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अनाम रिश्ता: भाग-2

वह खिसियानी हंसी हंस कर बोला, ‘अच्छा बिटिया. उड़ा लो तुम भी मजाक हमारा,’ कह कर वह तेजी से बाहर चला गया. जैसा कि अनुमान था वह हमेशा की तरह शाम को 6 बजे लौटा, कमला को फिल्म दिखा कर व चाट खिला कर.

मां ने पूछा, ‘क्यों रे गोपी, कैसा है कमला का लड़का? दिखा दिया डाक्टर को?’

‘उसे तो मामूली सा बुखार था. डाक्टर बोला कि मौसमी बुखार है, अपनेआप ठीक हो जाएगा. बस, 2 रुपए की दवा दे दी.’

‘अच्छा, तो ला मेरे बाकी के रुपए,’ मां बोलीं.

वह जोर से हंस पड़ा और बोला, ‘वे तो खर्च हो गए.’

‘कैसे खर्च हो गए?’ मां ने बनते हुए पूछा.

‘कमला कहने लगी कि ‘गंगाजमुना’ लगी है सो उसे दिखा लाए.’

इंदु सोचने लगी, ‘60 रुपए माहवार पाने वाला यह बेवकूफ नौकर 40 रुपए तो अब तक खर्च कर चुका है. क्या है उस कालीकलूटी में जो यह उस के पीछे दीवाना है. वह तो कभी बच्चों की बीमारी के बहाने तो कभी अपनी बीमारी के बहाने इसे मूंड़ती रहती है. यह कैसा रिश्ता है इन के बीच?’

एक दिन उस ने मां से पूछ ही लिया, ‘कमला तो शादीशुदा है, 2 बच्चों की मां है. फिर यह गोपी की क्या लगती है?’

‘लगने को तो कुछ नहीं लगती पर सबकुछ है,’ मां ने टालने वाले अंदाज में कहा.

‘क्या मतलब?’ इंदु ने उत्सुकतापूर्वक गरदन ऊपर उठा कर कहा.

‘अभी तेरी उम्र नहीं है यह सब समझने की. चल, उठ कर अंगीठी जला,’ मां ने डांट लगाई.

इंदु को समझ नहीं आ रहा था कि अपनी जिज्ञासा कैसे शांत करे. परंतु एक दिन उस ने पड़ोस की भाभी को पटा लिया.

भाभी ने जो कहानी बताई उस का सार कुछ इस प्रकार था :

गोपी और कमला के घर गांव में साथसाथ थे. जब कमला बहू बन कर आई तो पड़ोसी के नाते गोपी उसे भाभी कहने लगा. और कभीकभी उस के घर भी जाने लगा. बस, फिर वह कालीकलूटी उसे इतनी भा गई कि वह रोजरोज उस के घर जाने लगा.

कमला के घरवाले किसना जो छोटी जाति का था, ने भी कभी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया था क्योंकि गांव वाले सीधेसरल स्वभाव के होते हैं. पर कमला आई थी शहर से सो उसे अपना सीधासादा पति पसंद नहीं आया. शक्लसूरत में भी वह साधारण ही था. धीरेधीरे ये दोनों एकदूसरे की ओर आकृष्ट हो गए और अब तो इन्हें समाज की भी परवा नहीं है.

पूरी कहानी सुनने के बाद कमला को देखने की इंदु की उत्सुकता और भी बढ़ गई. एक दिन मां को प्रसन्न मुद्रा में देख कर वह बोली, ‘मां, क्या तुम ने कमला को देखा है?’

‘नहीं, मैं ने नहीं देखा. वह तो जब भी आती है, सड़क पर ही खड़ी रहती है. किसी के जरिए खबर भेज कर गोपी को बुलवा लेती है.’

‘मां, किसी दिन गोपी से कह कर कमला को यहां बुलवा लो. हम भी उसे देखें कि कैसी है,’ इस बार इंदु की भाभी ने भी कमला प्रकरण में रुचि दिखाई.

मां को भी शायद जिज्ञासा थी, सो उन्होंने उन की बात मान ली.

एक दिन जब गोपी फिर से खुशबू वाला तेल मांगने आया तो मां बोलीं, ‘गोपी, आज तो हमारा भी मन हो रहा है तेरी ‘कमली’ को देखने का.’

गोपी कमला को ‘कमली’ कहता था.

पहले तो वह नानुकुर करता रहा कि वह घर नहीं आएगी. पर फिर काफी समझाने के बाद मान गया और उसे लिवाने चल ही दिया क्योंकि उस दिन मां भी अड़ गईं कि आज तुझे पैसे तभी दूंगी जब तू उसे यहां ले कर आएगा.

लगभग 5 मिनट बाद बाहर से छमछम की आवाज आई. सब समझ गए कि कमला आ रही है. जो बच्चे सो गए थे उन्हें भी जगा दिया गया, ‘उठोउठो, कमला आ रही है.’ मानो कोई फिल्मी हस्ती हमारे घर पधार रही हो.

जैसे ही वह दरवाजे पर आ कर रुकी, सब एकदम चुप हो गए. गोपी परदा हटा कर अंदर आया और बोला, ‘लो भाभी, आ गई तुम्हारी कमला.’ फिर उस ने वहीं से आवाज दी, ‘अरी, बाहर क्यों खड़ी है. अंदर आ जा,’ कह कर वह स्वयं कमरे से बाहर चला गया.

कमला आई तो उसे देख कर सब की आंखें खुली की खुली रह गईं. मुंह से आवाज नहीं निकली.

एकदम काला रंग, माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी, मांग में खूब गहरा सिंदूर और हरे रंग की साड़ी. साथ में 4-5 वर्ष की एक बच्ची थी जबकि दूसरा शिशु पेट में था.

आखिर मां ने ही उस चुप्पी को तोड़ने की पहल की, ‘जा इंदु, शरबत बना ला और कुछ बिस्कुट वगैरह भी लेती आना.’

इंदु ने शरबत का गिलास कमला को पकड़ा दिया. मां ने पूछा कि कुछ पढ़ीलिखी भी हो तो वह बोली, ‘हां, 5वीं तक.’

उस जमाने में 5वीं की पढ़ाई काफी माने रखती थी.

मां ने 2-3 सवाल उस से और किए. फिर गोपी आ कर उसे बाहर ले गया. चलते समय मां ने कमला को 5 रुपए दिए और दोबारा आने को कहा.

अब तो कमला जब भी गांव से आती, सीधे घर ही आ जाती. मां को ‘जीजी’ कहने लगी थी और आते ही उन के पैर छूती थी.

मां के मना करने पर एक दिन बोली, ‘मेरी सास तो हैं नहीं, आप के पास आ कर मुझे अच्छा लगता है. दूसरी बात जो मुझे कल ही पता चली कि आप का और मेरा पीहर एक ही शहर में है. हम भी लखनऊ के हैं.’

अपने पीहर का तो हर जीव प्यारा लगता है, सो उस दिन से मां भी कमला पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गईं.

इंदु को भी वह अच्छी लगने लगी थी. एक तो शहर की लड़की, ऊपर से थोड़ी पढ़ीलिखी, सो बातचीत में सलीका भी था. हालांकि रंग काला था पर नैननक्श बहुत तीखे थे.

एक दिन गोपी लड्डू ले कर आया और इंदु के हाथ में लिफाफा थमा कर बोला, ‘लो बिटिया, मिठाई खाओ.’

‘कैसी मिठाई? क्या बात है, बड़े खुश नजर आ रहे हो, गोपी?’ इंदु ने हैरानी से पूछा.

‘तुम्हारी चाची के लड़का हुआ है.’

इंदु हैरान कि कौन सी चाची की बात कर रहा है.

मां ने पूछा, ‘गोपी, क्या कह रहा है, ठीक से बता?’

वह झिझकते हुए बोला, ‘कमला के लड़का हुआ है.’

‘तू तो ऐसे नाच रहा है जैसे तेरे ही हुआ हो,’ मां हंसी उड़ाते हुए बोलीं.

‘ऐसा ही समझ लो,’ धीरे से कह कर गोपी चला गया.

उस के बाद 1 साल तक कमला नहीं आई क्योंकि बच्चा छोटा था. एक दिन अचानक पायल की छमछम सुनाई दी तो मां बोलीं, ‘लगता है कमला आई है.’

आगे पढ़ें- लड़के को देखते ही सब लोग मुसकराने लगे. भाभी ने..

अनाम रिश्ता: भाग-1

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी गरमियों की छुट्टियों में जब इंदु मायके आई तो सबकुछ सामान्य प्रतीत हो रहा था. बस, एक ही कमी नजर आ रही थी, गोपी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. वह इस घर का पुराना नौकर था. इंदु को तो उस ने गोद में खिलाया था, उस से वह कुछ अधिक ही स्नेह करता था.इंदु के आने की भनक पड़ते ही वह दौड़ा आता था. वह हंसीहंसी में छेड़ भी देती, ‘गोपी, जरा तसल्ली से आया कर… कहीं गिर गया तो मुझे ही मरहमपट्टी करनी पड़ेगी. वैसे ही इस समय मैं बहुत थकी हुई हूं.’

‘अरे बिटिया, हमें मालूम है तुम थकी होगी पर क्या करें, तुम्हारे आने की बात सुन कर हम से रहा नहीं जाता.’

इंदु मन ही मन पुरानी घटनाओं को दोहरा रही थी और सोच रही थी कि गोपी अब आया कि अब आया. परंतु उस के आने के आसार न देख कर वह मां से पूछ बैठी, ‘‘मां, गोपी दिखाई नहीं दे रहा, क्या कहीं गया है?’’

‘‘वह तो मर गया,’’ मां ने सीधे सपाट स्वर में कहा.

एक क्षण को तो वह सन्न रह गई. उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, बोली, ‘‘पिछली बार जब मैं यहां आई थी तब तो अच्छाभला था. अचानक ऐसा कैसे हो गया, अभी उस की उम्र ही क्या थी?’’

‘‘दमे का मरीज तो था ही. एक रात को सांस रुक गई. किसी को कुछ पता नहीं चला. सुबह देखा तो सब खत्म हो चुका था.’’

गोपी के बारे में जान कर मन बड़ा अनमना सा हो उठा, सो वह थकान का बहाना कर के कमरे में जा कर लेट गई और गोपी की स्मृतियों में खो गई.

अभी गोपी की उम्र ही क्या थी, मुश्किल से 45 साल का था. 15-16 साल का था जब गांव से भाग कर आया था. खेतीबाड़ी में मन नहीं लगता था, इसलिए बाप रोज मारता था. एक दिन गुस्से में आ कर घर छोड़ दिया. वह दादी के गांव के पास के ही गांव का था. सो, पिताजी ने जब बाजार में घूमते हुए देखा तो सारा किस्सा जान कर घर लिवा लाए. तब से वह इस घर में आया तो यहीं का हो कर रह गया. दादी ने उसे अपने बेटे की तरह रखा.

अतीत की घटनाएं चलचित्र की भांति इंदु की आंखों के आगे घूमने लगीं.

वह छोटी सी थी तो उस के सारे काम गोपी ही किया करता था, जैसे स्कूल छोड़ने जाना, खाना देने जाना, स्कूल से वापस घर ले कर आना, शाम को घुमाने ले जाना वगैरहवगैरह. अकसर खेलखेल में वह अध्यापिका बनती थी और गोपी उस का शिष्य. पढ़ाई ठीक से न करने पर वह उसे मुरगा भी बनाती थी और स्केल से हथेलियों पर मार भी लगाती थी.

