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बालों को झड़ने से कैसे रोकूं ?

सवाल

मैं 25 वर्षीय युवती हूं और अभी से मेरे बाल बहुत झड़ने लगे हैं. कोई ऐसा घरेलू उपाय बताएं जिससे बालों का झड़ना रुक जाए ?

जवाब

बालों के झड़ने के पीछे खराब जीवनशैली, संतुलित व पौष्टिक आहार का अभाव, प्रदूषित वातावरण व हारमोनल बदलाव जैसे अनेक कारण होते हैं. कईर् बार बाल आनुवंशिक कारणों से भी झड़ते हैं, साथ ही किसी प्रकार की शारीरिक बीमारी या दवा का सेवन भी बालों के झड़ने का कारण हो सकता है. पहले आप अपने बालों के झड़ने का कारण जानें. फिर उस के अनुसार उपाय करें.

घरेलू उपाय के तौर पर आप बालों को झड़ने से रोकने के लिए उन की सप्ताह में एक बार हेयर औयल से मसाज करें और उन में दही लगाएं. झड़ते बालों को रोकने के लिए दही बहुत ही कारगर घरेलू नुसखा है. दही से बालों को पोषण मिलता है. बालों को धोने से कम से कम 30 मिनट पहले उन में दही लगाएं. जब दही सूख जाए, तो बालों को धो लें.

एक अन्य उपाय के तौर पर आप कुनकुने औलिव औयल में 1 चम्मच शहद और 1 चम्मच दालचीनी पाउडर मिला कर पेस्ट बनाएं और नहाने से पहले इस पेस्ट को बालों पर लगाएं. 1 घंटे बाद शैंपू कर लें. इस से बालों का गिरना कम होगा.

झड़ते बालों को रोकने के लिए मेथीदाने का पैक भी एक बेहतरीन उपाय है. इस के अलावा अपने दैनिक आहार में प्रोटीन और आयरनयुक्त पदार्थ अधिक मात्रा में शामिल करें. प्रोटीन और आयरन सिर की त्वचा के ऊतकों के पुनर्निर्माण और कोशिकाओं को मजबूती प्रदान करने में मदद करते हैं, जिस से बालों की जड़ें मजबूत होती हैं और उन का झड़ना रुक जाता है.

मल्लिकार्जुन खड़गे हो सकते हैं इंडिया गठबंधन में मायावती का विकल्प

वोट के लिहाज से देखें तो ओबीसी के बाद सब से अधिक संख्या दलित वोटर की है. यही वजह है कि इंडिया गठबंधन लगातार इस कोशिश में था कि बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती को गठबंधन का हिस्सा बनाया जा सके. कांग्रेस पार्टी में 2 विचार थे. राहुल गांधी चाहते थे कि अखिलेश यादव इंडिया गठबंधन का हिस्सा रहें. प्रियंका गांधी और उत्तर प्रदेश के कांग्रेस नेता चाहते थे कि मायावती को इंडिया गठबंधन से जोड़ा जाए.

इंडिया गठबंधन की दिल्ली मीटिंग के बाद कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के अपने नेताओं की मीटिंग दिल्ली में बुलाई थी. इस मीटिंग में कांग्रेस प्रदेश में अपनी जमीनी हालत देखना चाहती थी. प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने 2 बातें प्रमुख रूप से कहीं. पहली यह कि गांधी परिवार के तीनों सदस्य उत्तर प्रदेश से लोकसभा का चुनाव लड़ेंड़े. दूसरी बात यह कि अखिलेश के मुकाबले मायावती से गठबंधन लाभकारी रहेगा.

अड़ंगा बना मायावती का डांवाडोल रुख

इस मीटिंग से कांग्रेस को लगा कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बेहद कमजोर है. वह बिना गांधी परिवार और गठबंधन के आगे नहीं बढ़ना चाहती. मीटिंग में प्रदेश कांग्रेस के एक भी नेता ने यह नहीं कहा कि वह मुख्यमंत्री बनने के लिए मेहनत कर सकता है. कांग्रेस ने जब उत्तर प्रदेश की तुलना तेलंगाना से कर के देखी तो लगा कि कांग्रेस वहां भी सत्ता से बाहर थी. इस के बाद भी वहां कांग्रेस के पास 6 नेता ऐसे थे जो मुख्यमंत्री बनने के लिए मेहनत कर रहे थे.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अपनी कमजोरी का पता चल गया. मायावती को ले कर दुविधा यह है कि वे खुल कर बात नहीं करतीं. जल्दी मिलने का समय नहीं देतीं. प्रियंका गांधी उन से मिल कर इंडिया गठबंधन में लाना चाहती थीं लेकिन मायावती की तरफ से कोई सिग्नल नहीं मिला. चुनाव करीब आने और 3 राज्यों में हार के बाद कांग्रेस दबाव में थी. ऐसे में उस ने यह फैसला कर लिया कि अब मायावती वाला चैप्टर बंद कर दिया जाए.

मायावती का डर क्या है ?

अब चुनाव के पहले मायावती इंडिया गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेंगी. मायावती ने अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर के यह जरूर कहा कि ‘राजनीति में संबंध ऐसे रखने चाहिए कि जरूरत पड़ने पर सहयोग लिया जा सके.’ इस का मतलब यह लगाया जा रहा है कि मायावती चुनाव के बाद सीटों के नंबर के अनुसार अपना साथी चुन सकती हैं. चुनाव बाद गठबंधन का रास्ता खुला रखा है. सवाल यह उठ रहा है कि मायावती ने इंडिया गठबंधन को मना भी नहीं किया और शामिल भी नहीं हुईं.

मायावती के इस ऊहापोह की वजह समाजवादी पार्टी है. 2 जून, 1995 को उत्तर प्रदेश के स्टेट गेस्ट हाउस कांड की खौफनाक यादें अभी भी उन के मन पर छाई हैं. सामाजिक स्तर पर भी ओबीसी और एससी वोटर के बीच उसी तरह की हालत है. 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश और मायावती के बीच समझौता हुआ था. उस का अंत भी बुरा ही रहा.

मायावती खुद को समाजवादी पार्टी से कमतर नहीं आंकतीं. 2019 में जब सपा-बसपा गठबंधन हुआ था तो मायावती ने बसपा के लिए सपा से एक सीट अधिक ली थी. इंडिया गठबंधन में मायावती के हिस्से सीटे कम आतीं. वे अखिलेश से कमजोर दिखना नहीं चाहतीं.

इस कारण वे इंडिया गठबंधन का हिस्सा नहीं बनीं. चुनाव बाद के लिए मायावती ने हर समझौते के रास्ते खुले रखे हैं. कहीं न कहीं प्रधानमंत्री पद की इच्छा मायावती के भी मन में है. पर यह चुनाव के बाद सांसदों की संख्या और हालात पर निर्भर है. लिहाजा, मायावती चुनाव के पहले अपने पत्ते नहीं खोलना चाहतीं.

दलित चेहरा बने मल्लिकार्जुन खड़गे

मायावती के विकल्प के रूप में इंडिया गठबंधन ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम पीएम फेस के रूप में आगे किया है. यह फैसला जिस रणनीति के तहत हुआ उस पर मेहनत करना इंडिया गठबंधन की जिम्मेदारी है. केवल दलित होने के कारण नाम घोषित होने से दलित वोट नहीं मिलने वाले. पंजाब विधानसभा का चुनाव इस का उदाहरण है. पंजाब में विधानसभा चुनाव के पहले चरनजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस ने सोचा था कि दलित वोट उस को मिल जाएंगे. कांग्रेस ने इस के लिए मेहनत नहीं की. लिहाजा, पंजाब में कांग्रेस चुनाव हार गई.

मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे करने से दलित वोट नहीं मिलेंगे. इस के लिए इंडिया गठबंधन को पूरी ईमानदारी के साथ काम करना होगा. केवल कांग्रेस के चाहने से भी यह नहीं होगा. यह बात सच है कि कांग्रेस मल्लिकार्जुन खड़गे का बहुत सम्मान करती है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी हमेशा खुद खड़गे की कार में उन के पीछे बैठते हैं. जिस से पार्टी और लोगों को यह संदेश जाए कि खड़गे ‘डमी कंडीडेट’ नहीं हैं. पार्टी चलाने में खड़गे आजाद हैं.

दिक्कत यह है कि देश के तमाम राज्यों में कांग्रेस मजबूत नहीं है. ऐसे में वह अपने सहयोगी दलों पर निर्भर है. 2024 में अगर इंडिया गठबंधन सरकार बनाने की हालत में आता भी है तो राहुल गांधी पीएम नहीं बनेंगे. राहुल गांधी यह सोच कर चल रहे हैं कि अभी उन की उम्र जिस दौर में है वहां उन के पास पीएम बनने के लिए 10 साल का समय है.

ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे ही पीएम बनेंगे, यह तय है. इंडिया गठबंधन तभी सरकार बना पाएगा जब कांग्रेस के पास अपने 120 से 150 के बीच सांसद आएं ऐेसे में मल्लिकार्जुन खड़गे को पीएम फेस बनाने से काम नहीं चलने वाला. उस के लिए इंडिया गठबंधन और उस में शामिल हर दल को पूरी ईमानदारी से यह सोच कर मेहनत करनी होगी कि मल्लिकार्जुन खड़गे को प्रधानमंत्री बनाना है.

रौबिन मिंज : भारत का पहला आदिवासी क्रिकेट खिलाड़ी जो छा जाने को तैयार है

रौबिन मिंज ऐसा नाम है जो आज संपूर्ण देश में चर्चा में है. रौबिन अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व करते हुए आईपीएल क्रिकेट के खेलों में अपने बूते मुकाम बना चुके हुए हैं. अपनी अद्भुत प्रतिभा से उन्होंने जता दिया है कि वे किसी से कम नहीं.

दिसंबर 2023 के अंतिम पखवाड़े में 19 दिसंबर को आईपीएल-17 के लिए दुबई में हुई नीलामी में दुनिया के कई क्रिकेटर खूब मालामाल हुए. यह सम्मान झारखंड के 21 साल के विकेटकीपर रौबिन मिंज, जो बाएं हाथ के बल्लेबाज हैं, ने हासिल किया. युवा रौबिन मिंज को गुजरात टाइटंस ने 3.60 करोड़ रुपए में खरीदा है. वे आईपीएल में पहुंचने वाले पहले आदिवासी खिलाड़ी बन गए हैं.

रौबिन मिंज कहते हैं, “मैं बचपन से ही क्रिकेट टीम में शामिल होने के सपने देखता रहा. अब यह सच हो गया. हां, इस नीलामी को ले कर मैं यह समझ रहा था कि 20 लाख रुपए में भी कोई टीम खरीद ले तो कोई बात नहीं, लेकिन राशि बढ़ती चली गई.”

उन्होंने आगे कहा, “टीम में चुने जाने के बाद जब मैं ने अपनी मां से मोबाइल पर बात की तो वे रोने लहीं. पापा भी रोने लगे.” दरअसल, रौबिन मिंज झारखंड के ही भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धौनी को अपना आदर्श मानते हैं.

धोनी से मिली प्रेरणा

रौबिन मिंज कुछ वर्षों से झारखंड टीम के साथ जुड़े हुए हैं. मजेदार बात यह है कि इस दौरान उन्हें कई बार महेंद्र सिंह धौनी से मुलाकात करने और उन से गुर सीखने के मौके मिले.

वे कहते हैं, “धोनी सर ने हमेशा यही कहा कि दिमाग को शांत रख कर खेलो और हमेशा आगे की सोचो.”

रौबिन मिंज मूलतया गुमला जिले के रायडीह प्रखंड के सिलम पांदनटोली गांव के निवासी हैं. यहीं उन की प्राथमिक शिक्षा हुई और क्रिकेट के प्रति प्रेम जागृत हुआ. क्रिकेट के आकर्षण में बंध कर उन्होंने सबकुछ समर्पित कर दिया और एक तरह से आज छा गए हैं.

उन के पिता फ्रांसिस जेवियर मिंज एक सेवानिवृत्त सैन्यकर्मी हैं. वे बिहार रेजीमैंट में तैनात रहे. उस समय वे रांची एयरपोर्ट पर बतौर सिक्योरिटी गार्ड इनर सर्किल में बोर्डिंग पास चैक करते थे.

रौबिन के पिता के अनुसार, “आईपीएल में रौबिन का चयन सौ फीसदी होगा, इस को ले कर तो मैं तैयार ही था.”

उन्होंने आगे कहा, “मैं उतने में ही खुश था. मगर रौबिन को जो ऊंचाई मिली है वह आनंदित करने वाली हैं.”

दूसरी तरफ रौबिन की मां एलिस मिंज ने कहा, “इस साल क्रिसमस का इस से बड़ा तोहफा मेरे लिए कुछ नहीं हो सकता. जब से यह खबर मिली है, मुझे तो बस रोना आ रहा है. मेरा तो बस यही सपना है कि जिस तरह धौनी ने झारखंड का नाम रोशन किया है, मेरा बेटा भी करे.”

पहला आदिवासी क्रिकेटर

पिता जेवियर मिंज ने कहा, “जब रौबिन 2 साल का था, तब से ही उस ने डंडे ले कर बौल पर मारना शुरू कर दिया था. मैं खुद भी फुटबाल और हौकी का खिलाड़ी रहा हूं. मैं ने इस को जब टैनिस बौल ला कर दी तो यह दाएं हाथ के बजाय बाएं हाथ से खेलने लगा. यही बात मेरे मन में घर कर गई क्योंकि मेरे परिवार में कोई भी बाएं हाथ से काम करने वाला नहीं है. यह भी क्रिकेट के अलावा सब काम दाएं हाथ से ही करता है. 5 साल की उम्र में मैं ने इसे क्रिकेट कोचिंग में डाल दिया.”

पहले आदिवासी क्रिकेटर के सवाल पर उन का कहना है, “हम तो यही कहते हैं कि इतिहास लिखने वालों को चाहिए कि वे इस बात को पहले पन्ने पर लिखें.”

रौबिन मिंज की बड़ी बहन है करिश्मा मिंज जो देहरादून में कृषि से स्नातक की पढ़ाई कर रही है. वे कहती हैं, “रौबिन जो इतिहास बना रहा है उस से मैं बहुत खुश हूं.”

रक्षा खर्च पर सवाल

देश की रक्षा करना बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है और आमतौर पर रक्षा पर होने वाले खर्च पर सवालजवाब भी नहीं किए जाते. सरकारें रक्षा पर वास्तव में कितना खर्च करती हैं, यह सब देशों में छिपा रहता है क्योंकि बहुत सा खर्च कुछ और मदों में दर्ज कर छिपा दिया जाता है पर क्या 21वीं सदी में देशों को रक्षा पर इतना खर्च करना चाहिए जितना वे खर्च कर रहे हैं?

भारत सरकार ने हाल में 2,25,000 करोड़ रुपए 97 तेजस लड़ाकू विमान और 156 प्रचंड हैलिकौप्टर खरीदने के लिए मंजूर किए हैं. यह युद्ध के लिए खर्च नहीं है, अगर युद्ध हो जाए तो बचाव के लिए वे दुश्मन पर वार करने के लिए हैं. पिछले डेढ़दो सौ वर्षों के दौरान जनता पर हो रहे हमलों से जनता को बचाने के लिए कोई बड़ा युद्ध भारत में नहीं हुआ है जैसा पहले और दूसरे विश्वयुद्धों में हुआ था जिन में शहर के शहर दूसरों के हाथों में चले गए थे.

वर्ष 1945 के बाद एक सेना का दूसरे देश पर कब्जा केवल इक्कीदुक्की जगह हुआ. इजराइल ने 1967 में किया, इराक ने कुवैत पर किया. रूस अब यूक्रेन में कर रहा है. अफ्रीका के कुछ देशों में होता है. अफगानिस्तान में रूसी और अमेरिकी कब्जे के युद्ध हुए पर दोनों कहते यही रहे कि वे अफगानिस्तान की आजादी के लिए लड़ रहे हैं.

युद्ध का हौवा एक तरह से पुराने राजाओं की विरासत है जो चुने हुए प्रतिनिधियों वाले देशों के शासकों ने अपना ली है. रूस, अमेरिका, इंग्लैंड, भारत, चीन की सरकारें अब कहने को जनता के लिए काम करती हैं. ये जनता के सुख के लिए चुनी या नियुक्त होती हैं, जनता को युद्ध में ?ांकने के लिए नहीं. यह बात दूसरी है कि देशप्रेम व देशभक्ति का नाम ले कर जनता को बहकाया जाता है और वह नेता जो वादा कर के चुनाव लड़े कि वह देश की रक्षा करेगा, कुछ ज्यादा वोट पा जाता है.

जनता की आमतौर पर अपने देश की सीमाओं से ज्यादा घर की सीमा में हो रहे मामले में रुचि होती है. अपराधियों से सुरक्षा मिल रही है या नहीं, जनता की कमाई पर सरकारी व गैरसरकारी डाका तो नहीं डाला जा रहा, सरकार जनता को सडकें, पानी, बिजली, शिक्षा, बागबगीचे मुहैया करा रही है या नहीं आदि जनता के लिए ज्यादा जरूरी हैं.

पर ज्यादातर देशों की सत्ताधारी पार्टियां दूसरे देशों का हौवा खड़ा रखती हैं. अमेरिकी सरकार रूस व चीन का हौवा दिखाती है. भारत सरकार पाकिस्तान व चीन का और चीन अमेरिका का. एकदूसरे का नाम ले कर सब सरकारें जनता की मेहनत का बहुत बड़ा हिस्सा सैनिक सामान पर बरबाद कर देती हैं. एक सड़क टूटीफूटी होने पर बरसों चल जाती है, मैला स्कूल भी शिक्षा देता रहता है पर एक खास पेंच न हों, तो एक टैंक या हवाई जहाज कबाड़ में चला जाता है.

