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Diwali Special: अखरोट की बर्फी ऐसे बनाएं

अखरोट की बर्फी आप चाहे तो घर पर बहुत कम समय में भी बना सकते हैं. आइए आज जानते हैं अखरोट की बर्फी बनाने की विधि.

समाग्री

अखरोट 200 ग्राम

शक्कर 100 ग्राम

पानी कुछ बूंद

घी चिकना करने के लिए

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विधि

-सबसे पहले एक थाली में घी डालकर कुछ देर के लिए रख दें.

-इसके बाद अखरोट साफ करके छील लें, इसे बारीक पीस लें. जिससे यह बर्फी बे में आसान हो जाएगी. अब बारीक पिसी हुई अखरोट में शक्कर मिला लें.

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– नॉनस्टीक की कड़ाही में तेल या घी गर्म करके कुछ देर तक सुनहरा होेने तक अखरोट और शक्कर को मिला लें.

-अब एक कटोरी में शक्कर मिक्स करके चासनी बना लें जब चासनी ब जाए तो उसमें अखरोट को मिक्स करकें लड्डू बना दें.

 

चिनम्मा- भाग 3: चिन्नू का गेट पर कौन इंतजार कर रहा था?

हड़बड़ा कर उठी तो देखा, अप्पा आज भी मछली पकड़ने नहीं गया. वह रोज कोई न कोई बहाना बना कर घर में ही पड़ा रहता है. कौफी पी कर चिन्नू जल्दीजल्दी घर का सारा काम निबटाने लगी. उसे 9 बजे स्कूल पहुंचना होता है. स्कूल पहुंची, तो देखा स्कूल गेट के पास खड़ा साई उसे तिरछी नजर से देख रहा है. अपना सिर नीचे ?ाका लिया, पर न जाने क्यों दिल को अच्छा लगा.

3 बजे स्कूल की छुट्टी हुई. स्कूल के अधिकांश बच्चे घर चले गए. पर चिनम्मा और उस की कक्षा के कुछ बच्चे स्कूल के राव सर से ट्यूशन पढ़ने के लिए रुक गए. ट्यूशन खत्म होने के बाद सभी अपनेअपने गांव की ओर चल दिए. चिनम्मा भी तेज कदमों से घर की ओर चल पड़ी. तभी उसे लगा कि किसी ने पुकारा ‘चिन्नू’. बढ़ते कदम एकाएक थम गए. पीछे मुड़ कर देखा, साई उस के पीछेपीछे चला आ रहा है.

वह घबरा गई कि कहीं अप्पा ने देख लिया तो? उस की घबराहट देख कर साई ने हंसते हुए कहा, ‘मैं कोई भूत हूं क्या, जो तु?ो खा जाऊंगा?’

चिनम्मा के मुंह से निकला ‘लेकिन अप्पा?’

‘अरे अप्पा की चिंता मत कर तू, दुकान पर बैठ मस्त हो कर दारू पी रहा है. उसे देख कर इस बात की गारंटी है कि अभी कम से कम 2 घंटे तक घर पहुंचने वाला नहीं है वह. और तेरी अम्मा तो इस समय काम पर गई हुई है.’

‘तु?ो ये सारी बातें कैसे पता?’ चिनम्मा ने आश्चर्य से पूछा.

मैं सब चैक कर के आया हूं, साई ने अपनी शरारतभरी आवाज में इस ढंग से कहा कि चिनम्मा को हंसी आ गई. दोनों ही एकसाथ खिलखिला कर हंस पड़े.

चिनम्मा ने कहा, ‘तू इस जन्म में कभी नहीं सुधरेगा साई.’

फिर दोनों साथसाथ चलने लगे. कुछ कदम चलने पर जब चिनम्मा थोड़ी आश्वस्त सी हुई, तो धीरे से बोली, ‘‘एक बात पूछूं, पिछले 3 सालों से कहां था रे तू?’’ मु?ो तो लगा कि अब तो तू लौट कर आएगा ही नहीं अपने गांव.’’

साई बताने लगा, ‘‘मेरी शरारतों और शिकायतों से तंग आ कर अम्मा अचानक मु?ो मामा के पास हैदराबाद ले कर चली गई थी. मेरा मामा वहां मछली की दुकान चलाता है. अच्छा कमाताखाता है. अम्मा ने अपने भाई से कहा कि तू इस की पढ़ाई करवा दे और बदले में यह सुबहशाम तुम्हारी दुकान पर काम कर दिया करेगा मुफ्त में. जब लायक बन जाए तो भाई तेरी बेटी को मैं अपनी बहू बना लूंगी बिना दहेज के. (यहां पाठकों को यह बताना आवश्यक है कि दक्षिण भारत के कुछ राज्यों के सभी धर्मों में सगे ममेरेफुफेरे भाईबहनों की शादी को समाज द्वारा स्वीकृति है).

‘‘मामा खुश हो गया यह सुन कर. उस ने मेरा नाम टीवी रिपेयरिंग डिप्लोमा कोर्स’ में लिखवा दिया. मैं भी खुशीखुशी जाने लगा. खूब बड़ा शहर है हैदराबाद, चारों तरफ मोटरगाडि़यां और चकाचौंध करने वाली भीड़. जब तक अम्मा हैदराबाद रही, सबकुछ ठीकठाक चलता रहा. पर जैसे ही वह मु?ो छोड़ कर गांव चली आई, मामी का व्यवहार मेरे लिए बदल गया. वह रोज किसी न किसी बहाने मु?ो पढ़ने जाने से रोकने की कोशिश करती. वह मामा और मु?ा से लड़ाई भी करती रहती. उसे और उस की बेटी को मेरा वहां रहना, खाना और मामा द्वारा मेरी फीस भरना बिलकुल नहीं भाता था. कारण, मामी अपने सगे भाई के बेटे से अपनी बेटी की शादी करना चाहती थी. मैं उसे गंवार और निकम्मा लगता था.

‘‘उन दिनों मु?ो पहली बार अपने अम्माअप्पा और गांव की बहुत याद आई. जब मामा के घर में रहना मुश्किल हो गया तो एक दिन चुपचाप मैं घर से भाग गया किसी अनजान महल्ले में. एक संकल्प के साथ कि जीवन में कुछ बन कर मामी और उस की बेटी को दिखा दूंगा. उस के बाद से अपना खर्चा चलाने के लिए मैं सुबह क्लास करता और शाम के समय दुकान में नौकरी करता. इसी तरह मैं ने टीवी रिपेयरिंग डिप्लोमा कोर्स के बाद धीरेधीरे मोबाइल और कंप्यूटर रिपेयरिंग कोर्स भी कर लिया और पिछले एक साल से हैदराबाद की एक बड़ी दुकान में काम कर रहा हूं. छुट्टी ले कर अम्मा को देखने आया हूं.’’

