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बजट नहीं मंदिरों की चढ़ावा

 सरकार का बजट अब मंदिरों में चढ़ावे की तरह होता जा रहा है. भक्त बड़ी मेहनत से सैकड़ों मीलों का सफर कर, पैदल चल कर मंदिर पहुंचते हैं. वे धूप, पानी, वर्षा में लाइनों में खड़े होते हैं और जब चढ़ावा चढ़ा कर उस भगवान से कुछ मांगने का समय आता है तो भक्त को कुछ सैकंड ही दिए जाते हैं और चढ़ावे का माल एक बड़े ढेर में बेदर्दी से फेंक दिया जाता है. फिर भी भक्त बाहर आ कर कहते हैं कि दर्शन बहुत अच्छे हुए, मनोकामना अवश्य पूरी होगी, घर धनधान्य से भर जाएगा. सरकारी टैक्स देने के लिए नागरिक बड़ी मेहनत करते हैं.

काम के लिए रोजाना घंटों लंबी दूरी तक चलते हैं, 8-10 या 12 घंटे खटते हैं और फिर जब जो हाथ में मिलता है उस का बड़ा हिस्सा चढ़ावे के रूप में सरकार को टैक्स में देते हैं. बदले में भक्त सरकार का गुणगान करते हैं और आम नागरिक सरकार को कोसते हैं. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का 7वां और बैसाखी वाली नरेंद्र मोदी की तीसरी बार की सरकार का पहला बजट बेहद उबाऊ और उसी लफ्फाजी से भरा था जैसी मंदिरों में भक्तों को आशीर्वाद के रूप में दी जाती है. वहीं, ऐसा भी नहीं लगा कि चुनावी झटके में राम मंदिर में आए ‘क्रैक’ और अयोध्या की सड़कों को ठीक करने का कोई संकल्प इस बजट में है.

यह एक खोखली सरकार का खोखला बजट है जिस के हर शब्द में, हर प्रपोजल में बाबुओं व अफसरों की पंडों की तरह चूसने की स्कीमें तो हैं पर नागरिकों को देने के नाम पर भक्तों को मिलने वाले थोथे आश्वासन ही हैं. सरकार ने इन्कमटैक्स स्लैब में जो बदलाव किया है वह नाममात्र का है, 650 से 1,500 रुपए तक की छूट का, कैपीटल गेन्स टैक्स बढ़ा दिया गया है. आयात करों में कुछ मामूली रियायतें दी गईं, कुछ पर बढ़ाई गईं. जब मंत्रों के बीच स्वाहा करने की बात आएगी तो पता चलेगा कि फाइनैंस एक्ट में संशोधनों में कहां कितने मगरमच्छों के अंडे हैं. पर पक्का है जैसे कांवडि़यों को मीलों चलने के बाद अपना पानी मंदिरों की नालियों में बहा देना होता है, वैसे ही नागरिकों का पैसा सरकारी गंदगीभरी गंगा में जाएगा जिस में डुबकी तो लगानी होगी ही और फिर कुछ चर्मरोग स्वीकारने होंगे.

सरकार का टैक्स देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि से हर साल ज्यादा बढ़ रहा है जिस का मतलब है कि आजकल भक्त चढ़ावा ज्यादा चढ़ा रहे हैं और अपने आराध्य के सामने गिड़गिड़ाने का समय तक कम होता जा रहा है. सरकार को टैक्सों से चढ़ावा 38,40,170 करोड़ रुपए पाने का अनुमान है. सरकार को सीधा इन्कम टैक्स से चढ़ावा 11,87,000 करोड़ रुपए, जीएसटी से 10,61,899 करोड़ रुपए, कंपनियों पर टैक्स से चढ़ावा 10,20,000 करोड़ रुपए, पैट्रोलडीजल आदि की एक्साइज से चढ़ावा 3,19,000 करोड़ रुपए और आयातित सामान पर लगे टैक्स से चढ़ावा 2,31,745 करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद है. ये सब सरकारी पंडों में बंटेगा.

टोकरी भर कर प्रसाद चढ़ाने के बाद वापस लेने के लिए भक्त को 2-3 बताशे ही मिलते हैं या 2 फूल जो एक घंटे में मुरझा जाते हैं. सरकार हर काम पर वैसे ही कुंडली मारे बैठी है जैसे पंडे हर अच्छेबुरे काम में आ धमकते हैं. वे जन्म पर चढ़ावा पाते हैं, मरने पर सारा सामान ले जाते हैं और जी भर खाते हैं. भगवा सरकार इस बार भी पंडों की टैक्स प्रथा को मजबूत कर रही है और आधा पैसा पंडों की सुखसुविधाओं में जाएगा.

यह न समझें कि इस तरह के बजट की सिर्फ आलोचना ही होती है. चर्च, मसजिद, गुरुद्वारों और हर रोज नए बन रहे विशाल मंदिरों के दुकानदारों की तरह सरकार के वकील बहुत घूमते रहते हैं जो हर साल के बजट को विलक्षण, अद्भुत, विकास की चाबी, तार्किक, उदार और न जाने क्याक्या कहते हैं, वही शब्द जो अंधभक्त अपनी धर्म की दुकान के बारे में कहते हैं. नाइका कंपनी की फाल्गुनी नायर कहती हैं कि यह बजट बाजार को तेज करेगा, बराबरी का विकास होगा, सामाजिक स्तर सुधरेगा.

कैसे, इस के लिए बजट के पौराणिक ग्रंथ में भगवान नरेंद्र और देवी निर्मला के लिखवाए गए बहुत से वादे हैं, जैसे सब से ज्यादा लाखों में टैक्स देने वालों को 17,500 रुपए की महान बचत होगी, स्किल डैवलपमैंट के लिए 500 बड़ी कंपनियां इन्टर्न रखेंगी, बिहार और आंध्र प्रदेश (जिन की कृपा पर भगवान नरेंद्र व देवी निर्मला मंदिर में विराजमान हैं) को पैसा ज्यादा मिलेगा और वहां सोने के फूल कल से बरसने लगेंगे. बजट पर कोई भी प्रतिक्रिया देना बेकार है. यह असल में जेब से पैसा निकालने के तरीकों के बारे में बताता है.

यह उम्मीद न करें कि रंगदार बाजार में स्थायित्व रखते हैं, वे सिर्फ लूट में कोई और हिस्सेदार न बन पाए, इस का प्रयास करते हैं. राहुल का राहुलबाण कांग्रेस सांसद व लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हो रही बहस में लीडर औफ अपोजीशन के तौर पर जो भाषण दिया वह बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिए गए 2:30 घंटे के लंबे भाषण के मुकाबले कुछ कम, लगभग 2 घंटे, जरूर था लेकिन था बहुत ही सटीक. उन का यह कहना कि हिंदू हिंसक है और फिर कहना कि नहीं है, दोनों विवादास्पद भी हैं, गलत भी और सही भी. दोमुंही बात वैसे तो हर धर्म की एक पहचान होती है पर हिंदू धर्म का तो यह एक विशेषण है.

हम शांति के पैगंबर होने का दावा करते हैं पर दूसरी ओर जो 2 महाकाव्य हमारे जीवन का मूलमंत्र बने हैं, उन में हिंसा की भरमार है. दोनों में उसी तरह के धनुष का उपयोग भरा पड़ा है जो अग्निपुराण में धनुष से किया गया युद्ध श्रेष्ठ माना गया है और बाहुयुद्ध अधमाधम होता है. धनुर्वेदस्याधिकारिणी में धनुष की शिक्षा बाकायदा ब्राह्मण आचार्यों द्वारा देने का प्रावधान है जो केवल ‘ब्राह्मण वृत्तिवाले शिष्य’ को दी जा सकती है. हिंसक पाठ पढ़ाने में भी वर्ण बीच में आ जाता है और उसी धनुर्वेद में कहा गया है कि सिर्फ क्षत्रिय को तलवार, वैश्य को भाला और शूद्र को गदा रखने का अधिकार है.

ऐसे में यह कहना कि हिंदू हिंसक है, गलत नहीं है. कट्टरपंथियों के शुरू के नेताओं ने इन धर्मग्रंथों को पढ़ कर हिंसक पाठ पढ़ाने शुरू किए थे पर न आम जनता को धनुष चलाना सिखाया न तलवार, न भाला. वे केवल शूद्रों वाली लाठी का इस्तेमाल कर सकते थे. हर गांव में जमींदार के पास लठैत ही होते थे. वह खुद तलवार रखता था और शूद्र या वैश्य को भी न धनुष देने देता था न तलवार. अग्निपुराण में शूद्र केवल शिकार के समय भाला इस्तेमाल कर सकता था. हिंदू धर्मग्रंथों से परे आदिवासी हर तरह के अस्त्र इस्तेमाल करते थे पर उन्हें पहाड़ों में धकेल कर भुला दिया गया था.

राहुल गांधी का दूसरी तरफ यह कहना कि ‘हिंदू हिंसक नहीं’ गलत नहीं है क्योंकि देश की 80 फीसदी जनता तो हमेशा इन ग्रंथों के तथाकथित ज्ञान से दूर रही है. उस ने तो वह माना है जो गांव या राज्य का पुजारी या उस के इशारे पर चलने वाला राजा कहता था. फिर भी हिंसा नहीं थी, यह कहना गलत है. चूंकि देश की अधिकांश जनता को हथियार रखने का अधिकार नहीं था, अहिंसा का पाठ भी काम आया. जब हिंसा करने का हक न हो, तो अहिंसा के नाम पर भीख मांगना और धर्म के सहारे दान में पैसा पाना एक अच्छी तरकीब थी. जिन धर्मों या उपधर्मों ने भारतभूमि में शांति का पाठ पढ़ाया, उन्होंने अपनी शांति की बात मनवाने के लिए भरपूर हिंसा का इस्तेमाल किया.

अहिंसा परमोधर्म का नारा तो बहुसंख्यक जनता के लिए था जिसे हिंसा के आगे घुटने टेकने पड़े थे, जेब खाली करनी पड़ी थी, घरबार लुटते देखना पड़ा था. हिंसा का प्रयोग आम जनता के लिए केवल शिकार के वक्त जरूरी है. मांस खाने वाले पाले हुए पशुओं को मारते हैं, इसलिए उसे हिंसा कहना गलत होगा. हिंसा में लूटने का भाव छिपा है. वर्तमान में राहुल गांधी ने एक प्याले में तूफान लाने की कोशिश की है जिस का, वैसे, फर्क नहीं पड़ने वाला पर हिंदूदलित, हिंदूमुसलिम हिंसा शायद कम हो जाए. फूट डालो राज करो लोकसभा चुनावों में पड़ी चपत के बाद 13 विधानसभा उपचुनावों में भी भारतीय जनता पार्टी को एक बार फिर झटका लगा है.

भाजपा ने 13 की 13 सीटों पर चुनाव लड़ा था. पैसे की उस के पास कोई कमी नहीं थी, चुनाव आयोग उस की जेब में पहले जैसा था, मीडिया पहले की तरह काफी गुणगान कर ही रहा था पर फिर भी 13 में से वह केवल 2 सीटें ही जीत पाई. भारतीय जनता पार्टी के नेता व प्रधानमंत्री कुछ महीने पहले 2027 की नहीं, 2047 की बात करने लगे थे, लेकिन अब वे सकते में हैं कि यह क्या हो रहा है. रोचक बात यह है कि जैसे लोकसभा चुनावों में हिंदू धर्म की इकलौती ठेकेदार बनी भारतीय जनता पार्टी अयोध्या की सीट हार गई थी, इस बार उत्तराखंड में बद्रीनाथ की विधानसभा सीट हार गई.

असल में 2014 के बाद जो एक के बाद एक जीत भाजपा को मिलती रही, वह गैरभाजपा पार्टियों के विभाजन के कारण हो रहा था. कट्टरपंथी पार्टियां आमतौर पर जीतती इसलिए हैं कि उन को चलाने वाले साजिश और प्लानिंग अच्छी तरह कर लेते हैं और वे विरोधी खेमे में फूट डलवा लेते हैं. रामायण कथा में रावण और बाली के घरों में फूट डलवाई गई और महाभारत की कहानी में कुरुवंश के घर में. तभी उन की जीत हुई जिन्हें हम आज भी पूज रहे हैं और जिन के धर्म पर भक्त अपना तनमनधन देते हैं व दूसरे की जान लेने को तैयार रहते हैं.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इंडिया ब्लौक बना कर गैरभाजपा वोटों का बंटवारा रोक दिया है और खमियाजा भाजपा को भुगतना पड़ रहा है. जनता तो हमेशा ही भाजपा को अल्पमत देती रही है. और अब विपक्षी वोट एक को पड़ रहे हैं, कईयों को नहीं. भाजपा को जल्दी ही अपने धर्मग्रंथ फिर खंगालने पड़ेंगे जिन में घरों, परिवारों, समाजों, जातियों के नाम पर तोड़फोड़ करने के पाठ बारीकी से समझाए गए हैं. सत्ता के अंहकार में भाजपाई नेताओं ने इन ग्रंथों को समझाना और पढ़ना कम कर दिया था. अब 2-3 हारों के बाद वे फिर जब इन महान ग्रंथों की कहानियां पढ़ेंगे तो उन्हें, पक्की बात है कि फिर तरीके मिलेंगे कि क्या कहकह कर दूसरे पक्ष में फूट डलवाई जा सकती है. आखिर कृष्ण द्वारा गीता का ज्ञान कुरुवंश में फूट डलवाने के लिए ही तो दिया गया था. इसे पढ़ कर इंडिया ब्लौक को तोड़ना मुश्किल न होगा.

टीनएजर्स भी हो रहे हैं हाई ब्लडप्रैशर का शिकार

हाई ब्लडप्रैशर या उच्च रक्तचाप की बीमारी आमतौर पर 40 पार के लोगों में या बुजुर्गों में देखी जाती थी. बच्चों में इस का असर नहीं होता था और न ही कभी डाक्टर बच्चों का ब्लडप्रैशर नापते थे. लेकिन अब यह सोच बदल रही है. बच्चों में भी अब हाई ब्लडप्रैशर की समस्या तेजी से बढ़ रही है. मोटापे के कारण बच्चे हाई ब्लडप्रैशर का शिकार हो रहे हैं. ब्लडप्रैशर अधिक होने की वजह से उन को दिल की बीमारियां भी घेर रही हैं. हृदय की सतहों की मोटाई भी ज्यादा हो रही है. नाडि़यों में बैड कोलैस्ट्रौल जम रहा है जिस से खून का बहाव बाधित हो रहा है. बच्चों में आंखों की रोशनी घट रही है.

दिल्ली के एम्स में ऐसे 60 बच्चों की जांच की गई जो मोटापे से पीडि़त थे. इस जांच के बाद सामने आया कि 60 में से 40 फीसदी यानी 24 बच्चे हाई ब्लडप्रैशर के शिकार हैं. इन सभी बच्चों की उम्र 18 वर्ष से कम थी. इन 24 बच्चों में से 68 प्रतिशत बच्चों में ब्लडप्रैशर का असर हार्ट पर भी नजर आया. कुछ बच्चों में और्गन फेल्योर के लक्षण भी देखे गए. हाई ब्लडप्रैशर एक साइलैंट किलर है. इस का सब से ज्यादा असर हमारे दिल पर पड़ता है. अगर ब्लडप्रैशर को नियंत्रित न रखा गया तो इस से अचानक हार्ट अटैक या ब्रेन हेमरेज होने का खतरा रहता है.

बच्चों में हाई ब्लडप्रैशर 2 टाइप के होते हैं- प्राइमरी हाई ब्लडप्रैशर और सैकंडरी हाई ब्लडप्रैशर. प्राइमरी हाई ब्लडप्रैशर टीनएजर्स और एडल्ट्स में ज्यादा कौमन है. यह अकसर लाइफस्टाइल फैक्टर्स की वजह से होता है, जैसे बहुत ज्यादा नमक और मसालों के सेवन से यह समस्या पैदा होती है. अगर मातापिता में से किसी को हाई ब्लडप्रैशर की समस्या है तो कई बार बच्चों में भी इस के लक्षण दिखते हैं. ये लक्षण मोटापे की वजह से जल्दी नजर आते हैं. सैकंडरी हाई ब्लडप्रैशर के सामान्य कारण हैं, किडनी डिसऔर्डर, हाइपरथाइरौडिज्म, हार्मोनल से जुड़ी समस्याएं, हार्ट या ब्लड वैसल्स डिसऔर्डर, नींद से जुड़े डिसऔर्डर, स्ट्रैस लेना अथवा कुछ मैडिसिन के साइड इफैक्ट्स. कोरोनाकाल में जब बच्चे घरों में बंद हुए तो उन के पास करने को बस दो या तीन काम ही थे – औनलाइन पढ़ाई करना, मोबाइल फोन पर समय बिताना और खाना.

उस दौरान चूंकि मातापिता दोनों ही घर पर रहे इसलिए महिलाओं ने और कहींकहीं तो पुरुषों ने भी अपनी पाककला का खूब प्रदर्शन किया. खूब तेल, घी, नमक, मसाले वाला खाना लोगों के घरों में बना और बच्चों ने खूब लुत्फ उठाया. यहां तक कि बर्गर, पिज्जा, रोल, चाउमीन जैसे बच्चों को लुभाने वाली चीजें भी मांओं ने खूब बनाबना कर खिलाईं. फिजिकल एक्टिविटी की कमी नतीजा यह हुआ कि बच्चों का वजन इस दौरान खूब बढ़ा. खेलकूद और शारीरिक एक्टिविटी न होने से एक्स्ट्रा एनर्जी शरीर में फैट के रूप में जमा होती गई.

