Download App

ब्रैंड प्रमोटिंग के खेल में मीम्स मार्केटिंग

अभी तक टैलीविजन और अखबार पर बड़ेबडे मौडल और सैलिब्रिटीज ब्रैंड प्रमोशन किया करते थे. अब मार्केटिंग के क्षेत्र में पारंपरिक ट्रैंड से अलग सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स भी ब्रैंड प्रमोशन करने लगे हैं. ब्रैंड और इन्फ्लुएंसर्स के बीच मार्केटिंग एजेंसीज का दखल बढ़ गया है. इन के पास टीम होती है जो यह बताती है कि किस ब्रैंड का प्रमोशन, कौन सा इन्फ्लुएंसर करे और उस के मीम्स किस तरह के कंटैंट के लिए तैयार हों जिन को देखने वाले देखें और जो रील प्रमोशन के लिए बनी है वह वायरल हो. टीम वाले यह बताते हैं कि सोशल मीडिया प्लेटफौर्म का उपयोग किस तरह किया जाए कि जिस के जरिए नए ग्राहकों तक सरलता से पहुंचा जा सके.

जैसेजैसे सोशल मीडिया का मार्केट बढ़ रहा है वैसेवैसे इन मार्केटिंग कंपनियों की संख्या भी बढ़ रही है. कई मार्केटिंग कंपनियां इनहाउस काम करती हैं. उन की पूरी टीम होती है जिन में कंटैंट राइटर, वीडियो फोटोग्राफर, एडिटर और ग्राफिक डिजाइनर होते हैं. इस के अलावा मार्केटिंग में काम करने वाले लोग भी होते हैं. कई मार्केटिंग कंपनियां फ्रीलांसर के साथ काम करती हैं. जैसेजैसे सोशल मीडिया के उपयोग करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है वैसेवैसे इस सैक्टर में काम के अवसर भी बढ़ रहे हैं.

एक अनुमान के अनुसार 2024 में सोशल मीडिया उपयोग करने वालों की संख्या 517 करोड़ तक पहुंच जाएगी. बढ़ रहा कारोबार यूएस ब्यूरो औफ लेबर स्टैटिस्टिक्स का अनुमान है कि विज्ञापन, प्रचार और मार्केटिंग मैनेजरों के लिए नौकरियों में 2032 तक 6 प्रतिशत की वृद्धि होगी जो औसत से दोगुना अधिक है. सोशल मीडिया प्लेटफौर्म में सब से ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले प्लेटफौर्म में फेसबुक, एक्स, यूट्यूब और इंस्टाग्राम शामिल हैं. इन के अलावा व्हाट्सऐप, पिनटेरेस्ट, लिंक्डइन जैसे और प्लेटफौर्म्स हैं. आमतौर पर लोगों को यह पता नहीं होता है कि वे अपना नैटवर्क कैसे बढ़ाएं.

इस काम में मार्केटिंग कंपनियां मदद करती हैं. भारत में कई कंपनियां अच्छा काम भी कर रही हैं. पिनस्ट्रोर्म डिजिटल मार्केटिंग करती है. बीसी वैबवार सब से पुरानी डिजिटल मार्केटिंग कंपनियों में से एक है. सोशल मीडिया पर प्रचार करने के साथसाथ यह वैब डैवलपर, वैब डिजाइनिंग, औनलाइन मार्केटिंग और मोबाइल मार्केटिंग आदि भी करती है. ब्रेनवर्क टैक्नोलौजीज भी पूरे देश में मार्केटिंग का काम कर रही है. गौरैया की शुरुआत 1996 में हुई थी. यह ब्रैंड मार्केटिंग, सोशल मीडिया प्रमोशन, कंटैंट राइटिंग आदि प्रदान करने का काम करती है.

क्या कहते हैं इन्फ्लुएंसर्स

कुछ कंपनियां ऐसी हैं जो केवल इन्फ्लुएंसर्स के सहारे अपनी मार्केटिंग करती हैं. वे सोशल मीडिया पर बगुले की तरह से निशाना लगाए रहती हैं. जैसे ही कोई इन्फ्लुएंसर दिखता है वे उसे मार्केटिंग करने का औफर देते हैं. कई लोग इन्फ्लुएंसर्स को काम दिलाने के बहाने उन का शोषण भी करते हैं. लखनऊ की रहने वाली कल्पना यादव कहती हैं, ‘मेरे इंस्ट्राग्राम पर 10 हजार फौलोअर्स जैसे ही हुए तो मेरे पास एक मैसेज आया कि हम आप को काम दिलाएंगे. पहले काम के बदले प्रोडक्ट्स मिलते थे. ‘इस तरह से मैं ने ब्यूटी प्रोडक्टस के बदले काम किया. यह सिलसिला 4-5 माह तक चला. फिर मुझे पता चला कि जो मार्केटिंग कंपनी मेरा काम देख रही थी वह मेरे काम के बदले तो नकद पैसा लेती थी लेकिन मुझे कुछ ब्यूटी प्रोडक्ट्स मिलते थे.

शुरूशुरू में बहुत अच्छा लगा लेकिन कुछ ही दिनों में इन से मन भर गया. तब मैं ने अपने मैनेजर को मना कर दिया. इस के बाद मैं ने खुद काम तलाशना शुरू किया. आज भले ही हमारे पास काम कम है लेकिन नकद पैसा मिलता है.’ इंस्ट्राग्राम पर इन्फ्लुएंसर के रूप में काम करने वाली रीता शर्मा कहती हैं, ‘मुझे मार्केटिंग कंपनी से जो विज्ञापन मिले वे सभी फैशनेबल ड्रैस के होते थे. इन के बदले कपड़े मिलते थे. शूटिंग के लिए जिसजिस तरह के औफर मिलते थे वे मुझे पसंद नहीं थे.

मार्केटिंग कंपनी दबाव डालने का काम करती थी. ऐसे में इन्फ्लुएंसर के लिए जरूरी है कि वे मार्केटिंग कंपनी की जगह पर खुद अपनी मार्केटिंग करें. इस से इन्फ्लुएंसर्स को लाभ होगा. मार्केटिंग कंपनियां इन्फ्लुएंसर्स और ब्रैंड के बीच बिचौलिए के रूप में बिजनैस कर के लाभ कमाती हैं.’ डायरैक्ट मार्केटिंग कैसे करें? डायरैक्ट मार्केटिंग करने से पहले जरूरी है कि अपनी औडियंस को अच्छी तरह से जान लें. जैसे एक कपड़ों से जुड़े बिजनैस को प्रमोट करना चाहते हैं तो सब से पहले यह जानना जरूरी है कि आप की कंपनी का उत्पाद किस तरह के लोग पहनना पसंद करेंगे. उस के हिसाब से ही टारगेट औडियंस बना कर आप किसी भी तरह का प्रमोशन अपने लिए चुन सकते हैं.

सोशल मीडिया साइट की कोई कमी नहीं है. ऐसे बहुत से प्लेटफौर्म्स हैं जहां अपने ब्रैंड के बारे में लोगों के साथ बातचीत कर सकते हैं और इस तरह की साइटें प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं. यहां पर सब से ज्यादा जरूरी चीज है कि अपने बिजनैस के हिसाब से सोशल मीडिया प्लेटफौर्म का चयन करना होगा. अगर एक टारगेट औडियंस का डाटा हो जिस से पता रहे कि आप का प्रोडक्ट किस तरह के लोग इस्तेमाल करते हैं तो उस के हिसाब से आप सोशल मीडिया का चयन करते हुए लोगों तक सोशल मीडिया मार्केटिंग कर सकते हैं. सोशल मीडिया के जरिए प्रमोशन करने के लिए सब से ज्यादा जरूरी है कि आप के पास एक कैलेंडर पहले से बना होना चाहिए.

अगर आप सोच रहे हैं कि आप तुरंत किसी भी तरह का कंटैंट या किसी भी तरह की ऐड बना कर प्रमोशन शुरू कर देंगे तो वह कभी लोगों पर वैसा असर नहीं कर पाएगी जैसा कि आप चाहते हैं. इसीलिए हो सके तो हरेक सोशल मीडिया चैनल के लिए आप अलग तरह का कैलेंडर बनाएं. वीडियो कंटैंट इमेज या दिए गए लिंक के मुकाबले लोगों में बहुत ज्यादा लोकप्रिय होते हैं. वीडियो कंटैंट लोगों पर अपना असर ज्यादा दिखाता है, इसीलिए जितना ज्यादा हो सके अपने बिजनैस के बारे में वीडियो शेयर करने की कोशिश करें. इस के अलावा यह भी देखा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफौर्म वीडियो फौर्मेट को अपनी न्यूज फीड में ज्यादा से ज्यादा जगह देते हैं. सोशल मीडिया जगत में जो दिखता है वही बिकता है. प्रोडक्ट भले ही कितना अच्छा हो, अगर आप उस को सही तरह से लोगों के सामने सोशल मीडिया पर नहीं दिखा पा रहे हैं तो बहुत अच्छा प्रोडक्ट होते हुए भी उस के बिकने या आगे बढ़ने का स्कोप कम हो जाता है.

सोशल मीडिया पर प्रमोशन करने के बाद पौजिटिव और नैगेटिव दोनों तरह के फीडबैक का सामना करना पड़ेगा. पौजिटिव फीडबैक हर किसी को अच्छा लगता है पर हमेशा ध्यान रहे कि फीडबैक ही ऐसा है जो आप के बिजनैस को ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए काम आता है, इसीलिए अगर आप को अपने कस्टमर की तरफ से किसी भी तरह का फीडबैक मिल रहा है तो जल्द से जल्द उस का समाधान करने की कोशिश करें. सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर देखा गया है कि एक ही तरह की चीजों में दिलचस्पी रखने वाले लोग एकदूसरे से जुड़ना पसंद करते हैं.

ऐसे में अगर हो सके तो अपने बिजनैस से जुड़े हुए लोगों को एक कम्युनिटी में जोड़ने की कोशिश करें. जितने ज्यादा लोग आप की कम्युनिटी में होंगे उतने ही लोग आप के बिजनैस और आप के प्रोडक्ट में दिलचस्पी दिखाएंगे. मार्केट में बहुत ही उचित दामों पर ऐसे बहुत से टूल्स मिलते हैं जिन के जरिए सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर अपनी पोस्ट को शैड्यूल कर सकते हैं. इस में फायदा यह रहता है कि किसी भी समय अपनी पोस्ट को अपने पेज पर डाल सकते हैं. इसीलिए इस तरह के सोशल मीडिया टूल्स को इस्तेमाल करने से परहेज न करें. इन्फ्लुएंसर्स को चाहिए कि वे मार्केटिंग कंपनी के जाल में फंसने की जगह अपना बिजनैस प्रबंधन खुद करें. डायरैक्ट मार्केटिंग यानी डीएम इन्फ्लुएंसर्स के लिए बेहतर होगा.

मेरी हाल ही में शादी हुई है, पत्नी को किस तरह सैक्स में संतुष्ट रखूं ?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मेरी उम्र 27 साल है और हाल ही में मेरी शादी हुई है. मेरी पत्नी काफी खूबसूरत है और जब से मैं ने उसे देखा था तब से ही मैं उस का दीवाना बन गया था. हम अभी कुछ दिन पहले ही हनीमून से वापस लौटे हैं. मैं चाहता हूं कि मैं अपनी पत्नी को खूब प्यार करूं ताकि उसे किसी चीज की कोई कमी महसूस न हो. मैं ने सुना है कि अगर पत्नी सैक्स करते समय संतुष्ट नहीं हो पाती तो उस का अपने पति से जल्दी ही मन भर जाता है जोकि मैं बिलकुल नहीं चाहता. मुझे बताइए कि मैं अपनी सैक्स लाइफ में किस तरह की गलतियां करने से बचूं जिस से कि मैं अपनी पत्नी के हमेशा संतुष्ट रख सकूं.

जवाब –

यह अच्छी बात है कि आप को अपनी पत्नी खूबसूरत लगती है। कहते हैं कि अगर हमारी सैक्स लाइफ अच्छी है तो हमारी मैरिड लाइफ भी काफी हद तक अच्छी गुजरती है. सैक्स एक कुदरती प्रकिया है जिसे जीवनसाथी एकदूसरे के साथ ऐंजौय करते हैं और चाहते हैं कि उन की सैक्स लाइफ सब से अच्छी हो.

जैसाकि आप ने बताया कि आप की हाल ही में शादी हुई है तो आप को अपनी सैक्स लाइफ अच्छी बनाने के लिए इन गलतियों से बचना है :

न करें सिर्फ सैक्स पर फोकस

सब से पहले तो आप को सिर्फ सैक्स पर फोकस नहीं करना है. पत्नियां तब खुश होती हैं जब उन का पति उन को जीभर कर प्यार करे. आप को सब से पहले अपनी पत्नी के साथ टाइम स्पेंड करना है. काम से लौट कर अपनी पत्नी को अटैंशन दें, उन के साथ खाना खाएं, उन के साथ ढेर सारी बातें करें, फिल्म देखें और रोमांस करने पर ध्यान दें.

करें भरपूर रोमांस

लड़कियों को रोमांटिक लड़के काफी पसंद होते हैं. आप को अपनी पत्नी के साथ खुल कर रोमांस करना है, जम कर किसिंग करनी है, उन को अपनी बांहों में जकड़ लेना है और फिर सब से अंत में सैक्स करना है. ऐसा करने से आप की पत्नी को दिखेगा कि आप उन से कितना प्यार करते हैं.

अपनी पत्नी के साथ करें सैक्सी बातें

हमेशा अपनी पत्नी के साथ रोमांटिक और सैक्सी बातें करनी चाहिए. आप को अपनी पत्नी की पसंदनापसंद के बारे में जानना होगा ताकि आप सैक्स करते समय कुछ ऐसा न करें जो आप की पत्नी को नापसंद हो.

पत्नी के साथ सैक्स की बातें करने में बिलकुल ना शरमाएं और अपनी पत्नी को भी न शरमाने दें. ऐसा करने से आप की सैक्स लाइफ और भी ज्यादा मजबूत बन जाएगी.

