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बिग बॉस 14: एजाज खान ने जान कुमार सानू का हाथ डलवाए टॉयलेट में तो लोगों ने किया ये कमेंट

बिग बॉस के घर में कब क्या हो जाए किसी को कुछ नहं पता होता है. ऐसे में आएं दिन कुछ न कुछ ड्रामा होता रहता है. ऐसे में कब किसके साथ क्या हो जाए कुछ नहीं जानता है. नॉमिनेशन टास्क में एजाज खान ने जैसे पवित्रा पुनिया को धोखा दिया था.

ये बात जान कुमार सानू के गले से नीचे नहीं उतरी थी. वहीं जान कुमार सानू के हालात को देखते हुए एजाज खान ने अपनी भड़ास को निकालने के लिए खरीखोटी सुनाने लगे.

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वहीं बिग बॉस 14 के अपकमिंग टास्क में लग्जरी बजट टास्क दिया जाएगा. एक टीम फरिश्ता का रिश्ता निभाते नजर आएगा तो वहीं दूसरा टीम शैतानों की भूमिका में नजर आएगी.

शैतानों की टीम समय-समय पर नया कार्य देती रहेंगी. इस टास्क के लिए घरवालों को दो टमों में बांटा जाएगा. अगर कोई टीम कार्य करने से मना करेगा तो उस टीम को बाहर निकाल दिया जाएगा. इस टीम के टास्क को पूरा करने के लिए एजाज खान अपनी सारी हदें पार करते नजर आएंगे.

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एजाज खान जान कुमार सानू के टॉयलेट में हाथ डालने को कहेंगे जिसके बाद से वह हाथ को चाटने के लिए भी बोलेंगे. एजाज खान की इस घटिया हरकत के बाद घर के कई सारे लोग उनसे नफरत करना शुरु कर देंगे.

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एजाज खान इस हरकत के बाद घरवालों की नजरों में और भी ज्यादा गिर जाएंगे . अब देखना यह है कि एजाज खान  के साथ घरवाले किस तरह के वर्ताव करते हैं. क्या एजाज खान को लोग पसंद कर पाएंगे. या फिर आगे तक एजाज खान घर में रुक पाएंगे या नहीं.

ये रिश्ता क्या कहलाता है: आखिर क्यों कायरव ,वंश और कृष को किडनैप करने की कोशिश करेगा आदित्या

ये रिश्ता क्या कहलाता है में आए दिन कुछ न कुछ नया ड्रामा देखने को मिलता है. पिछले दिनों दिखा था कि नायरा कायरव को बोर्डिंग को स्कूल भेजने की तैयारी कर रही है. इन सब के बावजूद भी  मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही है.

दरअसल, नायरा कार्तिक की वजह से कृष्णा और कायरव में दोस्ती अच्छी हो गई है. इससे पहले कैरव कृष्णा से बात भी नहीं करना चाहता था. वहीं अब कृष और वंश भी कृष्णा को अपनी बड़ी बहन मानने को तैयार हो गए है.

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खैर एक बार फिर इस सीरियल को देखने वाले लोगों को झटका लगने वाला है. नायरा और कार्तिक के खिलाफ एक बार फिर आदित्या अपना अलग दाव खेलता नजर आएगा.

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एक रिपोर्ट के अनुसार कृष, वंश और कायरव को आदित्या बहलाते फुसलाते नजर आएगा. आदित्या तीनों को किडनैप करने की कोशिश करना चाहेगा. फिर गोयनका परिवार से मांग करते नजर आएगा. वहीं कृष, वंश और कैरव जल्द ही उनके इरादे को भांप लेंगे. लेकिन बच्चें जल्द ही उसके इरादे को पहचान लेंगे.

अपनी प्लानिंग के अनुसार कृष, वंश और कायरव आदित्या की बहुत ज्यादा पिटा करते नजर आएंगे. जैसे ही तीनों घर पहुंचकर परिवार वाले को सारी बात बताएंगे सभी लोग हैरान हो जाएंगे. वहीं नायरा और कार्तिक के होश उड़ जाएंगे.

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घर वाले सारे बातों को जानने के बाद पुलिस को केस दर्ज करवाने के बारे में सोचेंगे. जिसके बाद आदित्या की सच्चाई सामने आ जाएगी.

वहीं सीरियल के मेकर्स लगातार इसकी टीआरपी  लाने के लिए कोशिश कर रहे हैं. लेकिन सीरियल की टीआरपी पर कोई फर्क नहीं पड़ता है. अब देखना यह है कि आगे सीरियल में होता क्या है.

Diwali Special: मालपुआ कम समय में कैसे बनाएं, जानें यहां

मालपुआ एक पारंपरिक डिश है जो लगभग हर घर में बनाया जाता है. इसे हर जगह- अलग-अलग तरीके से बनाया जाता है आइए जानते हैं मालपुआ बनाने का आसान तरीका.

समाग्री

1 कप मैदा छना हुआ,

1 कप दूध, 1 चम्मच सौंफ,

डेढ़ कप शक्कर,

1 चम्मच नीबू रस,

घी (तलने और मोयन के लिए),

डेकोरेशन के लिए मेवे की कतरन,

1 चम्मच इलायची पावडर

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विधि

-पहले मैदे में दो बड़े चम्मच घी का मोयन डालें, तत्पश्चात दूध और सौंफ मिलाएं और घोल तैयार कर लें. एक मोटे पेंदे के बर्तन में शक्कर, नीबू रस और तीन कप पानी डालकर चाशनी तैयार कर लें.

-एक कड़ाही में घी गर्म करके एक बड़े चम्मच से घोल डालते जाएं और करारा फ्राई होने तक तले . फिर चाशनी में डुबोएं और एक अलग बर्तन में रखते जाएं.

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-इस तरह सभी मालपुआ तैयार कर लें और ऊपर से मेवे की कतरन और इलायची बुरका कर अमावस्या पर शंकरजी को मालपूए का भोग लगाएं.

Short Story: लौकडाउन के बाद का एक दिन

लेखिका- सुनीता चंद्र

“अरे मिस्टर गुप्ता सुनो ना, प्लीज, आज आप वैसी सब्जी बनाओ ना, जैसे आप ने लौकडाउन में सीखी थी. मुझे बहुत अछी लगी थी. मैं ने आप से तब भी कहा था कि परफेक्ट बनी है. याद है न आप को,” सौम्या बोली.

नहींनहीं, आज नहीं, आज छुट्टी का आखिरी दिन है. कल से तो औफिस खुल जाएगा. आज तो बिलकुल नहीं बनाऊंगा, फिर कभी…

“ओके, मैं जरा मार्केट तक जा रहा हूं. कूरियर करना है,” राजेश ने कहा और बाहर निकल गया.

और इधर सौम्या सिर्फ मुसकरा कर कह रही थी, “अच्छा बच्चू अभी से नखरे… और मैं जो इतने दिनों से खाना बना रही हूं उस का क्या. मैं ने भी आज आप से खाना न बनवाया, तो मेरा नाम भी सौम्या नहीं,” ऐसा कह कर सौम्या ने जा कर लेपटाप बंद किया और बाकी काम करने में जुट गई. एक घंटा हो गया, राजेश अभी तक नहीं आए थे, सोचने लगी, चलो, मैं ही कुछ बना देती हूं हलकाफुलका सा, अभी डिनर भी है. हो सकता है कि तब पकड़ मे आ जाएं.

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ऐसा सोच कर फ्रिज खोला तो लौकी देखी और वह लौकी को छीलने लगी.

“अरे कहां हो? खाना लगाओ. मुझे बड़ी भूख लगी है,” राजेश ने आते ही कहा.

“मिस्टर गुप्ता, अभी तो खाना बना ही नहीं है, तो कहां से लगा दूं,” सौम्या बोली.

“क्यों…? अभी तक क्यों नहीं बना? इतने बजे तक तो तुम हमेशा बना लेती थीं. आज क्या हो गया.”

“हुआ तो कुछ नहीं. बस आज आप के हाथ का खाना खाने का मन था, तो इसलिए… बाकी कुछ नहीं. अभी बना रही हूं.”

“लौकी… लौकी,” उस ने कुछ लंबा खींच कर कहा.

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“क्या…? मुझे नहीं खानी है लौकी,” राजेश बोला.

“फिर क्या खाओगे? अब इतनी जल्दी में इस से ज्यादा कुछ नहीं बन सकता है मिस्टर गुप्ता,” उस ने बड़े भोलेपन से कहा.

“अच्छा, पहले तुम मेरे पास आओ. मुझे कुछ पूछना है.”

“पूछिए, क्या पूछना है?”

“ये तुम मुझे मिस्टर गुप्ता क्यों कहती हो, राजेश नहीं कह सकती हो.”

“क्यों? आप को अच्छा नहीं लगता मेरा ये कहना.”

“नहींनहीं, ये बात नहीं है.”

“फिर क्या बात है मिस्टर गुप्ता…” उस ने राजेश का गाल खींचते हुए कहा.

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“जब तुम मिस्टर गुप्ता कहती हो तो ना जाने क्यों मुझे लगता है कि इस शब्द में तुम ने मुझे अपना पूरा प्यार समेट कर मुझे पुकारा या मेरा नाम लिया है.”

“सो तो है मिस्टर गुप्ता,
हमारी शादी को 3 महीने हो गए, और हम साथसाथ हैं जब से हमारी शादी हुई है, हम घर पर ही हैं, अब औफिस खुलने वाले हैं तो हम दोनों को ही औफिस जाना है, फिर कैसे मैनेज करेंगे?”

“तुम चिंता मत करो स्वीट हार्ट… मै हूँ न. मैं ने काफीकुछ सीख लिया है. इस पिछले 3 महीने में, खाना भी बनाना सीख लिया है.”

“क्या फायदा सीखने का, जब आप बनाओगे ही नहीं.”

“अरे, क्यों नहीं बनाऊंगा.”

“अभी मना किया है न आप ने.”

“हां, आज मूड नहीं है, फिर कभी बनाऊंगा.”

“ठीक है, मै चली किचन में…”

इतने में सौम्या के फोन की घंटी बजी. देखा तो सासू मां का फोन है. नंबर देख कर फिर उस के दिमाग में प्लान आया और फोन उठाया.

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“चरण स्पर्श मांजी,” बड़े प्यार से उस ने अपनी सासू मां को बोला.

ये देख कर राजेश हैरान रह गया. सोचने लगा, ‘क्या सौम्या रोज ही ऐसे बात करती है मां से. मैं ने क्यों नहीं ध्यान नहीं दिया आज तक.’

