अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत आ गए हैं और जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी के कार्यकाल में होता रहा है कि हर कार्यक्रम को “एक वृहद इवेंट” बना दिया जाता है. डोनाल्ड ट्रंप के भारत आगमन को भी वैसे ही रंग दिया गया है. जैसे कि हमारे प्रधानमंत्री मोदी की शैली है. मोदी चाहते हैं हर चीज बड़े पैमाने पर हो, यही कारण है कि डोनाल्ड ट्रंप का भारत आगमन भारत की आवाम पर 100 करोड़ से अधिक बेशकीमती रुपए की होली साबित हो चुका  है.

विगत 70 वर्षों में जाने कितने दिग्गज, देश दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों का भारत आगमन हुआ. मगर जैसा बेतहाशा अपव्यय  करोड़ों रुपयों का डोनाल्ड ट्रंप के आगमन पर दिखाई दे रहा है, वैसा कभी नहीं हुआ था. यह एक चिंता का विषय है. अतिथियों का सम्मान होना चाहिए, लेकिन उसमें अतिरेक व अपव्यय  आज बेहद दुखद और चिंता का सबब है.

इसकी वजह है भारत का एक विकासशील देश होना, हमारे देश का आम आदमी बड़ी मेहनत से धन अर्जित करता है और जब वह पैसा सरकार के पास जाता है तो सरकार का दायित्व है उस पैसे का सदुपयोग करना. इसी तरह उद्योगपति जो धन टैक्स के रूप में देते हैं उसका वितरण राष्ट्रहित में समृद्धि के लिए होना चाहिए ना कि दिखावे  के लिए.

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जब नरेंद्र मोदी महात्मा गांधी की बात करते हैं, गांधी को उन्होंने आत्मसात किया है तो फिर यह गलतियां क्यों हो रही है? महात्मा गांधी  तो दिखावे के सख्त खिलाफ थे. क्या आज हमारे  प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की कथनी और करनी में अंतर नहीं  है? अगर है तो यह भी दुखद है और देश  के  लिए  चिंता का सबब भी है. आज हम कुछ प्रश्न आपके सामने रखने का प्रयास कर रहे हैं, आप स्वयं तय करें कि अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा और भारत के रुपयों  को उल्लास की तरह उड़ाना कितना समीचीन है-

हमारे न्यूज़ चैनल तो धन्य है!

भारतीय मीडिया के दो पक्ष है. एक है प्रिंट और दूसरा इलेक्ट्रॉनिक. निसंदेह प्रिंट मीडिया अपनी सीमा में रहकर देश को दिशा और जागरूक बनाने का काम करता रहा है. मगर हमारा इलेक्ट्रौनिक मीडिया बारंबार दिशा से भटक जाता है यही स्थिति दुनिया के सबसे बड़े ताकतवर राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति के भारत आगमन के दरमियान भी दिखाई दे रही है. जैसी प्रस्तुति इलेक्ट्रॉनिक चैनलों  की है उस संदर्भ में कहा जा सकता है कि “हमने कहा था, तेल लगाने के लिए, तो न्यूज़ चैनल मक्खन लगाने लगे” ट्रंप की भारत यात्रा, गुजरात, आगरा और दिल्ली की है इधर  टीवी चैनलों के संवाददाता चीख चीख कर बता रहे हैं कि किस दीवार पर कौन सा रंग लगा और कैसा चित्र बनाया गया. क्या यही सब पत्रकारिता का सामाजिक सरोकार है?

जगह-जगह मोदी और ट्रंप की दोस्ती उकेरी गई.  दूसरी तरफ व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने कहा कि ट्रंप भातर में सीएए और एनआरसी पर भी चर्चा करेंगे. भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और समानता पर हाल ही में घटित घटनाओं से अमेरिका चिंतित है. अगरचे,  डोनाल्ड ट्रंप ने  इस पर  कुछ विपरीत कह दिया तो प्रधानमंत्री  के नाते मोदी को ना उबलते उगलते बनेगा ना निगलते, यह भी याद रखना चाहिए कि  डोनाल्ड ट्रंप कभी भी कुछ भी कह देते हैं जिस पर अक्सर प्रश्नचिन्ह लग जाता है. इसके पहले ट्रंप बयान दे चुके हैं कि अमेरिका के साथ भारत का व्यवहार अच्छा नहीं रहा है.

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डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा: करोड़ों रुपए की होली 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत आने और उल्लास से भरे स्वागत के निचोड़ के रूप में हम पूछ सकते हैं कि भारत को क्या मिलेगा? सार तथ्य है कि कोई बड़ी “ट्रैड डील” भी इस यात्रा में संभव नहीं. ट्रंप अमेरिका में दिए अपने बयानों में कई बार उल्लेख करते हैं की भारत यात्रा के दरमियान 7000000 से लेकर एक करोड़ तक जनता उनके स्वागत के लिए खड़ी रहेगी. 100 करोड़ से अधिक की राशि उनकी इस यात्रा पर भारत सरकार खर्च कर रही है.

अमेरिका में पिछले बार संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव में, ट्रंप पर यह आरोप लगा था की उन्होंने अमेरिकी मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए रूस का सहारा लिया था. उन पर इसी आरोप को लेकर महाभियोग भी अमेरिकी संसद में चलाया गया था. ट्रंप को मालूम है की भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक डेमोक्रेट्स को ही वोट देते हैं. पिछली बार भारतीय मूल के 40% मतदाताओं ने डेमोक्रेट्स को वोट दिया था.

इधर भारत में मोदी दिल्ली चुनाव मैं हुई करारी हार से अत्यधिक आहत है. ऐसे में यह कहा जा सकता है की आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ट्रंप की इस यात्रा मे सकारात्मकता ढूंढ रहे हैं. और इसी तरह ट्रंप महाभियोग के आरोपों से विचलित तथा भारतीय मूल के मतदाताओं का वोट बटोरने के लिए, यह यात्रा कर रहे हैं.

पर सवाल अभी भी अनुत्तरित है की इतने सरकारी खर्च से भारत या उसके नागरिकों को क्या हासिल होगा? सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है  डोनाल्ड ट्रंप का साबरमती आश्रम जाना. महात्मा गांधी ने दुनिया को सत्य अहिंसा और एक  “सादगी” का मार्ग दिखाया था और अगर आप महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने जा रहे हैं नमन करते हैं तो फिर करोड़ों रूपए की होली क्यों. और हां! अगर यह कार्यक्रम, इवेंट “नमस्ते ट्रंप” की जगह “नमस्ते भारत” होता तो देश का सम्मान  बढ़ता.

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