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उत्तर प्रदेश : गर्लफ्रैंड की वजह से करने लगा चोरियां, पहुंच गया जेल

अपनी गर्लफ्रैंड्स के शौक पूरे करना सब को काफी अच्छा लगता है क्योंकि जिस से हम प्यार करते हैं उस की छोटी से छोटी बात मानना, पसंदीदा जगह पर ले जाना, उस की पसंद के तोहफे दिलाना काफी सुकून देता है लेकिन जब इन शौक को पूरा करने की वजह से किसी को जेल जाना पड़े इंसान को कैसा लगेगा?

आप भी सोच रहे होंगी कि भला गर्लफ्रैंड्स के शौक पूरे करने में क्या बुराई है, मगर किसी को इस के चलते जेल की यात्रा करनी पङे, तो फिर क्या कर सकते हैं?

पढ़ाई छोङ कर बन गया चोर

तो चलिए, आप को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का एक ऐसा ही किस्सा बताते हैं जहां एक लौ स्टूडैंट सिर्फ इसलिए चोरी करने लगा ताकि वह अपनी गर्लफ्रैंड की शौक पूरी कर सके.

दरअसल, इस लौ स्टूडेंट का नाम अब्दुल हलीम है जोकि जौनपुर, उत्तर प्रदेश का रहने वाला है. लखनऊ में रह कर वह वकालत की पढ़ाई कर रहा था पर उसे क्या पता था कि वकालत की पढ़ाई करते और अपनी गर्लफ्रैंड की शौक पूरी करते उसे जेल की हवा खानी पड़ेगी.

अब्दुल हलीम गोमती नगर के एमआर गोमती ग्रीन्म में रह कर अपनी वकालत की पढ़ाई कर रहा था. ऐसे में पुलिस को गोमती ग्रीन्म में हो रही कई चोरियों के बारे में पता चला तो पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे की मदद ली और सीसीटीवी कैमरे में अब्दुल हलीम कैद हो गया.

चढ़ा पुलिस के हत्थे

पुलिस ने फौरन अब्दुल हलीम को गिरफ्तार किया और उस से जब चोरी करने का कारण पूछा तब उस ने बताया कि उस ने चोरी अपनी गर्लफ्रैंड के शौक पूरे करने के लिए की. उस ने बताया कि उस की गर्लफ्रैंड का शौक मूवी देखना, आएदिन मौल्स में घूमना, क्लब जाना, महंगे आईफोन लेना था, जिस के चलते उसे चोर बनना पड़ा.

अब्दुल हलीम के पास से कुछ गहने और कैश भी बरामद किया गया. पुलिस की तफ्तीश चल रही है. मगर फिलहाल वह जल में है.

5 टिप्स : बोरिंग मैरिड लाइफ को बनाएं रोमांटिक

हर इंसान चाहता है कि उस की मैरिड लाइफ काफी अच्छी हो और पतिपत्नी आपस में हमेशा हंसते मुस्मकराते रहें. पतिपत्नी में लड़ाईझगड़े होना आम बात है पर वहीं अगर वे लड़ाईझगड़े भूल कर फिर से नौर्मल हो जाते हैं तो उन की मैरिड लाइफ में कभी कोई परेशानी नहीं आएगी.

तो चलिए, आज हम आप को बताते हैं कुछ ऐसे टिप्स जिस से आप अपनी मैरिड लाइफ को और भी ज्यादा खुशहाल बना सकेंगे :

एकदूसरे की करें रिस्पैक्ट

आजकल हर इंसान को अपनी रिस्पैक्ट सब से प्यारी होती है। ऐसे में कई पुरुष चाहते हैं कि उन की पत्नी उन की हमेशा रिस्पैक्ट करे और जो वह कहे वह करे पर वहीं दूसरी तरफ वे भूल जाते हैं कि महिलाओं को भी अपनी इज्जत उतनी ही प्यारी होती है.

ऐसे में आप दोनों को एकदूसरे की हमेशा रिस्पैक्ट करनी चाहिए और पुरुषों को कभी भी किसी के सामने अपनी पत्नी का अपमान नहीं करना चाहिए. अगर आप दोनों एकदूसरे की हर बात की रिस्पैक्ट करेंगे तो आप की मैरिड लाइफ काफी अच्छी बन जाएगी.

सैक्स को न करें इग्नोर

हैप्पी मैरिड लाइफ के लिए अपनी सैक्स लाइफ को इंट्रस्टिंग बनाना बेहद जरूरी है. हैल्दी मैरिड लाइफ मतलब हैल्दी लैक्स लाइफ. ऐसा देखा गया है कि कई पार्टनर्स बाकी कामों के चलते सैक्स को इग्नोर कर देते हैं जो कि बिलकुल गलत है. मैरिड लाइफ में सैक्स एक बेहद अहम भूमिका निभाता है. आप जितना मरजी थके हुए हों या आप के पास जितना मरजी काम हो लेकिन अपने काम से वक्त निकाल कर आप को अपने पार्टनर के साथ हसीन पल जरूर बिताने चाहिए, जिस से आप अपने पार्टनर से और भी ज्यादा क्लोज आ सकें.

अपने पार्टनर को ले कर बाहर घूमने जाएं

आजकल हम सबकी लाइफ इतनी ज्यादा बिजी हो गई है कि हम अपने पार्टनर के साथ क्वालिटी टाइम स्पैंड करना भूल ही जाते हैं लेकिन एक अच्छी मैरिड लाइफ के लिए अपने पार्टनर के साथ क्वालिटी टाइम स्पैंड करना बेहद आवश्यक है. आप को अपने काम से कुछ दिनों की छुट्टी ले कर कभीकभी अपने पार्टनर को बाहर टूर पर ले कर जाना चाहिए जिस से कि आप दोनों एकदूसरे के साथ अच्छा समय बिता पाएं और एकदूसरे के और भी ज्यादा नजदीक आ पाएं.

अपने पार्टनर्स को दें सरप्राइज

सरप्राइज हर किसी को पसंद होते हैं खासतौर पर महिलाओं को। तो ऐसे में, पुरुषों को ध्यान रखना चाहिए कि वे समयसमय पर अपनी पत्नी को सरप्राइज देते रहें. कभी अपनी पत्नी को रोमांटिक डिनर डेट पर ले कर जाएं, कभी शौपिंग तो कभी औफिस या काम से आते हुए अपनी पत्नी के लिए फ्लौवर्स या कोई गिफ्ट ले कर आएं जिस से कि आप का पार्टनर खुश हो जाए और आप को और भी ज्यादा प्यार करने लगे. ऐसा करने से आप अपनी मैरिड लाइफ में चार चांद लगा सकते हैं.

छेड़छाड़ भी है जरूरी

हैप्पी मैरिड लाइफ का एक और फौर्मूला है जोकि काफी काम का साबित होता है. पतिपत्नी में अकसर छेड़छाड़ होनी चाहिए. दोनों को एकदूसरे के साथ हंसीमजाक करना चाहिए तो कभीकभी जब पत्नी किचन में काम कर रही हो तब पति को पीछे से जा कर पत्नी को गले लगा लेना चाहिए या बांहों में भर लेना चाहिए.

वहीं दूसरी तरफ पत्नी जब भी नहा कर निकले तो अपने गीले बालों से टपकती पानी की बूंदों को पति के चेहरे पर छिड़कना चाहिए. ऐसा करने के रिश्ते में ताजगी बनी रहती है और बोरिंग मैरिड लाइफ भी मजेदार और रोमांटिक बन जाती है.

अपनी धरती अपना देश : हमारे देश का जवाब नहीं

‘‘कसम ऊपर वाले की, जो दोबारा कभी यूरोप गया. न तो वहां किसी में सिविक सेंस है और न ही नागरिक अधिकारों के बारे में कोई जागरुकता,’’ वह आज ही यूरोप की यात्रा से लौटे थे और पानी पीपी कर यूरोप को कोसे जा रहे थे.

‘‘लेकिन इन मामलों में तो अंगरेज अग्रदूत माने जाते हैं,’’ मैं ने टोका.

‘‘क्या खाक माने जाते हैं,’’ वह गरम तवे पर पानी की बूंद की तरह छनछना उठे, ‘‘यह बताइए कि सांस लेना और खानापीना मनुष्य का मौलिक अधिकार है या नहीं?’’

‘‘है,’’ मैं ने सिर हिलाया.

‘‘तो फिर उगलना और विसर्जन करना भी मौलिक अधिकार हुआ,’’ उन्होंने विजयी मुद्रा में घोषणा की फिर बोले, ‘‘एक अपना देश है जहां चाहो विसर्जन कर लो. आबादी हो या निर्जन, कहीं कोई प्रतिबंध नहीं, लेकिन वहां पेट भले फट जाए पर मकान व दुकान के सामने तो छोड़ो सड़क किनारे भी विसर्जन नहीं कर सकते.’’

‘‘लेकिन वहां सरकार ने जगहजगह साफसुथरे टायलेट बनवा रखे हैं, उन में जाइए,’’ मैं ने समझाया.

‘‘बनवा तो रखे हैं लेकिन अगर हाजत आप को चांदनी चौक में लगी हो और फारिग होने कनाट प्लेस जाना पड़े तो क्या बीतेगी?’’ उन्होंने आंखें तरेरीं फिर तमकते हुए बोले, ‘‘आप को कुछ पता तो है नहीं. घर से बाहर निकलिए, दुनिया देखिए तब अच्छेबुरे में फर्क करने की तमीज पैदा हो पाएगी. तब तक के लिए फुजूल में टांग घुसेड़ने की आदत छोड़ दीजिए.’’

मुझे डपटने के बाद शायद उन्हें कुछ रहम आया. अत: थोड़ा मधुर कंठ से बोले, ‘‘यह बताइए कि आप को जुकाम हो और नाक गंदे नाले की तरह बह रही हो तो क्या करेंगे?’’

‘‘जुकाम की दवा खाएंगे,’’ मैं ने तड़ से बताया.

वह पल भर के लिए हड़बड़ाए. शायद मनमाफिक उत्तर नहीं मिला था. अत: अपने प्रश्न को थोड़ा और संशोधित करते हुए बोले, ‘‘डाक्टर की दुकान में घुसने से पहले क्या करेंगे आप?’’

‘‘जेब टटोल कर देखेंगे कि बटुआ है कि नहीं,’’ मैं ने फिर तड़ से उत्तर दिया.

इस बार उन के सब्र का पैमाना छलक गया. वह हत्थे से उखड़ते हुए बोले, ‘‘क्या बेहूदों की तरह नाक बहाते भीतर घुस जाएंगे और सुपड़सुपड़ कर सब के सामने नाक सुड़किएगा?’’

‘‘जी, नहीं, पहले नाक छिनक कर साफ करूंगा फिर भीतर जाऊंगा,’’ मैं ने कबूला. उन का प्रश्न वाजिब था. पर मेरी ही समझ में कुछ विलंब से आया.

‘‘तो गोया कि आप पहले घर जाएंगे और राजा बेटा की तरह नाक साफ करेंगे फिर वापस आ कर डाक्टर की दुकान में जाएंगे,’’ वह रहस्यमय ढंग से मुसकराए.

‘‘खामखां मैं घर क्यों जाऊंगा? वहीं नाक साफ करूंगा फिर डाक्टर से दवा ले कर घर लौटूंगा,’’ इस बार उखड़ने की बारी मेरी थी.

‘‘यही तो…यही तो…मैं सुनना चाहता था आप की जबान से,’’ वह यों उछले जैसे बहुत बड़ा मैदान मार लिया हो. फिर मेरे कंधों पर हाथ रख भावुक हो उठे, ‘‘वहां जुकाम हो तो सड़क पर नाक नहीं छिनक सकते. कहते हैं रूमाल में पोंछ कर जेब में रख लो. छि…छि…सोच कर भी घिन आती है. उसी रूमाल से मुंह पोंछो, उसी से नाक. दोनों हैं अगलबगल में पर कुदरत ने कुछ सोच कर ही दोनों के छेद अलगअलग बनाए हैं. वह फर्क तो बरकरार रखना चाहिए.’’

‘‘तो 2 रूमाल रख लीजिए,’’ मैं ने उन की भीषण समस्या का आसान सा हल सुझाया फिर समझाने लगा, ‘‘सड़क पर एक इनसान गंदगी करता है तो दूसरे को उस की गंदगी साफ करनी पड़ती है. कितनी गलत बात है यह.’’

‘‘बात गलत नहीं, बल्कि सोच गलत है तुम्हारी,’’ वह शोले से भड़के. फिर मेरी अज्ञानता पर तरस खा शांत स्वर में बोले, ‘‘वैसे देखा जाए तो गलती तुम्हारी नहीं है. गलती तुम्हारी उस शिक्षा की है जो अंगरेजों की देन है.’’