चिनम्मा ने साई को छेड़ते हुए कहा, ‘‘तेरी बातें सुन कर लगता है कि अब तो बड़ा सयाना और सम?ादार हो गया है रे तू तो. अच्छा बता, इतने दिनों बाद गांव आ कर तु?ो कैसा लग रहा है, कहीं वापस तो नहीं चला जाएगा शहर फिर से?’’

साई उस के जरा नजदीक आ कर बोला, ‘‘सच कहूं, तो ज्यादा कुछ अच्छा नहीं लगा यहां आ कर. कहीं कुछ भी तो नहीं बदला है इस इलाके में. मेरा अप्पा देशी शराब पीपी कर बेमौत मर गया और तेरे अप्पा जैसे लोग मरने की तैयारी में हैं. मैं तो वापस जाने की सोच रहा था पर समय की कृपा से तभी कल तू दिख गई रामुलु अन्ना की दुकान पर. और तब से अब सबकुछ अच्छा लगने लगा है मु?ो.’’ यह कह कर साई ने प्यार से चिनम्मा का हाथ पकड़ लिया.

‘‘धत,’’ कह कर चिनम्मा ने अपना हाथ छुड़ाया और शरमा कर घर भाग आई.

फिर कई दिनों तक दोनों स्कूल से लौटते वक्त किसी न किसी बहाने मिलते रहे. एकदूसरे के साथ रहना अच्छा लगने लगा था उन्हें. शायद प्यार का अंकुर फूट चुका था दोनों के दिलों में.

बातों ही बातों में साई ने बताया कि वह गांव की अपनी ?ोंपड़ी बेच कर शहर में दुकान खोलने जा रहा है टीवी, मोबाइल और कंप्यूटर रिपेयरिंग की, क्योंकि अब उसे अच्छा अनुभव हो गया है अपने काम का.

चिनम्मा ने भी जब भविष्य में अपने टीचर बनने की बात बताई साई को तो साई ने पूछा, ‘‘लेकिन तू टीचर बनेगी कैसे? तु?ो तो शहर जाना पड़ेगा टीचर बनने का कोर्स (टीचर्स ट्रेनिंग) करने, और तेरा अप्पा तो पक्का नहीं भेजेगा तु?ो.’’

‘‘हां, यह बात तो मैं भी जानती हूं, पर मैं कर भी क्या सकती हूं?’’ निराशाभरे स्वर में चिनम्मा ने कहा.

‘‘एक उपाय है,’’ साई ने कहा.

‘‘वह कौन सा है, बता तो जरा?’’ चिनम्मा ने उत्सकुता से पूछा.

‘‘तू मु?ा से शादी कर ले और चल शहर मेरे साथ आगे की पढ़ाई करने,’’ पता नहीं कैसे साई अपने मन की बात बोल गया अचानक.

‘‘बुद्धू, यह कैसे हो सकता है भला? हम दोनों 2 धर्म के हैं, तू हिंदू और मैं ईसाई. अगर दोनों के घरवालों और समाज को पता चल गया तो तेरीमेरी खैर नहीं, मार कर फेंक देंगे हमें,’’ कह कर चिनम्मा चुप हो गई.

‘‘2 धर्म के हुए तो क्या हुआ, दिल तो मिलता है न अपना. शादी के बाद तू अपना धर्म मानेगी और मैं अपना. हम चर्च और मंदिर दोनों जगह जाया करेंगे, क्या फर्क पड़ता है इन बेबुनियादी बातों से. अगर हिम्मत और हौसला हो तो कोई परिवार और समाज नहीं रोक सकता हम दोनों को,’’ फिल्मी हीरो की तरह बोला साई.

‘‘पर ऐसा करने से तो अप्पा की इज्जत चली जाएगी. मेरे साथ मेरी अम्मा को भी मार डालेगा वह. मु?ो नहीं जाना अपने अम्माअप्पा को छोड़ कर किसी अनजान शहर में कहीं दूर तेरे साथ,’’ चिनम्मा ने छोटे बच्चे की तरह कहा.

उस का डरना स्वाभाविक ही था. असल जिंदगी में वह अपने गांव, चर्च और आसपास के इलाके को छोड़ कर कहीं नहीं गई थी अभी तक.

साई हंसने लगा. फिर गंभीर स्वर में बोला, ‘‘तू बेवकूफ और डरपोक है चिन्नू, जिंदगी में कुछ बनना तो चाहती है पर हिम्मत करने से डरती है. अगर मैं भी तेरी तरह मामी की गालियों और जुल्मों से डर जाता तो कभी भी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाता. बस, मामा की दुकान का एक नौकर बन कर रह जाता.’’

कुछ दिनों बाद साई चला गया, पर जातेजाते अपना, फोन नंबर दे गया अपनी चिन्नू को. यह कह कर, ‘‘जब दिल करे फोन कर लेना दोस्त सम?ा कर.’’ एकदो बार उस का दिल किया साई को फोन करने का, पर अप्पा का खयाल कर वह डर गई.

3 महीने बीत गए. 12वीं की परीक्षा के फौर्म भरने के लिए चिनम्मा को रुपयों की जरूरत थी. अप्पा से तो मांगने का प्रश्न ही नहीं था. बदले में उसे इतनी गालियां मिलतीं, इस का अनुमान कर के ही कांप जाती. पर वह अपना एक साल बरबाद भी नहीं करना चाहती थी. वह रुपए लाए कहां से. बड़ी हिम्मत कर के दबी जबान से अम्मा को बता रही थी, तभी पता नहीं कहां से अप्पा आ गया. आते ही बोला, ‘‘क्या बातें कर रही हो दोनों मांबेटी?’’ अम्मा के बताने पर उस ने तुरंत पूछा, ‘‘कितने रुपए चाहिए तु?ो 12वीं पास करने के लिए?’’

चिनम्मा अवाक रह गई जब अप्पा ने 100-100 के 4 नोट उस के हाथ पर रख दिए. ‘अप्पा के पास इतने रुपए आए कहां से,’ सोचते हुए उस ने पैसे ले लिए. अगले दिन स्कूल जा कर परीक्षा का फौर्म भर दिया चिनम्मा ने. पर उस ने यह भी महसूस किया कि आजकल अप्पा बहुत खुश रहता है और उसे डांटतामारता भी नहीं. तो उस का मन शंका से भर उठा.

