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छोटे शहरों में बड़े मकान  

लौट रहा  जमींदारों का युग

अब गांव से बाहर आ कर शहरों में जमींदारी दिखाने का चलन बढ़ गया है. इस वजह से बड़ेबड़े मकान बन रहे हैं. बड़े मकानों के बनने से शहरों में जमीन की कीमतें बढ़ रही हैं जबकि सामान्य लोगों को रहने के लिए किफायती दामों में मकान नहीं मिल पा रहे हैं.

आजादी के बाद देश में जमींदारी उन्मूलन कानून लागू किया गया. इस के जरिए जमींदारों की जमीन को सरकार ने ले लिया और जमीन का पट्टा उन लोगों के नाम किया गया जिन के पास जमीन नहीं थी. जमींदारों के साथ ही साथ राजाओं और रियासतों के साथ भी ऐसा ही किया गया. इस के पीछे सोच यह थी कि देश में रहने वालों के बीच समानता का भाव रहे.

आजादी के 70 सालों बाद अब फिर जमींदारी युग वापस सामने खड़ा हो गया है. इस से शहरों में रहने वालों में अब गैरबराबरी का भाव आ गया है. लोग शहरी और जमींदार शहरी के बीच में बंट गए हैं. जमींदार शहरी को लगता है कि शहर में होने वाली हर घटना और बुराई की जिम्मेदारी सामान्य शहरी की है. शहरों में 2 वर्ग हो गए हैं, एक छोटे घरों वाले सामान्य लोग, दूसरे बड़े घरों वाले जमींदार टाइप के लोग.

आज के दौर में शहरों में रहने वालों के पास बड़ीबड़ी कोठियां हो गई हैं. शहरों में लोगों को मकान उपलब्ध कराने वाले विकास प्राधिकरणों ने इस व्यवस्था को बनाए रखने में पूरी भूमिका अदा की है. इस के तहत शहरों में 3 हजार से 5 हजार वर्ग फुट के प्लौट से ले कर उच्च आयवर्ग (एचआईजी), मध्य आयवर्ग (एमआईजी), निम्न आयवर्ग (एलआईजी) और दुर्बल आयवर्ग (ईडब्लूएस) श्रेणी में मकान बनाए गए. इन श्रेणियों का विभाजन ही आयवर्ग के हिसाब से किया गया, जिस से मकान में रहने वाले की हैसियत को समझने के लिए उस के मकान के टाइप को ही देखना पड़ता है. जैसा मकान का टाइप, वैसी उस की हैसियत.

शहरों में अब घरों के हिसाब से लोगों की हालत समझी जाती है. जिन के पास बड़े मकान हैं वे खुद को पुराने जमाने का जमींदार ही मानते हैं. शहरों की जमीन महंगी होती जा रही है. ऐसे में रहने के लिए अपार्टमैंट ही उपलब्ध हो रहे हैं. अपार्टमैंट में भी रहने के लिए फ्लैट बैडरूम के हिसाब से मिलते हैं. आमतौर पर एक से 2 बैडरूम ज्यादा लोकप्रिय हैं. कई लोग 3 बैडरूम वाले फ्लैट भी पसंद करते हैं. अपार्टमैंट में भी अब ‘पैंट हाउस’ बनने लगे हैं जो जमींदारी के भाव को दिखाते हैं.

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शहरों के रहनसहन से जमींदारी प्रथा साफ दिखती है. गांव में दिखने वाली जमींदारी प्रथा अब शहरों के मकानों में दिखने लगी है. यह देश के किसी एक शहर की बात नहीं है. देश की राजधानी दिल्ली से जुड़े शहरों नोएडा और फरीदाबाद से ले कर लखनऊ, मेरठ, आगरा, भोपाल, पटना, मुंबई, अहमदाबाद सहित तमाम शहरों में यह बदलाव साफ दिखता है. ऐसे में अब छोटे शहरों में जमींदारों सा माहौल देखने को मिलता है.

महलों जैसे गेट

छोटे शहरों में बनने वाले बड़बड़े मकानों में सब से पहले ऊंचीऊंची बाउंड्रियां बनाई जाती हैं. इस के बाद उन में बड़ेबड़े अलगअलग डिजाइन वाले लोहे के मजबूत गेट लगते हैं. कई बार बाउंड्री वाल के ऊपर लोहे के कंटीले तार लगते हैं. ऐसे घरों को दूर से देख कर अलग सी अनुभूति होती है. घर के अंदरबाहर बड़ीबड़ी चारपहिया गाडि़यां खड़ी होती हैं.

कई मकानों में गेट के बाहर गेटमैन के खड़े होने के लिए जगह भी बनाई जाती है. यह पूरी तरह से शहरों में जमींदारी प्रथा को दिखाता है. गांव में जमींदार की पहचान उस के बड़े से घर और खेती की जमीन से होती थी. शहरों में जमींदार की पहचान बड़े मकान से होती है. जिन शहरों में अंदर के इलाकों में जमीन नहीं है, वहां लोग शहर के बाहरी हिस्से में बड़ी जमीन ले कर बड़े मकान बना रहे हैं.

आर्किटैक्ट प्रज्ञा सिंह बताती हैं, ‘‘शहरों में अब बड़े मकानों का प्रचलन बढ़ रहा है. यह पूरी तरह से स्टेटस सिंबल हो गया है. इस तरह का रसूख दिखाने वालों में बड़े कारोबारी, ठेकेदार और नेता प्रमुख होते हैं. इन के घरों में घर के सदस्यों के साथ ही साथ सुरक्षा व्यवस्था में लगे लोग भी होते हैं. कई बार ऐसे तमाम लोेग पुलिस सुरक्षा भी ले लेते हैं. जिन को पुलिस सुरक्षा नहीं मिलती, वे लोग निजी सुरक्षा एजेंसी से लोगों को लेते हैं. मकान में उन के रहने की जगह भी अलग से बनानी पड़ती है. इस के साथ ही साथ घरों के अंदर का डिजाइन ऐसा होता है कि दूर से वह पुराने समय की हवेली का लुक दे. इस की वजह यही है कि लोग अब शहरों में जमींदारों का रहनसहन दिखाना चाहते हैं.’’

सुरक्षा के बड़े उपाय

जिस तरह से जमींदार के यहां सुरक्षा के लिए वाचमैन, गेटमैन, नौकर, माली, और घरेलू नौकरों की फौज होती थी वैसे ही शहरों में रहने वाले नए जमींदारों के घर पर भी कई सारे नौकर होते हैं. नौकरों की यह फौज बताती है कि घर की देखभाल सरल नहीं होती है. घर की आधुनिक सुरक्षा के लिए कैमरे तक की व्यवस्था भी यहां होती है. नौकरों के साथ ही साथ इन घरों में बड़ी नस्ल वाले कुत्ते भी पाले जाते हैं.

घरों के एक हिस्से में किचन गार्डन होता है. दूसरे हिस्से में फलदार पेड़ लगे होते हैं. कई घरों में टैरेस गार्डन भी होता है. प्रज्ञा कहती हैं, ‘‘मकान की भव्यता को दिखाने के लिए पेड़ के साथ झरने भी बनाए जाते हैं. मकान के ज्यादातर हिस्सों में पत्थर का प्रयोग होता है. मकान के तैयार होने में टाइल्स की जगह पर पत्थरों का प्रयोग होने लगा है.’’

