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बिजली का मारा प्रेमी बेचारा : प्रेमिका की क्या थी शर्तें

नए जमाने के एक प्रेमी ने जब अपनी प्यारी और चुलबुली प्रेमिका के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, तो उस की प्रेमिका ने अपनी शर्तों की लिस्ट उस के सामने पेश कर दी. ‘‘ठीक है. मैं तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार करती हूं. लेकिन, क्या तुम मेरी शर्तों के मुताबिक शादी के बाद मुझे खुश और सुखी रखोगे?’’

प्रेमी ने उस के नजदीक सरकते हुए कहा, ‘‘तुम जल्दीजल्दी अपनी शर्तें बताओ. मैं हर हाल में तुम्हें खुश और सुखी रखूंगा.’’

प्रेमिका ने एक मीठी मुसकान अपने गुलाबी होंठों पर लाते हुए कहा, ‘‘मैं नए जमाने की लड़की हूं. मुझे नएनए डिजाइन के बदलते फैशन के कपड़े पहनने का शौक है. क्या तुम मेरा यह शौक पूरा करोगे?’’

‘‘हां, बिलकुल. तुम अपनी दूसरी शर्त बताओ?’’ प्रेमी उतावला हुआ जा रहा था. ‘‘मुझे घूमनेफिरने का भी शौक है. क्या तुम मुझे अपनी मोटरसाइकिल

पर बैठा कर घुमाने ले जाओगे? पैट्रोल पर पैसा खर्च करते वक्त अगर चीखोगेचिल्लाओगे, तो मैं तुम्हारे दिमाग की चकरी यानी पहिया घुमा दिया करूंगी,’’ प्रेमिका के गुलाबी होंठों पर फैली मीठी मुसकान में अब मजाक भी शामिल हो चुका था. ‘‘हांहां, मैं तुम्हें हफ्ते में 2-3 दिन दूर या नजदीक कहीं घुमानेफिराने ले जाया करूंगा. तुम अपनी तीसरी शर्त भी पेश करो?’’ वह बेकरार हुआ जा रहा था.

‘‘सुनो, आगे सुनो. शादी के बाद तुम मुझ से लड़ाईझगड़ा मत करना. गाली तो कभी मत देना. मैं तुम्हारे घर में जा कर कपड़े नहीं धोऊंगी. झाड़ूपोंछा नहीं लगाऊंगी. बरतन साफ नहीं करूंगी. बोलो, मेरी यह शर्त भी मंजूर है?’’ ‘‘डार्लिंग, तुम्हें कपड़े धोने, झाड़ूपोंछा लगाने, बरतन साफ करने का काम नहीं करना पड़ेगा. हमारे घर में ये सब काम एक बाई करती है…

‘‘हां, यह बताओ कि चाय या कौफी बना कर पिला दिया करोगी? खाना बना कर खिला दिया करोगी? कहीं बेलन का इस्तेमाल एक मिसाइल की तरह तो नहीं किया करोगी?’’ ‘‘मेरे महबूब, मैं उन मौडर्न लड़कियों में से नहीं हूं, जिन्हें चायकौफी बनाना नहीं आता. खाना पकाना नहीं आता. जिन का पकाया भोजन खा कर कोई भी बीमार हो जाए.

‘‘मैं ने अपनी मरजी से खाना वगैरह बनाने का काम अच्छी तरह सीखा हुआ है. बड़ेबड़े शैफ भी मेरी मम्मी का मुकाबला नहीं कर सकते.’’ ‘‘यों तो प्यारमुहब्बत में कोई शर्त नहीं होनी चाहिए. खैर… तुम्हारी कोई और शर्त हो, तो वह भी बताओ?’’ अपनी होने वाली सास की तारीफ सुन कर प्रेमी जैसे जलभुन गया था. उस की आवाज ही बदल गई थी. आवाज में खनक जैसे कहीं खो गई थी.

प्रेमिका सतर्क हुई, ‘‘क्या हुआ? अभी से रंग बदलने लगे? मेरी शर्तें सुनसुन कर बेचैन क्यों हो रहे हो? ऐ मेरे जानू, आजकल घर बसाना खालाजी का घर नहीं है कि कोई भी मुंह उठाए इस में घुसा चला आए.’’ प्रेमिका ने चुटकी लेते हुए आगे कहा, ‘‘मेरी अगली शर्त यह है कि मुझे मेकअप करने का बढि़या व महंगा सामान ले कर दिया करोगे या मुझे खुद खरीदने दिया करोगे. मुझे सजनेसंवरने का भी बहुत ज्यादा शौक है. मंजूर है?’’

‘‘तुम अपना यह शौक भी बेफिक्र हो कर हमारे घर में पूरा कर सकती हो. तुम कहोगी, तो मैं आसमान के तारे तोड़ कर तुम्हारी मांग में सजा दिया करूंगा, मेरी जानेमन. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं.’’ ‘‘देखो, फिल्मी डायलौग बोल कर मुझे लुभाने की कोशिश मत करो. यों भी मुझे मक्खनबाजी पसंद नहीं है. इस से दिमाग मोटा हो जाता है. यह तो शादी के बाद ही पता चलेगा कि तुम्हारा मेरे प्रति प्यार और लगाव कितने साल तक पूरे रंग में कायम रहता है.

‘‘कई मर्दों का प्यार घटिया और सस्ते मेकअप के सामान की तरह जल्दी फीका पड़ जाता है, बल्कि ऐक्सपायरी दवा की ऐलर्जी की तरह तड़पाने लगता है, सताने लगता है.’’ ‘‘ऐ मेरी महबूबा, कैसी बातें करती हो? मैं दूसरे मर्दों जैसा नहीं हूं. मुझ पर भरोसा रख कर अपनी अगली शर्त भी लगे हाथ पेश करो?’’

‘‘मुझे लैपटौप और स्मार्ट फोन पर अपनी फ्रैंड्स के साथ चैटिंग करने से न तो तुम रोकोगे और न ही तुम्हारे परिवार का कोई और सदस्य ऐसा करेगा. बोलो, मंजूर है?’’ ‘‘हां, मंजूर है. आगे बोलो?’’ प्रेमी ने पूरा मुंह खोल कर उबासी लेते हुए कहा. अपनी प्रेमिका की शर्तें सुनसुन कर उस के कानों में ‘सांयसांय’ की आवाज गूंजने लगी थी.

‘‘मैं ने अपने घर में रूखासूखा भोजन कभी नहीं खाया. दालें व सब्जियां महंगी होने के बावजूद तुम रोज बदलबदल कर चीजें लाया करोगे. और हां, साथ में अदरक, धनिया, टमाटर व सलाद का सामान भी. बिना सलाद के भोजन का क्या स्वाद?’’ ‘‘हमारा पूरा परिवार बेशक भूखे पेट रहे, लेकिन तुम्हें खानेपीने को मिलेगा.’’

‘‘शाबाश, मेरे प्रेमी. तुम सचमुच मुझे बहुत ज्यादा प्यार करते हो,’’ खुशी में प्रेमिका ने उसे चूम लिया. प्रेमी के मन में तरंगें पैदा हो गईं. पूरे तन में जैसे बिजली का हलका सा करंट दौड़ गया. प्रेमी के प्यार के लोहे को गरम देख कर प्रेमिका ने घर में एयरकंडीशनर फिट कराने की शर्त भी रख दी.

यह शर्त सुन कर प्रेमी के लहू में आया उबाल ठंडा पड़ गया. वह उस के पास से झट उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘‘तुम्हारी बाकी सभी शर्तें मुझे स्वीकार हैं, लेकिन एयरकंडीशनर फिट कराने वाली शर्त मंजूर नहीं, क्योंकि बिजली इतनी ज्यादा महंगी हो चुकी है कि लोग पंखेकूलर चलाने में भी डरने लगे हैं. ‘‘बिजली के भारीभरकम बिल अदा करने में नाकाम रहने पर मेरे पापा घर छोड़ कर कहीं चले गए हैं. लाख ढूंढ़ने पर भी वे आज तक हमें नहीं मिले. मेरी मम्मी का रोरो कर बुरा हाल हो गया. क्या तुम चाहती हो कि शादी के बाद मैं भी घर छोड़ कर चला जाऊं और फिर कभी वापस न आऊं?’’ अब प्रेमिका का उतरा चेहरा देखने लायक था.

जिद : रेवा की मां के व्यवहार ने कैसे बना दिया उसे विद्रोही

रेवा अपनी मां की मृत्यु का समाचार पा कर ही हिंदुस्तान लौटी. वह तो भारत को लगभग भूल ही चुकी थी और पिछले कई वर्षों से लास एंजिल्स में रह रही थी. उस ने वहीं की नागरिकता ले ली थी. पिता के न रहने पर करीब 15 वर्ष पूर्व रेवा भारत आई थी. यह तो अच्छा हुआ कि छोटी बहन रेवती ने उसे तत्काल मोबाइल पर मां के न रहने का समाचार दे दिया था. इस से उसे अगली ही फ्लाइट का टिकट मिल गया और वह अपने सुपरबौस की मेज पर 15 दिन की छुट्टी की अप्लीकेशन रख कर, तत्काल फ्लाइट पकड़ने निकल गई. मां का अंतिम संस्कार उसी की वजह से रुका हुआ था. सख्त जाड़े के दिन थे. घाट पर रेवा, रेवती और उस के पति तथा परिवार के अन्य दूरपास के सभी नातेरिश्तेदार भी पहुंचे हुए थे. यद्यपि घाट पर छोटे चाचा और मौसी का बड़ा लड़का भी मौजूद थे लेकिन इस का समाधान घाट के पंडितों द्वारा ढूंढ़ा जा रहा था कि दोनों बहनों में से किस के पास मां को मुखाग्नि देने का अधिकार अधिक सुरक्षित है, तभी रेवती ने प्रस्तावित किया, ‘‘पंडितजी, मां को मुखाग्नि देने का काम बड़ी बेटी होने के कारण रेवा दीदी करेंगी. उन्होंने ही हमेशा मां के बड़े बेटे होने का फर्ज निभाया है.’’

काफी देर बहस होती रही. आखिर में बड़ी जद्दोजेहद के बाद यह निर्णय हुआ कि यह कार्य रेवा के हाथों ही संपन्न करवाया जाए. हमेशा जींसटौप पहनने वाली रेवा, आज घाट पर पता नहीं कहां से मां की साड़ी पहन कर आई थी और एकदम मां जैसी ही लग रही थी. ऐसा लग रहा था कि मां से हमेशा खफाखफा रहने वाली रेवा के मन पर मां के चले जाने का कुछ तो असर जरूर हुआ है. अगले 3-4 दिन बड़ी व्यस्तता में बीते. मां की मृत्यु के बाद के सभी संस्कार विधिविधान से संपन्न किए गए. पंडितों के अनुसार, बरसी का हवनयज्ञ आदि 10 दिन से पहले करना संभव नहीं होगा. रेवा के वापस जाने से 2 दिन पूर्व की तिथि नियत की गई. अगले दिन रेवती ने घर की साफसफाई की जिम्मेदारी संभाल ली. रेवा ने पहले ही कह दिया, ‘‘तू मां की लाड़ली बिटिया थी, इसलिए मां का ये घर, सामान, जमीनजायजाद व धनसंपत्ति, अब तू ही संभाल. न तो मेरे पास इतनी फुरसत है, न ही मुझे इस की जरूरत. और सुन, अब मैं इंडिया नहीं आ सकूंगी, इसलिए अपने पति शरद से पूछ कर, अगर कहीं मेरे हस्ताक्षर की जरूरत हो तो अभी करा ले.

आखिर तू ही तो मां की असली वारिस है. मैं तो वर्षों पहले यहां से विदेश चली गई और वहीं की ही हो कर रह गई. तू ने ही मां और पापा की देखभाल की है, उन्हें संभाला है. समझी कि नहीं, रेवती की बच्ची.’’ रेवा दीदी के मुंह से काफी दिनों बाद ‘रेवती की बच्ची’ सुन कर रेवती को बड़ा अच्छा लगा जैसे बचपन के कुछ क्षण फिर से वापस आने को आतुर हों. घर की साफसफाई के बाद मां का सामान ठीक करने का नंबर आया. उन के कपड़े करीने से, बड़े सलीके से और तरतीबवार उन के वार्डरोब में हैंगर पर लटके हुए थे. शेष साडि़यां, ब्लाउज व पेटीकोट का सैट बना कर पौलिथीन में पैक कर के रखे हुए थे. मां ऐसी ही थीं, हर चीज उन्हें कायदे से रखने की आदत या यह कहो मीनिया था और वे यह चाहती थीं कि उन की बेटियां भी अपना घर उसी तरह सजासंवरा व सुव्यवस्थित रखें. बचपन में अगर नहाने के बाद तौलिया एक मिनट के लिए सही जगह फैलाने से रह जाता, तो समझो हम लोगों की शामत आ जाती थी. पापा थोड़े लापरवाह किस्म के इंसान थे और रेवा भी उन पर ही गई थी. सो, वे दोनों अकसर मां की डांट खाते रहते थे.

आखिर में, मां की बुकशैल्फ ठीक करने का नंबर आया. मां की रुचि साहित्यिक थी और जहां कहीं भी कोई अच्छी किताब उन्हें नजर आ जाती, वे उसे खरीदने में तनिक भी देर न लगातीं. इस प्रकार धीरेधीरे मां के पास दुर्लभ साहित्य का खजाना एकत्र हो गया था. बुकशैल्फ झाड़पोंछ कर किताबों को लगातेलगाते रेवती को किताबों के पीछे एक काले रंग की डायरी दिखाई दी जिस पर लिखा था, ‘सिर्फ प्रिय रेवा के लिए.’ रेवती कुछ देर उस डायरी को उलटपलट कर देखती रही. डायरी इस तरह सील थी कि उसे खोलना आसान नहीं था. रेवती ने डायरी झाड़पोंछ कर रेवा दीदी को पकड़ा दी.

रेवा सोफे पर पसरी हुई थी, उस ने उचक कर पूछा, ‘‘यह क्या है?’’ ‘‘मां तेरे लिए एक डायरी छोड़ गई हैं, रख ले,’’ रेवती ने कहा. रेवा थोड़ी देर उस डायरी को उलटपलट कर देखती रही, फिर उस ने उसे वैसा ही रख दिया. उसे चाय की तलब लगी थी, उस ने रेवती से चाय पीने के लिए पूछा तो चाय बनाने किचन में चली गई. सोचने लगी कि मां ने पता नहीं, डायरी में क्या लिखा होगा. मां को तो जो कुछ लिखना था, रेवती को लिखना चाहिए था, आखिर वह उस की ‘ब्लूआइड’ बेटी जो थी.

रेवा सोचने लगी, ‘मां तो वैसे भी रेवती को ही चाहती थीं, मुझे तो उन्होंने हमेशा अपने से दूर ही रखा. पता नहीं मैं उन की सगी बेटी हूं भी या नहीं.’ फिर सोचने लगी कि चलो, अब तो मां चली ही गई, अब उन से क्या शिकवाशिकायत करना. उसे आज तक, बल्कि अभी तक, समझ में नहीं आया कि मां सब से तो अच्छी तरह बोलतीबतियाती थीं, पर उस के साथ हमेशा कठोर क्यों बन जाती थीं. रेवा शुरू से पढ़ने में बड़ी तेज थी और अपनी क्लास में हमेशा टौप करती, जबकि रेवती औसत दर्जे की स्टूडैंट थी. मां रेवती को रोज जबरदस्ती पढ़ाने बैठतीं और उस पर मेहनत करतीं, तब जा कर वह किसी तरह क्लास में पास होती थी. उधर, रेवा ने अपने स्कूलकालेज में मार्क्स लाने के कितने ही कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए और ऐसे नए मानक गढ़ दिए जिन का टूटना असंभव सा था. स्कूलकालेज में रेवा पिं्रसिपल व टीचर के प्यार से ज्यादा, इज्जत की हकदार बन बैठी थी. उस के क्लासमेट उस की ज्ञान की वजह से उस से एक तरह से डरते थे और एक दूरी बना कर ही रखते थे और इन्हीं कारणों से उस की कोई अच्छी सहेली भी नहीं बन सकी.

मां ने तो वैसे भी उसे तीसरी क्लास से ही होस्टल में डाल दिया था. कई बार रोने के बाद भी उन का दिल नहीं पसीजा. खैर, पापा हर शनिवार की शाम को उसे घर ले जाने के लिए आ जाते और सोमवार की सुबह उसे स्कूल छोड़ जाते. रेवा के लिए वह एक दिन बड़ा सुकूनभरा होता, दिनभर वह अपने पापा के साथ मस्ती करती. मां कई बार पूछतीं कि कोर्स की कोई कौपीकिताब लाई कि नहीं, और वह इन प्रश्नों से बचने के लिए पापा के पीछे दुबक जाती. उस के 8वीं पास करने के साथ ही पापा का ट्रांसफर दूसरी जगह हो गया. सो, सप्ताह में एक दिन घर आनेलाने का चक्कर भी खत्म हो गया.