12वीं की फाइनल परीक्षा शुरू हो चुकी थी. अंतिम परीक्षा दे कर स्कूल से आने के बाद चिनम्मा ने देखा अम्माअप्पा बड़े मेलमिलाप से धीरेधीरे कुछ बातें कर रहे हैं. उत्सुकता हुई तो दवेपांव अंदर आ कर वह उन की बातें सुनने लगी.

अप्पा अम्मा से कह रहा था कि परसों सोमवार को तू छुट्टी ले ले अपने काम से. शहर जाना है.

अम्मा बोली, ‘‘मगर क्यों?’’

अप्पा ने कहा, ‘‘चिन्नू का पासपोर्ट बनवाना है.’’

‘‘12वीं परीक्षा पास करने के लिए पासपोर्ट बनवाना पड़ता है क्या?’’ अम्मा ने भोलेपन से पूछा.

‘‘अरे नहीं रे, बिलकुल पागल है तू तो,’’ अम्मा को ?िड़कते हुए अप्पा ने कहा, ‘‘मैं ने चिन्नू की शादी तय कर दी है, अपनी मुंहबोली बहन पद्मा अक्का के बेटे नागन्ना से.’’

‘‘वही नागन्ना जो पुलिस के डर से अपनी बीवी और दुधमुंहे बच्चे को छोड़ कर कहीं गायब हो गया था कुछ सालों पहले,’’ अम्मा ने घबरा कर कहा.

‘‘अरे, अब वह पुराना वाला नागन्ना कहां रहा. दुबई में काम करता है. अच्छा कमाताखाता है. पुलिस भी उस का कुछ नहीं कर सकती अब तो. अक्का बता रही थी कि जब वह देश आएगा तो पैसे खर्च कर सारा मामला दबा देगा,’’ अप्पा ने जवाब दिया.

‘‘नहीं करना मु?ो अपनी चिन्नू की शादी ऐसे मवाली से, फिर तेरी पद्मा अक्का कौन सी भली औरत है,’’ यह कह कर अम्मा सुबकने लगी.

‘‘बहुत पैसा है नागन्ना के पास, अपनी चिन्नू राज करेगी वहां. फिर सोच, इस जमाने में बिना दहेज के कौन शादी करेगा हमारी बेटी से. नागन्ना ने दहेज मांगने के बजाय उलटे कहा है कि अगर शादी हो गई तो वह हमें भी हर महीने कुछ पैसे भेजा करेगा अपनी कमाई के. सोच, फिर तु?ो कहीं काम पर भी जाना नहीं पड़ेगा, घर पर आराम से रहेगी तू मेरी रानी बन कर,’’ अप्पा लाड़ से बोला.

‘‘शादी कब होगी?’’ अम्मा के पूछने पर अप्पा बोला, ‘‘12वीं के बाद अपनी चिन्नू दुबई चली जाएगी पद्मा अक्का के साथ. जहां नागन्ना काम करता है. शादी भी वहीं जा कर होगी दोनों की. इसलिए पासपोर्ट बनवाना जरूरी है.’’

यह सुन कर अम्मा शांत हो गई भविष्य में मिलने वाले सुख की कल्पना कर के. गरीबी और अभावभरी जिंदगी होती ही ऐसी है कि जरा सी सुख की चाहत इंसान से हर तरह के सम?ौते करवा लेती है.

यह सब सुन कर सन्न रह गई चिनम्मा. अब उसे सम?ा आ गया कि अप्पा ने पैसे क्यों दिए थे फौर्म भरने के लिए, क्यों खुश रहता है वह आजकल? यह सोच कर कि अप्पा ने उस का सौदा किया है अपने पीने के वास्ते, रातभर रोती रही तकिए में मुंह छिपा कर वह. मन फट गया था उस का अप्पाअम्मा की तरफ से. नहीं माननी है उसे अप्पा की कोई बात, नहीं करनी है उसे उस आपराधिक प्रवृत्ति वाले नागन्ना से शादी, चाहे कितने भी पैसे हों उस के पास या अपने ही धर्म का हो. यह सब सोच कर उस की आंखों से बहने वाले आंसुओं की धार तेज हो गई और उन आंसुओं के साथ धीरेधीरे उस की भय, चिंता और परेशानी सब बह गए.

सुबह उठी, तो दिल और दिमाग थोड़ा शांत था. उसे बारबार साई की कही बात याद आने लगी थी, ‘तू बेवकूफ और डरपोक है चिन्नू, जिंदगी में कुछ बनना तो चाहती है पर हिम्मत करने से डरती है,’ ठीक ही तो कह रहा था साई. मु?ा में हिम्मत की कमी थी अब तक. पर अब नहीं. अब वह किसी से भी नहीं डरेगी, अपने अप्पा से तो बिलकुल नहीं.

ऐसा निश्चय कर पूर्ण आत्मविश्वास के साथ चिनम्मा चुपचाप निकल पड़ी साई को फोन करने.

पता नहीं, क्या बात हुई दोनों में, 2 दिनों बाद पासपोर्ट बनवाने विशाखापट्टनम गई चिनम्मा अचानक गायब हो गई. अम्माअप्पा ने बहुत ढूंढ़ा, पर कुछ पता नहीं चला. रोतेबिलखते दोनों गांव वापस आ गए. कुछ दिनों तक उस के गायब होने की चर्चा होती रही, फिर सबकुछ शांत हो गया. 6 वर्षों बाद वह लौटी अपने साई के साथ उसी स्कूल की मैडम बन कर, जहां वह पढ़ती थी. उस की गोद में एक नन्ही सी गुडि़या भी थी.

फसलचक्र का फायदा

पुराने जमाने से ही इनसान अपने भोजन के लिए तमाम तरह की फसलें उगाता रहा है. ये उगाई जाने वाली फसलें मौसम के मुताबिक अलगअलग होती हैं. शुरू से ही किसी खेत में एक ही फसल न उगा कर फसलें बदलबदल कर उगाने की परंपरा चली आ रही है. परंतु यह परंपरा खास वैज्ञानिक सिद्धांतों पर न आधारित हो कर सामान्य जरूरत के मुताबिक चलती आ रही थी. परंतु आज नएनए तजरबों व खोजों के आधार पर यह जान लिया गया है कि लगातार एक ही फसल को उगाने से उत्पादन में कमी आ जाती है. लिहाजा उत्पादकता को बनाए रखने के लिए फसलचक्र का सिद्धांत बनाया गया है.

