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अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के भारत दौरे की अहम बातें

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने नई दिल्ली के हैदराबद हाउस में बैठक से पहले कहा कि उनका भारत में जोरदार और भव्य स्वागत किया गया. उन्होंने आगे कहा कि गुजरात के मोटेरा स्टेडियम में जब-जब वो मोदी का नाम ले रहे थे तब-तब उन्हें लोगों का उत्साह देखने को मिलता और  उन्होंने कहा कि भारत के लोग पीएम मोदी से बहुत प्यार करते हैं.

ट्रंप ने अपने भाषण में कहा कि पाकिस्तान से उनके संबंध अच्छे हैं और पाकिस्तान की सरकार के साथ मिलकर आतंकवाद सक्रिय चरमपंथियों को जड़ से मिटाने में मदद करेंगे. ट्रंप ने इसमें भारत की भूमिका का भी जिक्र किया और कहा कि भारत को बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभानी होगी इस क्षेत्र में. देश के बेहतर भविष्य के लिए भारत को इस क्षेत्र की समस्या का समाधान भी निकालना पड़ेगा.

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नमस्ते ट्रंप बनाम नमस्ते भारत!

ट्रंप मेलानिया कहां-कहां गए?

सबसे पहले ट्रंप अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम गए जहां उनका भव्य स्वागत किया गया. 20 साल में पहली बार ऐसा हुआ था कि कोई अमेरिकी राषट्रपति ताजमहल के दीदार के लिए आया. ट्रंप ने अपने परिवार के साथ आगरा जाकर ताजमहल का दीदार किया, फिर दिल्ली आकर द्विपक्षीय संबंधो पर व्यापक बातचीत भी की.

ट्रंप को राष्ट्रपति भवन में 21 तोपों की सलामी दी गई और गार्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित भी किया गया. जिसके बाद उन्होंने राजघाट जाकर गांधी जी को श्रद्धांजलि भी दी. साथ ही विजिटर बुक में संदेश लिखा और फिर हैदाराबाद हाउस जाकर वहां प्रधानमंत्री मोदी से कई मसलों पर अहम बातचीत भी की.

मेलानिया दिल्ली के एक सरकारी स्कूल सर्वोदय को-एड सीनियर सेकेंडर स्कूल में पहुंची और वहां पर स्कूल के हैप्पीनेस क्लास में शामिल हुईं. बच्चों ने ताली बजाकर मेलानिया का स्वागत  किया  साथ ही बच्चों ने मेलानिया की आरती भी उतारी और तिलक भी लगाया. मेलानिया भी बच्चों से मिलकर काफी खुश नजर आई. उन्होंने बच्चों से हाथ मिलाया उनसे बातें की.

स्कूल में मिलेनिया के लिए छोटे- छोटे बच्चों ने कल्चरल प्रोग्राम भी किया और फर्स्ट लेडी ने इसे खूब एन्जॉय किया. मेलानिया ने पूरे स्कूल को एक छोटी सी स्पीच भी दी ये सब करते हुए वो काफी खुश नज़र आ रही थीं.

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सोने-चांदी के बर्तनों में परोसा गया ट्रंप को खाना

ट्रंप के खाने को लेकर भारत में अच्छी खासी तैयारी की गई है सारी चीजों का ध्यान रखा गया है. सबसे पहले तो ये जाने की सोने-चांदी के बर्तनों में ट्रंप को खाना परोसा गया. अमेरिकी मसाले के साथ बनाए गए भारतीय डिश में  टेस्ट का  भरपूर ख्याल रखा गया और जिसमें  ढोकला,समोसे,ग्रीन टी,लेमन टी,वेज बर्गर ये सारी चीजें परोसी गईं.

कुल मिलाकर उनके भोजन का पूरा ख्याल रखा गया था लेकिन शुद्ध शाकाहारी भोजन परोसा गया था. खबरों के मुताबिक ट्रंप जहां भी जाते हैं वहां पर उनको बीफ बहुत पसंद है लेकिन भारत दौरे में ये बीफ को उनके मेन्यू से बाहर रखा गया है. उनके खाने की तैयारी काफी दिन पहले से हो रही थी.

हम इस तमाशे का हिस्सा क्यों हैं?

ऋतु ही बौराने की है. आम से ज्यादा खास बौरा रहे हैं. फिर वे तो अमेरिका से खासतौर से बौराने आए हैं. अहोभाग्य इस आर्यावर्त के , लग ऐसा रहा है मानो सुदामा के घर कृष्ण पधारे हैं. सुदामा ने चावल की पोटली नहीं खोली बल्कि जुमेटो पर बिरियानी आर्डर कर दी है. उनके आने की आहट के साथ ही गरीबखाना सजने लगा था.सुदामा बीबी के गहने लाला के पास गिरवी रख देगा लेकिन देश की नाक नहीं कटने देगा. वे कृष्ण के ही नहीं बल्कि पूरे देश के दोस्त हैं पर कैसे हैं यह बौराये हुये लोगों को नहीं मालूम.जार्ज पंचम के वक्त में भी किसी को नहीं मालूम था बस ड्यूटी थी कि जैकारा करना है सो करते रहे थे आज भी नमस्ते नमस्ते कर रहे हैं.

उनके आने के पहले ही गरीबी दीवारों में चुनवा दी गई थी , गरीब दूर कहीं हांक दिये गए थे. ठीक वैसे ही जैसे किसी निर्धन के घर कभी कोई अमीर रिश्तेदार आता है तो नंग धड़ंग बच्चों को खेलने भेज दिया जाता है. गृह स्वामिनी ट्रंक में से शादी के वक्त मायके से मिली सलमा सितारों बाली साड़ी निकाल कर पहन लेती है लेकिन गरीबी उसके रूखे सूखे चेहरे से टपक ही पड़ती है. अमीर रिश्तेदार एक नजर में ही ताड़ जाता है कि इनकी जीडीपी ज्यों की त्यों गिरी पड़ी है. पड़ोसी से पैसे ही उधार नहीं लिए जाते बल्कि क्राकरी भी उधार ली जाती है.

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रईस रिश्तेदार अपने आप में शोषक और सूदखोर होता है.वह खाता कम है नाश्ते का निरीक्षण यह सोचते ज्यादा करता है कि इनकी औकात मूँगफली के दानों की नहीं फिर ये साले काजू कहाँ से ले आए वे भी भुने हुये और मसालेदार. फिर वह समझ जाता है कि गरीबी ढकने के चक्कर में मेजबान अनजाने में उसे और उजागर ही कर रहा है. उसे अपने वैभव और संपन्नता पर गर्व हो आता है इसी भावुकता में वह जानबूझकर मेजबान को गले लगा बैठता है. फिर यह पीढ़ियों तक सुनाया जाने बाला किस्सा बन जाता है कि देखो बड़े आदमी हैं पर गुरूर इनमें नाम का भी नहीं.

मेहमान का स्वागत हर्ज की बात नहीं हर्ज की बात स्वागत का खुशामद में बदल जाना है.इतनी हीनता पहले कभी नहीं देखी गई कि 100 करोड़ से भी ज्यादा की राशि हमने अपनी हीनता ढकने में फूँक दी फिर भी उसे ढक नहीं पाये. लोकतान्त्रिक विपन्नता उजागर करने का इससे बेहतर तरीका कोई और हो भी नहीं सकता. हम तब भी भिक्षुक थे और आज भी हैं बस मांगने का तरीका बदल गया है. अब हम उजागर कर के मांगना सीख गए हैं अगला भी यही चाहता है कि झुकाकर नहीं सर उठाकर मांगना सीखो जिससे हमें भी देने में आनंद आए और वापसी की आस भी बंधी रहे.

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हम सुदामा से कर्ण बनने के चक्कर में कंगाल होते जा रहे हैं और सुनने यह मिल रहा है कि देखो दुनिया उनसे मिलने जाती है और वे हमसे खुद मिलने आए हैं यह एक महान उपलब्धि है इस पर भी गर्व करो. करने अब गर्व ही रह गया है जिसे करने कोई कर नहीं लगता उल्टे अपने धर्म और संस्कृति पर मिथ्या अभिमान हो आता है कि भूखे नंगे रहकर भी ( ही ) हम पूज्यनीय हैं. इस भव्य चकाचौंध में हमने प्रजा होने का हक अदा कर दिया दो दिन हमने महंगाई और बेरोजगारी पर नियमित संगोष्ठी नहीं की. इस इवैंट के आगे शाहीनबाग तक भुला बैठे. हम भेड़ों की तरह अहमदाबाद , आगरा और दिल्ली में हाथ बांधे नमस्ते नमस्ते करते रहे.