इस से नाडि़यों में खून का प्रवाह बाधित हुआ और इस की वजह से बच्चों में हाई ब्लडप्रैशर की समस्या पैदा हुई. अब जबकि कोरोना को गए डेढ़ साल से ऊपर हो रहा है मगर खेल के मैदान में अभी भी बच्चों की संख्या उस तरह नहीं बढ़ी है जैसी कोरोनाकाल से पहले हुआ करती थी. खेल को ले कर बच्चे आलसी हो गए हैं. उन्हें मोबाइल फोन पर गेम खेलने में मजा आता है. शारीरिक एक्टिविटी न होने से बच्चे हाई ब्लडप्रैशर का शिकार हो रहे हैं. पढ़ाई और कंपीटिशन का स्ट्रैस इन दिनों बच्चों पर हावी है. हर मांबाप की इच्छा है कि उन का बच्चा एग्जाम में 90 प्रतिशत से अधिक नंबर लाए. मांबाप की इच्छाओं का भारी दबाव बच्चे ?ोल रहे हैं. वे आधा दिन स्कूल में पढ़ते हैं, फिर ट्यूशन में और उस के बाद घर में.

अन्य गतिविधियां करने के लिए उन के पास समय नहीं बचता है जिस से वे स्ट्रैस से मुक्त हो सकें. यह स्ट्रैस ब्लडप्रैशर बढ़ाता है. फास्ट फूड का चलन इस तेजी से भारत में बढ़ा है कि अब भुट्टा, गन्ने का जूस, बेल का शरबत, भेलपुड़ी जैसी चीजें तो बच्चे चखना ही नहीं चाहते हैं. उन को सिर्फ मेक्डोनाल्ड, पिज्जा हट, सबवे जैसी जगहों पर फास्ट फूड खाने में आनंद आता है. फास्ट फूड में पड़ने वाला सोडियम साल्ट, अजीनोमोटो, नमक, चीज, मैदा और बटर शरीर में जा कर जमता है और बच्चों में मोटापा बढ़ता है. अब तो स्कूलकालेज की कैंटीन से भी देसी चीजें गायब हो चुकी हैं.

कढ़ी चावल, राजमा चावल, पूरी सब्जी या वेज थाली की जगह पिज्जा, रोल, समोसे, फिंगर चिप्स, चीज सैंडविच, नूडल्स, पैटीज, कोल्ड ड्रिंक आदि ने ले ली है. स्कूलकालेज की कैंटीन्स में बच्चे इसी तरह का खाना खा रहे हैं और वजन बढ़ा रहे हैं. खेलकूद, पीटी, व्यायाम जैसी चीजें स्कूली गतिविधियों से बाहर हो चुकी हैं. लिहाजा, बच्चों में किडनी, लिवर, ब्रेन और दिल की बीमारियां बढ़ रही हैं. हैल्दी डाइट जरूरी बहुत जरूरी है कि हम समय रहते चेत जाएं. फास्ट फूड से बच्चों को अलग करें.

इस के साथ ही दिन में कम से कम 2 घंटे उन को खेलने के लिए मैदान में भेजें. हाइपरटैंशन का सब से आसान और सटीक इलाज है हैल्दी लाइफस्टाइल और नियमित दवाएं. हैल्दी डाइट से हाइपरटैंशन को कंट्रोल किया जा सकता है. बच्चों को डेली डाइट में ताजे फल, सब्जियां, साबुत अनाज और लो फैट डेयरी प्रोडक्ट्स दें. नमक और सैचुरेटेड फैट का इस्तेमाल खाने में कम करें. खुद भी रैगुलर ऐक्सरसाइज करें और बच्चों को भी इस की आदत डलवाएं. इस के साथ ही पूरी नींद लेना बहुत जरूरी है.

8 से 10 घंटे की नींद बच्चे को ऊर्जावान और हैल्दी बनाती है. लाइफस्टाइल में बदलाव ला कर ही हम अपने बच्चों को ऐसी खतरनाक बीमारियों से बचा सकते हैं. बच्चों का समयसमय पर हैल्थ चैकअप कराना बहुत जरूरी हैं. आंख की रोशनी कम होने की शिकायत बच्चा करे तो सिर्फ चश्मा ही नहीं बनवाएं बल्कि उस के शुगर और बीपी की जांच भी करवाएं. खाने में नमक की मात्रा कम करें और बच्चे का वजन कंट्रोल में रखें. अगर बच्चे में सिरदर्द, दिल की धड़कन बढ़ने या नाक से खून आने जैसे लक्षण दिखें तो फौरन उस का ब्लडप्रैशर चैक करवाएं. ये लक्षण अधिक रक्तचाप या उच्च रक्तचाप का संकट बताते हैं, जिस के लिए तत्काल चिकित्सा या देखभाल की आवश्यकता होती है. इस में लापरवाही न करें.

अंधविश्वास : तांत्रिकों के चक्कर में फंस कर अपनों का खून

21 मई को मुजफ्फरनगर में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई. अपने ऊपर आए कथित साए से छुटकारा पाने के लिए सगी चाची ने अपनी मां के साथ मिल कर एक महीने के अंदर अपने देवर के 2 बच्चों की हत्या कर दी. दोनों हत्यारिन महिलाओं ने एक तांत्रिक के कहने पर इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया था. दरअसल 7 साल के बच्चे केशव के मर्डर केस में मृतक की चाची अंकिता और उस की मां रीना को दोषी पाया गया. चाची ने तांत्रिक के कहने पर एक नहीं बल्कि दो बच्चों की बलि देने का जुर्म कबूल किया. उस ने तांत्रिक भगत रामगोपाल व अपनी मां रीना के कहने पर घर में नीचे अकेला देख कर केशव को दूसरे कमरे में ले जा कर पुराने दुपट्टे से गला दबा कर उसे मार दिया था.

इस के बाद एक कागज के टुकड़े पर लाल रंग से लिख कर छत पर डाल दिया जिस से घर वालों को लगे कि यह किसी ऊपरी साए का काम है. एक माह पहले केशव के छोटे भाई 4 वर्षीय अंकित उर्फ लक्की की भी उसी ने गला दबा कर हत्या की थी, जबकि घरवालों को लगा था कि वह बीमारी से मरा है. जांच के दौरान पुलिस को शव के पास से तंत्रमंत्र का कुछ सामान और एक कागज में कुछ लिखा नजर आया था. पुलिस ने लिखावट का मिलान किया तो मृतक की चाची से लिखावट का मिलान हुआ. उस के बाद कड़ाई से पुलिस ने पूछताछ की तो महिला ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. पुलिस ने इस खौफनाक हत्याकांड में चाची और उस की मां को जेल भेज दिया.

अंधविश्वास के चक्कर में हत्यारिन बनी मां हाल ही में (25 जनवरी, 2024) हरिद्वार में हर की पौड़ी पर तंत्रमंत्र के चक्कर में फंस कर एक मां ने ही 7 साल के बेटे को डुबो कर मार डाला. दरअसल एक तांत्रिक ने कहा था कि हरिद्वार में गंगा की धार में बच्चे को डुबकी लगवाने से उस का ब्लड कैंसर ठीक हो जाएगा. मां ने तांत्रिक की बात सुनी और अपने बीमार बच्चे को हरिद्वार में गंगा की डुबकी लगाने लगी जिस से सांस घुटने से बच्चे की मौत हो गई. जब बच्चे को पानी से निकाला गया तो वह मर चुका था. सामने बच्चे का शव पड़ा था और महिला जोरजोर से पागलों की तरह हंस रही थी. बच्चे की मौत की खबर से अफरातफरी मच गई. उस के मातापिता समेत 3 लोगों को हिरासत में ले लिया गया.

मासूम के साथ की दरिंदगी 3 अक्तूबर, 2023 को पंजाब में एक 4 वर्षीय बच्चे की हत्या करने का मामला सामने आया था. मृतक बच्चे की पहचान रवि राज के रूप में हुई. बच्चे की मां ने पुलिस को बताया कि उस के 3 बच्चे हैं जोकि बैड पर सो रहे थे और वे दोनों पतिपत्नी फर्श पर सो रहे थे. रात में करीब 2 बजे जब उस की आंख खुली तो उस ने देखा, उस का बेटा रवि बिस्तर पर नहीं है और वहां पर एक मोबाइल फोन गिरा था. उन्होंने बच्चे को ढूंढ़ने की कोशिश की. इतने में वहां पुलिस आ गई और बताया कि कुछ दूरी पर एक बच्चे का शव पड़ा हुआ है.

उन्होंने जब जा कर देखा तो शव उन के बेटे का ही था जिस की गला रेत कर हत्या कर दी गई थी. पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे खंगाले. इस जांच के दौरान सामने आया कि पड़ोस में रहने वाला व्यक्ति उन के बच्चे को ले कर जा रहा था. बच्चे की हत्या तांत्रिक के कहने पर देवीदेवताओं की पूजा और बलि चढ़ाने के लिए की गई थी. आरोपी की पहचान अरविंदर कुमार (23) के रूप में हुई. पुलिस द्वारा बच्चे के खून से लथपथ कपड़े व हत्या में इस्तेमाल चाकू को भी जब्त कर लिया गया. रायगढ़ में काला जादू के शक में बेटे ने की पिता की हत्या छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में एक नाबालिग लड़के ने तांत्रिक के कहने में आ कर अपने ही पिता की हत्या कर दी. तांत्रिक ने पिता पर जादूटोना करने का शक जताया था.

इसी शक में बेटे ने अपने साथियों के साथ मिल कर पिता को मार डाला और लाश में पत्थर बांध कर नदी में फेंक दिया. यह मामला 1 अगस्त, 2022 को सामने आया. आरोपी ने हत्या के पीछे वजह बताते हुए कहा कि उस की पत्नी का भाई इस हत्याकांड में शामिल था. घर में सब लोगों की तबीयत खराब होती थी. इसलिए वह एक तांत्रिक के पास गया और तांत्रिक ने उस को खत्म करने के लिए कहा. ये सारी घटनाएं एक ही हकीकत की तरफ इशारा करती हैं. हकीकत यह है कि तंत्रमंत्र के छलावे में आ कर इंसान अपना ही बड़ा नुकसान कर बैठता है.

तांत्रिक और बाबा लोग अपनी बातों के जाल में लोगों को ऐसे फंसा लेते हैं कि इंसान का दिमाग कुंठित हो जाता है. उस के सोचनेसमझने की शक्ति चली जाती है और वह अपनों के खून से ही अपने हाथ रंग लेता है. सच तो यह है कि अंधविश्वास एक ऐसा जाल है जिस में इंसान फंसता ही चला जाता है और उस की शुरुआत कहीं न कहीं किसी बाबा, तांत्रिक या आस्था के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाने वालों से होती है.

इसलिए आप भी अपनी परेशानी से छुटकारा पाने के लिए किसी तांत्रिक के संपर्क में हैं तो जरा सावधान हो जाइए. तांत्रिकों ने अंधविश्वास का ऐसा भ्रम फैला रखा है जिस में भोलेभाले, परेशान लोग आसानी से फंस रहे हैं. परेशान लोगों की पीड़ा खत्म करने के लिए तंत्रमंत्र के माध्यम से लोगों को चूना लगाया जा रहा है. कभी इलाज के नाम पर तांत्रिक किसी की अस्मत लूट रहे हैं तो कभी लाखों रुपए की ठगी कर लेते हैं और कभी किसी की हत्या कराई जाती है. लोगों को इस जंजाल की जानकारी तब होती है जब तांत्रिक उन से करतूतें करवा कर किनारा कर लेता है. औनलाइन जाल में भी फंसाते हैं बाबा और तांत्रिक आजकल औनलाइन का जमाना है और तांत्रिक बाबा इस तकनीक का भी इस्तेमाल कर लोगों को अंधविश्वास के जाल में फंसा रहे हैं.

इस के एवज में वे उन से मोटी रकम वसूल करते हैं. राजधानी दिल्ली की अगर बात करें तो यहां 2-3 हजार से ज्यादा बाबा या तांत्रिक अपने धंधे को स्वतंत्र रूप से संचालित कर रहे हैं. ये बाबा काला जादू और चमत्कारी शक्तियों की मदद से लोगों को उन का खोया हुआ प्यार, नौकरी ढूंढ़ने में मदद, बीमारियों से नजात और घर खरीदने में मदद के नाम पर बेवकूफ बनाते हैं. इन बाबाओं के नाम भी उन के काम से ही मिलताजुलता होता है, जैसे बाबाजी, वशीकरण गुरुजी, बंगाली बाबा, तांत्रिक बाबा खान बंगाली आदि.

इन्होंने अपने बिजनैस को औनलाइन भी फैला रखा है. बाकायदा उन की अपनी वैबसाइट है, फोन नंबर है जिस के जरिए वे लोगों को उन की परेशानियों से छुटकारा दिलाने का दावा करते हैं और लोगों से पैसे ऐंठते हैं. ये लोग यूट्यूब के जरिए भी पैसे कमा रहे हैं. अपने यूट्यूब चैनल में ये खोया हुआ प्यार वापस मिलना, दुश्मनों से छुटकारा, जमीन में गड़ा हुआ धन का पाना, सौतन से छुटकारा, जमीनी विवाद सुलझाना, मनचाहा प्यार पाना संबंधी वीडियो डालते रहते हैं और लोगों को अंधविश्वास के जाल में फंसाते रहते हैं.

कुछ यूट्यूब चैनल तो ऐसे भी हैं जिन के पास लाखों की संख्या में सब्सक्राइबर्स (ग्राहक) हैं. काला जादू और वशीकरण के नाम पर ये बाबा ‘निराश’ लोगों को इस कदर बेवकूफ बनाते हैं कि वे तुरंत ही उन की चिकनीचुपड़ी बातों में आ जाते हैं और बाबा को अपना सबकुछ न्योछावर कर देते हैं. ये सिर्फ झोलाछाप बाबा और तांत्रिक नहीं हैं जो प्यार और वैवाहिक समस्याओं के जादुई समाधान प्रदान करते हैं बल्कि कई पढ़ेलिखे और इंग्लिश बोलने वाले ज्योतिषी भी हैं जो इस तरह का दावा करते हैं. जागरूकता जरूरी हमारे देश की सब से बड़ी विडंबना यह है कि यहां अंधविश्वासों और अंधविश्वासियों की कमी नहीं है.

लोग बहुत जल्द छलावों में फंसते हैं. जिंदगी में थोड़ी सी उथलपुथल हुई नहीं कि चल दिए तांत्रिकबाबा के पास. यही बाबा मौके का फायदा उठाते हैं और आस्था के नाम पर डरा कर, तंत्रमंत्र का जाल बना कर लोगों को अपनी गिरफ्त में कर लेते हैं और उन से मोटी रकम वसूल करते हैं. इस तरह का जाल फैलाने वाले बाबाओं पर लगाम लगाने की जरूरत है और इस के लिए सब से जरूरी है लोगों का जागरूक होना. जब तक हम नहीं चाहेंगे, कोई हमारे दिमाग से नहीं खेल सकेगा. बस, हमें अपना दिमाग खुला रखना है. जिंदगी में जैसा भी समय आए, सोचसमझ कर फैसले लेने हैं और तांत्रिकों के रूप में लूटने वाले लुटेरों से सावधान रहना है.


	

अंधेरे उजाले

सुदेश अपनी पत्नी तनवी के साथ एक होटल में ठहरा था. होटल के अपने कमरे में टीवी पर समाचार देख वह एकदम परेशान हो उठा. राजस्थान अचानक गुर्जरों की आरक्षण की मांग को ले कर दहक उठा था. वहां की आग गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद, दनकौर, दादरी, मथुरा, आगरा आदि में फैल गई थी.

वे दोनों बच्चों को घर पर नौकरानी के भरोसे छोड़ कर आए थे. तनवी दिल्ली अपने अर्थशास्त्र के शोध से संबंधित कुछ जरूरी किताबें लेने आई थी. सुदेश उस की मदद को संग आया था. 1-2 दिन में किताबें खरीद कर वे लोग घर वापस लौटने वाले थे लेकिन तभी गुर्जरों का यह आंदोलन छिड़ गया.

अपनी कार से उन्हें वापस लौटना था. रास्ते में नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद का हाईवे पड़ेगा. वाहनों में आगजनी, बसों की तोड़फोड़, रेल की पटरियां उखाड़ना, हिंसा, मारपीट, गोलीबारी, लंबेलंबे जाम…क्या मुसीबत है. बच्चों की चिंता ने दोनों को परेशान कर दिया. उन के लिए अब जल्दी से जल्दी घर पहुंचना जरूरी है.

‘‘क्या होता जा रहा है इस देश को? अपनी मांग मनवाने का यह कौन सा तरीका निकाल लिया लोगों ने?’’ तनवी के स्वर में घबराहट थी.

