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आधा है चंद्रमा रात आधी : कोई जादुई चिराग तो है नहीं

‘‘मान्यवर, महंगाई के बारे में आप से कुछ बात करनी थी.’’

वह गुस्से से थर्रा उठे थे. कुरसी उन से टकराई थी या वह कुरसी से, मैं नहीं बता सकता.

‘‘इस के लिए आप ने कितनी बार लिख डाला? गिनती में आप बता सकते हैं?’’

‘‘जी, जितनी बार वामपंथियों ने समर्थन वापस लेने की धमकियां दे डालीं,’’ मैं ने विनम्रता से कहा.

‘‘इस मुद्दे पर आप हमारा कितना कीमती समय बरबाद कर चुके हैं, कुछ मालूम है. आप को तो मुल्क की कोई दूसरी समस्या ही नजर नहीं आती… पाकिस्तानी सीमा पर आएदिन गोलीबारी होती रहती है. चीनी सीमा अभी तक विवादित पड़ी है. हम देश की अस्मिता बचाने में परेशान हैं. हमारी आधी सेना उन से लोहा लेने में लगी हुई है…’’

उन के इस धाराप्रवाह उपदेश के दौरान ही मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘और बाकी आधी…’’

उन्होंने गुर्रा कर कहा, ‘‘मुल्क के तमाम हिस्सों में बोरवेलों में गिरने वाले बच्चों को निकालने में…कभी आप ने यह जानना नहीं चाहा कि अंदरूनी हालात भी कम खराब नहीं चल रहे हैं. मुंबई, बनारस, अक्षरधाम, हैदराबाद, बंगलौर, जयपुर के बाद अभी हाल में दिल्ली में आतंकवादी हमलों से देश कांप उठा है. हमारे आधे सुरक्षाबल तो उन्हीं से जूझ रहे हैं.’’

मैं ने प्रश्नवाचक मुंह बनाया, ‘‘बाकी आधे…’’

उन्होंने खट्टी डकार लेते हुए बताया, ‘‘वी.आई.पी. सुरक्षा में मालूम नहीं क्यों लोग अधिकारियों और मंत्रियों का घेराव करते रहते हैं. हमारे पास जादुई चिराग तो है नहीं. किसान कहते हैं अनाज की कीमतें बढ़ाइए, आप कहते हैं घटाइए. आप ही बताइए हम इसे कैसे संतुलित करें? हम तो बीच में कुछ अनाज धर्मकर्म पर या व्यवस्था के नाम पर ही तो लेते हैं. शेष का आधा आप लोगों की सेवा में ही लगाया जाता है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘और बाकी आधा…’’

वह बहुत जोर से झल्ला उठे, ‘‘बाकी आधा सरकारी गोदामों में सड़ जाता है. आप लोग यह जो नेतागीरी करते रहते हैं, हमें काम करने का समय ही नहीं मिल पाता. गोदाम से अनाज निकलवाने के लिए हमें सुप्रीम कोर्ट तक बेकार की दौड़ करनी पड़ती है. यह काम सुप्रीम कोर्ट का है कि दिल्ली की सड़कों की सफाई के लिए भी लोग वहां पहुंच जाते हैं. उस का आधा समय तो यों ही निकल जाता है.’’

‘‘और शेष आधा?’’ मैं ने पूछा.

‘‘आतंकवादियों के मुकदमे सुनने में, पुलिस वालों के मुकदमे सुनने में और सरकारी व संवैधानिक संकट के समय उन को सलाहमशविरा देने में.

‘‘हमारी तो दिली इच्छा है कि हम सरकारों या सियासी पार्टियों को इस दलदल से निकालें. पर ये दोनों ही जनता की आड़ ले कर निकलना ही नहीं चाहते. जो बच्चे बोरवेल से निकलना चाहते थे, निकल लिए. जिन कपड़ों को मौडलों के बदन से निकलना था, निकल लिए. जो आतंकवादी मुल्क से निकलना चाहते थे, निकल लिए. जो अपराधी जेल से निकलना चाहते थे, निकल लिए. जो नेता पार्टी से निकलना चाहते थे, निकल लिए जो ‘बड़े’ घोटालों से निकलना चाहते थे, निकल लिए. स्वाभाविक नींद सोने वालों को तो जगाया जा सकता है, पर जो बन के सो रहे हों, उन्हें कौन जगा सकता है? क्योंकि तेल कंपनियां मुसीबत से निकलना चाहती थीं, प्रधानमंत्री से अपना रोना रोईं, उन्होंने आश्वासन दिया कि वे उन को परेशान नहीं देखना चाहते, कुछ दाम तो बढ़ाने ही होंगे. इस के बाद ‘ब्रांडेड’ पेट्रोल और बढ़े हुए दामों पर आ गया, रसोई गैस के नए कनेक्शन मिलने बंद हो गए हैं, आप जानते हैं कि आप मिट्टी के तेल, रसोई गैस आदि के असली मूल्य का आधा ही चुकाते हैं.’’

‘‘और आधा…’’ मेरे मुंह से आदतानुसार निकल गया.

‘‘अभी तक हम चुका रहे थे, अब बंद कर देंगे. आप का समय ‘पूरा’ खत्म हो गया.’’

मैं बाहर निकलते समय सोच रहा था कि वह सचमुच कितनी कंजूसी से काम चलाते हैं. आधे सांसदों से भी कम खर्च कर के सरकार बना भी लेते हैं और चला भी लेते हैं. जो तनाव ले कर मैं उन से मिलने गया था, आधा कम हो चुका था. ‘आधा है चंद्रमा रात आधी…’ गीत गुनगुनाते हुए मैं लौट पड़ता हूं क्योंकि अच्छा संगीत तनाव को आधा कर देता है.

Happy BirthDay Lata Mangeshkar : हीरे, कार और क्रिकेट की शौकीन लता ने तंगहाली में पहनी थी 12 रुपए की साड़ी

ज्यादातर लोग उन्हें लता दी, लता जी, लता ताई और स्वर कोकिला कहते थे वैसे उनका नाम था लता मंगेशकर. लता मंगेशकर का जन्म आज के दिन साल 1929 में हुआ था. साल 2022 में 6 फरवरी को इस गायिका का निधन हो गया. आज उनके संगीतमय जीवन के सुखदुख से जुड़े कुछ रोचक पहलुओं के पन्ने को पलटते हैं

जब प्रधानमंत्री की आंखें हो गई थी नम

लता मंगेशकर एक सुरीली गायिका थी, जिनका गाना ‘ऐ मेरे वतन के लोगों ’ सुन कर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आंखें नम हो गई थी. यहां बात हो रही है साल 1963, 27 जनवरी की. लता जी स्टैज पर कवि प्रदीप का लिखा गाना ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गा रही थीं, गाने के बाद वह स्टैज के पीछे कौफी पीने चली गईं. तभी उस जमाने के मशहूर फिल्म निर्देशक महबूब खान ने उनसे कहा, “तुम्हें पंडितजी (नेहरूजी) बुला रहे हैं”. लताजी, नेहरू जी के पास गईं. नेहरू जी ने कहा, “इस लड़की ने मेरे आंखों में पानी ला दिया”. यह कह कर उन्होंने लता को गले से लगा लिया.
लता मंगेशकर का शुरुआती जीवन बहुत ही गरीबी में बीता. गायक पिता दीनानाथ मंगेशकर की मृत्यु के बाद उनके ऊपर चार भाईबहनों की जिम्मेदारी आ गई. न चाहते हुए भी उन्हें मूवी में एक्टिंग करनी पड़ी. अपनी पहली मूवी ‘मंगलागौर’ में उन्होंने एक्ट्रैस की बहन का रोल निभाया. उन्होंने इस तरह से 5 फिल्मों में काम किया, जिनके नाम थे ‘माझे झोल’, ‘गजा भाउ’, ‘बड़ी मां’, ‘जीवन यात्रा’, ‘सुभद्रा’ और ‘मंदिर’.
एक जमाने में राशन की दुकान पर साड़ियां मिला करती थीं, पैसे की तंगी के दिनों में लता मंगेशकर इन्हीं साड़ियों को पहना करती थी. उनके पास साड़ियों की इस्त्री कराने के भी पैसे नहीं थे इसलिए साड़ियों को अपने हाथों से धोती, फिर सुखाती और सूखने के बाद उसको अच्छी तरह से तह लगा कर सिरहाने रख कर सोया करती, इससे साड़ियां प्रैस हो जाती. यह साल 1947-48 की बात है, उन दिनों ये पतले लाल बौर्डर की सूती की साड़ियां केवल 12 रुपए में मिला करती थी.

 

शरलौक होम्स की जासूसी कहानियां पढ़ती थीं

लता जी को हिंदी, इंग्लिश, ऊर्दू, मराठी का ज्ञान था हलांकि वह स्कूली पढ़ाई नहीं कर पाई थी. इसकी एक रोचक कहानी है, कहा जाता है कि लता मंगेशकर बचपन में जब पहली बार स्कूल गई, तो अपनी छोटी बहन आभा भोसले को भी साथ ले गई. उस समय आभा भोसले की उम्र करीब 10 महीने थी. टीचर ने लता को कहा कि इतने छोटे बच्चों को स्कूल लेकर मत आओ, अब लता जी को इस बात पर गुस्सा आ गया. वह क्लास के बीच से ही घर आ गई और दोबारा कभी स्कूल का रुख नहीं किया. बाद में उन्होंने अपने आसपास के लोगों से लिखनापढ़ना सीखा. स्कूली शिक्षा नहीं लेने के बावजूद भी वह अंग्रेजी जासूसी कहानियां पढ़ने की शौकीन थी. वह शरलौक होम्स के नौवल्स पढ़ा करती थीं.

कार, क्रिकेट और हीरो की शौकीन थी लता मंगेशकर

यश चोपड़ा के डायरेक्शन में बनी मूवी ‘वीर जारा’ के बारे में एक किस्सा बेहद मशहूर है. एक्टर शाहरुख खान और एक्ट्रैस प्रीती जिंटा की हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बैकग्राउंड में बनी इ मूवी के गाने बहुत सुरीले हैं, इसके गानों को लता जी ने अपनी आवाज से सजाया था. जब यश चोपड़ा ने लता जी को गाने की फीस देनी चाही, तो उन्होंने लेने से इनकार कर दिया. लता मंगेशकर ने कहा कि यश चोपड़ा उनके भाई जैसे हैं इसलिए वह गाने की फीस नहीं लेंगी. जब यह मूवी रिलीज हुई तो यश जी ने उन्हें तोहफे के तौर पर एक मर्सिडीज कार भेंट की. लता मंगेशकर की पहली कार ग्रे कलर की हिलमैन थी, इसे उन्होंने 8000 रुपए में खरीदा था. तब वह एक गाने के लिए 200 से लेकर 500 रुपए तक फीस लिया करती थीं. जब उन्हें शो मैन राजकपूर की मूवी में काम करने के लिए 2000 रुपए मिले, तो हिलमैन को बेच कर ब्लू कलर की शेवरले कार खरीदी. कार के अलावा उन्हें डायमंड का बहुत शौक था. जब उन्होंने कमाना शुरू किया, तो अपनी कमाई को जोड़ कर 700 रुपए में हीरे की अंगूठी बनवाई. उन्हें सोने के गहनों का शौक नहीं थी लेकिन वह सोने के पायल जरूर पहनती थी जबकि आज भी ज्यादातर महिलाएं चांदी के पायल ही पहना करती हैं. लता मंगेशकर को क्रिकेट देखना बेहद पसंद था. आष्ट्रेलियाई क्रिकेटर डौन ब्रैडमैन ने उन्हें अपना सिग्नेचर किया हुआ एक फोटोग्राफ भी भेंट किया था. उन्होंने 1946 में मुंबई के ब्रेबौर्न स्टैडियम में पहली बार इंडिया और आस्ट्रेलिया का मैच देखा.

नौनवेज फूड्स बनाने में माहिर थी लता मंगेशकर

 

लता जी के बारे में यह बात मशहूर है कि वह बेहद लजीज मटन पसंदा बनाती थी. इसके अलावा वह गोवन फिश करी और समुद्री झींगा मछली भी बहुत अच्छा पकाती थी. पकाने के साथ ही इन्हें खाना भी पसंद करती थीं. इतना ही नहीं वह कीमे के समोसे बहुत शौक से खाती थीं. मिठाइयों में जलेबी, इंदौर के गुलाब जामुन, सूजी का हलवा इनको अच्छा लगता था. कई लोग यह जान कर चकित रह जाएंगें कि लता जी को गोलगप्पा, ज्वार की रोटी और नीबू का अचार बेहद लजीज लगते थे.

लताजी ने क्यों नहीं की शादी

 

एक बार एक इंटरव्यू के दौरान लता मंगेशकर की बहन मीना ताई मंगेशकर ने कहा था कि अपने भाईबहनों की जिम्मेदारियों का बोझ उनके ऊपर इतना था कि वह कभी अपने बारे में सोच नहीं सकी. मीना मंगेशकर ने कहा हमारी मां उनसे शादी के लिए कहा करती थी, लेकिन लता जी को लगता था कि शादी के बाद वे हम सबसे दूर हो जाएंगी क्योंकि मैं केवल दस साल की थी जब हमारे बाबा इस दुनिया से चले गए. मेरी बहन आशा मुझसे भी छोटी, मेरा भाई हृदय सबसे छोटा था, ऐसे में लता अपनी शादी की सोच ही नहीं सकी.

लता की उपलब्धियों की लिस्ट के कुछ महत्वपूर्ण अंश

  • लता जी को तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.
  • करीब 60 साल के करियर मेें 30 से अधिक भाषाओं में 8 हजार गाने गाए.
  • लंदन के रौयल अल्बर्ट हौल में परफौर्म करने वाली पहली इंडियन होने का गौरव हासिल था.
  • फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान औफिसर औफ द लीजन औफ औनर से सम्मानित जा चुका है.
  • लता जी को साल 1999 में उच्च सदन यानी राज्य सभा के लिए नौमिनेट किया गया, उन्होंने 1999 से 2005 तक सांसद के रूप में काम किया.
  • लता मंगेशकर को साल 1989 में दादा साहब फाल्के अवार्ड दिया गया.
    साल 2001 में इन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया

उत्तर प्रदेश के स्कूल में तंत्रमंत्र और बच्चे की बलि

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2047 तक भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. वे कहते हैं कि हम दुनिया की सब से बड़ी महाशक्ति के रूप में उभरने वाले हैं. बकौल योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश देश व समाज की मजबूती के लिए शिक्षा की नींव मजबूत होना जरूरी है. गत 6 वर्षों में उत्तर प्रदेश ने बेसिक शिक्षा के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाई है. 2017 के पहले बदहाली से जो स्कूल बंदी के कगार पर थे आज उन का कायाकल्प हो चुका है. दृढ़ संकल्प, संसाधन, तकनीकी, नवाचार के समन्वय से शिक्षा के क्षेत्र में चमत्कार का सपना साकार हुआ है. तकनीकी के बेहतर उपयोग वाला निपुण भारत मिशन शिक्षा की गुणवत्ता सुदृढ़ करने में शानदार परिणाम दे रहा है.

ऐसी बड़ीबड़ी बातें करने वाले नेताओं की नाक के नीचे हाथरस में एक स्कूल के भीतर शिक्षक और प्रबंधक द्वारा एक 9 साल के छात्र की बलि दे दी गई और वह इसलिए ताकि उन के स्कूल की तरक्की दिन दूनी रात चौगुनी हो. सोचिए हमारा समाज और समाज को शिक्षित करने वाले किस धार्मिक अंधविश्वास, मूर्खता, अपराध और जघन्यता के अंधे कुएं में बैठे हैं और नेता हमें विश्वगुरु बनने का आसमानी सपना दिखा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के हाथरस से अनेक भयावह ख़बरें निकल कर आती हैं. अभी कुछ दिन पहले की बात है हाथरस में एक ढोंगी बाबा नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा उर्फ सूरजपाल सिंह जाटव के धार्मिक समागम में भगदड़ मचने से 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई, जिन में अधिकतर महिलाएं थीं. बाबा की चरणधूलि लेने के चक्कर में ऐसी भगदड़ मची कि तमाम औरतें और बच्चे दलदल में एक के ऊपर एक गिरते चले गए और दम घुटने से उन की मौत हो गई. सारे शव एक दूसरे के ऊपर ढेर हो गए. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की पुलिस ने आजतक उस बाबा को गिरफ्तार नहीं किया. उस के खिलाफ सारा मामला रफादफा हो गया. मुख्यमंत्री से ले कर कानून को लागू करने वाली तमाम एजेंसियों ने धर्म की काली पट्टी आंखों पर चढ़ा ली. फिर किस की मां, किस की बहन, किस की बेटी, किस की पत्नी, किस का बच्चा मरा, किसी को नहीं दिखाई दिया.

हाथरस में ही वह भयानक रेप काण्ड भी हुआ था जिस की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ी थी. 14 सितम्बर,2020 में एक 19 साल की दलित लड़की से 4 लोगों ने भयानक तरीके से बलात्कार किया. बलात्कार के बाद उस को मारने के लिए उस के गले में दुपट्टा डाल कर उसे घसीटा गया, जिस से उस की रीढ़ की हड्डी टूट गई. जब वह चीखी तो उस की जबान काटने की कोशिश की गई और फिर उस का गला घोंट कर उसे खेत में यह सोच कर फेंक दिया कि वह मर गई. बाद में जब उस की मां उस को खेतों में ढूंढते हुए आई तो उस ने अपनी बच्ची को मरणासन्न हालत में देखा. उस की सांसें चल रही थीं मगर उस के शरीर को लकवा मार चुका था. अस्पताल में पुलिस ने उस दलित लड़की का बयान दर्ज किया. उस ने चारों अपराधियों के नाम लिए. हालत बिगड़ने पर उस को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल भी लाया गया मगर वह जिंदा नहीं बची. 29 सितम्बर को उस की मौत हो गई. दलित के साथ क्रूरता का सिलसिला यही नहीं थमा, उस की मौत के बाद उस के परिजनों को उस का शव सौंपने की बजाय या उन की सहमति लेने की बजाय उन्हें उनके घर में बंद कर के उत्तर प्रदेश पुलिस ने रात के ढाई बजे उस दलित लड़की का शव जला दिया.

आज उसी हाथरस में एक 9 साल के बच्चे को स्कूल प्रशासन ने स्कूल के भीतर गला घोंट कर उस की बलि चढ़ा दी ताकि उन के स्कूल की तरक्की हो. अपने मांबाप का इकलौता बेटा कृतार्थ सहपऊ क्षेत्र के गांव रसगवां के डीएल पब्लिक स्कूल आवासीय विद्यालय में कक्षा 2 में पढ़ रहा था. उस के मातापिता उस को इंजीनियर बनाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने उस को हौस्टल में रख कर पढ़ाना पसंद किया मगर उन्हें क्या पता था कि जिस स्कूल में उन्होंने अपने बच्चे का दाखिला कराया है वह धर्म के अंधे और काला जादू व तंत्रमंत्र करने वाले जघन्य अपराधियों का डेरा है. स्कूल का प्रबंधक दिनेश बघेल और उस के पिता जशोधन शिक्षक नहीं बल्कि तांत्रिक है और तंत्रमंत्र और बलि देने के चक्कर में उन्होंने मासूम कृतार्थ की हत्या कर दी.

कृतार्थ के पिता श्रीकृष्ण ने अपने बेटे को इंजीनियर बनाने के लिए अच्छी पढ़ाई कराने की सोची थी. इस के चलते उन्होंने अपने कलेजे के टुकड़े को अपने से दूर डीएल पब्लिक स्कूल के छात्रावास में रखा था. उन्हें क्या पता था कि धार्मिक कर्मकांडों में लिप्त लोग उस के घर का इकलौता चिराग बुझा देंगे.

विद्यालय प्रबंधक दिनेश बघेल का पिता स्कूल और स्कूल से 15 मीटर की दूरी पर बने एक नलकूप पर तांत्रिक क्रिया करता था. इस कारण वह पूरे गांव में भगतजी के नाम से मशहूर था. दिनेश बघेल ने जब विद्यालय बनाया तजा तो उस ने बाजार और बैंक से कर्ज लिया था. इस कर्ज से मुक्ति पाने, अपने विद्यालय और परिवार की तरक्की के लिए वह और उस का बाप जसोदन तांत्रिक क्रियाएं कर रहे थे. इस के चलते जसोदन ने विद्यालय में पढ़ने वाले कृतार्थ से पहले राज नाम के बच्चे की बलि देने की भूमिका तैयार की थी, लेकिन राज बच गया. रात में जब ये लोग राज को उठाने के लिए हौस्टल के अंदर गए तो राज जाग गया और चीखने चिल्लाने लगा. इसलिए उस दिन उसे छोड़ना पड़ा. उस के बाद रात को बलि देने के लिए कृतार्थ को चुना गया. रात करीब 10 बजे जब सभी सो गए तो बच्चों के साथ हौल में सो रहा रामप्रकाश सोलंकी नाम का आदमी कृतार्थ को अपनी गोदी में उठा कर तांत्रिक क्रिया और बलि देने के लिए ले कर बाहर आया. इस दौरान कृतार्थ की आंख खुल गई. वह रोने लगा तो जसोदन ने राम प्रकाश सोलंकी बच्चे के मुंह को दबा कर नीचे प्रधानाचार्य कक्ष के बाहर बिछे हुए तख्त पर ले आये और वहां उस को लिटा कर गला दबा कर उसे मार डाला.

इस घटना को अंजाम देने के दौरान कंप्यूटर शिक्षक वीरपाल उर्फ वीरू निवासी ग्राम बंका थाना मुरसान, प्रधानाचार्य लक्ष्मण सिंह पुत्र राधेश्याम निवासी बढा लहरोली घाट थाना बल्देव जनपद खड़े हो कर निगरानी करते रहे. यानी पूरा स्कूल स्टाफ तंत्रमंत्र, धार्मिक कर्मकांड और अपराध में लिप्त था. क्या ऐसी जगह को स्कूल या शिक्षण संस्थान का नाम दिया जा सकता है?

पुलिस को नलकूप की कोठरी से बलि देने का सामान, रस्सी, धार्मिक तस्वीरें, पूजापाठ का सामान मिला है. चारपांच लोगों की गिरफ्तारी हुई है मगर यह भी कुछ दिन बाद वैसे ही छूट जाएंगे जैसे हाथरस रेप काण्ड के आरोपी छूट गए और जैसे 300 से ज्यादा महिलाओं की हत्या का दोषी धार्मिक बाबा आजाद घूम रहा है.

भारतीय जनता पार्टी की सरकार देश को विश्वगुरु बनाने की तरफ नहीं बल्कि धर्म के अंधे कुएं की तरफ धकेल रही है. देश गर्त में जा रहा है. जिस देश का प्रधानमंत्री कोरोना को भगाने के लिए जनता से थाली पिटवाए, मोमबत्तियां जलवाए, जिस देश का रक्षा मंत्री लड़ाकू विमान रफाल की डिलीवरी लेने फ्रांस जाए और वहां रफाल को पहले पूजे, उस पर ॐ लिखे, उस पर नारियल चढ़ाए और विमान के पहियों के नीचे नीबू रखे तो ऐसे अंधविश्वासी राजनेताओं के राज में स्कूलों में बच्चों की बलि चढ़ा दी जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

नाबालिगों में बढ़ रही अपराधी मानसिकता के जिम्मेदार कौन?

बच्चे को बच्चा तभी तक कहा जा सकता है जब तक वह बच्चों की तरह रहता है लेकिन यदि वह जुल्म की दुनिया में कदम रख दे तो वह बच्चा नहीं बल्कि अपराधी बन जाता है. ऐसे में उस के व्यवहार में अच्छे बदलाव की उम्मीद कम व संगीन अपराधी बनने की संभावना ज्यादा रहती है. आज कल आएदिन ऐसे मामले हमें देखने को मिल जाते हैं कि जिस उम्र में बच्चे के हाथों में पेन पेंसिल होने चाहिए उन हाथों में कभी चाकू तो कभी महंगी गाड़ी का स्टेरिंग होता है जो बेगुनाह लोगों पर चल जाता है.

हाल ही में दिल्ली के शकरपुर इलाके की एक घटना नें दिलदहला दिया. जहां लोग यारी दोस्ती की कसमें खाते हैं एकदूसरे की हर वक़्त मदद करने के लिए आगे रहते हैं वहीं दोस्त ही दोस्त का काल बन गया.

शकरपुर इलाके में रहने वाला सचिन ने नया फोन लिया था. जब वह फोन ले कर आ रहा था कि उसी समय 3 दोस्त मिल गए. वह उस से नए मोबाइल की पार्टी मांगने लगे. पार्टी मांगने को ले कर हुए विवाद के बाद दोस्तों ने उस पर चाकू से हमला कर दिया. नाबालिग को घायल कर के आरोपी मौके से भाग गए. गंभीर हालत में घायल को के. के. अस्पताल में भर्ती करवाया गया जहां पर डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. तीनों आरोपी दोस्त नाबालिग ही हैं ओर अब पुलिस की हिरासत में हैं. जिन्हें बाल सुधार केंद्र भेज दिया गया है.

लेकिन सवाल यह है कि इन्हें बाल सुधार केंद्र भेजने के कुछ दिन के बाद ही आज़ाद कर दिया जाएगा. नाबालिगों पर सजा के कड़े प्रावधान लागू न किए गए तो ये ही नाबालिग आगे चल कर जुल्म की दुनिया के बादशाह कहलाएंगे. आएदिन अपराधिक मामलों में नाबालिग का लिप्त होना बड़ा ही चिंता का विषय है.

2020 में नाबालिगों के खिलाफ 2,643 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए. वहीं 2023 में आए नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2022 में देश में नाबालिगों द्वारा कुल 30,555 अपराध किए गए. इन में लूटपाट से ले कर हत्या व महिलाओं के साथ दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराधों में इन का नाम शामिल है. नाबालिगों के खिलाफ देश की राजधानी 2,340 से अधिक मामलों के साथ छठे स्थान पर है. वहीं पहले स्थान पर महाराष्ट्र (4,406), इस के बाद मध्य प्रदेश (3,795) और राजस्थान (3,063) मामले दर्ज किए गए हैं. आपराधिक दर देखें तो, दिल्ली में 42%, महाराष्ट्र में यह 12% और मध्य प्रदेश में 13% है.

ऐसे में जरूरी है की इन के खिलाफ सजा के लिए कड़े प्रावधान लागू हो क्योंकि यही नाबालिग देश का आने वाला भविष्य हैं.

सितंबर में बौलीवुड का कारोबार : मराठी मूवी ‘नवरा माझा नवसाचा 2’ के आगे ‘स्त्री 2’ सहित सभी हिंदी फिल्मों ने टेके घुटने

20 सितंबर से शुरू हुए सितंबर माह के तीसरे सप्ताह में जबरदस्त उठा पटक रही. 15 अगस्त को प्रदर्शित हिंदी फिल्म ‘‘स्त्री 2’’ के सामने कोई फिल्म टिक नहीं पा रही थी. पिछले एक माह से ‘स्त्री 2’ लगातार बौक्स औफिस पर अपनी पकड़ मजबूत बनाते हुए 600 करोड़ रूपए के आंकड़े तक भी पहुंच गई. फिल्म ‘‘स्त्री 2’’ के निर्माता ने तो कई हाथ आगे निकलते हुए विकीपीडिया’ पर ऐलान किया है कि उन की फिल्म 854 करोड़ कमा चुकी है, अब यह आंकड़े कहां से आए, यह तो निर्माता ही जाने. मगर ‘राष्ट्रीय सिनेमा दिन’’ 20 सितंबर को प्रदर्शित मराठी भाषा की फिल्म ‘‘नवरा माझा नवसाचा 2’ ने पूरे महाराष्ट्र में ‘स्त्री 2’, ‘युध्रा’, ‘कहां से शुरू कहां खत्म’ इन सभी हिंदी की फिल्मों को बौक्स औफिस पर धूल चटा दी.

‘स्त्री 2’’ की सफलता का गुणगान करने में मदमस्त लोगों ने भी सपने में नहीं सोचा था कि सचिन पिलगांवकर निर्देशित कामेडी मराठी फिल्म ‘‘नवरा माझा नवसाचा 2’ आते ही बौक्स औफिस पर उन की फिल्म का विकेट उखाड़ जाएगा. सितंबर माह के तीसरे सप्ताह मराठी भाषा की फिल्म ‘नवरा माझा नवसाचा 2’’ ने महाराष्ट्र में ऐसा हंगामा बरपाया, जिस के चलते मुंबई व महाराष्ट्र के सिनेमाघरों ने मराठी ब्लौकबस्टर फिल्म ‘‘नवरा माझा नवसाचा’’ को समायोजित करने के लिए युधरा, कहां शुरू कहां खत्म व स्त्री 2’ के शो कम कर दिए.

शुक्रवार,20 सितंबर को सिनेमा दिन के अवसर पर निन्यानबे रूपए की टिकट दर के चलते मराठी फिल्म के साथ ही हिंदी की फिल्में भी कुछ कमाई कर गईं. मगर शनिवार 21 सितंबर को टिकट दर सामान्य होते ही सभी फिल्मों के बौक्स औफिस कलेक्शन में जबरदस्त गिरावट आई, जबकि मराठी फिल्म ‘‘नवरा माझा नवसाचा 2’’ का बौक्स औफिस कलेक्शन बढ़ गया.

‘नवरा माझा नवसाचा 2’ ने 20 सितंबर को एक करोड़ 85 लाख रूपए ही एकत्र किए थे, मगर 21 सितंबर शनिवार को इस फिल्म ने ढाई करोड़़ एकत्र किए. तो वहीँ रविवार, 22 सितंबर को इस मराठी फिल्म ने लगभग 4 करोड़ एकत्र किए. वह भी सिर्फ मुंबई व महाराष्ट्र में, जबकि 22 सितंबर, रविवार को पूरे देश में ‘स्त्री 2’ साढ़े 4 करोड़ एकत्र कर पाई. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है ‘‘स्त्री 2’’ को मराठी भाषा की छोटे बजट की फिल्म ‘‘नवरा माझा नवसाचा 2’ से कितनी बड़ी टक्कर मिल रही है.

हालात यह हो गए हैं कि हर सिनेमाघर मालिक अपने यहां हिंदी फिल्मों के शो कम या खत्म कर मराठी फिल्म ‘नवरा माझा नवसाचा 2’ के शो बढ़ाने पर मजबूर हो रहा है. सितंबर माह के तीसरे सप्ताह के 7 दिन के अंदर मराठी फिल्म ‘‘नवरा माझा नवसचा 2’’ ने 14 करोड़ 36 लाख झपए कमा कर नया रिकौर्ड बना डाला. वहीं 24 सितंबर को ‘स्त्री 2’ ने महज 30 लाख रूपए ही कमाए.

सितंबर माह के तीसरे सप्ताह, 20 सितंबर को प्रदर्शित निर्देशक रवि उदयवार की फिल्म ‘‘युधरा’’ ने ‘सिनेमा दिवस’ पर 99 रूपए की टिकट का फायदा उठाते हुए लगभग साढ़े चार करोड़ रूपए कमा लिए थे. लेकिन उस के बाद इस की हालत पतली होती गई और पूरे 7 दिन के अंदर यह फिल्म महज 10 करोड़ रूपए ही कमा सकी, इस में से निर्माता की जेब में बामुयिकल 4 करोड़ ही जाएंगे. जबकि इस के निर्माण में 50 करेाड़ रूपए खर्च हुए हैं.

इस तरह इस फिल्म से निर्माता फरहान अख्तर और रितेश सिद्धवानी पूरी तरह से घाटे में है. ज्ञातब्य है कि फिल्म ‘‘युधरा’’ में सिद्धांत चतुर्वेदी, राघव सच्चर और मालविका मोहन की अहम भूमिकाएं हैं. 20 सितंबर के बौक्स औफिस आंकड़े आते ही फिल्म के हीरो सिद्धांत चतुर्वेदी ने बड़ेबड़े दावे करना शुरू कर दिया था, मगर उन के सारे दावे पानी का बुलबुला ही साबित हुए.

तीसरे सप्ताह में ही 20 सितंबर को निर्माता विनोद भानुशाली और निर्देषक सौरभ दास गुप्ता की फिल्म ‘‘कहां से शुरू कहां खत्म’’ ने सिनेमा दिवस के अवसर पर 99 की टिकट का लाभ उठाते हुए लगभग सवा करोड़ रूपए कमा लिए थे, पर दूसरे दिन से इसे दर्शक मिलने मुश्किल हो गए और पूरे सप्ताह भर में यह फिल्म महज ढाई करोड़ रूपए ही कमा सकी, जिस से निर्माता की जेब में एक करोड़़ रूपए भी नहीं आएंगे.

इस फिल्म के बौक्स औफिस पर बुरी तरह से असफल होने का निर्माता विनोद भानुशाली को दोहरा नुकसान हुआ है. एक तरफ तो फिल्म के निर्माण में खर्च की गई पूरी रकम डूब गई, तो दूसरी तरफ उन की बेटी व मशहूर गायिका ध्वनि भानुशाली का अभिनय कैरियर शुरू होते ही डूब गया. विनोद भानुशाली ने आीम गुलाटी के साथ अपनी बेटी ध्वनि भानुशाली को हीरोइन ले कर इस फिल्म का निर्माण किया था.

मजेदार बात यह है कि इस फिल्म की पीआर का दावा था कि यह फिल्म बौक्स औफिस पर सुपर डुपर होगी और इसी के चलते उन्होने ध्वनि भानुशाली का इंटरव्यू नहीं करवाया था. वैसे यह पीआर कंपनी कई फिल्मों व कलाकारों की नैय्या डुबा चुकी है. पर इस पर आरोप नहीं लगते, क्योंकि फिल्म निर्माता या कलाकार अपने पीआर की कोई जवाब देही ही तय नहीं कर रहे हैं.

उत्तर प्रदेश : गर्लफ्रैंड की वजह से करने लगा चोरियां, पहुंच गया जेल

अपनी गर्लफ्रैंड्स के शौक पूरे करना सब को काफी अच्छा लगता है क्योंकि जिस से हम प्यार करते हैं उस की छोटी से छोटी बात मानना, पसंदीदा जगह पर ले जाना, उस की पसंद के तोहफे दिलाना काफी सुकून देता है लेकिन जब इन शौक को पूरा करने की वजह से किसी को जेल जाना पड़े इंसान को कैसा लगेगा?

आप भी सोच रहे होंगी कि भला गर्लफ्रैंड्स के शौक पूरे करने में क्या बुराई है, मगर किसी को इस के चलते जेल की यात्रा करनी पङे, तो फिर क्या कर सकते हैं?

पढ़ाई छोङ कर बन गया चोर

तो चलिए, आप को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का एक ऐसा ही किस्सा बताते हैं जहां एक लौ स्टूडैंट सिर्फ इसलिए चोरी करने लगा ताकि वह अपनी गर्लफ्रैंड की शौक पूरी कर सके.

दरअसल, इस लौ स्टूडेंट का नाम अब्दुल हलीम है जोकि जौनपुर, उत्तर प्रदेश का रहने वाला है. लखनऊ में रह कर वह वकालत की पढ़ाई कर रहा था पर उसे क्या पता था कि वकालत की पढ़ाई करते और अपनी गर्लफ्रैंड की शौक पूरी करते उसे जेल की हवा खानी पड़ेगी.

अब्दुल हलीम गोमती नगर के एमआर गोमती ग्रीन्म में रह कर अपनी वकालत की पढ़ाई कर रहा था. ऐसे में पुलिस को गोमती ग्रीन्म में हो रही कई चोरियों के बारे में पता चला तो पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे की मदद ली और सीसीटीवी कैमरे में अब्दुल हलीम कैद हो गया.

चढ़ा पुलिस के हत्थे

पुलिस ने फौरन अब्दुल हलीम को गिरफ्तार किया और उस से जब चोरी करने का कारण पूछा तब उस ने बताया कि उस ने चोरी अपनी गर्लफ्रैंड के शौक पूरे करने के लिए की. उस ने बताया कि उस की गर्लफ्रैंड का शौक मूवी देखना, आएदिन मौल्स में घूमना, क्लब जाना, महंगे आईफोन लेना था, जिस के चलते उसे चोर बनना पड़ा.

अब्दुल हलीम के पास से कुछ गहने और कैश भी बरामद किया गया. पुलिस की तफ्तीश चल रही है. मगर फिलहाल वह जल में है.

5 टिप्स : बोरिंग मैरिड लाइफ को बनाएं रोमांटिक

हर इंसान चाहता है कि उस की मैरिड लाइफ काफी अच्छी हो और पतिपत्नी आपस में हमेशा हंसते मुस्मकराते रहें. पतिपत्नी में लड़ाईझगड़े होना आम बात है पर वहीं अगर वे लड़ाईझगड़े भूल कर फिर से नौर्मल हो जाते हैं तो उन की मैरिड लाइफ में कभी कोई परेशानी नहीं आएगी.

तो चलिए, आज हम आप को बताते हैं कुछ ऐसे टिप्स जिस से आप अपनी मैरिड लाइफ को और भी ज्यादा खुशहाल बना सकेंगे :

एकदूसरे की करें रिस्पैक्ट

आजकल हर इंसान को अपनी रिस्पैक्ट सब से प्यारी होती है। ऐसे में कई पुरुष चाहते हैं कि उन की पत्नी उन की हमेशा रिस्पैक्ट करे और जो वह कहे वह करे पर वहीं दूसरी तरफ वे भूल जाते हैं कि महिलाओं को भी अपनी इज्जत उतनी ही प्यारी होती है.

ऐसे में आप दोनों को एकदूसरे की हमेशा रिस्पैक्ट करनी चाहिए और पुरुषों को कभी भी किसी के सामने अपनी पत्नी का अपमान नहीं करना चाहिए. अगर आप दोनों एकदूसरे की हर बात की रिस्पैक्ट करेंगे तो आप की मैरिड लाइफ काफी अच्छी बन जाएगी.

सैक्स को न करें इग्नोर

हैप्पी मैरिड लाइफ के लिए अपनी सैक्स लाइफ को इंट्रस्टिंग बनाना बेहद जरूरी है. हैल्दी मैरिड लाइफ मतलब हैल्दी लैक्स लाइफ. ऐसा देखा गया है कि कई पार्टनर्स बाकी कामों के चलते सैक्स को इग्नोर कर देते हैं जो कि बिलकुल गलत है. मैरिड लाइफ में सैक्स एक बेहद अहम भूमिका निभाता है. आप जितना मरजी थके हुए हों या आप के पास जितना मरजी काम हो लेकिन अपने काम से वक्त निकाल कर आप को अपने पार्टनर के साथ हसीन पल जरूर बिताने चाहिए, जिस से आप अपने पार्टनर से और भी ज्यादा क्लोज आ सकें.

अपने पार्टनर को ले कर बाहर घूमने जाएं

आजकल हम सबकी लाइफ इतनी ज्यादा बिजी हो गई है कि हम अपने पार्टनर के साथ क्वालिटी टाइम स्पैंड करना भूल ही जाते हैं लेकिन एक अच्छी मैरिड लाइफ के लिए अपने पार्टनर के साथ क्वालिटी टाइम स्पैंड करना बेहद आवश्यक है. आप को अपने काम से कुछ दिनों की छुट्टी ले कर कभीकभी अपने पार्टनर को बाहर टूर पर ले कर जाना चाहिए जिस से कि आप दोनों एकदूसरे के साथ अच्छा समय बिता पाएं और एकदूसरे के और भी ज्यादा नजदीक आ पाएं.

अपने पार्टनर्स को दें सरप्राइज

सरप्राइज हर किसी को पसंद होते हैं खासतौर पर महिलाओं को। तो ऐसे में, पुरुषों को ध्यान रखना चाहिए कि वे समयसमय पर अपनी पत्नी को सरप्राइज देते रहें. कभी अपनी पत्नी को रोमांटिक डिनर डेट पर ले कर जाएं, कभी शौपिंग तो कभी औफिस या काम से आते हुए अपनी पत्नी के लिए फ्लौवर्स या कोई गिफ्ट ले कर आएं जिस से कि आप का पार्टनर खुश हो जाए और आप को और भी ज्यादा प्यार करने लगे. ऐसा करने से आप अपनी मैरिड लाइफ में चार चांद लगा सकते हैं.

छेड़छाड़ भी है जरूरी

हैप्पी मैरिड लाइफ का एक और फौर्मूला है जोकि काफी काम का साबित होता है. पतिपत्नी में अकसर छेड़छाड़ होनी चाहिए. दोनों को एकदूसरे के साथ हंसीमजाक करना चाहिए तो कभीकभी जब पत्नी किचन में काम कर रही हो तब पति को पीछे से जा कर पत्नी को गले लगा लेना चाहिए या बांहों में भर लेना चाहिए.

वहीं दूसरी तरफ पत्नी जब भी नहा कर निकले तो अपने गीले बालों से टपकती पानी की बूंदों को पति के चेहरे पर छिड़कना चाहिए. ऐसा करने के रिश्ते में ताजगी बनी रहती है और बोरिंग मैरिड लाइफ भी मजेदार और रोमांटिक बन जाती है.

अपनी धरती अपना देश : हमारे देश का जवाब नहीं

‘‘कसम ऊपर वाले की, जो दोबारा कभी यूरोप गया. न तो वहां किसी में सिविक सेंस है और न ही नागरिक अधिकारों के बारे में कोई जागरुकता,’’ वह आज ही यूरोप की यात्रा से लौटे थे और पानी पीपी कर यूरोप को कोसे जा रहे थे.

‘‘लेकिन इन मामलों में तो अंगरेज अग्रदूत माने जाते हैं,’’ मैं ने टोका.

‘‘क्या खाक माने जाते हैं,’’ वह गरम तवे पर पानी की बूंद की तरह छनछना उठे, ‘‘यह बताइए कि सांस लेना और खानापीना मनुष्य का मौलिक अधिकार है या नहीं?’’

‘‘है,’’ मैं ने सिर हिलाया.

‘‘तो फिर उगलना और विसर्जन करना भी मौलिक अधिकार हुआ,’’ उन्होंने विजयी मुद्रा में घोषणा की फिर बोले, ‘‘एक अपना देश है जहां चाहो विसर्जन कर लो. आबादी हो या निर्जन, कहीं कोई प्रतिबंध नहीं, लेकिन वहां पेट भले फट जाए पर मकान व दुकान के सामने तो छोड़ो सड़क किनारे भी विसर्जन नहीं कर सकते.’’

‘‘लेकिन वहां सरकार ने जगहजगह साफसुथरे टायलेट बनवा रखे हैं, उन में जाइए,’’ मैं ने समझाया.

‘‘बनवा तो रखे हैं लेकिन अगर हाजत आप को चांदनी चौक में लगी हो और फारिग होने कनाट प्लेस जाना पड़े तो क्या बीतेगी?’’ उन्होंने आंखें तरेरीं फिर तमकते हुए बोले, ‘‘आप को कुछ पता तो है नहीं. घर से बाहर निकलिए, दुनिया देखिए तब अच्छेबुरे में फर्क करने की तमीज पैदा हो पाएगी. तब तक के लिए फुजूल में टांग घुसेड़ने की आदत छोड़ दीजिए.’’

मुझे डपटने के बाद शायद उन्हें कुछ रहम आया. अत: थोड़ा मधुर कंठ से बोले, ‘‘यह बताइए कि आप को जुकाम हो और नाक गंदे नाले की तरह बह रही हो तो क्या करेंगे?’’

‘‘जुकाम की दवा खाएंगे,’’ मैं ने तड़ से बताया.

वह पल भर के लिए हड़बड़ाए. शायद मनमाफिक उत्तर नहीं मिला था. अत: अपने प्रश्न को थोड़ा और संशोधित करते हुए बोले, ‘‘डाक्टर की दुकान में घुसने से पहले क्या करेंगे आप?’’

‘‘जेब टटोल कर देखेंगे कि बटुआ है कि नहीं,’’ मैं ने फिर तड़ से उत्तर दिया.

इस बार उन के सब्र का पैमाना छलक गया. वह हत्थे से उखड़ते हुए बोले, ‘‘क्या बेहूदों की तरह नाक बहाते भीतर घुस जाएंगे और सुपड़सुपड़ कर सब के सामने नाक सुड़किएगा?’’

‘‘जी, नहीं, पहले नाक छिनक कर साफ करूंगा फिर भीतर जाऊंगा,’’ मैं ने कबूला. उन का प्रश्न वाजिब था. पर मेरी ही समझ में कुछ विलंब से आया.

‘‘तो गोया कि आप पहले घर जाएंगे और राजा बेटा की तरह नाक साफ करेंगे फिर वापस आ कर डाक्टर की दुकान में जाएंगे,’’ वह रहस्यमय ढंग से मुसकराए.

‘‘खामखां मैं घर क्यों जाऊंगा? वहीं नाक साफ करूंगा फिर डाक्टर से दवा ले कर घर लौटूंगा,’’ इस बार उखड़ने की बारी मेरी थी.

‘‘यही तो…यही तो…मैं सुनना चाहता था आप की जबान से,’’ वह यों उछले जैसे बहुत बड़ा मैदान मार लिया हो. फिर मेरे कंधों पर हाथ रख भावुक हो उठे, ‘‘वहां जुकाम हो तो सड़क पर नाक नहीं छिनक सकते. कहते हैं रूमाल में पोंछ कर जेब में रख लो. छि…छि…सोच कर भी घिन आती है. उसी रूमाल से मुंह पोंछो, उसी से नाक. दोनों हैं अगलबगल में पर कुदरत ने कुछ सोच कर ही दोनों के छेद अलगअलग बनाए हैं. वह फर्क तो बरकरार रखना चाहिए.’’

‘‘तो 2 रूमाल रख लीजिए,’’ मैं ने उन की भीषण समस्या का आसान सा हल सुझाया फिर समझाने लगा, ‘‘सड़क पर एक इनसान गंदगी करता है तो दूसरे को उस की गंदगी साफ करनी पड़ती है. कितनी गलत बात है यह.’’

‘‘बात गलत नहीं, बल्कि सोच गलत है तुम्हारी,’’ वह शोले से भड़के. फिर मेरी अज्ञानता पर तरस खा शांत स्वर में बोले, ‘‘वैसे देखा जाए तो गलती तुम्हारी नहीं है. गलती तुम्हारी उस शिक्षा की है जो अंगरेजों की देन है.’’

इतना कह कर वह पल भर के लिए ठहरे फिर सांस भरते हुए बोले, ‘‘हम भारतवासी सदा से दयालु रहे हैं. जितना खाते हैं उतना गिराते भी हैं ताकि कीड़ेमकोड़ों और पशुपक्षियों का भी पेट भर सके. लेकिन ये जालिम अंगरेज तो इनसानों का भी भला नहीं सोचते.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं.’’

उन्होंने मुझ पर तरस खाती दृष्टि डाली फिर समझाने की मुद्रा में बोले, ‘‘बरखुरदार, अपने देश में हम लोग परंपरापूर्वक मूंगफली और केला खा कर प्लेटफार्म पर फेंकते हैं, पूर्ण आस्था के साथ पान खा कर आफिस में थूकते हैं. श्रद्धापूर्वक बचाखुचा सामान पार्क में छोड़ देते हैं. इस से समाज का बहुत भला होता है.’’

‘‘समाज का भला?’’

‘‘हां, बहुत बड़ा भला,’’ वह अत्यंत शांत मुद्रा में मुसकराए फिर पूर्ण दार्शनिक भाव से बोले, ‘‘गंदगी मचाने से रोजगार का सृजन होता है क्योंकि अगर गंदगी न हो तो सफाई कर्मचारियों को काम नहीं मिलेगा. बेचारों के परिवार भूखे नहीं मर जाएंगे? लेकिन अंगरेजों को इस से क्या? वे तो हमेशा से मजदूरों के दुश्मन रहे हैं. इतिहास गवाह है कि जब भी किसी इनसान ने अधिकारों की मांग की है, अंगरेजों ने उसे बूटों तले कुचल डाला है. अब दूसरे मुल्कों में उन की हुकूमत तो रही नहीं, इसलिए अपने ही नागरिकों को गुलाम बना लिया. बेचारे अपने ही घर के सामने कूड़ा नहीं फेंक सकते, अपने ही महल्ले में सड़क घेर कर भजनकीर्तन नहीं कर सकते, सुविधानुसार गाड़ी पार्क नहीं कर सकते, अपने ही आफिस में पीक उगलने का आनंद नहीं ले सकते. जरूरत पड़ने पर इच्छानुसार विसर्जन नहीं कर सकते. काहे का लोकतंत्र जहां हर पसंदीदा चीज पर प्रतिबंध हो? सच्चा लोकतंत्र तो अपने यहां है. अपना देश, अपनी धरती. जहां चाहो थूको, जहां चाहो फेंको, जहां चाहो विसर्जन करो, कोई रोकटोक नहीं. इसीलिए तो कहते हैं, मेरा देश महान…’’

वह बोले जा रहे थे और मैं टकटकी बांधे देखे जा रहा था. लग रहा था कि शायद वह सही हैं.

