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जातीय और धार्मिक उन्माद तो नहीं आत्महत्या के कारण

फातिमा लतीफ, डाक्टर पायल तडवी, रोहित वेमुला ये उन छात्रों के नाम हैं जो अनुसूचित जाति, जनजाति और अल्पसंख्यक तबकों से आते हैं. पढ़ाई पूरी करने के लिए उच्च शिक्षा संस्थान में पहुंचे लेकिन इन्होंने आत्महत्या कर ली.

कानपुर आईआईटी में 30 दिनों के अंदर आत्महत्या की तीसरी घटना घट गई. 20 दिसम्बर को शोध की छात्रा डाक्टर पल्लवी चिल्का, 10 जनवरी को एमटेक अंतिम साल के छात्र विकास मीना ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. 18 जनवरी को कैमिकल इंजीनियरिंग में शोध कर रही छात्रा प्रियंका जायसवाल ने फांसी लगा कर जान दे दी.

प्रियंका हौस्टल नम्बर ई-1, कमरा नम्बर 312 में रहती थी. जब घर वालों ने प्रियंका के फोन पर कौल की और बात नहीं हो सकी तब हौस्टल के नम्बर पर बात की गई. हौस्टल वालों ने कमरे में जा कर देखा तो प्रियंका का शव लटक रहा था. इन छात्रों ने आत्महत्या क्यों की इस बात का खुलासा नहीं हो पाता है. जिस वजह से कोई सुधार नहीं हो पा रहा. घर परिवार किसी तरह से अपने दुख को भुलाने की कोशिश कर रहे हैं. जिस से नई घटना को रोकने की दिशा में कोई काम नहीं हो पा रहा है.

छात्रों की आत्महत्या के कारण खोजना जरूरी

हमारे देश में हर साल आत्महत्या के कारण एक लाख से अधिक जानें चली जाती हैं. पिछले दो दशकों में आत्महत्या की दर प्रति 100,000 पर 7.9 से बढ़ कर 10.3 हो गई है. भारत में अधिकांश आत्महत्याएं 37.8 फीसदी 30 वर्ष से कम उम्र के लोगों द्वारा की जाती हैं. युवाओं की संख्या अधिक है.

आत्महत्या के कारणों में कैरियर, तलाक, दहेज, प्रेम संबंध, शादी करने में असमर्थता, नाजायज गर्भावस्था, विवाहेतर संबंध, सामाजिक और जातीय भेदभाव, धार्मिक भी होते हैं. गरीबी, बेरोजगारी, कर्ज और शैक्षणिक समस्याएं भी आत्महत्या से जुड़ी हैं. छात्रों में शिक्षण संस्थानों में ऐसे कारण भी देखने को मिलते हैं जहां जाति और धर्म को ले कर टिप्पणियां की जाती हैं. हमारे देश में मेंटल हैल्थ पर कम काम किया जाता है. एक अरब से अधिक की आबादी के लिए केवल 5,000 मनोचिकित्सक हैं.

शिक्षण संस्थानों में आत्महत्या करने वाले छात्रों का अध्ययन नहीं किया जाता है. केवल एक घटना समझ कर भुला दिया जाता है. कोटा जैसे शहर में जहां पर एक साल में 35 छात्रों ने आत्महत्या की. अब सरकार कोचिंग संस्थाओं के लिए नियमकानून बना रही है. सरकार के ताजा कानून के मुताबिक 16 साल से कम उम्र के बच्चे को कोचिग संस्थान प्रवेश नहीं दे सकते हैं. इस के अलावा यह भी देखना होगा कि क्या जातीय और धार्मिक भेदभाव छात्रों की आत्महत्या के लिए जवाबदेय हैं.

छात्रों की आत्महत्या को केवल परीक्षा में कम नंबर, खराब प्रदर्शन, कम अटेंडेंस और दिमागी तनाव को मान कर नहीं चला जा सकता है. आईआईटी मद्रास की छात्र फातिमा ने कुछ समय पहले आत्महत्या कर ली थी. फातिमा के पिता अब्दुल लतीफ ने आत्महत्या के लिए संस्थान के एक प्रोफेसर को जिम्मेदार बताया और उन की गिरफ्तारी की मांग की. फातिमा की मां ने कहा कि उन की बेटी मुसलमान के तौर पर अपनी पहचान जाहिर नहीं करना चाहती थी इसलिए वो हिजाब या शौल नहीं पहनती थी. देश के माहौल को देख कर हमें लगा था कि उसके लिए चेन्नई एक सुरक्षित जगह होगी. लेकिन हम ने उसे खो दिया.

फातिमा के पिता का कहना था कि वो आत्महत्या करने वाली नहीं थी. वो अफसर बनना चाहती थी. उस की मौत आत्महत्या नहीं लगती. उसे रस्सी कहां से मिल गई? उस की मौत के तुरंत बाद कमरा साफ क्यों कर दिया गया? उस का मोबाइल पुलिस के पास है, वो चिट्ठियां लिखने वाली इंसान थी. कुछ भी फैसला लेने से पहले उस ने जरूर पूरी बात लिखी होगी. यह मामला काफी उछला था.

बड़ेबड़े कैंपस में छात्रों के साथ जाति, वर्ग और धर्म के आधार पर भेदभाव होता है. एक खास जाति के लोग दूसरों पर हावी होने की कोशिश करते हैं. इस तरह की खबरें आती रहती है. डा. पायल तडवी पर जातिवादी टिप्पणी होती थी. मुंबई में डाक्टर पायल तडवी की खुदकुशी के मामले में जब उन का सुसाइड नोट सामने आया तो खतरनाक सच सामने आया. 3 पेज के सुसाइड नोट में पायल तडवी ने अपने मातापिता को लिखे खत में अपने दर्द और अपने साथ हो रही ज्यादतियों का विस्तार से जिक्र किया था.

पायल तडवी ने लिखी पूरी बात

पायल तडवी ने लिखा था कि ‘मम्मीपापा मुझे वास्तव में अपनी जान लेने का बहुत खेद है. मैं जानती हूं कि मैं आप के लिए कितनी खास हूं और आप लोग ही मेरी दुनिया हो. लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि यह असहनीय हो गया है. मैं उन के साथ एक मिनट भी नहीं रह सकती हूं.’
डाक्टर पायल तडवी ने हौस्टल के कमरे में खुदकुशी की थी और इस मामले में तीन वरिष्ठ डाक्टरों को गिरफ्तार किया गया था.

इन आरोपी डाक्टरों का जिक्र डाक्टर तडवी ने अपने आखिरी खत में भी किया है. डाक्टर तडवी ने लिखा, ‘पिछले एक साल से इस उम्मीद से मैं उन से सुने जा रही थी कि यह सब खत्म हो जाएगा लेकिन मैं अब केवल अंत देख रही हूं. वास्तव में इस से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है, मुझे इस से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखा.’

नायर हौस्पिटल के स्त्री रोग विभाग के बारे में पायल तडवी ने लिखा है, जहां वह काम करती थीं. सुसाइड नोट में लिखा है, ‘यहां मेरे साथ और हमारे समर्थन में कोई खड़ा नहीं हुआ. मैं हमेशा स्त्री रोग विशेशज्ञ बनना चाहती थी लेकिन मुझे कालेज में खाना पकाना पड़ा.’