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मकान में पत्थर के अलावा लकड़ी और फाइबर का प्रयोग बढ़ गया है. आज के समय में कोई भी अपने मकान को भव्य बनाने के लिए कुछ भी अनोखा कर सकता है. अब सभी कुछ संभव है. पहले इस तरह के मकान राजमिस्त्री ही बना दिया करते थे. अब आर्किटैक्ट से ले कर इंटीरियर डिजाइनर तक मकान बनाने में काम करते हैं. मकान बनाने का काम ठेकेदार करता है. ऐसे में अब घर बनवाने में मकान के मालिक की मेहनत कम हो गई है. जमींदार टाइप के दिखने वाले मकानों के आसपास पार्क और चौड़ी सड़कें होती हैं. मकान को दूर से देख कर ही लग जाता है कि यह मकान शहर के सामान्य मकानों से अलग है. ऐसे में बड़े मकान अब नए जमींदारों की पहचान बन गए हैं.

छोटे शहरों में दिखावा बहुत अधिक हो गया है. ऐसे में अगर एक मकान बड़ा है तो दूसरा आदमी भी यही प्रयास करता है कि उस का मकान भी बड़ा हो. ऐसे में जमींदारी प्रथा अब खत्म होने के बजाय, फिर से दिखने लगी है. बड़े शहरों के मुकाबले मध्य श्रेणी वाले शहरों में यह चलन ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है. उत्तर भारत के शहरों में यह अधिक देखने को मिल रहा है. ऐसे में जनता के बीच आपसी भेदभाव बढ़ रहा है.

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लहलहाते वृक्ष : भाग 1

भयंकर सूखे के बाद भयानक बाढ़ से प्रदेश अभीअभी निबटा था. सरकारी बाबुओं की चांदी हो गई थी. जीभर कर डुबकी लगाई थी राहत कार्य की गंगा में. चारों ओर खुशहाली छाई थी. अगली विपदा के इंतजार में सभी पलकपांवड़े बिछाए बैठे थे. मगर जमाने से किसी की खुशी देखी नहीं जाती.

कुछ दिलजलों ने नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में सरकार के खिलाफ पीआईएल दाखिल कर दी. सूखा और बाढ़ तो प्रकृति की मेहरबानी है. इस में सरकार की भला क्या दखंलदाजी? मगर आजकल तो सभी को लाइमलाइट में आने का शौक चर्राया है. अगर मुद्दा पर्यावरण, ग्लोबल वार्मिंग और ग्रीनहाउस इफैक्ट जैसे आम आदमी की समझ में न आने वाले विषयों का हो तो हाथोंहाथ लपक लिया जाता है. आम आदमी भी यह सोच कर खुश हो जाता है कि मसला भले समझ में न आए मगर सारी कशमकश उस की भलाई के लिए हो रही है.

सरकार पर बेतुका आरोप मढ़ा गया कि उस ने वृक्षों की अंधाधुंध कटान नहीं रोकी, इस के कारण सूखा पड़ गया. चलो भाई, थोड़ी देर के लिए तुम्हारी बात मान लेते हैं. मगर इस का उलटा राग तो न आलापो. बता रहे हैं कि वृक्ष न रहने से बाढ़ आ गई. बच्चा भी बता देगा कि सूखा और बाढ़ बिलकुल विपरीत धाराओं के उत्सव हैं. एक में पानी का अकाल तो दूसरे में पानी का रूप विकराल. दोनों में सिर्फ 2 चीजें कौमन हैं. पहला यह कि दोनों में प्रकृति की मरजी है और दोनों में कमाई अंधाधुंध होती है. पंडों पुजारियों की यज्ञहवन से जो कमाई होती है वह तो आज की सरकार और पार्टी के चेलेचपाटे अच्छी तरह समझते हैं.

वकीलों की धुआंधार बहस के बाद ट्रिब्यूनल को विश्वास हो गया कि सूखा और बाढ़ दोनों का कारण वृक्षों का अंधाधुंध कटान ही है. यही नहीं, उसे यह भी गलतफहमी हो गई कि वृक्षों को उपजाने और उन्हें नष्ट होने से बचाने की जिम्मेदारी प्रकृति की नहीं, बल्कि सरकार की है. इसलिए उस ने फटाफट सरकार को नोटिस जारी कर दिया. उस ने यह देखा ही नहीं कि मंत्रों का पाठ तो कराया ही नहीं गया था.

मगर, वह सरकार ही क्या जो ऐसी नोटिसों से हिल जाए. फाइलों के पहाड़ पलटे गए. आंकड़ों की बोरियां ट्रिब्यूनल के सामने उलट दी गईं. देख लो कितने लाख, कितने करोड़ वृक्ष हम ने लगाए हैं. अगर आज यह पृथ्वी बची है तो हमारे ही प्रयासों से बची है. हम ने युद्धस्तर पर वृक्षारोपण के अभियान न चलाए होते तो यह धरती अब तक गैसचैंबर बन चुकी होती.

अदालतों को क्या चाहिए? सुबूत. सारे सुबूत चीखचीख कर कह रहे थे कि सरकारी प्रयासों में कोई कमी नहीं है. फंड जारी होने से ले कर खर्च होने तक सारा हिसाब चाकचौबंद. मगर वह वकील ही क्या जो दूसरों से ज्यादा न चीखे, असली सुबूत को फर्जी और फर्जी को असली न साबित कर दे. वही हुआ. सारे आंकड़े धरे रह गए और यह साबित हो गया कि वृक्षारोपण तो हुआ है मगर धरती की गोद में नहीं, बल्कि फाइलों की छाती में हुआ है.

मगर वह सरकार ही क्या जो हार मान ले और ऊपर की अदालत में अपील न करे. एक के बाद एक निचलीऊपरी अदालतों की सीढि़यां बनाई ही इसलिए गई हैं कि सांपसीढ़ी का खेल चलता रहे. न्याय की देवी तो अंधी होती है, भूलचूक होना लाजिमी है. अगर एक ही अदालत का फैसला मानना बाध्यकारी होता तो अन्याय होने की प्रतिशतता बढ़ जाती. अदालतों की पूरी शृंखला है. अगर एक से गलती हो जाए तो दूसरे से न्याय मिल ही जाएगा.

तो सरकार ने पहले से भी बड़ा वाला वकील किया और पहुंच गई ऊपर की अदालत में जहां न्याय होने की संभावना ज्यादा होती है.

बड़ी अदालत ने बड़ेबड़े वकीलों की दलीलें सुनीं. सारी की सारी अकाट्य. ऐसे में न्याय होना मुश्किल हो गया मगर होना जरूरी था. अदालत ने बीच का रास्ता निकाला. बना दिया एक कमीशन जो जांच कर के बताएगा कि वृक्ष लगे या नहीं.

