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कोरोनावायरस से संक्रमित हुईं नताशा सूरी, नहीं करेंगी वेब सीरीज “डेंजरस” का प्रमोशन 

पूर्व वर्ल्ड मिस इंडिया और अभिनेत्री नताशा सूरी भी कोरोनावायरस से संक्रमित हो गई हैं. इस वजह से वह अपने घर में क्वॉरेंटाइन की गई हैं. नताशा सुरी का दावा है कि उनकी बहन और उनकी दादी का भी कोरोना वायरस जांच हुई है. पर अभी तक रिपोर्ट नहीं आई है. लेकिन परिवार को संक्रमित होने से बचाने के मकसद से नतिशा सूरी ने खुद को क्वॉरेंटाइन कर लिया है  और दवाई लेने के साथ-साथ काढ़ा आदि पी रही हैं.

 

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नताशा सुरी ने  बताया है कि वह बीच में कुछ काम से मुंबई से पुणे  गई थी और वहीं पर उन्हें बुखार आया. 3 अगस्त को वह मुंबई लौटी तो उन्हें बुखार और खांसी दोनों आनी शुरू हो गई. इस इस पर उन्होंने अपना कोरोनावायरस  की जांच करवाया, जोकि पॉजिटिव आया है .नताशा सुरी ने पॉजिटिव आने के बाद  खुद को अपने घर में ही क्वॉरेंटाइन कर लिया और अपनी दादी और अपनी बहन का भी कोरोनावायरस की जांच करवायी है, जिसकी रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है.
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?And here it is!!! Our labour of love!❤️Sharing with you the trailer of ‘Dangerous’ releasing on 14th Aug 2020′ on MX Player. So thrilled to share screen space with the ever so gorgeous @bipashabasu whose beauty I have always admired, with @iamksgofficial who is a wonderful co-star. I am grateful to one of the most generous, noble and large hearted human beings ie our producer @mikasingh ji for believing in me and giving me this opportunity in his maiden venture!! Excited to be a part of the super ingenious man @vikrampbhatt ‘s production under the direction of the very creative taskmaster @bhushanpatel and a shout-out to my amazing co-actors @nitinaroraofficial @isonaliraut and @suyyashrai @rajdeepchoudhurys who made the entire filming experience in London full of smiles!! Special thanks to #MohanNadaarji and @vikramkhakhar for his invaluable support to the project. Cheers to #NarenGedia on his fab cinematography. And to @rahul_p_mehra for smilingly always doing his duty towards the project. And above all, I dedicate this project/endeavour to my late Mother who is my backbone and lifeline till eternity. Everything good, every opportunity that has come my way in life, has really been because of her love and blessing!!!❤️ #NatashaSuri #Dangerous #MXPlayer

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नताशा सूरी ने ” एम एक्स प्लेयर” पर 14 अगस्त को प्रसारित होने वाली वेब सीरीज “डेंजरस” में बिपाशा बसु के साथ अभिनय किया है और इन दिनों “डेंजरस” के प्रमोशन किए जा रहे हैं. मगर नताशा सूरी ने साफ साफ मना कर दिया है कि वह “डेंजरस” का प्रमोशन नहीं कर पाएंगी.

सोयाबीन चंक्स से बनाएं ये 5 चटपटी डिश

सोयाबीन अत्यंत पौष्टिक व स्वास्थ्यवर्धक आहार है. इस में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होता है. इस के अलावा इस में फाइबर, कैल्शियम, आयरन व कार्बोहाइड्रेट भी पाया जाता है. इस के नियमित सेवन से व्यक्ति दिनभर चुस्तदुरुस्त रहता है. सोयाबीन के आटे को गेहूं के आटे में मिला कर चपाती के रूप में, सब्जी के रूप में, और यहां तक कि मिठाइयों के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

स्टफ टोमैटो

सामग्री :
4 टमाटर, 1/2 कप सोयाबीन चंक्स, 1/2  कप पनीर कसा, 1/2  चम्मच जीरा, 1/2  चम्मच चाट मसाला, 1/2  चम्मच नमक, 1/2 चम्मच लाल मिर्च, 1/2 चम्मच गरममसाला. 1 कप टोमैटो प्यूरी, 2 बड़े उबले, पिसे प्याज, 1 चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट, 2 चम्मच मगजकाजू पेस्ट. थोड़ा सा कटा धनिया, आवश्यकतानुसार तेल.

विधि:
टमाटरों को बीच से काट कर बीज निकाल दें. अब एक पैन में 1 चम्मच घी गरम करें. जीरा डाल कर हरी मिर्च और कसा पनीर डालें. पकने पर सोयाबीन चंक्स, नमक और कटा धनिया मिलाएं. इस मिश्रण को टमाटरों में भरें.
एक अन्य पैन में 2 चम्मच तेल गरम करें. जीरा डालें. उबला प्याज डाल कर तेल छोड़ने तक भूनें. फिर टमाटर की प्यूरी, अदरक लहसुन पेस्ट, मगजकाजू पेस्ट व मसाले मिलाएं व भूनें. थोड़ा पानी डाल कर ग्रेवी का गाढ़ापन ठीक करें. परोसते समय टमाटरों को ओ?वन में 10 मिनट के लिए गरम करें. गरम ग्रेवी को सर्विंग डिश में पलटें, ऊपर गरम टमाटर सजाएं. धनिया व अदरक के लच्छों से सजा कर परोसें.

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पोटैटो पैन केक

सामग्री:
1 कप सूजी, 1 कप कसे आलू, 1/2  कप सोयाबीन चंक्स (छोटे), 1/2 कप उबले मटर, कटा धनिया व हरी मिर्च, नमक स्वादानुसार, 11/2  कप गाढ़ा दही.

विधि:
सूजी में नमक व दही मिला कर अच्छी तरह फेंटें. 1 घंटा सूजी फूलने दें. मिश्रण यदि अधिक गाढ़ा लगे तो थोड़ा पानी मिला कर फेंटें. एक नौनस्टिक पैन में थोड़ा तेल डाल कर एक कलछी घोल मोटामोटा फैलाएं. इस पर आलू लच्छा, मटर व थोड़े से सोया चंक्स फैलाएं. ऊपर धनिया बुरकें. दोनों तरफ से अच्छी तरह सेंक लें. नारियल की चटनी व सौस के साथ परोसें.

कौर्न कप

सामग्री:
1 कप स्वीट कौर्न, 1/2 कप सोयाबीन चंक्स (छोटे), 1/4 कप कटा खीरा, 1 छोटा कटा टमाटर बीज निकाल कर, 1/2  कप कसी गाजर, 1/4 कप चौकोर कटा चीज, 1/4 कप गाढ़ा दही, अनार के दाने सजाने के लिए, नमक स्वादानुसार, 1 चम्मच नीबू का रस, 1 चम्मच शहद, 1 चम्मच चाटमसाला, 1/4 चम्मच काली मिर्च, 1/4 चम्मच मिक्स हर्ब, 2 तुलसी पत्ते.

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विधि:
सारी सामग्री मिला कर ठंडा होने के लिए फ्रिज में रख दें. परोसने से पहले फ्रिज से निकालें. एक बाउल में सारे मसाले अच्छी तरह मिक्स करें व फ्रिज से निकाली सामग्री पर डालें. तैयार रेसिपी को अनार के दानों व तुलसी पत्तों से सजा कर कप में परोसें.

खोया मखाना

सामग्री:
1/2 कप सोयाबीन चंक्स, 1/2 कप खोया, 1/2 कप उबले मटर, 1/2 कप मखाने, 8-10 काजू, 1 बड़ा चम्मच देसी घी, 2 बड़े पिसे प्याज, 4 बड़े पिसे टमाटर,1 हरी मिर्च, थोड़ा सा कटा हरा धनिया, नमक स्वादानुसार, 2 चम्मच तेल, 1/4 चम्मच गरममसाला, 1/4 चम्मच लाल मिर्च पाउडर, सजाने के लिए क्रीम.

विधि:
देसी घी में मखाने भून कर अलग रख दें. पैन में तेल डाल कर पिसा प्याज भूनें. फिर पिसे टमाटर और मसाले डाल कर भूनें. इस ग्रेवी को एक ओर रख दें. एक पैन में खोया भूनें. जब खोया गुलाबी हो जाए तो तैयार ग्रेवी मिक्स करें. उबले मटर, कटे काजू, सोयाबीन व मखाने डाल कर मिक्स करें. पानी या दूध मिला कर सब्जी का गाढ़ापन ठीक करें. धनिया पत्ती बुरक कर गरमगरम परोसें.

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यम्मी मंचूरियन

सामग्री:
500 ग्राम कसे टमाटर, 1/2 कटोरी अदरक, लहसुन बारीक कटा, 1/2 कटोरी कसी गाजर, बंदगोभी, बीन्स, हरा धनिया, 1 कटोरी सोयाबीन चंक्स, 1/2 कटोरी कसी प्याज, 1 चम्मच सोया सौस, चिली सौस, नमक स्वादानुसार, कौर्नफ्लोर आवश्यकतानुसार.

