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घोंसले का तिनका

7 बज चुके थे. मिशैल के आने में अभी 1 घंटा बचा था. मैं ने अपनी मनपसंद कौफी बनाई और जूते उतार कर आराम से सोफे पर लेट गया. मैं ने टेलीविजन चलाया और एक के बाद एक कई चैनल बदले पर मेरी पसंद का कोई भी प्रोग्राम नहीं आ रहा था. परेशान हो टीवी बंद कर अखबार पढ़ने लगा. यह मेरा रोज का कार्यक्रम था. मिशैल के आने के बाद ही हम खाने का प्रोग्राम बनाते थे. जब कभी उसे अस्पताल से देर हो जाती, मैं चिप्स और जूस पी कर सो जाता. मैं यहां एक मल्टीस्टोर में सेल्समैन था और मिशैल सिटी अस्पताल में नर्स.

दरवाजा खुलने के साथ ही मेरी तंद्रा टूटी. मिशैल ने अपना पर्स दरवाजे के पास बने काउंटर पर रखा और मेरे पास पीछे से गले में बांहें डाल कर बोली, ‘‘बहुत थके हुए लग रहे हो.’’

‘‘हां,’’ मैं ने अंगड़ाई लेते हुए कहा, ‘‘वीकएंड के कारण सारा दिन व्यस्त रहा,’’ फिर उस की तरफ प्यार से देखते हुए पूछा, ‘‘तुम कैसी हो?’’

‘‘ठीक हूं. मैं भी अपने लिए कौफी बना कर लाती हूं,’’ कह कर वह किचन में जातेजाते पूछने लगी, ‘‘मेरे कौफी बींस लाए हो या आज भी भूल गए.’’

‘‘ओह मिशैल, आई एम रियली सौरी. मैं आज भी भूल गया. स्टोर बंद होने के समय मुझे बहुत काम होता है. फूड डिपार्टमेंट में जा नहीं सका.’’

3 दिन से लगातार मिशैल के कहने के बावजूद मैं उस की कौफी नहीं ला सका था. मैं ने उसी समय उठ कर जूते पहने और कहा, ‘‘मैं अभी सामने की दुकान से ला देता हूं, वह तो खुली होगी.’’

‘‘ओह नो, टोनी. मैं आज भी तुम्हारी कौफी से गुजारा कर लूंगी. मुझे तो तुम इसीलिए अच्छे लगते हो कि फौरन अपनी गलती मान लेते हो. थके होने के बावजूद तुम अभी भी वहां जाने को तैयार हो. आई लव यू, टोनी. तुम्हारी जगह कोई यहां का लड़का होता तो बस, इसी बात पर युद्ध छिड़ जाता.’’

मैं ऐसे हजारों प्रशंसा के वाक्य पहले भी मिशैल से अपने लिए सुन चुका था. 5 साल पहले मैं अपने एक दोस्त के साथ जरमनी आया था और बस, यहीं का हो कर रह गया. भारत में वह जब भी मेरे घर आता, उस का व्यवहार और रहनसहन देख कर मैं बहुत प्रभावित होता था. उस का बातचीत का तरीका, उस का अंदाज, उस के कपड़े, उस के मुंह से निकले वाक्य और शब्द एकएक कर मुझ पर अमिट छाप छोड़ते गए. मुझ से कम पढ़ालिखा होने के बावजूद वह इतने अच्छे ढंग से जीवन जी रहा है और मैं पढ़ाई खत्म होने के 3 साल बाद भी जीवन की शुरुआत के लिए जूझ रहा था. मैं अपने परिवार की भावनाओं की कोई परवा न करते हुए उसी के साथ यहां आ गया था.

पहले तो मैं यहां की चकाचौंध और नियमित सी जिंदगी से बेहद प्रभावित हुआ. यहां की साफसुथरी सड़कें, मैट्रो, मल्टीस्टोर, शौपिंग मौल, ऊंचीऊंची इमारतों के साथसाथ समय की प्रतिबद्धता से मैं भारत की तुलना करता तो यहीं का पलड़ा भारी पाता. जैसेजैसे मैं यहां के जीवन की गहराई में उतरता गया, लगा जिंदगी वैसी नहीं है जैसी मैं समझता था.

एक भारतीय औपचारिक समारोह में मेरी मुलाकत मिशैल से हो गई और उस दिन को अब मैं अपने जीवन का सब से बेहतरीन दिन मानता हूं. चूंकि मिशैल के साथ काम करने वाली कई नर्सें एशियाई मूल की थीं इसलिए उसे इन समारोहों में जाने की उत्सुकता होती थी. उसे पेइंग गेस्ट की जरूरत थी और मुझे घर की. हम दोनों की जरूरतें पूरी होती थीं इसलिए दोनों के बीच एक अलिखित समझौता हो गया.

मिशैल बहुत सुंदर तो नहीं थी पर उसे बदसूरत भी नहीं कहा जा सकता था. धीरेधीरे हम एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि अब एकदूसरे के पर्याय बन गए हैं. मेरी नीरस जिंदगी में बहार आने लगी है.

मिशैल जब भी मुझ से भारत की संस्कृति, सभ्यता और भारतीयों की वफादारी की बात करती है तो मैं चुप हो जाता हूं. मैं कैसे बताता कि जो कुछ उस ने सुना है, भारत वैसा नहीं है. वहां की तंग और गंदी गलियां, गरीबी, पिछड़ापन और बेरोजगारी से भाग कर ही तो मैं यहां आया हूं.

उसे कैसे बताता कि भ्रष्टाचार, घूसखोरी और बिजलीपानी का अभाव कैसे वहां के आमजन को तिलतिल कर जीने को मजबूर करता है. इन बातों को बताने का मतलब था कि उस के मन में भारत के प्रति जो सम्मान था वह शायद न रहता और शायद वह मुझ से भी नफरत करने लग जाती. चूंकि मैं इतना सक्षम नहीं था कि अलग रह सकूं इसलिए कई बार उस की गलत बातों का भी समर्थन करना पड़ता था.

‘‘जानते हो, टोनी,’’ मिशैल कौफी का घूंट भरते हुए बोली, ‘‘इस बार हैनोवर इंटरनेशनल फेयर में तुम्हारे भारत को जरमन सरकार ने अतिथि देश चुना है और यहां के अखबार, न्यूज चैनलों में इस समाचार को बहुत बढ़ाचढ़ा कर बताया जा रहा है. जगहजगह भारत के झंडे लगे हुए हैं.’’

‘‘भारत यहां का अतिथि देश होगा?’’ मैं ने जानबूझ कर अनजान बनने की कोशिश की.

‘‘और क्या? देखा नहीं तुम ने…मैं एक बार तो जरूर जाऊंगी, शायद कोई सामान पसंद आ जाए.’’

‘‘मिशैल, भारतीय तो यहां से सामान खरीद कर भारत ले जाते हैं और तुम वहां का सामान…न कोई क्वालिटी होगी न वैराइटी,’’ मैं ने मुंह बनाया.

‘‘कोई बात नहीं,’’ कह कर उस ने कौफी का आखिरी घूंट भरा और मेरे गले में अपनी बांहें डाल कर बोली, ‘‘टोनी, तुम भी चलो न, वस्तुओं को समझने में आसानी होगी.’’

फेयर के पहले दिन सुबहसुबह ही मिशैल तैयार हो गई. मैं ने सोचा था कि उस को वहां छोड़ कर कोई बहाना कर के वहां से चला जाऊंगा. पर मैं ने जैसे ही मेन गेट पर गाड़ी रोकी, गेट पर ही भारत के विशालकाय झंडे, कई विशिष्ट व्यक्तियों की टीम, भारतीय टेलीविजन चैनलों की कतार और नेवी का पूरा बैंड देख कर मैं दंग रह गया. कुल मिला कर ऐसा लगा जैसे सारा भारत सिमट कर वहीं आ गया हो.

मैं ने उत्सुकतावश गाड़ी पार्किंग में खड़ी की तो मिशैल भाग कर वहां पहुंच गई. मेरे वहां पहुंचते ही बोली, ‘‘देखो, कैसा सजा रखा है गेट को.’’

मैं ने उत्सुकता से वहां खड़े एक भारतीय से पूछा, ‘‘यहां क्या हो रहा है?’’

‘‘यहां तो हम केवल प्रधानमंत्रीजी के स्वागत के लिए खड़े हैं. बाकी का सारा कार्यक्रम तो भीतर हमारे हाल नं. 6 में होगा.’’

‘‘भारत के प्रधानमंत्री यहां आ रहे हैं?’’ मैं ने उत्सुकतावश मिशैल से पूछा.

‘‘मैं ने कहा था न कि भारत अतिथि देश है पर लगता है यहां हम लोग ही अतिथि हो गए हैं. जानते हो टोनी, उन के स्वागत के लिए यहां के चांसलर स्वयं आ रहे हैं.’’

थोड़ी देर में वंदेमातरम की धुन चारों तरफ गूंजने लगी. प्रधानमंत्रीजी के पीछेपीछे हम लोग भी हाल नं. 6 में आ गए, जहां भारतीय मंडप को दुलहन की तरह सजाया हुआ था.

प्रधानमंत्रीजी के वहां पहुंचते ही भारतीय तिरंगा फहराने लगा और राष्ट्रीय गीत के साथसाथ सभी लोग सीधे खड़े हो गए, जैसा कि कभी मैं ने अपने स्कूल में देखा था. टोनी आज भारतीय होने पर गर्व महसूस कर रहा था. उसे भीतर तक एक झुरझुरी सी महसूस हुई कि क्या यही वह भारत था जिसे मैं कई बरस पहले छोड़ आया था. आज यदि जरमनी के लोगों ने इसे अतिथि देश स्वीकार किया है तो जरूर अपने देश में कोई बात होगी. मुझे पहली बार महसूस हुआ कि अपना देश और उस के लोग किस कदर अपने लगते हैं.

समारोह के समाप्त होते ही एक विशेष कक्ष में प्रधानमंत्री चले गए और बाकी लोग भारतीय सामान को देखने में व्यस्त हो गए. थोड़ी देर में प्रधानमंत्रीजी अपने मंत्रिमंडल एवं विदेश विभाग के लोगों के साथ भारतीय निर्यातकों से मिलने चले गए. उधर हाल में अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम होेते रहे. एक कोने में भारतीय टी एवं कौफी बोर्ड के स्टालों पर भी काफी भीड़ थी.

मैं ने मिशैल से कहा, ‘‘चलो, तुम्हें भारतीय कौफी पिलवाता हूं.’’

‘‘नहीं, पहले यहां कठपुतलियों का यह नाच देख लें. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है.’’

अगले दिन मेरा मन पुन: विचलित हो उठा. मैं ने मिशैल से कहा तो वह भी वहां जाने को तैयार हो गई.

मैं एकएक कर के भारतीय सामान के स्टालों को देख रहा था. भारत की क्राकरी, हस्तनिर्मित सामान, गृहसज्जा का सामान, दरियां और कारपेट तथा हैंडीक्राफ्ट की गुणवत्ता और नक्काशी देख कर दंग रह गया. मैं जिस स्टोर में काम करता था वहां ऐसा कुछ भी सामान नहीं था. मैं एक भारतीय स्टैंड के पास बने बैंच पर कौफी ले कर सुस्ताने को बैठ गया. पास ही बैठे किसी कंपनी के कुछ लोग आपस में जरमन भाषा में बात कर रहे थे कि भारत का सामान कितना अच्छा और आधुनिक तरीकों से बना हुआ है. वे कल्पना भी नहीं कर पा रहे थे कि यह सब भारत में ही बना हुआ है और एशिया के बाकी देशों की तुलना में भारत कहीं अधिक तरक्की कर चुका है. मुझे यह सब सुन कर अच्छा लग रहा था.

उन्होंने मेरी तरफ देख कर पूछा, ‘‘आप को क्या लगता है कि क्या सचमुच माल भी ऐसा ही होगा जैसा सैंपल दिखा रहे हैं?’’

‘‘मैं क्या जानूं, मैं तो कई वर्षों से यहीं रहता हूं,’’ मैं ने अपना सा मुंह बनाया.

मिशैल ने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे मैं ने कोई गलत बात कह दी हो. वह धीरे से मुझ से कहने लगी, ‘‘तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था. क्या तुम्हें अपने देश से कोई प्रेम नहीं रहा?’’

मैं उस की बातों का अर्थ ढूंढ़ने का प्रयास करता रहा. शायद वह ठीक ही कह रही थी. हाल में दूर हो रहे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में राजस्थानी लोकगीत की धुन के साथसाथ मिशैल के पांव भी थिरकने लगे. वह वहां से उठ कर चली गई.

मैं थोड़ी देर आराम करने के बाद भारतीय सामान से सजे स्टैंड की तरफ चला गया. मेरे हैंडीक्राफ्ट के स्टैंड पर पहुंचते ही एक व्यक्ति उठ कर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘मे आई हैल्प यू?’’

‘‘नो थैंक्स, मैं तो बस, यों ही,’’ मैं हिंदी में बोलने लगा.

‘‘कोई बात नहीं, भीतर आ जाइए और आराम से देखिए,’’ वह मुसकरा कर हिंदी में बोला.

तब तक पास के दूसरे स्टैंड से एक सरदारजी आ कर उस व्यक्ति से पूछने लगे, ‘‘यार, खाने का यहां क्या इंतजाम है?’’

‘‘पता नहीं सिंह साहब, लगता है यहां कोई इंडियन रेस्तरां नहीं है. शायद यहीं की सख्त बै्रड और हाट डाग खाने पड़ेंगे और पीने के लिए काली कौफी.’’

जिस के स्टैंड पर मैं खड़ा था वह मेरी तरफ देख कर बोले, ‘‘सर, आप तो यहीं रहते हैं. कोई भारतीय रेस्तरां है यहां? ’’

‘‘भारतीय रेस्तरां तो कई हैं, पर यहां कुछ दे पाएंगे…यह पूछना पड़ेगा,’’ मैं ने अपनत्व की भावना से कहा.

मैं ने एक रेस्तरां में फोन कर के उस से पूछा. पहले तो वह यहां तक पहुंचाने में आनाकानी करता रहा. फिर जब मैं ने उसे जरमन भाषा में थोड़ा सख्ती से डांट कर और इन की मजबूरी तथा कई लोगों के बारे में बताया तो वह तैयार हो गया. देखते ही देखते कई लोगों ने उसे आर्डर दे दिया. सब लोग मुझे बेहद आत्मीयता से धन्यवाद देने लगे कि मेरे कारण उन्हें यहां खाना तो नसीब होगा.

अगले 3 दिन मैं लगातार यहां आता रहा. मैं अब उन में अपनापन महसूस कर रहा था. मैं जरमन भाषा अच्छी तरह जानता हूं यह जान कर अकसर मुझे कई लोगों के लिए द्विभाषिए का काम करना पड़ता. कई तो मुझ से यहां के दर्शनीय स्थलों के बारे में पूछते तो कई यहां की मैट्रो के बारे में. मैं ने उन को कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां दीं, जिस से पहले दिन ही उन के लिए सफर आसान हो गया.

आखिरी दिन मैं उन सब से विदा लेने गया. हाल में विदाई पार्टी चल रही थी. सभी ने मुझे उस में शामिल होने की प्रार्थना की. हम ने आपस में अपने फोन नंबर दिए, कइयों ने मुझे अपने हिसाब से गिफ्ट दिए. भारतीय मेला प्राधिकरण के अधिकारियों ने मुझे मेरे सहयोग के लिए सराहा और भविष्य में इस प्रकार के आयोजनों में समर्थन देने को कहा. मिशैल मेरे साथ थी जो इन सब बातों को बड़े ध्यान से देख रही थी.

अगले कई दिन तक मैं निरंतर अपनों की याद में खोया रहा. मन का एक कोना लगातार मुझे कोसता रहा, न चाहते हुए भी रहरह कर यह विचार आता रहा कि किस तरह अपने मातापिता से झूठ बोल कर विदेश चला आया. उस समय यह भी नहीं सोचा कि मेरे पीछे उन्होंने कैसे यह सब सहा होगा.

एक दिन मिशैल और मैं टेलीविजन पर कोई भारतीय प्रोग्राम देख रहे थे. कौफी की चुस्कियों के साथसाथ वह बोली, ‘‘तुम्हें याद है टोनी, उस दिन इंडियन कौफी बोर्ड की कौफी पी थी. सचमुच बहुत ही अच्छी थी. सबकुछ मुझे बहुत अच्छा लगा और वह कठपुतलियों का नाच भी…कभीकभी मेरा मन करता है कुछ दिन के लिए भारत चली जाऊं. सुना है कला और संस्कृति में भारत ही विश्व की राजधानी है.’’

‘‘क्या करोगी वहां जा कर. जैसा भारत तुम्हें यहां लगा असल में ऐसा है नहीं. यहां की सुविधाओं और समय की पाबंदियों के सामने तुम वहां एक दिन भी नहीं रह सकतीं,’’ मैं ने कहा.

‘‘पर मैं जाना जरूर चाहूंगी. तुम वहां नहीं जाना चाहते क्या? क्या तुम्हारा मन नहीं करता कि तुम अपने देश जाओ?’’

‘‘मन तो करता है पर तुम मेरी मजबूरी नहीं समझ सकोगी,’’ मैं ने बड़े बेमन से कहा.

‘‘चलो, अपने लोगों से तुम न मिलना चाहो तो न सही पर हम कहीं और तो घूम ही सकते हैं.’’

मैं चुप रहा. मैं नहीं जानता कि मेरे भीतर क्या चल रहा है. दरअसल, जिन हालात में मैं यहां आया था उन का सामना करने का मुझ में साहस नहीं था.

सबकुछ जानते हुए भी मैं ने अपनेआप को आने वाले समय पर छोड़ दिया और मिशैल के साथ भारत रवाना हो गया.

ऐसे उड़ाया सास का फ्यूज

दहेज में लोगों को कार, फ्रिज, वाशिंग मशीन, एअरकंडीशनर व और भी जाने क्याक्या मिलता है पर हमें एक अदद सास और साला मिला था. पत्नी ने पहली ही रात को रो गा कर हम से मनवा लिया था कि उस की मां और उस का छोटा भाई हमारे साथ ही रहेंगे. पत्नी पर अपनी उदारवादी छवि बनाने के चक्कर में मुझे उस की यह बात विष की तरह हलक के नीचे उतारनी पड़ी. फिर दिल में दहेज कानून का भी डर समाया था कि पत्नी की हां में हां न मिलाई तो वह दहेज मांगने का हथियार न चला दे, लिहाजा, अपनी इज्जत बचाने में ही अपनी खैर समझी और पत्नी से सास व साले साहब को घर में रहने का निमंत्रण भिजवा दिया था.

पत्नी ने तब खुशी के मारे हमें अपनी बांहों में भर लिया. हमें लगा कोई मादा अजगर ने हमें दबोच लिया है. अजगर जिस तरह अपने शिकार को निगलता है उसी तरह इस प्रेम के चलते हम भी धीरेधीरे बरबाद होने वाले थे.

हम ठहरे दफ्तर के बाबू और दफ्तर भी ऐसा जहां ऊपरी कमाई होती ही नहीं है. हमारे पास जन्ममरण पंजीयन करने का काम है. मरने वाला क्या देगा और जिंदा व्यक्ति तो वैसे ही हमें खाने को दौड़ता है.

अपने घर का बजट 1-2 माह तो किसी तरह से खींच लिया, लेकिन 3-4 माह के बाद ही हमें लगा कि या तो हम आत्महत्या कर लें या साससाले को जहर दे दें. लेकिन हम थोडे़ अहिंसावादी व्यक्ति हैं, जियो और जीने दो में विश्वास करते हैं, सो दोनों काम हम से नहीं हो सके और इस जुगाड़ में लग गए कि किस तरह इन दोनों मुसीबत से मुक्ति पाएं और चैन से अपना जीवन जी सकें.

हम रातदिन सास और साले पर निगरानी रखने के लिए एकदो दिन बीमार हो कर बिस्तर पर पड़ गए. इस निगरानी में हम नें पाया कि हमारी एकमात्र सास को दोचार काम बहुत प्रिय थे. खाना और फिर पंखा चालू कर के सो जाना. साले को 2 शौक थे, एक, टीवी देखना और दूसरा, कूलर चला कर सोना. चाहे गरमी हो या ठंड वह कंबल ओढ़ कर कूलर के सामने सोता था.

हम ने अपने एक परम नजदीकी मित्र से बात की जोकि विद्युत विभाग में कर्मचारी था. पहले तो वह हमारी योजना में शामिल होने को तैयार नहीं हुआ लेकिन जब उसे एक छोटी सी राशि का लिफाफा नजराने में दिया तो वह तैयार हो गया.

गरमी का मौसम चल रहा था. शहर का तापमान 45 डिगरी को छू रहा था. बिजली का बिल तो देख कर ही करंट लगता था. ऐसे समय में हम रात 9 बजे आफिस से घर लौटे. दरवाजे पर ही मुस्तैदी से अपनी मम्मी के साथ खड़ी हमारी पत्नी मिल गई. हमें अंधेरे में ही पहचान कर लगभग चीखती हुई वह बोली, ‘‘पूरे महल्ले में बिजली है, हमारे यहां नहीं है.’’

‘‘अरे, क्यों नहीं है?’’ हम ने नाटक करते हुए कहा.

‘‘तुम ने बिजली का बिल जमा किया था या नहीं?’’ पत्नी ने नाराजगी से पूछा .

‘‘तुम ने दिया था या नहीं?’’ हम ने भी छक्का जड़ते हुए कहा. वह अचकचा गई और सोचने लगी कि पता नहीं इस बार बिल दिया था या नहीं?

पत्नी तुरंत अंधेरे में मोमबत्ती ले कर किसी भूतनी की तरह गई और बिल ला कर हमें दे दिया. हम ने कहा, ‘‘कल जमा कर देंगे.’’

‘‘कल नहीं, अभी फोन करो.’’

‘‘अभी आफिस बंद होगा,’’ हम ने टालते हुए कहा.

‘‘अजी, यह बिल जमा है…इसीलिए कह रही हूं मैं कि फोन कर के लाइन जोड़ने को कह दो.’’

हम फोन करने के लिए लौट गए. घूमफिर का लौट आए और कह दिया कि फोन कर आए हैं.

पत्नी ने दुखी स्वर में कहा, ‘‘पता नहीं कब तक बिजली आएगी.’’

सास की हालत गंभीर थी, वह तो जैसे मछली पानी के बिना छटपटाती है वैसे परेशान हो रही थीं. साला गरमी के चलते होहो कर रहा था. टीवी न चलने का भी उसे बेहद दुख था.

अगले दिन रविवार था इसीलिए कोई बिजली ठीक करने नहीं आया. सास गांव की उस भैंस की तरह हो रही थीं जो गरमी के चलते कीचड़ में ठंडक के लिए बैठ जाती है. पत्नी ने दिमाग दौड़ा कर पड़ोस से कनेक्शन ले लिया था. सास ने राहत की सांस ली कि अचानक बिजली विभाग का एक कर्मचारी पहुंच गया और पड़ोसी पर बिजली बेचने का आरोप लगा कर केस बनाने की धमकी दी. पड़ोसी ने तत्काल कनेक्शन काट दिया.

मैं इस तरह की सैकड़ों गरमियां सहन करने को तैयार था, लेकिन सास और साले को कतई नहीं.

अगले दिन हम आफिस से जब घर पहुंचे तो इस आशा के साथ कि घर में अंधेरा मिलेगा, लेकिन घर तो बिजली की रोशनी से जगमगा रहा था. पत्नी ने अपनी मां की प्रशंसा में कहा, ‘‘देखो, हमारी मम्मी का कमाल.’’

‘‘मम्मीजी ने क्या कर दिया?’’ हम ने रिरियाते हुए पूछा.

‘‘बिजली भी आ गई और अब बिल भी नहीं भरना पडे़गा.’’

‘‘क्या मतलब?’’ हम ने घबरा कर पूछा.

पत्नी हमें खिड़की के पास ले गई. सास ने तार ही कंटिया बना कर मेन लाइन पर डाल दी थी. उसी से चोरी की बिजली घर में आ रही थी. हम ने भोजन किया और घूमने के लिए बाहर निकले . जब घर पर लौटे तो घर में कोहराम मचा था. 2-3 बिजली विभाग के कर्मचारी और एक पुलिस वाला, जो विशेष सतर्कता जत्थे वाला था, उस ने हमारी सास पर बिजली चोरी का केस बना दिया था.

सासजी रो रही थीं. साला रो रहा था. पत्नी हूंहूं कर के रो रही थी. घर पूरा अंधेरे में डूबा हुआ था. हम ने हाथपांव जोडे़, एक लिफाफा दिया तब वह खुश हो पाए. उन में से एक ईमानदार होने का ढोंग कर रहा था. उस ने कहा, ‘‘आप के घर में बिजली चोरी पकड़ी गई है अत: जुर्माने के रूप में 2 माह तक बिजली आप को नहीं मिलेगी.’’

सास ने सुना तो बेहोश हो गईं. जैसे ही होश आया वह अपने पुत्र को ले कर तुरंत अपने मायके चली गईं.

हमें दोनों मुसीबतों से मुक्ति मिली. दरअसल, हम खाना खा कर घूमने नहीं गए थे बल्कि अपने बिजली विभाग वाले दोस्त को फोन कर के उन्हें सास को पकड़ने के लिए निमंत्रण देने गए थे.

हमारी योजना सफल हो गई थी. अगले दिन हमारे घर में बिजली आ गई. हम ने पत्नी से झूठ कहा कि हम ने रिश्वत दे कर बिजली जुड़वाई है, किसी से कहना मत. वह पहले से डरी हुई थी, उस ने किसी से नहीं कहा. हम आज साससालाविहीन विवाहित जीवन चैन से जी रहे हैं.

सैक्स के दौरान मूड खराब कर देती हैं ये आदतें

सैक्स का आनंद उठाना हर इंसान को पसंद होता है क्योंकि सैक्स एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे दोनों पार्टनर आराम से करना पसंद करते हैं और उम्मीद करते हैं कि उन की सैक्स लाइफ बेहतरीन हो.

सैक्स लाइफ को बेहतरीन करने के लिए कई कपल्स रिचर्स भी करते हैं कि कैसे वे सैक्स के दौरान और भी ज्यादा ऐंजौय कर सकते हैं. ऐसे में सैक्स के दौरान की गई कुछ गलतियां आप के पार्टनर का पूरी तरह मूड खराब कर सकती हैं और आप को आप के पार्टनर से दूर भी कर सकती हैं.

तो चलिए, आज हम सैक्स के दौरान की गई उन्हीं गलतियों के बारे में बताएंगे जो आप के पार्टनर का मूड खराब कर देती हैं :

और्गेज्म है जरूरी

ऐसा देखा गया है कि कई पुरुष अपना स्पर्म लूज करने के बाद अपने पार्टनर से दूर हो जाते हैं जो उन के पार्टनर का मूड खराब कर देता है. पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का और्गेज्म बाद में होता है तो ऐसे में पुरुषों को अपने पार्टनर की मदद करनी चाहिए और उन्हें चरमसुख की प्राप्ति का आनंद देना चाहिए.

कभी भी पुरुषों को सैल्फिश हो कर सिर्फ अपने और्गेज्म के बारे में नहीं सोचना चाहिए बल्कि अपने पार्टनर से पूछना चाहिए कि उन्हें किस तरह सैक्स करने से और्गेज्म मिलता है?

अपने पार्टनर के हिसाब ही सैक्स करना चाहिए जिस से कि दोनों को और्गेज्म मिल सके. इस से सैक्स लाइफ हमेशा अच्छी रहेगी और पार्टनर आप से हमेशा सैटिस्फाइड रहेंगे.

सैक्स के दौरान मोबाइल से दूर रहें

कई बार देखा गया है कि सैक्स करते समय किसी का कौल आ जाता है या फिर मैसेज की नोटिफिकेशन से हमारा सारा ध्यान मोबाइल में चला जाता है जोकि पार्टनर का मूड खराब कर देता है. चाहे पुरूष हो या महिला, सैक्स करते समय सिर्फ अपने पार्टनर पर ध्यान देना चाहिए. इसलिए आप जब भी सैक्स करें अपने फोन को या तो बंद कर दें या फिर साइलैंट कर दें जिस से कि सैक्स करते समय आप का ध्यान अपने पार्टनर से न हट पाएं.

सैक्स के तुरंत बाद भी फोन में न लगें बल्कि अपने पार्टनर से पहले रोमांटिक बातें करें और कुछ देर बाद ही अपना फोन देखें.

सैक्स के दौरान आती बदबू

सैक्स के दौरान आती बदबू मूड खराब करने का सब से बड़ा कारण है. कई पुरुष आलस के चलते अपने कपड़े और अंडरगार्मेंट चैंज नहीं करते, जिस की वजह से पूरे दिन की पसीने की बदबू कपड़ों में रह जाती है और पार्टनर का मूड खराब कर देता है. आप जब भी सैक्स करें उस से पहले या तो नहा लें या फिर अपने पूरे कपड़े चैंज कर फ्रैश हो जाएं ताकि पार्टनर को आप के कपड़ों में से किसी प्रकार कि कोई बदबू न आए.

कोशिश कीजिए कि सैक्स से पहले या तो ब्रश कर लें या फिर रात के खाने में प्याज, लहसुन जैसी चीजें न खाएं जिस से कि सैक्स के दौरान पार्टनर को मुंह से दुर्गंध न आए और उन का मूड खराब न हो.

या फिर इस से पहले माउथ फ्रैशनर या फिर इलायची, लौंग आदि चबा लें।

न करें किसी प्रकार का दबाव

कई पुरुष पोर्न फिल्में देख कर ऐसी पोजीशंस ट्राई करने लग जाते हैं जो पार्टनर को बिलकुल पसंद नहीं होती। पर फिर भी पुरुष अपने आनंद के लिए अपने पार्टनर पर वह सब ट्राई करने का दबाव बनाते हैं जिस से उन के पार्टनर का सारा मूड खराब हो जाता है. आप को याद रखना है कि अच्छा सैक्स वही होता है जिस में दोनो पार्टनर को भरपूर आनंद मिलें. इसलिए अपने पार्टनर पर कभी ऐसी कोई चीज ट्राई करने का दबाव कभी न बनाएं जो उन्हें नापसंद हो.

सैक्स से पहले न करें शराब का सेवन

कुछ पुरुषों को ऐसा लगता है कि सैक्स से पहले शराब पीने से वे ज्यादा देर तक सैक्स कर सकते हैं जोकि बिलकुल गलत है. सैक्स के पहले शराब पीने से आप के पार्टनर को दिक्कत हो सकती है. शराब पीने से सैक्स के दौरान आप के मुंह से आ रही शराब की बदबू आप के पार्टनर का मूड खराब कर सकती है और शराब के नशे में आप आनंद लेने के लिए अपने पार्टनर के साथ कुछ ऐसा कर सकते हैं जिस से उन्हें तकलीफ हो सकती है। तो आप को सैक्स हमेशा होश में रह कर करना चाहिए.

सैक्स के समय करें रोमांटिक बातें

सैक्स करते समय हमेशा अपने पार्टनर पर फोकस करना चाहिए और रोमांटिक बातें करनी चाहिए जिस से कि आप के पार्टनर को ऐसा फील हो कि आप उनसे बहुत प्यार करते हैं.

पकौडों का सैंपल फेल : क्या हुआ जब मैंने बनाए पकौड़े

दोस्तो, मुझे पकौड़े बनाने का कोई तजुरबा नहीं है. मैं ने तो कभी घर में भी पकौड़े नहीं बनाए थे. पर जब सरकार ने कहा है कि पकौड़ों में लखपति बनाने की ताकत है तो मैं ने सरकार के पकौड़ों का हिस्सा होने के लिए आव देखा न ताव, घर के स्टोर से टूटीफूटी कड़ाही निकाली, दादा के वक्त का कैरोसिन का चूल्हा साफ किया और एक परात में बेसन के बदले मक्के का आटा, नमक, मिर्च पता नहीं किस के स्वाद के हिसाब से मिला, सड़े आलू काट अपने महल्ले के किनारे की सरकारी जमीन पर शान से पकौड़ा भंडार खोल दिया और उस का नाम रखा ‘सरकारी पकौड़ा भंडार’.

पकौड़ों के उस भंडार का नाम सरकारी था इसलिए किसी भी सरकारी मुलाजिम की मुझ से यह पूछने की हिम्मत न हुई कि सरकारी जमीन पर पकौड़ा भंडार क्यों खोला? मुझे पता था कि कोई सरकारी मुलाजिम सब से पंगा ले सकता है पर अपनी सरकार के बंदों से नहीं.

दोस्तो, सरकारी जमीन पर सरकारी नाम का पकौड़ा भंडार नहीं खुलेगा, तो क्या अपने घर में खुलेगा? सरकार के नाम की दुकानें सरकार की गैरकानूनी तौर पर कब्जाई जगह पर ही खुल कर शोभा पाती हैं. नियमानुसार सरकारी जमीन पर सरकारी बंदे ही कब्जा कर सकते हैं. आम आदमी सरकारी जमीन पर कब्जा करना तो दूर, उस ओर देखने की भी हिम्मत करे तो उस की आंखें निकाल दी जाएं.

अपने पकौड़ा भंडार का ‘सरकारी पकौड़ा भंडार’ नाम रखने के चलते सब ने यही सोचा कि मैं सरकार का राइट नहीं तो लैफ्ट हैंड जरूर हूं, बल्कि थानेदार साहब ने तो मेरे कच्चे पकौड़ों की तारीफ करते हुए मेरी पीठ थपथपा कर यहां तक कह डाला कि ‘सरकारी पकौड़ा भंडार’ के लिए फर्नीचर की जरूरत हो तो बता देना. आधे रेट में दिलवा दूंगा.

अगर कोई विपक्ष वाला मेरे ‘सरकारी पकौड़ा भंडार’ की ओर आंख उठा कर भी देखे तो वह थानेदार उस की आंख तो आंख, आंत तक निकाल कर हाथ में दे देगा.

हफ्तेभर में ही सरकार के पकौड़ों के साथ अपने अधकच्चे, अधपके पकौड़ों का कदमताल करवाने का यह फायदा हुआ कि हर कोई अपने को सरकारी पकौड़ों का ग्राहक बताने के चक्कर में मेरे पकौड़ों को बिन दांतों के भी चटकारे लेले कर अपने पेट में धकियाता रहा. सब को यही लगता रहा कि जैसे वे मेरे पकौड़े नहीं, बल्कि सरकार के पकौड़े खा रहे हों. मुझ से किसी की यह भी कहने की हिम्मत नहीं हुई कि पकौड़ों में नमक नहीं है, पकौड़ों में मिर्च ज्यादा है.

मैं देखते ही देखते सरकारी पकौड़ों का अहम हिस्सा हो गया. विपक्ष वाले भी अपने को सरकार का हिस्सा साबित करने के बहाने अपने मुंह पर नकाब लगाए आते और मेरे पकौड़ों को सरकारी पकौड़ों का हिस्सा मान कर अपने को सरकार के बंदे घोषित करवा कर चुपचाप पकौड़े खा जाते.

चटनी की जगह पानी होता तो उसे भी चटकारे लेले पीते. यह सरकार की मुहर का प्रोडक्ट भी बड़ा अजीब होता है दोस्तो, सरकार के प्रेमी उसे यों चाटते हैं कि…

मैं मजे से बेखौफ हो कर जितना मन करता, पकौड़ों में बेसन के बदले मक्के का आटा मिला देता. तेल हुआ तो हुआ, वरना खाली कड़ाही में ही पकौड़े तल दिए.

महीनेभर से इसी तरह सरकारी पकौड़ों के नाम पर जनता को ठगने का अपना काम बुलंदियों पर था. सौ ग्राम के बदले 75 ग्राम तोलो तो भी कोई पूछने वाला नहीं. सरकार अपनी, तो तराजू भी अपनी. सरकार अपनी, तो मिर्च भी अपनी. सरकार अपनी, तो सड़े आलू भी अपने.

सब मजे से ठीकठाक चल रहा था कि पता नहीं कहां से एक हाथी पर, दूसरा साइकिल पर, तो तीसरा दिन में ही लालटेन जलाए अपने को सैंपल भरने वाले बता कर आ धमके.

सैंपल भरने वाले पहले भी आते थे पर ‘सरकारी पकौड़ा भंडार’ का मुकुट मेरी दुकान के माथे पर लगा पढ़ दुम दबाए माफी मांगते आगे हो लेते थे.

सैंपल भरने वालों में से एक ने मेरी सरकारी पकौड़ों की परात को घूरते हुए पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

‘‘सरकारी पकौड़े हैं और क्या…’’ मैं ने गुर्राते हुए कहा.

‘‘कच्चे? जनता को बीमार करना

है क्या?’’

‘‘जनता तो जन्मजात ही बीमार है सर, इसलिए इस व्यवस्था में उस के सेहतमंद होने की सोचना भी फुजूल है. अब रही बात मेरे पकौड़ों की, तो सरकारी मुहर और नाम वाले पकौड़े चाहे कैसे भी हों, वे पके ही होते हैं. हर कोण से सेहत के लिए बढि़या ही होते हैं,’’ मैं ने सरकार के पक्ष में कहा, पर फिर भी वे चुप न हुए.

मन किया सरकार को फोन लगा दूं कि ये बेतुके से सैंपल भरने वाले कहां से भेज दिए आप ने जो सरकारी मुलाजिम होने के चलते सरकार के ‘मेड इन इंडिया’ पकौड़ों पर ही सवाल उठा रहे हैं.

‘‘पकौड़ों के नाम पर जनता को ठगते हो?’’ लालटेन वाले ने मुंह में पकौड़ा डाल कर मुंह बिचकाते हुए पूछा.

‘‘सर, लुट चुकी जनता का अब और क्या ठगना…’’ मैं ने दोनों हाथ जोड़े कहा तो साइकिल पर बैठा सैंपल भरने वाला नीचे उतरा और बोला, ‘‘अब ये पकौड़े नहीं चलेंगे,’’ फिर उस ने हाथी पर से पकौड़ों की क्वालिटी चैक करने वाली मोबाइल किट निकाली और उस में 2 सरकारी पकौड़े डाले.

5 मिनट तक वह उस किट में उन पकौड़ों को हिलाता रहा. उस के बाद पकौड़ों का घोल देख कर उस ने कहा, ‘‘पकौड़ों का सैंपल फेल…’’

‘‘पर सर, ये मेरे निजी नहीं, सरकारी पकौड़े हैं.’’

‘‘होते रहें. बहुत खिला लिए जनता को कच्चे, मिलावटी पकौड़े. कल से पकौड़ों की दुकान बंद.’’

‘‘तो मेरा क्या होगा साहब?’’

‘‘सरकार की जनता को उल्लू बनाने वाली अगली स्कीम का इंतजार करो,’’ उन में से एक ने कहा और वे तीनों मदमाते आगे हो लिए.

आधा है चंद्रमा रात आधी : कोई जादुई चिराग तो है नहीं

‘‘मान्यवर, महंगाई के बारे में आप से कुछ बात करनी थी.’’

वह गुस्से से थर्रा उठे थे. कुरसी उन से टकराई थी या वह कुरसी से, मैं नहीं बता सकता.

‘‘इस के लिए आप ने कितनी बार लिख डाला? गिनती में आप बता सकते हैं?’’

‘‘जी, जितनी बार वामपंथियों ने समर्थन वापस लेने की धमकियां दे डालीं,’’ मैं ने विनम्रता से कहा.

‘‘इस मुद्दे पर आप हमारा कितना कीमती समय बरबाद कर चुके हैं, कुछ मालूम है. आप को तो मुल्क की कोई दूसरी समस्या ही नजर नहीं आती… पाकिस्तानी सीमा पर आएदिन गोलीबारी होती रहती है. चीनी सीमा अभी तक विवादित पड़ी है. हम देश की अस्मिता बचाने में परेशान हैं. हमारी आधी सेना उन से लोहा लेने में लगी हुई है…’’

उन के इस धाराप्रवाह उपदेश के दौरान ही मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘और बाकी आधी…’’

उन्होंने गुर्रा कर कहा, ‘‘मुल्क के तमाम हिस्सों में बोरवेलों में गिरने वाले बच्चों को निकालने में…कभी आप ने यह जानना नहीं चाहा कि अंदरूनी हालात भी कम खराब नहीं चल रहे हैं. मुंबई, बनारस, अक्षरधाम, हैदराबाद, बंगलौर, जयपुर के बाद अभी हाल में दिल्ली में आतंकवादी हमलों से देश कांप उठा है. हमारे आधे सुरक्षाबल तो उन्हीं से जूझ रहे हैं.’’

मैं ने प्रश्नवाचक मुंह बनाया, ‘‘बाकी आधे…’’

उन्होंने खट्टी डकार लेते हुए बताया, ‘‘वी.आई.पी. सुरक्षा में मालूम नहीं क्यों लोग अधिकारियों और मंत्रियों का घेराव करते रहते हैं. हमारे पास जादुई चिराग तो है नहीं. किसान कहते हैं अनाज की कीमतें बढ़ाइए, आप कहते हैं घटाइए. आप ही बताइए हम इसे कैसे संतुलित करें? हम तो बीच में कुछ अनाज धर्मकर्म पर या व्यवस्था के नाम पर ही तो लेते हैं. शेष का आधा आप लोगों की सेवा में ही लगाया जाता है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘और बाकी आधा…’’

वह बहुत जोर से झल्ला उठे, ‘‘बाकी आधा सरकारी गोदामों में सड़ जाता है. आप लोग यह जो नेतागीरी करते रहते हैं, हमें काम करने का समय ही नहीं मिल पाता. गोदाम से अनाज निकलवाने के लिए हमें सुप्रीम कोर्ट तक बेकार की दौड़ करनी पड़ती है. यह काम सुप्रीम कोर्ट का है कि दिल्ली की सड़कों की सफाई के लिए भी लोग वहां पहुंच जाते हैं. उस का आधा समय तो यों ही निकल जाता है.’’

‘‘और शेष आधा?’’ मैं ने पूछा.

‘‘आतंकवादियों के मुकदमे सुनने में, पुलिस वालों के मुकदमे सुनने में और सरकारी व संवैधानिक संकट के समय उन को सलाहमशविरा देने में.

‘‘हमारी तो दिली इच्छा है कि हम सरकारों या सियासी पार्टियों को इस दलदल से निकालें. पर ये दोनों ही जनता की आड़ ले कर निकलना ही नहीं चाहते. जो बच्चे बोरवेल से निकलना चाहते थे, निकल लिए. जिन कपड़ों को मौडलों के बदन से निकलना था, निकल लिए. जो आतंकवादी मुल्क से निकलना चाहते थे, निकल लिए. जो अपराधी जेल से निकलना चाहते थे, निकल लिए. जो नेता पार्टी से निकलना चाहते थे, निकल लिए जो ‘बड़े’ घोटालों से निकलना चाहते थे, निकल लिए. स्वाभाविक नींद सोने वालों को तो जगाया जा सकता है, पर जो बन के सो रहे हों, उन्हें कौन जगा सकता है? क्योंकि तेल कंपनियां मुसीबत से निकलना चाहती थीं, प्रधानमंत्री से अपना रोना रोईं, उन्होंने आश्वासन दिया कि वे उन को परेशान नहीं देखना चाहते, कुछ दाम तो बढ़ाने ही होंगे. इस के बाद ‘ब्रांडेड’ पेट्रोल और बढ़े हुए दामों पर आ गया, रसोई गैस के नए कनेक्शन मिलने बंद हो गए हैं, आप जानते हैं कि आप मिट्टी के तेल, रसोई गैस आदि के असली मूल्य का आधा ही चुकाते हैं.’’

‘‘और आधा…’’ मेरे मुंह से आदतानुसार निकल गया.

‘‘अभी तक हम चुका रहे थे, अब बंद कर देंगे. आप का समय ‘पूरा’ खत्म हो गया.’’

मैं बाहर निकलते समय सोच रहा था कि वह सचमुच कितनी कंजूसी से काम चलाते हैं. आधे सांसदों से भी कम खर्च कर के सरकार बना भी लेते हैं और चला भी लेते हैं. जो तनाव ले कर मैं उन से मिलने गया था, आधा कम हो चुका था. ‘आधा है चंद्रमा रात आधी…’ गीत गुनगुनाते हुए मैं लौट पड़ता हूं क्योंकि अच्छा संगीत तनाव को आधा कर देता है.

Happy BirthDay Lata Mangeshkar : हीरे, कार और क्रिकेट की शौकीन लता ने तंगहाली में पहनी थी 12 रुपए की साड़ी

ज्यादातर लोग उन्हें लता दी, लता जी, लता ताई और स्वर कोकिला कहते थे वैसे उनका नाम था लता मंगेशकर. लता मंगेशकर का जन्म आज के दिन साल 1929 में हुआ था. साल 2022 में 6 फरवरी को इस गायिका का निधन हो गया. आज उनके संगीतमय जीवन के सुखदुख से जुड़े कुछ रोचक पहलुओं के पन्ने को पलटते हैं

जब प्रधानमंत्री की आंखें हो गई थी नम

लता मंगेशकर एक सुरीली गायिका थी, जिनका गाना ‘ऐ मेरे वतन के लोगों ’ सुन कर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आंखें नम हो गई थी. यहां बात हो रही है साल 1963, 27 जनवरी की. लता जी स्टैज पर कवि प्रदीप का लिखा गाना ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गा रही थीं, गाने के बाद वह स्टैज के पीछे कौफी पीने चली गईं. तभी उस जमाने के मशहूर फिल्म निर्देशक महबूब खान ने उनसे कहा, “तुम्हें पंडितजी (नेहरूजी) बुला रहे हैं”. लताजी, नेहरू जी के पास गईं. नेहरू जी ने कहा, “इस लड़की ने मेरे आंखों में पानी ला दिया”. यह कह कर उन्होंने लता को गले से लगा लिया.
लता मंगेशकर का शुरुआती जीवन बहुत ही गरीबी में बीता. गायक पिता दीनानाथ मंगेशकर की मृत्यु के बाद उनके ऊपर चार भाईबहनों की जिम्मेदारी आ गई. न चाहते हुए भी उन्हें मूवी में एक्टिंग करनी पड़ी. अपनी पहली मूवी ‘मंगलागौर’ में उन्होंने एक्ट्रैस की बहन का रोल निभाया. उन्होंने इस तरह से 5 फिल्मों में काम किया, जिनके नाम थे ‘माझे झोल’, ‘गजा भाउ’, ‘बड़ी मां’, ‘जीवन यात्रा’, ‘सुभद्रा’ और ‘मंदिर’.
एक जमाने में राशन की दुकान पर साड़ियां मिला करती थीं, पैसे की तंगी के दिनों में लता मंगेशकर इन्हीं साड़ियों को पहना करती थी. उनके पास साड़ियों की इस्त्री कराने के भी पैसे नहीं थे इसलिए साड़ियों को अपने हाथों से धोती, फिर सुखाती और सूखने के बाद उसको अच्छी तरह से तह लगा कर सिरहाने रख कर सोया करती, इससे साड़ियां प्रैस हो जाती. यह साल 1947-48 की बात है, उन दिनों ये पतले लाल बौर्डर की सूती की साड़ियां केवल 12 रुपए में मिला करती थी.

 

शरलौक होम्स की जासूसी कहानियां पढ़ती थीं

लता जी को हिंदी, इंग्लिश, ऊर्दू, मराठी का ज्ञान था हलांकि वह स्कूली पढ़ाई नहीं कर पाई थी. इसकी एक रोचक कहानी है, कहा जाता है कि लता मंगेशकर बचपन में जब पहली बार स्कूल गई, तो अपनी छोटी बहन आभा भोसले को भी साथ ले गई. उस समय आभा भोसले की उम्र करीब 10 महीने थी. टीचर ने लता को कहा कि इतने छोटे बच्चों को स्कूल लेकर मत आओ, अब लता जी को इस बात पर गुस्सा आ गया. वह क्लास के बीच से ही घर आ गई और दोबारा कभी स्कूल का रुख नहीं किया. बाद में उन्होंने अपने आसपास के लोगों से लिखनापढ़ना सीखा. स्कूली शिक्षा नहीं लेने के बावजूद भी वह अंग्रेजी जासूसी कहानियां पढ़ने की शौकीन थी. वह शरलौक होम्स के नौवल्स पढ़ा करती थीं.

कार, क्रिकेट और हीरो की शौकीन थी लता मंगेशकर

यश चोपड़ा के डायरेक्शन में बनी मूवी ‘वीर जारा’ के बारे में एक किस्सा बेहद मशहूर है. एक्टर शाहरुख खान और एक्ट्रैस प्रीती जिंटा की हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बैकग्राउंड में बनी इ मूवी के गाने बहुत सुरीले हैं, इसके गानों को लता जी ने अपनी आवाज से सजाया था. जब यश चोपड़ा ने लता जी को गाने की फीस देनी चाही, तो उन्होंने लेने से इनकार कर दिया. लता मंगेशकर ने कहा कि यश चोपड़ा उनके भाई जैसे हैं इसलिए वह गाने की फीस नहीं लेंगी. जब यह मूवी रिलीज हुई तो यश जी ने उन्हें तोहफे के तौर पर एक मर्सिडीज कार भेंट की. लता मंगेशकर की पहली कार ग्रे कलर की हिलमैन थी, इसे उन्होंने 8000 रुपए में खरीदा था. तब वह एक गाने के लिए 200 से लेकर 500 रुपए तक फीस लिया करती थीं. जब उन्हें शो मैन राजकपूर की मूवी में काम करने के लिए 2000 रुपए मिले, तो हिलमैन को बेच कर ब्लू कलर की शेवरले कार खरीदी. कार के अलावा उन्हें डायमंड का बहुत शौक था. जब उन्होंने कमाना शुरू किया, तो अपनी कमाई को जोड़ कर 700 रुपए में हीरे की अंगूठी बनवाई. उन्हें सोने के गहनों का शौक नहीं थी लेकिन वह सोने के पायल जरूर पहनती थी जबकि आज भी ज्यादातर महिलाएं चांदी के पायल ही पहना करती हैं. लता मंगेशकर को क्रिकेट देखना बेहद पसंद था. आष्ट्रेलियाई क्रिकेटर डौन ब्रैडमैन ने उन्हें अपना सिग्नेचर किया हुआ एक फोटोग्राफ भी भेंट किया था. उन्होंने 1946 में मुंबई के ब्रेबौर्न स्टैडियम में पहली बार इंडिया और आस्ट्रेलिया का मैच देखा.

नौनवेज फूड्स बनाने में माहिर थी लता मंगेशकर

 

लता जी के बारे में यह बात मशहूर है कि वह बेहद लजीज मटन पसंदा बनाती थी. इसके अलावा वह गोवन फिश करी और समुद्री झींगा मछली भी बहुत अच्छा पकाती थी. पकाने के साथ ही इन्हें खाना भी पसंद करती थीं. इतना ही नहीं वह कीमे के समोसे बहुत शौक से खाती थीं. मिठाइयों में जलेबी, इंदौर के गुलाब जामुन, सूजी का हलवा इनको अच्छा लगता था. कई लोग यह जान कर चकित रह जाएंगें कि लता जी को गोलगप्पा, ज्वार की रोटी और नीबू का अचार बेहद लजीज लगते थे.

लताजी ने क्यों नहीं की शादी

 

एक बार एक इंटरव्यू के दौरान लता मंगेशकर की बहन मीना ताई मंगेशकर ने कहा था कि अपने भाईबहनों की जिम्मेदारियों का बोझ उनके ऊपर इतना था कि वह कभी अपने बारे में सोच नहीं सकी. मीना मंगेशकर ने कहा हमारी मां उनसे शादी के लिए कहा करती थी, लेकिन लता जी को लगता था कि शादी के बाद वे हम सबसे दूर हो जाएंगी क्योंकि मैं केवल दस साल की थी जब हमारे बाबा इस दुनिया से चले गए. मेरी बहन आशा मुझसे भी छोटी, मेरा भाई हृदय सबसे छोटा था, ऐसे में लता अपनी शादी की सोच ही नहीं सकी.

लता की उपलब्धियों की लिस्ट के कुछ महत्वपूर्ण अंश

  • लता जी को तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.
  • करीब 60 साल के करियर मेें 30 से अधिक भाषाओं में 8 हजार गाने गाए.
  • लंदन के रौयल अल्बर्ट हौल में परफौर्म करने वाली पहली इंडियन होने का गौरव हासिल था.
  • फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान औफिसर औफ द लीजन औफ औनर से सम्मानित जा चुका है.
  • लता जी को साल 1999 में उच्च सदन यानी राज्य सभा के लिए नौमिनेट किया गया, उन्होंने 1999 से 2005 तक सांसद के रूप में काम किया.
  • लता मंगेशकर को साल 1989 में दादा साहब फाल्के अवार्ड दिया गया.
    साल 2001 में इन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया

उत्तर प्रदेश के स्कूल में तंत्रमंत्र और बच्चे की बलि

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2047 तक भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. वे कहते हैं कि हम दुनिया की सब से बड़ी महाशक्ति के रूप में उभरने वाले हैं. बकौल योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश देश व समाज की मजबूती के लिए शिक्षा की नींव मजबूत होना जरूरी है. गत 6 वर्षों में उत्तर प्रदेश ने बेसिक शिक्षा के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाई है. 2017 के पहले बदहाली से जो स्कूल बंदी के कगार पर थे आज उन का कायाकल्प हो चुका है. दृढ़ संकल्प, संसाधन, तकनीकी, नवाचार के समन्वय से शिक्षा के क्षेत्र में चमत्कार का सपना साकार हुआ है. तकनीकी के बेहतर उपयोग वाला निपुण भारत मिशन शिक्षा की गुणवत्ता सुदृढ़ करने में शानदार परिणाम दे रहा है.

ऐसी बड़ीबड़ी बातें करने वाले नेताओं की नाक के नीचे हाथरस में एक स्कूल के भीतर शिक्षक और प्रबंधक द्वारा एक 9 साल के छात्र की बलि दे दी गई और वह इसलिए ताकि उन के स्कूल की तरक्की दिन दूनी रात चौगुनी हो. सोचिए हमारा समाज और समाज को शिक्षित करने वाले किस धार्मिक अंधविश्वास, मूर्खता, अपराध और जघन्यता के अंधे कुएं में बैठे हैं और नेता हमें विश्वगुरु बनने का आसमानी सपना दिखा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के हाथरस से अनेक भयावह ख़बरें निकल कर आती हैं. अभी कुछ दिन पहले की बात है हाथरस में एक ढोंगी बाबा नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा उर्फ सूरजपाल सिंह जाटव के धार्मिक समागम में भगदड़ मचने से 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई, जिन में अधिकतर महिलाएं थीं. बाबा की चरणधूलि लेने के चक्कर में ऐसी भगदड़ मची कि तमाम औरतें और बच्चे दलदल में एक के ऊपर एक गिरते चले गए और दम घुटने से उन की मौत हो गई. सारे शव एक दूसरे के ऊपर ढेर हो गए. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की पुलिस ने आजतक उस बाबा को गिरफ्तार नहीं किया. उस के खिलाफ सारा मामला रफादफा हो गया. मुख्यमंत्री से ले कर कानून को लागू करने वाली तमाम एजेंसियों ने धर्म की काली पट्टी आंखों पर चढ़ा ली. फिर किस की मां, किस की बहन, किस की बेटी, किस की पत्नी, किस का बच्चा मरा, किसी को नहीं दिखाई दिया.

हाथरस में ही वह भयानक रेप काण्ड भी हुआ था जिस की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ी थी. 14 सितम्बर,2020 में एक 19 साल की दलित लड़की से 4 लोगों ने भयानक तरीके से बलात्कार किया. बलात्कार के बाद उस को मारने के लिए उस के गले में दुपट्टा डाल कर उसे घसीटा गया, जिस से उस की रीढ़ की हड्डी टूट गई. जब वह चीखी तो उस की जबान काटने की कोशिश की गई और फिर उस का गला घोंट कर उसे खेत में यह सोच कर फेंक दिया कि वह मर गई. बाद में जब उस की मां उस को खेतों में ढूंढते हुए आई तो उस ने अपनी बच्ची को मरणासन्न हालत में देखा. उस की सांसें चल रही थीं मगर उस के शरीर को लकवा मार चुका था. अस्पताल में पुलिस ने उस दलित लड़की का बयान दर्ज किया. उस ने चारों अपराधियों के नाम लिए. हालत बिगड़ने पर उस को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल भी लाया गया मगर वह जिंदा नहीं बची. 29 सितम्बर को उस की मौत हो गई. दलित के साथ क्रूरता का सिलसिला यही नहीं थमा, उस की मौत के बाद उस के परिजनों को उस का शव सौंपने की बजाय या उन की सहमति लेने की बजाय उन्हें उनके घर में बंद कर के उत्तर प्रदेश पुलिस ने रात के ढाई बजे उस दलित लड़की का शव जला दिया.

आज उसी हाथरस में एक 9 साल के बच्चे को स्कूल प्रशासन ने स्कूल के भीतर गला घोंट कर उस की बलि चढ़ा दी ताकि उन के स्कूल की तरक्की हो. अपने मांबाप का इकलौता बेटा कृतार्थ सहपऊ क्षेत्र के गांव रसगवां के डीएल पब्लिक स्कूल आवासीय विद्यालय में कक्षा 2 में पढ़ रहा था. उस के मातापिता उस को इंजीनियर बनाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने उस को हौस्टल में रख कर पढ़ाना पसंद किया मगर उन्हें क्या पता था कि जिस स्कूल में उन्होंने अपने बच्चे का दाखिला कराया है वह धर्म के अंधे और काला जादू व तंत्रमंत्र करने वाले जघन्य अपराधियों का डेरा है. स्कूल का प्रबंधक दिनेश बघेल और उस के पिता जशोधन शिक्षक नहीं बल्कि तांत्रिक है और तंत्रमंत्र और बलि देने के चक्कर में उन्होंने मासूम कृतार्थ की हत्या कर दी.

कृतार्थ के पिता श्रीकृष्ण ने अपने बेटे को इंजीनियर बनाने के लिए अच्छी पढ़ाई कराने की सोची थी. इस के चलते उन्होंने अपने कलेजे के टुकड़े को अपने से दूर डीएल पब्लिक स्कूल के छात्रावास में रखा था. उन्हें क्या पता था कि धार्मिक कर्मकांडों में लिप्त लोग उस के घर का इकलौता चिराग बुझा देंगे.

विद्यालय प्रबंधक दिनेश बघेल का पिता स्कूल और स्कूल से 15 मीटर की दूरी पर बने एक नलकूप पर तांत्रिक क्रिया करता था. इस कारण वह पूरे गांव में भगतजी के नाम से मशहूर था. दिनेश बघेल ने जब विद्यालय बनाया तजा तो उस ने बाजार और बैंक से कर्ज लिया था. इस कर्ज से मुक्ति पाने, अपने विद्यालय और परिवार की तरक्की के लिए वह और उस का बाप जसोदन तांत्रिक क्रियाएं कर रहे थे. इस के चलते जसोदन ने विद्यालय में पढ़ने वाले कृतार्थ से पहले राज नाम के बच्चे की बलि देने की भूमिका तैयार की थी, लेकिन राज बच गया. रात में जब ये लोग राज को उठाने के लिए हौस्टल के अंदर गए तो राज जाग गया और चीखने चिल्लाने लगा. इसलिए उस दिन उसे छोड़ना पड़ा. उस के बाद रात को बलि देने के लिए कृतार्थ को चुना गया. रात करीब 10 बजे जब सभी सो गए तो बच्चों के साथ हौल में सो रहा रामप्रकाश सोलंकी नाम का आदमी कृतार्थ को अपनी गोदी में उठा कर तांत्रिक क्रिया और बलि देने के लिए ले कर बाहर आया. इस दौरान कृतार्थ की आंख खुल गई. वह रोने लगा तो जसोदन ने राम प्रकाश सोलंकी बच्चे के मुंह को दबा कर नीचे प्रधानाचार्य कक्ष के बाहर बिछे हुए तख्त पर ले आये और वहां उस को लिटा कर गला दबा कर उसे मार डाला.

इस घटना को अंजाम देने के दौरान कंप्यूटर शिक्षक वीरपाल उर्फ वीरू निवासी ग्राम बंका थाना मुरसान, प्रधानाचार्य लक्ष्मण सिंह पुत्र राधेश्याम निवासी बढा लहरोली घाट थाना बल्देव जनपद खड़े हो कर निगरानी करते रहे. यानी पूरा स्कूल स्टाफ तंत्रमंत्र, धार्मिक कर्मकांड और अपराध में लिप्त था. क्या ऐसी जगह को स्कूल या शिक्षण संस्थान का नाम दिया जा सकता है?

पुलिस को नलकूप की कोठरी से बलि देने का सामान, रस्सी, धार्मिक तस्वीरें, पूजापाठ का सामान मिला है. चारपांच लोगों की गिरफ्तारी हुई है मगर यह भी कुछ दिन बाद वैसे ही छूट जाएंगे जैसे हाथरस रेप काण्ड के आरोपी छूट गए और जैसे 300 से ज्यादा महिलाओं की हत्या का दोषी धार्मिक बाबा आजाद घूम रहा है.

भारतीय जनता पार्टी की सरकार देश को विश्वगुरु बनाने की तरफ नहीं बल्कि धर्म के अंधे कुएं की तरफ धकेल रही है. देश गर्त में जा रहा है. जिस देश का प्रधानमंत्री कोरोना को भगाने के लिए जनता से थाली पिटवाए, मोमबत्तियां जलवाए, जिस देश का रक्षा मंत्री लड़ाकू विमान रफाल की डिलीवरी लेने फ्रांस जाए और वहां रफाल को पहले पूजे, उस पर ॐ लिखे, उस पर नारियल चढ़ाए और विमान के पहियों के नीचे नीबू रखे तो ऐसे अंधविश्वासी राजनेताओं के राज में स्कूलों में बच्चों की बलि चढ़ा दी जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

नाबालिगों में बढ़ रही अपराधी मानसिकता के जिम्मेदार कौन?

बच्चे को बच्चा तभी तक कहा जा सकता है जब तक वह बच्चों की तरह रहता है लेकिन यदि वह जुल्म की दुनिया में कदम रख दे तो वह बच्चा नहीं बल्कि अपराधी बन जाता है. ऐसे में उस के व्यवहार में अच्छे बदलाव की उम्मीद कम व संगीन अपराधी बनने की संभावना ज्यादा रहती है. आज कल आएदिन ऐसे मामले हमें देखने को मिल जाते हैं कि जिस उम्र में बच्चे के हाथों में पेन पेंसिल होने चाहिए उन हाथों में कभी चाकू तो कभी महंगी गाड़ी का स्टेरिंग होता है जो बेगुनाह लोगों पर चल जाता है.

हाल ही में दिल्ली के शकरपुर इलाके की एक घटना नें दिलदहला दिया. जहां लोग यारी दोस्ती की कसमें खाते हैं एकदूसरे की हर वक़्त मदद करने के लिए आगे रहते हैं वहीं दोस्त ही दोस्त का काल बन गया.

शकरपुर इलाके में रहने वाला सचिन ने नया फोन लिया था. जब वह फोन ले कर आ रहा था कि उसी समय 3 दोस्त मिल गए. वह उस से नए मोबाइल की पार्टी मांगने लगे. पार्टी मांगने को ले कर हुए विवाद के बाद दोस्तों ने उस पर चाकू से हमला कर दिया. नाबालिग को घायल कर के आरोपी मौके से भाग गए. गंभीर हालत में घायल को के. के. अस्पताल में भर्ती करवाया गया जहां पर डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. तीनों आरोपी दोस्त नाबालिग ही हैं ओर अब पुलिस की हिरासत में हैं. जिन्हें बाल सुधार केंद्र भेज दिया गया है.

लेकिन सवाल यह है कि इन्हें बाल सुधार केंद्र भेजने के कुछ दिन के बाद ही आज़ाद कर दिया जाएगा. नाबालिगों पर सजा के कड़े प्रावधान लागू न किए गए तो ये ही नाबालिग आगे चल कर जुल्म की दुनिया के बादशाह कहलाएंगे. आएदिन अपराधिक मामलों में नाबालिग का लिप्त होना बड़ा ही चिंता का विषय है.

2020 में नाबालिगों के खिलाफ 2,643 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए. वहीं 2023 में आए नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2022 में देश में नाबालिगों द्वारा कुल 30,555 अपराध किए गए. इन में लूटपाट से ले कर हत्या व महिलाओं के साथ दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराधों में इन का नाम शामिल है. नाबालिगों के खिलाफ देश की राजधानी 2,340 से अधिक मामलों के साथ छठे स्थान पर है. वहीं पहले स्थान पर महाराष्ट्र (4,406), इस के बाद मध्य प्रदेश (3,795) और राजस्थान (3,063) मामले दर्ज किए गए हैं. आपराधिक दर देखें तो, दिल्ली में 42%, महाराष्ट्र में यह 12% और मध्य प्रदेश में 13% है.

ऐसे में जरूरी है की इन के खिलाफ सजा के लिए कड़े प्रावधान लागू हो क्योंकि यही नाबालिग देश का आने वाला भविष्य हैं.

सितंबर में बौलीवुड का कारोबार : मराठी मूवी ‘नवरा माझा नवसाचा 2’ के आगे ‘स्त्री 2’ सहित सभी हिंदी फिल्मों ने टेके घुटने

20 सितंबर से शुरू हुए सितंबर माह के तीसरे सप्ताह में जबरदस्त उठा पटक रही. 15 अगस्त को प्रदर्शित हिंदी फिल्म ‘‘स्त्री 2’’ के सामने कोई फिल्म टिक नहीं पा रही थी. पिछले एक माह से ‘स्त्री 2’ लगातार बौक्स औफिस पर अपनी पकड़ मजबूत बनाते हुए 600 करोड़ रूपए के आंकड़े तक भी पहुंच गई. फिल्म ‘‘स्त्री 2’’ के निर्माता ने तो कई हाथ आगे निकलते हुए विकीपीडिया’ पर ऐलान किया है कि उन की फिल्म 854 करोड़ कमा चुकी है, अब यह आंकड़े कहां से आए, यह तो निर्माता ही जाने. मगर ‘राष्ट्रीय सिनेमा दिन’’ 20 सितंबर को प्रदर्शित मराठी भाषा की फिल्म ‘‘नवरा माझा नवसाचा 2’ ने पूरे महाराष्ट्र में ‘स्त्री 2’, ‘युध्रा’, ‘कहां से शुरू कहां खत्म’ इन सभी हिंदी की फिल्मों को बौक्स औफिस पर धूल चटा दी.

‘स्त्री 2’’ की सफलता का गुणगान करने में मदमस्त लोगों ने भी सपने में नहीं सोचा था कि सचिन पिलगांवकर निर्देशित कामेडी मराठी फिल्म ‘‘नवरा माझा नवसाचा 2’ आते ही बौक्स औफिस पर उन की फिल्म का विकेट उखाड़ जाएगा. सितंबर माह के तीसरे सप्ताह मराठी भाषा की फिल्म ‘नवरा माझा नवसाचा 2’’ ने महाराष्ट्र में ऐसा हंगामा बरपाया, जिस के चलते मुंबई व महाराष्ट्र के सिनेमाघरों ने मराठी ब्लौकबस्टर फिल्म ‘‘नवरा माझा नवसाचा’’ को समायोजित करने के लिए युधरा, कहां शुरू कहां खत्म व स्त्री 2’ के शो कम कर दिए.

शुक्रवार,20 सितंबर को सिनेमा दिन के अवसर पर निन्यानबे रूपए की टिकट दर के चलते मराठी फिल्म के साथ ही हिंदी की फिल्में भी कुछ कमाई कर गईं. मगर शनिवार 21 सितंबर को टिकट दर सामान्य होते ही सभी फिल्मों के बौक्स औफिस कलेक्शन में जबरदस्त गिरावट आई, जबकि मराठी फिल्म ‘‘नवरा माझा नवसाचा 2’’ का बौक्स औफिस कलेक्शन बढ़ गया.

‘नवरा माझा नवसाचा 2’ ने 20 सितंबर को एक करोड़ 85 लाख रूपए ही एकत्र किए थे, मगर 21 सितंबर शनिवार को इस फिल्म ने ढाई करोड़़ एकत्र किए. तो वहीँ रविवार, 22 सितंबर को इस मराठी फिल्म ने लगभग 4 करोड़ एकत्र किए. वह भी सिर्फ मुंबई व महाराष्ट्र में, जबकि 22 सितंबर, रविवार को पूरे देश में ‘स्त्री 2’ साढ़े 4 करोड़ एकत्र कर पाई. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है ‘‘स्त्री 2’’ को मराठी भाषा की छोटे बजट की फिल्म ‘‘नवरा माझा नवसाचा 2’ से कितनी बड़ी टक्कर मिल रही है.

हालात यह हो गए हैं कि हर सिनेमाघर मालिक अपने यहां हिंदी फिल्मों के शो कम या खत्म कर मराठी फिल्म ‘नवरा माझा नवसाचा 2’ के शो बढ़ाने पर मजबूर हो रहा है. सितंबर माह के तीसरे सप्ताह के 7 दिन के अंदर मराठी फिल्म ‘‘नवरा माझा नवसचा 2’’ ने 14 करोड़ 36 लाख झपए कमा कर नया रिकौर्ड बना डाला. वहीं 24 सितंबर को ‘स्त्री 2’ ने महज 30 लाख रूपए ही कमाए.

सितंबर माह के तीसरे सप्ताह, 20 सितंबर को प्रदर्शित निर्देशक रवि उदयवार की फिल्म ‘‘युधरा’’ ने ‘सिनेमा दिवस’ पर 99 रूपए की टिकट का फायदा उठाते हुए लगभग साढ़े चार करोड़ रूपए कमा लिए थे. लेकिन उस के बाद इस की हालत पतली होती गई और पूरे 7 दिन के अंदर यह फिल्म महज 10 करोड़ रूपए ही कमा सकी, इस में से निर्माता की जेब में बामुयिकल 4 करोड़ ही जाएंगे. जबकि इस के निर्माण में 50 करेाड़ रूपए खर्च हुए हैं.

इस तरह इस फिल्म से निर्माता फरहान अख्तर और रितेश सिद्धवानी पूरी तरह से घाटे में है. ज्ञातब्य है कि फिल्म ‘‘युधरा’’ में सिद्धांत चतुर्वेदी, राघव सच्चर और मालविका मोहन की अहम भूमिकाएं हैं. 20 सितंबर के बौक्स औफिस आंकड़े आते ही फिल्म के हीरो सिद्धांत चतुर्वेदी ने बड़ेबड़े दावे करना शुरू कर दिया था, मगर उन के सारे दावे पानी का बुलबुला ही साबित हुए.

तीसरे सप्ताह में ही 20 सितंबर को निर्माता विनोद भानुशाली और निर्देषक सौरभ दास गुप्ता की फिल्म ‘‘कहां से शुरू कहां खत्म’’ ने सिनेमा दिवस के अवसर पर 99 की टिकट का लाभ उठाते हुए लगभग सवा करोड़ रूपए कमा लिए थे, पर दूसरे दिन से इसे दर्शक मिलने मुश्किल हो गए और पूरे सप्ताह भर में यह फिल्म महज ढाई करोड़ रूपए ही कमा सकी, जिस से निर्माता की जेब में एक करोड़़ रूपए भी नहीं आएंगे.

इस फिल्म के बौक्स औफिस पर बुरी तरह से असफल होने का निर्माता विनोद भानुशाली को दोहरा नुकसान हुआ है. एक तरफ तो फिल्म के निर्माण में खर्च की गई पूरी रकम डूब गई, तो दूसरी तरफ उन की बेटी व मशहूर गायिका ध्वनि भानुशाली का अभिनय कैरियर शुरू होते ही डूब गया. विनोद भानुशाली ने आीम गुलाटी के साथ अपनी बेटी ध्वनि भानुशाली को हीरोइन ले कर इस फिल्म का निर्माण किया था.

मजेदार बात यह है कि इस फिल्म की पीआर का दावा था कि यह फिल्म बौक्स औफिस पर सुपर डुपर होगी और इसी के चलते उन्होने ध्वनि भानुशाली का इंटरव्यू नहीं करवाया था. वैसे यह पीआर कंपनी कई फिल्मों व कलाकारों की नैय्या डुबा चुकी है. पर इस पर आरोप नहीं लगते, क्योंकि फिल्म निर्माता या कलाकार अपने पीआर की कोई जवाब देही ही तय नहीं कर रहे हैं.

उत्तर प्रदेश : गर्लफ्रैंड की वजह से करने लगा चोरियां, पहुंच गया जेल

अपनी गर्लफ्रैंड्स के शौक पूरे करना सब को काफी अच्छा लगता है क्योंकि जिस से हम प्यार करते हैं उस की छोटी से छोटी बात मानना, पसंदीदा जगह पर ले जाना, उस की पसंद के तोहफे दिलाना काफी सुकून देता है लेकिन जब इन शौक को पूरा करने की वजह से किसी को जेल जाना पड़े इंसान को कैसा लगेगा?

आप भी सोच रहे होंगी कि भला गर्लफ्रैंड्स के शौक पूरे करने में क्या बुराई है, मगर किसी को इस के चलते जेल की यात्रा करनी पङे, तो फिर क्या कर सकते हैं?

पढ़ाई छोङ कर बन गया चोर

तो चलिए, आप को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का एक ऐसा ही किस्सा बताते हैं जहां एक लौ स्टूडैंट सिर्फ इसलिए चोरी करने लगा ताकि वह अपनी गर्लफ्रैंड की शौक पूरी कर सके.

दरअसल, इस लौ स्टूडेंट का नाम अब्दुल हलीम है जोकि जौनपुर, उत्तर प्रदेश का रहने वाला है. लखनऊ में रह कर वह वकालत की पढ़ाई कर रहा था पर उसे क्या पता था कि वकालत की पढ़ाई करते और अपनी गर्लफ्रैंड की शौक पूरी करते उसे जेल की हवा खानी पड़ेगी.

अब्दुल हलीम गोमती नगर के एमआर गोमती ग्रीन्म में रह कर अपनी वकालत की पढ़ाई कर रहा था. ऐसे में पुलिस को गोमती ग्रीन्म में हो रही कई चोरियों के बारे में पता चला तो पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे की मदद ली और सीसीटीवी कैमरे में अब्दुल हलीम कैद हो गया.

चढ़ा पुलिस के हत्थे

पुलिस ने फौरन अब्दुल हलीम को गिरफ्तार किया और उस से जब चोरी करने का कारण पूछा तब उस ने बताया कि उस ने चोरी अपनी गर्लफ्रैंड के शौक पूरे करने के लिए की. उस ने बताया कि उस की गर्लफ्रैंड का शौक मूवी देखना, आएदिन मौल्स में घूमना, क्लब जाना, महंगे आईफोन लेना था, जिस के चलते उसे चोर बनना पड़ा.

अब्दुल हलीम के पास से कुछ गहने और कैश भी बरामद किया गया. पुलिस की तफ्तीश चल रही है. मगर फिलहाल वह जल में है.

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