आमतौर पर कमीशन वाले कमीशन नहीं खाते, मगर ऐसे हालात में कमी जरूर दिखा देते हैं. सरकार चौकन्नी थी. कमीशन की जांच से पहले खुद की जांच कराने का फैसला किया ताकि जो कमी रह गई हो, उसे पूरा कर दिया जाए. परंपरा के अनुसार, सरकार ने मुख्य सचिव को, मुख्य सचिव ने सचिव को, सचिव ने संयुक्त सचिव और संयुक्त सचिव ने उपसचिव को जांच के निर्देश दिए.

उपसचिव को भी नीचे वालों को निर्देश देने के पूरे अधिकार हैं. लेकिन मसला गंभीर था, इसलिए उपसचिव महोदय वास्तव में जांच के लिए निकल लिए. अमूमन ऐसी जांचों में भी एक प्रक्रिया होती है जिस के पूरी होते ही तड़ाक से सबकुछ ठीकठाक होने की रिपोर्ट लगा दी जाती है. मगर यहां तो जांच की भी जांच करने कमीशन आ रहा था. सो, न चाहते हुए भी उपसचिव महोदय को गोपनीय रिपोर्ट लगानी पड़ी कि सारा वृक्षारोपण कागजी हुआ है.

सरकार वृक्षारोपण अभियान की सफलता का डंका जम कर पीट चुकी थी. वह सर्वाधिक वृक्ष लगाने वाले अपने मुंहलगों को ‘वृक्षश्री’ और ‘वृक्षमित्र’ जैसे सम्मानों से अलंकृत कर चुकी थी. इस अभियान को कागजी मानना उगले हुए को निगलने के समान होता.

कर्फ्यू : भाग 1

मुझे पूरे चौबीस घंटे हो चुके थे उस दुकान में छिपे हुए. सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ था. इतनी शांति थी कि हवा की आवाज साफ सुनाई दे रही थी जो आम दिनों में दोपहर के इस वक्त सुनाई देना नामुमकिन था. बस, बीचबीच में दंगाइयों का शोर आता था और जैसेजैसे आवाजें पास आती जातीं, दिल की धड़कनें बढ़ने लगतीं और लगता जीवन का अंत अब बस करीब ही है. फिर, वे आवाजें दुकान के सामने से होते हुए दूर निकल जातीं.

हमारा शहर हमेशा ऐसा नहीं था या यह कहें कि कभी ऐसा नहीं था. पर चौबीस घंटे पहले हुई छोटी सी बात यह विकराल रूप ले लेगी, यह तो सोच से भी परे है.

मैं अपने घर से दुकान से सामान लाने के लिए निकली थी जो सिर्फ 5 मिनट की दूरी पर है. दुकान पहुंचने पर पता चला कि मेन मार्केट में झगड़ा हुआ है और एक लड़के की मौत हो गई है. पूरी बात पता करने पर यह बात सामने आई कि 2 लड़कों में किसी बात को लेकर झगड़ा हो रहा था. धीरेधीरे बात इतनी बढ़ गई कि हाथापाई होने लगी. भीड़ इकट्ठी होने लगी और 2 गुटों में बंट गई. उन्हीं में से एक लड़का इतना लहूलुहान हुआ कि उस की मौके पर ही मौत हो गई. उस लड़के को मरा देख दूसरे गुट के लोग वहां से भाग निकले. तब से ही दंगाई उन सब को ढूंढ़ रहे हैं और बीच में आने वाले हर किसी को मार रहे हैं.

मैं दुकान पर खड़ी बातें सुन ही रही थी कि कहीं से शोर सुनाई दिया, जिस की आवाज बढ़ती जा रही थी. दुकानदार को लगा कि दंगाई हैं. उस ने बाहर खड़े लोगों को दुकान के अंदर ले कर शटर बंद कर दिया. मैं भी तेजी से दुकान के अंदर घुस गई और तब से इसी इंतजार में हूं कि यह सब कब खत्म होगा और हम सब अपने घर जा सकेंगे.

तब से कभी दंगाइयों की आवाजें आती हैं तो कभी फौजियों की जो आगाह करते हैं कि जो जहां है वहीं रहे, बाहर न निकले. और ऐसे ही बैठेबैठे चौबीस घंटे निकल गए पर हालात में कोई सुधार नहीं हुआ.

घरवालों के बारे में सोचती, तो चिंता बढ़ जाती. न मुझे उन की खबर थी, न उन्हें मेरी. जब घर से निकली थी तो घर पर कोई नहीं था. सब अपनेअपने काम से बाहर गए हुए थे. पता नहीं कोई घर लौटा भी होगा या नहीं. कहां होंगे सब, उन्हें कुछ हो न गया हो, ऐसी बातें सोच कर मैं सहम जाती. मन होता,  अभी घर जा कर उन्हें देख लूं, ज्यादा दूर तो है नहीं, पर जान की सलामती की सोच कर जहां की तहां बैठी रही.

शाम के 5 बज रहे थे. 28 घंटे हो चुके थे. पर बाहर के हालात में कोई सुधार नहीं था. बढ़ते वक्त के साथ मन भी ज्यादा विचलित होता जा रहा था. दुकान वाले भैया से जब शहर के हालात पता करने को कहा, तो उन्होंने फिर वही जवाब दिया, ‘‘बेटी, फोन अभी चालू नहीं हुए हैं, सारी लाइनें बंद हैं.’’

‘‘पर, यहां पर कब तक ऐसे ही बैठे रहेंगे?’’ एक ग्राहक ने दुकानदार से कहा.

‘‘बाहर जाना तो मौत को बुलाना है, ऐसा करने की तो सोच भी नहीं सकते,’’ एक महिला ने कहा जो मेरी मां की उम्र की होंगी. बीचबीच में अपने घरवालों के बारे में याद कर के रो लेतीं, फिर थोड़ी देर में चुप हो जातीं. सब अपने में इतना खोए हुए थे कि किसी ने किसी को चुप कराने का जतन नहीं किया.

‘‘पर अब तो सड़कों पर फौज आ गई है, अब तक तो सब ठीक हो गया होगा,’’ मैं ने कहा.

‘‘जल्दबाजी ठीक नहीं है, कहीं रास्ते में दंगाई मिल गए तो जान जा सकती है,’’ दुकान वाले भैया ने आगे कहा, ‘‘जैसे ही लाइनें चालू होंगी, मैं तुम्हारे घर फोन कर दूंगा. तब तक तुम यहां रहो. तुम यहां पूरी तरह महफूज हो.’’

‘‘मुझे घरवालों से मिलना है, पता नहीं किस हाल में होंगे, घर पहुंचे भी होंगे या नहीं,’’ मैं फफकफफक कर रोने लगी.

शाम को 6 बजे मैं ने तय कर लिया कि कुछ भी हो, मुझे अब घर पहुंचना ही होगा. मैं ने सब को समझाया कि मुझे जाने दें, मैं अब और हालात सुधरने का इंतजार नहीं कर सकती. सब से विदा ले कर और दुकान वाले भैया को धन्यवाद कर के मैं वहां से निकल कर सड़क पर आ गई. दुकान के बाहर आते ही सड़क पर पसरे सन्नाटे को देख कर एक बार तो मेरी सांसें रुक गईं और मैं जहां की तहां खड़ी रह गई. समझ नहीं आया कि कदम आगे बढ़ाऊं या नहीं. फिर घरवालों को याद कर के आंखें नम हो गईं.