पायल ने लिखा, शुरू में मैं और स्नेहल ने किसी से कुछ नहीं कहा. लेकिन यातना उस स्तर तक जारी रही कि मैं सहन नहीं कर सकती थी. मैं ने उन के खिलाफ शिकायत की लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा. मैं ने अपनी पेशेवर जिंदगी, निजी जिंदगी सब खो दिया. आगे वह लिखती हैं कि जब तक वे नायर हौस्पिटल में हैं, मुझे कुछ नहीं सीखने देंगी. पिछले 3 सप्ताह से मुझे लेबर रूम में नहीं जाने दिया गया क्योंकि वो मुझे काबिल नहीं मानती थीं. मुझे ओपीडी में लेबर रूम से बाहर रहने के लिए कहा गया. मरीजों को देखने के बजाय क्लर्किल वर्क दिया गया.’

इस के अलावा डा तडवी ने लिखा, ‘मैं हेमा आहूजा, भक्ति मेहरा और अंकिता खंडेलवाल को अपनी और स्नेहल की हालत के लिए जिम्मेदार ठहराती हूं. मैं ने बहुत कोशिश की. कई बार आगे आई, मैडम से बात की लेकिन कुछ नहीं किया गया. मुझे सचमुच कोई रास्ता नहीं दिखा. डाक्टर तडवी ने अपने सुसाइड नोट में लिखा, इस कदम को उठाने के लिए माफी मांगती हूं. अपनी दोस्त के बारे में काफी सोचा, मैं नहीं जानती कि कैसे स्नेहल इन 3 का सामना करेगी. मैं उसे उन के सामने छोड़ने पर डरी हुई हूं.

कैंपस में आत्महत्या के मसलो को ऐसे ही छोड़ देना खतरनाक होता जा रहा है. ज्यादातर मसलों में सचाई दबाने की कोशिश की जाती है. कानपुर आईआईटी में 30 दिनों में तीसरी आत्महत्या को गहराई से देखना होगा. जिस तरह का माहौल जाति और धर्म को ले कर सोशल मीडिया और कैंपस में चल रहा है कहीं उस की वजह से तो ये घटनाएं नहीं हो रहीं. देश में एक धार्मिक उन्माद सा है. जिस में एससी और ओबीसी छात्रों पर आरक्षण को ले कर टिप्पणियां होती रहती हैं. कहीं यह कारण तो नहीं बन रहे. इन पर गहराई से विवेचना करना होगा.

फूलों को तोड़ें नहीं सहेजें

आप शायद जानते न हों कि हमारा भारत करीब 20 देशों को 500 से अधिक प्रकार के फूलों का निर्यात करता है. बाकायदा इन फूलों की खेती होती है ताकि इन्हें तोड़ कर दूसरे देशों में भेजा जाए.

खुद भारत के अंदर भी फूलों का व्यापार बड़ी तेजी से फलफूल रहा है. जहां देखिए आप को फूलों के बुके, माले या खुले फूल बिकते मिल जाएंगे. इन को खासी कीमत पर बेचा जा रहा है. जबकि गौर फरमाइए उन फूलों पर जो घरों में गमलों में लगे होते हैं या सड़कों के किनारे, पार्कों में या दूसरी जगह शोभा बढ़ा रहे होते हैं. वे हमें कितना सुकून और ताजगी का एहसास कराते हैं. फूलों के बीच इंसान खुद को जीवंत महसूस करता है. इन की खुशबू हमें अपनी तरफ खींचती है. फूलों की घाटियां इसी वजह से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहती हैं. मगर जब इन्हें तोड़ लिया जाता है तो ये मूक संवेदना के साथ जिंदगी से हार मान लेते हैं और सूख जाते हैं.

वैसे भी टूटी हुई चीजें कभी भी सुकून या उत्साह का संचार नहीं करतीं. फिर हम यह बात क्यों नहीं समझते कि फूलों को तोड़ कर हम उन के द्वारा फैलाई जा रही सकारात्मकता का नाश कर देते हैं.

हम अपने प्रिय लोगों को या आदरवश किसी को बुके गिफ्ट करते हैं. पर उस से क्या होता है? अगले ही सैकंड वह इंसान उस बुके को किनारे रख देता है. शाम तक वह बुके यों ही पड़ा रहता है और रात होतेहोते उस के फूल मुरझाने लगते हैं. अगले दिन वह बुके कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है. इस तरह कचरे के रूप में उस का वजूद ख़त्म हो जाता है. इस के विपरीत यदि आप उन फूलों को अपने पौधों पर लगा रहने दें तो क्या यह सच नहीं कि वे 10-15 दिन अपनी खुशबू बिखेरेंगे और माहौल को खुशनुमा बनाए रखेंगे.

इसी तरह कोई नेता कहीं जाता है तो लोग उस के स्वागत में सड़कों पर फूल बिछा देते हैं. उस के ऊपर पुष्पवर्षा होती है. पर इस का औचित्य क्या है? फूलों को तोड़ कर सड़कों पर क्यों बिखेर रहे हैं?

शादी समारोहों में फूलों की बरबादी

भारत में लोग शादी समारोहों को खास बनाने के लिए न जाने कितनी चीजों की बरबादी कर देते हैं. इसी में एक है फूलों की बरबादी. घर और मंडप सजाने में जाने कितने टन फूलों का उपयोग हो जाता है. आंकड़ों के अनुसार भारत में हर साल एक करोड़ से अधिक शादियां होती हैं और ये सभी शादियां इस्तेमाल किए गए फूलों, प्लास्टिक कटलरीज और बड़ी मात्रा में भोजन आदि के रूप में कितना ही कचरा पीछे छोड़ती हैं. जरूरी है कि हम विवाह समेत अन्य आयोजनों में फूलों की बरबादी करने से बचें.

पूजा के नाम पर टूटते फूल

भारत में प्रतिदिन पूजा स्थलों के आसपास इतने अधिक फूलों की बरबादी होती है जिस का कोई ठिकाना नहीं. कभी मूर्तियों पर चढाने के लिए मालाओं के रूप में, कभी मंदिरों की सजावट में और कभी मूर्तियों पर अर्पित करने के लिए. भारत में पूजास्थलों के आसपास प्रतिदिन 20 टन से अधिक फूल बरबाद हो जाते है. भला किसी ने कब कहा कि फूलों को तोड़ कर मेरे ऊपर चढ़ाओ और फिर टूटने की वजह से एक दिन में ही मुरझाए हुए इन सूखे फूलों को नदियों में बहाओ या जमीन पर यहांवहां फेंक कर कचरा बढ़ाओ.

टूटे फूलों से बढ़ता नदियों का प्रदूषण

भारत में देशभर में फैले छोटेबड़े हजारों उपासना स्थल हैं और वहां रोजाना श्रद्धालु मिठाइयों और फलों के अलावा टनों की मात्रा में फूल भी चढ़ाते हैं. एक बार जब पूजा समाप्त हो जाती है तो ये फूल और मालाएं बेकार हो जाती हैं.

इन पूजा के फूलों को नदियों में फेंक दिया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि अंधविश्वास वश हमारे यहां सूखे फूलों को भी पवित्र माना जाता है और उसे कचरे में फेंकना पसंद नहीं करते. इसलिए उसे जल में प्रवाहित किया जाता है.

इस की वजह से नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है. वे हानिकारक रसायन भी छोड़ते हैं जिन की वजह से हमारे वनस्पति और जीव भी प्रभावित होते हैं. आप को यह जान कर हैरानी होगी कि जल और जमीन पर प्रदूषण फैलाने में इन का सब से बड़ा योगदान है.