हमने यह पूछने की जुर्रत नहीं की कि हम इस तमाशे का हिस्सा क्यों बने हैं.

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करण सिंह ग्रोवर ने खास अंदाज में मनाया जन्मदिन, लांच की नई वेबसाइट और यूट्यूब चैनल

करण सिंह ग्रोवर(Karan Singh Grover) ने हाल ही में मालदीव्स में अपना जन्मदिन मनाया. वो एक अच्छे अभिनेता तो है ही लेकिन साथ ही करण एक बहुत अच्छे पेंटर भी हैं. हाल ही में उन्होंने एक आर्टिस्ट के तौर पर ऑफिशियली अपना डेब्यू किया. अपने जन्मदिन के खास मौके पर करण सिंह ग्रोवर ने अपना आर्ट वेबसाइट Starinfinityart.com और यूट्यूब चैनल ‘Starinfinityart’ को लांच किया.

ये वेबसाइट उनके आर्ट वर्क के लिए होगा जिसपर लोग उनके द्वारा बनाई गई आर्ट को देख और खरीद सकेंगे. साथ ही साथ वो ये भी समझ पाएंगे कि उनका कौन्सेप्ट क्या है और वो किसपर आधारित हैं.

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दिलचस्प बात यह है कि, कलाकार की मौजूदा और आने वाला आर्ट अंतर-आयामी प्राणियों और अंतरिक्ष यात्रा के पड़ावों पर आधारित होगा| यह सभी जीवित प्राणियों के लिए ब्रह्मांड द्वारा दिए गए प्रतीकों / संकेतों को भी व्यक्त करता है और उन सभी विभिन्न आयामों को समझने और स्वीकार करने के बारे में है जिसे हम यूं नहीं समझ पाते.

करण कहते हैं, “मुझे अक्सर कहा जाता है कि मैं शो या फिल्में करते समय नियमित रूप से उम्र में ढल रहा हूं और मुझसे पूछा जाता है कि मैं कहां गायब हूं. इसकी वजह ये है कि मैं पेंट करता हूं. मेरे सिर के अंदर कई दुनिया हैं जो कभी-कभी मुझे कुछ और करने से रोक देती हैं इसलिए उन भावनाओं को कैनवास पर उतारने की ज़रूरत महसूस होती है. जब तक मेरी अभिव्यक्ति पूरी नहीं होती है, मैं किसी और चीज पर फोकस नहीं कर पाता| और अब, मैं अपना काम दिखाने के लिए तैयार हूं. वेबसाइट और चैनल मेरे जन्मदिन पर चैनल लौन्च हो रहे हैं. आप पूछेंगे – यह सिर्फ एक कलाकार के रूप में मेरा जन्म है. मुझे कई टुकड़ों को जोड़ना है| जल्द ही एक्सिबिशन होने वाली है. ”

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बेटी के ग्रेंड वेलकम के लिए शिल्पा शेट्टी ने रखी शानदार पार्टी, देखें Photos

बौलीवुड एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी कुंद्रा (Shilpa shetty kundra ) हाल ही में दूसरी बार मां बनी हैं. शिल्पा ने इस बात का खुलासा शिवरात्री के दिन सोशल मीडिया के जरिए किया. हालांकि बेटी का जन्म 15 फरवरी को हुआ था. घर में नन्ही परी के आने के बाद राज और शिल्पा बेहद खुश हैं. इन्होंने अपनी बेटी का नाम समीशा शेट्टी कुंद्रा(Samisha Shetty Kundra) रखा है.

बेटी के जन्म के बाद शिल्पा ने अपने घर पर पार्टी रखी थी जिसमें उनके करीब दोस्त और रिश्तेदार मौजूद थें. शिल्पा ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया बेटी का इंतजार पिछले पांच साल से था. बेटी से पहले शिल्पा शेट्टी को एक बेटा वियान राज कुंद्रा(Viyan Raj Kundra) है.

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पांच साल से शिल्पा को था बेटी का इंतजार…

बता दें, शिल्पा शेट्टी सरोगेसी से मां बनी हैं. फोटो में आप देख सकते हैं शिल्पा का पूरा घर बैलून से सजा हुआ है. शिल्पा ने राज के साथ मिलकर केक काटकर पार्टी की शुरुआत किया, दोनों के चेहरे पर बेटी के आने की खुशी साफ नजर आ रही है.

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शिल्पा और राज (Raj Kundra)की शादी साल 2009 में हुई थी. साल 2012 में शिल्पा ने बेटे वियान को जन्म दिया. वियान के आने के बाद उन्हें अपने परिवार में एक बेटी चाहिए थी. जिसके लिए वह लगातार कोशिश कर रहे थें.

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शिल्पा को जब पता चला वह दूसरी बार मां बनने वाली है इससे पहले वह दो फिल्म ‘निकम्मा’ और ‘हंगामा’ को शाइन कर चुकी थीं. वहीं इस बात को जानने के बाद शिल्पा के मैनेजर ने सभी प्रोजेक्ट्स को टाइम पर खत्म करवाया जिससे शिल्पा ने अपने मैनेजर का धन्यवाद भी किया.

अफसरी के चंद नुसखे

सरकारी अफसरी के मजे लेने हैं जनाब तो अपने मातहत बाबुओं पर चुनिंदा नुसखे आजमाइए, फिर देखिए, कैसे ये कामचोर, चापलूस और भ्रष्ट बाबू ‘पग घुंघरू बांध’ आप के इशारे पर ताताथइया करते नजर आते हैं.

अगर आप भारत की प्रथम श्रेणी सेवा में भरती हुए हैं और शीघ्र ही आप को किसी कार्यालय का कार्यभार मिलने वाला है तो आप को सफलतापूर्वक कार्यालय संचालित करने व अपने मातहतों से निष्ठापूर्वक इच्छित कार्य करवाने के कुछ उपाय बताए जा रहे हैं. इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़ें और उन पर अमल करें. आप एक सफल अधिकारी सिद्ध होंगे और 10 साल की सेवा के बाद आप को श्रेष्ठ अधिकारी का मैडल व 15 साल की सेवा के बाद अति विशिष्ट अधिकारी का मैडल मिल जाएगा.

सर्वप्रथम कार्यभार संभालते ही आप एक गोष्ठी आयोजित करें और उस में सभी से अकड़ कर बात करें. यह सिद्ध करने का प्रयत्न करें कि आप बहुत ही ईमानदार, कठोर व अनुशासित अधिकारी हैं. कार्यालय में किसी प्रकार की कामचोरी, भ्रष्टाचार व अनुशासनहीनता आप बरदाश्त नहीं करते. कार्य में लापरवाही बरतने के लिए आप कर्मचारी को निलंबित ही नहीं करते बल्कि त्वरित कार्यवाही कर के उसे बरखास्त भी कर देते हैं.

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धीरेधीरे आप कर्मचारियों और कनिष्ठ अधिकारियों के चरित्र का अध्ययन करें. आप के पदभार ग्रहण करते ही कुछ चाटुकार, कामचोर, भ्रष्ट और बौस के प्रति सेवाभाव वाले कर्मचारीअधिकारी आप के इर्दगिर्द गुड़ के ऊपर मक्खी की तरह मंडराने लगेंगे. ये प्रथम श्रेणी के कर्मचारी होते हैं. उन से आप को होशियार होने की आवश्यकता नहीं है, बस उन के गुणों को पहचानने की आवश्यकता है. वे आप के प्रत्येक व्यक्तिगत कार्य के लिए सब से उपयुक्त प्राणी हैं. वे कार्यालय का कार्य भले ही न करते हों, अधिकारी के व्यक्तिगत कार्य पूरी निष्ठा, लगन और अनुशासन से करते हैं. प्रत्येक कार्यालय में ऐसे 10 से 20 प्रतिशत कर्मचारी होते हैं.

अब हम प्रथम श्रेणी के ऐसे कर्मचारियों की चर्चा विस्तार से करते हैं. इस किस्म के कर्मचारी या कनिष्ठ अधिकारी कभी समय पर कार्यालय नहीं आते और कार्यालय में आने के बाद भी कभी अपनी सीट पर नहीं मिलते. उन का प्रिय स्थान होता है कार्यालय की कैंटीन या जाड़े के दिनों में बाहर के खूबसूरत, हरेभरे लौन, जिन पर पसर कर ये मूंगफली चबाते हैं या ताश के पत्ते फेंटते दिखाई पड़ते हैं. उन को बौस कभीकभार ही ढूंढ़ता है, जब उसे कोई अपना व्यक्तिगत कार्य करवाना होता है, वरना वे खुले सांड़ की तरह सड़क पर विचरती खूबसूरत और कमसिन गायों को ताकते रहते हैं.