आप काम के बीच में भी अपनी पत्नी के साथ टच में रहें जिस से कि उन को महसूस हो कि आप काम करते समय भी उन को याद करते हैं. साथ ही अगर आप को समय मिले तो अपनी पत्नी के साथ सैक्स चैटिंग करें जिस से जब आप शाम को घर लौटेंगे तो आप दोनों एक दूसरे से मिलने के लिए बेचैन रहेंगे.

ओरल सैक्स करें

अगर आप चाहते हैं कि आप की सैक्स लाइफ सब से बैस्ट बन जाए तो आप को सैक्स रूटीन में ओरल सैक्स जरूर ट्राई करना चाहिए. ओरल सैक्स हर पत्नी को काफी पसंद आता है.

आप अपनी पत्नी के नाजुक अंगों को सहलाएं, उन के साथ थोड़ी छेड़छाड़ करें, उन की पूरी बौडी पर चुंबन करें और उन की गरदन पर भी चुंबन जङ दें.

ऐसा करने से आप की पत्नी खुद को काफी संतुष्ट महसूस करेगी और वह भी आप को संतुष्ट करने की पूरी कोशिश करेगी.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 8588843415 भेजें.

काम के साथ सेहत भी

अकसर हमें अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक पैसों की जरूरत होती है, जिस के लिए हमारे पास या तो अच्छी नौकरी होनी चाहिए या अच्छा व्यवसाय. अगर ये दोनों चीजें हमारे पास नहीं हैं तो हमें अपने शरीर को क्षमता से ज्यादा तकलीफ दे कर काम करना पड़ता है. ये परिस्थितियां उन लोगों के पास ज्यादा होती हैं जो प्राइवेट या कम सैलरी वाली नौकरी करते हैं या मजदूरी करते हैं. ऐसे में कभीकभी न चाहते हुए भी इन लोगों को ओवरटाइम यानी तय सीमा से अधिक काम करना पड़ता है. इस स्थिति में अगर उचित आराम और खानपान पर ध्यान न दिया जाए तो वह सेहत के लिए हानिकारक भी हो सकता है.

संजय 5 हजार रुपए प्रतिमाह की सैलरी पर एक प्लास्टिक फैक्ट्री में नौकरी कर रहे थे. उन के 6 लोगों के परिवार के लिए यह सैलरी नाकाफी थी. संजय रोज सुबह 8 बजे से शाम को 5 बजे तक फैक्ट्री में काम करते, लेकिन सैलरी कम होने की वजह से अब वे ओवरटाइम भी करने लगे. ओवरटाइम की वजह से वे 5 बजे के बजाय फैक्ट्री से रात को 10 बजे छुट्टी पाते. इस से उन्हें अतिरिक्त आमदनी होने लगी, जिस से उन के परिवार का खर्चा आसानी से चलने लगा. लेकिन ओवरटाइम के चलते उन का खानपान असमय हो गया और सेहतमंद खाने की कमी से उन के शरीर को पोषण भी नहीं मिल पा रहा था. वे ओवरटाइम करने के चलते भरपूर नींद भी नहीं ले पा रहे थे, जिस से अकसर वे थकान महसूस किया करते थे.

एक दिन काम की अधिकता और पूरी नींद न ले पाने के चलते संजय को मशीन पर काम करते समय झपकी आ गई, जिस से उन के दोनों हाथों की उंगलियां मशीन में चली गईं और उन्हें अपने दोनों हाथों की उंगलियों को पंजों सहित गंवाना पड़ा.

कुछ यही हाल बैंक में काम करने वाले सुरेश का भी है. वे अकसर बैंक का काम खत्म होने के बावजूद बैंक का हिसाबकिताब निबटाने की वजह से देररात तक काम करते रहते हैं. काम के बोझ से उन्हें कुछ दिनों से घबराहट सी होने लगी. एक दिन सुरेश ने बैंक से छुट्टी ले कर डाक्टर को अपनी समस्या बताई तो डाक्टर ने जरूरी चैकअप करने के बाद बताया कि उन्हें उच्च रक्तचाप की समस्या है. इस का कारण काम की अधिकता का बोझ बताया गया. डाक्टर ने सुरेश को सलाह दी कि वे अपने औफिस के कामों का बोझ अपने दिमाग पर न दें और कुछ दिनों की छुट्टी ले कर किसी अच्छे स्थान पर घूमने जाएं, जिस से उन के हाई ब्लडप्रैशर पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सके. डाक्टर ने यह भी सलाह दी कि वे एक तय समयसीमा तक ही अपने शरीर पर काम का बोझ डालें.

हो सकती है कामेच्छा में कमी

मैडिकल कालेज, उत्तर प्रदेश बस्ती में मानसिक एवं यौन रोग विशेषज्ञ डा. मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन का कहना है कि व्यक्ति के लिए क्षमता से अधिक काम करने के चलते पूरी नींद नहीं मिल पाती है. इस के अलावा खानपान पर भी इस का असर होता है. क्षमता से अधिक काम के चलते यौन संबंधों पर इस का बुरा प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि काम की अधिकता की वजह से व्यक्ति अपने परिवार और जीवनसाथी को पूरा समय नहीं दे पाता है. वहीं, काम की अधिकता के कारण शारीरिक और मानसिक थकान व्यक्ति में कामेच्छा की कमी का कारण बन जाती है, जिस की वजह से वह अपने जीवनसाथी को संतुष्ट नहीं कर पाता है और बिस्तर पर जल्दी पस्त हो जाता है.

शरीर बन सकता है बीमारियों का घर

जिला चिकित्सालय, बस्ती में चिकित्सक डा. वी के वर्मा के अनुसार, अगर हम किसी भी काम को तय सीमा से अधिक समय तक करते हैं तो वह हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक बन सकता है, जिस की वजह से तमाम तरह की बीमारियां शरीर को जकड़ने लगती हैं. इस में उच्च रक्तचाप, हृदय की बीमारियां, अल्सर इत्यादि की समस्याएं बढ़ जाती हैं. ऐसी अवस्था में व्यक्ति बीमार पड़ सकता है, जिस से न केवल उस की कार्यक्षमता प्रभावित होती है, बल्कि बीमारी की वजह से उसे आर्थिक तंगी का शिकार भी होना पड़ता है.

डा. वर्मा का कहना है कि व्यक्ति को काम के दौरान शरीर को आराम देने के लिए बीचबीच में ब्रेक लेना चाहिए, जिस से मांसपेशियों को उचित आराम मिलता रहे. साथ ही, काम के दौरान व्यक्ति को पोषक तत्त्वों से भरपूर प्रोटीन और विटामिन युक्त भोजन लेना चाहिए, जिस से शरीर में कमजोरी न आने पाए. इन बातों का ध्यान रख कर व्यक्ति बीमारियों से आसानी से बच सकता है.

मानसिक बीमारियों का कारण बन सकता है अधिक काम

डा. मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन के अनुसार, अकसर काम की अधिकता की वजह से हम मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाते हैं. कभीकभार काम का बोझ इतना अधिक हो जाता है कि हमारा रक्तचाप बढ़ जाता है और हम हाइपरटैंशन का शिकार हो सकते हैं. इस अवस्था में जो दवाएं हम लेते हैं, वे इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए कभीकभी जीवनभर लेनी पड़ती हैं. ऐसी अवस्था में व्यक्ति को चाहिए कि वह सुबह उठ कर व्यायाम करे और अपने दिमाग पर किसी तरह का दबाव न डाले. अनियमित और अधिक वसायुक्त भोजन, फास्टफूड जैसी चीजों से बचे. ये सभी चीजें व्यक्ति को हाइपरटैंशन से बचाने में सहायक सिद्ध होती हैं.

थकान से छुटकारा पाने के लिए नशे का सहारा

डा. अकमलुद्दीन का कहना है कि अकसर लोग काम की थकान को उतारने के लिए नशे का सहारा लेते हैं, जो उन के परिवार की बरबादी का कारण बनने के साथ ही सेहत पर भी बुरा असर डालता है. ऐसी अवस्था में कभीकभी काम के दौरान नशा करना किसी बड़ी दुर्घटना का कारण भी बन सकता है. इस स्थिति से बचने के लिए व्यक्ति को चाहिए कि वह बीचबीच में शरीर को जरूरी आराम दे और भरपूर मात्रा में पानी का प्रयोग करे, जिस से थकान न आए और नशे से दूर रहे.

डा. अकमलुद्दीन का कहना है कि अधिक धूल, धुएं और प्रदूषित वातावरण में काम करने से हमारे फेफड़े और शरीर के अन्य अंग भी प्रभावित होते हैं, जिस की वजह से कई गंभीर बीमारियां भी जन्म ले सकती हैं.

बस्ती जिले के दलित तबके के रहने वाले मोनू उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले में चूडि़यों के एक कारखाने में काम करते थे. एक दिन उन्हें तेज बुखार हुआ, उस के बाद खांसी की समस्या शुरू हो गई. मोनू ने शुरुआती दिनों में इसे नजरअंदाज किया, लेकिन जब काम के दौरान उन्हें कमजोरी और थकान महसूस होने लगी तो उन्होंने डाक्टर को दिखाया. डाक्टर ने मोनू का जरूरी चैकअप करने के बाद बताया कि अधिक भीड़भाड़ और प्रदूषित क्षेत्र में काम करने की वजह से टीबी के संक्रमण वाले व्यक्ति के संपर्क में आने से उन्हें टीबी का संक्रमण हो गया है. कुछ ही दिनों में मोनू का वजन आधा हो गया और उन का काम छूट गया. फिर वे डाक्टर की सलाह पर टीबी को खत्म करने के लिए ली जाने वाली दवाइयां लेते रहे, तब जा कर कहीं उन की टीबी की बीमारी ठीक हो पाई.

इस मसले में डा. वी के वर्मा का कहना है कि अकसर लोग भीड़भाड़ और प्रदूषित क्षेत्रों में काम करते हैं जहां उन का खानपान भी प्रदूषित होता है. ऐसी अवस्था में पेट का अल्सर और लिवर की कई बीमारियां जन्म ले सकती हैं. डा. वर्मा के अनुसार, काम के दौरान व्यक्ति को खानपान की साफसफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए, जिस से पेट की बीमारियों से बचा जा सके.

उन का कहना है कि व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुसार ही काम करना चाहिए और शरीर को आराम देने के लिए काम के बीच में ब्रेक लेना नहीं भूलना चाहिए. साथ ही, काम के बो?ा से बचने के लिए जरूरी व्यायाम और खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए. शारीरिक थकान उतारने के लिए नशा नहीं लेना चाहिए. तभी हम काम के बो?ा से होने वाली बीमारियों से बच सकते हैं और अपने परिवार को खुशहाल रख सकते हैं.

निडर रोशनी की जगमग : राधिका ने भाग्यश्री को किस के साथ देखा

धारा सोसाइटी के फ्लैट को देख कर राधिका ने वहां शिफ्ट करने के लिए तुरंत हामी भर दी. अमन को भी वह मकान पसंद आ गया था. दिल्ली आने के बाद कई दिनों से वे मकान के लिए इधरउधर भटक रहे थे. कब तक होटल के कमरे में कैद हो कर रहते. बैंगलुरु में औफिस के पास ही अच्छा सा फर्निश्ड मकान किराए पर ले रखा था उन्होंने. दिल्ली में भी ऐसे ही मकान की तलाश में थे वे दोनों. अमन को यहां एक कंपनी में अच्छा पैकेज मिल गया था. राधिका ने उस के साथ आने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी थी. उस का विचार दिल्ली आ कर अपने लिए भी एक नई नौकरी की तलाश करना था. होटल में 15 दिन से ज्यादा हो गए थे. घर किराए पर ले कर अब वे होटल से बाहर आने को बेचैन थे. कई जगह मकान देख कर निराश होने के बाद इस फ्लैट को देख कर उन्हें तसल्ली हो गई. अमन को 2 बैडरूम के इस मकान का सलीके से लगा फर्नीचर और कमरों तथा बाथरूम की साजसज्जा आकर्षित कर रही थी, तो राधिका को मौडरेट किचन. पर इन सब से बढ़ कर जल्द ही नई नौकरी ढूंढ़ कर जौइन करने की इच्छुक राधिका को घर के साथ एक ‘सरवैंट क्वार्टर’ भी होना बेहद सुखद लग रहा था. यहां की सोसाइटी के सभी फ्लैट्स में यह व्यवस्था थी.

फ्लैट से सटा 1 कमरे का छोटा सा क्वार्टर, जिस में बाथरूम और रसोई भी. प्रवेशद्वार भी पूरी तरह अलग था सरवैंट क्वार्टर का. उन क्वार्टर्स में कामवालियां अपने परिवार सहित रही थीं. क्वार्टर के बदले में उन्हें उसी घर का काम कम पैसों में करना होता था. राधिका यह सोच कर बेहद खुश थी कि वह भी अपने फ्लैट के सरवैंट क्वार्टर में मेड को रख लेगी. फिर जौब लगने पर औफिस में निश्चिंत हो कर काम करने के साथसाथ औफिस से आते ही किचन में जुट जाने के झंझट से मुक्त हो जाएगी. जल्द ही वे उस फ्लैट में शिफ्ट हो गए. आसपड़ोस के लोग अच्छे थे. उन से पता लगा कि मेड रखने के लिए वहां के सिक्युरिटी गार्ड से संपर्क करना अच्छा होगा, क्योंकि उस के पास वे लोग अपना मोबाइल नंबर दे जाते हैं, जो सरवैंट क्वार्टर्स में रह कर घर के काम करने के इच्छुक होते हैं.

सिक्युरिटी गार्ड को मेड के लिए सूचित करते ही उन के यहां क्वार्टर लेने वालों का तांता लग गया. बाहर बस्ती में छोटे से कमरे के लिए भी इन लोगों को क्व5-6 हजार तक किराया देना पड़ता था और वह भी सुविधारहित मकान का. अत: साफसुथरी सोसाइटी में क्वार्टर और बदले में केवल एक ही घर का काम, इसलिए बहुत सी कामवालियां तैयार थीं आने को. राधिका की कई लोगों से बात हुई. पर उसे संतुष्टि नहीं हो पा रही थी. एक महिला उसे जंची भी, पर उस का अपना बच्चा ही 2 महीने का था. अत: राधिका को लग रहा था कि न जाने वह काम में पूरा ध्यान लगा पाएगी या नहीं?

