आप शायद जानते न हों कि हमारा भारत करीब 20 देशों को 500 से अधिक प्रकार के फूलों का निर्यात करता है. बाकायदा इन फूलों की खेती होती है ताकि इन्हें तोड़ कर दूसरे देशों में भेजा जाए.

खुद भारत के अंदर भी फूलों का व्यापार बड़ी तेजी से फलफूल रहा है. जहां देखिए आप को फूलों के बुके, माले या खुले फूल बिकते मिल जाएंगे. इन को खासी कीमत पर बेचा जा रहा है. जबकि गौर फरमाइए उन फूलों पर जो घरों में गमलों में लगे होते हैं या सड़कों के किनारे, पार्कों में या दूसरी जगह शोभा बढ़ा रहे होते हैं. वे हमें कितना सुकून और ताजगी का एहसास कराते हैं. फूलों के बीच इंसान खुद को जीवंत महसूस करता है. इन की खुशबू हमें अपनी तरफ खींचती है. फूलों की घाटियां इसी वजह से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहती हैं. मगर जब इन्हें तोड़ लिया जाता है तो ये मूक संवेदना के साथ जिंदगी से हार मान लेते हैं और सूख जाते हैं.

वैसे भी टूटी हुई चीजें कभी भी सुकून या उत्साह का संचार नहीं करतीं. फिर हम यह बात क्यों नहीं समझते कि फूलों को तोड़ कर हम उन के द्वारा फैलाई जा रही सकारात्मकता का नाश कर देते हैं.

हम अपने प्रिय लोगों को या आदरवश किसी को बुके गिफ्ट करते हैं. पर उस से क्या होता है? अगले ही सैकंड वह इंसान उस बुके को किनारे रख देता है. शाम तक वह बुके यों ही पड़ा रहता है और रात होतेहोते उस के फूल मुरझाने लगते हैं. अगले दिन वह बुके कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है. इस तरह कचरे के रूप में उस का वजूद ख़त्म हो जाता है. इस के विपरीत यदि आप उन फूलों को अपने पौधों पर लगा रहने दें तो क्या यह सच नहीं कि वे 10-15 दिन अपनी खुशबू बिखेरेंगे और माहौल को खुशनुमा बनाए रखेंगे.

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