वातावरण में बढ़ते प्रदूषण के चलते दमा यानी अस्थमा रोग हर उम्र के लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है. दमे का रोग न करे आप का जीना दूभर, इस के लिए किन बातों का रखें ध्यान, जानकारी दे रहे हैं डा. उपेंद्र कौल. दिल्ली की 11 प्रतिशत जनसंख्या दमे से पीडि़त है. इस की वजह तेजी से बढ़ता हवा प्रदूषण और लोगों में बढ़ती धूम्रपान की आदत है. दमा अपने आप में चिंता का विषय है, उस से भी ज्यादा चिंता का विषय है दमा, हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारियों का संबंध. एक जैसे लक्षणों की वजह से बहुत से ऐसे मामले सामने आते हैं जिन में कंजस्टिव हार्ट फेल्योर को दमा का अटैक समझ लिया जाता है. दोनों के इलाज की अलगअलग पद्धति होने और जांच में देरी होने से गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं और वह जानलेवा भी साबित हो सकता है.

दमा के इलाज के लिए आमतौर पर इनहेलर का इस्तेमाल किया जाता है. अगर हार्ट फेल्योर होने पर इनहेलर दे दिया जाए तो गंभीर अरिहद्मिया होने से मरीज की जल्दी मौत हो सकती है. दमा और कंजस्टिव हार्ट फेल्योर के लक्षण एक जैसे होते हैं, जिन में सांस टूटना और खांसी है. यह जागरूकता फैलाना जरूरी है कि अपनेआप दवा देने से पहले और खुद ही अपनी बीमारी का पता लगाने से पहले डाक्टर से सलाह लेना जरूरी है. सही समय पर डाक्टरी सलाह लेने से जानलेवा हालात को रोका जा सकता है. कुछ खून जांच की पद्धतियां हैं जिन से कार्डिएक ओरिजिन और प्ल्यूमिनरी ओरिजिन का फर्क पता चलता है. इन में से एक टैस्ट है एमटी पीआरओबीएनपी ऐस्टीमेशन, जिसे स्क्रीनिंग पौइंट औफ केयर टैस्ट कहा जाता है. ऐसे टैस्ट से कई बार अस्पताल में गैरजरूरी भरती होने की परेशानी से बच सकते हैं.

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