वोटों की राजनीति, जातिवाद, लोकतंत्र के नाम पर चल रहा ढोंगतंत्र, आरक्षण, गरीबी, बेरोजगारी, बढ़ती आबादी आदि ऐसे मुद्दे थे जिन पर चाहता तो सुदेश घंटों भाषण दे सकता था पर इस वक्त वह अवसर नहीं था. इस वक्त तो उन की पहली जरूरत किसी तरह होटल से सामान समेट कर कार में ठूंस, घर पहुंचना था. उन्हें अपने बच्चों की चिंता लगातार सताए जा रही थी.

फोन पर दोनों बच्चों, वैभव और शुभा से तनवी और सुदेश ने बात कर के हालचाल पूछ लिए थे. नौकरानी से भी बात हो गई थी पर नौकरानी ने यह भी कह दिया था कि साहब, दिल्ली का झगड़ा इधर शहर में भी फैल सकता है… हालांकि अपनी सड़क पर पुलिस वाले गश्त लगा रहे हैं…पर लोगों का क्या भरोसा साहब…

आदमी का आदमी पर से विश्वास ही उठ गया. कैसा विचित्र समय आ गया है. हम सब अपनी विश्वसनीयता खो बैठे हैं. किसी को किसी पर भरोसा नहीं रह गया. कब कौन आदमी हमारे साथ गड़बड़ कर दे, हमें हमेशा यह भय लगा रहता है.

सामान पैक कर गाड़ी में रखा और वे दोनों दिल्ली से एक तरह से भाग लिए ताकि किसी तरह जल्दी से जल्दी घर पहुंचें.

बच्चों की चिंता के कारण सुदेश गाड़ी को तेज रफ्तार से चला रहा था. तनवी खिड़की से बाहर के दृश्य देख रही थी और वह तनवी को देख कर अपने अतीत के बारे में सोचने लगा.

शहर में हो रही एक गोष्ठी में सुदेश मुख्य वक्ता था. गोष्ठी के बाद जलपान के वक्त अनूप उसे पकड़ कर एक युवती के निकट ले गया और बोला, ‘सुदेश, इन से मिलो…मिस तनवी…यहां के प्रसिद्ध महिला महाविद्यालय में अर्थशास्त्र की जानीमानी प्रवक्ता हैं.’

‘मिस’ शब्द से चौंका था सुदेश, एक पढ़ीलिखी, प्रतिष्ठित पद वाली ठीकठाक रंगरूप की युवती का इस उम्र तक ‘मिस’ रहना, इस समाज में मिसफिट होने जैसा लगता है. अब तक मिस ही क्यों? मिसेज क्यों नहीं? यह सवाल सुदेश के दिमाग में कौंध गया था.

‘और मिस तनवी, ये हैं मिस्टर सुदेश कुमार…यहां के महाविद्यालय में समाज- शास्त्र के जानेमाने प्राध्यापक, जातिवाद के घनघोर आलोचक….अखबारों में दलितों, पिछड़ों और गरीबों के जबरदस्त पक्षधर… इस कारण जाति से ब्राह्मण होने के बावजूद लोग इन की पैदाइश को ले कर संदेह जाहिर करते हैं और कहते हैं, जरूर कहीं कुछ गड़बड़ है वरना इन्हें किसी हरिजन परिवार में ही पैदा होना चाहिए था.’

अनूप की बातों पर सुदेश का ध्यान नहीं था पर ‘कुमार’ शब्द उस ने जिस तरह तनवी के सामने खास जोर दे कर उच्चारित किया था उस से वह सोच में पड़ गया था.

अनूप ने कहा, ‘है तो यह अशिष्टता पर मिस तनवी की उम्र 28-29 साल, मिजाज तेजतर्रार, स्वभाव खरा, नकचढ़ा…टूटना मंजूर, झुकना असंभव. इन की विवाह की शर्तें हैं…कास्ट एंड रिलीजन नो बार. पति की हाइट एंड वेट नो च्वाइस. कांप्लेक्शन मस्ट बी फेयर, हायली क्वालीफाइड…सेलरी 5 अंकों में. नेचर एडजस्टेबल. स्मार्ट बट नाट फ्लर्ट. नजरिया आधुनिक, तर्कसंगत, बीवी को जो पांव की जूती न समझे, बराबर की हैसियत और हक दे. दकियानूस और अंधविश्वासी न हो.

अनूप लगातार जिस लहजे में बोले जा रहा था उस से सुदेश को एकदम हंसी आ गई थी और तनवी सहम सी गई थी, ‘अनूपजी, आप पत्रकार लोगों से मैं झगड़ तो सकती नहीं क्योंकि आज झगडं़ूगी, कल आप अखबार में खिंचाई कर के मेरे नाम में पलीता लगा देंगे, तिल होगा तो ताड़ बता कर शहर भर में बदनाम कर देंगे…पर जिस सुदेशजी से मैं पहली बार मिल रही हूं, उन के सामने मेरी इस तरह बखिया उधेड़ना कहां की भलमनसाहत है?’

‘यह मेरी भलमनसाहत नहीं मैडम, आप से रिश्तेदारी निभाना है…असल में आप दोनों का मामला मैं फिट करवाना चाहता हूं…वह नल और दमयंती का किस्सा तो आप ने सुना ही होगा…बेचारे हंस को दोनों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभानी पड़ी थी…आजकल हंस तो कहीं रह नहीं गए कि नल और दमयंती की जोड़ी बनवा दें. अब तो हम कौए ही रह गए हैं जो यह भूमिका निभा रहे हैं.

‘आप जानती हैं, मेरी शादी हो चुकी है, वरना मैं ही आप से शादी कर लेता…कम से कम एक बंधी हुई रकम कमाने वाली बीवी तो मुझे मिलती.

अपने नसीब में तो घरेलू औरत लिखी थी…और अपन ठहरे पत्रकार…कलम घसीट कर जिंदगी घसीटने वाले…हर वक्त हलचल और थ्रिल की दुनिया में रहने वाले पर अपनी निजी जिंदगी एकदम रुटीन, बासी…न कोई रोमांस न रोमांच, न थ्रिल न व्रिल. सिर्फ ड्रिल…लेफ्टराइट, लेफ्ट- राइट करते रहो, कभी यहां कभी वहां, कभी इस की खबर कभी उस की खबर…दूसरों की खबरें छापने वाले हम लोग अपनी खबर से बेखबर रहते हैं.’

बाद में अनूप ने तनवी के बारे में बहुत कुछ टुकड़ोंटुकड़ों में सुदेश को बताया था और उस से ही वह प्रभावित हुआ था. तनवी उसे काफी दबंग, समझदार, बोल्ड युवती लगी थी, एक ऐसी युवती जो एक बार फैसला सोचसमझ कर ले तो फिर उस से वापस न लौटे. सुदेश को ढुलमुल, कमजोर दिमाग की, पढ़ीलिखी होने के बावजूद बेकार के रीतिरिवाजों में फंसी रहने वाली अंधविश्वासी लड़कियां एकदम गंवार और जाहिल लगती थीं, जिन के साथ जिंदगी को सहजता से जीना उसे बहुत कठिन लगता था, इसी कारण उस ने तमाम रिश्ते ठुकराए भी थे. तनवी उसे कई मानों में अपने मन के अनुकूल लगी थी, हालांकि उस के मन में एक दुविधा हमेशा रही थी कि ऐसी दबंग युवती पतिपत्नी के रिश्ते को अहमियत देगी या नहीं? उसे निभाने की सही कोशिश करेगी या नहीं? विवाह एक समझौता होता है, उस में अनेक उतारचढ़ाव आते हैं, जिन्हें बुद्धिमानी से सहन करते हुए बाधाओं को पार करना पड़ता है.

कसबे में तनवी का वह निर्णय खलबली मचा देने वाला साबित हुआ था. देखा जाए तो बात मामूली थी, ऐसी घटनाएं अकसर शादीब्याह में घट जाया करती हैं पर मानमनौवल और समझौतों के बाद बीच का रास्ता निकाल लिया जाता है. तनवी ने बीच के सारे रास्ते अपने फैसले से बंद कर दिए थे.

तनवी की शादी जिस लड़के से तय हुई थी वह भौतिक विज्ञान के एक आणविक संस्थान में काम करने वाला युवक था. बरात दरवाजे पर पहुंची. औपचारिकताओं के लिए दूल्हे को घोड़ी से उतार कर चौकी पर बैठाया गया. लकड़ी की उस चौकी के अचानक एक तरफ के दोनों पाए टूट गए और दूल्हे राजा एक तरफ लुढ़क गए. द्वारचार के उस मौके पर मौजूद बुजुर्गों ने कहा कि यह अपशकुन है. विवाह सफल नहीं होगा. दूल्हे राजा उठे और लकड़ी की उस चौकी में ठोकर मारी, एकदम बौखला कर बोले, ‘ऐसी मनहूस लड़की से मैं हरगिज शादी नहीं करूंगा. इस महत्त्वपूर्ण रस्म में बाधा पड़ी है. अपशकुन हुआ है.’

क्रोध में बड़बड़ाते दूल्हे राजा दरवाजे से लौट गए. ‘मुझे नहीं करनी शादी इस लड़की से,’ उन का ऐलान था. पिता भी बेटे की तरफ. सारे बुजुर्ग भी उस की तरफ. रंग में भंग पड़ गया.

बाद में पता चला कि चौकी बनाने वाले बढ़ई से गलती हो गई थी. जल्दबाजी में एक तरफ के पायों में कीलें ठुकने से रह गई थीं और इस मामूली बात का बतंगड़ बन गया था.

तनवी ने यह सब सुना तो फिर उस ने भी यह कहते हुए शादी से इनकार कर दिया, ‘ऐसे तुनकमिजाज, अंधविश्वासी और गुस्सैल युवक से मैं हरगिज शादी नहीं करूंगी.’

तनवी के इस फैसले ने एक नया बखेड़ा खड़ा कर दिया. लड़के वालों को उम्मीद थी कि लड़की वाले दबाव में आएंगे. अपनी इज्जत का वास्ता देंगे, मिन्नतें करेंगे, लड़की की जिंदगी का सवाल ले कर गिड़गिड़ाएंगे.

तनवी के पिता और मामा लड़के के और उन के परिवार वालों के हाथपांव जोड़ने पहुंचे भी, किसी तरह मामला सुलटने वाला भी था पर तनवी के इनकार ने नई मुसीबत खड़ी कर दी. पिता और मामा ने तनवी को बहुत समझाया पर वह किसी प्रकार उस विवाह के लिए राजी नहीं हुई.

उस ने कह दिया, ‘जीवन भर कुंआरी रह लूंगी पर इस लड़के से शादी किसी भी कीमत पर नहीं करूंगी. नौकरी कर रही हूं. कमाखा लूंगी, भूखी नहीं मर जाऊंगी, न किसी पर बोझ बनूंगी. उस का निर्णय अटल है, बदल नहीं सकता.’

कसबे में तमाम चर्चाएं चलने लगीं…लड़की का पहले से किसी लड़के से संबंध है. कसबे के किन्हीं परमानंद बाबू ने इस अफवाह को और हवा दे दी. बताया कि जिस कालिज में तनवी नौकरी करती है, उस के प्रबंधक के लड़के के साथ वह दिल्ली, कोलकाता घूमतीफिरती है. होटलों में अकेली उस के साथ एक ही कमरे में रुकती है. चालचलन कैसा होगा, लोग स्वयं सोच लें. कसबे के भी 2-3 युवकों से उस के संबंध होने की बातें कही जाने लगीं. दूसरे के फटे में अपनी टांग फंसाना कसबाई लोगों को खूब आता है.

पत्रकार अनूप तनवी का रिश्ते में कुछ लगता था. उस विवाह समारोह में वह भी शामिल हुआ था इसलिए उसे सारी घटनाओं और स्थितियों की जानकारी थी.

‘बदनाम हो जाओगी. पूरी जाति- बिरादरी में अफवाह फैल जाएगी. फिर तुम से कौन शादी करेगा?’ मामा ने समझाना चाहा था.

सुदेश ने अनूप से शंका प्रकट की, ‘ऐसी जिद्दी लड़की से शादी कैसे निभेगी, यार?’

‘सुदेशजी, इस बीच गुजरे वक्त ने तनवी को बहुत कुछ समझा दिया होगा. 28-29 साल कुंआरी रह ली. बदनामी झेल ली. नातेरिश्तेदारों से कट कर रह ली. इन सब बातों ने उसे भी समझा दिया होगा कि बेकार की जिद में पड़ कर सहज जीवन नहीं जिया जा सकता. सहज जीवन जीने के लिए हमें अपना स्वभाव नरम रखना पड़ता है. कहीं खुद झुकना पड़ता है, कहीं दूसरे को झुकाने का प्रयत्न करना पड़ता है. इस सिलसिले में तनवी से बहुत बातें हुई हैं मेरी. उसे भी जिंदगी की ऊंचनीच अब समझ में आने लगी है.’

अनूप के इतना कहने पर भी सुदेश के भीतर संदेह का कीड़ा हमेशा रेंगता रहा. एक तरफ तनवी का दृढ़निश्चयी होना सुदेश को प्रभावित करता था. दूसरी तरफ उस का अडि़यल रवैया उसे शंकालु भी बनाता था.

अपनी सारी शंकाओं को उस दिन रिश्ता पक्का करने से पहले सुदेश ने अनूप के सामने तनवी पर जाहिर भी कर दिया था. तनवी सचमुच गंभीर थी, ‘मैं जैसी हूं, आप जान चुके हैं. विवाह का मतलब मैं अच्छी तरह जानती हूं. बिना समझौते व सामंजस्य के जीवन को नहीं जिया जा सकता, यह भी समझ गई हूं. मेरी ओर से आप को कभी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा.’

‘विवाहित जिंदगी में छोटीमोटी नोकझोंक, झगड़े, विवाद होने स्वाभाविक हैं. मैं कोशिश करूंगा, तुम्हारी कसबाई घटनाओं को कभी बीच में न दोहराऊं…उन बातों को तूल न दूं जो बीत चुकी हैं.’

‘मैं भी कोशिश करूंगी, जिंदगी पूरी तरह नए सिरे से, नई उमंग और नए उत्साह के साथ शुरू करूं…इतिहास दोहराने के लिए नहीं होता, दफन करने के लिए होता है.’

मुसकरा दिया था सुदेश और अनूप भी खुश हो गया था.

अचानक तनवी ने कुछ पूछा तो अतीत की यादों में खोया सुदेश उसे देख कर हंस दिया.

उन की शादी को पूरे 8 साल गुजर गए थे. 2 बच्चे थे. शुभा 7 साल की, वैभव 5 साल का. ऐसा नहीं है कि इन 8 सालों में उन के बीच झगड़े नहीं हुए, विवाद नहीं हुए. पर पुराने गड़े मुर्दे जान- बूझ कर न सुदेश ने उखाड़े न तनवी ने उन्हें उखड़ने दिया. जीवन के अंधेरे- उजाले संगसंग गुजारे.

कंट्रोवर्सी हिंदू धर्म को प्रचारित करने का नया हथकंडा

भाजपा सहित सभी हिंदू संगठन इस से आहत हैं कि यह पोल भी क्यों खोली जा रही है. यशराज फिल्म्स निर्मित व सिद्धार्थ पी मल्होत्रा निर्देशित इस फिल्म को पुष्टिधर्म संप्रदाय, बजरंग दल, हिंदू महासभा व प्रज्ञा ठाकुर की तरफ से गुजरात हाईकोर्ट में घसीटा गया. हिंदू धर्म व सनातन धर्म के प्रति लोगों को नया मुद्दा लडऩेझगडऩे को देने के लिए बजरंग दल, भाजपा और हिंदू महासभा संगठनों से जुड़े लोगों ने मुंबई के बीकेसी में स्थित ‘नेटफ्लिक्स’ के दफ्तर पर हमला बोला था. यह तब है जब आसाराम बापू व उन के बेटे के अलावा ‘डेरा सौदा’ के गुरमीत राम रहीम को उन के औरतों से कुकर्मो के कारण जेल भेजा जा चुका है. फिल्म ‘महाराज’ का विरोध करने के लिए अदालत जाने की जरूरत क्यों महसूस हुई जबकि सौरभ शह की किताब ‘महाराज’ को पुरस्कृत भी किया गया था. इस तरह का विरोध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना है. यह 1952 के सिनेमेटोग्राफी एक्ट को खत्म करने की शुरुआत तो नहीं है?

19वीं सदी में जब भारत पर ब्रिटिश शासन था, उसी दौर में ‘महाराज लाइबेल केस’ घटित हुआ था. 5 अप्रैल, 1862 को बौम्बे सुप्रीम कोर्ट (वर्तमान में मुंबई हाईकोर्ट’) ने उस वक्त मुंबई में वैष्णव संप्रदाय की बड़ी हवेली/मंदिर के मुख्य पुजारी यदुनाथ ब्रजरतन महाराज द्वारा पत्रकार व समाज सुधारक करसनदास मूलजी के खिलाफ दायर 50 हजार रुपए के मानहानि केस पर फैसला सुनाते हुए करसनदास मूलजी के पक्ष में फैसला दिया था.