इतना कह कर वह पल भर के लिए ठहरे फिर सांस भरते हुए बोले, ‘‘हम भारतवासी सदा से दयालु रहे हैं. जितना खाते हैं उतना गिराते भी हैं ताकि कीड़ेमकोड़ों और पशुपक्षियों का भी पेट भर सके. लेकिन ये जालिम अंगरेज तो इनसानों का भी भला नहीं सोचते.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं.’’

उन्होंने मुझ पर तरस खाती दृष्टि डाली फिर समझाने की मुद्रा में बोले, ‘‘बरखुरदार, अपने देश में हम लोग परंपरापूर्वक मूंगफली और केला खा कर प्लेटफार्म पर फेंकते हैं, पूर्ण आस्था के साथ पान खा कर आफिस में थूकते हैं. श्रद्धापूर्वक बचाखुचा सामान पार्क में छोड़ देते हैं. इस से समाज का बहुत भला होता है.’’

‘‘समाज का भला?’’

‘‘हां, बहुत बड़ा भला,’’ वह अत्यंत शांत मुद्रा में मुसकराए फिर पूर्ण दार्शनिक भाव से बोले, ‘‘गंदगी मचाने से रोजगार का सृजन होता है क्योंकि अगर गंदगी न हो तो सफाई कर्मचारियों को काम नहीं मिलेगा. बेचारों के परिवार भूखे नहीं मर जाएंगे? लेकिन अंगरेजों को इस से क्या? वे तो हमेशा से मजदूरों के दुश्मन रहे हैं. इतिहास गवाह है कि जब भी किसी इनसान ने अधिकारों की मांग की है, अंगरेजों ने उसे बूटों तले कुचल डाला है. अब दूसरे मुल्कों में उन की हुकूमत तो रही नहीं, इसलिए अपने ही नागरिकों को गुलाम बना लिया. बेचारे अपने ही घर के सामने कूड़ा नहीं फेंक सकते, अपने ही महल्ले में सड़क घेर कर भजनकीर्तन नहीं कर सकते, सुविधानुसार गाड़ी पार्क नहीं कर सकते, अपने ही आफिस में पीक उगलने का आनंद नहीं ले सकते. जरूरत पड़ने पर इच्छानुसार विसर्जन नहीं कर सकते. काहे का लोकतंत्र जहां हर पसंदीदा चीज पर प्रतिबंध हो? सच्चा लोकतंत्र तो अपने यहां है. अपना देश, अपनी धरती. जहां चाहो थूको, जहां चाहो फेंको, जहां चाहो विसर्जन करो, कोई रोकटोक नहीं. इसीलिए तो कहते हैं, मेरा देश महान…’’

वह बोले जा रहे थे और मैं टकटकी बांधे देखे जा रहा था. लग रहा था कि शायद वह सही हैं.

नरबलि का यह कैसा अंधविश्वास

22 सितंबर को उत्तर प्रदेश के हाथरस से नरबलि की हैरान करने वाली घटना सामने आई, जहां सहपऊ क्षेत्र के गांव रसगवां के एक स्कूल में 8 साल के मासूम बच्चे कृतार्थ कुशवाह, जो उसी स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़ता था, की स्कूल प्रबंधकों ने बंधक बना कर हत्या कर दी.

पुलिस जांच में स्कूल के पीछे लगाए गए नलकूप से तंत्रमंत्र का सामान मिला, जिस से पुष्टि भी हुई कि स्कूल में काफी समय से तंत्रमंत्र की प्रैक्टिस की जाती थी. और इसी संबंध में कृतार्थ की बलि देने का प्लान भी बनाया गया था. स्कूल प्रबंधक का मानना था कि नरबलि देने से उन के स्कूल की तरक्की होगी. इस मामले में 5 लोगों को आरोपी बनाया गया, जिन में स्कूल संचालक शामिल है.

हम विश्वगुरु बनने का ढोल पीट रहे हैं जबकि देश की बड़ी आबादी अंधविश्वास, तंत्रमंत्र और टोनाटोटका से बाहर नहीं निकल पा‌ रही. समाज में यों तो तरहतरह के अंधविश्वास फैले हुए हैं मगर किसी अंधविश्वास के कारण यदि किसी की जान ले ली जाए तो इसे न्यायोचित कतई नहीं कहा जा सकता. अंधविश्वास के शिकार केवल पिछड़े और कम पढ़ेलिखे लोग ही नहीं, बल्कि पढ़ेलिखे लोग भी हो रहे हैं. तंत्र, मंत्र, साधना से रुपए बनाने का लालच दे कर एक नौजवान की नरबलि देने का एक ताजा मामला हाल ही में मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में देखने को मिला है.

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के सिमरिया गांव में रहने वाला 22 साल का नौजवान अंकित कौरव किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित था. डाक्टरी इलाज के साथ वह गांव में झाड़फूंक करने वाले एक तांत्रिक के झांसे में आ गया. नागपुर में इलाज कराने के साथ ही वह झाड़फूंक का सहारा ले रहा था. जब वह बीमारी से ठीक हो गया तो उसे लगा कि तांत्रिक की झाड़फूंक ने उसे ठीक कर दिया है. इसी बीच, अंकित के बहनोई भी बीमारी से पीड़ित हो कर महीनों अस्पताल में भरती रहे जिस से काफी रुपए इलाज में खर्च हो गए. पैसों की तंगी से जूझ रहे इस नौजवान के पिता एक किसान हैं.

अंकित कौरव ने जब इस बात का जिक्र गांव में रहने वाले तांत्रिक सुरेंद्र कुशवाहा से किया तो तांत्रिक ने भरोसा दिलाया कि वह तंत्र साधना से रुपए बना सकता है. इस के लिए तांत्रिक अनुष्ठान में उसे हाथ की उंगली काट कर बलि चढ़ाना पड़ेगी. रुपयों की जरूरत के चलते अंकित कौरव उस पूजापाठ के लिए राजी हो गया. सुरेंद्र कुशवाहा ने अपने चचेरे भाई रम्मू कुशवाहा के साथ मिल कर तंत्रमंत्र के जरिए पैसा बनाने के लिए परिवार के इकलौते लड़के अंकित कौरव की नरबलि देने का षड्यंत्र रचा.

3 नवंबर, 2023 की शाम 7:30 बजे सुरेंद्र कुशवाहा और रम्मू कुशवाहा अंकित कौरव को ले कर गांव से बाहर आए. सीहोरा पुलिस चौकी क्षेत्र के टेकापार तिराहा पर गन्ना के एक खेत में आए. मौका पा कर सुरेंद्र कुशवाहा ने प्रसाद में नींद की गोलियां मिलाईं और पूजापाठ के दौरान अंकित कौरव को प्रसाद खाने को दिया. इस से अंकित कौरव बेहोश हो गया. मौका पा कर सुरेंद्र कुशवाहा और रम्मू कुशवाहा ने अपने साथ लाए बका से बेहोश पड़े अंकित कौरव की गरदन काट दी. इस के बाद दाहिने हाथ की उंगली भी काट कर अंकित कौरव के सिर के पास रख दी. इस से अंकित कौरव की मौके पर ही मृत्यु हो गई.

ऐसी अंधविश्वासी प्रथाएं हमारे धर्मग्रंथों में लिखी गईं कपोलकल्पित कथाओं के कारण भी जन्म लेती हैं. एक ऐसी ही श्रीकृष्ण से जुड़ी कहानी महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद की है, जिस में अर्जुन के अहंकार को तोड़ने व राजा मोरध्वज की परीक्षा लेने श्रीकृष्ण और अर्जुन साधु का चोला पहन कर जंगल से एक शेर को पकड़ कर ले गए. कहा जाता है कि राजा मोरध्वज विष्णु के परमभक्त और दानदक्षिणा देने वाले राजा थे.

वे अपने घर पर आए किसी को भी खाली हाथ और बिना भोजन के जाने नहीं देते थे. जब श्रीकृष्ण और अर्जुन को साधुओं की वेशभूषा में एक सिंह के साथ अपने घर पर देखा तो राजा नंगेपांव दौड़ कर द्वार पर गए और मेहमानों को उन का आतिथ्य स्वीकार करने के लिए कहा.

दोनों साधुओं ने मोरध्वज के सामने एक अजीब सी शर्त रखी कि हम तो ब्राह्मण हैं, कुछ भी खिला देना पर यह सिंह नरभक्षी है, तुम अगर अपने इकलौते बेटे को अपने हाथों से मार कर इसे खिला सको तो ही हम तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार करेंगे. भला हो ऐसे भगवान का, जिस में भक्त को लेने के देने पड़ जाएं. साधुओं की शर्त सुन मोरध्वज स्तब्ध हो गए. फिर भी राजा अपना आतिथ्य धर्म नहीं छोड़ना चाहता था, इसलिए साधुओं को प्रसन्न करने और अपनी दानदक्षिणा वाली छवि को चमकाने के लिए राजा ने यह शर्त स्वीकार कर ली.

राजा ने जब सारा हाल पत्नी को बताया तो रानी की आंखों से अश्रु बह निकले. मगर पति को परमेश्वर मानने वाली रानी भी इस के लिए राजी हो ग‌ई. राजा और रानी ने खुद ही अपने 3 साल के पुत्र रतन कंवर को हाथों में आरी ले कर उस के 2 टुकड़े कर दिए और सिंह को परोस दिया. साधुओं ने छप्पन भोग का स्वाद चखा.

पर जब रानी ने पुत्र का आधा शरीर देखा तो वह अपने आंसू रोक न पाई. साधु इस बात पर गुस्सा हो गए कि लड़के का एक फाड़ कैसे बच गया. वे नाराज हो कर जाने लगे तो राजा और रानी उन से रुकने की मिन्नतें करने लगे. इतना सब देख कर अर्जुन का घमंड चूरचूर हो गया. अर्जुन के कहने पर श्रीकृष्ण ने राजारानी को क्षमा कर दिया. साधुओं की आज्ञा मान कर रानी ने पुत्र रतन कंवर को आवाज लगाई. कुछ ही क्षणों में उन का पुत्र जीवित हो गया.

इस तरह की कहानियां लोगों को धार्मिक भावनाओं में डुबो कर उन्हें अंधविश्वासी बनाती हैं. लोगों को लगता है कि किसी इंसान की बलि देने से देवीदेवता प्रसन्न हो जाएंगे और उन के मन की मुराद पूरी हो जाएगी.

दिसंबर 2021 की एक घटना मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले की है, जब एक पिता पर अंधविश्वास इस कदर हावी हो गया कि उस ने अपने 5 साल के मासूम बेटे की कुल्हाड़ी से काट कर निर्मम हत्या कर दी. पिता दिनेश दावर के अनुसार उसे गुरुमाता ने कहा था कि बेटा उस के घर के लिए अपशकुन है. इस अंधविश्वास पर भरोसा कर पिता ने ऐसा क्रूर कदम उठाया. हत्या करने के बाद बाप ने बच्चे को कई टुकड़ों में काटा और खेत में दफना दिया.

पिता को इस बात का शक था उस के बेटे पर भूतप्रेत का साया है. उस को लगता था कि उस के बेटे में कोई बुरी आत्मा का वास है जिस के चलते उस के घर में परेशानियां और अशांति रहती है. परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए उस ने अपने ही जिगर के टुकड़े को मार डाला.

अपने जिगर के टुकड़े को मारने की यह घटना ऋषि जमदग्नि के पुत्र परशुराम से प्रेरित लगती है, जिन्होंने अपने पिता की आज्ञा मान कर अपनी माता का सिर फरसे से काट दिया था. उन की माता रेणुका की ग़लती इतनी भर थी कि उन के पति ऋषि जमदग्नि ने उन्हें सरोवर से हवन के लिए जल लाने को भेजा था. रेणुका हवन के लिए जल लेने नदी तट पर गईं, तो वहां राजा गंधर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ जलविहार करते देख वे इतनी मग्न हो गईं कि उन्हें याद ही नहीं रहा कि अपने पति की हवनपूजा के लिए जल ले कर जाना है. जब वे देरी से पहुंचीं तो उन के पति क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने पुत्रों को अपनी मां को मारने का आदेश दिया.

परशुराम के 3 बड़े भाइयों ने पिता के बेहूदा आदेश को मानने से इनकार कर दिया. परशुराम सब से छोटे थे, उन्होंने आव‌ देखा न ताव और पिता की आज्ञा मान कर अपनी जन्म देने वाली मां का सिर काट दिया. पिता ने प्रसन्न हो कर परशुराम से 3 वरदान मांगने को कहा तो परशुराम ने अपनी मां को जीवित करने के अलावा 2 वरदान और मांग लिए. परशुराम की यह कहानी भी यही सीख देती है कि सहीग़लत का भेद किए बिना किसी की बलि चढ़ा देने से बिगड़े काम भी बन‌ जाते हैं.

