फातिमा लतीफ, डाक्टर पायल तडवी, रोहित वेमुला ये उन छात्रों के नाम हैं जो अनुसूचित जाति, जनजाति और अल्पसंख्यक तबकों से आते हैं. पढ़ाई पूरी करने के लिए उच्च शिक्षा संस्थान में पहुंचे लेकिन इन्होंने आत्महत्या कर ली.

कानपुर आईआईटी में 30 दिनों के अंदर आत्महत्या की तीसरी घटना घट गई. 20 दिसम्बर को शोध की छात्रा डाक्टर पल्लवी चिल्का, 10 जनवरी को एमटेक अंतिम साल के छात्र विकास मीना ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. 18 जनवरी को कैमिकल इंजीनियरिंग में शोध कर रही छात्रा प्रियंका जायसवाल ने फांसी लगा कर जान दे दी.

प्रियंका हौस्टल नम्बर ई-1, कमरा नम्बर 312 में रहती थी. जब घर वालों ने प्रियंका के फोन पर कौल की और बात नहीं हो सकी तब हौस्टल के नम्बर पर बात की गई. हौस्टल वालों ने कमरे में जा कर देखा तो प्रियंका का शव लटक रहा था. इन छात्रों ने आत्महत्या क्यों की इस बात का खुलासा नहीं हो पाता है. जिस वजह से कोई सुधार नहीं हो पा रहा. घर परिवार किसी तरह से अपने दुख को भुलाने की कोशिश कर रहे हैं. जिस से नई घटना को रोकने की दिशा में कोई काम नहीं हो पा रहा है.

छात्रों की आत्महत्या के कारण खोजना जरूरी

हमारे देश में हर साल आत्महत्या के कारण एक लाख से अधिक जानें चली जाती हैं. पिछले दो दशकों में आत्महत्या की दर प्रति 100,000 पर 7.9 से बढ़ कर 10.3 हो गई है. भारत में अधिकांश आत्महत्याएं 37.8 फीसदी 30 वर्ष से कम उम्र के लोगों द्वारा की जाती हैं. युवाओं की संख्या अधिक है.

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