फसलचक्र : किसी खास रकबे में तय समय के लिए जमीन की उर्वरता को बनाए रखने के मकसद से फसलों को अदलबदल कर उगाने के काम को फसलचक्र कहा जाता?है. यानी किसी तय इलाके में एक तय वक्त पर फसलों को इस क्रम में उगाया जाना कि जमीन की उर्वरा शक्ति का कम से कम नुकसान हो, फसलचक्र कहलाता है.

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फसलचक्र का महत्त्व : मौजूदा वक्त में खेती में उत्पादन व उत्पादकता में?ठहराव या कमी आने की वजहों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि फसलचक्र सिद्धांत का न अपनाया जाना भी इस की एक खास वजह है.?फसलचक्र न अपनाने से जमीन में जीवांश की मात्रा और सूक्ष्म जीवों की कमी हो जाती?है. मित्र जीवों की संख्या में कमी हो जाती है और हानिकारक कीटपतंगों की मात्रा बढ़ जाती है. इस से खरपतवार की समस्या में बढ़ोतरी होती?है और जमीन की जलधारण कूवत में कमी हो जाती?है. जमीन के भौतिक व रासायनिक गुणों में परिवर्तन हो जाता है और क्षारीयता में बढ़ोतरी हो जाती है.

आज उत्पाद बढ़ोतरी रुक गई है, लिहाजा एक तय मात्रा में उत्पादन हासिल करने के लिए पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा मात्रा में उर्वरकों का इस्तेमाल करना पड़ रहा?है. मौजूदा हालात में फसलचक्र के सिद्धांतों को अपनाते हुए उस में दलहनी फसलों को शामिल करना होगा, क्योंकि दलहनी फसलों से एक टिकाऊ फसल उत्पादन प्रक्रिया विकसित होती?है.

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फसलचक्र के सिद्धांत : फसलचक्र में निम्न खास बातों को ध्यान में रखना जरूरी होता?है:

* ज्यादा खाद चाहने वाली फसलों के बाद कम खाद चाहने वाली फसलों का उत्पादन.

* ज्यादा पानी चाहने वाली फसलों के बाद कम पानी चाहने वाली फसलें उगाना.

* ज्यादा निराईगुड़ाई चाहने वाली फसलों के बाद कम निराईगुड़ाई चाहने वाली फसलें उगाना.

* धान्य फसलों के बाद दलहनी फसलों का उत्पादन.

* ज्यादा मात्रा में पोषक तत्त्व शोषण करने वाली फसलों के बाद खेत में परती रखना.

* एक ही नाशी जीव से प्रभावित होने वाली फसलों को लगातार नहीं उगाना.

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* स्थानीय बाजार की मांग के मुताबिक फसलें शामिल करना.

* जलवायु और किसान की आर्थिक कूवत के मुताबिक फसलें शामिल करना.

* उथली जड़ वाली फसलों के बाद गहरी जड़ वाली फसलें उगाना.

उत्तर प्रदेश सूबे के मुताबिक फसलचक्र इस प्रकार हैं:

परती पर आधारित फसलचक्र : परती गेहूं, परती आलू, परती सरसों, परती धान वगैरह.

हरी खाद पर आधारित फसलचक्र : इस में फसल उगाने के लिए हरी खाद का इस्तेमाल किया जात है. जैसे हरी खाद गेहूं, हरी खाद धान, हरी खाद केला, हरी खाद आलू, हरी खाद गन्ना वगैरह.

दलहनी फसलों पर आधारित फसलचक्र : मूंग गेहूं, धान चना, कपास मटर गेहूं, ज्वार चना, बाजरा चना, मूंगफली अरहर, मूंग गेहूं, धान चना, कपास मटर गेहूं, ज्वार चना, बाजरा चना, धान मटर, धान मटर गन्ना, मूंगफली अरहर गन्ना, मसूर मेंथा, मटर मेंथा.

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अन्न की फसलों पर आधारित फसलचक्र : मक्का गेहूं, धान गेहूं, ज्वार गेहूं, बाजरा गेहूं, गन्ना गेहूं, धान गन्ना पेड़ी, मक्का जौ, धान बरसीम, चना गेहूं, मक्का उड़द गेहूं वगैरह.

सब्जी आधारित फसलचक्र : भिंडी मटर, पालक टमाटर, फूलगोभी मूली बंदगोभी मूली, बैगन लौकी, टिंडा आलू मूली, करेला, भिंडी मूली, गोभी तुरई, घुइयां शलजम भिंडी गाजर, धान आलू टमाटर, धान लहसुन मिर्च, धान आलू लौकी वगैरह.

फसलचक्र के फायदे

* किसी खेत में लगातार एक ही फसल उगाने की वजह से कम उपज हासिल होती है और जमीन की उर्वरता खराब होती है. फसलचक्र अपनाने से ऐसा नहीं होता है.

* फसलचक्र से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और जमीन में कार्बन नाइट्रोजन के अनुपात में बढ़ोतरी होती?है.

* जमीन के पीएच और क्षारीयता में सुधार होता है.

* जमीन की संरचना में सुधार होता है.

* मिट्टी क्षरण की रोकथाम होती है.

* फसलों का बीमारियों से बचाव होता है.

* कीटों की रोकथाम होता है.

* खरपतवारों की रोकथाम होती है.

* साल भर आमदनी हासिल होती रहती है.

* जमीन में जहरीले पदार्थ जमा नहीं होने पाते?हैं.

* उर्वरकों की बची मात्रा का पूरा इस्तेमाल हो जाता है.

* सीमित सिंचाई सुविधा का पूरा इस्तेमाल हो जाता है.

डा. अनंत कुमार, डा. पीके मडके, डा. अरविंद कुमार, डा. हंसराज सिंह

(कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद)

चिनम्मा- भाग 2: चिन्नू का गेट पर कौन इंतजार कर रहा था?

अन्ना और चिनम्मा का वार्त्तालाप जारी था. इसी बीच किसी ने 100 रुपए का एक नया नोट अन्ना को पकड़ाते हुए चिनम्मा के पीछे खड़े हो कर कहा, ‘‘अन्ना, एक ठंडी पैप्सी देना, बहुत प्यास लग रही है,’’ आवाज कुछ पहचानी सी लगी. पलट कर चिन्नू ने देखा तो उस से 3 कक्षा आगे पढ़ने वाला उस के स्कूल का सब से शैतान बच्चा साई खड़ा है. वह एकटक उसे देख कर सोचने लगी, यह यहां कैसे? स्कूल में सब कहते थे कि इसे तो इस की शैतानी से परेशान हो कर इस की विधवा अम्मा ने 3 साल पहले ही कहीं भेज दिया था किसी रिश्तेदार के घर.