‘‘इतने लोग आ चुके हैं अब तक, पर कोई भी ढंग का नहीं… पता नहीं दिल्ली में उसे मनपसंद बाई मिल पाएगी या नहीं’ सोच कर निराश हुई राधिका रसोई में घुसी ही थी कि एक बार फिर डोरबैल बज उठी. कुछ उत्सुक, कुछ परेशान सी राधिका ने दरवाजा खोला. सामने एक अधेड़ उम्र की स्त्री, लंबी सी चोटी आगे किए. साफसुथरी सूती साड़ी पहने खड़ी हुई दिखाई दी. राधिका की ओर देख कर उस ने मुसकराते हुए नमस्ते की.

राधिका उस स्त्री से कुछ पूछती उस से पहले ही वह बोल उठी, ‘‘मैडम हम बिमला हैं. हमें बहुत जरूरत है कमरे की. हमारा आदमी तो इस दुनिया में नहीं. बस 2 लड़कियां हैं. दोनों की शादी हो चुकी है. हम पास ही किराए के कमरे में रहते हैं. अभी तक हम कई घरों का काम करते आए हैं, पर अब घूमघूम कर काम नहीं होता हम से. एक घर में रहेंगे और वहीं का काम करेंगे… काम को ले कर कोई शिकायत नहीं होगी हम से. हम खूब काम करते हैं.’’ राधिका को वह तौरतरीके से सरल स्वभाव की लगी. पूरी तरह आश्वस्त होने से पहले उस ने अपने मन में उठ रही शंका को शांत करने के उद्देश्य से पूछ लिया, ‘‘एक बात बताओ, तुम तो जानती हो न कि सरवैंट क्वार्टर तुम्हें मिलेगा तो उस के बदले काम के पैसे कम मिलेंगे. फिर रोज का अपना खर्चा कैसे चलाओगी तुम?’’

‘‘आप उस की चिंता न करो मैडम… हमें तो एक भी पैसा नहीं चाहिए. आप कमरा दे दो बस. हमारे गांव से हर 6 महीने बाद अनाज आता है. फिर हमारे दोनों दामाद भी बहुत अच्छे हैं, रुपयोंपैसों से वे भी मदद करते रहते हैं हमारी.’’ राधिका को बिमला काम पर रखने के लिए अनुकूल लगी. ‘सारा दिन अकेली ही होगी बिमला… अपने घर का ज्यादा काम तो होगा नहीं उसे…इसलिए मेरा घर ठीक से देख लेगी,’ सोच कर प्रसन्न होती हुई राधिका ने क्वार्टर की चाबी बिमला को थमा दी.

2 दिन बाद बिमला अपना सामान ले कर आ गई और राधिका से काम समझ कर सब काम ठीक से करने लगी. राधिका के 15 दिन बहुत चैन से बीते. इसी बीच वह 2 कंपनियों में इंटरव्यू भी दे आई. पर कुछ दिनों बाद ही बिमला की कुछ बातें उसे खटकने लगीं.

गांव से अनाज आने की बात कहने वाली बिमला ने लगभग रोज राधिका से कुछ न कुछ मांगना शुरू कर दिया. धीरेधीरे उस की हिम्मत बढ़ने लगी और वह अपनेआप ही डब्बे में से आटा, चावल, दाल और फ्रिज में से दूध और सब्जियां निकाल लेती.

एक दिन राधिका से रहा नहीं गया. उस ने विरोध किया तो बिमला तपाक से बोली, ‘‘हम कोई चोरी थोड़े ही कर रहे हैं. आप के सामने ही तो निकाला है. अब यहां काम कर रहे हैं और गांव से कोई सामान देने नहीं आया तो यहीं से लेंगे और कहां जाएंगे?’’ राधिका को गुस्सा तो बहुत आया पर वह चुप हो गई.

कुछ दिन और बीते. फिर बिमला की मांगें बढ़ने लगीं. कभी उसे आने वाले मेहमानों के सामने बिछाने के लिए नई चादर चाहिए होती तो कभी शादी में जाने के लिए साड़ी. इतना ही नहीं राधिका पर वह रोब भी गांठने लगी. प्रतिदिन किसी न किसी बात पर वह राधिका को पुराने रीतिरिवाजों का महत्त्व समझाने लगती. कभी वह उसे मांग में सिंदूर न भरने के लिए टोकती तो कभी किसी त्योहार पर पूजापाठ न करने पर. राधिका काम के विषय में कुछ कहती तो वह अनसुना कर देती. धीरेधीरे किसी न किसी बहाने वह पैसे भी मांगने लगी. मना करने पर उस की त्योरियां चढ़ जातीं. राधिका समझ नहीं पा रही थी कि क्या किया जाए? उस दिन राधिका ने फेसपैक लगाया हुआ था और नहाने के लिए बाथरूम में घुस ही रही थी कि डोरबैल बज उठी. बिमला के पास रसोई में जा कर राधिका ने उसे दरवाजा खोल कर देखने को कहा. बिमला ने तुरंत हाथ में ली हुई कटोरी जोर से सिंक में फेंकी और हाथ धो कर दनदनाती हुई दरवाजा खोलने चल दी.

राधिका को उस का व्यवहार बहुत खटक रहा था. थोड़ी देर बाद बिमला हाथ में एक पैकेट लिए आई और राधिका को थमाते हुए बोली, ‘‘लो, जल्दी पकड़ो मैडमजी… हमें भी काम खत्म करना है…सारा दिन यहीं लगा देंगे क्या?’’ राधिका को बुरा तो बहुत लगा पर गुस्से को पीते हुए उस ने पैकेट खोल कर अपनी नई चप्पलें निकालीं, जो औनलाइन मंगवाई थीं.

चप्पलें देखते ही बिमला बोली, ‘‘लो, शू रैक तो पहले ही भरा पड़ा है. एक और मंगवा ली आप ने. फालतू खर्च. पैसा तो आप लोगों के पास बहुत है पर गरीब जरा सा कुछ ले ले तो जान निकल जाती है.’’ राधिका का गुस्सा अब 7वें आसमान पर था. बिमला के बदलते व्यवहार से पहले ही परेशान राधिका ने उसे तुरंत काम छोड़ने और क्वार्टर खाली करने का आदेश सुना दिया.

बिमला गुस्सा दिखाते हुए बोली, ‘‘आज ही कमरा खाली कर हम अपनी लड़की के पास चले जाएंगे… रखना किसी और को… पता लग जाएगा आप को और फिर दनदनाती हुई घर से निकाल कर सरवैंट क्वार्टर में घुस गई. कुछ देर बाद ही उस ने अपनी बेटी और दामाद को बुला कर सामान समेटा और 2 घंटे के भीतर कमरा खाली कर दिया.

राधिका का गुस्से और परेशानी से बुरा हाल था. किसी तरह उस ने अधूरा काम निबटाया और आराम करने लेट गई. थकान के कारण जल्द ही उस की आंख लग गई. शाम को डोरबैल की आवाज से ही नींद टूटी. दरवाजा खोला तो बाहर एक लजाती हुई 23-24 वर्षीय युवती खड़ी थी. देखने से वह नवविवाहिता लग रही थी. उस की कमसिन मुसकराहट देख कर राधिका अपनी सारी परेशानी भूल गई. उस के पास ही युवक भी खड़ा था, जो उस का पति जान पड़ता था.

‘‘मेम साहब, मेरा नाम सीमा है, ये सतीश… मेरे… हम कमरे के लिए आए हैं.’’ सीमा का वाक्य पूरा होते ही सतीश ने नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़ दिए.

‘‘ओके. पर तुम्हें कैसे पता लगा कि मुझे काम पर रखना है किसी को? आज ही तो गई है मेरी मेड. अभी तो कमरे को ले कर मैं ने किसी से कुछ कहा ही नहीं,’’ राधिका ने दोनों को अंदर बुलाते हुए कहा. दोनों अंदर आ कर दीवार से सट कर खड़े हो गए.

‘‘मेम साहब, वे मेरी बूआजी हैं, जो आप के यहां काम करती थीं. आज वे गुस्से में कुछ ज्यादा बोल गई थीं, अब पछता रही हैं. आप तो दोबारा उन्हें रखेंगी नहीं, इसलिए मुझे भेजा है उन्होंने,’’ बिना किसी लागलपेट के सीमा ने सब सच बोल दिया. ‘‘अच्छा, बिमला ने भेजा है तुम्हें… चलो ठीक है… काम कर तो पाओगी न सब?’’ राधिका उस की साफगोई से खुश हो कर उसे सरवैंट क्वार्टर में रखने का निर्णय कर चुकी थी.

‘‘मेम साहब, अपनी जेठानी के पास रह रही हूं आजकल. वे भी इसी कालोनी के एक सरवैंट क्वार्टर में रहती है… आप को सच्ची बताऊं तो काम तो सारा वहां भी मैं ही कर रही हूं… काम की परेशानी नहीं है मुझे बस सोने

में बहुत दिक्कत हो रही है वहां हमें. कमरा एक है और जेठजेठानी, उन के 2 बच्चे और ऊपर से 2 जने हम. 1 महीना बीत गया वहीं सब के साथ सोतेसोते…’’

दोनों को प्यार के कुछ पल साथसाथ बिताने को तरसते देख कर राधिका को उन पर ही प्यार आ गया. दोनों की ओर देख मुसकराते हुए राधिका ने क्वार्टर की चाबी सीमा को थमा दी. वे दोनों एक फोल्डिंग पलंग और कुछ कपड़ों के साथ रात को क्वार्टर में आ गए. अगले दिन सतीश सुबहसुबह अपने काम पर चला गया और सीमा राधिका के पास आ गई. आते ही गुनगुनाते हुए उस ने काम करना शुरू कर दिया. बीचबीच में वह राधिका से बातें भी करने लगती थी.

सीमा के व्यवहार और काम से आश्वस्त राधिका लैपटौप ले कर नौकरी की नई संभावनाओं की खोज में लगी रहती. सीमा और राधिका को एकदूसरे का साथ बहुत अच्छा लग रहा था.

रविवार को सीमा अकसर आधे दिन की छुट्टी ले कर सतीश के साथ घूमने, फिल्म देखने या किसी रिश्तेदार से मिलने चली जाती थी. उस दिन वह खूब मेकअप करती. जब वह तैयार होती तो उसे देख कर कोई कह नहीं सकता था कि वह बाई है. तरहतरह के शेड्स की लिपस्टिक, मसकारा, स्टोन की बिंदियां… बहुत कुछ था उस के पास. ब्लाउज भी अच्छीअच्छी डिजाइन के पहनती थी वह… उस का इतना खर्च देख कर राधिका कभीकभी अचरज में पड़ जाती थी.

सीमा इस विषय में कभी बात करती तो वह कहती, ‘‘अभी नईनई शादी हुई है. खर्चा है ही क्या हमारा… थोड़ा सजसंवर लेते हैं तो हमारे इन को भी अच्छा लगता है. यही सारा सामान खरीदने की जिद करते हैं.’’ सीमा को घर का सारा काम सौंप कर राधिका पूरी तरह निश्चिंत थी. अब जल्द ही वह नई जौब पा लेना चाहती थी.

उस दिन नौकरी की साइट्स देखतेदखते वह बोर हो गई तो औनलाइन शौपिंग की साइट पर चली गई. ‘कोई चीज पसंद आए इस से पहले ही क्रैडिटकार्ड ले आती हूं’, सोचती हुई राधिका ड्राइंगरूम की ओर चल दी, जहां टेबल पर कल से उस का पर्स रखा था. ड्राइंगरूम में पहुंचते ही वह सन्न रह गई. सोफे पर बैठी सीमा उस के पर्स की छानबीन में लगी थी. उस की पीठ राधिका की ओर थी, इसलिए वह राधिका को देख नहीं पाई. जब

तक राधिका वहां पहुंचती, सीमा ने कुछ निकाल कर अपने ब्लाउज में रख लिया. राधिका दबे पांव वहां पहुंची और सीमा को पीछे से पकड़ लिया. इस प्रकार रंगे हाथों पकड़े जाने से सीमा हड़बड़ा गई.

‘‘मेम साहब, मुझे माफ कर दो… मैं कभी चोरी नहीं करती… आज तबीयत ठीक नही थी… डाक्टर को दिखाना था, इसलिए ये पैसे… अब कभी ऐसा नही करूंगी,’’ सीमा क्व5 सौ का नोट अपने ब्लाउज से निकाल कर राधिका को देती हुई बोली. ‘‘बीमार हो तुम? फिर बताया क्यों नहीं मुझे… सुबह से तो खूब खुश लग रही थी… उफ, अब मेरी समझ आ रहा है कि मेरे शैंपू और कंडीशनर्स इतनी जल्दी क्यों खत्म होने लगे थे? मेरी कुछ लिपस्टिक्स कुछ दिनों से क्यों नहीं मिल रहीं और काम के बीच में बहाने बना कर कुछ देर के लिए तुम क्वार्टर में क्यों चली जाती थी. मैं अब कुछ नहीं सुनूंगी, तुम बस अभी मेरे घर से चली जाओ,’’ राधिका गुस्से से आगबबूला हो रही थी, वह सोच नहीं पा रही थी कि इस गुनाह के लिए सीमा की शिकायत पुलिस में करनी चाहिए या नहीं.

शाम को अमन के आने पर राधिका ने देखा कि सरवैंट क्वार्टर का दरवाजा खुला है. सीमा और सतीश वहां से चुपचाप अपना सामान ले कर गायब हो चुके थे. सीमा की कलई खुल जाने से राधिका खुश तो थी पर फिर वही मेड की समस्या मुंह बाए खड़ी थी. ‘इस बार जल्दबाजी नहीं करूंगी. सोच-समझ कर फैसला लूंगी,’ सोचते हुए उस ने सिक्युरिटी गार्ड को फोन कर क्वार्टर के लिए इच्छुक लोगों को भेजते रहने को कहा.

रविवार के दिन राधिका को न अमन के औफिस जाने की चिंता होती और न खुद के कहीं इंटरव्यू के लिए जाने की. उस दिन भी रविवार था. सुबह की चाय पीते हुए वह अमन से गप्पें मार रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. ‘‘अरे, सुबह के 8 बजे कौन आ गया?’’ नाक चढ़ा कर राधिका अमन को देखते हुए बोली.