इधर सौम्या बड़े अपनेपन से हंसहंस कर बात कर रही थी, और सासू मां भी सोच रही होंगी कि क्या खजाना मिल गया बहू को.

इधर राजेश ने सौम्या को देखा, फिर मन में आया कि ‘सौम्या कितनी अच्छी है. सब का कितना ध्यान रखती है, मेरा भी और मेरे घर वालों का भी. घर का काम भी खुद करती है.

‘मैं तो कभीकभी हाथ बंटा देता हूं. अब तो औफिस भी जाया करेगी तो कैसे करेगी मैनेज? घर और औफिस, नहींनहीं, मैं इस को परेशान नहीं देख सकता. कितनी अच्छी है सौम्या, मेरी जिंदगी संवार रही है और एक मैं हूं कि खाना बनाने के लिए भी…

‘चलो, इतने में ये बात कर रही है, मैं उस दिन वाली सब्जी बना देता हूं. बेचारी ने कितने मन से कहा था और मैं…’ ये सोचतेसोचते राजेश किचन में पहुंच चुका था.

सौम्या ने देखा कि राजेश किचन में चला गया है, तो उस के होंठों पर हंसी आ गई. अब आप की कमजोर नस मेरे हाथ लग गई है मिस्टर गुप्ता. मां सच ही कहती हैं कि पति के घर वालों का ध्यान रखो, तो पति तो खुद ही खुश रहेगा.

उस ने जल्दी से सासू मां को प्रणाम किया और दौड़ कर किचन में आई, और राजेश को देख कर बोली, “मिस्टर गुप्ता, आप क्या कर रहे हो, हटिए, मैं बनाती हूं खाना.”

राजेश ने सौम्या के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले कर कहा, “सौम्या, तुम बैठो या फिर और कुछ कर लो. खाना मैं बनाता हूं.”

“नहींनहीं मिस्टर गुप्ता, मैं ही बनाती हूं.”

“अरे सौम्या, मानो भी मैं ही बनाता हूं.”

“अच्छा चलो, साथ मिल कर बनाते हैं,” सौम्या बोली. फिर दोनों ही लंच तैयार करने मे जुट गए. वाकई सब्जी लाजवाब बनाई थी राजेश ने. बरतन उठाते हुए सौम्या बोली, “आप चलो, बाकी मैं करती हूं. बरतन साफ कर के कौफी बना कर लाती हूं, आराम से लौन मे झूले पर बैठ कर पिएंगे.”

“ठीक है, पर जल्दी आना,” राजेश ने कहा.

“जी मिस्टर गुप्ता,” कह कर उस ने अपनी एक आंख दबा दी.

सौम्या मन ही मन बहुत खुश थी कि आज मैं ने खाना आखिर बनवा ही लिया. अब आगे क्या, मुझे भी औफिस जाना होगा, तब कैसे संभालूंगी? नौकरानी रख नहीं सकते. ‘कोई बात नहीं मिस्टर गुप्ता, हम कोई हल निकाल ही लेंगे,’ सोचतेसोचते कौफी ले कर राजेश के पास आ कर बैठ गई. इधर राजेश तो जैसे उसी का इंतजार कर रहा था.

‘सौम्या कितनी देर कर दी तुम ने आने में,” राजेश बोला.

“देर कर दी… भई किचन समेट कर बरतन धो कर कौफी बना कर लाई हूं, कुछ वक्त तो लगता ही है मिस्टर गुप्ता,” सौम्या ने अपने लहजे में कहा.

“अच्छा ठीक है, मैं क्या सोच रहा था कि जब तुम औफिस जाने लगोगी, तो तब ये सब कैसे मैनेज करोगी?” राजेश ने कुछ चिंतित हो कर कहा.

“हां, मैं भी यही सोच रही हूं,” सौम्या ने भोला सा चेहरा बना कर कहा और राजेश के कंधे पर अपना सिर टिका दिया.

“सौम्या, मैं सोच रहा हूं कि अब औफिस खुल गए हैं और घर और औफिस का काम एकसाथ करना मुश्किल हो जाएगा, तो हम फुलटाइम एक मेड रख लेते हैं.”

“नहींनहीं मिस्टर गुप्ता, ये मुमकिन नहीं हैं, हमारा बजट इतना नहीं हैं कि हम अभी ये फालतू खर्च कर सकें. अपना घर हो जाएगा तो फिर सोचेंगे.

“अच्छा ऐसा करते हैं कि हम मम्मीजी को यहां ले आते हैं, थोड़ा हमें सहारा भी हो जाएगा और वो भी खुश हो जाएंगी हमारे साथ रह कर,” सौम्या ने सुझाव दिया.

“तो क्या वो काम करने आएंगी हमारे यहां?” राजेश ने तल्खी से कहा.

“नहींनहीं मिस्टर गुप्ता, ऐसा नहीं हैं. घर की साफसफाई और कपड़ों के लिए तो मैं ने मिसेज शर्मा को बोल दिया है कि वे अपनी बाई को मेरे यहां भी भेज दें और उन्होंने हां भी भर दी है. बस थोड़ा खाना बनाने में मदद मिल जाएगी और कुछ नहीं. और हमें अच्छा भी लगेगा,” सौम्या ने कुछ मुंह लटका कर कहा.

“अरे, तुम मायूस क्यों होती हो? मैं हूं ना, मैं भी हेल्प करूंगा. मां को क्यों परेशान करना, जब मेरी और तुम्हारी वेकेशन होगी तब मां को बुलाएंगे,” राजेश ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा.

“ठीक है, अब जरा हंसो मिस्टर गुप्ता. आप ऐसे ही मुझे उल्लू बना लेते हो,” सौम्या बोली.

अब अगले दिन सुबह उठ कर देखा तो 6 बजे थे. इतने ही में घंटी बजी, तो बाई सामने खड़ी थी. सौम्या खुश हो गई. घंटी की आवाज सुन कर राजेश भी उठ कर आ गया था. अरे वाह सौम्या, तुम ने तो बाई का भी इंतजाम कर लिया और टाइम भी परफेक्ट चुना.

सौम्या मुसकराई और जल्दीजल्दी बाई को काम समझाने लगी और बोली, “देखो, मैं खाना बनाने जा रही हूं. तुम 9 बजे तक सारा काम निबटा लेना.”

“ठीक है,” बाई ने गरदन हिला कर कहा.

रसोई में जा कर सौम्या जल्दीजल्दी खाना बनाने में लग गई. अभी 15 मिनट ही हुए थे कि राजेश रसोई में आया और बोला, “चलो, मैं सब्जी काट देता हूं और तुम बना लेना, मैं आटा गूंथ दूंगा, तुम रोटी बना देना. फिर ब्रेकफास्ट की तैयारी भी ऐसे ही मिलजुल कर कर लेंगे.”

“क्या बात हैं मिस्टर गुप्ता, आप तो एक दिन में ही बदल गए,” सौम्या ने राजेश के गले में बांहें डाल कर आंखों में आंखें डाल कर कहा.

“देखो सौम्या, अब तुम खुद भी लेट होओगी और मुझे भी काराओगी,” राजेश बोला.

“अरे मिस्टर गुप्ता, मैं न आप को लेट करूंगी और न ही खुद लेट हुआ करूंगी,” सौम्या बोली.

“वो कैसे भला?” राजेश ने पूछा.

“क्योंकि मैं अब आप के साथ ही औफिस जाया करूंगी और आप के साथ ही आया करूंगी,” सौम्या ने बताया.

“नहींनहीं, ये नहीं हो सकता, तुम्हारा औफिस पूरब में है और मेरा पश्चिम में, हम दोनों साथसाथ कैसे जा सकते हैं?” राजेश बोला.

“मैं जानती हूं बाबा, पर तुम नहीं जानते कि मेरा आज से पश्चिम वाली ब्रांच में ट्रांसफर हो गया है,” सौम्या ने बताया.

इतना सुन कर राजेश ने सौम्या को गोद में उठाया और गोलगोल घुमाना शुरू कर दिया, और बोला, “अरे वाह, पत्नी हो तो ऐसी, जो सब मैनेजे कर ले.”

“मैं ने तो सब मैनेज कर दिया मिस्टर गुप्ता, अब आप की बारी है,” सौम्या बोली.

“हां सौम्या, मैं भी पीछे नहीं रहूंगा, तुम्हारा पूरापूरा साथ दूंगा. बस तुम ऐसी ही रहना,” कह कर राजेश ने उस के माथे पर किस कर दिया. सौम्या लजा कर उस के गले लग गई और मन ही मन सोचने लगी कि सच में पति को खुश करना बड़ा ही आसान है. फिर दोनों ने मिल कर ब्रेकफास्ट और टिफिन तैयार किया और तैयार हो कर साथसाथ ऑफिस जाने लगे. अब ये राजेश का नियम बन गया था कि वो सौम्या की हर तरह से मदद करता और सौम्या भी खुशहाल जिंदगी में खोने लगी थी.

लौट जाओ सुमित्रा- भाग 3 : आखिर क्यों छटपटा रही थी सुमित्रा

‘‘यह कैसा भ्रम है सुमित्रा?’’ उन के आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी. ‘‘यह कटु सत्य है,’’ उस की वाणी में तटस्थता थी. झिझक खुल जाना ही अहम होता है. फिर डर नहीं रहता.

‘‘कितने वर्ष हो गए हैं विवाह को?’’ ‘‘यही कोई 12.’’

‘‘जिस इंसान के साथ तुम 12 वर्षों से रह रही हो, उस से प्यार नहीं करतीं. बात कुछ निरर्थक प्रतीत होती है?’’ ‘‘यही सच है. मैं ने अपने पति से एक दिन भी प्यार नहीं किया. वास्तविकता तो यह है कि मुझे कभी महसूस ही नहीं हुआ कि वे मेरे पति हैं. एक पत्नी होेने का स्वामित्व, अधिकार दिया ही कहां मुझे.’’ हर जगह एक तरलता व्याप्त हो गई थी.