इस शहर से जाने के बाद भी पापा, हर महीने एक बार छुट्टी वाले दिन जरूर मिलने आते और कभीकभार मम्मी भी साथ में आतीं. मां आते ही उस के हालचाल जानने से पहले ही पढ़ाई के बारे में पूछने बैठ जातीं. सो, पापा का अकेले आना, उसे हमेशा बड़ा भाता था. वह जो भी फरमाइश करती, पापा तुरंत पूरी करते, तरहतरह की ड्रैसेस दिलाते, लंच व डिनर बाहर ही होता व उस की मनपसंद आइसक्रीम दिन में कई बार खाने को मिलती. इस तरह धीरेधीरे रेवा अपनी मां से दूर होने लगी और अकसर एक रटारटाया मुहावरा उस के मुंह पर आने लगता, ‘‘मां तो बस, रेवती की ही मां हैं. सारा प्यार मां ने उस के लिए ही रख छोड़ा है, मुझ से तो वे प्यार करती ही नहीं.’’ इंटर तक रेवा उसी कालेज में पढ़ती रही और उस ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट में पूरे प्रदेश में मैरिट में प्रथम स्थान प्राप्त कर कीर्तिमान स्थापित कर दिया. उस कालेज की पिं्रसिपल ने तो फेयरवैल पार्टी वाली स्पीच में यहां तक कह दिया कि इस लड़की रेवा का चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा में होेने से कोई नहीं रोक सकता और इस कालेज को उस पर बहुत गर्व है.

छोटे से शहर लखनऊ के उस छोटे कालेज से निकल कर रेवा को लेडी श्रीराम कालेज, दिल्ली में दाखिला हाथोंहाथ मिल गया. साथ ही, मां ने उसे आईएएस के ऐंट्रैंस की कोचिंग भी जौइन करा दी. फिर तो रेवा अपनी पढ़ाई की भागदौड़ में इस तरह मसरूफ हो गई कि उसे मां के पास रहने और उन का प्यारदुलार पाने का मौका ही नहीं मिला जिस के लिए वह हमेशा तरसती रही थी.

पता नहीं कैसे, एक दिन अचानक रेवा को लगने लगा कि वह तो एकदम मशीन बनती जा रही है और इस के लिए अब उस का मन कतई तैयार नहीं था. रहरह कर उसे अब बचपन के वे दिन याद आ रहे थे, जब वह मांबाप के प्यार से वंचित रही. धीरेधीरे उस में विद्रोह के मूकस्वर उठने लगे. सब से पहले उस ने कालेज में टौप करने के लक्ष्य को ढीला छोड़ना शुरू कर दिया. उस के मन में एकाएक खयाल आया कि अगर वह दूसरे स्थान पर आ जाती है, तो किसी को क्या फर्क पड़ने वाला है. इस के बाद उस ने आईएएस कोचिंग में भी ढील देनी शुरू कर दी. इन बातों से रेवा की एक अजीब सी जिद हो गई. इस कारण वह क्लास में पहले द्वितीय, फिर तृतीय स्थान पर आ गई जिस से उस के सभी साथी आश्चर्यचकित रह गए. इसी तरह आईएएस कोचिंग के साप्ताहिक टैस्टों में उस के नंबर कमतर आने शुरू हो गए. जैसे ही मां को इस का पता चला, वे दिल्ली पहुंच गईं और उसे लगातार डांटती रहीं. रेवा को यह देख कर बड़ा सदमा लगा कि रेवती को हर साल नंबर कम आने पर प्यार से समझाने वाली मां, आज कहां खो गई हैं. मां तो डांट कर चली गईं, पर रेवा के मन में एक विद्रोह की चिनगारी को अनजाने में और भड़का गईं. रेवा सोचती रही कि मां अगर प्यार के दो बोल बोल कर समझा देतीं तो कौन सा आसमान छूना उस के लिए संभव न था.

इसी बीच एक और बात हो गई. मां की खास सहेली मंदिरा का लड़का और उस का बालपन का सखा सरस भी दिल्ली आ गया. एक दिन सरस से उस की मुलाकात एक मौल में हो गई. दोनों ने वहां कौफी पी और एकदूसरे का मोबाइल नंबर एक्सचेंज किया. फिर तो आपस में बातों का सिलसिला ऐसा चला कि बचपन की दोस्ती प्यार में कब बदल गई, पता ही न चला. सरस ने अपनी मां से जब इस बारे में बात की तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. अगला अवसर मिलते ही, सरस की मां मंदिरा आंटी, मां के पास पहुंच गई. जैसे ही उन्होंने मां को बताया कि सरस व रेवा आपस में प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं, मां का चेहरा उतर गया. जब उन्हें पता चला कि सरस ने इंजीनियरिंग की है और वह जौब पाने के लिए प्लेसमैंट फौर्म भर रहा है, तो मां ने इस शादी के लिए यह कह कर इनकार कर दिया कि रेवा को तो अभी आईएएस बनना है. एक इंजीनियर व आईएएस में शादी कैसे हो सकती है.

जैसे ही रेवा को इस बात का पता चला, विद्रोह की वह छोटी सी चिनगारी एकदम ज्वाला बन गई. परिणामस्वरूप, उस ने प्रतियोगिता परीक्षा का एक पेपर ही छोड़ दिया. मां को जब इस का पता चला तो वे बहुत चीखीचिल्लाईं. कितनी ही बार पूछने पर भी कि उस ने ऐसा क्यों किया, रेवा खामोश बनी रही. कुछ असर न होता देख, मां रेवा को समझाने बैठ गई. काफी देर बाद, रेवा ने जो पहला वाक्य कहा, वह यह था कि वे उसे सरस से विवाह करने देंगी या नहीं, अन्यथा दोनों कोर्टमैरिज कर लेंगे. अब तो मां रोने बैठ गईं, परंतु इन बातों का रेवा पर कोई असर नहीं हुआ. कुछ दिन रुक कर वह दिल्ली लौट गई और उस ने पत्रकारिता के कोर्स में प्रवेश ले लिया. धीरेधीरे रेवा ने घर आना भी कम कर दिया. इधर, सरस को एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर जौब मिल गई और उधर रेवा को दूरदर्शन के न्यूज चैनल में काम मिल गया. मां ने लाख समझाया, पर रेवा ने भी जिद पकड़ ली और इस के बाद फिर आईएएस की प्रतियोगिता में बैठी ही नहीं. बाद में सरस और रेवा ने विवाह कर लिया जिस में मां शामिल तो हुईं पर बड़े ही बेमन से. इस के कुछ सालों बाद, रेवा सरस के साथ लास एंजिल्स चली गई और वहीं की नागरिकता ले ली.

‘‘दीदी, चाय बना रही हूं, पियोगी.’’ रेवती की आवाज सुन कर रेवा वापस वर्तमान में लौट आई. उसे लगा कि बचपन की कड़वाहट फिर से मुंह को कसैला कर गई. कई बार रेवा मन को समझा चुकी है कि मां के जाने के बाद उसे अब सबकुछ भूल जाना चाहिए. परंतु वह क्या करे, मन के बेलगाम घोड़े अब भी उसी जानीपहचानी व अनचाही राह पर निकल पड़ते हैं. मां की बरसी के बाद रेवा ने जाने की तैयारी शुरू कर दी. रेवती के बहुत कहने के बाद, उस ने मां के कपड़ों में से 1-2 साडि़यां रख लीं और मां की 1-2 छोटीबड़ी तसवीरें. आखिर नियत तिथि पर रेवा चली गई. यद्यपि उस ने लाख मना किया, पर रेवती व उस का पति राकेश उसे एअरपोर्ट तक छोड़ने आए. उस का छोटा बच्चा रेवा मौसी की गोद में ही बैठा रहा और लगातार उस से पूछता रहा, ‘‘मौसी, आप फिर कब आओगी?’’ रेवा उस नन्हे से, फिर से आने का वादा कर के सिक्योरिटी चैक से अंदर चली गई. उसे लगा कि जितना वह इन बंधनों को भूलना चाहती है, एक नया मोहपाश उसे बांधने को तैयार खड़ा मिलता है.

वैब चौइस से उसे प्लेन में अच्छी सीट मिल गई थी और वह सामान रख कर सोने के लिए पसर गई. 1-2 घंटे की गहरी नींद के बाद रेवा की आंख खुल गई. पहले सीट के सामने वाली टीवी स्क्रीन पर मन बहलाने की कोशिश करती रही, फिर बैग से च्युंगम निकालने के लिए हाथ डाला तो साथ में मां की वह डायरी भी निकल आई. मन में आया कि देखूं, आखिर मां मुझ से क्या कहना चाहती थीं जो उन्हें इस डायरी को लिखना पड़ गया. कुछ देर सोचने के बाद उस ने उस पर लगी सील को खोल डाला और समय काटने के लिए पन्ने पलटने शुरू किए. एक बार पढ़ने का सिलसिला जब शुरू हुआ तो अंत तक रुका ही नहीं. पहले पेज पर लिखा, ‘‘सिर्फ अपनी प्रिय रेवा के लिए,’’ दूसरे पन्ने पर मोती के जैसे दाने बिखरे पड़े थे. लिखा था, ‘‘मेरी प्रिय छोटी सी लाडो बिटिया, मेरी जान, मेरी रेवू, जब तुम यह डायरी पढ़ रही होगी, मैं तुम्हारे पास नहीं हूंगी. इसीलिए मैं तुम्हें वह सबकुछ बताना चाहती हूं जिस की तुम जानने की हकदार हो.

‘‘मैं अपने मन पर कोई बोझ ले कर जाना नहीं चाहती और तुम मेरी बात समझने तो क्या, सुनने के लिए भी तैयार नहीं थी. सो, जातेजाते अपनी वसीयत के तौर पर यह डायरी दे कर जा रही हूं क्योंकि तुम हमारी पहली संतान हो तुम, जैसी नन्ही सी परी पा कर मैं और तुम्हारे पापा निहाल हो उठे थे.

‘‘धीरेधीरे मैं तुम में अपना बचपन तलाशने लगी. छोटी होने के नाते मैं जिस प्यार व चीजों से महरूम रही, वे खिलौने, वे गेम मैं ढूंढ़ढूंढ़ कर तेरे लिए लाती थी. जब तुम्हारे पापा कहते, ‘तुम भी बच्चे के साथ बच्चा बन जाती हो,’ सुन कर ऐसा लगता कि मेरा अपना बचपन फिर से जी उठा है. धीरेधीरे मैं तुम में अपना रूप देखने लगी और तुम्हारे साथ अपना बचपन जीने लगी. जो कुछ भी मैं बचपन में नहीं हासिल कर पाई थी, अब तलाश करने की कोशिश करने लगी. ‘‘समय के साथ तुम बड़ी होने लगी और मेरी फिर से अपना बचपन सुधारने की ख्वाहिश बढ़ने लगी. तुम पढ़ने में बहुत तेज थी. प्रकृति ने तुम्हें विलक्षण बुद्धि से नवाजा था. तुम हमेशा क्लास में प्रथम आती और मुझे लगता कि मैं प्रथम आई हूं. यहां तुम्हें यह बताना चाहती हूं कि मैं बचपन से ही पढ़ाई में काफी कमजोर थी, पर तुम्हें यह बताती रही कि मैं भी हमेशा तुम्हारी तरह कक्षा में प्रथम आती थी. इसीलिए मेरे मन में एक ग्रंथि बैठ गई थी कि मैं तुम्हारे द्वारा अपनी उस कमी को पूरा करूंगी.

‘‘समय के साथसाथ मेरी यह चाहत सनक बनती चली गई और मैं तुम पर पढ़ाई के लिए अधिक से अधिक जोर डालने लगी. जब मुझे लगा कि घर पर तुम्हारी पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाएगी, तो मैं ने तुम्हारे पापा के लाख समझाने को दरकिनार कर छोटी उम्र में ही तुम्हें होस्टल में डाल दिया. इस तरह मैं ने तुम्हारा बचपन छीन लिया और तुम भी धीरेधीरे मशीन बनती चली गई. दूसरी तरफ रेवती पढ़ने में कमजोर थी और मैं उसे खुद ले कर पढ़ाने बैठने लगी. जरा सी डांट पर रो देने वाली रेवती, हमारे प्यारदुलार का ज्यादा से ज्यादा हकदार बनती चली गई और मुझे पता ही नहीं चला. और तो और, मुझे पता नहीं चला कि कब तुम्हारे हिस्से का प्यार भी रेवती के हिस्से में जाने लगा. ‘‘तुम्हारे लिए अपना प्यार जताने का हमारा तरीका थोड़ा अलग था. मैं सब के सामने तुम्हारी तारीफों के कसीदे पढ़ कर, उस पर गर्व करने को ही प्यार देना समझती रही. पर सच जानो रेवू, मैं तुम्हें उस से भी ज्यादा प्यार करती थी जितना कि रेवती को करती थी. पर क्या करूं, यह कभी बताने या दिखाने का मौका ही नहीं मिल सका या हो सकता है कि मेरा प्यार दिखाने या जताने का तरीका ही गलत था.

‘‘जैसेजैसे तुम बड़ी होती गई, तुम्हारे मन में धीरेधीरे विद्रोह के स्वर उभरने लगे. मैं तुम्हें आईएएस बनाना चाहती थी जिस से अपनी हनक अपने जानपहचान, नातेरिश्तेदारों व दोस्तों पर डाल सकूं. पर तुम ने इस के लिए साफ इनकार कर दिया और प्रतियोगिता के कुछ प्रश्न जानबूझ कर छोड़ दिए. तुम्हारी या कहो मेरी सफलता में कोई बाधा न आए, इसलिए मैं ने तुम्हें किसी लड़के से प्यारमुहब्बत की इजाजत भी नहीं दी थी. पर तुम ने उस में भी सेंध लगा दी और विद्रोह के स्वर तेज कर दिए और सरस से चुपचाप विवाह कर लिया.

‘‘तुम तो विलक्षण प्रतिभा की धनी थी, इसलिए एक मल्टीनैशनल कंपनी ने तुम्हें हाथोंहाथ ले लिया. पर तुम ने अपनी मां के एक बड़े सपने को चकनाचूर कर दिया. इस के बाद तो तेरी मां ने सपना ही देखना बंद कर दिया. समय के साथ, मैं ने तुम्हारे पति को भी स्वीकार कर लिया और सबकुछ भूल कर तुम्हारे कम मिले प्यार की भरपाई करने में जुट गई. पर अब तुम इस के लिए तैयार नहीं थी, तुम्हारे मन में पड़ी गांठ, जिसे मैं खोलने या कम से कम ढीला करने की कोशिश कर रही थी, उसे तूने पत्थर सा कठोर बना लिया था. हां, अपने पापा के साथ तुम्हारा व्यवहार सदैव मीठा, स्नेहपूर्ण व बचपन जैसा ही बना रहा. ‘‘तुम्हारी यह बेरुखी या अनजानेपन वाला व्यवहार मेरे लिए सजा बनता गया, जिसे लगता है मैं अपने मरने के बाद भी साथ ले कर जाऊंगी. पर रेवू, कभी तूने सोचा कि मैं भी तो एक मां हूं और हर मां की तरह मेरा दिल भी अपने बच्चों के प्यार के लिए तरसता होगा. तुम और रेवती दोनों मेरी भुजाओं की तरह हो और मुझे पता ही नहीं चला कि कब मैं ने अपने दाएं हाथ, अपनी रेवी पर ज्यादा भरोसा कर लिया. हर मां की तरह मेरे मन में भी कुछ अरमान थे, कुछ सपने थे जिन्हें मैं ने तुम्हारी आंखों से देखने की कोशिश की. अगर इस के लिए मैं गुनाहगार हूं, तो मैं अपना गुनाह स्वीकार करती हूं. पर अफसोस तूने तो बिना कुछ मेरी सफाई सुने, मेरे लिए मेरी सजा भी मुकर्रर कर दी और उस की मियाद भी मेरे मरने तक सीमित कर दी.

‘‘मैं ने यह डायरी इस आशय से तुम्हें लिखी है कि शायद आज तुम मेरी बात को समझ सको और अपनी मां को अब माफ कर सको. अंत में ढेर सारे आशीर्वाद व उस स्नेह के साथ जो मैं तुम्हें जीतेजी न दे सकी…तेरी मां.’’

