कई साल पुरानी बात है. पूर्वी दिल्ली के एक घर में शादी थी. मेहमानों का खूब जमावड़ा लगा हुआ था. दूल्हे की छोटी बहन रचना की खुशियों का ठिकाना नहीं था. बड़े भाई ने उसे सोने के झुमके जो तोहफे में दिए थे. बरात दुलहन के घर गई, खूब नाचगाना हुआ, फेरे पड़े और फिर नईनई ननद बनी रचना अपनी भाभी को घर ले आई.

शादी में रचना के झुमकों की भी खूब तारीफ हुई थी. खूबसूरत होने के साथसाथ वे महंगे भी थे. शादी की गहमागहमी कम हुई, तो रचना ने वे झुमके संभाल कर लोहे की अपनी अलमारी में रख दिए.

कुछ दिनों के बाद रचना के पड़ोस की एक सहेली मेनका के मामा की बेटी की शादी थी. एक दिन वह रचना से बोली, ‘‘सुन, तू मुझे 2 दिन के लिए अपने नए झुमके उधार दे दे. शादी में उन्हें पहनूंगी तो लड़कों पर रोब पड़ेगा.’’

रचना का मन तो नहीं था, पर वह अपनी दोस्ती भी नहीं तोड़ना चाहती थी. उस ने अपनी मां से पूछे बिना ही मेनका को झुमके दे दिए और संभाल कर रखने की भी हिदायत दी.

रचना को जिस बात का डर था, वही हुआ. मेनका से वे झुमके खो गए. दरअसल, शादी के घर में एक दिन जब वह बाथरूम से नहा कर निकली तो

वे झुमके वहीं भूल गई. फिर उन झुमकों पर किस ने हाथ साफ किया, पता ही नहीं चला.

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मेनका की तो जैसे जान सूख गई. मातापिता से खूब डांट खाई, लेकिन उस की असली समस्या तो यह थी कि रचना का सामना कैसे करेगी. और जब रचना को यह खबर लगी तो उस का रोरो कर बुरा हाल हो गया. घर में पता चला तो सब को बहुत दुख हुआ, पर अब कर भी क्या सकते थे. मेनका से झुमकों के पैसे भी किस मुंह से मांगते. लेकिन उस दिन के बाद रचना और मेनका में पहले जैसी पक्की दोस्ती नहीं रही.

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