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उम्रकैद की सजा पलट कर हाईकोर्ट ने बाबा राम रहीम को बरी किया

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को डेरा मैनेजर रणजीत सिंह की हत्या के मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पैशल सीबीआई अदालत के फैसले को पलट कर 28 मई की सुबह बरी कर दिया. राम रहीम के साथ 4 अन्य दोषियों को भी हाईकोर्ट ने रंजीत सिंह की हत्या मामले से बरी कर दिया है.

हाईकोर्ट का यह फैसला उस वक़्त आया है जब देश में लोकसभा चुनाव अपने अंतिम पड़ाव की तरफ बढ़ रहा है. लोकसभा चुनाव के 7वें और अंतिम चरण में बिहार, चंडीगढ़, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की शेष सीटों पर चुनाव होगा.

पंजाब की 13 सीटों के लिए 328 उम्मीदवार अपना दावा ठोंक रहे हैं. पंजाब की जिन 13 सीटों पर आखिरी चरण में वोट डाले जाएंगे उन में गुरदासपुर, अमृतसर, खडूर साहिब, जालंधर, होशियारपुर, आनंदपुर साहिब, लुधियाना, फतेहगढ़ साहिब, फरीदकोट, फिरोजपुर, बठिंडा, संगरूर और पटियाला शामिल हैं. इन में से अधिकांश जगहों पर डेरा प्रमुख बाबा राम रहीम का खासा प्रभाव है, जिस का फायदा भारतीय जनता पार्टी उठाना चाहती है.

गौरतलब है कि 2021 में पंचकूला में स्पैशल सीबीआई अदालत ने राम रहीम और उस के 4 सहयोगियों को हत्या जैसी संगीन आपराधिक घटना को अंजाम देने के 19 साल बाद उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. 10 जुलाई, 2002 को डेरा के प्रबंधक रहे रणजीत सिंह की कुरुक्षेत्र के खानपुर कोलियां में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. स्पैशल सीबीआई अदालत ने इस में गुरमीत राम रहीम और उस के 4 सहयोगियों को दोषी पाया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम ने सीबीआई कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. 28 मई, 2024 की सुबह जब कोर्ट बैठी तो चंद मिनटों में ही जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस ललित बत्रा की बैंच ने स्पैशल सीबीआई अदालत का फैसला पलट कर सब को बरी कर दिया.

सिरसा डेरा के प्रबंधक रहे रणजीत सिंह की हत्या का मामला हाईप्रोफाइल था, जिस को पुलिस रफादफा करने में जुटी थी. पुलिस जांच से असंतुष्ट रणजीत सिंह के बेटे जगसीर सिंह ने जनवरी 2003 में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआई जांच की मांग की थी. उस के बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया था और अक्तूबर 2021 में डेरा प्रमुख राम रहीम के साथ उस के 4 सहयोगियों को दोषी करार दिया गया था. शुरुआत में इस मामले में राम रहीम का नाम नहीं था, लेकिन 2006 में राम रहीम के ड्राइवर खट्टा सिंह के बयान पर डेरा प्रमुख को आरोपियों में शामिल किया गया.

22 साल पहले रणजीत सिंह की हत्या एक शक की वजह से की गई थी. दरअसल एक गुमनाम साध्वी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठी में उस ने राम रहीम पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था और उस की जांच करवाने की मांग की थी. इस चिट्ठी को मीडिया में भी सर्कुलेट किया गया.

राम रहीम को शक था कि सिरसा के डेरा प्रबंधक रणजीत सिंह ने ही साध्वी के यौन शोषण की गुमनाम चिट्ठी अपनी बहन से लिखवाई थी. इस पत्र में कहा गया था कि कैसे डेरा प्रमुख महिलाओं से यौन शोषण करते हैं. गुमनाम पत्र को सार्वजनिक करने में रणजीत सिंह की संदिग्ध भूमिका मानते हुए राम रहीम ने उस को तुरंत डेरा से हटा दिया था.

उस गुमनाम चिट्ठी को सिरसा के ही एक पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने अपने सांध्यकालीन समाचारपत्र ‘पूरा सच’ में छाप दिया था. स्थानीय मीडिया में मामला उछलने के बाद 10 जुलाई, 2002 को रणजीत सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी गई और 3 माह बाद 24 अक्तूबर, 2002 को पत्रकार रामचंद्र छत्रपति पर भी हमला कर उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया. घायल अवस्था में पत्रकार रामचंद्र छत्रपति को दिल्ली ला कर अपोलो अस्पताल में भरती किया गया मगर 21 नवंबर, 2002 को अपोलो अस्पताल में रामचंद्र की मौत हो गई.

घटना की लंबी सीबीआई जांच चली और 19 साल बाद 18 अक्टूबर, 2021 को पंचकूला की विशेष सीबीआई अदालत ने डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम और 4 अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. मामले में आरोपी बनाए गए राम रहीम के समर्थक अवतार सिंह, कृष्ण लाल, जसबीर सिंह और सबदिल सिंह को भी उम्रकैद की सजा मिली. सुनवाई के दौरान अवतार सिंह की मौत हो गई. सीबीआई जज ने बाकी सभी को उम्रकैद की सजा सुनाते हुए राम रहीम पर 31 लाख रुपए, सबदिल पर 1.50 लाख रुपए, जसबीर और कृष्ण पर 1.25-1.25 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था.

सजा सुनाते वक्त पंचकूला की सीबीआई अदालत ने कहा था कि इस तथ्य पर कोई संदेह नहीं है कि गुमनाम पत्र के प्रसार से गुरमीत राम रहीम काफी व्यथित था. उस पर डेरा की साध्वियों के यौन शोषण के गंभीर आरोप थे और उस के भक्तों की बीच उस की छवि को नुकसान पहुंचा था.

सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले के बाद हरियाणा से ले कर पंजाब तक राम रहीम के समर्थकों ने जिस अंदाज में हिंसा का नंगा नाच किया था और सरकारी संपत्तियों को तोड़ाफोड़ा, उस से कई सवाल खड़े हुए थे. सवाल यह कि क्या कोई आध्यात्मिक गुरु अपने अनुयायियों को तांडव मचाने की सीख देता है? क्या गुरमीत राम रहीम और उन के समर्थक विशुद्ध तौर पर गुंडे हैं? डेरा समर्थकों के उत्पात से एक बात साफ हो गई थी कि इहलोक से ज्यादा परलोक सुधारने की राह बताने वाला गुरमीत राम रहीम न केवल संत के चोले में गुंडा है, बल्कि समर्थकों के रूप में उस ने अनेक गुंडों, अपराधियों को प्रश्रय दे रखा है.

यह जानना भी दिलचस्प है कि आखिर वह कौन अधिकारी था जिस की अथक खोजबीन और जांच के बाद रौकस्टार बाबा राम रहीम सलाखों के पीछे गया था. राम रहीम के खिलाफ जांच की जिम्मेदारी सीबीआई के डीआईजी मुलिंजा नारायणन को 2007 में सौंपी गई थी. मुलिंजा नारायणन पर डेरा के समर्थकों के साथसाथ वरिष्ठ अधिकारियों और राजनीतिज्ञों की तरफ से केस को बंद करने का जबरदस्त दबाव था. लेकिन तमाम अवरोधों के बावजूद नारायणन ने जांच पूरी की और चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की.

उल्लेखनीय है कि गुरमीत राम रहीम के खिलाफ 2002 में एफआईआर दर्ज हुई थी, लेकिन 5 वर्षों तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. 5 वर्षों तक जब यह केस ऐसे ही लटका रहा तो पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने इस मामले को सीबीआई के हवाले करने का आदेश दिया.

जिस दिन यह केस डीआईजी मुलिंजा नारायणन के पास पहुंचा, उसी दिन उन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उन के कमरे में आ कर कहा कि यह केस आप को बंद करने के लिए दिया जा रहा है. इस पर नारायणन ने उन से कहा कि हाईकोर्ट के आदेश पर मामला उन के हवाले है, लिहाजा, वे जांच पूरी करेंगे. उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारी से साफतौर पर कह दिया कि वे जांच को बंद नहीं करेंगे और किसी का बेजा आदेश भी नहीं मानेंगे.

रणजीत सिंह की हत्या की तह में जाने के लिए जरूरी था उस गुमनाम पत्र को लिखने वाली महिला की तलाश करना. यौन शोषण के मामले में यह पहला ऐसा मामला था जिस में पीड़िता सामने नहीं आई थी, उस के पत्र के आधार पर एक मुश्किल जांच को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही थी.

पीड़ित के बारे में जानकारी हासिल कर पाना बेहद ही मुश्किल था. लगातार कोशिश के बाद चिट्ठी के बारे में यह जानकारी मिली कि वह पंजाब के होशियारपुर से लिखी गई थी. लेकिन चिट्ठी के पीछे कौन शख्स था, इस की जानकारी नहीं मिल रही थी. बहुत ही कठिनाई के बाद डीआईजी एम नारायणन पीड़ित तक पहुंच पाए. जब ऐसी कठिन हालात में पीड़ित तक पहुंचने में कामयाबी मिली तो पीड़ित और उस के परिवार को समझाना उन के लिए बहुत मुश्किल साबित हुआ. लेकिन लगातार कोशिश के बाद वे पीड़ित और उस के परिवार को मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराने में कामयाब हो गए. जांच आगे बढ़ी और धीरेधीरे सारी परतें उधड़ती चली गईं.

जब 19 साल बाद सीबीआई की विशेष अदालत का फैसला आया तब खुशी जताते हुए अवकाशप्राप्त डीआइजी मुलिंजा नारायणन ने कहा था कि वे बहुत खुश हैं कि उन के द्वारा की गई जांच अंतिम फैसले पर पहुंची. लेकिन अब हाईकोर्ट द्वारा सीबीआई के फैसले को पलट कर राम रहीम को रिहा करने की खबर ने उन्हें निश्चित तौर पर व्यथित किया होगा. उन के द्वारा की गई तफ्तीश और सबूतों व गवाहों को जुटाने के अथक श्रम पर इस फैसले ने पानी फेर दिया है.

हालांकि, मामले में हाईकोर्ट की तरफ से सजा रद्द करने के बाद भी डेरा मुखी गुरमीत राम रहीम सिंह अभी जेल में ही रहेगा क्योंकि उस के खिलाफ अन्य संगीन मामले भी दर्ज हैं जिन की सजा वह भुगत रहा है. 2 साध्वियों के यौन शोषण मामले में उसे 20 साल और पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्याकांड में भी उसे उम्रकैद की सजा हुई है, जिसे वह काट रहा है.

राम रहीम को 25 अगस्त, 2017 को पंचकूला की सीबीआई की विशेष अदालत ने इन मामलों में दोषी करार दिया था. रेप और छत्रपति हत्याकांड पर अदालत के फैसले को भी राम रहीम ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है, फिलहाल रणजीत सिंह हत्या के केस में मिली बड़ी राहत के बाद अगर उस ने अपने प्रभाव से भाजपा को लोकसभा चुनाव में फायदा पहुंचाया तो हो सकता है बाकी के संगीन मामलों में भी उस को बाइज्जत बरी कर दिया जाए. फिलहाल तो राम रहीम रोहतक की सुनारिया जेल में बंद है.

टाइम मैनेजमेंट से करें अकेलेपन का मुकाबला

45 साल के राधेश्याम मां, पत्नी और 12 साल की बेटी के साथ आराम से जीवन गुजरबसर कर रहे थे. उन की 65 साल की मां भी थी. किसी तरह की कोई दिक्कत न थी. उन का अपना छोटा सा कपड़े बेचने का काम था. उस से परिवार के गुजरबसर लायक कमाई हो रही थी. इस बीच एक दिन दुर्घटना में उन की पत्नी की मृत्यु हो गई. इस की कल्पना किसी ने नहीं की होगी. कुछ माह तो गुजर गए.

इस के बाद राधेश्याम ने दुकान के साथ ही साथ अपने घर और बेटी को खुद संभालना शुरू किया. पहले यह काम पत्नी कर लेती थी. पत्नी के पास अपनी स्कूटी थी. कई बार अगर राधेश्याम को जरूरी काम होता था तो पत्नी दुकान भी संभाल लेती थी. दुकान पर काम करने वाले 3 नौकर थे. राधेश्याम शहर के साप्ताहिक बाजारों में ठेले पर दुकान लगाने के लिए 2 नौकर भेजता था. एक नौकर के साथ वह अपनी दुकान संभाल लेता था.

