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चोरों के निशाने पर शादी समारोह

शादी समारोह में नकदी और जेवर होते ही है. अनजान लोग और हडबडी भरा महौल भी रहता है. यह चोरी के लिये सबसे मुफीद होता है. ऐसे में चोरो की नजर अपने शिकार पर होती है. सावधान रह कर ही ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता है.लखनऊ के गुडम्बा थाना क्षेत्र स्थित आशीर्वाद पैलेस में शादी का समारोह चल रहा था. औरेया जिले के रहने वाले राम नरेश दुबे के छोटे बेटे राज की शादी लखनऊ में  रहने वाली लडकी नेहा से तय हुई थी. रात का करीब 10 बजकर 30 मिनट हुआ था. द्वारचार का कार्यक्रम हो चुका था और जयमाल सम्पन्न हो रहा था. लोग घर वालों के साथ फोटो खिचवाने के लिये तैयार हो रहे थे. दुल्हे के पिता राम नरेश जेवर से भरा बैग दुल्हन के पीछे कुर्सी के पास रख दिया. वहां पर परिवार की दूसरी तमाम औरतें भी बैठी थी. एक 12-13 साल का लडका वहीं आकर बैठ गया. बच्चा होने के कारण किसी का ध्यान उस तरफ नहीं गया.

मौका पाते ही मेहमान बन पहुचे लडके ने जेवर से भरा बैग उठा लिया. बैग उठाकर वह बच्चा कब भाग गया किसी को पता ही नहीं चला. राम नरेश ने जब जेवर देने के लिय बैग खोजा तो वह गायब मिला. बैग में सोने की चूडी, हार, अंगूठी और मांग टीका रखा था. करीब 6 लाख कीमत के गहने चोरी हो गये थे. बैग में नाते रिश्तेदार से मिले नेग के कुछ पैसे भी थे. चोरी का मुकदमा गुडम्बा थाने में दर्ज हुआ. पुलिस ने आशीर्वाद पैलेस में लगे सीसीटीवी कैमरे से पता किया तो कैमरे में एक युवक बैग ले जाते दिखा.

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सर्तकता से बचाव संभव:
दूसरी घटना में भी ठीक इसी तरह से जेवर और पैसों से भरा बैग गायब हो गया. यहां किसी भी तरह का सीसीटीवी कैमरा भी नहीं लगा था. जिसकी वजह से यह पता भी नहीं चला कि क्या हो गया ? जिला प्रशासन ने शादियों में होने वाली चोरियों को देखते हुये सभी शादी घरों को यह कहा है कि वह अपने यहां पर सीवीटीवी कैमरे लगवायें. जिन शादी घरों में ऐसे कैमरा नही लगा है वहां प्रशासन लगवाने के लिये कह रहा है. कैमरे लगवाने से शादी घर भी जिम्मेदारी से बच जाते है. शादी घर के मालिक देवेन्द्र कुमार कहते है ‘कैमरा रहने से पुलिस को जांच में मदद मिलती है. शादी घर भी मुसीबत से बचे रहते है. क्योकि अधिकांश लोग ऐसी हालत में शादी घरों पर ही चोरी का इल्जाम लगा देते है.
गुडम्बा थाने के इंसपेक्टर रितेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया ‘शादियों का सीजन शुरू होते ही मैरिज हौल में चोरी की घटनायें बढ जाती है. चोरी के काम में बच्चे भले ही शामिल हो पर इनके पीछे बडे लोगों का हाथ होता है. बडे लोग गिरोह का संचालन और चोरी के माल को छिपाने का काम करते है. बच्चों पर किसी का कोई शक नहीं जाता है इस कारण बच्चों को केवल सामान चोरी करने का काम सौंपा जाता है. गिरोह चलाने वाले बच्चों को चोरी के बाद दूसरे इलाके में भेज देते है. या कुछ दिन के लिये उनको छिपा देेते है. जिससे लोगों को बच्चे की पहचान ना हो पाये.

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बच्चों को आगे करके गिरोह करते है काम:
बच्चों को चोरी कर पूरी जानकारी दी जाती है. बच्चा खुद को ऐसे दिखाता है जैसे कोई समझ ही नहीं पाये कि बच्चा लडकी के पक्ष से है या लडके के. कई बार वह होटल स्टाफ के साथ भी हिलामिला रहता है. लडके की निगाह उस आदमी पर ही होती है जिसके पास जेवर या पैसे वाला बैग होता है. जैसे ही हडबडी में बैग लोग हाथ से दर रखते है वैसे ही बच्चा बैग उठाकर भाग लेता है. चोरी करने वाला अपने हाथ से बैग जल्दी से जल्दी गिरोह के दूसरे आदमी को सौंप देता है. जिससे बच्चे पर किसी को कोई शंका  भी न हो और अगर बच्चा पकडा भी जाय तो चोरी किया सामान पकडा ना जा सके.

अंजान मेहमानों से रहे सावधान:
शादी के आयोजन में केवल बडी बडी चोरियां ही नहीं होती बल्कि वहां शामिल हुये लोगों के सामान भी गायब हो जाते है. इसका सबसे बडा कारण यह होता है कि हर किसी महिला के पास नकदी और जेवर दोनो ही होते है. जो भी महिला गफलत मंे होती है चोर उस पर हाथ साफ कर देता है. इससे बचाव के लिये जरूरत इस बात की होती है कि अनजान मेहमानों से सावधान रहे. अपने आसपास नजर रखे. शादियों में बढती चोरी की घटनाओं को देखते हुये महिलाओं ने अब नकली जेवर का प्रयोग करना शुरू किया है. इसके बाद भी दुल्हन के जेवर असली होते है. घरों की काफी महिलाएं असली जेवर ही पहनती है.

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केवल शादी के समय ही नहीं षादी में इधर उधर जाने के समय भी चोरी की संभावनाएं अधिक होती है. रास्तों में भी चोरों की नजर ऐसी महिलाओं पर अधिक रहती है जो किसी शादी में शामिल होने जा रही होती है. असल में चोरी करने वाले गिरोहों को यह पता होता है कि जो भी शादी विवाह मेे जा रहा है. उसके पास जेवर तो होते ही है. वह भले ही ना सफर में ना पहने पर अपने साथ रखता जरूर है. ऐसे में यहां हाथ साफ करने से लाभ होता ही होता है. शादी विवाह में शामिल होने वाले लोगो पर ऐसे गिरोह की निगाह रहती है. ऐसे में इस दौरान यात्रा करने के समय सावधान रहे.

बचाव के रास्ते:
1.    जेवर से भरे बैग को सावधानी से रखे.
2.   कंधे पर लटकाने वाला बैग रखे. जिससे अपने साथ रख सके.
3.    हडबडी में इधर उधर बैग रखने की जगह पर किसी भरोसेमंद को देकर जाये.
4.    कुर्सी या सोफे पर रख कर ना जाये.
5.    मैरिज हाल में यह पता कर ले कि सीसीटीवी कैमरा लगा है या नहीं.
6.    किसी अनजाने के दिखने पर सावधान रहे.
7.   अगर कोई अनजान बच्चा आपके आसपास घूम रहा है तो उसे जरूरी जान समझ ले कि कौन है वह ?

Crime Story: कातिल की प्रेम लीला

सौजन्या-सत्यकथा

लेखिका- विजय सोनी 

 

9मार्च, 2020 की शाम की बात है. पचमढ़ी के जकात नाका पर रहने वाली लगभग 35 वर्षीय मायाबाई थाना पचमढ़ी पहुंची. पचमढ़ी मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित है. मायाबाई ने टीआई महेश तांडेकर को अपने पति उत्तम श्रीवास के लापता होने की सूचना दी.

मायाबाई ने उन्हें बताया कि उस का पति उत्तम छावनी में दैनिक वेतन पर नौकरी करता है. रोज की तरह वह कल भी अपने काम पर गया था. लेकिन फिर लौट कर नहीं आया. मायाबाई ने बताया कि पति को शराब की लत थी.

कई बार वह शराब के चक्कर में दोस्तों के घर पर सो जाता था, इसलिए कल घर नहीं आने पर उस ने गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन जब आज सुबह भी वह घर नहीं आया और न ही काम पर गया तो उसे चिंता हुई. मायाबाई ने बताया कि पति का मोबाइल भी बंद आ रहा है.

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सब जगह ढूंढने के बाद भी जब वह नहीं मिला तो उस की गुमशुदगी दर्ज करवाने यहां आई हूं. टीआई महेश तांडेकर को घटना का ब्यौरा सुना रही मायाबाई के हावभाव मामले की गंभीरता से मेल खाते नजर नहीं आ रहे थे. क्योंकि कोई भी औरत इतनी सफाई से अपने पति के लापता होने की कहानी बिंदुवार तरीके से बखान नहीं कर सकती,  जैसे मायाबाई कर रही थी.

लेकिन मौके की नजाकत को देखते हुए उन्होंने अपने मन की बात मायाबाई पर जाहिर नहीं होने दी और उस की रिपोर्ट पर मामला दर्ज करते हुए इस की जानकारी एसपी संतोष कुमार गौर, एडीशनल एसपी घनश्याम मालवीय एवं एसडीपीओ शिवेंदु जोशी को दे दी.

उच्चाधिकारियों के निर्देश पर टीआई महेश तांडेकर ने केस की जांच शुरू कर दी. उन्होंने उत्तम श्रीवास के संगीसाथियों के अलावा नाका मोहल्ले में रहने वाले उस के पड़ोसियों से भी पूछताछ की.इस पूछताछ में उत्तम के शराबी होने की बात सामने आने के अलावा जो महत्त्वपूर्ण बात सामने आई, वह यह थी कि उत्तम अकसर पचमढ़ी स्थित होटल फाइव आची के मैनेजर कमलेश के साथ बैठ कर शराब पीता था.