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विधि:
एक बरतन में सारी सब्जियां व चंक्स मिलाएं व अच्छी तरह मसल लें. इस में थोड़ा सा नमक, थोड़ा अदरकलहसुन व सोया सौस मिलाएं. अब कौर्नफ्लोर मिला कर छोटेछोटे बौल्स बना कर तल लें.
पैन में 1 चम्मच तेल गरम करें. कसी प्याज डाल कर गुलाबी होने तक भूनें. कसे टमाटर मिला कर अच्छी तरह भूनें. फिर अदरक व लहसुन डाल कर 1 मिनट तक पकाएं. थोड़ा पानी डाल कर उबलने तक पकाएं. अब 1/4 कप पानी में 2 चम्मच कौर्नफ्लोर घोल कर ग्रेवी के गाढ़े होने तक पकाएं. इस में हरा धनिया व मंचूरियन बौल्स डालें. नमक, चिली सौस व सोया सौस डाल कर एक उबाल आने तक पकाएं. गरमागरम मंचूरियन परोसें.

Crime Story: देविका का दांव

घटना मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले की है. घाटीगांव, ग्वालियर के सर्राफा बाजार में कमल किशोर की ‘नयन ज्योति ज्वैलर्स’ के नाम से ज्वैलरी शौप है. कमल किशोर ग्वालियर के लश्कर क्षेत्र में रहते हैं.

10 अक्तूबर को कमल के चाचा विष्णु सोनी का उस के पास फोन आया. चाचा ने बताया कि देविका इनकम टैक्स विभाग में अधिकारी बन गई है. इतना ही नहीं, देविका ने अपने फुफेरे भाई आदित्य को भी इनकम टैक्स विभाग में अच्छी नौकरी लगवा दी है.

चचेरी बहन देविका और आदित्य के इनकम टैक्स विभाग में अफसर बनने पर कमल किशोर बहुत खुश हुआ. देविका विष्णु सोनी की एकलौती बेटी थी. विष्णु आटो चलाता था. उस की ग्वालियर के पास गुना में कुछ जमीन थी, जो उस ने बंटाई पर दे रखी थी.

देविका ने ग्वालियर के ही रहने वाले अपने जिस फुफेरे भाई आदित्य को अपने विभाग में नौकरी पर लगवाया था, वह सरकारी नौकरी पाने के लिए बहुत परेशान था. उच्चशिक्षा हासिल करने के बाद भी जब उसे सरकारी नौकरी नहीं मिली तो उस ने दूध की डेयरी खोल ली थी.

इस के साथ ही विष्णु सोनी ने कमल किशोर को जो बात बताई, वह चौंकाने वाली थी. विष्णु ने बताया कि देविका बता रही थी कि इनकम टैक्स विभाग तुम्हारे ज्वैलरी शोरूम पर रेड (छापेमारी) की तैयारी कर रहा है. इस बारे में चाहो तो देविका से बात कर लेना.

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इस के बाद कमल किशोर ने देविका और फुफेरे भाई आदित्य से बात की. इस पर देविका और आदित्य ने कहा कि बात तो सही है. आप के शोरूम पर रेड का आदेश आने वाला है. देविका ने कमल को बताया कि अगर ऐसा होता है तो वह उन्हें बचाने की पूरी कोशिश करेगी.

रेड की सूचना की पुष्टि हो जाने पर कमल किशोर की चिंता बढ़नी स्वाभाविक थी. वैसे कमल किशोर का बहीखाता, हिसाबकिताब सही था. फिर भी उस ने हिसाबकिताब बारीकी से सही करने की कवायद शुरू कर दी. लेकिन इस के पहले ही 21 अक्तूबर की दोपहर में उस की चचेरी बहन देविका और भाई आदित्य सोनी 5 व्यक्तियों की टीम ले कर सर्राफा मार्केट स्थित उस के ज्वैलरी शोरूम पर छापेमारी करने पहुंच गए.

इस टीम ने बारीकी से ज्वैलरी खरीदने और बेचने के बिल चैक किए. 6 घंटे तक चली काररवाई में उन्होंने कमल के खातों में कई कमियां निकाल दीं, जिस की उन्होंने 18 लाख रुपए की पेनल्टी लगाई.

कमल किशोर के सभी खाते लगभग सही थे, परंतु पेनल्टी की इतनी बड़ी राशि सुन कर वह चिंता में पड़ गया. ऐसे में देविका और आदित्य ने मदद के लिए आगे आ कर 6 लाख रुपए में समझौता करने की बात कही. कमल किशोर के पास उस वक्त 60 हजार रुपए थे. देविका ने 60 हजार रुपए ले कर बाकी के 5 लाख 40 हजार रुपए का अगले दिन इंतजाम करने को कहा. इस के बाद पूरी टीम वहां से चली गई.

देविका के जाने के बाद कमल किशोर ने इस मामले पर गौर से सोचा तो उसे इनकम टैक्स विभाग का छापेमारी का यह तरीका कुछ समझ में नहीं आया.

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उसे यह भी शक होने लगा कि अगर देविका किसी तरह इनकम टैक्स अधिकारी बन भी गई तो ऐसा कैसे हो सकता है कि आदित्य को भी अपने विभाग में अफसर बनवा दे. क्योंकि सरकारी नौकरी पाने की भी एक प्रक्रिया होती है, जो कई महीनों में पूरी होती है. फिर इतनी जल्दी आदित्य को नौकरी कैसे मिल गई.

शक की दूसरी वजह यह भी थी कि अगले दिन से ही कमल किशोर के पास आदित्य और देविका के 5 लाख 40 हजार रुपए जमा करने के लिए फोन आने लगे. इस बारे में उस ने कुछ व्यापारियों से बात की तो उन्हें भी छापेमारी की यह काररवाई संदिग्ध लगी. उन्होंने इस की शिकायत पुलिस से करने की सलाह दी. इस के बाद कमल किशोर ने ग्वालियर के भारीपुर थाने में जा कर टीआई प्रशांत यादव से मुलाकात की और उन्हें पूरी घटना से अवगत कराया.

कमल किशोर की बात सुन कर टीआई भी समझ गए कि यह किसी ठग गिरोह की करतूत हो सकती है, इसलिए उन्होंने तत्काल इस की जानकारी एसडीपीओ (थाटीपुर) प्रवीण अस्थाना के अलावा एसपी नवनीत भसीन को दे दी. उक्त अधिकारियों के निर्देशानुसार टीआई ने इस मामले की जांच शुरू कर दी.

टीआई प्रशांत यादव ने देविका, आदित्य के मोबाइल नंबरों पर फोन लगा कर उन्हें थाने आने को कहा. लेकिन वह थाने नहीं आए. जवाब में देविका ने टीआई से कहा कि छापेमारी के सारे कागजात हम ने एसपी औफिस और कलेक्टर औफिस में जमा कर दिए हैं, इसलिए वे थाने आ कर बयान दर्ज करवाना जरूरी नहीं समझते.

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इस बात से पुलिस को विश्वास हो गया कि कमल किशोर के साथ ठगी हुई है. क्योंकि इनकम टैक्स द्वारा की गई छापेमारी के कागजात एसपी या कलेक्टर औफिस जमा कराने का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए पुलिस बारबार देविका और उन की टीम को फोन कर के थाने आने के लिए दबाव बनाने लगी.

इस के 3 दिन बाद 24 अक्तूबर, 2019 को देविका व आदित्य अपने साथियों इसमाइल, भूपेंद्र, गुरमीत उर्फ जिम्मी के साथ थाने पहुंच गए. इन पांचों से पुलिस ने विस्तार से पूछताछ की.

सब से की गई पूछताछ के बाद यह बात स्पष्ट हो गई कि कमल किशोर के शोरूम पर छापेमारी करने वाले देविका और अन्य लोग फरजी आयकर अधिकारी थे, जिन्होंने बड़े शातिराना ढंग से अपना गिरोह बनाया था. पुलिस ने पांचों को गिरफ्तार कर दूसरे दिन अदालत में पेश किया, जहां से पुलिस ने उन्हें 2 दिन के रिमांड पर ले कर पूछताछ की.

करीब 6 महीने पहले देविका काम की तलाश में दिल्ली गई थी. वहीं पर उस की मुलाकात जुबैर नाम के एक युवक से हुई. जुबैर ने उसे अपना परिचय सीबीआई के अंडरकवर एजेंट के रूप में दिया. देविका नहीं जानती थी कि अंडरकवर एजेंट क्या होता है. वह तो सीबीआई के नाम से ही प्रभावित हो गई थी.

अपनी बातों के प्रभाव से जुबैर ने जल्द ही देविका को शीशे में उतार लिया, जिस के बाद दोनों की अलगअलग होटलों में मुलाकात होने लगी. जुबैर शातिर था. उस के कहने पर देविका ने अपने नाम से एक मोबाइल और एक सिमकार्ड खरीद कर उसे दे दिया. जुबैर हमेशा उसी नंबर से देविका से बात करता था.

दोनों की दोस्ती बढ़ी तो जुबैर ने उसे इनकम टैक्स अधिकारी बनाने का सपना दिखाया. फिर देविका से मोटी रकम ले कर उस ने उसे आयकर विभाग में आयकर अधिकारी के पद पर जौइनिंग का लेटर दे दिया. साथ ही पूरा काम समझा कर वापस ग्वालियर भेज दिया. साथ ही यह निर्देश भी दिया कि वह वहां जा कर पूरी टीम गठित कर ले.

ग्वालियर आ कर देविका ने अपने फुफेरे भाई आदित्य सोनी को अपनी टीम में शामिल किया. फिर आदित्य ने टोपी बाजार में चश्मे की दुकान चलाने वाले गुरमीत उर्फ जिम्मी को सीधे इनकम टैक्स अफसर का फरजी नियुक्ति पत्र दे दिया.

बाद में देविका ने बरई थाना परिहार में रहने वाले मोटर वाइंडिंग मैकेनिक इसमाइल खां को इनकम टैक्स इंसपेक्टर और भूपेंद्र कुशवाह को सीबीआई अफसर का फरजी नियुक्ति पत्र दे दिया.