सड़क पर हर तरफ ईंट, पत्थर और कांच के टुकड़े बिखरे हुए थे. मैं दुकानों के सहारे चलते हुए चुपके से गली के कोने तक आई. मैं ने चारों तरफ ध्यान से देखा, हर गली में एक ही मंजर था. अंधेरा भी थोड़ाथोड़ा घिरने लगा था.

सलवार सूट : भाग 1

लेखिका: सुधा सिन्हा

चंद्रा ने सलवारसूट क्या पहना, पूरे घर ने उस का खासा मजाक बना दिया. बेचारी चंद्रा शर्म के मारे अपना मुंह छिपाती रही. लेकिन उसी सलवारसूट ने वह करामात कर दिखाई जो कोई सोच भी नहीं सकता था…

सलवारसूट पहन कर जब चंद्रा अपने कमरे से बाहर आई तो गरमी की शाम में बाहर आंगन में बैठ कर ठंडी हवा का आनंद लेते परिवार के लोगों को आश्चर्य हुआ.

चमकी चमक कर बोली, ‘‘वाह बूआ, आज बहुत खिल रही हैं आप.’’

‘‘आज की ताजा खबर,’’ कह उस का भाई बप्पी ठठा कर हंस पड़ा.

अखबार परे सरका कर और चश्मे को उतार कर हाथ में ले बांके बिहारी ने अपनी 50 वर्षीया बाल विधवा बहन चंद्रा को ऊपर से नीचे तक घूरा, ‘‘कम से कम अपनी उम्र का तो लिहाज किया होता.’’

इतना सुनना था कि चंद्रा का मनोबल टूट गया, वहीं जमीन पर बैठ गई और ‘‘मैं नहीं रोऊंगी, मैं नहीं रोऊंगी,’’ की रट लगाने लगी.

अपना काम छोड़ कर राधिका उठ कर अपनी ननद के पास आ बैठी, ‘‘दीदी, जो जितना दबता है उसे उतना ही दबाया जाता है, जानती हो न? अपने भैया को न सही, कम से कम चमकी और बप्पी को तुम झिड़क ही सकती हो. जन्म से गोद में खिलाया है तुम ने उन्हें.’’

‘‘मम्मी, तुम भी,’’ बप्पी बोला, ‘‘बूआ बात ही ऐसी करती हैं. कैसी कार्टून सी लग रही हैं. पूरा महल्ला हंसेगा, अगर मैं हंस पड़ा तो क्या हुआ?’’

‘‘अगर मेरा शरीर तेरी बूआ जैसा छरहरा होता तो मैं भी ये सब पहनती. तब देखती कौन मेरे ऊपर हंसता,’’ राधिका बोली.

‘‘तुम्हारा तो दबदबा है, तुम्हारे ऊपर हंसने की किस की हिम्मत होगी,’’ बांके बिहारी बोले.

घुटनों में सिर छिपा कर उन की विधवा बहन सुबकसुबक कर रोने लगी.

‘‘अरे, ये सब जानवर हैं, चलो दीदी, भीतर चलते हैं,’’ राधिका ने कहा.

‘‘मम्मी, तुम हमेशा से बूआ की तरफदारी करती आई हो, पता नहीं क्यों.’’ बप्पी बोला.

‘‘तुम तो शायद मेरे सौतेले हो और तेरी बूआ तो मेरी पेटजाई हैं,’’ बप्पी को गुस्से से घूर कर राधिका बोली और चंद्रा को भीतर ले गई.

‘‘सच बताओ, दीदी, तुम्हें क्या सूझा कि सलवारसूट खरीद लिया? कब खरीदा? वैसे फबता है तुम पर.’’

‘‘सच कहती हो भाभी?’’ चंद्रा खिल उठी, ‘‘स्कूल में सभी टीचर्स पहनती हैं. सुमन मेरे लिए खरीद लाई थी. मैं ने बहुत मना किया था, पर मानी ही नहीं. वह कहने लगी, ‘आजकल सब चलता है, समय के साथ चलना चाहिए. शुरू में जरूर हिचक लगेगी, सो, घर से शुरुआत करनी चाहिए.’ मुझे पता था, भैया नाराज होंगे, पर वे तो हमेशा से ही मुझ पर नाराज रहते हैं. कुछ करो या न करो.’’

‘‘ऐसा न कहो दीदी,’’ राधिका पति का पक्ष ले कर बोली, ‘‘उन्हीं की जिद से तुम पढ़लिख सकीं. बीए, फिर बीएड कर सकीं, स्कूल में टीचर बन सकीं. नहीं तो ससुरजी तो बहुत खिलाफ थे इस सब के.’’

‘‘हां, भाभी, यह बात तो है. ‘चंद्रा को अपने पैरों पर खड़ा करना है’ यह भैया की जिद थी. पर कब खड़ा होने दिया उन्होंने मुझे? हर वक्त इतनी ज्यादा सख्ती, इतना नियंत्रण. उन्हें खुश रखने के लिए मैं ने हमेशा सफेद साड़ी पहनी, कभी क्रीमपाउडर को हाथ तक न लगाया. घर वापस आने में एक मिनट भी देर नहीं की. शायद मैं अपने पैरों पर खड़ा होना भूल गई हूं. शायद इस उम्र में मुझे अपनी काबिलीयत पर संदेह होने लगा है. मैं देखना चाहती हूं कि मैं अकेली अपने पैरों पर खड़ी हो भी सकती हूं कि नहीं. लेकिन, मेरे पास तो हिम्मत ही नहीं है.’’

राधिका ने अपनी हमउम्र ननद के सिर पर हाथ रखा, ‘‘जिंदगीभर गाय बनी रहीं. एकदम से आधुनिक थोड़े ही हो जाओगी. रही हिम्मत की बात, तो मेरे विचार से अपने भैया को छोड़ कर तुम और किसी से नहीं डरती हो.’’

 

‘‘क्या ये कम हैं? वे पूरे हौआ हैं. तुम जाने कैसे सहती हो उन्हें, भाभी.’’

‘‘सुना नहीं, वे मुझे क्याक्या कहते हैं. भाभी, सच, तुम नहीं होतीं तो मैं ने न जाने कब की आत्महत्या कर ली होती.’’

राधिका हंसी, ‘‘सुनो दीदी, औरतों को अपनीअपनी तरह से इन आत्महत्या वाले पलों से गुजरना पड़ता है. जो हार गईं,

वे गईं. बाकी जिंदगी की जंग को अपनेअपने ढंग से लड़ती ही रहती हैं.’’

राधिका का हाथ पकड़ कर चंद्रा बोली, ‘‘भाभी, आप मेरी जिंदगी का बहुत बड़ा सहारा हैं. इन बच्चों को अपना समझ कर कितने लाड़ से पाला था, पर अब शायद मेरे स्नेहप्यार की उन्हें जरूरत नहीं है. लगता है मैं इन के लिए पराई हो गई हूं. सिर्फ आप ही समझती हैं मुझे. नहीं तो मैं कितनी अकेली हो जाती.’’