‘‘देखता हूं मैं,’’ कह कर अमन दरवाजा खोलने चल दिया. ‘शायद कोई सरवैंट क्वार्टर की बात करने आया होगा.’ सोच कर राधिका भी अमन के पीछेपीछे हो ली.

अमन ने दरवाजा खोला. सामने 65-70 वर्षीय वृद्ध दंपती खड़े थे. साथ ही छोटे से कद की गौरवर्णीय 21-22 वर्षीय युवती भी थी. अमन को देखते ही वृद्ध ने हाथ जोड़ करुण स्वर में कहा, ‘‘साहब, मैं रिटायर्ड सरकारी चपरासी हूं. हम लोग बहुत सालों से बसंत रोड पर एक परिवार के साथ उन के सरवैंट क्वार्टर में रहे हैं. भाग्यश्री उन के घर का सारा काम करती है. इसी महीने उन साहब का यहां से ट्रांसफर हो गया, इसलिए घर खाली करना है. मेरी पैंशन से खानापीना तो हो जाता है, पर हम किराए पर कमरा नहीं ले सकते. मकान का किराया बहुत ज्यादा है आजकल… और फिर जवान लड़की का साथ… आप तो सब समझते ही होंगे. बहुत जरूरत है हमें सरवैंट क्वार्टर की.’’ ‘‘भाग्यश्री बेटी है तुम्हारी?’’ लड़की और दंपती के बीच उम्र के अंतराल को देख कर राधिका संदेह में थी.

‘‘मैडम न पूछो… यह भाग्यश्री नहीं, अभाग्यश्री है. पोती है हमारी. इस के पैदा होते ही इस की मां चल बसी थी. फिर कुछ साल बाद हमारा बेटा भी बीमार हो कर…’’ वृद्ध का गला रुंध गया. ‘‘अरे, आप दोनों ने अपना नाम तो बताया ही नहीं?’’ बात बदलने के इरादे से राधिका बोली.

‘‘जी मैं बनवारी और यह शारदा,’’ अपनी पत्नी की ओर इशारा करते हुए वह बोला. उन के विषय में थोड़ाबहुत और जान कर राधिका भीतर चली गई. अमन भी उस के पीछेपीछे अंदर आ गया. दोनों को ही बनवारी परिवार को कमरा देना कुछ गलत नहीं लगा. अमन बनवारी को चाबी देते हुए जल्दी आने को कहा.

रात को ही वे सामान के साथ कमरे में आ गए. कई दिन काम का बोझ उठातेउठाते राधिका भी थक गई थी, इसलिए बनवारी परिवार के आते ही उस ने भी चैन की सांस ली. भाग्यश्री के रूप में उसे एक अच्छी मेड मिलने की पूरी आशा थी.

अगले दिन सुबह बनवारी और शारदा उन के घर आ गए और काम करना शुरू कर दिया. भाग्यश्री के न आने का कारण पूछने पर बनवारी ने कहा कि उसे बुखार आ रहा है. काम निबटतेनिबटते दोपहर हो गई. बनवारी दंपती थक कर चूर दिख रहे थे. अगले दिन भी वे दोनों ही काम करने आए. इसी तरह 15 दिन बीत गए. राधिका को इतने वृद्ध लोगों से काम करवा कर ग्लानि हो रही थी. इस के अतिरिक्त काम सफाई से भी नहीं हो पा रहा था.

‘कहीं ऐसा तो नहीं कि भाग्यश्री कहीं और काम करने जा रही हो और उस के बहाने इन लोगों ने मेरा सरवैंट क्वार्टर ले लिया हो?’ राधिका के मन में संदेह उत्पन्न हो रहा था. ‘इस तरह कब तक चलता रहेगा? क्या सच में बीमार है भाग्यश्री’ सोच कर एक दिन राधिका ने सरवैंट क्वार्टर का दरवाजा खटखटा दिया. बनवारी

व शारदा उस समय राधिका के घर के काम में व्यस्त थे. दस्तक होते ही भाग्यश्री दरवाजा आधा खोल कर प्रश्न भरी निगाहों से राधिका की ओर देखने लगी.

‘‘तुम तो भलीचंगी हो, काम पर क्यों नहीं आती?’’ राधिका ने जानना चाहा.

‘‘वह… ऐसा है… मेरे… मुझे…’’ भाग्यश्री की जबान लड़खड़ा गई. राधिका और कुछ बोले बिना वापस चल दी. वह अभी मुड़ी ही थी कि एक 30-35 वर्षीय व्यक्ति क्वार्टर से निकल कर लिफ्ट की ओर भागा. यह दृश्य देख कर राधिका आश्चर्यचकित रह गई. भाग्यश्री की पहेली सुलझने के स्थान पर और उलझ रही थी. परेशान सी राधिका ने इस पहेली को सुलझाने का फैसला कर लिया.

अब प्रतिदिन बनवारी और शारदा के काम पर आते ही वह घर के बाहर जा कर सरवैंट क्वार्टर के आसपास मंडराती रहती. उस ने पाया कि लगभग प्रत्येक दिन ही उस कमरे में कोई पुरुष आता है. आश्चर्य की बात यह थी कि वह कोई एक पुरुष नहीं था.

अलगअलग आयु के पुरुषों को उस ने वहां आतेजाते देखा. राधिका का दिल बैठा जा रहा था. उसे डर था कि कहीं देहव्यापार जैसा घृणित कार्य तो नहीं हो रहा यहां? जब अमन से उस ने इस विषय में चर्चा की तो दोनों ने बनवारी परिवार का परदाफाश करने का निश्चय किया. अगले दिन अमन ने औफिस से छुट्टी ले ली थी. उस ने सरवैंट क्वार्टर में किसी को घुसता देख उसी समय बनवारी से क्वार्टर में चलने को कहा. बहाना बना दिया कि वहां एक छोटी से अलमारी रखवानी है. सुनते ही बनवारी टालमटोल करने लगा. यह देख अमन ने बनवारी को डांटना शुरू कर दिया.

राधिका ने शारदा से भाग्यश्री के अब तक काम पर न आने की असली वजह जाननी चाही. अमन के गुस्से से भरे चेहरे को देख कर बनवारी फूटफूट कर रोने लगा. शारदा हाथ जोड़ते हुए बनवारी से बोली, ‘‘इन दोनों को सच बता दो… हम से अब सहा नहीं जाता.’’

बनवारी ने अपनेआप को संभालते हुए बोलना शुरू किया, ‘‘साहब… भाग्यश्री की शादी हो चुकी है. हमारा दामाद बहुत बुरा आदमी है. खूब शराब पीने की आदत है उसे. जब शादी की थी तब चाय की दुकान थी उस की छोटी सी. शादी के बाद उस ने हमारी लड़की की सोने की अंगूठी, चेन, झुमके सब कुछ बेच दिया. फिर जब दुकान भी बिक गई तो भाग्यश्री से गलत काम करवाने लगा. हम अपनी लड़की को वापस घर ले आए. फिर भी उस ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा. वहां भी लोगों को भेजता रहता… आप ने जब कमरा देने को हां कह दी तो हम तुरंत वहां से भाग निकले, पर उस ने पता लगा लिया और यहां भी… बनवारी फिर रोने लगा. ‘‘तुम ने पुलिस में शिकायत क्यों नहीं की?’’ अमन ने परेशान हो कर पूछा.

‘‘हमें उस ने धमकी दी थी कि पुलिस के पास जाएंगे तो वह हमारी लड़की को मरवा देगा,’’ शारदा ने भयभीत होते हुए बताया. ‘‘अरे, वह अकेला इन सब को डराता रहा और ये उस की हर बात मानते रहे, अमन राधिका की ओर देखते हुए बोला.’’

‘‘साहब, हमारा भाग्यश्री के अलावा कोई नहीं है… बहुत प्यार करते हैं हम दोनों इसे… उस पापी आदमी ने हमारा जीवन नर्क बना दिया है, बनवारी ने करुण स्वर में कहा.’’ ‘‘हम अभी पुलिस में शिकायत करने चलेंगे,’’ बनवारी को आश्वस्त कर अमन पुलिस स्टेशन जाने की तैयारी करने लगा.

अमन बनवारी परिवार को साथ ले कर थाने पहुंच गया. अगले ही दिन सूचना मिली कि भाग्यश्री के पति को गिरफ्तार कर लिया गया है. बनवारी परिवार ने यह समाचार सुन कर चैन की सांस ली. उन को मानो नया जीवन मिल गया हो.

भाग्यश्री तो पिंजरे से आजाद हुई चिडि़या की तरह चहकने लगी थी अब. वह समझ गई थी कि थोड़ी सी हिम्मत जुटाने से ही उस के जीवन में बहार आई है. राधिका से उस ने वादा कि अब कभी वह भाग्य के भरोसे रह कर, स्याह डर के साए में नहीं जीएगी. अमन और राधिका ने उस का निडर रोशनी की जगमग से परिचय जो करवा दिया था.

प्यार का बंधन टूटने से बचाना सीखें

लेखिका – ललिता

सात जन्मों के शादी के रिश्ते को हमारे समाज का सब से पवित्र और अहम रिश्ता माना जाता है, लेकिन आज के समय में यह रिश्ता अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. शादी जो प्यार, अपनेपन और विश्वास का रिश्ता होता था, आज की मौडर्न लाइफ में लोगों की इस रिश्ते को ले कर सोच बदल रही है. जो कपल शादी के फेरों के वक्त हमेशा एकदूसरे के साथ रहने, हर सुखदुख में साथ देने की कसमें खाते हैं वही शादी के कुछ समय बाद ही छोटीछोटी वजहों से अपनी शादी को अलविदा कह रहे हैं और तलाक के काफी ज्यादा केस देखने को मिल रहे हैं.

आज स्थिति ऐसी हो गई है कि मन का खाना न खिलाने, घूमने न ले जाने और शौपिंग न करवाने जैसी छोटीछोटी बातों पर लड़ाइयां शुरू हो जाती हैं और उन्हें सुलझाने की जगह बहस की चिनगारी को हवा दी जाती है और फिर बात रिश्ते को खत्म करने तक आ जाती है.

पहले के जमाने में ऐसा नहीं हुआ करता था. पहले के पुरुषों और महिलाओं दोनों में धैर्य व एकदूसरे के लिए प्यार हुआ करता था. लेकिन अब रिश्तों में सहनशीलता खत्म होती जा रही है. अब रिश्ता तोड़ने से पहले अपने रिश्ते को एक चांस देने का सब्र तक भी लोगों में नहीं बचा है.

वर्तमान में कोई किसी के सामने झुकना पसंद नहीं करता. अब जब तक दोनों एकदूसरे के मनमुताबिक चलते हैं तब तक उन का रिश्ता टिकता है. जिस दिन दोनों में से कोई भी एक पार्टनर दूसरे की मरजी के खिलाफ उस से अलग जाता है, सामने वाले को वह बरदाश्त नहीं होता और रिश्ता टूटने की कगार पर पहुंच जाता है.

दो लोग एकजैसे नहीं हो सकते

जब एक घर के दो बच्चे एकजैसे नहीं हो सकते तो शादी के रिश्ते में एक होने वाले दो अलगअलग परिवारों के कोई भी दो इंसान एकजैसे कैसे हो सकते हैं. दोनों की आदतें, सोचने और जीने का तरीका अलग हो सकता है. ऐसे में एकदूसरे में मीनमेख निकालने के बजाय एकदूसरे में खूबियां ढूंढ़ना सही रास्ता है. एक पार्टनर को दूसरे को बदलने के बजाय उस की अच्छाइयों को देखते हुए उसे उसी रूप में स्वीकारना चाहिए जैसा वह है. इस से रिश्ते में अपेक्षाएं कम होती हैं और रिश्ते की उम्र बढ़ती है.

उम्मीदों पर लगाएं लगाम

किसी भी पतिपत्नी में अलगाव की सब से बड़ी वजह एकदूसरे से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें करना होता है. जब उम्मीदें इतनी बढ़ जाती हैं कि उन्हें पूरा कर पाना संभव नहीं हो पाता तो कपल का एकसाथ रहना मुश्किल हो जाता है. इस के अलावा शादी के रिश्ते में जब दोनों ही खुद को सही और दूसरे साथी को गलत साबित करने की होड़ में लग जाते हैं तो भी रिश्ते में खटास बढ़ने लगती है और रिश्ता तलाक या अलगाव की चौखट तक पहुंचने लगता है.

शादी का रिश्ता कैसे निभाएं, यह कोई नहीं सिखा रहा

आज शादी के रिश्तों के टूटने की सब से बड़ी वजह यह है कि शादी का रिश्ता कैसे निभाएं, यह कोई नहीं सिखा रहा- न लड़की के परिवार वाले, न लड़के के परिवार वाले, न समाज, न सोशल मीडिया ही. अगर पहले की बात करें तो यह सिखाने का काम पत्रपत्रिकाएं करती थीं.

हम हाथ पकड़ कर जैसे एबीसीडी अल्फाबेट सीखते हैं वैसे ही अपनी शादी को बचाना भी सीखना चाहिए. आज पति यह तो चाहते हैं कि पत्नियां उन की आर्थिक जिम्मेदारी शेयर करें लेकिन वे घर की जिम्मेदारी में हाथ बंटाने से झिझकते हैं जोकि गलत है. जब लड़कियां दोहरी जिम्मेदारी निभा रही हैं तो लड़कों को भी घर के कामों में हाथ बंटाना सीखना होगा. इसी तरह अब लड़कियां जैसे जीवन की बाकी स्किल्स को सीख रही हैं तो उन्हें वैवाहिक जीवन कैसे चलाएं, यह भी सीखना होगा. वैवाहिक रिश्ते को बचाने के लिए अगर जरूरत पड़े तो मैरिज काउंसलर के पास भी जाएं. शादी कैसे चलाएं, यह शिक्षा दोनों पार्टनरों को मिलनी चाहिए.