डायरी का आखिरी पन्ना पलट कर, रेवा ने उसे बंद कर दिया. कभी न रोने वाली रेवा का चेहरा आंसुओं से तरबतर होता चला गया और इतने दिनों की वो जिद, वो गांठ भी साथ ही घुलने लगी. पर आज उस ने भी उन आंसुओं को न तो पोंछा, न ही रोका. उसे लगा सर्दी बढ़ गई है और उस ने कंबल को सिर तक ढक लिया. वह ऐसे सो गई जैसे कोई बच्चा अपनी मां की खोई हुई गोद में इतमीनान से सो जाता है. आज रेवा को भी लगा कि मां कहीं गई नहीं है और पूरी शिद्दत से आज भी उस के पास है. मां की गोद में सोई रेवा की आंखों से आंसू मोती बन कर बह रहे थे. तभी उसे लगा, मां ने उस के आंसू पोंछ कर कहा, ‘अब क्यों रोती है मेरी लाड़ो, अब तो तेरी मां हमेशा तेरे पास है.’ …और रेवा करवट बदल कर फिर गहरी नींद में चली गई.

टीनएजर से बात करने के 20 सवाल

कई बार होता है ना कि हम किसी के घर गए और वहां टीनएजर से बात करनी शुरू की ही थी के वे उठकर अपने कमरे में चले गए या लाख बुलाने पर भी अपने कमरे से बाहर नहीं निकलते. अगर ऐसा होता है तो हमे बहुत बुरा लगता है और हम कहते है की शर्मा जी ने तो अपने बच्चों को मैनर्स ही नहीं सिखाये। या फिर लगता है शर्मा जी की तो पसंद ही नहीं है की कोई उनके बच्चों से बात करें.

लेकिन सच यह नहीं है कि उनके माँ बाप ने ये उन्हें यह पट्टी पढ़ाई है कि कोई गेस्ट आया है तो तुम बाहर मत आना बल्कि सच तो ये है कि माँ बाप खुद शर्मिंदा होते है कि हमारा बच्चा बाहर नहीं आ रहा क्यूंकि रिश्तेदारों के तानों का सामना तो उन्हें ही करना पढ़ रहा है कि बच्चे को इतनी भी मैनर्स नहीं सिखाई। ऐसे में उनकी परवरिश पर सवाल उठने लगने है जबकी सच तो यह है की इसमें गलती रिश्तेदारों की है, माँ बाप की नहीं क्यूंकि उनसे जो सवाल आप पूछ रहे हो। जो बातें आप उनसे कर रहे हो वह उन्हें पसंद नहीं आता है इसलिए वे आपके पास आने में हिचकिचाते है.

दरअसल ना ही मां बाप को मालूम है और न ही रिश्तेदारों को पता है की इन बच्चों के स्तर पर उतरा कैसे जाएं। इनसे किस तरह के बात की जाये. टीनएजर से ये न पूछे की तुम कौन से क्लास में हो. ये भी ना पूछों की पढ़ाई कैसी चल रही है. करियर कैसा है, क्या बनना चाहते हो, इस साल मार्क्स कितने आये. अपने बच्चें से तुलना करके उसे तंग ना करें. पूछो वो सवाल जिसमे उसको रूचि हो सकती है.

इसलिए जब अगली बार किसी के घर जाएं तो जरा एक बार टीनएजर से ये सवाल पूछ कर देखें। आप खुद महसूस करेंगे कि बच्चा इन टॉपिक्स में इंट्रेस्ट ले रहा है और आपके साथ टाइम स्पेंड करना उसे भी अच्छा लग रहा है.

सेविंग्स और फाइनेंस के बारें में बात करें?

उनसे पूछें की अपनी पॉकेट मनी को बचाकर वह क्या करना पसंद करते है, अगर उन्हें 1 महीनें घर खर्च चलने को दिया जाएं तो वो किस तरह से प्लानिंग करेंगे और इसमें आप उनकी हेल्प करें.

सोशल मीडिया और ऑनलाइन सेफ्टी?

टीनएजर के साथ साइबरबुलिंग, प्राइवेसी से रिलेटेड मेटर और जिम्मेदार डिजिटल नागरिक होने के महत्व सहित ऑनलाइन गतिविधियों से होने वाले खतरों पर खुलकर बात करें और बातों बातों में उन्हें न सिर्फ इनके फायदे बताएं बल्कि सोशल मीडिया से होने वाली समस्याओं पर भी बात करें.

शॉपिंग के बारें में बात करें?

उन्हें बताएं आपको कहाँ से शॉपिंग करना पसंद है, ऑनलाइन शॉपिंग के बारें में बच्चो सलाह ले, बच्चों से पूछे कि अगर आपको कुछ मनपसंद खरीदने के बारें में कहा जाएं तो क्या खरीदोगे।

मेंटल हेल्थ पर बात करना उन्हें कूल लगेगा?

टीनएज बच्चों के साथ मेंटल हेल्थ रिलेटेड बातचीत को सामान्य तौर करना चाहिए। स्ट्रेस, टेंशन और डिप्रेशन को समझने और रोकने के तरीकों पर बात-चीत करें और बातों बातों में उन्हें बताएं की यदि उन्हें ऐसी समस्याएं होती हैं तो वे आपसे हेल्प मांग सकते हैं।

जंक फ़ूड कौन सा, कहाँ अच्छा मिलता है?

यह तो हम सभी जानते है की टीनएजर को जनक फ़ूड अच्छा लगता है लेकिन परेशानी यह है कि हम हमेशा उन्हें यह खाने से रोकते है. अब रोकना नहीं है बल्कि इसके बारें में जानना है. वो बात अलग है बातों ही बातों में उन्हें ज्यादा खाने के नुक्सान बता दे पर खाने से मना करके उन्हें अपना दुश्मन ना बनाये. खाना पकाना अच्छा लगता है? कौन सा रैस्टौरेंट है, जहां आपको सबसे बेकार अनुभव मिला हो?

तुम्हारा फेवरिट बोर्ड गेम या कार्ड गेम कौन सा है?

गेम खेलना लगभग हर टीनएजर को पसंद होता है. इसलिए बच्चे के साथ बैठकर उसके मनपसंद गेम पूछें और खेले. इससे साथ में टाइम स्पेंड करना अच्छा लगेगा.

म्युचुअल फंड के बारें में बात करो?

म्युचुअल फंड में बहुत फायदा हो जाएं तो पैसों को कहाँ खरचोगे, क्या सारा खर्च दोगे या कुछ सेव भी करोगे, शेयर मार्किट कहा जा रहा है उसमे तुम कितना और क्यों इन्वेस्ट करना चाहते हो, बच्चे के दोस्तों का एक्सपीरियन्स इस बारें में कैसा है बात करें.

उसे कोम्प्लीमेंट दें?

टीनएजर को बताए कि तुम्हारी स्माइल बहुत अच्छी है, हमेशा ऐसे ही हँसते रहा करों, तुम्हारें बात करने का स्टाइल सबसे अलग है आदि जो भी अछाईया टीनएजर में नज़र आए उन्हें कहने में ना झिझकें.

बौलीवुड में क्या चल रहा है?

कौन सी मूवी हाल फ़िलहाल में उन्हें सबसे ज्यादा पसंद आई. किस मूवी का वेट वे अभी कर रहे है. कौन से अभिनेता और अभिनेत्री आजकल उन्हें अच्छे लग रहे है और क्यों। जनरली किस तरह की मूवी और म्यूजिक पसंद करते है. इस पर बात करें.

साइबरबुलिंग के बारें में टीनएजर क्या सोच रखते है?

साइबरबुलिंग से निपटने के टिप्स, रिपोर्ट और ब्लॉक कैसे करें। इन सब बातों के बारें में एक हैल्थी डिसकशन करें.

ट्रेवल एडवेंचर के बारे में बात करें?

उससे पूछे कि उसे कहाँ घूमना पसंद है, लास्ट ट्रवेल कहाँ किया, वहां क्या अच्छा लगा, कौन से देश में रहना पसंद करोगे अगर कभी मौका मिले तो. कौन सी जगह है जहाँ जाकर बिलकुल अच्छा नहीं लगा. कहा कहाँ जाने का मन है.

कोई फेमस पर्सनालिटी बनने का मौका मिले तो क्या बनना चाहोगे?

अगर कुछ दिन के लिए तुम्हे कोई सेलेब्रटी बनने का मौका मिले तो किसे चुनोगे और क्यों। इससे पता चलेगाटीनएजर का आइडियल कौन है, वह लाइफ में क्या बनना चाहता है. आप अपनी सोच भी इस बारें में उसे बताएं.

सेक्स को लेकर बात करें?

माना शुरू में इस सवाल पर वह अनकम्फर्टेबल हो सकता है लेकिन आपके बातचीत आगे बढ़ाने पर वो भी इंट्रेस्ट लेने लगेगा. फर्स्ट अट्रैक्शन को वह किस तरह देखते है. इस तरह बातचीत को आगे बढ़ाएं।

आपके साथ अब तक की सबसे मजेदार बात क्या हुई है?

बच्चे को अपने साथ हुए किसी किस्से के बारें में बताएं और उससे भी उसके बारें में पूछें। वह बात उसके स्कूल, कॉलेज की या घर की भी हो सकती है.

अगर आपको कोई जानवर अपना दोस्त बनाना हो, तो वह कौन सा जानवर होगा?

टीनएजर को एनिमल पसंद होते है इस सवाल पर वे जरूर खुश होंगे और खुलकर अपने मन की बात करेंगे. क्या वह घर पर भी डॉग आदि पालना चाहते है, फिर उन्हें इस बारें में बताएं की उनका कितना काम होता है आदि।

नया दोस्त बनाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?

बड़ों की अपेक्षा टीनएजर आसानी से दोस्त बना लेते है, उनसे आप इस बारें में सलाह ले कैसे हम नए दोस्त बनाये.. यक़ीनन वे आपको कोई अच्छा आईडिया ही देंगे.

पिछली बार आपने कब कोई समस्या हल की थी?

बच्चे को बताएं की वह काफी सुलझा हुआ लगता है इसलिए आप जानना चाहते है के समस्या आने पर उसको हैंडल करने का आपका तरीका क्या है.

आपका पसंदीदा मौसम कौन सा है?

यह बातचीत करने का एक अच्छा टॉपिक हो सकता है, आप गर्मी, सर्दी आदि मौसम के बारें में बात करें और मौसम की परेशानियों से कैसे बचते है उस पर भी बात करें और एक दूसरे को सलाह दे.

दिन का आपका पसंदीदा हिस्सा कौन सा है?

किसी को सुबह जल्दी उठकर अपने सभी काम करना पसंद है तो किसी को रात में लेट नाइट टीवी देखकर सोने में मज़ा आता है. टीनएजर से इस बारें में बात करें.

क्या तुम किसी स्पोर्ट्स को खेलते या फॉलो करते हो?

टीनएजर से पूछें क्रिकेट में रूचि है ,तो बताओं आजकल कौन से मैच हो रहें हैं. आजकल क्रिकेट में चल क्या रहा है, वर्ल्ड कप चल रहा है या फिर पूछे ये होता क्या है मुझे नहीं पता जरा समझाना. फिर देखियेटीनएजरको आपके पास बैठने में कैसा इंट्रेस्ट आता है.

मायके की सम्पति में बेटियों का हक होना चाहिए या नहीं

कई बार महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में भी नहीं पता होता. इसका नतीजा यह होता है की जरुरत पड़ने पर वह अपने लिए आवाज भी नहीं उठा पाती. समाज के ठेकेदारों के द्वारा भी कहा जाता है की बेटियों की शादी कर ससुराल भेज दिया और उन्हें क्या चाहिए.

साथ ही जो लड़कियाँ अपना हक़ मांगती है उन्हें भी समाज अच्छी नज़र से नहीं देखता. इसलिए भी लड़कियां चुप लगा जाती है. दूसरे लड़कियों को लगता है की भाई से सम्बन्ध कौन ख़राब करें. कहीं इस चक्कर में मेरा मायका ही न छूट जाएँ. लेकिन इस तस्वीर का दूसरा पहलु यह भी है की रिश्ते निभाने की पूरी जिम्मेवारी सिर्फ बहनों की ही क्यूँ हो. यह तो भाई भी सोच सकते हैं कि कहीं बहन से मेरा रिश्ता न टूट जाये.

लेकिन कई बार पति की म्रत्यु होने पर ससुराल में भी कोई आसरा नहीं मिलता. ऐसे में हर लड़की को अपने अधिकार पता होने चाहिए फिर उसे सम्पति से हिस्सा लेना है या नहीं ये उसकी परिस्थितयों और इच्छा पर निर्भर करता है. लेकिन वजह कुछ भी हो लड़कियों को अपने क़ानूनी अधिकारों के बारे में पता होना चाहिए और जरुरत पड़ने पर उनका इस्तेमाल भी करना चाहियें.

क्या कहता है कानून

हिंदू सक्सेशन ऐक्ट, 1956 में साल 2005 में संशोधन कर बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान हिस्सा पाने का कानूनी अधिकार दिया गया है. यानि बाप की प्रॉपर्टी में जितना हक़ बेटों का है उतना ही हक़ बेटियों का भी है. संपत्ति पर दावे और अधिकारों के प्रावधानों के लिए इस कानून को 1956 में बनाया गया था.. बेटियों के अधिकारों को पुख्ता करते हुए इस उत्तराधिकार कानून में 2005 में हुए संशोधन ने पिता की संपत्ति पर बेटी के अधिकारों को लेकर किसी भी तरह के संशय को समाप्त कर दिया. यानी, विवाह के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार रहता है. इसके मुताबिक पिता की संपत्ति पर बेटी का उतना ही अधिकार है जितना कि बेटे का.

2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बेटी अपने मृत पिता की संपत्ति को विरासत में हासिल कर सकती है, भले ही पिता इस तारीख पर जीवित था या नहीं. यहां, महिलाओं को सहदायिक के रूप में भी स्वीकार किया गया था. वे पिता की संपत्ति में हिस्सा मांग सकती हैं.

2022 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि बेटियों को अपने माता-पिता की स्वयं अर्जित की गई संपत्ति और किसी भी अन्य संपत्ति का उत्तराधिकार प्राप्त करने का अधिकार है, जिसके वे पूर्ण रूप से मालिक हैं। यह कानून उन मामलों में भी लागू होगा जहां बेटी के माता-पिता की मृत्यु बिना वसीयत किए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के संहिताकरण से पहले ही हो गई हो।

पिता की संपत्ति में विवाहित बेटियों का हिस्सा

विवाहित बेटियां अपने पिता की संपत्ति में कितना हिस्सा ले सकती हैं? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, पिता की पैतृक संपत्ति में बेटी को उसके भाइयों के बराबर अधिकार मिलता है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि पिता की मौत के बाद संपत्ति को भाई और बहन के बीच समान रूप से बाँटा जाएगा। चूंकि उत्तराधिकार कानून मृतक के अन्य कानूनी उत्तराधिकारियों को भी संपत्ति के अधिकार प्रदान करते हैं, संपत्ति का बँटवारा लागू विरासत कानूनों के अनुसार प्रत्येक वारिस के हिस्से पर आधारित होगा। विवाहित बेटी का अपने पिता की संपत्ति में बराबर का हिस्सा होने का सीधा सा मतलब यह है कि उसका भाई जितना भी दावा करेगा, उसे भी उतना ही हिस्सा मिलेगा।

पिता की सम्पति पर बेटी कब दावा नहीं कर सकती

यह समझने के लिए हमे जानना होगा कि हिन्दू लॉ में संपत्ति को दो तरह से विभाजित किया गया है. जैसे कि पैतृक संपत्ति और स्वअर्जित संपत्ति। अब यहाँ यह जानना भी जरुरी है की इन दोनों सम्पतियों में क्या अंतर है.

क्या है पैतृक सम्पति –

पैतृक सम्पति मतलब वो सम्पति जो आपके दादा की बनाई हुए प्रॉपर्टी हो. इस समापति पर बेटे या बेटी का पूरा अधिकार होता है. हालाँकि २००५ से पहले इन सम्पति पर सिर्फ बेटों का हक़ होता था लेकिन 2005 के संशोधन के बाद इन पर बेटियों का भी सामान हक़ हो गया है. पिता अपनी मर्जी से बेटियों को हिस्सा देने से मन नहीं कर सकते.

क्या है स्वअर्जित संपत्ति-

स्वअर्जित संपत्ति उसे कहते है जिसमे पिता ने मकान, दुकान, जमीन सभी कुछ अपने पैसे से खरीदा है. ऐसे में पिता को पूरा अधिकार होता है कि वह जिसे चाहे अपनी प्रॉपर्टी में हिस्सा दे और जिसे न चाहे न दें. अगर पिता ने बेटी को खुद की संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर दिया तो बेटी कुछ नहीं कर सकती है. यहाँ पर बेटी का पक्ष कमजोर हो जाता है.