इस तरह एक महीने में ही ग्वालियर में पूरी टीम खड़ी करने के बाद देविका ने इस की जानकारी जुबैर को दी तो उस ने देविका को अकेले मिलने के लिए दिल्ली बुलाया. देविका 2 दिन दिल्ली स्थित एक होटल में रही.

तभी देविका ने जुबैर को बताया कि उस के ताऊ के बेटे कमल किशोर की ज्वैलरी की दुकान है, अगर वहां छापा मारा जाए तो मोटी रकम हाथ लग सकती है. जुबैर ने देविका को समझा दिया कि छापा किस तरह मारना है और कैसे मोटी रकम ऐंठनी है.

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देविका दिल्ली से ग्वालियर लौटी तो कमल किशोर की दुकान में छापा मारने की तैयारी करने लगी. फिर उस ने अपनी टीम के साथ 21 अक्तूबर को कमल किशोर की दुकान पर छापेमारी की. 18 लाख की पेनल्टी का डर दिख कर उस ने कमल से 6 लाख में समझौता कर के 60 हजार रुपए ऐंठ लिए. इस के बाद वह कमल किशोर से 5 लाख 40 हजार रुपए की मांग करती रही.

जिम्मी के पास से पुलिस ने कमल किशोर से ठगे गए रुपयों में से 4 हजार रुपए बरामद किए. जिम्मी ने बताया कि बाकी रुपए उन्होंने घूमनेफिरने पर खर्च कर दिए थे. छापेमारी के बाद सभी लोग किराए की इनोवा कार ले कर दिल्ली गए, जहां वे पहाड़गंज के एक होटल में रुके. यहां एक दिन रुकने के बाद मथुरा आए और गिरराजजी की परिक्रमा की. फिर वापस मोहना में देविका के घर गए.

– पुलिस ने पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

हेल्थ पर मोटापे की मार, ऐसे करें इलाज

बहुत से लोग मोटापे को सेहत की निशानी समझते हैं, जोकि सही नहीं है. जो अधिक मोटे हैं उन्हें मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदयरोग आदि बीमारियां होने का खतरा आम वजन के लोगों के मुकाबले ज्यादा होता है. इसलिए डाक्टर मोटे शरीर वालों को यह सलाह जरूर देते हैं कि अपना वजन कम करें. क्योंकि मोटापा शरीर की कार्यक्षमता को कम करने के अलावा जीवन को घटाता भी है.

मोटापा है क्या

शरीर में जरूरत से ज्यादा मात्रा में चरबी का जमा होना ही मोटापा है. सवाल उठता है कि शरीर की चरबी को किस तरह मापा जाए? इस के लिए कई तरह की विधियां प्रचलित हैं लेकिन सब से सरल विधि है शरीर का वजन लेना, फिर ऊंचाई के अनुसार आदर्श वजन वाली तालिका से उस का मिलान करना कि वजन ज्यादा है या कम. इस के अलावा डाक्टर भुजा के ऊपरी भाग के सामने की पेशियों की त्वचा की मोटाई को एक यंत्र द्वारा नाप कर भी मोटापे का पता करते हैं.

मोटापे के कारण

भोजन द्वारा ऊर्जा लेने और उस के खर्च में असंतुलन होने से मोटापा बढ़ता है. जरूरत से ज्यादा कैलोरी वाला भोजन लिया जाता है तो वह चरबी के रूप में शरीर की त्वचा के नीचे जमा हो जाता है. मोटापे के कई दूसरे कारण भी हो सकते हैं.

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मोटापा बढ़ाने वाले कारक

उम्र : ज्यादातर व्यक्तियों में 30 से 45 वर्ष की उम्र के बीच मोटापा पाया जाता है. औरतों में युवावस्था शुरू dietहोने और मासिक धर्म के बंद होने के समय मोटापा बढ़ने की संभावना अधिक होती है. कई महिलाएं प्रसव के बाद मोटी हो जाती हैं.

सामाजिक व आर्थिक कारण : संपन्न लोगों में ज्यादातर मोटे होने की बीमारी होती है. इस के अलावा हमेशा बैठ कर कार्य करने वाले या शारीरिक श्रम न करने वालों को मोटापा अकसर घेरता है, जबकि मजदूर वर्ग में यह कम पाया जाता है.

पैतृक गुण : जिन परिवारों में मातापिता मोटे होते हैं उन के बच्चों के भी मोटे होने की संभावना अधिक होती है.

अंत:स्रावी ग्रंथियों में गड़बड़ी : शरीर में मौजूद थायराइड, पिट्यूटरी आदि अंत:स्रावी ग्रंथियां भी व्यक्ति के दुबले या मोटे होने के लिए जिम्मेदार होती हैं. आमतौर पर एक वयस्क स्त्री में चरबी की मात्रा जवान पुरुष से दोगुनी होती है. गर्भावस्था एवं मासिक धर्म बंद होते समय औरतों में अकसर चरबी की मात्रा बढ़ जाती है. ऐसा अंत:स्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित हार्मोन में परिवर्तन के कारण होता है. इसी तरह इन ग्रंथियों की कुछ बीमारियों से भी मोटापा बढ़ जाता है.

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भोजन : शरीर की जरूरत से अधिक कैलोरी और चरबीयुक्त भोजन, वजन बढ़ाने में सहायक होता है. यहां तक कि केवल 20 ग्राम वाला एक ब्रैड का टुकड़ा, यदि अतिरिक्त मात्रा में रोज खाया जाए तो वजन बढ़ सकता है. इसी तरह 20 मिनट पैदल चलने वाला व्यक्ति कार से जाने लगे या पैदल चलना छोड़ दे तो भी उस का वजन बढ़ सकता है. बच्चों में चौकलेट और कुछ न कुछ फास्ट फूड खाने की आदतें भी वजन बढ़ाने में सहायक होती हैं.

दवाएं : कुछ खास दवाएं जैसे स्टीरायड्स, गर्भनिरोधक गोलियां, इंसुलिन आदि लंबे समय तक लेने से भी वजन बढ़ सकता है, क्योंकि इन से भूख बढ़ती है. इस कारण भोजन अधिक मात्रा में लिया जाता है और व्यक्ति मोटा हो जाता है.

मोटापे की जटिलताएं

मोटापा न केवल कई गंभीर बीमारियों को जन्म देता है बल्कि इस से व्यक्ति की कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है. मोटापे के कारण होने वाली कुछ प्रमुख जटिलताएं ये हैं :

मानसिक जटिलताएं : बहुत से लोग मानसिक रूप से परेशान रहते हैं. वे समाज में खुद को समायोजित नहीं कर पाते. इस से उन में हीनभावना घर कर जाती है. युवतियां और युवक मोटापे के चलते अपनी आकर्षणहीनता को ले कर अवसादग्रस्त हो जाते हैं. इस कारण उन में मानसिक और यौन संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. इस से उन का व्यवहार भी सामान्य नहीं रह पाता.

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वजन बढ़ने से यांत्रिक व्यवधान : मोटे व्यक्तियों में सपाट पैर तथा कमर, रीढ़ और घुटनों का गठिया हो जाता है. इस कारण उन्हें चलनेफिरने और काम करने में तकलीफ होती है. चरबी जमा होने के कारण पेट और पैरों की पेशियों के संकुचन के कारण हृदय की ओर जाने वाली रक्तवाहिकाओं के प्रवाह में बाधा पड़ती है. नतीजतन, हर्निया और वेरिकोज वेन्स जैसी बीमारियां हो सकती हैं. बता दें कि वेरीकोज वेन्स में पैरों की नसें फूल जाती हैं. पेट, पीठ और सीने पर अधिक चरबी एकत्र होने से सांस लेने की प्रक्रिया में बाधा पहुंचती है. इस कारण मोटे व्यक्तियों को थोड़ी सी मेहनत के बाद सांस लेने में कठिनाई होने लगती है. उन के फेफड़ों में संक्रमण होने की संभावना भी बढ़ जाती है. इस के अलावा उन में चुस्तीफुर्ती का अभाव भी रहता है. इस के अलावा मोटी स्त्रियों में प्रसव संबंधी जटिलताएं भी अधिक होती हैं.

चयापचय संबंधी रोग : मोटापे का मधुमेह से घनिष्ठ संबंध है. मोटे लोगों में विशेषकर बर्गर इंसुलिन निर्भरता वाला मधुमेह अकसर होते देखा गया है. मोटे लोगों में सामान्य की अपेक्षा मधुमेह होने के लगभग दोगुने अवसर होते हैं. मोटे व्यक्तियों में कोलैस्ट्रौल और ट्राइग्लिसराइड्स की मात्रा भी बढ़ जाती है जो हृदय रोगों को जन्म देती है. इस के अलावा पित्ताशय की पथरी होना भी मोटे व्यक्तियों में आम बात है.

हृदय और रक्तवाहिकाओं संबंधी रोग : मोटे व्यक्ति के हृदय को शरीर में रक्त संचार करने के लिए अधिक कार्य करना पड़ता है इसलिए उन्हें अकसर उच्च रक्तचाप का रोग हो जाता है. मोटापे के कारण हृदय वाहिका यानी कोरोनरी आर्टरी में अवरोध या स्कीमिक हार्ट डिसीज होने के बारे में विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं. लेकिन जैसा कि उल्लेखित किया जा चुका है कि अधिक चरबी के कारण रक्त में कोलैस्ट्रौल की मात्रा बढ़ जाती है जो उक्त तरह के हृदयरोगों को जन्म देने में सहायक होती है, साथ ही रक्तचाप भी बढ़ाती है. यह उच्च रक्तचाप हृदय रोगों को जन्म देता है.