अपने रिश्ते को बचाने की हर संभव कोशिश करें

पति हो या पत्नी, रिश्ता तोड़ने से पहले उन्हें एक बार इस बारे में जरूर सोचना चाहिए कि अगर उन्होंने शादी तोड़ी या उसे बचाने की कोशिश नहीं की तो उन्हें ही भुगतना पड़ेगा. तलाक के बाद आसानी से उन्हें कोई दूसरा मिलने वाला नहीं है. इसलिए पतिपत्नी दोनों एकदूसरे को संभाल कर रखें. कई बार जल्दबाजी में लिए गए फैसले से बाद में पछतावे के सिवा कुछ हासिल नहीं होता.

आप ही सोचिए क्या पेरैंट्स बच्चों से न बनने पर उन से रिश्ता तोड़ लेते हैं? नहीं न? बच्चों से रिश्ता रखते हैं तो फिर वे अपने वैवाहिक रिश्ते को बचाने की कोशिश क्यों नहीं करते?

बच्चे मातापिता को डाइवोर्स नहीं दे सकते तो पतिपत्नी एकदूसरे के साथ कैसे नहीं निभा सकते, यह सोचने की जरूरत है.

अंधविश्वास : यह है हमारा शिल्पशास्त्र (भाग-5)

तिथियों के तुक्के शिल्पशास्त्र या ज्योतिषशास्त्र?

शिल्पशास्त्र में किसी इमारत की उम्र जानने की ऐसी मनगढ़ंत और गलत व्याख्या की गई है कि पढ़ कर कोई भी अपना सिर पीट ले.

यह है हमारा शिल्पशास्त्र. क्या इस में अभी तक शिल्प की कोई बात आई है? शिल्पशास्त्र आगे कहता है कि जब चंद्रमा धनु और मीन राशि के मध्य स्थित हो, तब न घास की कटाई करें, न लकड़ी काटें और न ही लकडि़यां इकट्ठी करें तथा न ही दक्षिण दिशा की ओर जाएं-
धनुर्मीनद्वयोर्मध्ये यावत्तिष्ठति चंद्रमा:,

न छिन्द्यात्तृणकाष्ठादीन्न गच्छेद दक्षिणां दिशम्.
(शिल्पशास्त्रम् 1/34)

चंद्रमा के इन राशियों के मध्य रहने का घास या लकड़ी की कटाई से क्या संबंध है? क्या ये दोनों चीजें चंद्रमा की हैं या उस के बाप की? कहा है, दक्षिण दिशा में न जाएं- तो क्या उस समय गाडि़यां बंद हो जाती हैं? हवाई जहाज उड़ना भूल जाते हैं? क्या दक्षिण भारत को जाने के सब मार्ग रुक जाते हैं? क्या दक्षिण भारत को जाने के सब मार्ग एक हो जाते हैं? जो जाते हैं, चंद्रमा उन का क्या करता है? वह क्या उन का एक रोम भी उखाड़ सकता है?

यहां शिल्पशास्त्र के माध्यम से जंतरी वाले ज्योतिषी को फिर से वैधता प्रदान करने का प्रयास किया गया है, क्योंकि चंद्रमा कब किस राशि में है, यह जानने के लिए उसी से पूछना पड़ेगा और वह अपने यजमान (शिकार) का यथाशक्ति शोषण- आर्थिक व बौद्धिक – करेगा ही.

युद्ध और ज्योतिषी

शिल्प की एक भी बात न करने वाला शिल्पशास्त्र ज्योतिष के नाम पर अंधविश्वासों को हवा देता हुआ आगे कहता है कि जब जन्मराशि में चंद्रमा हो तब न यात्रा पर जाएं, न युद्ध करें, न घर बनाना शुरू करें, न दवाई खाएं और न पशु संग्रह करें :

जन्मचंद्र : श्रियं कुर्याद् वर्जयेत् पंचकर्मसु,
यात्रा युद्धे गृहारंभे भैषज्ये पशुसंग्रहे.
(शिल्पशास्त्रम् 1/36)

इन 5 कामों में से 3 को आदमी रोक ले तो शायद उतना नुकसान न हो जितना युद्ध और दवाई खाने की उपेक्षा करने से हो सकता है. पानीपत की तीसरी लड़ाई के दौरान मरहट्टों का राजज्योतिषी उन की सेनाओं को इसी तरह के ज्योतिष के सहारे रोके हुए था, जब शत्रु ने हमला कर के मरहट्टों की सदा के लिए कमर तोड़ दी थी और 90,000 वीर मरहट्टे खेत रहे थे.

इसी तरह कई लोगों को दवाई न खाने पर मरते देखा गया है. क्या यह शिल्पशास्त्र है या इल्लतशास्त्र?

घर की उम्र

पहले अध्याय में शिल्प का ज्ञान बांटने के बाद शिल्पशास्त्र दूसरे अध्याय में ऐसे नुसखे बताता है जिन से बने हुए घर की उम्र जानी जा सके, अर्थात यह जाना जा सके कि यह घर कितने समय बरकरार रहेगा. इस के लिए एक मनगढ़ंत फार्मूला दिया गया है, घर के क्षेत्र को
8 से गुना करें. जो संख्या आए उसे 60 से भाग दें तो पता चल जाएगा कि घर कितने समय खड़ा रहेगा-
वसुभिर्गुणितं पिण्डं षष्टिभागेन हारयेत्,
शेषमंशं विजानीयादायुर्गेहस्य कोविद:
(शिल्पशास्त्र 2/7)

आगे कहा है कि 60 से भाग देने पर जो संख्या आए उसे 10 से गुणा करें. इस तरह जो राशि आए, उतने वर्ष वह घर खड़ा रहेगा. 60 से भाग देने पर जो शेष बचे, उस से पता चलेगा कि घर किस चीज से नष्ट होगा : यदि 1 बचे तो पृथ्वीतत्त्व के कारण नष्ट होगा, 2 बचे तो जल से, 3 बचे तो आग से, 4 बचे तो वायु से और 5 शेष बचे तो आकाश तत्त्व से नष्ट होगा.

पृथिनीजलतेजांसि वायुराकाश एवच,
पंचभूतायते तत्र भग्नं दाहादि जायते.
(शिल्पशास्त्रम, 2/8)

यह फार्मूला हमें बताता है कि यदि किसी घर का क्षेत्रफल 300 वर्गफुट हो तो वह घर 400 साल बना रहेगा :

20×15=300×8=240060=40×10=400. पर क्या किसी इमारत की उम्र जानने का यह कोई वैज्ञानिक तरीका है? क्या उस की उम्र निर्धारित करने के लिए उस की नींव की मजबूती, उसे बनाने में लगाई गईर् सामग्री की गुणवत्ता, उसे दरपेश आने वाले खतरों की संभावना आदि को ध्यान में नहीं रखा जाना चाहिए?

ऊपर जिस मकान की उम्र 400 वर्ष बताई गईर् है, क्या वह 400 वर्ष खड़ा रह सकता है, यदि वह केवल मिट्टीगारे का बना हो? उस की नींव भी कम गहरी हो और उस इलाके में बाढ़ भी अकसर आती हो? इस फार्मूले के अनुसार आज कितनी पुरानी इमारतें जीवित खड़ी हैं?

कहा है कि मकान के मरने (=गिरने) के 5 कारण हैं- 60 से भाग दिए जाने पर यदि 1 बचे तो पृथ्वी तत्त्व के कारण मकान गिरता है, 2 बचे तो जल से, 3 बचे तो आग से, 4 बचे तो वायु से और 5 बचे तो आकाश तत्त्व से वह नष्ट होता है. यदि यह सही है तो ऊपर जिस मकान का उदाहरण हम ने दिया है, वह कभी गिर ही नहीं सकता – देखिए :

20×15=300×8=240060=40. यहां 60 से भाग देने पर ऐसा कुछ भी नहीं बचता जो घर को नष्ट कर सके. इस का अर्थ है जो 5 तत्त्व घर को गिराने वाले बताए गए हैं, उन में से एक भी इसे नुकसान नहीं पहुंचा सकता. सो, यह सदा बना रहेगा. पहले फार्मूले के अनुसार उस घर की उम्र 400 वर्ष बताना भी गलत सिद्ध होता है. जो कभी नष्ट ही नहीं हो सकता, उस की उम्र 400 वर्ष कैसे मानी जा सकती है.

एक अन्य उदाहरण लें. घर 100 फुट लंबा, 95 फुट चौड़ा. क्षेत्रफल 9500×8=76000 60=1266, शेष 40. इन 40 को 5 से विभाजित करें तो शेष शून्य बनता है. इस का मतलब यह है कि यह मकान भी सदा के लिए सुरक्षित है, क्योंकि कोई भी तत्त्व इसे हानि पहुंचाने को बचा ही नहीं. ऐसे अन्य बहुत से मकान हो सकते हैं परंतु असल में ऐसा सदा के लिए बना रहने वाला, एक भी मकान हिंदुस्तान में नहीं है.

यह फार्मूला भी पूरी तरह गलत तथा मनगढ़ंत है, क्योंकि एक तो इस मनमाने ढंग से किसी इमारत की उम्र नहीं जानी जा सकती. दूसरे, दुनिया में कोई भी इमारत सदा के लिए खड़ी नहीं रह सकती. तीसरे, शिल्पशास्त्रों के इस देश भारत में कोई भी इमारत सदा के लिए खड़ी तो क्या, हजारों वर्ष पुरानी भी कहीं नहीं खड़ी है.

सो, यह शिल्पशास्त्रीय फार्मूला एक और वास्तुशास्त्रीय गप से ज्यादा महत्त्व नहीं रखता. अगले अंक में जारी…

फैक्ट्री निर्माण में वास्तुशास्त्रियों के ऊलजलूल कुतर्क

क्या फैक्ट्री में वास्तुदिशा स्थानों के आधार पर लाभ सुनिश्चित किया जा सकता है? क्या वास्तु न मानने से भारीभरकम नुकसान होने का खतरा है? फैक्ट्री की सफलताअसफलता क्या वास्तु से तय होती है?

बात फैक्ट्री या औफिस की हो रही हो तो सब से पहले हमें यह सम?ाना चाहिए कि किसी भी कमर्शियल जगह का मुख्य उद्देश्य क्या होता है? फैक्ट्री का काम है प्रोडक्शन करना, क्वालिटी बनाए रखना और बाजार में अपनी जगह बनाना. लौजिकली इस के लिए जरूरी है सही लीडरशिप व मशीनरी, स्किल्ड वर्कर्स और एक और्गनाइज्ड प्रोडक्शन प्रौसेस.

मानो ओनर अगर वैस्ट की जगह साउथ एरिया में अपना केबिन बना ले तो क्या मार्केट का सारा गणित भूलभाल जाएगा या मशीनें अगर ईस्ट में न हो कर किसी और दिशा में हों तो क्या चलना ही बंद कर देंगी? सवाल यह कि अगर मुख्यद्वार पश्चिम या दक्षिण दिशा में हुआ तो क्या वास्तव में फैक्ट्री में समस्याएं आने लगेंगी? या फिर समस्याओं का असली कारण प्रबंधन की खामियां और बाजार की अनिश्चितताएं होंगी?

वास्तुशास्त्र में दिशा, स्थान और पंचतत्त्वों की बात की जाती है, लेकिन इस में सरकार की नीतियों, बाजार के उतारचढ़ाव और वैश्विक आर्थिक स्थिति का कोई उल्लेख नहीं मिलता. वास्तु यह भी नहीं बताता कि प्रधानमंत्री कब देश में कैसी जीएसटी लागू कर दें या कब नोटबंदी कर दें कि अचानक बाजार ही क्रैश करने लगे.

अगर वास्तुशास्त्र इतना ही कारगर होता तो फिर हर उद्योगपति अपने उद्योग को वास्तु के अनुसार बना कर ही क्यों न चलाता? उसे मेहनत करने, कुशल कर्मचारियों की भरती करने और सही रणनीति बनाने की जरूरत ही क्यों पड़ती? उसे तो बस, वास्तु अनुसार एक जगह देखनी थी और उसी अनुसार भवन निर्माण करा लेना था. न बाजार के उतारचढ़ाव की ?ां?ाट न सरकार की, न मजदूरों के हड़तालों की झंझट और न निवेश की.

बात सीधी है, फैक्ट्री का प्रबंधन कमजोर होगा तो चाहे आप उसे कितनी भी सही दिशा में बनाएं, लाभ की संभावना कम ही रहेगी. उदाहरण के लिए, अगर मशीनरी पुरानी है और उत्पादन धीमा है तो केवल दिशा बदलने से इस का समाधान नहीं होगा या मशीन आधुनिक हैं और वर्कर्स पुराने ढर्रे वाले हैं तो भी उत्पादन धीमा होगा. इसे ठीक करने के लिए आप को नई तकनीक और कुशल श्रमिकों की ही जरूरत होगी.

सोचिए, अगर वास्तुशास्त्र के अनुसार ही फैक्ट्री के प्रौफिट का निर्धारण होता तो फिर कुशल मैनेजर और तकनीकी विशेषज्ञों की जरूरत क्यों पड़ती? इन की जगह किसी पंडे, ज्योतिष या वास्तुशास्त्री को ही बैठा लेते.

अंत में सोचने वाली बात यह है कि दुनिया की सब से बड़ी जनसंख्या वाला देश भारत आज आद्योगिक अर्थव्यवस्था के मामले में उन कई देशों से पीछे है जिन की जनसंख्या हम से 4-5 गुना कम है, ये देश न तो वास्तु अनुसार अपनी फैक्ट्रियां बना रहे हैं, न ही चला रहे हैं.

मेरी संगिनी

दिनभर माया की महिमा का गुणगान करती, पैसे के पीछे भागती हुजूम में कहीं वो भी शामिल न हो जाए, डर लगता था अमर को. किस ने कितने मकान बनवाए हैं, किस के पास कितनी गाडियां हैं, कितना बैंक बैलेंस है, अपने आसपास की भीड़ का सदा इसी हिसाबकिताब को तोड़तेजोड़ते देखता है अमर. मगर इस सब से अमर को बहुत ग्लानि होती है. उस का मन कुछ और ही सोचता है. सोचता है कि, क्यों कुछ लोग इतने अमीर है और कुछ इतने गरीब. ऐसा क्यों होता है कि एक गरीब जितना धन अगर पूरी उम्र में भी अर्जित नहीं कर पाता, वहीं उस से अधिक, एक अमीर मिनटों में खर्च कर देता है. क्यों किसी घर के बच्चे भूखे सोते हैं.