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जानकारी चौंका देने वाली थी, क्योंकि एक होटल मैनेजर कमलेश दैनिक वेतनभोगी उत्तम के साथ भला दोस्ती क्यों करेगा. दोस्ती की यह बात आसानी से गले उतरने वाली नहीं थी. इसलिए टीआई ने अपना पूरा ध्यान इस अजूबी दोस्ती की जड़ का पता लगाने में झोंक दिया.

इस से जल्द ही यह बात समने आ गई कि लापता उत्तम और होटल मैनेजर कमलेश की दोस्ती के पीछे की मूल वजह उत्तम की पत्नी मायाबाई की खूबसूरती और दूसरे मायाबाई का उस होटल में काम करना था, जिस में कमलेश मैनेजर था.

यह जानकारी सामने आने के बाद टीआई तांडेकर समझ गए कि उत्तम के लापता होने की कहानी में कहीं न कहीं कमलेश का हाथ हो सकता है. इसलिए उन्होंने उत्तम के अंतिम बार देखे जाने की थ्यौरी पर काम शुरू कर दिया, जिस में पता चला कि 8 मार्च को जिस रोज उत्तम लापता हुआ था उस रोज वह कमलेश और कमलेश के एक दोस्त नीलेश के साथ देखा गया था.

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यह महत्त्वपूर्ण सूचना थी, जिस के बाद टीआई ने जांच परिणाम से उच्चाधिकारियों को अवगत करा कर संदिग्ध कमलेश, नीलेश और मायाबाई के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का बारीकी से अध्ययन किया.इस से पता चला कि 8 मार्च को कमलेश ने सुबहसुबह उत्तम और नीलेश को कई बार फोन किए किए. जिस के बाद इन तीनों के मोबाइल फोनों की लोकेशन एक साथ पिपरिया रोड पर पाई गई थी.

इस के कुछ समय बाद उत्तम का फोन बंद हो गया था, जबकि इस के बाद उसी रोज कमलेश ने उत्तम का मोबाइल बंद होने के बाद मायाबाई से कई बार फोन पर लंबीलंबी बातें की थीं.इतना ही नहीं, जब दूसरे दिन मायाबाई पचमढ़ी थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाने आई थी, तो उस के पहले उस की कमलेश के साथ लंबी बात हुई थी. थाने से वापस लौटने के ठीक बाद भी उस ने कमलेश से बात की थी.

इतना सब जानने के बाद टीआई महेश तांडेकर समझ गए कि उत्तम के लापता होने का राज उस की पत्नी के पेट में छिपा है. इसलिए उन्होंने अपनी टीम के साथ पहले तो इस राज की गहराई तक पड़ताल की, उस के बाद जब उन्हें भरोसा हो गया कि उन की जांच सही दिशा में है, तब उन्होंने कमलेश, नीलेश और मायाबाई को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

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कहना नहीं होगा कि जब पचमढ़ी थाने में तीनों का एकदूसरे से सामना हुआ तो उन के चेहरों की रंगत उड़ गई. मामले में तीनों की संलिप्तता का पूरा भरोसा हो जाने पर टीआई ने उन से पहले अलगअलग फिर एक साथ पूछताछ की, जिस से कुछ ही देर में तीनों टूट गए. कमलेश ने स्वीकार कर लिया कि उस ने मायाबाई के कहने पर अपने दोस्त नीलेश के साथ मिल कर उत्तम की हत्या कर दी है.

इस के बाद पुलिस ने 14 अप्रैल को तीनों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर उन की निशानदेही पर देनवा की करीब 200 मीटर गहरी घाटी से उत्तम का शव बरामद कर लिया. चूंकि शव घाटी में एक महीने से ज्यादा अवधि तक पड़ा रहा, इसलिए सड़ चुका था. औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

तीनों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उत्तम की हत्या के पीछे की पूरी कहानी इस प्रकार से सामने आई कमलेश और नीलेश दोनों मूलरूप से छिंदवाड़ा जिले के रहने वाले थे. दोनों काम की तलाश में कई साल पहले पचमढ़ी आ कर यहां के होटलों में ग्राहक लाने के लिए लपका (कमीशन एजेंट) का काम करने लगे. इस काम में कमलेश नीलेश से अधिक माहिर था, जिस के चलते कई होटलों के मालिकों से उस के अच्छे संबंध बन गए थे.

यही कारण था कि कुछ साल पहले जब यहां होटल फाइव आर्ची के मालिक को अपने होटल के लिए मैनेजर की जरूरत महसूस हुई तो उन्होंने लपका का काम करने वाले कमलेश को अपने होटल में मैनेजर की नौकरी पर रख लिया. जिस के बाद नीलेश कमलेश के साथ अपनी दोस्ती निभाने के लिए अधिक से अधिक पर्यटकों को लपक कर उस के होटल मे ले कर आने लगा.

कमलेश आशिकमिमाज आदमी था. जिस के चलते उस की नजर अपने होटल में काम करने वाली मायाबाई पर थी. लगभग 30-32 साल की मायाबाई न केवल खूबसूरत थी, बल्कि उस की काया कुछ ऐसी थी कि उसे देख कर यह भ्रम होता था मानो खजुराहो के मंदिर से उतर कर कोई अप्सरा मायाबाई का रूप रख कर सामने आ गई हो.

मायाबाई का पति उत्तम भी छावनी में दैनिक वेतनभोगी के रूप में नौकरी करता था. लेकिन उसे शराब पीने की बुरी लत थी, जिस के चलते मायाबाई अपनी कमाई से किसी तरह घर चला रही थी. यह बात कमलेष जानता था, इसलिए वह मायाबाई को अपने जाल में फंसाने के लिए उस के सामने आर्थिक लोभ का जाल बुनने लगा.

मायाबाई को पैसों की जरूरत भी थी, इसलिए कमलेश की मेहरबानी के चलते वह उस के जाल में फंसती चली गई. एक रोज जब मायाबाई होटल के एक सूने कमरे में काम कर रही थी, तब पीछे से पहुंच कर कमलेश ने उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया.

मायाबाई कमलेश के अहसानों तले दबी थी, इसलिए उस ने कमलेश की पहल का विरोध करने के बजाए उस के सामने खुशीखुशी समर्पण कर दिया.

इस के बाद तो कमलेश रोजरोज उस के साथ संबंध बनाने के मौके खोजने लगा. होटल के सूने पड़े कमरे रोज कमलेश और मायाबाई की गर्म सांसों से भरने लगे. कमलेश ने मायाबाई के साथ संबंध बना लिया है, यह बात नीलेश को पता थी. इसलिए कुछ दिनों में ही यह बात धीरेधीरे दूसरे लपकों को भी पता चल गई. फिर एक से दूसरे कान में होते हुए यह खबर एक दिन उत्तम तक भी पहुंच गई.

उत्तम एक नंबर का शराबी है, यह बात कमलेश जानता था सो उस ने उत्तम को अपने सांचे में ढालने के लिए उस से दोस्ती कर ली और उसे रोज शराब की पार्टी में शामिल करने लगा.

उत्तम शराब देख कर सारी बातें भूल कर कमलेश की पार्टी में शामिल तो होता, लेकिन जब सुबह उस का नशा उतरता तो वह अपनी पत्नी मायाबाई को कमलेश का नाम ले कर ताने देने लगता. जब दोनों में तकरार बढ़ जाती तो वह कभीकभी मायाबाई की पिटाई भी कर देता था.

पति से मार खा कर मायाबाई होटल पहुंचती तो कमलेश उस की चोटों के दर्द को अपने होठों से खींचने के बहाने फिर एक बार वासना की नींद में साथ उतार लेता.लेकिन घटना से कोई एक महीने पहले से उत्तम मायाबाई पर कमलेश के होटल से नौकरी छोड़ने का दबाव बनाने लगा.

वास्तव में कमलेश और मायाबाई दोनों ही जानते थे कि एक बार मायाबाई ने होटल की नौकरी छोड़ दी तो फिर उन दोनों के अकेले में मिलने के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे.दूसरे मायाबाई भी अब तक कमलेश की दीवानी हो चुकी थी, सो पति की रोजरोज की पिटाई से तंग आ कर उस ने कमलेश के सामने पति की हत्या करने का प्रस्ताव रखा, जिसे कमलेश ने स्वीकार कर लिया.

लेकिन उत्तम की हत्या करना कमलेश के अकेले के वश में नहीं था, इसलिए उस ने अपने दोस्त नीलेश से इस काम में मदद मांगी. लेकिन नीलेश ने मना कर दिया.

इस के पीछे वजह यह थी कि नीलेश कई साल से कमलेश को दोस्ती का वास्ता दे कर उसे मायाबाई के साथ एक बार अकेले में मिलवा देने के लिए कह रहा था. लेकिन कमलेश इस पर ध्यान नहीं दे रहा था. एकदो बार नीलेश ने मायाबाई पर डोरे डालने की कोशिश की, पर मायाबाई ने झिड़क दिया था.

नीलेश के मना करने पर कमलेश ने उस से बारबार मदद करने को कहा तो नीलेश इस शर्त पर राजी हो गया कि उत्तम की हत्या के बाद कमलेश उस के संबंध भी मायाबाई से बनवा देगा.

मायाबाई भी उत्तम की हत्या के बदले में केवल एक बार नीलेश को खुश करने को राजी हो गई. कमलेश ने बताया कि घटना वाले दिन से एक रोज पहले उत्तम ने मायाबाई के साथ नौकरी छोड़ने को ले कर मारपीट की, जिस से मायाबाई ने कमलेश से साफ कह दिया कि या तो वह उसे उत्तम से छुटकारा दिला दे या फिर आगे कभी उस से मिलने की बात भूल जाए.