बेटियां क्यूँ छोड़ देती है मायके की सम्पति में अपना हिस्सा

दहेज़ ही हमारा हिस्सा है

आशा का इस बारे में कहना है कि शादी के समय माता पिता के द्वारा हमे जो दहेज़ दिया जाता है वही हमारा हिस्सा है. हमे ज्वेलरी भी हमारे हिस्से की तभी मिल जाती है तो फिर पर डाका क्यू डालना. शादी में वैसे भी माँ बाप अपनी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा हम पर खर्च कर देते है. और फिर इसके बाद भी हमारे हर फंक्शन में, त्यौहार पर, भात देने के समय मायके से हर फर्ज निभाया जाता है तो सम्पति में हिस्सा लेकर क्यूँ सबंध ख़राब करना.

अगर भाभी मायके से हिस्सा लेगी तो ननद भी यही मांग करेगी

कामना जो कि एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है उनका कहना है कि अगर आज हमने अपने पिता कि सम्पति में हिस्से कि मांग की तो कल हमारी ननद भी यही मांग करेगी और यह बात मेरे ससुरालवालों को बिलकुल पसंद नहीं है इसलिए मेरे पति नहीं चाहते की हम ऐसे किसी भी चक्कर में पड़े.

हिस्से के साथ जिम्मेवारी भी लेने होगी

मयंक का इस बारे में कहना है कि मुझे मेरी बहन को सम्पति में हिस्सा देने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन फिर माता पिता की जिम्मेवारी भी उसे बराबर की लेने होगी. वह यह कहकर अपना पिंड नहीं छुड़ा सकती की मुझे मेरे सास ससुर को भी देखना होता है. मेरा सीधा सा फंडा है हक़ चाहिए तो जिम्मेवारी भी लेनी होगी.

लड़किया पड़ी लेखी समझदार नहीं है अपने कानूनन हक़ पता ही नहीं

कई लड़कियों को इस बारे में पता ही नहीं होता की उनके कानूनन अधिकार क्या है और मायका हो या ससुराल इस बात का जिक्र अक्सर परिवारों में होता भी नहीं है. इसलिए लड़कियां अनजाने में ही अपने हक़ से वंचित रह जाती हैं.

अगर बाप की इच्छा नहीं है बेटी को सम्पति देनी की

कई बार बेटियां तो लेना चाहती हाँ लेकिन बाप नहीं देना चाहते और अगर वह स्वअर्जित संपत्ति है तो बेटी उसे चाहते हुए भी नहीं ले पाएगी. ऐसा तब भी होता है जब कारोबार चलाते हुए बेटे को 10 -15 साल का समय हो गया हो तो बाप बेटे का ही साथ देता है. ऐसे में बेटी को सहन करना ही पड़ता है.

लड़कियों के ससुराल वाले उन्हें कमजोर रखना चाहते हैं

ससुराल वाले चाहते हैं कि लड़की के मायके से कुछ आता तो रहे लेकिन वे लड़कियों से सम्पति में हिस्से की मांग भी काम ही करते हैं. वह नहीं चाहते की बीवियां इस बारे में ज्यादा कुछ बोले क्यूंकि कही न कहीं उन्हें पता है की बीवी जो आग अपने मायके में लगाएगी उससे अपना घर भी जलना तय है. भाभी को देख हमारे बेटी और बहनें भी अपना हिस्सा मांगने न लग जाएँ।

अगर संपत्ति नहीं मिले तो क्या करें?

आपको बता दें कि अगर पिता की सम्पति बेटी को नहीं मिलती है तो कोर्ट में इसके खिलाफ मामला दायर कर सकती है। इसके बाद केस की सुनवाई होने पर अगर दावा सही निकलेगा तो बेटी को अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है। इसके अलावा अगर कोई लड़की अपनी मर्जी से हिस्सा छोड़ती है तो भी उसे अदालत में रजिस्ट्राड के पास जाकर साइन करना पड़ता है वरना लड़की अपना हिस्सा छोड़ भी नहीं सकती.Community-verified icon

नक्सलवादियों जैसे हमले कर रहे हैं उत्तर प्रदेश में भेड़िये

उत्तर प्रदेश के बहराइच और लखीमपुर में भेड़ियों का आतंक इस कदर है कि अब सरकार उन को गोली मारने के आदेश दे चुकी है. कभी इंसान और भेड़िया एकदूसरे के दुश्मन नहीं होते थे. इस की एक कहानी सभी ने सुनी होगी जिस को ‘मोगली’ के नाम से जाना जाता है. पहले मोगली की कहानी को समझते हैं. ‘जंगल बुक’ का मोगली भारत के दीना सनीचर से प्रेरित था. इस का एक गीत ‘जंगलजंगल बात चली है पता चला है, चड्ढी पहन के फूल खिला है…’ बेहद लोकप्रिय था. मोगली की कहानी और कार्टून के बाद फिल्म भी बनी थी.

 

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यह कहानी इंसान के बच्चे की थी. कैसे जंगल के खूंखार जानवरों के बीच रहता है. यह कहानी सीधे तौर पर भारत से जुड़ी थी. असली मोगली यानी दीना सनीचर भारत में रहता था. वह एक ऐसा बच्चा था, जो अपने मातापिता से बिछड़ने के बाद भेड़िये के बच्चों के बीच बड़ा होता है. उस की आदतें भी जानवरों की तरह हो गई थीं. यह कार्टून रुडयार्ड किपलिंग की किताब ‘द जंगल बुक’ पर आधारित है.

भेड़ियों के बीच रहा यह बच्चा उत्तर प्रदेश के ही बुलंदशहर के जंगलों में 1889 में मिला था. वह 6 साल का था, नाम रखा गया दीना सनीचर. शिकारियों के समूह को वह एक गुफा में मिला था. सनीचर भेड़ियों के बीच बड़ा हुआ था. वह भेड़िए की तरह बैठता और बर्ताव भी जानवरों की तरह करता था. वह इंसानों के जैसा व्यवहार नहीं करता था.

उस ने बचपन में जंगली जानवरों जैसे देखा था, वैसा ही करने लगा. उस की शारीरिक और मानसिक क्षमता भी जानवरों की तरह थी. उस से ही कार्टूनिस्ट रुडयार्ड किपलिंग को मोगली का कैरेक्टर बनाने में मदद मिली थी. इस के बाद डिज्नी ने किताब को कार्टून फिल्म में तब्दील किया, जिसे पूरी दुनिया में पसंद किया गया. सनीचर को आगरा के अनाथालय में भेजा गया था लेकिन वह जीवनभर शारीरिक रूप से मजबूत नहीं हो पाया. वह कभी बोल नहीं पाया.

मोगली की कहानी बताती है कि कभी भेड़िया इंसान का दुश्मन नहीं होता था. आखिर भेड़िया और इंसान इतने दुष्मन कैसे हो गए ? इस की सब से बड़ी वजह यह है कि इंसान घने जंगलों को खत्म करता जा रहा है. ऐसे में केवल भेड़िया जैसा जानवर ही नहीं घने जंगलों में रहने वाले इंसान भी विरोध करते हैं. भेड़िये भी उसी तरह से हमला कर रहे हैं जैसे छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के इलाकों में रहने वाले लोग अपने जंगलों को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इन को नक्सलवादी कह कर बंदूक के बल पर उन की आवाज को दबाने का काम किया जा रहा है.

भेड़िये भी नक्सलवादियों की तरह अपने जंगलों को बचाने के लिए लड़ रहे हैं. इंसान भेड़ियों के रहने वाले घने जंगलों को खत्म करते जा रहे हैं. जिस के घर को खत्म करोगे या उजाड़ोगे वह बचाव में हमले तो करेगा ही. जैसे बुलडोजर जस्टिस में घर गिराए गए तो चुनाव में जनता का समर्थन नहीं मिला. इस लेख के जरिए समझने की कोशिश करते हैं कि भेड़िया किस तरह से नक्सलवादियों की तरह अपने बचाव में उतर आया है.

नक्सलियों जैसे हमले करते हैं भेड़िये

उत्तर प्रदेश के बहराइच की महसी तहसील के 35 गांवों में बरसात के मौसम भेड़ियों के हमले बढ़े हैं और जुलाई से अगस्त के अंत तक इन हमलों से 7 बच्चों सहित कुल 8 लोगों की मौत हो चुकी है. महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों समेत करीब 36 लोग घायल भी हुए हैं. गांवों में भेड़ियों के आंतक से लोग सो नहीं पा रहे हैं. केवल बहराइच ही नहीं इस से लगे लखीमपुर में भी इन के हमले होते हैं. बहराइच में कर्तर्निया घाट वाइल्ड लाइफ और लखीमपुर के दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगलों में भेड़ियों का रहना होता है.

जनवरी व फरवरी माह में बहराइच में भेड़ियों के दो बच्चे एक ट्रैक्टर से कुचल कर मर गए थे. तब से उग्र हुए भेड़ियों ने हमले शुरू किए. उस हमलावर भेड़ियों को पकड़ कर 40 से 50 किलोमीटर दूर बहराइच के ही चकिया जंगल में छोड़ दिया गया. यह भेड़िये चकिया से वापस घाघरा नदी के किनारे अपनी मांद के पास लौट आए. बदला लेने के लिए हमलों को अंजाम दे रहे हैं. वन विभाग ने जो 4 भेड़िये पकड़े सभी आदमखोर हमलावर थे यह साफतौर पर कहा नहीं जा सकता है. अब तक 8 से अधिक लोग भेड़िये का शिकार हो चुके हैं और 36 से अधिक लोगों पर वह हमला कर चुका है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बहराइच समेत कई जिलों के डीएम, पुलिस कप्तानों और वन अधिकारियों के साथ वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए भेड़ियों और तेंदुए के हमलों से पैदा हुए हालात की समीक्षा की. जिलों के डीएम और एसपी सहित वन विभाग को इस मसले में सर्तक रहने के लिए कहा है. भेड़िये बच्चों को अपने मुंह दबा कर जंगल में ले जाता है.

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती कहती है ‘यूपी के कुछ जिलों में जंगली जानवर बच्चों, बुजुर्गो और महिलाओं पर हमले कर रहे हैं. उसे रोकने के लिए सरकार जरूरी कदम उठाए. मजदूर और गरीब लोग डर की वजह से अपने पशुओं के चारे का प्रबंध और मजदूरी करने नहीं जा पा रहे हैं. उस की उचित व्यवस्था की जाए. सरकार जंगली जानवरों ने निबटने की रणनीति बनाएं.’

बहराइच के महसी तहसील क्षेत्र में भेड़ियों को पकड़ने के लिए थर्मल ड्रोन और थर्मो-सेंसर कैमरे लगाए गए हैं. देवीपाटन के मंडलायुक्त शशिभूषण लाल सुशील ने कहा कि अगर आदमखोर भेड़िये पकड़ में नहीं आते हैं और उन के हमले जारी रहते हैं, तो अंतिम विकल्प के तौर पर उन्हें गोली मारने के आदेश दिए गए हैं. भेड़ियों और इंसानों के बीच यह लड़ाई नई नहीं है. उत्तर प्रदेश में पहले भी भेड़ियों का आतंक रहा है.

जानकार इन से बचाव के तरीके बताते कहते हैं भेड़िये का सामना करते हुए धीरेधीरे पीछे हटें. इस के बाद सावधान रहते हुए आक्रामक तरह से उस का विरोध करे. लाठी, पत्थर, डंडे, मछली पकड़ने की छड़ें या जो कुछ भी आप पा सकते हैं उस का प्रयोग करें. एयर हौर्न या अन्य ध्वनि उत्पन्न करने वाले यंत्रों का प्रयोग करें. सब से बेहतर यही है कि इंसान भेड़ियों के रहने वाले स्थान पर अतिक्रमण न करे नहीं तो वह अपना बुलडोजर चला देंगे, यानी इंसानों पर हमला कर के उन को मार देंगे.

27 साल पहले भी था भेड़िये का प्रकोप

उत्तर प्रदेश में भेड़ियों के हमले की कहानी नई नहीं है. 1996 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के तीन जिलों प्रतापगढ़, सुल्तानपुर और जौनपुर में भेड़ियों ने 30 बच्चों को मारा था. भेड़िया प्रभावित यह पूरा इलाका 1392 वर्ग किलोमीटर का था. यह पूरा सई नदी का कछार था. पूरा इलाका डरा हुआ था. हर तीसरे दिन भेड़िया हमला करता था. हर पांचवें दिन एक बच्चे की मौत हो रही थी. हत्यारा भेड़िया इतना बेफिक्र हो गया था कि वो गांव के बीच से बच्चों को उठा ले जा रहा था.

जांच में यह पता चला था कि यह हमला एक भेड़िया कर रहा था. पूरा समूह इस में शामिल नहीं था. उस समय तीनों जिले देश के सब से गरीब जिलों में आते थे. इन बच्चों को उन की मां पालती थीं. पिता या तो मारे जा चुके थे या तलाक हो चुका था या फिर काम के लिए घर से बाहर होते थे. मां के अकेले होने के कारण उस की बच्चों पर नजर कम रहती थी. गांव के कुछ लोगों ने भेड़िये की मांद में सो रहे उन के 3 बच्चों को मार दिया था. इस के बाद भेड़ियों ने बदला लेने के लिए इंसानों पर हमला कर 50 से अधिक लोगों को अपना शिकार बना लिया था.

इसलिए भेड़िये के लिए उन को शिकार करना आसान होता था. घर कच्चे थे. तमाम घरों में दरवाजे भी नहीं थे. अंधेरा होने के कारण भेड़िए का शिकार करना सरल हो जाता था. लोगों में अंधविश्वास ज्यादा था. उन को लगता था कि कोई इंसान भेड़िये का रूप रख कर यह काम कर रहा है. इस डर से भेड़िया प्रभावित इन गावों में कोई इंसान जाने की हिम्मत नहीं करता था.

शिकारी भेड़िया एक जगह को छोड़ कर दूसरी जगह चला जाता था. फिर अगले कुछ दिनों या महीनों तक वह दूसरी जगह पर 100 से 400 वर्ग किलोमीटर के इलाके में शिकार करता था. हर शिकार के बीच कम से कम 13 से 28 किलोमीटर की दूरी होती थी. यह काम भेड़िये का झुंड नहीं करता था. इस को केवल एक शिकारी भेड़िया ही कर रहा था. वन विभाग के लोगों ने आदमखोर हो चुके भेड़िये को गोली मार दी तब गांव के लोग भेड़ियों के आंतक से बच सके.

दुनिया भर में रही यह दुश्मनी

उत्तर अमेरिका में 150 साल पहले तक भारी तादाद में भेड़िये पाए जाते थे. जब इंसान यहां बसने पहुंचे तो उन्हें महसूस हुआ कि भेड़िये इंसानों के लिए खतरा हैं. इंसानों ने भेड़ियों के खिलाफ अभियान शुरू किया. इस दौरान ये भी सामने आया कि भेड़ियों के अंधाधुंध शिकार से उस इलाके का प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रभावित हुआ. इस से जानवरों की दूसरी प्रजातियों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. भेड़ियों की संख्या खत्म होने के साथ बारहसिंहा जैसे जानवरों की संख्या में इजाफा हुआ जबकि भेड़ियों के रहते यह उन का शिकार हो जाते थे.

साल 1878 में पूरी दुनिया में भेड़ियों के हमलों से सब से ज्यादा नुकसान हुआ था, जब एक साल में 624 लोग भेड़िये का शिकार हुए थे. आज अमेरिका में भेड़िये बचाने का अभियान शुरू किया जा रहा है. भेड़िया एक कुत्ते जैसा दिखने वाला जंगली जानवर है. किसी जमाने में भेड़िये पूरे यूरेशिया, उत्तर अफ्रीका और उत्तर अमेरिका में पाए जाते थे. जैसेजैसे इंसानों की आबादी बढ़ने लगी भेड़ियों के रहने का क्षेत्र कम होता गया.

कुत्तों की नस्ल भी भेड़ियों से ही निकली मानी जाती है. हजारों साल पहले इंसान भेड़ियों को पालतू बना कर अपने साथ रखता था. यहीं से कुत्तों को साथ रखने की शुरूआत हुई. उस दौर में इंसान शिकार मार कर अपना भोजन करता था. ऐसे में पालतू भेड़िए और कुत्ते शिकार करने में इंसान की मदद करते थे.