उसे लगातार अपनी तरफ देख कर साई ने हंसते हुए कहा, ‘‘चिनम्मा ही है न तू, क्या चंदा के माफिक चमकने लगी इन 3 सालों में, पहचान में ही नहीं आ रही तू तो.’’

एकदम से सकपका सी गई वह साई की इस बात को सुन कर. कहना तो वह भी चाहती थी, ‘तू भी तो बिलकुल पवन तेजा (तेलुगू फिल्मी हीरो) की माफिक स्मार्ट और सयाना बन गया है. पर पता नहीं क्यों बोलने में शर्म आई उसे. वह तेल ले, नजर ?ाका, घर भाग आई तेजी से.

अप्पा के आने का समय हो रहा था. ढिबरी जला कर जल्दीजल्दी सूखी मछली का शोरबा और चावल बनाया तथा थोड़ी लालमिर्च भी भून कर रख दी अलग से. अप्पा को भुनी मिर्च बहुत पसंद है. घर का सारा काम निबटा कर पढ़ने बैठ गई. पर पता नहीं क्यों सामने किताब खुली होने पर भी वह पढ़ नहीं पा रही थी आज.

इसी बीच, अप्पा के तेज खर्राटों की आवाज आनी शुरू हो गई. चिनम्मा ने करवट बदली. अम्मा भी बेसुध सो रही थी. खर्राटों की आवाज से उस का सोना मुश्किल हो रहा था. आज ढंग से पढ़ाई न कर पाने के कारण अपनेआप से खफा भी थी वह. चिनम्मा को तो बहुत सारी पढ़ाई करनी है, उसे वरलक्ष्मी मैडम की तरह टीचर बनना है जो उस के स्कूल में पढ़ाती हैं.

रोज साफसुथरी और सुंदरसुंदर साडि़यां पहन कर कंधे पर बड़ा सा बैग लटकाए जब मैडम स्कूल आती हैं तो उन्हें देखते ही बनता है. क्या ठाट हैं उन के? पढ़ाई के संबंध में अम्मा तो उसे कुछ ज्यादा नहीं कहती पर जब किताब खरीदने या स्कूल के मामूली खर्चे की भी बात आती तो अप्पा नाराज हो कर अम्मा से कहने लगता है, ‘देखो, लड़की बिगड़ न जाए ज्यादा पढ़ कर. ज्यादा पढ़ लेगी, तो हमारे मछुआरे समाज में कोई अच्छा लड़का शादी को भी तैयार नहीं होगा. फिर उसे पढ़ा कर फायदा भी क्या? कौन सा हम लोगों के बुढ़ापे का सहारा बनेगी, चली जाएगी दूसरे का घर भरने.’

काफी करवटें बदलने के बाद भी जब उसे नींद नहीं आई तो वह उठ कर ?ोंपड़ी की छोटी सी खिड़की से बाहर देखने लगी. रात के लगभग 10 बजे होंगे. पूरा गांव सो रहा था. बस, बीचबीच में कुत्तों के भूंकने की आवाज आ रही थी. चांद की दूधिया रोशनी से सारा समुद्र बहुत शांत और गंभीर लग रहा था. समुद्रतट पर रखी छोटीछोटी नावों को देख कर ऐसा महसूस हो रहा था मानो वे भी आराम कर रही हों.

मुंहअंधेरे (ढाई से 3 बजे के लगभग) गांव के अधिकांश मर्द अपना जाल समेटे, लालटेन लिए तीनचार समूह बना कर एकएक नाव में बैठ जाएंगे और निकल पड़ेंगे अथाह समुद्र में दूर तक मछलियां पकड़ने. दोचार मछुआरों के पास अपनी नावें हैं, नहीं तो ज्यादातर किराए की नावों का ही प्रयोग करते हैं. समुद्र में जाल डाल कर घंटों इंतजार करना पड़ता है उन्हें. कभी तो ढेर सारी मछलियां हाथ लग जाती हैं एकसाथ, पर कभीकभी खाली हाथ भी आना पड़ता है. वापस आतेआते 9-10 बज जाते हैं. औरतें खाना बना कर पति का इंतजार करती रहती हैं. जैसे ही नाव आनी शुरू हो जाती, शहर से आए थोक व्यापारी मोलभाव कर के सस्ते में मछलियां खरीद कर ले जाते हैं.

बची हुई पारा, सुरमई, पाम्फ्रेड, बांगडा, प्रौन आदि मिश्रित मछलियों को ले कर औरतें तुरंत निकल जाती हैं घरघर बेचने. मर्द खाना खा कर सो जाते हैं. जब तक मर्दों की नींद पूरी होती, तब तक औरतें मछलियां बेच कर मिले पैसों से घर का जरूरी सामान खरीद वापस आ जाती हैं. फिर शाम का खानापीना, शहर की लंबीलंबी बातें, फिल्मों की गपशप, हंसीमजाक और अकसर गालीगलौज भी.

मछुआरों में मुख्यतया हिंदू या ईसाई धर्मावलंबी हैं. पर उन सब का पहला धर्म यह है कि वे मछुआरे हैं. मछली पकड़ने भी रोज नहीं जाया जा सकता, मछुआरे समाज की मान्यता है कि ऐसा करने से समुद्र जल्दी ही खाली हो जाएगा और फिर देवता के कोप से उन्हें कोई बचा नहीं सकता. साल के लगभग 3 महीने जब मछलियों के ब्रीडिंग का समय होता है, मछुआरे समुद्र में मछली मारने नहीं जाते. यह उन का उसूल है. ऐसे समय छोटे मछुआरों के घरों की हालत और खराब हो जाती है. तब इन में से ज्यादातर मजदूरी करने विशाखापट्टनम या हैदराबाद जैसे शहरों में चले जाते हैं.

चिनम्मा का परिवार पहले हिंदू था. पर आर्थिक सहायता मिलने की आशा में अप्पा ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है. और हर रविवार को चर्च जरूर जाता है. घर में चाहे कितनी भी आर्थिक तंगी हो, चिनम्मा का अप्पा तो गांव छोड़ कर कभी कहीं नहीं जाता कमाने. उसे कमाने से ज्यादा पीने से मतलब है. जिस दिन कमाई के पैसे नहीं हों, तो घर का कोई बरतन ही बेच कर अपना काम चला लेता है. अम्मा बेचारी करे भी तो क्या करे? लड़ती?ागड़ती और अपने समय को कोसती हुई अप्पा को गालियां देती रहती है. उस ने तो गृहस्थी चलाने और पेट भरने के लिए डौल्फिन पहाड़ी पर बसी नेवी कालोनी में नौकरानी का काम शुरू कर दिया है.