कमलेश ने तय कर लिया कि अब वह उत्तम का काम तमाम कर के रहेगा. लिहाजा वह 8 मार्च, 2020 को नीलेश को ले कर छावनी काम पर जा रहे उत्तम से मिला और उसे साथ चल कर शराब पीने को कहा.

उत्तम को शराब के आगे कुछ सूझता नहीं था, सो वह उन दोनों के साथ हो गया. वह उसे देवना घाटी के पास ले कर पहुंचे. जहां उन्होंने पहले तो उसे जी भर कर शराब पिलाई फिर नशे में धुत उत्तम को मौका देख कर 200 मीटर गहरी घाटी में धक्का दे दिया और वापस अपने काम पर आ गए. गहरी खाई में गिरने से उस की मौत हो गई.

घटना को एक महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद कमलेश को विश्वास हो गया कि पुलिस उन तक नहीं पहुंच पाएगी. लेकिन टीआई महेश तांडेकर ने इस ब्लाइंड मर्डर के रहस्य पर से परदा उठा ही दिया.

किसान आंदोलन में यूपी किसानों का अगर मगर

देश में अभी फिलहाल एक ही मुद्दा हर जगह छाया हुआ है, वह है किसानों का आन्दोलन. सरकार और मीडिया के इस आन्दोलन को बदनाम करने के हर संभव प्रयास किये जा चुके हैं. ऐसे में देश भर के किसान अब दिल्ली की तरफ कूच करने के बारे में सोच रहे हैं. हर कोई चाहता है की दिल्ली पहुंच कर वह इन ऐतेहासिक पलों का साक्षी बने. लेकिन दिल्ली-उत्तर प्रदेश के गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों की संख्या पंजाब हरियाणा की तुलना में कम है. आखिर क्यों?

 राइटर- रोहित और शाहनवाज

ये सन 1988 की बात है. दिन था 25 अक्टूबर का. भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में बी.के.यू. के हजारों किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली में बोट क्लब में रैली के लिए उमड़े थे. फसल का उचित मूल्य, बिजली, सिंचाई की दरे घटाने सहित 35 सूत्रीय मांगों को ले कर हजारों की तादाद में किसानों ने दिल्ली की सड़कों को जाम कर दिया था. इन किसानों को रोकने के लिए उस समय की दिल्ली की पुलिस ने लोनी बॉर्डर पर फायरिंग भी की थी, जिस में 2 किसानो को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था.

देखते ही देखते आन्दोलन काफी उग्र हो गया था. फिर क्या होना था, देश भर के 14 राज्यों से 5 लाख से ज्यादा की संख्या में किसान प्रदर्शन के लिए दिल्ली आ गए थे. जिसे देखते हुए प्रशासन ने पूरी राजधानी में ही धारा 144 लागु कर दी थी.

इसी के बाद बी.के.यू. के संस्थापक और किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने पुलिस प्रशासन और प्रदर्शनकारियों के बीच रेखा खींचते हुए धारा 288 का ऐलान कर दिया. टिकैत ने ये ऐलान किया की जिस प्रकार धारा 144 के तहत अगर हम उन के इलाके में नहीं जा सकते तो हमारी धारा 288 के तहत पुलिस भी हमारे इलाके में नहीं आ सकती. सिर्फ यही नहीं यदि कोई असामाजिक तत्व आन्दोलन में घुस कर आन्दोलन को उग्र करने का भी प्रयास करता है तो किसान धारा 288 के तहत उस के ऊपर भी कार्यवाही की जाएगी. अंततः उस समय कि राजीव गाँधी सरकार को किसानों के आगे अपने घुटने टेकने पड़े थे और किसानों की सभी मांगों को मानना पड़ा था.

1988 का एक वह दिन था और 32 सालों के बाद आज का दिन है. दिल्ली-उत्तर प्रदेश के गाजीपुर बॉर्डर पर भी हमें कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला, जब पुलिस के बैरीकेड के पास किसानों ने किसान धारा 288 और आई.पी.सी. की धारा 144 को सफेद रंग के चूने से लिख कर यह संकेत दे दिया कि न तो किसान आप के इलाके में कदम रखेंगे और न ही पुलिस को अपने इलाके में घुसने देंगे.

इसी पर बात करते हुए राजेश सिंह चौहान जो की भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रिय उपाध्यक्ष है उन्होंने बताया, “शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार हमें हमारा संविधान देता है. इसीलिए हम अपनी जगह से नहीं हिलेंगे. हम अपना शांतिपूर्ण प्रदर्शन जारी रखेंगे. न तो हम प्रशासन की अनुमति के बगैर दिल्ली के बॉर्डर से आगे बढ़ेंगे और न ही हम पुलिस को अपने प्रदर्शन में दखल देने देंगे. ये बात हम साफ तौर पर सरकारी हुक्मरानों को बता देना चाहते हैं की बेशक हमारे बीच आज महेंद्र सिंह टिकैत मौजूद नहीं हैं, लेकिन किसानों के प्रति अनदेखी, उन के शोषण के खिलाफ उन का जो संघर्ष रहा है हम उसी को आगे बढ़ाते रहेंगे.”

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दिल्ली-उत्तर प्रदेश का गाजीपुर बॉर्डर, एक तरफ कूड़े खत्ते का विशाल पहाड़ और दूसरी तरफ बड़ी बड़ी इमारतें. दूर दूर तक खाली पड़े जमीन के प्लाट भी. चौड़ी चौड़ी सड़कों पर बना नेशनल हाईवे. और उन सड़कों पर एक के बाद एक बने बड़े बड़े फ्लाईओवर. और उन्ही फ्लाईओवर के नीचे बैठे हैं उत्तर प्रदेश से प्रदर्शन के लिए आए किसान. ये हाईवे सिर्फ उत्तर प्रदेश को ही नहीं जोड़ता, बल्कि इसी हाईवे पर चल कर आप उत्तरखंड भी जा सकते हैं. किसानों की संख्या इतनी भी ज्यादा नही थी की वें हाईवे जाम कर दें या फिर चलने वाला ट्रैफिक रोक दें.

हालांकि गाजीपुर बॉर्डर के इस हाईवे को देख कर ऐसा नहीं लगता की इस पर यातायात को रोका जा सकता है. लेकिन उस के बावजूद अपनी संख्या को देखते हुए और संसद से महज 17 किलोमीटर की दुरी पर किसानों ने एक फ्लाईओवर के नीचे अपना डेरा डाला है. वहीं दूसरी तरफ जितनी संख्या में किसान नहीं है उस से कहीं ज्यादा संख्या पुलिस के जवान, रैपिड एक्शन फोर्स,  एंटी रायट पुलिस फोर्स, सी.आई.एस.एफ. के जवानों इत्यादि की तादाद मौजूद है.

फ्लाईओवर के नीचे पहुंचने के बाद हमने वहां मौजूद धरने पर बैठे किसानों से उन की समस्याओं को लेकर बातचीत की. उत्तर प्रदेश के खुर्जा में मेदिनीपुर गांव से आए छोटे किसान रामभूल सिंह जी के पास खेती की 3 एकड़ जमीन है जिस में उन्होंने 1.5 एकड़ में गन्ना बोया है, 1 एकड़ में गेहूं और बाकि बची जमीन पर अपने घर खाने लायक सब्जियां बोई है. रामभूल जी ने सरकार के द्वारा कृषि कानूनों में हेर फेर किये जाने के कुछ नुक्सान गिनवाए.

रामभूल जी ने कहा, “हम जैसे छोटे किसानों को, जिन के पास खेती लायक थोड़ी जमीन है, वें अपनी फसल को पहले से ही एम.एस.पी. की दरों में नहीं बेच पाते. एक तो हमारे गांव से कई किलोमीटर दूर सरकारी मंडी है, जहां अपनी फसल ले कर पहुंचना ही बेहद मुश्किल होता है. खर्चा बहुत ज्यादा आ जाता है. इसीलिए हम ज्यादातर समय दलाल को अपनी फसल बेच देते हैं. दलाल कभी भी हमारी फसल एम.एस.पी. की दरों में नहीं खरीदता, जिस का कारण हमें पता है. इसीलिए वह जिस कीमत पर हमारी फसल खरीदना चाहता है, उस में थोडा बहुत मोल भाव कर हम अपनी फसल उस के हाथों सौंप देते हैं.”

“हमारी तो यह मांग है कि सरकार पहले तो एम.एस.पी. की दरें तय करे. सरकार द्वारा यह कानून में लिखित में फैसला हो की सभी किसानों की फसलें एम.एस.पी. पर खरीद होगी. और इस के साथ ही सरकार ज्यादा से ज्यादा सरकारी मंडियों का निर्माण करें न की प्राइवेट मंडियों को बढ़ावा दे. ताकि सभी किसान अपनी फसलें अपने घर के नजदीक मंडियों में बेच सकें और लागत ज्यादा न आए.” रामभूल जी ने अपनी मांगों के बारे में बताते हुए कहा.

सौरट सिंह 97 साल के बुजुर्ग किसान हैं और गाजीपुर में चल रहे किसान प्रदर्शन में शामिल भी हुए हैं. बुलंदशहर जिले के मदनपुर गांव से सौरट जी अपने 3 बेटों के साथ ट्रकटर में सफर कर गांव के बाकि किसानों के संग यहां पर पहुंचें हैं. “ये तो सरकार की लूटमार चल रही है.” सौरट जी ने बताया. “इस से पहले तो किसी भी सरकार ने किसानों के हालात ऐसे न किये थे जितना इस मोदी ने कर दिया. डकैती पड़ रही है सरकार की पूरी.”