इसी तरह दिन बीतते जा रहे थे. इस बीच इंदु के और बहनभाई भी हो गए थे, परंतु गोपी उसी से विशेष स्नेह करता था. इसलिए उस के सारे काम वह बड़ी मुस्तैदी और प्रेम से करता था. चाहे और किसी का कोई काम हो न हो, इंदु का हर काम वक्त पर होता था. वह नियम गोपी सालों से निभाता आ रहा था. उस के पीछे तो वह घरवालों से झगड़ भी लेता था.

अगर पिताजी कुछ कहते तो नाराज हो कर कहता, ‘तुम किसी को डांटो, चाहे मारो, मुझे कुछ नहीं, पर मेरी बिटिया को कुछ मत कहना, जो कहना हो मुझ से कहो.’

10वीं कक्षा में पहुंचने तक उस को कुछकुछ समझ आने लगी थी. चंचलता का स्थान गंभीरता ने ले लिया था. इसीलिए उड़तीउड़ती खबरों से समझ आने लगा था कि गोपी का अपने गांव की किसी कमला नाम की औरत से इश्क का चक्कर चल रहा है. पूरी बात तो उसे मालूम नहीं थी क्योंकि न तो वह किसी से कुछ पूछने की हिम्मत कर पाती थी, न ही उसे कोई कुछ बताता था.

एक दिन दोपहर में सब लोग बड़े वाले कमरे में लेटे हुए थे कि अचानक बाहर किसी के जूते चरमराने की आवाज आई. सब समझ गए कि गोपी होगा. जब वह परदा हटा कर अंदर आया तो उसे नए कुरतेपाजामे में देख कर सब समझ गए कि आज कमला आई होगी. उसी से मिलने जनाब जा रहे हैं, सजधज कर.

‘भाभी, ओ भाभी, जरा सा खुशबू वाला तेल तो देना,’ गोपी खुशामदी लहजे में बोला.

उसे जब कोई मतलब होता था तो मां को ‘भाभी’ कहता था वरना तो हमेशा ‘बीबीजी’ ही कहता. मतलब उसे तभी होता था जब कमला आती थी.

इंदु ने अलमारी से तेल की शीशी निकाल कर थोड़ा सा तेल उसे दे दिया जिसे उस ने बालों में चुपड़ लिया. फिर वहीं पास में रखे एक पुराने कंघे से खूब जमाजमा कर बाल संवारे और शीशे में स्वयं को अच्छी तरह निहार कर जांचापरखा कि सब ठीक है या कुछ कसर है. जब संतुष्ट हो गया तो बाहर की ओर चल दिया पर दरवाजे तक जा कर रुक गया.

हम सब समझ गए कि अब पैसों का नंबर है.

‘भाभी, सो गईं क्या?’ वह बड़े लाड़ से बोला.

‘नहीं, बोल, क्या है?’ मां ने जानबूझ कर अनजान बनते हुए कहा.

‘थोड़े से पैसे चाहिए थे,’ गोपी ने धीरेधीरे अपनी बात पूरी की.

‘क्यों, क्या करेगा पैसों का? अभी कल ही तो ले गया था हजामत बनवाने को. अब क्या जरूरत आन पड़ी?’ मां ने झुंझला कर कहा.

इस पर वह खुशामदी हंसी हंसने लगा और बोला, ‘तुम जानती तो हो भाभी, फिर क्यों हमारे मुंह से कहलवाना चाहती हो?’

उस की बात सुन कर मां को गुस्सा आ गया. वे बोलीं, ‘अब मेरे पास पैसे नहीं हैं. इस महीने तू 2 बार पैसे ले चुका है. अब क्या मुसीबत आ पड़ी? हजामत भी बनवा ली, अपनी चहेती को फिल्म भी दिखा लाया. अब क्या रह गया?’

मां को क्रोधित देख कर गोपी थोड़ा उदास हो गया, रुक कर बोला, ‘कमला का लड़का बीमार है, उसे डाक्टर को दिखाना है.’

‘तू तो पूरा पागल है. वह किसी न किसी बहाने तुझ से पैसे ऐंठती रहती है और तू भी मूर्ख बना उस की हर बात पर आंखें मूंद कर भरोसा कर के लुटता रहता है.’

‘नहीं, भाभी, वह सच कह रही है,’ गोपी दृढ़तापूर्वक बोला.

‘कितने पैसे चाहिए?’ मां ने हथियार डालते हुए पूछा क्योंकि मालूम था कि वह मानने वाला तो है नहीं.

‘बस, 20 रुपए दे दो, ज्यादा नहीं चाहिए,’ गोपी शीघ्रतापूर्वक बोला कि कहीं मां का इरादा न बदल जाए.

‘जा इंदु, इसे रुपए दे दे,’ मां बोलीं.

इंदु ने उसे 20 रुपए ला कर दे दिए और शरारत से बोली, ‘क्यों गोपी भैया, डाक्टर के यहां कौन से शो में जाओगे, दोपहर वाले या शाम वाले?’

आगे पढ़ें- वह हमेशा की तरह शाम को 6 बजे लौटा, कमला को

Special Ops Trailer: पहली बार परदे पर दिखेगी भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमले की कहानी

2001 में भारतीय संसद पर हुए सबसे बड़े आतंकवादी हमले के मुख्य गुनाहगार की तलाश के 19 वर्ष की कहानी पर नीरज पांडे एक बहुत बड़ी रोमांचक, रहस्य व एक्शन प्रधान वेब सीरीज ‘‘स्पेशल ऑप्स’’ लेकर आ रहे हैं, जो कि ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘हॉट स्टार वीआई पी’’ पर 17 मार्च से सात भाषाआं में प्रसारित होगा. इसके आठ एपिसोड होंगे. इस वेब सीरीज का ट्रेलर 25 फरवरी को मुंबई के ट्रायडेंट होटल में भव्य समारोह में लॉन्च किया गया.

भारतीय सिनेमा के इतिहास में पहली बार 2001 में भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमले को सेल्युलाइड पर उतारा गया है. आठ एपिसोड की यह श्रृंखला वास्तविक आतंकी हमलों और भारतीय खुफिया की भूमिका के वास्तविक घटनाक्रमों के साथ ही काल्पनिक कहानी भी है.

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इस वेब सीरीज की शुरूआत 2001 में भारतीय संसद पर हुए आतंकवादी हमले के साथ होती है और फिर 2006 व 2011 के आतंकी हमले सहित आए दिन कश्मीर में हो रहे आतंकी हमले भी समाहित हैं.

इस कहानी का मूल मकसद इन आतंकी हमलों के पीछे एकल मास्टरमाइंड का पीछा करना है,जो कि भारत के सबसे घातक दुश्मन के लिए भारतीय खुफिया में सबसे लंबे समय तक युद्धपोत बना रहा है.

कहानीः

‘स्पेशल ऑप्स’ की कहानी आर एंड एडब्ल्यू/रॉ एजेंट हिम्मत सिंह की यात्रा है. वह अपने करियर में बहुत जल्द देश में होने वाले कई आतंकवादी हमलों के बारे में एक सादृश्य बनाते हैं. विभिन्न हमलों के कुछ प्रमाण और वास्तविक अध्ययन और उनके तौर-तरीकों के आधार पर वह आश्वस्त होते हैं कि भारत में हुए व हो रहे आतंकी हमलों का मास्टर माइंड इखलाक नाम का एक व्यक्ति है. हिम्मत अपने कार्य बल के रूप में उल्लेखनीय रूप से कुशल फारूक,  रूहानी, जूही, बाला और अविनाश जैसे एजेंटों की एक टीम को तैनात करते हैं. इस टीम का एकमात्र उद्देश्य कदम दर कदम मास्टरमाइंड के करीब पहुंचना है.

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ट्रेलर लॉन्च के मौके पर हमने इस सीरीज की स्टार कास्ट से एक खास बातचीत की. आइए जानते हैं क्या कहा इन्होंने…

‘‘पहली बार भारतीय संसद पर हुआ आतंकी हमला सेल्यूलाइड पर..’’-नीरज पांडे

वेब सीरीज ‘‘स्पेशल ऑप्स’’ के निर्देशक नीरज पांडे ने कहा- “देखिए, यह एक रोमांचक व रहस्यप्रधान वेब सीरीज है. वेब सीरीज ‘स्पेशल ऑप्स’ ऐसी कहानी है, जिसे मैंने दस वर्ष पहले बनाने की सोची थी, हम इस पर एक लंबा सीरियल बनाना चाहते थे. यह एक बड़ा विचार है, जिसे आगे बढ़ाने और विकसित करने के लिए बहुत धैर्य और शोध की आवश्यकता थी. पर उस वक्त बात नहीं बनी.

फिर एक दिन स्टार इंडिया के हिंदी इंटरटेनमेंट के प्रेसिडेंट गौरव बनर्जी से बात हुई, तो तय हुआ कि इसे वेब सीरीज के रूप में ‘हॉट स्टार वीआईपी’ के लिए बनाया जाए. हमारे पास कहानी को प्रमुखता देने वाले नए और रोमांचक स्वरूपों के साथ इसे जीवन की कहानी से बड़ी वेब सीरीज बनाने के लिए एक शानदार टीम थी, जो पिछले दो दशकों से कई वास्तविक घटनाओं को एक साथ जोड़ती रही है.यह शो के कई बड़े पलों में से एक है.”

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‘‘अनूठी बुद्धिमत्ता का चित्रण..’’- के के मेनन

अभिनेता के के मेनन ने कहा- “इस वेब सीरीज में भारतीय बुद्धिमत्ता को अनूठे परिप्रेक्ष्य में पेश किया गया है. हमारे देश व समय के अंडरकवर एजेंट सही मायनों में अनसुने नायक हैं. यह आपके और मेरे जैसे दिखाई देते हैं. पूरी तरह से भीड़ का हिस्सा बन एक सामान्य जीवन जीते हैं. मगर किसी भी खतरे से राष्ट्र की रक्षा के लिए यह लगातार चौबीस घंटे ड्यूटी पर तैनात रहते हैं. ‘स्पेशल ऑप्स’ में ऐसे ही एजेंटों के जीवन के कुछ पल सामने लाने की कोशिश की गयी है, जो कई दुर्भाग्यपूर्ण हमलों के पीछे मास्टरमाइंड को पकड़ने की कोशिश करते हैं.‘‘

‘‘रियल इमोशन हैं..’’-दिव्या दत्ता

एक्ट्रेस दिव्या दत्ता ने कहा, ‘‘भारत के सबसे बड़े दुश्मन आतंक के खिलाफ सबसे लंबे समय तक के युद्ध के बारे में विशेष है. श्रृंखला की गतिशीलता, उपचार, तेज लेखन और एक तेज गति वाली कहानी ने इसे एक किनारे की श्रृंखला बनाने का वादा किया है, जो भारतीय स्क्रीन पर कभी नहीं देखा गया है. यहां तक कि बड़े पैमाने पर कलाकारों की टुकड़ी के साथ ‘स्पेशल ऑप्स’ में हर चरित्र को बारीक, जटिल और अच्छी तरह से सोचा गया है. इसमें रियल इमोशन को कैप्चर करते समय कहानी जिस तरह से आगे-पीछे होती है, उससे यह वेब सीरीज अपने आप में बहुत बड़ी हो जाती है.’’