एक सक्षम अधिकारी के नाते आप इस श्रेणी के कर्मचारियों से निम्न प्रकार के कार्य करवा सकते हैं :

  1. कर्मचारियों की योग्यता पहचान कर उन्हें भिन्नभिन्न कार्यों में लगा सकते हैं, जैसे बच्चों को स्कूल छोड़ना और लाना, बाजार से खाद्य सामग्री व घरेलू सामान की खरीदारी, नातेरिश्तेदारों के बच्चों को स्कूलकालेज में ऐडमिशन दिलवाना, यात्राटिकट करवाना, अतिथियों के लिए गेस्टहाउस आदि का प्रबंध करना, बौस के दौरे पर खानेपीने की व्यवस्था से ले कर वातानुकूलित गाड़ी का प्रबंध आदि करना. प्रथम श्रेणी के कर्मचारी इन कार्यों को विधिवत व पूरी कर्मण्यता के साथ पूरा करते हैं.
  2. आप को जमीन खरीद कर उस पर मकान बनवाना है तो ऐसे कर्मचारी आप के बड़े काम आएंगे. आप को कुछ करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. बौस के व्यक्तिगत कार्य करवाने की उन में इतनी क्षमता होती है कि प्रौपर्टी डीलर और रजिस्ट्रार स्वयं आ कर आप के कार्यालय में आप के प्लौट या फ्लैट की रजिस्ट्री कर जाएंगे.

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  1. मकान बनवाने के लिए नक्शा बनवाने से ले कर, ठेकेदार से बात करने और भवन सामग्री का प्रबंध करने तक का सारा कार्य वे बहुत आसानी और सुविधा से कर देते हैं. आप को भवन निर्माण के अंतिम चरण तक कहीं जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती. बस, निर्माण की गति और गुणवत्ता देखने के लिए कभीकभार अवश्य पधार सकते हैं.
  2. गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय से वे बौस के विदेश जाने के कार्यक्रम भी बनवा देते हैं. संबंधित अधिकारी से फाइल को त्वरित गति से हरी झंडी दिलवा कर बौस को विदेश भेज देते हैं.
  3. पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसैंस, पैन कार्ड आदि तुरंत बनवा देते हैं.
  4. बेगम को खरीदारी करनी हो तो उन्हें साथ भेज दीजिए, सारी खरीदारी मुफ्त हो जाती है, आप की बचत हो जाती है.
  5. किसी एक विश्वसनीय कर्मचारी को आप बहुत ही गोपनीय कार्य के लिए चुन सकते हैं, जैसे आप के लिए सुविधाशुल्क वसूलने का कार्य. इस कार्य में वे इतनी ईमानदारी बरतते हैं कि आप के कान को भी भनक नहीं लगने देते और सारा माल आप के बताए हुए निर्दिष्ट स्थान तक पहुंच जाता है.
  6. आप के घर में कोई सगासंबंधी आए तो उसे घुमानेफिराने के लिए आप परेशान न हों, बस उन्हीं में से किसी कर्मचारी को लगा दें. वह आप के रिश्तेदार को आप से भी बड़ा बौस मान कर नगर के सभी स्थलों का भ्रमण मुफ्त में करवा देगा, अच्छे से अच्छे रेस्तरां में भोजन करवा देगा और आप की जेब से एक कौड़ी भी खर्च नहीं होगी.
  7. ऐसे कर्मचारी बिना किसी स्वार्थ के होलीदीवाली आप के परिवार के सभी सदस्यों के लिए महंगेमहंगे उपहार लाते हैं, इसलिए आप इन की सदैव प्रशंसा करते रहें.
  8. चूंकि ऐसे कर्मचारी आप के सारे व्यक्तिगत कार्य करवाते हैं, इसलिए उन को हमेशा प्रोत्साहित करते रहें. समयसमय पर उन को नकद इनाम के साथसाथ श्रेष्ठतम कर्मचारी का प्रमाणपत्र भी देते रहें. अवधि होने पर सरकार से उन के लिए पदक की अनुशंसा करें. 15 अगस्त और 26 जनवरी पर सरकार प्रतिवर्ष इस प्रकार के कर्मचारियों और अधिकारियों को पदक देती है.
  9. ऐसे कर्मचारी बिना अस्पताल में भरती हुए, कुछ लाइलाज बीमारियों का इलाज करवाने के मैडिकल बिल हर महीने जमा करते हैं, आप आंख मूंद कर उन को पास कर दें, अन्यथा वे वास्तव में बीमार पड़ जाते हैं. ऐसी स्थिति में आप के सभी आवश्यक कार्य रुक सकते हैं.

वहीं, दूसरी श्रेणी के कर्मचारी और कनिष्ठ अधिकारी वे होते हैं जो सरकारी काम के प्रति पूरी तरह से समर्पित होते हैं. वे घुग्घू प्रकार के जीव होते हैं जो बिना किसी व्यक्तिगत स्वार्थ के मन लगा कर, पूरी ईमानदारी, निष्ठा और लगन से कार्यालय का काम करते रहते हैं और हमेशा डांट खाते रहते हैं. आप उन को अच्छी तरह पहचान लीजिए और उन से ज्यादा से ज्यादा काम करवाने के लिए आप निम्नलिखित उपायों को उपयोग में लाएं ?:

इस प्रकार के कर्मचारी और अधिकारी चाहे जितना ही अच्छा और साफसुथरा कार्य करें, आप उन के अच्छे कार्य की कभी तारीफ न करें, वरना वे गरूर में आ जाएंगे और यह समझ कर कि आप उन के ऊपर निर्भर करते हैं, वे कार्य के प्रति कोताही, लापरवाही और ढीलापोली करने लगेंगे.

आप ऐसे कर्मचारियों और कनिष्ठ अधिकारियों को कार्य में लापरवाही बरतने के लिए हमेशा डांटते रहें. कार्य अगर समय से पहले भी कर के दे दें, तब भी आप उन से कहें कि कार्य में देरी क्यों लगाई? उन को डांटने का काम आप प्रथम श्रेणी के कर्मचारियों के सामने करें.

ऐसे कर्मचारियों या कनिष्ठ अधिकारियों को कभी भी आप अपने सामने कुरसी पर बैठने के लिए न कहें, चाहे आप के सामने उन से छोटा कर्मचारी आप का व्यक्तिगत कार्य करने के लिए बैठा हो. इस से उन के मन में हीनभावना आएगी और भविष्य में अधिक अनुशासन के साथ आप के समक्ष पेश होंगे.

कभी कभी उन को डराने के लिएज्ञापन भी देते रहें और उन पर अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की धमकी भी देते रहें. ज्ञापन के प्रत्युत्तर पर चेतावनी अवश्य दें.

इस प्रकार के जीव से आप कभी भी सीधे मुंह बात न करें. चूंकि वे अनुशासित और कार्य के प्रति समर्पित जीव होते हैं, उन को कार्य करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं आता, इसलिए आप को खुश रखने के लिए वे और अधिक ईमानदारी से कार्य करते हैं. उन के ही कारण कार्यालय का काम कभी अधूरा नहीं रहता, परंतु उन को इस बात का एहसास न होने दें, वरना वे काम करना बंद कर देंगे.

ऐसे कर्मचारियों को सदैव किसी न किसी काम में उलझाए रखें. काम न हो, तब भी उन्हें कोई न कोई काम देते रहें, जैसे फाइलों में पृष्ठ संख्या डालें, पुरानी फाइलों के कवर बदलें, नष्ट करने वाली पुरानी फाइलों की सूची बनाएं आदि. कार्यालय में बहुत से ऐसे निरर्थक कार्य होते हैं जिन में घुग्घू टाइप के कर्मचारियोंअधिकारियों को आप उलझाए रख सकते हैं और वे पिद्दी की तरह यह सोच कर खुश होते हैं कि बौस उन के ऊपर बहुत अधिक भरोसा करते हैं, इसलिए हर प्रकार के छोटेबड़े काम उन्हीं से करवाते हैं. उन को यह नहीं मालूम पड़ता कि बौस उन का शोरबा बना कर धीरेधीरे चुस्की ले कर पी रहे हैं.