अमर एक अच्छे खातेपीते संस्कारी परिवार का लाड़ला बेटा है. विचारों में वह अपने उम्र के बच्चों से काफी अलग रहा है, सदा दूसरों की, खासतौर से गरीबों की भलाई के बारे में सोचता. उन के लिए कुछ कर पाए, इन्हीं विचारों में उस का बचपन बीता. लगन से स्कूली पढ़ाई कर के एमबी़बी़एस में दाखिला मिल गया. फिर एमडी़ की पढ़ाई पूरी कर के सरकारी अस्पताल में नौकरी शुरू कर दी. गरीब मरीजों को वह बहुत प्यार से देखता, उन्हें पूरा वक्त देता, अपने काम से उसे काफी तसल्ली मिलती कि वह गरीब और लाचार लोगों की, किसी तरह से ही सही, मदद तो कर रहा है. फिर भी समाज के भिन्न वर्गों की असमानता उसे कहीं न कहीं व्यथित करती रहती ही. पता नहीं क्या- सोचता रहता था वह हमेशा. काश ऐसा कर पाता, काश वैसा कर पाता. सभी के सुख की कामना. समाज में समानता हो , इस की कामना उसे रहती.

इधर घर के लोग उस की शादी के पीछे लगे हैं. मगर उस का मन शादी को न था बल्कि वह तो समाजसेवा करना चाहता था. ये सब उथलपुथल अमर के अंदर ही होती रहती है मगर बाहर किसी के सामने मुंह खोलने की हिम्मत नहीं रखता था. बस, मम्मीपापा जैसा कहें, चुपचाप उन की हां में हां मिला दिया करता. वे दोनों और बेटी नम्रता, सभी बहुत सज्जन स्वभाव के थे और अमर का स्वभाव जानते हुए उन्होंने कभी ऐसा कुछ उस के लिए न किया था, जो उस के आदर्शों के विपरीत हो. हां, छिटपुट रोजमर्रा की बातों में जरूर कुछ विचारों की अनबन हो जाती , पर कोई बड़ा मुद्दा ऐसा न आता, जहां कहीं विचारों का गंभीर टकराव हो.

फिर घर वालों ने उस के लिए एक लड़की पसंद की, वह थी रितिका. वह एक पढ़ीलिखी, समझदार, हंसमुख और सुंदर लड़की थी. अमर ने उसे देखा और उस का भोला सा चेहरा एक नजर में ही उसे भा गया. फिर घर के सब लोग पहले ही उसे पसंद कर चुके थे. इसलिए भी घर के लोगों का मान रखते हुए न कहने का कोई प्रश्न ही न था. पूरे रीतिरिवाज के साथ उन दोनों का विवाह हो गया. रितिका जैसी जीवनसाथी पा कर अमर खुश था. इसी बीच अस्पताल के कौम्पलैक्स में ही उसे सरकारी घर मिल गया था. उन दोनों की सुविधा देखते हुए अमर के परिवार वालों ने उन दोनों को सरकारी घर में रहने की अनुमति दे दी. जिंदगी मजे से बीतने लगी. रितिका उसे खुशमिजाज स्वभाव की लगी. सदा हंसतीखेलती, जिंदगी में विश्वास करती. उसे लगता था कि  ऐशोआराम में जिंदगी चलती रहे, खुशीखुशी. इस से ज्यादा जिंदगी का कोई अर्थ नहीं था उस के लिए. अपनीअपनी जिंदगी के लिए सब खुद जिम्मेदार हैं, हमें क्या लेनादेना सब से, ऐसा सोचती थी वह.

अमर जब कभी भी रितिका से समाज की, गरीबों की, देश की दुर्दशा की बात करता तो वह उसे चुप करा देती, ‘अपने को क्या करना यह सोच कर अमर, हमें तो प्रकृति ने सब दिया है न. हम दोनों खुश हैं न. ऐसे ही बने रहें, बस. और हमें क्या चाहिए. दूसरों के बारे में सोचसोच क्यों दुखी होते हो, मस्त रहा करो, बस.’

धीरेधीरे अमर को लगने लगा कि रितिका के विचार उस के विचारों से बहुत अलग हैं, वह एक आत्मकेंद्रित और दूसरों के लिए संवेदनारहित लड़की है, जिस के लिए अपने और अपनी जरूरतों के आगे जिंदगी का और कोई मतलब नहीं. हां, रुपएपैसे के मामले में वह एकदम पक्की थी. भौतिक सुखसुविधा उसे बहुत आनंद देती. वह सदा नएनए कपड़े, गहने, सामान खरीदने में लगी रहती. पूरा घर फर्नीचर और सजावट के सामान से भरा पड़ा था. अलमारियां रितिका के कपड़े इत्यादि से भरी पड़ी थीं, मगर फिर भी उस को नयानया सामान खरीदने का जनून सवार रहता. वहीं अगर किसी की सहायता के लिए 10 रुपए भी देने पड़ जाएं तो वह उसे भारी लगता. खाने के सामान, पुराने कपड़े चाहे तो उठा कर फेंक देती मगर किसी गरीब को देने में उसे तकलीफ़ होती. गरीबों से तो उसे न जाने क्या चिढ़ थी.

उन के घर के बिलकुल सामने वाले मकान में मरम्मत का काम चल रहा था . वहां के एक मजदूर की 4 छोटीछोटी बेटियां थीं, जो सारे दिन बाहर सड़क पर घूमतींफिरतीं, लोग उन्हें खाने के लिए कुछनकुछ देते रहते. अमर के घर के सामने भी वे बड़ी उम्मीद से खड़ी रहतीं. अमर उन्हें कभीकभी कुछ खाने को दे देता. अब उन्हें अमर से कुछकुछ मांगने की आदत पड़ गई थी. वहीं वे रितिका से डरती थीं.

जैसे ही अमर बाहर से आ घर के आगे कार लगाता, उन में से सब से छोटी, जो लगभग 5 वर्ष की थी, अमर के पास आ खड़ी हो जाती और धीरे से बोलती, ‘अंकल, चिज्जी.’ फिर अपनी गोलगोल आंखें ऊपर उठाती, उसे देखती और फिर आंखें नीचे झुका लेती. फिर दोबारा कहती, ‘अंकल चिज्जी.’ बाकी 3 उस के पीछे खड़ी रहतीं. अमर को हंसी आ जाती और वो उन्हें घर में बुला कर खाने को कुछ दे देता. वहीं रितिका उन्हें देखते ही खीझ जाती. अमर पर चिल्लाने लगती कि इन गंदेगंदे बच्चों को घर के अंदर क्यों बुला लिया.

अमर रितिका को बहुत समझाता कि गरीब भी इंसान हैं. हमें आज भगवान ने सबकुछ दिया है. मगर हमें गरीबों से हमदर्दी रखनी चाहिए, उन का दुखदर्द समझना चाहिए. मगर रितिका को ये सब बातें बेकार, फुजूल सी लगतीं.

कहां तो अमर ने सोचा था कि गरीब, दुखी, भूखे, अनपढ़ लोगों के लिए अपनी जिंदगी में कुछ न कुछ ऐसा बड़ा काम करेगा जिस से अमीरी और गरीबी की दूरी कम होगी मगर रितिका तो उसे गरीबों से बहुत दूर रहने को कहती है. उसे तो अमर का सरकारी अस्पताल में काम करना भी पसंद न था. अस्पताल से आते ही अमर को सीधा बाथरूम का रास्ता दिखाती. वह बेचारा नहा कर आता, तब उसे खाना मिलता, वरना कहती, ‘पता नहीं किसकिस को देख कर , हाथ लगा कर आ रहे हो. घर में आते ही अपने साथ इतनी सारी बदबू ले कर आते हो. क्यों नहीं यह नौकरी छोड़ किसी बढ़िया से प्राइवेट अस्पताल में नौकरी कर लेते?’

उसे भारत से बाहर चल कर रहने की भी सलाह देती अच्छी कमाई के लिए. अमर मन ही मन बहुत दुखी रहता. लगता उस ने अपने जीवन के जो कुछ भी लक्ष्य बनाए थे, रितिका की इस सोच के कारण इस जन्म में तो वह उन्हें पूरे नहीं कर पाएगा. बचपन से ही सीधे और शांत स्वभाव का अमर बेचारा कुछ कह भी न पाता. बस, मन मसोस कर रह जाता.

इसी बीच रितिका का मन ऊब गया था, बारबार अमर से कहीं बाहर घूमने जाने के लिए ज़िद करती रहती. उस का मन रखने के लिए अमर ने हफतेभर की छुट्टी ले कर घूमने का कार्यक्रम बनाया. खुशी के मारे रितिका ने सारे घर में चहलकदमी मचा दी थी. घूमने जाने की तैयारियां चल रही थीं. उस की यह खुशी और उत्साह देख कर अमर को भी बहुत अच्छा लग रहा था. कहां जाना था, इस पर विचार हुआ, किसी पर्वतीय स्थल पर जाएं या समुद्ध किनारे.

रितिका पर्वतीय स्थल जाना चाहती और अमर समुद्ध किनारे. मगर हमेशा की तरह रितिका की बात पर ही सहमति हुई. अपनी बात मनवाने का रितिका का अंदाज भी अजब होता था. कोई बात शुरू करती तो ऐसे कि जैसे वह अमर की पसंद की बात का खयाल रखती है. अमर बेचारा खुश हो अपनी पसंद बता बैठता, तो उस की पसंद की बात के इतने नकारात्मक पहलू सामने रख देती कि थकहार अमर को अपनी बात छोड़ उसी की बात माननी पड़ती.

अगले दिन सुबहसुबह पूरी तैयार कर के मनाली के लिए कार से निकल पड़े. पूरा रास्ता मस्ती में गुजरा. रुकतेरुकाते, खातेपीते और ढेर सारी अगलीपिछली बातें करते. रितिका बहुत खुश थी. रोजमर्रा की जिंदगी से निकल उसे बहुत मज़ा आ रहा था. देररात तक वे मनाली पहुंच गए. रितिका ने पहले ही सब से बढ़िया होटल में बुकिंग करा दी थी. होटल महंगा जरूर था पर सभी सुविधाएं मौजूद थीं. रात आराम कर वे लोग अगले दिन घूमने निकल गए. आसपास की सभी जगहें देखते मौजमस्ती में 3 दिन कब निकल गए, पता ही नहीं चला.

रितिका को इस तरह खुश देख कर अमर को भी बहुत अच्छा लग रहा था. वह सोच रहा था कि रितिका कितनी खुशमिजाज लड़की है. एक अच्छी पत्नी है. बस, एकदो बातों को ले कर ही तो उन के विचार नहीं मिलते और इस में रितिका का क्या कुसूर. आज के 95 प्रतिशत लोग तो ऐसा ही सोचते हैं. दरअसल अमर की खुद की सोच ही तो आज की पीढ़ी से अलग है. इसलिए वह इस में रितिका को क्यों दोष दे. और हो सकता है समय के साथ उस की इस सोच में बदलाव हो जाए.

बहुत बढिया छुट्टी बिता कर  वापसी  का समय आ गया. दोनों की सहमति से कुछ एडवैंचर करने का फैसला हुआ और सीधा घर न जा किसी एडवैंचरस टेढ़े रास्ते से वापस चले, सोचा, जो एक छुट्टी बची है वह भी अच्छी बीतेगी. वे एक ऐसी वैली में निकल आए जहां बहुत कम लोग जाते हैं. रास्ता भी कुछ खराब सा था,  मगर वह वैली बहुत खूबसूरत निकली. वहां की खूबसूरती देख अमर को लगा कि उन का उस टेढ़ेमेढ़े, खराब रास्ते को तय कर के वहां आना जैसे सफल हो गया है.

खूब मस्ती करके वे लोग वहां से दोपहर तक निकल गए. सोचा, रास्ते में कोई अच्छा सा ढाबा मिलेगा तो गरमगरम खाना खाएंगे. वहां से निकले ही थे कि मौसम अचानक बदल गया और थोड़ी ही देर में  बारिश शुरू हो गई. खराब पहाड़ी रास्ता और अमर के लिए कार चलाना मुश्किल हो रहा था, फिर भी धीरेधीरे कर के वह कार चलाता रहा. मगर बारिश-तूफान बढ़ते ही जा रहे थे.

वह थोड़ी सी महफूज जगह देख कर कार रोक कुछ देर बारिश तूफान रुक जाने की प्रतिक्षा करते रहे. मगर बारिश तूफान कहां रुकने वाला था, पास में एक छोटा सा ढाबा था वहां जा बैठ गए. तभी जहां पर कार खड़ी थी, वह पहाड़ी खिसक गई. और कार देखते ही देखते कहां गई, पता ही नहीं चला. तेज बारिश की वजह से ढाबे से उठ कर वहां जाने की हिम्मत किसी की न थी. इधर ढाबे के आगे की टिन की छत भी ढह गई.

ढाबे का मालिक उन्हें अंदर अपने घर के छोटे से कमरे में ले गया. कमरा क्या था मुश्किल से 6-7 फुट की झुग्गी, वहीं पर घर का सब समान बिखरा पड़ा था.वहां एक अजीब सी बदबू आ रही थी. नाक बंद कर रितिका वहां घुसी और बेमन से उसे अंदर पड़ी टूटी सी खाट पर बैठना पड़ा. कमरे के अंदर ढाबे वाली की बीवी और 3 छोटे बच्चे भी थे. बारिश तूफान ठहरने का इंतजार करतेकरते शाम के 5 बज चुके थे.

भूख के मारे अमर व रितिका दोनों की जान निकली जा रही थी. खाने का कुछ समान कार में रखा था मगर कार का कुछ पता नहीं. ढाबे वाले का ढाबा छत ढहने से तहसनहस हो गया है. कमरे के साथ में मुश्किल से 4 फुट की रसोई थी. ढाबे वाली की बीवी उस के लिए चाय  बनाने चली गई. रितिका ने झांक कर देखा, रसोई का सामान जमीन पर पड़ा था. कालेकाले बरतनों और सामान के ऊपर दौड़ते दोतीन मोटेमोटे चूहे देख उसे कय होने लगी. इतने में ढाबे वाले की बीवी चाय बना लाई, साथ में कुछ बिस्कुट भी थे.