एक अनुमान के मुताबिक अकेले गंगा नदी में हर साल मंदिरों और मसजिदों पर चढ़ाए गए 80 लाख मीट्रिक टन फूल डंप किए जाते हैं. जहां आसपास नदी नहीं है वहां पर इन फूलों को खुले में छोड़ दिया जाता है या फिर जमीन में गाड़ दिया जाता है. जाहिर है, इस की वजह से कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है, वायु और मिट्टी प्रदूषित होते हैं.

इस बरबादी को रोकने का एक उपाय फूलों को रीसाइकल करने की तकनीक का इस्तेमाल भी हो सकता है.

इस के अलावा जो सब से महत्त्वपूर्ण है वह यह कि हम फूलों को तोड़ें नहीं. फूलों के बगीचों को सहेजें, अपने घर और आसपास फूलों के पौधे लगाएं ताकि माहौल खुशनुमा रहे.

Diabetes : बढ़ते Sugar Level से हैं परेशान, तो कंट्रोल करने के लिए पिएं ये हेल्दी ड्रिंक्स

Drinks to control Blood Sugar Level in Diabetes : बदलती लाइफस्टाइल और अस्वस्थ खानपान का सबसे ज्यादा असर हमारी सेहत पर पड़ता है. इससे न सिर्फ हम खुद ही कई समस्याओं को न्योता देते हैं, बल्कि उनका शिकार भी हो जाते हैं. डायबिटीज भी इन्हीं समस्याओं में से एक है. यह एक लाइलाज बीमारी है, जो शरीर में ब्लड शुगर लेवल को प्रभावित करती है. अचानक से ब्लड शुगर के बढ़ने या घटने से तबीयत भी बिगड़ सकती है. ऐसे में जरूरी है कि आप हमेशा अपने ब्लड शुगर को कंट्रोल में रखें.

आज हम आपको कुछ ऐसे हेल्दी ड्रिंक्स (Drinks to control Blood Sugar Level in Diabetes) के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके सेवन से आपको ब्लड शुगर को सामान्य रखने में मदद मिलेगी.

ब्लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए पिएं ये ड्रिंक्स

दालचीनी की चाय

खाने में स्वाद बढ़ाने वाली दालचीनी डायबिटीज (Drinks to control Blood Sugar Level in Diabetes) मरीजों के लिए इंसुलिन का काम करती है. दरअसल, दालचीनी में प्राकृतिक तत्व होते हैं, जो ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रण में रखती है.

करेले का जूस

कड़वा करेले का जूस डायबिटीज मरीजों के लिए काफी फायदेमंद होता हैं. करेले में विटामिन-सी, आयरन, पोटैशियम और जिंक आदि पोषक तत्वों की उच्च मात्रा होती है, जिससे ब्लड शुगर कंट्रोल में रहता है.

ग्रीन टी

डायबिटीज मरीजों के लिए ग्रीन टी पीना लाभदायक होता है. इसे पीने से शरीर में ब्लड ग्लूकोज की मात्रा कम होती है. साथ ही शरीर में ताजगी आती है.

मेथी का पानी

पीले मेथी में फाइबर की उच्च मात्रा होती है. इसलिए रोजाना खाली पेट मेथी का पानी पीने से ब्लड शुगर (Drinks to control Blood Sugar Level in Diabetes) कंट्रोल में रहता है.

नारियल पानी

नारियल पानी पीने से डायबिटीज मैनेजमेंट में काफी मदद मिलती है. ये जितना हाइड्रेट होता है उतना ही इसमें ग्लाइसेमिक इंडेक्स की कम मात्रा होती है, जिससे शरीर में ब्लड शुगर लेवल नहीं बढ़ता है.

अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.

थायराइड के क्या हैं लक्षण, इसे कंट्रोल करने में फायदेमंद हैं ये फूड

Thyroid Awareness Month 2024 : आज के समय में थायराइड एक ऐसी समस्या बन गई है, जो किसी भी उम्र में किसी को भी अपनी चपेट में ले रही हैं. यह बीमारी थायराइड ग्रंथि के बढ़ने के कारण होती है, जो शरीर की कई अहम गतिविधियों को नियंत्रित करती हैं. इसके अलावा अक्समात वजन बढ़ने या हार्मोंस में गड़बड़ी के कारण भी थायराइड की परेशानी हो सकती है.

हालांकि उम्र के साथ महिलाओं में थायराइड बढ़ने या कम होने की दिक्कत होना आम बात है, लेकिन जिस तरह से छोटे-छोटे बच्चों व युवाओं को भी ये समस्या अपनी चपेट में ले रही है, वो चिंता की बात है. इसलिए जरूरी है कि समय रहते आप थायराइड के लक्षण (Thyroid Symptoms) को पहचानें और अपनी डाइट में उन चीजों को शामिल करें, जिससे थायराइड होने की संभावना को कम किया जा सके.

थायराइड के लक्षण

  • घबराहट
  • नींद में कमी
  • चिड़चिड़ापन
  • पसीना आना
  • हाथ-पैरों में कंपन
  • मांसपेशियों में दर्द
  • बार-बार भूख लगना
  • पीरियड्स में अनियमितता
  • अक्समात वजन कम होना
  • बहुत ज्यादा बालों का झड़ना
  • बार-बार हार्ट बीट का तेज होना

इन चीजों से कंट्रोल करें थायराइड

आंवला

आंवले में विटामिन सी की भरपूर मात्रा होती है. इसी वजह से थायराइड (Thyroid Control Tips) को कंट्रोल करने के लिए आंवले खाने की सलाह दी जाती है. इससे न सिर्फ इम्यूनिटी मजबूत होती है. साथ ही शरीर में ब्लड सर्कुलेशन भी अच्छा रहता है, जिससे थायरॉइड होने का खतरा भी बहुत ज्यादा कम हो जाता है.

डेयरी प्रोडक्ट्स

थायराइड के मरीजों को अपनी डाइट में दूध, दही और पनीर आदि डेयरी प्रोडक्ट्स को जरूर शामिल करना चाहिए. दरअसल डेयरी प्रोडक्ट्स में विटामिन, मिनरल्स और कैल्शियम आदि पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है, जिससे शरीर स्वस्थ रखता है.

मुलेठी

मुलेठी में मौजूद पोषक तत्व थकान और कमजोरी की समस्या को दूर करते हैं. इसलिए थायराइड की समस्या में मुलेठी खाना बहुत ज्यादा फायदेमंद होता है.

सोयाबीन

डाइट में टोफू, सोया मिल्क और सोयाबीन को शामिल करने से शरीर में हार्मोन बैलेंस रहता है. इसके अलावा सोया प्रोडक्ट खाने से बॉडी में आयोडीन का स्तर और थायराइड भी कंट्रोल होता है.

नारियल

थायरॉइड (Tips to Control Thyroid) से ग्रसित मरीजों को अपनी डाइट में नारियल को जरूर शामिल करना चाहिए. नियमित रूप से कच्चा नारियल खाने से मेटाबॉलिज्म मजबूत होता है और थायरॉइड कंट्रोल में रहता है.

अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.