राधिका चंद्रा का हाथ पकड़े थोड़ी देर चुप बैठी रही, फिर बोली, ‘‘तुम्हारे भैया को हमेशा तुम्हारा डर लगा रहता था कि कहीं तुम्हारी वजह से उन को शर्मिंदगी का सामना न करना पड़े. इसीलिए तुम पर सख्ती करते रहे. वैसे, तुम्हारी फ्रिक करते हैं, तुम्हें प्यार करते हैं.’’

‘‘शायद करते हों, पर मैं ने भी कभी संदेह का कोई अवसर आने नहीं दिया है.’’

‘‘जानती हूं,’’ राधिका बोली, ‘‘फिलहाल तुम रात को सलवारसूट पहन कर सो लिया करो. चमकी इतनी बड़ी हो कर भी जो स्कर्ट पहने घूमती रहती है, उस से तो ज्यादा शालीन लगोगी तुम. धीरेधीरे तुम्हारे भैया तुम्हारे सलवारसूट के अभ्यस्त हो जाएंगे. तुम्हारी हिचक भी खत्म हो जाएगी.’’

‘‘भाभी, यू अप्रूव?’’ खुशी से भर कर बच्चों की तरह चंद्रा बोली.

‘‘कोई हर्ज नहीं है. फिर बच्चे तो आधुनिक होते जा रहे हैं और सारी पाबंदी हमारे ऊपर ही क्यों है? जिंदगीभर पाबंदियों में रही हो, अब यदि सलवारसूट से तुम्हें थोड़ी खुशी मिलती है तो आई सर्टेनली अप्रूव.’’

लौट कर राधिका ने अपने पति को आड़ेहाथों लिया, ‘‘क्यों जी, क्यों आप दीदी को हरदम रुलाते रहते हो? सलवारसूट ही तो पहना, कोई बिकनीअंगिया पहन कर तो बाहर नहीं निकली थीं?’’

‘‘निकलती, तो भी तुम उसी का पक्ष लेतीं,’’ बांके बोले, ‘‘हमेशा से देखता आया हूं. मैं जो भी कहता हूं तुम उस के खिलाफ झंडा गाड़ कर खड़ी हो जाती हो. मैं परिवार के भले के लिए ही कहता हूं, यह तुम्हें क्यों नहीं यकीन होता?’’

‘‘जब आप के बच्चे…’’ राधिका रुकी, थोड़ा हंसी, फिर बोली, ‘‘जब हमारे 17-18 वर्ष के युवा बच्चे बरमूडा, टीशर्ट पहने शाम ढले तक लड़केलड़कियों का गु्रप बनाए टहलते रहते हैं, तो?’’

‘‘तब भी तुम्हीं ने उन का पक्ष ले कर हमारी बोलती बंद कर दी थी कि जमाने के साथ बच्चों को चलने देना चाहिए, नहीं तो उन्हें कौप्लैक्स हो जाएगा.’’

‘‘तब आप मान गए थे, तो अब भी मानिए. आजकल मेरी उम्र की औरतें सलवारसूट पहनें, तो कोई बुरा नहीं मानता. इस से आधुनिकता ही दिखती है.’’

‘‘तुम से किस ने कहा कि मैं आधुनिक हूं?’’

‘‘आप के बच्चों ने, जो टीवी में फिल्म नहीं देखते, पर दोस्तों के साथ हौल में फिल्म देखना पसंद करते हैं, जो अपनी बर्थडे पार्टी में केक काटने से कहीं ज्यादा फिल्म के गानों के साथ मस्तमस्त नाचना पसंद करते हैं.’’

तैश में आई अपनी पत्नी को बांके बिहारी ने देखा. वे जानते थे कि उन दोनों को ही यह आधुनिकता पसंद नहीं है. लेकिन इस युग की आधुनिकता के बहाव को रोकना भी उन के वश में नहीं है. बात वहीं खत्म करने के इरादे से वे बोले, ‘‘भई, मानना पड़ेगा, ये गाने, ये धुनें, ये विजुअल खून में गरमाहट भर ही देते हैं.’’

राधिका बोली, ‘‘एक हमीं गंवार रह गए. सोच रही हूं, आधुनिक डांस क्लास जौइन कर लूं और एक मिनी स्कर्ट खरीद लूं अपने लिए.’’

‘‘क्या?’’

‘‘तुम्हारे लिए बप्पी का बरमूडा चलेगा,’’ कह कर राधिका जोरजोर से हंसने लगी.

एक तरफ इतनी आधुनिकता दूसरी तरफ इतनी रूढि़वादिता? राधिका को अपने परिवार का यह खिचड़ीवाद कभी समझ नहीं आया. पर घरघर की यही कहानी है. पुराना युग नए युग को पकड़ कर रखना चाहता है और नया युग पुराने युग के सब बंधन काट फेंकना चाहता है. उस के ससुर ने अपने पढ़ेलिखे बेटे के लिए पढ़ीलिखी बहू चाही थी, पर उसे एक संकुचित दायरे में बंद रखा गया था.

उन की मृत्यु के बाद उसे थोड़ी राहत जरूर मिली थी, पर बेचारी विधवा चंद्रा कभी भी खुल कर  सांस न ले पाई. अब इस उम्र में यदि वह कुछ शौक पूरे करना चाहती है तो क्या बुरा है. हमेशा ही अपना वेतन उसी के हाथ में रखा है उस ने. कभी अपने अधिकार के लिए चंद्रा ने मुंह नहीं खोला. और एक चमकी है, अभी 18 वर्ष की भी नहीं हुई है, पर सब से हर वक्त जवाबतलब करती रहती है. दोनों बच्चों के स्वार्थ में, उन के आराम में, उन के रूटीन में जरा सा भी विघ्न नहीं आना चाहिए. शायद नए युग के लोग लड़ कर ही अपना अधिकार हासिल कर पाएंगे. चलो, युग के साथ चलना तो सीख रहे हैं वे लोग. पर चंद्रा जैसों का इस युग में कहां स्थान है? क्यों इतनी मौन रहती है वह कि उस के लिए हर बार राधिका को कमर कसनी पड़ती है?

तभी डा. कैप्टन शर्मा की पुकार सुनाई दी, ‘‘अरे, चंद्रा, कहां हो? चमकी, बप्पी, कहां हो तुम सब? कोई नजला, कोई जुकाम?’’

विकृति की इंतहा: भाग 1

भाग 1

सर्व सुलभ होने से स्मार्टफोन कम पढ़ेलिखे युवाओं को भटकाने का काम कर रहे हैं. बरबादी की इस जड़ ने युवाओं को ज्यादा प्रभावित किया है. मोबाइल की स्क्रीन पर युवाओं को वह सब देखने को मिल जाता है, जो उन की जानकारी में शादी के बाद आना चाहिए. सोहेल ऐसा ही भटका हुआ युवक  था, जिस की वजह से…

अंधेरा घिर आया था. रुखसार घर में कामकाज में लगी थी. रात 8 बजने के बाद भी जब बाहर खेलने गया उस का बेटा फैजान घर वापस नहीं आया तो उस ने बड़ी बेटी रुखसाना से कहा कि फैजान को बुला लाए, खाना खा लेगा. फैजान मध्य प्रदेश के शहर रतलाम के राजेंद्र नगर इलाके में रहने वाले मोहम्मद जफर कुरैशी का 5 साल का बेटा था.