पूरी दुनिया में अब भी 38 नस्ल के भेड़िये पाए जाते हैं. भेड़िया सब से बेहतरीन शिकारी माना जाता है. इंसान और शेर के अलावा यह किसी के काबू में नहीं आते हैं. भेड़िया मांसाहारी भोजन करता है. स्वभाव से शिकारी होने के कारण अब इस को पाला नहीं जा सकता है. इन की खासियत यह होती है कि यह कभी अकेले शिकार नहीं करता है. यह झुंड बना कर हिरण, गाय जैसे जानवरों का शिकार करते हैं. इन की चाल 55 से 70 किमी प्रति घंटा होती है. यह करीब 5 मीटर लंबी छलांग लगा सकते हैं. यह अपने शिकार को कम से कम 20 मिनट तक तेजी से पीछा कर सकता है. भेड़िये का पैर बड़ा और लचीला होता है.

भेड़िये एक नर और एक मादा के परिवारों में रहते हैं जिस में उन के बच्चे भी पलते हैं. यह भी देखा गया है के कभीकभी भेड़ियों के किसी परिवार किसी अन्य भेड़ियों के अनाथ बच्चों को भी शरण दे कर उन्हें पालने लगते हैं. भेड़िये घास में, पेड़ों के नीचे या झाड़ियों में आराम करते हैं और सोते हैं. जैसे ही मादा बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार होती है झुंड एक मांद में चला जाता है. जिसे अकसर पानी के पास खोदा जाता है. कभीकभी कई पीढ़ियों तक रहता है.

यह अपने छोटे बच्चों को बहुत प्यार करते हैं. इन के बच्चों को उठा ले जाए या उस का शिकार कर दे तो यह पूरे इलाके को ही तबाह कर देते हैं. शिकार पर जाते समय यह अपने कम उम्र वाले भेड़िये को नहीं ले जाते हैं. भेड़ियों के थूथन बड़े होते हैं. इन के कान छोटे और अधिक गोल होते हैं, और पूंछ छोटी और झाड़ीदार होती है. भेड़ियों का रंग अलगअलग होता है. जिस में काले, सफेद और भूरे रंग शामिल हैं. इन की उम्र 13 साल तक होती है. 10 साल से अधिक उम्र तक प्रजनन कर सकते हैं. भेड़िए जंगल में पाए जाते हैं. यह इंसानों पर तभी हमला करते हैं जब वे इन के इलाके में प्रवेश करते हैं. ऐसे में दोष केवल भेड़ियो का नहीं है. इंसानों को भी अपना व्यवहार बदलना होगा.

सामंजस्य

‘‘ऐसा क्या हो गया मीताजी कि आप चाय पीने नहीं गईं?’’ सुरेश ने व्यंग्य भरे लहजे में पूछा तो अपने विचारों में खोई मीता चिहुंक उठी.

‘‘आप भी तो नहीं गए,’’ मीता को और कुछ नहीं सूझ तो उस ने उलटे प्रश्न कर डाला.

‘‘मैं जा रहा हूं. आप को अकेला बैठा देखा तो  पूछ लिया,’’ सुरेश बोला.

बाहर बरसात थम चुकी थी. सबकुछ भीगाभीगा सा था. मीता ने सुबह नाश्ता नहीं किया था इसलिए अब पेट में चूहे दौड़ रहे थे. उसे सुबह की घटना याद आ गई.

‘मुझे आज थोड़ी देर हो जाएगी,’ मीता ने तवे से चपाती उतारते हुए देवेश से कहा.

‘कितनी?’ देवेश ने पूछा.

‘यही कोई एकडेढ़ घंटा.’

‘वैसे ही तुम्हें घर आने में साढ़े 7 बज जाते हैं. इस का मतलब यह हुआ कि आज तुम साढ़े 8-9 बजे तक आओगी?’ देवेश ने घूरते हुए मीता से कहा, ‘देख रहा हूं कि महीनेभर से ऐसा ही चल रहा है कि हर दूसरेतीसरे दिन दफ्तर में काम की वजह से तुम घर देर से आती हो.’

‘एडवरटाइजिंग का औफिस है, वहां मैं ही अकेली नहीं जो देर से घर लौटती हूं.’

‘लेकिन तुम्हारे अलावा वहां सभी पुरुष हैं. वैसे भी अगर काम इतना ज्यादा है तो सुबह एक घंटा पहले चली जाया करो पर रात को देर से आना ठीक नहीं.’

‘मेरे अलावा आयशा भी है उस औफिस में. मुझे कुछ नहीं होने वाला. औफिस की गाड़ी से ही घर वापस आऊंगी. वैसे अगर अभी मेहनत कर के सब के सामने खुद को काबिल साबित नहीं कर पाई तो अगली तरक्की मिलने से रही,’ किचन में सब्जी में छौंक लगाते हुए मीता ऊंची आवाज में बोली.

‘बातें मत बनाओ,’ किचन में आ कर देवेश भी ऊंचे स्वर में बोले, ‘तुम समझती क्यों नहीं, हमारे बेटे को मेरी और तुम्हारी दोनों की जरूरत है. इस अभाव में उस के विकास पर फर्क पड़ेगा, कभी इस बारे में भी सोचा है?’

मीता चुप रही. वह किसी भी कीमत पर झगड़ा नहीं करना चाहती थी. उस ने खाना डब्बों में डालना शुरू कर दिया.

सुंदर व स्मार्ट होने के साथसाथ मीता वाकपटु भी है. किसी भी विषय पर, कहां क्या बोलना है और कहां चुप रहना है, यह वह अच्छी तरह जानती है और अपने इन्हीं गुणों के सहारे वह पिछले 5 सालों में औफिस में 2 बार विशेष तरक्की पा चुकी है.

‘कुछ तो बोलो,’ देवेश एकाएक चिल्लाए.

‘देवेश, मेरी बात शांति से सुनिए,’ मीता बोली, ‘मुझे मालूम है कि पिछले दिनों मैं ने घर को कम समय दिया है. आप को पता है, औफिस में मुझे किन हालात से गुजरना पड़ रहा है?’

देवेश ने मीता की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखा.

‘मुझ से उम्र में छोटी ग्लैमरस आयशा को बौस ने अभी पिछले साल नियुक्त किया और उसे एक तरक्की भी मिल गई. यही रफ्तार रही तो वह मुझे जल्दी ही पीछे छोड़ देगी. मैं भी अब मेहनत, लगन और अनुभवों के माध्यम से खुद को आगे ला रही हूं. अगर मेरे काम का नतीजा अच्छा निकला तो मेरी तरक्की निश्चित है.’

‘कितनी तरक्की चाहिए तुम्हें? क्या अपनी तरक्की की चाह में अपने बच्चे की तरक्की का दायित्व तुम भूल गईं? तुम्हें बेटे के गुमसुम चेहरे पर कुछ नहीं दिखता? उसे अकेलापन खाए जा रहा है. मुझे उसे देख कर डर भी लगता है कि हमारी भागतीदौड़ती जिंदगी में वह खो न जाए?’

देवेश ने मीता से समझने के स्वर में कहा.

‘मैं ने तो औरत का जन्म ले कर ही गलती की.’ मीता कड़वे स्वर में बोल उठी, ‘मेरे नसीब में क्या हमेशा सम?ाता करना ही लिखा है? मेरी कोई आकांक्षा नहीं? मुझे आगे बढ़ने का मौका मिला है तो मैं उसे क्यों खो दूं?’

‘देखो मीता, तुम तरक्की  को नशे की भांति पाना चाहती हो. यह तो अंधी दौड़ है. अभी एक तरक्की, फिर दूसरी तरक्की फिर…’

‘यह क्यों नहीं कहते कि मैं अगर औफिस के कामकाज में उल?ा गई तो तुम्हारी सुविधाओं को कौन देखेगा?’ मीता बुदबुदाई.

उन दोनों पतिपत्नी में जो बहस शुरू हुई, आखिर में दोनों ने अपना गुस्सा नाश्ते पर निकाला और दोनों भूखे ही औफिस के लिए निकल पड़े.

एक तो औफिस में टैंशन, उफ ऊपर से घर में भी टैंशन. मीता मन ही मन सोचने लगी कि कहां तक मैं दोनों को संभालूं? ऊपर से कल की आई यह नई लड़की आयशा. उसे देख कर तो मैं अंदर ही अंदर सहमने लगी हूं. कल तक जो बातें मैं क्लाइंट्स और बौस से केवल बातों और आंखों के हावभाव से मनवा लेती थी, अब आयशा के आने से मुझे इन क्षेत्रों में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है.

कामयाबी के सोपान पर चढ़ती हुई मैं अपनी उम्र को भूल ही गई थी लेकिन आयशा की चंचलता और उभरते यौवन के आगे मुझे अब बारबार अपनी उम्र का एहसास होने लगा है. और तो और, औफिस में कल तक जहां पुरुष सहकर्मी मुझ से बात करने में दिलचस्पी दिखाते थे वहीं आयशा के आने के बाद मेरे लिए औफिस का माहौल ही बदल गया है. देख रही हूं इधर कई दिनों से जानबूझ कर मुझ पर कटाक्ष भी किए जाने लगे हैं.

सुरेश ने जब मुझ से चाय पीने के लिए कहा तब आयशा के साथ औफिस के सभी कर्मचारी कैंटीन चले गए थे. आजकल मेरा जीवन जिस उथलपुथल से गुजर रहा है, उस में किसी से बातचीत करने का मन ही नहीं होता और सुबह की बातों को ले कर तो मैं काफी अशांत थी, इसलिए चाय अवकाश में भी कैंटीन नहीं गई थी.

देखते ही देखते फिर बादल घुमड़ आए थे और रिमझिम फुहार बरसने लगी. ठंडी हवा के झोके खिड़की से मीता तक पहुंच रहे थे. हरीभरी प्रकृति और रंगबिरंगे हंसते हुए फूलों को देख कर एकाएक उस का मन कुलबुलाने लगा कि काश, मेरा जीवन भी सदा ही इतना रंगों भरा व खुशनुमा होता.

वह खिड़की से बरसात की बूंदों को देख कर विचारों में खो गई. एक वक्त था जब देवेश और मैं घंटों बारिश में खड़े एकदूसरे में खोए हुए भीगते रहते थे. हम दोनों को बारिश में भीगना बेहद पसंद था. शादी के 2 साल बाद हम दोनों के प्यार का प्रतीक हमारे बेटे का जन्म हुआ. इसलिए हम ने उस का नाम प्रतीक ही रखा. प्रतीक के आने पर मेरी जिम्मेदारियां भी बढ़ीं लेकिन मैं नौकरी और घर के बीच अच्छा तालमेल बना कर चल रही थी. बौस मेरे काम से खुश थे कि अचानक दफ्तर में आयशा की नियुक्ति हुई.

उस के आने पर मैं कहीं न कहीं उस से ईर्ष्या करने लगी क्योंकि वह मुझ से उम्र में छोटी, चुलबुली, सुंदर और बातूनी है. बौस के मुंह से उस की प्रशंसा मैं सहन नहीं कर पाती. औफिस में केवल वही एक महिला कर्मचारी होने के कारण मेरी उस से प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगी.

‘आयशा नई है पर जोश और नए विचारों से भरी हुई,’ 2 दिन पहले रखी मीटिंग में आयशा के नए विचारों को बढ़ावा देते हुए बौस ने कहा था, ‘आयशा की नई सोच की धारणा हमारी कंपनी को निश्चित ही नई जिंदगी देगी.’

बौस के मुख से आयशा की प्रशंसा सुन कर मैं जलभुन गई. उधर देवेश इस बात को क्यों नहीं समझते कि मेरे कंपीटिशन में एक ऐसी लड़की खड़ी है जो मुझ से कहीं बेहतर कर सकती है. यही सोच कर मैं हताश हो गई हूं और अपनी इस हताशा से उबरने के लिए अधिक मेहनत कर रही हूं तो हर्ज क्या है. लेकिन देवेश इन बातों को सम?ाना नहीं चाहते हैं. उन्हें केवल वक्त की कमी का एहसास है, मेरे अरमानों, मेरे कैरियर का नहीं.

‘‘मैं आप के व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती, मीताजी, पर एक सहयोगी होने के नाते मुझे आप से पूरी सहानुभूति है. लगता है, आप एक कठिन दौर से गुजर रही हैं,’’ अचानक आयशा की आवाज मीता के कानों से टकराई तो वह चौंक गई.

‘‘अरे, तुम कब आईं. कैंटीन से चाय पी आईं?’’ मैं ने खुद को संभालते  हुए कहा.

‘‘हां, सोचा थोड़ा जल्दी आ कर आप की परेशानी बांट लूं,’’ कहते हुए उस ने मेज पर रखा पेपरवेट घुमाना शुरू कर दिया.

‘‘तुम से किस ने कहा मैं परेशान हूं?’’ थोड़े रूखे स्वर में मीता बोली.

‘‘लीजिए, क्या मैं इतना भी नहीं जानती कि आजकल आप की बातें औफिस में सभी की जबान पर हैं,’’ आयशा बोली.

‘‘कैसी बातें, किस की बातें,’’ सकपका कर मीता के मुंह से निकला.

‘‘हम दोनों की बातें,’’ आयशा ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘जानती हूं,’’ मीता ने हथियार डालते हुए कहा, ‘‘दोष मेरा ही है. मैं ने ही अपना मानसिक तनाव कम करने के लिए विकास को सबकुछ बताया था. सोचा, एक अच्छा मित्र होने के नाते शायद वह मेरी सहायता करेगा पर उस ने तो उलटे चटखारे ले कर तुम्हारे बारे में मेरे क्या विचार हैं, सब को बता दिया.’’

‘‘आप ने अपनी व्यक्तिगत बात विकास को बता कर अच्छा किया या बुरा मैं इस विषय में क्या कह सकती हूं. बल्कि मैं यही कहूंगी कि दोस्त वही होता है जो अपने दोस्त के राज को राज रख सके,’’ आयशा ने अपना मत प्रकट करते हुए आगे कहा, ‘‘आज के युग में महिलाओं की सब से बड़ी त्रासदी तो यही है कि उन्हें अपनेआप को पुरुषों में नहीं, स्त्रियों में साबित करना पड़ रहा है. अपनी स्थितियों से बाहर न निकल पाने के कारण, दस गुना ज्यादा मेहनत करने के बावजूद उसे बारबार यह बताना पड़ता है कि मैं भी कुछ हूं, मेरा भी अस्तित्व है.’’

‘‘धन्यवाद, आयशा,’’ मीता बोली, ‘‘लेकिन फिर भी दोष तो मेरा ही था जो मैं ने अपने दुख को दूसरों तक पहुंचाने की भूल की.’’

‘‘अच्छा,’’ आयशा ने मीता की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘मीताजी, आप चाहती हैं न, आप की योग्यता सराही जाए या कहीं ऐसा न हो कि मैं आप की जगह ले लूं और मेरा वर्चस्व स्थापित होने से आप कम महत्त्वपूर्ण न हो जाएं.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता…’’ मीता घबरा गई.

‘‘देखिए, एक औरत की दूसरी औरत के प्रति ईर्ष्या इन्हीं बातों को ले कर उभरती है,’’ आयशा मुसकराई, ‘‘वास्तव में आप अपनी स्थिति को ले कर असुरक्षित हो गई हैं. मुझे ताज्जुब होता है कि आप में ऐसी भावना कैसे उभरी जबकि आप मेहनती हैं, अनुभवी हैं?’’

‘‘लेकिन, जवान नहीं, ओजस्वी नहीं.’’

मीता के मुंह से अस्फुट स्वर सुन कर आयशा ने कहा, ‘‘हां, लेकिन आप के पास अनुभवों का खजाना तो है. आप अभी भी ग्राहकों को पहले की तरह ही कुशलता से हैंडल करती हैं. मुझे नहीं लगता कि आप से सक्षम हमारे औफिस में कोई और होगा.’’

आयशा की बातें सुन कर मीता को लगा कि उस के मन में धीरेधीरे शक्ति का स्पंदन हो रहा है. आयशा कह रही थी, ‘‘मीताजी, नए और पुराने के बीच टकराव तो होना अनिवार्य है. यह आप पर निर्भर है कि जो कुछ आप को मिल रहा है उस का उपयोग आप कैसे करेंगी. जब तक आप अपने अंदर आत्मविश्वास का अनुभव नहीं करेंगी, आप को बारबार स्वयं को सिद्ध करते रहना होगा.’’‘मुझ से छोटी लड़की कितनी सुलझ, कितनी परिपक्व है,’ उसे अपने डैस्क की ओर जाता देख मीता ने सोचा.

चाय अवकाश समाप्त होने पर सभी कर्मचारी धीरेधीरे अपनीअपनी मेजों की ओर लौटने लगे थे. मीता प्रसाधन कक्ष में जा कर बहुत देर तक मुंह धोती रही, फिर अपनी सीट पर आ कर बैठी तो मन में अजीब सी शांति आ गई थी. लगा, बाहर जा कर बारिश में खूब देर भीगती रहे. लिहाजा, मीता ने अवकाश ले कर घर जाने का निश्चय किया.