इस तरह पढ़ाई के साथ स्किल्स भी सिखाएं अपने बच्चों को

जीवन में पढ़ाई की बहुत अहमियत है, इस से आप जानकारी हासिल करते हैं पर पढ़ाई के साथसाथ उन व्यावहारिक स्किल्स का होना जरूरी है जो आप के नागरिक होने और बेहतर कैरियर के लिए बेहद जरूरी हैं. दिल्ली के कीर्ति नगर इलाके में रहने वाला 19 वर्षीय रिषभ शुरू में पढ़ाई में अच्छा था. 8वीं तक हर क्लास में अच्छे मार्क्स भी लाया करता था. पढ़ाई में अच्छा होने के चलते उस के मातापिता उसे उन बच्चों से दूर रखने लगे थे जो क्लास के या तो कमजोर स्टूडैंट्स में गिने जाते थे या एवरेज.

वे मानते थे कि अगर वह बाकी बच्चों से घुलेमिलेगा तो उन का प्रभाव रिषभ पर पड़ने लगेगा और वह भी पढ़ाई में कमजोर हो जाएगा. इसी कारण उस की कालोनी में उस के कम ही दोस्त बन पाए थे. वह अधिकतर समय किताबों के साथ रहता या अकेला घर में समय बिताता. उसे किसी तरह की दिक्कत न आए, इस के लिए उस के मातापिता ने घर में ही होम ट्यूशन लगा रखी थी. यह सही है कि छोटे बच्चों के लिए शुरू में मातापिता दोस्त जैसे होते हैं क्योंकि बच्चों की केयरिंग करने की जरूरत होती है पर उम्र बढ़ने के साथ बच्चे को कुछ तरह की जिम्मेदारी और अधिकार मिलना या उसे खुद पर निर्भर रहना सिखाना अच्छा होता है.

यह बात उस के मातापिता समय रहते नहीं सम?ा पाए. ऐसा होने से रिषभ इंट्रोवर्ट बनता चला गया. उस की उम्र के बच्चे उस के दोस्त न होने से वह उन ऐक्टिविटीज में पार्टिसिपेट करने से घबराता रहा जहां वह कई चीजें एक्सप्लोर कर सकता था, नए स्किल्स डैवलप कर सकता था. वह न तो स्पोर्ट्स में था, न स्कूल के डांस कंपीटिशन में भाग लेता, न किसी ड्रमैटिक सोसाइटी का हिस्सा. उस के भीतर कौन्फिडैंस की कमी आने लगी. दबासहमा सा रहने के चलते 12वीं तक आतेआते उस की पढ़ाई पर भी असर पड़ने लगा. विकासपुरी में रहने वाले आदर्श के साथ मामला उलट था. आदर्श बचपन से हाजिरजवाबी में तेज था.

हाजिरजवाब होना गलत नहीं पर मातापिता का इस बात पर अत्यधिक गर्व करना और उसे पुचकारना उस के हौसले को गलत दिशा में ले जाता रहा. उस की हाजिरजवाबी बदतमीजी में बदलते देर नहीं लगी. आदर्श धीरेधीरे घर आए मेहमानों, स्कूल टीचरों, आसपड़ोसियों से भी बदतमीजी से बात करने लगा. एक बार शंतो आंटी घर आई थीं. जैसे ही आंटी ने उस से पूछा कि पढ़ाई कैसी चल रही है बेटा, आदर्श ने आव देखा न ताव तुरंत कहा, ‘‘आप के बेटे को पढ़ाई में दिक्कत है, मु?ो नहीं. उस की चिंता करो.’’ आदर्श के इस जवाब से आसपास सब हंसने लगे.

शंतो आंटी भी भले ऊपरी मन से मुसकरा दीं लेकिन अंदरअंदर उन्हें बहुत बुरा लगा. जैसेजैसे आदर्श बड़ा हुआ, उस में एक अलग तरह का व्यवहार पैदा होने लगा. वह दूसरे की सुनने की जगह अपनी कहने पर ज्यादा जोर देने लगा. दूसरे की ओपिनियन जाने बगैर अपनी बात कह जबरदस्ती थोपना उस की आदत बन गई. जब कभी कोई दूसरा लौजिकल बात कहता, भले उसे अंदर से वह बात ठीक लगे पर वह नकार देता, क्योंकि किसी और की बात पर सहमति देना उसे पसंद नहीं था. वह दूसरे की सही बात पर चिड़चिड़ा जाता और आवाज को तेज रख कर दूसरे की बात को दबाने की कोशिश करता. बहुत बार इसी कारण उस के कई दोस्त नहीं बन पाए.

उस के आसपास के लोग भी उस से कन्नी काटने लगते. दूसरों को सुनने की भी एक कला होती है जो आदर्श में बिलकुल डैवलप नहीं हो पाई थी, जो उस के कैरियर को नुकसान पहुंचाता रहा. शांतनु को ऐसी कोई समस्या नहीं थी. उस के दोस्त थे. दूसरे की बातों को ठीक से सुनता भी था, घूमता भी था. वह ऊलजलूल बहसों में नहीं फंसता था पर शुरू से जिस चीज की कमी उस में थी वह लीडरशिप क्वालिटी की थी. स्कूल में वह हर जगह तो था पर गायब तरीके से. उस की प्रैजेंस उस के दोस्तों के बीच सब से लास्ट में थी. क्लास में भी वह न अच्छे स्टूडैंट, न बुरे स्टूडैंट, कहीं बीच में इन्विजिबल टाइप सिचुएशन में था. वह हर बार ओपिनियनलैस सिचुएशन में रहता था. जब कभी किसी बात पर अपनी राय देने की बारी आती, वह चुप हो जाता. उस में सहीगलत का स्टैंड लेने की हिम्मत नहीं थी.

ज्यादा लोग जिस तरफ के लिए हां कह दें उसी तरफ वह मूव कर जाता, भले बात सही हो या गलत. स्कूल से ले कर कालेज तक में वह न तो किसी बात की शुरुआत का बिंदु बन पाया न अंत करने का कारण. सही स्टैंड न लेने और बातबात पर यहांवहां मूव करने के चलते उस के ग्रुप में उसे ‘लोटा’ कह कर पुकारने लगे थे. निर्णय न लेने की क्षमता के चलते उसे जौब में भी खासी दिक्कत आई. उस की ग्रोथ बढ़ नहीं पाई. धृति की तो कहानी ही अलग थी. घर में पूरा परिवार ही धार्मिक था. परिवार में सारे धार्मिक आयोजन कट्टरता से फौलो किए जाते. किशोर अवस्था में पहुंची तो बेमतलब व्रतउपवास के चक्करों में पड़ गई. नवरात्र में माता, जन्माष्टमी में राधा बनना तो हर साल की बात हो गई थी. इलाके में होने वाले जागरण में देररात तक जागना, कीर्तनों, पाठों, कथाओं में जाना, परिवार के साथ धार्मिक बाबाओं के प्रवचन सुनने उन के आश्रमों में जाना सामान्य बात होने लगी.

इस से हुआ यह कि पूजापाठी होने से धृति को अपनी काबिलीयत और मेहनत की जगह भाग्य, कुंडली, वास्तु जैसे अंधविश्वासों पर ज्यादा भरोसा होने लगा. इस के चक्कर में उस का दिमाग भी संकीर्ण होने लगा. अच्छाबुरा कुछ भी होता, वह किस्मत के मत्थे मढ़ देती. उस के अंदर मेहनत करने का जज्बा विकसित ही नहीं हो पाया. कुछ पाने के लिए वह धार्मिक कर्मकांडों में पैसा और समय गंवाने लगी. विजय कालोनी में रहने वाला अनिकेत दिमाग से तेजतर्रार तो है पर उस की सब से बड़ी समस्या यह है कि उस ने अपनी लाइफ को बहुत ही ज्यादा मैसी बना रखा है. मैनेजमैंट का दूरदूर तक कोई नाता नहीं. आलसी होने के साथ वह जो भी काम करता है, अपने मूड के हिसाब से करता है. अगर उसे किसी काम में मन है तो उसे अच्छे से कर लेगा पर अगर कोई काम उस के मन का नहीं तो वह कन्नी काटने में भी देर नहीं लगाता. काम की जरूरत और समय से उस का कोई लेनादेना नहीं. इस के चलते होता क्या है कि बहुत बार अपनी लाइफ के जरूरी फैसले समय रहते कर नहीं पाता.