इस वेब सीरीज के लेखक नीरज पांडे, दीपक किंगरानी और बेनजीर अली फिदा हैं. इन लेखकों ने भारतीय बुद्धिमत्ता के तरीकों पर शोध करने में कई वर्षों बिताए.

अलग-अलग जगहों पर हुई शूटिंग…

इस रोमांचक वेब सीरीज को मुंबई और दिल्ली के अलावा तुर्की, अजरबैजान और जॉर्डन सहित कई अंतरराष्ट्रीय स्थानों पर फिल्माया गया है.

बता दें कि नीरज पांडे निर्देशित और शिवम नायर द्वारा सह-निर्देशित इस वेब सीरीज को के के मेनन, दिव्या दत्ता, विनय पाठक, करण टैकर, सज्जाद डेलाफ्रूज, सना खान, सैयामी खेर, मेहर विज, विपुल गुप्ता, मुजम्मिल इब्राहिम, परमीत सेठी जैसे कलाकारों ने अपने अभिनय से संवारा है.

‘सदियों से आदिवासियों का शोषण होता रहा है’’- हेमंत सोरेन

आमतौर पर राजनेताओं के सरोकार राजनीति से हट कर नहीं होते लेकिन झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के हैं जिस से उन में सभी की जिज्ञासा पैदा हो रही है. खुद को आम आदमी कहने वाले इस युवा मुख्यमंत्री के बारे में जानिए कुछ अहम बातें उन्हीं के शब्दों में.

आदिवासी बाहुल्य और अति पिछड़े राज्य  झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भले ही उम्र में 44 साल के हों लेकिन उन से मिलने पर लगता है कि आप कालेज के ऐसे किसी छात्र से मिल रहे हैं जो इन दिनों भारी-भरकम किताबों से घिरा पीएचडी कर रहा है. प्राकृतिक सहजता के साथसाथ जिज्ञासा भी उन के चेहरे का स्थायी भाव है जो उन्हें और आकर्षक बनाता है.

हाल ही में  झारखंड के दोबारा मुख्यमंत्री बने जेएमएम यानी  झारखंड मुक्ति मोरचा के मुखिया हेमंत सोरेन के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है. उन का आत्मविश्वास बताता है कि वे चुनौतियों से लड़ने को पूरी तरह तैयार और सक्षम हैं.

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उन के आत्मविश्वास की कुछ वजहें भी हैं. इस प्रतिनिधि ने राज्य की राजधानी रांची के कांके रोड स्थित मुख्यमंत्री आवास पर उन से अनौपचारिक व अंतरंग चर्चा की. उस चर्चा के प्रमुख अंश उन्हीं के शब्दों में यहां प्रस्तुत हैं-

पत्नी प्रेरणा और पिता आदर्श हैं

‘‘लंबे चुनावप्रचार से ले कर मुख्यमंत्री बन जाने के बाद तक मैं लगातार व्यस्त रहा और अब चुनौतियों से निबटने में जुट गया हूं. मैं परिवार को कम समय दे पा रहा हूं. अच्छी बात यह है कि परिवारजन इस बात को सम झते हैं कि  झारखंड की जनता ने मु झे जो महती जिम्मेदारी सौंपी है उस पर मु झे खरा उतर कर दिखाना है.

‘‘पत्नी कल्पना खासतौर से इस बात को सम झती हैं जो जिंदगी की हर लड़ाई में हर कदम पर मेरे साथ खड़ी रही हैं. सच कहूं तो वे मेरी प्रेरणा हैं. प्रचार के दिनों में मैं जब दौरों पर होता था तो वे कार्यकर्ताओं का पूरा ध्यान रखती थीं. उस दौरान मैं ने महसूस किया कि एक पत्नी अगर अच्छी मैनेजर हो तो पति की कई मुश्किलें दूर हो जाती हैं. कल्पना अपना खुद का स्कूल संचालित करती हैं. इस के बाद भी लगातार वे मेरा, मेरे खानेपीने का, कपड़ों का और हर बात का ध्यान रखे रहीं. आज भी वे इन सब बातों का पूरा खयाल रखती हैं.

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‘‘मेरे पिता शिबू सोरेन मेरे रोल मौडल हैं और वे सिर्फ मेरे ही नहीं, बल्कि पूरे  झारखंड के अभिभावक हैं. उन के जीवनभर के संघर्षों और पारिवारिक व राजनीतिक उतारचढ़ावों का मैं साक्षी हूं. मु झे इस बात की खुशी है कि उन के सपनों को साकार करने की जिम्मेदारी राज्य की जनता ने मु झे सौंपी है. हालांकि राजनीति मेरे लिए नई बात नहीं है लेकिन यह व्यक्तिगत अनुभव जरूर है जिसे मैं आप से सा झा करना चाहूंगा कि उन के रहते मैं कभी विचलित नहीं हुआ. एक बेटे को इस से बड़ी सुरक्षा वाली बात कोई होती भी नहीं कि उस का पिता और परिवार हर वक्त उस के साथ खड़ा है. गुरुजी (शिबू सोेरेन) मेरे आदर्श हैं.

मुख्यमंत्री के रोल में

‘‘मुख्यमंत्री बनने का कोई अहंकार न तो पहले मु झे था और न ही आज है. मैं एक साधारण इंसान हूं, जो जानता है कि राज्य की जनता ने उस से अपार उम्मीदें लगा रखी हैं. हालफिलहाल मैं बड़ीबड़ी बातें या दावे नहीं करना चाहता लेकिन पूरे आत्मविश्वास से यह जरूर कह सकता हूं कि 2 वर्षों में राज्य के लिए मैं वह सब कर लूंगा जो मैं करना चाहता हूं.

‘‘मेरी पहली प्राथमिकता युवाओं को रोजगार मुहैया कराने और दूसरी शिक्षा व स्वास्थ्य की है. आदिवासी होने के नाते मैं  झारखंड की बहुसंख्यक आबादी की तकलीफें और दुश्वारियां जानता व सम झता हूं. मेरी पहली कोशिश रहेगी कि युवाओं को ज्यादा से ज्यादा रोजगार मिलें और हर बच्चा स्कूल जाए. जेएमएम पर सभी वर्गों ने भरोसा जताया है, इसलिए मेरी जिम्मेदारियां और भी बढ़ जाती हैं.

मजबूत है गठबंधन

‘‘जेएमएम और कांग्रेस का गठबंधन बेहद मजबूत है. गठबंधन के बारे में कुछ अफवाहें फैलती रहती हैं, जो निराधार होती हैं. दोनों दल वैचारिक रूप से काफी नजदीक हैं, इसीलिए उम्मीद से ज्यादा सीटें हमें मिलीं. इस गठबंधन में न कोई गांठ है और न ही किसी तरह का कोई मतभेद या मनभेद है.

‘‘ झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे ने विपक्ष को राष्ट्रीय स्तर पर एक आस बंधाई है कि अगर भाजपा को उखाड़ फेंकना है तो मिल कर चुनाव लड़ना होगा. क्षेत्रीय दलों की अपनी

एक अलग अहमियत व पहुंच होती है. अलगअलग राज्यों में इस की अलगअलग वजहें हो सकती हैं. 2024 आतेआते मु झे लगता है कि परिदृश्य काफीकुछ बदल चुका होगा और भाजपा को देशवासी पूरी तरह खारिज कर देंगे.

आदिवासी हिंदू नहीं

‘‘आप दोटूक पूछ रहे हैं तो मैं भी दोटूक जवाब दे रहा हूं कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं. हां, यह सच है कि वे किसी धर्म, संप्रदाय या जाति से किसी तरह की नफरत नहीं करते. आदिवासी प्रकृति के उपासक हैं और आमतौर पर शांत रहते हैं. आदिवासियों के धर्म को ले कर मच रही खींचतान और घमासान फुजूल है. आदिवासी केवल आदिवासी हैं. उन का भोलापन और निश्च्छलता कभी किसी सुबूत की मुहताज नहीं रही.

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‘‘सदियों से आदिवासियों का तरहतरह से शोषण होता रहा है. इसे रोकना भी मेरी प्राथमिकता रहेगी. आप आदिवासी इलाके में देखिए कि वे कितने अभावों में गुजरबसर कर भी खुश रहते हैं. मेरे विचार में सभी को आदिवासियों से प्रेरणा लेनी चाहिए कि बिना कोई शिकवाशिकायत किए भी संतुष्ट रहा जा सकता है. इस समुदाय की बेहतरी के लिए मैं कृतसंकल्प हूं. इन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जाना जरूरी है.

एनआरसी और सीएए

‘‘ऐसे वक्त में जब देश पर आर्थिक संकट मंडरा रहा है तब केंद्र सरकार द्वारा एनआरसी और सीएए के जरिए लोगों को फिर से नोटबंदी की तरह कतार में खड़ा करना ज्यादती है.  झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश में इन को ले कर गुस्सा व्याप्त है. ये गैरजरूरी हैं और इन्हें लागू करना मेरी सम झ से परे है.

‘‘सीएए के विरोध से देश की सरकार अपनी पुलिस के माध्यम से निबट रही है. केंद्र के इस कदम को मैं लोकतांत्रिक नहीं मानता, यह कुछ ‘और’ ही है. नोटबंदी के दौरान मारे गए लोगों की जिम्मेदारी कौन लेगा.  झारखंड में ऐसे कानून लागू नहीं किए जाएंगे.

बांटती है भाजपा

‘‘ झारखंड में लोकतंत्र की जीत हुई है. भाजपा की कलई खुल गई है कि वह लोगों को बांटने का काम करती है. गांधीजी की बात करने वाले हिटलर के नक्शेकदम पर चलते हैं. यह तो शुरुआत है, आगेआगे देखिए होता है क्या…

बुक का आइडिया

‘‘मैं बचपन से ही पढ़ाकू प्रवृत्ति का रहा हूं. स्कूलकालेज के दिनों में खूब पढ़ता और दोस्तों संग मौजमस्ती भी करता था. अब हालात और मेरी भूमिका दोनों बदल गए हैं. वक्त काम करने का और बहुतकुछ कर दिखाने का है.

‘‘मु झे  झारखंड ही नहीं, बल्कि देशभर से शुभकामनाएं मिल रही हैं कि मैं बुके की जगह बुक चाहता हूं. एक अच्छी किताब या पत्रिका मनोरंजन भी करती है और ज्ञान भी बढ़ाती है. हमें अगर वास्तविकता से जोड़े रखते हुए हमारी रोजमर्राई परेशानियां हल कर सकती हैं तो वे किताबें और पत्रिकाएं हैं. मेरा विचार लाइब्रेरियां बनाने का है ताकि राज्य के लोग ज्यादा से ज्यादा पढ़ें और ज्ञान हासिल करें.

क्या पहली बार सैक्स करते समय ब्लीडिंग होनी जरूरी है और क्या दर्द भी होता है?

सवाल

मैं 25 वर्षीय अविवाहिता युवती हूं. मैं यह जानना चाहती हूं कि क्या प्रथम बार सैक्स करते समय ब्लीडिंग होनी जरूरी है और क्या उस समय दर्द भी होता है? मेरे मन में इस बात को ले कर अनेक डर व शंकाएं हैं. कृपया समाधान करें.

