लेखिका : अपर्णा गर्ग

"सुनो, आप ने मांजी से बात की, आज भी पापा का फोन आया था, बहुत परेशान हो रहे थे."

"मैं तो बिलकुल ही भूल गया…अच्छा हुआ तुम ने याद दिला दिया."

"कितना मुश्किल होता होगा, पापा के लिए 2-2 बेटे हैं, पर साथ में कोई रखना नहीं चाहता. मां के जाने के बाद पापा वैसे भी अकेले हो गए हैं, अब तो उन्हें साथ की जरूरत है, लेकिन यहां तो कोई बात समझने को तैयार ही नहीं है, पापा से कुछ कहो, तो वे गांव जाने के लिए कहते रहते हैं. अब वहां कौन हैं, जो उन का ध्यान रखेगा, पिछली बार जब गए थे, तो शुगर कितनी बढ़ गई थी, हौस्पिटल में ऐडमिट करवाना पड़ा था. पता नहीं, उम्र बढ़ने के बाद सब बच्चे क्यों बन जाते हैं,” सोनाली अपनेआप ही परिस्थिति का विष्लेषण कर रही थी.”

"क्या हुआ, क्या सोच रही हो, कह तो रहा हूं, कल पक्का बात कर लूंगा."

"कैसे होगा, दोनों ही जिद्दी हैं, आसानी से बात नहीं मानेंगे, पापा से बात करो तो वे संस्कृति और संस्कारों की दुहाई देने लगते है. हमारे यहां तो बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते, बेटियां तो पराया धन होती हैं, उन के घर बारबार आना अच्छा नहीं लगता और मांजी…वे तो मेरे मायके का जिक्र आते ही चिढ़ जाती हैं."

"न मैं भैया के घर रह सकती हूं और न ही पापा हमारे घर आ कर रह सकते हैं…अजीब मुश्किल हैं,"सोनाली अपनी रौ में बोलती जा रही थी.

सोनाली,“उन की बात अपनी जगह सही है, अब यह पुराने रीतिरिवाज आसानी से पीछा कहां छोड़ते हैं."

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