नरबलि की ये घटनाएं बताती हैं कि आज भी हम किसी रोग के इलाज के लिए डाक्टर के बजाय तांत्रिकों पर भरोसा कर रहे हैं. इस तरह की मानसिकता के लिए काफी हद तक सरकार भी जिम्मेदार है. सब से ज्यादा पाखंड तो नेताओं ने ही समाज में फैला रखा है, उन्हीं का अनुकरण जनता करती रहती है.

तरहतरह के अंधविश्वास

हमारे देश ने आज वैज्ञानिक तरक्की के जरिए चंद्रयान भेज कर भले ही दुनियाभर में अपनी मजबूत पहचान बना ली है लेकिन 21वीं सदी में भारत में अंधविश्वास का बोलबाला है. मध्य प्रदेश के उज्जैन में आस्था के नाम पर अंधविश्वास का खेल चल रहा है. यहां लोग खुद को गायों के पैर तले रौंदवाते हैं वह भी खुशीखुशी. उज्जैन के बड़नगर में वर्षों पुरानी यह खतरनाक परंपरा निभाई जा रही है. दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा के दिन मौत का यह खेल होता है.

इसी तरह मध्य प्रदेश के बैतूल में अंधविश्वास के चलते अपने बच्चों को गोबर में फेंकने की खतरनाक परंपरा है. हर साल गोवर्धन पूजा के दिन बैतूल के कृष्णपुरा वार्ड में गोवर्धन पूजा के बाद बच्चों को गोबर में इस विश्वास के साथ डाला जाता है कि वे सालभर तंदुरुस्त रहेंगे. पौराणिक कहानियों के मुताबिक, कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठा कर ग्वालों की रक्षा की थी, तभी से इस समाज में मान्यता हो गई कि गोवर्धन उन की रक्षा करते हैं और इसीलिए बच्चों को गोबर में डाला जाता है.

दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा होती है और इस के लिए काफी पहले से तैयारी की जाती है. ग्वाला समाज के लोग गोबर एकत्रित करते हैं और उस से बड़े आकार में गोवर्धन बनाए जाते हैं, फिर उस की सामूहिक पूजा की जाती है. पुरुष और महिलाएं नाचतेगाते हुए विधिविधान से पूजा करते हैं, उस के बाद बच्चों को गोबर से बने गोवर्धन में डाला जाता है. गोबर के बीच रोतेबिलखते मासूम बच्चों को देख कर किसी का भी दिल भर आए, पर उन के मांबाप को ही उन पर दया नहीं आती.

जब से देश में संचार के अत्याधुनिक साधनों का इस्तेमाल बढ़ा है, तो अंधविश्वास के नएनए तरीके भी ईजाद हो गए हैं. पीलिया रोग होने पर हम डाक्टर को दिखाने के बजाय तांत्रिकों की झाड़फूंक में जान गंवा देते हैं. आंख आने (कंजंक्टिवाइटिस रोग होने) पर अब मोबाइल फोन पर झाड़फूंक होने लगी है, तो सांपबिच्छू के काटने पर अस्पताल जाने के बजाय गुनियाओझा के पास पहुंच कर उपचार तलाशते हैं. टैलीविजन चैनलों के माध्यम से मनोकामना पूर्ण करने वाले महंगे यंत्रतंत्र और रत्नजड़ित अंगूठी के विज्ञापन और ज्योतिष बताने वाले कार्यक्रम भी यही सिद्ध करते हैं कि अंधविश्वास और चमत्कारों के पीछे भागने वाले पागल लोगों की भीड़ में मध्यवर्गीय शिक्षित और सम्मानजनक पेशे से जुड़े उच्च अधिकारी, नेताओं, मंत्रियों की तादाद अधिक है.

टोनाटोटका भी जोरों पर

देश ने चाहे कितनी प्रगति कर ली हो और शिक्षितों की आबादी भले ही तेजी से बढ़ रही हो पर अंधविश्वास की काली साया से वह अब तक मुक्त नहीं हो पाया है. लोगों को अंधविश्वास की काली कोठरी से निकालने के लिए की गईं सारी कवायदें बेअसर साबित हुई हैं. जनवरी 2023 में बलरामपुर जिले में आधा दर्जन लोगों ने मिल कर 54 वर्षीय लाली कोरवा को पीटपीट कर मार डाला. आरोपी मंगलसाय, बंधन, भगतू, बलसा, सकेंद्रा को शक था कि लाली जादूटोना करती है. फरवरी 2023 में धमतरी में एक युवक ने अपने ही तांत्रिक गुरु की हत्या कर उन का खून पिया और फिर लाश को जलाने की नाकाम कोशिश की. उसे बताया गया था कि गुरु को मार कर उस का खून पी लेने से उस की सभी शक्तियां उसे मिल जाएंगी.

मार्च 2023 में छत्तीसगढ़ में एक मां द्वारा अपने दुधमुंहे शिशु की बलि दी गई थी. महिला का पति शराब पी कर उसे परेशान करता था. इस वजह से उस का दिमागी संतुलन बिगड़ गया. इलाज के लिए उसे तांत्रिक के पास ले जाया गया तो तांत्रिक ने कहा कि किसी छोटे बच्चे की बलि देने से उस की समस्या हल हो सकती है. तांत्रिक के कहने पर उस ने अपने 6 माह के बच्चे को गांव के तालाब में आधी रात में फेंक दिया था और पुलिस को गुमराह करने के लिए बच्चे के लापता होने की झूठी रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी.

अंधविश्वास, टोनाटोटका और तंत्रमंत्र के नाम पर हत्या की यह कोई पहली घटना नहीं है. इस से कुछ ही दिनों पहले दुर्ग जिले के करहीडीह गांव में पतिपत्नी ने मिल कर अपनी भाभी पर टोनही होने का आरोप लगाया. इस के बाद उसे एक तांत्रिक के पास ले जाया गया जिस ने उसे बुरी तरह पीटा, उसे कीलों और अंगारों पर चलाया. वह इतना जख्मी हो गई कि उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा. 24 मार्च, 2023 को कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा की वनोपज सहकारी समिति के अध्यक्ष सोनसाय दुग्गा की हत्या पीटपीट कर कर दी गई. आरोपियों का कहना था कि सोनसाय उन की पत्नियों पर जादूटोना करता है जिस के कारण वे बीमार रहती हैं.

पाखंड की जड़ है धर्म

देशभर में होने वाली इन पाखंडी घटनाओं की जड़ हमारे धर्म में है. हमारे धर्मग्रंथ हमें तार्किक बनाने के बजाय अंधविश्वास सिखाते हैं.

अंधविश्वास की जड़ों में मठा डालने का काम धर्म के ठेकेदार कथावाचक, पंडापुजारियों, मौलवियों द्वारा बखूबी किया जा रहा है.

पद्मपुराण, अग्निपुराण में भी नरबलि का उल्लेख मिलता है. अग्निपुराण में कहा गया है कि युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए नग्न हो कर, शिखा खोल कर दक्षिण की ओर मुख कर के रात में श्मशान में लकड़ी के लट्ठों से प्रज्वलित अग्नि में मानव मांस, रक्त और विष, अनाज के भूसे, हड्डी के टुकड़े मिला कर शत्रु का नाम 108 बार बोल कर आहुति देना चाहिए.

अग्निपुराण में कहा गया है कि ‘देवी सिगरा (त्वरिता) की पूजा कपड़े पर या छवि में या वेदी पर की जानी चाहिए. मंत्र के जाप के साथ आहुति के लिए सौ, हजार या दस हजार की गिनती होती है. इस प्रकार दोहराने के बाद भैंस, बकरी या मनुष्य के शरीर की चरबी और मांस से एक लाख बार आहुति देनी चाहिए.” वामन पुराण में उल्लेख है कि एक धर्मात्मा राजा गय ने सैकड़ोंहजारों बार नरबलि दी.

हमारे धर्मग्रंथों और तथाकथित धर्मगुरुओं ने लोगों के मन में पापपुण्य को ले कर ऐसी बातें भर दी हैं कि चाहे जितने भी पाप करो, मगर नदियों में डुबकी लगा कर देवीदेवताओं की पूजा और पंडितों को दानदक्षिणा दोगे तो सीधे स्वर्ग (यदि कहीं है तो) का टिकट हासिल हो जाएगा. स्वर्गलोक या कहें कल्पनालोक जाने की इसी कामना में अंधभक्त कथापुराण का आयोजन कराते हैं, पंडितों को दानदक्षिणा दे कर बड़ेबड़े भंडारा कराते हैं.

धार्मिक कथाकहानियों को सुन कर जयपुर में आमेर किले के भव्य मंदिर में विराजमान महिषासुरमर्दिनी अष्ठभुजी माता शिला देवी बरसों पहले नवरात्रों की सप्तमी और अष्ठमी की मध्य रात्रि में निशा पूजन के बाद बकरों और भैंसों की बलि दी जाती थी. आमेर नरेश मानसिंह के बारे में किंवदंती है कि उन्होंने देवी को नरबलि भी दी थी. असम के कामाख्या देवी मंदिर और छत्तीसगढ़ के दंतेश्वरी देवी के मंदिरों में नरबलि देने की घटनाएं समाचारों की सुर्खियां बनती रहती हैं.

शासनप्रशासन की मदद से फलफूल रहा अंधविश्वास

देश में सरकारी तंत्र अंधविश्वास रोकने के बजाय फैलाने में अहम भूमिका निभा रहा है. पांढुरना का गोटमार मेला हो या हिंगोट युद्ध, सभी में पुलिस प्रशासन मूकदर्शक बन कर इन‌ दकियानूसी परंपराओं को खादपानी देने का काम कर रहा है. कोविड 19 वायरस को भगाने के लिए जब दीपक जला कर ताली और घंटेघड़ियाल बजाने का टोटका देश के प्रधानमंत्री खुद ही जनता को बताते हों, उस देश में वैज्ञानिक सोच भला कैसे विकसित होगी.

देश के नागरिकों की बुनियादी आवश्यकता शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और सड़क की है. इस के लिए सरकार को इंजीनियरिंग और मैडिकल कालेज खोलने के साथ साफ पानी और भरपूर बिजली के साथ कहीं भी आनेजाने के लिए अच्छी सड़कें मुहैया कराने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, मगर विडंबना यह है कि सरकार इन सब को छोड़ कर बड़ीबड़ी मूर्तियां और मंदिर बनाने पर तुली हुई है.

धार्मिक रंग में पूरी तरह रंगी सरकार की सोच यह है कि देश के पढ़ेलिखे नौजवानों को नौकरी के बजाय धार्मिक रैली, जुलूस, कांवड़यात्रा, भंडारे और आरती में उलझा कर उन्हें तार्किक न बनने दिया जाए. यही वजह है कि आज भी देश में अंधविश्वास और दकियानूसी परंपराओं का बोलबाला है.

उज्जैन में अघौरी बाबाओं द्वारा की जाने वाली तंत्र साधना और टीवी चैनलों द्वारा किया जाने वाला सीधा प्रसारण समाज में अंधविश्वास और पाखंड को फलनेफूलने में खादबीज का काम कर रहा है. चंद्रगृहण और सूर्यगृहण को आज भी लोग खगोलीय घटना न मान कर धर्म और आस्था से जोड़ कर अपनी अंधभक्ति का प्रमाण दे रहे हैं. अखबारों में रोज राशिफल देखने वाले और जन्मकुंडली में गृहदशा सुधारने के लिए ज्योतिषियों के चक्कर लगाने वाले लोग विज्ञान और आधुनिक टैक्नोलौजी पर बड़ीबड़ी तार्किक बातें तो करते हैं लेकिन अंधविश्वास और पाखंड के चक्रव्यूह गहरे फंसे हुए हैं.

समाचारपत्रों में तांत्रिकों द्वारा बच्चों की बलि देने या महिलाओं का यौनशोषण करने, डायन होने का आरोप लगा कर महिलाओं की हत्या करने तथा झाड़फूंक, जादूटोना और गंडा-ताबीज द्वारा लोगों को ठगने की खबरें अकसर आती रहती हैं. अखबारों में बंगाली बाबा, तांत्रिक, चमत्कारी पुरुष, ज्योतिषाचार्य के विज्ञापन तो छपते ही हैं.

अंधविश्वास को बढ़ावा देने में कट्टरपंथी हिंदुत्ववादियों का रोल काफी अहम है. अंधविश्वास और धार्मिक पाखंडों का यदि कोई विरोध करने का प्रयास करता है, तो ये कट्टरपंथी उन पर हमला कर उन की जान लेने पर आमादा हो जाते हैं. पिछले कुछ सालों में अंधविश्वासों के विरुद्ध अभियान चलाने वाली गौरी लंकेश की कर्नाटक में तथा गोविंद पंसारे व नरेंद्र दाभोलकर की महाराष्ट्र में हत्या कर दी गई. जांच करने पर यह पाया गया कि इन के हत्यारे दक्षिणपंथी तथाकथित हिंदुत्ववादियों के समर्थक थे. कई स्थानों पर कट्टर इसलाम के प्रचारकों ने भी अंधविश्वासों के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने वालों पर हमले किए. जैसे, अफगानिस्तान में तालिबानियों ने पोलियो के विरुद्ध चलाए गए अभियान के विरुद्ध दुष्प्रचार किया व दवा पिलाने वालों की हत्या तक कर दी थी.