जफर पेशे से दरजी था. उस की दुकान हाट की चौकी के पास थी. जफर के 4 से 10 साल तक की उम्र के 4 बच्चे थे. जिस में से फैजान तीसरे नंबर का था. वह रतलाम के गांधी मेमोरियल उर्दू स्कूल में केजी वन में पढ़ रहा था.

चंचल स्वभाव का फैजान स्कूल से आते ही बस्ता फेंक कर मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलने के लिए निकल जाता था. फिर वह तब तक घर नहीं आता था, जब तक उसे कोई बुला कर न लाए.

मां के कहने पर रुखसाना फैजान को बुलाने गई लेकिन मैदान में खेल रहे बच्चों में उसे फैजान दिखाई नहीं दिया. वह घबराई हुई घर आई और अपनी अम्मी को फैजान के न मिलने की बात बता दी.

बेटी की बात सुन कर फैजान की मां रुखसार खुद उन बच्चों के पास पहुंची जो मैदान में खेल रहे थे. उस ने बच्चों से फैजान के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि फैजान तो यहां से काफी देर पहले जा चुका है. यह 13 अप्रैल, 2019 की बात है.

इतना सुनते ही वह घबरा गई. उस ने उसी समय यह जानकारी पति जफर कुरैशी को दे दी जो उस समय अपनी टेलरिंग शौप पर था. बेटे के गुम होने की जानकारी मिलते ही जफर भी घर पहुंच गया. जफर के साथसाथ मोहल्ले के कुछ लोग भी फैजान को इधरउधर खोजने लगे.

आधी रात तक फैजान का पता नहीं चला तो जफर कुरैशी अपने रितेदारों और दोस्तों के साथ हाट की पुलिस चौकी पहुंच गया. 5 वर्षीय बच्चे का लापता हो जाना गंभीर मामला था, इसलिए चौकीप्रभारी ने तत्काल इस बात की जानकारी माणक चौक थाने के टीआई रेवल सिंह बरडे को दे दी.

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टीआई बरडे, एसआई दिनेश राठौर के साथ हाट की चौकी पर पहुंच गए. जफर से पूछताछ के बाद फैजान के अपहरण का मामला दर्ज कर टीआई ने टीम के साथ रात में ही उस की तलाश प्रारंभ कर दी. परंतु सुबह 8 बजे तक भी फैजान की कोई सूचना नहीं मिली.

दूसरे दिन रतलाम के एसपी गौरव तिवारी ने माणक चौक के टीआई रेवल सिंह बरडे को फैजान की खोज निकालने में तेजी लाने के निर्देश दिए. फैजान के परिवार वाले भी उस की तलाश में भटक रहे थे. पुलिस के पूछने पर जफर कुरैशी ने बता दिया था कि उस की व उस के परिवार की किसी से भी कोई दुश्मनी नहीं है.

किसी अनहोनी की आशंका को देखते हुए पुलिस आसपास के कुओं, नालों आदि को भी तलाश कर चुकी थी पर फैजान का कोई सुराग नहीं मिला. इस के बाद एसपी गौरव तिवारी ने एएसपी इंद्रजीत सिंह बाकलवार के नेतृत्व में सीएसपी मान सिंह ठाकुर, टीआई (माणक चौक) रेवल सिंह बरडे, टीआई (दीनदयाल नगर) वी.डी. जोशी, टीआई (नामली) किशोर पाटनवाल और एसआई दिनेश राठौर सहित 14 सदस्यीय एसआईटी का गठन कर उन्हें फैजान को खोजने की जिम्मेदारी सौंप दी.

इस टीम ने हाट रोड पर फैजान के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली, जिस में फैजान शाम लगभग 5 बजे सड़क पर दौड़ कर एक तरफ जाता दिखाई दिया. लेकिन इस के बाद वह किसी भी कैमरे की रेंज में नहीं आया.

इस फुटेज से केवल इतना ही पता चला कि उस समय वह पास की एक दुकान पर टौफी खरीदने के लिए गया था. पुलिस ने दुकानदार से पूछताछ करने के अलावा सीसीटीवी कैमरों में कैद हुए वाहनों के नंबर के आधार पर उन के मालिकों से भी पूछताछ की लेकिन कुछ  हाथ नहीं आया. धीरेधीरे समय बीतने पर जहां लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा था, वहीं फैजान के परिवार वालों का रोरो कर बुरा हाल था.

फैजान के गायब हुए 7 दिन बीत चुके थे. वह किस के साथ कहां चला गया, इस सवाल का किसी को कोई उत्तर नहीं मिल रहा था. इधर रतलाम रेंज के डीआईजी गौरव राजपूत ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया और एसपी से अपराधियों के खिलाफ सख्त काररवाई करने के निर्देश दिए.

टीआई रेवल सिंह बरडे ने थाना क्षेत्र के कई बदमाशों को पूछताछ के लिए उठाया. इस के अलावा उन्होंने क्षेत्र के मोबाइल टावरों के संपर्क में आए हजारों मोबाइल नंबरों की भी जांच की.

दूसरी तरफ फैजान को लापता हुए लंबा समय बीत जाने पर भी न तो उस की कोई खबर मिली और न ही किसी ने फिरौती की मांग की तो पुलिस ने अपनी जांच जफर कुरैशी के परिवार की तरफ मोड़ दी.

जफर और उस के आसपास रहने वाले लोगों की गतिविधियों पर नजर रखते हुए पुलिस उन से पूछताछ करने लगी. लेकिन फिर भी कुछ हाथ नहीं आया. जिस के चलते घटना से 8 दिन बाद मामले की कमान एसपी गौरव तिवारी ने अपने हाथ में ले ली.

नौवें दिन 22 अप्रैल, 2019 को एसपी रतलाम पूरी टीम ले कर उस इलाके में पहुंचे, जहां से फैजान गायब हुआ था. इस टीम ने हाट रोड, गौशाला रोड, तोपखाना रोड, राजेंद्र नगर, कंबल पट्टी, मदीना कालोनी और सुभाष नगर इलाके के चप्पेचप्पे में फैजान को ढूंढा.

साथ ही एक बार फिर परिवार के लोगों से पूछताछ की. अब तक लगभग डेढ़ सौ लोगों से पूछताछ की जा चुकी थी. लेकिन इस के बाद भी फैजान का पता नहीं चल पा रहा था.

घटना के 11वें दिन यानी 23 अप्रैल को पूरे मामले में चौंका देने वाला नाटकीय मोड़ आ गया. एक दिन पहले एसपी गौरव तिवारी स्वयं अपनी टीम के साथ हाट रोड के चप्पेचप्पे में फैजान की खोज कर चुके थे. मगर अगले ही दिन फैजान के घर से महज 100 कदम दूर नाले में पुलिस को एक संदिग्ध बोरा मिला.

बोरे से आ रही बदबू से पुलिस समझ गई कि बड़ा खुलासा हो सकता है. हुआ भी वही. प्लास्टिक के उस बोरे को खोल कर देखा गया तो उस के अंदर 5 साल के मासूम फैजान का सड़ा हुआ शव निकला.