देशों के नेताओं को सब से बड़ी आमदनी सेना व ठेकों से होती है. सेना का सामान खरीदने में हेराफेरी पर राजीव गांधी की सरकार गई थी. दुनियाभर में कितनी ही हत्याएं उन की होती हैं जिन्होंने सैनिक सामान की बिक्री में हेरफेर की या उस की जानकारी एक्सपोज की. विकिलीक्स के जूलियन असांजे को कितनी ही सरकारें पकड़ कर बंद रखना चाहती हैं क्योंकि उस ने सैनिक खरीद का भंडाफोड़ किया. इंटरनैशनल कंसोर्टियम औफ जर्नलिस्ट्स बीचबीच में सैनिक लेनदेन में हुईं रिश्वतखोरी को एक्सपोज करता रहता है पर हमारा मीडिया और नेता आमतौर पर चुप ही रहते हैं.

भारत को सैनिक सामान खरीदना होगा क्योंकि चीन और पाकिस्तान दोनों खरीद रहे हैं. पर आदर्श स्थिति तो वह होगी जब तीनों देश जनता का खयाल रखें, अपने बमों का नहीं.

सोने के गहनों का रखरखाव

सोने के गहने हर महिला के शृंगार का अहम हिस्सा होते हैं. इन गहनों की खूबसूरती, चमक और वैल्यू अलग ही होती है. किसी भी फंक्शन में गोल्ड ज्वैलरी का आकर्षण दूर से ही नजर आता है. जो चीज जितनी ज्यादा महंगी होती है उतनी ही ज्यादा उस की देखभाल और मेंटिनैंस की जरूरत होती है. इसलिए सिर्फ सोने के गहने खरीद लेना और जरूरत के वक्त पहन लेना ही काफी नहीं, बल्कि उसे किस तरह से पहनना है, किस तरह की सावधानियां रखनी हैं और समयसमय पर कैसे उन की देखभाल करनी है, इन बातों का खयाल रखना भी उतना ही जरूरी है.

एक तरफ जहां रोज पहने जाने वाले सोने के गहनों में बारीक धूलमिट्टी फंस कर उन्हें गंदा कर सकती है तो वहीं खास मौकों पर इस्तेमाल किए जाने वाले भारी आभूषण भी लौकर के अंदर रखेरखे थोड़े डल नजर आने लगते हैं.

ऐसे में हम इन गहनों को सुनार के पास ले जा कर साफ करवा सकते हैं. मगर कई बार हमारे पास इतना समय नहीं होता कि हम बाहर जा कर गहनों को साफ करा सकें. ऐसे में कुछ घरेलू नुस्खे काम आ सकते हैं जिन की मदद से गहने चमका कर आप पैसे और समय दोनों की बचत कर सकती हैं.

सोने के गहनों की सफाई में ध्यान रखने योग्य बातें

सोना प्राकृतिक रूप से एक नरम धातु होता है. इसलिए सोने की वस्तुओं की सफाई के लिए हमें किसी भी तरह की कठोर धातु या फिर स्ट्रौंग कैमिकल का उपयोग नहीं करना चाहिए. अगर आप इस की सफाई में किसी हार्ड चीज का प्रयोग करते हैं तो आप का सोना खराब भी हो सकता है या फिर गल भी सकता है. इसलिए सोने की सफाई घर पर करते समय विशेष ध्यान रखना चाहिए.

सोने के गहनों की चमक समय के साथ धीरेधीरे कम होने लगती है. लेकिन अगर आप समयसमय पर इन की साफसफाई पर ध्यान दें तो ये कभी खराब नहीं होंगे.

आइए जानते हैं सोने के गहनों की घर पर सफाई कैसे की जा सकती है-

  • नमक के पानी से

सोने के गहनों को नमक के पानी से साफ किया जा सकता है. इस के लिए सब से पहले एक बाउल में हलका गुनगुना पानी लें. फिर उस में एक चम्मच नमक डाल कर उस में सोने के गहनों को डालें. थोड़ी देर बाद नमक के पानी से निकाल कर उस को हलके हाथों से साफ करें. अब साफ पानी से धो कर मुलायम कपड़े से सुखाएं. आप देखेंगे कि आप का सोने का गहना साफ हो गया है.

  • अमोनिया से गहनों की सफाई

अमोनिया से सोने के गहनों की सफाई के लिए सब से पहले एक बाउल में गुनगुना पानी लें. फिर उस में अमोनिया का पाउडर मिला कर कम से कम 2 मिनट के लिए उस में अपने गहनों को भिगों दें. इस के बाद गहनों को ब्रश से अच्छे से साफ करें. आप देखेंगे कि गहने साफ हो चुके हैं. अमोनिया से गहने साफ करते समय यह ध्यान जरूर रखें कि आप के गहनों पर कोई कीमती नग या कोई मोती न जड़ा हो.

  • हलदी से करें सफाई

आप अपने सोने के गहनों को हलदी से भी साफ कर सकते हैं. सोने के गहनों को हलदी से साफ करने के लिए सब से पहले एक कटोरी में एक चम्मच हलदी डालें. इस के बाद उस में थोड़ा सा कोई भी शैंपू डालें. फिर दोनों को मिला कर एक पेस्ट तैयार करें. उस के बाद जिन गहनों को साफ करना है उन पर थोड़ा सा हलदी वाला पेस्ट लगा कर कौटन के कपड़े से हलके हाथों से रगड़ें. अब अपने आभूषण साफ पानी से धो लें. इस प्रयोग में भी आप अपने सफेद नग वाले गहनों को न धोएं.

  • डिश सोप से गहनों की सफाई

लिक्विड डिश डिटर्जेंट की कुछ बूंदें हलके गुनगुने पानी से भरी एक कटोरी में डाल कर अच्छे से मिलाएं. सोने के गहनों को करीब 15 मिनट तक इस मिश्रण में भिगो कर छोड़ें जब तक यह पानी में भीगता है, गरम डिटर्जेंट का पानी गहनों की दरारों में घुस कर वहां जमी गंदगी को ढीला कर देगा.

गहनों को फिर नर्म दांतों वाले टूथब्रश से हलके हाथों से धोएं. टूथब्रश जितने नर्म दांतों का होगा, उतना बेहतर है. कड़े दांतों वाले ब्रश से गहनों की सतह पर खरोचें आ सकती हैं. अब बहते पानी में प्रत्येक गहने को अच्छे तरीके से धोएं. इस से ब्रश के रगड़ने से जितना भी ढीला पड़ा मैल शेष है, वह निकल जाएगा. अब इन्हें नर्म कपड़े से पोंछ कर सुखाएं.

  • बेकिंग सोडा से मिनटों में चमकाएं सोने के गहने

बेकिंग सोडा आमतौर पर कुकिंग में इस्तेमाल होता है हालांकि आप इस से अपने सोने के गहनों को भी साफ कर सकते हैं. इस के लिए आप को केवल 2 चम्मच सोडा को हलके गरम पानी में घोल कर पेस्ट बनाना है. अब इस में अपने गहनों को आधे घंटे के लिए डुबो कर छोड़ दें. फिर इसे स्पंज से आराम से रगड़ कर साफ कर लें.

  • नीबू से क्लीन करें गोल्ड ज्वैलरी

नीबू में नैचुरल रूप से क्लीनिंग एजेंट मौजूद होते हैं. ऐसे में आप इस का इस्तेमाल सोने के आभूषण को साफ करने के लिए भी कर सकते हैं. इस के लिए एक कटोरी गरम पानी में आधा नीबू निचोड़ लें. अब इस में गहनों को 20-30 मिनट के लिए रख कर छोड़ दें. फिर इसे ब्रश से आराम से साफ कर के साफ पानी से धो लें.

  • बियर से सफाई

आप सोने के गहनों को बियर से भी साफ कर सकते हैं. बियर से गहनों की सफाई के लिए कौटन के कपड़े पर थोड़ी सी बियर डाल लें. उस के बाद गहनों को बियर लगे कपड़े से हलके हाथों से रगड़ें. ऐसा तब तक करें जब तक गहने की चमक वापस न आ जाए. लेकिन ध्यान रखें, यदि सोने के

गहने पर स्टोन या हीरे जड़े हैं तो आप उन गहनों को बियर से साफ नहीं कर सकते.

कुछ जरूरी सावधानियां

सोना एक मुलायम मैटल है जिस पर स्क्रैच लगने की आशंका अधिक होती है. खासतौर पर सोने की अंगूठी, ब्रेसलेट या चूडि़यां पहनते वक्त सजग रहना जरूरी है. ऐसे में घर की साफसफाई या फिर बच्चों के साथ खेलने आदि के दौरान बेहतर होगा कि सोने के गहने न पहनें.

  • क्लोरीन से बचाएं ज्वैलरी

सोने के गहनों पर कई ऐसे रसायन हैं जो सूट नहीं करते. क्लोरीन भी ऐसा ही एक रसायन है जिस के संपर्क में सोना कमजोर हो जाता है. अगर अधिक समय तक सोने के गहनों का संपर्क क्लोरीन से होगा तो वे जल्दी टूटेंगे.