अप्पा के खांसने की आवाज से चिनम्मा का ध्यान भंग हुआ, वह वापस आ कर लेट गई. सोचतेसोचते पता नहीं कब नींद ने उसे अपनी आगोश में ले लिया. सुबह अम्मा की तेज आवाज से नींद खुली. साढ़े 6 बज गए. आज बिस्तर पर ही पड़ी रहेगी क्या चिन्नू? कौफी बना कर रख दी है, पी लेना. मैं काम पर जा रही हूं.

 

चिनम्मा- भाग 1: चिन्नू का गेट पर कौन इंतजार कर रहा था?

एक सीमित सी दुनिया थी चिनम्मा की. गरीबी में पलीबढ़ी वह, फिर भी पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी लेकिन उस के अप्पा की मंशा तो कुछ और ही थी…

पढ़तेपढ़ते बीच में ही चिनम्मा दीवार पर टंगे छोटे से आईने के सामने खड़े हो ढिबरी की मद्धिम रोशनी में अपना चेहरा फिर से बड़े गौर से देखने लगी. आज उस का दिल पढ़ाई में बिलकुल नहीं लग रहा था. शाम से ले कर अब तक न जाने कितनी बार आईने के सामने खड़ी हो वह खुद को निहार चुकी थी. बड़ीबड़ी कजरारी आंखें, खड़ी नाक, सांवला पर दमकता रंग और मासूमियतभरा अंडाकार चेहरा. तभी हवा का एक ?ोंका आया और काली घुंघराली लटों ने उस के आधे चेहरे को ढक कर उस की खूबसूरती में चारचांद लगा दिए. एक मधुर, मंद मुसकान उस 18 वर्षीया नवयुवती के चेहरे पर फैल गई. उसे अपनेआप पर नाज हो रहा था. हो भी क्यों न. किसी ने आज उस की तारीफ करते हुए कहा था, ‘चिनम्मा ही है न तू, क्या चंदा के माफिक चमकने लगी इन 3 सालों में, पहचान में ही नहीं आ रही तू तो.’

तभी अप्पा की कर्कश आवाज आई, ‘‘अरे चिन्नू, रातभर ढिबरी जलाए रखेगी क्या? क्या तेल खर्च नहीं हो रहा है?’’ तेल क्या तेरा मामा भरवाएगा. चल ढिबरी बुझा और सो जा चुपचाप. अप्पा की आवाज सुन कर वह डर गई और ?ाट से ढिबरी बु?ा कर जमीन पर बिछी नारियल की चटाई पर लेट गई. अप्पा शराब के नशे में टुन्न था. चिनम्मा को पता था कि ढिबरी बु?ाने में जरा सी भी देर हो जाती तो वह मारकूट कर उस की हालत खराब कर देता. अगर अम्मा बीचबचाव करने आती, तो उसे भी चुनचुन कर ऐसी गालियां देता कि गिनना मुश्किल हो जाता. पर आज उसे नींद भी नहीं आ रही थी. रहरह कर साई की आवाज उस के कानों को ?ांकृत कर रही थी.

चिनम्मा एक गरीब मछुआरे की इकलौती बेटी है. उस के आगेपीछे कई भाईबहन आए, पर जिंदा नहीं बच पाए. अम्मा व अप्पा और गांववालों को विश्वास है कि ऐसा समुद्र देवता के कोप के कारण हुआ है. चूंकि समुद्र के साथ मछुआरों का नाता अटूट होता है, इसलिए अपनी जिंदगी में घटित होने वाले सारे सुखोंदुखों को वे समुद्र से जोड़ कर ही देखते हैं. अप्पा चिनम्मा को प्यार करता है पर जब ज्यादा पी लेता है तो बेटा नहीं होने की भड़ास भी कभीकभी मांबेटी पर निकालता रहता है.

लंबेलंबे नारियल और ताड़ के वृक्षों से आच्छादित चिनम्मा का छोटा सा गांव यारडा, विशाखापट्टनम के डौल्फिन पहाड़ी की तलहटी में स्थित है, जिस का दूसरा हिस्सा बंगाल की खाड़ी की ऊंची हिलोरें मारती लहरों से जुड़ा हुआ है. आसपास का दृश्य काफी लुभावना है. लोग दूरदूर से यारडा बीच (समुद्र तट) घूमने आते हैं. प्राकृतिक सौंदर्य से यह गांव व इस के आसपास का इलाका जितना संपन्न है आर्थिक रूप से उतना ही विपन्न.

गांव के अधिकांश निवासी गरीब मछुआरे हैं. मछली पकड़ कर जीवननिर्वाह करना ही उन का मुख्य व्यवसाय है. 30-35 घरों वाले इस गांव में 5-6 पक्के मकान हैं जो बड़े और संपन्न मछुआरों के हैं. बाकी सब ?ोंपडि़यां ईटपत्थर और मिट्टी की बनी हैं, जिन पर टीन और नारियल के छप्पर हैं. गांव में 2 सरकारी नल हैं, जहां सुबहशाम पानी लेने वालों की भीड़ लगी रहती है. नजर बचा कर एकदूसरे के मटके को आगेपीछे करने के चक्कर में लगभग रोज वहां महाभारत छिड़ा रहता है. कभीकभी तो हाथापाई की नौबत भी आ जाती है.

गांव से करीब एक किलोमीटर पर 12वीं कक्षा तक का सरकारी विद्यालय है जहां आसपास के कई गांव के बच्चे पढ़ने जाते हैं. कहने को तो वे बच्चे विद्यालय जाते हैं पढ़ने, पर पढ़ने वाले इक्कादुक्का ही हैं, बाकी सब टीवी, सिनेमा, फैशन, फिल्मी गाने और सैक्स आदि की बातें ही करते हैं. उन्हें पता है कि बड़े हो कर मछली पकड़ने का अपना पुश्तैनी धंधा ही करना है तो फिर इन पुस्तकों को पढ़ने से क्या फायदा?

पर चिनम्मा इन से थोड़ी अलग है. वह बहुत ध्यान से पढ़ाई करती है. उसे बिलकुल पसंद नहीं है मछुआरों की अभावभरी जिंदगी, जहां लगभग रोज ही मर्र्द शराब के नशे में औरतों, बच्चों से गालीगलौज और मारपीट करते हैं. ये औरतें भी कुछ कम नहीं. जब मर्द अकेला पीता है तो उन्हें बरदाश्त नहीं होता, अगर हाथ में कुछ पैसे आ जाएं तो ये भी पी कर मदहोश हो जाती हैं.