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मोटे व्यक्तियों की जीवनावधि : उपरोक्त जटिलताओं को दृष्टिगत रखते हुए यह बात आश्चर्यजनक नहीं है कि मोटे व्यक्ति सामान्य लोगों की अपेक्षा कम जीते हैं और उन में मृत्युदर अधिक होती है. लेकिन इस बात के भी पर्याप्त प्रमाण हैं कि वजन में उचित तरीके से कमी कर ली जाए तो मृत्युदर में कमी की जा सकती है और व्यक्ति सामान्य जीवनावधि तक जी सकता है.

मोटापे का इलाज

मोटापा कम करने का सीधा सा सिद्धांत है कि जरूरत से कम कैलोरी वाला आहार लिया जाए और पर्याप्त व्यायाम भी साथ में किया जाए. एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि मोटापा घटाना थोड़ा सा कठिन अवश्य है लेकिन असंभव बिलकुल नहीं है. इस के लिए आवश्यकता है, दृढ़ इच्छाशक्ति और सतत प्रयत्नशील रहने की.

भोजन में सुधार, व्यायाम, उपवास इत्यादि को अपनाकर मोटापे को कम किया जा सकता है. मोटापा घटाने से कुछ रोग जैसे रक्तचाप, सांस की तकलीफ इत्यादि तो अपनेआप ही ठीक हो जाते हैं. उपवास जानकार व्यक्ति की देखरेख में करें.

भोजन में परिवर्तन

बगैर भोजन में परिवर्तन किए मोटापे से निजात पाना संभव नहीं है. यदि केवल व्यायाम से कुछ वजन कम कर दिया जाए और भोजन में कमी न की जाए तो व्यायाम बंद करते ही वजन फिर बढ़ जाएगा. मोटे व्यक्तियों को 800 से 1600 कैलोरी वाली खुराक लेनी चाहिए, साथ ही हर हफ्ते वजन करते रहना चाहिए. इस में किसी चिकित्सक या इस कार्य से जुड़े व्यक्तियों का सहयोग लेना अच्छा रहता है. मध्यम आयु की मोटी स्त्रियां प्रतिदिन 800 से 1000 किलो कैलोरी वाली खुराक ले कर अपना वजन कम कर सकती हैं. लेकिन शारीरिक परिश्रम का कार्य करने वाले जो पुरुष कम खाना नहीं खा सकते वेलगभग 1500 कैलोरी भोजन के रूप में प्रतिदिन ले सकते हैं. अपने आहार में नीबू पानी, कच्चा सलाद एवं कम कैलोरी वाले आहार का समावेश करें. संभव हो तो मांसाहार छोड़ दें.

आधुनिक उपाय

वजन कम करने या मोटापा घटाने वाले आजकल बहुत से उपकरण बाजार में मिलने लगे हैं. घर में ही साइकिलिंग करने और चलने की मशीनें आती हैं जिन्हें क्रमश: हैल्थ साइकिल और वौकर कहते हैं. जो लोग बाहर घूमनाफिरना नहीं कर सकते वे इन उपकरणों की सहायता ले सकते हैं. शरीर के जिन हिस्सों की चरबी कम करनी होती है उन हिस्सों की त्वचा पर दबाव देने वाले उपकरण जैसे टमी रोलर और थाइ रोलर भी आते हैं. लेकिन इन सब की एक सीमा होती है. अत्यधिक बढ़ा हुआ वजन तो कम भोजन और नियमित व्यायाम से ही घटाया जा सकता है.

दवाओं द्वारा चिकित्सा : दवाएं भोजन द्वारा चिकित्सा किए जाने की जगह नहीं ले सकतीं. इन का सीमित उपयोग कुछ चुने हुए रोगियों पर चिकित्सक की देखरेख में किया जाता है. एम्फीटामिन, फेनटेरामिन इत्यादि दवाएं भोजन के पूर्व लेने से भूख कम लगती है, लेकिन इन्हें उच्च रक्तचाप के रोगियों व हृदय रोगियों को नहीं दिया जाता और इन के दुष्प्रभाव भी होते हैं.

रेशेयुक्त आहार : प्रयोगों द्वारा यह ज्ञात हुआ है कि रेशेयुक्त आहार लेने से कुछ वजन कम किया जा सकता है. रेशों में जो मेथिल सेल्यूलोज होता है वह बगैर पचे ही बाहर निकल जाता है लेकिन पेट भरने से अन्य तरह के कैलोरी वाले खाने में कमी हो जाती है. आजकल बाजार में मिलने वाले मोटापा कम करने के आहार इसी सिद्धांत पर आधारित होते हैं.

शल्य चिकित्सा : विदेशों में अधिक मोटापे के लिए शल्य चिकित्सा की जाती है. इस से आंतों की लंबाई कम कर देते हैं, जिस से आंतों द्वारा खाना ज्यादा मात्रा में अवशोषित नहीं हो पाता. परंतु इस तरह की शल्य चिकित्सा की जटिलताएं अधिक हैं.

लाइपोसक्शन विधि : यह एक विशेष विधि है जो आजकल विदेशों में प्रचलित है और हमारे देश में भी आ गई है. इस में पेट, नितंबों इत्यादि जगह से त्वचा के नीचे अधिक मात्रा में एकत्र चरबी को दबाव डाल कर मोटी सूई द्वारा बाहर खींच लेते हैं. इस से उस अंग विशेष की मोटाई और आकार कुछ कम हो जाता है. लेकिन यह इलाज महंगा तो है ही, स्थायी भी नहीं है.

Infectious Diseases से लड़ने के लिए इम्यूनिटी बढ़ाता है विटामिन ‘ए’

विटामिन ए मानव शरीर के लिए कई मायने में फायदेमंद और सेहतमंद है. विटामिन ए आंखों से देखने दे लिए अत्यंत आवश्यक होता है. विटामिन ‘ए’ कमी की देश में कुपोषण का महत्वपूर्ण कारण है . मुख्य रूप से बच्चों में इसकी कमी से अंधापन और जीवन को खतरा रहता है. अनुमान है कि प्रतिवर्ष इसकी कमी के कारण लगभग 50 लाख बच्चों का आंखों में खराबी आ जाती है या अंधे हो सकते हैं. अत्याधिक विटामिन ए लेने से शरीर पर अनेक दुर्प्रभाव हो सकते हैं जैसे कि सिरदर्द, देखने में दिक्कत, थकावट, दस्त, बाल गिरना, त्वचा खराब हो जाना, हड्डी और जोडों में दर्द, कलेजा को नुकसान पहुँचना और लडकियों में असमय मासिक धर्म. तो आईये जानते है विटामिन ए के बारे में …

विटामिन ‘ए’ की शरीर में उपयोगिता

*विटामिन ‘ए’ आंखों की रोशनी के लिये आवश्यक तत्व है, यह आंख के पर्दे में पाये जाने वाले रेटिनाल तत्व को बनाता है जो कि मंद रोशनी में देखने के लिये आवश्यक है.

* यह विटामिन त्वचा और ग्रंथियों तथा शरीर के अन्दरूनी अंगों, आंत, श्वसन तंत्र, मूत्रतंत्र आदि की श्लेष्मा झिल्लियों को स्वस्थ बनाये रखने और त्वचा को निरोगी बनाये रखने के लिये जरूरी है.

* विटामिन ‘ए’ शरीर की संक्रमक रोगों के विरुध्द प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ाता है, विटामिन ‘ए’ की शरीर में कमी होने से विभिन्न संक्रामक रोग होने का भय बढ़ जाता है.

* शरीर में ऊतकों, मुख्य रूप से हड्डियों के विकास में मदद करता है.

* यह शरीर के अनेक अंगों विशेष कर श्वसन तंत्र, फेफड़ों की कैंसर रोग से रक्षा करती है.

* विटामिन ‘ए’ आक्सीडेट विरोधी तत्व है. फ्री रेडिकल, शरीर में अनेक रोगों का जनक है. विटामिन ‘ए’ फ्री रेडिकल की मात्रा को नियंत्रण में रखकर उनकी अधिकता के कारण होने वाले रोगों से शरीर का बचाव करता है.

*यह विटामिन गुणसूत्रों के सुचारू रूप से कार्य करने में मदद करता है, जो कि शरीर के विकास का कार्य प्रशस्त करते हैं.

*विटामिन प्रजनन अंगों की संरचना, कार्य और शक्ति के लिये जरूरी है.

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विटामिन ‘ए’ की अधिकता –

अत्यधिक मात्रा में विटामिन ‘ए’ का प्रयोग भी शरीर के लिये हानिकारक है. यदि इसकी अधिकता है तो निम्न लक्षण हो सकते है.

* मितली, उल्टी, भूख ने लगना, नींद न लगना.

* रक्त और त्वचा का रंग पीला हो जाता है.

* गर्भावस्था में विटामिन ‘ए’ की अधिकता होने से गर्भस्थ शिशु में विकलांगता हो सकती है.

विटामिन ‘ए’ की कमी क्यों ?

