बच्चे को बच्चा तभी तक कहा जा सकता है जब तक वह बच्चों की तरह रहता है लेकिन यदि वह जुल्म की दुनिया में कदम रख दे तो वह बच्चा नहीं बल्कि अपराधी बन जाता है. ऐसे में उस के व्यवहार में अच्छे बदलाव की उम्मीद कम व संगीन अपराधी बनने की संभावना ज्यादा रहती है. आज कल आएदिन ऐसे मामले हमें देखने को मिल जाते हैं कि जिस उम्र में बच्चे के हाथों में पेन पेंसिल होने चाहिए उन हाथों में कभी चाकू तो कभी महंगी गाड़ी का स्टेरिंग होता है जो बेगुनाह लोगों पर चल जाता है.

हाल ही में दिल्ली के शकरपुर इलाके की एक घटना नें दिलदहला दिया. जहां लोग यारी दोस्ती की कसमें खाते हैं एकदूसरे की हर वक़्त मदद करने के लिए आगे रहते हैं वहीं दोस्त ही दोस्त का काल बन गया.

शकरपुर इलाके में रहने वाला सचिन ने नया फोन लिया था. जब वह फोन ले कर आ रहा था कि उसी समय 3 दोस्त मिल गए. वह उस से नए मोबाइल की पार्टी मांगने लगे. पार्टी मांगने को ले कर हुए विवाद के बाद दोस्तों ने उस पर चाकू से हमला कर दिया. नाबालिग को घायल कर के आरोपी मौके से भाग गए. गंभीर हालत में घायल को के. के. अस्पताल में भर्ती करवाया गया जहां पर डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. तीनों आरोपी दोस्त नाबालिग ही हैं ओर अब पुलिस की हिरासत में हैं. जिन्हें बाल सुधार केंद्र भेज दिया गया है.

लेकिन सवाल यह है कि इन्हें बाल सुधार केंद्र भेजने के कुछ दिन के बाद ही आज़ाद कर दिया जाएगा. नाबालिगों पर सजा के कड़े प्रावधान लागू न किए गए तो ये ही नाबालिग आगे चल कर जुल्म की दुनिया के बादशाह कहलाएंगे. आएदिन अपराधिक मामलों में नाबालिग का लिप्त होना बड़ा ही चिंता का विषय है.

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