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लौट जाओ सुमित्रा
सुमित्रा बेकाबू हो गई थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह इस समस्या का समाधान कैसे निकाले.
भाग - 1
स्त्री चाहे कितनी भी संपन्न, सुरक्षित या आधुनिक क्यों न हो, उसे अपने अस्तित्व, स्वामित्व व अपनत्व की आवश्यकता होती ही है. लेकिन सुमित्रा तो परिवार, बच्चे व पति वाले मकान में भी छटपटा रही थी. उसे मुक्ति की चाह थी पर मुक्ति मिलती कहां है?
भाग - 2
सुमित्रा को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ये सब हो क्या रहा है और ठंड बढ़ती जा रही थी.
भाग - 3
यह सोच कर सुमित्रा थोड़ी आश्वस्त हुई. ‘‘मैं चाहती हूं आप एक बार फिर पिता बन कर देखें, तभी पुत्री की मनोव्यथा का आभास होगा.
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