रितिका का मन बहुत कच्चाकच्चा हो रहा था, मगर भूख तो लगी ही थी. चाय की भी तीव्र इच्छा थी मगर रसोई की हालत देख और टूटे से चाय का प्याला देख उबकाई सी आने लगी. अमर के कहने पर उस ने चाय का प्याला तो पकड़ लिया मगर होंठों से लगाने का मन ही नहीं हो रहा था. बिस्कुट क्योंकि पैकेट में थे तो खाए जा सकते हैं, इसलिए एकदो बिस्कुट पैकट से निकाल खा लिए और पेट को थोड़ी शांति मिली.

‘‘बाबूजी आज तो आप बाहर नहीं निकल पाएंगे, रात भी हो रही है, यहीं रुक जाओ,‘‘ ढाबे वाला बोला.

‘‘भैया, यहां तो रुकने की जगह नहीं, तुम्हें मुश्किल होगी. कोई होटल पास में हो तो बताओ,‘‘ अमर कहने लगा.

‘‘बाबूजी बूंदाबांदी तो अभी भी हो रही है. होटल है एक छोटा सा पर 10 कोस दूर होगा. अंधेरे में इतनी दूर जाना बिना किसी गाड़ी के तो मुमकिन नहीं होगा. अच्छा होगा अगर आप यही रुक जाओ, बाबूजी. मेरा छोटा सा घर आप के रहने लायक तो नहीं है मगर इस के अलावा कोई चारा भी तो नहीं है.‘‘

भूख के मारे बहाल रितिका को न चाह कर भी ढाबे वाले की बीवी का बना खाना खाना पड़ा. उस छोटे से कमरे में किस तरह रात गुजारी, अमर व रितिका की  जिंदगी का शायद यह सब से बुरा अनुभव रहा होगा. ढाबे वाला, उस की बीवी, 3 बच्चे, अमर और रितिका. खाट पर ढाबे वाले ने मेहमानों को सुलाया और खुद परिवार सहित जमीन पर.

रातभर चूहों की खटरपटर, खरोर्टों का खरगराहट, बाहर बारिश की टपटप, कभी तेज हवा की चलने की आवाज और कितनी ही तरह की मिलीजुली बदबू. ओफ,  नरक से भी बदतर, रितिका सोच रही थी. किसी तरह सुबह हुई. बारिश रुक गई थी. अमर ने बाहर निकल कर देखा जहां कार खड़ी थी वह जगह ढह चुकी थी. नीचे गहरी खाई थी. कार का कुछ अतापता नहीं चल रहा था. आगे की सड़क भी खराब हो गई थी.

ढाबे वाले की बीवी ने चाय बना ली थी. चाय पी और अमर रितिका, कैसे वापस जाएं, इस बारे में सोचविचार करने लगे. कार के साथसाथ सारा सामान भी चला गया था. बस, उन के पास पर्स और मोबाइल थे. घर फोन लगाएं तो नैटवर्क नहीं मिल रहा था. यह जगह बिलकुल सुनसान थी. दूरदूर तक दिखाई नहीं दे रहा था. ढाबे वाले ने बताया कि एक छोटा सा गांव है 3-4 कोस दूर, मगर वहां ज्यादाकुछ नहीं मिल पाएगा.  छोटा सा टैक्सीस्टैंड करीब 10 कोस दूर है और पुलिस चौकी 4-5 कोस दूर है. हां, एक बसस्टैंड है करीब 2 कोस दूर, वहां से लोकल बस पकड़ बड़े बसअड्डे जा सकते हैं. पर उस बारिश में 2 कोस पैदल कैसे जाते.

‘कहां फंस गए‘ मन ही मन रितिका यह सोच रही थी. वे सोच रहे थे कि कोई कार या कोई और गाड़ी आ रही हो तो उसे रोकें ताकि यहां से निकल आगे का इंतजाम करें. दो घंटे हो गए मगर कुछ न गुजरा. ढाबे वाला बोला, “बाबू साहब, आप आराम करो, मैं साइकिल से जा किसी गाड़ी के बारे में पता करता हूं.” अमर ने कहा कि वह भी उस के साथ चलता है. रितिका वहीं इंतजार करे.

पुलिस चौकी जा उन्हें पता चला कि 2 जगह लैंडस्लालाइड की वजह से दोनों ओर का यातायात बंद कर दिया गया है. चूंकि बीचबीच में कई जगह यात्री फंसे हैं सो उन्हें निकालने का काम चल रहा है. अभी कुछ इंतजाम के निर्देश नहीं मिले हैं. अमर ने कार गिरने की जगह और सारी जानकारी पुलिस को दे दी. हवलदार ने उन्हें ढाबे वाले के पास रुकने को ही कहा जब तक कि कोई इंतजाम न हो.

वापस आ जब अमर ने रितिका को सारी बात बताई तो रितिका का रोना ही छूट गया. ‘‘क्या करेंगे अमर , अब हम कैसे जाएंगे घर?”

अमर ने उसे सांत्वना दी. रितिका को रोता देख कर ढाबे वाले की बीवी भी उसे चुप कराने लगी. रोतेरोते रितिका को घबराहट सी हो गई और चक्कर आ गए. ढाबे वाली की बीवी देर तक होश आने पर उस के हाथ मलती रही, पांव दबाती रही. उस औरत ने उन के लिए खाना बनाया, बड़े प्यार से खिलाया और कहा, “जब तक आप लोगों के जाने का कोई इंतजाम नहीं हो जाता, आप यहीं रहें.”

पूरा दिन बीत गया. रितिका बारबार अपने पापा को फोन करने की कोशिश कर रही थी पर नैटवर्क नहीं मिल पा रहा था. शाम को फोन लग गया तो उस ने घर पर बताया कि वे लोग किस तरह फंस गए हैं.  घर के सभी लोगों ने ढांढस बंधाई.

रात जैसेतैसी कटी सुबह के इंतजार में कि रास्ता साफ हो और कार का कुछ पता चले. अगले दिन दोपहर तक रास्ता साफ होने की खबर मिली मगर कार का कुछ अतापता नहीं. पुलिस में रिपोर्ट तो दर्ज की ही थी. अमर ने वहां से निकल चलने का तय किया. कपड़े भी 2 दिनों से वही पहने थे. नहानेधोने का भी कुछ इंतजाम न होने से अमर और रितिका की हालत और ज्यादा खराब थी.

रितिका की एक सहेली सोलन में रहती है. उस ने सोचा सोलन की कोई बस मिल जाए तो क्यों न पहले उस के घर जा कर थोड़ा फ्रैश हो कर उस से आगे जाने की मदद ले ली जाए. उसे फोन किया तो पता चला कि वह मुबंई गई है. रितिका इसलिए भी परेशान थी कि घर की चाबी भी कार में रह गई थी और अफरातफरी में अमर का पर्स भी कहीं गिर गया और बहुत ढूंढने पर भी न मिला. उस की रिर्पोट भी अमर ने लिखवा दी क्योंकि उस में उस के क्रैडिट कार्ड, आईकार्ड, लाइसैंस सब थे.

अब रितिका के पर्स में जो थोड़ाबहुत समान और कैश था वही उन की सब संपत्ति थी जिस के सहारे वे घर जा सकते थे. रितिका का क्रैडिट कार्ड, कुछ दिनों पहले ब्लौक हो गया था, उसे भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था.

अब बस यही रास्ता था कि जो भी बस मिले, यहां से निकल कर जैसेतैसे दिल्ली पहुंचें. ढाबे वाले को धन्यवाद कर वे वहां से पैदल बसस्टैंड की ओर निकलने लगे. तब निकलते हुए ढाबे वाली की बीवी ने उन के लिए कागज में लपेट कर 4 परांठे और अचार रख दिया, बिस्कुट के 2 पैकेट भी दिए. विदा लेते हुए ढाबे वाला हाथ जोड़ कर कहने लगा, “बाबू जी, हम से जो बना, हम वही कर पाए. अगर कोई गलती हो तो माफ़ करना.” उसे अंदाजा हो गया था कि शायद उन के पास ज्यादा पैसे नहीं हैं, तो उस ने 500 रुपए का एक नोट देते हुए कहा कि बाबूजी, ये रख लीजिए, काम आएगा.

उन का प्रेम और आदर देख इस बार अमर के साथसाथ रितिका की भी आंखें भर आईं. उस ने ढाबे वाली की बीवी और बच्चों को गले लगा लिया. इस तरह वे वहां से निकले और किसी तरह बसस्टैंड पहुंचे तो एक भरी हुई बस मिली जो कि शिमला तक जा रही थी. अमर और रितिका उस में बैठे तो अमर ने रितिका में बहुत बदलाव देखा. अब वह गांव के लोगों से भरी भीड़ वाली बस में नाकभौं नहीं सिकोड़ रही थी बल्कि बड़े आराम से सफर कर रही थी. यही नहीं, एक छोटा बच्चा जिस की नाक बह रही थी, जो बस में खड़ा था, उसे रितिका ने अपनी गोद में बिठा लिया था.

अमर ने कहा, “यह क्या कर रही हो, तुम्हारे कपड़ों में इस की बहती नाक लग जाएगी तो?”

रितिका ने कहा, “क्यों, क्या वह इंसान नहीं है, बच्चा है, बेचारा कितनी देर से खड़ा है.”

अमर को हंसी आ गई. रितिका इस हंसी का मतलब समझ रही थी. उस ने शरमा कर अमर के कंधे पर अपना सिर रख दिया. अमर को यह देख मन ही मन बहुत शांति मिली. इस सफर में अपनी कार, पैसे, कीमती सामान जरूर खो कर आ रहा था पर जो ले कर जा रहा था उस की कोई कीमत नहीं थी. उस की जीवनसंगिनी उस के विचारों की भी संगिनी बन चुकी थी.

लेखिका – सुनीता भारल

किन सैक्सुअल प्रौब्लम्स की वजह से शादियों के टूटने का खतरा रहता है

सैक्स एक ऐसा शब्द है जिसे सुन कर हम सबके मन में एक अलग सी खुशी की लहर दौड़ने लगती है और दिल खुशनुमा सा होने लगता है. हम सब सैक्स को एंजौय करते हैं और हम सबको लगता है कि सैक्स ऐसा होना चाहिए कि कुछ देर के लिए तो बस ऐसी फीलिंग आए कि हम जन्नत में पहुंच गए हैं. हर इंसान अपनी लाइफ में बहुत बार सोचता है कि वे अपने सैक्स लाइफ को किस तरह से और भी ज्यादा इम्प्रूव कर सकता है.

ऐसा कई बार देखा गया है कि हम सब सैक्स तो करते हैं लेकिन सैक्स को लेकर हमारे मन में कई तरह के विचार आते रहते हैं जैसे कि –
– मैं सैक्स सही से तो कर रहा या कर रही हूं न ?
– मेरा पार्टनर मेरे साथ खुश तो है या नहीं ?
– मैं अपने पार्टनर को अच्छे से सैटिस्फाई कर पा रहा या कर पा रही हूं नहीं ?
– कहीं मेरे अंदर कोई कमी तो नहीं है न ?

ऐसे कई सारे विचार हमारे दिमाग में आए दिन आते हैं जिससे कि हमे डर लगा रहता है कि हमारे सैक्सुअल प्रौब्लम की वजह से हमारा पार्टनर हमें छोड़ तो नहीं देगा. तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कुछ ऐसी सैक्सुअल प्रौब्लम्स और उनके सौल्यूशन्स के बारे में जिससे कि आप अपनी शादी या रिलेशनशिप को टूटने से बचा सकते हैं.

सैक्स टाइमिंग्स

सैक्स टाइमिंग्स को लेकर हमारे मन में कई सारे विचार आते हैं. हर पुरूष को ऐसा लगता है कि उसकी पत्नी या गर्लफ्रेंड चाहती है कि वह लम्बे समय तक सैक्स करते रहें जिससे कि वह सैटिस्फाई हो पाए पर यह गलत है. सैक्स चाहे लम्बे समय तक हो या ना हो पर सैक्स ऐसा होना चाहिए जो आपको और आपके पार्टनर को जन्नत की सैर करा दे. आपको अपने पार्टनर को सिर्फ सैक्स में ही नहीं बल्कि सैक्स से पहले भी सैटिस्फाई करना चाहिए जैसे कि ओरल सैक्स कर के, अपने पार्टनर के नाजुक अंगों को छेड़ कर और अपने पार्टनर की पूरी बौडी पर जमकर किस कर के. ऐसा करने से आपका पार्टनर सैक्स से पहले ही खुद को काफी हद तक सैटिस्फाई फील करेगा.

अगर फिर भी आप को या आप  के पार्टनर लगता है कि आप की सैक्स ड्यूरेशन बहुत ही कम है तो आप को कभी भी खुद से कोई दवाई या स्प्रे जैसा कुछ नहीं लेना चाहिए बल्कि एक अच्छे सैक्स स्पैशलिस्ट से मिलना चाहिए और उससे यह सब डिस्कस करना चाहिए.

लिंग का साइज

विदेशी पोर्न वीडियोज ने हमारे मन एक बात डाल दी है कि लिंग काफी लंबा होगा तभी लड़कियां सैटिस्फाई हो पाएंगी और इसी कारण कई लड़के इंटरनेट से पढ़ कर लिंग लम्बा करने की दवाइयां लेने लग जाते हैं जिस के कई साइड इफैक्ट्स होते हैं. ऐसा करना और ऐसा सोचना काफी हद तक बिल्कुल गलत है. आपका पार्टनर आपके लिंग के साइज से नहीं बल्कि आपकी परफौर्मेंस से सैटिस्फाई होता है.

अगर आपके लिंग का साइज ज्यादा लम्बा नहीं है पर आपकी परफौर्मेंस काफी अच्छी है तो आपके पार्टनर को आप से कभी कोई शिकायत नहीं होगी. अगर फिर भी आप को और आप के पार्टनर को लगता है कि आप के लिंग का साइज काफी छोटा है और ठीक से परफौर्म नहीं कर पा रहा तब आपको जरूर सैक्स स्पैशलिस्ट डौक्टर से सलाह लेनी चाहिए.