गांव में सरकारी बिजली की सुविधा भी है. फलस्वरूप हर ?ोंपड़ी में चाहे खाने को कुछ न भी हो पर सैकंडहैंड टीवी जरूर है. हां, यह बात अलग है कि समुद्री चक्रवात आने या तेज समुद्री हवा चलने के कारण अकसर इस इलाके में बिजली 8-10 दिनों के लिए गुल हो जाती है. अभी 3 दिनों पहले आए समुद्री हवा के तेज ?ोंके से बिजली फिर गुल हो गई है गांव में. शायद 2-4 दिन और लगें टूटे तारों को ठीक होने और बिजली आने में. तब तक तो ढिबरी से ही काम चलाना पड़ेगा पूरे गांव वालों को.

आज अम्मा जब काम से लौटी तो शाम होने वाली थी, ज्यादा थकी होने के कारण उस ने चिन्नू (चिनम्मा) को रामुलु अन्ना से उधार में केरोसिन तेल लाने भेजा था. अन्ना ने उधार के नाम पर तेल देने से मना कर दिया क्योंकि पहले का ही काफी पैसा बाकी था उस का. पर चिन्नु कहां मानने वाली थी, मिन्नतें करने लगी, ‘‘अन्ना तेल दे दो वरना अंधेरे में खाना कैसे बनाऊंगी आज मैं? अम्मा ने कहा है, अभी अप्पा पैसे ले कर आने वाला है. अप्पा जैसे ही पैसे ले कर आएगा, मैं दौड़ कर तुम्हें दे जाऊंगी.’’

Crime Story: आखिर अपराधी पुलिस को फिंगरप्रिंट देने से इतनी आनाकानी क्यों करते हैं?

जी,हाँ बड़े अपराधियों को तो छोड़िये, छोटा से छोटा अपराधी भी आराम से पुलिस को अपने फिंगरप्रिंट नहीं लेने देता. जबकि पुलिस हमेशा अपराधियों के फिंगरप्रिंट पाने के फिराक में रहती है. यही वजह है कि जब भी पुलिस किसी अपराध के मौका-ए-वारदात में पहुंचती है, तो सबसे पहले फोरेंसिक एक्सपर्ट वहां अपराधियों के फिंगरप्रिंट तलाशते हैं. यह कवायद इसलिए होती है; क्योंकि अगर अपराधी के फिंगरप्रिंट मिल गये तो उसकी पहचान अकाट्य रूपसे आसान हो जाती है. फिंगरप्रिंट का मिलान हो जाने पर कोई अपराधी पुलिस को चकमा नहीं दे सकता.

सवाल है,ऐसा इसलिए होता है ? ऐसा इसलिए होता है,क्योंकि धरती का हर इंसान अपनी ही तरह के एक खास फिंगरप्रिंट के साथ पैदा होता है और दुनिया के किन्हीं भी दो मनुष्यों के फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते. यहां तक कि साथ साथ पैदा हुए दो जुड़वां बच्चों के भी फिंगरप्रिंट एक दूसरे से भिन्न होते हैं. कोई अपराधी कितनी भी चालाकी कर ले, लेकिन वह अपने फिंगरप्रिंट नहीं बदल सकता. हद तो यह है कि फिंगरप्रिंट इंसान के मरने के बाद भी तब तक ज्यों के त्यों रहते हैं, जब तक अंगुलियों में त्वचा बरकरार रहती है.

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फिंगरप्रिंट के संबंध में एक अद्भुत किस्सा सुनिये . अमरीका के हेंस गलासी ने वेक बोर्डिग के दौरान हुई एक दुर्घटना में अपनी कई अंगुलियां गंवा दी थीं . इनमें से एक उंगली एक मछली के पेट में मिली. अब आप कह सकते हैं, ये कैसे पता कि वह अंगुली हेंस गलासी की ही थी, तो जनाब इसका पता यूं चला कि मछली के पेट में मिली उंगली के फिंगरप्रिंट हेंस के फिंगरप्रिंट से हूबहू मिल गये. चूंकि दुनिया में किन्हीं भी दो इंसानों के फिंगरप्रिंट एक से नहीं होते,इसलिए वह उंगली हेंस गलासी की हुई. फिंगरप्रिंट को लेकर यह सवाल भी उठता है कि आखिर उंगली में निशान कब तक रहते हैं? वैज्ञानिकों का मानना है कि इंसान के मरने के बाद भी जब तक फिंगर बची रहती है, यानी उँगलियों में त्वचा बनी रहती है तब तक फिंगरप्रिंट ज्यों का त्यों रहते हैं.

मतलब यह कि इंसान की अंगुलियों के निशान कभी नहीं मिटते. एक और बात जान लीजिए कि अंगुलियों के ये विशेष निशान सिर्फ हाथ की उँगलियों तक ही सीमित नहीं होते बल्कि हथेली और पैर के तलवों में भी ऐसे ही अद्वितीय निशान या प्रिंट होते हैं. हाथ चोटिल हो जाय, लगातार बर्तन धोयें, ईंट भट्टों में ईंट बनाने का काम करने,इस सबसे त्वचा काफी खराब हो जाती है,जिस कारण अंगुलियों के निशान यानी फिंगरप्रिंट तात्कालिक तौरपर धुंधले पड़ जाते हैं या मिट भी जाते हैं. लेकिन जैसे ही हम इस तरह की गतिविधियों से बाहर आते हैं, अंगुलियों के निशान फिर वैसे के वैसे हो जाते हैं, जैसे मां के पेट से पैदा होने के समय थे.

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हद तो यह है कि पिछली सदी के 1930 के दशक में एक अमरीकी गैंग्स्टर जॉन डिलिंजर ने अपने फिंगरप्रिंट छुपाने के लिए हाथों को तेजाब से जला लिया. लेकिन तेजाब से जली हुई त्वचा जैसे ही ठीक हुई, डिलिंजर की अंगुलियों में फिर वैसे ही निशान आ गये, जैसे पहले थे. कहने का मतलब यह कि हाथ की अंगुलियों के निशान अजर अमर हैं. इन्हें किसी साजिश के तहत कुछ समय के लिए तो हटाया जा सकता है. लेकिन हमेशा के लिए तभी ये हट सकते हैं, यदि हाथ काट दिये जाएं. एक और अपराधी रोबर्ट फिलिप्स ने तो अंगुलियों के निशान से छुटकारा पाने के लिए अपनी अंगुलियों पर सीने की त्वचा की सर्जरी करवा ली थी, लेकिन यह होशियारी भी बेकार गई; क्योंकि अंगुलियों की त्वचा जल्द ही फिर से पहले जैसे हो गई.

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सवाल है ऐसा कैसे होता है? ब्रिटेन की पुलिस के लिए मैन्युअल तैयार करने वाले फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट ऐलन बायली के मुताबिक ऐसा फ्रिक्शन रिजेश यानी भारी घर्षण बल के कारण होता है. जब तक इंसान की त्वचा सड़कर नष्ट नहीं हो जाती, तब तक अंगुलियों के निशान मिट नहीं सकते. लब्बोलुआब यह कि जब तक इंसान की अंगुलियों  में त्वचा है, तब तक अंगुलियों के निशान अजर अमर हैं .

बिग बॉस 14: एजाज खान ने जान कुमार सानू का हाथ डलवाए टॉयलेट में तो लोगों ने किया ये कमेंट

बिग बॉस के घर में कब क्या हो जाए किसी को कुछ नहं पता होता है. ऐसे में आएं दिन कुछ न कुछ ड्रामा होता रहता है. ऐसे में कब किसके साथ क्या हो जाए कुछ नहीं जानता है. नॉमिनेशन टास्क में एजाज खान ने जैसे पवित्रा पुनिया को धोखा दिया था.

ये बात जान कुमार सानू के गले से नीचे नहीं उतरी थी. वहीं जान कुमार सानू के हालात को देखते हुए एजाज खान ने अपनी भड़ास को निकालने के लिए खरीखोटी सुनाने लगे.

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वहीं बिग बॉस 14 के अपकमिंग टास्क में लग्जरी बजट टास्क दिया जाएगा. एक टीम फरिश्ता का रिश्ता निभाते नजर आएगा तो वहीं दूसरा टीम शैतानों की भूमिका में नजर आएगी.

शैतानों की टीम समय-समय पर नया कार्य देती रहेंगी. इस टास्क के लिए घरवालों को दो टमों में बांटा जाएगा. अगर कोई टीम कार्य करने से मना करेगा तो उस टीम को बाहर निकाल दिया जाएगा. इस टीम के टास्क को पूरा करने के लिए एजाज खान अपनी सारी हदें पार करते नजर आएंगे.

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एजाज खान जान कुमार सानू के टॉयलेट में हाथ डालने को कहेंगे जिसके बाद से वह हाथ को चाटने के लिए भी बोलेंगे. एजाज खान की इस घटिया हरकत के बाद घर के कई सारे लोग उनसे नफरत करना शुरु कर देंगे.

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एजाज खान इस हरकत के बाद घरवालों की नजरों में और भी ज्यादा गिर जाएंगे . अब देखना यह है कि एजाज खान  के साथ घरवाले किस तरह के वर्ताव करते हैं. क्या एजाज खान को लोग पसंद कर पाएंगे. या फिर आगे तक एजाज खान घर में रुक पाएंगे या नहीं.

ये रिश्ता क्या कहलाता है: आखिर क्यों कायरव ,वंश और कृष को किडनैप करने की कोशिश करेगा आदित्या

ये रिश्ता क्या कहलाता है में आए दिन कुछ न कुछ नया ड्रामा देखने को मिलता है. पिछले दिनों दिखा था कि नायरा कायरव को बोर्डिंग को स्कूल भेजने की तैयारी कर रही है. इन सब के बावजूद भी  मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही है.

दरअसल, नायरा कार्तिक की वजह से कृष्णा और कायरव में दोस्ती अच्छी हो गई है. इससे पहले कैरव कृष्णा से बात भी नहीं करना चाहता था. वहीं अब कृष और वंश भी कृष्णा को अपनी बड़ी बहन मानने को तैयार हो गए है.

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खैर एक बार फिर इस सीरियल को देखने वाले लोगों को झटका लगने वाला है. नायरा और कार्तिक के खिलाफ एक बार फिर आदित्या अपना अलग दाव खेलता नजर आएगा.

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एक रिपोर्ट के अनुसार कृष, वंश और कायरव को आदित्या बहलाते फुसलाते नजर आएगा. आदित्या तीनों को किडनैप करने की कोशिश करना चाहेगा. फिर गोयनका परिवार से मांग करते नजर आएगा. वहीं कृष, वंश और कैरव जल्द ही उनके इरादे को भांप लेंगे. लेकिन बच्चें जल्द ही उसके इरादे को पहचान लेंगे.

अपनी प्लानिंग के अनुसार कृष, वंश और कायरव आदित्या की बहुत ज्यादा पिटा करते नजर आएंगे. जैसे ही तीनों घर पहुंचकर परिवार वाले को सारी बात बताएंगे सभी लोग हैरान हो जाएंगे. वहीं नायरा और कार्तिक के होश उड़ जाएंगे.

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घर वाले सारे बातों को जानने के बाद पुलिस को केस दर्ज करवाने के बारे में सोचेंगे. जिसके बाद आदित्या की सच्चाई सामने आ जाएगी.

वहीं सीरियल के मेकर्स लगातार इसकी टीआरपी  लाने के लिए कोशिश कर रहे हैं. लेकिन सीरियल की टीआरपी पर कोई फर्क नहीं पड़ता है. अब देखना यह है कि आगे सीरियल में होता क्या है.

Diwali Special: मालपुआ कम समय में कैसे बनाएं, जानें यहां

मालपुआ एक पारंपरिक डिश है जो लगभग हर घर में बनाया जाता है. इसे हर जगह- अलग-अलग तरीके से बनाया जाता है आइए जानते हैं मालपुआ बनाने का आसान तरीका.

समाग्री

1 कप मैदा छना हुआ,

1 कप दूध, 1 चम्मच सौंफ,

डेढ़ कप शक्कर,

1 चम्मच नीबू रस,

घी (तलने और मोयन के लिए),

डेकोरेशन के लिए मेवे की कतरन,

1 चम्मच इलायची पावडर

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विधि

-पहले मैदे में दो बड़े चम्मच घी का मोयन डालें, तत्पश्चात दूध और सौंफ मिलाएं और घोल तैयार कर लें. एक मोटे पेंदे के बर्तन में शक्कर, नीबू रस और तीन कप पानी डालकर चाशनी तैयार कर लें.

-एक कड़ाही में घी गर्म करके एक बड़े चम्मच से घोल डालते जाएं और करारा फ्राई होने तक तले . फिर चाशनी में डुबोएं और एक अलग बर्तन में रखते जाएं.

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-इस तरह सभी मालपुआ तैयार कर लें और ऊपर से मेवे की कतरन और इलायची बुरका कर अमावस्या पर शंकरजी को मालपूए का भोग लगाएं.

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