क्या है ‘महाराज लाइबेल केस 1862’

वैष्णव पुष्टिमार्ग की स्थापना 16वीं शताब्दी में वल्लभाचार्य द्वारा की गई थी और यह कृष्ण को सर्वोच्च मान कर पूजा करता है. संप्रदाय का नेतृत्व वल्लभ के प्रत्यक्ष पुरुष वंशजों के पास रहा, जिन के पास महाराजा की उपाधियां थीं. धार्मिक रूप से वल्लभ और उन के वंशजों को कृष्ण की कृपा के लिए मध्यस्थ व्यक्ति के रूप में आंशिक देवत्व प्रदान किया गया है और कहा गया कि ये महाराज भक्त को तुरंत कृष्ण की उपस्थिति प्रदान करने में सक्षम हैं. 19वीं सदी में महाराज यदुनाथ ब्रजरतन महाराजजी ने अपने तरीके से वैष्णव पुष्टि मार्ग संप्रदाय का न सिर्फ प्रचार किया, बल्कि बड़ी हवेली/मंदिर के लिए अटूट धन जमा कर मंदिर के सभी पुजारियों का महत्त्व खत्म कर खुद ही निरंकुश शासक की तरह काम करने लगे.

महाराज यदुनाथ ब्रजरतन महाराज ने भगवान कृष्ण की स्तुति वाले एक भजन की कुछ पंक्तियों का भावार्थ अपने तरीके से धर्म के अंधभक्तों व धर्मावलंबियों को समझाया कि मोक्ष पाने के लिए हर नारी को अपना तन स्वेच्छा से महाराज को समर्पित करना चाहिए और उन्होंने महाराज के ‘चरण सेवा’ नाम से प्रथा की शुरुआत की.

इस प्रथा के तहत संप्रदाय से जुड़ी हर अविवाहित को विवाह करने से पहले महाराज यदुनाथ की चरण पादुकाओं को निकाल कर उन के साथ यौन संबंध बनाना होता है. यदुनाथ ब्रजरतन महाराज ने तो हर पुरूष को यही सिखाया कि उन्हें अपनी पत्नियों को भी ‘चरण सेवा’ के लिए भेजना चाहिए. ‘चरण सेवा’ मंदिर के पीछे हवेली के बड़े हौल में होती थी. इस प्रथा का आनंद लेने के लिए कोई भी पुरुष एक मोटी रकम या सोने का जेवर चढ़ावा में दे कर हवेली में बनी खिड़कियों से चुपचाप ‘चरण सेवा’ प्रथा का नयन सुख ले सकता था. इसे वर्तमान परिस्थिति में आप ‘पोर्न फिल्म’ देखने की संज्ञा दे सकते हैं.

फिल्म की कहानी

कहानी के अनुसार गुजरात के कच्छ गांव में जन्मे करसनदास मूलजी बचपन से ही ‘महिलाएं घूंघट क्यों ओढ़ती हैं?’ या ‘क्या देवता उन की भाषा बोल सकते हैं?’ जैसे सवाल पूछना शुरू करता है. करसन की मां की मौत के बाद उस के पिता करसनदास को बौम्बे (वर्तमान मुंबई) में उस के मामा और विधवा मौसी (स्नेहा देसाई) के पास छोड़ जाते हैं. जहां पढ़लिख कर करसनदास पत्रकार के रूप में दादाभाई नौरोजी (सुनील गुप्ता) जैसे प्रगतिशील पुरुषों के साथ काम करते हुए दादाभाई नौरोजी के अखबार में समाज सुधारक लेख लिखते हैं.

मसलन, वे अपने लेख में विधवा विवाह की वकालत करते हैं. करसनदास मूलजी स्वयं वैष्णव संप्रदाय से हैं. वे धार्मिक व्यक्ति होते हुए भी अंधविश्वास में विश्वास नहीं करते हैं. करसन की सगाई किशोरी (शालिनी पांडे) से होती है. वे किशोरी की पढ़ाई पूरी होने पर उस से शादी करने वाले हैं. किशोरी यदुनाथजी ब्रजरातन महाराज (जयदीप अहलावत) की भक्त है. होली के त्योहार वाले दिन यदुनाथ ब्रजरातन महाराज जी, भगवान कृष्ण को रंग लगाने के बाद होली खेलने का ऐलान करते हैं. उस के बाद वे किशोरी को ‘चरण सेवा’ समारोह के लिए चुनते हैं.

करसनदास हवेली के अंदर किशोरी को यदुनाथ ब्रजरतन महाराज के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख कर हर बाधा को पार कर यदुनाथ व किशोरी तक पहुंच जाता है. मगर उस वक्त किशोरी, जिसे मोक्ष मिलने की आशा है, यदुनाथ के साथ यौन संबंध बनाए बिना करसन के साथ चलने से इनकार कर देती है. यदुनाथ कहते हैं कि वे किसी भी लडक़ी के साथ जबरन कुछ नहीं करते. यदुनाथ, कृष्ण भजन की पंक्ति व गीता के एक श्लोक को संस्कृत में पढ़ कर हिंदी में उस की मनमानी ढंग से व्याख्या करते हुए कहते हैं कि मोक्ष पाने के लिए भगवान को तनमनधन सबकुछ समर्पित करना होता है. तन का समर्पण ही ‘चरण सेवा’ है.

करसन, किशोरी संग विवाह करने से इनकार करने के साथ ही ‘चरण सेवा’ प्रथा पर भी सवाल उठाता है. करसनदास की राय में यह तो नारी का शोषण है. फिर ‘चरण सेवा’ और यदुनाथ ब्रजरतन महाराज के कुकर्म के खिलाफ आवाज उठाने का निर्णय लेता है. यदुनाथ महाराज की ‘चरण सेवा’ के खिलाफ करसन लेख लिखता है, पर दादाभाई नौरोजी अपने अखबार में छापने से मना कर देते हैं. उन की राय में वे ‘बड़ी हवेली’ के पुजारी यदुनाथ के खिलाफ कुछ भी नहीं छापेंगे. तब करसन गुजराती भाषा में ही अपना अखबार ‘सत्य प्रकाश’ निकाल कर उस में पुजारी यदुनाथ ब्रजरतन व ‘चरण सेवा’ प्रथा के विरोध में लगातार लेख छापना शुरू करता है.

करसन अपनी तरफ से समाज को शिक्षित करने की कोशिश करता है, लेकिन उस के समुदाय के लोग महाराज को अपने परिवार की महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध बनाने में कोई बुराई देखने के बजाय उस दिन घर पर खुशी में मिठाई बनाते हैं. इधर यदुनाथ दबाव बनाते हैं, जिस के चलते करसन के पिता भी उसे त्याग देते हैं. सभी दबाव असफल होने के बाद यदुनाथ ब्रजरतन महाराज, अदालत में करसन के खिलाफ 50 हजार रुपए का मानहानि का मुकदमा करते हैं. अदालत में करसन दास को पराजित करने के लिए यदुनाथ ब्रजरतन महाराज ने महिलाओं से कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कराने से ले कर उन्हें अपनी आलोचना करने से रोका. यह बात अदालत के अंदर उजागर होती है. अदालत के अंदर वादी ने 31 गवाह पेश किए, जबकि प्रतिवादी ने 33 गवाह पेश किए. बौम्बे सुप्रीम कोर्ट 5 अप्रैल, 1862 को करसन दास मूलजी के पक्ष में निर्णय देते हुए यदुनाथ ब्रजरतन महाराज पर क्रिमिनल केस करने की बात कही.

पहले 14 जून को फिल्म प्रदर्शित होने वाली थी

यशराज फिल्मस निर्मित व सिद्धार्थ पी मल्होत्रा निर्देषशित फिल्म ‘महाराज’ को नेटफ्लिक्स 14 जून से अपने प्लेटफौर्म पर बिना किसी प्रमोशन व शोरगुल के चुपचाप स्ट्रीम करने वाला था. 13 जून को यशराज फिल्मस ने अंधेरी, मुंबई स्थित अपने स्टूडियो में ही पत्रकारों को बुला कर फिल्म ‘महाराज’ दिखाई. यहां मुंबई में पत्रकार इस फिल्म को देख रहे थे, उसी वक्त गुजरात और राजस्थान में मजबूत जड़ें रखने वाले हिंदू वैष्णव समुदाय, पुष्टिमार्ग संप्रदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाते हुए गुजरात हाईकोर्ट में फिल्म को बैन करने की गुहार लगाई और अदालत ने फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी.

फिल्म देख चुके पत्रकारों को आश्चर्य हुआ कि फिल्म के प्रदर्शन पर रोक क्यों लगाई गई. इन सभी को तो फिल्म में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगा था. हंसी इस बात पर आ रही थी कि सौरभ शाह की जिस पुस्तक ‘महाराज’ को 2013 में पुरस्कृत किया गया, उसी पर बनी फिल्म का विरोध हो रहा है. उधर विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने भी फिल्म को रोकने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया. 13 जून को ही गुजरात के साथ मुंबई की अदालत में भी मुकदमे चले और दोनों जगह इस फिल्म पर रोक लगा दी गई थी.
गुजरात हाईकोर्ट ने 18 जून को फिर सुनवाई करने का आदेश दिया था. यशराज फिल्मस और नेटफ्लिक्स ने अपना पक्ष रखने के लिए मुकुल रोहतगी सहित 26 एडवोकेट की एक फौज खड़ी कर दी. आखिरकार, गुजरात हाईकोर्ट की न्यायाधीष ने 21 जून को फिल्म में कुछ भी अपत्तिजनक न होने की बात कह इसे प्रदर्शित करने का आदेश सुना दिया.

अदालत में सुनवाई के दौरान क्याक्या हुआ?

नेटफ्लिक्स और यशराज फिल्मस की तरफ से पक्ष रखते हुए वरिष्ट वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत से कहा है कि हम इतिहास को बदल नहीं सकते, फिर चाहे वह किसी को पसंद आए या न आए.

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि ब्रिटिश काल की अदालत ने मानहानि मामले का फैसला किया था और हिंदू धर्म की निंदा की थी. उस फैसले में भगवान श्रीकृष्ण के साथसाथ भक्ति गीतों और भजनों के खिलाफ भी गंभीर निंदनीय टिप्पणी की गई थी लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह सब ब्रिटिशकाल में हुआ था.

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि ‘‘याचिकाकर्ता की मांग बिलकुल बेतुकी है.” उन्होंने कहा, “फिल्म को बैन करने और इस के सैंसरशिप सर्टिफिकेट को रद्द करने की याचिकाकर्ताओं की दोनों मांग बेतुकी हैं. याचिकाकर्ता को तो यह भी नहीं पता कि यह फिल्म ओटीटी पर स्ट्रीम होगी, जिस के लिए सैंसर प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं होती. इस याचिका की कार्रवाई पूरी तरह से मनगढ़ंत और आर्टिफिशियल है.”

मुकुल रोहतगी ने आगे कहा, “याचिकाकर्ताओं में से एक अहमदाबाद के बिजनैसमैन हैं. उन्होंने उस किताब के खिलाफ तो कभी कोई कदम नहीं उठाया, जिस पर यह फिल्म आधारित है. या फिर इंटरनैट पर इस विषय पर ढेर सारे कंटैंट हैं, लेकिन उन्होंने वहां भी विरोध में कोई कदम नहीं उठाया. फिल्म बनाना, उस का निर्माण करना या उसे एक स्टेज पर दुनिया के सामने रखना कोई छोटी बात नहीं है. इस में बहुत सारा पैसा और मेहनत लगती है.’’

वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने तर्क देते हुए आगे कहा, ‘‘1862 के मानहानि केस में अदालत ने जो भी फैसला लिया था, वह कानूनी इतिहास है. फिल्म इसी पर आधारित है. अब चाहे हमें वह फैसला पसंद हो या न हो, हम कानूनी इतिहास को मिटा तो नहीं सकते. याचिकाकर्ता को फैसले में इस्तेमाल की गई भाषा पर आपत्ति है पर इस तर्क के लिए आप फिल्म पर तो रोक नहीं लगा सकते. ब्रिटिशकाल में भगत सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानी को फांसी दी गई. यह भी अदालत का फैसला था. जाहिर तौर पर हमें यह पसंद नहीं है लेकिन यह इतिहास का हिस्सा है.’’

‘बैंडिट क्वीन’ पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवाला

मुकुल रोहतगी ने जिरह के दौरान बैंडिट क्वीन फिल्म का भी हवाला दिया. उन्होंने अदालत से कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म में विवादास्पद दृश्यों के बावजूद कलात्मक स्वतंत्रता को बरकरार रखा था. सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में समाज की वास्तविकता को सिनेमा के माध्यम से दिखाने के तर्क को भी स्वीकार किया था.

धार्मिक भावनाओं के आहत होने का आरोप

याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि यदि फिल्म को प्रदर्शित करने की अनुमति दी जाती है तो धार्मिक भावनाएं गंभीर रूप से आहत होंगी. इस से संप्रदाय विशेष के अनुयायियों के खिलाफ हिंसा भडक़ने की संभावना है. मगर सच यह है कि फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है.

फिल्म में नारीशोषण के विरोध के साथ धर्म का महिमामंडन

हकीकत में फिल्म ‘महाराज’ देखने पर एहसास होता है कि यह फिल्म इतिहास के एक पन्ने को उठाते हुए जहां ‘चरण सेवा’ जैसी कुप्रथा का विरोध कर नारी शोषण के खिलाफ बात जरूर करती है, वहीं यह फिल्म हिंदू व सनातन धर्म का महिमामंडन भी करती है. जब करसनदास मूलजी, यदुनाथ ब्रजरतन महाराज के कुकर्मों के बारे में अपने गुजराती अखबार ‘सत्य प्रकाश’ में लेख छापते हैं तो धर्मावलंबियों को गुस्सा दिलाने व उन्हें करसनदास के खिलाफ भडक़ाने के लिए यदुनाथ ब्रजरतन महाराज मंदिर के दरवाजे बंद करा देते हैं क्योंकि उन दिनों हजारों लोग सुबह भगवान कृष्ण की आरती का हिस्सा बनने व कृष्ण के दर्शन करने के बाद ही कुछ खातेपीते थे. तब करसनदास मूलजी ने मंदिर के सामने मौजूद पेड़ के नीचे भगवान कृष्ण की बड़ी तसवीर रख कर उस की आरती कर लोगों से प्रसाद ग्रहण कर खाने के लिए कहता है. अब यहां भगवान का अपमान कहां है? यह तो हिंदू धर्म व कृष्ण भगवान का महिमामंडन ही है. शायद इतनी हिम्मत यशराज फिल्म्स के निर्माताओं की नहीं है कि वे पूरे तौर पर हिंदू या किसी धर्म की भूल-गलतियों की ओर जनता का ध्यान खींच सकें. ‘सरिता’ ने स्वयं 1945 से ही इस तरह के मुकदमों को झेला है जिन में कभीकभार कट्टरपंथी जजों ने कड़ा रुख अपनाया पर अपीलों में हर बात साबित हो गई.

हिंदू धर्म की आड़ में यौनशोषण बंद कहां?

धार्मिक व आध्यात्मिक गुरुओं पर यौनशोषण के गंभीर आरोपों को कभी भी माफ नहीं किया जा सकता. फिल्म में तो 19वीं सदी की सत्य घटना का चित्रण है जबकि यह सब 21वीं सदी में भी लगातार जारी है. आसाराम बापू व उन के बेटे भी धर्म की आड़ में नारियों का यौनशोषण व हत्याओं के मामले में ही जेल के अंदर हैं. तो वहीं ‘डेरा सौदा’ के गुरमीत राम रहीम सिंह भी धर्म की आड़ में अपने कुकर्मों के चलते जेल के अंदर हैं.

कुछ समय पहले फिल्मकार प्रकाश झा धर्मगुरुओं के कुकर्मों की पोल खोलने वाली वैब सीरीज ‘आश्रम’ और ‘आश्रम 2’ भी ला चुके हैं. नेटफ्लिक्स या यशराज फिल्मस को भी ‘महाराज’ में करसनदास मूलजी का किरदार निभा कर अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत कर रहे परफैक्शनिस्ट अभिनेता के रूप मे मशहूर आमिर खान के बेटे जुनैद खान जिस तरह से हिंदू राष्ट्रवादियों के निशाने पर आए, उस से जुनैद खान के कैरियर को नुकसान जरूर हुआ है.

वे पहले से ही भाईभतीजावाद का आरोप झेलते आए हैं. यों भी जुनैद खान अभी अति नौसिखिया अभिनेता हैं. उन्होंने अपने कैरियर की पहली फिल्म में ही इस चुनौतीपूर्ण किरदार को निभाना स्वीकार कर हिम्मती काम किया.

सोशल मीडिया ट्रोलिंग बनाम बौलीवुड

‘महाराज’ को ले कर बहुसंख्यक समुदाय के चंद लोगों ने जिस तरह सोशल मीडिया पर फिल्म ‘महाराज’ की ट्रोलिंग की, उसे प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि भगवा समर्थक बौलीवुड के खिलाफ नाराजगी पिछले एक दशक में कुछ ज्यादा बढ़ी है.

इस के लिए एक तरफ पिछले 10 वर्षों से देश की सरकार का रवैया जिम्मेदार है, तो वहीं कुछ फिल्मकार व उन के प्रचारक भी जिम्मेदार हैं. हर फिल्मप्रचारक अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह सही ढंग से करने के बजाय जबरन फिल्म को ले कर हिंदूमुसलिम कंट्र्रोवर्सी खड़ा करता रहता है जबकि अब तक कंट्र्रोवर्सी से किसी भी फिल्म को फायदा नहीं हुआ है.