प्री मैच्योर इजैक्यूलेशन

समय से पहले ही अपना स्पर्म लूज़ कर देना या हल्का सा कुछ होते ही पहले ही क्लाइमैक्स तक पहुंच जाने को प्री मैच्योर इजैक्यूलेशन कहा जाता है. प्री मैच्योर इजैक्यूलेशन आजकल काफी कौमन प्रौब्लम है. कई पुरूषों की यही समस्या है कि वह सैक्स करते समय पूरी परफौर्मेंस नहीं दे पाते और समय से पहले से स्पर्म लूज़ कर देते हैं जिससे कि उनकी गर्लफ्रेंड या पत्नी सैटिस्फाई नहीं हो पाती. प्री मैच्योर इजैक्यूलेशन कई चीजों पर डिपैन्ड करता है.

अगर आपको भी ऐसा लगता है कि आप सैक्स के समय अपनी पूरी परफौर्मेंस नहीं दे पा रहे हैं तो आपको जल्द से जल्द किसी अच्छे डौक्टर की सलाह लेनी चाहिए.

याद रहे, डौक्टर्स पर जाने से हमें कभी शर्माना नहीं चाहिए और ना ही उनसे कुछ छिपाना चाहिए. सैक्स प्रौब्लम्स डिस्कस करने से किसी की मर्दानगी नहीं घटती बल्कि अगर आपने डौक्टर्स से डिस्कस किए बिना कोई गलत दवाई ले ली तो अपको लेने के देने भी पड़ सकते हैं. बेहतर यही है कि अच्छे स्पैशलिस्ट से संपर्क करें, अकसर ऐसे स्पैशलिस्ट आप की प्रौब्लम को खुद तक ही सीमित रखते हैं. सोसाइटी अब बदल चुकी है ऐसे मामलों में बोलने से वह हिचकती नहीं है और न ही दूसरे का मजाक उड़ाती है.

मेरी शादी होने वाली है लेकिन एक्स-गर्लफ्रेंड के पास हमारी इंटीमेट फोटोज है वो मुझे धमकी दे रही है.

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मेरी उम्र 26 साल है और मेरे घरवालों ने मेरी शादी तय कर दी है. मेरी शादी अगले महीने है. मेरी एक गर्लफ्रेंड थी जिससे अब मेरा ब्रेकअप हो चुका है. हमारी सोच एकदूसरे से कभी नहीं मिलती थी और रोज किसी ने किसी बात पर हमारी लड़ाई होती रहती थी जिससे तंग आ कर हम दोनों ने एकदूसरे से अलग होना ही सही समझा. जब से मेरी एक्स गर्लफ्रेंड को मेरी शादी के बारे में पता चला है तब से वह मुझ पर दबाव डाल रही है कि मैं उसी से शादी करूं जबकि हमारा ब्रेकअप हुए भी 4 महीने हो चुके हैं. दरअसल मेरी एक्स गर्लफ्रेंड के पास हमारी कुछ इंटीमेट फोटोज और वीडियोज हैं और वह मुझे धमकी दे रही है कि अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो वह सारी फोटोज और वीडियोज मेरी होने वाली पत्नी को दिखा देगी. मुझे काफी टेंशन हो रही है कि अगर मेरी होने वाली पत्नी ने ये फोटोज और वीडियोज देख ली तो मेरा घर बसने से पहले ही उजड़ जाएगा. मुझे क्या करना चाहिए ?

जवाब –

आजकल के कपल्स में यह चीज़ काफी कौमन हो चुकी हैं कि अपने इंटीमेट मोमेंट्स को वे अपने फोन में कैप्चर करने लग जाते हैं जो कि उन्हें किसी भी समय मुसीबत में डाल सकती है. कपल्स को यह बात समझनी चाहिए कि अपने इंटीमेट मोमेंट्स को अपने फोन में कैप्चर नहीं करना चाहिए क्योंकि आजकल  डाटा लीक होने के कई मामले सामने आ रहे हैं.  इस कारण हैकर्स किसी के भी फोन का डाटा हैक कर सकते हैं. इसका गलत इस्तेमाल करने लग जाते हैं.

अगर बात करें आपके केस की तो, हो ना हो आप बुरी तरह फंस चुके हैं. एक तरफ आपके घरवालों ने आपकी शादी फिक्स कर दी है जिसे आप मना नहीं कर सकते और दूसरी तरफ आपकी एक्स गर्लफ्रेंड आपको धमकी दे रही है कि आप उनसे शादी कर लें. ऐसे में आपको अपनी एक्स गर्लफ्रेंड को समझाना चाहिए कि शादी कोई मजाक नहीं है. अगर आपकी पहले एकदूसरे के साथ नहीं बन पाई तो शादी के बाद कैसे बन पाएगी. हो सकता है आपके एकदो बार समझाने पर वह कंवींस हो जाए, लेकिन आप को इसमें समय लग सकता है.

आप उन्हें समझाइए कि आप दोनों की अलग सोच की वजह से कोर्टशिप के दिनों में  आपके बीच इतने झगड़े होते थे तो शादी के बाद तो और भी ज्यादा झगड़े होने लगेंगे.   इससे कि दोनों की जिंदगी खराब हो सकती है.

आपको अपनी एक्स गर्लफ्रेंड को किसी भी तरह इस काम के लिए मनाना होगा और इसके लिए आपको हर मुमकिन कोशिश करनी होगी क्योंकि अगर आपकी एक्स गर्लफ्रेंड ने आपकी होने वाली पत्नी को आप दोनों के इंटीमेट फोटोज और वीडियोज दिखा दिए तो आपकी जिंदगी बरबाद हो सकती है.

अगर आपकी एक्स गर्लफ्रेंड बिल्कुल समझने को तैयार नहीं होती तो आप एक अच्छा सा मौका देख कर और उनका विश्वास जीत कर उनका फोन कुछ समय के लिए अपने पास रख लें और उस फोन में से अपनी सारी फोटोज और वीडियोज को डिलीट कर दें अगर यह आपके लिए मुमकिन है तो, अगर मुमकिन नहीं  है तो आपके पास उन्हें समझाने के अलावा और कोई औप्शन नहीं बचता है.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 8588843415 भेजें.

तंगहाली में क्यों मरते हैं एक्टर्स, क्यों बेचनी पड़ती हैं सब्जियां,अचानक हो जाते हैं लापता

क्योंकि सास भी कभी बहू थी, फेम एक्टर विकास सेठी की 48 साल की उम्र में मौत हो गई. कम उम्र में मौत की खबर के साथ एक बात  कचोट रही है कि उनके बारे में मीडिया में छापी गई ज्यादातर खबरों में इस का भी जिक्र किया गया कि एक्टर तंगी से जूझ रहा था. पिछले दिनों कई ऐसे एक्टर्स की मौत हुई जिन के बारे में यह लिखा गया कि वह बदहाली के दिन गुजार रहे थे. मुंबई के बारे में सदियों से यह कहा जाता रहा है कि मेहनत करने वालों को यह शहर भूखा सोने नहीं देता. बेशक कुछ लोगों को उन का मनचाहा काम नहीं मिलता लेकिन जिन्हें मुंबई की फिल्मी दुनिया या टेलीविजन इंडस्ट्री में जगह मिल जाती है उन से कहां चूक हो जाती है कि वे आखिरी सांस लेते वक्त पैसे की तंगी से जूझ रहे होते हैं.

शाहखर्ची तो नहीं है इन स्टार्स की मौत की वजह

कुछ साल पहले एक मनमीत ग्रेवाल नाम के एक एक्टर ने सुसाइड कर लिया . इस की वजह आर्थिक परेशानी बताई गई. कहा गया कि एक्टर को पेमैंट नहीं मिली थी इसलिए आत्महत्या कर ली. इनकी माैत के बाद यह भी जानकारी सामने आई कि उन के एक दोस्त ने भी पंखे से लटक कर जान दे दी. दोनों दोस्तों की मौत की परतें जब खुलनी शुरू हुई तो पता चला कि इन दोनों ने विदेश घूमने के लिए कर्ज लिया था. बाद में इस का भुगतान करने में उन्हें परेशानी होने लगी और नतीजे ने दोनों की जान ले ली. लेकिन अगर दोनों ने थोड़ी सूझबूझ दिखाई होती तो शायद हमारे बीच होते.

इन की दर्द भरी कहानी कहीं न कहीं उस लोकोक्ति को सही ठहराती है जिस में यह कहा गया है कि ‘जितनी लंबी चादर हो, पैर उतना ही पसारना चाहिए’. ग्लैमर वर्ल्ड में रह कर स्टार्स अपने लाइफस्टाइल को अचानक से बदलना चाहते हैं. बड़े स्टार्स की तरह शाहखर्ची में लग जाते हैं.

उदित नारायण के बेटे ने भी किया था सामना

उदित नारायण का नाम कौन नहीं जानता. यह बहुत ही पौपुलर प्लेबैक सिंगर रहे हैं. 90 के दशक के ज्यादातर हिट गाने इनके ही गाए होते थे. जाहिर है इन को मेहनताना भी अच्छा मिलता रहा होगा. उदित नारायण के बेटे हैं आदित्य नारायण. इनको रियलिटी शोज में देखा जाता है. बौलीवुड बबल नामक एक शो को दिए गए अपने इंटरव्यू में आदित्य ने बताया कि लौकडाउन के दिनों में उन्होंने ने भी तंगी का सामना किया.

उन्होंने कहा कि एक समय ऐसा था जब उनके अकांउट में केवल 18 हजार रुपए ही बचे थे. इसमें दो राय नहीं कि आदित्य अपने पिता की तरह मशहूर नहीं हैं लेकिन वह टैलेंटेंड रहे हैं. वह एक सिंगर हैं और एंकरिंग भी करते हैं. उनके साथ पिता की पहचान का भी बेनिफिट है जो बौलीवुड के आउटसाइडर्स के साथ नहीं होता है. वह बौलीवुड के ऐसे परिवार से आते हैं जिन के पास काम की कभी कमी ही नहीं रही.

आदित्य अपने पिता की एकमात्र संतान है, ऐसे में तंगी की बात उनके मुंह से शोभा भी नहीं देती है. अगर वह इस थ्योरी में बिलीव करते हैं कि वह अपना खर्च खुद उठाएंगे तो उन्हें अपनी कमाई के हिसाब से ही नौर्मल लाइफ की आदत डालनी होगी लेकिन बड़े फिल्मी फैमिलीज से आने वाले स्टार किड्स को यह आदत नहीं होती, उन्हें बचपन में ही बड़ी गाड़ियों में सैर करने की, महंगे होटलों में खाने की, डिजानर क्लोद्स पहनने की आदत हो जाती है. शायद ऐसे मामलों में तंगहाली की यही वजह होती है.

क्यों नहीं लेते मेडिक्लेम पौलिसीज

‘ससुराल सिमर का’ एक पौपुलर सीरियल था. यह काफी सालों तक लगातार चलता रहा. यह धारावाहिक एक जौइंट फैमिली की कहानी थी. इसी सीरियल में एक्टर आशीष राय ने भी एक भूमिका थी. यह एक्टर किडनी की बीमारी के कारण चल बसे.  इनकी मौत की खबर जब आई, तो पता चला कि इलाज में काफी पैसे खर्च हो गए थे. इन्होंने अपने फैसबुक के जरिए लोगों से फाइनैंशिएल हैल्प भी मांगी थी.

आशीष राय की तरह ही हाल हुआ था एक्टर रामवृक्ष गौर का. इन का नाम उन दिनों सुर्खियों में आया जब उन्होंने आजमगढ़ में सब्जी बेचना शुरू कर दिया था. इस का कारण उन्होंने भी ने बीमारी में पैसे का जरूरत से ज्यादा खर्च होना बताया था. रामवृक्ष गौर ने यह जरूर स्वीकारा था कि उन्होंने कई टीवी शोज और मूवीज में काम किया. इसमें काफी पैसे भी कमाए लेकिन उनकी बचत बीमारी में पानी की तरह बह गई.

इसमें दो राय नहीं है कि कुछ बीमारियां इंसान को आर्थिक रूप से कमजोर कर देती है. पर सवाल यह उठता है कि ऐसे दिनों के लिए ही लोग तरहतरह की सैविंग्स करते हैं और हैल्थ से जुड़ी पौलिसीज लेते हैं. आज की यंंग जैनरेशन इस बात को ले कर बेहद चौकन्नी है. वह करियर के शुरुआत में ही मेडीक्लेम पौलिसीज लेते हैं. कुछ वर्किंग कपल तो अलगअलग से मेडिकल कवर कराने पर ध्यान देते हैं. हर स्टार्स की जिंदगी में उतारचढ़ाव का समय आता है. कभी इन के पास काम होता है कभी नहीं होता. ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि दूसरों के सामने हाथ फैलाने की बजाय सही समय पर इस बारे में निर्णय लें. आज कई ऐसी मैडिक्लेम पौलिसीज है जो बड़ी और महंगी बीमारियों को कवर करती है.

कुछ दिन पहले ही सब टीवी के पौपुलर शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ का एक पौपुलर एक्टर गुरुचरण सिंह अचानक गायब हो गया. यह एक्टर इस सीरियल में एक सरदार रोशन सोढ़ी का रोल निभा रहा था. 26 दिनों तक गायब रहने के बाद एक्टर ने अपने बारे में लोगों को बताया कि वह फाइनैंशिएल क्राइसिस से गुजर रहे थे, उन पर लोन था, जिसे वह क्रैडिट कार्ड से चुका रहे थे. हालांकि एक्टर ने यह भी कहा कि वह कर्ज की वजह से नहीं किसी और तकलीफ के कारण गायब हो गए थे. खैर गायब होने की वजह जो कुछ थी, जब जिंदगी की परतें उधड़ी तो कर्ज की बात सामने आई. आखिर खर्चों की लिस्ट इतनी लंबी क्यों हो कि क्रैडिट कार्ड की बैशाखी लेनी पड़े. जब क्रैडिट कार्ड नहीं थे, तो क्या जिंदगी के खर्चे पूरी नहीं होते थे या बीमारियां नहीं थी. दरअसल समाज के हर वर्ग को अपनी हैसियत के हिसाब से ही खर्च करना चाहिए,  टीवी का साधारण कमाने वाला एक्टर अगर शाहरुख खान और प्रियंका चोपड़ा की तरह शानोशौकत दिखाएगा, तो जान से ही जाएगा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें