दहेज में लोगों को कार, फ्रिज, वाशिंग मशीन, एअरकंडीशनर व और भी जाने क्याक्या मिलता है पर हमें एक अदद सास और साला मिला था. पत्नी ने पहली ही रात को रो गा कर हम से मनवा लिया था कि उस की मां और उस का छोटा भाई हमारे साथ ही रहेंगे. पत्नी पर अपनी उदारवादी छवि बनाने के चक्कर में मुझे उस की यह बात विष की तरह हलक के नीचे उतारनी पड़ी. फिर दिल में दहेज कानून का भी डर समाया था कि पत्नी की हां में हां न मिलाई तो वह दहेज मांगने का हथियार न चला दे, लिहाजा, अपनी इज्जत बचाने में ही अपनी खैर समझी और पत्नी से सास व साले साहब को घर में रहने का निमंत्रण भिजवा दिया था.
पत्नी ने तब खुशी के मारे हमें अपनी बांहों में भर लिया. हमें लगा कोई मादा अजगर ने हमें दबोच लिया है. अजगर जिस तरह अपने शिकार को निगलता है उसी तरह इस प्रेम के चलते हम भी धीरेधीरे बरबाद होने वाले थे.
हम ठहरे दफ्तर के बाबू और दफ्तर भी ऐसा जहां ऊपरी कमाई होती ही नहीं है. हमारे पास जन्ममरण पंजीयन करने का काम है. मरने वाला क्या देगा और जिंदा व्यक्ति तो वैसे ही हमें खाने को दौड़ता है.
अपने घर का बजट 1-2 माह तो किसी तरह से खींच लिया, लेकिन 3-4 माह के बाद ही हमें लगा कि या तो हम आत्महत्या कर लें या साससाले को जहर दे दें. लेकिन हम थोडे़ अहिंसावादी व्यक्ति हैं, जियो और जीने दो में विश्वास करते हैं, सो दोनों काम हम से नहीं हो सके और इस जुगाड़ में लग गए कि किस तरह इन दोनों मुसीबत से मुक्ति पाएं और चैन से अपना जीवन जी सकें.