क्या मैं गलत हूं

नंदिनी रसोई में बरतनों को बेवजह पटक रही थी. शिवा के लिए नंदिनी का यह व्यवहार नया नहीं था. जब भी जिंदगी में कोई मुश्किल आती थी, नंदिनी अपना गुस्सा ऐसे ही रसोई में निकालती थी.

दोनों बच्चे कर्ण और सिया अभी स्कूल से नहीं लौटे थे. शिवा बहुत देर तक बाहर ड्राइंगरूम में बैठ कर सिगरेट सुलगाता रहा था. उसे लग रहा था कि नंदिनी शायद बाहर आ कर एक बार तो उस से बात करेगी. मगर जब नंदिनी बाहर नहीं आई तो शिवा अपनी कार उठा कर बेवजह सड़कों पर घूमने लगा था.

शिवा को नंदिनी का व्यवहार समझ नहीं आ रहा था. शिवा की जितनी भी ऊपर की कमाई थी, सब का नंदिनी को पता था. तब तो नंदिनी शिवा से कभी कुछ नहीं कहती थी.

हर करवाचौथ पर नंदिनी को शिवा कोई न कोई गहना गढ़वा कर देता था. हर साल गरमी की छुट्टियों में शिवा और उस का परिवार घूमने जाता था. दोनों बच्चे महंगे स्कूलों में पढ़ते थे. नंदिनी कोई अनपढ़, गंवार महिला नहीं थी. उसे अच्छे से पता था कि ये गहने और महंगे शौक़ शिवा के वेतन में पूरे नहीं हो सकते हैं.

मगर नंदिनी तब यह ही बोलती ‘अरे शिवा, तुम क्या कोई अनोखा काम कर रहे हो? सब करते हैं और यह तो सरकारी नौकरी के साथ मिलने वाला एक इंसैंटिव हैं.’

मगर आज जब शिवा औफिस पहुंचा तो पता चला कि उस के ऊपर इन्क्वायरी बैठ गई है. शिवा जब अपने बौस विनोद कपूर के पास गया तो वे बोले, “तुम्हें देखसमझ कर रिश्वत लेनी चाहिए थी. इस में मैं कुछ नहीं कर सकता हूं क्योंकि मेरे साइन तो तुम्हारे अप्रूवल के बाद ही होते हैं.”

शिवा को समझ आ गया था कि इस चक्रव्यूह में वह अकेला है. उस ने आवाज़ को भरसक नरम बनाते हुए कहा, “सर, मगर आप तो सब जानते हैं कि जो भी हर फाइल को पास कराने पर मिलता था, उस में सब का हिस्सा होता था.”

विनोद रूखे स्वर में बोले, “मगर तुम्हारी नौकरी बचाने के चक्कर में मैं खुद को तो मुसीबत में नहीं डाल सकता न.”

शिवा थके कदमों से बाहर निकला. दफ़्तर के सब लोग उसे घूरघूर कर देख रहे थे जैसे उस ने किसी का खून कर दिया हो.

शिवा चिल्लाचिल्ला कर कहना चाहता था कि इस हमाम में सब ही नंगे हैं मगर तुम लोग अब तक परदे से ढके हुए हो.

बाहर रामदीन और सुखपाल आराम से बैठ कर गुटका खा रहे थे. शिवा को देख कर भी वे दोनों चपरासी न खड़े हुए और न ही उन्होंने सलाम ठोका. शिवा को समझ आ गया कि इन्हें भी पता चल गया है.

शिवा को घर जल्दी देख कर उस की पत्नी नंदिनी त्योरियां चढ़ाते हुए बोली, “क्या किसी टूर पर जाना है? इतने थके हुए क्यों लग रहे हो?”
शिवा ने नंदिनी से बुझे स्वर में बोला, “मेरे खिलाफ इन्क्वायरी बैठ गई है. मुझ पर मुकदमा चलेगा तब तक के लिए मुझे सस्पैंड कर दिया गया है.”

नंदिनी बोली, “ओह, क्या होगा हमारा अब? सारी दुनिया रिश्वत लेती है मगर तुम ने ऐसा क्या किया कि पकड़े गए? खर्चे कैसे चलेंगे?

“और शिवा, जब तुम्हें पता था कि ऐसा भी हो सकता है तो क्या जरूरत थी, हम तो कम में भी काम चला लेते,” नंदिनी ऐसे बोलते हुए रसोई में चली गई और बरतनों को पटकने लगी थी.

शिवा यों ही बेवजह घूम रहा था, उसे होश तब आया जब उस की कार घुर्रघुर्र कर के एक मोड़ पर रुक गई. शिवा ने देखा, डीजल खत्म हो गया था. वह ऐसे ही कार में बैठा रहा. मन ही मन शिवा को लग रहा था, कोई तो घर से फ़ोन करेगा.

मगर जब रात के 9 बजे तक कोई फ़ोन नहीं आया तो शिवा ने किसी तरह से कार में डीजल भरवाया और कार घर की दिशा में  मोड़ दी.

जब शिवा घर पहुंचा तो घर पर मौन पसरा हुआ था. शिवा को बहुत तेज़ भूख लग गई थी. सुबह से उस ने कुछ नहीं खाया था. रसोई में लाइट जला कर देखा तो कुछ नहीं मिला. मजबूरीवश शिवा ने बैडरूम की लाइट जलाई और नंदिनी से कहा, “नंदिनी, आज खाना नहीं बनाया क्या?”
नंदिनी अपनी सूजी हुई आंखें मलते हुए बोली, “यहां पर हमारे ऊपर इतनी बड़ी मुसीबत आ गई है और तुम्हें खाने की पड़ी है.”

शिवा गुस्से में बोला, “नौकरी से सस्पैंड हुआ हूं, मरा नही हूं कि खाना ही नहीं बनाया.”

“तुम ने बच्चों को भी भूखा ही सुला दिया है. चलो, जल्दी से पुलाव बना दो.”

शिवा ने बच्चों के कमरे में लाइट जलाई तो देखा दोनों बच्चे कर्ण और सिया जगे हुए थे. सिया अपने पापा को देख कर बोली, “पापा, मम्मी आज बहुत उदास थीं, इसलिए  खाना नहीं  बना पर बिस्कुट खाने के बाद भी बहुत भूख लगी हुई है.”

शिवा ने खुद ही  पुलाव बना लिया था.

शिवा ने नंदिनी से भी कहा, “तुम भी थोड़ाबहुत खा लो, नंदिनी.”

नंदिनी बोली, “मेरे गले से तो नहीं उतरेगा खाना, मुझे तो यह सोचसोच कर फ़िक्र हो रही है कि जब सब को पता चलेगा तो क्या होगा?”

शिवा बोला, “तुम, बस, बच्चों की फ़िक्र करो. किस से क्या कहना हैं, मैं खुद बोल दूंगा.”

खाने के बाद शिवा जब बिस्तर पर लेट गया तो नंदिनी शिवा से बोली, “भैया से कल बात कर लेना. उन की पहचान में कुछ अच्छे वकील भी हैं.

मुझे तो सपने में भी भान नहीं था कि तुम दूसरों का गला काट कर ये पैसे लाते हो.”

शिवा सबकुछ सुनता रहा और उस का सिर जब दर्द से फटने लगा तो वह बाहर ड्राइंगरूम में बैठ गया.

रात  के 2 बजे जब शिवा अंदर गया तब तक नंदिनी सो चुकी थी.

सुबह अचानक नंदिनी की बड़बड़ से शिवा की आंखें खुलीं.

“बच्चे स्कूल चले गए हैं, तुम कब तक पड़े रहोगे?”

शिवा उबासी लेते हुए बोला, “मैं कल पूरी रात ठीक से सो नहीं पाया था. एक कप चाय बना दो.”

शिवा निरुद्देश्य पहले इधरउधर घूमता रहा और फिर एक वक़ील से सलाह लेने पहुंच गया था.

वकील से शिवा को कोई आशाभरा जवाब नहीं मिला था. शिवा का बिलकुल मन नहीं था कि वह नंदिनी के मायके वालों से  मदद ले.”

जब शिवा 3 बजे घर पहुंचा तो देखा नंदिनी के भाईभाभी और मातापिता आए हुए हैं. शिवा ने नंदिनी की तरफ शिकायती नज़रों से देखा. पर नंदिनी नज़रे चुराते हुए रसोई में चली गई. नंदिनी के बड़े भाई शिवा से बोले, “अब आगे क्या सोचा है?”

शिवा बोला, “क्या सोचूंगा? जब तक मामला कोर्ट में हैं, मैं कुछ नहीं कर सकता हूं. आधा वेतन मिलता रहेगा, अब उस से ही काम चलाना पड़ेगा.”

नंदिनी की मां रोंआसी सी बोली, “अरे मेरी बेटी कैसे काम चलाएगी?”

नंदिनी का बड़ा भाई बोला, “शिवा, थोड़ा स्मार्टली काम किया होता तो आज यह नौबत न आती. कल मैं तुम्हें सुखदेव के पास ले चलूंगा. उन्होंने ऐसे बहुत से केस निबटाए हैं.”

नंदिनी के पिता बोले, “अरे भई, मैं तो पहले से ही कहता हूं कि ऊपर की कमाई  हराम होती है. अब भुगतो, कोर्टकचहरी के चक्कर अलग.”

नंदिनी रोते हुए बोली, “पापा, मैं ने तो कभी शिवा से कुछ नहीं मांगा. मुझे तो पता ही नहीं था कि वे ये सब करते हैं.”

शिवा नंदिनी को जलती आंखों से देख रहा था.

नंदिनी के घर वालों के जाने के बाद शिवा बोला, “नंदिनी, तुम ने झूठ क्यों बोला?”

“क्या तुम्हारे ये महंगे शौक मैं अपने वेतन में पूरा कर पाता. नहीं, कभी नहीं. तुम्हें और तुम्हारे घर वालों को यह अच्छे से पता था मगर अब जब मेरे ऊपर इन्क्वायरी बैठ गई है तो तुम सब पल्ला झाड़ रहे हो.”

नंदिनी भी रूखे स्वर में बोली, “मर्द तो वो होता है जो बाहर की बातें, बाहर ही सुलटा ले.”

“अब जब घर में तुम यह समस्या ले कर आए हो तो मैं भी तो किसी से कहूंगी न. इस में तुम अपनी ईगो पर क्यों ला रहे हो? एक बार भैया से मदद ले लोगे तो कोई छोटे नहीं हो जाओगे.”

शिवा को अच्छे से पता था, नंदिनी से बहस करना बेकार हैं. वह कार ले कर बाहर निकल गया.

कार चलाते हुए वह मन ही मन सोच रहा था कि इतना तो अभी भी है उस के पास कि अगर एक साल  वेतन न भी मिले तो भी वह अपना और अपने परिवार का एक साल तो आराम से खर्च चला सकता है. मगर हां, ऐशोआराम पर थोड़ी कटौती करनी पड़ेगी. यह सोचतेसोचते उस ने घर की दिशा में कार दौड़ाई तो देखा, महक तेज़ कदमों से चली जा रही थी.

शिवा ने कार रोकते हुए कहा, “महक, घर ही जा रही हो न, कर्ण और सिया को पढ़ाने? मैं भी वहीं जा रहा हूं. चलो, कार में बैठ जाओ.”

महक शिवा के दोनों बच्चों को ट्यूशन देती थी. दो साल पहले तक महक और उस का पति संकल्प सामने वाले फ्लैट में रहते थे. संकल्प किसी  फ्रौड में पकड़ा गया था और तब से गायब  ही था. महक और संकल्प  ने लव मैरिज की थी, इसलिए महक एकदम अकेली  पड़  गई थी. उस मुश्किल समय में शिवा ने ही महक का साथ दिया था. महक की एक स्कूल में नौकरी दिलवाई, फिर महक के लिए एक छोटे से घर को किराए पर भी अपनी गारंटी पर दिलवा दिया था.

महक कितनी भी मुश्किल दौर से गुजरी थी मगर उस के होंठों पर सदा ही मुसकान बनी रहती थी. सब से बड़ी बात, महक ने कभी भी शिवा से कोई आर्थिक मदद नहीं ली थी. पूरे 2 साल तक महक चट्टान की तरह खड़ी रही, मगर कभी भी उस ने विक्टिम कार्ड नहीं खेला. न महक ने कभी संकल्प को किसी बात के लिए दोष दिया. जिंदगी ने जो भी दिया उसे स्वीकार कर के महक आगे बढ़ती चली गई थी. पिछले एक साल से महक ट्यूशन भी देती थी जिस से उस के खाली समय का सदुपयोग तो होता ही था, साथ ही, महक को अतिरिक्त आर्थिक लाभ भी हो जाता था.

महक के बारे में शिवा अधिक नहीं जानता था मगर महक के जिंदगी जीने के नजरिए को  शिवा  बेहद पसंद करता था.

कार से उतरते हुए महक ने सौंधी मुसकान के साथ शिवा को धन्यवाद दिया.

शिवा भी महक के पीछेपीछे चला गया. महक दोनों बच्चों को बड़ी लग्न और मेहनत से पढ़ाती थी.

महक जैसे ही पढ़ा कर जाने लगी, नंदिनी दनदनाती हुई आई और बोली, “महक, अगले महीने से हम इतनी फ़ीस नही दे पाएंगे.”

महक ने प्रश्नवाचक नज़रों से शिवा की तरफ देखा तो नंदिनी बोली, “थोड़ी निजी बात है.”

महक ने अपने घुंघराले बालों को कानों के पीछे करते हुए कहा सौंधी हंसी के साथ कहा, “कोई बात नहीं, अगर एकआध महीने की बात हैं तो मैं एडजस्ट कर लूंगी. सिया और कर्ण मेरे अपने बच्चे ही तो हैं.”

नंदिनी कंधे उचकाते हुए बोली, “न जाने कितना समय लगेगा.”

महक जाने लगी तो शिवा उस के पीछेपीछे जाते हुए बोला, “आइए, मैं आप को छोड़ देता हूं.”

महक बोली, “अरे आप क्यों इतनी तकलीफ उठा रहे हैं?”

शिवा बोला, “क्योंकि मैं अपनी नौकरी से सस्पैंड हो चुका हूं. खाली हूं, यों ही घूमता रहता हूं, तुम्हें ही छोड़ देता हूं. कम से कम तुम जल्दी तो पहुंच जाओगी. जब तक केस चलेगा तब तक मैं समाज और अपने परिवार की नज़रों में अपराधी हूं.”

महक थोड़ा सा अचकचा गई मगर फिर संभलते हुए बोली, “अरे, तो क्या हुआ, उतारचढ़ाव तो जिंदगी में आतेजाते रहेंगे.”

शिवा उदास हंसी हंसते हुए बोला, “हां, मगर नंदिनी के हिसाब से मैं ही दोषी हूं इन सब चीज़ों का.”

महक बोली, “एक बात पूछूं अगर आप को बुरा न लगे?”

शिवा बोला, “जरूर पूछो?”

महक झिझकते हुए बोली, “क्या आप सच में दोषी हैं?”

शिवा बोला, “हां हूं, मगर इस बात के लिए क्या अब फांसी पर चढ़ जाऊं? मैं अपने परिवार को सब सुविधाएं देना चाहता था. मेरे परिवार में सब को पता था, मगर तब सब लोग मज़े कर रहे थे. आज हरकोई मुझे दोष दे रहा है.”

महक धीमे स्वर में बोली, “आप खुद को दोष मत दें, अगर कोई समस्या आई है तो उस का कोई न कोई समाधान भी अवश्य होगा.”

शिवा व्यंग्य करते हुए बोला, “अरे, तुम भूल गई हो कि मैं ही ग़लत हूं.”

महक बोली, “गलत आप नहीं हैं, आप की सोच है. समस्या आई है तो स्वीकार करें और उस पर काम करें, खुद को या दूसरों को दोषी मानने से इस का समाधान नहीं हो पाएगा.”

महक ने शिवा के लिए कौफी बनाई और अपने एक परिचित वकील से बात भी करवाई. करीब 2 घंटे बाद जब शिवा महक के घर से निकला तो वह खुद को हलका महसूस कर रहा था.

शिवा पूरी रात महक के बारे में सोचता रहा और न जाने रात के किस पहर में उस की आंख लग गई थी.

अब शिवा का यह रोज़ का नियम हो गया था कि वह सुबह उठ कर बच्चों को तैयार करता, फिर नहाधो कर वकीलों के चक्कर काटता मगर कोई नतीजा नहीं निकल रहा था. मगर अब इन वकीलों के चक्कर में महक भी शिवा के साथ खड़ी रहती थी. इस मुश्किल समय में नंदिनी ने नहीं बल्कि महक  शिवा के साथ खड़ी थी.

अगर शिवा रात में नंदिनी के करीब भी आने की कोशिश करता तो नंदिनी उसे झिड़क देती, “तुम्हें शर्म नहीं आती, अभी भी तुम्हें ये सब सूझ रहा है.”

शिवा कैसे अपनी पत्नी को यह समझाता कि मर्द के शरीर की क्षुधा ये सब नहीं जानती है. शिवा को अपने ऊपर ही बेहद गुस्सा आता मगर वह क्या करे, अनजाने में ही वह महक की तरफ खिंचा जा रहा था. आज भी महक के निकलने के बाद शिवा कार उठा कर चल पड़ा और महक से बोला, “महक, तुम्हें घर पर ड्रौप कर देता हूं.”