सौरट जी की इतनी उम्र के बावजूद वें घर में नहीं बैठे बल्कि बाकि किसानों के संग कंधे से कन्धा मिला कर पहुंच गए दिल्ली में प्रदर्शन के लिए. सौरट जी ने बताया की उन के पास अपने गांव में खेती के लिए 2 एकड़ से भी कम की जमीन हैं. परिवार बड़ा है. इसीलिए काफी कम उम्र से ही उन के बच्चे खेती से जुड़ गए थे. वें बी.के.यू. के सक्रीय कार्यकर्त्ता हैं इसीलिए उन्होंने यहां पर आना और अपना विरोध दर्ज करवाना जरुरी समझा.

गाजीपुर में विरोध के लिए आए किसानों में ज्यादातर लोग या तो मंझोले किसान थे या फिर बड़े किसान. ऐसे ही एक किसान जंग बहादुर सिंह जी से हमने बात की. जंग बहादुर जी कि खेती की जमीन तो गाजिआबाद के मोदीनगर में हैं लेकिन उत्तराखंड के देहरादून में उन्होंने रहने के लिए अपना घर बनवाया है. खेती के लिए उन कि 45 एकड़ की जमीन हैं जिस में उन्होंने मुख्यतः गेहूं और गन्ना बोया है. उन के पास अपनी फसल को सरकारी मंडी में ले जाने के लिए अपना वाहन मौजूद है. लेकिन वें इस बात से चिंतित हैं की एम.एस.पी. की दर यदि तय नहीं होंगी तो उन्हें खेती में बहुत अधिक नुकसान झेलना पड़ सकता है.

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उत्तर प्रदेश के किसान नदारत क्यों?

नए कृषि कानूनों में विरोध में देश भर के किसानों में रोष तो देखने को मिल ही रहा है लेकिन ये रोष सभी राज्यों में एक प्रकार नहीं हैं. 26 नवम्बर की आम हड़ताल के दिन ही पंजाब और हरियाणा के किसानों ने दिल्ली के दो बड़े बॉर्डर (सिंघु बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर पर) संगठित हो गए. ठीक उसी दिन से ही उत्तर प्रदेश के किसान गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शन के लिए पहुंचे लेकिन उन की संख्या की अगर बात करें तो ये बहुत अधिक नहीं थे. यदि हम पंजाब और हरियाणा के किसानों की बात करें तो उत्तर प्रदेश से आए किसान इन का केवल 5 या 10 प्रतिशत ही होंगे.

इसी विषय पर बात करते हुए बी.के.यू. के राष्ट्रिय उपाध्यक्ष राजेश सिंह चौहान ने कहा, “यह जो संख्या हमारे साथ प्रदर्शन के लिए मौजूद है यह सिर्फ अभी सांकेतिक धरने के तौर पर इकट्ठे हुए हैं. देश के गृह मंत्री अमित शाह ने 3 दिसम्बर को किसानों से बातचीत का वायदा किया है इसीलिए हमारी असली संख्या 3 दिसम्बर को दिल्ली ने पहुचेगी. और बड़ी तादाद में हम गृह मंत्री जी से बात करने के लिए जाएंगे.”

इसी संबंध में हमने भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रिय प्रवक्ता राकेश टिकैत जी से बात की. राकेश टिकैत जी ने कहा, “ये जो संख्या अभी प्रदर्शन के लिए आई है, यह कम संख्या थोड़ी न हैं. हर परिवार का एक जिम्मेदार व्यक्ति यहां इस प्रदर्शन का हिस्सा है. जब बाकी लोगों की जरुरत होगी प्रदर्शन में आने की तो उन्हें बुला लिया जाएगा. गांव के किसान अभी अपने खेतों में काम कर रहे हैं. जब आन्दोलन को उन की जरुरत होगी तो उन्हें बुला लिया जाएगा.”

एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 78% वें किसान हैं जिन्हें सीमान्त किसान (गरीब किसान) कहा जाता है. 13.8% छोटे किसान और 8.22% किसान ऐसे है जिन के पास 2 हेक्टेयर से ऊपर खेती की जमीन है. ऐसे में उत्तर प्रदेश में किसानों की एक बड़ी संख्या गरीब है, जिस से यह अंदाजा लगाया जा सकता है की वें पूर्ण रूप से खेती के सहारे अपना जीवन नहीं गुजारते. अर्थात उन में एक बड़ी संख्या खेत मजदूरों की है, जिसे एम.एस.पी. पर फसल बिकने या नहीं बिकने से कोई मतलब नहीं है. इसीलिए वें इस मुद्दे पर संगठित भी नहीं हैं.

यह एक बड़ा कारण है की गरीब किसानों को सरकार के द्वारा कृषि कानूनों में किये गए हेर फेर से कोई फर्क नहीं पड़ता. वें तो पहले भी अपनी फसल को एम.एस.पी. की तय दरों में नहीं बेच पाता. लेख की शुरुआत में ही रामभूल जी से हमारी बातचीत में उन्होंने इस बात की पुष्टि पहले ही कर चुके हैं की सीमान्त और छोटे किसान अपनी फसल एम.एस.पी. की तय दरों में नहीं बेच पाते हैं.

बी.के.यू. के राष्ट्रिय उपाध्यक्ष ने बताया की, “एम.एस.पी. पर केवल किसान अपनी फसल का 3 या 4% ही फसल बेच पाते हैं. किसानों का बड़ा हिस्सा तो अपनी फसल एम.एस.पी. की तय दरों में बेच भी नहीं पाता, बल्कि उस से भी काफी नीचे की दरों में उसे अपनी फसल बेचनी पड़ती है. ऐसे में यदि सरकार एम.एस.पी. को खत्म कर देगी तो फिर कोई भी औने पौने दाम में किसानों की फसल खरीद ले जाएगा और किसानों को किसी तरह का कोई मुनाफा नहीं होगा.”

इसी के साथ उत्तर प्रदेश के किसानों का बड़ी संख्या में प्रदर्शन में शामिल न हो पाने का कारण यह भी है की उन के पास अपना कोई वाहन नहीं है. उत्तर प्रदेश के अधिकतर किसान गरीब हैं. यदि वह इस प्रदर्शन का हिस्सा बनना भी चाहे तो दिल्ली आने के लिए उन्हें किसी और का सहारा चाहिए, जैसे रामभूल जी अपने साथी किसान के साथ यहां पहुंचें हैं.

सिंघु बॉर्डर पर पंजाब और हरियाणा के किसानो से बातचीत में हम ने यह पाया की प्रदर्शन के लिए आए किसानों के पास कोई न कोई अपना वाहन जरुर है, चाहे वह बाइक ही क्यों न हो. और सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शनकारियों से अधिक बड़ा हिस्सा वहां पर मौजूद गाड़ियाँ हैं, जिस में लोगों के पास या तो ट्रक या फिर ट्रकटर हैं. उत्तर प्रदेश के किसानों की हालत ऐसी नहीं हैं.

उत्तर प्रदेश में कमजोर किसान यूनियन?

गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों के प्रदर्शन में यह देखा गया की सभी किसान भारतीय किसान यूनियन के ही सदस्य थे. एक भी किसान हमें ऐसा नहीं दिखाई दिया जो की स्वतंत्र तरीके से वहां मौजूद हो. ऐसे में यह सवाल उठाना बेहद लाजमी है की क्या उत्तर प्रदेश में एक ही किसान यूनियन सक्रीय रूप से कार्यरत है? यदि नहीं तो बाकि किसान यूनियन क्यों गाजीपुर बॉर्डर पर अपने समर्थकों के साथ नजर नहीं आए? क्या उत्तर प्रदेश के किसान यूनियन समय के साथ निष्क्रिय होते गए?

सिंघु बॉर्डर पर मौजूद पंजाब और हरियाणा के किसानों की 350 से अधिक यूनियन मौजूद हैं और इस के साथ 31 जत्थों में उन का आन्दोलन ने दिल्ली की तरफ कुंच किया है. लेकिन गाजीपुर बॉर्डर पर आए उत्तर प्रदेश के किसान केवल एक ही संगठन के बैनर तले प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं.

इस से यह अंदाजा लगाया जा सकता है की गरीब किसानों के बीच किसान यूनियन भी अब उन्हें उस तरीके से संगठित करने का काम नहीं कर रहे जिस प्रकार पहले के समय हुआ करता था. और बड़े मंझोले और बड़े किसानों के बीच किसान यूनियन अपने पैर जमाने में सक्षम रहे हैं. पंजाब और हरियाणा के किसानों की एकता देख कर तो यह कहा जा सकता है.

पेट्रोल-डीजल और कोविड ने भी रोका किसानों को

उत्तर प्रदेश में किसानों की गरीबी के चलते यह तो साफ है की गरीब और छोटे किसान इस महत्वपूर्ण किसान संघर्ष का हिस्सा नहीं बन पा रहे. गरीबी है इसी के चलते घर में कोई वाहन नहीं. अगर वाहन है भी तो क्या किसी गरीब और छोटे किसान से यह उम्मीद लगाई जा सकती है की वह 82 रूपए का पेट्रोल या 72 रूपए का डीजल खरीद कर उत्तर प्रदेश से दिल्ली तक का सफर करने की क्षमता रखता है?

जाहिर सी बात है वह नहीं कर सकता. और यहीं पर ही एक मजबूत किसान यूनियन का होना बेहद जरुरी हो जाता है. क्योंकि किसान यूनियन में सिर्फ लोगों का समर्थन ही नही होता है बल्कि उन के पास फण्ड भी होता है जो की ऐसे मौकों पर ही काम आता है.

ऐसे में अब गरीब किसानों के पास अगला रास्ता ट्रेन के सफर का है. लेकिन आप को याद हो कोविड-19 के चलते भारत में केवल कुछ गिनी चुनी ट्रेने ही चल रही हैं, जिस में जनरल बोगी के होने का तो कोई सवाल ही नहीं है. यदि आप के पास टिकट है और वह यदि कन्फर्म है तभी आप ट्रेन में सफर कर सकते हैं अन्यथा नहीं.

अंततः ट्रेन का सहारा भी उत्तर प्रदेश के गरीब किसानों के हाथों से छीन गया. ऐसे में इन काले कानूनों के चलते जिन किसानों पर इस का बुरा प्रभाव पड़ने वाला है उस के विरोध में और उस के संघर्ष में भी वें किसान अपनी हिस्सेदारी दिखाने में नाकाम साबित हुए हैं.

क्या है हालिया स्थिति?

केंद्र सरकार द्वारा कृषि कानूनों के 2 काले कानून और एक संशोधन लागू किये जाने के बाद देश भर के किसानों में अब रोष देखा जा सकता है. हाल ही में हरियाणा के राज्य पशुधन विकास बोर्ड के चेयरमैन सोमबीर सांगवान ने सोमवार के दिन किसानों के हित में आवाज उठाई और अपने पद से इस्तीफा दे दिया.

उन्होंने कहा, “मैंने किसानों के समर्थन में अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. पूरे देश की तरह, मेरे विधानसभा क्षेत्र दादरी के किसान भी इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में उनके लिए मेरा पूरा समर्थन और मेरे नैतिक कर्तव्य के लिए भी एक प्राथमिकता है.”

महाराष्ट्र के किसान यूनियन ने भी चल रहे किसान आन्दोलन में अपना समर्थन दिखाते हुए ये अंदेशा जाहिर किया है की वें भी 3 दिसम्बर तक दिल्ली के लिए मार्च निकाल सकते हैं.

यही नहीं कनाडा के प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो ने गुरुपर्ब के अवसर पर अपने देश के कैनेडियन-पंजाबी नागरिकों को सन्देश देते हुए भारत में काले कृषि कानूनों के खिलाफ अपनी चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा, “स्थिति बेहद चिंताजनक है. हम सभी अपने परिवारों और दोस्तों के लिए बहुत चिंतित हैं. हम जानते हैं की आप में से कई लोगों के लिए यही सच्चाई है. पर मैं आप को आश्वस्त करना चाहता हूं की शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कनाडा हमेशा साथ खड़ा रहेगा. हम बातचीत की प्रक्रिया में विश्वास रखते हैं. हम भारतीय अधिकारीयों के पास अपनी चिंताओं को व्यक्त करने के लिए सभी माध्यमों का सहारा ले रहे हैं. यह एक ऐसा क्षण हैं जिस में हम सभी को साथ में संघर्ष करना है.”

मंगलवार को तीन केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ अधिकारियों ने 35 आंदोलनकारी संगठनों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की और नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों द्वारा उठाए गए मुद्दों को देखने के लिए एक समिति गठित करने की पेशकश की. किसान प्रतिनिधियों को बैठक में दो घंटे से अधिक समय तक सरकार की ओर से दिए गए प्रस्ताव का जवाब देना था, लेकिन वे सभी तीन कानूनों को रद्द करने की मांग में एकमत नहीं हुए, जिन्हें वे कृषि समुदाय के हित के खिलाफ करार दे रहे हैं.

देश भर से अब किसानों के चल रहे आन्दोलन को सामान्य लोगों का भी समर्थन मिल रहा है. अब देखते हैं की यह संघर्ष कब तक जारी रहता है.

जीटीवी के ‘‘हमारी वाली गुड न्यूज’’ में मनीष गोयल की नई एंट्री

इन दिनों जी टीवी पर हर सोमवार से शुक्रवार शाम साढ़े सात बजे प्रसारित हो रहे
सीरियल‘‘हमारी वाली गुड न्यूज’’की लोकप्रियता निरंतर बढ़ती जा रही है,जिसमें भारतीय समाज में
सास-बहू के बदलते रिश्तों के नए चेहरे को रेखांकित किया जा रहा है.कहानी के विस्तार के साथ अब
इसमें अब अभिनेता मनीष गोयल भी नजर आने वाले हैं.

इस सीरियल की कहानी के अनुसार बहू नव्या (सृष्टि जैन) और  उसकी सास रोणुका (जूही
परमार)अपने परिवार को  वह बहुप्रतीक्षित ‘गुड न्यूज’ देने के लिए आपस में अपनी भूमिकाओं की
अदला-बदली कर लेती हैं. रेणुका के पति मुकुंद तिवारी (शक्ति आनंद) किराना दुकान चलाते हैं और
अपनी कंजूसी के लिए मशहूर है. उनका एक ही उसूल है ‘जैसा चल रहा है बढ़िया है,बदलाव की क्या
जरूरत है?’

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सीरियल में अब तक रेणुका और मुकुंद एक दूसरे से दूरी बनाए हुए थे और हर दंपति की तरह
आपस में बहस करते नजर आते रहे हैं. लेकिन परिवार में ‘गुड न्यूज’ आए, इसके लिए अब रेणुका एक
बार फिर मुकुंद के करीब आने की कोशिश कर रही थीं. जिसके चलते अब एक नया किरदार इन दोनों
के रिश्तों को एक नए मोड़ पर ले जाएगा.

कहानी के आगे बढ़ने के साथ ही डाॅ. राघव के किरदा की भी इंट्री  हो रही है. इस किरदार को
निभाने के लिए अभिनेता मनीष गोयल को सीरियल ‘‘हमारीवाली गुड न्यूज’’से जोड़ा गया है. कहानी के
अनुसार अतीत में रेणुका और डॉ. राघव के बीच रिश्ता था,जिसके कारण अब तिवारी परिवार में हलचल
मच जाएगी.पता चलता है कि राघव और रेणुका शादी करने वाले थे.राघव, शादी के लिए रेणुका का हाथ
मांगने ही वाले थे कि उससे पहले मुकुंद का रिश्ता आ गया और उन दोनों की शादी हो गई थी.
शुरुआत में रेणुका के पति को इस रिश्ते के बारे में पता नहीं था,लेकिन उनकी शादी के साथ आठ
साल बाद जब मुकुंद को इसके बारे में पता चला, तब से ही रेणुका के साथ उनके रिश्तों में खटास आ
गयी थी.मुकुंद को हमेशा लगता रहा है कि उन्हें धोखा दिया गया है और  वह हमेशा रेणुका पर शक
करते रहते हैं.

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ऐसे में इतने साल बाद जब राघव और रेणुका एक दूसरे से मिलेंगे तो मुकुंद की क्या
प्रतिक्रिया होगी? यह सवाल ही कहानी को रोचकता प्रदान करने के साथ कहानी में कई में रोचक मोड
भी आएंगे.इस सीरियल के साथ जुड़ने की चर्चा करते हुए मनीष गोयल ने कहा-“जब मुझे  इस शो का
कॉन्सेप्ट सुनाया गया था,तो तुरंत ही इसमें मेरी दिलचस्पी जाग गई थी.सीरियल ‘हमारीवाली गुड
न्यूज’’एक नई और अनोखी कहानी है.ऐसे  रोचक सीरियल का हिस्सा बनने का अवसर गंवाना मैने सही
नही समझा.

मैं इसमें डॉ. राघव का रोल निभा रहा हूं.बेशक इस किरदार की कई जिम्मेदारियां भी हैं और
मुझे  यकीन है कि मैं  इन पर खरा उतर पाऊंग.कलाकार के तौर पर राघव का रोल बड़ा शानदार
है,जिसमें कई परते हैं.जहां कुछ लोग उनकी भावनाओॆ से जुड़ पाएंगे,वहीं  अधिकांश दर्शक मुकुंद और
रेणुका की जिंदगी में हलचल मचाने के लिए उनसे नफरत करेंगे, खास तौर पर तब,जब एक बार फिर
उनके करीब आने की उम्मीद जागी है.

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मुझे यकीन है कि इस किरदार में मुझे बहुत कुछ करने का मौका मिलेगा.मैं उम्मीद करता हूं कि अपनी एंट्री के बाद मैं  दर्शकों को  बांध लूंगा.”

फिल्म‘‘अपने’’के सिक्वअल ‘‘अपने 2’’ में देओल परिवार एक बार फिर नजर आएंगे

धर्मेंद्र,सनी,बाॅबी और सनी के बेटे करण की चैकड़ी को ‘‘अपने 2’’में ला रहे हैं निर्देशक अनिल शर्मा 29 जून 2007 को निर्देशक अनिल शर्मा के निर्देशन में मशहूर अभिनेता धर्मेंद्र और उनके दो बेटों सनी देओल और बॉबी देओल की शानदार देओल तिकड़ी के अभिनय से सजी खेल प्रधान फिल्म‘अपने‘ने सिनेमा के सेल्यूलाइड परदे पर में जादू बिखेरा था.

इस कल्ट फिल्म ने सफलता के कई रिकार्ड स्थापित किए थे.अब पूरे 14 वर्ष बाद वह टीम एक बार फिर उस कहानी को दोहराने के लिए तैयार है.इसीलिए गुरू नानक जयंती के अवसर पर ‘अपने’के सिक्वअल ‘‘अपने 2’’की घोषणा की गयी है.इस फिल्म में धर्मेंद्र,सनी और बाॅबी के साथ ही सनी देओल के बड़े बेटे करण देओल भी होंगें.परिणामतः यह फिल्म कुछ ज्यादा ही दिलचस्प होगी…

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फिल्म‘‘अपने 2’’में अनिल शर्मा और दीपक मुकुट इस चैकड़ी को साथ लाने में कामयाब हुए हैं.इतना ही नही अनिल शर्मा बॉलीवुड के एक मात्र निर्देशक बनने की राह में कदम रख चुके है,जिन्होने देओल की तीन पीढ़ियों के साथ काम किया है.फिल्म ‘‘अपने’’के सिक्वअल ‘अपने 2’’की पटकथा पर काफी समय से काम किया जा रहा था.अब इसकी पटकथा पूरी हो चुकी हैं.‘‘अपने‘‘ ने अपनी रिलीज के दौरान एक्शन, इमोशंस और वैल्यूज के दिलचस्प मिश्रण से लाखों दिलों में अपनी जगह बनाई थी.

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पहली फिल्म के एसेंस और वैल्यूज को ध्यान में रखते हुए, ‘‘अपने 2‘‘ की स्टोरी लाइन भी काफी एक्शन, इमोशंस, ड्रामा और मनोरंजन से भरपूर है, जिसमें कुछ दिलचस्प नए किरदारों को भी जोड़ा गया है.
धर्मेंद्र ने कहा-‘‘फिल्म ‘अपने’मेरे जीवन की सबसे अच्छी फिल्मों में से एक है.हमारी पूरी टीम द्वारा किया गया संयुक्त प्रयास आप सभी ने बहुत अच्छी तरह से स्वीकार किया.अब मैं बेहद ही खुश हूं क्योंकि मुझे अपने पूरे परिवार-मेरे बेटे सनी, बॉबी और मेरे पोते करण के साथ ‘अपने 2’की शूटिंग करने को मिलेगी.

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यह एक बहुत ही खास फिल्म होगी और मैं शूटिंग के लिए उत्सुक हूं.‘‘ ‘सोहम रॉकस्टार एंटरटेनमेंट प्रा. लिमिटेड’निर्मित,अनिल षर्मा निर्देषित फिल्म ‘अपने 2’में धर्मेंद्र, सनी देओल, बॉबी देओल और करण देओल की मुख्य भूमिकाएं हैं.फिल्म ‘‘अपने 2’’ का फिल्मांकन मार्च 2021 में पंजाब और यूरोप में किया जाएगा.और इस पारिवारिक स्पोर्ट्स ड्रामा को दिवाली 2021 के अवसर पर सिनेमाघरों में प्रदर्षित करने की योजना है.

 

बिग बॉस 14: क्या फिनाले वीक से पहले घर से बाहर हो जाएंगेे एली गोनी? जैस्मीन भसीन हो जाएंगी अकेली

बिग बॉस14 के फिनाले वीक की शुरुआत हो चुकी है. अब मेकर्स घर से चार लोगों को बाहर का रास्ता दिखाने वाले हैं. पिछले 2-3 दिन से बिग बॉस मेकर्स घर वालों को शॉक पर शॉक दिए जा रहे हैं. अब दर्शकों के मन में यह उत्साह नजर आ रहा है कि कौन से लोग फाइनल वीक तक रुकेंगे.

सामने आ रही जानकारी में बताया गया है कि एली गोनी की एंट्री वाइल्ड कार्ड के तहत हुआ है. जिसे देखते हुए कयास लगाया जा रहा है कि एल गोनी को फिनाले से पहले बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा.

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अपने मन की बात को बताने के बाद एजाज खान फाइनलिस्ट का हिस्सा बन चुक हैं. वहीं बिग बॉस ने रुबीना दिलाइक से इम्यूनिटी स्टोन छिनने का मौका लिया था. इस स्टोन को पाने के लिए अपने जिंदगी का सबसे बड़ा राज बताना था.

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एजाज खान ने बचपन में हुई छेड़खानी का जिक्र किया था. अगर एल गोनी घर से बाहर जाते हैं तो जस्मिन भसीन पूर तरह से अकेली पड़ जाएंगी. जस्मिन भसीन औऱ एली गोनी के रिश्तेको लेकर कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं. दोनों साथ में बहुत प्यारे लग लगते हैं.

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एली गोनी और जस्मिन भसीन को एक साथ देखकर बिग बॉस के घर में भी उनपर कई तरह के सवाल उठाए गए थें वहीं दोनों पहले से एक- दूसरे को जानते हैं. कई बार साथ में ट्रीप भी कर चुके हैं.

सांझ पड़े घर आना- भाग 1 : नीलिमा की बौस क्यों रोने लगी

उसकी मेरे औफिस में नईनई नियुक्ति हुई थी. हमारी कंपनी का हैड औफिस बैंगलुरु में था और मैं यहां की ब्रांच मैनेजर थी. औफिस में कोई और केबिन खाली नहीं था, इसलिए मैं ने उसे अपने कमरे के बाहर वाले केबिन में जगह दे दी. उस का नाम नीलिमा था. क्योंकि उस का केबिन मेरे केबिन के बिलकुल बाहर था, इसलिए मैं उसे आतेजाते देख सकती थी. मैं जब भी अपने औफिस में आती, उसे हमेशा फाइलों या कंप्यूटर में उलझा पाती. उस का औफिस में सब से पहले पहुंचना और देर तक काम करते रहना मुझे और भी हैरान करने लगा. एक दिन मेरे पूछने पर उस ने बताया कि पति और बेटा जल्दी चले जाते हैं, इसलिए वह भी जल्दी चली आती है. फिर सुबहसुबह ट्रैफिक भी ज्यादा नहीं रहता.

वह रिजर्व तो नहीं थी, पर मिलनसार भी नहीं थी. कुछ चेहरे ऐसे होते हैं, जो आंखों को बांध लेते हैं. उस का मेकअप भी एकदम नपातुला होता. वह अधिकतर गोल गले की कुरती ही पहनती. कानों में छोटे बुंदे, मैचिंग बिंदी और नाममात्र का सिंदूर लगाती. इधर मैं कंपनी की ब्रांच मैनेजर होने के नाते स्वयं के प्रति बहुत ही संजीदा थी. दिन में जब तक 3-4 बार वाशरूम में जा कर स्वयं को देख नहीं लेती, मुझे चैन ही नहीं पड़ता. परंतु उस की सादगी के सामने मेरा सारा वजूद कभीकभी फीका सा पड़ने लगता.

लंच ब्रेक में मैं ने अकसर उसे चाय के साथ ब्रैडबटर या और कोई हलका नाश्ता करते पाया. एक दिन मैं ने उस से पूछा तो कहने लगी, ‘‘हम लोग नाश्ता इतना हैवी कर लेते हैं कि लंच की जरूरत ही महसूस नहीं होती. पर कभीकभी मैं लंच भी करती हूं. शायद आप ने ध्यान नहीं दिया होगा. वैसे भी मेरे पति उमेश और बेटे मयंक को तरहतरह के व्यंजन खाने पसंद हैं.’’ ‘‘वाह,’’ कह कर मैं ने उसे बैठने का इशारा किया, ‘‘फिर कभी हमें भी तो खिलाइए कुछ नया.’’ इसी बीच मेरा फोन बज उठा तो मैं अपने केबिन में आ गई.

एक दिन वह सचमुच बड़ा सा टिफिन ले कर आ गई. भरवां कचौरी, आलू की सब्जी और बूंदी का रायता. न केवल मेरे लिए बल्कि सारे स्टाफ के लिए. इतना कुछ देख कर मैं ने कहा, ‘‘लगता है कल शाम से ही इस की तैयारी में लग गई होगी.’’

वह मुसकराने लगी. फिर बोली, ‘‘मुझे खाना बनाने और खिलाने का बहुत शौक है. यहां तक कि हमारी कालोनी में कोई भी पार्टी होती है तो सारी डिशेज मैं ही बनाती हूं.’’ नीलिमा को हमारी कंपनी में काम करते हुए 6 महीने हो गए थे. न कभी वह लेट हुई और न जाने की जल्दी करती. घर से तरहतरह का खाना या नाश्ता लाने का सिलसिला भी निरंतर चलता रहा. कई बार मैं ने उसे औफिस के बाद भी काम करते देखा. यहां तक कि वह अपने आधीन काम करने वालों की मीटिंग भी शाम 6 बजे के बाद ही करती. उस का मानना था कि औफिस के बाद मन भी थोड़ा शांत रहता है और बाहर से फोन भी नहीं आते.

एक दिन मैं ने उसे दोपहर के बाद अपने केबिन में बुलाया. मेरे लिए फुरसत से बात करने का समय दोपहर के बाद ही होता था. सुबह मैं सब को काम बांट देती थी. हमारी कंपनी बाहर से प्लास्टिक के खिलौने आयात करती और डिस्ट्रीब्यूटर्स को भेज देती थी. हमारी ब्रांच का काम और्डर ले कर हैड औफिस को भेजने तक ही सीमित था. नीलिमा ने बड़ी शालीनता से मेरे केबिन का दरवाजा खटखटा भीतर आने की इजाजत मांगी. मैं कुछ पुरानी फाइलें देख रही थी. उसे बुलाया और सामने वाली कुरसी पर बैठने का इशारा किया. मैं ने फाइलें बंद कीं और चपरासी को बुला कर किसी के अंदर न आने की हिदायत दे दी.