यदि भोजन में शरीर की जरूरत भर मात्रा में विटामिन ‘ए’ मौजूद नहीं है तो शरीर में विटामिन ‘ए’ की कमी की समस्या हो सकती है. बच्चों, गर्भावस्था एवं स्तनपान कराते समय, महिलाओं में इसकी कमी होने की समस्या ज्यादा रहती है, क्योंकि इस समय विटामिन ‘ए’ की जरूरत शरीर को ज्यादा मात्रा में होती है. भोजन में विटामिन की कमी का कारण सही भोजन जैसे दूध, घी, अंडे, हरी सब्जियां एवं फलों का अभाव होता है. गांव और शहरों में अनेक गरीब व्यक्ति रोटी, नमक, रोटी, प्याज खाकर गुजारा करने पर मजबूर होते हैं. कुछ व्यक्ति आदतों के कारण भी विटामिन ‘ए’ प्रचुर भोज्य पदार्थों का सेवन नहीं करता हैं.

* विटामिन ‘ए’ वसा में घुलनशील विटामिन है. यदि किसी कारण से आंतों से वसा का अवशोषण बाधित हो जाता है तो भोजन मौजूद होने के बावजूद शरीर के अन्दर नहीं पहुंच पाता और शरीर में इसकी कमी हो जाती है. यह समस्या यदि बच्चे लगातार या बार-बार दस्तों, उल्टी से त्रस्त होते हैं तो आसानी से हो जाती है.

* यदि बच्चे या वयस्क बार-बार संक्रमण रोग ग्रसित होते हैं तो उनकी बढ़ी हुई जरूरतों की पूर्ति न होने पर शरीर में विटामिन ‘ए’ की कमी के लक्षण प्रकट हो सकते हैं.

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 विटामिन ‘ए’ की कमी के लक्षण – विटामिन ‘ए’ की कमी के कारण शरीर में निम्न दुष्प्रभाव हो सकते हैं-

* रतौंधी, रात या शाम को देखने में कठिनाई.

* आंख की पुतलियों की झिल्ली सूखी पड़ जाती है, कीचड़ रहती है और आंख की चमक खत्म हो जाती है.

* आंख की बाहरी तरफ दाग हो जाते हैं.

* आंख की पुतली कार्नियों सूख जाती है, धाव हो जाते हैं जो कि भरने पर ‘सफेदमाढ़ा’ का रूप ले लेता है जिससे रोशनी कम हो जाती है.

* अत्यधिक कमी होने से कार्निया मुलायम होकर आंखों से निकल सकती है जिससे मरीज सदैव के लिये अंधा हो जाता है.

* शरीर की त्वचा कड़ी, खुरदरी हो जाती है.

* विटामिन ‘ए’ की कमी होने से भूख नहीं लगती या कम हो जाती है.

* शरीर की विकास गति मंद हो जाती है.

* विटामिन ‘ए’ की कमी से शरीर में प्रतिरक्षा क्षमता कम होने के कारण प्रमुख रूप से फेफड़ों, आंत के संक्रमण रोग होने की 2 से 3 गुना संभावना बढ़ जाती है.

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विटामिन ‘ए’ की कमी से बचाव –

विटामिन ‘ए’, दूध, अंडे, गोश्त, मछली में पाया जाता है. मछली के लिवर के तेल में तो प्रचुर मात्रा में होता है. विटामिन ‘ए’ की पूर्वावस्था बीटा कैरोटिन है जो कि शरीर में विटामिन ‘ए’ में तब्दील हो जाती है.

* विटामिन ‘ए’ की शरीर में कमी से बचाव के लिये तथा आंखों को चमकीली, त्वचा सुन्दर कोमल बनाये रखने के लिये हरी पत्तेदार सब्जियों, दूध, फलों का नियमित सेवन अवश्य करें.

* यदि मांसाहारी हैं तो मछली अंडा का सेवन करे, शाकाहारी व्यक्ति प्रतिदिन दूध अवश्य पीयें, साथ ही पीले रंगवाले फल, पपीता, आम या सब्जियां, गाजर, टमाटर, सीताफल इत्यादि का सेवन करें. यह फलों और सब्जियों में पाया जाता है मुख्य रूप से लाल पीले रंग के फलों और सब्जियों में.

* भारत सरकार ने विटामिन ‘ए’ की कमी को दूर करने तथा इसकी कमी से होने वाले रोगों से बचाव के लिए वृहद अभियान छेड़ रखा है जिसके द्वारा एक से पांच वर्ष की आयु के बच्चों को एक चम्मच विटामिन ‘ए’ का सीरप जिसमें एक लाख यूनिट विटामिन ‘ए’ होता है. हर 6 माह के अन्तराल में दिये जाने का प्रावधान है. साथ ही कुछ भोज्य पदार्थों जैसे वनस्पति घी, ब्रेड, स्किमडमिल्क, टोन मिल्क में अलग से विटामिन ‘ए’ मिलाया जाता है.

तू आए न आए-भाग 4: शफीका को कहां ले गए?

‘‘शफीका, तुम से वादा किया था मैं ने. तुम्हें लाहौर ला कर अपने साथ रखने का. वादा था नए सिरे से खुशहाल जिंदगी में सिमट जाने का, तुम्हारी रातों को हीरेमोती से सजाने का, और दिन को खुशियों की चांदनी से नहलाने का. पर मैं निभा कहां पाया? आंखें डौलर की चमक में चौंधिया गईं. कटे बालों वाली मोम की गुडि़या अपने शोख और चंचल अंदाज से जिंदगी को रंगीन और मदहोश कर देने वाली महक से सराबोर करती चली गई मुझे.’’अचानक एक साल बाद उन का दामाद इंगलैंड लौट आया, ‘‘अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा. आप की बेटी के साथ ही रहूंगा. वादा करता हूं.’’  दीवानगी की हद तक मुहब्बत करने वाली पत्नी को छोड़ कर दूसरी अंगरेज औरत के टैंपरेरी प्यार के आकर्षण में बंध कर जब वह पूरी तरह से कंगाल हो गया तो लौटने के लिए उसे चर्चों के सामने खड़े हो कर वायलिन बजा कर लोगों से पैसे मांगने पड़े थे.

पति की अपनी गलती की स्वीकृति की बात सुन कर बेटी बिलबिला कर चीखी थी, ‘‘वादा, वादा तोड़ कर उस फिनलैंड वाली लड़की के साथ मुझ पत्नी को छोड़ कर गए ही क्यों थे? क्या कमी थी मुझ में? जिस्म, दौलत, ऐशोआराम, खुशियां, सबकुछ तो लुटाया था तुम पर मैं ने. और तुम? सिर्फ एक नए बदन की हवस में शादी के पाकीजा बंधन को तोड़ कर चोरों की तरह चुपचाप भाग गए. मेरे यकीन को तोड़ कर मुझे किरचियों में बिखेर दिया.‘‘तुम को पहचानने में मुझ से और मेरे बिजनैसमैन कैलकुलेटिव पापा से भूल हो गई. मैं इंगलैंड में पलीपढ़ी हूं, लेकिन आज तक दिल से यहां के खुलेपन को कभी भी स्वीकार नहीं कर सकी. मुझ से विश्वासघात कर के पछतावे का ढोंग करने वाले श ख्स को अब मैं अपना नहीं सकती. आई कांट लिव विद यू, आई कांट.’’ यह कहती हुई तड़प कर रोई थी डाक्टर की बेटी.

आज उस की रुलाई ने डाक्टर को हिला कर रख दिया. आज से 50 साल पहले शफीका के खामोश गरम आंसू इसी पत्थरदिल डाक्टर को पिघला नहीं सके थे लेकिन आज बेटी के दर्द ने तोड़ कर रख दिया. उसी दम दोटूक फैसला, दामाद से तलाक लेने के लिए करोड़ों रुपयों का सौदा मंजूर था क्योंकि बेटी के आंसुओं को सहना बरदाश्त की हद से बाहर था.डाक्टर, शफीका के कानूनी और मजहबी रूप से सहारा हो कर भी सहारा न बन सके, उस मजलूम और बेबस औरत के वजूद को नकार कर अपनी बेशुमार दौलत का एक प्रतिशत हिस्सा भी उस की झोली में न डाल सके. शफीका की रात और दि न की आह अर्श से टकराई और बरसों बाद कहर बन कर डाक्टर की बेटी पर टूटी. वह मासूम चेहरा डाक्टर को सिर्फ एक बार देख लेने, एक बार छू लेने की चाहत में जिंदगी की हर कड़वाहट को चुपचाप पीता रहा. उस पर रहम नहीं आया कभी डाक्टर को. लेकिन आज बेटी की बिखरतीटूटती जिंदगी ने डाक्टर को भीतर तक आहत कर दिया. अब समझ में आया, प्यार क्या है. जुदाई का दर्द कितना घातक होता है, पहाड़ तक दरक जाते हैं, समंदर सूख जाते हैं.

मैं यह खबर फूफीदादी तक जल्द से जल्द पहुंचाना चाहता था, शायद उन्हें तसल्ली मिलेगी. लेकिन नहीं, मैं उन के दिल से अच्छी तरह वाकिफ था. ‘मेरे दिल में डाक्टर के लिए नफरत नहीं है. मैं ने हर लमहा उन की भलाई और लंबी जिंदगी की कामना की है. उन की गलतियों के बावजूद मैं ने उन्हें माफ कर दिया है, बजी,’ अकसर वे मुझ से ऐसा कहती थीं. मैं फूफीदादी को फोन करने की हिम्मत जुटा ही नहीं सका था कि आधीरात को फोन घनघना उठा था, ‘‘बजी, फूफीदादी नहीं रहीं.’’ क्या सोच रहा था, क्या हो गया. पूरी जिंदगी गीली लकड़ी की तरह सुलगती रहीं फूफीदादी. सुबह का इंतजार मेरे लिए सात समंदर पार करने की तरह था. धुंध छंटते ही मैं डाक्टर के घर की तरफ कार से भागा. कम से कम उन्हें सचाई तो बतला दूं. कुछ राहत दे कर उन की स्नेहता हासिल कर लूं मगर सामने का नजारा देख कर आंखें फटी की फटी रह गईं. उन के दरवाजे पर एंबुलैंस खड़ी थी. और घबराई, परेशान बेटी ड्राइवर से जल्दी अस्पताल ले जाने का आग्रह कर रही थी. हार्टअटैक हुआ था उन्हें. हृदयविदारक दृश्य.