पत्नी के बाद उस ने अपनी दुकान पर एक नौकर की संख्या बढ़ा दी. दुकान पर सीसीटीवी कैमरा लगवा दिया. दुकान से वह कुछ समय निकालने लगा. इस समय को उस ने अपने घर और बेटी को देना शुरू किया. मां की मदद करने लगा. जो राधेश्याम घर का एक भी काम नहीं करता था, केवल दुकान देखता था, आज घर में सफाई और रखरखाव तक करने लगा था. मां उसे मना भी करती, फिर भी वह काम करता. पहले वह खुद अपने कपड़े और सामान बिखेर दिया करता था.
दुकान के कागजात इधरउधर रखता था. इस के बाद जरूरत पड़ने पर पत्नी से मांगता था और चीखपुकार मचाता था. बेटी को कहना पड़ता था कि बाजार, पार्क और सिनेमा दिखा दो. वह बहाना बना देता था. अब वह बिना कहे मां और बेटी को ले जाता था. पत्नी की स्कूटी का हमेशा खयाल रखता था. उस को कभीकभी चला भी लेता था. बेटी के साथ उस का स्वभाव एकदम बदल गया था. गुस्सा खत्म हो गया था. घर में उस ने मदद के लिए 2 नौकर रख लिए. घर को देख कोई नहीं कह सकता था कि इस घर में मालकिन नहीं है. खुद भी पूरी तरह से फिट और स्मार्ट दिखता था.

जिंदगी के 2 पहिए होते हैं पतिपत्नी

32 साल के किशोर की शादी स्वाति के साथ हुई थी. उन के 5 साल का बेटा था. किशोर और स्वाति ने प्रेमविवाह किया था. वह गांव से दूर शहर में रहता था. कुछ दिनों से स्वाति झगड़ा करने लगी थी. कई बार उस ने पुलिस से किशोर की झूठी शिकायत भी की थी. पुलिस ने एक बार उस को 24 घंटे के लिए थाने में बिठा कर रखा था. जब किशोर ने लिखित में माफी मांगी तो पुलिस ने छोड़ दिया. इस तरह के झगड़े के बीच एक दिन स्वाति ने कहा कि वह तलाक लेना चाहती है. किशोर भी रोजरोज के झगड़े से तंग आ गया था. उस ने तलाक की सहमति दे दी.

यहां समस्या फंसी कि 5 साल का बेटा कहां रहेगा? स्वाति ने कहा, बेटा वह नहीं रखेगी क्योंकि उस के पास कोई कमाई का जरिया नहीं है. वह किशोर से कोई गुजारा भत्ता नहीं लेना चाहती. किशोर ने बेटे को अपने पास रख लिया. किशोर ने घर में एक आदमी और एक औरत नौकर रखा. जब औफिस जाता था, बेटे को डे-केयर स्कूल में छोड़ देता था. जिस दिन बेटे की स्कूल से छुट्टी होती थी, वह औफिस के काम को ‘वर्क फ्रौम होम’ करता था. वह अपने साथ बेटे को भी घर के कामकाज व गार्डन को संभालने में लगा लेता था. अकसर बापबेटे साथ होते थे. किशोर का मानना था कि पतिपत्नी एक गाड़ी के दो पहिए जैसे होते हैं. एक पहिया खराब हो जाए तो दूसरे पहिए को जीवन और परिवार की गाड़ी अपने बल पर खींचनी चाहिए.

अकेलेपन में ‘टाइम मैनेजमेंट’ करें

आज के दौर में कम उम्र के पतिपत्नी भी अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं. ऐेसे में पति किस तरह से खुद का अकेलापन दूर करे और अपनी लाइफ स्टाइल भी कैसे बनाए, यह समझने की जरूरत है. यह अकेलापन 2 कारणों से हो रहा है, एक में जीवनसाथी की असमय मृत्यु हो जाती है, दूसरे में शादी के बाद तलाक के कारण अकेलापन होता है. यह बात सही है कि पत्नी के बिना अकेलापन बहुत महसूस होता है. ऐसे में अगर बेचारा बन कर रहेंगे तो जीवन और कठिन हो जाएगा. तो पहले यह सोच लें कि आप को ‘बेचारा’ बन कर नहीं रहना है. ऐसा न लगे कि पत्नी नहीं है तो ‘देवदास’ की तरह से उदास रहने लगे हैं.
अपने समय का मैनेजमेंट करें. पत्नी रहती है तो आदमी बिंदास जीवन जीता है. उसे घरपरिवार की चिंता नहीं रहती. कैसी भी पत्नी हो, ज्यादातर पति का साथ देती हैं. ऐसे में पत्नी की कमी रहती है. उस कमी को पूरा करने के लिए घर की देखभाल खुद करें. जरूरत हो तो घरेलू नौकर रख लें. कोशिश करें कि महिला नौकर कम रखें. अगर रखें तो उन के काम वाली जगहों पर सीसीटीवी लगा कर रखें. अपना रहनसहन और खानापीना ठीक से करें. अपनी पर्सनल केयर खुद करें. मन को खुश रखने वाले काम करें.

औफिस और बिजनैस से समय निकाल कर ऐक्सरसाइज करें. मनपंसद खाएं और जरूरत हो तो बना कर खाएं. खाली समय में दोस्तों के साथ बैठें. अगर संयुक्त परिवार है या परिवार में मां या बहन हैं तो भी उन पर बहुत निर्भर न रहें. अगर घर भी नहीं है तो भाई और भाभी के साथ रहने की जगह पर बहनबहनोई के साथ रहना ज्यादा अच्छा होगा. बहन को भाई बोझ नहीं लगता पर कई बार भाभी को देवर बोझ लगने लगता है.
अगर अकेले हैं, अपना घर नहीं है, सक्षम हैं, तो अपार्टमेंट में अपना फ्लैट ले लें. अगर खरीदने के पैसे नहीं हैं तो किराए पर ले लें. अपार्टमेंट में रहना सुरक्षित और आरामदायक होता है. बहुत सारे काम मेंटिनैंस के हिस्से आ जाते हैं. घूमनेटहलने की जगहें ज्यादा होती है. जिम और पूल भी होते हैं. कई बार यहां रिटायरमैंट के बाद भी रहने वाले मिल जाते हैं जिस से एक ग्रुप भी मिल जाता है.

हौबी बना लें

अच्छी सी हौबी अकेलापन दूर करने का सब से बड़ा साधन होती है. इस में समाज की सेवा करने वाले काम भी कर सकते हैं. उस में बहुत लोगों से मिलना हो जाता है. जिस से अकेलापन दूर हो जाता है. राजनीति में भी समय लगा सकते हैं. यहां पर थोड़ा सा पावर मिलने लगता है. तो आप का समय कट सकता है. इन सब कामों के साथ अपना ध्यान जरूर रखें. आप हिट तभी होंगे जब फिट रहेंगे. अकेलेपन का शिकार हो कर बीमार होने से अच्छा है कि अपनी पंसद के काम कर के खुश रहें. दूसरों को इस बात का एहसास न होने दें कि आप अकेलेपन का शिकार हैं.
अकेलेपन को दूर करने के लिए नशे और गलत संगत में न पड़ें. कई बार इस का दुरुपयोग लोग कर लेते हैं. अगर आप के पास संपत्ति और जायदाद है तो यह परेशानी कभी भी गले पड़ सकती है. ऐसे में इस तरह के लोगों से दूर रहें. कई आपराधिक गिरोह ऐेसे हैं जो बूढ़े और अकेले रह रहे लोगों को अपने जाल में फंसाने के लिए महिलाओं, घरेलू नौकरों, आप के घर आनेजाने वाले, जैसे धोबी, माली, और दूसरे नौकर को तैयार करते हैं. इस के बाद आप को अपना शिकार बना लेते हैं.

समझदारी से रखें नौकर और रिश्तेदार

कई लोग अकेलेपन में घर के खाली पड़े कमरों में किराएदार रख लेते हैं. किराएदार रखते समय यह देखें कि वह परिवारवाला हो. अकेले आदमी या लड़की को किराए पर मत रखें. किराएदार रखने से पहले उस की छानबीन कर लें, जिस से आगे धोखा न हो सके. आप जिस को भी अपने साथ रखें, होशियारी के साथ रखें. भले ही वह नौकर, किराएदार या रिश्तेदार ही क्यों न हो? अपने घर नियमित आनेजाने वाले लोगों से भी सचेत रहें.
आज के समय में टैक्नोलौजी ने जीवन को सरल बना दिया है. होम अपलाइंसैस आप के साथी जैसा ही काम करते हैं. इन में वाशिंग मशीन, वैक्यूम क्लीनर, डिशवाशर, रोटीमेकर, इडलीमेकर, सैंडबिचमेकर, कपड़ा प्रैस करने की मशीन बहुतकुछ हैं जिन का प्रयोग आदमी भी आसनी से कर के मेहनत और समय बचा सकते हैं, स्मार्ट दिख सकते हैं, आत्मनिर्भर और स्मार्ट रह सकते हैं. अकेलेपन को दूर करने के लिए कई बार लोग दूसरी शादी करने का प्लान कर लेते हैं. यह फैसला लेते समय बहुत सावधान रहें. सही रिश्ता मिलने पर ही शादी करें.

तांत्रिकों के चक्कर में फंस कर अपनों का खून

इस 21 मई को मुजफ्फरनगर में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई. अपने ऊपर आए कथित साए से छुटकारा पाने के लिए सगी चाची ने अपनी मां के साथ मिल कर एक महीने के अंदर अपने देवर के 2 बच्चों की हत्या कर दी. दोनों हत्यारिन महिलाओं ने एक तांत्रिक के कहने पर इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया था.

दरअसल 7 साल के बच्चे केशव के मर्डर केस में मृतक की चाची अंकिता और उस की मां रीना को दोषी पाया गया. चाची ने तांत्रिक के कहने पर एक नहीं बल्कि दो बच्चों की बलि देने का जुर्म कबूल किया. उस ने तांत्रिक भगत रामगोपाल व अपनी मां रीना के कहने पर घर में नीचे अकेला देख कर केशव को दूसरे कमरे में ले जा कर पुराने दुपट्टा से गला दबा कर उसे मार दिया था. इस के बाद एक कागज के टुकड़े पर लाल रंग से लिख कर छत पर डाल दिया जिस से घर वालों को लगे कि यह किसी ऊपरी साए का काम है. एक माह पहले केशव के छोटे भाई 4 वर्षीय अंकित उर्फ लक्की की भी उसी ने गला दबा कर हत्या की थी, जबकि घरवालों को लगा था कि वह बीमारी से मरा है.

जांच के दौरान पुलिस को शव के पास से तंत्रमंत्र का कुछ सामान और एक कागज में कुछ लिखा नजर आया था. पुलिस ने लिखावट का मिलान किया तो मृतक की चाची से लिखावट का मिलान हुआ. उस के बाद कड़ाई से पुलिस ने पूछताछ की तो महिला ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. पुलिस ने इस खौफनाक हत्याकांड में चाची और उस की मां को जेल भेज दिया.

अंधविश्वास के चक्कर में हत्यारिन बनी मां

हाल ही में (25 जनवरी, 2024 ) हरिद्वार में हर की पौड़ी पर तंत्रमंत्र के चक्कर में फंस कर एक मां ने ही 7 साल के बेटे को डुबो कर मार डाला. दरअसल एक तांत्रिक ने कहा था कि हरिद्वार में गंगा की धार में बच्चे को डुबकी लगवाने से उस का ब्लड कैंसर ठीक हो जाएगा. मां ने तांत्रिक की बात सुनी और अपने बीमार बच्चे को हरिद्वार में गंगा की डुबकी लगाने लगी जिस से सांस घुटने से बच्चे की मौत हो गई. जब बच्चे को पानी से निकाला गया तो वह मर चुका था. सामने बच्चे का शव पड़ा था और महिला जोरजोर से पागलों की तरह हंस रही थी. बच्चे की मौत की खबर से अफरातफरी मच गई. उस के मातापिता समेत 3 लोगों को हिरासत में ले लिया गया.