फैजान के मुंह और हाथोंपैरों पर टेप चिपका था. लाश को देखने से ही लग रहा था कि फैजान की हत्या हफ्ते भर पहले की जा चुकी थी.

मामला गंभीर था, इसलिए एसपी के निर्देश पर मैडिकल कालेज से एफएसएल अधिकारी डा. एन.एस. हुसैनी और जिला एफएसएल अधिकारी डा. अतुल मित्तल भी मौके पर पहुंच गए. बारीकी से जांच करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई.

इस घटना से पुलिस के सामने एक बात तो साफ हो गई कि फैजान का हत्यारा इसी बस्ती में आसपास कहीं छिपा हुआ है. क्योंकि जिस जगह पर लाश मिली थी, एक दिन पहले वहां वह बोरी नहीं थी. लापता होते समय फैजान ने टीशर्ट और हाफ पैंट पहन रखी थी. जबकि लाश के शरीर पर टीशर्ट तो वही थी, जबकि हाफ पैंट की जगह शव को जींस पहना दी गई थी. इसलिए मामले में शक की सुई परिवार की तरफ भी मुड़ रही थी.

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लेकिन जिस परिवार का मासूम इस तरह दुनिया छोड़ गया हो, उस परिवार पर सीधे शक नहीं किया जा सकता. इसलिए एसपी गौरव तिवारी ने एसआईटी को मोहल्ले में रहने वाले हर शख्स की पिछले 15 दिनों की कुंडली बनाने के निर्देश दिए.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साफ हो चुका था कि फैजान की मौत करीब 10 दिन पहले यानी उसी रोज हो चुकी थी, जिस रोज वह गायब हुआ था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मासूम के साथ दुष्कर्म किए जाने की बात सामने आई थी.

अगली कड़ी में पढ़ें: आखिर इस घटना को अंजाम किसने दिया था ?

इस रेस्‍टोरेंट के बारे में जानकर चौंक जाएंगे आप

क्या आप जानते हैं, दुनिया में एक ऐसी जगह है, जहां एक ऐसा रेस्टोरेंट है , गिद्ध और चील यहां खाना खाते हैं. ये रेस्टोरेंट नपुर शहर के चिड़ियाघर में बना है. आपको बता दें, कानपुर जूलौजिकल पार्क ने एक खुला ‘रैप्टर्स रेस्तरां’ विकसित किया है.  इससे दो उद्देश्‍यों की पूर्ती होती है.न एक तो मरने वाले जानवरों के शवों से गंदगी फैलने से बच जाती है और उनके उपयोग से गिद्ध और चील जैसी लुप्‍त होती प्रजातियों का संरक्षण हो जाता है. वैसे इसका मुख्य उद्देश्य चिड़ियाघर में एक साथ अच्छी संख्या में गिद्धों व चीलों को बुलाना ही है.

चिकित्सकों का कहना है गिद्धों की संख्या देश में बहुत तेजी से कम हो रही है, इसलिए इनका संरक्षण किया जाना जरूरी है. जब झुंड में गिद्ध आएंगे तो स्वाभाविक है कि वह पहले नेस्टिंग फिर ब्रीडिंग यानि प्रजनन करेंगे. इससे उनकी जनसंख्या में वृद्धि हो सकती है.

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ये खास रेस्‍टोरेंट चारों ओर पेड़ों से घिरा और बीच में लकड़ी की टहनियां लगा कर खुले आसमान के नीचे बनाया गया है. जहां गिद्ध, चील व अन्य शिकार करने वाले पक्षियों को ठहरने की सुविधा मिलती है. जू के सफारी एरिया में रेस्टोरेंट का स्थान तैयार किया गया  है जिसके चारों ओर पेड़ लगे हैं. ऊपरी हिस्सा पूरी तरह खुला है. बीच-बीच में लकड़ी की मोटी टहनियां रखी गई हैं. जिन पर गिद्ध और चील आराम से बैठ सकते हैं. वे केवल मांस खाकर उड़ न जाएं, इसलिए पास ही छोटा सा तालाब भी बनाया गया है।

इसके अलावा अन्‍य लाभों का जिक्र करते हुए प्राणी उद्यान के चिकित्सका विभाग का कहना है कि पहले यहां अलग-अलग चार क्षेत्रों में मीट के टुकड़े डाले जाते थे. इससे दुर्गंध व संक्रमण फैलने का खतरा रहता था. साथ ही बारिश के समय दिक्कतें बढ़ जाती थीं लेकिन, रेस्टोरेंट की व्यवस्था के बाद संक्रमण और गंदगी की समस्या से भी छुटकारा मिल गया है.

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क्या आपके बाल भी हो रहे हैं ड्राई ?

स्किन की तरह बालों को भी  एक्स्ट्रा केयर की जरूरत होती है. अगर आपके बाल कर्ली, वेवी, स्ट्रट कैसे भी हों गर्मी का इन पर काफी खराब असर पड़ता है. गर्मी से  बाल डल, ड्राई और डैमेज होते हैं. वहीं ज्यादा देर एसी में रहने से भी बालों का मौइश्चर कम होता है. तो चलिए कुछ टिप्स बताते है जिससे आपके बाल ड्राई न हो.

सबसे पहले तो गर्मी के मौसम  में बालों को ट्रिम करवा लें क्योंकि गर्मी में पसीने, पलूशन की वजह से बाल वैसे ही झड़ते हैं. ऐसे में ज्यादा बड़े बालों की देखभाल करना मुश्किल होता है और इनसे गर्मी भी लगती है.

अगर आप बाल छोटे नहीं करवाना चाहतीं तो बालों पर हैट, स्कार्फ वगैरह बांधकर ही घर से निकलें. ध्यान रखें कि स्कार्फ ज्यादा टाइट न हो और सूरज की रौशनी से भी बालों का बचाव हो सके.

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बनाना हेयर मास्क

एक केला लें अच्छी तरह मैश करें. इसमें तीन चम्मच शहद, तीन चम्मच दूध और तीन चम्मच औलिव औइल या आर्गन औइल मिला लें. इन सारी चीजों को अच्छी तरह मिला लें. पेस्ट को आधे घंटे तक लगाकर धो लें. डैमेज बालों के लिए यह मास्क बेहद फायदेमंद है.

दही मास्क

अगर आपके ज्यादा कुछ अवेलेबल नहीं है तो दही में थोड़ा सा दूध मिलाकर बालों पर लगा लें. यह आधे घंटे में आपके बालों को सौफ्ट कर देगा.

अगर धूप में निकलना मजबूरी है तो बाद में सन रिपेयर हेयर मास्क जरूर लगाएं. शैंपू के बाद डीप कंडिशन भी करें. दही, मेयनेज जैसे नैचरल कंडिशनर भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

गर्मियों में हेयर ड्रायर और कर्लर्स वगैरह का इस्तेमाल कम से कम करें. गर्मी के मौसम में एसी से भी बालों का नैचरल मौइश्चराइजर कम होता है. पानी पीते रहे हैं और बालों पर सीरम का इस्तेमाल करें.