महाराष्ट्र में बना है अंधविश्वास रोकने का कानून

आज भी समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो झूठे चमत्कार दिखा कर लोगों को ठगते हैं. अधिकांश लोगों ने अपने जीवन में कभी न कभी इस तरह के चमत्कारों के फेर में पड़ कर धोखा खाया है. अंधविश्वास रोकने के लिए कानून पूरे भारत में केवल महाराष्ट्र में लागू किया गया है. इस कानून को लागू करवाने में अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष श्याम मानव ने बड़ी मेहनत से काम किया है और इस के लिए उन्हें पूर्व न्यायाधीश बी जी कोलसे पाटिल और पी बी सावंत का समर्थन भी मिला है.

यह कानून कई वर्षों के कठिन संघर्ष के बाद बनाया गया है. महाराष्ट्र की तरह यह कानून देश के बाकी राज्यों में लागू होना चाहिए, ताकि लोगों को धोखा देने वाले पाखंडी बाबा और तांत्रिकों को सबक सिखाया जा सके.

महाराष्ट्र में 2013 से जादूटोना विरोधी कानून बना हुआ है. इस जादूटोना विरोधी कानून में कुल 12 धाराएं हैं. ये 12 धाराएं इस पूरे कानून की प्रकृति बताती हैं कि कानून तोड़ने के लिए क्या किया जाता है और कानून तोड़ने की सजा क्या है. इस अधिनियम के साथ एक अनुसूची दी गई है. अनुसूची में उल्लिखित 12 विषयों में से 12 का उल्लंघन करने पर कम से कम 6 महीने की सजा और 5,000 रुपए का जुर्माना व अधिकतम 7 साल और 50,000 रुपए का जुर्माना हो सकता है. साथ ही, यह अपराध संज्ञेय और गैरजमानती है. इसलिए आरोपी को थाने से जमानत नहीं मिल सकती. उसे अदालत से जमानत लेनी होगी और दोषी पाए जाने पर आरोपी को कारावास और आर्थिक दंड दोनों का सामना करना पड़ेगा. मानव बलि और अन्य अमानवीय, घृणित और अवांछनीय प्रथाओं व जादूटोना पर वितरण, प्रकाशन, प्रेरणा और सहयोग करना कानून के तहत एक अपराध है. यह अफवाह फैलाना भी अपराध है कि कुछ जगहों पर चमत्कार हो रहे हैं.

अंधविश्वास के चलते हुई ये घटनाएं यह साबित करती हैं कि अंधविश्वास हमारे आसपास चारों ओर बिखरा पड़ा है. इन में बिल्ली का रास्ता काटना, रास्ते में खाली घड़ा दिखाई देना, शुभकार्य के दौरान विधवा या बांझ के दर्शन होना, पूजापाठ के दौरान दीपक का बुझ जाना, घाव में कीड़े पड़ना, कुत्ते का रोना, दरवाजे पर नीबूमिर्च, काला कंगन, लाल रिबन या काला पुतला टांगना, दूल्हे को लोहा पकड़ाना, खाट या चप्पलों का उलटा पड़ा होना, बरतनों का टकराना, दूध का फटना, टूटे हुए आईने में शक्ल देखना, कछुआ या कछुए की मूर्ति घर में रखना आदि भी अंधविश्वास की श्रेणी में आते हैं. इन का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. विज्ञान पढ़नेपढ़ाने मात्र से कुछ नहीं होता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करना जरूरी है.

एक तीर दो शिकार : आरती ने किस की अक्ल ठिकाने लगाई

अटैची हाथ में पकड़े आरती ड्राइंगरूम में आईं तो राकेश और सारिका चौंक कर खडे़ हो गए.

‘‘मां, अटैची में क्या है?’’ राकेश ने माथे पर बल डाल कर पूछा.

‘‘फ्रिक मत कर. इस में तेरी बहू के जेवर नहीं. बस, मेरा कुछ जरूरी सामान है,’’ आरती ने उखड़े लहजे में जवाब दिया.

‘‘किस बात पर गुस्सा हो?’’

अपने बेटे के इस प्रश्न का आरती ने कोई जवाब नहीं दिया तो राकेश ने अपनी पत्नी की तरफ प्रश्नसूचक निगाहों से देखा.

‘‘नहीं, मैं ने मम्मी से कोई झगड़ा नहीं किया है,’’ सारिका ने फौरन सफाई दी, लेकिन तभी कुछ याद कर के वह बेचैन नजर आने लगी.

राकेश खामोश रह कर सारिका के आगे बोलने का इंतजार करने लगा.

‘‘बात कुछ खास नहीं थी…मम्मी फ्रिज से कल रात दूध निकाल रही थीं…मैं ने बस, यह कहा था कि सुबह कहीं मोहित के लिए दूध कम न पड़ जाए…कल चाय कई बार बनी…मुझे कतई एहसास नहीं हुआ कि उस छोटी सी बात का मम्मी इतना बुरा मान जाएंगी,’’ अपनी बात खत्म करने तक सारिका चिढ़ का शिकार बन गई.

‘‘मां, क्या सारिका से नाराज हो?’’ राकेश ने आरती को मनाने के लिए अपना लहजा कोमल कर लिया.

‘‘मैं इस वक्त कुछ भी कहनेसुनने के मूड में नहीं हूं. तू मुझे राजनगर तक का रिकशा ला दे, बस,’’ आरती की नाराजगी उन की आवाज में अब साफ झलक उठी.

‘‘क्या आप अंजलि दीदी के घर जा रही हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘बेटी के घर अटैची ले कर रहने जा रही होे?’’ राकेश ने बड़ी हैरानी जाहिर की.

‘‘जब इकलौते बेटे के घर में विधवा मां को मानसम्मान से जीना नसीब न हो तो वह बेटी के घर रह सकती है,’’ आरती ने जिद्दी लहजे में दलील दी.

‘‘तुम गुस्सा थूक दो, मां. मैं सारिका को डांटूंगा.’’

‘‘नहीं, मेरे सब्र का घड़ा अब भर चुका है. मैं किसी हाल में नहीं रुकूंगी.’’

‘‘कुछ और बातें भी क्या तुम्हें परेशान और दुखी कर रही हैं?’’

‘‘अरे, 1-2 नहीं बल्कि दसियों बातें हैं,’’ आरती अचानक फट पड़ीं, ‘‘मैं तेरे घर की इज्जतदार बुजुर्ग सदस्य नहीं बल्कि आया और महरी बन कर रह गई हूं…मेरा स्वास्थ्य अच्छा है, तो इस का मतलब यह नहीं कि तुम महरी भी हटा दो…मुझे मोहित की आया बना कर आएदिन पार्टियों में चले जाओ…तुम दोनों के पास ढंग से दो बातें मुझ से करने का वक्त नहीं है…उस शाम मेरी छाती में दर्द था तो तू डाक्टर के पास भी मुझे नहीं ले गया…’’

‘‘मां, तुम्हें बस, एसिडिटी थी जो डाइजीन खा कर ठीक भी हो गई थी.’’

‘‘अरे, अगर दिल का दौरा पड़ने का दर्द होता तो तेरी डाइजीन क्या करती? तुम दोनों के लिए अपना आराम, अपनी मौजमस्ती मेरे सुखदुख का ध्यान रखने से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. मेरी तो मेरी तुम दोनों को बेचारे मोहित की फिक्र भी नहीं. अरे, बच्चे की सारी जिम्मेदारियां दादी पर डालने वाले तुम जैसे लापरवाह मातापिता शायद ही दूसरे होंगे,’’ आरती ने बेझिझक उन्हें खरीखरी सुना दीं.

‘‘मम्मी, हम इतने बुरे नहीं हैं जितने आप बता रही हो. मुझे लगता है कि आज आप तिल का ताड़ बनाने पर आमादा हो,’’ सारिका ने बुरा सा मुंह बना कर कहा.

‘‘अच्छे हो या बुरे, अब अपनी घरगृहस्थी तुम दोनों ही संभालो.’’

‘‘मैं आया का इंतजाम कर लूं, फिर आप चली जाना.’’

‘‘जब तक आया न मिले तुम आफिस से छुट्टी ले लेना. मोहित खेल कर लौट आया तो मुझे जाते देख कर रोएगा. चल, रिकशा करा दे मुझे,’’ आरती ने सूटकेस राकेश को पकड़ाया और अजीब सी अकड़ के साथ बाहर की तरफ चल पड़ीं.

‘पता नहीं मां को अचानक क्या हो गया? यह जिद्दी इतनी हैं कि अब किसी की कोई बात नहीं सुनेंगी,’ बड़बड़ाता हुआ राकेश अटैची उठा कर अपनी मां के पीछे चल पड़ा.

परेशान सारिका को नई आया का इंतजाम करने के लिए अपनी पड़ोसिनों की मदद चाहिए थी. वह उन के घरों के फोन नंबर याद करते हुए फोन की तरफ बढ़ चली.

करीब आधे घंटे के बाद आरती अपने दामाद संजीव के घर में बैठी हुई थीं. अपनी बेटी अंजलि और संजीव के पूछने पर उन्होंने वही सब दुखड़े उन को सुना दिए जो कुछ देर पहले अपने बेटेबहू को सुनाए थे.

‘‘आप वहां खुश नहीं हैं, इस का कभी एहसास नहीं हुआ मुझे,’’ सारी बातें सुन कर संजीव ने आश्चर्य व्यक्त किया.

‘‘अपने दिल के जख्म जल्दी से किसी को दिखाना मेरी आदत नहीं है, संजीव. जब पानी सिर के ऊपर हो गया, तभी अटैची ले कर निकली हूं,’’ आरती का गला रुंध गया.

‘‘मम्मी, यह भी आप का ही घर है. आप जब तक दिल करे, यहां रहें. सोनू और प्रिया नानी का साथ पा कर बहुत खुश होंगे,’’ संजीव ने मुसकराते हुए उन्हें अपने घर में रुकने का निमंत्रण दे दिया.

‘‘यहां बेटी के घर में रुकना मुझे अच्छा…’’

‘‘मां, बेकार की बातें मत करो,’’ अंजलि ने प्यार से आरती को डपट दिया, ‘‘बेटाबेटी में यों अंतर करने का समय अब नहीं रहा है. जब तक मैं उस नालायक राकेश की अक्ल ठिकाने न लगा दूं, तब तक तुम आराम से यहां रहो.’’

‘‘बेटी, आराम करने के चक्कर में फंस कर ही तो मैं ने अपनी यह दुर्गति कराई है. अब आराम नहीं, मैं काम करूंगी,’’ आरती ने दृढ़ स्वर में मन की इच्छा जाहिर की.

‘‘मम्मी, इस उम्र में क्या काम करोगी आप? और काम करने के झंझट में क्यों फंसना चाहती हो?’’ संजीव परेशान नजर आने लगा.

‘‘काम मैं वही करूंगी जो मुझे आता है,’’ आरती बेहद गंभीर हो उठीं, ‘‘जब अंजलि के पापा इस दुनिया से अकस्मात चले गए तब यह 8 और राकेश 6 साल के थे. मैं ससुराल में नहीं रही क्योेंकि मुझ विधवा की उस संयुक्त परिवार में नौकरानी की सी हैसियत थी.

‘‘अपने आत्मसम्मान को बचाए रखने के लिए मैं ने ससुराल को छोड़ा. दिन में बडि़यांपापड़ बनाती और रात को कपड़े सिलती. आज फिर मैं सम्मान से जीना चाहती हूं. अपने बेटेबहू के सामने हाथ नहीं फैलाऊंगी. कल सुबह अंजलि मुझे ले कर शीला के पास चलेगी.’’

‘‘यह शीला कौन है?’’ संजीव ने उत्सुकता दर्शाई.

‘‘मेरी बहुत पुरानी सहेली है. उस नेबडि़यांपापड़ बनाने का लघुउद्योग कायम कर रखा है. वह मुझे भी काम देगी. अगर रहने का इंतजाम भी उस ने कर दिया तो मैं यहां नहीं…’’

‘‘नहीं, मां, तुम यहीं रहोगी,’’ अंजलि ने उन्हें अपनी बात पूरी नहीं करने दी और आवेश भरे लहजे में बोली,  ‘‘जिस घर में तुम्हारे बेटाबहू ठाट से रह रहे हैं, वह घर आज भी तुम्हारे नाम है. अगर बेघर हो कर किसी को धक्के खाने ही हैं तो वह तुम नहीं वे होंगे.’’

‘‘तू इतना गुस्सा मत कर, बेटी.’’

‘‘मां, तुम ने कभी अपने दुखदर्द की तरफ पहले जरा सा इशारा किया होता तो अब तक मैं ने राकेश और सारिका के होश ठिकाने लगा दिए होते.’’