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ऐसे कर्मचारियों से निरर्थक कार्य करवाने व उन्हें व्यस्त रखने का लाभ यह होता है कि उन्हें कभी यह सोचने का मौका नहीं मिलता कि उन का शोषण किया जा रहा है.आप स्वयं किसी मामले में कोई फैसला न लें, ऐसे में आप पर कोई जिम्मेदारी आ सकती है. इसलिए ऐसे मामलों को घुमा कर कनिष्ठ अधिकारी की मेज पर लौटा दें और कुछ ऐसी जानकारियां मांग लें, जिन का उत्तर देने में कनिष्ठ अधिकारी और कर्मचारी को अत्यधिक समय लग जाए और तब तक मूल प्रश्न ही दब कर रह जाए या उस की प्रासंगिकता समाप्त हो जाए.

भूले से भी कभी ऐसे कर्मचारियों और अधिकारियों को कोई पारितोषिक, इनाम या श्रेष्ठता का प्रमाणपत्र न दें, बल्कि उन की वार्षिक रपट में भी कभी उत्तम या श्रेष्ठ कर्मचारी की श्रेणी न दें. उन को बस औसत श्रेणी ही दें, या अधिकतम देना ही पड़े तो ‘अच्छा’ की श्रेणी से अधिक न दें.

ऐसी श्रेणी के कर्मचारीअधिकारी कभीकभी किसी के उकसाने पर अगर कोई प्रतिवेदन देते हैं कि उन से अत्यधिक कार्य लिया जाता है या काम के अनुरूप उन को प्रोत्साहन नहीं दिया जाता तो उस पर कभी विचार न करें और अगर करें भी तो उस पर ‘विश्वसनीय नहीं’ की टिप्पणी के साथ बंद कर दें. साथ ही, भविष्य में अनुशासित और सावधान रहने की चेतावनी दे कर व्यक्तिगत पंजिका में दर्ज भी करवा दें. प्रतिवेदन देने वाला कर्मचारीअधिकारी भविष्य में भूल कर भी अपने प्रति किसी ज्यादती की शिकायत नहीं करेगा.   ऐसे कर्मचारियों को कभी अवकाश न दें. मन मार कर देना भी पड़े तो आवश्यकता से कम अवकाश दें, ताकि वे हमेशा दबाव में रहें और आप का हर जायजनाजायज कहना मानते रहें.

मुझे विश्वास है कि अगर आप ने उपरोक्त सुझावों पर अमल किया तो आप एक अनुशासित और ईमानदार अधिकारी के रूप में प्रतिष्ठित हो जाएंगे और फिर आप के खिलाफ कोई सांस लेने की जुर्रत भी नहीं कर पाएगा. तब आप मनमाने ढंग से सरकारी कार्यों को उलटापुलटा कर के बेहिसाब ‘कमाई’ कर सकते हैं. तुलसीदासजी डंके की चोट पर कह गए हैं कि ‘भय बिनु प्रीत न होय गुसाईं’ अर्थात आप अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को डरा कर रखेंगे, तभी वे आप का सम्मान करेंगे.हमारे बुजुर्गों के अनुभवों से लाभ उठाएं और एक सफल अधिकारी बन कर दिखाएं.

दबंगों का कहर

लेखक- राजेश चौरसिया

  • बुंदेलखंड में आज़ भी जारी है सामंतवाद और दबंगों का कहर..
  • छतरपुर में दलित परिवार की आबरू लूटने का प्रयास कर की मार-पीट..
  • शिकायत के बाबजूद नहीं किया गिरफ्तार और अब जान से मारने की धमकी..
  • पीड़ित परिवार बच्चों सहित पहुंचा SP आफ़िस डाला डेरा..

आज़ादी के दशकों गुज़र जाने के बाद भी बुंदेलखंड में सामंतवाद और दबंगों कहर अनवरत जारी है. कई सरकारें और जनप्रतिनिधि आए-गए-चले-गए पर हालात ना बदले बल्कि और भी बद से बदतर हो चले हैं. ग्रामीण अंचलों में आज भी दलित और पिछड़े समुदाय सामंतवाद और दबंगों की जूती माने जाते हैं और यहां इन्हें इनके ही हिसाब से रहना-चलना पड़ता है.

ताजा मामला मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले का जहां अपने एक दलित महिला को अपनी आबरु बचाना इतना महंगा पड़ गया कि आरोपियों ने उसके पूरे परिवार पर कहर बरसा दिया और लाठी-डंडों से पीट-पीटकर लहूलुहान और घायल कर दिया.

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बता दें कि जिले के भगवां थाना क्षेत्र के गोटखपुरा गांव की रहने वाली रजनी अहिरवार के साथ कुछ समय पहले गांव के दबंग (ठाकुरों) ने घर में घुसकर आबरू लूटने का प्रयास किया था. जहां उसने विरोध कर अपने आप को छेड़-छाड से तो नहीं पर लुटने से बचा लिया और मामले की थाने में शिकायत दर्ज करा दी थी. जिसके चलते अब आरोपी दबंग अपनी रिपोर्ट वापस लेने और समझौता करने का लगातार दबाव बना रहे हैं. और नहीं मानने पर अब आरोपियों ने दलित पतिवार के घर में घुसकर बच्चे-बड़े-बूढ़ों-महिलाओं सहित सभी पर हमला बोल दिया और लाठी-डंडों से पीट-पीट कर लहूलुहान/घायल कर दिया. इस हमले में परिवार के बच्चे-महिलाएं-बूढ़े सब घायल हुए हैं.

शांति देवी बेवा और घायल शांति देवी और वृद्ध महिला कल्लो बाई अहिरवार की मानें तो मामले की थाने में रिपोर्ट करने के बावजूद आरोपियों को पुलिस नहीं पकड़ पा रही और आरोपी हैं कि अब भी लगातार उन्हें जान से मारने की धमकी दे रहे हैं. जिससे हताश और परेशान होकर इस दलित परिवार ने सपरिवार SP ऑफिस में डेरा डाल रखा है. और न्याय की मांग कर रहे हैं.

साथ ही पीड़ित महिलाओं की मानें तो गांव में आपराधिक प्रवत्ति के दबंगों द्वारा लोगों से पैसों की अवैध वसूली भी की जाती है और जो भी लोग गांव से बाहर मेहनत-मजदूरी कर पैसा कमाने जाते हैं और लौट कर आते हैं तो उनसे पैसों की मांग करते हैं और नहीं देने पर उनपर अत्याचार करते हैं.

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वहीं ज़ब हमनें इस मामले पर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों (ASP जयराज कुबेर) से बात की तो उन्होंने मामले को संज्ञान में लेते हुए तत्काल थाना प्रभारी टी.आई. को फोन कर मामले में उचित कार्यवाही और गिरफ्तारी के निर्देश दिए हैं. तो वहीं दलित परिवार को उनके घर वापिस जाने और जानोमाल के8 सुरक्षा का हवाला दिया है.

मामला चाहे जो भी हो पर इतना तो तय है कि बुंदेलखंड में सामंतवाद और दबंगों का कहर अब भी जारी है. यहां आजादी के कई दशक गुज़र जाने के बाद भी यहां दलित और पिछड़ा उपेक्षा का शिकार है. इनके हितों की रक्षा के लिये भले ही सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाएं और कानून बनाये हैं पर बावजूद वह इनकी पहुंच से बहुत दूर हैं.

दुर्घटना पर्यटन: भाग-2

उस आदमी के अनुसार, हुआ यह था कि कन्हैयालाल इधर अपनी कार पार्क कर के मौल में घुसे उधर उन की कार से हैड लैंप की बगल की खाली जगह से धुआं निकलना शुरू हो गया. किसी व्यक्ति ने जोर से आवाज लगाई कि गाड़ी से धुआं निकल रहा है और अचानक वहां भगदड़ मच गई थी. जिन लोगों की कारें कन्हैयालाल की कार के आसपास खड़ी थीं उन्होंने जल्दी से अपनी कारें वहां से हटाने के चक्कर में पहले एकदूसरे की गाडि़यों को टक्करें मारीं और फिर ड्राइवर की सीट से अपनाअपना मुंह निकाल कर एकदूसरे से गालियों के परस्पर आदानप्रदान में व्यस्त हो गए. पर इस के पहले कि यह आदानप्रदान उन के गाडि़यों से बाहर आ कर कुश्ती या घूंसेबाजी के मुकाबलों में बदल पाता, पता नहीं कैसे इतनी जल्दी वहां पहुंचे मौल के सुरक्षा और अग्निसेवा के अधिकारी ने जोरजोर से एक भोंपू पर चिल्ला कर लोगों को चेतावनी दी कि वे अपनी गाडि़यों में चाबी लगी छोड़ बाहर निकल आएं ताकि पार्किंग के कर्मचारी गाडि़यों को करीने से बाहर हटा दें.

