दिन तेरी अम्मां आई थी. वह कह रही थी कि तू ज्यादा समय राजेंद्र की खोली में गुजारती है. वह तुझे इतना ही पसंद है तो उसी के साथ ब्याह रचा ले. तेरी अम्मां यहांवहां लड़का ढूंढ़ती फिर रही है.”

वह चुपचाप अपना काम करती रही तो निशा का मन नहीं माना. वह फिर से घुड़क कर बोलीं,”क्यों छोरीतेरी इतनी बदनामी हो रही है तुझे बुरा नहीं लगता?”

आंटीजीराजेंद्र जैसे बूढ़े से ब्याह करे मेरी जूती. मैं कोई उपमा आंटी जैसी थोड़ी ही हूंजो पैसा देख कर ऐसा भारीभरकम काला दामाद ले आई हैं… ऐसी फूल सी नाजुक पूजा दीदीबेचारी फीट की दुबलीपतली लड़की के बगल में फीट का लंबाचौड़ा आदमी…”

चुप कर…” निशा चीख कर बोलीं,”तेरा मुंह बहुत चलता है… आकाशजी की बहुत बड़ी फैक्टरी है. वे रईस लोग हैं…’’

गुड्डन के मुंह से कड़वा सच सुन कर उन की बोलती बंद हो गई थी इसलिए उन्होंने इस समय वहां से चुपचाप हट जाना ही ठीक समझा था.

जनवरी की पहली तारीख थी. वह खूब चहकती हुई आई थी,”आंटीहैप्पी न्यू ईयर…”

तुम्हें भी नया साल मुबारक हो. कल कहां गायब थींकिसी के साथ डेट पर गई थीं क्या…?’’

आंटीआप भी मजाक करती हैं… वह बी ब्लौक की रानी आंटी जो आप की किट्टी की भी मैंबर हैं…’’

क्या हुआ उन को?’’

उन का लड़का शिशिर है न… उन की शादी के लिए लड़की वाले आए थेइसलिए आंटी ने मुझे काम करने के लिए दिनभर के लिए बुलाया था…’’

बेचारी रानी अपने बेटे की शादी के लिए बहुत दिनों से परेशान थीं… चलो अच्छा हुआ… शिशिर की शादी तय हो गई.’’

मेरी पूरी बात तो सुनिए… लड़की वाले उन की मांग सुनते रहे. सब का मुंह उतरा हुआ था…धीरेधीरे वे लोग आपस में रायमशविरा करते रहे थे.

आंटीमैं भी बहुत घाघ हूं. चाय देने गई फिर बरतन धीरेधीरे उठाती रही और उन लोगों की आपसी बात ध्यान से सुन रही थी. वे कह रहे थे कि गाड़ी, 20 तोला सोनाशादी का दोनों तरफ का खर्चा लड़की वाले करें. शादी फाइवस्टार होटल में होगी…’’

रानी आंटी तो पूरी मंगता हैं… देखो जराअपने लड़के को बिटिया वाले को जैसे बेच रही हैं.

हम गरीब लोगन को सब भलाबुरा कहते हैंलेकिन बड़े आदमी भी दिल के बड़े नहीं होते. आप लोग में भी कम नहीं. एक लड़की की शादी करने में मायबाप चौराहे पर खड़े हो कर बिक जाएंतब बिटिया का ब्याह कर पाएं…

रानी आंटी कैसी धरमकरम की बातें किया करती हैं. खुद को बड़ी धरमात्मा बनती हैं. अपने यहां भागवतकथा करवाने में लाखों रुपया खर्च कर डालीं थीं. का अब बिटिया वाले से वही खर्चा की वसूली करेंगी?

सरकार तो दहेज को अपराध कहती है…आप लोगन में दहेज मांगने की कोई मनाही नाहीं है का?‘’

गुड्डन मुंह बंद कर के काम किया करतुम इतना बोलती हो कि सिर में दर्द हो जाता है. शिशिर बड़ा अफसर हैउस की तनख्वाह बहुत ज्यादा है…उन की बिटिया यहां पर राज रजती.”

लगभग साल पहले उन के बेटे की शादी में भी गाड़ी और दहेज में बहुत सारा सामान आया था. इसलिए गुड्डन की बातें सुन कर उन्हें लगा कि वह इशारोंइशारों में उन पर भी बोली मार रही है.

अपने पैर कुल्हाड़ी : भाग 2

मोहिनी शिप्रा के पास से  सीधे कैंटीन की ओर चल दी थी. वह आशीष को यह समाचार उस के अन्य मित्रों के सामने देना चाहती थी. और फिर उस के चेहरे पर आए भावों का आनंद उठाना चाहती थी. वह मूर्ख समझता था, मैं उस से विवाह करूंगी, पर उसे तो शिप्रा जैसी साधारण लडक़ी भी धता बता गई. वह सोच रही थी.

कैंटीन में आशीष को न पा कर वह घर की तरफ चल पड़ी. अंतिम पीरियड में एक क्लास बाकी थी, पर वह उस के लिए दो घंटों तक प्रतीक्षा नहीं करना चाहती थी. वैसे भी प्रयोगात्मक परीक्षा समाप्त होने के पश्चात किसी की कालेज आने में कोई रुचि नहीं बची थी.

परीक्षा की तैयारी के बीच समय कब कपूर बन के उड़ गया, मोहिनी को पता ही नहीं चला. पहले वह और शिप्रा लगातार फोन पर एकदूसरे से संपर्क में रहते थे, पर अब शिप्रा कभी फोन नहीं करती थी और बारबार शिप्रा को फोन करने में मोहिनी का अहम आड़े आ रहा था.