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स्नैक रेसिपी: मसाला पूरी

यह बेहद मसालेदार, तीखी और खट्टी चाट रेसिपी है. इसमें हरी मटर के साथ ही ताजी सब्जियां और ढेर सारे मसाले पड़ते हैं. तो आइए जानते हैं, मसाला पूरी बनाने की रेसिपी.

सामग्री

तेल 2 चम्मच

लौंग 2

दालचीनी आधा इंच

साबुत जीरा 1 चम्मच

लहसुन 3 कलियां

हरी मिर्च 1

प्याज 1 (बारीक कटा हुआ)

गाजर 1 (बारीक कटा हुआ)

उबला हुआ आलू 2

इमली की चटनी 2 चम्मच

मटर 1 कप

पुदीना प्यूरी 3 चम्मच

प्याज 1 (बारीक कटा हुआ)

टमाटर 2 (बारीक कटा हुआ)

धनिया पत्ता मुट्ठी भरसेव एक चौथाई कप

नमक स्वादानुसार

लाल मिर्च पाउडर 2 चम्मच

चाट मसाला पाउडर 1 चम्मच

पुदीना के पत्ते 2 चम्मच (बारीक कटा हुआ)

धनिया के पत्ते मुट्ठी भर

पानी पूरी 12

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बनाने की वि​धि

हरी मटर को रात भर पानी में भिगोकर रखें. गाजर और आलू को छीलकर चौकोड़ आकार में काट लें.

अब एक प्रेशर कुकर में पानी डालें और हरी मटर, आलू और गाजर को उबाल लें.

अब एक पैन में तेल गर्म करें और इसमें जीरा, लौंग, दालचीनी डालकर कुछ देर फ्राई करें.

अब इसमें बारीक कटा प्याज, हरी मिर्च और लहसुन डालें और सुनहरा भूरा होने तक पकाएं.

अब मिक्सी के जार में पुदीना की पत्तियां, धनिया पत्ती, उबली हुई सब्जियां और फ्राई किए हुए मसालों को डालें और स्मूथ पेस्ट तैयार कर लें.

इस पेस्ट को एक बार फिर पैन में डालें.

इसके साथ ही लाल मिर्च पाउडर, चाट मसाला डालें और उबाल आने दें.

सर्विंग प्लेट में अपनी पसंद के अनुसार पानी पूरी को तोड़कर रखें.

ऊपर से तैयार मसाला ग्रेवी को डाल दें, आप चाहें तो चाट मसाला भी ऊपर से छिड़क सकती हैं.

इसके बाद फिर से अपने स्वाद के अनुसार इमली की चटनी और पुदीने की चटनी को ऊपर से डाल दें.

बारीक कटे प्याज, टमाटर, धनिया पत्ता और अपनी पसंद के सेव से सजाएं.

मसाला पूरी तैयार है और इसे गर्मा गर्म सर्व करें.

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‘नच बलिए 9’: सेट पर हुआ हादसा, ‘कसौटी 2’ की निवेदिता बसु को आई चोट

स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला शो ‘कसौटी जिंदगी के 2’ की निवेदिता बासु उर्फ पूजा बनर्जी को काफी चोट आई है. दरअसल ‘नच बलिए 9’  के सेट पर उन्हें चोट आई है. इसी वजह से टीवी अदाकारा पूजा बनर्जी इस डांस रियल्टी शो में हिस्सा नहीं ले पाएंगी.

ये एक्ट्रेस अपने पति संदीप सेजवाल के साथ नजर आने वाली थी. लेकिन डांस की रिहर्सल के साथ ही उनके साथ एक हादसा हो गया और पैर में मोच आ गई है. इस वजह से पूजा बनर्जी अभी इस डांस रियल्टी शो में दिखाई नहीं देने वाली. दोनों स्टार्स इस शो के लिए अपने डांस परफौर्मेंस के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे. लेकिन प्रैक्टिस के दौरान दोनों को ही चोट लग गई और दोनों बुरी तरह से घायल हुए है.

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अब एक्ट्रेस को इस टीवी शो के बाद को अपने डेली सोप कसौटी जिंदगी के 2 की शूटिंग के दौरान भी काफी दिक्कतें आई है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्हें ‘कसौटी जिंदगी के 2’ की शूटिंग के दौरान चलने फिरने में दिक्कत आ रही थी. इसी कारण चलते उन्होंने शो मेकर्स से चलने फिरने के सीन न देने की अपील की है. इस चोट की वजह से उन्हें मेकअप से चोट के निशान छुपाने पड़ रहे है.

खबरों के मुताबिक एक्ट्रेस ने कहा है, ‘यह काफी दर्दनाक है. मुझे चोट आई है जिसके चलते मैं सही ढंग से चल भी नहीं पा रही हूं. चोट के निशान भी पड़ गए है. ‘कसौटी जिंदगी के ’ में  शूटिंग में मुझे काफी दिक्कत आ रही थी. मेरी चोट के चलते कैमरापर्सन को भी काफी दिक्कत हो रही थी.

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: नायरा और कार्तिक से नफरत करने लगेंगे लव-कुश

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में आए दिन दर्शकों को धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहे है. अब जल्द ही इस सीरियल में दो धमाकेदार एंट्री होने वाली है. पिछले एपिसोड में आपने देखा कि नायरा लीजा से कह रही है अगर अखिलेश, सुरेखा संग खुश नहीं है तो उन्हें लीजा से शादी करनी पड़ेगी. नायरा की ये सारी बात सुन लेगी और वो इस सच्चाई को मानने से इंकार करेगी और नायरा को जोरदार थप्पड़ भी मारेगी.

अब इस शो के अपकमिंग एपिसोड में आपको कुछ नया देखने को मिलेगा. मेकर्स जल्द ही इस शो में लव और कुश को बड़ा दिखाने वाले है. जी हां अब इस सीरियल की कहानी एक नयी मोड़ लेने वाली है. आने वाले नए एपिसोड में नयापन लाने के लिए सुरेखा-अखिलेश और लीजा के एंगल को भी निकाल दिया है. पिछले एपिसोड में आपने देखा कि कार्तिक और नायरा को लीजा-अखिलेश के एक्सट्रा मैरिटल अफेयर के बारे में पता चल चुका है.

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अखिलेश की सच्चाई जानकर पूरे गोयनका परिवार में खूब हंगामा भी होने वाला है. सुरेखा तुरंत ही अखिलेश से तलाक लेने का फैसला भी करेगी. इस एंगल के खत्म होने के बाद सीरियल में लव-कुश की रीएंट्री होगी. खबरों के अनुसार लव-कुश भले ही नायरा और कार्तिक को अपना सब कुछ मानते थे, लेकिन रीएंट्री के बाद वह उनसे नफरत करने लगेंगे.

दरअसल उनको ये लगने लगेगा कि नायरा और कार्तिक की वजह से ही उनके माता-पिता का तलाक होने वाला है. फिलहाल देखना दिलचस्प होगा कि कार्तिक और नायरा लव-कुश को कैसे समझाएंगे और आगे की कहानी क्या मोड़ लेने वाली है. तो वही उधर नायरा और कार्तिक एक दूसरे के काफी करीब आ रहे हैं. जो वेदिका को नागवार गुजरेगा. ये तो निश्चित है इस शो में आने वाले दिनों में आपको धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिलेंगे.

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