  • ज्वैलरी पहन कर स्विमिंग करने या नहाने से बचें

स्विमिंग पूल में क्लोरीन का स्तर उच्च होता है ताकि उसे कीटाणुओं से मुक्त रखा जा सके. लेकिन यही क्लोरीन मैटल को खराब करता है और उस के रंग को भी नुकसान पहुंचाता है. यहां तक कि अगर ज्वैलरी में पत्थर लगे हैं, तो यह उन को भी नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए स्विमिंग करने से पहले ज्वैलरी जरूर उतार दें. अगर आप गोल्ड ज्वैलरी को पहन कर नहाएंगी तो भी उस का रंग समय के साथ फीका पड़ता जाएगा.

क्लोरीन के अलावा एसिड, क्लीनर आदि के नियमित संपर्क में आने से भी सोने के गहने कमजोर हो जाते हैं. इन का उपयोग करते वक्त हाथों में रबड़ के दस्ताने पहनने से अंगूठी या ब्रेसलेट को बचाया जा सकता है.

जब लंबे समय के लिए स्टोर करने हों गहने

  • सोने के गहनों को अगर सही तरीके से स्टोर करें तो ये सालोंसाल चलते हैं. इन्हें हमेशा मैटल, मोती या स्टोन आदि के गहनों से अलग रखें.
  • इन्हें किसी मुलायम कपड़े या बटरपेपर में रैप कर के भी रख सकते हैं जिस से ये कम से कम हवा के संपर्क में आएंगे और उन की उम्र बढ़ेगी.
  • कभी भी अपने सोने के गहनों को किसी अन्य धातु के साथ मिला कर न रखें. चांदी, तांबा, पीतल जैसे सभी धातुओं को अलगअलग बौक्स में रखें.

बदलबदल कर पहनें

आप जिन ज्वैलरी को रोजाना पहनती हैं, वे वक्त के साथ पुरानी लगने लगती हैं. उन में धूल, मिट्टी, पसीना, बैक्टीरिया और स्किन प्रोडक्ट्स का प्रभाव पड़ता है. इस के अलावा सूरज की किरणों का भी ज्वैलरी पर बुरा असर पड़ता है. अगर आप को ज्वैलरी को साफ और नया जैसा रखना है तो उसे हर हफ्ते साफ करें और बदलबदल कर पहनें.

ज्वैलरी पहनने से पहले लगाएं कौस्मेटिक्स

त्वचा पर क्रीम, मेकअप या परफ्यूम लगाना हो तो ज्वैलरी सब से आखिर में पहनें क्योंकि इन प्रोडक्ट्स में मौजूद कैमिकल्स आप की सोने की ज्वैलरी को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसलिए इस बात का हमेशा ध्यान रखें ताकि आप की ज्वैलरी खराब न हो.

सही तरीके से रखें

कई लोग ज्वैलरी के लिए खास बौक्स डिजाइन करवाते हैं. ऐसा करना अच्छा है क्योंकि लौकर के मैटल से रिएक्ट कर के ज्वैलरी की शाइन और खूबसूरती कम हो सकती है. साथ ही, हवा में मौजूद नमी भी ज्वैलरी की खूबसूरती को फीका कर देती है. हर ज्वैलरी को अलग बौक्स में रखना बेहतर होता है.

ज्वैलरी के मामले में बरती जाने वाली सावधानियां

अवामा के फाउंडर अभिषेक कहते हैं कि ज्वैलरी के मामले में कुछ सावधानियां बरतनी जरूरी हैं.

अलगअलग ज्वैलरी अलगअलग डब्बों में रखें. गोल्ड ज्वैलरी रखने के लिए सब से बेहतर औप्शन हैं कपड़ों के बौक्स. इन को वैलवेट बौक्स में कभी भी न रखें क्योंकि ऐसा करने से गहने जल्दी काले पड़ सकते हैं. कई ज्वैलर्स प्लास्टिक के बैग के अंदर कपड़े के बौक्स देते हैं. इन में ज्वैलरी सुरक्षित रहती है.

अगर गोल्ड ज्वैलरी की चमक थोड़ी फीकी पड़ गई है या वह गंदा हो गया है तो आप उसे गरम पानी में डालें. इस में थोड़ा लिक्विड सोप भी डालें और फिर साफ करें. इस से जो भी डस्ट है वह निकल जाती है और चमक भी वापस आ जाती है. अब इसे साफ कपड़े से पोंछ कर हेयर ड्रायर से सुखा लें. अगर थोड़ा पानी या नमी रह गई होगी तो वह भी सूख जाएगा. मगर ध्यान रखें कि गरम पानी में आप गोल्ड पर डायमंड लगे हुए गहने ही डाल सकते हैं. मगर यदि गहनों में कीमती स्टोन लगें हों तो ऐसा कतई ऐसा न करें. वरना वह पानी से लाल हो जाएगा.

इस बात का भी खयाल रखें कि आप कहीं जाने के लिए तैयार हो रही हैं तो गहने पहनने का काम सब से अंत में और आराम से करें. चलतेफिरते या बातें करते गहने न पहनें. ये लाखों के हैं जो टूट सकते हैं. ये मेकअप आदि के कैमिकल्स से खराब हो सकते हैं. इसलिए मेकअप के बाद ही ज्वैलरी पहनें.

रिलायंस ज्वैल्स के सुनील नायक द्वारा कुछ सुझाव दिए गए हैं जिन्हें रोजाना अमल करने से आप के कीमती आभूषणों की चमक सालोंसाल बरकरार रहेगी :

सर्दी के मौसम में पर्यावरण में नमी रहने के कारण आप के गहनों की चमक में कमी आ सकती है. ऐसे में सोने के आभूषणों को धूलमिट्टी या तापमान से बचाना आवश्यक है.

  • सोने के गहनों को रोजमर्रा में पहनने से उन पर आसानी से निशान पड़ सकते हैं. यह महत्त्वपूर्ण है कि आप घर की सफाई या ऐसे कोई भी काम करते समय अपने गहनों को उतार कर किसी सुरक्षित जगह पर रख दें. सफाई में इस्तेमाल होने वाले उत्पादों में हानिकारक रसायन होने के कारण आप के गहनों को नुकसान पहुंचता है.
  • नहाते वक्त अपने गहनों को न पहनें. पानी और साबुन रोज लगाने से गहनों की चमक में कमी आ जाती है.
  • रोजाना इस्तेमाल होने वाले परफ्यूम, मौइस्चराइजर और बदन पर लगने वाले कैमिकल्स से अपने गहनों को दूर रखें. तैयार होने के आखिर में ही गहनों को पहनें.
  • इस बात पर ध्यान दें कि रोजाना पहनने वाले सोने के गहनों को हर 2 महीने में एक बार जरूर साफ कर लें.
  • गुनगुने पानी में अपने गहनों को 3 से 5 घंटे भीगने के लिए रख दें.
  • पानी में रहने से गहनों पर लगी गंदगी को साफ करना आसान हो जाता है.
  • गहनों को साफ करने के बाद उन्हें मुलायम कपड़े से पोंछें और कौटन या दूसरे मुलायम कपड़े में बांध कर रख दें.

ड्राई और सांवली त्वचा से छुटकारा पाने के उपायों के बारे में बताइए ?

सवाल

मैं 23 वर्षीय युवती हूं. मेरी त्वचा बहुत ड्राई और सांवली है. मैंने कई उपायों को अपनाया है लेकिन फिर भी त्वचा पर कोई असर नहीं हो रहा है. कृपया मुझे कोई ऐसे उपाय के बारे में बताइए जिससे मेरी त्वचा गोरी होने के साथ-साथ साफ हो जाए. इसके अलावा ड्राइनैस से छुटकारा पाने के उपायों के बारे में भी बताइएगा.

जवाब

त्वचा की रंगत निखारने के लिए चेहरे को साफ करने के लिए हमेशा कच्चे दूध का प्रयोग करें, साथ ही कच्चे दूध को चेहरे पर लगा कर हलके हाथों से चेहरे की मसाज भी करें व सूखने पर ठंडे पानी से धो लें. ऐसा करने से धीरेधीरे आपकी त्वचा की रंगत में निखार आने लगेगा.

इसके अलावा त्वचा की ड्राइनैस को दूर करने के लिए त्वचा को हमेशा मौइश्चराइज रखें. त्वचा को धूप से बचाएं और हर बार घर से बाहर निकलते समय चेहरे पर 30 एसपीएफ युक्त सनस्क्रीन अवश्य लगाएं.

मुझे यकीन है कि इन उपायों को अपनाने से आपकी त्वचा में निखार तो आएगा ही. साथ ही आपको ड्राइनैस की समस्या से भी छुटकारा मिल जाएगा.

हैप्पी प्रैगनैंसी के लिए इन बातों का रखें ध्यान

मां बनना महिला के जीवन का सब से खूबसूरत पल होता है. लेकिन कई बार कुछ कारणों के चलते कोई महिला मां नहीं बन पाती है. ऐसी स्थिति में निराश होना स्वाभाविक है. मगर कई मामलों में कुछ बातों का ध्यान रख कर और डाक्टरी सलाह ले कर कमियों को दूर कर मां बनने का सुख हासिल किया जा सकता है.

जानतें हैं, प्रैगनैंसी के लिए किनकिन खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है. साथ ही, प्रैगनैंसी प्रोसेस और उस से जुड़े कौंप्लिकेशंस पर भी एक नजर:

जरूरी सावधानियां

– 32 साल के बाद महिलाओं की गर्भधारण करने की क्षमता कम होने लगती है. इसलिए अगर किसी महिला की उम्र 32 साल हो गई है, तो उसे गर्भधारण में देर नहीं करनी चाहिए. अगर प्राकृतिक तौर पर वह गर्भवती नहीं हो पा रही है तो उसे तुरंत किसी विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए.

– धूम्रपान करने से भी मां बनने की क्षमता प्रभावित होती है. इतना ही नहीं, इस से गर्भपात का भी खतरा बना रहता है, इसलिए महिलाओं को धूम्रपान नहीं करना चाहिए.

– बहुत ज्यादा वजन होना भी मां बनने में बाधक होता है. अगर आप मोटी हैं और आप को गर्भधारण में परेशानी आ रही है, तो आप अपना वजन कम करें.

– जो महिलाएं शाकाहारी होती हैं, उन्हें अपनी डाइट में पर्याप्त मात्रा में फौलिक ऐसिड, जिंक और विटामिन बी12 लेने की जरूरत होती है. शरीर में इन पोषक तत्त्वों की कमी भी गर्भधारण में रुकावट पैदा करती है.

– अगर आप 1 सप्ताह में 7 घंटे से ज्यादा ऐक्सरसाइज करती हैं, तो इसे कम करने

की जरूरत है. जरूरत से ज्यादा ऐक्सरसाइज के कारण ओव्युलेशन प्रौब्लम हो जाती है, जिस से गर्भधारण करने में परेशानी आती है.

– फिजिकल इनऐक्टिविटी भी कई बार गर्भधारण करने में बाधा उत्पन्न करती है. अगर आप बहुत ज्यादा सुस्त रहती हैं, फिजिकली इनऐक्टिव रहती हैं, तो आप को ऐक्टिव होना होगा.

– एसटीआई यानी सैक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज के कारण भी गर्भधारण करने की क्षमता प्रभावित होती है. अगर आप को ऐसी किसी भी तरह की परेशानी है, तो तुरंत उस का इलाज करवाएं.

– पेस्टिसाइड्स, हर्बिसाइड्स, मैटल जैसे लेड सहित कुछ रासायनिक तत्त्व ऐसे होते हैं, जिन के संपर्क में आने से गर्भधारण की क्षमता प्रभावित होती है. इसलिए जहां तक हो सके इन के सीधे संपर्क में आने से बचें.

– मानसिक तनाव भी गर्भधारण की क्षमता को प्रभावित करता है. इसलिए अगर आप बहुत ज्यादा स्ट्रैस लेती हैं, तो उस से बचें.

कैसे होता है गर्भधारण

एक महिला जिसे हर महीने मासिक चक्र होता है, वही गर्भधारण कर सकती है. असल में 2 मैंस्ट्रुअल साइकिल के बीच ओव्युलेशन पीरियड होता है. यह वह पीरियड होता है जब ओवरी से एग रिलीज होते हैं यानी अंडे निकलते हैं. सामान्य अवस्था में एक महिला में ओव्युलेशन की प्रक्रिया अगले मैंस्ट्रुअल साइकिल के 2 सप्ताह पहले शुरू हो जाती है. ओव्युलेशन के दौरान रिलीज होने वाले एग 24 घंटे तक जीवित रहते हैं, उस के बाद मर जाते हैं. ओव्युलेशन के दौरान जब पतिपत्नी के बीच शारीरिक संबंध बनता है, तो एग और स्पर्म एकदूसरे के संपर्क में आते हैं. इसी समय स्पर्म द्वारा एग को फर्टिलाइज्ड यानी निशेचित करने से एक महिला गर्भधारण करती है.

गर्भधारण का सर्वोत्तम समय

गर्भधारण करने का सब से सही समय ओव्युलेशन के समय शारीरिक संबंध बनाना होता है. एक सामान्य महिला में ओव्युलेशन की अवधि 6 दिनों की होती है. ओव्युलेशन के बाद जहां एग्स मात्र 1 दिन ही जीवित रह पाते हैं, वहीं स्पर्म 1 सप्ताह तक जीवित रहते हैं. इस प्रकार ओव्युलेशन के बाद के 5 दिन गर्भधारण के लिए सर्वोत्तम माने जाते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ओव्युलेशन के 1-2 दिन पहले शारीरिक संबंध बनाया जाए तो गर्भधारण की क्षमता बहुत ज्यादा बढ़ जाती है, क्योंकि इस से स्पर्म को एग के संपर्क में रहने का ज्यादा समय मिलता है.

गर्भधारण के समय होने वाली परेशानी

गर्भधारण के बाद महिला को काफी सावधानी बरतनी होती है. ऐसा न करने पर उसे कई समस्याएं हो सकती हैं.

हाई ब्लडप्रैशर: कई महिलाओं में प्रैगनैंसी के दौरान हाई बीपी की शिकायत देखी जाती है. ऐसे में नियमित जांच कराते रहना चाहिए.

ऐनीमिया: जब एक गर्भवती महिला पर्याप्त मात्रा में आयरन का सेवन नहीं करती है, तो उस के शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है. इस स्थिति में लापरवाही बरतने पर मां और बच्चा दोनों की जान जा सकती है.

संक्रमण: एक गर्भवती महिला को संक्रमण से होने वाली बीमारियां जैसे, इन्फ्लुएंजा, हैपेटाइटिस ई, हर्पिस सिंपलैक्स, मलेरिया आदि से ग्रस्त होने का ज्यादा खतरा रहता है. इन बीमारियों का समय पर इलाज बहुत जरूरी है वरना मां और बच्चा दोनों की मृत्यु हो सकती है.

यूरिनरी इनकौंटिनैंस: गर्भावस्था के दौरान यूरिनरी इनकौंटिनैंस यानी मूत्र संबंधी विकार के मामले भी काफी देखने को मिलते हैं. इस प्रौब्लम के होने पर डाक्टर से सलाह लेना आवश्यक है.

स्ट्रैस: गर्भावस्था के दौरान और उस के बाद कई महिलाएं बेहद मानसिक तनाव में आ जाती हैं. इस तनाव का असर मां और बच्चे दोनों पर पड़ता है. इसलिए जितना जल्दी हो सके इस से बाहर निकलने की कोशिश करनी चाहिए.

– डा. साधना सिंघल, गायनेकोलौजिस्ट, श्री बालाजी ऐक्शन मैडिकल इंस्टिट्यूट, नई दिल्ली

केलिकुंचिका : पलभर की गलती कैसे बनी जीवनभर की सजा ?

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उस का घर : प्रेरणा की खामोश जिंदगी के किस्सों की कहानी

बहुत अजीब थी वह सुबह. आवाजरहित सुबह. सबकुछ खामोश. भयानक सन्नाटा. किसी तरह ही आवाज का नामोनिशान न था. उस ने हथेलियां रगड़ीं, सर्दी के लिए नहीं, सरसराहट की आवाज के लिए. खिड़की खोली, सोचा, हवा के झोंके से ही कोई आवाज हो सकती है. लकड़ी के फर्श पर भी थपथपाया कि आवाज तो हो. कुछ भी, कहीं से सुनाई तो पड़े. पेड़ भी सुन्न खड़े थे, आवाजरहित.

उस ने अपनी घंटी बजाई, थोड़ी आवाज हुई…आवाज होती थी, मर जाती थी, कोई अनुगूंज नहीं बचती थी. ये कैसे पेड़ थे. कैसी हवा थी, हरकतरहित जिस में न सुर, न ताल. उस ने खांस कर देखा. खांसी भी मर गई थी जैसे प्रेरणा, उस की दोस्त…अब उस की कभी आवाज नहीं आएगी. वह क्या गई, मानो सबकुछ अचानक मर गया हो. यह सोच कर उस के हाथपैर ठंडे पड़ने लगे. शायद वह प्रेरणा की मौत की खबर को सहन नहीं कर पा रहा था. पिछले सप्ताह ही तो मिली थी उसे वह.

अब तक तो अंतिम संस्कार भी हो गया होगा. हैरान था वह खुद पर. अब तक हिम्मत क्यों नहीं जुटा पाया उस के घर जाने की. शायद लोगों को उस की मौत का मातम मनाते देख नहीं सकता था, या फिर प्रेरणा की छवि जो उस के जेहन में थी उसे संजो कर रखना चाहता था.

अंतिम संस्कार हुए 4 दिन हो चुके थे. तैयार हो कर उस ने गैराज से कार निकाली और भारी मन से चल दिया. रास्तेभर यही सोचता रहा, वहां जा कर क्या कहेगा. आज तक वह किसी शोकाकुल माहौल में गया नहीं. वह नहीं जानता था कि ऐसी स्थिति में क्या कहना चाहिए, क्या करना चाहिए. यही सोचतेसोचते प्रेरणा के घर की सड़क भी आ गई. उस का दिल धड़कने लगा. दोनों ओर कतारों में पेड़ थे. उस का मन तो धुंधला था ही, धुंध ने वातावरण को भी धुंधला कर दिया था. उस ने अपना चश्मा साफ किया, बड़ी मुश्किल से उस के घर का नंबर दिखाई दिया. घर बहुत अंदर की तरफ था. उस ने कार बाहर ही पार्क कर दी. कार से पांव बाहर रखते ही उस के पांव साथ देने से इनकार करने लगे. बाहर लगे लोहे के गेट की कुंडी हटाते ही, लोहे के टकराव से, कुछ क्षणों के लिए वातावरण में एक आवाज गूंजी. वह भी धीरेधीरे मरती गई. पलभर को उसे लगा, मानो प्रेरणा सिसकियां भर रही हो…

वहां 3 कारें खड़ी थीं. घर के चारों ओर इतने पेड़ लगे थे कि उस के मन के अंधेरे और बढ़ने लगे. एक भयानक नीरवता चारों ओर घिरी थी. लगता था हमेशा की तरह ब्रिटेन की मरियल धूप कहीं दुबक कर बैठ गई थी. बादल बरसने को तैयार थे.

मन के भंवर में धंसताधंसता न जाने कब और कैसे उस के दरवाजे पर पहुंचा. दिल की धड़कन बढ़ने लगी. एक पायदान दरवाजे के बाहर पड़ा था. उस ने जूते साफ किए और गहरी सांस ली. उस ने घंटी बजाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि दरवाजा खुला. शायद लोहे के गेट की गुंजन ने इत्तला दे दी होगी. प्रेरणा के पति ने उस के आगे बढ़े हाथ को अनदेखा कर, रूखेपन से कहा, ‘‘अंदर आओ.’’

उस ने अपना हाथ पीछे करते कहा, ‘‘आई एम राहुल. प्रेरणा और मैं एक ही कंपनी में काम करते थे.’’

‘‘आई एम सुरेश, बैठो,’’ उस ने सोफे की ओर इशारा करते कहा.

सोफे पर बैठने से पहले राहुल ने नजरें इधरउधर दौड़ाईं और कुछ बिखरी चीजें सोफे से हटा कर बैठ गया. राहुल को विश्वास नहीं हुआ, हैरान था वह, क्या सचमुच यह प्रेरणा का घर है. यहां तो उस के व्यक्तित्व से कुछ भी तालमेल नहीं खाता. दीवारें भी सूनीसहमी खड़ी थीं. उन पर न कोई पेंटिंग, न ही कोई तसवीर. अखबारों के पन्ने, कुशन यहांवहां बिखरे पड़े थे. टैलीविजन व फर्नीचर पर धूल चमक रही थी. बीच की मेज पर पड़े चाय के खाली प्यालों में से चाय के सूखे दाग झांकझांक कर अपनी मौजूदगी का एहसास करा रहे थे.

हर तरफ वीरानगी थी. लगता था मानो घर की दीवारें तक मातम मना रही हों. दिलों के विभाजन की गंध सारे घर में फैली थी. अचानक उस की नजर एक कोने में बैठे 2 उदास कुत्तों पर पड़ी जो सिर झुकाए बैठे थे. शायद वे भी प्रेरणा की मौत का मातम मना रहे थे.

‘‘राहुल, चाय?’’

‘‘नहींनहीं, चाय की आवश्यकता नहीं, आ तो मैं पहले ही जाता, सोचा, अंतिम संस्कार के बाद ही जाऊंगा, तब तक लोगों का आनाजाना कुछ कम हो जाएगा.

‘‘वैसे, प्रेरणा ने आप का जिक्र तो कभी किया नहीं. हां, अगर आप पहले आ जाते तो अच्छा ही रहता, आप का नाम भी उस के चाहने वालों की सूची में आ जाता. सच पूछो तो मैं नहीं जानता था कि हिंदी में कविता और कहानियों की इतनी मांग है. क्या आज के युग में भी सभ्य इंसान हिंदी बोलता या पढ़ता है?’’ प्रेरणा के पति ने बड़े पस्त और व्यंग्यात्मक लहजे में कहा.

‘‘प्रेरणा तो बहुत अच्छा लिखती थी. उस की एकएक कविता मन को छू लेने वाली है. व्यक्तिगत दुखसुख व प्रेम के रंगों की सुगंध है. ऐसी संवदेनाएं हैं जो पाठकों व श्रोताओं को आपबीती लगती हैं. आप ने तो पढ़ी होंगी,’’ राहुल ने कहा.

इतना सुनते ही एक कुटिल छिपी मुसकराहट उस के चेहरे पर फैल गई. उस ने राहुल की बात को तूल न देते हुए संदर्भ बदल कर कहना शुरू किया, ‘‘अच्छा हुआ, आप वहां नहीं थे. कैसे बेवकूफ बना गई वह मुझे, मैं जान ही नहीं पाया कि मेरी पार्टनर कितनी फ्लर्ट थी. कितने दोस्त आए थे अंतिम संस्कार के मौके पर. उस वक्त हमारे परिवार का समाज के सामने नजरें उठाना दूभर हो गया था. उम्रभर मना करता रहा, ऐसी प्रेमभरी कविताएं मत लिखो, बदनामी होगी, लोग क्या कहेंगे. वही हुआ जिस का डर था. लोग कानाफूसी कर रहे थे, बुदबुदा रहे थे, ‘पति हैं, बच्चे हैं…’ किस के लिए लिखती थी?’’ इतना कह कर कुछ क्षण वह चुप रहा, फिर बिफरता सा बोला, ‘‘राहुल, कहीं वह तुम्हारे लिए तो…’’ उस की जबान बेलगाम चलती रही.

राहुल हैरान था, क्या यह वही दरिंदा है जिस से वह एक बार कंपनी के सालाना डिनर पर मिला था. राहुल कसमसाता रहा, तय नहीं कर पा रहा था कि उस की प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए. पलभर को उस का मन किया कि उठ कर चला जाए, फिर मन को समझाते बुदबुदाया, ‘मैं उस के स्तर पर नहीं गिर सकता.’ वक्त की नजाकत को देखते वह गुस्से को पी गया. मन में तो उस के आया कि इस पत्थरदिल से साफसाफ कह दे, हां, हां, था रिश्ता.

मानवता के रिश्ते को जो नाम देना चाहो, दे दो. जीवन का सच तो यह है कि प्रेरणा मेरे जीवन में रोशनी बन कर आई थी और आंसू बन कर चली गई.

वहां बैठेबैठे राहुल को एक घंटा हो चुका था. अभी तक घर में अक्षुब्ध शांति थी. चुप्पी को भंग करते राहुल ने पूछ ही लिया, ‘‘सर, बच्चे दिखाई नहीं दे रहे?’’

‘‘श्रुति तो कालेज गई है, रुचि सहेलियों के साथ बाहर गई है. सारा दिन घर में बैठ कर करेगी भी क्या. मैं उस की मां की मौत को बड़ा मुद्दा बना कर उन की पढ़ाई में विघ्न नहीं डालना चाहता. घर को बिखरते नहीं देख सकता. मेरा घर मेरे लिए सबकुछ है, इसे बनाने में मैं ने बहुत पैसा और जान लगाई है. प्रेरणा ने तो पीछा छुड़ा लिया है सभी जिम्मेदारियों से. बच्चों की पढ़ाई, विवाह, घर का लोन सब मुझे ही तो चुकाना है. इस के लिए पैसा भी तो चाहिए,’’ वह भावहीन बोलता गया.

राहुल ने सबकुछ जानते हुए भी विरोध का नहीं, मौन के हथियार को अपनाना सही समझा. सोचने लगा, जो तुम नहीं जानते, मैं वह जानता हूं. मैं ने ही तो करवाया था प्रेरणा के मकान के लिए इतना बड़ा लोन सैंक्शन. फिर लोन का इंश्योरैंस कराने के लिए उसे बाध्य भी किया. इस सुरेश पाखंडी ने प्रेरणा को बदले में क्या दिया? आंसू, यातनाएं, उम्रभर आजादी से कलम न उठा पाने की बंदिशें? एक मैं ही था जिसे वह पति के नुकीले शब्दों के कंकड़ों से पड़े दाग दिखा सकती थी. उस की हंसी तक खोखली हो चुकी थी. अकसर वह कहती थी कि उसे अपना घर कभी अपना नहीं लगा. वह सीखती रही अशांति में भी शांति से जीने की कला. वह खुद पर मुखौटा चढ़ा कर उम्रभर खुद को धोखा देती रही.

राहुल की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. वह प्रेरणा की लिखनेपढ़ने की जगह देखने को उतावला हो रहा था. अभी तक उसे कोई सुराग नहीं मिला था. कभी बाथरूम इस्तेमाल करने का बहाना कर के दूसरे कमरों में झांक कर देखा, कहीं भी स्टडी टेबल दिखाई नहीं दी. राहुल टटोलता रहा. चाय पीतेपीते जब राहुल से रहा नहीं गया, तो हिम्मत बटोर कर उस ने पूछ ही लिया, ‘‘सर, क्या मैं प्रेरणा का अध्ययन करने का स्थान देख सकता हूं. आई मीन, जहां बैठ कर वह पढ़ालिखा करती थी?’’

‘‘क्यों नहीं,’’ वह व्यंग्यात्मक लहजे में बोला, ‘‘आओ मेरे साथ, वह देखो, सामने,’’ उस ने गार्डन में एक खोके की ओर इशारा किया और फिर बोला, ‘‘वह जो आखिर में कमरा है वही था उस का स्टडीरूम.’’

राहुल भलीभांति जानता था कि जिसे वह कमरा कह रहा है वह कमरा नहीं, 5×8 फुट का लकड़ी का शैड है. मुरगीखाने से भी छोटा. शैड को खोलते ही राहुल का दिमाग चकरी की तरह घूमने लगा. शैड के चारों और मकड़ी के जाले लगे थे. सीलन की गंध पसरी थी. शैड फालतू सामान से भरा था. उस की दीवारों पर फावड़ा, खुरपी, कैंची, फौर्क वगैरह टंगे थे.

एकदो पुराने सूटकेस और पेंट के खाली डब्बे पड़े थे. आधा हिस्सा तो घास काटने वाली मशीन ने ले लिया था, बाकी थोड़ी सी जगह में पुराना लोहे का बुकशैल्फ था, जिस पर शायद प्रेरणा किताबें, पैन, पेपर रखती रही होगी. कुछ मोमबत्तियां और बैट्री वाली हैलोजन की बत्तियां पड़ी थीं. दीवार से टिकी 2 फुट की फोल्ंिडग मेज और फोल्ंिडग गार्डनकुरसी पड़ी थीं. एक छोटा सा पोर्टेबल हीटर भी पड़ा था. फर्श पर चूहे व कीड़ेमकोडे़ दौड़ रहे थे. बिजली का वहां कोई प्रबंध नहीं था. हां, एक छोटी सी प्लास्टिक की खिड़की जरूर थी जहां से दिन की रोशनी झांक रही थी. अविश्वसनीय था कि कैसे एक इंसान दूसरे से किस हद तक क्रूर हो सकता है.

डरतेडरते राहुल ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘भला बिना बिजली के कैसे लिखती होगी? डर भी तो लगता होगा?’’

‘‘डर, वह सामने 2 कुत्ते देख रहे हो, प्रेरणा के वफादार कुत्ते. उस की किसी चीज को हाथ लगा कर तो देखो, खाने को दौड़ पड़ेंगे.

‘‘प्रेरणा के अंगरक्षक या बौडीगार्ड, जो चाहे कह लो. यह कहावत तो सुनी होगी तुम ने, ‘जहां चाह वहां राह? मेरे सामने उसे लिखने की इजाजत ही कहां थी. मुझे तो बच्चों की मां और मेरी पत्नी चाहिए थी, लेखिका नहीं. मैं नहीं चाहता था मेरे घर में कविताओं के माध्यम से प्रेम का इजहार हो. देखो न, अब बेकार हैं उस की सब किताबें. कौन पढ़ना चाहेगा इन्हें? बच्चे तो पढ़ेंगे नहीं. नौकर से कह कर बक्से में रखना ही है. तुम चाहो तो ले जा सकते हो वरना रद्दी वाला ले जाएगा या फिर मैं गार्डन में लोहड़ी जला दूंगा,’’ उस ने क्रूरता से कहा.

राहुल को लगा उस के कानों में किसी ने किरचियां डाल दी हों. राहुल उसे कह भी क्या सकता था, वह प्रेरणा का पति था. बस, बड़बड़ाता रहा, ‘जा, थोड़ा सा दिल खरीद कर ला, कैसा मर्द है समानता का दर्जा तो क्या, उसे उस के हिसाब से जीने का हक तक न दे सका. तुम क्या जानो कुबेर का खजाना. लेखन का भी एक अनूठा नशा होता है. पत्रिका या किताबों पर अपना नाम देख कर अपने लिखे शब्दों को देख कर जो शब्द धुएं की तरह मन में उठते हैं और हमेशा के लिए कागज पर अंकित हो जाते हैं, दुनिया में कोई और चीज उन से अधिक स्थायी नहीं हो सकती.’

‘‘सर, कुछ किताबें तो रख लेते यादगार के लिए.’’

‘‘यादगार, बेकार की बातें क्यों करते हो. औरत भी कोई याद रखने की चीज है क्या. हां, प्रेरणा ने 2 बच्चियां जरूर दी हैं, उन के लिए मैं आभारी हूं. जानवर भी घर में रहता है तो उस से मोह हो ही जाता है.’’

राहुल अब वहां पलभर भी रुकना नहीं चाहता था. सोचने लगा, इतनी तौहीन, कठोर शब्दों के बाण. शाबाशी है प्रेरणा को, जो ऐसी बंदिशों व घुटनभरी जिंदगी की रेलपेल से पिस्तेपिस्ते भी अपना काम करती रही.

भारी मन से गार्डन से अंदर आतेआते राहुल का पांव हाल में पड़े एक खुले गत्ते के डब्बे से टकराया, जिस में से प्रेरणा का सभी सामान और ट्रौफियां उचकउचक कर झांक रहे थे.

‘‘लगी तो नहीं तुम्हें? मैं तो इन्हें देख कर आपे से बाहर हो जाता हूं. नौकर से कह कर इन्हें बक्से में रखवा दिया है. इन्हें कबाड़ी वाले को धातु के भाव दे दूंगा.’’

उस की हृदयहीन बातें राहुल के हृदय को बींधती रहीं. कितनी आसानी से समेट लिया था सुरेश ने सबकुछ. प्रेरणा की 25 वर्षों की मेहनत के अध्याय को चार दिन में अपने जीवन से निकाल कर फेंक दिया था उस ने. अभी तो उस की राख भी ठंडी नहीं हुई थी, उस का तो नामोनिशान तक मिटा दिया इस बेदर्द ने.

इतनी  नफरत, आखिर क्यों? फिर वह मन ही मन ही बड़बड़ाने लगा, ‘हो सकता है प्रेरणा की तरक्की से जलता हो. इस का क्या गया, खोया तो मैं ने है अपना सोलमेट. अब किस से करूंगा मन की बातें. कौन सुनेगा एकदूसरे की कविताएं,’ बहुत रोकतेरोकते भी राहुल की आंखें भर्रा गईं.

राहुल की भराई आंखें देख कर सुरेश का चेहरा तमतमा उठा, भौंहों पर बल पड़ गए, माथे की रेखाएं गहरा गईं. उस के स्वर में कसैलापन झलका, वह बोला, ‘‘आई सी, राहुल, कहीं तुम वह तो नहीं हो जिस के साथ वह रात को देरदेर तक बातें करती रहती थी, आई मीन उस के बौयफ्रैंड?’’

इतना सुनते ही राहुल की सांस रुक गई. निगाह ठहर गई. उसे लगा जैसे किसी ने उस के गाल पर तमाचा जड़ दिया हो या फिर पंजा डाल कर उस का दिल चाकचाक कर दिया हो. प्रेरणा तो उस की दोस्त थी, केवल दोस्त जिस में न कोई शर्त, न आडंबर, खालिस अपनेपन की गहनता. प्रेरणा के पास नई राह पर चलने का हौसला नहीं था. उस की खामोशी शब्दों में परिभाषित रहती थी. ऐसी थी वह.

राहुल वहां से भाग जाना चाहता था. वह अपनी खामोश गीली आंखों में चुपचाप प्रेरणा की असहनीय पीड़ा को गले लगाए, उस की कुर्बानियों पर कुर्बान महसूस करता अपने घर को निकलने की तैयारी करने लगा. उसे संतुष्टि थी कि अब प्रेरणा आजाद है. उसे याद आया प्रेरणा अकसर कहा करती थी, ‘भविष्य क्या है, मैं नहीं जानती. इतना जरूर जानती हूं कि सीतासावित्री का जीवन भी इस देश में गायभैंस के जीवन जैसा है, जिन के गले की रस्सी पर उस का कोई अधिकार नहीं.’’

जैसे ही राहुल अपना पैर चौखट के बाहर रखने लगा, उस ने दोनों बक्सों की ओर देखा और सोचा, ‘प्रेरणा की 25 वर्षों की अमूल्य कमाई मैं इस विषैले वातावरण में दोबारा मरने के लिए नहीं छोड़ सकता.’’

राहुल ने प्रेरणा के पति की ओर देखते इशारे से पूछा, ‘‘सर, क्या मैं इन्हें ले जा सकता हूं?’’

‘‘शौक से, लेकिन इन कुत्तों से इजाजत ले लेना?’’

राहुल ने दोनों बक्सों को छूते हुए, कुत्तों की ओर देखा. कुत्ते पूंछ हिला रहे थे. उस ने बक्से कार में रखे. कुत्ते उस के पीछेपीछे कार तक गए, मानो, कह रहे हों प्रेरणा का घर तो कभी उस का था ही नहीं.