‘‘यह क्या कह रही हो, पति का पति होना महसूस न हुआ हो. रिश्ते इतने क्षीण धागे से तो नहीं बंधे होते हैं. परस्परता तो साथ रहतेरहते भी आ जाती है. एहसासों की गंध तो इतनी तीव्र होती है कि मात्र स्पर्श से ही सर्वत्र फैल जाती है. तुम तो 12 वर्षों से साथ जी रही हो, पलपल का सान्निध्य, साहचर्य क्या निकटता नहीं उपजा सका? मुझे यह बात नहीं जंचती,’’ स्वर में रोष के साथ आश्चर्य भी था. सुमित्रा पर गहरा रोष था कि क्यों न वह प्यार कर सकी और अपने ऊपर ग्लानि. अपनी शिष्या, जो बाल्यावस्था से ही उन की सब से स्नेही शिष्या रही है, को न समझ पाने की ग्लानि. कहां चूक हो गई उन से संस्कारों की धरोहर सौंपने में. उन्हें ज्यादा दुख तो इस बात का था कि अब तक वे उस के भीतर जमे लावे को देख नहीं पाए थे. कैसे गुरु हैं वे, अगर सुमित्रा आज भी गुफाओं के द्वार नहीं खोलती तो कभी भी वे उन अंधेरों को नहीं देख पाते.

‘‘आप को क्या, किसी को भी यह बात अजीब लग सकती है. सुखसंसाधनों से घिरी नारी क्योंकर ऐसा सोच सकती है. यही तो मानसिकता होती है सब की. असल में समृद्धि और ऐश्वर्य ऐसे छलावे हैं कि बाहर से देखने वालों की नजरें उन के भौतिक गुणों को ही देख पाती हैं, गहरे समुद्र में कितनी सीपियां घोंघों में बंद हैं, यह तो सोचना भी उन के लिए असंभव होता है.’’ ‘‘मुझे लगता है कि सुमित्रा, तुम परिवार को दार्शनिकता के पलड़े में रख कर तोलती हो, तभी सामंजस्य की स्थिति से अवगत नहीं. सिर्फ कोरी भावुकता, निरे आदर्शों से परिवार नहीं चलता, न ही बनता है.’’

‘‘मैं किन्हीं आदर्शों या भावुकता के साथ घर नहीं चला रही हूं,’’ सुमित्रा भड़क उठी थी, ‘‘आप समझते क्यों नहीं, न जाने क्यों मान बैठे हैं कि मैं ही गलत हूं. जिस घर की आप बात कर रहे हैं, वह मुझे अपना लगता ही कहां है. आप ने उच्चशिक्षा के साथ पल्लू में यही बांधा कि पति का घर ही अपना होता है, लेकिन मैं तो अपनी मरजी से उस की एक ईंट भी इधरउधर नहीं कर सकती.’’

फफक उठी थी वह. रहस्यों को खोलना भी कितना पीड़ादायक होता है, अपनी ही हार को स्वीकार करना. 12 वर्षों से वह जिस तूफान को समेटे हुई थी यह सोच कर कि कभी तो उसे पत्नी होने का स्वामित्व मिलेगा, उसे आज यों बहती हवा के साथ निकल जाने दिया था. उपहास उड़ाएगा सारा संसार इस सत्य को जान कर जिसे उस ने बड़ी कुशलता से आवरणों की असंख्य तहों के नीचे छिपा कर रखा था ताकि कोई उस के घर की प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश न करे. सुमित्रा बोले जा रही थी, ‘‘मैं अपने मन के संवेगों को उन के साथ नहीं बांट सकती. शेयर करना भी कुछ होता है. बहुतकुछ अनकहा रह जाता है जो काई की तरह मेरे हृदय में जमा हुआ है. इतनी फिसलन हो गई है कि अब स्वयं से डरने लगी हूं कि कहीं पग धरते ही गिर न जाऊं.

‘‘पतिपत्नी का रिश्ता क्या ऐसा होता है जिस में भावनाओं को दबा कर रखना पड़ता है. मैं थक गई हूं. मेरा मन थक गया है. सब शून्य है, फिर कहां से जन्म लेगा प्यार का जज्बा?’’ सुमित्रा बेकाबू हो गई थी. ‘‘ऐसा भी तो हो सकता है कि वह तुम्हें बुद्धिजीवी मानने के कारण छोटीछोटी बातों से दूर रखना चाहता हो. तुम्हें ऊंचा मानता हो और तुम नाहक रिश्तों में काई जमा कर जी रही हो. तुम्हारे अध्ययन, तुम्हारे सार्थक विचारों से अभिभूत हो कर वह तुम्हारी इज्जत करता है और तुम ने नाहक ही थोथे अहं को पाल रखा है.’’ स्वर इतना संयमित था कि एकबारगी तो वह भी हिल गई. तटस्थता जबतब सहमा देती है.

‘‘लेकिन विवाद के बाद मैं ने तो जानबूझ कर अपने अंदर की प्रतिभा को दफना दिया ताकि दोनों के अहं का टकराव न हो और पुरुषत्व हीनभावना का शिकार न हो जाए. अकसर पढ़ीलिखी बीवी की कामयाबी पति को चुभती है.’’ ‘‘सही कह रही हो, ऐसा हो सकता है पर सब के साथ एक ही पैमाना लागू नहीं होता है. वह तुम्हें कामयाब देखना चाहता था, इसलिए छोटीछोटी अड़चनों से तुम्हें दूर रखना चाहा होगा और तुम स्वामित्व व अधिकार में ऐसी उलझी कि न सिर्फ अपनों से दूर होती चली गईं बल्कि यह भी मान लिया कि तुम्हारी वहां कोई जरूरत नहीं है. भूल तेरी ही है.’’

‘‘लेकिन संवेदनाओं को साझा करना क्या स्वामित्व के दायरे में आता है?’’ ‘‘नहीं, वह तो जीवन का हिस्सा है, पर शायद शुरुआत ही कहीं से गलत हुई है. एक बार फिर शुरू कर के देख, तू तो कभी इतने उल्लास से भरी थी, फिर जीने की कोशिश कर.’’ समझाने की प्रक्रिया जारी थी.

‘‘कोशिशकोशिश, पर कब तक?’’ सुमित्रा त्रस्त हो उठी थी. ‘‘तू ने कभी कोशिश की?’’

‘‘बहुत की, तभी तो पराजय का अनुभव होता है.’’ सुमित्रा का मन हो रहा था कि वह झ्ंिझोड़ डाले उन्हें, क्यों बारबार उसी से समस्त उम्मीदें रखीं उन्होंने. ‘‘वह तो होगा ही, जब तब प्यार नहीं करती अपने पति से.’’

उथलपुथल सी मच गई उस के भीतर. कहीं यही तो ठीक नहीं है, पति को प्यार नहीं करती पर उस ने बेहद कोशिश की थी पूर्ण समर्पण करने की. बस, एक बार उसे यह एहसास करा दिया जाता कि वह घर की छोटीछोटी बातों का निर्णय ले सकती है. उसे चाबी का वह गुच्छा थमा दिया जाता जो हर पत्नी का अधिकार होता है तो वह उस आत्मसंतोष की तृप्ति से परिपूर्ण हो खुद ही प्यार कर बैठती. पर उसे उस तृप्ति से वंचित रखा गया जो मन को कांतिमय कर एक दीप्ति से भर देती है चेहरे को. शरीर की तृप्ति ही काफी होती है, क्या, बस. वहीं तक होता है पत्नी का दायरा, उस के आगे और कुछ नहीं. फिर वह तो बलात्कार हुआ. इच्छा, अनिच्छा का प्रश्न कब उस के समक्ष रखा गया है. प्यार कोई निर्जीव वस्तु तो नहीं जिसे एक जगह से उठा कर दूसरी जगह फिट कर दिया जाए.

‘‘मैं ने बहुत कोशिश की और साथ रहतेरहते एक लगाव भी उत्पन्न हो जाता है, पर दूसरा इंसान अगर दूरी बनाए रखे तो कैसे पनपेगा प्यार?’’ ‘‘फिर बच्चे?’’ उन्होंने तय कर लिया था कि चाहे आज सारी रात बीत जाए पर वे सुमित्रा के मन की सारी गांठें खोल कर ही दम लेंगे, चाहे उन के ध्यान का समय भी क्यों न बीत जाए.

यह कैसा प्रश्न पूछा? स्वयं इतने ज्ञानी होते हुए भी नहीं जानते कि बच्चे पैदा करने के लिए शारीरिक सान्निध्य की जरूरत होती है, प्यार की नहीं. उस के लिए मन मिलना जरूरी नहीं होता. क्या बलात्कार से बच्चे पैदा नहीं होते? मन का मिलाप न हो तो अग्नि के समक्ष लिए हुए फेरे भी बेमानी हो जाते हैं. गठजोड़ पल्लू बांधने से नहीं होता. दोनों प्राणियों को ही बराबर से प्रयास कर मेल करना होता है. एक ज्यादा करे, दूसरा कम, ऐसा नहीं होता. फिर विवाह सामंजस्य न हो कर बोझ बन जाता है जिसे मजबूरी में हम ढोते रहते हैं.

बस, बहुत हो चुका, अब चली जाएगी यहां से वह. कितना उघाड़ेगी वह अपनेआप को. नग्नता उसे लज्जित कर रही है और वे अनजान बने हुए हैं. उसे क्या पता था कि जिन से वह मुक्ति का मार्ग पूछने आई है, वे उन्हें हराने पर तुले हुए हैं. ‘‘मैं जानती हूं कि बड़ा व्यर्थ सा लगेगा यह सुनना कि मेरा पति मुझे रसोई तक का स्वामित्व नहीं देता, वहां भी उस का दखल है, दीवारों से ले कर फर्नीचर के समक्ष मैं बौनी हूं. दीवारें जब मैली हो जाती हैं तो नए रंगरोशन की इच्छा करती हैं, फर्नीचर टूट जाता है तो उसे मरम्मत की जरूरत पड़ती है, पर मैं तो उन निर्जीव वस्तुओं से भी बेकार हूं. मुझे केवल दायित्व निभाने हैं, अधिकार की मांग मेरे लिए अवांछनीय है. हैं न ये छोटीछोटी व नगण्य बातें?’’

‘‘हूं.’’ वे गहन सोच में डूब गए. ‘समस्या साफ है कि वह स्वामित्व की भूखी है ताकि घर को अपनी तरह से परिभाषित कर उसे अपना कह सके. हर किसी को अपनी छोटी सी उपलब्धि की चाह होती है. चाहे स्त्री कितनी ही सुरक्षित व आधुनिक क्यों न हो, वह भी छोटेछोटे सुख और उन से प्राप्त संतोष से युक्त साधारण जिंदगी की अपेक्षा करती है, चाहे वह दूसरों को बाहर से देखने पर कितनी ही सामान्य क्यों न लगे.’ ‘‘फिर भी बेटी…’’ इतने लंबे संवाद के बाद अब उन्होंने इस संबोधन का प्रयोग किया था. वे तो समझ रहे थे कि बेकार ही घबरा कर यह पलायन करने निकल पड़ी है वरना सुखसाधनों के जिस अंबार पर वह बैठी है, वहां आत्मसंतुष्टि की कैसी कमी…सुशिक्षित, विवेकी पति, आचरण भी मर्यादित है…फिर दुख का सवाल कहां उठता है.