किसी काम को करने से पहले वह कोई मैनेजमैंट नहीं करता. जब काम का मैनेजमैंट नहीं होता तो टाइम फ्रेम में कोई काम बंध नहीं पाता. इस का खमियाजा भी उसे भुगतना पड़ा है. उसे कैरियर में काफी दिक्कत ?ोलनी पड़ी है. उस के बावजूद उस का केयरलैस बिहेवियर बदला नहीं. कोरोना महामारी के दौरान देशभर में हालत यह हुई कि एक अच्छीखासी पीढ़ी के ढाई साल लैप्स हो गए. इस बीच जो व्यावहारिक चीजें स्किल के रूप में सीखी जा सकती थीं वे यह नई पीढ़ी सीख नहीं पाई. यह नहीं भूलना चाहिए कि आज कंप्यूटर, स्मार्टफोन और बढ़ती सोशल मीडिया की दुनिया में नई पीढ़ी तैयार हो रही है. यह ठीक है कि इस पीढ़ी को तकनीकी चीजों की जानकारी होनी जरूरी है पर साथ ही ऐसी स्किल्स भी डैवलप करने की जरूरत है जिस से वे अपने कैरियर में आगे बढ़ पाएं. यहां हम ऐसे व्यावहारिक स्किल्स की बात करेंगे जिन्हें 18 साल की उम्र से पहले अपने बच्चों को सिखा लिया तो सम?ा नैया पार. बदलावों को संभालने का हुनर चाइल्ड डैवलपमैंट स्पैशलिस्ट अकसर समय के साथ बदलावों को संभालने की स्किल को बच्चों के लिए जरूरी मानते हैं.

दुनिया हर दिन बदल रही है. इस के साथ खुद को भी बदलने की स्किल्स, नई चीजें सीखने, बदलती दुनिया को औब्जर्व करने का हुनर सीखना आगे बहुत काम आने वाला है. फोर्ब्स ने 2021 में बिजनैस स्पैशलिस्ट से आज के समय में कर्मचारियों के गुणों के बारे में पूछा तो बदलाव के साथ फ्लैक्सिबिलिटी जैसे बिंदुओं को सब से अधिक जरूरी माना गया था. फ्लैक्सिबल होना, सीखना अकसर तब होता है जब कोई अप्रत्याशित घटना घटती है. यह किसी असहज स्थिति से खुद को निकालने जैसा है. इस के लिए पेरैंट्स और टीनएजर खुद इस कौशल को बढ़ावा देने के तरीके खोज सकते हैं. इस के लिए टास्क दिए जा सकते हैं. आवाज उठाने का साहस डिजिटल एरा में ज्यादातर टीनएजर टैक्स्टिंग या मैसेजिंग में तो माहिर होते हैं लेकिन कम्युनिकेशन की कमी के चलते अपने विचारों को सा?ा करना उन के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है. इस तरह हम ऐसे युवाओं की फौज तैयार कर रहे हैं जो बहुत कम बात करती है,

जब वह बात नहीं करती तो किसी बात को उठाने, किसी समस्या को रेज करने का हुनर उस में पैदा नहीं हो सकता. ऐसे में जरूरी है कि युवा को ऐसे कार्यक्रमों में शामिल होने, जैसे स्कूल में लीड करने, ग्रुप डिस्कशन में भेजने, कंपीटिशन में पार्टिसिपेट करने को प्रोत्साहित किया जाए. साथ ही, उन्हें सम?ाया जा सकता है कि गलत के खिलाफ वे आवाज उठाएं. दूसरों की बातों को सुनने की कला बहुत लोगों को लग सकता है यह भी कोई स्किल हुई. लेकिन सच मानिए, हम अपनेआप में आज के समय में इतना खो गए हैं कि दूसरे की सुन ही नहीं रहे हैं. टीनएज उम्र से बच्चों को इस बात का पता होना चाहिए कि समाज बहुत विविध है, जैसे भारत का उदाहरण, हमारे देश में धर्म, जाति, संस्कृति, भाषा की विविधता है. अगर जो आप से भिन्न हैं उन की बातों को ठीक से सुना नहीं गया और सिर्फ अपनी कहा गया तो कम्यूनिकेशन ब्रेक होता है.

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफैसर जेम्स फिशकिन द्वारा स्थापित डेलीबरेटिव पोलिंग प्रोसैस कहता है कि सुनने की कला लोगों को ग्रो करने में मदद करती है. इस से विषय पर बात की जा सकती है और उसे सम?ा जा सकता है. दूसरों की मदद के लिए सहानुभूति हैल्प करना मानवीयता से जोड़ा जाता है. यह ठीक है पर हैल्प करना इसलिए भी जरूरी है कि कहीं न कहीं यह आप ही के काम आता है. आप जब किसी टीमवर्क में काम करते हैं तब आप की टीम का कोई व्यक्ति अच्छा परफौर्म नहीं कर रहा होता है तो इस का असर पूरी टीम की सक्सैस पर पड़ता है. जब टीम मैंबर उस की मदद करते हैं तो इस से हो सकता है वह उस दिक्कत से बाहर आ जाए पर आप की टीम भी इंप्रूव करती है. चुनौतियों से निबटने का साहस जीवन में कई चुनौतियां आती हैं. अगर शुरुआत से उन चुनौतियों से मुकाबला करने का हुनर या साहस न आए तो आगे चल कर दिक्कत आती है.

टीनएज उम्र में चुनौतियों के पड़ाव हैं. हमें अपने बच्चों को सम?ाना चाहिए कि आज भी देश में कई गांव ऐसे हैं जहां शिक्षा तक हासिल करने के लिए छोटेछोटे बच्चों को कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. कई ऐसे हैं जिन्हें पढ़ाई के साथसाथ काम करना पड़ता है. वे अपनी चुनौतियों से लड़ कर खुद को मजबूत बना रहे हैं. ऐसे ही ऐसी कई चुनौतियां उन की लाइफ में भी आ सकती हैं, सो उस के लिए प्रिपेयर होना जरूरी है. लीडरशिप क्वालिटी टीनएज और उस के बाद के वर्षों में अकसर बच्चे उस दिशा में बढ़ते हैं जहां भीड़ ले चलती है. भीड़ में चलने से आदमी सहज तो रहता है पर अलग कभी नहीं रह पाता. भीड़ से हट कर अपनी अलग राह जो बनाता है और उस का अनुसरण बाकी करते हैं, उसे लीडरशिप क्वालिटी कहते हैं. कन्क्लूजन पर आने से पहले टीनएजर की एक इंडिपेंडैंट थिंकिंग होनी जरूरी है जिस से वे स्वतंत्र रूप से अपना निर्णय ले सकें.