मैं स्तब्ध रह गया. स्टेयरिंग पर जमी मेरी हथेलियों के बीच फूफीदादी का लिखा खत बर्फबारी में भी पसीने से भीग गया, जिस पर लिखा था, ‘बजी, डाक्टर अगर कहीं मिल जाएं तो यह आखिरी अपील करना कि वे मुझ से मिलने कश्मीर कभी नहीं आए तो मुझे कोई शिकवा नहीं है लेकिन जिंदगी के रहते एक बार, बस एक बार, अपनी मां की कब्र पर फातेहा पढ़ जाएं और अपनी सरजमीं, कश्मीर की खूबसूरत वादियों में एक बार सांस तो ले लें. मेरी 63 साल की तपस्या और कुरबानियों को सिला मिल जाएगा. मुझे यकीन है तुम अपने वतन से आज भी उतनी ही मुहब्बत करते हो जितनी वतन छोड़ते वक्त करते थे.’ गुनाहों की सजा तो कानून देता है, लेकिन किसी का दिल तोड़ने की सजा देता है खुद का अपना दिल.

‘तू आए न आए,

लगी हैं निगाहें

सितारों ने देखी हैं

झुकझुक के राहें…’

इस गजल का एकएक शब्द खंजर बन कर मेरे सीने में उतरने लगा और मैं स्टेयरिंग पर सिर पटकपटक कर रो पड़ा.

 

 

तू आए न आए-भाग 3: शफीका को कहां ले गए?

‘तू आए न आए

लगी हैं निगाहें

सितारों ने देखी हैं

झुकझुक के राहें

ये दिल बदगुमां है

नजर को यकीं है

तू जो नहीं है

तो कुछ भी नहीं है

ये माना कि महफिल

जवां है हसीं है.’

अब आज पूरे 3 महीनों बाद मुझे अचानक डायरी में फूफीदादी का दिया हुआ परचा दिखाई दिया तो इंटरनैट पर कश्मीरी मुसलमानों के नाम फिर से सर्च कर डाले. पता वही था, नाम डा. खालिद अनवर, उम्र 90 साल. फोन मिलाया तो एक गहरी लेकिन थकी आवाज ने जवाब दिया, ‘‘डाक्टर खालिद अनवर स्पीकिंग.’’

‘‘आय एम फ्रौम श्रीनगर, इंडिया, आई वांट टू मीट विद यू.’’

‘‘ओ, श्योर, संडे विल बी बैटर,’’ ब्रिटिश लहजे में जवाब मिला.

जी चाहा फूफीदादी को फोन लगाऊं, दादी मिल गया पता…वैसे मैं उन से मिल कर क्या कहूंगा, अपना परिचय कैसे दूंगा, कहीं हमारे खानदान का नाम सुन कर ही मुझे अपने घर के गेट से बाहर न कर दें, एक आशंका, एक डर पूरी रात मुझे दीमककी तरह चाटता रहा.

निश्चित दिन, निश्चित समय, उन के घर की डौरबैल बजाने से पहले, क्षणभर के लिए हाथ कांपा था, ‘तुम शफीका के भतीजे के बेटे हो. गेटआउट फ्रौम हियर. वह पृष्ठ मैं कब का फाड़ चुका हूं. तुम क्या टुकड़े बटोरने आए हो?’ कुछ इस तरह की ऊहापोह में मैं ने डौरबैल पर उंगली रख दी.

‘‘प्लीज कम इन, आई एम वेटिंग फौर यू.’’ एक अनौपचारिक स्वागत के बाद उन के द्वारा मेरा परिचय और मेरा मिलने का मकसद पूछते ही मैं कुछ देर तो चुप रहा, फिर अपने ननिहाल का पता बतलाने के बाद देर तक खुद से लड़ता रहा.अनौपचारिक 2-3 मुलाकातों के बाद वे मुझ से थोड़ा सा बेबाक हो गए. उन की दूसरी पत्नी की मृत्यु 15 साल पहले हो चुकी थी. बेटों ने पाश्चात्य सभ्यता के मुताबिक अपनी गृहस्थियां अलग बसा ली थीं. वीकैंड पर कभी किसी का फोन आ जाता, कुश लता मिल जाती. महीनों में कभी बेटों को डैड के पास आने की फुरसत मिलती भी तो ज्यादा वक्त फोन पर बिजनैस डीलिंग में खत्म हो जाता. तब सन जैसी सफेद पलकें, भौंहें और सिर के बाल चीखचीख कर पूछने लगते, ‘क्या इसी अकेलेपन के लिए तुम श्रीनगर में पूरा कुनबा छोड़ कर यहां आए थे?’ हालांकि डाक्टर खालिद अनवर की उम्र चेहरे पर हादसों का हिसाब लिखने लगी थी मगर बचपन से जवानी तक खाया कश्मीर का सूखा मेवा और फेफड़े में भरी शुद्ध, शीतल हवा उन की कदकाठी को अभी भी बांस की तरह सीधा खड़ा रखे हुए है. डाक्टर ने बुढ़ापे को पास तक नहीं फटकने दिया. अकसर बेटे उन के कंधे पर हाथ रख कर कहते हैं, ‘‘डैड, यू आर स्टिल यंग दैन अस. सो, यू डौंट नीड अवर केयर.’’ यह कहते हुए वे शाम से पहले ही अपने घर की सड़क की तरफ मुड़ जाते हैं.

शरीर तो स्वस्थ है लेकिन दिल… छलनीछलनी, दूसरी पत्नी से छिपा कर रखी गई शफीका की चिट्ठियां और तसवीरों को छिपछिप कर पढ़ने और देखने के लिए मजबूर थे. प्यार में डूबे खतों के शब्द, साथ गुजारे गिनती के दिनों के दिलकश शाब्दिक बयान, 63 साल पीछे ले जाता, यादों के आईने में एक मासूम सा चेहरा दिखलाई देने लगता. डाक्टर हाथ बढ़ा कर उसे छू लेना चाहते हैं जिस की याद में वे पलपल मरमर कर जीते रहे. बीवी एक ही छत के नीचे रह कर भी उन की नहीं थी. दौलत का बेशुमार अंबार था. शानोशौकत, शोहरत, सबकुछ पास में था अगर नहीं था तो बस वह परी चेहरा, जिस की गरम हथेलियों का स्पर्श उन की जिंदगी में ऊर्जा भर देता.

मेरे अपनेपन में उन्हें अपने वतन की मिट्टी की खुशबू आने लगी थी. अब वे परतदरपरत खुलने लगे थे. एक दिन, ‘‘लैपटौप पर क्या सर्च कर रहे हैं?’’ ‘‘बेटी के लिए प्रौपर मैच ढूंढ़ रहा हूं,’’ कहते हुए उन का गला रुंधने लगा. उन की यादों की तल्ख खोहों में उस वक्त वह कंपा देने वाली घड़ी शामिल थी, जब उन की बेटी का पति अचानक बिना बताए कहीं चला गया. बहुत ढूंढ़ा, इंटरनैशनल चैनलों व अखबारों में उस की गुमशुदगी की खबर छपवाई, लेकिन सब फुजूल, सब बेकार. तब बेटी के उदास चेहरे पर एक चेहरा चिपकने लगा. एक भूलाबिसरा चेहरा, खोयाखोया, उदास, गमगीन, छलछला कर याचना करती 2 बड़ीबड़ी कातर आंखें.

किस का है यह चेहरा? दूसरी बीवी का? नहीं, तो? मां का? बिलकुल नहीं. फिर किस का है, जेहन को खुरचने लगे, 63 साल बाद यह किस का चेहरा? चेहरा बारबार जेहन के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. किस की हैं ये सुलगती सवालिया आंखें? किस का है यह कंपकंपाता, याचना करता बदन, मगर डाक्टर पर उस का लैशमात्र भी असर नहीं हुआ था. लेकिन आज जब अपनी ही बेटी की सिसकियां कानों के परदे फाड़ने लगीं तब वह चेहरा याद आ गया.दुनियाभर के धोखों से पाकसाफ, शबनम से ज्यादा साफ चेहरा, वे कश्मीर की वादियां, महकते फूलों की लटकती लडि़यों के नीचे बिछी खूबसूरत गुलाबी चादर, नर्म बिस्तर पर बैठी…खनकती चूडि़यां, लाल रेशमी जोड़े से सजा आरी के काम वाला लहंगाचोली, मेहंदी से सजे 2 गोरे हाथ, कलाई पर खनकती सोने की चूडि़यां, उंगलियों में फंसी अंगूठियां. हां, हां, कोई था जिस की मद्धम आवाज कानों में बम के धमाकों की तरह गूंज रही थी, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी खालिद, हमेशा.