‘‘लौटना तो तुझे होगा ही, धैर्य रख और अपने आत्मविश्वास को बल दे. किसी रचनात्मक कार्य को आधार बना ले. ध्यान बंटा नहीं कि सबकुछ सहज हो जाएगा. तूने भी खुद को केंचुल में बंद कर के रखा हुआ है. अध्ययन, अध्यापन सब चुक गए हैं तेरे. उन्हें फिर आत्मसात कर,’’ कहते हुए शब्दों में कुछ अवरोध सा था. पश्चात्ताप तो नहीं कहीं…

चलो बेटी तो कहा, यह सोच कर सुमित्रा थोड़ी आश्वस्त हुई. ‘‘मैं चाहती हूं आप एक बार फिर पिता बन कर देखें, तभी पुत्री की मनोव्यथा का आभास होगा. ज्ञानी, महात्मा का चोला कुछ क्षणों के लिए उतार फेंकें, बाबूजी,’’ सुमित्रा समुद्र में पत्थर मार उफान लाने की कोशिश कर रही थी, ‘‘ध्यान मग्न हो सबकुछ भुला बैठे, पलायन तो आप ने किया है, बाबूजी. माना मैं ही एकमात्र आप की जिम्मेदारी थी जिसे ब्याह कर आप अपने को मुक्त मान संसार से खुद को काट बैठे थे.

‘‘12 वर्षों तक आप ने सुध भी न ली यह सोच कर कि धनसंपत्ति के जिस अथाह भंडार पर आप ने अपनी बेटी को बैठा दिया है, उसे पाने के बाद दुख कैसा. ज्ञानी होते हुए भी यह कैसे मान लिया कि आप ने सुखों का भंडार भी बेटी को सौंप दिया है. यह निश्चितता भ्रमित करने वाली है, बाबूजी.’’ सुमित्रा का स्वर बीतती रात की भयावहता को निगलने को आतुर था. बवंडर सा मचा है. हाहाकार, सिर्फ हाहाकार. ‘‘अब इतने सालों बाद क्यों चली आई हो मेरी तपस्या भंग करने, क्या मुझे दोषी ठहराने के लिए…मैं नियति को आधार बना दोषमुक्त नहीं होना चाहता. हो भी नहीं सकता कोई पिता, जिस की बेटी संताप लिए उस के पास आई हो. लौट जाओ सुमित्रा और संचित करो अपनेआप को, अपने भीतर छिपे बुद्धिजीवी से मिलो, जिसे तुम ने 12 सालों से कैद कर के रखा है. वापस अध्यापन कार्य शुरू करो. पर दायित्व निभाते रहना, अधिकार तुम से कोई नहीं छीन पाएगा. समय लग सकता है. उस के लिए तुम्हें अपने प्रति निष्ठावान होना पड़ेगा.

‘‘संबल अंदरूनी इच्छाओं से पनपता है. यहांवहां ढूंढ़ने से नहीं. तुम्हें लौटना ही होगा, सुमित्रा. अपने घर को मंजिल समझना ही उचित है वरना कहीं और पड़ाव नहीं मिलता. तुम कहोगी कि बाबूजी आप भी घर छोड़ आए, लेकिन मेरे पीछे कोई नहीं था, सो, चिंतन करने को एकांत में आ बसा. ध्यान कर अकेलेपन से लड़ना सहज हो जाता है. संघर्ष कर हम एक तरह से स्वयं को टूटने से बचाते हैं, तभी तो रचनाक्रम में जुटते हैं, इसी से गतिशीलता बनी रहती है.’’ एक ताकत, एक आत्मविश्वास कहां से उपज आए हैं सुमित्रा के अंदर. लौटने को उठे पांवों में न अब डगमगाहट है न ही विरोध. क्षमताएं जीवंत हो उठें तो असंतोष बाहर कर संतोष की सुगंध से सुवासित कर देती हैं मनप्राणों को.

लौट जाओ सुमित्रा- भाग 2 : आखिर क्यों छटपटा रही थी सुमित्रा

‘‘मैं लौटना नहीं चाहती. अगर ऐसा होता तो निकलती ही क्यों. मैं ने बहुत चाहा कि अपने भीतर के कोलाहल को हृदय के कपाटों से बंद कर दूं पर शायद कमजोर थी, इसलिए ऐसा न कर सकी. तभी तो फट पड़ा है कोलाहल. अब कैसे शांत करूं उसे? कोई रास्ता नहीं दिखा, तभी तो भागी चली आई मुक्ति की तलाश में.’’ ‘‘पलायन कौन से कोलाहल को शांत कर सकता है, बल्कि और हलचल ही मचा देता है. कोरी शून्यता है जो तुम्हें लगता है कि भर जाएगी. रिक्तता की पूर्ति कैसे होगी? इस पूर्णता की प्राप्ति के लिए तुम कहां भागोगी? कोई दिशा निर्धारित की है क्या तुम ने?’’

‘‘मुझे कुछ सुझाई नहीं दे रहा है. अगर रोशनी की हलकी सी कौंध भी देख पाती तो यों आप के पास दौड़ी चली नहीं आती उत्तर पाने, समाधान ढूंढ़ने.’’

सुमित्रा की कातरता बढ़ती ही जा रही थी और रात की नीरवता भी.

संध्या तक जो हवा कोमल लग रही थी वही अब कंपकंपाने लगी थी. फरवरी की शामें चाहे गुनगुनी हों पर रातें अभी भी ठंडी थीं. रात का मौन और नींदों में प्रवेश होने के बाद बंद कपाटों से उत्पन्न सन्नाटा लीलने को आतुर था. कभीकभी कोलाहल से त्रस्त हो इंसान सिर्फ सन्नाटे की अपेक्षा करता है, उसे ढूंढ़ने के लिए स्थान खोजता है और कभी वही सन्नाटा उसे खंजर से भी अधिक नुकीला महसूस होता है. तब वही आतुर निगाहों से अपने आसपास किसी को देखने की चाह करने लगता है. सुमित्रा क्या इन दोनों ही स्थितियों से परे है या फिर वह अनजान बन रही है ताकि किसी तरह कमजोर या लक्ष्यहीन न महसूस करे. तभी अपने आसपास के वातावरण के प्रति कितनी तटस्थ लग रही है. इसीलिए तो मात्र एक साड़ी में लिपटे होने पर भी ठंड उसे कंपा नहीं रही थी.

कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के अंदर ही कहीं एक ज्वालामुखी धधक रहा था जिस की तपिश ठंड के वेग को छूने भी नहीं दे रही थी, लेकिन उस की देह को दग्ध रखा हुआ था. सुमित्रा अपनी बात जारी रखे हुए थी, ‘‘पहले अपनेआप से ही संघर्ष किया जाता है, अपने को मथा जाता है और मैं तो इस हद तक अपने से लड़ी हूं कि टूट कर बिखरने की स्थिति में पहुंच गई हूं. सारे समीकरण ही गलत हैं. विकल्प नहीं था और हारने से पहले ही दिशा पाना चाहती थी, इसीलिए चली आई आप के पास. जब पांव के नीचे की सारी मिट्टी ही गीली पड़ जाए तो पुख्ता जमीन की तलाश अनिवार्य होती है न?’’ इस बार सुमित्रा ने प्रश्न किया था. आखिर क्यों नहीं समझ पा रहे हैं वे उस को?

‘‘ठीक कहती हो तुम, पर मिट्टी कोे ज्यादा गीला करने से पहले अनुमान लगाना तुम्हारा काम था कि कितना पानी चाहिए. फिर तलाश खुदबखुद बेमानी हो जाती है. हर क्रिया की कोई प्रतिक्रिया हो, यह निश्चित है. बस, अब की बार कोशिश करना कि मिट्टी न ज्यादा सख्त होने पाए और न ही ज्यादा नम. यही तो संतुलन है.’’ ‘‘बहुत आसान है आप के लिए सब परिभाषित करना. लेकिन याद रहे कि संतुलन 2 पलड़ों से संभव है, एक से नहीं,’’ सुमित्रा के स्वर में तीव्रता थी और कटाक्ष भी. क्यों वे उस के सब्र का इम्तिहान ले रहे हैं.

‘‘ठीक कह रही हो, पर क्या तुम्हारा वाला पलड़ा संतुलित है? तुम्हारी नैराश्यपूर्ण बातें सुन कर लगता है कि तुम स्वयं स्थिर नहीं हो. लड़खड़ाहट तुम्हारे कदमों से दिख रही है, सच है न?’’

जब उत्साह खत्म हो जाता है तो परास्त होने का खयाल ही इंसान को निराश कर देता है. सुमित्रा को लग रहा था कि उस की व्यथा आज चरमसीमा पर पहुंच जाएगी. सभी के जीवन में ऐसे मोड़ आते हैं जब लगता है कि सब चुक गया है. पर संभलना जरूरी होता है, वरना प्रकृति क्रम में व्यवधान पड़ सकता है. टूटनाबिखरना…चक्र चलता रहता है. लेकिन यह सब इसलिए होता है ताकि हम फिर खड़े हो जाएं चुनौतियां का सामना करने के लिए, जुट जाएं जीवनरूपी नैया खेने के लिए. ‘‘कहना जितना सरल है, करना उतना सहज नहीं है,’’ सुमित्रा अड़ गई थी. वह किसी तरह परास्त नहीं होना चाहती थी. उसे लग रहा था कि वह बेकार ही यहां आई. कौन समझ पाया है किसी की पीड़ा.

‘‘मैं सब समझ रहा हूं पर जान लो कि संघर्ष कर के ही हम स्वयं को बिखरने से बचाते हैं. भर लो उल्लास, वही गतिशीलता है.’’ ‘‘जब बातबात पर अपमान हो, छल हो, तब कैसी गतिशीलता,’’ आंखें लाल हो उठी थीं क्रोध से पर बेचैनी दिख रही थी.

‘‘मान, अपमान, छल सब बेकार की बातें हैं. इन के चक्कर में पड़ोगी तो हाथ कुछ नहीं आएगा. मन के द्वार खोलो. फिर कुंठा, भय, अज्ञानता सब बह जाएगी. सबकुछ साफ लगने लगेगा. बस, स्वयं को थोड़ा लचीला करना होगा.’’ बोलने वाले के स्वर में एक ओज था और चेहरे पर तेज भी. अनुभव का संकेत दे रहा था उन का हर कथन. बस, इसी जतन में वे लगे थे कि सुमित्रा समझ जाए.