घर पहुंच कर मीता को एक सुखद आश्चर्य हुआ जब देवेश को टेरेस पर खड़ा बारिश में भीगा पाया. अपना पर्स मेज पर पटक कर वह भी टेरेस पर चली आई देवेश के साथ भीगने के लिए. छोटेबड़े फूलपौधे, लताएं बारिश में नहा लेने के बाद उमंग में भरे हंसते हुए प्रतीत हो रहे थे. मीता को घर जल्दी लौटा देख कर देवेश को आश्चर्य हुआ. गरमी ?ोलने के बाद मानसून का पहला उपहार उसे भी सुखद अनुभूति देने में सफल हो रहा था.

देवेश ने मीता का बदला रूप देखा तो उस के भी मन का मैल बारिश के साथ बह गया. उस ने मीता का हाथ अपने हाथों में कस कर पकड़ लिया. दोनों अभी और भी बारिश में भीगते कि प्रतीक की आवाज ने उन का ध्यान बंटाया जो कह रहा था, ‘‘बारिश में ज्यादा भीगोगे तो जुकाम हो जाएगा.’’

देवेश और मीता हंसते हुए अंदर आ गए. प्रतीक उन्हें हैरानी से देख रहा था, शायद अरसे बाद उस ने अपने मम्मीपापा को एकसाथ हंसते हुए देखा था. रात को मीता ने देवेश का मनपसंद भोजन बनाया.

‘‘यह करिश्मा कैसा? भई, हम तो तरस गए थे तुम्हारे हाथों का स्वादिष्ठ खाना खाने के लिए,’’ देवेश ने शिकवा किया.

‘‘बस, मैं भी अब तनावमुक्त होना सीख गई हूं. सोचती हूं नौकरी छोड़ दूं.’’

‘‘न, न, ऐसा मत करना वरना यह गुलाम अभी तो 8 घंटे की नौकरी करता है, फिर पूरे 24 घंटे की नौकरी करनी पड़ेगी,’’ देवेश ने शैतानी से अपनी आंखें नचाईं.

‘‘क्यों, आप ही तो चाहते हैं मैं घरपरिवार पर ध्यान दूं.’’

‘‘तुम्हारे साथियों ने बहुत उन्नति कर ली, मीता,’’ देवेश का स्वर एकाएक संजीदा हो गया, ‘‘तुम भी ऊपर उठना चाहती हो, लेकिन मूल तथ्य को नजरअंदाज कर रही हो.’’

मीता ने हैरानी से देवेश को देखा जो अपनी ही धुन में कहे जा रहा था, ‘‘देखो, मीता, मुझे अपनी कोई चिंता नहीं, मेरी तरफ से तुम दिनरात काम करो, मैं तुम्हें कभी नहीं रोकूंगा. हां, मैं तो तुम्हें केवल एक सलाह दे रहा हूं कि तुम अपनी जिंदगी का उद्देश्य तो तय कर लो.’’

‘‘जिंदगी का उद्देश्य?’’ मीता ने चौंक कर पूछा.

‘‘तुम जो चाहती हो वह तुम्हारा हक है, तुम्हें मिलना भी चाहिए. लेकिन इस के विपरीत तुम्हारे कुछ दायित्व भी हैं, मेरे प्रति और प्रतीक के भविष्य के प्रति. मेरी तरफ से तुम बिलकुल आजाद हो. मैं तुम्हें सिर्फ यह सम?ाने की कोशिश कर रहा हूं कि यह देखो कि आगे बढ़ने की कीमत क्या है?’’

‘‘अच्छा, तो अब आप को खाना नहीं खाना. ये दहीबड़े, छोले,’’ मीता ने हंस कर कहा तो जवाब में देवेश  भी मंदमंद मुसकराता हुआ खाना
खाने लगा.

सुबहसुबह फोन की घंटी बजने पर मीता की नींद खुल गई. फोन के दूसरी ओर बौस थे, ‘‘मीता, सुबहसुबह तुम्हें खुशखबरी सुनाने के लिए जगाया है. तुम्हारे काम की बहुत तारीफ हुई है. कुछ ही समय में तुम ने कंपनी के काम को काफी बढ़ाया. तुम्हें इसी शहर की दूसरी ब्रांच का मैनेजर बना कर भेजा जा रहा है. यह कल की मैनेजिंग डायरैक्टर की मीटिंग में तय हुआ है. तुम ने अपने घर की जिम्मेदारियों के साथसाथ कंपनी के लिए इतना कुछ कर दिखाया वह काबिलेतारीफ है. बधाई हो.’’

मीता ने देवेश को जगाया और अपनी पदोन्नति की बात बताई जिसे सुन कर वह भी बहुत खुश हुआ.

‘‘अच्छा, मैं औफिस चल कर अपनी पदोन्नति की औपचारिकताएं पूरी कर लूं,’’ मीता ने देवेश से कहा.

औफिस में सब से पहले मीता का आयशा से ही सामना हुआ. उस के चेहरे पर अनोखी तृप्ति का भाव था. वह मुसकरा रही थी. इतने में बौस भी चैंबर से निकल कर बाहर आए और उसे देख कर बोले, ‘‘मीता, आयशा भी तुम्हारी जैसी मेहनती और लगन वाली लड़की है, देखना यह भी तुम्हारे जैसा ही मुकाम कंपनी को दिलाएगी.’’

बौस की बात सुन कर मीता ने हंस कर कहा, ‘‘सर, आज डिनर पर आप हमारे यहां सपरिवार आमंत्रित हैं. और हां, आयशा, तुम भी आज डिनर पर आना मत भूलना.’’

‘‘जैसी आप की आज्ञा, मीताजी. वैसे भी मैं इस तरह का मौका हाथ से जाने नहीं देती’’, आयशा ने कहा और आगे का वार्त्तालाप उस के ठहाके की गूंज में दब गया.

और मौसम बदल गया

‘‘सुनो, आप ने मांजी से बात की, आज भी पापा का फोन आया था, बहुत परेशान हो रहे थे.’’

‘‘मैं तो बिलकुल ही भूल गया. अच्छा हुआ तुम ने याद दिला दिया.’’

‘‘कितना मुश्किल होता होगा, पापा के लिए 2-2 बेटे हैं पर साथ में कोई रखना नहीं चाहता. मां के जाने के बाद पापा वैसे भी अकेले हो गए हैं, अब तो उन्हें साथ की जरूरत है, लेकिन यहां तो कोई बात समझने को तैयार ही नहीं है, पापा से कुछ कहो तो वे गांव जाने के लिए कहते रहते हैं. अब वहां कौन है, जो उन का ध्यान रखेगा, पिछली बार जब गए थे तो शुगर कितनी बढ़ गई थी, हौस्पिटल में एडमिट करवाना पड़ा था. पता नहीं, उम्र बढ़ने के बाद सब बच्चे क्यों बन जाते हैं, सोनाली अपनेआप ही परिस्थिति का विश्लेषण कर रही थी.’’

‘‘क्या हुआ, क्या सोच रही हो, कह तो रहा हूं, कल पक्का बात कर लूंगा.’’

‘‘कैसे होगा, दोनों ही जिद्दी हैं, आसानी से बात नहीं मानेंगे, पापा से बात करो तो वे संस्कृति और संस्कारों की दुहाई देने लगते है. हमारे यहां तो बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते, बेटियां तो पराया धन होती हैं, उन के घर बारबार आना अच्छा नहीं लगता और मांजी. वे तो मेरे मायके का जिक्र आते ही चिढ़ जाती हैं.’’

‘‘न मैं भैया के घर रह सकती हूं और न ही पापा हमारे घर आ कर रह सकते हैं. अजीब मुश्किल है,’’ सोनाली अपनी रौ में बोलती जा रही थी.

सोनाली, ‘‘उन की बात अपनी जगह सही है, अब यह पुराने रीतिरिवाज आसानी से पीछा कहां छोड़ते हैं.’’

‘‘मैं आप से अपनी परेशानी का हल मांग रही हूं और आप हैं कि मु?ो और परेशान किए जा रहे हो,’’ कहतेकहते सोनाली रोंआसी हो गई.

‘‘यह तुम्हारा बढि़या है, कुछ न भी कहो तो भी रोना शुरू कर के मु?ो मुजरिम बना देती हो. अब तुम ही बता दो कि मुझे क्या करना है.’’

‘‘एक बार आप बात कर के देखो, आप कहोगे तो पापा मना नहीं कर पाएंगे,’’ कहते हुए सोनाली के चेहरे पर मुसकान फैल गई.

‘‘यह तो है, मैं कहूंगा तो शायद मना नहीं कर पाएंगे पर मैं एक बात और सोच रहा हूं. मां को कैसे मनाया जाए? मां भी तो पुराने विचारों वाली हैं और ऊपर से उन का स्वभाव भी थोड़ा गरम है, कहीं उन्होंने कुछ कह दिया तो. मुझे तो डर है कि तुम्हारे पापा की स्थिति ‘आसमान से गिरे खजूर में अटके’ जैसी न हो जाए.’’

‘‘जानती हूं मैं, पापा की स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं होगा पर यहां मैं तो रहूंगी न. मैं उन का ध्यान रखूंगी तो सब सही होगा. बस, आप एक बार मांजी से बात कर के देखो, मेरे कहने से तो बात बिगड़ जाएगी.’’

अगले दिन शाम को घर लौटते हुए सुधीर गुलाबजामुन और समोसे ले कर आया. दोनों ही चीजें मां को बहुत पसंद हैं. पापा को जब भी अपना मनमाना काम करवाना होता तो वह यही फार्मूला अपनाते थे.

‘‘सोनाली, जल्दी से अदरक वाली कड़क चाय बना कर मां के कमरे में ले कर आना. गरमगरम समोसे लाया हूं.’’

‘‘मांमां, कहां हो तुम?’’

‘‘मैं कहां जाऊंगी, इन चारों कोनों को छोड़ कर, अब तो घर के चारों कोने ही मेरे लिए चारधाम बन गए हैं.’’

‘‘क्या बात है, आज तो तुम्हारा गुस्सा समोसे से भी ज्यादा गरम हो रहा है.’’

‘‘कोरोना के कारण पहले ही घर में बंद पड़ी थी. बड़ी मुश्किल से बाहर जाने का एक मौका आया वह भी तेरी पत्नी की वजह से न हो पाया.

‘‘कहां जा रही थी. तुम्हें मना किया है. अभी संकट पूरी तरह से नहीं टला है. रोज 4-5 केस आ ही जाते हैं.’’

‘‘कोई बहुत दूर थोड़े जा रही थी. सामने मिश्रा भाभी के पोते का मुंडन था. बस, आसपास के लोगों को ही बुलाया था. उसी दिन से सोच रखा था कि हरी वाली कौटन की साड़ी पहनूंगी, जो तू जयपुर से लाया था. अलमारी खोल कर देखा तो कोने में जैसेतैसे पड़ी थी. तेरी बहू से प्रैस करने के लिए कहा पर इसे मेरी बात कहां याद रहती है. मेरे हाथ में दर्द नहीं होता तो मैं खुद ही कर लेती.’’

‘‘भूल गई होगी, तुम कल मुझे दे देना. औफिस जाते समय प्रैस को देता जाऊंगा.’’

‘‘पता नहीं सारा दिन क्या करती रहती है. एक तू ही है, जो मेरा खयाल रखता है, वरना मैं तो कब का हरिद्वार निकल गई होती.’’

‘‘समोसे लाया है तो गुलाबजामुन भी जरूर लाया होगा.’’

‘‘कैसे भूल सकता हूं, रात को खाने के बाद गुलाबजामुन भी खाएंगे.’’

‘‘कुछ तो गड़बड़ है. जो तू मुझे इतना मक्खन लगा रहा है. बता क्या बात है.’’

‘‘कुछ भी तो नहीं, तुम्हें तो हर वक्त दाल में काला ही नजर आता है.

‘‘अच्छी तरह से जानती हूं तुझे, यह सब ट्रिक तू ने अपने पापा से ही सीखी है. कोई न कोई ऐसी बात होगी, जिस के लिए मैं मंजूरी नहीं दूंगी.’’

‘‘मां, आज भी तुम मेरे मन की बात जान लेती हो,’’ सुधीर भावुक हो गया.

‘‘मां हूं न. मुंह की थोड़ी कड़वी जरूर हूं पर दिल चाशनी से भी ज्यादा मीठा है.’’

‘‘जानता हूं,’’ सुधीर ने मां का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘सोनाली के पापा के बारे में बात करनी है. उन को यहां बुलाने की सोच रहे हैं. आप से राय लेनी थी.’’

‘‘इस में पूछने वाली क्या बात है, मैं क्यों मना करूंगी?’’ बात को बीच में काटते हुए मां बोली.

‘‘नहीं, वह बात ऐसी है कि सोनाली की भाभी को उन का घर में रहना पसंद नहीं है. बातबात में घर में झगड़े होते रहते हैं. इसीलिए सोच रहे थे कि.’’

‘‘तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया जो ऐसी बेसिरपैर की बातें कर रहा है. 2-3 दिन की बात अलग थी. यहां रहने लगेंगे तो लोग क्या कहेंगे. जितने मुंह, उतनी बातें. किसकिस को समझते फिरेंगे.’’

‘‘हम लोगों की चिंता क्यों करें?

2-3 दिन बात बना कर सब चुप हो जाएंगे. कोरोना में मै ने सब को देख लिया कि कौन किस का साथ देता है.’’

‘‘मेरी बात तो तुम्हें हमेशा ही बुरी लगती है. कुछ कहने का फायदा तो है नहीं, तुम ने जय प्रकाशजी (सोनाली के पापा) से पूछ लिया?’’

‘‘अभी तो कुछ दिन रहने के लिए बुलाएंगे, फिर धीरेधीरे.’’

‘‘मतलब कि सारी खिचड़ी पक चुकी है, बस मेरे ही नाम का बघार लगाना बाकी है. जब तुम दोनों अपना मन बना चुके हो तो मुझ से पूछने की क्या जरूरत है. घर तुम्हारा. जिसे चाहे रखो, मैं कौन होती हूं मना करने वाली.’’

‘‘पर एक बात अच्छे से समझ लो, मैं अपना कमरा नहीं छोड़ूंगी जिसे जहां रहना है रहे. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

रात को डाइनिंग टेबल पर मौन ही पसरा रहा. किसी को गुलाबजामुन भी याद नहीं आए.

‘‘क्या हुआ. मांजी मान गईं?’’ सुधीर के कमरे में आते ही सोनाली ने पूछा.

दरवाजे के पीछे खड़ी सब सुन तो रही थी, अब मैं अलग से क्या बताऊं? मैं ने पहले ही कहा था, मां नहीं मानेंगी.’’

सोनाली ने बात को वहीं खत्म करते हुए कहा, ‘‘इस का भी समाधान मैं ने सोच लिया है, उन्हें अपना कमरा छोड़ने की जरूरत नहीं है. मैं ने विहान से बात कर ली, वह ड्राइंगरूम में दीवान पर सो जाएगा. आप पापा से बात कर लो, ‘‘वह ट्रेन का टिकट करवा लेंगे. परसों रविवार है आप भी घर पर होंगे. हम उन्हें स्टेशन से ले आएंगे.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम कहो, हम तो तुम्हारे गुलाम हैं, जैसा आदेश दोगी, मानना तो वही पड़ेगा पर पापा के आने के बाद हमें भूल मत जाना,’’ कह कर सुधीर ने सोनाली को अपनी बांहों में भर लिया.

कुछ दिनों के लिए पापा घर आने के लिए राजी हो गए पर मां के तेवर बदले हुए थे, उन्होंने एक बार भी पापा से ढंग से बात नहीं की. ‘‘शायद लता बहनजी को मेरा यहां आना अच्छा नहीं लगा. पहले तो उन्होंने कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया.’’ पापा ने सोनाली से कहा भी. सोनाली बहुत कोशिश करती कि घर का माहौल सामान्य रहे पर कभी बिजली कड़कने लगती तो कभी ओलों के साथ तेज बौछारें. इतनी ठंडक होने के बावजूद भी घर का तापमान हमेशा गरम रहता. हर कदम फूंकफूंक कर रखना पड़ता. पता नहीं कब तूफान आ जाए.

‘‘बहू, यह गीजर खराब हो गया क्या? गरम पानी नहीं आ रहा…’’

‘‘आज शायद पापा पहले नहाने चले गए इसीलिए पानी खत्म हो गया होगा. आप मेरे बाथरूम में नहा लीजिए.’’

‘‘कोई नहीं, आज थोड़ी देर में नहा लूंगी. इतने टाइम भूखी ही रहूंगी क्योंकि बिना नहाए मैं खाती नहीं. अब तो यह सब चलता ही रहेगा.’’