‘‘अब मैं काम करना शुरू कर के आत्मनिर्भर हो जाऊंगी तो सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘मुझे तुम पर गर्व है, मां,’’ आरती के गले लग कर अंजलि ने अपने पति को बताया, ‘‘मुझे वह समय याद है जब मां अपना सुखचैन भुला कर दिनरात मेहनत करती थीं. हमें ढंग से पालपोस कर काबिल बनाने की धुन हमेशा इन के सिर पर सवार रहती थी.

‘‘आज राकेश बैंक आफिसर और मैं पोस्टग्रेजुएट हूं तो यह मां की मेहनत का ही फल है. लानत है राकेश पर जो आज वह मां की उचित देखभाल नहीं कर रहा है.’’

‘‘मेरी यह बेटी भी कम हिम्मती नहीं है, संजीव,’’ आरती ने स्नेह से अंजलि का सिर सहलाया, ‘‘पापड़बडि़यां बनाने में यह मेरा पूरा हाथ बटाती थी. पढ़ने में हमेशा अच्छी रही. मेरा बुरा वक्त न होता तो जरूर डाक्टर बनती मेरी गुडि़या.’’

‘‘आप दोनों बैठ कर बातें करो. मैं जरा एक बीमार दोस्त का हालचाल पूछने जा रहा हूं. मम्मी, आप यहां रुकने में जरा सी भी हिचक महसूस न करें. राकेश और सारिका को मैं समझाऊंगा तो सब ठीक हो जाएगा,’’ संजीव उन के बीच से उठ कर अपने कमरे में चला गया.

कुछ देर बाद वह तैयार हो कर बाहर चला गया. उस के बदन से आ रही इत्र की खुशबू को अंजलि ने तो नहीं, पर आरती ने जरूर नोट किया.

‘‘कौन सा दोस्त बीमार है संजीव का?’’ आरती ने अपने स्वर को सामान्य रखते हुए अंजलि से पूछा.

‘‘मुझे पता नहीं,’’ अंजलि ने लापरवाह स्वर में जवाब दिया.

‘‘बेटी, पति के दोस्तों की…उस के आफिस की गतिविधियों की जानकारी हर समझदार पत्नी को रखनी चाहिए.’’

‘‘मां, 2 बच्चों को संभालने में मैं इतनी व्यस्त रहती हूं कि इन बातों के लिए फुर्सत ही नहीं बचती.’’

‘‘अपने लिए वक्त निकाला कर, बनसंवर कर रहा कर…कुछ समय वहां से बचा कर संजीव को खुश करने के लिए लगाएगी तो उसे अच्छा लगेगा.’’

‘‘मैं जैसी हूं, उन्हें बेहद पसंद हूं, मां. तुम मेरी फिक्र न करो और यह बताओ कि क्या कल सुबह तुम सचमुच शीला आंटी के पास काम मांगने जाओगी?’’ अपनी आंखों में चिंता के भाव ला कर अंजलि ने विषय परिवर्तन कर दिया था.

आरती काम पर जाने के लिए अपने फैसले पर जमी रहीं. उन के इस फैसले का अंजलि ने स्वागत किया.

रात को राकेश और सारिका ने आरती से फोन पर बात करनी चाही, पर वह तैयार नहीं हुईं.

अंजलि ने दोनों को खूब डांटा. सारिका ने उस की डांट खामोश रह कर सुनी, पर राकेश ने इतना जरूर कहा, ‘‘मां ने कभी पहले शिकायत का एक शब्द भी मुंह से निकाला होता तो मैं जरूर काररवाई करता. मुझे सपना तो नहीं आने वाला था कि वह घर में दुख और परेशानी के साथ रह रही हैं. उन्हें घर छोड़ने से पहले हम से बात करनी चाहिए थी.’’

अंजलि ने जब इस बारे में मां से सवाल किया तो वह नींद आने की बात कह सोने चली गईं. उन के सोने का इंतजाम सोनू और प्रिया के कमरे में किया गया था.

उन दोनों बच्चों ने नानी से पहले एक कहानी सुनी और फिर लिपट कर सो गए. आरती को मोहित बहुत याद आ रहा था. इस कारण वह काफी देर से सो सकी थीं.

अगले दिन बच्चों को स्कूल और संजीव को आफिस भेजने के बाद अंजलि मां के साथ शीला से मिलने जाने के लिए घर से निकली थी.

शीला का कुटीर उद्योग बड़ा बढि़या चल रहा था. घर की पहली मंजिल पर बने बडे़ हाल में 15-20 औरतें बडि़यांपापड़ बनाने के काम में व्यस्त थीं.

वह आरती के साथ बड़े प्यार से मिलीं. पहले उन्होंने पुराने वक्त की यादें ताजा कीं. चायनाश्ते के बाद आरती ने उन्हें अपने आने का मकसद बताया तो वह पहले तो चौंकीं और फिर गहरी सांस छोड़ कर मुसकराने लगीं.

‘‘अगर दिल करे तो अपनी परेशानियों की चर्चा कर के अपना मन जरूर हलका कर लेना, आरती. कभी तुम मेरा सहारा बनी थीं और आज फिर तुम्हारा साथ पा कर मैं खुश हूं. मेरा दायां हाथ बन कर तुम चाहो तो आज से ही काम की देखभाल में हाथ बटाओ.’’

अपनी सहेली की यह बात सुन कर आरती की पलकें नम हो उठी थीं.

आरती और अंजलि ने वर्षों बाद पापड़बडि़यां बनाने का काम किया. उन दोनों की कुशलता जल्दी ही लौट आई. बहुत मजा आ रहा था दोनों को काम करने में.

कब लंच का समय हो गया उन्हें पता ही नहीं चला. अंजलि घर लौट गई क्योंकि बच्चों के स्कूल से लौटने का समय हो रहा था. आरती को शीला ने अपने साथ खाना खिलाया.

आरती शाम को घर लौटीं तो बहुत प्रसन्न थीं. संजीव को उन्होंने अपने उस दिन के अनुभव बडे़ जोश के साथ सुनाए.

रात को 8 बजे के करीब राकेश और सारिका मोहित को साथ ले कर वहां आ पहुंचे. उन को देख कर अंजलि का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया.

बड़ी कठिनाई से संजीव और आरती उस के गुस्से को शांत कर पाए. चुप होतेहोते भी अंजलि ने अपने भाई व भाभी को खूब खरीखोटी सुना दी थीं.

‘‘मां, अब घर चलो. इस उम्र में और हमारे होते हुए तुम्हें काम पर जाने की कोई जरूरत नहीं है. दुनिया की नजरों में हमें शर्मिंदा करा कर तुम्हें क्या मिलेगा?’’ राकेश ने आहत स्वर में प्रश्न किया.

‘‘मैं इस बारे में कुछ नहीं कहनासुनना चाहती हूं. तुम लोग चाय पिओ, तब तक मैं मोहित से बातें कर लूं,’’ आरती ने अपने 5 वर्षीय पोते को गोद में उठाया और ड्राइंगरूम से उठ कर बच्चों के कमरे में चली आईं.

उस रात राकेश और सारिका आरती को साथ वापस ले जाने में असफल रहे. लौटते समय दोनों का मूड बहुत खराब हो रहा था.

‘‘मम्मी अभी गुस्से में हैं. कुछ दिनों के बाद उन्हें समझाबुझा कर हम भेज देंगे,’’ संजीव ने उन्हें आश्वासन दिया.

‘‘उन्हें पापड़बडि़यां बनाने के काम पर जाने से भी रोको, जीजाजी,’’ राकेश ने प्रार्थना की, ‘‘जो भी इस बात को सुनेगा, हम पर हंसेगा.’’

‘‘राकेश, मेहनत व ईमानदारी से किए जाने वाले काम पर मूर्ख लोग ही हंसते हैं. मां ने यही काम कर के हमें पाला था. कभी जा कर देखना कि शीला आंटी के यहां काम करने वाली औरतों के चेहरों पर स्वाभिमान और खुशी की कैसी चमक मौजूद रहती है. थोड़े से समय के लिए मैं भी वहां रोज जाया करूंगी मां के साथ,’’ अपना फैसला बताते हुए अंजलि बिलकुल भी नहीं झिझकी थी.

बाद में संजीव ने उसे काम पर न जाने के लिए कुछ देर तक समझाया भी, पर अंजलि ने अपना फैसला नहीं बदला.

‘‘मेरी बेटी कुछ मामलों में मेरी तरह से ही जिद्दी और धुन की पक्की है, संजीव. यह किसी पर अन्याय होते भी नहीं देख सकती. तुम नाराज मत हो और कुछ दिनों के लिए इसे अपनी इच्छा पूरी कर लेने दो. घर के काम का हर्जा, इस का हाथ बटा कर मैं नहीं होने दूंगी. तुम बताओ, तुम्हारे दोस्त की तबीयत कैसी है?’’ आरती ने अचानक विषय परिवर्तन कर दिया.

‘‘मेरे दोस्त की तबीयत को क्या हुआ है?’’ संजीव चौंका.

‘‘अरे, कल तुम अपने एक बीमार दोस्त का हालचाल पूछने गए थे न.’’

‘‘हां, हां…वह…अब ठीक है…बेहतर है…’’ अचानक बेचैन नजर आ रहे संजीव ने अखबार उठा कर उसे आंखों के सामने यों किया मानो आरती की नजरों से अपने चेहरे के भावों को छिपा रहा हो.

आरती ने अंजलि की तरफ देखा पर उस का ध्यान उन दोनों की तरफ न हो कर प्रिया की चोटी खोलने की तरफ लगा हुआ था.

आरती के साथ अंजलि भी रोज पापड़बडि़यां बनाने के काम पर जाती. मां शाम को लौटती पर बेटी 12 बजे तक लौट आती. दोनों इस दिनचर्या से बेहद खुश थीं. मोहित को याद कर के आरती कभीकभी उदास हो जातीं, नहीं तो बेटी के घर उन का समय बहुत अच्छा बीत रहा था.

आरती को वापस ले जाने में राकेश और सारिका पूरे 2 हफ्ते के बाद सफल हुए.

‘‘आया की देखभाल मोहित के लिए अच्छी नहीं है, मम्मी. वह चिड़चिड़ा और कमजोर होता जा रहा है. सारा घर आप की गैरमौजूदगी में बिखर सा गया है. मैं हाथ जोड़ कर प्रार्थना करती हूं…अपनी सारी गलतियां सुधारने का वादा करती हूं…बस, अब आप घर चलिए, प्लीज,’’ हाथ जोड़ कर यों विनती कर रही बहू को आरती ने अपनी छाती से लगाया और घर लौटने को राजी हो गईं.

अंजलि ने पहले ही यह सुनिश्चित करवा लिया कि घर में झाड़ूपोछा करने व बरतन मांजने वाली बाई आती रहेगी. वह तो आया को भी आगे के लिए रखवाना चाहती थी पर इस के लिए आरती ही तैयार नहीं हुईं.

‘‘मैं जानती थी कि आज मुझे लौटना पडे़गा. इसीलिए मैं शीला से 15 दिन की अपनी पगार ले आई थी. अब हम सब पहले बाजार चलेंगे. तुम सब को अपने पैसों से मैं दावत दूंगी…और उपहार भी,’’ आरती की इस घोषणा को सुन कर बच्चों ने तालियां बजाईं और खुशी से मुसकरा उठे.

आरती ने हर एक को उस की मनपसंद चीज बाजार में खिलवाई. संजीव और राकेश को कमीज मिली. अंजलि और सारिका ने अपनी पसंद की साडि़यां पाईं. प्रिया ने ड्रेस खरीदी. सोनू को बैट मिला और मोहित को बैटरी से चलने वाली कार.

वापस लौटने से पहले आरती ने अकेले संजीव को साथ लिया और उस आलीशान दुकान में घुस गइ्रं जहां औरतों की हर प्रसाधन सामग्री बिकती थी.

‘‘क्या आप यहां अपने लिए कुछ खरीदने आई हैं, मम्मी?’’ संजीव ने उत्सुकता जताई.

‘‘नहीं, यहां से मैं कुछ बरखा के लिए खरीदना चाहती हूं,’’ आरती ने गंभीर लहजे में जवाब दिया.

‘‘बरखा कौन?’’ एकाएक ही संजीव के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम्हारी दोस्त जो मेरी सहेली उर्मिला के फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में रहती है…वही बरखा जिस से मिलने तुम अकसर उस के फ्लैट पर जाते हो..जिस के साथ तुम ने गलत तरह का रिश्ता जोड़ रखा है.’’