लाहौर एयरपोर्ट पर अलविदा के लिए लहराता हाथ, दिल में फांस सी चुभी कसक इतनी ज्यादा कि मुंह से बेसाख्ता चीख निकल गई, ‘‘हां, गुनहगार हूं मैं तुम्हारा. तुम्हारे दिल से निकली आह… शायद इसीलिए मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद हो गई. मेरे चाचा के बहुत जोर डालने पर, न चाहते हुए भी मुझे उन की अंगरेज बेटी से शादी करनी पड़ी. दौलत का जलवा ही इतना दिलफरेब होता है कि अच्छेअच्छे समझदार भी धोखा खा जाते हैं.

तू आए न आए-भाग 2: शफीका को कहां ले गए?

शफीका के दिन कपड़े सिलते, स्वेटर बुनते हुए कट जाते लेकिन रातें नागफनी के कांटों की तरह सवाल बन कर चुभतीं. ‘जिन की बांहों में मेरी दुनिया सिमट गई थी, जिन के चौड़े सीने पर मेरे प्यार के गुंचे महकने लगे थे, उन की जिंदगी में दूसरी औरत के लिए जगह ही कहां थी भला?’ खयालों की उथली दुनिया के पैर सचाई की दलदल में कईकई फुट धंस गए. लेकिन सच? सच कुछ और ही था. कितना बदरंग और बदसूरत? सच, डाक्टर शादी के बाद दूसरी बीवी को ले कर इंगलैंड चला गया. मलयेशिया से उड़ान भरते हुए हवाईजहाज हिमालय की ऊंचीऊंची प्रहरी सी खड़ी पहाडि़यों पर से हो कर जरूर गुजरा होगा? शफीका की मुहब्बत की बुलंदियों ने तब दोनों बाहें फैला कर उस से कश्मीर में ठहर जाने की अपील भी की होगी. मगर गुदाज बीवी की आगोश में सुधबुध खोए डाक्टर के कान में इस छातीफटी, दर्दभरी पुकार को सुनने का होश कहां रहा होगा?

शफीका को इतने बड़े जहान में एकदम तनहा छोड़ कर, उन के यकीन के कुतुबमीनार को ढहा कर, अपनी बेवफाई के खंजर से शफीका के यकीन को जख्मी कर, उन के साथ किए वादों की लाश को चिनाब में बहा दिया था डाक्टर ने, जिस के लहू से सुर्ख हुआ पानी आज भी शफीका की बरबादी की दास्तान सुनाता है. शफीका जारजार रोती हुई नियति से कहती थी, ‘अगर तू चाहती, तो कोई जबरदस्ती डाक्टर का दूसरा निकाह नहीं करवा सकता था. मगर तूने दर्द की काली स्यायी से मेरा भविष्य लिखा था, उसे वक़्त का ब्लौटिंगपेपर कभी सोख नहीं पाया.’शफीका के चेहरे और जिस्म की बनावट में कश्मीरी खूबसूरती की हर शान मौजूद थी. इल्म के नाम पर वह कश्मीरी भाषा ही जानती थी. डाक्टर की दूसरी बीवी, जिंदगी की तमाम रंगीनियों से लबरेज, खुशियों से भरपूर, तनमन पर आधुनिकता का पैरहन पहने, डाक्टर के कद के बराबर थी. इंगलैंड की चमकदमक, बेबाकपन और खुद की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए हाथ आई चाचा की बेशुमार दौलत ने एक बेगर्ज मासूम मुहब्बत का गला घोंट दिया. शफीका ने 19 साल, जिंदगी के सब से खूबसूरत दिन, सास के साथ रह कर गुजार दिए. दौलत के नशे में गले तक डूबे डाक्टर को न ही मां की ममता बांध सकी, न बावफा पत्नी की बेलौस मुहब्बत ही अपने पास बुला सकी.

डाक्टर की वादाखिलाफी और जवान बहन की जिंदगी में फैलती वीरानी और तनहाई के घनघोर अंधेरे के खौफ से गमगीन हो कर शफीका के बड़े भाई ने अपनी बीवी को तलाक देने का मन बना लिया जो डाक्टर की सगी बहन थी. लेकिन शफीका चीन की दीवार की तरह डट कर सामने खड़ी हो गई, ‘शादी के दायित्व तो इन के भाई ने नहीं निभाए हैं न, दगा और फरेब तो उन्होंने मेरे साथ किया है, कुसूर उन का है तो सजा भी उन्हें ही मिलनी चाहिए. उन की बहन ने आप की गृहस्थी सजाई है, आप के बच्चों की मां हैं वे, उस बेकुसूर को आप किस जुर्म की सजा दे रहे हैं, भाई जान? मेरे जीतेजी यह नहीं होगा,’ कह कर भाई को रोका था शफीका ने.

खौफजदा भाभी ने शफीका के बक्से का ताला तोड़ कर उस का निकाहनामा और डाक्टर के साथ खींची गई तसवीरों व मुहब्बतभरे खतों को तह कर के पुरानी किताबों की अलमारी में छिपा दिया था. जो 15 साल बाद रद्दी में बेची जाने वाली किताबोंमें मिले. भाभी डर गई थीं कि कहीं उन के भाई की वजह से उन की तलाक की नौबत आ गई तो कागजात के चलते उन के भाई पर मुकदमा दायर कर दिया जाएगा. लेकिन शफीका जानबूझ कर चुपचाप रहीं. लंबी खामोशी के धागे से सिले होंठ, दिल में उमड़ते तूफान को कब तक रोक पाते. शफीका के गरमगरम आंसुओं का सैलाब बड़ीबड़ी खूबसूरत आंखों के रास्ते उन के गुलाबी गालों और लरजाते कंवल जैसे होंठों तक बह कर डल झील के पानी की सतह को और बढ़ा जाता. कलैंडर बदले, मौसम बदले, श्रीनगर की पहाडि़यों पर बर्फ जमती रही, पिघलती रही, बिलकुल शफीका के दर्दभरे इंतजार की तरह. फूलों की घाटी हर वर्ष अपने यौवन की दमक के साथ अपनी महक लुटा कर वातावरण को दिलकश बनाती रही, लेकिन शफीका की जिंदगी में एक बार आ कर ठहरा सूखा मौसम फिर कभी मौसमेबहार की शक्ल न पा सका. शफीका की सहेलियां दादी और नानी बन गईं. आखिरकार शफीका भी धीरेधीरे उम्र के आखिरी पड़ाव की दहलीज पर खड़ी हो गईं.

बड़े भाईसाहब ने मरने से पहले अपनी बहन के भविष्य को सुरक्षित कर दिया. अपनी पैंशन शफीका के नाम कर दी. पूरे 20 साल बिना शौहर के, सास के साथ रहने वाली बहन को छोटे भाईभाभी ले आए हमेशा के लिए अपने घर. बेकस परिंदे का आशियाना एक डाल से टूटा तो दूसरी डाल पर तिनके जोड़तेजोड़ते 44 साल लग गए. चेहरे की चिकनाई और चमकीलेपन में धीरेधीरे झुर्रियों की लकीरें खिंचने लगीं. प्यार, फिक्र और इज्जत, देने में भाइयों और उन के बच्चों ने कोई कमी नहीं छोड़ी. भतीजों की शादियां हुईं तो बहुओं ने सास की जगह फूफीसास को पूरा सम्मान दिया. शफीका के लिए कभी भी किसी चीज की कमी नहीं रही, मगर अपने गर्भ में समाए नुकीले कंकड़पत्थर को तो सिर्फ ठहरी हुई झील ही जानती है. जिंदगी में कुछ था तो सिर्फ दर्द ही दर्द.  अपनी कोख में पलते बच्चे की कुलबुलाहट के मीठे दर्द को महसूस करने से महरूम शफीका अपने भतीजों के बच्चों की मासूम किलकारियों, निश्छल हंसी व शरारतों में खुद को गुम कर के मां की पहचान खो कर कब फूफी से फूफीदादी कहलाने लगीं, पता ही नहीं चला. शरीर से एकदम स्वस्थ 80 वर्षीया शफीका के चमकते मोती जैसे दांत आज भी बादाम और अखरोट फोड़ लेते हैं. यकीनन, हाथपैरों और चेहरे पर झुर्रियों ने जाल बिछाना शुरू कर दिया है लेकिन चमड़ी की चमक अभी तक दपदप करती हुई उन्हें बूढ़ी कहलाने से महफूज रखे हुए है.

पैरों में जराजरा दर्द रहता है तो लकड़ी का सहारा ले कर चलती हैं, लेकिन शादीब्याह या किसी खुशी के मौके पर आयोजित की गई महफिल में कालीन पर तकिया लगा कर जब भी बैठतीं, कम उम्र औरतों को शहद की तरह अपने आसपास ही बांधे रखतीं. उन के गाए विरह गीत, उन की आवाज के सहारेसहारे चलते चोटखाए दिलों में सीधे उतर जाते. शफीका की गहरी भूरी बड़ीबड़ी आंखों में अपना दुलहन वाला लिबास लहरा जाता, जब कोई दुलहन विदा होती या ससुराल आती. उन की आंखों में अंधेरी रात के जुगनुओं की तरह ढेर सारे सपने झिलमिलाने लगते. सपने उम्र के मुहताज नहीं होते, उन का सुरीला संगीत तो उम्र के किसी भी पड़ाव पर बिना साज ही बजने लगता है. एक घर, सजीधजी शफीका, डाक्टर का चंद दिनों का तिलिस्म सा लगने वाला मीठा मिलन, बच्चों की मोहक मुसकान, सुखदुख के पड़ाव पर ठहरताबढ़ता कारवां, मां, दादी के संबोधन से अंतस को सराबोर करने वाला सपना…हमेशा कमी बन कर चुभता रहता. वाकई, क्या 80 साल की जिंदगी जी या सिर्फ जिंदगी की बदशक्ल लाश ढोती रहीं? यह सवाल खुद से पूछने से डरती रहीं शफीका.