‘‘सोनाली, कहां हो तुम. मेरा लंच तैयार हुआ कि नहीं?’’

‘‘ला रही हूं, डाइनिंग टेबल पर रखा है. आज तो आप ने बचा लिया, वरना मांजी का गुस्सा. जाने कितनी देर और सुनना पड़ता.’’

‘‘पता है. इसीलिए तो तुम्हें आवाज दे कर बुला लिया, वरना थोड़ी देर में तुम्हारी गंगाजमुना दोनों धाराएं एकसाथ बहनी शुरू हो जातीं और हमारी रात काली.’’

‘‘बहुत बुरे हो आप, हर वक्त एक ही ओर आप का दिमाग घूमता रहता है.’’

‘‘फिर रात की बात पक्की,’’ सलोनी के गालों पर हलकी सी चिकोटी काटते हुए सुधीर ने कहा. आज कहानी यहीं खत्म नहीं हुई थी. शायद आज सोनाली का दिन ही खराब था.

दोपहर को खाने के समय.

‘‘बहू, आज खाने में चनेलौकी की दाल क्यों बनाई है? भूल गईं क्या. मुझे यह दाल बिलकुल पसंद नहीं. क्या अब मेरी यह स्थिति हो गई है कि मुझे घर में अपनी पसंद का खाना भी नसीब नहीं होगा.’’

‘‘नहीं मांजी, ऐसा नहीं है. मैं ने प्याज की भिंडी बनाई थी. आज यह दीपक भैया का खाना भी ले गए हैं, इसलिए सब्जी खत्म हो गई.’’

‘‘मतलब. खत्म हो गई. क्या दूसरी सब्जी नहीं बन सकती थी या बाजार में सब्जी वालों की हड़ताल है…’’

‘‘उबले आलू रखे हैं, अभी भून कर लाती हूं,’’ सोनाली ने उन्हें मनाने की पुरजोर कोशिश की.

‘‘रहने दे, मुझे दिखाने के लिए बातें न बना. अब मेरा खाना खाने का मन नहीं है. उबले आलू की 2-4 पकौडियां तल कर ले आ.’’

‘‘तली हुई चीजें खाने से आप की तबीयत खराब हो जाएगी,’’ सोनाली कहना चाहती थी पर कह नहीं सकी.

वही हुआ, जिस का डर था. शाम होतेहोते मांजी की तबीयत खराब हो गई. ‘‘आज तो उलटी रुकने का नाम ही नहीं ले रही, क्या करूं. अब तक तो सुधीर बेंगलुरु के लिए निकल गए होंगे. इन्हें भी आज ही बाहर जाना था. पिछली बार तो अस्पताल ले जाना पड़ा था,’’ सोनाली घबराहट में बड़बड़ाने लगी.

‘‘पहले तो तू शांत हो, सब ठीक हो जाएगा. अपनी सास को ओआरएस का घोल लगातार पिलाती रह. इस से शरीर में नमक और चीनी की कमी नहीं रहेगी और जान भी बनी रहेगी, और हां. मुझे पिछली बार की दवाई का पर्चा दे दे. मैं विहान के साथ जा कर दवाई ले आता हूं.’’
रात होतेहोते लताजी की तबीयत में काफी सुधार आ चुका था.

‘‘अब आप कैसा महसूस कर रही हैं?’’

‘‘पहले से ठीक हूं.’’

‘‘कुछ खाने का मन है, खिचड़ी बनवा दें,’’ लताजी ने सिर हिला कर हामी भरी.

लताजी ने सोनाली और उस के पापा की बातें सुन ली थी, इसलिए शांतिपूर्वक हां कह दिया.

‘‘मुझे भी अकसर एसिडिटी हो जाती है. डाक्टर ने तलाभुना खाने से बिलकुल मना कर रखा है पर जब मन करता है तो कुछ ध्यान नहीं रहता. आखिर जिंदगी सिर्फ लौकीतोरी खा कर तो नहीं गुजारी जा सकती,’’ लताजी के चेहरे पर फीकी मुसकान आ गई.

‘‘विहान बेटा, ताश ले आ. तेरी दादी का मन भी लगा रहेगा. अकेले लेटेलेटे तो मन और भी घबराता है.’’

‘‘आप को ताश खेलना पसंद है?’’

‘‘जी, पहले तो बहुत पसंद था. सोनाली की मां और मैं रोज ही खेला करते थे पर जब से वह साथ छोड़ कर गई है, तब से केवल समय गुजारने का साधन मात्र बन गया है.

विहान जिद कर रहा था कि मुझे भी ताश खेलना सिखाओ इसीलिए. अगर आप को पसंद न हो तो हम नहीं खेलते.’’

‘‘नानू, आप को पता नहीं. दादी तो ताश में चैंपियन है. आज तक उन्हें कोई नहीं हरा पाया. क्या जबरदस्त रमी खेलती हैं, मैं इसीलिए तो आप से ट्रिक सीख रहा हूं. मुझे एक दिन दादी को जरूर हराना है. है न दादी. जल्दी से ठीक हो जाओ फिर मैं तुम्हें हराऊंगा.’’

‘‘मुझे क्या हुआ. मैं तो ठीक हूं, तू पत्ते बांट.’’

‘‘आप की तबीयत.’’ कहतेकहते जयप्रकाशजी चुप हो गए, शायद खेलने से मन बदल जाए.

‘‘पापा, सुधीर ने कल डाक्टर का अपौइंटमैंट ले लिया है. मुझे तो विहान की पेरैंट्स मीटिंग में जाना है. क्या आप मांजी को दिखा लाएंगे?’’

‘‘हां. हां, क्यों नहीं. मैं चला जाऊंगा.’’

‘‘बहू, सुधीर कब तक आएगा?’’

‘‘वे तो आज औफिस से ही बेंगलुरु चले गए हैं, 2 दिन बाद आएंगे.’’

‘‘कोई बात नहीं, जब वह आ जाएगा, तब दिखा लेंगे,’’ शायद लताजी को सोनाली के पापा के साथ जाने में संकोच हो रहा था.

‘‘कैसी बातें कर रही हैं आप, तबीयत आप की खराब है और आप डाक्टर को दिखाने कुछ दिन बाद जाएंगी. शायद आप को मेरे साथ जाने में संकोच हो रहा है.’’

‘‘आप तो जानते हैं, जैसे ही बाहर निकलेंगे गलीमहल्ले वाले सब की नजर पड़ेगी. पता नहीं क्याक्या बातें बनाएंगे. 2-3 दिन की ही तो बात है, जैसे ही सुधीर वापस आएगा, मैं डाक्टर को दिखा आऊंगी. अब तो मैं सही भी हो गई हूं,’’ लताजी ने बात को संभालने की पूरी कोशिश की.

‘‘आप मेरा मतलब नहीं समझे, आप को इन्फैक्शन है. कभी भी बढ़ सकता है. अब तो संभाल में आ गया, नहीं तो बहुत परेशानी हो सकती थी. आप को मेरे साथ जाने में परेशानी है तो इस का भी हल है.

‘‘आप सुधीरजी की कार में चले जाइएगा. ड्राइवर आप को डाक्टर के यहां छोड़ देगा. मैं थोड़ी देर में औटो से आ जाऊंगा,’’ जयप्रकाशजी ने जब अधिकारपूर्वक कहा तो लताजी को उन की बात माननी ही पड़ी.

सुबह, जैसा निश्चित हुआ था, उसी के अनुसार लताजी ड्राइवर के साथ चली गई और थोड़ी देर बाद जयप्रकाशजी भी औटो के साथ वहां पहुंच गए.

‘‘आप आ गए. बहुत देर हो गई, मुझे तो घबराहट होने लगी थी.’’

‘‘पता नहीं, दोपहर का समय है, फिर भी ट्रैफिक बहुत मिला. अब तो सड़कों पर आदमी से ज्यादा वाहन हो गए हैं. क्या आप का नंबर आ गया?’’

‘‘नहीं, अभी 2 लोगों के बाद है.’’

‘‘आप कुछ लेंगी, पानी या चाय. मैं भी जल्दी में घर से लाना भूल गया,’’ लताजी मन ही मन खुश हो रही थी. अपनी फिक्र होते देख उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था. डाक्टर साहब से भी सारी बातें जयप्रकाशजी ने ही कीं.

आप ने सही समय पर दवाई और ओआरएस का घोल दे दिया, जिस से पेट में इन्फैक्शन नहीं फैला. अब मैं 3 दिन की दवाई लिख रहा हूं और कुछ टैस्ट भी आप करवा लीजिए. और हां. मांजी, आप भी थोड़ा घूमना शुरू कर दीजिए, इस से डाइजेशन दुरुस्त रहता है.’’

क्लीनिक से बाहर निकल कर जयप्रकाशजी औटो ढूंढ़ने लगे.

‘‘आप भी कार में बैठ जाइए. बाहर कितनी चिलचिलाती धूप हो रही है. पता नहीं आप को औटो कब मिलेगा?’’

‘‘पर लोग.’’

‘‘आप उन की चिंता न करें. मैं सब देख लूंगी,’’ अचानक से लताजी का हृदय परिवर्तन देख कर जयप्रकाशजी हैरान हो गए.

फिर क्या था, सारे रास्ते दोनों में बातचीत होती रही. कहीं से भी आभास नहीं हो रहा था कि अभी साथ दिखने मात्र से ही उन को परेशानी हो रही थी.

‘‘अरे, मैं आप को बताना ही भूल गया. आप सुबह 8 बजे तक कुछ नहीं खाएंगीं. पैथोलौजी लैब से आप का ब्लड सैंपल लेने आएगा. जब मैं आप की दवाई लेने गया था, तभी उसे बुक कर दिया था.’’

‘भाई साहब कितने सरल और सहज हैं. सब काम चुपचाप निबटा दिया. मैं ने कितना गलत सम?ा,’ लताजी मन ही मन विचार करने लगी.

‘‘कहां खो गईं आप, घर आ गया है.’’

‘‘भाई साहब, आप का बहुतबहुत धन्यवाद. कल से आप मेरी इतनी अधिक देखभाल कर रहे हैं और मैं अब तक आप से परायों जैसा व्यवहार कर रही थी. मैं अपने व्यवहार पर बहुत शर्मिंदा हूं.’’

‘‘ऐसा न कहिए बहनजी, घरपरिवार में तो यह सब चलता ही रहता है.’’

धीरेधीरे घर का मौसम बदलने लगा, पहले जहां लू के थपेड़ों ने आपसी रिश्तों को झलसा दिया था, वहीं अब रोज पड़ने वाली बूंदों ने मौसम को खुशनुमा बना दिया. पापा भी धीरेधीरे घर का हिस्सा बन गए थे. मैं ने विहान को पढ़ाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी. सब को एकसाथ देख कर कितना सुकून मिलता है. किसी प्रकार की कोई टैंशन नहीं. पता नहीं हमारे समाज में इतनी पाबंदियां क्यों हैं? लड़की का मायका और ससुराल एक जगह मिल कर क्यों नहीं रह सकते?

‘‘सोनाली क्या सोच रही हैं?’’ पापा ने आवाज दी.

‘‘एक कोफ्ता और मिल सकता है क्या? आज लौकी के कोफ्ते बहुत स्वादिष्ठ बने हैं. पेट भर गया है पर मन अभी तृप्त नहीं हुआ है,’’ पापा ने खाने की तारीफ की तो सोनाली ने बताया कि आज कोफ्ते मांजी ने बनाए हैं. लताजी ने तो रसोई से संन्यास ले लिया था. आज अचानक मन किया या शायद धन्यवाद कहने का उन्हें यह तरीका सम?ा आया पर इतनी तारीफ सुनने को मिलेगी, ऐसा सोचा न था, अब तो हर दूसरे दिन लताजी रसोई के चक्कर लगाने लगीं. धीरेधीरे उन दोनों के बीच संकोच की दूरी घटने लगी. पहले शाम को तिकड़ी जमा होती थी, फिर विहान के एग्जाम शुरू होने के बाद दोनों ही ताश खेलते रहते. अब सब अच्छा चल रहा था लेकिन खुशियां कभी भी एक जगह ज्यादा देर तक नहीं ठहरतीं. सोनाली को अपनी ही नजर लग गई. अभी बहार आई थी कि पत?ाड़ ने भी दस्तक देनी शुरू कर दी.

‘‘पापा देखो न, आज मम्मी सुबह से ही बिना बात के गुस्सा हो रही हैं. मैं ने अपना सारा होमवर्क निबटा दिया, फिर भी जबरदस्ती पढ़ने के लिए बैठा दिया,’’ विहान ने सुधीर के आते ही सोनाली की शिकायत करना शुरू कर दिया.

‘‘ठीक है, मैं बात करता हूं. क्या हुआ, आज बिन बादल, बिजली और बरसात दोनों एकसाथ…’’

‘‘अमित भैया का फोन आया था. कह रहे हैं कि अब कोरोना का प्रभाव कम होने लगा है, इसीलिए कंपनी वाले औफिस बुला रहे हैं. उन्हें और रीना दोनों को ही जाना पड़ेगा. बच्चों के स्कूल अभी नहीं खुलेंगे, इसलिए वे दोनों घर पर ही रहेंगे. पापा घर पर आ जाते तो उन्हें बच्चों की कोई चिंता नहीं रहती. कितने खुदगर्ज हो गए हैं भैया. इतने दिन हो गए, पापा को यहां आए हुए. मगर एक भी फोन नहीं. और आज जब उन्हें जरूरत पड़ी तो तुरंत फोन कर दिया. कहीं नहीं जा रहे पापा. अब तो उन का यहां मन भी लग गया है.’’

‘‘वह तो ठीक है पर एक बार पापा को भी बता दो, अगर उन का वहां जाने का मन नहीं होगा तो मैं खुद अमित को मना कर दूंगा.’’

‘‘रात को डिनर के समय अमित का फोन आया था, घर वापस आने के लिए कह रहा है,’’ जयप्रकाशजी ने सब को बताया.

‘‘पता है मुझे पर अब आप वहां नहीं जाएंगे. यह क्या बात हुई, पहले तो उन्हें आप का ध्यान नहीं आया और अब जरूरत पड़ी तो.’’

‘‘बेटी, ऐसा नहीं कहते, समय पर अपने ही अपनों के काम नहीं आएंगे तो.’’ अभी जय प्रकाशजी की बात खत्म नहीं हुई थी कि लताजी ने भी सोनाली का समर्थन किया, ‘‘सही तो कह रही है सोनाली, यह क्या बात हुई, अब उन्हें जरूरत है तो बुला रहे हैं. कल को जब जरूरतें खत्म हो जाएंगी, तब क्या होगा. आप को वहां नहीं जाना चाहिए. बच्चों को भी तो आप की अहमियत का पता चले,’’ सब लताजी की बात सुन कर आश्चर्यचकित रह गए. कहां तो मां उन के आने का विरोध कर रही थीं और जब वह जाने के लिए कह रहे हैं तो मना कर रही हैं. शायद इतने दिनों से जिस अकेलेपन को वह झेल रही थीं, वह अब भरने लगा था.

‘‘नहीं लताजी, मुझे जाना ही पड़ेगा. बेटा खुदगर्ज हो सकता है पर एक पिता नहीं. अगर मैं भी उस की तरह व्यवहार करूंगा तो उस में और मुझ में क्या अंतर रह जाएगा. मैं अपने बेटे को सही संस्कार देने में नाकामयाब रहा पर कोशिश करूंगा कि आने वाली पीढ़ी को संभाल सकूं.

‘‘पापा अपनी जगह सही थे और हम सब की चिंता भी वाजिब थी. सब के मन दुखी थे, कोई नहीं चाहता था कि पापा वापस जाएं. आप के घर में आने से रौनक आ गई थी. अब आप चले जाएंगे तो फिर से.’’

‘‘जाना तो पड़ेगा, आप भी समझती हैं कि बच्चे गलती कर सकते हैं पर मांबाप नहीं. मैं आप से रोज फोन पर बात करूंगा.’’

सोनाली कभी मां की ओर देखती और कभी अपने पापा की ओर. शायद इस उम्र में व्यक्ति को भौतिक संसाधनों से ज्यादा संगसाथ की आवश्यकता अधिक होती है.

‘‘ठीक है नानू, आप मामा के घर जा सकते हैं पर आप वादा करो कि गरमी की छुट्टी में आप हमारे साथ रहेंगे. सही कहा न दादी?’’

विहान की बात सुन कर सब लताजी की ओर देख कर मुसकरा उठे.