नरबलि का यह कैसा अंधविश्वास

22 सितंबर को उत्तर प्रदेश के हाथरस से नरबलि की हैरान करने वाली घटना सामने आई, जहां सहपऊ क्षेत्र के गांव रसगवां के एक स्कूल में 8 साल के मासूम बच्चे कृतार्थ कुशवाह, जो उसी स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़ता था, की स्कूल प्रबंधकों ने बंधक बना कर हत्या कर दी.

पुलिस जांच में स्कूल के पीछे लगाए गए नलकूप से तंत्रमंत्र का सामान मिला, जिस से पुष्टि भी हुई कि स्कूल में काफी समय से तंत्रमंत्र की प्रैक्टिस की जाती थी. और इसी संबंध में कृतार्थ की बलि देने का प्लान भी बनाया गया था. स्कूल प्रबंधक का मानना था कि नरबलि देने से उन के स्कूल की तरक्की होगी. इस मामले में 5 लोगों को आरोपी बनाया गया, जिन में स्कूल संचालक शामिल है.

हम विश्वगुरु बनने का ढोल पीट रहे हैं जबकि देश की बड़ी आबादी अंधविश्वास, तंत्रमंत्र और टोनाटोटका से बाहर नहीं निकल पा‌ रही. समाज में यों तो तरहतरह के अंधविश्वास फैले हुए हैं मगर किसी अंधविश्वास के कारण यदि किसी की जान ले ली जाए तो इसे न्यायोचित कतई नहीं कहा जा सकता. अंधविश्वास के शिकार केवल पिछड़े और कम पढ़ेलिखे लोग ही नहीं, बल्कि पढ़ेलिखे लोग भी हो रहे हैं. तंत्र, मंत्र, साधना से रुपए बनाने का लालच दे कर एक नौजवान की नरबलि देने का एक ताजा मामला हाल ही में मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में देखने को मिला है.

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के सिमरिया गांव में रहने वाला 22 साल का नौजवान अंकित कौरव किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित था. डाक्टरी इलाज के साथ वह गांव में झाड़फूंक करने वाले एक तांत्रिक के झांसे में आ गया. नागपुर में इलाज कराने के साथ ही वह झाड़फूंक का सहारा ले रहा था. जब वह बीमारी से ठीक हो गया तो उसे लगा कि तांत्रिक की झाड़फूंक ने उसे ठीक कर दिया है. इसी बीच, अंकित के बहनोई भी बीमारी से पीड़ित हो कर महीनों अस्पताल में भरती रहे जिस से काफी रुपए इलाज में खर्च हो गए. पैसों की तंगी से जूझ रहे इस नौजवान के पिता एक किसान हैं.

अंकित कौरव ने जब इस बात का जिक्र गांव में रहने वाले तांत्रिक सुरेंद्र कुशवाहा से किया तो तांत्रिक ने भरोसा दिलाया कि वह तंत्र साधना से रुपए बना सकता है. इस के लिए तांत्रिक अनुष्ठान में उसे हाथ की उंगली काट कर बलि चढ़ाना पड़ेगी. रुपयों की जरूरत के चलते अंकित कौरव उस पूजापाठ के लिए राजी हो गया. सुरेंद्र कुशवाहा ने अपने चचेरे भाई रम्मू कुशवाहा के साथ मिल कर तंत्रमंत्र के जरिए पैसा बनाने के लिए परिवार के इकलौते लड़के अंकित कौरव की नरबलि देने का षड्यंत्र रचा.

3 नवंबर, 2023 की शाम 7:30 बजे सुरेंद्र कुशवाहा और रम्मू कुशवाहा अंकित कौरव को ले कर गांव से बाहर आए. सीहोरा पुलिस चौकी क्षेत्र के टेकापार तिराहा पर गन्ना के एक खेत में आए. मौका पा कर सुरेंद्र कुशवाहा ने प्रसाद में नींद की गोलियां मिलाईं और पूजापाठ के दौरान अंकित कौरव को प्रसाद खाने को दिया. इस से अंकित कौरव बेहोश हो गया. मौका पा कर सुरेंद्र कुशवाहा और रम्मू कुशवाहा ने अपने साथ लाए बका से बेहोश पड़े अंकित कौरव की गरदन काट दी. इस के बाद दाहिने हाथ की उंगली भी काट कर अंकित कौरव के सिर के पास रख दी. इस से अंकित कौरव की मौके पर ही मृत्यु हो गई.

ऐसी अंधविश्वासी प्रथाएं हमारे धर्मग्रंथों में लिखी गईं कपोलकल्पित कथाओं के कारण भी जन्म लेती हैं. एक ऐसी ही श्रीकृष्ण से जुड़ी कहानी महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद की है, जिस में अर्जुन के अहंकार को तोड़ने व राजा मोरध्वज की परीक्षा लेने श्रीकृष्ण और अर्जुन साधु का चोला पहन कर जंगल से एक शेर को पकड़ कर ले गए. कहा जाता है कि राजा मोरध्वज विष्णु के परमभक्त और दानदक्षिणा देने वाले राजा थे.

वे अपने घर पर आए किसी को भी खाली हाथ और बिना भोजन के जाने नहीं देते थे. जब श्रीकृष्ण और अर्जुन को साधुओं की वेशभूषा में एक सिंह के साथ अपने घर पर देखा तो राजा नंगेपांव दौड़ कर द्वार पर गए और मेहमानों को उन का आतिथ्य स्वीकार करने के लिए कहा.

दोनों साधुओं ने मोरध्वज के सामने एक अजीब सी शर्त रखी कि हम तो ब्राह्मण हैं, कुछ भी खिला देना पर यह सिंह नरभक्षी है, तुम अगर अपने इकलौते बेटे को अपने हाथों से मार कर इसे खिला सको तो ही हम तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार करेंगे. भला हो ऐसे भगवान का, जिस में भक्त को लेने के देने पड़ जाएं. साधुओं की शर्त सुन मोरध्वज स्तब्ध हो गए. फिर भी राजा अपना आतिथ्य धर्म नहीं छोड़ना चाहता था, इसलिए साधुओं को प्रसन्न करने और अपनी दानदक्षिणा वाली छवि को चमकाने के लिए राजा ने यह शर्त स्वीकार कर ली.

राजा ने जब सारा हाल पत्नी को बताया तो रानी की आंखों से अश्रु बह निकले. मगर पति को परमेश्वर मानने वाली रानी भी इस के लिए राजी हो ग‌ई. राजा और रानी ने खुद ही अपने 3 साल के पुत्र रतन कंवर को हाथों में आरी ले कर उस के 2 टुकड़े कर दिए और सिंह को परोस दिया. साधुओं ने छप्पन भोग का स्वाद चखा.

पर जब रानी ने पुत्र का आधा शरीर देखा तो वह अपने आंसू रोक न पाई. साधु इस बात पर गुस्सा हो गए कि लड़के का एक फाड़ कैसे बच गया. वे नाराज हो कर जाने लगे तो राजा और रानी उन से रुकने की मिन्नतें करने लगे. इतना सब देख कर अर्जुन का घमंड चूरचूर हो गया. अर्जुन के कहने पर श्रीकृष्ण ने राजारानी को क्षमा कर दिया. साधुओं की आज्ञा मान कर रानी ने पुत्र रतन कंवर को आवाज लगाई. कुछ ही क्षणों में उन का पुत्र जीवित हो गया.

इस तरह की कहानियां लोगों को धार्मिक भावनाओं में डुबो कर उन्हें अंधविश्वासी बनाती हैं. लोगों को लगता है कि किसी इंसान की बलि देने से देवीदेवता प्रसन्न हो जाएंगे और उन के मन की मुराद पूरी हो जाएगी.

दिसंबर 2021 की एक घटना मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले की है, जब एक पिता पर अंधविश्वास इस कदर हावी हो गया कि उस ने अपने 5 साल के मासूम बेटे की कुल्हाड़ी से काट कर निर्मम हत्या कर दी. पिता दिनेश दावर के अनुसार उसे गुरुमाता ने कहा था कि बेटा उस के घर के लिए अपशकुन है. इस अंधविश्वास पर भरोसा कर पिता ने ऐसा क्रूर कदम उठाया. हत्या करने के बाद बाप ने बच्चे को कई टुकड़ों में काटा और खेत में दफना दिया.

पिता को इस बात का शक था उस के बेटे पर भूतप्रेत का साया है. उस को लगता था कि उस के बेटे में कोई बुरी आत्मा का वास है जिस के चलते उस के घर में परेशानियां और अशांति रहती है. परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए उस ने अपने ही जिगर के टुकड़े को मार डाला.

अपने जिगर के टुकड़े को मारने की यह घटना ऋषि जमदग्नि के पुत्र परशुराम से प्रेरित लगती है, जिन्होंने अपने पिता की आज्ञा मान कर अपनी माता का सिर फरसे से काट दिया था. उन की माता रेणुका की ग़लती इतनी भर थी कि उन के पति ऋषि जमदग्नि ने उन्हें सरोवर से हवन के लिए जल लाने को भेजा था. रेणुका हवन के लिए जल लेने नदी तट पर गईं, तो वहां राजा गंधर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ जलविहार करते देख वे इतनी मग्न हो गईं कि उन्हें याद ही नहीं रहा कि अपने पति की हवनपूजा के लिए जल ले कर जाना है. जब वे देरी से पहुंचीं तो उन के पति क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने पुत्रों को अपनी मां को मारने का आदेश दिया.

परशुराम के 3 बड़े भाइयों ने पिता के बेहूदा आदेश को मानने से इनकार कर दिया. परशुराम सब से छोटे थे, उन्होंने आव‌ देखा न ताव और पिता की आज्ञा मान कर अपनी जन्म देने वाली मां का सिर काट दिया. पिता ने प्रसन्न हो कर परशुराम से 3 वरदान मांगने को कहा तो परशुराम ने अपनी मां को जीवित करने के अलावा 2 वरदान और मांग लिए. परशुराम की यह कहानी भी यही सीख देती है कि सहीग़लत का भेद किए बिना किसी की बलि चढ़ा देने से बिगड़े काम भी बन‌ जाते हैं.

नरबलि की ये घटनाएं बताती हैं कि आज भी हम किसी रोग के इलाज के लिए डाक्टर के बजाय तांत्रिकों पर भरोसा कर रहे हैं. इस तरह की मानसिकता के लिए काफी हद तक सरकार भी जिम्मेदार है. सब से ज्यादा पाखंड तो नेताओं ने ही समाज में फैला रखा है, उन्हीं का अनुकरण जनता करती रहती है.

तरहतरह के अंधविश्वास

हमारे देश ने आज वैज्ञानिक तरक्की के जरिए चंद्रयान भेज कर भले ही दुनियाभर में अपनी मजबूत पहचान बना ली है लेकिन 21वीं सदी में भारत में अंधविश्वास का बोलबाला है. मध्य प्रदेश के उज्जैन में आस्था के नाम पर अंधविश्वास का खेल चल रहा है. यहां लोग खुद को गायों के पैर तले रौंदवाते हैं वह भी खुशीखुशी. उज्जैन के बड़नगर में वर्षों पुरानी यह खतरनाक परंपरा निभाई जा रही है. दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा के दिन मौत का यह खेल होता है.

इसी तरह मध्य प्रदेश के बैतूल में अंधविश्वास के चलते अपने बच्चों को गोबर में फेंकने की खतरनाक परंपरा है. हर साल गोवर्धन पूजा के दिन बैतूल के कृष्णपुरा वार्ड में गोवर्धन पूजा के बाद बच्चों को गोबर में इस विश्वास के साथ डाला जाता है कि वे सालभर तंदुरुस्त रहेंगे. पौराणिक कहानियों के मुताबिक, कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठा कर ग्वालों की रक्षा की थी, तभी से इस समाज में मान्यता हो गई कि गोवर्धन उन की रक्षा करते हैं और इसीलिए बच्चों को गोबर में डाला जाता है.

दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा होती है और इस के लिए काफी पहले से तैयारी की जाती है. ग्वाला समाज के लोग गोबर एकत्रित करते हैं और उस से बड़े आकार में गोवर्धन बनाए जाते हैं, फिर उस की सामूहिक पूजा की जाती है. पुरुष और महिलाएं नाचतेगाते हुए विधिविधान से पूजा करते हैं, उस के बाद बच्चों को गोबर से बने गोवर्धन में डाला जाता है. गोबर के बीच रोतेबिलखते मासूम बच्चों को देख कर किसी का भी दिल भर आए, पर उन के मांबाप को ही उन पर दया नहीं आती.