जवाब

पहली बार इंटरकोर्स के समय ब्लीडिंग हो यह जरूरी नहीं और न ही इसे वर्जिनिटी के साथ जोड़ें. कुछ लड़कियों को पहली बार सैक्स करते समय स्पौटिंग होती है, कुछ को कुछ घंटों तक ब्लीडिंग होती है तो कुछ को मासिकधर्म की तरह होती है. दरअसल, ब्लीडिंग होने का कारण सैक्स करते समय हाइमन का ब्रेक होना होता है. कई बार लड़कियों में हाइमन घुड़सवारी, मैस्ट्रूबेरेशन या टैंपून के प्रयोग से भी ब्रेक हो जाता है. सो, उन लड़कियों को फर्स्ट इंटरकोर्स के समय ब्लीडिंग नहीं होती. जहां तक पहली बार सैक्स के समय दर्द का सवाल है, वह भी तब होता है जब महिला शारीरिक व भावनात्मक रूप से पूरी तरह से तैयार न हो. अगर सैक्स से पहले फोरप्ले किया जाए और युवती इमोशनली और फिजिकली कंफर्टेबल हो तो दर्द नहीं होता. आप चाहें तो अपनी समस्या के लिए किसी गाइनीकोलौजिस्ट से भी संपर्क कर सकती हैं.

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बेहतर सैक्स के लिए यौन रोगों से बचिए

प्रतिभा की शादी को कई साल हो गए थे. समय पर 2 बच्चे भी हो गए पर कुछ समय के बाद प्रतिभा को लगा कि उस के अंग से कभी कभी तरल पदार्थ निकलता है. शुरुआत में प्रतिभा ने इसे मामूली समझ कर नजरअंदाज कर दिया. मगर कुछ दिनों बाद उसे महसूस हुआ कि इस तरल पदार्थ में बदबू भी है जिस से अंग में खुजली होती है. प्रतिभा ने यह बात स्त्रीरोग विशेषज्ञा को बताई. उस ने जांच कर के प्रतिभा से कहा कि उस को यौनरोग हो गया है, लेकिन इस में घबराने वाली कोई बात नहीं है. प्रतिभा ने तो समय पर डाक्टर को अपनी समस्या बता दी पर बहुत सारी औरतें प्रतिभा जैसी समझदार नहीं होतीं. वे इस तरह के रोगों को छिपाती हैं. पर यौनरोगों को कभी छिपाना नहीं चाहिए. दीपा जब अपने पति के साथ शारीरिक संबंध बनाती थी, तो उसे दर्द होता था. इस परेशानी के बारे में उस ने डाक्टर को बताया. डाक्टर ने दीपा के अंग की जांच कर के बताया कि उसे यौनरोग हो गया है. डाक्टर ने उस का इलाज किया. इस के बाद दीपा की बीमारी दूर हो गई.

प्रदीप को पेशाब के रास्ते में जलन होती थी. वह नीमहकीमों के चक्कर में पड़ गया पर उसे कोई लाभ नहीं हुआ. तब उस ने अच्छे डाक्टर से इस संबंध में बात की तो डाक्टर ने कुछ दवाएं लिखीं, जिन से प्रदीप को लाभ हुआ. डाक्टर ने प्रदीप को बताया कि उस को यौनरोग हो गया था. इस का इलाज नीमहकीमों से कराने के बजाय जानकार डाक्टरों से ही कराना चाहिए.

क्या होते हैं यौनरोग

मक्कड़ मैडिकल सैंटर, लखनऊ के डाक्टर गिरीश चंद्र मक्कड़ का कहना है कि यौनरोग शरीर के अंदरूनी अंग में होने वाली बीमारियों को कहा जाता है. ये पतिपत्नी के शारीरिक संपर्क करने से भी हो सकते हैं और बहुतों के साथ संबंध रखने से भी हो सकते हैं. अगर मां को कोई यौनरोग है, तो बच्चे का जन्म औपरेशन के जरिए कराना चाहिए. इस से बच्चा योनि के संपर्क में नहीं आता और यौनरोग से बच जाता है. कभीकभी यौनरोग इतना मामूली होता है कि उस के लक्षण नजर ही नहीं आते. इस के बाद भी इस के परिणाम घातक हो सकते हैं. इसलिए यौनरोग के मामूली लक्षण को भी नजरअंदाज न करें. मामूली यौनरोग कभीकभी खुद ठीक हो जाते हैं. पर इन के बैक्टीरिया शरीर में पड़े रहते हैं और कुछ समय बाद वे शरीर में तेजी से हमला करते हैं. यौनरोग झ्र शरीर के खुले और छिले स्थान वाली त्वचा से ही फैलते हैं.

हारपीज : यह बहुत ही सामान्य किस्म का यौनरोग है. इस में पेशाब करने में जलन होती है. पेशाब के साथ कई बार मवाद भी आता है. बारबार पेशाब जाने का मन करता है. किसीकिसी को बुखार भी हो जाता है. शौच जाने में भी परेशानी होेने लगती है. जिस को हारपीज होता है उस के जननांग में छोटेछोटे दाने हो जाते हैं. शुरुआत में यह अपनेआप ठीक हो जाता है, मगर यह दोबारा हो तो इलाज जरूर कराएं.

वाट्स : वाट्स में शरीर के तमाम हिस्सों में छोटीछोटी गांठें पड़ जाती हैं. वाट्स एचपीवी वायरस के चलते फैलता है. ये 70 प्रकार के होते हैं. ये गांठें अगर शरीर के बाहर हों और 10 मिलीमीटर के अंदर हों तो इन को जलाया जा सकता है. इस से बड़ी होने पर औपरेशन के जरिए हटाया जा सकता है. योनि में फैलने वाले वायरस को जेनेटल वाट्स कहते हैं. ये योनि में बच्चेदानी के द्वार पर हो जाते हैं. समय पर इलाज न हो तो इन का घाव कैंसर का रूप ले लेता है. इसलिए 35 साल की उम्र के बाद एचपीवी वायरस का कल्चर जरूर करा लें.

गनोरिया : इस रोग में पेशाब नली में घाव हो जाता है जिस से पेशाब नली में जलन होने लगती है. कई बार खून और मवाद भी आने लगता है. इस का इलाज ऐंटीबायोटिक दवाओं के जरिए किया जाता है. अगर यह रोग बारबार होता है, तो इस का घाव पेशाब नली को बंद कर देता है. इसे बाद में औपरेशन के जरिए ठीक किया जाता है. गनोरिया को सुजाक भी कहा जाता है. इस के होने पर तेज बुखार भी आता है. इस के बैक्टीरिया की जांच के लिए मवाद की फिल्म बनाई जाती है. शुरू में ही यह बीमारी पकड़ में आ जाए तो अच्छा रहता है.

सिफलिस : यह यौनरोग भी बैक्टीरिया के कारण फैलता है. यह यौन संबंधों के कारण ही फैलता है. इस रोग के चलते पुरुषों के अंग के ऊपर गांठ सी बन जाती है. कुछ समय के बाद यह ठीक भी हो जाती है. इस गांठ को शैंकर भी कहा जाता है. शैंकर से पानी ले कर माइक्रोस्कोप के सहारे देखा जाता है. पहली स्टेज पर माइक्रोस्कोप के सहारे ही बैक्टीरिया को देखा जा सकता है. इस बीमारी की दूसरी स्टेज पर शरीर में लाल दाने से पड़ जाते हैं. यह बीमारी कुछ समय के बाद शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित करने लगती है. इस बीमारी का इलाज तीसरी स्टेज के बाद संभव नहीं होता. यह शरीर की धमनियों को प्रभावित करती है. इस से धमनियां फट भी जाती हैं. यह रोग आदमी और औरत दोनों को हो सकता है. दवा और इंजैक्शन से इस का इलाज होता है.

क्लामेडिया : यह रोग योनि के द्वारा बच्चेदानी तक फैल जाता है. यह बांझपन का सब से बड़ा कारण होता है. बीमारी की शुरुआत में ही इलाज हो जाए तो अच्छा रहता है. क्लामेडिया के चलते औरतों को पेशाब में जलन, पेट दर्द, माहवारी के समय में दर्द, शौच के समय दर्द, बुखार आदि की शिकायत होने लगती है.

यौनरोगों से बचाव

अंग पर किसी भी तरह के छाले, खुजलाहट, दाने, कटनेछिलने और त्वचा के रंग में बदलाव की अनदेखी न करें.

जब भी शारीरिक संबंध बनाएं कंडोम का प्रयोग जरूर करें. यह यौनरोगों से बचाव का आसान तरीका है.

कंडोम का प्रयोग ठीक तरह से न करने पर भी यौनरोगों का खतरा बना रहता है.

ओरल सैक्स करने वालों को अपनेअपने अंग की साफसफाई का पूरा खयाल रखना चाहिए.

यौनरोग का इलाज शुरुआत में सस्ता और आसान होता है. शुरुआत में इस से शरीर को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता है.

गर्भवती औरतों को अपनी जांच समयसमय पर करानी चाहिए ताकि उस से बच्चे को यौनरोग न लग सके.

नीमहकीमों के चक्कर में पड़ने के बजाय डाक्टर की सलाह से ही दवा लें.

अंग की साफसफाई से यौनरोगों से दूर रहा जा सकता है.

औरतों को यौनरोग ज्यादा होते हैं. अत: उन्हें पुरुषों से ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.

यौनरोगी के संपर्क में जाने से बचें. बाथरूम की ठीक से साफसफाई न करने से भी एक व्यक्ति का यौनरोग दूसरों को लग सकता है.

मेरा रोजाना सेक्स करने का मन करता है, मैं कैसे इस परेशानी को ठीक करूं?

सवाल

मैं 25 साल का हूं. शादी को 3 साल हो चुके हैं. मेरा रोजाना सेक्स करने का मन करता है, लेकिन काम की वजह से मुझे बाहर जाना पड़ता है. ऐसे में मुझे नींद नहीं आती और लगता है कि किसी भी लड़की के साथ सोऊं. मेरा काम ऐसा है कि बीवी को अपने साथ नहीं रख सकता. कभी मुझे कहीं जाना पड़ता है, तो कभी कहीं. मेरी दिक्कत दूर करें?

जवाब

आप को टूरिंग जौब छोड़ कर ऐसी नौकरी खोजनी चाहिए, जिस में हर रात आप घर पर रह सकें. आप पूरी मेहनत से ऐसी नौकरी की तलाश करेंगे, तो जरूर कामयाब होंगे. तब बीवी का साथ आप को रोजाना मिलेगा.

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55 की उम्न में भी न करें परहेज सेक्स से…

कुछ समय पहले की बात है. एक विख्यात सेक्स विशेषज्ञ को एक महिला का पत्र मिला. लिखा था, मेरे पति 54 साल के हैं. उन्होंने फैसला किया है कि वह अब भविष्य में मुझ से कोई  जिस्मानी संबंध न रखेंगे. उन का कहना है कि उन्होंने कहीं पढ़ा है कि 50 साल बाद वीर्य का निकलना मर्द पर अधिक शारीरिक दबाव डालता है और वह अगर नियमित संभोग में लिप्त रहेगा तो उस की आयु कम रह जाएगी यानी वह वक्त से पहले मर जाएगा. इसलिए उन्होंने सेक्स को पूरी तरह से त्याग दिया है. क्या इस बात में सचाई  है? अगर नहीं, तो आप कृपया उन्हें सही सलाह दें.