रात का समय उन्हें बाध्य कर रहा था कि वे अपने ध्यान में प्रवेश करें पर सुमित्रा तो वहां से हिलना ही नहीं चाहती थी. चाहते तो उसे जाने के लिए कह सकते थे पर जिस मनोव्यथा से वह गुजर रही थी उस हालत में बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे उसे जाने देना ठीक नहीं था. भटकता मन भ्रमित हो अपना अच्छाबुरा सोचना छोड़ देता है. ‘‘मैं अपने पति से प्यार नहीं करती,’’ सुमित्रा ने सब से छिपी परत आखिर उघाड़ ही दी. कब तक घुमाफिरा कर वह तर्कों में उलझती और उलझाती रहती.

लौट जाओ सुमित्रा- भाग 1 : आखिर क्यों छटपटा रही थी सुमित्रा

‘‘मैं मुक्ति चाहती हूं.’’ ‘‘किस से?’’

‘‘सब से.’’ ‘‘मनुष्यों से, अपने परिवेश से या भौतिक वस्तुओं से?’’

‘‘अपने परिवेश से, उस में रहने वाले लोगों से.’’ ‘‘यानी सुखसुविधाएं नहीं छोड़ना चाहती, केवल लोगों का त्याग करना चाहती हो. इस के पीछे तुम्हारा क्या कोई खास मकसद है?’’

‘‘मैं उन्हें त्यागना नहीं चाहती. न इसे छोड़ना कह सकते हैं. केवल मुक्ति चाहती हूं ताकि छू सकूं, उन्मुक्त आकाश को.’’ ‘‘इस के लिए किसी का त्याग करना आवश्यक नहीं है, साथ रहतेरहते भी खुली हवा को भीतर समेटा जा सकता है. कौन रोकता है तुम्हें आकाश छूने से. शायद तुम्हारी सोच में ही जंग लग गया है या तुम मुक्ति की परिभाषा से अपरिचित हो.’’

‘‘नहीं, यह सच नहीं है. उन्मुक्त आकाश को छूने के लिए अपने ही पैरों की जरूरत होती है, किसी सहारे या बैसाखी की नहीं. इसलिए मुझे मुक्ति चाहिए. संबंधों की तटस्थता या घुटन नहीं.’’ ‘‘यह तो पलायन होगा.’’

‘‘हां, हो भी सकता है, और नहीं भी.’’ ‘‘यानी?’’

‘‘मुक्ति मार्ग भी तो है, दिशा भी तो है. फिर पलायन कैसा?’’ निस्पृहता का गुंजन उस की आवाज में निहित था. ‘‘फिर घरपरिवार, पति, बच्चे, समाज का क्या होगा, उन के प्रति क्या तुम्हारी कोई जिम्मेदारी नहीं है?’’

‘‘जिम्मेदारी अशक्त व बेसहारों की होती है. वे सक्षम हैं, अपनी जरूरतें स्वयं पूरी कर सकते हैं.’’ ‘‘क्या तुम्हें उन की जरूरत नहीं?’’

‘‘कभी महसूस होती थी, पर अब नहीं. सब अपनाअपना जीवन जीना चाहते थे. कोई अतिक्रमण, न व्यवधान अपेक्षित है. फिर निरर्थक ही क्यों अपनी उपस्थिति को ले कर जीऊं.’’ ‘‘निरर्थकता कैसी, जगह स्थापित करनी पड़ती है, अपनी उपस्थिति का बोध कराना पड़ता है, वही तो संबल होती है. पलायन करने से क्या निरर्थकता का बोध कम हो जाएगा? नहीं, बल्कि और बढ़ेगा ही. पीछे भागने के बजाय अपने को पुख्ता कर सब में आत्मविश्वास बांटो, फिर देखना तुम कैसे महत्त्वपूर्ण हो जाओगी.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होता. यह मात्र स्वयं को छलने का प्रयास है. अपने ही अस्तित्व का बोध कराने के लिए अगर संघर्ष करना पड़े तो उस की क्या महत्ता रह जाएगी.’’ ‘‘यह छल नहीं है, बल्कि तुम्हारे भीतर का कोई भटकाव है वरना जीवन के प्रति इतनी घोर निराशा संभव नहीं है. क्या पाना चाहती हो?’’ प्रश्नकर्ता विचलित मन को भांप गया था. विचलित मन में ही ऐसे निरर्थक, दिशाहीन भावों का वास होता है. उफनती लहरें ही उद्वेग का प्रतीक होती हैं. जब तक इन में कोई कंकड़ न फेंके या तूफान न आए, वे शांत बनी रहती हैं.

‘‘मैं ने कहा न, मुझे मुक्ति चाहिए अपनेआप से.’’ ‘‘वह तो मृत्यु पर ही संभव है.’’

‘‘फिर?’’ प्रश्नदरप्रश्न, वरना समाधान कैसे संभव होगा. भीतर तक टटोलना हो तो शब्दों से भेदना अनिवार्य होता है. संवादहीनता की स्थिति जड़ बना देती है, भटकाव बढ़ता जाता है. मन के भीतरबाहर न जाने कितनी गुफाएं होती हैं, सब के अंधेरे चीर कर वहां तक रोशनी पहुंचाना तो संभव नहीं. लेकिन जब निश्चित कर लिया है कि दिशाभ्रमित इंसान को राह सुझानी है तो फिर पीछे क्या हटना.

‘‘यानी एक अंतहीन दौड़ पर निकलना चाहती हो? रुकोगी कहां, कुछ निश्चित किया है?’’ ‘‘दौड़ कैसी, यह तो विराम होगा. उस के लिए कुछ भी निश्चित करना अनिवार्य नहीं है.’’

‘‘नहीं, तुम भ्रमित हो, अपने को तोड़मरोड़ कर अपनी जिम्मेदारियों से भाग कर तुम विराम की घोषणा कर रही हो? दौड़ तो इस के बाद ही यात्रा है- दिशाहीन, उद्देश्यहीन दौड़. घरपरिवार, समाज, नातेरिश्तों को तोड़ कर आखिर किस की खातिर जीना चाहती हो? अपनी?’’ ‘‘नहीं, बिलकुल नहीं, अपने से मोह कतई नहीं है. मैं तो मर जाना चाहती हूं.’’

‘‘यानी फिर पलायन? डर कर, घबरा कर भागना ही पलायन है. मुक्ति तो उद्देश्यों की पूर्ति से मिलती है. पहले अपने मन को शांत व नियंत्रित करो.’’ ‘‘लेकिन?’’

विस्मित है वह कैसे समझाए कि मन के उद्वेग तो कब के कुचले पड़े हैं. मन को नियंत्रित करतेकरते ही तो घबरा गई है वह. कुचली हुई भावनाएं सिर उठाने लगी हैं, तभी तो वह परेशान है. चली जाना चाहती है सारी उलझनों से बच कर. जब पाने की राह अवरुद्ध हो तो खोने की राह तलाशने में कैसी झिझक. ‘‘उत्तर तुम्हें स्वयं ही ढूंढ़ना होगा. खुद को इस तरह समेटने का अर्थ है स्वयं को आत्मकेंद्रित करना.’’

‘‘उत्तर मिलता तो यों नैराश्य न आ जकड़ती. जड़ता सहभागिता न होने लगती. अपने को झिंझोड़ कर थक गई हूं.’’ स्वर भीग गया था जैसे बड़े जतन से संभाला रुदन बहने को आतुर है.

कब तक कोई बांध सकता है संवेगों को. ज्वालामुखी तक फट जाता है, तब मानवीय संवेदना तो उस के सामने बहुत क्षीण है. वह तो जरा से दुख से ही भरभरा कर ढहने लगती है.

‘‘लौट जाओ सुमित्रा. जाओ और खोजो उस उत्तर को वह तुम्हारे भीतर ही मिलेगा लेकिन अपने अंतर्द्वद्वों से लड़ना होगा. अपने मनोभावों से तुम्हें संघर्ष करना होगा. उस के लिए अपने परिवेश में लौटना अत्यंत आवश्यक है. सब से जुड़ कर ही तलाश संभव है, एकांत में तुम किस जिजीविषा को शांत करने निकली हो?’’ धीरेधीरे शाम होने लगी थी. हवा के झोंके सुखद एहसास से भर रहे थे. पक्षी भी अपने घोंसलों में लौटने को तैयार थे. बीतता हर पल अपने साथ सब को घरों में लौटा रहा था. संध्या की बेला भी अजीब है. पहरेदार की तरह आ खड़ी होती है सब को भीतर खदड़ने के लिए. कोई चतुराई दिखा उसे धोखा देने का प्रयत्न करता है तो वह रात को बिखरा देती है. अंधेरे से भला किसे डर नहीं लगता. सारे प्रपंच धरे रह जाते हैं और हर ओर सन्नाटा फैल जाता है. भयानक खामोशी के आगे सारी चहलपहल ध्वस्त हो जाती है.

लेकिन सुमित्रा क्यों नहीं लौट पा रही है? क्या उसे सन्नाटे से भय नहीं लगता या उस के भीतर और गहरा सन्नाटा है जो व्याप्त खामोशी को चोट देने को आकुल है, तभी तो शायद वह निकली है उस अनदेखी, अनजानी मुक्ति की तलाश में जिस का ओरछोर स्वयं उसे मालूम नहीं है. घोर पीड़ा का उद्भव सदा एक रहस्य ही रहा है. अनुभूति तो स्पष्ट होती है क्योंकि वह भीतरबाहर सब जगह बजती रहती है किसी दुखद आवाज की तरह, किंतु उस के अंकुर के फूटने का आभास तभी हो सकता है जब हम सतर्क हों. पीड़ा सामान्य स्थिति की द्योतक नहीं है, वही तो है जो सारी विमुखता प्रियजनों से विमुखता, अपने कर्मकर्तव्यों से विमुखता, की उत्तरदायी है.