टाइम मैनेजमैंट स्कूल में अकसर एग्जाम्स के दिनों में स्टूडैंट टाइम टेबल बनाते हैं. कैसे वे अपने एग्जाम में पढ़ेंगे, कितना किस सब्जैक्ट को समय देंगे, किस पर कितना जोर देंगे. ठीक ऐसे ही अपनी लाइफ को व्यवस्थित रखने के लिए टाइम मैनेजमैंट करने का हुनर होना जरूरी है. इस के लिए टू-डू लिस्ट बनाने की आदत अगर टीनएजर में आती है तो वे अपने कोई भी गोल आसानी से अचीव कर सकते हैं. इस के लिए वे अपने रोजमर्रा के कामों का मैनेजमैंट कर सकते हैं.

रैशनल थिंकिंग किसी भी व्यक्ति की थिंकिंग रैशनल और लौजिकल होनी जरूरी है. जब बात टीनएज उम्र की आती है तो यह सब से सही समय होता है जब आप अपने बच्चों को ऐसा सोचविचार दें ताकि वे लौजिक के करीब दिखें, न कि अंधविश्वासी और धर्मकांडी. अगर बच्चा अतिधार्मिक और अंधविश्वासी बनता है तो नुकसान यह है कि वह अपना समय और पैसा इन्हीं चीजों पर उड़ाता रहेगा. हर समय वह किसी न किसी डर या लालच से घिरा रहेगा. अपनी मेहनत पर भरोसा करने की जगह वह किस्मत और भाग्य को मानेगा. इस से उस के काम पर प्रभाव पड़ेगा और पढ़ेलिखों के बीच वह अलगथलग सम?ा जाएगा.

मेरी पत्नी का मुझ से ज्यादा मेरे भाई पर ध्यान देना मुझे बेहद खटकता है, मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरी उम्र 37 वर्ष है. मैं अपनी पत्नी से बहुत परेशान हूं. परेशानी का कारण यह है कि वह मुझ से ज्यादा मेरे 27 वर्षीय भाई के आसपास रहना पसंद करती है. मेरी 2 बेटियां हैं जो स्कूल में पढ़ रही हैं. मेरी पत्नी मेरे भाई को अपना बेटा समझ मां समान प्यार देती है पर इस का मतलब यह तो नहीं कि इन सब में वह मुझे ही भूल जाए. मेरी पत्नी का मुझ से ज्यादा मेरे भाई पर ध्यान देना मुझे बेहद खटकता है. समझ नहीं आता कि क्या करूं. कुछ मार्गदर्शन करें.

जवाब

आप की पत्नी जरूरत से ज्यादा अपने देवर पर ध्यान देती हैं तो इस के पीछे उन की बेटे की चाह है जो साफ दिखाई पड़ती है. इस समस्या से निबटने का रास्ता केवल यही है कि आप अपनी पत्नी को समझाने की कोशिश करें कि इस तरह घर के बाकी सदस्यों को नजरअंदाज करना सही नहीं है. आप बेटियों को घर पर छोड़ कर पत्नी के साथ लंबी यात्राओं पर जाएं, भाई से दूर रह कर घर के काम करने के लिए प्रोत्साहित करें.

आप अपनी पत्नी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करने की कोशिश करें. उस के साथ फिल्में देखें व यों ही कहीं टहल आएं. आप जितना ज्यादा समय पत्नी के साथ अकेले व्यतीत करेंगे, उतना ही उन का ध्यान आप पर केंद्रित होगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

माफी : तलाक के बाद भी प्रमोद ने शिफाली से क्यों मांगी माफी ?

शिफाली और प्रमोद को आज कोर्ट से तलाक के कागज मिल गए थे. लंबी प्रक्रिया के बाद आज कुछ सुकून मिला. शिफाली और प्रमोद तथा उनके परिजन साथ ही कोर्ट से बाहर निकले, उनके चेहरे पर विजय और सुकून के निशान साफ झलक रहे थे. चार साल की लंबी जदोजहद के बाद आज फैसला हो गया था.

दस साल हो गए थे शादी को मग़र साथ 6 साल ही रह पाए थे.

चार साल तो तलाक की कार्यवाही में ही बीत गये गए.

शेफाली के हाथ मे दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी प्रमोद के घर से लेना था और प्रमोद के हाथ मे गहनों की लिस्ट थी जो उसने शेफाली से लेने थे.

साथ मे कोर्ट का यह आदेश भी था कि प्रमोद शेफाली को  दस लाख रुपये की राशि एकमुश्त देगा.शेफाली और प्रमोद दोनो एक ही  औटो में बैठकर प्रमोद के घर आये.  आज ठीक 4 साल बाद आखिरी बार ससुराल जा रही थी शेफाली, अब वह कभी इन रास्तों से इस घर तक नहीं आएगी. यह बात भी उसे कचोट रही थी कि जहां वह 4 साल तक रही आज उस घर से उसका नाता टूट गया है. वह  दहेज के सामान की लिस्ट लेकर आई थी, क्योंकि सामान की निशानदेही तो उसे ही करनी थी.

सभी रिश्तेदार अपनेअपने घर जा चुके थे. बस, तीन प्राणी बचे थे. प्रमोद,शेफाली और उस की मां. प्रमोद यहां अकेला ही रहता था, क्योंकि उसके पेरेंट्स गांव में ही रहते थे.

शेफाली और प्रमोद की इकलौती 5 साल की बेटी जो कोर्ट के फैसले के अनुसार बालिग होने तक शेफाली के पास ही रहेगी. प्रमोद महीने में एक बार उससे मिल सकता है.

घर में  घुसते ही पुरानी यादें ताज़ी हो गईं. कितनी मेहनत से सजाया था शेफाली ने इसे. एक एक चीज में उसकी जान बसती थी. सबकुछ उसकी आंखों के सामने बना था. एकएक ईंट से उसने धीरेधीरे बनते घरौदे को पूरा होते देखा था. यह उसका सपनो का घर था. कितनी शिद्दत से प्रमोद ने उसके सपने को पूरे किए थे.

प्रमोद थकाहारा सा सोफे पर पसर गया और शेफाली से बोला, “ले लो जो कुछ भी तुम्हें लेना है, मैं तुम्हें नही रोकूंगा.”

शेफाली बड़े गौर से प्रमोद को देखा और सोचने लगी 4 साल में कितना बदल गया है प्रमोद. उसके बालों में  अब हल्की हल्की सफेदी झांकने लगी थी. शरीर पहले से आधा रह गया है. चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई थी.

शेफाली स्टोर रूम की तरफ बढ़ी, जहां उसके दहेज का समान पड़ा था. कितना था उसका सामान. प्रेम विवाह था दोनो का. घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे.

प्रेम विवाह था तभी तो नजर लग गई किसी की. क्योंकि प्रेमी जोड़ी को हर कोई टूटता हुआ देखना चाहता है.

बस एक बार पीकर बहक गया था प्रमोद. हाथ उठा बैठा था उस पर. बस तभी वो गुस्से में मायके चली गई थी.

फिर चला था लगाने सिखाने का दौर. इधर प्रमोद के भाईभाभी और उधर शेफाली की माँ. नौबत कोर्ट तक जा पहुंची और आखिर तलाक हो गया. न शेफाली लौटी और न ही प्रमोद लेने गया.

शेफाली की मां जो उसके साथ ही गई थीं,बोली, ” कहां है तेरा सामान? इधर तो नही दिखता. बेच दिया होगा इस शराबी ने ?”

“चुप रहो मां,” शेफाली को न जाने क्यों प्रमोद को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नही लगा.

फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक एक कर लिस्ट से मिलाया गया.

बाकी कमरों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया.