तमाशाइयों के मुंह का स्वाद इस घोषणा से बिलकुल खराब हो गया क्योंकि बहुत सी कारों की टकराहट और उन के ड्राइवरों की घबराहट देखने में मुफ्त मनोरंजन की काफी संभावनाएं थीं. पर इस के बाद आतिशबाजी शुरू हो गई तो उन की निराशा कुछ कम हुई. आतिशबाजी भी मुफ्त की थी और इसे प्रस्तुत कर रही थी कन्हैयालाल की कार जिस में से उठने वाले धुएं ने अब लपटों का वेश धारण कर लिया था.

कार के बोनट के नीचे से निकलने वाली लपटें अचानक बहुत तेज हो गईं और धड़ाम की आवाज के साथ बोनट अपने स्थान से लगभग 5 फुट ऊपर उछल कर उस से भी ज्यादा भारी धड़ाम की आवाज के साथ फिर जलते हुए इंजन के ऊपर गिर पड़ा मानो इस धड़ाम की आवाज से चौंक कर बहुत से तमाशाई एकदूसरे के ऊपर गिर पड़े हों.

इंजन से उठने वाली लाललाल लपटों के साथ ही सामने के दोनों टायरों के जलने से उठते काले धुएं के बादलों ने जब तमाशाइयों को खांसने पर मजबूर किया और बैटरी के चटक कर फूटने के बाद उस से बहते एसिड के धुएं से उन का दम घुटने लगा तब जा कर यह तमाशा देखती भीड़, जो अब तक एकदूसरे पर टूटी पड़ रही थी, ने थोड़ा पीछे हटना शुरू किया.

इसी बीच, मौके का फायदा उठा कर कुछ महिलाओं के गले की चेन खींचने और कुछ लोगों की जेब काटने की वारदातें भी हो चुकी थीं. इस से भी इस अग्निपूजक भीड़ को पीछे हटने की प्रेरणा मिली. भीड़ के बिखरने के बाद मौल के अपने फायर ब्रिगेड के कर्मचारी मोटे हौजपाइप को ले कर कार के पास पहुंच पाए. उन के  प्रयासों से अगले 10-12 मिनटों में आग को काबू में किया जा सका.

धीरेधीरे लपटें शांत हो गईं और टायरों से उठता धुआं मन मसोस कर घर के अंदर पत्नी के आतंक से विद्रोह करते हुए पति की तरह केवल भुनभुनाता हुआ सा लगने लगा. जब एक बार फिर से अमनचैन और व्यवस्था की स्थिति कायम हो गई तो 2 पुलिस पैट्रोल कारें वहां पहुंचीं. उन में से 4 पुलिस वाले फुरती से उतरे और मुंह में ठूंसी सीटियों को जोरजोर से बजाते हुए उस भीड़ को, जो अब तक आग के नजारे को पेट भर कर देखने के बाद संतुष्ट हो कर स्वयं ही वापस जा रही थी, ‘पीछे हटो, पीछे हटो’ कहते हुए दोनों हाथों से धक्का देने लगे. भीड़ के लोग भ्रमित हो रहे थे कि अब क्या करें, वापस तो जा ही रहे हैं.

उधर, पुलिस के जवांमर्द सिपाही अपने ऊपर के अफसर अर्थात एक मोटे पुलिस इंस्पैक्टर, जो पैट्रोल कार में आधा बैठा और आधा पसरा हुआ था, को भुनभुनाते हुए कोस रहे थे कि उस की अकर्मण्यता और सुस्ती के कारण लाठीचार्ज करने का एक इतना खूबसूरत मौका हाथ से फिसला जा रहा था. पैट्रोल कार वालों को इतने अच्छे अवसर कहां मिल पाते हैं अपने हाथों की खुजली मिटाने के? सारा मजा तो थाने में नियुक्त पुलिस वाले ही करते हैं.

अपनी कार की अधजली लाश को कन्हैयालाल और उस की पत्नी ठगे से देखते रहे. कार के अंदर की हालत का जायजा लेने के लिए उन्होंने दरवाजे खोलने की कोशिश की तो पाया कि वे जाम हो गए थे. खिड़कियां तो अंदर से बंद थीं ही. रात के साढ़े 11 बजे कार को कहीं ले जाने का प्रश्न ही नहीं था. सुबह होने पर ही बीमा कंपनी को सूचित करने के बाद अगला कदम उठाया जा सकता था. इसलिए कन्हैयालाल ने पत्नी, जो अभी तक सिसक रही थी, के साथ घर जाने का निश्चय किया. जब पार्किंग के आदमी ने उन्हें याद दिलाई कि गाड़ी रातभर वहां छोड़ने का चार्ज 100 रुपए लगेगा तो उन्हें अपने जख्मों पर नमक छिड़के जाने की अनुभूति हुई पर मजबूरी थी, इसलिए मन मार कर हामी भरी और एक औटोरिकशे में बैठ कर वे घर वापस आ गए.

कन्हैयालाल को सपने में भी गुमान नहीं था कि आग लगने की खबर आग से भी ज्यादा तेजी से फैलेगी. अभी वे नित्यक्रिया से भी नहीं निबटे थे कि उन के पड़ोसी रामलाल, जो वकील थे, आ पहुंचे. उन्होंने बताया कि उन तक खबर एक और चश्मदीद गवाह द्वारा पहुंची थी. असल में वे अपने बेटे की बाबत कह रहे थे जो कल रात पिक्चर देखने गया था पर उसे मेरे बेटे के बजाय ‘चश्मदीद गवाह’ कह कर जो बात उन्होंने शुरू की उस का सारांश यह था कि कन्हैयालाल की कार बनाने वाली कंपनी पर दावा वे बीमे से हरजाने की रकम मिलने के बाद ठोकेंगे और अपनी फीस पड़ोसी होने के नाते कंसैशनल रेट पर लेंगे.

कन्हैयालाल ने जब कहा कि कार का कौम्प्रिहैंसिव बीमा था. वह सिर्फ 7 महीने पुरानी थी इसलिए डैप्रिसिएशन भी नहीं कटेगा और कार के पूरे दाम मिल जाएंगे तो वकील साहब पहले तो जोरजोर से हंसे फिर उन्होंने कन्हैयालाल की नादानी पर तरस खाते हुए समझाया कि बात कार के रिप्लेसमैंट की नहीं थी. बात थी इस दुर्घटना से कन्हैयालाल को होने वाले मानसिक संताप की और उन की पत्नी, जो दिल की मरीज थीं, के स्वास्थ्य पर लगे गहरे आघात की, जिस के कारण पत्नी का जीवन खतरे में था.

आगे पढ़ें- कन्हैयालाल ने जब कहा कि उन की पत्नी तो बिलकुल स्वस्थ थीं और उन्हें…     

दुर्घटना पर्यटन: भाग-1

पत्नी के उलाहनों से तंग आ गए थे कन्हैयालाल. उन की पत्नी अपने प्रिय हीरो परेशान खान की फिल्म देखने की रोज जिद करती थी. आखिरकार, कन्हैयालाल ने शनिवार की शाम को फिल्म दिखाने का निश्चय कर ही लिया. उन्होंने उसे समझाया तो बहुत कि दुकान जल्दी बंद कर के उन के चले आने या दो सुस्त और लापरवा सहायकों के भरोसे दुकान छोड़ आने की अपेक्षा 50 रुपए में उसी सप्ताह रिलीज हुई पिक्चर की पाइरेटेड सीडी से घरबैठे वीडियो देखना कहीं अधिक बुद्धिमानी का काम होगा, पर पत्नी नहीं मानी थी.

एक तो उसे न मालूम किस दुश्मन ने समझा दिया था कि पाइरेटेड सीडी खरीदना गलत काम है. दूसरे, वह पति के पीछे इसलिए पड़ गई थी कि वे यदि परेशान खान की तरह अपनी तेजी से गंजी हो रही खोपड़ी पर ग्राफ्ंिटग के महंगे तरीके को नहीं आजमाना चाहते तो कम से कम स्वयं अपनी आंखों से देख लें कि अपनी प्रत्यारोपित घनी काली जुल्फों के चलते गंजा होता जा रहा परेशान खान अपनी नई फिल्म में कितना सजीला जवान लगने लगा था. उसे पूरी आशा थी कि इस के बाद और कुछ नहीं तो कम से कम एक अच्छी सी विग खरीदने के लिए तो वे तैयार हो ही जाएंगे.