तांत्रिक बाबा के चक्कर में युवक ने मासूम के साथ की दरिंदगी

03 अक्टूबर, 2023 को पंजाब में एक 4 वर्षीय बच्चे की हत्या करने का मामला सामने आया था. मृतक बच्चे की पहचान रवि राज के रूप में हुई. बच्चे की मां ने पुलिस को बताया कि उस के 3 बच्चे हैं जोकि बैड पर सो रहे थे और वे दोनों पतिपत्नी फर्श पर सो रहे थे. रात में करीब 2 बजे जब उस की आंख खुली तो उस ने देखा, उस का बेटा रवि बिस्तर पर नहीं है और वहां पर एक मोबाइल फोन गिरा था.

उन्होंने बच्चे को ढूंढने की कोशिश की. इतने में वहां पुलिस आ गई और बताया कि कुछ दूरी पर एक बच्चे का शव पड़ा हुआ है. उन्होंने जब जा कर देखा तो शव उन के बेटे का ही था जिस की गला रेत कर हत्या कर दी गई थी. पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे खंगाले. इस जांच के दौरान सामने आया कि पड़ोस में रहने वाला व्यक्ति उन के बच्चे को ले कर जा रहा था. बच्चे की हत्या तांत्रिक के कहने पर देवीदेवताओं की पूजा और बलि चढ़ाने के लिए की गई थी. आरोपी की पहचान अरविंदर कुमार (23) के रूप में हुई. पुलिस द्वारा बच्चे के खून से लथपथ कपड़े व हत्या में इस्तेमाल चाकू को भी जब्त कर लिया गया.

रायगढ़ में काला जादू के शक में बेटे ने की पिता की हत्या

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में एक नाबालिग लड़के ने तांत्रिक के कहने में आ कर अपने ही पिता की हत्या कर दी. तांत्रिक ने पिता पर जादूटोना करने का शक जताया था. इसी शक में बेटे ने अपने साथियों के साथ मिल कर पिता को मार डाला और लाश में पत्थर बांध कर नदी में फेंक दिया. यह मामला 1 अगस्त, 2022 को सामने आया. आरोपी ने हत्या के पीछे वजह बताते हुए कहा कि उस की पत्नी का भाई इस हत्याकांड में शामिल था. घर में सब लोगों की तबीयत खराब होती थी. इसलिए वह एक तांत्रिक के पास गया और तांत्रिक ने उस को खत्म करने के लिए कहा.

ये सारी घटनाएं एक ही हकीकत की तरफ इशारा करती हैं. हकीकत यह है कि तंत्रमंत्र के छलावे में आ कर इंसान अपना ही बड़ा नुकसान कर बैठता है. तांत्रिक और बाबा अपनी बातों के जाल में लोगों को ऐसे फंसा लेते हैं कि इंसान का दिमाग कुंठित हो जाता है. उस के सोचनेसमझने की शक्ति चली जाती है और वह अपनों के खून से ही अपने हाथ रंग लेता है. सच तो यह है कि अंधविश्वास एक ऐसा जाल है जिस में इंसान फंसता ही चला जाता है और उस की शुरुआत कहीं न कहीं किसी बाबा, तांत्रिक या आस्था के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाने वालों से होती है.

इसलिए आप भी अपनी परेशानी से छुटकारा पाने के लिए किसी तांत्रिक के संपर्क में हैं तो जरा सावधान हो जाइए. तांत्रिकों ने अंधविश्वास का ऐसा भ्रम फैला रखा है जिस में भोलेभाले, परेशान लोग आसानी से फंस रहे हैं. परेशान लोगों की पीड़ा खत्म करने के लिए तंत्रमंत्र के माध्यम से लोगों को चूना लगाया जा रहा है. कभी इलाज के नाम पर तांत्रिक किसी की अस्मत लूट रहे हैं तो कभी लाखों रुपए की ठगी कर लेते हैं और कभी किसी की हत्या कराई जाती है. लोगों को इस जंजाल की जानकारी तब होती है जब तांत्रिक उन से करतूतें करवा कर किनारा कर लेता है.

औनलाइन जाल में भी फंसाते हैं बाबा और तांत्रिक

आजकल औनलाइन का जमाना है और तांत्रिक बाबा इस तकनीक का भी इस्तेमाल कर लोगों को अंधविश्वास के जाल में फंसा रहे हैं. इस के एवज में वे उन से मोटी रकम वसूल करते हैं. राजधानी दिल्ली की अगर बात करें तो यहां 2-3 हजार से ज्यादा बाबा या तांत्रिक अपने धंधे को स्वतंत्र रूप से संचालित कर रहे हैं. ये बाबा काला जादू और चमत्कारी शक्तियों की मदद से लोगों को उन का खोया हुआ प्यार, नौकरी ढूंढने में मदद, बीमारियों से नजात और घर खरीदने में मदद के नाम पर बेवकूफ बनाते हैं. इन बाबाओं के नाम भी उन के काम से ही मिलताजुलता होता है, जैसे बाबाजी, वशीकरण गुरुजी, बंगाली बाबा, तांत्रिक बाबा खान बंगाली आदि.

इन्होंने अपने बिजनैस को औनलाइन भी फैला रखा है. बाकायदा उन की अपनी वैबसाइट है, फोन नंबर है जिस के जरिए वे लोगों को उन की परेशानियों से छुटकारा दिलाने का दावा करते हैं और लोगों से पैसे ऐंठते हैं. ये लोग यूट्यूब के जरिए भी पैसे कमा रहे हैं. अपने यूट्यूब चैनल में ये खोया हुआ प्यार वापस मिलना, दुश्मनों से छुटकारा, जमीन में गड़ा हुआ धन का पाना, सौतन से छुटकारा, जमीनी विवाद सुलझाना, मनचाहा प्यार पाना संबंधी वीडियो डालते रहते हैं और लोगों को अंधविश्वास के जाल में फंसाते रहते हैं.

कुछ यूट्यूब चैनल तो ऐसे भी हैं जिन के पास लाखों की संख्या में सब्सक्राइबर्स (ग्राहक) हैं. काला जादू और वशीकरण के नाम पर ये बाबा ‘निराश’ लोगों को इस कदर बेवकूफ बनाते हैं कि वे तुरंत ही उन की चिकनीचुपड़ी बातों में आ जाते हैं और बाबा को अपना सबकुछ न्योछावर कर देते हैं. ये सिर्फ झोलाछाप बाबा और तांत्रिक नहीं हैं जो प्यार और वैवाहिक समस्याओं के जादुई समाधान प्रदान करते हैं बल्कि कई पढ़ेलिखे और इंग्लिश बोलने वाले ज्योतिषी भी हैं जो इस तरह का दावा करते हैं.

जागरूकता जरूरी

हमारे देश की सब से बड़ी विडंबना यह है कि यहां अंधविश्वासों और अंधविश्वासियों की कमी नहीं है. लोग बहुत जल्द छलावों में फंसते हैं. जिंदगी में थोड़ी सी उथलपुथल हुई नहीं कि चल दिए तांत्रिकबाबा के पास. यही बाबा मौके का फायदा उठाते हैं और आस्था के नाम पर डरा कर, तंत्रमंत्र का जाल बना कर लोगों को अपनी गिरफ्त में कर लेते हैं और उन से मोटी रकम वसूल करते हैं.

इस तरह का जाल फैलाने वाले बाबाओं पर लगाम लगाने की जरूरत है और इस के लिए सब से जरूरी है लोगों का जागरूक होना. जब तक हम नहीं चाहेंगे, कोई हमारे दिमाग से नहीं खेल सकेगा. बस, हमें अपना दिमाग खुला रखना है. जिंदगी में जैसा भी समय आए, सोचसमझ कर फैसले लेने हैं और तांत्रिकों के रूप में मंडराने वाले लुटेरों से सावधान रहना है.

समझदार भाईबहन की जोड़ी मगर सनातन में कई किंतुपरंतु

विजयलक्ष्मी पंडित और जवाहरलाल नेहरू भारतीय राजनीति की पहली भाईबहन जोड़ी थी जिस ने सक्रिय राजनीति में अपना एक मुकाम बनाया था. एकदूसरे का साथ दिया. जवाहरलाल नेहरू आजाद देश के पहले प्रधानमंत्री बने तो उन की बहन विजयलक्ष्मी पंडित देश की आजादी से पूर्व कैबिनेट पद संभालने वाली पहली महिला बनीं. वे संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनने वाली पहली महिला भी थीं. वहीं, वे महाराष्ट्र की राज्यपाल रहीं और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया. आज के दौर में प्रियंका गांधी और राहुल गांधी की जोड़ी एकदूसरे की पूरक है.

2024 के आम चुनाव में रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट पर कांग्रेस की साख दांव पर लगी थी. ऐसे मे प्रियंका गांधी ने इन दोनों सीटों पर चुनाव प्रबंधन को जिस तरह से संभाला उस से राहुल गांधी की तमाम परेशानियां कम हुईं. राजनीति के क्षेत्र में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की जोड़ी को ले कर तमाम लोग उन को एकदूसरे का विरोधी मानते हैं. इस तरह की बहुत सी खबरें चर्चा में रहती हैं. इस के इतर सचाई यह है कि राहुल और प्रियंका के बीच बहुत अच्छे स्तर पर रिश्ते हैं. प्रियंका एक ताकत के रूप में राहुल गांधी के साथ रहती हैं. राहुल गांधी जिस मसले में परेशान होते हैं, उन को आगे का रास्ता समझ नहीं आता तो वहां पर प्रियंका उन के काम को संभाल लेती हैं.
राहुल और प्रियंका के बीच यह समझदारी कई मौकों पर दिखती भी है. दोनों सब के सामने अपने स्नेह और प्यार का सम्मान करते हैं. गले लगाते हैं तो कभी बच्चों की तरह से बर्फ के गोले से खेलते नजर आते हैं. राहुल के स्वभाव और प्रियंका के स्वभाव में अंतर है. राहुल थोड़ा गुस्से वाले हैं लेकिन प्रिंयका अपना गुस्सा जाहिर नहीं होने देतीं.
राहुल गांधी को मजबूत करने के लिए ही प्रियंका गांधी ने कांग्रेस महासचिव बनाए जाने पर अपनी सहमति दी थी. इस से कांग्रेस में एक ताकत आई है. कांग्रेस प्रियंका गांधी में इंदिरा जैसी कथित छवि देखती है. प्रियंका मुखर होने के साथ ही राजनीतिक मिजाज रखती हैं. वे राहुल गांधी की सहयोगी की ही तरह से काम कर रही हैं. उन के बीच विरोधियों को भले ही प्रतिस्पर्धा दिखती हो, असल में उन के बीच बहुत समझदारी है.

तेजस्वी और रोहिणी आचार्य

बिहार में पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने जब 2024 के लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया तो विरोधियों ने कहना शुरू किया कि इस से लालू परिवार में आपस में झगड़ा बढ़ेगा. सब से ज्यादा मुश्किल तेजस्वी यादव को होगी क्योंकि परिवार की राजनीति में लालू का असली वारिस उन को ही समझा जा रहा है. इस के बाद भी रोहिणी चुनाव मैदान में उतरीं. वे बिहार की सारण सीट से लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं.

रोहिणी लालू यादव की दूसरी बेटी हैं जो चुनाव मैदान में हैं. वे अपने परिवार के पक्ष में सोशल मीडिया पर पहले से ही ऐक्टिव रही हैं. पिछले साल लालू यादव को किडनी डोनेट करने के बाद से वेह सुर्खियां में रही हैं. जब लालू यादव से प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी पूछताछ कर रहे थे, तब भी रोहिणी आचार्य सोशल मीडिया पर आगे बढ़ कर राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ तीखे पोस्ट लिख रही थीं.

लालू प्रसाद की बड़ी बेटी मीसा भारती राज्यसभा सांसद हैं. तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव विधायक हैं. रोहिणी परिवार की चौथी सदस्य हैं जो राजनीति के मैदान में हैं. रोहिणी आचार्य सिंगापुर में अपने पति और बच्चों के साथ रहती हैं. बिहार की सारण लोकसभा सीट से उन का मुकाबला बीजेपी के राजीव प्रताप रूडी से है. सारण वही लोकसभा सीट है जहां से लालू यादव 1977 में पहली बार लोकसभा पहुंचे थे और आखिरी बार भी वहीं से सांसद थे. डीलिमिटेशन से पहले सारण का नाम छपरा लोकसभा सीट हुआ करता था.