जब से देश में संचार के अत्याधुनिक साधनों का इस्तेमाल बढ़ा है, तो अंधविश्वास के नएनए तरीके भी ईजाद हो गए हैं. पीलिया रोग होने पर हम डाक्टर को दिखाने के बजाय तांत्रिकों की झाड़फूंक में जान गंवा देते हैं. आंख आने (कंजंक्टिवाइटिस रोग होने) पर अब मोबाइल फोन पर झाड़फूंक होने लगी है, तो सांपबिच्छू के काटने पर अस्पताल जाने के बजाय गुनियाओझा के पास पहुंच कर उपचार तलाशते हैं. टैलीविजन चैनलों के माध्यम से मनोकामना पूर्ण करने वाले महंगे यंत्रतंत्र और रत्नजड़ित अंगूठी के विज्ञापन और ज्योतिष बताने वाले कार्यक्रम भी यही सिद्ध करते हैं कि अंधविश्वास और चमत्कारों के पीछे भागने वाले पागल लोगों की भीड़ में मध्यवर्गीय शिक्षित और सम्मानजनक पेशे से जुड़े उच्च अधिकारी, नेताओं, मंत्रियों की तादाद अधिक है.

टोनाटोटका भी जोरों पर

देश ने चाहे कितनी प्रगति कर ली हो और शिक्षितों की आबादी भले ही तेजी से बढ़ रही हो पर अंधविश्वास की काली साया से वह अब तक मुक्त नहीं हो पाया है. लोगों को अंधविश्वास की काली कोठरी से निकालने के लिए की गईं सारी कवायदें बेअसर साबित हुई हैं. जनवरी 2023 में बलरामपुर जिले में आधा दर्जन लोगों ने मिल कर 54 वर्षीय लाली कोरवा को पीटपीट कर मार डाला. आरोपी मंगलसाय, बंधन, भगतू, बलसा, सकेंद्रा को शक था कि लाली जादूटोना करती है. फरवरी 2023 में धमतरी में एक युवक ने अपने ही तांत्रिक गुरु की हत्या कर उन का खून पिया और फिर लाश को जलाने की नाकाम कोशिश की. उसे बताया गया था कि गुरु को मार कर उस का खून पी लेने से उस की सभी शक्तियां उसे मिल जाएंगी.

मार्च 2023 में छत्तीसगढ़ में एक मां द्वारा अपने दुधमुंहे शिशु की बलि दी गई थी. महिला का पति शराब पी कर उसे परेशान करता था. इस वजह से उस का दिमागी संतुलन बिगड़ गया. इलाज के लिए उसे तांत्रिक के पास ले जाया गया तो तांत्रिक ने कहा कि किसी छोटे बच्चे की बलि देने से उस की समस्या हल हो सकती है. तांत्रिक के कहने पर उस ने अपने 6 माह के बच्चे को गांव के तालाब में आधी रात में फेंक दिया था और पुलिस को गुमराह करने के लिए बच्चे के लापता होने की झूठी रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी.

अंधविश्वास, टोनाटोटका और तंत्रमंत्र के नाम पर हत्या की यह कोई पहली घटना नहीं है. इस से कुछ ही दिनों पहले दुर्ग जिले के करहीडीह गांव में पतिपत्नी ने मिल कर अपनी भाभी पर टोनही होने का आरोप लगाया. इस के बाद उसे एक तांत्रिक के पास ले जाया गया जिस ने उसे बुरी तरह पीटा, उसे कीलों और अंगारों पर चलाया. वह इतना जख्मी हो गई कि उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा. 24 मार्च, 2023 को कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा की वनोपज सहकारी समिति के अध्यक्ष सोनसाय दुग्गा की हत्या पीटपीट कर कर दी गई. आरोपियों का कहना था कि सोनसाय उन की पत्नियों पर जादूटोना करता है जिस के कारण वे बीमार रहती हैं.

पाखंड की जड़ है धर्म

देशभर में होने वाली इन पाखंडी घटनाओं की जड़ हमारे धर्म में है. हमारे धर्मग्रंथ हमें तार्किक बनाने के बजाय अंधविश्वास सिखाते हैं.

अंधविश्वास की जड़ों में मठा डालने का काम धर्म के ठेकेदार कथावाचक, पंडापुजारियों, मौलवियों द्वारा बखूबी किया जा रहा है.

पद्मपुराण, अग्निपुराण में भी नरबलि का उल्लेख मिलता है. अग्निपुराण में कहा गया है कि युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए नग्न हो कर, शिखा खोल कर दक्षिण की ओर मुख कर के रात में श्मशान में लकड़ी के लट्ठों से प्रज्वलित अग्नि में मानव मांस, रक्त और विष, अनाज के भूसे, हड्डी के टुकड़े मिला कर शत्रु का नाम 108 बार बोल कर आहुति देना चाहिए.

अग्निपुराण में कहा गया है कि ‘देवी सिगरा (त्वरिता) की पूजा कपड़े पर या छवि में या वेदी पर की जानी चाहिए. मंत्र के जाप के साथ आहुति के लिए सौ, हजार या दस हजार की गिनती होती है. इस प्रकार दोहराने के बाद भैंस, बकरी या मनुष्य के शरीर की चरबी और मांस से एक लाख बार आहुति देनी चाहिए.” वामन पुराण में उल्लेख है कि एक धर्मात्मा राजा गय ने सैकड़ोंहजारों बार नरबलि दी.

हमारे धर्मग्रंथों और तथाकथित धर्मगुरुओं ने लोगों के मन में पापपुण्य को ले कर ऐसी बातें भर दी हैं कि चाहे जितने भी पाप करो, मगर नदियों में डुबकी लगा कर देवीदेवताओं की पूजा और पंडितों को दानदक्षिणा दोगे तो सीधे स्वर्ग (यदि कहीं है तो) का टिकट हासिल हो जाएगा. स्वर्गलोक या कहें कल्पनालोक जाने की इसी कामना में अंधभक्त कथापुराण का आयोजन कराते हैं, पंडितों को दानदक्षिणा दे कर बड़ेबड़े भंडारा कराते हैं.

धार्मिक कथाकहानियों को सुन कर जयपुर में आमेर किले के भव्य मंदिर में विराजमान महिषासुरमर्दिनी अष्ठभुजी माता शिला देवी बरसों पहले नवरात्रों की सप्तमी और अष्ठमी की मध्य रात्रि में निशा पूजन के बाद बकरों और भैंसों की बलि दी जाती थी. आमेर नरेश मानसिंह के बारे में किंवदंती है कि उन्होंने देवी को नरबलि भी दी थी. असम के कामाख्या देवी मंदिर और छत्तीसगढ़ के दंतेश्वरी देवी के मंदिरों में नरबलि देने की घटनाएं समाचारों की सुर्खियां बनती रहती हैं.

शासनप्रशासन की मदद से फलफूल रहा अंधविश्वास

देश में सरकारी तंत्र अंधविश्वास रोकने के बजाय फैलाने में अहम भूमिका निभा रहा है. पांढुरना का गोटमार मेला हो या हिंगोट युद्ध, सभी में पुलिस प्रशासन मूकदर्शक बन कर इन‌ दकियानूसी परंपराओं को खादपानी देने का काम कर रहा है. कोविड 19 वायरस को भगाने के लिए जब दीपक जला कर ताली और घंटेघड़ियाल बजाने का टोटका देश के प्रधानमंत्री खुद ही जनता को बताते हों, उस देश में वैज्ञानिक सोच भला कैसे विकसित होगी.

देश के नागरिकों की बुनियादी आवश्यकता शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और सड़क की है. इस के लिए सरकार को इंजीनियरिंग और मैडिकल कालेज खोलने के साथ साफ पानी और भरपूर बिजली के साथ कहीं भी आनेजाने के लिए अच्छी सड़कें मुहैया कराने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, मगर विडंबना यह है कि सरकार इन सब को छोड़ कर बड़ीबड़ी मूर्तियां और मंदिर बनाने पर तुली हुई है.

धार्मिक रंग में पूरी तरह रंगी सरकार की सोच यह है कि देश के पढ़ेलिखे नौजवानों को नौकरी के बजाय धार्मिक रैली, जुलूस, कांवड़यात्रा, भंडारे और आरती में उलझा कर उन्हें तार्किक न बनने दिया जाए. यही वजह है कि आज भी देश में अंधविश्वास और दकियानूसी परंपराओं का बोलबाला है.

उज्जैन में अघौरी बाबाओं द्वारा की जाने वाली तंत्र साधना और टीवी चैनलों द्वारा किया जाने वाला सीधा प्रसारण समाज में अंधविश्वास और पाखंड को फलनेफूलने में खादबीज का काम कर रहा है. चंद्रगृहण और सूर्यगृहण को आज भी लोग खगोलीय घटना न मान कर धर्म और आस्था से जोड़ कर अपनी अंधभक्ति का प्रमाण दे रहे हैं. अखबारों में रोज राशिफल देखने वाले और जन्मकुंडली में गृहदशा सुधारने के लिए ज्योतिषियों के चक्कर लगाने वाले लोग विज्ञान और आधुनिक टैक्नोलौजी पर बड़ीबड़ी तार्किक बातें तो करते हैं लेकिन अंधविश्वास और पाखंड के चक्रव्यूह गहरे फंसे हुए हैं.

समाचारपत्रों में तांत्रिकों द्वारा बच्चों की बलि देने या महिलाओं का यौनशोषण करने, डायन होने का आरोप लगा कर महिलाओं की हत्या करने तथा झाड़फूंक, जादूटोना और गंडा-ताबीज द्वारा लोगों को ठगने की खबरें अकसर आती रहती हैं. अखबारों में बंगाली बाबा, तांत्रिक, चमत्कारी पुरुष, ज्योतिषाचार्य के विज्ञापन तो छपते ही हैं.

अंधविश्वास को बढ़ावा देने में कट्टरपंथी हिंदुत्ववादियों का रोल काफी अहम है. अंधविश्वास और धार्मिक पाखंडों का यदि कोई विरोध करने का प्रयास करता है, तो ये कट्टरपंथी उन पर हमला कर उन की जान लेने पर आमादा हो जाते हैं. पिछले कुछ सालों में अंधविश्वासों के विरुद्ध अभियान चलाने वाली गौरी लंकेश की कर्नाटक में तथा गोविंद पंसारे व नरेंद्र दाभोलकर की महाराष्ट्र में हत्या कर दी गई. जांच करने पर यह पाया गया कि इन के हत्यारे दक्षिणपंथी तथाकथित हिंदुत्ववादियों के समर्थक थे. कई स्थानों पर कट्टर इसलाम के प्रचारकों ने भी अंधविश्वासों के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने वालों पर हमले किए. जैसे, अफगानिस्तान में तालिबानियों ने पोलियो के विरुद्ध चलाए गए अभियान के विरुद्ध दुष्प्रचार किया व दवा पिलाने वालों की हत्या तक कर दी थी.

महाराष्ट्र में बना है अंधविश्वास रोकने का कानून

आज भी समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो झूठे चमत्कार दिखा कर लोगों को ठगते हैं. अधिकांश लोगों ने अपने जीवन में कभी न कभी इस तरह के चमत्कारों के फेर में पड़ कर धोखा खाया है. अंधविश्वास रोकने के लिए कानून पूरे भारत में केवल महाराष्ट्र में लागू किया गया है. इस कानून को लागू करवाने में अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष श्याम मानव ने बड़ी मेहनत से काम किया है और इस के लिए उन्हें पूर्व न्यायाधीश बी जी कोलसे पाटिल और पी बी सावंत का समर्थन भी मिला है.

यह कानून कई वर्षों के कठिन संघर्ष के बाद बनाया गया है. महाराष्ट्र की तरह यह कानून देश के बाकी राज्यों में लागू होना चाहिए, ताकि लोगों को धोखा देने वाले पाखंडी बाबा और तांत्रिकों को सबक सिखाया जा सके.