नीलिमा आप को हमारे यहां काम करते हुए 6 महीने से ज्यादा का समय हो गया. कंपनी के नियमानुसार आप का प्रोबेशन पीरियड समाप्त हो चुका है. यहां आप को कोई परेशानी तो नहीं? काम तो आपने ठीक से समझ ही लिया है. स्टाफ से किसी प्रकार की कोई शिकायत हो तो बताओ. ‘‘मैम, न मुझे यहां कोई परेशानी है और न ही किसी से कोई शिकायत. यदि आप को मेरे व्यवहार में कोई कमी लगे तो बता दीजिए. मैं खुद को सुधार लूंगी… मैं आप के जितना पढ़ीलिखी तो नहीं पर इतना जरूर विश्वास दिलाती हूं कि मैं अपने काम के प्रति समर्पित रहूंगी. यदि पिछली कंपनी बंद न हुई होती तो पूरे 10 साल एक ही कंपनी में काम करते हो जाते,’’ कह कर वह खामोश हो गई. उस की बातों में बड़ा ठहराव और विनम्रता थी.

‘‘जो भी हो, तुम्हें अपने परिवार की भी सपोर्ट है. तभी तो मन लगा कर काम कर सकती हो. ऐसा सभी के साथ नहीं होता है.’’ मैं ने थोड़े रोंआसे स्वर में कहा. वह मुझे देखती रही जैसे चेहरे के भाव पढ़ रही हो. मैं ने बात बदल कर कहा, ‘‘अच्छा मैं ने आप को यहां इसलिए बुलाया है कि अगला पूरा हफ्ता मैं छुट्टी पर रहूंगी. हो सकता है 1-2 दिन ज्यादा भी लग जाएं. मुझे उम्मीद है आप को कोई ज्यादा परेशानी नहीं होगी. मेरा मोबाइल चालू रहेगा.’’

‘‘कहीं बाहर जा रही हैं आप?’’ उस ने ऐसे पूछा जैसे मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो. मैं ने कहा, ‘‘नहीं, रहूंगी तो यहीं… कोर्ट की आखिरी तारीख है. शायद मेरा तलाक मंजूर हो जाए. फिर मैं कुछ दिन सुकून से रहना चाहती हूं.’’

‘‘तलाक?’’ कह जैसे वह अपनी सीट से उछली हो. ‘‘हां.’’

‘‘इस उम्र में तलाक?’’ वह कहने लगी, ‘‘सौरी मैम मुझे पूछना तो नहीं चाहिए पर…’’

‘‘तलाक की भी कोई उम्र होती है? सदियों से मैं रिश्ता ढोती आई हूं. बेटी यूके में पढ़ने गई तो वहीं की हो कर रह गई. मेरे पति और मेरी कभी बनी ही नहीं और अब तो बात यहां तक आ गई है कि खाना भी बाहर से ही आता है. मैं थक गई यह सब निभातेनिभाते… और जब से बेटी ने वहीं रहने का निर्णय लिया है, हमारे बीच का वह पुल भी टूट गया,’’ कहतेकहते मेरी आंखों में आंसू आ गए.

सांझ पड़े घर आना- भाग 3 : नीलिमा की बौस क्यों रोने लगी

उस रात हमारा जम कर झगड़ा हुआ. उस का गुस्सा जायज था. मैं झुकना नहीं जानती थी. न जीवन में झुकी हूं और न ही झुकूंगी…वही सब मेरी बेटी ने भी सीखा और किया. नतीजा तलाक पर आ गया. मैं ने ताना दिया था कि इस घर के लिए तुम ने किया ही क्या है. तुम्हारी तनख्वाह से तो घर का किराया भी नहीं दिया जाता… तुम्हारे भरोसे रहती तो जीवन घुटघुट कर जीना पड़ता. और इतना सुनना था कि वह गुस्से में घर छोड़ कर चला गया. अब सब कुछ खत्म हो गया था. मैं ने उस पर कई झूठे इलजाम लगाए, जिन से उस का बच पाना संभव नहीं था. मैं ने एक लंबी लड़ाई लड़ी थी और अब उस का अंतिम फैसला कल आना था. उस के बाद सब कुछ खत्म. परंतु नीलिमा ने इस बीच एक नया प्रश्न खड़ा कर दिया जो मेरे कलेजे में बर्फ बन कर जम गया.

पर अभी भी सब कुछ खत्म नहीं हुआ था, होने वाला था. बस मेरे कोर्ट में हाजिरी लगाने भर की देरी थी. मेरे पास आज भी 2 रास्ते खुले थे. एक रास्ता कोर्ट जाता था और दूसरा उस के घर की तरफ, जहां वह मुझ से अलग हो कर चला गया था. कोर्ट जाना आसान था और उस के घर की तरफ जाने का साहस शायद मुझ में नहीं था. मैं ने कोर्ट में उसे इतना बेईज्जत किया, ऐसेऐसे लांछन लगाए कि वह शायद ही मुझे माफ करता. मैं अब भी ठीक से निर्णय नहीं ले पा रही थी. हार कर मैं ने पुन: नीलिमा से मिलने का फैसला किया जिस ने मेरे शांत होते जीवन में पुन: उथलपुथल मचा दी थी. मैं उस दोराहे से अब निकलना चाहती थी. मैं ने कई बार उसे आज फोन किया, परंतु उस का फोन लगातार बंद मिलता रहा.

आज रविवार था. अत: सुबहसुबह वह घर पर मिल ही जाएगी, सोच मैं उसे मिलने चली गई. मेरे पास स्टाफ के घर का पता और मोबाइल नंबर हमेशा रहता था ताकि किसी आपातकालीन समय में उन से संपर्क कर सकूं. वह एक तीनमंजिला मकान में रहती थी. ‘‘मैम, आप?’’ मुझे देखते ही वह एकदम सकपका गई? ‘‘सब ठीक तो है न?’’

‘‘सब कुछ ठीक नहीं है,’’ मैं बड़ी उदासी से बोली. वह मेरे चेहरे पर परेशानी के भाव देख रही थी. मैं बिफर कर बोली, ‘‘तुम्हारी कल की बातों ने मुझे भीतर तक झकझोर कर रख दिया है.’’

वह हतप्रभ सी मेरे चेहरे की तरफ देखती रही.

‘‘क्या मैं कुछ देर के लिए अंदर आ सकती हूं?’’

‘‘हां मैम,’’ कह कर वह दरवाजे के सामने से हट गई, ‘‘आइए न.’’ ‘‘सौरी, मैं तुम्हें बिना बताए आ गई. मैं क्या करती. लगातार तुम्हारा फोन ट्राई कर रही थी पर स्विचऔफ आता रहा. मुझ से रहा नहीं गया तो मैं आ गई,’’ कहतेकहते मैं बैठ गई.

ड्राइंगरूम के नाम पर केवल 4 कुरसियां और एक राउंड टेबल, कोने में अलमारी और कंप्यूटर रखा था. घर में एकदम खामोशी थी. वह मुझे वहां बैठा कर बोली, ‘‘मैं चेंज कर के आती हूं.’’

थोड़ी देर में वह एक ट्रे में चाय और थोड़ा नमकीन रख कर ले आई और सामने की कुरसी पर बैठ गई. हम दोनों ही शांत बैठी रहीं. मुझे बात करने का सिरा पकड़ में नहीं आ रहा था. चुप्पी तोड़ते हुए मैं ने कहा, ‘‘मैं ने सुबहसुबह आप लोगों को डिस्टर्ब किया. सौरी… आप का पति और बेटा कहीं बाहर गए हैं क्या? बड़ी खामोशी है.’’

वह मुझे ऐसे देखने लगी जैसे मैं ने कोई गलत बात पूछ ली हो. फिर नजरें नीची कर के बोली, ‘‘मैम, न मेरा कोई पति है न बेटा. मुझे पता नहीं था कि मेरा यह राज इतनी जल्दी खुल जाएगा,’’ कह कर वह मायूस हो गई. मैं हैरानी से उस की तरफ देखने लगी. मेरे पास शब्द नहीं थे कि अगला सवाल क्या पूछूं. मैं तो अपनी समस्या का हल ढूंढ़ने आई थी और यहां तो… फिर भी हिम्मत कर के पूछा, तो क्या तुम्हारी शादी नहीं हुई?

‘‘हुई थी मगर 6 महीने बाद ही मेरे पति एक हादसे में गुजर गए. एक मध्यवर्गीय लड़की, जिस के भाई ने बड़ी कठिनाई से विदा किया हो और ससुराल ने निकाल दिया हो, उस का वजूद क्या हो सकता है,’’ कहतेकहते उस की आवाज टूट गई. चेहरा पीला पड़ गया मानो वही इस हालात की दोषी हो. ‘‘जवान अकेली लड़की का होना कितना कष्टदायी होता है, यह मुझ से बेहतर और कौन जान सकता है… हर समय घूरती नजरों का सामना करना पड़ता है…’’

‘‘तो फिर तुम ने दोबारा शादी क्यों नहीं की?’’ ‘‘कोशिश तो की थी पर कोई मन का नहीं मिला. अपनी जिंदगी के फैसले हम खुद नहीं करते, बल्कि बहुत सी स्थितियां करती हैं.

‘‘अकेली लड़की को न कोई घर देने को तैयार है न पेइंग गैस्ट रखना चाहता है. मेरी जिंदगी के हालात बहुत बुरे हो चुके थे. हार कर मैं ने ‘मिसेज खन्ना’ लिबास ओढ़ लिया. कोई पूछता है तो कह देती हूं पति दूसरे शहर में काम करते हैं. हर साल 2 साल में घर बदलना पड़ता है. और कभीकभी तो 6 महीने में ही, क्योंकि पति नाम की वस्तु मैं खरीद कर तो ला नहीं सकती. आप से भी मैं ने झूठ बोला था. पार्टियां, कचौरियां, बच्चे सब झूठ था. अब आप चाहे रखें चाहे निकालें…’’ कह कर वह नजरें झुकाए रोने लगी. मेरे पास कोई शब्द नहीं था.