लालू यादव अब तक 4 बार इस इलाके से संसद में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. 2013 में चारा घोटाले में सजा हो जाने के चलते लालू यादव की संसद सदस्यता रद्द हो गई थी और उन के चुनाव लड़ने पर भी पाबंदी लग गई. अब भी वो जमानत पर ही जेल से बाहर हैं. 2014 में यह इलाका लालू परिवार के हाथ से छिटक कर बीजेपी के हिस्से में चला गया.

खास बात यह रही कि 2014 में राबड़ी देवी को आरजेडी का उम्मीदवार बनाया गया था, लेकिन बीजेपी के राजीव प्रताप रूडी से वो चुनाव हार गईं. 2019 में आरजेडी ने लालू यादव के समधी चंद्रिका राय को उम्मीदवार बनाया था लेकिन बीजेपी ने कब्जा बरकरार रखा.

लालू यादव सहित परिवार के 5 लोग राजनीति में सक्रिय हैं. आरजेडी की कमान फिलहाल तेजस्वी यादव के हाथ में है. बिहार के 2 बार डिप्टी सीएम रहे तेजस्वी यादव फिलहाल विधायक हैं. उन के बड़े भाई तेज प्रताप यादव भी विधायक हैं. पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी विधान परिषद सदस्य हैं, जबकि लालू यादव की बेटी मीसा भारती राज्यसभा सांसद हैं. अब रोहिणी यादव के चुनाव लड़ने के बाद वे भी राजनीति में हैं.

विरोधी भले ही इस को प्रतिस्पर्धा के रूप में देख रहे हों लेकिन जिस तरह तालमेल के साथ रोहिणी और तेजस्वी यादव चुनाव लड़ रहे हैं उस से भाजपा के सामने संकट खड़ा हो गया है. बिहार राजनीति में ये तीनों भाईबहन पूर्व मुख्यमंत्री लालू और राबड़ी यादव की विरासत को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं. तेजस्वी, तेजप्रताप और मीसा भारती चुनाव राजनीति को संभाल रहे हैं.

दक्षिण की राजनीति में भाईबहन

तमिलनाडु की राजनीति में एम के स्टालिन और कनिमोझी राजनीति के सब से मजबूत भाईबहन हैं. ये दोनों तमिलनाडु में अब पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं. कनिमोझी करुणानिधि की बेटी हैं और एम के स्टालिन उन के बेटे हैं. स्टालिन इस समय तमिलनाडू के मुख्यमंत्री हैं और कनिमोझी इस समय सांसद के रूप में केंद्र की राजनीति में सक्रिय हैं.

तेलंगाना की राजनीति में के कविता और के टी रामाराव भाईबहन की जोड़ी पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हैं. के कविता तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी हैं और के टी रामाराव इन के बेटे हैं और भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. के टी रामाराव प्रदेश के पूर्व उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी, नगरपालिका प्रशासन और शहरी विकास राज्यमंत्री रहे हैं.

वही के कविता विधायक हैं. ये दोनों ही भाईबहन पिता की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने का काम कर रहे हैं. के टी रामाराव बहन के कविता के साथ मजबूती से खड़े हैं. जब दिल्ली के कथित शराब घोटाले में ई डी ने के कविता को गिरफ्तार किया तो भाई मजबूती से उन के साथ खड़ा था. वे दिल्ली तक गए और अपना विरोध दर्ज कराया.

राजनीति से अलग भी एकदूसरे की पूरक रही हैं भाईबहन की जोड़ियां

सारा अली खान नई जेनरेशन के स्टार किड्स में फेमस चेहरा हैं. वे बौलीवुड में 3 साल पहले डैब्यू कर चुकी हैं. सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव हैं वे. सारा अकसर इब्राहिम के साथ अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर वैकेशन की फोटो और वीडियो शेयर करते रहती हैं. दोनों ही भाईबहन के फनी वीडियो लोग काफी पसंद भी करते हैं. इब्राहिम के साथ वैकेशन पर बिकिनी फोटो शेयर करने को ले कर दोनों ही ट्रोल्स के निशाने पर भी रहते हैं.

सारा और इब्राहिम की तरह ही आर्यन खान और सुहाना खान की भाईबहन की जोड़ी भी हिट है. इन की गिनती स्टाइलिश सिबलिंग में भी होती है. आर्यन खान के ड्रग्स मामले में पूरा खान परिवार उन के पीछे सपोर्ट सिस्टम के साथ खड़ा रहा. बहन सुहाना ने भी ऐसा ही किया. गिरफ्तारी से ले कर रिहाई तक सुहाना आर्यन के साथ वाली तसवीर शेयर कर के अपना प्यार जाहिर करती रहीं.

भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली और उन की बहन भावना एकदूसरे के बेहद क्लोज हैं. भावना कोहली से बड़ी हैं लेकिन दोनों का रिश्ता दोस्तों जैसा है. पिता की मौत के बाद से वो विराट के जीवन में गार्जियन के रोल में भी रही हैं. वो कोहली के फैशन लेबल वन सैलेक्ट की सदस्य भी हैं.

भावना विराट की पत्नी अनुष्का शर्मा के साथ भी अच्छा बौंड शेयर करती हैं. आईपीएल में फाइनल से बाहर होने पर भावना ने भाई के समर्थन में इंस्टाग्राम पर एक स्पैशल नोट लिखा था. भावना के इस स्पैशल नोट को लोगों ने काफी सराहा था.

सनातन में भाईबहन की दूरी

जिन राजनीतिक दलों पर सनातन धर्म का प्रभाव है वहां पर भाईबहन की आपस में दूरी दिखती है. ऐसा नहीं कि इन दलों में परिवारवाद नहीं है. इस के बाद भी भाई के सामने बहन को आगे नहीं बढ़ाया जाता है. इस की वजह यह है कि धर्म भाईबहन के बीच एक दीवार खड़ी करता है. वहां यह नहीं बताया जाता कि भाईबहन समान हैं. वहां कहा जाता है कि बहन छोटी हो या बड़ी, उसे भाई की दबाव में रहना चाहिए. महाभारत में द्रौपदी का जब चीरहरण हो रहा था तो उस के सगे भाई धृष्टधुम्न और सत्यजीत उस को बचाने के लिए नहीं आए. द्रौपदी को बचाने उन के बालसखा और मुंहबोले भाई के रूप कृष्ण को ही आना पड़ा.

रामायण में रावण अपनी बहन शूर्पणखा का बदला लेने आया. असल में सनातन सोच में भाई और बहन को अलगअलग देखा जाता है. रावण ने शूर्पणखा के लिए सीता का अपहरण किया जो एक गैरसनातनी का भाईबहन का प्यार था. गैरसनातनी हिडिंबा की भाई से बनती थी, इसीलिए भाई ने उसे ही पांडवों को भगाने के लिए भेजा पर सनातनी पांडवों ने हिडिंबा को ऐसे ही पटा लिया जैसे भाजपा आज कांग्रेस नेताओं को पटाती है.

हिंदू रीतिरिवाजों में यह माना जाता है कि बहन को शादी के बाद दूसरे घर जाना होता है. वह पराई होती है. उस का अपने पिता के घर से रिश्ता नहीं होता है. उस का भाई जैसा हक पिता की जायदाद में नहीं होता है. हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 के तहत, एक विवाहित बेटी अपने पिता की पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर हिस्सेदारी की हकदार है. 2005 का संशोधन यह सुनिश्चित करता है कि विवाहित बेटियों सहित बेटियों को भी संपत्ति में बेटे के समान अधिकार है.

यह बात और है कि कानून ने 2005 में बहनों को भी पिता की संपत्ति में बराबर का हक दिया है. इस के बाद भी अभी तक बहनों को हक मिला नहीं है. धर्म के प्रभाव से बहनों को भाई का पूरक नहीं, हिस्सेदार माना जाता है. ऐसे में आपस में रिश्ते अच्छे नहीं होते हैं. आमतौर पर देखा जाता है कि जब तक मातापिता जीवित रहते हैं, भाईबहन के रिश्ते अच्छे होते हैं; जैसे ही पेरैंट्स नहीं रहते, ज्यादातर के रिश्ते खराब हो जाते हैं.

ऐसे में भाईबहन की ऐसी सैलिब्रिटी जोड़ियां भी हैं जो एकदूसरे का पूरक बन कर साथ देते हैं. आज के दौर में जहां रिश्ते कम हो रहे हैं, भाईबहन को हिस्सेदार नहीं, पूरक बन कर एकदूसरे का सहयोग करना चाहिए.

दहेज के कारण जान गंवाती महिलाएं

हरियाणाा के अंबाला जिले में एक महिला लेफ्टिनेंट द्वारा आत्महत्या करने का मामला सामने आया है. यहां भारतीय सेना की मेडिकल कोर में तैनात साक्षी ने संदिग्ध परिस्थितियों में फंदा लगाकर सुसाइड कर लिया. अंबाला छावनी के रेसकोर्स स्थित आवास में वह पंखे से लटकी मिलीं. उन्‍हें तुरंत सेना अस्पताल लाया गया, जहां उनकी मौत हो गई. साक्षी के पिता और भाई ने साक्षी के पति पर आरोप लगाते हुए कहा कि वो खुद भारतीय वायुसेना में स्क्वार्डन लीडर है. वो शादी के कुछ दिनों बाद से ही दहेज़ के लिए उनकी बहन से मारपीट करते थे और उसे मानसिक और शारीरिक प्रातड़ना देते थे , जिसके कारण उनकी बहन ने तंग आकर खुद को फांसी के फंदे पर लटका लिया.

साक्षी के पिता और भाई की माने तो उन्हें साक्षी अक्सर अपने पति की प्रतातड़ना से तंग आकर उन्हें अपना दुखड़ा रोती थी ,पिछले साल के दिसंबर माह से ही नवनीत अक्सर उनकी बहन को दहेज़ और पैसे की डिमांड को लेकर तंग करता था. बीती रात भी साक्षी ने अपने पिता को फोन किया की मुझसे मारपीट की जा रही है और मुझसे कुछ गलत हो सकता है. साक्षी ने जो कहा वह सुबह सच हो गया और उन्हें सुबह 6 बजे फोन आ गया की साक्षी ने मौत को गले लगा लिया है. मृतक के भाई का आरोप है की साक्षी के पति नवनीत ने घर पर लगे कैमरों की सीसीटीवी फुटेज गायब कर दी है और शायद खुद उसने साक्षी को मारा फिर खुद ही उसकी डेड बाड़ी ले कर अस्पताल पहुंच गया.

शिक्षित परिवारों में भी दहेज के मामलें

यह घटना एक ऐसे शिक्षित परिवार की है. जिससे साफ है कि चाहें कितना भी लोग पढ़-लिख लें लेकिन समाज की सोच के बदलने के लिए सिर्फ पढ़ाई ही काफी नहीं है. परिजनों के कहने अनुसार ये घटना भी दहेज के कारण हुई है. वही दहेज जिसके कारण उत्तर-आधुनिक समय में भी न जाने कितनी महिलाओं की मौत का कारण बनती है.

शादी-शुदा महिलाओं की हत्याएं, जिन्हें ससुराल में पति और अन्य सदस्यों ने दहेज के लिए या तो क़त्ल कर दिया गया हो अथवा लगातार उत्पीड़न और यातना देकर आत्महत्या के लिए बाध्य किया जाए, दहेज हत्या कहलाती है. दहेज हत्या एक ऐसा अपराध है जहां महिलाओं के लिए उनके अपने घर ही सबसे असुरक्षित स्थान बन जाते हैं. दहेज और उससे जुड़े अपराधों के मामले में भारत दुनियाभर में पहले स्थान पर आता है. इसके बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और ईरान आते हैं, जहां दहेज हत्या एक बड़ी समस्या बन चुकी है.