मैं आशा करती हूं कि इस में कोई सत्य न हो, क्योंकि यद्यपि मैं 50 की हूं मेरी इच्छाएं अभी बहुत जवान हैं. मैं इस विचार से ही बहुत उदास हो जाती हूं कि अब ताउम्र मुझे सेक्स सुख की प्राप्ति नहीं होगी. मैं ने अपने पति को समझाने की बहुत कोशिश की.

मुझे यकीन है कि वह गलत हैं. लेकिन मेरे पास कोई मेडिकल सुबूत नहीं है, इसलिए वह मेरी बात पर ध्यान नहीं देते.

मुझे विश्वास है कि जहां मैं नाकाम रही वहीं आप कामयाब हो जाएंगे.

यह केवल एक महिला का दुखड़ा नहीं है. अगर सर्वे किया जाए तो 50 से ऊपर की ज्यादातर महिलाएं इसी कहानी को दोहराएंगी और महिलाएं ही क्यों पुरुषों का भी यही हाल है. सेक्स से इस विमुखता के कारण स्पष्ट और जगजाहिर हैं, लेकिन एक बात जिसे मुश्किल से स्वीकार किया जाता है और जो आधुनिक शोध से साबित है, वह यह है कि सेक्स न करने से व्यक्ति जल्दी बूढ़ा हो जाता है और उसे बीमारियां भी घेर लेती हैं. एक 55 साल की महिला से सेक्स के बाद जब उस के प्रेमी ने कहा कि वह जवान लग रही है, तो उस ने आईना देखा. उस ने अपने शरीर में अजीब किस्म की तरंगों को महसूस किया और उसे लगा कि वह अपने जीवन में 20 वर्ष पहले लौट आई है. 50 के बाद सेक्स में दिलचस्पी कम होने की कई वजहें हैं. हालांकि अब वैदिक काल जैसी कट्टरता नहीं है, लेकिन अब भी सोच यही है कि 50 पर गृहस्थ आश्रम खत्म हो जाता है और वानप्रस्थ आश्रम शुरू हो जाता है. इसलिए शायद ही कोई घर बचा हो जिस में यह वाक्य न दोहराया जाता हो : नातीपोते वाले हो गए, अब तुम्हारे खेलने के दिन कहां बाकी हैं. शर्म करो, अब बचपना छोड़ो. बहूबेटे क्या कहेंगे? क्या सोचेंगे कि बूढ़ों को अब भी चैन नहीं है.

दरअसल, भक्तिकाल में जब ब्रह्मचर्य और वीर्य को सुरक्षित रखने पर जो बल दिया गया उस से यह सोच विकसित हो गई कि सेक्स का उद्देश्य आनंदित स्वस्थ और तनावमुक्त रहना नहीं बल्कि केवल उत्पत्ति है. एक बार जब संतान की उत्पत्ति हो जाए तो सेक्स पर विराम लगा देना चाहिए. इस तथाकथित धार्मिक धारणा पर अब तक साइंस का गिलाफ चढ़ाने का प्रयास किया  जाता रहा है. मसलन, हाल ही में ‘योग’ से  संबंधित एक पत्रिका में लिखा था, ‘‘वीर्य में सेक्स हारमोन होते हैं. उन्हें सुरक्षित रखें और सेक्स में लिप्त हो कर उसे बरबाद न करें. यह कीमती हारमोन यदि बचा लिए जाते हैं तो वापस रक्त में चले जाते हैं और शरीर में ताजगी और स्फूर्ति आ जाती है. आधी छटांक वीर्य 40 छटांक रक्त के बराबर होता है, क्योंकि वह इतने ही खून से बनता है. जिस्म से जितनी बार वीर्य निकलता है उतनी ही बार कीमती रासायनिक तत्त्व बरबाद हो जाते हैं, वह तत्त्व जो नर्व व बे्रन टिश्यू के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण  हैं. यही वजह है कि अति उत्तेजक पुरुषों की पत्नियां और वेश्याओं की आयु बहुत कम होती है.

इस पूरे ‘प्रवचन’ के लिए एक ही शब्द है, बकवास. सब से पहली बात तो यह है कि वीर्य में शुक्राणु बड़ी मात्रा में साधारण शकर, सेट्रिक एसिड, एसकोरबिक एसिड, विटामिन सी, बाइकारबोनेट, फासफेट और अन्य पदार्थ होते हैं जो ज्यादातर एंजाइम होते हैं, इन सब का उत्पादन अंडकोशिकाएं, सेमिनल बेसिकल्स और एपिडर्मिस व वसा की डक्ट के जरिए होता है. वीर्य में सेक्स हारमोन होते ही नहीं. यह सारे तत्त्व या पदार्थ जिस्म में खाने की सप्लाई से बनते हैं जोकि एक न खत्म होने वाली प्रक्रिया है. निष्कासित होने से पहले वीर्य सेमिनल वेसिकल्स में स्टोर होता है, अगर इसे निष्कासित नहीं किया गया तो भीगे ख्वाबों से यह अपनेआप हो जाएगा. जाहिर है इस के शरीर में स्टोर होने का अर्थ है कि जिस्म में यह सरकुलेशन का हिस्सा रहा ही नहीं है और न ही ऐसी कोई प्रक्रिया है जिस से वीर्य फिर खून में शामिल हो कर ऊर्जा का हिस्सा बन जाए.

विख्यात वैज्ञानिक डा. इसाडोर रूबिन का कहना है, ‘‘अगर यह धारणा सही होती कि वीर्य के निकलने से या महिला के चरम आनंद प्राप्त करने से जिस्म में कमजोरी आ जाती है और उम्र में कटौती हो जाती है, तो कुंआरों की आयु विवाहितों से ज्यादा होती, क्योंकि अविवाहितों को सेक्स के अवसर कम मिलते हैं. वास्तविकता यह है कि विवाहित व्यक्ति लंबे समय तक जीते हैं.’’

हाल में किए गए शोधों से पता चला है कि अगर कोई व्यक्ति काफी दिन तक सेक्स से दूर रहता है तो कुछ प्रोस्टेटिक फ्लूड सख्त हो कर ग्रंथि में रह जाते हैं. इस से प्रोस्टेट ग्रंथि का आकार बढ़ जाता है और व्यक्ति को पेशाब करने में कठिनाई होने लगती है. इस समस्या पर अगर ध्यान न दिया जाए तो फिर प्रोस्टेट की सर्जरी आवश्यक हो जाती है. 50 के बाद सेक्स से विमुखता का एक अन्य कारण यह है कि जवानी में लोग कसरत पर और अपने जिस्म को सुडौल रखने के लिए खानपान पर अकसर खास ध्यान नहीं  देते. इस से उम्र के साथ उन के शरीर पर फैट जमा होने लगता है जिस से वह मोटे हो जाते हैं. यह जानने के लिए ज्ञानी होना आवश्यक नहीं है कि मोटापा अपनेआप में कई गंभीर बीमारियों की जड़ होता है. व्यक्ति जब बीमार रहेगा तो उस का ध्यान सेक्स की ओर कहां जाएगा, साथ ही पुरुष का जब पेट निकल जाता है और उस का सीना भी औरतों की तरह लटक जाता है तो वह उस मुस्तैदी से सेक्स में लिप्त नहीं हो पाता जैसे वह जवानी में होता था. महिलाओं के बेडौल और मोटे होने से उन में मर्द के लिए पहले जैसा आकर्षण नहीं रह पाता. इसलिए जरूरी है कि उम्र के हर हिस्से में कसरत की जाए और अपना वजन नियंत्रित रखा जाए.

वैसे सेक्स भी अपनेआप में बेहतरीन कसरत है. अन्य फायदों के अलावा इस से मांसपेशियों सुगठित रहती हैं, ब्लड पे्रशर सामान्य और अतिरिक्त फैट कम हो जाता है. गौरतलब है कि पुरुष के गुप्तांग में जोश स्पंजी टिश्यू के छिद्रों में खून के बहाव से आता है. अगर आप के जिस्म पर 1 किलो अतिरिक्त फैट है तो रक्त को 22 मील और ज्यादा सरकुलेट होना पड़ता है. अगर व्यक्ति बहुत मोटा है तो फैट उस के सामान्य सरकुलेशन को और कमजोर कर देता है और खास मौके पर इतना रक्त उपलब्ध नहीं होता कि पूरी तरह से जोश में आ जाए.

दरअसल, खानेपीने का तरीका सामान्य सेहत को ही नहीं सेक्स जीवन को भी प्रभावित करता है. इस में कोई दोराय नहीं कि पतिपत्नी क्योंकि एक ही छत के नीचे रहते हैं इसलिए खाना भी एक सा ही खाते हैं. अगर किसी दंपती के खाने में विटामिन ‘बी’ की कमी है तो इस का उन के जीवन पर जटिल प्रभाव पडे़गा. इस की वजह से पत्नी में अतिरिक्त एस्ट्रोजन (महिला सेक्स हारमोन) आ जाएंगे और उस की सेक्स इच्छाएं बढ़ जाएंगी जबकि पति में इस का उलटा असर होता है. एस्टो्रजन के बढ़ने से उस के एंड्रोजन (पुरुष सेक्स हारमोन) में कमी आ जाती है.

दूसरे शब्दों में, स्थिति यह हो जाएगी कि पत्नी तो ज्यादा प्यार करना चाहेगी, लेकिन पति की इच्छाएं कम हो जाएंगी. इसलिए आवश्यक है कि संतुलित हाई प्रोटीन खुराक ली जाए. साथ ही शराब और सिगरेट की अधिकता से बचा जाए, क्योंकि इन दोनों के सेवन से व्यक्ति वक्त से पहले चरम पर पहुंच जाता है और फिर अतृप्त सा महसूस करता है.

गौरतलब है कि इंटरनेशनल जर्नल आफ सेक्सोलोजी-7 के अनुसार विटामिन और हारमोंस का गहरा रिश्ता है. दर्द भरी माहवारी में राहत के लिए जब टेस्टेस्टेरोन हारमोन दिया जाता है तो उस की अधिक सफलता के लिए साथ ही विटामिन ‘डी’ भी दिया जाता है. इसी तरह से गर्भपात के संभावित खतरे से बचने के लिए प्रोजेस्टरोन हारमोन के साथ विटामिन ‘सी’  दिया जाता है.

50 के बाद सेक्स से विमुखता की एक वजह यह भी है कि दोनों पतिपत्नी बननासंवरना काफी हद तक कम कर देते हैं. अच्छे और आकर्षक कपडे़ पहनने से और बाल अच्छी तरह बनाने से यकीनन महिला का मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है. इस के बावजूद आप को रजोनिवृत्ति से गुजर चुकी ऐसी अनेक महिलाएं मिल जाएंगी जो भद्दे कपडे़ पहनती हैं, ऐसे बाल संवारती हैं जो फैशन में नहीं है. गाल उन के लटक गए होते हैं, ऊपरी होंठ पर बाल होते हैं, स्तन लटके हुए और पेट व कूल्हे फैले हुए होते हैं. ऐसी पत्नियों में भला किस पति की दिलचस्पी बरकरार रहेगी जबकि जरा सी कोशिश से यह सबकुछ बदला जा सकता है. महिलाएं अच्छी डे्रस शाप पर जाएं, सप्ताह में एक बार ब्यूटी पार्लर जाएं, लटकी हुई खाल और मांसपेशियों को सही आकार देने के लिए हैल्थ व ब्यूटी जिम्नेजियम में कोर्स करें और दृढ़ता से तय कर लें कि मांसपेशियों को सख्त रखने के लिए वे रोजाना कुछ मिनट व्यायाम के लिए भी निकालेंगी. यह सौंदर्य उपचार और हलकी कसरत न सिर्फ उन के मनोबल को बेहतर रखेगी बल्कि सख्त जिस्म उन के सेक्सुअल सिस्टम को भी दुरुस्त रखेगा और उन के पति उन की ओर आकर्षित रहेंगे. ज्ञात रहे कि आत्मविश्वास से भरी सुंदर स्त्री जो अपने जिस्म के रखरखाव में भी माहिर हो, वह अपनी ओर एक 16 साल की लड़की से ज्यादा ध्यान आकर्षित करा लेती है.