‘‘बड़ा मुश्किल है मैडम अकेले रहना… यह इतना आसान नहीं है जितना आप समझती हैं… भले ही आप कितनी भी सामर्थ्यवान हों, कितना भी पढ़ीलिखी हों, समाज में कैसा भी रुतबा क्यों न हो… आप दुनिया से तो लड़ सकती हैं पर अपनेआप से नहीं. तभी तो मैं ने कहा था कि आप अपनी जिंदगी से समझौता कर लीजिए.’’

मेरा तो सारा वजूद ही डगमगाने लगा. मुझे जहां से जिंदगी शुरू करनी थी, वह सच तो मेरे सामने खड़ा था. अब इस के बाद मेरे लिए निर्णय लेना और भी आसान हो गया. मेरे लिए यहां बैठने का अब कोई औचित्य भी नहीं था. जब आगे का रास्ता मालूम न हो तो पीछे लौटना ही पड़ता है. मैं भरे मन से उठ कर जाने लगी तो नीलिमा ने पूछा, ‘‘मैम, आप ने बताया नहीं आप क्यों आई थीं.’’ ‘‘नहीं बस यों ही,’’ मैं ने डबडबाती आंखों से उसे देखा

वह बुझे मन से पूछने लगी, ‘‘आप ने बताया नहीं मैं कल से काम पर आऊं या…’’ और हाथ जोड़ दिए. पता नहीं उस एक लमहे में क्या हुआ कि मैं उस की सादगी और मजबूरी पर बुरी तरह रो पड़ी. न मेरे पास कोई शब्द सहानुभूति का था और न ही सांत्वना का. इन शब्दों से ऊपर भी शब्द होते तो आज कम पड़ जाते. एक क्षण के लिए काठ की मूर्ति की तरह मेरे कदम जड़ हो गए. मैं अपने घर आ कर बहुत रोई. पता नहीं उस के लिए या अपने अहं के लिए… और कितनी बार रोई. शाम होतेहोते मैं ने बेहद विनम्रता से अपने पति को फोन किया और साथ रहने की प्रार्थना की. बहुत अनुनयविनय की. शायद मेरे ऐसे व्यवहार पर पति को तरस आ गया और वह मान गए.

और हां, जिस ने मुझे तबाही से बचा लिया, उसे मैं ने एक अलग फ्लैट ले कर दे दिया. अब वह ‘मिसेज खन्ना’ का लिबास नहीं ओढ़ती. नीलिमा और सिर्फ नीलिमा. उस के मुझ पर बहुत एहसान हैं. चुका तो सकती नहीं पर भूलूंगी भी नह

सांझ पड़े घर आना- भाग 2 : नीलिमा की बौस क्यों रोने लगी

वह धीरे से अपनी सीट से उठी और मेरी साड़ी के पल्लू से मेरे आंसू पोंछने लगी. फिर सामने पड़े गिलास से मुझे पानी पिलाया और मेरी पीठ पर स्नेह भरा हाथ रख दिया. बहुत देर तक वह यों ही खड़ी रही. अचानक गमगीन होते माहौल को सामान्य करने के लिए मैं ने 2-3 लंबी सांसें लीं और फिर अपनी थर्मस से चाय ले कर 2 कपों में डाल दी.

उस ने चाय का घूंट भरते हुए धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘मैम, मैं तो आप से बहुत छोटी हूं. मैं आप के बारे में न कुछ जानती हूं और न ही जानना चाहती हूं. पर इतना जरूर कह सकती हूं कि कुछ गलतियां आप की भी रही होंगी… पर हमें अपनी गलती का एहसास नहीं होता. हमारा अहं जो सामने आ जाता है. हो सकता है आप को तलाक मिल भी जाए… आप स्वतंत्रता चाहती हैं, वह भी मिल जाएगी, पर फिर क्या करेंगी आप?’’ ‘‘सुकून तो मिलेगा न… जिंदगी अपने ढंग से जिऊंगी.’’

‘‘अपने ढंग से जिंदगी तो आज भी जी रही हैं आप… इंडिपैंडैंट हैं अपना काम करने के लिए… एक प्रतिष्ठित कंपनी की बौस हैं… फिर…’’ कह कर वह चुप हो गई. उस की भाषा तल्ख पर शिष्ट थी. मैं एकदम सकपका गई. वह बेबाक बोलती जा रही थी. मैं ने झल्ला कर तेज स्वर में पूछा, ‘‘मैं समझ नहीं पा रही हूं तुम मेरी वकालत कर रही हो, मुझ से तर्कवितर्क कर रही हो, मेरा हौंसला बढ़ा रही हो या पुन: नर्क में धकेल रही हो.’’

‘‘मैम,’’ वह धीरे से पुन: शिष्ट भाषा में बोली, ‘‘एक अकेली औरत के लिए, वह भी तलाकशुदा के लिए अकेले जिंदगी काटना कितना मुश्किल होता है, यह कैसे बताऊं आप को…’’ ‘‘पहले आप के पास पति से खुशियां बांटने का मकसद रहा होगा, फिर बेटी और उस की पढ़ाई का मकसद. फिर लड़ कर अलग होने का मकसद और अब जब सब झंझटों से मुक्ति मिल जाएगी तो क्या मकसद रह जाएगा? आगे एक अकेली वीरान जिंदगी रह जाएगी…’’ कह कर वह चुप हो गई और प्रश्नसूचक निगाहों से मुझे देखती रही. फिर बोली, ‘‘मैम, आप कल सुबह यह सोच कर उठना कि आप स्वतंत्र हो गई हैं पर आप के आसपास कोई नहीं है. न सुख बांटने को न दुख बांटने को. न कोई लड़ने के लिए न झगड़ने के लिए. फिर आप देखना सब सुखसुविधाओं के बाद भी आप अपनेआप को अकेला ही पाएंगी.’’

मैं समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या कहना चाहती है. मेरे चेहरे पर कई रंग आ रहे थे, परंतु एक बात तो ठीक थी कि तलाक के बाद अगला कदम क्या होगा. यह मैं ने कभी ठीक से सोचा न था. ‘‘मैम, मैं अब चलती हूं. बाहर कई लोग मेरा इंतजार कर रहे हैं… जाने से पहले एक बार फिर से सलाह दूंगी कि इस तलाक को बचा लीजिए,’’ कह वह वहां से चली गई.

उस के जाने के बाद पुन: उस की बातों ने सोचने पर मजबूर कर दिया. मेरी सोच का दायरा अभी तक केवल तलाक तक सीमित था…उस के बाद व्हाट नैक्स्ट? उस पूरी रात मैं ठीक से सो नहीं पाई. सुबहसुबह कामवाली बालकनी में चाय रख कर चली गई. मैं ने सामने वाली कुरसी खींच कर टांगें पसारीं और फिर भूत के गर्भ में चली गई. किसी ने ठीक ही कहा था कि या तो हम भूत में जीते हैं या फिर भविष्य में. वर्तमान में जीने के लिए मैं तब घर वालों से लड़ती रही और आज उस से अलग होने के लिए. पापा को मनाने के लिए इस के बारे में झूठसच का सहारा लेती रही, उस की जौब और शिक्षा के बारे में तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश करती रही और आज उस पर उलटेसीधे लांछन लगा कर तलाक ले रही हूं.

तब उस का तेजतर्रार स्वभाव और खुल कर बोलना मुझे प्रभावित करता था और अब वही चुभने लगा है. तब उस का साधारण कपड़े पहनना और सादगी से रहना मेरे मन को भाता था और अब वही सब मेरी सोसाइटी में मुझे नीचा दिखाने की चाल नजर आता है. तब भी उस की जौब और वेतन मुझ से कम थी और आज भी है. ‘‘ऐसा भी नहीं है कि पिछले 25 साल हमने लड़तेझगड़ते गुजारे हों. कुछ सुकून और प्यारभरे पल भी साथसाथ जरूर गुजारे होंगे. पहाड़ों, नदियों और समुद्री किनारों के बीच हम ने गृहस्थ की नींव भी रखी होगी. अपनी बेटी को बड़े होते भी देखा होगा और उस के भविष्य के सपने भी संजोए होंगे. फिर आखिर गलती हुई कहां?’’ मैं सोचती रही गई.

अपनी भूलीबिसरी यादों के अंधेरे गलियारों में मुझे इस तनाव का सिरा पकड़ में नहीं आ रहा था. जहां तक मुझे याद आता है मैं बेटी को 12वीं कक्षा के बाद यूके भेजना चाहती थी और मेरे पति यहीं भारत में पढ़ाना चाहते थे. शायद उन की यह मंशा थी कि बेटी नजरों के सामने रहेगी. मगर मैं उस का भविष्य विदेशी धरती पर खोज रही थी? और अंतत: मैं ने उसे अपने पैसों और रुतबे के दम पर बाहर भेज दिया. बेटी का मन भी बाहर जाने का नहीं था. पर मैं जो ठान लेती करती. इस से मेरे पति को कहीं भीतर तक चोट लगी और वह और भी उग्र हो गए. फिर कई दिनों तक हमारे बीच अबोला पसर गया. हमारे बीच की खाई फैलती गई. कभी वह देर से आता तो कभी नहीं भी आता. मैं ने कभी इस बात की परवाह नहीं की और अंत में वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था. बेटी विदेश क्या गई बस वहीं की हो गई. फिर वहीं पर एक विदेशी लड़के से शादी कर ली. कोई इजाजत नहीं बस निर्णय… मेरी तरह.

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