महक मुसकराते हुए बैठ गई और शिवा से उस के कोर्ट केस के बारे में बात करने लगी.

कार से उतरते हुए महक ने शिवा से कहा, “आज आप खाना खा कर ही जाइए.”

खाना बेहद स्वादिष्ठ और प्यार से परोसा गया था. शिवा को महक में एक ऐसा साथी नज़र आने लगा जो उसी की तरह अकेला है.

शिवा महक से बोला, “महक, क्या तुम्हें भगवान से शिकायत नहीं होती कि तुम्हें इतना संघर्ष करना पड़ रहा है?”

महक बोली, “मुझे तब यह शिकायत होती अगर मेरे अंदर हिम्मत और साहस का अभाव होता. बुजदिल लोग ही अपनी परिस्थिति की ज़िम्मेदारी दूसरों पर डाल देते हैं. मैं बहुत खुश हूं, जो भी है जैसा भी है, मैं डटी हुई हूं.”

शिवा लालसाभरी नज़रों से देखते हुए महक से बोला, “क्या कभी अकेलापन नहीं लगता तुम्हें?”

महक बोली, “शिवा, मैं इतनी मजबूर न पहले थी और न अब हूं कि एक छोटा सा तूफान मुझे तिनके की तरह उड़ा कर किसी के भी घर के आंगन में पटक दे.”

शिवा न जाने कैसे भावुक हो उठा और उस ने महक की गोद में सिर रख दिया, “महक, मुझे भी अपनी तरह बहादुर बना दो.”

महक  भी शिवा को खुद से दूर नहीं कर पा रही थी. शिवा ने महक का जब साथ दिया था जब कोई उस के लिए नहीं था. आज महक की बारी थी. यहीं नहीं, महक ने अपनी जमापूंजी भी शिवा के सामने रखते हुए कहा, “केस तो अभी लंबा चलेगा, तुम इन पैसों से छोटामोटा व्यापार डाल लो.”

महक का विश्वास देख कर शिवा अभिभूत हो उठा. धीरेधीरे ही सही, शिवा का व्यापार 2 साल में इतनी कमाई देने लगा जितनी शिवा को अपनी नौकरी से होती थी.

अब नंदिनी और शिवा के रिश्तेदारों का भी मुंह सीधा हो गया था. नंदिनी के तानों में अब पहले जैसा जहर नहीं रह गया था. मगर शिवा का मन अब अपने सब रिश्तों के लिए बर्फ़ की तरह ठंडा हो गया था.

जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आ गई थी मगर शिवा खुद को अब महक से अलग नहीं कर पा रहा था. शिवा अब, बस, रातभर सोने के लिए ही अपने घर जाता था.

आज रात को नंदिनी ने फिर से पारिवारिक अदालत लगाई हुई थी. तमाम गवाह शिवा के खिलाफ गवाही दे रहे थे. महक का चरित्र हनन हो रहा था और महक को चालू औरत का संज्ञान दिया जा चुका था.

शिवा को जब सफाई देने के लिए रिश्तों के कठघरे में बुलाया गया तो शिवा ने बिना किसी ग्लानि के कहा, “हां, मै गलत हूं मगर, बस, एक सामाजिक व्यवस्था और पारिवारिक ढांचे के नजरिए से. जब मैं एकदम अकेला था तब उस चालू औरत ने ही मुझे सहारा दिया था, मुझे जीने के लिए उपाय सुझाया था. जब आप लोगों ने मुझे अपराधी मान ही लिया है तो मैं बिना किसी कोर्ट मुकदमे के नंदिनी को इस रिश्ते से आजाद करता हूं. मगर पूरे परिवार की जिम्मेदारी मेरी ही है.”

नंदिनी लगातार दोषारोपण कर रही थी. बच्चे भी शिवा को जलती नजरों से देख रहे थे.

जब सांझ के धुंधलके में शिवा ने महक के घर का दरवाजा खटखटाया तो उस ने बिना किसी सवाल के उसे अपना लिया था. इस रिश्ते का न कोई नाम था न ही कोई सामाजिक मान्यता पर इज्जत और विश्वास के धागे से बंधा हुआ यह रिश्ता अपनी नींव इन खोखले रिश्तों के बीच धीरेधीरे  बना रहा था.

मौनसून सैक्स ऐसे बनाएं मजेदार

बारिश का मौसम अपने साथसाथ एक अलग खुशी का माहौल ले कर आता है. इस सीजन में ऐंजौय करने के अलगअलग तरीके होते हैं. कुछ लोगों को बारिश के मौसम में लौंग ड्राइव पर जाना अच्छा लगता है, तो कुछ को घर बैठ कर चटपटी चीजें खाना अच्छा लगता है.

मगर क्या आप को पता है कि बारिश का मौसम कपल्स के मन में एक अलग तरीके का प्यार जगा देता है और ऐसे में वे बारबार सैक्स करना क्यों पसंद करते हैं?

मौसम ही कुछ खास है

दरअसल, गरमियों के मौसम के बाद जब आसमान में काले बादल छाते हैं तो हर इंसान बस यही सोचता है कि ऐसे मौसम में उसे अपने लाइफ पार्टनर के साथ होना चाहिए. गरमियों में कपल्स ठीक से सैक्स तक नहीं कर पाते क्योंकि गरमी से लोग इतने परेशान हो चुके होते हैं कि वे कुछ भी ऐंजौय नहीं कर पाते पर मौनसून सीजन आते ही इंसान के दिल में एक रोमांस की लहर दौड़ने लगती है.

फायदे भी कम नहीं

मौनसून सीजन में सैक्स करने के कई फायदे हैं. बारिश के मौसम में जब आप दिल से खुश होते हैं तो आप अपने पार्टरन की तरफ ज्यादा आकर्षित रहते हैं और मौसम का लुत्फ उठाते हुए एकदूसरे को जीभर कर प्यार दे पाते हैं. मौनसून में जरूरी है कि आप अपने पार्टनर के साथ ज्यादा से ज्यादा क्वालिटी टाइम स्पैंड करें और एकदूसरे के और भी ज्यादा नजदीक आएं. ऐसे में आप की सैक्स लाइफ को एक जबरदस्त किक मिल सकती है.

यह खयाल जरूर रखें

जरूरी है कि मौनसून में आप इस बात का खास खयाल रखें कि आप को अपने प्राइवेट पार्ट्स को जितना हो सके उतना ड्राई रखना चाहिए. बारिश में गीलेपन की वजह से फंगल इंफैक्शन और रैशेज का खतरा ज्यादा रहता है तो ऐसे में प्राइवेट पार्ट्स को हमेशा ड्राई रखना चाहिए.

सर्व फैमिली शांति यात्रा: मोबाइल हर मर्ज की दवा

आजकल राष्ट्रीय स्तर पर बात को तोड़मरोड़ कर पेश करने का आरोप लगाने का चलन कुछ ज्यादा ही हो गया है. जिसे देखो वही कहने के बाद कहता फिरता है कि उस की बात को तोड़मरोड़ कर पेश किया गया है. उस के कहने का मतलब वह नहीं था जिसे जानबूझ कर पेश किया जा रहा है, उस की छवि खराब करने को. अब ऐसों से कौन पूछे कि जिस की छवि ही न हो, वह खराब कैसे होगी?

एक समय था जब घरघर में बात तोड़मरोड़ कर पेश की जाती थी, एकदूसरे के सामने एकदूसरे की छवि खराब करने को, एकदूसरे पर अपनी भड़ास निकालने को. और फिर घर में शुरू हो जाता था पारिवारिक वार. और अंत में तब न चाहते हुए भी बहू को सास के सामने थकहार कर माफी मांगते कहना पड़ता था कि हे सासुमां, मेरे कहने का मतलब वह नहीं था जो मैं ने कहा था. देवरानी ने मेरे कहे को जानबूझ कर तोड़मरोड़ कर आप के सामने पेश किया है. इसलिए देवरानी की ओर से मैं माफी मांगती हूं.

अब ज्योंज्यों घर के हर सदस्य के हाथ को इंटरनैट से सुसज्जित नयापुराना मोबाइल इजीली अवेलेबल हो रहा है, त्योंत्यों घर का हर बालिगनाबालिग मैंबर अपनेअपने फोन पर व्यस्त रहने लगा है. कोई अपने पूरे होशोहवास खो इस कमरे में ट्विटरिया रहा है तो कोई उस कमरे में यूट्यूब पर यूट्यूबिया रहा है. कोई फेसबुक पर टकाटक फेसबुकिया रहा है तो कोई मैसेंजर पर मैसेंजरिया रहा है. बिन काम के व्यस्त रहना आज फैशन हो गया है. बिन काम के भी व्यस्त रहना आज की कला है. जिधर देखो, जिस की भी बात करो, किसी के पास सिर खुरचने तक का वक्त नहीं.

ऐसे में अब घर में न किसी की छवि खराब होने का खतरा, न किसी की बात को तोड़मरोड़ कर पेश करने में समय की बरबादी. न किसी के पास किसी की चुगली करने की फुरसत. न ही किसी के पास किसी की चुगली सुनने का वक्त. न किसी के पास की गई चुगलियों का विश्लेषण करने का फालतू टाइम.

हर मोबाइल वाला हाथ अब न तो मोबाइल टच करने के सिवा कुछ और टच करना चाहता है, न किसी से कुछ कहना चाहता है और न किसी की कुछ सुनना चाहता है. बस, चुपचाप अपनेअपने मोबाइली काम में रमा हुआ फैमिली, फैमिली मैंबर्स की ओर से पूरी तरह वैरागी हो.

अब तो बीसियों बार खुद मोबाइल पर जमे हुए एकदूसरे से रोटी खाने तक को निवेदन करता पड़ता है पर किसी को न भूख, न प्यास. मोबाइल पर व्यस्तता में उस की बैटरी डैड हो गई तो मोबाइल को कोसते उसे चार्जिंग में लगा कर भी फोन पर व्यस्त हो गए. अपनी बैटरी डैड हो जाए तो हो जाए पर मोबाइल की बैटरी हरगिज डैड नहीं होनी चाहिए, भाई साहब. मोबाइल का डाटा खत्म हो गया तो तत्काल दूसरे से उधार ले लिया. यह कह कर कि कल जो उस का अचानक डाटा खत्म हो जाए तो वह चुका देगा ब्याज समेत.

गए वे दिन जब घर में सुलहशांति के लिए पूजापाठ करवाने का विधान था. घर में शांति के लिए गणेश का पूजन होता था. अब घर में शांति घर में पूजापाठ करवाने से नहीं आती, घर के सदस्यों के हाथों में मोबाइल आने से आती है. ऐसे में किसी को जो अपने घर में शांति बनाए रखनी हो तो उन को मेरी विनम्र सलाह है कि वे अपने परिवार के हर सदस्य को रोटी, कपड़ा उपलब्ध करवाने के बदले जितनी जल्दी हो सके उन्हें मोबाइल उपलब्ध करवाएं. उन के लिए चाहे मोबाइल किस्तों पर ही क्यों न लेना पड़े. घर की शांति मोबाइल के लिए लोन की किस्तें चुकाने की परेशानी से कहीं बड़ी होती है. तय मानिए, तब उन के घर में शर्तिया शांति का वास होगा. कलहक्लेश का नाश होगा.

अब विश्वशांति के लिए कोई वार्त्ता नहीं, डाटा, मोबाइल जरूरी है.

आज भयंकर से भयंकर 8 प्रहर 25 घंटे नोकझोक वाले घर में शांति बनाए रखने का जो सब से सशक्त माध्यम कोई है तो बस, मोबाइल है. इसलिए हैसियत न होने पर भी घर में हर सदस्य को मोबाइल दिलाइए और घर में स्वर्ग सी शांति पाइए, घर को घर में बैठेबैठे स्वर्ग बनाइए.

शांति के सिवा आज जिंदगी में और चाहिए भी क्या? लोग तो शांति के लिए क्याक्या नहीं करतेफिरते हैं, अज्ञानी कहीं के… ‘पौकेट चंगा तो मोबाइल में गंगा.’

सांझ: पतिपत्नी के संबंधों को उजागर करती कथा

अपने चश्मे को रूमाल से साफ करने के बाद टैलीविजन के साउंड को भी बढ़ा लिया था उस ने पर जब इतने से भी तसल्ली न हुई तो अपनी कुरसी को खींच कर टैलीविजन के बिलकुल नजदीक सरक आया था वह, जैसे अचानक ही अपने देखनेसुनने की क्षमता पर से उस का यकीन खत्म हो गया हो.

हालांकि उम्र की इस दहलीज पर देखनेसुनने की ताकत थोड़ी कम जरूर हो जाती है, यादें भी धुंधली पड़ जाती हैं पर इतनी भी नहीं कि उसे वह पहचान ही न पाता.

इस वक्त अपनी टीवी स्क्रीन पर वह जो कुछ भी देखसुन रहा था, शायद उस पर यकीन नहीं कर पा रहा था.

‘‘डा. अनीता. हां, हां अनीता. हां, बिलकुल अनीता ही,’’ इस टीवी एंकर ने अभीअभी यही नाम पुकारा है. लेकिन, वह तो उस प्लेन क्रैश में…

सहसा उस की आंखों में आंसू आ गए. खबर तो उसे यही मिली थी कि अमेरिका के लिए उड़ान भरने वाला वह प्लेन, जिस में डा. अनीता भी सवार थी, क्रैश हो गया.

डा. अनीता, जिसे वह अब तक मरा हुआ समझ रहा था, अचानक उसे टीवी स्क्रीन पर देख वह अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पा रहा था.

‘‘डा. अनीता सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक पहचान हैं. एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें हिमाचल प्रदेश के छोटे से छोटे गांव, कसबे के लोग अपने मसीहा के रूप में पहचानते हैं. आज का हमारा यह कार्यक्रम, ‘जीना इसे ही कहते हैं’ में हम आप की मुलाकात कराने जा रहे हैं, हमारी आज की मेहमान डा. अनीता से.

‘‘डा. अनीता, हमारे इस कार्यक्रम में आप का स्वागत है.’’

‘‘जी, शुक्रिया.’’

हलके रंग की साड़ी में बेहद संभ्रांत दिखने वाली अधेड़ उम्र की एक महिला को टीवी एंकर डा. अनीता कह कर संबोधित कर रही थी.

टीवी कार्यक्रम में अनीता द्वारा बोले जा रहे एकएक शब्द उस के मन को बेचैन कर रहे थे. सालों से शांत पड़े सरोवर में, जैसे किसी ने कंकड़ फेंक दिया हो, जिस में से उठती हुई तरंगें उसे पीछे, बहुत पीछे धकेल रही थीं, जिस का केंद्र उस का अतीत था.

यादों के पन्ने एक बार पलटे तो पलटते चले गए. साथ ही, जीवंत हो उठे उन पन्नों में अंकित वे चित्र, जिन पर वक्त ने अपने पहियों की धूल डाल दी थी.

यादों की आंधियां चलीं तो वह किसी पेड़ से गिरे पत्ते की भांति यहां से वहां अतीत की टेढ़ीमेढ़ी गलियों में भटकने को मजबूर हो गया.

देवदार के पत्तों से ढके हुए रास्तों से होता हुआ वह रोहतांग पास, लेह, मनाली जा पहुंचा था, जहां प्रकृति इस वक्त खुद को चांदी के आभूषणों से सुसज्जित किए हुए थी. प्रकृति की इस सुंदर आभा को पहाड़ों की ओट से छिप कर सूरज भी चुपकेचुपके निहार रहा था और उस पर मोहित हो कर स्वर्ण लुटा रहा था. जहां भी नजर जाती, सभी ओर बर्फ ही बर्फ. उन पर पड़ती सूरज की किरणें एक अलग ही दृश्य उपस्थित कर रही थीं.

प्रकृति के इस अनुपम सौंदर्य पर मुग्ध होता हुआ वह अपने ही विचारों में खोया था कि आवाज आई, ‘गाड़ी अभी आगे नहीं जा सकेगी, आगे का रास्ता बंद है. रास्ता खुलने में कुछ घंटे लग सकते हैं.’

ड्राइवर ने अचानक गाड़ी का इंजन बंद कर दिया.

उस ने अपने इर्दगिर्द नजर दौड़ाई, गाडि़यों की एक लंबी कतार थी, सभी रास्ता खुलने का इंतजार कर रहे थे. लड़कियों का एक दल आगे खड़ी बस से उतर कर उछलकूद मचाते हुए एकदूसरे पर बर्फ का गोला फेंक रही थीं. कुछ देर तक तो वह गाड़ी में ही बैठा बाहर के दृश्यों को निहारता रहा, लेकिन थोड़ी ही देर बाद वह भी गाड़ी से उतर कर बाहर निकल आया था वहां के दृश्यों को अपनी आंखों में कैद करने के लिए.

बाहर काफी ठंड थी, इतनी कि पेड़, पहाड़, पौधे सभी सफेद चादरों में दुबके हुए थे. लेकिन, इतनी ठंड में भी वहां के खूबसूरत नजारों का लुत्फ हर कोई उठाना चाहता था.