यहां यह बताना भी आवश्यक होगा कि इसी किस्म का आकर्षण लाने के लिए पुरुषों को भी चाहिए कि वे कसरत करें, ब्यूटी पार्लर जाएं और अच्छे कपडे़ पहनें, साथ ही उन की पत्नी जब रजोनिवृत्ति से गुजर रही हो तो उस का विशेष ध्यान रखें. पत्नी जितना खुल कर अपने पति से बातें कर सकती है उतना वह अपने डाक्टर से भी नहीं कह पाती. इसलिए अगर रजोनिवृत्ति के दौरान पति ने उसे सही से संभाल लिया तो आगे का सेक्स जीवन बेहतर रहेगा.

अब तक जो बहस की गई है उस से स्पष्ट है कि अच्छे, स्वस्थ और लंबे जीवन के लिए 50 के बाद भी सेक्स उतना ही आवश्यक है जितना कि उस से पहले. लेकिन उसे बेहतर बनाए रखने के लिए अपने नजरिए में बदलाव लाना भी जरूरी है और अगर कोई समस्या है तो मनोवैज्ञानिक और डाक्टर से खुल कर बात करने में कोई शर्म नहीं करनी चाहिए.

फिल्मों में आने के बाद TV से टूट गया ‘बागी-3’ की एक्ट्रेस अंकिता लोखंडे का नाता, दिया ये बयान

इन दिनों बौलीवुड में अंकिता लोखंडे की पहचान फिल्म अभिनेत्री के रूप में होती है. अंकिता लोखंडे को फिल्म ‘‘मणिकर्णिका’’ में झलकारी बाई के किरदार में काफी पसंद किया गया था. अब वह साजिद नाडियाडवाला निर्मित और अहमद खान निर्देशित फिल्म ‘‘बागी 3’’ को लेकर काफी उत्साहित हैं. छह मार्च को रिलीज होने वाली इस फिल्म में उनकी जोड़ी रितेश देशमुख के साथ है.

नेटफ्लिक्स और अमेजन का है जमाना…

हाल ही में जब अंकिता लोखंडे से हमारी मुलाकात हुई और हमने उनसे वर्तमान समय में टीवी की स्थिति को लेकर सवाल किया, तो अंकिता लोखंडे ने कहा- ‘‘मुझे आज की तारीख में सच में नहीं पता कि टीवी पर क्या चल रहा है. क्योंकि हम लोग आजकल टीवी देखते ही नहीं है. आजकल जमाना इतना बदल चुका है कि नेटफ्लिक्स और अमेजन के अतिरिक्त लोग कुछ देखते ही नहीं. बिलकुल सच बता रही हूं. मैं सिर्फ बिग बॉस देखती थी. बाकी मुझे नहीं पता.”

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मुझे नहीं पता टीवी पर क्या चल रहा है…

आगे अंकिता कहती हैं- ‘पवित्र रिश्ता’ के वक्त की मेरी कई दोस्त टीवी पर काम कर रही हैं, पर मुझे सच में नहीं पता कि टीवी का क्या दौर चल रहा है? कलाकार तो कलाकार ही होता है. वह आप कभी बदल नहीं सकते. कला तो कला होती है. किसी भी सीरियल को सफल बनाने में किस्मत बहुत मायने रखती है. दूसरा कलाकार का काम के प्रति समर्पण होना चाहिए. मैंने साढ़े छह साल ‘पवित्र रिश्ता’ में अभिनय करते समय सभी को साथ लेकर चली हूं.

 

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लोगों को लगता था मैं एटीट्यूड में रहती हूं…

मेरे साथ के कुछ लोगों को लगता था कि मैं एटीट्यूड में रहती हूं, पर मुझे लगता है कि मैं शिप की कप्तान हूं और मैं अपने साथ लोगों को ले कर चलूं. इसके बिना कोई भी सीरियल लंबे समय तक चल नहीं सकता. सेट पर कई लोग कहते थे कि अब यह सीरियल बंद हो जाए, तो मैं तुरंत कहती थी कि, ‘ऐसा नही कहना चाहिए. इससे आपका घर चल रहा है. फिर भी आपको यह सीरियल नहीं करना है तो मत करो. पर आपके अलावा सेट पर तीन सौ लोग हैं, जिनका घर इससे चलता है.’ यही वजह है कि आज भी प्रोडक्शन के जो छोटे छोटे लोग हैं,राम दादा वगैरह वह भी मुझे ढेर सारा प्यार देते हैं.

 

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सफल होने के बाद तो सब मिलता ही है…

जब छोटे लोगों का प्यार आपको मिलने लगे, तो अंदर से ऐसा लगता है कि हमने कुछ तो कमाया है.मैं मानती हूं कि बड़े लोगों का प्यार तो मिल ही जाता है. सफलता के बाद तो सब मिलता है. लेकिन छोटे लोगों का जब आपको प्यार मिलता है,तब लगता है कि आपने सही सफलता हासिल की है. इन छह सालों में उन्होंने मुझे एक बच्ची की तरह बड़ा किया है. मैं वही सोई हूं, वहीं खड़ी हुई हूं. फिर चाहे बुखार हो, डेंगू हो, मलेरिया हो. मैंने मेहनत की है. उन्होंने मुझे बनाया है.

आज भी बन सकते हैं वैसे शो…

आज भी उस तरह के सीरियल बन सकते हैं पर आपके अंदर सीरियल बनाने के लिए वह जोश और वह पैशन चाहिए. पैशन के बिना तो कुछ नहीं हो सकता है. बिना पैशन के आप अपना घर नहीं बना सकते. अगर सीरियल की बात करें, तो बिल्कुल भी नहीं बना सकते.

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मुझे कचहरी से बचाओ: भाग-3

बस साहब, अब हमें और क्या चाहिए था. मिजाज गद्गद हो गया. अपने पड़ोसी के विनाश के सामने तो मेरे लिए इस से बड़ा सुख कुछ न था. मैं ने जोश में आ कर वकील साहब को 5 हजार रुपए नजर किए और खुशीखुशी घर आ गया. हमारा सारा गम जाता रहा. दूसरे दिन केस ‘मूव’ हो गया.

तारीख पड़ी, हम हाजिर हुए. वकील साहब ने अपने चैंबर में बुलाया. इतने प्रेम से पेश आए कि मन खुश हो गया. आज भी सभ्यता और शिष्टाचार जिंदा है. उन्होंने सूचित किया, ‘‘थोड़ी देर में आप के केस का नंबर आ जाएगा. बहस करनी पड़ेगी, आप फीस जमा कर दीजिए.’’

हमारी घिग्घी बंध गई.

‘‘जी, अभी उसी दिन तो आप को 5 हजार रुपए दिए थे. आप…’’

‘‘कमाल करते हैं आप, वे पैसे तो हम ने केस तैयार करने के लिए लिए थे. केस को तैयार करना पड़ता है. पढ़ना पड़ता है. रातरात भर जागना पड़ता है. अभी केस पर बहस होनी है.’’

हम क्या कर सकते थे. 3 हजार रुपए जमा किए, मानो पुरखों का पिंडदान किया हो. बहस की पूरी तैयारी हो गई थी. सब लोग कोर्ट नंबर 3 में पहुंचे. जज साहब नहीं आए थे. इंतजार होने लगा. थोड़ी देर में घोषणा हुई, ‘जज साहब आज नहीं आएंगे. उन्हें नजला हो गया है. आज छुट्टी पर हैं.’ हम ने वकील साहब की ओर देखा. वकील साहब दूसरी ओर देख रहे थे. बाहर आने पर उन्होंने सूचित किया, ‘‘अगले महीने की 10 तारीख को आइए.’’

उस के बाद चले गए. हम ठगे से वहीं खड़े रहे. हमारे 3 हजार रुपए का बलिदान हो गया, हासिल कुछ नहीं हुआ. मन मार कर वापस आ गए. जितने लोगों से बात होती, सब यही कहते कि मामले को रफादफा करा लो, वरना ये वकील तुम्हें अगले जन्मों तक लड़ाएंगे. हम ने फिर भी अपने मन को कड़ा किया. अब जब मैदान-ए-जंग में आ ही गए हैं तो पीठ नहीं दिखाएंगे, चाहे जो हो जाए. कुछ पैसे जाते हैं तो जाएं. पड़ोसी के सामने झुकें, हरगिज नहीं. जो होगा देखा जाएगा. अगले माह की 10 तारीख को तो आना ही था, आ गई. हम कोर्ट में पहुंचे. तलवार साहब बिलकुल मुस्तैद खड़े थे. उन्होंने सूचित किया, ‘‘आप के केस की पूरी तैयारी कर ली है. इस बार जज साहब भी रहेंगे, पता कर लिया है. बस, एक बहस काफी है. आप के भाईसाहब तो बाहर आ ही जाएंगे. उस के बाद आप के पड़ोसी को भी देखेंगे. आप फीस जमा कर दीजिए. मुंशीजी से मिल लीजिए.’’

हम ने मुंशीजी से मुलाकात की. उन्होंने हमें देखते ही हिनहिनाना शुरू कर दिया, ‘‘आप तो वकील साहब के मित्र हैं. इसलिए हम तो चुप ही रहेंगे. दूसरा कोई होता तो उस से लड़ कर लेते. आप जो फीस दे रहे हैं वह तो वकील साहब के लिए है. हम गरीबों के लिए तो कुछ है ही नहीं.’’

हम ने 1 हजार रुपए वकील साहब के लिए व 500 रुपए मुंशीजी को दिए. कुल 1,500 रुपए का बलिदान हो गया. धड़कते हृदय से हम ने 3 नंबर कोर्ट में प्रवेश किया. जज साहब भी आ गए. हमारे केस का नंबर भी आ गया. सरकारी वकील उठा. गला साफ कर के बड़े ही नाटकीय अंदाज में बोला, ‘‘हुजूर, माफ किया जाए. हमारे पास यह केस आज ही पहुंचा है. हम ने इसे पढ़ा नहीं है. अगली तारीख पर पढ़ कर आने का वादा करता हूं.’’

उस के बाद जज साहब ने एक मजाक किया. सब लोग हंसने लगे. हमारी जड़बुद्धि में कुछ नहीं आया. हमारे वकील साहब ने बाहर रुकने को कहा. दूसरे केस देखने लगे. हम रुके रहे. बाहर आते ही वकील साहब बोले, ‘‘यह जब तक खाएगा नहीं, तब तक गाएगा नहीं. बड़ा ही घाघ किस्म का आदमी है. एक नंबर का खाऊ है, खाऊ. आप एक काम कीजिए, उस के लिए भी कुछ दानदक्षिणा छोड़ दीजिए. मुंशीजी समझा देंगे.’’