बोनसाई से पाएं रोजगार व आमदनी

जरा कल्पना करें कि आम, जामुन, नीम, बरगद, शीशम, इमली व पीपल जैसे पेड़ घर के ड्राइंगरूम में सजे नजर आएं तो कैसा लगेगा? यकीनन अच्छा लगेगा. बोनसाई के जरीए ऐसा मुमकिन हो सका है. विशाल पेड़ों की चोटी अब आप खड़ेखड़े छू सकते हैं. एक ऐसी तरकीब है, जिस से अपने मनपसंद पेड़पौधे घर में लगाना मुमकिन हो बोनवाई कहलाती है. बोनसाई के जरीए आप बड़े पेड़ों को छोटे रूप में अपने कमरे, बरामदे और बालकनी में लगा सकते हैं. किसी भी पौधे का बोनसाई विकसित किया जा सकता है. बोनसाई  में टहनियों की छंटाई, जड़ों को छोटा करना, गमले बदलना और पत्तियों को छांटने जैसी गतिविधयां एक तय समय पर की जाती हैं. बोनसाई पौधे उगाना कम खर्चीला और रोचक काम होता है.

बोनसाई दरअसल पौधा उगाने की एक असामान्य विधि होती है, जिस में बीज से बोनसाई का विकास नहीं होता, बल्कि एक बड़े पौधे या उस के किसी हिस्से को?छोटा बनाए रखते हैं और पौधे उम्र से बड़े दिखाई देते?हैं. बोनसाई शब्द 2 श्ब्दों के मेल से बना है. जापानी भाषा में बोन का अर्थ है ट्रे यानी कम गहराई वाला पात्र और साई का अर्थ है पौधे लगाना. बोनसाई का इतिहास : बोनसाई की शुरुआत 1133 ईसा पूर्व में चीन में हुई थी, मगर इस का विकास जापानियों द्वारा किया गया. 17वीं शताब्दी से यह जापानियों द्वारा ही पूरे विश्व में मशहूर किया गया. मगर चीनियों का यह दावा है कि यह उन की कला है, क्योंकि उन  के यहां पुराने जमाने से ही गमलों में पेड़ों को लगाया जाता था. जापानी बोनसाई और चीनी बोनसाई में फर्क होता है. चीनी लोग केवल गमलों में पेड़ों को लगा देते?थे, पर उन की नियमित कटाईछंटाई नहीं करते?थे. जापानियों का यह दावा?है कि केवल गमले में पेड़ लगा देना बोनसाई कला नहीं है, बल्कि बोनसाई तो वह कला है, जिस में बड़े पेड़ों को बौने रूप में तैयार किया जाता है.

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बोनसाई के आकार : एक सामान्य पेड़ बड़ा होने के बाद करीब 5 मीटर या इस से भी ऊंचा होता?है. वहीं सब से बड़े आकार के बोसाई पेड़ की ऊंचाई ज्यादा से ज्यादा 1 मीटर रखी जा सकती है.

अति छोटा बोनसाई 15 सेंटीमीटर से कम, छोटा बोनसाई 15 से 30 सेंटीमीटर, मध्यम बोनसाई 30 से 60 सेंटीमीटर और बड़ा बोनसाई 60 सेंटीमीटर ऊंचा होता है.

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बोनसाई की पद्धतियां

नियमित सीधी पद्धति : इस पद्धति में पेड़ सीधा बढ़ता है और शाखाएं एक पिरामिड या गोल आकार में बनाई जाती?हैं.

अनियमित सीधी पद्धति : ये पेड़ ऊपर की ओर बढ़ते हैं, पर तने में कई असंतुलित घुमाव होते हैं.

तिरछी पद्धति: इस पद्धति में पेड़ का तना जड़ के दाएं या बाएं 40 के कोण पर बढ़ता है.

बहुतना पद्धति : जब 1 जड़ पुंज से निकले और 1 से अधिक तने हों, उसे बहुतना कहते हैं.

वन या समूह रोपण पद्धति : इस पद्धति में 1 से ले कर 15 तक पौधे लगाए जाते हैं, ताकि नजारा वन जैसा दिखाई दे.

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झुकी पद्धति : इस पद्धति में कई शाखाओं वाला कम आयु का पौधा चुना जाता है और पौधे को तांबे के तारों की मदद से झुकाया जाता है और तिकोने बरतन में लगाया जाता है.

जुड़वां तना पद्धति : इस पद्धति में पेड़ की जड़ से दूसरा तना निकाला जाता है.

झाड़ूनुमा पद्धति : इस पद्धति में पेड़ ढालने के लिए सभी शाखाओं को तार से बांध दिया जाता है और इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कोई भी शाखा एकदूसरे के आरपार न हो.

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बोनसाई के लिए पौधों का चुनाव

* चुने हुए पौधे का जीवन कई सालों का होना चाहिए.

* पौधा कठोर हालात सहन करने वाला होना चाहिए.

* पौधों की पत्तियां, फूल और फल देखने में बहुत सुंदर हों.

* पौधा कीटपतंगों को आकर्षित न करता हो.

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पेड़ की देखरेख करने और उसे अपनी पसंद के मुताबिक आकार देने का अलग ही मजा?है. आप ऐसा पेड़ चुनें, जिस का आकार अच्छा हो और जो कटाई और छंटाई के बाद आसानी से आप के मनमुताबिक सुंदर लगने लगे. ध्यान रहे कि यदि आप बीज से पेड़ को उगाना चाहते?हैं, तब आप पेड़ की बढ़वार को हर पड़ाव पर जिस तरह चाहें वैसे नियंत्रित कर सकते?हैं. यदि आप को देखरेख करना अच्छा लगता है, तो आप विकसित पेड़ ही खरीदें. कटिंग से बोनसाई बनाना दूसरा तरीका है. आप कटिंग यानी पेड़ की कटी टहनियों को अलग से मिट्टी में लगा कर पेड़ उगा सकते?हैं. बीज की बजाय कटिंग से उगाए गए पेड़ों को बढ़ाने में देरी नहीं लगती?है. इस तरीके में भी पेड़ की बढ़वार के  पड़ाव में आप उसे नियंत्रित कर सकते हैं.

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बोनसाई के लिए गमलों का चयन

बोनसाई के लिए छिछले गमले इस्तेमाल किए जाते हैं. मानक बोनसाई पात्र की ऊंचाई 25 सेंटीमीटर से भी कम होती?है और इस का आयतन 2 से 10 लीटर तक होता?है. ये गमले कई प्रकार के होते?हैं जैसे कि अंडाकार, गोलाकार, वर्गाकार या चौकोर. छिछले गमलों में पानी के निकास के लिए 2 छेद होने चाहिए. इस के अलावा गमले के किनारे पर 4 और छोटेछोटे छेद करने चाहिए, इन चारों छेदों में से तांबे के तार डालिए, जो कि आधे गमले के ऊपर हों और आधे गमले के नीचे निकले हों.

ऐसा करने पर जब जड़ों की कटाईछंटाई की जाती है, तब गमले से पौधे को निकालने में सुविधा होती है और जड़ों की छंटाई के बाद पौधे को गमले से बांधने में सुविधा होती?है. मगर जब बोनसाई झुकी या अर्ध झुकी पद्धति के बनाने हों तो गहरे गमलों का चुनाव करें, क्योंकि पौधे के झुकाव के कारण छिछला गमला पलट जाएगा.

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बोनसाई उगाने के लिए पानी की निकासी वाले पात्रों का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए और ये पात्र चिकनी मिट्टी, प्लास्टिक या लकड़ी के हो सकते हैं. पानी निकलने वाली जगह पर मिट्टी को रोकने के लिए एक कोयले का?टुकड़ा लगाना अच्छा माना जाता है. पात्र के अंदर जड़ों में?घुमाव नहीं होना चाहिए और न ही पात्र की दीवारों से जड़ों को चिपकने देना चाहिए. इस के लिए जड़ों को समयसमय पर कैंची से काटते रहना चाहिए. पात्र में बोनसाई पेड़ को बीच से थोड़ा हट कर लगाना अच्छा होता है. बोनसाई के लिए मिट्टी : बोनसाई के लिए मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए ताकि पानी आसानी से बाहर निकल जाए. बर्तनों में लाल मिट्टी, गोबर की खाद या केंचुआ खाद, रेत व पत्ती की सड़ी खाद को बराबरबराबर मात्रा में मिला कर भरना चाहिए.

पौधे तैयार करना : बोनसाई के लिए वानस्पतिक तरीके द्वारा पौधे तैयार किए जाते हैं, क्योंकि ऐसे पौधे तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता. बीजों द्वारा भी पौधे तैयार किए जाते?हैं, पर इस में ज्यादा वक्त लगता है.

रोपाई का समय : पौधों की ज्यादातर प्रजातियों की रोपाई जुलाईअगस्त महीनों के दौरान की जाती है.

कटाईछंटाई : बोनसाई बनाने के लिए कटाईछंटाई बहुत जरूरी है. सुंदर व आकर्षक बोनसाई कटाईछंटाई के द्वारा ही बनाए जाते हैं.

कटाईछंटाई करते समय जितनी जरूरी हों, उतनी टहनियों को रखें बाकी सभी टहनियों को काट दें. इस बात का?भी ध्यान रखें कि जब पीपल, बरगद जैसे बड़े पेड़ों का बोनसाई बनाना हो तो जड़ के पास से निकलने वाली सभी शाखाओं को काट दें. जब बहुतना बोनसाई बनाना हो तो जड़ के पास से निकलने वाली शाखाओं में से जितनी जरूरी हों उस से 2-4 शाखाएं ज्यादा रख लें, जिस से कि यदि कोई शाखा खराब हो जाए तो बची शाखाओं से बहुतना आकार दिया जा सके.

दोबारा रोपाई : बोनसाई पेड़ की हालत व उम्र के मुताबिक नियमित अंतराल पर गमला या पात्र बदलना चाहिए. आमतौर पर नर्सरी में विकसित पौधे को वहां से निकाल कर बोनसाई पात्र में रोपा जाता?है. अगर गमले या बोनसाई पात्र की मिट्टी के ऊपर जड़ फैलने लगे या पात्र के नीचे का सुराख, जड़ों के ज्यादा निकल जाने से बंद होने लगे, तो ऐसी हालत में गमला या पात्र बदल देना चाहिए.

जड़ों के बढ़ने को यदि समय से नहीं रोका गया तो बोनसाई पेड़ गमले के मुकाबले ज्यादा बड़ा हो जाएगा. पुरानी जड़ें पानी और पोषक पदार्थों का अवशोषण बहुत धीमी गति से करती हैं या नहीं कर पाती?हैं, इसलिए उन्हें काट कर हटा देना चाहिए, ताकि नई जड़ें विकसित हों जो पानी और पोषक पदार्थों का भलीभांति अवशोषण कर सकें. दोबारा रोपाई करने के लिए पहले तो सावधानी से पौधे को अलग कर लें, फिर जड़ों में लगी हुई मिट्टी को हटा दें और फिर चारों ओर से 75 फीसदी जड़ों को काट दें. जब मुख्य जड़ को काटें तो कट तिरछा लगाएं. इस के बाद नए गमले में तारों की सहायता से पौधे को लगा दें और मिट्टी को पहले बताए गए अनुपात के मुताबिक भरें. इस के बाद पौधे की सिंचाई कर दें. जड़ों की कटाईछंटाई से बोनसाई पेड़ों का आकार काबू में रहता है. बड़ी व मोटी जड़ों को और गमले की सतह की ओर जाती हुई जड़ों को काट दें.