बर्फ की सफेद चादर में लिपटे हुए पेड़ों के पत्ते कहींकहीं ऐसे मालूम होते थे मानो प्रकृति के इन सुंदर नजारों को देखने के लिए इन पेड़ों ने भी अपनेअपने मुख से सफेद चादर के कुछ हिस्सों को थोड़ा सा सरका लिया है.

‘उई मां, हाय, मर गई,’ किसी के चीखने की तेज आवाज पर वह मुड़ कर देखता है. तसवीर खींच रही एक लड़की का पैर बर्फ में फिसल गया था. वह लड़की एक हाथ से कैमरे को थामे बर्फ में फिसलती हुई सहारे के लिए दूसरे हाथ से किसी पेड़ की टहनी को पकड़ने की कोशिश कर रही थी.

उस ने लपक कर उस लड़की का हाथ थामा और अपनी ओर खींच लिया था. लड़की की बड़ी काली आंखों ने उस की ओर कृतज्ञता से देखा और पलभर बाद वह खुद को संभालती हुई उस से थोड़ी दूरी पर जा कर खड़ी हो गई.

एक पल के लिए तो दोनों एकदूसरे को खामोशी से देखते रहे, लेकिन दूसरे ही पल वह लड़की झक कर अपनी टूटी हुई सैंडल को ठीक करने में लग गई. थोड़ी देर तक तो वह वहीं खड़ा उस लड़की को अपलक देखता रहा, परंतु अगले ही पल उसे महसूस हुआ कि अकारण ही खड़े रह कर किसी को यों ही चुपचाप देखते रहना बेवकूफी है. इसलिए खुद के खड़े रहने का कोई औचित्य न समझ कर वह वहां से जाने के लिए अपने कदम दूसरी दिशा में आगे बढ़ाने ही वाला था कि तभी लड़की ने अपनी गरदन उठा कर उस की तरफ देखते हुए कहा, ‘मेरी जान बचाने के लिए शुक्रिया.’

‘अगर आज आप वक्त पर मौजूद नहीं होते तो मालूम नहीं मेरे साथ क्या हो जाता, इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद मेरी हड्डीपसली एक हो जानी थी.’ इतना कहते हुए उस के होंठ मुसकरा उठे.

‘लेकिन आप को यह जोखिम उठाने की जरूरत क्या थी, यह जगह तो किसी के लिए भी खतरनाक साबित हो सकती है, यहां इतनी फिसलन जो है.’

‘मैं उस खूबसूरत नजारे को अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहती थी,’ लड़की ने अपनी उंगलियों के इशारे से पहाड़ी के नीचे के उस खूबसूरत नजारे की ओर इशारा किया.

‘तो, आप फोटोग्राफर हैं?’

‘नहीं, मैडिकल फाइनल ईयर की स्टूडैंट हूं. तसवीरें खींचना मेरा शौक है.’

‘आप का नाम?’

‘मुझे जानने वाले, मेरी सहेलियां, मु?ो प्यार से अनु बुलाती हैं. वैसे, मेरा नाम अनीता है. छुट्टियों में मैं अपने घर मनाली जा रही हूं.’

‘और, मुझे मेरे करीबी दोस्त राजू बुलाते हैं. वैसे, मेरा नाम राजीव है. मैं छुट्टियों में यहां घूमने आया हूं.’

‘कितने दिन का प्रोग्राम है.’

‘2-4 दिनों का है.’

‘इतने कम समय में आप भला क्या ही घूम पाएंगे. यहां की खूबसूरती देखने के लिए तो एक हफ्ते का समय भी कम है.’

‘यह तो मैं अभी यहां इस वक्त खड़ा देख ही रहा हूं.’

‘क्या?’ उस ने आश्चर्य से उस की ओर देखा

‘खूबसूरती, मेरा मतलब है ये नजारे. सच में कितने खूबसूरत, कितने हसीन हैं, हैं न?’

अनीता की आंखें कुछ पल के लिए झुकी और हौले से उठ कर राजीव के चेहरे पर टिक गईं.

‘आप बातें काफी अच्छी बना लेते हैं. लेखक हैं?’ अनीता ने जिज्ञासाभरी नजरों से देखा.

‘नहीं, अभीअभी एमबीए की पढ़ाई पूरी की है. दिल्ली में मेरे पापा का बिजनैस है. उसे ही संभालना है. वैसे, मैं यहां हफ्तेभर रुकने को तैयार हूं, लेकिन शर्त है कि आप मेरी गाइड बनेंगी.’

‘मुझे आप की शर्त मंजूर है. वैसे, आप मनाली में कहां ठहरने वाले हैं?’

‘होटल ली ग्रीन, माल रोड.’

‘फिर तो आप मेरे घर के बिलकुल ही नजदीक हैं. मेरा घर वहां से कुछ ही दूरी पर है.’

मनाली में साथ बिताया गया पल अनीता और राजीव के जीवन में प्रेम का शिलान्यास साबित हुआ, जिस पर दांपत्य जीवन की इमारत खड़ी हुई, लेकिन यह इमारत महज कुछ ही सालों में ढह गई.

‘‘बाबूजी, खाना लगा दूं?’’ घर के नौकर ने उस के कमरे के दरवाजे पर आ कर जब आवाज लगाई तो वह वर्तमान में लौट आया. घड़ी की ओर नजर दौड़ाई, रात के 9 बज रहे थे.

‘‘नहीं, अभी नहीं, अभी भूख नहीं है. दिवाकर आ गया क्या?’’ सवाल पूछते हुए उस ने अपनी गरदन दरवाजे की ओर घुमाई.

‘‘नहीं,’’ नौकर ने दरवाजे से ही उत्तर दिया, ‘जबकि मालूम है कि साहब बाहर से ही खाना खा कर देररात तक लौटते हैं, फिर भी आदत से मजबूर हैं. एक ही सवाल हर रोज पूछते हैं,’ नौकर मन ही मन भुनभुनाता हुआ वहां से चला जाता है.

‘खाना समय पर खा लेते तो किचन के काम से मेरी भी छुट्टी हो जाती. आज तक तो बापबेटे को कभी डाइनिंग टेबल पर साथ बैठे देखा नहीं, फिर भी बेटे का इंतजार खाने के समय रोज ही करते हैं,’ किचन के दूसरे कामों को निबटाते हुए रामदीन बड़बड़ाता जा रहा था.

‘‘हिमाचल प्रदेश के दुर्गम पहाड़ी स्थानों में बिना किसी बुनियादी सुविधा के स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं लोगों तक पहुंचना काफी चैलेंजिंग रहा होगा, काफी हिम्मत और हौसले की जरूरत होती है, बिना किसी मोरल सपोर्ट के यह संभव नहीं. अनीताजी, हमारे दर्शक आप से जानना चाहेंगे उन लोगों के बारे में जिन्होंने आप को प्रेरित किया, आप के हौसले को बढ़ाया.’’

‘‘मैं सब से पहले जिक्र करना चाहूंगी मेरे दोस्त, डाक्टर विनय का जो अब इस दुनिया में नहीं हैं और जिन्होंने उस समय मेरा साथ दिया था, जब मेरे अपनों ने…’’

‘क्या, डाक्टर विनय मर चुका है?’ डाक्टर विनय का नाम सुनते ही अचानक उस का चेहरा मुरझा गया. उस की आंखों में एक अजीब तरह का भाव उतर आया, कुरसी पर ही आंखें मूंदे काफी देर तक जाने क्याक्या सोचता रहा वह, वहां बैठेबैठे जब थोड़ी बेचैनी महसूस होने लगी उसे तो उठ कर अपने कबर्ड में से छिपा कर रखी हुई शराब की बोतल को निकाल लाया, ढक्कन खोल लिए, शराब उस के होंठों को छू भी नहीं पाई थी कि घर के नौकर रामदीन की तेज नजर उस तक पहुंच गई. रामदीन किसी बाज की तरह उस के हाथों से बोतल को झपट कर छीन लिया है.

‘‘बस, एक घूंट रामदीन,’’ वह नौकर के आगे मिन्नतें करने लगा.

‘‘नहीं, बिलकुल भी नहीं. एक घूंट भी नहीं, मुझे तनख्वाह आप की देखभाल के लिए मिलती है. रामदीन अपने काम में धोखाधड़ी जरा भी नहीं करता, चाहे तो आप मुझे इस के लिए नौकरी से निकाल दो.’’ फिर थोड़ी देर बाद नरम अंदाज में समझते हुए रामदीन ने कहा, ‘‘आखिर क्यों बाबूजी, आप अपनी ही जान के दुश्मन बने हुए हो? डाक्टर ने आप को कितनी बार सम?ाया, फिर भी आप नहीं समझते.

‘‘आप ने अपनी दवा भी अभी तक नहीं खाई है,’’ रामदीन पास ही टेबल पर पड़ी दवाओं के ढेर को कुछ देर तक ध्यान लगा कर देखने के बाद अपने सिर को खुजलाते हुए उन दवाओं में से एक को उठा कर उलटपलट कर देखने लगा, फिर कुछ सोचते हुए एक गोली निकाल कर राजीव को पकड़ा दी.

उस की हालत रिटायरमैंट के करीब पहुंचे सरकारी दफ्तर के उस बाबू की तरह हो गई थी जिस की सुनता तो कोई भी नहीं, सुनाता हर कोई था. जब जिस का दिल करता, उसे उपदेश सुना जाता. एक वह जमाना भी था, जिसे उस ने इसी जिंदगी में देखा था जब यही लोग उस के आगेपीछे घूमा करते थे.

किसी की हिम्मत उस के सामने मुंह खोलने तक की भी नहीं होती थी, उस के आगे खड़े रहने की कोई हिम्मत तक नहीं जुटा पाता था. सब वक्त का खेल है, कितनी ही कंपनियों का वह मालिक था. रुपएपैसों की तो बरसात होती थी. दौलत की ताकत उस के सिर चढ़ कर बोलती थी. इसी दौलत की ताकत पर ही तो वह तलाक के बाद अपनी पत्नी से बेटे की कस्टडी छीन लेने में कामयाब हुआ था. उस ने अपनी पत्नी के चरित्र पर कीचड़ ही नहीं उछाली थी, बल्कि उसे एक लापरवाह मां साबित करने में भी कामयाब हो गया था.

अनीता ने सच्चे दिल से राजीव को प्यार किया था, तभी तो वह राजीव के साथ अपने रिश्ते को 4 सालों तक बचाने की कोशिश करती रही, जबकि राजीव ने सिर्फ अपने अहंकार को तवज्जुह दी.

वह अनीता से एक ऐसी नितांत समर्पित प्रेयसी की अपेक्षा करता रहा जो सिर्फ उस के पौरुष के अहं की तुष्टि करे. लेकिन, अनीता बजाय उस के पौरुष के अहं की तुष्टि करने के, उस के हर सहीगलत पर उस से बहस करती, जबकि राजीव की यह कोशिश होती कि अनीता उस के हर आदेश का सिर्फ सिर झुका कर पालन करे, उस के सभी सहीगलत फैसलों का समर्थन करे बजाय अपने विचारों को उस के सामने रखने के.

राजीव को सिर्फ अनीता की खूबसूरती से प्यार था. उस ने उस से शादी भी की तो बस उस की खूबसूरती से वशीभूत हो कर. राजीव अनीता के रूप में ऐसी खूबसूरत गुडि़या को चाहता था जो उस के ड्राइंगरूम में पड़े शोकेस की शोभा अन्य कीमती वस्तुओं की तरह बढ़ा सके, जबकि अनीता एक पढ़ीलिखी अपनी इज्जत के प्रति जागरूक आधुनिक सोच की थी. अनीता अपने प्रति होने वाले अन्याय का जम कर प्रतिकार करती. वह राजीव के वर्चस्व को हर मोड़ पर चुनौती देती, जिस के कारण उन दोनों के बीच टकराव उत्पन्न होने लगे. आएदिन उन के बीच झगड़े और क्लेश होते रहते.

राजीव को अब धीरेधीरे अनीता की डाक्टरी के पेशे से भी चिढ़ होने लगी थी. परंतु, उस से भी कहीं ज्यादा उसे अनीता का डाक्टर विनय के साथ मिलनाजुलना, उस के साथ उस का हंसनाबोलना, उठानाबैठना उसे कतई पसंद नहीं था. वह उस पर तरहतरह से पाबंदिया लगाने की कोशिश करता रहता.

‘तुम अस्पताल से जल्दी आ जाया करो. देखो, दीपू अब बड़ा हो रहा है, उसे मां की कमी महसूस होती है.’

‘क्या उसे पिता की कमी महसूस नहीं होती? तुम भी बिजनैस के सिलसिले में महीनों बाहर मत रहा करो.’

‘घर बैठ कर बिजनैस नहीं संभाला जाता, इतना बड़ा एम्पायर, इतनी बड़ी संपत्ति, सबकुछ ऐसे ही नहीं हासिल हो गए, तुम्हें बिजनैस के बारे में जानकारी ही क्या है? तुम अपने इस दो कौड़ी के डाक्टरी के पेशे को छोड़ क्यों नहीं देतीं, तुम्हारी कमाई से घर के खर्चे तो छोड़ो, घर के नौकरों के वेतन भी पूरे नहीं हो सकते. आखिर किस चीज की कमी होने दी है मैं ने तुम्हें. रुपएपैसे, नौकरचाकर, गाड़ीबंगले, गहनेकपड़े, सुखसुविधा की सारी चीजें, सबकुछ तो दिया है मैं ने, फिर भी यह अस्पताल का नाटक किस लिए. खुद को देखो, मरीजों के बीच रह कर खुद भी मरीज दिखने लगी हो,’ बौखलाहट और गुस्से में राजीव सिर्फ अपनी कहे जा रहा था.

उस की बातें अनीता के मन को ही नहीं, उस के आत्मसम्मान को भी ठेस पंहुचा रही थीं. लेकिन अपने पौरुष अहंकार और दौलत के नशे में डूबा राजीव अनीता की मानसिक पीड़ा को सम?ा पाने में पूरी तरह नाकाम था.

राजीव की बातों से आहत अनीता को जब अस्पताल से नर्स का फोन आया है तो वह कुछ ही क्षण पहले प्राप्त हुई इस पीड़ा को, राजीव की बातों से छलनी हुए मन को, उन तमाम कुठाराघातों को जो कि उस के आत्मविश्वास को क्षतविक्षत करने के लिए किए गए थे, को दरकिनार कर अस्पताल के लिए निकल पड़ी.

‘अभी कुछ घंटे पहले ही तो वहां से आई हो,’ राजीव ने नजरें तिरछी करते हुए कहा.

‘इमरजैंसी है. एक डाक्टर का कर्तव्य, उस की जिम्मेदारियां किसी बिजनैसमैन की समझ के बाहर की बात है,’ अनीता ने भी ठीक राजीव के अंदाज में ही कटाक्ष करते हुए उसे आईना दिखा दिया.

‘मुझे सब पता है, तुम्हारे और डाक्टर विनय के बीच क्या चल रहा है, इमरजैंसी का बहाना कर तुम उस से मिलने जा रही हो.’ राजीव की हालत अभी बिलकुल किसी खिसियानी बिल्ली की तरह हो गई थी.

राजीव को गुस्से में बड़बड़ाता छोड़ अनीता अस्पताल के लिए निकल गई, क्योंकि उस के लिए अभी इन सब बातों से ज्यादा जरूरी उस का पेशेंट था.

आज अस्पताल में उसे एक इमरजैंसी सर्जरी करनी थी, लेकिन वह अपना ध्यान ठीक से लगा नहीं पा रही थी. किसी तरह उस ने सर्जरी की और औपरेशन थिएटर से बाहर आ कर अपने हाथ धोए, चेहरे पर ठंडे पानी के छींटे मारे, थकान से उस का बुरा हाल हुआ जा रहा था. अपने केबिन में आ कर कौफी मंगवाई ही थी कि टैलीफोन की घंटी बज उठी.

‘मेमसाब, दीपू बाबा चुप ही नहीं हो रहे हैं. मम्मामम्मा पुकार कर लगातार रोए जा रहे हैं. लगता है, उन्हें बुखार भी है,’ घर की नौकरानी ने एक सांस में ही कह दिया तो अनीता अपनी कौफी वहीं टेबल पर छोड़ घर की ओर भागी.

घर पहुंच कर अनीता सीधे दीपू के कमरे में गई, लेकिन वह शांति से अपने बिस्तर पर सोया हुआ था. उस ने उस के माथे को छू कर देखा, उस का माथा ठंडा था, बुखार नहीं था उसे, फिर प्यार से उस के माथे को चूम कर, उस के कमरे से चुपचाप बाहर निकल आई.

दीपू के कमरे से बाहर आ कर अनीता नौकरानी को आवाज लगाई, ‘दीपू तो सोया हुआ है. क्या हुआ था उसे?’ नौकरानी नजरें नीचे किए चुपचाप खड़ी रही.

‘मैं कुछ पूछ रही हूं? क्या हुआ था दीपू को?’

‘ओ, जी मैम, साहब ने मुझ से फोन करने को कहा था.’

‘ठीक है, तुम जाओ,’ नौकरानी पल्लवी वहां से चली गई.

‘राजीव, राजीव,’ गुस्से से चिल्लाती हुई अनीता अपने कमरे में आई, ‘अब तुम इस हद तक नीचता पर उतर आओगे, तुम मेरी सम?ा के परे हो गए हो, मेरी बरदाश्त की सीमा अब खत्म हो रही है. पहले तुम ड्राइवर से जासूसी करवाते रहे, अब बच्चे का इस्तेमाल कर रहे हो, तुम इतना नीचे गिर जाओगे, मैं ने कभी सोचा न था.’