‘‘मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं…’’

‘‘संजीव, प्लीज. झूठ बोलने की कोशिश मत करो और मेरी यह चेतावनी ध्यान से सुनो,’’ आरती ने उस की आंखों में आंखें डाल कर सख्त स्वर में बोलना शुरू किया, ‘‘अंजलि तुम्हारे प्रति…घर व बच्चों के प्रति पूरी तरह से समर्पित है. पिछले दिनों में तुम्हें इस बात का अंदाजा हो गया होगा कि वह अन्याय के सामने चुप नहीं रह सकती…मेरी बेटी मानसम्मान से जीने को सब से महत्त्वपूर्ण मानती है.

‘‘उसे बरखा  की भनक भी लग गई तो तुम्हें छोड़ देगी. मेरी बेटी सूखी रोटी खा लेगी, पर जिएगी इज्जत से. जैसे मैं ने बनाया, वैसे ही वह भी पापड़बडि़यां बना कर अपने बच्चों को काबिल बना लेगी.

‘‘आज के बाद तुम कभी बरखा के फ्लैट पर गए तो मैं खुद तुम्हारा कच्चा चिट्ठा अंजलि के सामने खोलूंगी. तुम्हें मुझे अभी वचन देना होगा कि तुम उस से संबंध हमेशा के लिए समाप्त कर लोगे. अगर तुम ऐसा नहीं करते हो, तो अ%

मौर्निंग सैक्स के फायदे

प्यार करने वालों को कहां पता होता है कि प्यार करने का भी कोई वक्त होता है, उन्हें तो बस प्यार करने से मतलब होता है. आजकल के कपल्स सैक्स को सिर्फ एक प्रोसेस न समझ कर सैक्स को अच्छे से ऐंजौय और पूरी फील के साथ करने में विश्वास रखते हैं और इस के लिए कुछ कपल्स तो पूरी रिसर्च करते हैं कि सैक्स को किस तरफ से ऐंजौय किया जा सकता है.

मौर्निंग सैक्स के हैं बहुत फायदे

कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि सैक्स का वक्त सिर्फ रात का होता है और सोने से पहले सैक्स करना चाहिए पर यह बात पूरी तरह से गलत है. सैक्स को सुबह भी ऐंजौय कर सकते हैं.

पूरे दिन के थके हुए हम जब औफिस या अपने काम से घर आते हैं और खाना खाने के बाद सैक्स करने लगते हैं तो हमारी बौडी में पूरी तरह से ऐनर्जी नहीं रहती कि हम अपने पूरे पोटेंशियल से सैक्स कर पाएं.

तो ज्यादा देर तक कर पाएंगे सैक्स

ऐसे में अगर हम मौर्निंग में उठ कर सैक्स करते हैं तो हमारी बौडी पूरी तरह से चार्ज्ड होती है और हम अपनी पूरी ऐनर्जी के साथ सैक्स कर पाते हैं. रात के अकौर्डिंग सुबह हम देर तक सैक्स कर पाते हैं जिस से कि हमारी सैक्स लाइफ और भी ज्यादा मजेदार बन जाती है.

मौर्निंग सैक्स हमारी बौडी के लिए एक तरह से वर्कआउट का भी काम करता है क्योंकि सैक्स करते समय हम काफी ऐनर्जैटिक होते हैं तो ऐसे में हमारी बौडी का एक अच्छा वर्कआउट भी हो जाता है.

जवान रहने के लिए

नाइट सैक्स की तुलना में मौर्निंग सैक्स एक अच्छा स्ट्रैस रिलीवर माना गया है यानि कि सुबह सैक्स करने से हमारे दिमाग का स्ट्रैस गायब हो जाता है और पूरा दिन खुशहाल रहता है. और तो और मौर्निंग सैक्स हमें ज्यादा समय तक जवान रखता है.

स्टडीज बताती हैं कि मौर्निंग सैक्स हमें जवान दिखने में मदद करता है और इस से हमारा इम्यून सिस्टम भी बूस्ट होता है.

बिस्तर छोड़ने से पहले पत्नी को लें बांहों में

अगर आप ने अभी तक मौर्निंग सैक्स ट्राई नहीं किया है तो आप बहुत कुछ मिस कर रहे हैं. आप को मौर्निंग सैक्स जरूर ट्राई करना चाहिए और सुबर बिस्तर से उठने से पहले अपनी पत्नी को अपनी बांहों में भर लेना चाहिए जिस से कि आप दोनों सैक्स का एक अलग ही आनंद ले पाएं.

सफाई अभियान : देशमुखजी ने बाजी हारनी नहीं सीखी थी

पांडुरावजी रात भर सो नहीं पाए थे. बात ही ऐसी हो गई थी. देशमुखजी ने कल रात की बैठक में उन पर जो हमला किया था, उस से वह तिलमिला गए थे. हां, देशमुख ही कह रहे थे, ‘‘इतनी गंदगी शहर में है कि नागरिकों का रहना मुश्किल हो गया है. सड़कों पर गड्ढे, खंबों पर बल्ब नहीं, ट्यूब लाइटें बंद पड़ी हैं. सारा शहर सड़ रहा है. लगता है प्रशासन ही सो गया है. मैं तो राज्य सरकार से अपील करूंगा कि बोर्ड ही भंग कर दिया जाए.’’ ‘‘बोर्ड भंग कर दिया जाए…बोर्ड भंग…’’

पांडुरावजी की नींद गायब हो गई थी. समाचारपत्र में छपा था, ‘‘पिछले साल 16 इस साल 56 फिर भी शहर गंदा.’’

उधर गाएं चारे के अभाव में गोशाला में मर रही थीं. हर वार्ड के सदस्य कुश्ती पर उतारू हो गए थे. बहन तारा व कसारा तो पांडुरावजी से ही लड़ गई थीं. सुबह उठते ही उन्होंने दरवाजे पर खड़ी नगर परिषद की कार को देखा. देखते ही रह गए. मोह आया, गाय जैसे बछड़े को चाटती है उसे हाथ से सहलाते रहे…गाय जड़ थी नहीं तो रंभा जाती.

माली आ गया था. जमादार बाहर सड़क पर हरिजनों को डांट रहा था. ‘हूं, यह हुकूमत ही तो देशमुख को चुभ गई है.’ वह बड़बड़ाए. टेलीफोन पर हाथ गया. रिसीवर उठाया. कमिश्नर को आने को तुरंत कह कर तैयार होने चले गए.

सक्सेनाजी की रात, मीठे सपनों में गुजर गई थी. कल की बैठक क्या हुई, लगा मानो शीरनी बरस रही हो. हैल्थ आफिसर पांडे पास ही बैठा था. बोला, ‘‘सर, अभियान हो जाए.’’ ‘‘सफाई अभियान,’’ गुप्ता चीफ सेनेटरी इंस्पेक्टर उछल गया था.

‘‘साल भर हो गया, कुछ तो होना ही चाहिए. जो कुछ अब तक हुआ वह तो ऊंट के मुंह में जीरा ही गया.’’ सक्सेना बाबू मीटिंग के बाद इसी उधेड़बुन में लग गए थे और वह चेयरमैन के घर की जगह देशमुख के घर चले गए थे. साथ में पांडेजी भी थे.

देशमुख चौंके, ‘‘आप?’’ ‘‘आप ने क्या भाषण दिया, मजा ही आ गया,’’ पांडेजी बोले.

‘‘वास्तव में शहर सड़ने लग गया है.’’ ‘‘पर जिम्मेदारी आप की है.’’

‘‘साहब, हम क्या करें, 150 हरिजनों की स्टाफ पेटर्न में जरूरत है पर यहां भरती 100 से अधिक नहीं है. जमादार का पद खाली है. एस.आई. नहीं है, आप ने कभी हमारी तकलीफ भी जानी है.’’ ‘‘वह तो है ही.’’

‘‘इधर फिनायल नहीं है. लाइट के सामान का आर्डर इस बार बाहर भिजवा दिया गया है. माल का पता नहीं. 3 बार आदमी गया है, आप भी बताइए…’’ ‘‘बिजली का आर्डर…’’ देशमुख को लगा, घाव पर मरहम पांडेजी लगा गए हैं.

अब तक देशमुख की दुकान से सारा सामान जाता था. शिकायत यही थी कि माल डुप्लीकेट हुआ करता था. ट्यूबलाइट ज्यादा टिक नहीं पाती थी. माल की क्वालिटी घटिया थी. पांडुराव ने जले पर नमक छिड़का था. आर्डर सीधा ही कंपनी के डीलर को दे दिया था. उस ने कमीशन देने से मना कर दिया था. अकाउंट आफिसर अलग नाराज था. वह कमीशन के बदले बिल पर ही टे्रड डिस्काउंट दे रहा था. बात यहीं बिगड़ गई थी. अब परिषद ही माल नहीं उठा रही थी.

कमेटी वाले चौराहे पर फ्यूज ट्यूबलाइट लगा रहे थे. जहां आदमी मुखर थे वहां के बल्ब ज्यादा फ्यूज हो रहे थे. बात यहीं तक रहती तो गनीमत थी. पांडुराव ज्यादा ही सख्त हो चले थे. बोले, ‘‘कच्ची भरती बंद…रखना हो तो पक्के आदमी रखो.’’ 50 हरिजनों की स्वीकृति की बात चल रही थी. झगड़ा उस को भी ले कर था. हैल्थ आफिसर ने हरिजन नेताओं से बात कर रखी थी. सौदा पट गया था. पर देशमुख पहले बिजली की खरीद तय करना चाह रहे थे. तय हो चुका था ठेके पर आदमी रखो पर किस के, विधायक महोदय अपने आदमी रखना चाह रहे थे. चुनाव का पता नहीं कब घंटी बज जाए. पांडुराव ने सदस्यों की कमेटियां बनाईं, पर विधायक ने ऊपर से रुकवा दीं. उन के आदमी रह गए थे.

झगड़ा ही झगड़ा. जन सेवा नहीं हुई आग में जलना हो गया है. उधर सत्ता सुख खींच रहा था. इधर कार्यकर्ता भी संभल नहीं रहे थे. देशमुख को पता था कि ताज उन्हीं को पहनना था पर आखिरी समय में सी.एम. का ही मानस बदल गया था. विरोधी कान भर आए थे कि ये आप के नहीं रहेंगे. पांडुरावजी भीड़ में थे, वे विधायक को पटा आए थे, ‘‘सर, मेरा तो कोई गुट है नहीं, मैं तो आप का ही हूं, हमेशा रहूंगा.’’

बस, फिर क्या था, उन का ही नाम आया. आम सहमति बन गई. देशमुख आज काफी खुश थे कि काफी धूल उड़ा आए हैं. अखबार वालों को भी दावत दे आए थे. पत्रकार भी विज्ञापन न मिलने से नाराज थे. नगर परिषद से महीने भर में 10-20 हजार के जो विज्ञापन मिल जाते थे वे भी अब तक नहीं मिले थे. इस बार जो खालीपन आ गया था, वे भी ऊब गए थे. उन को भी कुछ आस बंधने लगी थी.

कमिश्नर अकेले नहीं आए, पांडेजी भी साथ थे. आज देशमुख बहुत खुश थे. पार्टी कार्यकर्ता अभीअभी मिल कर गए थे. शर्मा मेंबर भी बहुत नाराज थे, क्योंकि सफाई का काम वह ही देख रहे थे. सक्सेनाजी और उन की अच्छी पट रही थी, जो पांडे को पसंद नहीं था. समिति तो बन नहीं पाई थी पर मेंबरों का दबाव उन के साथ था. वाइस चेयरमैन तो वह ही थे. पार्टी नेताओं के भी वह चहेते थे. उन्हें हैल्थ आफिसर समझा आए थे, ‘‘महीने भर अभियान चलेगा, तो 20 ट्रैक्टर किराए पर चलेंगे. 500 रुपया रोज से कम किराया नहीं. 20 प्रतिशत कमीशन होता है. आप अपने आदमियों को लगवा दीजिए, जो कचरा निकलेगा वह डंपिंग ग्राउंड में नहीं डलवा कर खेतों में डलवा देंगे. मुनाफा ही मुनाफा है.’’

‘‘सर, यह सोना होता है. खाद 400 रुपए ट्रिप की मिल जाती है. दिन भर में 50 ट्रिप, महीने भर चलेगा. सीजन भी यही है. परिषद के ट्रैक्टर अपना काम अलग करते रहेंगे. सी.एस.आई. सब कर लेगा. सामान भी खरीदना होगा. फिनाइल में कमीशन बढ़ गया है. अभियान में नाली मरम्मत भी हो जाएगी. सहायक अभियंता आप से मिल लेगा. ‘‘40 वार्ड का मामला है. 5 लाख प्रति वार्ड भी खर्च किया तो 2 करोड़ का विकास होगा. आप देख लीजिए, आप वाइस चेयरमैन हैं. गंदगी नहीं हटेगी तो लोग हमें हटा देंगे. आप कुछ भी कीजिए, नहीं तो हम कहीं के नहीं रहेंगे.’’