बस पतलीनाजुक जड़ों के जाल को?ऊपरी सतह पर रहने दें. पेड़, जड़ों के सिरों से पानी खींचता है, इसलिए छोटे गमले में 1 मोटी गहरी जड़ की बजाय जड़ों का जाल अच्छा रहता?है.

खाद व उर्वरक : बोनसाई के लिए गोबर की खाद, नीम की खली, मूंगफली की खली, अरंडी की खली व पत्तियों की सड़ी खाद अच्छी रहती?है. मूंगफली की खली और नीम की खली की 1 किलोग्राम मात्रा को 5 लीटर पानी में भिगो देना चाहिए और इसे 1 महीने तक रखना चाहिए. फिर इसे 5 गुने पानी में मिला कर पेड़ में महीने में 2 बार देना चाहिए और साथ में चुटकी भर हड्डी का चूरा और सिंगल सुपर फास्फेट को भी मिला देना चाहिए.

*

बोनसाई के फायदे

* बोनसाई एक अच्छा रोजगार भी है. इस की देखभाल गृहणियों द्वारा अच्छी तरह से की जा सकती है.

* जगह की कमी के कारण जो पेड़ घर में लगाना मुमकिन नहीं था, वे?भी अब हम अपने?घरों में लगा सकते?हैं.

* बोनसाई बेहद सुंदर व आकर्षक होता?है. यह घर की शोभा बढ़ाता है.

तमाम फसलें खराब मौसम के कारण कई बार खराब हो जाती हैं और किसानों को नुकसान हो जाता है, लेकिन बोनसाई को खराब मौसम से बचाया जा सकता है.

* अन्य फसलों, फलों और सब्जियों की तरह इसे तय समय पर काटना और बेचना नहीं पड़ता.

* फल, फूल और सब्जियों के खराब हो जाने के कारण कई बार किसानों को सही मूल्य नहीं मिल पाता और खराब हो जाने के डर से किसान उन्हें कम कीमत पर बेच दिया करते?हैं, किंतु बोनसाई की सही देखभाल साल दर साल उस की कीमत को बढ़ाती है.

* बागबानी तनाव को दूर रखने में मदद करती?है, किंतु शहरों में बागबानी मुमकिन नहीं हो पाती, ऐसे में बोनसाई एक अच्छा जरीया है.

* बुजुर्ग लोग जिन का समय नहीं कटता, वे बोनसाई लगा कर अपनेआप को व्यस्त रख सकते?हैं.

* जिन किसानों के पास खेती के कम रकबे हैं, उन लोगों के लिए बोनसाई एक अच्छा जरीया है.

* अगर घर में बोनसाई लगाया जाएगा, तो घर के बच्चे भी पेड़ों के महत्त्व को समझेंगे और उन के रखरखाव को बेहद आसानी से सीख जाएंगे.

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बोनसाई बनाने के लिए सही पेड़

सदाबहार पेड़ : अनार, आम, अमलताश, आकाश, नीम, बरगद, बाटल ब्रश, कनेर, संतरा, गूलर, पीपल, बरगद, चीकू, जकरेंडा, लीची, चीड़, केशिया, रबर, नीम, नीबू, इमली, जामुन व अंजीर वगैरह.

पतझड़ पेड़ : ओक, बेर, बर्च, देवदार, फर, नाशपाती, अडूसा, आंवला, अमरूद, चाइनीस नारंगी, पलाश, देवदार, चंपा, चैरी, सेमल, चिनार, शमी, सेमल, गुड़हल, बोगनवेलिया व गुलमोहर वगैरह.

पीपल : पीपल की खासीयत यह है कि ये 24 घंटे आक्सीजन छोड़ता है. यह पेड़ ज्यादातर सार्वजनिक या धार्मिक जगहों पर ही लगाया जाता?है. पीपल का पेड़ बहुत विशाल होता है और घर के पास लगाने से यह घर की नींव को नुकसान पहुंचा सकता है, पर इसे बोनसाई के?रूप में घर में लगाया जाता है.

बांस : बांस का पेड़ जमीन के अंदर ही अंदर खुदाई करते हुए बढ़ता?है. यह तडि़त विद्युत यंत्र का काम करता?है. जहां ये पेड़ लगे होते हैं, वहां आकाशी बिजली गिरने की संभावना कम हो जाती?है.

तुलसी : तुलसी का पौधा लगाने से आसपास का वातावरण कीड़ों रहित हो जाता?है.

तुलसी का पौधा औसतन 10 पेड़ों के बराबर आक्सीजन छोड़ता है. इस पौधे का औषधीय महत्त्व भी है. आयुर्वेदिक दवाएं बनाने और खांसीजुकाम के इलाज में इस की पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है.

नीम : इस पेड़ का औषधीय महत्त्व बहुत ज्यादा?है. यह आयुर्वेद में करीब 300 दवाएं बनाने के काम में लाया जाता है. इस की लड़की से बने फर्नीचर व दरवाजों में कभी दीमक नहीं लगती. इस की टहनी का इस्तेमाल दांतुन के रूप में किया जाता?है. यह अपने आसपास के वातावरण को शुद्ध कर देता?है, इसलिए इसे घर के आसपास लगाना अच्छा माना जाता है.

केला?: केले के पौधे को शादी के मंडप को सजाने के काम में लाते?हैं. इस के पत्तों पर भोजन रख कर खाना सेहत के लिए अच्छा माना जाता है.

गुड़हल?: गुड़हल का पौधा घर में कहीं?भी लगाने से पूरा लाभ मिलेगा, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि इसे सही धूप मिले.

हरसिंगार : छोटेछोटे फूलों वाले हरसिंगार के पेड़ से अच्छी खुशबू मिलती है.

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बोनसाई के लिए जरूरी बातें

* पेड़ों को पात्रों में सही तरह से लगाना चाहिए.

* पेड़ों को लगाते समय जड़ों के बीच में हवा न रहे, लिहाजा पेड़ को अच्छी तरह से दबा देना चाहिए.

* बोनसाई को खुली हवा में रखें और इस बात का ध्यान रखें कि धूप चारों ओर से लगे.

* बोनसाई को ज्यादा पानी की जरूरत होती है, लिहाजा उसे रोजाना पानी दें और तब तक दें, जब तक कि पानी पात्र से बहने न लगे.

* बोनसाई को वैसा ही आकार व प्रकार दें, जैसा कि वह कुदरती रूप से होता है.

* तांबे के तारों को कस कर न बांधें वरना पौधों पर तारों के निशान पड़ जाएंगे.

सर्दी के दिनों में बोनसाई की देखरेख : सर्दी के दिनों में बोनसाई की देखरेख पर ज्यादा ध्यान देना पड़ता?है, क्योंकि बोनसाई छिछले पात्रों में लगाया जाता?है और बड़े पेड़ों की तरह इस की जड़ें जमीन के नीचे दबी नहीं होतीं. जब वातावरण में तापामन बहुत कम हो, तो बोनसाई को अंदर कमरों में रखना चाहिए. अगर अंदर रखना मुमकिन न हो तो, पहले उसे कागज या कपड़े से ढकें फिर ऊपर से पालीथीन से ढक दें. जब तापमान बढ़े तो पालीथीन को हटा दें. गरमी के दिनों में बोनसाई की देखरेख : गरमी के दिनों में जब दिन का तापमान बहुत ज्यादा हो, तो बोनसाई को केवल सुबह और शाम की धूप लगने दें और दोपहर के सम उसे छाया में रखें. इन दिनों पानी की जरूरत ज्यादा होती?है, इसलिए पौधों में पानी की कमी न होने दें.

 – डा. बालाजी विक्रम, पूर्णिमा सिंह सिकरवार

Crime Story: डेढ़ करोड़ का विश्वास

सौजन्या-मनोहर

मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के पचोर में रहने वाले पैट्रोलपंप व्यवसायी राम गोयल की संपन्नता की चर्चा पूरे इलाके में थी. अपनी व्यवहारकुशलता की वजह से रामगोपाल की बाजार में अच्छी साख थी. अपनी मेहनत और लगन के बूते न केवल व्यापारी वर्ग में बल्कि क्षेत्र में भी उन्होंने अपना दबादबा भलीभांति स्थापित किया हुआ था.

घटना 14 जुलाई, 2020 की है. उस रोज राम गोयल सो कर उठे तो घर का अस्तव्यस्त हाल देख कर उन के होश उड़ गए. कमरे में तिजोरी खुली पड़ी थी, जिस में रखी कई किलोग्राम सोनाचांदी व नकदी सब गायब थी. यह देख कर घर में हड़कंप मच गया. राम गोयल को पता चला कि घर से 3 किलो सोने और चांदी के आभूषण, नकदी और अन्य कीमती सामान गायब है. इस के अलावा परिवार के साथ रह रही बेटी की नौकरानी अनुष्का, जो दिल्ली से आई थी, वह भी गायब थी. अनुष्का राम गोयल की बेटीदामाद की नौकरानी थी. वह उन के बच्चों की देखभाल करती थी.

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जून, 2020 महीने में राम गोयल की बेटी एक समारोह में शामिल होने के लिए दिल्ली से राजगढ़ अपने पिता के यहां आई थी. बेटी के बच्चों की देखभाल के लिए अनुष्का भी उस के साथ आ गई थी. इसलिए पिछले एक महीने से वह राम गोयल के घर पर ही रह रही थी. वह एक नेपाली लड़की थी. नेपाली अपनी बहादुरी और ईमानदारी के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं. राम गोयल की भी अनुष्का के प्रति यही सोच थी. लेकिन कुछ ही समय में अनुष्का अपना असली रंग दिखा कर करोड़ों का माल साफ कर के भाग चुकी थी.