उस दिन अनीता के सब्र का बांध सचमुच टूट चुका था. अब मन ही मन उस ने दृढ़ निश्चय कर लिया था. पूरी तरह से खोखले हो चुके इस रिश्ते को वह खत्म कर देगी. उस ने तलाक का नोटिस राजीव को भेज दिया.

राजीव भी कहां शांत बैठने वाला था. अनीता द्वारा भेजे गए तलाक के नोटिस से अपने पौरुष के अहंकार पर लगी चोट का बदला उस ने उस के चरित्र पर कीचड़ उछाल कर, उसे बदनाम कर के ले लिया. फिर भी उस का मन न भरा तो उस ने उस पर एक लापरवाह मां होने का ठप्पा लगा दिया और बच्चे की कस्टडी भी उस से छीन ली.

बुरे से बुरे सपने में भी अनीता ने इस दिन की कल्पना नहीं की होगी. उस के बच्चे की कस्टडी तक उस से छीन ली गई थी.

हालांकि अपने चरित्र पर उछाले गए कीचड़ की उसे परवा न थी, क्योंकि किसी स्त्री के मनोबल को तोड़ देने की, अपनी ही नजरों में नीचे गिरा देने की, खुद को अपराधी समझने के लिए बाध्य कर प्रायश्चित्त की आग में जलते रहने के लिए छोड़ देने की, समाज के इस पुराने फार्मूले को वह बखूबी समझती थी. वह सबकुछ छोड़ हमेशा के लिए अमेरिका चली जाना चाहती थी तो सिर्फ इस वजह से, ताकि वह अपने दिल पर लगे जख्मों को मिटा सके. अपनी जिंदगी की नई तरीके से नई जगह पर शुरुआत कर सके.

तलाक के कुछ महीने बाद से ही वह अपनी अमेरिका जाने की प्लानिंग में जुट गई थी, कहां, कैसे, क्या करना है, सबकुछ तय कर लिया था. वक्त आने पर वह वीजा प्राप्त करने में भी सफल हो गई.

अब अमेरिका जाने के लिए प्लेन का टिकट उस के हाथ में था. लेकिन अनीता से बच्चे की कस्टडी छीन कर भी राजीव को चैन नहीं मिला था. अपने खरीदे हुए आदमियों द्वारा उस की हर बात की जानकारी प्राप्त कर लेता था.

अनीता की अमेरिका जाने वाली बात उसे मालूम हो गई थी. उस ने उस के टिकट की डिटेल भी किसी तरह हासिल कर ली थी.

अगले दिन यह खबर आई कि अमेरिका जा रहा वह प्लेन रास्ते में ही कहीं क्रैश हो गया और उस में सवार सभी यात्री मारे गए.

अनीता की मौत की खबर पा कर राजीव को भी काफी सदमा लगा. धीरेधीरे उसे अपनी गलतियों का एहसास होने लगा था, प्रायश्चित्त की आग में वह अब जलने लगा था. नतीजा यह कि अब उस का मन अपने बिजनैस के काम में न लगता. धीरेधीरे कुछ कंपनियों को उसे बंद तक करना पड़ा. दौलत का नशा जिस रफ्तार से चढ़ा था, उसी रफ्तार से उतरने भी लगा.

अमेरिका जाने के एक दिन पहले डाक्टर विनय अनीता से मिलने आया था.

‘तो अनीता, आखिर तुम ने हार मान ही ली, तभी तो तुम यहां से भाग जाना चाहती हो?’

‘नहीं, ऐसा नहीं है.’

‘ऐसा नहीं है, तो और क्या है? ऐसा कर के तुम उन लोगों की बातों को सच कर देना चाहती हो जिन लोगों ने तुम पर घिनौने आरोप लगाए हैं.’

‘नहीं, ऐसा बिलकुल भी नहीं है. मैं सिर्फ अपने अतीत से पीछा छुड़ाना चाहती हूं, जब तक यहां रहूंगी, दुखी होती रहूंगी, मेरा अतीत मुझे कभी भी आगे नहीं बढ़ने देगा, मुझे सिर्फ शांति चाहिए.’

‘तुम समझती हो, भागने से तुम्हें शांति मिलेगी, यह तुम्हारा भ्रम है, शांति भागने से नहीं बल्कि जीवन के उद्देश्य को सुंदर बना कर मिलेगी. मेरे पास तुम्हारे लिए प्रपोजल है. मैं नहीं चाहता तुम्हारी जैसी काबिल, योग्य, मेहनती डाक्टर यहां से पलायन करे, तुम अपनी सेवा उन लोगों को दो जिन्हें सब से ज्यादा तुम्हारी जरूरत है. मैं तुम पर कोई दबाव नहीं बना रहा. आगे तुम्हारा जो भी फैसला है, मुझे मंजूर होगा.’

डाक्टर विनय भी संयोग से हिमाचल प्रदेश का ही रहने वाला था. उस दिन डाक्टर विनय की बातों ने उस के अमेरिका जाने के फैसले को ही नहीं बदला, बल्कि उस के जीवन के उद्देश्य को बदल कर एक नई अनीता को जन्म दिया था.

अनीता अपना दुखदर्द भूल कर हिमाचल प्रदेश के छोटे से गांव में लोगों तक जा कर स्वास्थ्य सेवाएं देने लगी. साथ ही, लोगों के घरों में जाजा कर महिलाओं को उन के अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भी करती. वह ऐसी जगहों पर पहुंचती, जहां कोई डाक्टर तो क्या, आम इंसान भी उन कठिन रास्ते को पार करने में कदम पीछे कर लेता. ऐसी जगहों पर स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाना उस के लिए आसान काम नहीं था.

डाक्टर विनय एक सच्चे दोस्त की तरह काफी सालों तक अनीता का साथ निभाता रहा, लेकिन एक दिन ऐसा हुआ, जब हिमाचल प्रदेश में प्रकृति के प्रकोप ने कहर बरपाया. वहां के जख्मी लोगों को जीवनदान देते हुए डाक्टर विनय ने अपनी जान गंवा दी. लेकिन, डाक्टर अनीता ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी. अपने डाक्टरी के पेशे को त्याग और सेवा का पर्याय बना कर जीवन की मुश्किल राहों को पार करती रही.

राजीव बहुत देर तक टीवी स्क्रीन के पास बैठा अनीता द्वारा बताई जा रही, उस की जीवन से जुड़ी सभी बातों को ध्यान से सुन रहा था. साथ ही, अपने अतीत के पन्नों को भी पलटता रहा. उस के वश में होता तो वह उन पन्नों को ही अतीत की किताब से फाड़ देता, उन अक्षरों को मिटा देता, जिस की लेखनी की काली स्याही के धब्बों ने उस के हाथों को ही नहीं, उस के अतीत को भी बदरंग बना दिया था. लेकिन जीवन की किताब ही ऐसी होती है जिस के अनचाहे पन्नों को न तो फाड़ा जा सकता है और न ही उस लेखनी को मिटाया जा सकता है.

राजीव दर्द में डूबता जा रहा था. उसे अपने हर कहे, हर किए पर अफसोस हो रहा था. अचानक उसे लगा कि वह सांस नहीं ले पा रहा है. वह सांस लेना चाह रहा था, लेकिन उसे ऐसा लगा जैसे सांसें खींचने में उसे काफी दिक्कत हो रही है. सीने में भी जकड़न महसूस होने लगी उसे.

अपनी कुरसी से उठ कर दो कदम आगे की ओर बढ़ना चाहा, लेकिन, उसे अपने पैरों में सुन्नपन सा महसूस हुआ. बमुश्किल कुछ कदम ही चल पाया होगा कि चक्कर खा कर गिर पड़ा. ‘‘र… र, रामदिन,’’ मुंह से बस इतनी ही आवाज निकली और आंखों के आगे अंधेरा छा गया.

‘‘मि. राजीव, क्या आप हमें सुन पा रहे हैं,’’ उस के कानों में बहुत दूर से यह आवाज आती सुनाई दे रही थी.

‘‘देखिए, आप धीरेधीरे अपनी आंखें खोलने की कोशिश करें.’’ वह अपनी आंखें खोलने की कोशिश करने लगा और खुद को किसी औपरेशन थिएटर में पाया. उस की आंखों के सामने डाक्टर अनीता के साथ कुछ अन्य डाक्टर भी खड़े थे.

‘‘राजीव, अब आप कैसा महसूस कर रहे हैं? क्या आप हमें देख पा रहे हैं? हमें सुन पा रहे हैं,’’ उस ने धीरे से हां में अपना सिर हिलाया.

‘‘गुड, आप का एक बहुत बड़ा औपरेशन हुआ है. हम ने तो हार मान ली थी. सच में आप बहुत किस्मत वाले हैं. संयोग से डाक्टर अनीता जैसी काबिल डाक्टर हमारे शहर में एक सैमिनार अटैंड करने आई हुई थीं. डाक्टर बत्रा के पास इन का नंबर था. उन्होंने इन से संपर्क साधा और आप की डिटेल भेजी. आप की केस हिस्ट्री देखते ही बिना देरी किए ये फौरन यहां पहुंच गईं. इन्हीं की देखरेख में आप का इतना जटिल औपरेशन कामयाब हुआ. आप की जान बच गई, वरना आप की जान बचाना हम सब के वश की बात नहीं थी.’’

‘‘ठीक है फिर.’’

‘‘आप को कुछ देर के लिए औब्जर्वेशन में रखा जाएगा.’’ राजीव एकटक अनीता की ओर देखे जा रहा था. उस की आंखों से लगातार बहती आंसुओं की धारा ने अनीता की आंखों को भी नम कर दिया था, जिसे अनीता ने वहां मौजूद दूसरे डाक्टरों से नजरें बचाते हुए धीरे से पोंछ लिया था.

राजीव को औब्जर्वेशन रूम में शिफ्ट कर दिया गया था, जहां उसे ग्लूकोज चढ़ाया जा रहा था.

‘‘सिस्टर, यह मैडिसिन आप तुरंत मंगवा लीजिए,’’ अनीता राजीव की वर्तमान स्थिति को देखने के लिए वहीं खड़ी रह जाती है, तभी राजीव अनीता की हथेलियों को धीरे से अपने हाथों में थामते हुए, किसी बच्चे की भांति फफक कर रो पड़ा.

अनीता ने अब तक जिन आंसुओं को नियंत्रित कर रखा था, भावनाओं के वेग को वह भी अब और ज्यादा सहन न कर सकी, अनीता की आंखों से भी आंसुओं की अविरल धारा बह निकली.

क्षमा हृदय का सब से महान गुण होता है और फिर यह क्षमा ऐसे व्यक्ति के लिए जो प्रायश्चित्त की आग में जल रहा हो, डाक्टर अनीता जैसी विशाल हृदय की स्वामिनी के लिए कोई मुश्किल काम नहीं था.

दूर कहीं पहाड़ों की गोद में सूरज पूरे दिन की तपिश के बाद किसी थके हुए मुसाफिर की तरह सुस्ता रहा था. पहाड़ों की गगनचुंबी ऊंचाइयों ने सूरज को बौना कर दिया था. चहचहाते पंछियों का झुंड अपने बसेरे की ओर लौट रहा था. सांझ सिर्फ लंबी, अंधेरी रातों के आने का सूचक ही नहीं होती, बल्कि दिन और रात के मिलन की खूबसूरत बेला भी होती है.

बहू आप के बिगड़े बेटे को सुधारने वाली मशीन नहीं

लड़का चाहे कितना ही निकम्मा और गैरजिम्मेदार क्यों न हो, उस की शादी एक सुशील और संस्कारी लड़की से करने की खोज शुरू हो जाती है, जो शादी के बाद उसे सुधार दे. जरा सोचिए, जिस लड़के को 25-30 साल की उम्र तक उस के मातापिता नहीं सुधार पाए, उसे एक ऐसी लड़की कैसे सुधार सकती है, जो उसे जानती तक नहीं.

शादी कोई सुधारगृह नहीं है

आज भी हमारे समाज में अगर कोई लड़का गैरजिम्मेदार प्रवृत्ति का होता है, तो उस के लिए एक ही बात कही जाती है, “इस की शादी कर दो, सुधर जाएगा.” समाज का शादी को सुधारगृह के नजरिए से देखने के कारण एक लड़की को कई चुनौतियों व परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिस का दुष्परिणाम वैवाहिक संबंध का टूटना, कानूनी और हिंसात्मक कदम के रूप में सामने आता है, जो बाद में पूरे परिवार के पछतावे का कारण बनता है. आजकल जिस तरह से बेटियों का पालनपोषण किया जा रहा है, उन में कुछ भी गलत सहन करने की क्षमता नहीं है. वैसे भी, यह कैसी सोच है कि अगर लड़का नशा करता है, कुछ काम नहीं करता है, तो उसे सुधारने के लिए उस की शादी करवा दो.

ऐसी सोच वाले लोग

ऐसे लोग अपनी सोच और इस निर्णय के परिणाम से अनजान होते हैं और आने वाली लड़की की जिंदगी के बारे में नहीं सोचते. क्या बहू बन कर आने वाली कोई बेटी नहीं होती? जिस बिगड़े लड़के को सुधरना होता है, उस के लिए मांबाप, रिश्तेदार और पड़ोसियों के ताने बहुत होते हैं. उसे किसी अच्छीखासी लड़की के साथ विवाह के बंधन में बांध कर उस के सुधरने की उम्मीद करना बेकार सोच और गलत निर्णय है.

एक अनुभव

कीर्ति (बदला हुआ नाम) की शादी को एक साल हुआ है. पति राजीव के मातापिता जानते थे कि उन का बेटा बिगड़ा हुआ है. वह शादी से पहले भी अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रहा था और गलत संगत में था. फिर भी, उस के मातापिता ने कीर्ति से शादी करवा दी यह सोच कर कि घरपरिवार की जिम्मेदारियां पड़ेंगी तो वह सुधर जाएगा. पत्नी सुधार देगी. लेकिन जैसेजैसे कीर्ति के सामने राजीव की सचाई सामने आने लगी, कीर्ति ने राजीव और उस के परिवार को उन के गलत निर्णय का मजा चखाने व अपनी आगे की जिंदगी सुधारने का फैसला किया. उस ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ सारे सुबूत इकट्ठा किए और कोर्ट में केस दायर कर दिया. अब पूरा परिवार जेल की हवा खा रहा है.

पहले पेरैंट्स अपने बेटे को सुधारें, फिर शादी के बारे में सोचें

‘शादी के बाद लड़का सुधर जाएगा’ यह जुमला कह कर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेने वाले पेरैंट्स के कारण लड़कियों की तकलीफें बढ़ जाती हैं. शादी के बाद ऐसी लड़कियों पर पैसे कमाने का प्रैशर बढ़ जाता है. बच्चे के जन्म के बाद तो समस्याएं और बढ़ जाती हैं. बेटा आप का है, तो उसे सुधारने की जिम्मेदारी भी आप की है. लड़के के पेरैंट्स को बचपन से बेटे को सही आदतें और संस्कार सिखाने चाहिए, महिलाओं की इज्जत करना सिखाना चाहिए. जब तक आप का बेटा कमाता नहीं, तब तक उस की शादी न करें. पहले बेटे को इस लायक बनाएं कि वह शादी की जिम्मेदारी उठा सके, उस के बाद ही उस के रिश्ते की बात शुरू करें.

बहू से बिगड़े बेटे को सुधारने की उम्मीद आखिर क्यों?

क्या बात हुई कि बेटा आप का बिगड़ा हुआ है, लेकिन उस की शादी कर के आप एक ऐसी लड़की की जिंदगी खराब कर रहे हैं, जिस की कोई गलती नहीं है. वह कैसे उसे जिंदगीभर बरदाश्त करेगी? इसलिए बिगड़े बेटे को सुधारने की अपनी समस्या भूल कर भी आने वाली लड़की के सिर पर न डालें, इस का खमियाजा सास के साथ पूरे परिवार को भुगतना पड़ सकता है. पूरा परिवार फंस सकता है, जेल जा सकता है. किसी भी लड़की को बिगड़ी औलाद को सुधारने की मशीन समझना सरासर गलत है. लड़के के मांबाप को यह सोचना चाहिए कि यदि उस लड़की की जगह उन की खुद की बेटी होती, तो क्या वे ऐसे बिगड़े लड़के से उस की शादी करते? हर लड़की के शादी को ले कर कुछ अरमान होते हैं. वह भी शादी के बाद अपना जीवन खुशहाली से बिताना चाहती है, लेकिन जब किसी बिगड़ैल लड़के के साथ वह शादी के बंधन में बंध जाती है, तो उस के सारे सपने चकनाचूर हो जाते हैं. और जब वह बदला लेने पर आती है, तो सब का जीवन दूभर हो जाता है. अगर लड़के में कोई योग्यता नहीं है कि वह अपना घर चला सके, तो उस की शादी का खयाल भी न करें. अगर लड़की के मांबाप भी बिगड़ैल लड़कों से बेटी की शादी इस सोच के साथ करते हैं कि वह बाद में सुधर जाएगा, तो वे भी कम दोषी नहीं होते.

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