हमारी चेतना थोड़ी देर के लिए लुप्त सी हो गई. वकील साहब चले गए. हम क्या करते. गरदन फंस गई थी. न निकालते बन रही थी न…लाचार हो कर हम ने वकील साहब की शर्तें पूरी कीं. रोतेबिलखते घर आए. एक सरकारी मास्टर जो तनख्वाह के रुपए पर जीता है उस की दशा का अंदाजा कोई वेतनभोगी ही समझ सकता है. यह तो रही हमारी हालत.

हमारे पास पैसे आते तो थे. वहां तो हम ने यह सीन भी देखा कि फटापुराना, जर्जर मुवक्किल है और वकील साहब उस को हलाल कर रहे हैं. वह रो रहा है, गिड़गिड़ा रहा है, मगर वकील साहब पूरी फीस ले कर ही छोड़ते हैं. बहस हो चाहे नहीं हो.

खैर, अगली तारीख की जानकारी हमें फोन से दी गई. वकील साहब बोले, ‘‘अगले महीने की 5 तारीख को ‘डेट’ है. आप आना चाहें तो आ जाएं. हम आप की पीड़ा समझते हैं लेकिन क्या करें. हम जिस माहौल में जी रहे हैं उस में एक मध्यवर्गीय आदमी की यही पीड़ा है, इसलिए मार्क्स इसे द्वंद्वात्मक भौतिकवाद कहता था. ये साहब माओत्से तुंग का आदर्शवाद है कि…’’

हम ने अपना मोबाइल औफ कर लिया. ये बातें अब हमारी समझ में भी आ गई थीं. जेल में आते तो भाईसाहब का चेहरा देख कर फिर से लड़ने का हौसला आ जाता.

अगली तारीख भी आ ही गई. हम ने जाने का ही निश्चय किया. फीस फिर जमा करनी थी वरना वकील साहब ही बीमार हो जाते. मन को मनाना मुश्किल काम है. सबकुछ ठीकठाक चला. बहस भी हुई. हमारे वकील साहब बोले भी. सरकारी वकील ने पैसे की लाज रखी. चुप रहा. जज साहब बोले, ‘‘केस की डायरी मंगा लीजिए.’’

कुल 5 शब्द बोल कर दूसरा केस देखने लगे. हमारे 1 हजार रुपए फिर बलिवेदी पर चढ़ गए. अब हमारा मन बगावत करने लगा था. हम ने अपने वकील साहब से जानना चाहा कि

ये डायरी क्या बला है. उन्होंने  सविस्तार समझाया और अंत में अत्यंत दुखी मन से बोले,  ‘‘मुंशीजी से समझ लीजिए.’’

इस वाक्य का अर्थ हमारी समझ में आ गया था. हम मुंशीजी की शरण में पहुंचे और बिना कुछ कहे डायरी मंगाने के 1 हजार रुपए रख दिए. अगली तारीख बता दी गई. 2 महीने के बाद,

8 तारीख को. बारबार स्कूल से छुट्टी लेने का मतलब हमारे प्राचार्य ने हमारा नाम उन बांकुरों में शामिल कर लिया जो सरकार से पैसा ले कर अपना काम करते हैं. हम अपनी जगह मजबूर थे, प्राचार्य अपनी जगह. इसी मजबूरी के आलम में बुजुर्गवार ने हमें सलाह दी कि केस वकील नहीं लड़ते, केस लड़ते हैं मुवक्किल. आप किसी पुराने केसबाज से सलाह लीजिए. आप को बाहर निकलने का रास्ता बताएगा.

यों तो उन्होंने भी इस क्षेत्र में काफी नाम कमाया था. अपनी कुल जमीन बेच कर लड़ गए थे. हम ने सोचा गुरु की तलाश में कहीं सारी उम्र न निकल जाए. इसलिए उन्हीं से ज्ञान की याचना की. उन्होंने केस की पूरी कहानी सुनने के बाद बताया कि पड़ोसी से मिलो. अगर वह समझौता करने के लिए तैयार हो जाए तो मामला खत्म. समझौते की कौपी लगेगी. बस हो गई बेल.

हम ने जिज्ञासु छात्र की तरह पूछा कि आखिर हमारा पड़ोसी अपने धर्म का त्याग कर हमारे साथ समझौता क्यों करेगा? उन्होंने गुरुसुलभ ठहाका लगाया और बोले, ‘‘आप को लगता है कि आप का पड़ोसी परेशान नहीं होगा. साहब, उस को भी इसी तरह लूट रहे होंगे. दोनों वकील आपस में मिल गए होंगे. आप को भी मिलने का संदेश दे रहे हैं. ‘कायर मत बन अर्जुन युद्ध कर’ यह संदेश वकील लोग सब को देते हैं. आप लड़ेंगे तभी तो ये बनेंगे. दुनिया से यदि लड़ाईझगड़े बंद हो जाएं तो समझदार लोग कहां जाएंगे.’’

अब हमारी समझ में आ गया कि कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान कुरुक्षेत्र के मैदान में क्यों दिया था. खैर साहब, हम भागते हुए अपने पड़ोसी के पास गए, आखिर वे हमारे चाचा थे.

‘‘चाचाजी, हमें ये वकील लोग लूट लेंगे. आप हम पर दया कीजिए. आप अपना गुस्सा हम पर उतार लीजिए. हमारे सिर पर 400 जूते मार लीजिए. यदि हमारा सिर हिल जाए तो 400 और लगा लीजिए, मगर समझौता कर लीजिए. आप हमारे पिताजी के भाई हैं. हमारे लिए तो पिताजी की तरह ही हैं.’’

चाचाजी पिघल गए. उन्होंने हमारा कंधा सहलाया और बोले, ‘‘चाहता तो मैं भी यही था लेकिन डर था कि तुम लोग नहीं मानोगे. खेतखलिहान अपनी जगह पर हैं. चलो, कल ही समझौता लगा देंगे.’’

समझौता हुआ. उस की कौपी लगी. भाईसाहब बाहर आ गए. हम ने तय किया कि आज के बाद हम कचहरी के नाम से परहेज करेंगे. चार जूते खा कर भी अगर शांति से रह सके तो रहेंगे लेकिन कचहरी से बचेंगे.

मुझे कचहरी से बचाओ: भाग-2

जापानी टौर्च, चीनी खिलौने, नाना प्रकार की घडि़यां, कैमरे और न जाने क्याक्या, कानून की नाक के ऐन नीचे पूरे ठाट से बिक रहे थे. पुलिस प्रशासन के प्रति हमारी श्रद्धा उमड़ी. ‘ऐसे कोउ उदार जग माहीं’? पुलिस यदि इन गरीबों को पकड़ ले तो बेचारे क्या करेंगे? इन की रोजीरोटी का कितना खयाल रखती है, बदले में ये लोग भी तो रखते हैं. परस्पर प्यार और भाईचारा ही तो हमारे देश की पहचान है.

सामान देखते हुए हम भीड़ में जा निकले. गवाहों की खरीदफरोख्त चल रही थी. गवाह 3 हजार रुपए मांग रहा था. खूनी की हैसियत वाला आदमी उसे 1 हजार रुपए देने के लिए तैयार था. ‘इंसानियत’, ‘सामाजिकता’, ‘ईमान’, ‘धर्म’ जैसे शब्दों का प्रयोग दोनों ओर के लोग कर रहे थे. हमारे रुकने का एक कारण यह भी था. पुलिस के लोग भी थे. दोनों पक्ष के लोग खूब मुसकरा रहे थे. बड़ा ही सौहार्दपूर्ण वातावरण था. मामला जब 1500 में निबट गया तो हम वहां से खिसक लिए.

आगे पेशेवर जमानतदारों का बाजार था. 3 लोग मजे से प्रैक्टिस पर थे. 5 हजार की जमानत के 500, 10 हजार की जमानत के 1 हजार. हमारा मन श्रद्धा से झुक गया. मान लो किसी का जानने वाला इस शहर में नहीं हो तो वह गवाह और जमानतदार कहां से लाएगा? अब कम से कम इस बात की गारंटी तो है कि रुपए हों तो किसी चीज की कमी नहीं है. ‘सकल पदारथ है जग माहीं…’ तुलसी बाबा को प्रणाम कर के हम आगे बढ़े.

एक जमानतदार से हम ने गुजारिश की, ‘‘कमाई हो जाती है?’’

बदले में बेचारे ने मुंह लटका कर कहा, ‘‘कहां साहब, बस गुजारा चल जाता है. मेरे चाचा की दिल्ली में प्रैक्टिस है. बहुत अच्छी कमाई होती है. हम तो अपनी खेतीकिसानी के चक्कर में फंसे हैं वरना अच्छी प्रैक्टिस के लिए तो महानगरों में ही जाना अच्छा है. वहां बड़ेबड़े लोग आते हैं, अच्छी कमाई हो जाती है.’’

‘‘लेकिन अगर कोई बदमाश भाग गया तो पुलिस वाले आप को पकड़ेंगे.’’

‘‘कहां से पकड़ेंगे? हमारे जो राशनकार्ड और मतदाता पहचानपत्र हैं, सब नकली हैं. ये जो जमीन के कागजात आप देख रहे हैं, ऐसी जगह कहां है, हमें नहीं पता. सारी चीजें यहीं बन जाती हैं कोर्ट कैंपस में ही.’’

हम उस के ज्ञान की सीमा के आगे नतमस्तक हुए. भारत अनेकता में एकता का देश क्यों कहलाता है इस का एक प्रत्यक्ष उदाहरण मिला. इतनी लीलाओं के चश्मदीद गवाह बनने के कारण 2 बज गए. तब तक हम 8 कप चाय और

10 समोसे खा चुके थे. चाय और समोसों की विशेषताओं का वर्णन करें तो अलग से एक पोथा भर जाएगा. 3 बजे हमारा पतन हो गया. हम चाय वाले की बैंच पर ही निढाल से जा गिरे. चाय वाले ने हमें देखा और एक मुसकराहट फेंकी.

4 बजे हमारे अंदर नई चेतना जगी. चेतना को ले कर चैतन्य होते कि अचानक शोर मचा.

‘‘भाग गया, भाग गया.’’

पुलिस वाले दौड़ने लगे. लोग भागने लगे. हमारा चायवाला इन परिस्थितियों में भी निश्छल भाव से मुसकरा रहा था. हम ने अत्यंत विनम्रतापूर्वक इस अफरातफरी का कारण जानना चाहा उस ने तो बड़े आत्मविश्वास से सूचित किया.

‘‘एक कैदी भाग गया है.’’

थोड़ी देर के बाद उस ने आकाशवाणी सी की, ‘‘यह काम उस के वकील का है. वकीलों का काम ही यही है. अपने क्लाइंट की हर संभव मदद करते हैं. उन के लिए असंभव कुछ है भी नहीं. उन की बड़ी धाक है इस कचहरी में.’’

हम पुलकित हुए. कितने महानमहान वकील हैं इस दुनिया में. अंदर वालों की भी सेवा और बाहर वालों की भी. ‘मेरा भारत महान’ ऐसे ही नहीं कहते. अभी हमारा चिंतन आगे बढ़ता कि तलवार साहब आते दिखे. आते ही बोले, ‘‘आज आप का काम नहीं हो सकेगा. आप कल आइए.’’