शेफाली ने सिर्फ अपना सामान लिया प्रमोद के समान को छुआ तक नही.  फिर शेफाली ने प्रमोद को गहनों से भरा बैग पकड़ा दिया.

प्रमोद ने बैग वापस शेफाली को ही दे दिया, ” रखलो, मुझे नही चाहिए काम आएगें तेरे मुसीबत में .”

गहनों की किम्मत 15 लाख रुपये से कम नही थी.

“क्यों, कोर्ट में तो तुम्हरा वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था.”

“कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई, शेफाली. वहाँ तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित किया गया है.”

सुनकर शेफाली की मां ने नाकभों चढ़ा दीं.

“मुझे नही चाहिए.

वो दस लाख रुपये भी नही चाहिए.”

“क्यों?” कह कर प्रमोद सोफे से खड़ा हो गया.

“बस यूं ही” शेफाली ने मुंह फेर लिया.

“इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी? ले जाओ,,, काम आएंगे.”

इतना कह कर प्रमोद ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया. शायद आंखों में कुछ उमड़ा होगा जिसे छुपाना भी जरूरी था.

शेफाली की मां गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी.

शेफाली को मौका मिल गया. वो प्रमोद के पीछे उस कमरे में चली गई.

वो रो रहा था. अजीब सा मुंह बना कर.  जैसे भीतर के सैलाब को दबाने  की जद्दोजहद कर रहा हो. शेफाली ने उसे कभी रोते हुए नही देखा था. आज पहली बार देखा न जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला.

मग़र वह ज्यादा भावुक नही हुई.

सधे अंदाज में बोली, “इतनी फिक्र थी तो क्यों दिया तलाक प्रमोद?”

“मैंने नही तलाक तुमने दिया.”

“दस्तखत तो तुमने भी किए.”

“माफी नही मांग सकते थे?”

“मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने. जब भी फोन किया काट दिया.”

“घर भी तो आ सकते थे”?

“मेरी हिम्मत नही हुई थी आने की?”

शेफाली की मां आ गई. वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गई. “अब क्यों मुंह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया.”

मां-बेटी बाहर बरामदे में सोफे पर बैठकर गाड़ी का इंतजार करने लगी.

शेफाली के भीतर भी कुछ टूट रहा था. उसका दिल बैठा जा रहा था. वो सुन्न सी पड़ती जा रही थी. जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी. कैसे कैसे बचत कर के उसने और प्रमोद ने वो सोफा खरीदा था. पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था.”

फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई. कितनी शिद्दत से देखभाल किया करती थी. उसके साथ तुलसी भी घर छोड़ गई.

घबराहट और बढ़ी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई. माँ ने पीछे से पुकारा मग़र उसने अनसुना कर दिया. प्रमोद बेड पर उल्टे मुंह पड़ा था. एक बार तो उसे दया आई उस पर. मग़र  वह जानती थी कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नही होना है.

उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा. अस्त व्यस्त हो गया था पूरा कमरा. कहीं कंही तो मकड़ी के जाले झूल रहे थे.

कभी कितनी नफरत थी उसे मकड़ी के जालों से?

फिर उसकी नजर चारों और लगी उन फोटो पर गई जिनमे वह प्रमोद से लिपट कर मुस्करा रही थी.

कितने सुनहरे दिन थे वो.

इतने में मां फिर आ गई. हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गई.

बाहर गाड़ी आ गई थी. सामान गाड़ी में डाला जा रहा था. शेफाली सुन सी बैठी थी. प्रमोद गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आ गया.

अचानक प्रमोद कान पकड़ कर घुटनो के बल बैठ गया.

बोला,” मत जाओ…माफ कर दो.”

शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी. सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए. शेफाली ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और फाड़ दिया .

और मां कुछ कहती उससे पहले ही लिपट गई प्रमोद से. साथ मे दोनो बुरी तरह रोते जा रहे थे.

दूर खड़ी शेफाली की माँ समझ गई कि कोर्ट का आदेश दिलों के सामने कागज से ज्यादा कुछ नही.

काश, उनको पहले मिलने दिया होता?

अगर माफी मांगने से ही रिश्ते टूटने से बच  जाएं, तो माफ़ी मांग लेनी चाहिए.

सुगंध : धन दौलत के घमंड में डूबे लड़के की कहानी

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भाजपा बांट रही है अक्षत, बिहार बांट रहा है रोजगार, वजह बड़ी जोरदार

बिहार सरकार राज्य में 94 लाख 33 हजार 312 गरीब परिवारों को 2-2 लाख रुपए नकद देने जा रही है. इस के पहले 72 दिनों के अंदर 2.17 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी दे कर बिहार ने रिकौर्ड कायम किया है. 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले यह नीतीश कुमार का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है. अयोध्या में राम पर करोड़ों रुपए खर्च वाली भाजपा इस पर सवाल उठा रही है. बिहार और उत्तर प्रदेश की तुलना की जाए तो यूपी के रहने वाले ही बिहार में नौकरी पाकर खुश हैं.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गरीब परिवारों को आर्थिक मदद देने की घोषणा करते कहा कि, ‘गरीब परिवार के एकएक सदस्य को दोदो लाख रुपए सरकार की तरफ से दिए जाएंगे.’ इन परिवारों की संख्या 94 लाख 33 हजार 312 है. सरकार ने जातीय गणना के दौरान इन परिवारों के बारे में जानकारी जुटाई थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में इन गरीब परिवारों को आर्थिक मदद देने की घोषणा और मंत्रिमंडल की बैठक में इस पर मोहर लगा दी गई. इस का लाभ सभी वर्ग के गरीब परिवारों को मिलेगा. यह राशि 3 किस्तों में दी जाएगी.

पहली क़िस्त में 25 फीसदी, दूसरी में 50 और तीसरी में 25 फीसदी राशि दी जाएगी. 63 तरह के रोजगार करने के लिए यह पैसा दिया जाएगा.
नीतीश कुमार ने 22 नवंबर, 2023 को विधानसभा में इस की घोषणा करते कहा था कि जाति आधारित गणना में सभी वर्गों को मिला कर बिहार में लगभग 94 लाख गरीब परिवार पाए गए हैं. उन सभी परिवारों के एकएक सदस्य को रोजगार हेतु 2 लाख रुपए तक की राशि किस्तों में उपलब्ध कराई जाएगी. सतत् जीविकोपार्जन योजना के तहत अत्यंत निर्धन परिवारों की सहायता के लिए अब एक लाख रुपए के बदले दो लाख रुपए दिए जाएंगे. इन योजनाओं के क्रियान्वयन में लगभग 2 लाख 50 हजार करोड़ रुपए की राशि व्यय होगी. इन कामों के लिए काफी बड़ी राशि की आवश्यकता होने के कारण इन्हें 5 वर्षों में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है.

सरकारी नौकरी देने में बनाया रिकौर्ड

सरकारी नौकरी देने के मामले में बिहार ने पूरे देश में इतिहास रच दिया. 72 दिनों के अंदर 2.17 लाख नियुक्ति कर दी. जब वाइब्रेंड गुजरात का नारा पूरे देश में सुनाई दे रहा था तब बिहार अपने युवाओं को नौकरी दे रहा था. बिहार में नौकरी पाने वालों में उत्तर प्रदेश के लडकेलडकियां भी हैं. कई ऐसे हैं जो ‘दक्षिणापंथी’ विचारधारा के साथ सोशल मीडिया पर काम कर रहे थे. जब उन्होंने बिहार में नौकरी की पोस्ट डाली तो कमैंट में लोगों ने बिहार और यूपी की तुलना करनी शुरू कर दी. ऐसे युवाओं ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट ही डिलीट कर दिए.