लेखिका – अपर्णा गर्ग

परिंदे की जात

लालटू ने घर को आखिरी बार निहारा. घर जैसे उस के सीने में किसी कील की तरह धंस गया था. उस ने बहुत कोशिश की लेकिन कील टस से मस न हुई. उस ने सामने खुले मैदान में नजर दौड़ाई. सामने बड़ेबड़े पहाड़, खूबसूरत वादियां… भला कौन इस जन्नत को छोड़ कर जाने की बात सोचता है. लेकिन वह अपने बूढ़े बाप और अपने बच्चों का चेहरा याद करता है तो यह घाटी अब उसे मुर्दों का टीला ही जान पड़ती है. इधर घाटी में जब से मजदूरों पर हमले बढ़े हैं उस के पिताजी और उस के बच्चों का हमेशा फोन आता रहता है कि कहीं कुछ…

उस के बूढ़े पिता कोई बुरी घटना घाटी के बारे में सुनते नहीं कि उस का मोबाइल घनघना उठता है. चिंता की लकीरें लालटू के चेहरे पर और घनी हो जाती हैं.

बूढ़ा असगर जाने कब से आ कर लालटू की बगल में खड़ा हो गया था. उस की नजर अचानक बूढ़े असगर पर पड़ी. लालटू झोंपता हुआ बोला, ‘‘अरे चचा, आइए बैठिए.’’

‘‘तुम ने तो जाने का इरादा कर ही लिया है तो मैं क्या कहूं. लो, यह पश्मीना शौल है. रास्ते में ठंड लगे तो ओढ़ लेना,’’ असगर चचा ने तह की हुई शौल को पन्नी से निकाला और लालटू के कंधे पर डाल दिया.

इस अपनत्व की गरमी के रेशे ने एक बार फिर से लालटू की आंखें नम कर दीं.

असगर चचा ने धीरे से उस के कंधे दबाए और हाथ से उस के कंधे को बहुत देर तक सहलाते रहे. असगर चचा को भी कहीं यह एहसास हुआ कि ज्यादा देर तक वे इस तरह रहे तो उन की भी आंखें भीगने लगेंगी.

उन्होंने बात को दूसरी तरफ मोड़ते हुए कहा, ‘‘चाय लोगे?’’

लालटू ने हां में सिर हिलाया. बूढ़े असगर ने नदीम को आवाज लगाई, ‘‘नदीम, जरा 2 कप चाय दे जाना.’’

थोड़ी ही देर में नदीम 2 प्यालों में गरमगरम चाय ले कर आ गया.

चाय पीते हुए बूढ़ा असगर बोला, ‘‘ठीक है, अब तुम भी क्या कर सकते हो. जब यहां लोग डर के साए में जीने को मजबूर हैं, वहां तुम्हारे वालिद और बच्चे परेशान हैं. यहां क्या है, पुचके अब नहीं बिकेंगे तो चाय बेचने लगूंगा. आखिर कहीं भी रह कर कमायाखाया जा सकता है. तुम जहां रहो, खुश रहो. अपने वालिद और अपने बच्चों को देखो. जमाना बहुत खराब आ गया. पहले लोग इंसानियत और मुल्क के लिए जान दे देते थे.

लेकिन अब इन नालायकों को जिहाद और आतंकवाद के अलावा कुछ नहीं सूझता.

‘‘जिहाद बुराई को खत्म करने के लिए किया जाता है, बुरा बनने के लिए नहीं. इसलाम में कहीं नहीं लिखा है कि बेगुनाहों और मजलूमों का कत्ल करो. ये सब वही लड़के हैं जिन्हें धर्म के नाम पर उकसाया जाता है और सीमापार बैठे हुक्मरान इन से खेलते हैं.’’

बहुत देर से चुप बैठा नदीम भी आखिरकार चुप न रह सका, बोला, ‘‘तमिलनाडु में एक कंपनी ने तो एक ऐसा विज्ञापन निकाला है जिस में लिखा है कि वह नौकरियां केवल हिंदुओं को देगा, मुसलमानों को नहीं.

‘‘आखिर जो हो रहा है, एकतरफा तो नहीं हो रहा है न?’’

अचानक से चचा के शब्दों में अफसोस उतर आया. वे नदीम को घूरते हुए बोले, ‘‘आज सालों पहले लालटू यहां आया था और पता नहीं कितने मजदूर यहां काम की तलाश में आए होंगे. यह देश जैसे तुम्हारा है वैसे लालटू का भी है. कोई भी कहीं भी देश के किसी भी हिस्से में जा कर मजदूरी कर सकता है. कमानेखाने का हक सब को है. लालटू आज भी मुझे अपने वालिद की तरह ही मानता है. गोलगप्पे मैं बेलता हूं, छानता वह है. रेहड़ी मैं लगाता हूं, धकेलता वह है. मैं ने कभी तुम में और लालटू में अंतर नहीं किया. बेचारा हर महीने जो कमाता है, अपने घर भेज देता है. सालछह महीने में वह कभी घर जाता है तो अपने बूढ़े बाप और बालबच्चों से मिलने. मैं ने कभी इसे दूसरी किसी नजर से नहीं देखा है.

‘‘इस ढंग की हरकतें सियासतदां करें, उन को शोभा देता होगा. हम तो इंसान हैं. ऐसी गंदी हरकतें हमें शोभा नहीं देतीं. हम तो मिट्टी के लोग हैं और हमारी जरूरतें रोटी पर आ कर सिमट जाती हैं. रोटी के आगे हम सोच ही नहीं पाते.

‘‘हिंदूमुसलमान भरे पेट वाले लोगों के लिए होता है. खाली पेट वाले रोटी के पीछे दौड़ते हुए अपनी उम्र गंवा देते हैं. इसलिए नदीम, दुनिया में आए हो तो हमेशा नेकी करने की सोच रखो. बदी से कुछ नहीं मिलता, बेटा. बेकार की अफवाहों पर ध्यान मत दो. इस तरह की अफवाहों पर कान देने से अपना ही नुकसान है. ऐसी अफवाहें घरों में रोशनी नहीं करतीं और न ही शांति के लिए कंदीलें जलाती हैं बल्कि पूरे घर को आग लगा देती हैं. मैं उन नौजवानों से भी कहना चाहता हूं जो इस तरह की कत्लोगारत में यकीन रखते हैं. बेटा, उन का कुछ नहीं जाएगा लेकिन तब तक हमारा सबकुछ जल जाएगा.’’

बाहर खिली हुई धूप में कुछ कबूतर उतर आए थे. असगर गेहूं के कुछ दाने कोठरी से निकाल लाया और उन की तरफ फेंकने लगा. ढेर सारे कबूतर वहां दाना चुगने लगे.

असगर उन की ओर उंगली दिखाते हुए लालटू और नदीम से बोला, ‘‘देखो, ये हम से बहुत बेहतर हैं. अलगअलग रंगों के होने के बावजूद एकसाथ बैठ कर दाना चुग रहे हैं. ये बहुत बुद्धिमान नहीं हैं, फिर भी ये आपस में कभी नहीं लड़ते. लेकिन आदमी इतना बुद्धिमान होने के बावजूद जातियों और मजहबों में बंटा हुआ है. इन कबूतरों से आदमी को बहुतकुछ सीखने की जरूरत है.’’

लालटू ने नजरें दौड़ाईं. दोपहर धीरेधीरे सुरमई शाम में तबदील होने लगी थी. उस ने एक बार रेहड़ी को छुआ, फिर उन बरतनों पर सरसरी निगाह दौड़ाई. बिस्तर को निहारा.

यह सब वह आखिरी बार कर रहा था. पिछले 10-12 सालों से वह कश्मीर के इस हिस्से में रेहड़ी लगाता आ रहा था. अब सब छूटा जा रहा था. उस की बस किनारे आ कर लगी. लालटू चलने को हुआ.

असगर दौड़ कर बस तक आया. उस ने लालटू को सीने से लगा लिया. लालटू और असगर दोनों रोने लगे.

असगर बोला, ‘‘अपना खयाल रखना. कभी हमारी याद आए और हालात ठीक हो जाएं तो चले आना.’’

‘‘आप भी अपना खयाल रखना,’’ झोंपता हुए वह बस की सीट पर बैठ गया. उस ने बैग से पश्मीना शौल निकाल कर ओढ़ ली. सुरमई शाम धीरेधीरे रात में बदल गई.

सैक्स फैंटसी से जुड़ी बातें जो आप की मैरिड लाइफ को मजबूत बना देंगी

आज के समय में हर इंसान यह चाहता है कि उस की मैरिड लाइफ बिल्कुल भी बोरिंग ना हो. पहले के समय में हम ने देखा है कि लोगों कि मैरिड लाइफ काफी बोरिंग रहती थी क्योंकि हसबैंडवाइफ एकदूसरे से हर बात को शेयर और डिस्कस नहीं कर पाते थे. और तो और पहले के जमाने में पत्नियां अपने पति से काफी शर्माती भी थीं और अपनी निजी या सैक्स से जुड़ी इच्छाओं को शेयर करने में सकुचाती थी, उन्हें यह लगता था कि अपनी इच्छाओं को सामने लाने पर पति उसके चरित्र पर संदेह करेगा पर अब ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. आज के मौडर्न समय में लड़कियां लड़कों से भी आगे निकल चुकी हैं. मौडर्न कपल्स एकदूसरे से सारी बातें और प्रौब्लम्स शेयर कर लेते हैं और अपनी सैक्स से जुड़ी इच्छाओं को भी .

गुड सैक्स मतलब गुड मैरिड लाइफ

मैरिड लाइफ को इंटरस्टिंग बनाने के लिए सबसे पहले जरूरी है हमें अपनी सैक्स लाइफ को रोचक बनाना होगा. सैक्स हमारे बौडी कि ऐसी जरूरत है जिसे हम चाह कर भी इग्नोर नहीं कर सकते. सैक्स करने से कपल्स के बीच का बौंड और ज्यादा स्ट्रौंग बनता है. हम अकसर अपनी बाकी बातों में उलझ कर सैक्स के बारे में नहीं सोच पाते और अपनी सैक्स लाइफ बोरिंग बना बैठते हैं.

अच्छी सैक्स लाइफ के लिए अपनाएं सैक्स फैंटसीज

हर इंसान के लिए सैक्स फैंटसीज जरूर होती हैं और हम सब को सैक्स में नई नई चीजें ट्राई करना बेहद पसंद होता है लेकिन फिर भी किसी ना किसी वजह से हम नहीं कर पाते हैं और बस सोचते रह जाते हैं. हमें अपनी सैक्स लाइफ में फैंटेसीज का तड़का लगाना चाहिए. कई लोग पौर्न वीडियोज देख नई नई चीजें ट्राई करते हैं और अपने पार्टनर्स को एक अलग सी सुख देने की कोशिश करते हैं. आप को हमेशा अपने पार्टनर से सैक्स के बारे में बात करनी चाहिए और उन से पूछना चाहिए कि हम अपनी सैक्स लाइफ और बहतर कैसे बना सकते हैं. इससे आप के बीच का कम्युनिकेशन भी ठीक होगा

पार्टनर से बात कर बनाएं फैंटसीज

हमें अपने पार्टनर से सैक्स के बारे में जरूर बात करनी चाहिए और जानना चाहिए कि हमारे पार्टनर की सैक्स डिजायर्स या सैक्स फैंटसीज कैसी हैं और क्या हम अपने पार्टनर को वो एंजौयमेंट दे पा रहे हैं जो उन्हें चाहिए. अगर आप के या अपने पार्टनर की कोई सैक्स फैंटसीज नही हैं तो आपकी सैक्स लाइफ बोरिंग हो जाएगी. इस बोरियत के आने के पहले दोनों को सैक्स फैंटसीज बनानी चाहिए और अलगअलग पोजीशन्स ट्राई करनी चाहिए. उस के बाद यह भी डिस्कस करें कि आप का अनुभव कैसा रहा.

ट्राई करें ओरल सैक्स

सैक्स लाइफ में तड़का लगाने के लिए सैक्स को सिर्फ एक प्रोसेस ना मानें बल्कि सैक्स को पूरी फीलिंग के साथ करें. ओरल सैक्स से आप अपने पार्टनर को वो सुख दे सकते हैं जो आप दोनों ने कभी एक्सपीरिंस नहीं किया होगा. सैक्स करने से पहले अपने पार्टनर को इस कदर प्यार दें कि दोनों को सैक्स से पहले ही इतना आनंद मिल जाए कि बस दोनों पार्टनर्स सैक्स करने पर मजबूर हो जाएं और सैक्स किए बिना रह न पाएं. सैक्स से पहले अपने पार्टनर की पूरी बौडी अपने हाथों से सहलाएं और अपनी जीभ का इस्तेमान कर अपने पार्टनर की पूरी बौडी पर जम कर किस करें और साथ ही उन्हें इतना जोर से गले लगाएं कि आप दोनों एक दूसरे की दिल की धड़कनें तक महसूस कर पाओ.

सैक्स में कुछ नयापन लाने से दोनों को एक अलग ही सुख की प्राप्ति होगी जो अब से पहले आप दोनों को नहीं हुई होगी. ऐसा करने से आप की सैक्स लाइफ और भी ज्यादा बेहतरीन बन सकती है और साथ ही आप की मैरिड लाइफ आप को कभी भी बोरिंग नहीं लगेगी.

मेरी वाइफ का एक्स बौयफ्रैंड मेरी औफिस में काम करता है और मुझे ऐसा फील होता है कि वे मेरा मजाक उड़ा रहा है.

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मेरी शादी को 3 महीने हुए हैं और मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करता हूं. शादी से पहले मैं और मेरी पत्नी अच्छे दोस्त भी रह चुके हैं. हम दोनों एक दूसरे से सारी बातें डिस्कस किया करते थे फिर चाहे पर्सनल रिलेशनशिप्स की बात हो या फिर घरवालों से जुड़ी कोई बात हो. शादी से पहले उसका एक बौयफ्रेंड था जिसके बारे में उसने मुझे बताया था और तो और मैं एक बार उस लड़के से एक बार मिल भी चुका हूं. किसी कारण से उस दोनों का रिलेशन ज्यादा समय तक नहीं चल पाया और उनका ब्रेक-अप हो गया. हाल ही में उस लड़के ने मेरे औफिस में ज्वाइन किया है. मैं उससे हमेशा अच्छे से मिलता हूं पर जब भी मैं उसे देखता हूं तो मुझे ऐसा फील होता है जैसे उसकी नजरें मेरा मजाक उड़ा रही हों. मुझे क्या करना चाहिए ?

जवाब –

मैं आप की प्रौब्लम कोअच्छी तरह समझ सकता हूं. अपनी ही पत्नी के एक्स बौयफ्रेंड से रोज मिलना किसी भी लड़के को अच्छा नहीं लगेगा. मुझे यह जान कर काफी अच्छा लगा कि आप उससे हमेशा अच्छी तरह मुलाकात करते हैं क्योंकि इससे पता चलता है कि आप का दिल काफी साफ है और आप किसी के लिए कोई बुरा विचार नहीं रखते. इतना ही नहीं आप का यह स्वभाव इस बात को भी साबित करता है कि आप की पत्नी की पुरानी जिंदगी आप के लिए कोई खास मायने नहीं रखती है.

अगर आप की पत्नी का एक्स बौयफ्रेंड आप के औफिस में आ भी गया है तो आप को इतना परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है. ऐसा नहीं है कि आप की वजह से उन दोनों का ब्रेकअप हुआ है. उन दोनों में अच्छे संबंध नहीं बन पाए जिस वजह से वे दोनों अलग हुए होंगे और आप की किस्मत में इसी लड़की का आना लिखा होगा तभी आप दोनों की शादी हुई है. अगर आप दोनों एकदूजे के लिए अच्छे कैंपैनियन साबित हो रहे हैं तो यह इस बात का प्रुव है कि आप की पत्नी के लिए भी अतीत कोई मायने नहीं रखता है.

कभीकभी हमे जो सामने से नजर आता है वह सच नहीं होता. अगर आप को उसे देख कर लग रहा है कि उस की नजरें आप का मजाक उड़ा रही हैं तो आप को उस से एक बार बात करनी चाहिए. यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि उस का इंटेशन क्या है. मुलाकात करने पर उस से पूछना चाहिए कि उस की क्या प्रौब्लम क्या है. हो सकता है मजाक उड़ाने जैसा कुछ ना हो और यह सिर्फ आप के मन का वहम हो.

आप को इस बात का खास खयाल रखना है कि औफिस में आप को अपनी पत्नी के बारे में उससे किसी तरह की कोई बात नहीं करनी है क्योंकि अपनी इज्जत अपने हाथ में होती है. हो सके तो उस लड़के से आप को ज्यादा दोस्ती नहीं करनी चाहिए बल्कि एक प्रोफेशनल्स की तरह आप दोनों को सिर्फ काम से रिलेटेड ही बात करनी चाहिए जिससे कि आप दोनों सेम औफिस में अच्छे से काम कर पाएं. ऐसा करके आप अपनी दुविधा से बाहर आएंगें.

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