हम ने सहमते हुए निवेदन किया, ‘‘जी, मैं रोज नहीं आ सकता. विद्यालय से और छुट्टी लेना इतना आसान नहीं है.’’

‘‘ठीक है, फिर आप मुंशीजी से समझ लीजिए.’’

हम मुंशीजी की शरण में पहुंचे. मुंशी नामधारी जीव कचहरी का आदिम प्राणी है. जब कचहरी नहीं थी तब भी मुंशी था. कचहरी नहीं रहेगी तब भी मुंशी रहेगा. वकीलों के प्राण इसी तोतारूपी मुंशी में कैद रहते हैं. यह एक ऐसा जीव है जिस के पास सोचने की क्षमता तो बहुत होती है मगर समझने की नहीं. वह केवल अपनी ही बात समझ सकता है, नहीं तो पैसे की बात समझता है.

हम ने उस से समझने की कोशिश की. समझातेसमझाते उस ने 500 रुपए रखवा लिए. अब हम जिंदगी की नाना प्रकार की चिंताओं से मुक्त हो गए. हमारा एक ही काम था. मुंशीजी को फोन करना. वे कभी कल नहीं कहते, केवल आज कहते. हमारी उन की अच्छी जानपहचान बन गई लेकिन एफआईआर की नकल नहीं निकली.

आखिर 1 मास के उपरांत हमें नकल मिल गई. हम युरेकायुरेका कह कर थोड़ा नाचे. शाम को तलवार साहब का फोन आया, ‘‘कहां हैं साहब, आप के दर्शन ही नहीं हो रहे. आइए, चाय पीते हैं.’’

हम उन के घर पहुंचे. इलायची वाली चाय पेश की गई. हमारी आवभगत हो रही थी लेकिन पता नहीं क्यों हमारे दिल की धड़कन थम ही नहीं रही थी. हम चौकन्ने हो रहे थे. आखिरकार, इंतजार खत्म हुआ. वकील साहब बोले, ‘‘आप का केस पढ़ लिया है. ऐसा तगड़ा डिफैंस तैयार करेंगे कि भाईसाहब एक ही बहस में बाहर आ जाएंगे. साहब, यह भी कोई बात हुई कि जो आदमी सीन में मौजूद ही नहीं हो उस के खिलाफ केस दायर हो जाए. हम तो दारोगा को भी घसीटेंगे. कब तक चुप रहेंगे हम लोग?’’

हमारे अंदर जिस कुंठा ने जन्म ले लिया था उस का अंत हो गया. एक नया जोश भर गया.

‘‘हम तो कहते हैं कि आप के पड़ोसी को भी किसी न किसी मामले में यहां घसीट लाएंगे. आखिर उसे भी तो सबक मिलना चाहिए कि आप क्या चीज हैं. चला है आप से टकराने. उसे पता नहीं है कि आप क्या चीज हैं. हम जो आप के साथ हैं. इस बार बच्चू को ऐसा सबक सिखा दीजिए कि फिर कभी आप की ओर देखने का साहस ही न करे. कहते हैं न कि क्षमा शोभती उस भुजंग को जिस के पास गरल हो.’’

आगे पढें- अपने पड़ोसी के विनाश के सामने तो मेरे लिए इस से…

मुझे कचहरी से बचाओ: भाग-1

घरेलू झगड़ा कचहरी तक पहुंचा तो मास्टरजी भी तमाम जमापूंजी ले कर चल दिए मुकदमेबाजी करने ‘काले कोट’ वालों की दुनिया में. लेकिन मास्टरजी को कहां पता था कि यहां तो बिल्लियों की लड़ाई में बंदरों की मौज मनती है. फिलहाल, मास्टरजी की मनोदशा यह है कि चार जूते मार लो लेकिन कम्बख्त कचहरी से बचा लो.

अनेक धर्मों की तरह पड़ोसी का भी अपना एक धर्म है. जागरूक पड़ोसी वे कहलाते हैं जो न तो खुद चैन से रहते हैं न पड़ोसी को चैन से रहने देते हैं. संयोग से हमारे पड़ोसी में ये सारे गुण इफरात से मौजूद हैं. हमारी नजर में वे आदर्श पड़ोसी हैं, उन की नजर में हम.

एक बार जमीनजायदाद को ले कर हम दोनों के बीच लाठियां तन गईं. हम दूसरों की लात सह सकते हैं लेकिन पड़ोसी की बात नहीं. हमारे भाईसाहब बचपन से ही अच्छे निशानेबाज रहे हैं, सो उन्होंने एकदो लाठियां जड़ दीं. मामला थाने में गया. थानेदार साहब ने गीता पढ़ी थी. उन को पता था कि जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, आगे और भी अच्छा होगा. उन्होंने हमें बुला कर समझाया, ‘‘देखिए मास्टर साहब, आप भले आदमी हैं, इसलिए कह रहा हूं कि मामले को रफादफा कर लीजिए. कोर्टकचहरी का चक्कर बहुत खराब होता है. आप अपने भाईसाहब को कहीं भी छिपाएंगे, पुलिस खोज ही लेगी. आप तो जानते ही हैं कि कानून के हाथ कितने लंबे होते हैं,’’ उन्होंने हाथ को फैला कर दिखाया. हमें यकीन हो गया कि कानून के हाथ दारोगाजी के हाथ की तरह ही लंबे होते होंगे. हम ने अपनी मजबूरी और ईमानदारी एकसाथ दिखाने की कोशिश की.

‘‘सर, जिस दिन मारपीट हुई उस दिन हमारे भाईसाहब घर पर नहीं थे. उन का कोई हाथ नहीं है.’’

‘‘देखिए साहब, यह बात तो हम अच्छी तरह जानते हैं कि उन का हाथ नहीं है मगर नाम दर्ज है. इसलिए गिरफ्तार करना ही पड़ेगा. जब हम गिरफ्तार करेंगे तो जेल भी भेजना पड़ेगा. जेल की बात तो आप जानते ही हैं. एक बार गए तो चोरउचक्कों की सोहबत. गीता में कहा गया है कि कायर मत बन अर्जुन. जो देना है लेदे कर मामला निबटा लेने में ही भलाई है, बाकी आप की मरजी.’’

शांतिवार्त्ताएं होने लगीं. मोलतोल होने लगे लेकिन मामला सुलझा नहीं. दारोगाजी के पास गीता का ज्ञान था. हर काम को प्रकृति की इच्छा मानते थे. कर्तव्य कर रहे थे लेकिन फल की इच्छा नहीं रखते थे. उन का फल हमारे बूते से बाहर था.

आखिरकार हमारे भाईसाहब जेल की शोभा बढ़ाने के लिए प्रस्थान कर गए. अब शुरू हुआ नाटक का दूसरा भाग. ‘जेल से बेल’ शीर्षक से.

मेरे एक मित्र थे, बी के तलवार. वकालत उन का पेशा था. पार्टटाइम कवि भी थे. कविता से पब्लिक में घुसने का मौका मिल जाता था. वे अपने को प्रगतिशील भी मानते थे. मानते ही नहीं थे बल्कि समाज सुधार के दावे भी करते थे. हम से जब भी मिलते, इतना जरूर कहते कि मास्टर ही सच्चे समाजसुधारक होते हैं. आप को नमन करने का मन करता है. हम ने सोचा, इतना प्रगतिशील कवि है तो वकील भी उतना ‘डाकू’ नहीं होगा.

एक दिन सुबहसुबह हम उन के आवास पर जा पहुंचे. उन्होंने बड़ा भव्य स्वागत किया. बातों से इतनी आवभगत की कि मन खुश हो गया. अंत में हम ने काम की बात की. उन्होंने सपाट लहजे में कहा, ‘‘कचहरी आ जाइएगा. एफआईआर की नकल निकालनी होगी. उस का अध्ययन करने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है. मेरा चैंबर पता है न आप को. जिला जज के सामने वाले हौल में.’’

हम ने फीस के बारे में पूछना मुनासिब नहीं समझा. अपने मित्र हैं, जो लेंगे देखा जाएगा.

हम कचहरी में पहुंचे. चारों ओर काले कोट वालों का साम्राज्य, या तो फटेपुराने कपड़ों में मुवक्किल या वरदी में पुलिस वाले. कारें, साइकिलें, मोटर वाली भी और बिना मोटर वाली भी.

नाना प्रकार के वाहन और नाना प्रकार के लोग. हम ने भी अभिमन्यु वाली वीरता से भीड़ को चीरना शुरू किया और पूछतेपाछते जा पहुंचे तलवार साहब के टेबल तक. अपने जूनियरों से घिरे वे भगवान विष्णु की तरह मुसकरा रहे थे. हमें देख कर एकदम से ठहाके लगा कर हंसे, बोले, ‘‘ऐसी जगह है मास्टर साहब कि यहां राजा और रंक, शरीफ और बदमाश, अनपढ़ और पढ़ेलिखे सब आते हैं. यह मंदिर है न्याय का. आप को भी न्याय मिलेगा. बस, जरा प्रसाद चढ़ाना पड़ता है.’’

फिर ठहाका. हम ने भी मुसकराने की कोशिश की. असफल रहे. पहली बार कचहरी में जाने का मौका मिला था. हम अपने को नर्वस महसूस कर रहे थे. यह भी डर था कि कोई जानपहचान का आदमी देख न ले. उन्होंने हमारी अवस्था का अंदाजा लगाया और अपने एक जूनियर से बोले, ‘‘देखो, ये हमारे मित्र हैं. इन का केस नंबर ले लो और जा कर केस की नकल ले आओ. ये कहीं नहीं जाएंगे, बुद्धिजीवी आदमी हैं. तुम जाओ. सिंहजी, आप इस को 500 रुपए दे दीजिए. यहां तो चारों ओर लूट मची हुई है. कहांकहां से रक्षा होगी.’’

हम ने भी साथ में चलने की इल्तिजा की और साथ हो लिए. रिकौर्ड रूम का किरानी, जो शायद पिछले कुंभ के समय आखिरी बार मुसकराया था, बहुत व्यस्त था. सरकार को गालियां दिए जा रहा था जिस की वजह से एक दिन का चैन भी नसीब नहीं होता. जूनियर महोदय की कृपा से थोड़ा मुसकराया लेकिन जल्दी ही गंभीर हो कर बोला, ‘‘शाम के 4 बजे आइए.’’

शाम के 4 बजे का अर्थ हमारा नादान हृदय समझ नहीं सका. हम कचहरी के अहाते में ही आहत से घूमघूम कर समय काटने लगे. जल्दी ही हमारी समझ में आने लगा कि 4 किस समय बजते हैं. समय काटना इतना आसान काम नहीं है. यह भी एक कला है जो दूसरी कलाओं की तरह सब को नहीं आती. दुनिया के सारे निठल्लों को नमस्कार कर के हम ने भालू का नाच देखने का मन बनाया.

मदारी की कला देख कर हमें तसल्ली हुई कि देश से अभी हाथ की सफाई खत्म नहीं हुई है. मदारी जब भालू को ले कर चला गया तो हम उदास मन से सड़क के किनारे बिक रहे चाइनीज सामानों की ओर मुखातिब हुए.

आगे पढ़ें- पुलिस प्रशासन के प्रति हमारी श्रद्धा उमड़ी…

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