कन्हैयालाल जब एक बार निश्चय कर लें तो उसे अवश्य पूरा करते हैं, इसलिए उस शनिवार वे सचमुच रात को 8 बजे ही घर आ गए और फिर पत्नी को साथ ले कर 9 बजे उस मल्टीप्लैक्स के परिसर में पहुंच गए जहां परेशान खान के दीवानों का सागर लहरा रहा था.

उस भयंकर भीड़ को देख कर कन्हैयालाल को जहां इंटरनैट पर बुकिंग करा लेने की अपनी समझदारी पर गर्व हुआ वहीं दूसरी तरफ पत्नी को साथ लाने पर अफसोस. अगर वह साथ न होती तो वहां इकट्ठे सिरफिरों में से किसी को अपना 150 रुपए का टिकट आसानी से वे शतप्रतिशत मुनाफे पर सरका सकते थे. पर मजबूरी को समझते हुए उन्होंने गाड़ी को खचाखच भरी पार्किंग में बड़ी मुश्किल से जगह खोज कर पार्क किया और फिर पत्नी का हाथ बहुत रोमांटिक ढंग से अपने हाथों में ले कर पिक्चर हौल में घुस गए.

फिल्म कैसी रही, इस का कन्हैयालाल को अब ध्यान भी नहीं रह गया है क्योंकि उस के बाद जो कुछ हुआ उस ने उन के जीवन को एक बिलकुल नया और सुखद मोड़ दे दिया. दरअसल, हुआ यह कि फिल्म समाप्त होने पर जब कन्हैयालाल बाहर आए और कंधे से कंधा छीलने वाली भीड़ से गुजर कर अपनी कार तक पहुंचे तो एक विचित्र सी बात दिखी. कहां तो गाड़ी पार्क

करने के समय जगह ही नहीं मिल रही थी और अब यह आलम था कि उन की कार के आगेपीछे, दाएंबाएं चारों तरफ 25-30 मीटर तक कोई अन्य गाड़ी नहीं खड़ी थी और उन की छोटी सी कार नदी के बीच में एक नन्हे से द्वीप सी दिख रही थी. पहले कुतूहल फिर विस्मय और उस के बाद एक अज्ञात आशंका से उन का दिल घबरा उठा.

कार के पिछले हिस्से को देखने से कोई खास बात नहीं लगी पर जब पास पहुंचे तो कार की अगाड़ी को देख कर उन की पत्नी के मुख से एक लंबी चीख निकली और कन्हैयालाल के मुंह से निकली एक बड़ी लंबी सी गाली, फिर अपने इष्टदेव का लंबा सा आह्वान और फिर एक लंबी सी हाय.

कार पिछले बंपर से ले कर ड्राइवर के सामने विंडशील्ड तक तो सहीसलामत थी पर उस के आगे बोनट उखड़ा हुआ पड़ा था और बोनट, इंजन, सामने की ग्रिल वगैरह जल कर राख हो गए से लग रहे थे. बैटरी 2 टुकड़ों में थी, सामने के दोनों टायर जले हुए थे और आगे के दोनों दरवाजे हालांकि टूट कर अलग नहीं गिरे थे पर बुरी तरह झुलसे हुए थे. अगर लंबा विवरण न देना हो तो संक्षेप में इतना कहना पर्याप्त होगा कि कार श्मशानघाट पर खुले आसमान के नीचे जलती चिता पर अचानक बारिश हो जाने से आधी जली, आधी बुझी एक लाश सी लग रही थी.

कार की मालकिन, जिस ने विलंबित लय में चीख से अपना रुदन शुरू किया था, अब दहाड़ मार कर रो रही थी. कन्हैयालाल किंकर्तव्यविमूढ़ से खड़े थे. उन की प्रतिक्रिया हमेशा ही पत्नी से उल्टी होती थी. आज शुरुआत में तो उन्होंने भी पत्नी के साथ एक लंबी चीख भरी थी पर अब स्तब्ध खड़े थे.उन के मौन और मूर्तिवत मुद्रा को भंग किया एक आदमी ने जिस ने उन के कंधे पर सहानुभूतिपूर्वक हाथ रखा और बहुत मुलायम स्वर में कहा, ‘‘लो, आप आ गए साहब? हम पार्किंग वाले तो कब से इंतजार करकर के थक गए. हमारे मैनेजर साहब ने तो मौल में कई बार लाउडस्पीकर पर आप की गाड़ी का नंबर भी अनाउंस करवाया पर कोई आया ही नहीं. आप सिनेमा देख रहे होंगे.’’

कन्हैयालाल की इच्छा तो हुई कि उस का कौलर पकड़ कर और कंधे झ्ंिझोड़ कर पूछें कि पार्किंग में कार खड़ी करने पर भी उन की गाड़ी के साथ यह क्या हुआ और उसे ढेर सारी गालियां दे कर अपने मन की भड़ास निकाल लें, फिर धमकाना शुरू करें कि वे पार्किंग वालों से नई कार का मूल्य हरजाने में मांगेंगे. पर ऐसा करने में कई अड़चनें थीं. पहली तो यह कि वे इस व्यक्ति से डीलडौल में काफी हलके थे, दूसरी यह कि वास्तव में वे मारपिटाई और गालीगलौज करने वालों में नहीं थे.

यह दूसरी बात है कि इस समय उन का ये दोनों ही काम करने का जोरों से मन कर रहा था पर कई साल के विवाहित जीवन और खानदानी दुकानदारी के पेशे ने उन्हें इतना तो सिखा ही दिया था कि जीवन में बहुत जोर से गुस्सा आने पर भी चिल्लानेचीखने से कुछ हासिल नहीं होता है.

सब से बड़ी बात यह थी कि यह आदमी तो पार्किंग का कोई अदना सा कर्मचारी लग रहा था, कहनासुनना कुछ होगा भी तो पार्किंग के ठेकेदार या फिर मल्टीप्लैक्स वाले उस मौल के मालिक से. और वे यह समझने में पूरी तरह सक्षम थे कि डीलडौल में तो वे इस आदमी से पीछे और नीचे थे ही, हैसियत, धनशक्ति, रसूख और उच्च सरकारी अधिकारियों से संपर्क आदि में मौल के मालिक ही नहीं बल्कि पार्किंग के ठेकेदार तक से भी बहुत पीछे थे. इसलिए जब उन के एकसाथ पूछे गए सवालों के जवाब में पार्किंग के उस कर्मचारी ने उस दुर्घटना का विस्तार से विवरण देना शुरू किया तो उन के पास चुपचाप सुनने और बीचबीच में सिसकती हुई पत्नी को चुप कराने के अलावा कोई चारा न था. मन मार कर वे सुनते रहे.

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दुर्घटना पर्यटन: भाग-3

कन्हैयालाल ने जब कहा कि उन की पत्नी तो बिलकुल स्वस्थ थीं और उन्हें दिल की कोई बीमारी नहीं थी तो वकील साहब ने फिर मुसकरा कर अनुरोध किया कि कन्हैयाजी इस मुकदमे के लिहाज से अपनी पत्नी उन्हें सौंप दें. कन्हैयालाल इस बेहूदी बात को सुन कर भड़क उठे तो वकील साहब को अपनी गलती का एहसास हुआ और अपनी बात को सुधारते हुए उन्होंने कहना चाहा कि उन का मतलब यह था कि अपनी पत्नी का दिल उन्हें सौंप दें और चिंता न करें. पर यह कहने से पहले एक बार फिर वे स्वयं संभल गए और बात साफ की कि स्वस्थ पत्नी को अस्वस्थ कर देना उन के बाएं हाथ का खेल था, इसे वे अपनी पहचान के डाक्टरों की मदद से संभाल लेंगे, कन्हैयाजी चिंता न करें.

कन्हैयालाल ने कहा कि उत्तर वे सोच कर देंगे. पहले तो उन्हें कार को सिनेमा की पार्किंग से क्रेन द्वारा उठवा कर सर्विस स्टेशन पहुंचाने का काम करना था वरना कारपार्किंग का मीटर चलता रहेगा. वकील साहब ने फिर समझाया कि वे इस में भी जल्दबाजी से काम न लें, इंश्योरैंस वालों के बजाय कारनिर्माताओं से पहले बात कर लें फिर कार को बीमा वालों की जगह कार निर्माता स्वयं ले जाएंगे और उन्हें अपनी कंपनी की साख बचाने की जरा सी भी चिंता होगी तो सर्विस स्टेशन के बजाय कहीं अज्ञातवास में ले जाएंगे और तब तक उसे वहां गुप्त रूप से रखेंगे जब तक जनता की बदनाम स्मरणशक्ति अगले किसी राजनीतिक स्कैम में उलझ कर इस घटना को पूरी तरह भूल न जाए. बात धीरेधीरे कन्हैयालाल को जम रही थी. वैसे भी आज रविवार होने के कारण कागजी कार्यवाही कुछ आगे बढ़ने की आशा तो थी नहीं. पार्किंग वालों से ही कहना होगा कि कार अभी 1 दिन और वहीं रहेगी.