महाराष्ट्र में 2013 से जादूटोना विरोधी कानून बना हुआ है. इस जादूटोना विरोधी कानून में कुल 12 धाराएं हैं. ये 12 धाराएं इस पूरे कानून की प्रकृति बताती हैं कि कानून तोड़ने के लिए क्या किया जाता है और कानून तोड़ने की सजा क्या है. इस अधिनियम के साथ एक अनुसूची दी गई है. अनुसूची में उल्लिखित 12 विषयों में से 12 का उल्लंघन करने पर कम से कम 6 महीने की सजा और 5,000 रुपए का जुर्माना व अधिकतम 7 साल और 50,000 रुपए का जुर्माना हो सकता है. साथ ही, यह अपराध संज्ञेय और गैरजमानती है. इसलिए आरोपी को थाने से जमानत नहीं मिल सकती. उसे अदालत से जमानत लेनी होगी और दोषी पाए जाने पर आरोपी को कारावास और आर्थिक दंड दोनों का सामना करना पड़ेगा. मानव बलि और अन्य अमानवीय, घृणित और अवांछनीय प्रथाओं व जादूटोना पर वितरण, प्रकाशन, प्रेरणा और सहयोग करना कानून के तहत एक अपराध है. यह अफवाह फैलाना भी अपराध है कि कुछ जगहों पर चमत्कार हो रहे हैं.

अंधविश्वास के चलते हुई ये घटनाएं यह साबित करती हैं कि अंधविश्वास हमारे आसपास चारों ओर बिखरा पड़ा है. इन में बिल्ली का रास्ता काटना, रास्ते में खाली घड़ा दिखाई देना, शुभकार्य के दौरान विधवा या बांझ के दर्शन होना, पूजापाठ के दौरान दीपक का बुझ जाना, घाव में कीड़े पड़ना, कुत्ते का रोना, दरवाजे पर नीबूमिर्च, काला कंगन, लाल रिबन या काला पुतला टांगना, दूल्हे को लोहा पकड़ाना, खाट या चप्पलों का उलटा पड़ा होना, बरतनों का टकराना, दूध का फटना, टूटे हुए आईने में शक्ल देखना, कछुआ या कछुए की मूर्ति घर में रखना आदि भी अंधविश्वास की श्रेणी में आते हैं. इन का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. विज्ञान पढ़नेपढ़ाने मात्र से कुछ नहीं होता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करना जरूरी है.

एक तीर दो शिकार : आरती ने किस की अक्ल ठिकाने लगाई

अटैची हाथ में पकड़े आरती ड्राइंगरूम में आईं तो राकेश और सारिका चौंक कर खडे़ हो गए.

‘‘मां, अटैची में क्या है?’’ राकेश ने माथे पर बल डाल कर पूछा.

‘‘फ्रिक मत कर. इस में तेरी बहू के जेवर नहीं. बस, मेरा कुछ जरूरी सामान है,’’ आरती ने उखड़े लहजे में जवाब दिया.

‘‘किस बात पर गुस्सा हो?’’

अपने बेटे के इस प्रश्न का आरती ने कोई जवाब नहीं दिया तो राकेश ने अपनी पत्नी की तरफ प्रश्नसूचक निगाहों से देखा.

‘‘नहीं, मैं ने मम्मी से कोई झगड़ा नहीं किया है,’’ सारिका ने फौरन सफाई दी, लेकिन तभी कुछ याद कर के वह बेचैन नजर आने लगी.

राकेश खामोश रह कर सारिका के आगे बोलने का इंतजार करने लगा.

‘‘बात कुछ खास नहीं थी…मम्मी फ्रिज से कल रात दूध निकाल रही थीं…मैं ने बस, यह कहा था कि सुबह कहीं मोहित के लिए दूध कम न पड़ जाए…कल चाय कई बार बनी…मुझे कतई एहसास नहीं हुआ कि उस छोटी सी बात का मम्मी इतना बुरा मान जाएंगी,’’ अपनी बात खत्म करने तक सारिका चिढ़ का शिकार बन गई.

‘‘मां, क्या सारिका से नाराज हो?’’ राकेश ने आरती को मनाने के लिए अपना लहजा कोमल कर लिया.

‘‘मैं इस वक्त कुछ भी कहनेसुनने के मूड में नहीं हूं. तू मुझे राजनगर तक का रिकशा ला दे, बस,’’ आरती की नाराजगी उन की आवाज में अब साफ झलक उठी.

‘‘क्या आप अंजलि दीदी के घर जा रही हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘बेटी के घर अटैची ले कर रहने जा रही होे?’’ राकेश ने बड़ी हैरानी जाहिर की.

‘‘जब इकलौते बेटे के घर में विधवा मां को मानसम्मान से जीना नसीब न हो तो वह बेटी के घर रह सकती है,’’ आरती ने जिद्दी लहजे में दलील दी.

‘‘तुम गुस्सा थूक दो, मां. मैं सारिका को डांटूंगा.’’

‘‘नहीं, मेरे सब्र का घड़ा अब भर चुका है. मैं किसी हाल में नहीं रुकूंगी.’’

‘‘कुछ और बातें भी क्या तुम्हें परेशान और दुखी कर रही हैं?’’

‘‘अरे, 1-2 नहीं बल्कि दसियों बातें हैं,’’ आरती अचानक फट पड़ीं, ‘‘मैं तेरे घर की इज्जतदार बुजुर्ग सदस्य नहीं बल्कि आया और महरी बन कर रह गई हूं…मेरा स्वास्थ्य अच्छा है, तो इस का मतलब यह नहीं कि तुम महरी भी हटा दो…मुझे मोहित की आया बना कर आएदिन पार्टियों में चले जाओ…तुम दोनों के पास ढंग से दो बातें मुझ से करने का वक्त नहीं है…उस शाम मेरी छाती में दर्द था तो तू डाक्टर के पास भी मुझे नहीं ले गया…’’

‘‘मां, तुम्हें बस, एसिडिटी थी जो डाइजीन खा कर ठीक भी हो गई थी.’’

‘‘अरे, अगर दिल का दौरा पड़ने का दर्द होता तो तेरी डाइजीन क्या करती? तुम दोनों के लिए अपना आराम, अपनी मौजमस्ती मेरे सुखदुख का ध्यान रखने से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. मेरी तो मेरी तुम दोनों को बेचारे मोहित की फिक्र भी नहीं. अरे, बच्चे की सारी जिम्मेदारियां दादी पर डालने वाले तुम जैसे लापरवाह मातापिता शायद ही दूसरे होंगे,’’ आरती ने बेझिझक उन्हें खरीखरी सुना दीं.

‘‘मम्मी, हम इतने बुरे नहीं हैं जितने आप बता रही हो. मुझे लगता है कि आज आप तिल का ताड़ बनाने पर आमादा हो,’’ सारिका ने बुरा सा मुंह बना कर कहा.

‘‘अच्छे हो या बुरे, अब अपनी घरगृहस्थी तुम दोनों ही संभालो.’’

‘‘मैं आया का इंतजाम कर लूं, फिर आप चली जाना.’’

‘‘जब तक आया न मिले तुम आफिस से छुट्टी ले लेना. मोहित खेल कर लौट आया तो मुझे जाते देख कर रोएगा. चल, रिकशा करा दे मुझे,’’ आरती ने सूटकेस राकेश को पकड़ाया और अजीब सी अकड़ के साथ बाहर की तरफ चल पड़ीं.

‘पता नहीं मां को अचानक क्या हो गया? यह जिद्दी इतनी हैं कि अब किसी की कोई बात नहीं सुनेंगी,’ बड़बड़ाता हुआ राकेश अटैची उठा कर अपनी मां के पीछे चल पड़ा.

परेशान सारिका को नई आया का इंतजाम करने के लिए अपनी पड़ोसिनों की मदद चाहिए थी. वह उन के घरों के फोन नंबर याद करते हुए फोन की तरफ बढ़ चली.

करीब आधे घंटे के बाद आरती अपने दामाद संजीव के घर में बैठी हुई थीं. अपनी बेटी अंजलि और संजीव के पूछने पर उन्होंने वही सब दुखड़े उन को सुना दिए जो कुछ देर पहले अपने बेटेबहू को सुनाए थे.

‘‘आप वहां खुश नहीं हैं, इस का कभी एहसास नहीं हुआ मुझे,’’ सारी बातें सुन कर संजीव ने आश्चर्य व्यक्त किया.

‘‘अपने दिल के जख्म जल्दी से किसी को दिखाना मेरी आदत नहीं है, संजीव. जब पानी सिर के ऊपर हो गया, तभी अटैची ले कर निकली हूं,’’ आरती का गला रुंध गया.

‘‘मम्मी, यह भी आप का ही घर है. आप जब तक दिल करे, यहां रहें. सोनू और प्रिया नानी का साथ पा कर बहुत खुश होंगे,’’ संजीव ने मुसकराते हुए उन्हें अपने घर में रुकने का निमंत्रण दे दिया.

‘‘यहां बेटी के घर में रुकना मुझे अच्छा…’’

‘‘मां, बेकार की बातें मत करो,’’ अंजलि ने प्यार से आरती को डपट दिया, ‘‘बेटाबेटी में यों अंतर करने का समय अब नहीं रहा है. जब तक मैं उस नालायक राकेश की अक्ल ठिकाने न लगा दूं, तब तक तुम आराम से यहां रहो.’’

‘‘बेटी, आराम करने के चक्कर में फंस कर ही तो मैं ने अपनी यह दुर्गति कराई है. अब आराम नहीं, मैं काम करूंगी,’’ आरती ने दृढ़ स्वर में मन की इच्छा जाहिर की.

‘‘मम्मी, इस उम्र में क्या काम करोगी आप? और काम करने के झंझट में क्यों फंसना चाहती हो?’’ संजीव परेशान नजर आने लगा.

‘‘काम मैं वही करूंगी जो मुझे आता है,’’ आरती बेहद गंभीर हो उठीं, ‘‘जब अंजलि के पापा इस दुनिया से अकस्मात चले गए तब यह 8 और राकेश 6 साल के थे. मैं ससुराल में नहीं रही क्योेंकि मुझ विधवा की उस संयुक्त परिवार में नौकरानी की सी हैसियत थी.

‘‘अपने आत्मसम्मान को बचाए रखने के लिए मैं ने ससुराल को छोड़ा. दिन में बडि़यांपापड़ बनाती और रात को कपड़े सिलती. आज फिर मैं सम्मान से जीना चाहती हूं. अपने बेटेबहू के सामने हाथ नहीं फैलाऊंगी. कल सुबह अंजलि मुझे ले कर शीला के पास चलेगी.’’

‘‘यह शीला कौन है?’’ संजीव ने उत्सुकता दर्शाई.

‘‘मेरी बहुत पुरानी सहेली है. उस नेबडि़यांपापड़ बनाने का लघुउद्योग कायम कर रखा है. वह मुझे भी काम देगी. अगर रहने का इंतजाम भी उस ने कर दिया तो मैं यहां नहीं…’’

‘‘नहीं, मां, तुम यहीं रहोगी,’’ अंजलि ने उन्हें अपनी बात पूरी नहीं करने दी और आवेश भरे लहजे में बोली,  ‘‘जिस घर में तुम्हारे बेटाबहू ठाट से रह रहे हैं, वह घर आज भी तुम्हारे नाम है. अगर बेघर हो कर किसी को धक्के खाने ही हैं तो वह तुम नहीं वे होंगे.’’

‘‘तू इतना गुस्सा मत कर, बेटी.’’

‘‘मां, तुम ने कभी अपने दुखदर्द की तरफ पहले जरा सा इशारा किया होता तो अब तक मैं ने राकेश और सारिका के होश ठिकाने लगा दिए होते.’’

‘‘अब मैं काम करना शुरू कर के आत्मनिर्भर हो जाऊंगी तो सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘मुझे तुम पर गर्व है, मां,’’ आरती के गले लग कर अंजलि ने अपने पति को बताया, ‘‘मुझे वह समय याद है जब मां अपना सुखचैन भुला कर दिनरात मेहनत करती थीं. हमें ढंग से पालपोस कर काबिल बनाने की धुन हमेशा इन के सिर पर सवार रहती थी.

‘‘आज राकेश बैंक आफिसर और मैं पोस्टग्रेजुएट हूं तो यह मां की मेहनत का ही फल है. लानत है राकेश पर जो आज वह मां की उचित देखभाल नहीं कर रहा है.’’

‘‘मेरी यह बेटी भी कम हिम्मती नहीं है, संजीव,’’ आरती ने स्नेह से अंजलि का सिर सहलाया, ‘‘पापड़बडि़यां बनाने में यह मेरा पूरा हाथ बटाती थी. पढ़ने में हमेशा अच्छी रही. मेरा बुरा वक्त न होता तो जरूर डाक्टर बनती मेरी गुडि़या.’’

‘‘आप दोनों बैठ कर बातें करो. मैं जरा एक बीमार दोस्त का हालचाल पूछने जा रहा हूं. मम्मी, आप यहां रुकने में जरा सी भी हिचक महसूस न करें. राकेश और सारिका को मैं समझाऊंगा तो सब ठीक हो जाएगा,’’ संजीव उन के बीच से उठ कर अपने कमरे में चला गया.