शफीका ने एक मर्द के नाम पूरी जिंदगी लिख दी. जवानी उस के नाम कर दी, अपनी हसरतों, अपनी ख्वाहिशों के ताश के महल बना कर खुद ही उसे टूटतेबिखरते देखती रहीं. जिस्म की कसक, तड़प को खुद ही दिलासा दे कर सहलाती रहीं सालों तक. रिश्तेदार, शफीका से मिलते लेकिन कोई भी उन के दिल में उतर कर नहीं देख पाता कि हर खुशी के मौके पर गाए जाने वाले लोकगीतों के बोलों के साथ बजते हुए कश्मीरी साजों, डफली की हर थाप पर एक विरह गीत अकसर शफीका के कंपकंपात होंठों पर आज भी क्यों थिरकता जाता है

तू आए न आए-भाग 1: शफीका को कहां ले गए?

मैं इंगलैंड से एमबीए करने के लिए श्रीनगर से फ्लाइट पकड़ने को घर से बाहर निकल रहा था तो मुझे विदा करने वालों के साथ साथ फूफी दादी की आंखों में आंसुओं का समंदर उतर आया. अम्मी की मौत के बाद फूफी दादी ने ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया था. 2 चाचा और 1 फूफी की जिम्मेदारी के साथ साथ दादा जान की पूरी गृहस्थी का बोझ भी फूफी दादी के नाजुक कंधों पर था. ममता का समंदर छलकाती उन की बड़ी बड़ी कंटीली आंखों में हमारे उज्ज्वल भविष्य की अनगिनत चिंताएं भी तैरती साफ दिखाई देती थीं. उन से जुदाई का खयाल ही मुझे भीतर तक द्रवित कर रहा था. कार का दरवाजा बंद होते ही फूफी दादी ने मेरा माथा चूम लिया और मुट्ठी में एक परचा थमा दिया, ‘‘तुम्हारे फूफा दादा का पता है. वहां जा कर उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश करना और अगर मिल जाएं तो बस, इतना कह देना, ‘‘जीतेजी एक बार अपनी अम्मी की कब्र पर फातेहा पढ़ने आ जाएं.’’

फूफी दादी की भीगी आवाज ने मुझे भीतर तक हिला कर रख दिया. पूरे 63 साल हो गए फूफी दादी और फूफा दादा के बीच पैसिफिक अटलांटिक और हिंद महासागर को फैले हुए, लेकिन आज भी दादी को अपने शौहर के कश्मीर लौट आने का यकीन की हद तक इंतजार है. इंगलैंड पहुंच कर ऐडमिशन की प्रक्रिया पूरी करते करते मैं फूफी दादी के हुक्म को पूरा करने का वक्त नहीं निकाल पाया, लेकिन उस दिन मैं बेहद खुश हो गया जब मेरे कश्मीरी क्लासफैलो ने इंगलैंड में बसे कश्मीरियों की पूरी लिस्ट इंटरनैट से निकाल कर मेरे सामने रख दी. मेरी आंखों के सामने घूम गया 80 वर्षीय फूफी दादी शफीका का चेहरा. मेरे दादा की इकलौती बहन, शफीका की शादी हिंदुस्तान की आजादी से ठीक एक महीने पहले हुई थी. उन के पति की सगी बहन मेरी सगी दादी थीं. शादी के बाद 2 महीने साथ रह कर उन के शौहर डाक्टरी पढ़ने के लिए लाहौर चले गए. शफीका अपने 2 देवरों और सास के साथ श्रीनगर में रहने लगीं.

लाहौर पहुंचने के बाद दोनों के बीच खतों का सिलसिला लंबे वक्त तक चलता रहा. खत क्या थे, प्यार और वफा की स्याही में डूबे प्रेमकाव्य. 17 साल की शफीका की मुहब्बत शीर्ष पर थी. हर वक्त निगाहें दरवाजे पर लगी रहतीं. हर बार खुलते हुए दरवाजे पर उसे शौहर की परछाईं होने का एहसास होता. मुहब्बत ने अभी अंगड़ाई लेनी शुरू ही की थी कि पूरे बदन पर जैसे फालिज का कहर टूट पड़ा. विभाजन के बाद हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच खतों के साथसाथ लोगों के आनेजाने का सिलसिला भी बंद हो गया. शफीका तो जैसे पत्थर हो गईं. पूरे 6 साल की एकएक रात कत्ल की रात की तरह गुजारी और दिन जुदाई की सुलगती भट्टी की तरह. कानों में डाक्टर की आवाजें गूंजती रहतीं, सोतीजागती आंखों में उन का ही चेहरा दिखाई देता था. रात को बिस्तर की सिलवटें और बेदारी उन के साथ बीते वक्त के हर लमहे को फिर से ताजा कर देतीं.

अचानक एक दिन रेडियो में खबर आई कि हिंदुस्तान-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होगा. इस मैच को देखने जाने वालों के लिए वीजा देने की खबर इक उम्मीद का पैगाम ले कर आई.शफीका के दोनों भाइयों ने रेलवे मिनिस्टर से खास सिफारिश कर के अपने साथसाथ बहन का भी पाकिस्तान का 10 दिनों का वीजा हासिल कर लिया. जवान बहन के सुलगते अरमानों को पूरा करने और दहकते जख्मों पर मरहम लगाने का इस से  बेहतरीन मौका शायद ही फिर मिल पाता. पाकिस्तान में डाक्टर ने तीनों मेहमानों से मिल कर अपने कश्मीर न आ सकने की माफी मांगते हुए हालात के प्रतिकूल होने की सारी तोहमत दोनों देशों की सरकारों के मत्थे मढ़ दी. उन के मुहब्बत से भरे व्यवहार ने तीनों के दिलों में पैदा कड़वाहट को काई की तरह छांट दिया. शफीका के लिए वो 9 रातें सुहागरात से कहीं ज्यादा खूबसूरत और अहम थीं. वे डाक्टर की मुहब्बत में गले तक डूबती चली जा रही थीं.

उधर, उन के दोनों भाइयों को मिनिस्टरी और दोस्तों के जरिए पक्की तौर पर यह पता चल गया था कि अगर डाक्टर चाहें तो पाकिस्तान सरकार उन की बीवी शफीका को पाकिस्तान में रहने की अनुमति दे सकती है. लेकिन जब डाक्टर से पूछा गया तो उन्होंने अपने वालिद, जो उस वक्त मलयेशिया में बड़े कारोबारी की हैसियत से अपने पैर जमा चुके थे, से मशविरा करने के लिए मलयेशिया जाने की बात कही. साथ ही, यह दिलासा भी दिया कि मलयेशिया से लौटते हुए वे कश्मीर में अपनी वालिदा और भाई बहनों से मिल कर वापसी के वक्त शफीका को पाकिस्तान ले आएंगे. दोनों भाइयों को डाक्टर की बातों पर यकीन न हुआ तो उन्होंने शफीका से कहा, ‘बहन, जिंदगी बड़ी लंबी है, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हें डाक्टर के इंतजार के फैसले पर पछताना पड़े.’

‘भाईजान, तलाक लेने की वजह दूसरी शादी ही होगी न. यकीन कीजिए, मैं दूसरी शादी तो दूर, इस खयाल को अपने आसपास फटकने भी नहीं दूंगी.’ 27 साल की शफीका का इतना बड़ा फैसला भाइयों के गले नहीं उतरा, फिर भी बहन को ले कर वे कश्मीर वापस लौट आए. वापस आ कर शफीका फिर अपनी सास और देवरों के साथ रहने लगीं. डाक्टर की मां अपने बेटे से बेइंतहा मुहब्बत करती थीं. बहू से बेटे की हर बात खोदखोद कर पूछती हुई अनजाने ही बहू के भरते जख्मों की परतें उधेड़ती रहतीं. शफीका अपने यकीन और मुहब्बत के रेशमी धागों को मजबूती से थामे रहीं. उड़ती उड़ती खबरें मिलीं कि डाक्टर मलयेशिया तो पहुंचे, लेकिन अपनी मां और बीवी से मिलने कश्मीर नहीं आए. मलयेशिया में ही उन्होंने इंगलैंड मूल की अपनी चचेरी बहन से निकाह कर लिया था. शफीका ने सुना तो जो दीवार से टिक कर धम्म से बैठीं तो कई रातें उन की निस्तेज आंखें, अपनी पलकें झपकाना ही भूल गईं. सुहागिन बेवा हो गईं, लेकिन नहीं, उन के कान और दिमाग मानने को तैयार ही नहीं थे. ‘लोग झूठ बोल रहे हैं. डाक्टर, मेरा शौहर, मेरा महबूब, मेरी जिंदगी, ऐसा नहीं कर सकता. वफा की स्याही से लिखे गए उन की मुहब्बत की शीरीं में डूबे हुए खत, उस जैसे वफादार शख्स की जबान से निकले शब्द झूठे हो ही नहीं सकते. मुहब्बत के आसमान से वफा के मोती लुटाने वाला शख्स क्या कभी बेवफाई कर सकता है? नहीं, झूठ है. कैसे यकीन कर लें, क्या मुहब्बत की दीवार इतनी कमजोर ईंटों पर रखी गई थी कि मुश्किल हालात की आंधी से वह जमीन में दफन हो जाए? वो आएंगे, जरूर आएंगे,’ पूरा भरोसा था उन्हें अपने शौहर पर.

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