जीवन में पढ़ाई की बहुत अहमियत है, इस से आप जानकारी हासिल करते हैं पर पढ़ाई के साथसाथ उन व्यावहारिक स्किल्स का होना जरूरी है जो आप के नागरिक होने और बेहतर कैरियर के लिए बेहद जरूरी हैं. दिल्ली के कीर्ति नगर इलाके में रहने वाला 19 वर्षीय रिषभ शुरू में पढ़ाई में अच्छा था. 8वीं तक हर क्लास में अच्छे मार्क्स भी लाया करता था. पढ़ाई में अच्छा होने के चलते उस के मातापिता उसे उन बच्चों से दूर रखने लगे थे जो क्लास के या तो कमजोर स्टूडैंट्स में गिने जाते थे या एवरेज.

वे मानते थे कि अगर वह बाकी बच्चों से घुलेमिलेगा तो उन का प्रभाव रिषभ पर पड़ने लगेगा और वह भी पढ़ाई में कमजोर हो जाएगा. इसी कारण उस की कालोनी में उस के कम ही दोस्त बन पाए थे. वह अधिकतर समय किताबों के साथ रहता या अकेला घर में समय बिताता. उसे किसी तरह की दिक्कत न आए, इस के लिए उस के मातापिता ने घर में ही होम ट्यूशन लगा रखी थी. यह सही है कि छोटे बच्चों के लिए शुरू में मातापिता दोस्त जैसे होते हैं क्योंकि बच्चों की केयरिंग करने की जरूरत होती है पर उम्र बढ़ने के साथ बच्चे को कुछ तरह की जिम्मेदारी और अधिकार मिलना या उसे खुद पर निर्भर रहना सिखाना अच्छा होता है.

यह बात उस के मातापिता समय रहते नहीं सम?ा पाए. ऐसा होने से रिषभ इंट्रोवर्ट बनता चला गया. उस की उम्र के बच्चे उस के दोस्त न होने से वह उन ऐक्टिविटीज में पार्टिसिपेट करने से घबराता रहा जहां वह कई चीजें एक्सप्लोर कर सकता था, नए स्किल्स डैवलप कर सकता था. वह न तो स्पोर्ट्स में था, न स्कूल के डांस कंपीटिशन में भाग लेता, न किसी ड्रमैटिक सोसाइटी का हिस्सा. उस के भीतर कौन्फिडैंस की कमी आने लगी. दबासहमा सा रहने के चलते 12वीं तक आतेआते उस की पढ़ाई पर भी असर पड़ने लगा. विकासपुरी में रहने वाले आदर्श के साथ मामला उलट था. आदर्श बचपन से हाजिरजवाबी में तेज था.

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