आज के उत्तर-आधुनिक समाज में चाहें लड़की कितना भी पढ़-लिख लें और अपने पैरो पर खड़ी हो जाएं लेकिन फिर भी उसे पुरुषों के मुकाबले कमतर ही मानी जाती हैं, इसलिए उसकी स्वीकारोक्ति के लिए शादी में धन की कई बार खुली और कभी मूक मांग रखी जाती है. साथ ही इस मांग को यह कहकर जायज़ ठहरा देते है कि लड़की के माता-पिता जो कुछ भी दे रहे हैं, उनकी बेटी के लिए ही हैं. यह एक तरह से सौदा होता है, जिसमें किसी लड़की को ब्याहने के लिए लड़का और उसके परिवार वाले मोटी रक़म चाहते हैं. दहेज की मांग भारतीय समाज में सामान्य बात हो चुकी है. दहेज की प्रथा मानो शादी का एक अभिन्न अंग बन चुकी है. यह प्रथा सभी समूहों में मौजूद है चाहे वे किसी भी जाति, वर्ग, धर्म के हों. लड़की ब्याहने के लिए लड़के के परिवार की हैसियत के अनुसार दहेज देना पड़ता है. यह ब्याह होने की एक अनिवार्य शर्त ही हो गई है. रूढ़िवादी भारतीय समाज शादी की संस्था और पारिवारिक संरचना में सुधार करने की बजाय इसे पारंपरिक रूप में ही चलाना चाहता है. इस समाज के लिए यह महत्वपूर्ण है ही नहीं कि शादी से पहले लड़के और लड़की में सामंजस्य और आपसी समझ विकसित हो, जिससे बेहतर समाज बन सके. यहां रिश्ते की नींव ही लड़की के घर से मिलने वाला दहेज तय करता है. और अगर ये मांग उनके मुताबिक ना हो तो घरेलु हिंसा, हत्या या आत्महत्या जैसे मामले होते है.

यहां साक्षी खुद लेफ्टिनेंट थी और पति भारतीय वायुसेना में स्क्वार्डन लीडर है और दोनों ही पढ़े-लिखें समझदार थे. दोनों ही के करियर के पीछे उनके कितने सालों की मेहनत रही होगी जो एक ही पल में बिखर गई. पुलिस ने इस मामले में केस दर्ज कर लिया है. साथ ही पुलिस का कहना है कि इस मामले में केस दर्ज किया गया है. नवनीत से पूछताछ की जाएगी. वहीं साक्षी के परिवार का कहना है कि नवनीत को सजा होनी चाहिए. उसने उनकी बेटी की हत्या की है.

क्या कहते है आंकड़े

तमाम वैधानिक सुधारों व कानूनों के बावजूद भी दहेज हत्या व दहेज के लिए ससुराल में शोषण और उत्पीड़न की घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार साल 1995 में दहेज के कारण लगभग 4,668 मौतें हुई थीं. साल 2005 में यह आंकड़ा बढ़कर 6787 हो गया था और साल 2015 में लगभग 7634 महिलाओं की मौत दहेज हत्या के कारण हुई. आए दिन अखबारों, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया में खबरें मिलती रहती हैं कि पढ़े-लिखे और आर्थिक रूप से संपन्न लोग भी दहेज की मोटी रकम ले रहे हैं. देश में सशक्त कानून तो हैं लेकिन उनके लागू होने और अनुपालन की समस्या के कारण बहुत सारी लड़कियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है. कई महिलाएं दहेज की मांग के कारण उत्पीड़न सहते हुए या तो आत्महत्या कर लेती हैं.

एक सवाल पुरुष समाज से

लेकिन एक महिला होने के नाते मेरा सवाल पूरे पुरुष समाज से है कि क्या आपके लिए पूरी जिंदगी साथ रहने वाली लड़की का आपको समझना और हर सुख-दुख में आपके साथ खड़े रहना से ज्यादा जरूरी है दहेज? और एक सवाल उन लोगों से जो दहेज के पक्ष में होते है कि क्या साक्षी और ऐसी ही ओर लड़कियों की जगह आपकी बेटी होगी तब भी आप इस बात के पक्ष में होंगे और उसे मरने के लिए छोड़ देंगे? जितनी मेहनत एक लड़का अपने करियर और अपनी पढ़ाई के लिए करता है उससे कही ज्यादा मेहनत और समाज की चीजों को झेलकर हम आगे बढ़ते है, ऐसे में हमें आपका साथ चाहिए और अगर साथ ना भी दें तो कोई बात नहीं लेकिन इस तरह पैसों के लिए किसी की जान ना लें या उसे अपनी जान लेने पर मजबूर ना करें. साथ ही महिलाओं को भी मैं कहना चाहूंगी कि हम जब जन्म लेते है उसी वक्त से हम बहुत सी चीजें बरदाश्त करते है, ऐसे में इतना सबकुछ झेलने के बाद आपको मजबूत बनना है. आप अगर ऐसे अपनी जान लेंगे तो इतना सबकुछ झेलने का कोई मतलब नहीं. हमें इन सबसे हटकर अपने आपको मजबूती से रखना है ताकि हम इन सब चीजों को रोक सकें.

मेरी दूसरी पत्नी हमेशा झगड़ा करती है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 42 वर्षीय पुरुष हूं. पहली पत्नी की कैंसर से मृत्यु हो गई. दूसरा विवाह किया तो पत्नी से बनी नहीं और तलाक हो गया. मेरे मातापिता ने मुझे दूसरे विवाह के लिए मना किया था क्योंकि वह मुझ से 5 वर्ष बड़ी थी और उस का एक बेटा भी था, लेकिन मैं नहीं माना क्योंकि मैं उस के बेटे को अपना कर पिता बनने का सुख पाना चाहता था पर उस के बेटे ने मु झे कभी अपना पिता नहीं माना और पत्नी भी हर बात में बेटे का ही पक्ष लेती थी. इसी बात पर हमारी तूतू मैंमैं हो जाती थी और एक साल के भीतर ही हमारा तलाक हो गया. बहुत अकेला महसूस करता था. जिंदगी जीने का कोई मकसद नहीं रह गया था तो मातापिता की सलाह मानते हुए मैं ने एक बच्चा गोद ले लिया.अब सब ठीक लगता है. मातापिता घर में बच्चा आने से खुश हैं. मुझे भी पिता बनने का सुख मिल गया. लेकिन पुरुष हूं, एक पार्टनर की कमी खलती है. तीसरी शादी करने की हिम्मत नहीं है. क्या करूं?

जवाब

आप की फीलिंग्स को हम अच्छी तरह सम झ रहे हैं. गृहस्थी का सुख आप को नहीं मिला. पिता बन गए हैं लेकिन पुरुष होने के नाते आप की कुछ शारीरिक जरूरतें भी हैं जिन का आप के जीवन में अभाव है. आप तीसरी शादी करें, इस हक में न तो अब आप के मातापिता हैं और न आप की हिम्मत है.

आप को ऐसे रिलेशनशिप की जरूरत है जहां आप का पार्टनर आप को समझे और आप उसे. आप उस से अपनी फीलिंग्स शेयर कर सकें. मैंटली और फिजिकली आप दोनों एकदूसरे को कंप्लीट कर सकें. आजकल ऐसी बहुत सी वैबसाइट्स हैं जहां आप ही की तरह कई लोग पार्टनर तलाश रहे होते हैं. बहुत सोचसम झ कर देखपरख कर आप डेटिंग करिए. लेकिन हमारी हिदायत है कि किसी के  झांसे में बिलकुल मत आइएगा. ऐसी साइट्स पर धोखेबाज, पैसे लूटने वाले बहुत होते हैं, इसलिए पूरी जांचपड़ताल करने के बाद ही आगे बढ़ें. मातापिता को कुछ बताने की जरूरत नहीं, आप की जिंदगी है. अपनी खुशी कैसे बरकरार रखनी है, यह आप के खुद के हाथ में है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

वतनपरस्ती: उनकी दांत काटी दोस्ती दुश्मनी में क्यों बदल गई

‘‘नया देश, नए लोग दिल नहीं लगता… जी करता है इंडिया लौट जाऊं,’’ समीक्षा ने रोज का राग अलापा. ‘‘यह आस्ट्रेलिया है. सब से अच्छे विकसित देशों में से एक. यहां आ कर बसने के लिए लोग जमीनआसमान एक कर देते हैं और तुम यहां से वापस जाने की बात करती हो. अब इसे मैं तुम्हारा बचपना न कहूं तो और क्या कहूं?’’

‘‘तो क्या करूं? तुम्हारे पास तो तुम्हारे काम की वजह से अपना सोशल सर्कल है, दोनों बच्चों के पास भी उन के स्कूल के फ्रैंड्स हैं. बस एक मैं ही बचती हूं जिसे दिन भर चारदीवारी में अर्थहीन वक्त गुजारना पड़ता है. अकेले रहरह कर तंग आ गई हूं मैं.’’ ‘‘हां, लंबे समय तक चुप रहने के कारण तुम्हारे मुंह से बदबू भी तो आने लगती होगी,’’ प्रतीक चुटकी लेते हुए बोला.

‘‘तुम्हें मजाक सूझ रहा है, मगर मैं वास्तव में गंभीर हूं अपनी समस्या को ले कर… मेरी हालत तो कुएं के मेढक जैसी होती जा रही है. शादी से पहले जो पढ़ाईलिखाई की थी उसे भी घरगृहस्थी में फंस कर भूल चुकी हूं अब तक.’’ ‘‘कौन कहता है कि तुम कुएं का मेढक बन कर जियो… मैं तो चाहता हूं कि तुम आसमान की ऊंचाइयां छुओ.’’

‘‘इस चारदीवारी को पार कर के घर के 3 प्राणियों के सिवा किसी चौथे की सूरत देखने तक को तो नसीब नहीं होती… आसमान की ऊंचाइयों तक क्या खाक पहुंचुंगी मैं?’’ ‘‘जिंदगी की दिशा में अमूलचूल परिवर्तन जिंदगी को देखने के नजरिए और जैसेजैसे जिंदगी मिले उस से सर्वोत्तम पल निचोड़ कर जीवन अमृत ग्रहण करने में है,’’ प्रतीक समीक्षा के हाथ से चाय का प्याला ले कर उसे अपने पास बैठाते हुए किसी फिलौसफर के से अंदाज से बोला.

‘‘मुझे तो इस जीवनअमृत के प्याले को पाने की कोई युक्ति नहीं समझ आती. तुम ही कुछ समाधान ढूंढ़ो मेरे लिए.’’ ‘‘मैं खुद भी कुछ समय से तुम्हारी परेशानी महसूस कर रहा था. जैसेजैसे बच्चे बड़े होते जाएंगे उन की दुनिया हम से अलग होती जाएगी… तब बच्चे अपनी जिंदगी में और भी व्यस्त हो जाएंगे और तुम्हारा एकाकीपन बद से बदतर होता चला जाएगा. अच्छा होगा कि तुम खुद को उस वक्त से मुकाबला करने के लिए अभी से तैयार करना शुरू कर दो और कुछ पढ़लिख लो.’’

‘‘पढ़नालिखना और इस उम्र में… चलो तुम्हारी बात मान कर मैं कोई कोर्स कर भी लूं तो उस से होगा भी क्या? 1-2 साल में कोर्स पूरा हो जाएगा और मैं जहां से चलूंगी वहीं वापस आ कर खड़ी हो जाऊंगी… इस उम्र में मुझे कोई काम तो मिलने से रहा… वह भी यहां आस्ट्रेलिया में.’’ ‘‘नौकरी मिलने का आयु से संबंध जितना इंडिया में होता है उतना यहां आस्ट्रेलिया में नहीं. यहां तो एक तरह का चलन है कि बच्चों के थोड़ा बड़ा हो जाने के बाद मांएं खुद को रिबिल्ट करती हैं और जो भी कोर्सेज तत्कालीन इंडस्ट्री की जरूरत में होते हैं उन्हें कर के फिर से वर्कफोर्स में लौट आती हैं.’’

‘‘हां, अब तुम्हारा आशय कुछकुछ समझ में आ रहा है मुझे. मैं कल दोपहर में आराम से सभी यूनिवर्सिटीज की वैबसाइट पर जा कर देखूंगी कि मेरे लिए क्या ठीक रहेगा.’’

कई दिनों तक विभिन्न शिक्षण संस्थानों की वैबसाइट्स पर घंटों व्यतीत करने के बाद आखिर समीक्षा को एक कोर्स पसंद आ गया. ‘इवेंट मैनेजमैंट’ का. 15 साल बाद फिर से पढ़ाई शुरू करने की घबराहट मिश्रित उमंग के साथ वह टेफ इंस्टिट्यूट पहुंच गई.