नाश्ता करने के बाद कन्हैयालाल मौल की कारपार्किंग में गए तो रास्तेभर सोचते गए कि 2 दिन लगातार पार्किंग में कार रखने के लिए वे पार्किंगचार्ज में डिस्काउंट मांगेंगे. पर जब पार्किंग वाले से बात हुई तो उन्हें घोर आश्चर्य हुआ जब उस ने कहा, ‘‘साहब, आप का पहले ही बहुत नुकसान हो गया है, अब आप से पैसे क्या मांगें. रखो कार, आप को जब तक रखना हो, हम पैसे नहीं लेंगे.’’

कन्हैयालाल तुरंत भांप गए कि दाल में कुछ काला है, इतनी मोहममता इस के दिल में कहां से उपज आई. उन्होंने थाह लेने के लिए कहा, ‘‘नहीं भाई, छोड़ो, मैं सोचता हूं इसे अब ले ही जाऊं,’’ तो पार्किंग वाला बिलकुल ही घबरा गया. बोला, ‘‘अरे नहीं साहब, ऐसा न करो, आज तो रहने दो, संडे का दिन है.’’

कन्हैयालाल को कोई शक बाकी नहीं रह गया कि दाल में कुछ काला नहीं था बल्कि पूरी दाल ही काली थी. अंत में उन्होंने बात खुलवा ही ली. और तय यह हुआ कि कार दिनभर वहां छोड़ने के वे पार्किंग वालों से 2 हजार रुपए लेंगे. हां, रुपए वे लेंगे, देंगे नहीं, यही तय हुआ. हुआ यह था कि पुलिस के द्वारा बाहर भगा दिए जाने के बाद भी कई लोगों ने फिर अंदर आ कर फूंकी हुई कार देखने की इच्छा प्रकट की थी तो पार्किंग वाले ने उन से कहा था कि बिना पार्किंगचार्ज लिए अंदर वह किसी को पैदल भी नहीं आने देगा और इस के बाद उस ने 40 लोगों से प्रतिव्यक्ति 20 रुपए वसूल कर के पिछली रात ही लगभग 800 रुपए बना लिए थे.

रात देर हो गई थी, इसलिए और लोग नहीं आए पर आज संडे होने के कारण रात वालों से आंखों देखा हाल सुन कर कम से कम 250-300 लोग तो उस कार को देखने आएंगे ही और उसे उम्मीद थी कि 20 रुपए के रेट से वह 5-7 हजार रुपए कमा ही लेगा. इसीलिए कन्हैयालाल को वह 2 हजार रुपए रौयल्टी के दे रहा था. सोमवार से शुक्रवार तक तो दर्शक कम आएंगे पर अगले सप्ताहांत तक गाड़ी छोड़ सकें तो कन्हैयालाल को उस के लिए अलग से वह 4 हजार रुपए पेशगी देने को तैयार था.

पार्किंग वाले से व्यापारवार्त्ता चल ही रही थी कि पार्किंग वाले और कन्हैयालाल का ध्यान एक आदमी ने अपनी तरफ खींचा. उस ने जेब से विजिटिंग कार्ड निकाल कर अपना परिचय दिया कि वह ‘दैनिक अफवाह’ समाचारपत्र का संवाददाता है और अपने समाचारपत्र के लिए जली हुई कार का फोटो खींचना चाहता है. पार्किंग वाले ने कन्हैयालाल को आंख मारी और कन्हैयालाल ने चौकन्ने हो कर उस से कहा, ‘‘इस के लिए आप को 5 हजार रुपए देने होंगे,’’ वह बेचारा बहुत गरीब अखबार का अत्यंत गरीब संवाददाता निकला. अभी वह रिरिया ही रहा था और कन्हैयालाल उसे कुछ छूट देने की सोच ही रहे थे कि पार्किंग गेट से दौड़ता हुआ एक लड़का आया और बेहद उत्तेजित हो कर खुशी से नाचते हुए बोला, ‘‘‘परसों तक’ टीवी चैनल वाले आए हैं और अपनी गाड़ी, जिस पर उन का बहुत बड़ा सा एरियल लगा हुआ है, अंदर लाने के लिए बैरियर का बांस हटाने को कह रहे हैं और इस के लिए बजाय 20 रुपए के 1 हजार रुपए देने को तैयार हैं.’’

कन्हैयालाल ने उसे जोर से डांट लगा कर कहा, ‘‘अबे, पागल हो गया है. मेरे पास भेज दे, 10 हजार से 1 रुपया कम न लेंगे हम,’’ अब तक पार्किंग के ठेकेदार के साथ उन्होंने आंखों ही आंखों में पार्टनरशिप का करार कर लिया था. लड़के को, जो वापस जा रहा था, पीछे से आवाज दे कर उन्होंने कहा, ‘‘और देख, बता दीजो कि कार मालिक और पार्किंग के ठेकेदार का इंटरव्यू करना हो तो उस के 10-10 हजार रुपए अलग से लगेंगे.’’

‘दैनिक अफवाह’ का संवाददाता, जो इतनी बड़ीबड़ी रकमों को सुन कर बेहोश होता सा लग रहा था, घिघियाता हुआ बोला, ‘‘सरजी, वे तो न्यूज चैनल वाले हैं, आप उन्हें स्टिल फोटोग्राफी के राइट्स मत देना. मैं अभी अपने संपादक से बात कर के बताता हूं कि मैं इस के लिए आप को कितने तक दे पाऊंगा,’’ और वह एक किनारे खड़ा हो कर अपने मोबाइल पर कोई नंबर मिलाने लगा.

तभी ‘परसों तक’ चैनल के आईडी कार्ड को गले में लटकाए चैनल की टीम का जो व्यक्ति वहां आया उस की ब्रैंडेड कंपनी की नीली जींस और धूप के चश्मे से सुसज्जित व्यक्तित्व के आगे ‘दैनिक अफवाह’ का संवाददाता बिलकुल फटेहाल सा लगने लगा.

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तौबा

शेयर ट्रेडिंग और सेंसैक्स की उछाल देख कर मणिचंद ने पैसा लगा कर थोड़ा सा मुनाफा क्या कमाया कि खुद को शेयर बाजार का ‘शेर’ ही समझने लगे. लेकिन मणिचंद को असली झटका मिलना तो बाकी था. ऐसा झटका जिस ने उन के तमाम सपनों को चकनाचूर कर दिया.

मणिचंद आज बहुत खुश हैं. खुशी की वजह है कि वे बड़ीबड़ी प्रौपर्टीज को खरीदने, उन्हें मेंटेन करने से बच गए हैं. कैसे, यह जानने के लिए आप को 1 महीने पहले के फ्लैशबैक में जाना पड़ेगा.

तो हुआ यों कि उन्होंने कंप्यूटर के माध्यम से ‘इंट्रा डे टे्रडिंग’ करना सीख लिया और पहले ही दिन उन्हें 2 हजार रुपए का फायदा हुआ. वैसे शाम को जब स्टेटमैंट आया तो इस 2 हजार रुपए में से 300 रुपए टैक्स, चार्ज, सरचार्ज आदि के कट गए थे और उन्हें मिलने थे 1,700 रुपए. पर यह भी घाटे का सौदा नहीं था. और घाटे का क्या, यह तो मुहावरे की भाषा हुई. इस में तो फायदा ही फायदा था. यदि मुहावरे की ही भाषा में कहें तो हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा आए. मात्र 30 हजार रुपए सिक्योरिटी टे्रडर के पास लिएन (शेयर के सौदों के लिए जमा रकम) रख कर वे 1,700 रुपए कमा रहे थे और वह भी पहले ही दिन.

उन्होंने फैसला किया कि आगे चल कर वे लिएन की रकम बढ़ा देंगे और साथ ही टे्रडिंग का वौल्यूम भी बढ़ाएंगे. उन के हिसाब से वे रोज 10 हजार रुपए और महीने में तकरीबन 2 लाख 20 हजार रुपए कमा लेंगे. यह हिसाब लगाने में उन्होंने बड़ी ही उदारतापूर्वक हफ्ते में 5 ही दिन जोड़े थे जिन दिनों शेयर बाजार खुले रहते हैं. इस तरह साल में रकम हो जाएगी करीब 25 लाख रुपए. फिर तो प्लौट खरीदा जाएगा, बिल्ंिडग बनेगी, खूब मौजमस्ती से जिंदगी कटेगी. कार भी नए मौडल की और कीमती ही आएगी. आखिर, आय के मुताबिक ही स्टैंडर्ड औफ लिविंग होना चाहिए न.