देश में यह पहली बार हुआ जब नीतीश सरकार के 2 विज्ञापनों से युवाओं को इतनी रिकौर्ड संख्या में नौकरी मिली. इस सरकार ने 96,823 युवाओं को नियुक्तिपत्र दे कर उन्हें शिक्षक होने का मानसम्मान दिया. इस का एक समारोह किया था. उत्तर प्रदेश में शिक्षक भरती विवादों और मुकदमों में फंस जाती है. वहां 69 हजार शिक्षक भरती के लिए लोग धरना दे रहे हैं. सरकार को इन से अधिक मंदिर की चिंता है. बिहार सरकार ने अपनी तरह से एक राजनीतिक लाइन बड़ी कर दी है. नीतीश कुमार ने कहा कि शिक्षकों के खाली पदों पर भी जल्द नियुक्ति की जाएगी. अगले डेढ़ साल में 10 लाख नौकरी और 10 लाख रोजगार दिए जाएंगे. अब तक 3 लाख 63 हजार युवाओं को सरकारी नौकरी दी जा चुकी है, जबकि 5 लाख लोगों को रोजगार दिए गए हैं. देखने वाली बात यह है कि बिहार के अलावा दूसरे राज्यों व देश से बाहर के लोग भी आ कर यहां शिक्षक बने हैं.

नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार के लोग भी बाहर जा कर अलगअलग प्रदेशों में व देश के बाहर नौकरी करते हैं, इसलिए हम ने शुरू में ही कहा था कि बिहार के अलावा बाहर के लोगों को भी यहां होनेवाली बहाली में शामिल होने का अवसर प्रदान किया जाएगा. इस को ले कर मेरी आलोचना भी हुई थी. दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड, झारखंड समेत कई दूसरे राज्यों के लोग बिहार में शिक्षक नियुक्त हुए हैं.

मंदिर बनाम विकास की राजनीति

बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने राममंदिर को ले कर कहा, ‘भूख लगेगी तो मंदिर जाओगे? खाना मिलेगा? वहां उलटा दान मांग लेंगे. पैर कट जाएगा तो मंदिर जा कर पंडित को दिखाइएगा कि अस्पताल जा कर डाक्टर को दिखाइएगा?’ ‘दक्षिणापंथी’ लोगों ने उन की आलोचना शुरू कर दी. अब बिहार सरकार ने सरकारी नौकरी और गरीब परिवारों को 2-2 लाख रुपए की नकद राशि दे कर यह दिखा दिया है कि मंदिर की राजनीति के मुकाबले विकास की राजनीति कैसे हो सकती है. असल में बिहार ने जातीय जनगणना के जरिए गरीबों के विकास की जो योजना बनाई है वह मंदिर की राजनीति का सटीक जवाब है.

1990 के दौर में जब मंडल-कमंडल आमनेसामने थे तब बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव ने ही लालकृष्ण आडवाणी का राममंदिर रथ रोक दिया था. 2024 के लोकसभा चुनाव में अब दक्षिणापंथी लोगों ने मंदिर को मुददा बनाने का काम किया. हजारों करोड़ रुपए अयोध्या पर खर्च कर दिया. उस के मुकाबले बिहार की सरकार ने लाखों लोगों को सरकारी नौकरी और रोजगार दे कर अपना विकास का मौडल देश के सामने पेश किया. जातीय गणना का विरोध करने वाले यह पूछ रहे थे कि इस से क्या भला होगा? बिहार सरकार ने इस का जवाब दे दिया है.

जातीय गणना से गरीबों के भला करने की योजना से अब देश के बाकी हिस्सों में जातीय गणना की मांग तेजी से उठेगी. लोगों को इस का लाभ समझ आ गया है. पहले लोगों को लगता था कि यह केवल राजनीतिक स्टंट है. इस के सहारे वोटबैंक की राजनीति की जा रही है. 94 लाख लोगों की मदद से बिहार सरकार ने भी अपना लाभार्थी वर्ग तैयार कर लिया है. जहां दक्षिणपंथी राममंदिर पर हजारों करोड़ रुपए खर्च कर दक्षिणाबैंक बना रहे हैं वहां बिहार सरकार ने रोजगार और नौकरियों के सहारे लोगों के घरों में उजाला कर दिया है. बिहार सरकार ने अक्षत वितरण के जवाब में नौकरी बांट कर युवाओं को खुश कर दिया है.

Radish Health Benefits : इम्युनिटी बढ़ाने से लेकर शुगर कंट्रोल करने तक, मूली खाने के हैं अनगिनत फायदे

Health Benefits Of Eating Radish : सर्दियों में कई मौसमी सब्जियां आती है, जिन्हें खाने का मजा और फायदा दोनों इसी मौसम में मिलता है. इसी में से एक हैं मूली. मूली में कई पोषक तत्वों जैसे कि विटामिन, मिनरल्स, फाइबर और प्रोटीन आदि की भरमार होती है. इसके अलावा इसके सेवन से सर्दी, जुकाम, खांसी और बुखार आदि मौसमी बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है. साथ ही ये डायबिटीज मरीजों के लिए भी कई मायनों में फायदेमंद होती हैं.

आइए अब जानतें हैं विंटर में डाइट में मूली (Health Benefits Of Eating Radish) को शामिल करने से सेहत को क्या-क्या लाभ मिलता है.

मूली खाने के फायदे

ब्लड शुगर रहेगा कंट्रोल

कड़ाके की ठंड के बीच डायबिटीज मरीजों को अपनी डाइट में मूली (Health Benefits Of Eating Radish) को जरूर शामिल करना चाहिए. दरअसल, मूली खाने से शरीर में ब्लड शुगर की मात्रा कम होने लगती है लेकिन इसका सेवन सीमित मात्रा में ही करना चाहिए.

डायजेशन होगा मजबूत

मूली में विटामिन सी, कैल्शियम, फाइबरफोलेट, पोटैशियम, फोलेट और मैग्नीशियम जैसे कई पोषण तत्व तो होते ही हैं. साथ ही ये एंटी-ऑक्सीडेंट का भी मुख्य स्रोत है, जिससे शरीर को तमाम बीमारियों से लड़ने की सुरक्षा मिलती है. इसी वजह से मूली खाने से डायजेशन अच्छा रहता है.

इम्यूनिटी होगी बूस्ट 

जब भी मौसम में बदलाव आता है तो उसका सबसे ज्यादा असर इम्यूनिटी पर होता है. इसलिए जरूरी है कि हर मौसम में हम अपनी डाइट में उन चीजों को शामिल करें, जिससे इम्यूनिटी बूस्ट हो. सर्दियों में इम्यूनिटी को बूस्ट व मजबूत करने के लिए डाइट में मूली को शामिल करना फायदेमंद होता है.

पाचन संबंधी समस्याओं से मिलेगा छुटकारा

ठंड में नियमित रूप से मूली (Health Benefits Of Eating Radish) खाने से पाचन बेहतर होता है. साथ ही पाचन संबंधी समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है.

हड्डियों में आएगी मजबूती

आपको बता दें कि मूली में कैल्शियम की भरपूर मात्रा होती है. इसलिए इस मौसम में इसके सेवन से हड्डियों में मजबूती आती है. साथ ही जोड़ों के दर्द में भी राहत मिलती है.

अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.

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