तलाक भी चट मंगनी पट ब्याह जैसा होने लगे तो हर्ज क्या है ?

दिल्ली हाईकोर्ट के 2 ताजे फैसले चर्चा में हैं. दोनों ही तलाक के हैं. पहले में अदालत ने कहा है कि पत्नी द्वारा हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों का पालन न करने वाला व्यवहार दर्शाता है कि उस के मन में अपने पति के प्रति कोई प्यार और सम्मान नहीं बचा है. इस मामले में पत्नी ने पति के सामने ही अपनी मांग का सिंदूर मिटा दिया था, सुहाग की चूड़ियां तोड़ दी थीं और सफेद साड़ी पहन कर विधवाओं जैसा वेश रख लिया था.

दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस सुरेश कैत की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि इस तरह का बरताव दिखाना निश्चित तौर पर एक पति के लिए बड़े मानसिक आघात और क्रूरता से कम नहीं है. ऐसे में यह तलाक का ठोस आधार बनता है.

एक दूसरे मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने ही एक और अहम फैसला देते हुए कहा है कि पतिपत्नी के बीच विवाद के दौरान पत्नी द्वारा पति की मर्दानगी पर सवाल उठाते हुए उसे नामर्द कहना और उसे मर्दानगी साबित करने के लिए मैडिकल टैस्ट कराने के लिए मजबूर करना मानसिक क्रूरता है.

पत्नी का इस तरह का व्यवहार भी तलाक का ठोस आधार बनता है. इस मामले में जस्टिस सुरेश कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की बैंच ने तलाक की डिक्री के फैसले के खिलाफ पत्नी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया.

किसी आधार की बाध्यता क्यों ?

पहले मामले में अजीब बात यह है कि अदालत ने धर्मिक मान्यताओं और सुहागचिन्हों को इस बात का आधार माना है कि पत्नी के मन में पति के प्रति कोई सम्मान नहीं रह गया था. इस जोड़े की शादी साल 2009 में हुई थी और कुछ दिनों बाद ही दोनों में अनबन रहने लगी थी. क्या पतिपत्नी के बीच तलाक के लिए यही आधार काफी नहीं कि उन के विचार मेल नहीं खाते हैं. दोनों में कोई ट्यूनिंग नहीं है, पटरी नहीं बैठती है और इन्हीं वजहों के चलते दोनों को घुटन होती है और उन का एकसाथ एक छत के नीचे रहना अब संभव नहीं.

दूसरा मामला थोड़ा हट कर है और आम है. पति अगर नामर्द है तो कानूनन यह तलाक का आधार होता है. कोई पत्नी अदालत में इसे कैसे साबित कर सकती है. जाहिर है, मैडिकल टैस्ट से ही यह मुमकिन है. फिर इस में क्रूरता कैसी? क्या अदालत यह चाहती है कि कोई पत्नी जिंदगीभर शारीरिक सुख से वंचित रहे और यौनसंतुष्टि के लिए चोरीछिपे इधरउधर संबंध बनाए और उजागर हो जाने पर कुलटा व चरित्रहीन कहलाए. यह ठीक है कि इस मामले में पति मैडिकल टैस्ट में फिट पाया गया यानी पत्नी ने महज शक की बिना पर या जानबूझ कर पति पर नामर्दी का आरोप लगाया तो इसलिए वह दोषी है.

लेकिन इन और ऐसे मामलों में देखा और सोचा यह जाना चाहिए कि पतिपत्नी क्यों एकदूसरे पर सच्चेझूठे आरोप लगाने को मजबूर होते हैं.

तय है, इसलिए कि वे किसी भी कीमत पर तलाक चाहते हैं और तलाक बिना आरोप लगाए मिलता नहीं. पतिपत्नी एकदूसरे को नीचा दिखाने को आरोपों का सहारा लेने को मजबूर क्यों हों, यह अब अदालतों को सोचना चाहिए कि किसी एक पक्ष का इतना कह देना ही पर्याप्त क्यों नहीं माना जाए कि अब वह वैवाहिक जीवन और नहीं ढो सकता, इसलिए तलाक चाहता है. और आसान शब्दों में कहें तो तलाक के लिए किसी वजह का होना जरूरी क्यों.

धार्मिक होती अदालतें

असल में दिक्कत तो यह है कि छोटी से ले कर बड़ी अदालतें विवाह को एक धार्मिक संस्कार मानती हैं जबकि यह एक अनुबंध है. एक तलाक से यही कथित धार्मिक संस्कार अदालतों को ध्वस्त होते दिखता है तो उन की कोशिश यह रहती है कि तलाक या तो हो ही नहीं या फिर पतिपत्नी दोनों तारीख पर तारीख लेते इतने परेशान हो जाएं कि वे तलाक का ख़याल दिल से निकाल कर मजबूरी में साथ रहें. फिर भले ही उन की जिंदगी नर्क हो जाए. बिना तलाक लिए भी वे अलग रहें तो इस धार्मिक संस्कार पर आंच कम आती है.

पहले मामले पर बारीकी से गौर करें तो साफ होता है कि पत्नी को धार्मिक सुहागचिन्ह जकड़न लगने लगे थे, इसलिए उस ने इन्हें उतार दिया और करवाचौथ का व्रत रखना भी बंद कर दिया. अदालत ने इस पर हालांकि सीधा एतराज नहीं जताया है और इसे वक्तिगत स्वतंत्रता ही माना है लेकिन इसे पति के प्रति खत्म हो गए सम्मान से जोड़ कर अपना धार्मिक पूर्वाग्रह दिखा ही दिया है.

क्या सुहागचिन्ह धारण किए रहना और करवाचौथ जैसे व्रत करते व रखते रहना ही एक पत्नी के प्यार, समर्पण और पति के प्रति सम्मान है. फिर भले ही पत्नी उलटासुलटा कुछ भी करती रहे.

दूसरे मामले में भी मनुस्मृति की छाप और गूंज साफसाफ दिखती है कि पति नामर्द, लूलालंगड़ा, लम्पट, चोर, उचक्का, नालायक, नल्ला कैसा भी हो, पत्नी को उसे छोड़ना नहीं चाहिए. यह ठीक है कि इस मामले में पति शारीरिक तौर पर फिट पाया गया. हम यहां टैंपरेरी या परमानैंट नामर्दी की चिकित्सीय व्याख्या पर भी नहीं जा रहे बल्कि मकसद यह जताना भर है कि पत्नी को झूठा आरोप लगाने की नौबत ही क्यों आई ? और ऐसा एक नहीं बल्कि तलाक के हर मुकदमे में होता है कि दोनों पक्ष एकदूसरे पर अकसर झूठा आरोप ही मढ़ते हैं.

फैसलों में फुरती जरूरी

जब दोनों देखते हैं कि तलाक यह कहनेभर से नहीं मिल जाता कि योर औनर, हम एकदूसरे को नहीं झेल पा रहे हैं, इसलिए हमारा तलाक करवा दिया जाए. अब वे कानून और अदालत भी क्या जो सीधे से मान जाएं क्योंकि ज्यादा तलाक यानी धर्म की हानि और संस्कृति की बदनामी, जिस की आड़ ले कर हम पाश्चात्य समाज और संस्कृति को कोस कर खुश होते रहते हैं.

हालांकि कुछ फैसलों में अदालतों ने फुरती दिखाई है और पतिपत्नी की मानसिक, सामाजिक और दीगर परेशानियां व तनावों को देखते जल्द तलाक होने की बात भी कही है लेकिन यह हल्ला कुछ दिन ही रहता है और लोग भूल जाते हैं.

वकील भी चाहते हैं कि तलाक का मुकदमा लंबा खिंचे जिस से उन्हें हर पेशी पर दक्षिणा मिलती रहे. वे कभी अपने मुवक्किलों को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत तलाक की सलाह नहीं देते जिस में परस्पर सहमति से पतिपत्नी तलाक ले सकते हैं.

और सब से बड़ी बात, एकदूसरे पर सच्चेझूठे आरोप लगाने से बच जाते हैं जिन्हें अदालत में साबित करना टेढ़ी खीर होती है. अदालतों को चाहिए कि वे धार्मिक पूर्वाग्रह से बचते तलाक के मुकदमों की सुनवाई करें और फैसला दें. सुहागचिन्ह, करवाचौथ क्रूरता और नामर्दी जैसे शब्द और विचार न्याय को और जटिल बनाते हैं.

अगर यह कानून बन जाए कि किसी भी वजह से पतिपत्नी को सेम डे में तलाक मिल जाए तो जरूर पतिपत्नी छोटेमोटे सुलझ सकने योग्य विवादों और फसादों में अदालत जाने से कतराएंगे. कई मामलों में किसी एक पक्ष की मंशा दूसरे को सबक सिखाने की भी होती है, उस पर भी इस से रोक लगेगी. सुबह 11 बजे अदालत गए और शाम 5 बजे तलाक हो गया तो फिर किस बात की परेशानी?

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