यहीं पर उस की मुलाकात हफीजा से हुई. उस ने भी इवेंट मैनेजमैंट कोर्स में प्रवेश लिया था और अपने अंगरेजी के अल्प ज्ञान के कारण कुछ घबराई, सकुचाई अपनेआप में सिमटी सी रहती थी. हफीजा के हालात पर समीक्षा को बड़ी सहानुभूति होती. उसे लगता कि उसे हफीजा को सीमित दायरे से निकालने में उस की थोड़ी मदद करनी चाहिए. वह बचपन से सुनती आई थी कि ज्ञान बांटने से बढ़ता है. व्यावहारिक जीवन में इस की सत्यता को परखने की दृष्टि से समीक्षा ने हफीजा की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया. अब वह जब भी मौका मिलता हफीजा को अपने साथ अंगरेजी बोलने का अभ्यास कराने लगती.

समीक्षा जैसी बुद्धिजीवी दोस्त पा कर हफीजा भी बेहद प्रफुल्लित जान पड़ती थी. कृतज्ञता से सिर से पांव तक डूबी हुई वह मौकेबेमौके समीक्षा के परिवार को अपने घर बुला कर इराकी खाने की लजीज दावतें देती. समीक्षा भी अपने भारतीय पाककौशल का प्रदर्शन करने में पीछे न रहती और इंस्टिट्यूट जाने के लिए 2 लंच पैक तैयार कर के ले जाती. एक स्वयं के लिए और दूसरा अपनी हफीजा के लिए. वे दोनों क्लासरूम में पासपास बैठतीं, साथसाथ असाइनमैंट्स करतीं. दोनों के बीच की घनिष्ठता दिनप्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी. पंजाबी समीक्षा का गोरा रंग, तीखे नैननक्श, इराकी हफीजा से मिलतेजुलते से होने के कारण सभी उन्हें बहनें समझते. उन के बीच का अंतराल तब दृष्टव्य होता जब कोई उन से बात करता. समीक्षा धाराप्रवाह अंगरेजी बोलती तो हफीजा टूटीफूटी और वह भी पक्के इराकी लहजे में.

‘‘तुम्हारी इंग्लिश इतनी अच्छी कैसे है?’’ अपनी टूटीफूटी इंग्लिश से मायूस हफीजा से एक दिन रहा न गया तो उस ने समीक्षा से पूछ

ही लिया. ‘‘इंग्लिश एक तरह से हमारे देश की दूसरी भाषा है. हमारे यहां अच्छे से अच्छे इंग्लिश माध्यम के स्कूल हैं. उच्च शिक्षा का माध्यम ज्यादातर इंग्लिश ही है. इंग्लिश में अनगिनत पत्रपत्रिकाओं का भी प्रकाशन होता है,’’ समीक्षा ने गर्व के साथ कुछ इस अंदाज में ‘इंडिया का हाल ए अंगरेजी’ बयां किया जैसेकि द्वितीय विश्व युद्ध में लड़ने वाला कोई सैनिक किसी को अपने जीते हुए पदकों की गिनती करा रहा हो.

थोड़ी देर हफीजा किंकर्तव्यविमूढ सी समीक्षा की बात सुनती रही, फिर बोली, ‘‘जिंदगी आसान रहती है तुम जैसों के लिए तो इंग्लिश भाषी देशों में आ कर. हमारे जैसों को यहां आ कर सब से पहले तो यहां की जबान सीखने की जंग लड़नी पड़ती है… बाकी चीजें तो बाद की हैं.’’ ‘‘हां हफीजा वह तो ठीक है, लेकिन मैं कई बार सोचती हूं कि ऐसे हालात में तुम यहां आ कैसे गईं, क्योंकि लोकल भाषा का ज्ञान वीजा मिलने की एक जरूरी शर्त है.’’

‘‘मैं… मैं वह क्या है मैं दूसरे तरीके से यहां आई थी,’’ हफीजा उस वक्त तो होशियारी के साथ बात टालने में कामयाब हो गई.

बहरहाल वक्त के साथ धीरेधीरे समीक्षा को पता चल गया कि हफीजा एक विधवा है. उस के पति की मृत्यु उस के बेटे के जन्म के 3-4 महीने पहले ही हो गई थी. अपने कुछ रिश्तेदारों की मदद से वह आस्ट्रेलिया चली आई थी एक रिफ्यूजी बन कर. वे सब रिश्तेदार भी कई साल पहले इसी तरीके से यहां आ कर अब तक आस्ट्रेलियन नागरिक बन चुके थे. पढ़ाई के साथसाथ वह एक रेस्तरां में कुछ घंटे वेटर का काम किया करती थी.

हफीजा का लाइफस्टाइल देख कर समीक्षा हैरान रहती थी. हफीजा का पहनावा किसी रईस से कम नहीं था. वह अच्छे इलाके में अच्छा घर किराए पर ले कर रहती थी और उस का बेटा भी उस क्षेत्र के सब से अच्छे स्कूल में पढ़ता था. ‘‘मुश्किल होती होगी तुम्हें अकेले संभालने में… कैसे संभव हो पाता है ये सब? कुछ घंटे वेटर का काम कर के तो किसी का भी गुजारा नहीं हो सकता यहां?’’ एक दिन घुमावदार तरीके से समीक्षा ने हफीजा के लाइफस्टाइल का राज जानने की उत्सुकता में पूछा. ‘‘मैं एक सिंगल मौम हूं, इसलिए मुझे ‘सोशल सिक्युरिटी अलाउंस’ मिलता है

सरकार से.’’ हफीजा के सत्य वचन समीक्षा को और भी जिज्ञासु बना गए. सो उस ने तहकीकात जारी रखी, ‘‘और तुम ने बताया था कि तुम जब आस्ट्रेलिया आई थी तो तुम्हें इंग्लिश का एक शब्द भी नहीं आता था, पर अब टूटीफूटी ही सही, मगर तुम्हें कामचलाऊ इंग्लिश आती ही है. कैसे सीखा ये सब तुम ने अपने दम पर?’’

‘‘मुझे यहां आ कर ‘एडल्ट माइग्रेंट इंग्लिश प्रोग्राम’ के तहत सरकार की तरफ से 510 घंटे की मुफ्त ट्यूशन मिली थी… अंगरेजी सीखने के लिए.’’

‘‘अच्छा तभी मैं सोचूं कि तुम्हारे इतने ठाट कैसे हैं… अब पता चला कि तुम्हारे देश से इतने सारे लोग रोजरोज बोट में बैठबैठ कर यहां क्यों चले आते हैं… क्यों कुछ खास देशों से आने वाले शरणार्थियों को ले कर नैशनल न्यूज में इतना होहल्ला होता है,’’ जल्दबाजी में समीक्षा के मुंह से सच्चे, मगर कड़वे शब्द बाहर फिसल गए. ‘‘हम से ज्यादा तो इंडियंस यहां आते हैं,’’ हफीजा ने अपना बचाव करते हुए कहा.

‘‘हां आते तो हैं पर आने का तरीका तुम लोगों वाला नहीं है. हमारे जैसे उच्चशिक्षित लोग स्किल माइग्रेशन वीजा पर आते हैं या फिर स्टूडैंट वीजा पर. दोनों ही स्थितियों में हम इन देशों की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में अपना योगदान देते हैं…’’ हफीजा ने तत्काल समीक्षा की बात बीच में काटी, ‘‘और हां वह क्या फरमाया तुम ने कि नैशनल न्यूज में हम जैसों को ले कर होहल्ला होता रहता है… क्या तुम ने कभी ‘एसबीएस’ टीवी देखा है… कैसीकैसी डौक्यूमैंटरीज आती हैं उस पर तुम्हारे इंडिया के बारे में… उफ वह खुले हुए बदबूदार गटर, गंदी झुग्गीझोंपडि़यां,’’ हफीजा ने नाक सिकोड़ कर हिकारत से कहा, ‘‘कुछ साल पहले एक औस्कर अवार्ड विनर मूवी भी तो बनी थी तुम्हारे देश के बारे में. उस में भी तो ये सब गंद ही दिखाया गया था… क्या नाम था उस का… हां याद आ गया ‘स्लमडौग मिलियनेयर…’ ओएओए हाल तेरे देश का बदहाल है, फिर भी तेरा दिमाग आसमां पर है,’’ हफीजा समीक्षा की बेइज्जती करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी. ‘‘हम स्वाभिमानी लोग हैं… कम से कम तुम्हारी तरह मुफ्त की चीजों के लिए इधरउधर नहीं भागते फिरते. हमारा इंडिया, इंडिया है और तुम्हारा इराक, इराक… है कोई मुकाबला क्या… न ही हो सकता. इन विकसित देशों को हमारे जैसे प्रतिभासंपन्न लोगों की बहुत जरूरत होती है, इसलिए बड़ी कंपनियां हमारे वीजा स्पौंसर कर के हमें यहां बुलाती हैं. दुनिया भर की इनफौरमेशन टैक्नोलौजी हम इंडियंस के बलबूते पर ही चल

रही है. हम, हम हैं… हम बिना जरूरत के शरणार्थी बन कर विकसित देशों का आर्थिक विदोहन करने के लिए नहीं आते,’’ अब तक समीक्षा भी इंडोनेशिया में असमय फटने वाले ज्वालामुखी में तबदील हो चुकी थी. ‘‘बड़े ही फेंकू होते हो तुम लोग… ऐसे ही विद्वान हो तो अपने ही देश में सदियों तक गुलाम क्यों बने रहे… क्यों लुटतेपिटते रहे अपनी ही जमीं पर विदेशियों के हाथों?’’

‘‘लुटेरे तो वहीं आते हैं न जहां धनदौलत के अंबार लगे होते हैं. इतिहास गवाह है कि हमारा इंडिया प्राचीनकाल से ही अकूत संपदा और ज्ञान का केंद्र रहा है. जिसे देखो वही दुनिया भर से हमारा धन और ज्ञान लूटने चला आता था. जब ब्रिटिश लोग आए थे तो हमारी जीडीपी पूरे विश्व की 25% थी… यह हाल तो हमारे देश का तब था जबकि ब्रिटिश लोगों के आने के पहले भी अनगिनत आक्रमणकारी टनों संपदा लूट कर ले जा चुके थे. जगत गुरु है हमारा इंडिया समझीं तुम…?’’ समीक्षा के दिलदिमाग एक हो कर उसे आपे से बाहर कर चुके थे. ‘‘ऐसी ही चाहत है दुनिया को तुम लोगों की तो मेलबौर्न में इंडियन स्टूडैंट्स को ले कर इतने फसाने क्यों हुए थे?’’ जाने कहांकहां से हफीजा भी इंडियंस के बारे में खोदखोद कर नएपुराने तथ्य निकाल रही थी.

‘‘कुछ एक पागल लोग तो सब जगह होते हैं… थोड़ीबहुत ऊंचनीच तो सब जग हो जाती है… मगर तुम लोग, तुम तो जहां रहते हो वहीं दंगा करते हो. पूरी दुनिया सच जान चुकी है तुम्हारा… शांति से रहना तो तुम लोगों ने सीखा ही नहीं है. सुविधाओं का फायदा उठाने पहुंच जाते हो अच्छे देशों में, मगर सगे किसी के नहीं होते तुम लोग.’’

जवाब में हफीजा ने समीक्षा को खा जाने वाली निगाहों से घूरा. समीक्षा ने बदले में एक विदूप मुसकराहट उस की ओर फेंकी और अपनी किताबें समेटने लगी. हफीजा कुरसी को लात मारते हुए क्लासरूम से बाहर निकल गई. शुक्र है यह नजारा देखने के लिए उस वक्त वहां कोई नहीं था. वे दोनों फुरसत के क्षणों में एक खाली क्लासरूम में अंगरेजी का अभ्यास करने के लिए आई थीं. मगर यह हसीन गुफ्तगू अचानक बेहद संगीन मोड़ ले गई. उस दिन के बाद दोनों पक्की सहेलियां क्लासरूम के ओरछोर पर बैठने लगीं. एकदूसरे को पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए. फिर कभी उन्होंने आपस में आंखें नहीं मिलाईं. यह आपसी दुश्मनी थी या फिर अपनीअपनी वतनपरस्ती, कहना मुश्किल है.

कौन चरित्रहीन: क्यों आभा ने बच्चों की कस्टडी मांगी?

उसके हाथों में कोर्ट का नोटिस फड़फड़ा रहा था. हत्प्रभ सी बैठी थी वह… उसे एकदम जड़वत बैठा देख कर उस के दोनों बच्चे उस से चिपक गए. उन के स्पर्श मात्र से उस की ममता का सैलाब उमड़ आया और आंसू बहने लगे. आंसुओं की धार उस के चेहरे को ही नहीं, उस के मन को भी भिगो रही थी. न जाने इस समय वह कितनी भावनाओं की लहरों पर चढ़उतर रही थी. घबराहट, दुख, डर, अपमान, असमंजस… और न जाने क्याक्या झेलना बाकी है अभी. संघर्षों का दौर है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. जब भी उसे लगता कि उस की जिंदगी में अब ठहराव आ गया है, सबकुछ सामान्य हो गया है कि फिर उथलपुथल शुरू हो जाती है.

दोनों बच्चों को अकेले पालने में जो उस ने मुसीबतें झेली थीं, उन के स्थितियों को समझने लायक बड़े होने के बाद उस ने सोचा था कि वे कम हो जाएंगी और ऐसा हुआ भी था. पल्लवी 11 साल की हो गई थी और पल्लव 9 साल का. दोनों अपनी मां की परेशानियों को न सिर्फ समझने लगे थे वरन सचाई से अवगत होने के बाद उन्होंने अपने पापा के बारे में पूछना भी छोड़ दिया था. पिता की कमी वे भी महसूस करते थे, पर नानी और मामा से उन के बारे में थोड़ाबहुत जानने के बाद वे दोनों एक तरह से मां की ढाल बन गए थे. वह नहीं चाहती थी कि उस के बच्चों को अपने पापा का पूरा सच मालूम हो, इसलिए कभी विस्तार से इस बारे में बात नहीं की थी. उसे अपनी ममता पर भरोसा था कि उस के बच्चे उसे गलत नहीं समझेंगे.

कागज पर लिखे शब्द मानो शोर बन कर उस के आसपास चक्कर लगा रहे थे, ‘चरित्रहीन, चरित्रहीन है यह… चरित्रहीन है इसलिए इसे बच्चों को अपने पास रखने का भी हक नहीं है. ऐसी स्त्री के पास बच्चे सुरक्षित कैसे रह सकते हैं? उन्हें अच्छे संस्कार कैसे मिल सकते हैं? इसलिए बच्चों की कस्टडी मुझे मिलनी चाहिए… एक पिता होने के नाते मैं उन का ध्यान ज्यादा अच्छी तरह रख सकता हूं और उन का भविष्य भी सुरक्षित कर सकता हूं…’

चरित्रहीन शब्द किसी हथौड़े की तरह उस के अंतस पर प्रहार कर रहा था. मां को रोता देख पल्लवी ने कोर्ट का कागज मां के हाथों से ले लिया. ज्यादा कुछ तो समझ नहीं आया. पर इतना अवश्य जान गई कि मां पर इलजाम लगाए जा रहे हैं.

‘‘पल्लव तू सोने जा,’’ पल्लवी ने कहा तो वह बोला, ‘‘मैं कोई छोटा बच्चा नहीं हूं. सब जानता हूं. हमारे पापा ने नोटिस भेजा है और वे चाहते हैं कि हम उन के पास जा कर रहें. ऐसा कभी नहीं होगा. मम्मी आप चिंता न करें. मैं ने टीवी में एक सीरियल में देखा था कि कैसे कोर्ट में बच्चों को लेने के लिए लड़ाई होती है. मैं नहीं जाऊंगा पापा के पास. दीदी आप भी नहीं जाना.’’

पल्लव की बात सुन कर वह हैरान रह गई. सही कहते हैं लोग कि वक्त किसी को भी परिपक्व बना सकता है.

‘‘मैं भी नहीं जाऊंगी उन के पास और कोर्ट में जा कर कह दूंगी कि हमें मम्मी के पास ही रहना है. फिर कैसे ले जाएंगे वे हमें. मुझे तो उन की शक्ल तक याद नहीं. इतने सालों तक एक बार भी हम से मिलने नहीं आए. फिर अब क्यों ड्रामा कर रहे हैं?’’ पल्लवी के स्वर में रोष था.

कोई गलती न होने पर भी वह इस समय बच्चों से आंख नहीं मिला पा रही थी. छि: कितने गंदे शब्द लिखे हैं नोटिस में… किसी तरह उस ने उन दोनों को सुलाया.

रात की कालिमा परिवेश में पसर चुकी थी. उसे लगा कि अंधेरा जैसे धीरेधीरे उस की ओर बढ़ रहा है. इस बार यह अंधेरा उस के बच्चों को छीनने के लिए आ रहा है. भयभीत हो उस ने बच्चों की ओर देखा… नहीं, वह अपने बच्चों को अपने से दूर नहीं होने देगी… अपने जिगर के टुकड़ों को कैसे अलग कर सकती है वह?

तब कहां गया था पिता का अधिकार जब उसे बच्चों के साथ घर छोड़ने पर मजबूर किया गया था? बच्चों की बगल में लेट कर उस ने उन के ऊपर हाथ रख दिया जैसे कोई सुरक्षाकवच डाल दिया हो.

उस के दिलोदिमाग में बारबार चरित्रहीन शब्द किसी पैने शीशे की तरह चुभ रहा था. कितनी आसानी से इस बार उस पर एक और आरोप लगा दिया गया है और विडंबना तो यह है कि उस पर चरित्रहीन होने का आरोप लगाया गया है जिसे कभी झल्ली, मूर्ख, बेअक्ल और गंवारकहा जाता था. आभा को लगा कि नरेश का स्वर इस कमरे में भी गूंज रहा है कि तुम चरित्रहीन हो… तुम चरित्रहीन हो… उस ने अपने कानों पर हाथ रख लिए. सिर में तेज दर्द होने लगा था.

समय के साथ शब्दों ने नया रूप ले लिया, पर शब्दों की व्यूह रचना तो बरसों पहले ही हो चुकी थी. अचानक ‘तुम गंवार हो… तुम गंवार हो…’ शब्द गूंजने लगे… आभा घिरी हुई रात के बीच अतीत के गलियारों में भटकने लगी…

‘‘मांबाप ने तुम जैसी गंवार मेरे पल्ले बांध मेरी जिंदगी खराब कर दी है. तुम्हारी जगह कोई पढ़ीलिखी, नौकरीपेशा बीवी होती तो मुझे कितनी मदद मिल जाती. एक की कमाई से घर कहां चलता है. तुम्हें तो लगता है कि घर संभाल रही हो तो यही तुम्हारी बहुत बड़ी क्वालिफिकेशन है. अरे घर का काम तो मेड भी कर सकती है, पर कमा कर तो बीवी ही दे सकती है,’’ नरेश हमेशा उस पर झल्लाता रहता.

आभा ज्यादातर चुप ही रहती थी. बहुत पढ़ीलिखी न सही पर ग्रैजुएट थी. बस आगे कोई प्रोफैशनल कोर्स करने का मौका ही नहीं मिला. कालेज खत्म होते ही शादी कर दी गई. सोचा था शादी के बाद पढ़ेगी, पर सासससुर, देवर, ननद और गृहस्थी के कामों में ऐसी उलझी कि अपने बारे में सोच ही नहीं पाई. टेलैंट उस में भी है. मूर्ख नहीं है. कई बार उस का मन करता कि चिल्ला कर एक बार नरेश को चुप ही करा दे, पर सासससुर की इज्जत का मान रखते हुए उस ने अपना मुंह ही सी लिया. घर में विवाद हो, यह वह नहीं चाहती थी.

मगर मन ही मन ठान जरूर लिया था कि वह पढ़ेगी और स्मार्ट बन कर दिखाएगी…

स्मार्ट यानी मौडर्न और वह भी कपड़ों से…

ऐसी नरेश की सोच थी… पर वह स्मार्टनैस सोच में लाने में विश्वास करती थी. जल्दीजल्दी 2 बच्चे हो गए, तो उस की कोशिशें फिर ठहर गईं. बच्चों की अच्छी परवरिश प्राथमिकता बन गई. मगर खर्चे बढ़े तो नरेश की झल्लाहट भी बढ़ गई. बहन की शादी पर लिया कर्ज, भाई की भी पढ़ाई और मांबाप की भी जिम्मेदारी… गलती उस की भी नहीं थी. वह समझ रही थी इसलिए उस ने सिलाई का काम करने का प्रस्ताव रखा, ट्यूशन पढ़ाने का प्रस्ताव रखा पर गालियां ही मिलीं.

‘‘कोई सौफिस्टिकेटेड जौब कर सकती हो तो करो… पर तुम जैसी गंवार को कौन नौकरी देगा. बाहर निकल कर उन वर्किंग वूमन को देखो… क्या बढि़या जिंदगी जीती हैं. पति का हाथ भी बंटाती हैं और उन की शान भी बढ़ाती हैं.’’

आभा सचमुच चाहती थी कि कुछ करे. मगर वह कुछ सोच पाती उस से पहले ही विस्फोट हो गया.

‘‘निकल जा मेरे घर से… और अपने इन बच्चों को भी ले जा. मुझे तेरी जैसी गंवार की जरूरत नहीं… मैं किसी नौकरीपेशा से शादी करूंगा. तेरी जैसी फूहड़ की मुझे कोई जरूरत नहीं.’’

सकते में आ गई थी वह. फूहड़ और गंवार मैं हूं कि नरेश… कह ही नहीं पाई वह.

सासससुर के समझाने पर भी नरेश नहीं माना. उस के खौफ से सभी डरते थे. उस के चेहरे पर उभरे एक राक्षस को देख उस समय वह भी डर गई थी. सोचा कुछ दिनों में जब उस का गुस्सा शांत हो जाएगा, वह वापस आ जाएगी. 2 साल की पल्लवी और 1 साल के पल्लव को ले कर जब उस ने घर की देहरी के बाहर पांव रखा था तब उसे क्या पता था कि नरेश का गुस्सा कभी शांत होगा ही नहीं.

मायके में आ कर भाईभाभी की मदद व स्नेह पा कर उस ने ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमैंट की पढ़ाई की. फिर जब एक कंपनी में उसे नौकरी मिली तो लगा कि अब उस के सारे संघर्ष खत्म हो गए हैं. बच्चों को अच्छे स्कूल में डाल दिया. खुद का किराए पर घर ले लिया.

इतने सालों बाद फिर से यह झंझावात कहां से आ गया. यह सच है कि नरेश ने तलाक नहीं लिया था, पर सुनने में आया था कि किसी पैसे वाली औरत के साथ ऐसे ही रह रहा था. सासससुर गांव चले गए थे और देवर अपना घर बसा कर दूसरे शहर में चला गया था. फिर अब बच्चे क्यों चाहिए उसे…

वह इस बार हार नहीं मानेगी… वह लड़ेगी अपने हक के लिए. अपने बच्चों की खातिर. आखिर कब तक उसे नरेश के हिसाब से स्वयं को सांचे में ढालते रहना होगा. उसे अपने अस्तित्व की लड़ाई तो लड़नी ही होगी. आखिर कैसे वह जब चाहे जैसा मरजी इलजाम लगा सकता है और फिर किस हक से… अब वह तलाक लेगी नरेश से.

अदालत में जज के सामने खड़ी थी आभा. ‘‘मैं अपने बच्चों को किसी भी हालत में इसे नहीं सौंप सकती हूं. मेरे बच्चे सिर्फ मेरे हैं. पिता का कोई दायित्व कब निभाया है इस आदमी ने…’’

‘‘तुम्हारी जैसी महत्त्वाकांक्षी, रातों को देर तक बाहर रहने वाली, जरूरत से ज्यादा स्मार्ट और मौडर्न औरत के साथ बच्चे कैसे सुरक्षित रह सकते हैं? पुरुषों के साथ मीटिंग के बहाने बाहर जाती है, उन से हंसहंस कर बातें करती है… मैं ने इसे छोड़ दिया तो क्या यह अब किसी भी आदमी के साथ घूमने के लिए आजाद है? जज साहब, मैं इसे अभी भी माफ करने को तैयार हूं. यह चाहे तो वापस आ सकती है. मैं इसे अपना लूंगा.’’