कुछ देर बाद वह तैयार हो कर बाहर चला गया. उस के बदन से आ रही इत्र की खुशबू को अंजलि ने तो नहीं, पर आरती ने जरूर नोट किया.

‘‘कौन सा दोस्त बीमार है संजीव का?’’ आरती ने अपने स्वर को सामान्य रखते हुए अंजलि से पूछा.

‘‘मुझे पता नहीं,’’ अंजलि ने लापरवाह स्वर में जवाब दिया.

‘‘बेटी, पति के दोस्तों की…उस के आफिस की गतिविधियों की जानकारी हर समझदार पत्नी को रखनी चाहिए.’’

‘‘मां, 2 बच्चों को संभालने में मैं इतनी व्यस्त रहती हूं कि इन बातों के लिए फुर्सत ही नहीं बचती.’’

‘‘अपने लिए वक्त निकाला कर, बनसंवर कर रहा कर…कुछ समय वहां से बचा कर संजीव को खुश करने के लिए लगाएगी तो उसे अच्छा लगेगा.’’

‘‘मैं जैसी हूं, उन्हें बेहद पसंद हूं, मां. तुम मेरी फिक्र न करो और यह बताओ कि क्या कल सुबह तुम सचमुच शीला आंटी के पास काम मांगने जाओगी?’’ अपनी आंखों में चिंता के भाव ला कर अंजलि ने विषय परिवर्तन कर दिया था.

आरती काम पर जाने के लिए अपने फैसले पर जमी रहीं. उन के इस फैसले का अंजलि ने स्वागत किया.

रात को राकेश और सारिका ने आरती से फोन पर बात करनी चाही, पर वह तैयार नहीं हुईं.

अंजलि ने दोनों को खूब डांटा. सारिका ने उस की डांट खामोश रह कर सुनी, पर राकेश ने इतना जरूर कहा, ‘‘मां ने कभी पहले शिकायत का एक शब्द भी मुंह से निकाला होता तो मैं जरूर काररवाई करता. मुझे सपना तो नहीं आने वाला था कि वह घर में दुख और परेशानी के साथ रह रही हैं. उन्हें घर छोड़ने से पहले हम से बात करनी चाहिए थी.’’

अंजलि ने जब इस बारे में मां से सवाल किया तो वह नींद आने की बात कह सोने चली गईं. उन के सोने का इंतजाम सोनू और प्रिया के कमरे में किया गया था.

उन दोनों बच्चों ने नानी से पहले एक कहानी सुनी और फिर लिपट कर सो गए. आरती को मोहित बहुत याद आ रहा था. इस कारण वह काफी देर से सो सकी थीं.

अगले दिन बच्चों को स्कूल और संजीव को आफिस भेजने के बाद अंजलि मां के साथ शीला से मिलने जाने के लिए घर से निकली थी.

शीला का कुटीर उद्योग बड़ा बढि़या चल रहा था. घर की पहली मंजिल पर बने बडे़ हाल में 15-20 औरतें बडि़यांपापड़ बनाने के काम में व्यस्त थीं.

वह आरती के साथ बड़े प्यार से मिलीं. पहले उन्होंने पुराने वक्त की यादें ताजा कीं. चायनाश्ते के बाद आरती ने उन्हें अपने आने का मकसद बताया तो वह पहले तो चौंकीं और फिर गहरी सांस छोड़ कर मुसकराने लगीं.

‘‘अगर दिल करे तो अपनी परेशानियों की चर्चा कर के अपना मन जरूर हलका कर लेना, आरती. कभी तुम मेरा सहारा बनी थीं और आज फिर तुम्हारा साथ पा कर मैं खुश हूं. मेरा दायां हाथ बन कर तुम चाहो तो आज से ही काम की देखभाल में हाथ बटाओ.’’

अपनी सहेली की यह बात सुन कर आरती की पलकें नम हो उठी थीं.

आरती और अंजलि ने वर्षों बाद पापड़बडि़यां बनाने का काम किया. उन दोनों की कुशलता जल्दी ही लौट आई. बहुत मजा आ रहा था दोनों को काम करने में.

कब लंच का समय हो गया उन्हें पता ही नहीं चला. अंजलि घर लौट गई क्योंकि बच्चों के स्कूल से लौटने का समय हो रहा था. आरती को शीला ने अपने साथ खाना खिलाया.

आरती शाम को घर लौटीं तो बहुत प्रसन्न थीं. संजीव को उन्होंने अपने उस दिन के अनुभव बडे़ जोश के साथ सुनाए.

रात को 8 बजे के करीब राकेश और सारिका मोहित को साथ ले कर वहां आ पहुंचे. उन को देख कर अंजलि का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया.

बड़ी कठिनाई से संजीव और आरती उस के गुस्से को शांत कर पाए. चुप होतेहोते भी अंजलि ने अपने भाई व भाभी को खूब खरीखोटी सुना दी थीं.

‘‘मां, अब घर चलो. इस उम्र में और हमारे होते हुए तुम्हें काम पर जाने की कोई जरूरत नहीं है. दुनिया की नजरों में हमें शर्मिंदा करा कर तुम्हें क्या मिलेगा?’’ राकेश ने आहत स्वर में प्रश्न किया.

‘‘मैं इस बारे में कुछ नहीं कहनासुनना चाहती हूं. तुम लोग चाय पिओ, तब तक मैं मोहित से बातें कर लूं,’’ आरती ने अपने 5 वर्षीय पोते को गोद में उठाया और ड्राइंगरूम से उठ कर बच्चों के कमरे में चली आईं.

उस रात राकेश और सारिका आरती को साथ वापस ले जाने में असफल रहे. लौटते समय दोनों का मूड बहुत खराब हो रहा था.

‘‘मम्मी अभी गुस्से में हैं. कुछ दिनों के बाद उन्हें समझाबुझा कर हम भेज देंगे,’’ संजीव ने उन्हें आश्वासन दिया.

‘‘उन्हें पापड़बडि़यां बनाने के काम पर जाने से भी रोको, जीजाजी,’’ राकेश ने प्रार्थना की, ‘‘जो भी इस बात को सुनेगा, हम पर हंसेगा.’’

‘‘राकेश, मेहनत व ईमानदारी से किए जाने वाले काम पर मूर्ख लोग ही हंसते हैं. मां ने यही काम कर के हमें पाला था. कभी जा कर देखना कि शीला आंटी के यहां काम करने वाली औरतों के चेहरों पर स्वाभिमान और खुशी की कैसी चमक मौजूद रहती है. थोड़े से समय के लिए मैं भी वहां रोज जाया करूंगी मां के साथ,’’ अपना फैसला बताते हुए अंजलि बिलकुल भी नहीं झिझकी थी.

बाद में संजीव ने उसे काम पर न जाने के लिए कुछ देर तक समझाया भी, पर अंजलि ने अपना फैसला नहीं बदला.

‘‘मेरी बेटी कुछ मामलों में मेरी तरह से ही जिद्दी और धुन की पक्की है, संजीव. यह किसी पर अन्याय होते भी नहीं देख सकती. तुम नाराज मत हो और कुछ दिनों के लिए इसे अपनी इच्छा पूरी कर लेने दो. घर के काम का हर्जा, इस का हाथ बटा कर मैं नहीं होने दूंगी. तुम बताओ, तुम्हारे दोस्त की तबीयत कैसी है?’’ आरती ने अचानक विषय परिवर्तन कर दिया.

‘‘मेरे दोस्त की तबीयत को क्या हुआ है?’’ संजीव चौंका.

‘‘अरे, कल तुम अपने एक बीमार दोस्त का हालचाल पूछने गए थे न.’’

‘‘हां, हां…वह…अब ठीक है…बेहतर है…’’ अचानक बेचैन नजर आ रहे संजीव ने अखबार उठा कर उसे आंखों के सामने यों किया मानो आरती की नजरों से अपने चेहरे के भावों को छिपा रहा हो.

आरती ने अंजलि की तरफ देखा पर उस का ध्यान उन दोनों की तरफ न हो कर प्रिया की चोटी खोलने की तरफ लगा हुआ था.

आरती के साथ अंजलि भी रोज पापड़बडि़यां बनाने के काम पर जाती. मां शाम को लौटती पर बेटी 12 बजे तक लौट आती. दोनों इस दिनचर्या से बेहद खुश थीं. मोहित को याद कर के आरती कभीकभी उदास हो जातीं, नहीं तो बेटी के घर उन का समय बहुत अच्छा बीत रहा था.

आरती को वापस ले जाने में राकेश और सारिका पूरे 2 हफ्ते के बाद सफल हुए.

‘‘आया की देखभाल मोहित के लिए अच्छी नहीं है, मम्मी. वह चिड़चिड़ा और कमजोर होता जा रहा है. सारा घर आप की गैरमौजूदगी में बिखर सा गया है. मैं हाथ जोड़ कर प्रार्थना करती हूं…अपनी सारी गलतियां सुधारने का वादा करती हूं…बस, अब आप घर चलिए, प्लीज,’’ हाथ जोड़ कर यों विनती कर रही बहू को आरती ने अपनी छाती से लगाया और घर लौटने को राजी हो गईं.

अंजलि ने पहले ही यह सुनिश्चित करवा लिया कि घर में झाड़ूपोछा करने व बरतन मांजने वाली बाई आती रहेगी. वह तो आया को भी आगे के लिए रखवाना चाहती थी पर इस के लिए आरती ही तैयार नहीं हुईं.

‘‘मैं जानती थी कि आज मुझे लौटना पडे़गा. इसीलिए मैं शीला से 15 दिन की अपनी पगार ले आई थी. अब हम सब पहले बाजार चलेंगे. तुम सब को अपने पैसों से मैं दावत दूंगी…और उपहार भी,’’ आरती की इस घोषणा को सुन कर बच्चों ने तालियां बजाईं और खुशी से मुसकरा उठे.

आरती ने हर एक को उस की मनपसंद चीज बाजार में खिलवाई. संजीव और राकेश को कमीज मिली. अंजलि और सारिका ने अपनी पसंद की साडि़यां पाईं. प्रिया ने ड्रेस खरीदी. सोनू को बैट मिला और मोहित को बैटरी से चलने वाली कार.

वापस लौटने से पहले आरती ने अकेले संजीव को साथ लिया और उस आलीशान दुकान में घुस गइ्रं जहां औरतों की हर प्रसाधन सामग्री बिकती थी.

‘‘क्या आप यहां अपने लिए कुछ खरीदने आई हैं, मम्मी?’’ संजीव ने उत्सुकता जताई.

‘‘नहीं, यहां से मैं कुछ बरखा के लिए खरीदना चाहती हूं,’’ आरती ने गंभीर लहजे में जवाब दिया.

‘‘बरखा कौन?’’ एकाएक ही संजीव के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम्हारी दोस्त जो मेरी सहेली उर्मिला के फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में रहती है…वही बरखा जिस से मिलने तुम अकसर उस के फ्लैट पर जाते हो..जिस के साथ तुम ने गलत तरह का रिश्ता जोड़ रखा है.’’

‘‘मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं…’’

‘‘संजीव, प्लीज. झूठ बोलने की कोशिश मत करो और मेरी यह चेतावनी ध्यान से सुनो,’’ आरती ने उस की आंखों में आंखें डाल कर सख्त स्वर में बोलना शुरू किया, ‘‘अंजलि तुम्हारे प्रति…घर व बच्चों के प्रति पूरी तरह से समर्पित है. पिछले दिनों में तुम्हें इस बात का अंदाजा हो गया होगा कि वह अन्याय के सामने चुप नहीं रह सकती…मेरी बेटी मानसम्मान से जीने को सब से महत्त्वपूर्ण मानती है.

‘‘उसे बरखा  की भनक भी लग गई तो तुम्हें छोड़ देगी. मेरी बेटी सूखी रोटी खा लेगी, पर जिएगी इज्जत से. जैसे मैं ने बनाया, वैसे ही वह भी पापड़बडि़यां बना कर अपने बच्चों को काबिल बना लेगी.

‘‘आज के बाद तुम कभी बरखा के फ्लैट पर गए तो मैं खुद तुम्हारा कच्चा चिट्ठा अंजलि के सामने खोलूंगी. तुम्हें मुझे अभी वचन देना होगा कि तुम उस से संबंध हमेशा के लिए समाप्त कर लोगे. अगर तुम ऐसा नहीं करते हो, तो अ%

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