शर्माजी तभी से अकड़ गए थे. वह पांडुराव से कह आए थे, ‘‘चाहे तो आप पार्टी मीटिंग में वोट करवा लें.’’ देशमुख को सफाई की सारी बात समझ में आ गई थी. पर सफाई से बिजली भी जुड़ी हुई है. बिजली का सामान दुकान से निकल नहीं रहा था. ग्राहकी पहले ही नहीं थी. नाम तो जैसा चाहो लिखवा लो, दिल्ली में सब ठप्पा लग जाता है पर ग्राहक दोबारा कहां आता है. परिषद के चक्कर में मंगाया था, अभी तक सप्लाई यहीं से होती थी पर इस बार पतंग कट गई थी. हां, देशमुख घोषणा कर ही आए थे, ‘‘अगर अभियान नहीं होता है तो वह सदस्यता छोड़ देंगे.’’

शर्माजी कह रहे थे कि वह अपना इस्तीफा पार्टी हाईकमान को भेज रहे हैं. शहर की गंदगी पार्टी के मुंह पर तमाचा है. पांडुरावजी को कमिश्नर ने जब लौन में गंभीर मुद्रा में टहलते देखा तो वे चौंक गए. पांडेजी ने टोका, ‘‘मामला गड़बड़ है.’’

कुरसी पर बैठते ही कमिश्नर चौंक गए. पांडुराव बोले, ‘‘आप तो जानते ही हैं, सक्सेनाजी कि यह आप लोगों का प्रयास ही था, जो मैं चेयरमैन बना. आप से कुछ छिपा नहीं है. कितना खर्च हुआ सब आप को पता है. सोचता हूं अभियान शुरू कर दिया जाए. 1 जून से 1 माह का रख लेते हैं. फिर बारिश आ रही है. नालों की सफाई भी होनी है. शहर में सफाई और सौंदर्यीकरण आवश्यक है. आप लोग हैं ही. तैयारी शुरू कीजिए, सरकार के आदेश भी आने वाले हैं. ‘‘सर,’’ सक्सेनाजी की आंखों में चमक आ गई थी.

‘‘हां, ज्यादा नहीं लाख 2 लाख का उधार है…पुराना चल रहा है. पांडेजी को पता है. वे चुकता करवा देंगे. आप उन से सलाह लें ले. वह जो बताएं वैसी योजना बना लें. देशमुखजी को इस अभियान का संयोजक बनाना है. विधायकजी की यही इच्छा है. आप आदेश निकलवा लें अकाउंटेंट अपना ही आदमी है.’’ तब तक चाय आ गई थी.

कमिश्नर सक्सेना को लगा वह उस खेत की तरह हो गए हैं जिसे भेड़ों का रेवड़ जड़ से चर गया हो और वह परती धरती की तरह रह गए हों, जहां अब कुछ उगने की संभावना ही नहीं रह गई है. पांडेजी पास ही बैठे मुसकरा रहे थे. पांडुराव की आंखों में चमक थी और सक्सेना को लग रहा था, वह चाय नहीं गिलोयसत्व की फंकी लगा गए हों…

बीवी मुझ से ज्यादा कमाती है और आएदिन मुझ पर रोब जमाती है

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सवाल –

मैं और मेरी बीवी दोनों एकदूसरे के काफी अच्छे दोस्त हुआ करते थे. हम दोनों एक ही कंपनी में जौब करते थे और वहीं हमारी पहली मुलाकात हुई थी. देखते ही देखते हम कब एकदूसरे को दिल दे बैठे, नहीं जानते. हम दोनों की एकजैसी पोस्ट होने के कारण एकदूसरे को अच्छी तरह समझने लगे थे. फिर हम ने शादी कर ली. शादी के बाद कुछ समय तो बिलकुल ठीक गुजरा लेकिल हाल ही में मेरी पत्नी को एक मल्टीनैशनल कंपनी से बहुत अच्छा औफर आया जिस में उस को काफी अच्छी सैलेरी मिल रही है. ऐसे में कुछ दिनों से उस का व्यवहार काफी बदलाबदला सा लग रहा है. उस की सैलरी मुझ से अधिक है तो मुझे ऐसा लग रहा है कि वह मुझ पर पैसों का रोब जमाने लगी है. मुझे क्या करना चाहिए ?

जवाब –

जैसाकि आप ने बताया कि आप की बीवी को हाल ही में एक मल्टीनैशनल कंपनी से औफर आया जिसे उन्होनें ऐक्सैप्ट कर लिया तो हो सकता है कि उस जगह काम का काफी प्रेशर रहता हो जिस वजह से वह चिड़चिड़ी रहने लगी हो और आप को ऐसा लग रहा है कि वह आप के ऊपर रोब जमा रही है.

नई जगह काम करना, नए लोगों से मिलना और नए काम को समझने में थोड़ा समय तो लगता ही है। ऐसे में, उन को थोड़ा स्पेस दीजिए और वक्त भी.

अगर आप की बीवी औफिस के साथसाथ घर का भी काम करती है तो ऐसे में तो वह और भी ज्यादा परेशान हो जाती होगी क्योंकि अगर औफिस में ज्यादा काम है और घर आ कर भी काम करती है तो ऐसे में आप को घर के कामों में बीवी की मदद करनी चाहिए.

अगर आप भी अपने काम में बिजी रहते हैं तो आप अपने घर में कामवाली भी लगा सकते हैं जो घर के कामों में बीवी की मदद कर सकें.

अगर फिर भी आप को लगे कि आप की बीवी आप के ऊपर रोब जमा रही है और ठीक से बात नहीं कर रही तो घर के खर्चे आप को उठाने चाहिए जैसेकि इलैक्ट्रिसिटी बिल, बच्चों की पढ़ाई और अपने पेरैंट्स और उन के पैरेंट्स की भी जिम्मेदारी आप उठाएं. आप की बीवी को यह न लगे कि सब खर्चे वह उठा रही है.

अगर आप सारी जिम्मेदारी खुद उठाएंगे तो आप की बीवी आप के ऊपर रोब जमाने से पहले सोचेगी कि आप के घर का खर्चा उन की सैलेरी से नहीं चल रहा.

हो सके तो आप भी अपनी जौब बदल कर किसी अच्छी कंपनी में ट्राई करें जहा आप को भी एक अच्छा पैकेज मिल पाए. दोनों पतिपत्नी अच्छा कमाएंगे तभी इस महंगाई में ठीक से रह पाएंगे.

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सामाजिक असमानता के लिए धर्म जिम्मेदार

धर्म बारबार यह समझाता है कि दान देने वाला बड़ा होता है. दान देते समय यह भी देखा जाता है कि किस ने कितना दिया है. दान देने वाला भी दिखावा करता है. वह चाहता है कि उस के नाम का पत्थर वहां लग जाए जिस से जब तक निर्माण रहे उस का नाम बना रहे. किसी भी मंदिर में ऐसे पत्थरों के शिलापट लिखे देखे जा सकते हैं. जितना बड़ा दान उतना बड़ा नाम लिखा होता है. जो छोटा दान करता है मंदिर वाले उस का नाम तो लिखते ही नहीं, वह खुद भी वहां रखे बौक्स में चुपचाप पैसे दान कर के चला आता है. वहीं ज्यादा दान करने वाला पूरा दिखावा करता है. यहीं सामाजिक असमानता का भाव आना शुरू हो जाता है. आज के समाज में आदमी का बड़प्पन उस के कामों से, सामजिक योगदान से नहीं बल्कि दान से जाना जाता है.

मंदिरों से चल कर यह समाज में, दफ्तरों में, बाजारों में और घरों के अंदर तक आ जाता है. जो घर वालों के लिए महंगे उपहार लाता है उस की कद्र ज्यादा होती है. बड़े बेटे और छोटे बेटे में भेदभाव होता है. घर में रहने वाले और शहर में रहने वाले के बीच अंतर होता है.

क्यों बराबर नहीं होता हर भक्त

कहते हैं कि भगवान के घर भेदभाव नहीं होता, हर भक्त बराबर होता है. बात दान की रकम में इनकम टैक्स से छूट की हो या फिर वीआईपी दर्शन की, यह भेदभाव-असमानता हर जगह पर दिखाई देता है. ऐसे में दिखावा करने वाले लोग अपनी क्षमता से अधिक खर्च करते हैं. मंदिरों में वीआईपी दर्शन की एक नई संस्कृति का उदय हो चुका है. वीआईपी दर्शन उन लोगों के लिए है जो लोग एक विशेष शुल्क देते हैं.

भगवान के दरबार में भी 2 तरह की व्यवस्थाएं हो गईं. एक, आम जनता के लिए और एक, उन लोगों के लिए जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं. यहां भी असमानता आ गई.

एक आम आदमी जो घंटों लाइन में लगने के बाद मंदिर के अंदर प्रवेश करता है, उसे बाहर से ही दर्शन करने के लिए बाध्य किया जाता है जैसे वह कोई अछूत हो. दूसरी ओर कुछ वीआईपी लोग बड़े आराम से मंदिर के गर्भगृह में दर्शन लाभ करते हुए नजर आते हैं. एक आम आदमी इसी में खुश हो जाता है कि भले वह अछूत की तरह मंदिर से बाहर निकाल दिया जाता है लेकिन उस ने दूर से ही सही दर्शन तो कर ही लिया.

भारत के लोग सदियों से गुलाम रहे हैं. इन के डीएनए में ही गुलामी करने की मानसिकता भर गई है. इन में स्वाभिमान नाम की कोई चीज बची ही नहीं है. सोचने वाली बात है कि क्या भगवान वीआईपी दर्शन करने वालों पर विशेष कृपा बरसाएंगे? यह दोयम दर्जे का व्यवहार कदापि स्वीकार नहीं करना चाहिए. हमारे देश के लोगों की मानसिकता में कुछ पाने की लालसा भरी होती है. इस कारण वह कभी भी लालच के दलदल से बाहर ही नहीं आ पाता है. यही लालच उस के शोषण का सब से बड़ा कारण होता है. मंदिर में अपने लालच के कारण ही लोग शोषित होते हैं.

मंदिर में दान के नाम पर भेदभाव होता है जो सामाजिक असमानता का प्रतीक है. यह सामजिक असमानता जीवन के हर हिस्से में घुन की तरह घुस चुकी है. जो दान नहीं कर सके वे अपने को हीन समझते हैं और बजाय अतिरिक्त परिश्रम के, जीवन सुधारने के, पूजापाठ में घंटों और ज्यादा लगाते हैं. जो लोग इस गुत्थी को समझ चुके हैं वे मेहनत करते हैं, रातदिन लगते हैं और जीवनस्तर सुधार लेते हैं.

कर्मक्षेत्र में सामाजिक असमानता

धर्म के बाद कर्मक्षेत्र में भी असमानता देखने को मिलती है. यहां असमानता का आलम यह है कि जिस से लाभ होता है उस का खयाल ज्यादा रखा जाता है. सरकार ने अपने कर्मचारियों को जनता का दामाद बना डाला है, उन्हें ही सारी सुविधाएं दे दी हैं.

एक प्राइवेट प्राइमरी स्कूल में टीचर को 12 से 15 हजार रुपए महीना नौकरी जौइन करने के समय मिलता है. वहीं सरकारी प्राइमरी स्कूल के टीचर की सैलरी 54 हजार रुपए से शुरू होती है. निजी कंपनी में काम करने वाले क्लर्क की सैलरी शुरुआत में 10 से 12 हजार रुपए होती है. सरकारी नौकर 55 हजार रुपए से नौकरी शुरू करता है. एक सरकारी डिग्री कालेज में प्रिंसिपल रिटायरमैंट तक 2 लाख 30 हजार रुपए की सैलरी पाने लगता है. रिटायर होने के बाद उस की पैंशन 80 हजार रुपए से ऊपर होती है. कर्मक्षेत्र में इस तरह की असमानता के अनगिनत उदाहरण हैं. इस असमानता के कारण समाज में बराबरी का दर्जा नहीं मिलता है. यह सरकार द्वारा थोपी गई असमानता है. सरकारी कर्मचारी देश को बंधक बनाए रख रहे हैं.

श्रम का भेदभावपूर्ण बंटवारा सामाजिक असमानता का कारण होता है. आज समाज में जाति के साथसाथ पैसे का भी प्रभाव है. अगर आप के पास पैसा है तो आप अपना रहनसहन बेहतर कर सकते हैं. जाति से कितने ही बड़े क्यों न हों, अगर गरीब हैं तो आप की औकात नाली में रहने वाले कीड़े से अधिक नहीं है. हां, नाली में रहने वाले अपने जैसे दूसरों से आप जाति के कारण श्रेष्ठ हैं, असमान हैं, खास हैं. गरीब को जाति के बावजूद न तो मंदिर में वीवीआईपी दर्शन मिल पाएगा, न ही वह अपने लिए अच्छा घर बना पाएगा और न ही वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाएगा कि जिस से वे अगली पीढ़ी में बेहतर बन सकें. शिक्षा का वर्गीकरण कर दिया गया है. असमानता लाने के लिए तकनीकी शिक्षा केवल पैसों वाले बच्चों को मिल पा रही जो फिर और ज्यादा पैसा कमा रहे हैं.