‘‘नहीं. कभी नहीं. तुम इसलिए मुझे अपनाना चाहते हो न, क्योंकि मैं अब कमाती हूं. तुम्हें उस अमीर औरत ने बेइज्जत कर के बाहर निकाल दिया है और तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें कमा कर खिलाऊं? नरेश मैं तुम्हारे हाथों की कठपुतली बनने को तैयार नहीं हूं और न ही तुम्हें बच्चों की कस्टडी दूंगी. हां, तुम से तलाक जरूर लूंगी.

‘‘जज साहब अगर बच्चों को अच्छी जिंदगी देने के लिए मेहनत कर पैसा कमाना चारित्रहीनता की निशानी है तो मैं चरित्रहीन हूं. जब मैं घर की देहरी के अंदर खुश थी तो मुझे गंवार कहा गया, जब मैं ने घर की देहरी के बाहर पांव रखा तो मैं चरत्रिहीन हो गई. आखिर यह कैसी पुरुष मानसिकता है… अपने हिसाब से तोड़तीमरोड़ती रहती है औरत के अस्तित्व को, उस की भावनाओं को अपने दंभ के नीचे कुचलती रहती है… मुझे बताइए मैं चरित्रहीन हूं या नरेश जैसा पुरुष?’’ आभा के आंसू बांध तोड़ने को आतुर हो उठे थे. पर उस ने खुद को मजबूती से संभाला.

‘‘मैं तुम्हें तलाक देने को तैयार नहीं हूं. तुम भिजवा दो तलाक का नोटिस. चक्कर लगाती रहना फिर अदालत के बरसों तक,’’ नरेश फुफकारा था.

केस चलता जा रहा था. पल्लवी और पल्लव को आभा को न चाहते हुए भी केस में घसीटना पड़ा. जज ने कहा कि बच्चे इतने बड़े हैं कि उन से पूछना जरूरी है कि वे किस के साथ रहना चाहते हैं.

‘‘हम इस आदमी को जानते तक नहीं हैं. आज पहली बार देख रहे हैं. फिर इस के साथ कैसे जा सकते हैं? हम अपनी मां के साथ ही रहेंगे.’’

अदालत में 2 साल तक केस चलने के बाद जज साहब ने फैसला सुनाया, ‘‘नरेश को बच्चों की कस्टडी नहीं मिल सकती और आभा पर मानसिक रूप से अत्याचार करने व उस की इज्जत पर कीचड़ उछालने के जुर्म में उस पर मानहानि का मुकदमा चलाया जाए. ऐसी घृणित सोच वाले पुरुष ही औरत की अस्मिता को लहूलुहान करते हैं और समाज में उसे सम्मान दिलाने के बजाय उस के सम्मान को तारतार कर जीवन में आगे बढ़ने से रोकते हैं. आभा को परेशान करने के एवज में नरेश को उन्हें क्व5 लाख का हरजाना भी देना होगा.’’

आभा ने नरेश के आगे तलाक के पेपर रख दिए. बुरी तरह से हारे हुए नरेश के सामने कोई विकल्प ही नहीं बचा था. दोनों बच्चों के लिए तो वह एक अजनबी ही था. कांपते हाथों से उस ने पेपर्स पर साइन कर दिए. अदालत से बाहर निकलते हुए आभा के कदमों में एक दृढ़ता थी. दोनों बच्चों ने उसे कस कर पकड़ा था.

अति निराश करती मनोज बाजपेयी की सौंवी फिल्म भैयाजी

(एक स्टार)

लगभग एक साल पहले मनोज बाजपेयी के अभिनय से सजी व अपूर्व सिंह कर्की के निर्देशन में बनी फिल्म ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ ओटीटी प्लेटफौर्म ‘जी5’ पर स्ट्रीम हुई थी. इसे काफी पसंद किया गया था. निर्देशक के साथ ही मनोज बाजपेयी ने भी जम कर तारीफें बटोरी थीं. इस से मनोज बाजपेयी इस कदर हवा में उड़े कि उन्होंने अपूर्व सिंह कर्की के निेर्देशन में फिल्म ‘भैयाजी’ में न सिर्फ शीर्ष भूमिका निभाई बल्कि विनोद भानुशाली व समीक्षा शैल ओसवाल के संग इस का निर्माण भी किया.

फिल्म में निर्माता के तौर पर मनोज बाजपेयी की पत्नी शबाना रजा बाजपेयी का नाम है. ‘भैयाजी’ मनोज बाजपेयी के कैरियर की सौंवी फिल्म है, जिस में वह पहली बार एक्शन हीरो बन कर आए हैं. अति कमजोर कहानी व पटकथा के चलते यह फिल्म काफी निराश करती है. फिल्म ‘भैयाजी’ देख कर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि इसी फिल्म के लेखक व निर्देशक अपूर्व सिंह कर्की ने एक साल पहले ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ का लेखन व निर्देशन कर चुके हैं.

फिल्म की कहानी बिहार के पूपरी गांव, सीतामढ़ी से शुरू होती है. जहां रामचरण त्रिपाठी उर्फ भैयाजी (मनोज बाजपेयी) का अपना रूतबा है. कभी उन के पिता की ही तरह वह भी बहुत बड़े दबंग, खूंखार माफिया थे. एक वक्त वह था जब अपने फावड़े से भैयाजी ने अच्छेअच्छे वीरों को मौत के घाट उतारा था और गरीबों की मदद किया करते थे. अब उन के परिवार में उन की सौतेली मां (भागीरथी बाई) व उन का सौतेला भाई वेदांत (आकाश मखीजा) है.

पिता के मरने के बाद उन की सौतेली मां ने उन्हें कसम दिलाई कि अब वह शरीफ बन कर ही जिएंगे. अधेड़ उम्र में पहुंच चुके भैयाजी अब मिताली (जोया हुसेन) से शादी करने जा रहे हैं. सीतामढ़ी में संगीत का कार्यक्रम चल रहा है. छोटा भाई वेदांत दिल्ली से आ रहा है लेकिन वेदांत सीतामढ़ी नहीं पहुंचता. वेदांत के साथ ही उस के सभी दोस्तों के फोन भी बंद मिलते हैं. तभी दिल्ली के कमलानगर पुलिस स्टेशन से सब इंस्पैक्टर मगन (विपिन शर्मा) का फोन भैयाजी के पास आता है कि वेदांत का एक्सीडैंट हो गया है, आप दिल्ली आ जाइए.

उधर दिल्ली में चंद्रभान (सुविंदर विक्की) दिखने में शरीफ मगर अति खूंखार माफिया सरगना है. उस का बेटा अभिमन्यू (जतिन गोस्वामी) है. अभिमन्यू किसी भी लड़की की इज्जत लूट सकता है, किसी की भी हत्या कर सकता है. यदि किसी ने चंद्रभान या उन के बेटे अभिमन्यू का विरोध किया तो चंद्रभान कसाई बन कर उस की हड्डी पसली काट कर, उन टुकड़ों को बोरे में भर कर फेंकवा देता है. सब इंस्पैक्टर मगन, गुज्जर का ही साथ देता है.

दिल्ली पहुंचने पर भैयाजी को पता चलता है कि अभिमन्यू ने ही उस के भाई वेदांत की हत्या की है. अब भैयाजी अभिमन्यू की हत्या करना चाहते हैं पर चंद्रभान ऐसा नहीं होने देना चाहते. अब भैयाजी प्रतिशोध लेने पर उतारू है तो वहीं चंद्रभान, भैयाजी को खत्म कर देना चाहता है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः भैयाजी, चंद्रभान व उन के बेटे अभिमन्यू को घायल कर जिंदा ही आग के हवाले कर अपना प्रतिशोध पूरा करते हैं.

अति कमजोर व बेसिरपैर की कहानी वाली फिल्म ‘भैयाजी’ की तुलना हिंदी फिल्म की बजाय भोजपुरी फिल्मों से ही की जा सकती है. भोजपुरी फिल्मों में जिस तरह के गाने होते हैं, उसी तरह के गाने के साथ फिल्म की शुरूआत होती है. प्रतिशोध की कहानी पर हजारों फिल्में बन चुकी हैं पर ‘भैयाजी’ सब से ज्यादा कमजोर फिल्म है.

इंटरवल तक तो दर्शक बर्दाश्त कर लेते हैं, मगर इंटरवल के बाद फिल्म इतनी घटिया है कि दर्शक सोचता है कि कब खत्म होगी. फिल्मकार ने फिल्म में एक जगह बताया है कि सीतामढ़ी से नई दिल्ली की दूरी को ट्रैन से 16 घंटे में पूरा किया जा सकता है. सीतामढ़ी से गोरखपुर सड़क मार्ग से 4 घंटे में पहुंचा जा सकता है लेकिन फिल्म के दृष्य कब नई दिल्ली, कब सीतामढ़ी में होते हैं, पता ही नहीं चलता. फिल्म में कुछ एक्शन दृष्य अवश्य अच्छे बन पड़े हैं तो वहीं फिल्म में मेलोड्रामैटिक दृष्यों की भरमार है.

इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने ‘यूए’ प्रमाणपत्र दिया जाना भी आश्चर्य की बात है. फिल्म में गुज्जर को कसाई के छूरे से एक इंसान के शरीर के टुकड़े करते हुए दिखाया गया है, तो वहीं जिंदा इंसान को आग के हवाले करते हुए भी दिखाया गया है. इस के अलावा कई एक्शन दृष्य ऐसे हैं जिन का बच्चों के मन मस्तिष्क पर गलत असर पड़ सकता है. पर सेंसर बोर्ड की सोच कुछ और ही है.

फिल्म में मिताली को शूटर बताया गया है, जिसे कई अर्वाड मिल चुके हैं. मगर मिताली यानी कि अभिनेत्री जोया हुसेन तो हवा में उड़ कर बंदूक चलाती हैं. वाह! क्या बात है. सिनेमा के नाम पर कुछ भी दिखा दो. क्या मिताली सुपर हीरो या सुपर हीरोईन है जो कि हवा में उड़ सकती हैं. फिल्म के कई दृष्य अति बनावटी नजर आते हैं, फिर चाहे वह भैयाजी को नदी में फेंकने का दृष्य ही क्यों न हो.

इस फिल्म का प्रचार जिस स्तर पर होना चाहिए था, उस तरह का नहीं हुआ. फिल्म के रिलीज से पहले मनोज बाजपेयी ने चंद पत्रकारों के साथ ग्रुप में बात कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली. फिल्म का पार्श्वसंगीत भी कानफोड़ू है.

इस फिल्म की सब से बड़ी कमजोर कड़ी भैयाजी के किरदार में अभिनेता मनोज बाजपेयी हैं. 55 वर्ष की उम्र में वह एक्शन हीरो बनने चले हैं जबकि एक्शन करना उन के जौनर की बात नहीं है.

फिल्म में भैयाजी को जितना खतरनाक व खूंखार संवादों के माध्यम से बयां किया गया है, वह भैयाजी के कारनामों में नजर नहीं आता. कुछ इमोशनल दृष्यों में जरुर उन का अभिनय अच्छा है. मनोज बाजपेयी राजनीति में माहिर हैं, इस में कोई दो राय नहीं. बिहार निवासी मनोज बाजपेयी हमेशा अंग्रेजीदां पत्रकारों को ही पसंद करते हैं. उन के साथ एक दो हिंदी भाषी पत्रकार हैं, जो कि उस वक्त यह रोना रोने लगते हैं कि हिंदी भाषी कलाकारों का कोई पत्रकार साथ नहीं देता, जब मनोज बाजपेयी की कोई फिल्म रिलीज होने वाली होती है.

क्या इस तरह के विक्टिम कार्ड को खेल कर वह अपनी फिल्म को सफल बनाना चाहते हैं…काश! ऐसा होता. मगर सच यह है कि अपने कैरियर की सौंवी फिल्म में मनेाज बाजपेयी ने निराश किया है. एकदो एक्शन दृष्यों में मिताली का किरदार निभा रही अभिनेत्री जोया हुसेन, मनोज बाजपेयी पर भारी पड़ती नजर आती हैं. कमजोर पटकथा व कमजोर चरित्र चित्रण के चलते किसी भी कलाकार के अभिनय का जादू परदे पर नजर नहीं आता.

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