घटना की रात अनुष्का ने अपने हाथ से कढ़ी और खिचड़ी बना कर पूरे परिवार को खिलाई थी. खाने के बाद पूरा परिवार गहरी नींद में सो गया. जाहिर था, खाने में कोई नशीली चीज मिलाई गई थी, जिस के असर से घर में हलचल होने के बावजूद किसी सदस्य की आंख नहीं खुली.इस बात की खबर मिलते ही थाना पचोर के टीआई डी.पी. लोहिया तुरंत पुलिस टीम के साथ राम गोयल के यहां पहुंचे तथा उन्होंने मौकामुआयना कर सारी घटना की जानकारी एसपी प्रदीप शर्मा को दी. कुछ ही देर में एसपी शर्मा भी मौके पर पहुंच गए.
घटनास्थल की जांच करने के बाद एसपी प्रदीप शर्मा ने आरोपियों को पकड़ने के लिए एडिशनल एसपी नवलसिंह सिसोदिया के निर्देशन में एक टीम गठित कर दी.

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टीम में एसडीपीओ पदमसिंह बघेल, टीआई डी.पी. लोहिया, एसआई धर्मेंद्र शर्मा, शैलेंद्र सिंह, साइबर सैल टीम प्रभारी रामकुमार रघुवंशी, एसआई जितेंद्र अजनारे, आरक्षक मोइन खान, दिनेश किरार, शशांक यादव, रवि कुशवाह एवं आरक्षक राजकिशोर गुर्जर, राजवीर बघेल, दुबे अर्जुन राजपूत, अजय राजपूत, सुदामा, कैलाश और पल्लवी सोलंकी को शामिल किया गया. इधर लौकडाउन के चलते पुलिस का एक काम आसान हो गया था. टीआई लोहिया जानते थे कि लौकडाउन के दिनों में ट्रेन, बस बंद हैं इसलिए लुटेरी नौकरानी अनुष्का ने पचोर से भागने के लिए किसी प्राइवेट वाहन का उपयोग किया होगा.

क्योंकि इतनी बड़ी चोरी एक अकेली लड़की नहीं कर सकती, इसलिए उस के कुछ साथी भी जरूर रहे होंगे. अनुष्का कुछ समय पहले ही दिल्ली से आई थी. टीआई लोहिया ने अनुष्का का मोबाइल नंबर हासिल कर उसे सर्विलांस पर लगा दिया. इस के अलावा उस के फोन की काल डिटेल्स भी निकलवाई.काल डिटेल्स से पता चला कि अनुष्का एक फोन नंबर पर लगातार बातें करती थी और ताज्जुब की बात यह थी कि वारदात वाले दिन उस फोन नंबर की लोकेशन पचोर टावर क्षेत्र में थी. जाहिर था कि वह मोबाइल वाला व्यक्ति अनुष्का का कोई साथी रहा होगा, जो उस के बुलाने पर ही घटना को अंजाम देने राजगढ़ आया होगा.

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एसपी प्रदीप शर्मा के निर्देश पर टीआई लोहिया की टीम पचोर क्षेत्र में हर चौराहे, हर पौइंट, हर क्रौसिंग पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालने में जुट गई. इसी कवायद में एक संदिग्ध कार पुलिस की नजर में आई, जिस का रजिस्ट्रेशन नंबर यूपी-14एफ-टी2355 था. टीआई लोहिया समझ गए कि चोर शायद इसी गाड़ी में सवार हो कर पचोर आए और घटना को अंजाम दे कर फरार हो गए. इसलिए पुलिस की एक टीम ने पचोर से व्यावह हो कर गुना और ग्वालियर तक के रास्ते में पड़ने वाले टोल नाकों के कैमरे चैक कर उस गाड़ी के आनेजाने का रूट पता कर लिया.

जांच में पता चला कि उक्त नंबर की कार दिल्ली के उत्तम नगर के रहने वाले मनोज कालरा के नाम से रजिस्टर्ड थी, इसलिए तुरंत एक टीम दिल्ली भेजी गई. टीम ने मनोज कालरा को तलाश कर उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह किराए पर गाडि़यां देने का काम करता है. उक्त नंबर की कार उस ने एक नौकर पवन उर्फ पद्म नेपाली के माध्यम से 12 जुलाई को इंदौर के लिए बुक की थी. जबकि इस कार के ड्राइवर से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि 13 जुलाई, 2020 को 3 युवक उसे शादी में जाने की बात बोल कर पचोर ले गए थे. दिल्ली पहुंची पुलिस टीम सारी जानकारी एसपी प्रदीप शर्मा से शेयर कर रही थी. इस से एसपी प्रदीप शर्मा समझ गए कि उन की टीम सही दिशा में आगे बढ़ रही है.

लेकिन वे जल्द से जल्द चोरों को पकड़ना चाहते थे, क्योंकि उन्हें आशंका थी कि देर होने पर आरोपी माल सहित नेपाल भाग सकते हैं. ड्राइवर ने यह भी बताया कि वापसी में सभी लोगों को उस ने दिल्ली में बदरपुर बौर्डर पर बस स्टैंड के पास छोड़ा था.अब पुलिस को जरूरत थी उन तीनों नेपाली लड़कों की पहचान कराने की, जो दिल्ली से गाड़ी ले कर पचोर आए थे. इस के लिए पुलिस ने दिल्ली में रहने वाले सैकड़ों नेपाली परिवारों से संपर्क किया. शक के आधार पर 16 लोगों को हिरासत में ले कर पूछताछ की. जिस में एक नया नाम सामने आया बिलाल अहमद का, जो लोगों को घरेलू नौकर उपलब्ध कराने के लिए एशियन मेड सर्विस की एजेंसी चलाता था.

बिलाल ने पुलिस को बताया कि अनुष्का उस के पास आई थी, उस की सिफारिश सरिता पति नवराज शर्मा ने की थी. जिसे उस ने दिल्ली में एक बच्ची की देखभाल के लिए नौकरी पर लगवा दिया था.जांच के दौरान पुलिस टीम को पवन थापा के बारे में जानकारी मिली. पता चला कि पवन ही वह आदमी है जो उन तीनों लोगों को दिल्ली से पचोर ले कर आया था. पवन भी पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उस ने पूछताछ में बताया कि उत्तम नगर के सम्राट उर्फ वीरामान ने टैक्सी बुक की थी, जिस के लिए उसे15 हजार रुपए एडवांस भी दिए थे.

इस से पुलिस को पूरा शक हो गया कि इस मामले में सम्राट की खास भूमिका हो सकती है. दूसरी बात यह पुलिस समझ चुकी थी कि इस बड़ी चोरी के सभी आरोपी उत्तम नगर के आसपास के हो सकते हैं. इसलिए न केवल पुलिस सतर्क हो गई, बल्कि अन्य आरोपियों की रैकी भी करने लगी. क्योंकि आरोपी लगातार अपना ठिकाना बदल रहे थे, इसलिए तकनीकी टीम के प्रभारी एसआई रामकुमार रघुवंशी और आरक्षक मोइन खान ने चाय व समोसे वाला बन कर उन की रैकी करनी शुरू कर दी, जिस से जल्द ही जानकारी हासिल कर सम्राट उर्फ वीरामान धामी को गिरफ्तार कर लिया गया.

पूछताछ में वीरामान पहले तो कुछ भी बताने की राजी नहीं था. लेकिन जब उस ने मुंह खोला तो चौंकाने वाला सच सामने आया.वास्तव में वीरामान खुद वारदात करने के लिए पचोर जाने वाली टीम में शामिल था. अन्य 2 पुरुषों और महिला के बारे में पूछताछ की तो सम्राट ने बताया कि अनुष्का अपने प्रेमी तेज के साथ नई दिल्ली के बदरपुर इलाके में रहती है.

पुलिस ने बदरपुर इलाके में छापेमारी कर के दोनों को वहां से गिरफ्तार कर उन के पास से चोरी का माल बरामद कर लिया. यहां तेज रोक्यो और अनुष्का उर्फ आशु उर्फ कुशलता भूखेल के साथ उन का तीसरा साथी भरतलाल थापा भी पुलिस गिरफ्त में आ गए. मौके पर की गई पूछताछ के बाद दिल्ली गई पुलिस टीम ने दिल्ली पुलिस की मदद से मामले के मुख्य आरोपी वीरामान उर्फ सम्राट मूल निवासी धनगढ़ी, नेपाल, अनुष्का उर्फ आशु उर्फ कुशलता भूखेल निवासी जनकपुर, तेज रोक्यो मूल निवासी जिला अछम, नेपाल, भरतलाल थापा को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की थी. इस के अलावा आरोपियों को पचोर तक कार बुक करने वाला पवन थापा निवासी उत्तम नगर नई दिल्ली, बेहोशी की दवा उपलब्ध कराने वाला कमल सिंह ठाकुर निवासी जिला बजरा नेपाल, चोरी के जेवरात खरीदने वाला मोहम्मद हुसैन निवासी जैन कालोनी उत्तम नगर, जेवरात को गलाने में सहायता करने वाला विक्रांत निवासी उत्तम नगर भी पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

अनुष्का को कंपनी में काम पर लगवाने वाली सरिता शर्मा निवासी किशनपुरा, नोएडा तथा अनुष्का को नौकरानी के काम पर लगाने वाला बिलाल अहमद उर्फ सोनू निवासी जामिया नगर, नई दिल्ली को गिरफ्तार कर के बरामद माल सहित पचोर लौट आई. जहां एसपी श्री शर्मा ने पत्रकार वार्ता में महज 7 दिनों के अंदर जिले में हुई चोरी की सब से बड़ी घटना का राज उजागर कर दिया.अनुष्का ने बताया कि राम गोयल का पूरा परिवार उस पर विश्वास करता था. इसलिए परिवार के अन्य लोगों की तरह अनुष्का भी घर में हर जगह आतीजाती थी. एक दिन उस के सामने घर की तिजोरी खोली गई तो उस में रखी ज्वैलरी और नकदी देख कर उस की आंखें चौंधिया गईं और उस के मन में लालच आ गया. यह बात जब उस ने दिल्ली में बैठे अपने प्रेमी तेज रोक्यो को बताई तो उसी ने उसे तिजोरी पर हाथ साफ करने की सलाह दी.

योजना को अंजाम देने के लिए उस का प्रेमी तेज रोक्यो ही दिल्ली से बेहोशी की दवा ले कर पचोर आया था. वह दवा उस ने रात में खिचड़ी में मिला कर पूरे परिवार को खिला दी. जिस से खिचड़ी खाते ही पूरा परिवार गहरी नींद में सो गया. तब अनुष्का अलमारी में भरा सारा माल ले कर पे्रमी के संग चंपत हो गई. पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर एक करोड़ 53 लाख रुपए का चोरी का सामान और नकदी बरामद कर ली.पुलिस ने सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मामले की जांच टीआई डी.पी. लोहिया कर रहे थे.

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