आईफोन 16 के लिए लगी लंबीलंबी लाइनों में वे लोग खड़े हैं जिन की जेब में 1 लाख रुपए से अधिक का खर्च करने की औकात है. इतने लोग आखिर कहां से आ गए? शायद विदेशी उत्पादकों को अंदाजा नहीं था कि भारत में आसमानता कितनी गहरी है. आईफोन की सब से कम कीमत 50 हजार रुपए और सब से अधिक कीमत 1 लाख 84 हजार रुपए है.

इसी तरह सामान्य मोटरबाइक, जिस की कीमत 1 लाख रुपए के करीब है, असमानता की प्रतीक है. रीवोल्ट आरवीवन 84,990 रुपए, टीवीएस रेडर 125 97,180 रुपए, हीरो एक्सट्रीम 125 97,484 रुपए, बजाज फ्रीडम 95,055 रुपए, सुजूकी बर्गमैन स्ट्रीट 125 96,827 रुपए, सुजूकी एवेनिस 125 94,786 रुपए, बेनलिंग औरा 91,667 रुपए से शुरु होती है. घर तक पंहुचने में इन सभी की कीमत 1 लाख रुपए से ऊपर पहुंच जाती है. ये लोग आम बस में चलने वालों के मुकाबले खास हैं.

फिर भी इन बाइक वालों को उस समाज की नजर से कभी अच्छा नहीं माना जाता है जो कार को महत्त्व देते हैं. घरपरिवार, नातेरिश्तेदार के घर जब तीजत्योहार, शादीविवाह में मोटरबाइक से जाते हैं तो उन को सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता. सामाजिक असमानता का भाव यहां साफ दिखता है. कार से आने वाले के प्रति एक अलग भाव होता है और मोटरबाइक से आने वाले के प्रति अलग भाव होता है भले ही कार से आने वाला कितना ही बड़ा भ्रष्टाचार कर के आया हो. बहुत से बाइक वाले इसलिए टैक्सी कर के शादीब्याह में जाते हैं.

दूर की जाए अमीरगरीब की खाई

देश में धन का सही तरह से बंटवारा न होने से यह हालत हो गई है. अमीरगरीब के बीच की खाई गहरा गई है. आज जमीन के साथ शेयर बाजार और सत्ता असमानता फैला रही है.

2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था कि उन की सरकार आएगी तो आर्थिक सर्वे करा कर संपत्ति का बंटवारा होगा. यह कैसा होगा और कैसे होगा, यह अभी नहीं मालूम पर हो सकेगा, इस पर संदेह है. यह सिर्फ चुनावी स्टंट भर है. हां, आज आर्थिक सर्वे और समान आर्थिक बंटवारे की देश को जरूरत अवश्य है. पूंजी देश के गिनेचुने हाथों में पहुंच गई है. क्या सामाजिक असमानता दूर करने के लिए अमीरों से पूंजी ले कर गरीबों को देनी चाहिए जैसे जमींदार उन्मूलन के समय जमीने दे कर किया गया था. राहुल गांधी जीतेंगे और यह कर पाएंगे, पहले तो इस में संदेह है, पर अगर कर भी लिया तो जो चतुर हैं, वे फिर मुफ्त का पाने वालों से फीस लेंगे. ऐसा पहले कई बार हो चुका है.

देश में एक तरफ 1 से 2 करोड़ रुपए की कार से चलने वाले लोग हैं तो दूसरी तरफ सही तरह की साइकिल भी नहीं है. इस असमानता का कारण देश की आर्थिक नीतियां हैं, हाथ की लकीरें नहीं. मेहनत करने वाला मजदूर केवल दूसरों के लिए घर बनाता रह जा रहा है. उस के पास अपना घर बनाने लायक पैसा नहीं है. पूंजीपति केवल गरीब का शोषण करता है बल्कि उस की मेहनत का पूरा हक भी नहीं देता है. मुनाफाखोरी की असीमित इच्छा के कारण ही असमानता है. इस को दूर करना जरूरी है.

जाति नहीं ‘बिलियनायर राज’

घर बनाने या व्यापार शुरू करने के लिए बैंक जब लोन देता है तो यह देखता है कि आप की लोन अदा करने की क्षमता कितनी है. कम वेतन और लगातार वेतन न पाने वाले को वह लोन नहीं देता. सरकार बिना गारंटी के लोन लेने की स्कीम की कितनी भी योजनाएं चला ले, बैंक बिना गारंटी के लोन नहीं देता है. दूसरी तरफ बड़ीबड़ी कंपनियां लोन ले कर भी बच जाती हैं. इस तरह की सरकारी नीतियों के कारण ही सामाजिक असमानता बढ़ रही है. सामाजिक असमानता का सब से बड़ा कारण आर्थिक असमानता है और गरीबअमीर के बीच बढ़ती खाई है.

वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब के मुताबिक, वर्ष 2022-23 में देश की कुल आय में टौप एक फीसदी अमीर आबादी की हिस्सेदारी बढ़ कर 22 फीसदी हो गई है. आंकड़े बताते हैं कि देश में अमीरों और गरीबों के बीच खाई काफी बढ़ गई है. साल 2000 के दशक की शुरुआत से यह लगातार बढ़ती जा रही है. इस के मुताबिक, देश की कुल आबादी अगर 100 रुपए कमाती है, तो इस में 22 रुपए केवल एक फीसदी अमीर लोगों के पास है. देश की कुल संपत्ति में इन एक फीसदी अमीर आबादी की हिस्सेदारी बढ़ कर 40.1 फीसदी हो गई है.

आर्थिक असमानता के मामले में भारत अमेरिका, साउथ अफ्रीका और ब्राजील से भी आगे है. अन्य देशों की बात करें तो अमेरिका में टौप एक फीसदी अमीर आबादी की आय में हिस्सेदारी 20.9 फीसदी है. ब्राजील के मामले में यह आंकड़ा 19.7 फीसदी, साउथ अफ्रीका में 19.3 फीसदी, चीन में 15.7 फीसदी है. इनइक्वैलिटी लैब की रिपोर्ट बताती है कि 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद अमीरगरीब के बीच असमानता की खाई तेजी से बढ़ी है.

1975 तक भारत और चीन के लोगों की औसत आय लगभग बराबर थी. लेकिन वर्ष 2000 तक इस मामले में चीन हम से 35 फीसदी आगे बढ़ गया. 21वीं सदी में चीन की रफ्तार और तेज हुई और अब चीन में प्रतिव्यक्ति आय हम से ढाई गुना ज्यादा हो गई है. परेशानी की बात यह है कि पूंजीवादी लोग भारत में जातीय असमानता की बात करते हैं जिस से आर्थिक असमानता का मुद्दा दबा रहे, जमींदारी उन्मूलन जैसे फैसले लेने की दिशा में सरकार सोच न सके.

आज देश पर जातीय व्यवस्था का नहीं आर्थिक व्यवस्था का राज है. आर्थिक व्यवस्था में चुनावी चंदा दे कर राजनीतिक दलों को मजबूर किया जाता है कि वे गरीबी के लिए जातीय व्यवस्था को कोसते रहें. चुनाव जीतने के लिए नेता और राजनीतिक दलों की सब से बडी जरूरत पैसा होता है. इस से गरीबों को और गरीब रखने की योजनाएं चलाई जाती हैं. पूंजीपतियों के लिए ऐक्सप्रैसवे, मौल्स और गोदाम बनाने के लिए सड़क, बिजली, पानी दिया जा रहा है. कृषि कानूनों का उद्देश्य भी यही था, किसानों की जमीन अमीरों को दी जा सके.

देश में सामाजिक असमानता को दूर करने के लिए पहले आर्थिक असमानता को दूर करना होगा. सिद्धांत के रूप में यह स्वीकार करना होगा कि देश में अमीरों का राज है. उस के हिसाब से गरीबों को हक देना होगा. जब तक इस को स्वीकार कर के योजनाएं नहीं बनेंगी तब तक अमीर केवल ऐप्स बना कर देश की जनता को गरीब करते जाएंगे. जनता को मुफ्त का राशन दे कर मेहनतमजदूरी करने से दूर रख कर लाचार बना दिया जाएगा. इस के बाद वह वोट दे कर मुफ्त का चंदन घिसती रहेगी, इस से आर्थिक असमानता बढ़ती रहेगी.

गर्लफ्रैंड के साथ सैक्स करने को मन करता है, कैसे मनाऊं ?

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सवाल –

मेरी उम्र 19 साल है और मैं ने हाल ही में स्कूल पास करके कालेज में ऐडमिशन लिया है. शुरुआत से ही मुझे कालेज जाने का बहुत शौक था क्योंकि कालेज नाम सुनते ही मेरे मन में बहुत सी हसीन चीजें आती थीं जैसेकि कालेज में लोग खुलेआम अपनी गर्लफ्रैंड्स के साथ घूमते हैं, साथ में ट्रिप्स पर जाते हैं, रोमांस करते हैं और अपनी जिंदगी के हसीन पल जीते हैं. कालेज के पहले दिन से ही मेरे कई सारे दोस्त बने और जैसा मैं ने सोचा था वैसा ही हुआ. हम सब पूरा दिन साथ रहते और खूब घूमते. इसी दौरान मेरी एक गर्लफ्रैंड भी बनीं जोकि मेरी लाइफ की पहली गर्लफ्रैंड है. मैं उसे बहुत प्यार करता हूं और वह भी मेरा बहुत खयाल रखती है. हम दोनों में कई बार रोमांस भी हुआ है लेकिन वह कभी मुझे किसिंग से आगे बढ़ने ही नहीं देती. मैं ने उसे कई बार समझाया है कि रिलेशनशिप में यह सब चलता है पर वह नहीं मानती. मुझे उस के साथ सैक्स करने का बहुत मन करता है और ऐसे में मैं ने उसे कई बार अपने साथ होटल जाने को भी कहा पर वह तैयार नहीं होती. मैं क्या करूं ?

जवाब –

इस उम्र में ऐसे खयाल आना स्वभाविक हैं. बौलीवुड फिल्म्स और आजकल की वैब सीरिज ने लोगों के मन में कालेज की एक अलग ही इमेज सैट की हुई है जो कि बिलकुल गलत है. कालेज में मौजमस्ती करना अच्छी बात होती है लेकिन मौजमस्ती और ऐयाशी में काफी अंतर होता है जोकि हमें समझना चाहिए. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम कालेज में सिर्फ मौजमस्ती या ऐयाशी करने नहीं, बल्कि पढ़ने भी गए हैं.

आप ने कालेज में अपनी लाइफ में पहली गर्लफ्रैंड बनाई है तो जाहिर है कि आप को इस से पहले रिलेशनशिप का ज्यादा अनुभव नहीं है, तभी आप इतनी जल्दबाजी कर रहे हैं.

सैक्स लड़कियों के लिए कोई छोटी चीज नहीं होती और सैक्स करने के लिए दोनों की ही रजामंदी जरूरी है.

आप को पहले उस लड़की का विश्वास जीतना चाहिए. उस के साथ अच्छे पल बिताने चाहिए. अगर सच में आप उस लड़की से प्यार करते हैं तो उस की फीलिंग्स की रिस्पैक्ट करें.

अगर आप उस ल़ड़की को दिल से रिस्पैक्ट करेंगे और उन्हें प्यार करेंगे तो हो सकता है वस आप के साथ सैक्स करने को मान जाए पर याद रहे कि आप को अपनी गर्लफ्रैंड के साथ किसी तरह की कोई जबरदस्ती नहीं करनी है.

सैक्स हमेशा दोनों की रजामंदी से किया जाता है. अगर आप अपनी गर्लफ्रैंड से शादी करना चाहते हैं तो उस के बारे में अपने घर वालों को भी बताएं ताकि आप की गर्लफ्रैंड को आप के ऊपर विश्वास होने लगे.

जैसाकि आपने बताया कि आप के मन में कालेज को ले कर एक अलग ही खुमार था तो ऐसे में यह खुमार पढ़ाई के लिए को बिलकुल नहीं था. आप शुरुआत से ही कालेज में मौजमस्ती करने गए हैं जोकि गलत है. आप को कालेज में मौजमस्ती के साथसाथ पढ़ाई पर भी ध्यान देना चाहिए.

यह समय आप की पढ़ाई का है और फिर लौट कर नहीं आएगा. बाद में पछताने से अच्छा है आप साथसाथ पढ़ाई पर भी उतना ही ध्यान दें.

अलबत्ता, पहले कैरियर बना लें और फिर सैक्स और शादी के बारे में सोचें. हां, सैक्स कुदरत का दिया एक अनमोल तोहफा है. अगर आप की गर्लफ्रैंड इस के लिए तैयार है तो सैक्स करने में बुराई नहीं, मगर फिलहाल आप दोनों ही अपनी पढ़ाई और कैरियर पर फोकस करें.

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