‘‘पता नहीं क्या समझती है अपनेआप को शिप्रा, यदि उसे मेरी चिंता नहीं है तो मैं भी परवाह नहीं करती,’’ मोहिनी ने मानो स्वयं को ही आश्वासन दिया था.

शिप्रा का विवाह मोहिनी से पहले ही हो गया था. माना अब उन की मित्रता में पहले जैसी बात नहीं थी, पर अपने विवाह में शिप्रा ने उसे आमंत्रित तक नहीं किया. यह बात मोहिनी को बहुत अखर गई थी. वह शिप्रा को ऐसा सबक सिखाना चाहती थी जिसे वह जीवनभर याद रखे, पर शिप्रा ने तो सभी संपर्क सूत्र तोड़ कर उस का अवसर ही नहीं दिया था.

शीघ्र ही मोहिनी का विवाह भी कोविड प्रोटोकोल से पहले संपन्न हो गया था. पर विवाह के बाद मोहिनी ने ससुराल में जो देखा उस से वह तनिक भी संतुष्ट नहीं थी. माना बड़ा व्यावसायिक घराना था. पर उस के पति का काम केवल अपने पिता और भाइयों का हुक्म बजा लाना था. परिवार में आर्थिक व मानसिक किसी तरह की स्वतंत्रता नहीं थी. वहां चार दिन में ही उस का दम घुटने लगा था. उस का सारा क्रोध अपने पति परेश पर ही उतरता.

‘‘विवाह के नाम पर मेरे साथ सरासर धोखा हुआ है,’’ एक दिन आंखों में आंसू भर कर मोहिनी ने अपना आक्रोश प्रकट किया था.

‘‘कैसा धोखा? क्या कह रही हो तुम? मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा है,’’  परेश ने हैरानी प्रकट की थी.

‘‘मुझे बताया गया था कि बहुत बड़ा व्यावसायिक घराना है. करोड़ों का व्यापार है.’’

‘‘तो इस में गलत क्या है? चारपांच शहरों में फैला कारोबार क्या तुम्हें नजर नहीं आता? सौ करोड़ से अधिक की मिल्कीयत है हमारी. और यदि यह तुम्हें हमारे व्यावसायिक घराना होने का सुबूत नहीं लगता तो मुझे कुछ नहीं कहना. वैसे भी मुझे नहीं लगता कि हम ने कभी अपने घराने की प्रशंसा के पुल बांधे थे.’’

‘‘कितनी भी हैसियत क्यों न हो आप के घराने की, पर परिवार में आप की हैसियत क्या है? मेरी हैसियत तो आप से जुड़ी है. आप तो केवल अपने पिता और बड़े भाई के आज्ञाकारी सेवक हैं.’’

‘‘क्या बुराई है आज्ञाकारी सेवक होने में? हमारे परिवार में यह संस्कार बचपन में ही डाले जाते हैं. परिवार में कड़ा अनुशासन ही व्यवसाय को दृढ़ आधार प्रदान करता है. उच्छृंखलता हमें केवल विनाश की ओर ले जाती है. कहीं अपनी सहेली शिप्रा की बातों में तो नहीं आ गई, जहां कोई नियम नहीं होते.’’

परेश का अप्रत्याशित रूप से ऊंचा स्वर सुन कर मोहिनी को झटका सा लगा था, पर वह सरलता से हार मानने वालों में से नहीं थी.

‘‘जिसे तुम उच्छृंखलता कहते हो. हम उसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का नाम देते हैं और हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता को संसार की हर वस्तु से अधिक महत्व देते हैं,’’ मोहिनी भी उतने ही ऊंचे स्वर में बोली थी.

‘‘आवाज ऊंची करना मुझे भी आता है. पर मैं नहीं चाहता कि हम परिवार के सामने हंसी के पात्र बनें. अच्छा होगा, तुम अपनी और परिवार की गरिमा बनाए रखो. इस समय मैं जल्दी में हूं और एक आवश्यक कार्य के लिए जा रहा हूं. हम शाम को बात करेंगे,’’ परेश अपनी बात समाप्त कर बाहर निकल गया था.

‘‘परिवार… परिवार, परिवार ही सबकुछ है. मेरा अस्तित्व कुछ भी नहीं? यहां मैं एक दिन भी रही तो मेरा दम घुट जाएगा.’’

परेश के जाते ही मोहिनी इतनी जोर से चीखी थी कि निम्मी, उस की सेविका दौड़ी आई थी.

‘‘क्या हुआ मेमसाब? कुछ चाहिए क्या?’’

‘‘कुछ नहीं, बाहर निकलो मेरे कक्ष से और बिना दरवाजा खटखटाए अंदर आने का कभी साहस मत करना,’’ मोहिनी इतनी जोर से चीखी थी कि निम्मी कक्ष से बाहर जा कर देर तक सिसकती रही थी.

मोहिनी दिनभर सोचविचार करती रहती थी कि कैसे परेश के आते ही वह उस से दोटूक बात करेगी. ताली एक हाथ से तो बजती नहीं. परेश को समझना ही होगा कि मैं घर में सजावट की वस्तु बन कर नहीं रह सकती. पर परेश के घर में घुसते ही उसे उस की मां आनंदी देवी का बुलावा आ गया था और वह अपने कक्ष में आने से पहले उन से मिलने पहुंच गया था. उधर मोहिनी अपनी बात मुंह में बंद किए देर तक कुनमुनाती रही थी.

जब तक परेश कक्ष में पहुंचा तब तक मोहिनी का पारा सातवें आकाश में पहुंच चुका था.

‘‘मिल गया समय आप को यहां आने का?’’ वह परेश को देखते ही बोली थी. उत्तर में परेश ने उसे ऐसी आग्नेय दृष्टि से देखा था कि मोहिनी सकपका गई थी.

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