वैसे तो कई और भी चीजें हैं जो छिपाए नहीं छिपतीं लेकिन उन में एक अहम चीज है खुशी. लाभ की खुशी को वे छिपा नहीं पाए व अपने सहकर्मियों को इस के बारे में बताया. खुशी की बात बताएं और सहकर्मी पार्टी की फरमाइश न करें, यह कैसे हो सकता है? सो, पार्टी में भी 200-400 रुपए शहीद हो ही गए.

अगले 2 दिनों में लाभ कम सही, पर हुआ. लेकिन गुरुवार के दिन, जिसे वे अपने लिए न जाने किन कारणों से शुभ माना करते थे, बड़ी हानि हुई. दरअसल, पंडेपुरोहितों ने उन्हें उन की ग्रहदशा देख कर बताया था कि देवों के गुरु बृहस्पति की उन पर बड़ी कृपा है और उस दिन केले के वृक्ष में पानी देने, काली गाय को गुड़ खिलाने व पीले वस्त्र धारण करने से उन्हें काफी लाभ होगा. साथ ही, उन्हें अंगूठी, ताबीज भी हजार 2 हजार रुपए में दिए गए थे. परंतु पंडेपुरोहितों की बताई बातें उन के अनुकूल न बैठ कर प्रतिकूल साबित हुईं.

शुक्रवार को भी यही क्रम जारी रहा और इन 3 दिनों में उन्होंने जो भी कमाया था, उस पर पानी फिर गया, फ्लश चल गया यानी जो भी लाभ हुए थे वे हानि के चलते रद्द कर दिए गए.

वहीं, अगले 3 दिनों तक वे फिर 400-500 रुपए लाभ कमाते रहे. पर बुरा हो पंडों के बताए शुभ दिन गुरुवार का, ऐसा गच्चा लगा कि 10 हजार रुपए शहीद हो गए. शायद, उस दिन बजट प्रस्तुत किया गया था. इस के असर से सेंसैक्स यह गुनगुनाते हुए कि ‘आज रपट जाएं तो हमें न उठइयो’ ऐसा रपटा, ऐसा फिसला कि सचमुच उसे उठाने की कोई आशा नहीं रही. ऐसा लग रहा था मानो भारतीय क्रिकेट टीम बैटिंग कर रही हो और विकेट पतझड़ के पत्तों के समान गिर रहे हों. इतना ही नहीं, जंगल की आग की तरह खबर उन के औफिस में फैल गई कि आज मणिचंद को 10 हजार रुपए का गच्चा लगा है.

लोगों के पास वैसे भी आज अपने सुख पर खुश होेने का मौका कहां मिलता है, अगर मिलता भी है तो, सच पूछा जाए तो इस से सच्ची खुशी मिलती नहीं है. दूसरे के दुख से जो खुशी मिलती है उस से कोई वंचित नहीं रहना चाहता. सभी बारीबारी से मणिचंद के पास आते, उन से सहानुभूति जताते वक्त अपने चेहरे की खुशी को छिपाने की हरसंभव, पर नाकाम कोशिश करते.

मणिचंद समझते तो थे कि लोग उन के जले पर तेजाबयुक्त नमक का मरहम लगाने आए हैं पर करते क्या. इस पुनीत कार्य में वे लोग खासतौर से लगे हुए थे जो खुद कभी शेयर बाजार की बेवफाई से देवदास बन गए थे. जिस ने जितनी बड़ी बेवफाई झेली थी वह उतना ही मणिचंद के पास बैठ कर शेयर बाजार के चालचलन की निंदा करता.

मणिचंद जितना चाहते कि इस घटना पर चर्चा न की जाए उतना ही लोग उस पर चर्चा करते. बेचारे ऊपर से दिखलाने की कोशिश करते कि उन्हें ऐसी छोटीमोटी बातों की परवा नहीं होती. लाभहानि तो लगी रहती है.

लेकिन उन का दिल जानता था कि 10 हजार रुपयों का अर्थ है आधे महीने का वेतन. मन ही मन वे उस घड़ी को कोस रहे थे जब उन्होंने शेयर के कारोबार में हाथ डालने का फैसला किया था. एक ओर उन का दिल कहता था कि शेयर बाजार से तौबा कर लें पर जो नुकसान हो चुका था उस की भरपाई वे कैसे करेंगे, इस चिंता में वे चिंतनशील होना चाहते थे लेकिन हितैषियों के ‘शुभ परामर्श’ की बौछार से ऐसे करने में खुद को असमर्थ पा रहे थे.

अब मणिचंद ने ठान लिया है कि वे टे्रडिंग नहीं करेंगे. इस का सब से बड़ा लाभ उन्हें यही दिख रहा है कि उन्हें बड़ीबड़ी प्रौपर्टीज खरीदने, महंगी विदेशी कार खरीदने, नौकरचाकर रखने, सुरक्षा इंतजाम करने से छुट्टी मिल जाएगी और छुट्टी भी ऐनवक्त पर मिल जाएगी. उन्होंने इन प्रौपर्टीज के ऊपर किसी प्रकार का समय और धन अभी तक खर्च करना शुरू नहीं किया था. करते भी कैसे. जो 30 हजार रुपए की रूंजीपूंजी उन के पास थी, वह सिक्योरिटी टे्रडर के पास गिरवी पड़ी थी और उस में से 10 हजार रुपए तो घाटे वाले दिन कट गए थे.

इस के पहले के उन के तजरबों को जानना भी कम रुचिकर नहीं होगा. दरअसल, उन्होंने जब पहली बार डीमैट खाता खोला था और उन्हें पता चला था कि इंटरनैट बैंकिंग के जरिए शेयर खरीदेबेचे जा सकते हैं तो उन्हें लगा था कि बहुत बड़ी कला उन के हाथ लग गई है. आईपीओ के जितने भी औफर आते उन में वे मुक्तहस्त हो कर कोष लगा देते. एक आईपीओ में उन्होंने 6 हजार रुपए लगाए थे जो 3 महीनों के अंदर 15 हजार रुपए हो गए थे. अब तो उन के वारेन्यारे हो रहे थे. यह बात आज से तकरीबन

3 साल पहले की है. उस समय सेंसैक्स खुशहाल स्थिति में था. रोजाना ऐसे बढ़ रहा था मानो रुकने का नाम ही नहीं लेगा. ऐसी स्थिति में बेचारे मणिचंद बहती गंगा में हाथ कैसे न धोते. जब 6 हजार रुपए बढ़ कर 15 हजार हो सकते हैं तो क्यों न बड़ी रकम लगाई जाए. पीएफ फंड से कर्ज ले कर उन्होंने 1 लाख 25 हजार लगा दिए. उन के हिसाब से बहुत जल्द यह रकम दूनी होने वाली थी. लेकिन बुरा हो सेंसैक्स का, जिस तेजी से ऊपर की ओर गया था उसी तेजी से नीचे की ओर जाने लगा. घटतेघटते 16 हजार के आंकड़े के भी नीचे आ गया. उन के द्वारा लगाई गई रकम दूनी होने के स्थान पर आधी हो गई और उस में भी लगातार उतार जारी था. पीएफ पर लिए गए कर्ज पर सूद अलग से लग रहा था. घबराहट में उन्होंने सारे शेयर बेच दिए. उस दिन के बाद से उन्होंने शेयर बाजार की ओर रुख नहीं किया था.

लेकिन इधर, धीरेधीरे ही सही सेंसैक्स में सुधार हो रहा था. इसी बीच उन्होंने एक सहकर्मी को इंट्रा डे टे्रडिंग करते और उस में मुनाफा कमाते देखा था तो पुराने जख्म को भूल कर वे फिर से कमर कस कर तैयार हो गए थे और शुरुआती कामयाबी के बाद जो झटका लगा उस से उबरने में उन्हें काफी परेशानी हो रही थी. लेकिन दिल को तसल्ली देने के लिए वे इस के लाभ देख रहे थे कि उन्हें बड़ी प्रौपर्टीज से संबंधित झंझटों से छुटकारा मिल गया था. इस प्रकार वे आज बड़े ही खुश हैं और आप भी उन्हें इतने बड़ेबड़े झंझटों से निजात पाने के ‘शुभ अवसर’ पर बधाई दे ही डालिए.

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