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कंगना रनौत ने एक बार फिर टाली मुंबई पुलिस की पेशी, कहा भाई के शादी के बाद आऊंगी

कंगना रनौत बीते कई दिनों से विवाद में पड़ी हुई हैं. आएं दिन कुछ न कुछ नया मुद्दा आ जाता है जिससे कंगना को नई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. मुंबई पुलिस ने कंगना रनौत और रंगोली चंदेल को कुछ दिनों पहले पूछताछ के लिए बुलाया था.

तब दोनों बहनों का कहना था कि वह अपने भाई के शादी में व्यस्त हैं इसलिए वह पेश नहीं हो सकती हैं. जिसके बाद एक बार फिर कंगना को मुंबई पुलिस ने नोटिस भेजा जिसके बाद उन्होंने एक बार फिर जाने से इंकार कर दिया है.बता दें कि दोनों बहनों के कथित रूप से समुदायों के बीच दुश्मनी का बढ़ावा देने के मामले में पेश होने के लिए कहा गया था. इससे पहले बांद्रा पुलिस ने 21 अक्टूबर को नोटिस भेजा था.

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तब उनके वकील ने जवाब देते हुए बताया था कि फिलहाल कंगना रनौत हिमाचल प्रदेश में है. जिसके बाद मुंबई पुलिस ने कंगना को 10 नवंबर को पेश होने के लिए कहा जिस प्रस्ताव को भी कंगना ने ठुकरा दिया.
रिपोर्ट की माने तो कंगना ने दूसरी बार यह प्रस्ताव ठुकराया है. कंगना ने कहा वो अभी भी अपने भाई के शादी में व्यस्त है 15 नवंबर के बाद वह मुंबई पुलिस के सामने पेश होंगी.

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पिछले कुछ महीने से लगातार कंगना रनौत विवादों में फंसती नजर आ रही हैं. उन पर कई मामले दर्ज हो चुके हैं. वहीं कुछ दिनों पहले कंगना ने जावेद अख्तर पर आरोप लगाएं थे कि ऋतिक रोशन संग रिलेशन को लेकर धमकी देकर बुलाने की कोशिश की थी.

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आगे एक इंटरव्यू में कंगना ने कहा था कि जावेद अख्तर ने उन्हे कहा था कि ऋतिक रौशन के परिवार वाले लोग बहुत बड़े हैंउनसे दूरी बना लें. वरना तुम खुद का नुकसान पहुंचाने के बारे में सोच सकती हो.

नन्हा दिया-भाग 3: सिल्की को किस बात से डर लग रहा था, जिसे वह बताना नहीं चाहती थी

उमेश उस के न कहने पर भी उस के मन की बात समझते हुए बोले थे, ‘सुमी, नन्हे की परवरिश सिर्फ तुम्हारा ही नहीं मेरा भी दायित्व है. नन्हे हम से अलग रह कर भी अपनी राह खुद स्वयं ढूंढ़ लेगा, क्योंकि उसे पता है कि हम उस के मातापिता नहीं हैं जबकि अनिरुद्ध इस को एक सजा समझ कर हम से नफरत कर और विद्रोही होता जाएगा. होस्टल में रख कर नन्हे को हो सकता है हम और ज्यादा प्यार और सुरक्षा प्रदान कर सकें और फिर प्रत्येक छुट्टियों में उसे ले आया करेंगे तथा बीचबीच में मिल कर उस का हालचाल लेते रहेंगे.’

उमेश का अनुमान ठीक ही निकला. होस्टल में नन्हे अपने हमउम्र साथियों के साथ रह कर सामान्य होने लगा था तथा अनिरुद्ध के व्यवहार की गरमी भी शांत होने लगी थी.

छुट्टियों में अवश्य थोड़ी समस्या होती लेकिन उन्हें स्मिता अपनी व्यवहारकुशलता से संभाल लेती. अनिरुद्ध को भी लगता, थोड़े दिनों की बात है. इसलिए सहयोग कर लेता था. पढ़ने में दोनों ही तीक्ष्ण बुद्धि वाले थे, बस, इतना ही संतोष था.

समय बहता गया, समय के साथसाथ बीते दिनों की यादें भी धुंधली पड़ने लगी थीं. अनिरुद्ध इंजीनियर बना तथा नन्हे डाक्टर. दोनों ही अपनेअपने क्षेत्रों में सफल रहे थे.

अनिरुद्ध ने अपनी पसंद की ही एक लड़की से विवाह कर लिया. उस की पत्नी अरुणिमा जिद्दी स्वभाव की अमीर मातापिता की अकेली संतान थी. वे स्वतंत्र रहना चाहती थी. इसलिए जराजरा सी बात को कलह का कारण बना देती थी. घर का वातावरण विषाक्त होने लगा था इसलिए उन्होंने अलग रहने का निर्णय कर लिया था. एक बार उन्हें भी लगा था कि शायद थोड़ी सी दूरी संबंधों को सामान्य बना सके किंतु उन का यह सोचना भी ठीक नहीं निकला, अलग रहने से वह अपने कर्तव्यों के प्रति और भी उदासीन होते गए. पहले कभी तीजत्योहार पर आ भी जाते थे, पर धीरेधीरे वे भी बंद होता गया. अब तो बस, फोन पर ही जब उस का मन होता है, बात कर मन को सांत्वना दे लेती है.

नन्हे भी डाक्टर लड़की से ही विवाह कर आगे पढ़ने के लिए विदेश चला गया. उस की पत्नी निशा विनम्र स्वभाव की सहनशील लड़की थी. उस के मातापिता निशा के लिए अखिलेश का हाथ मांगने आए थे और उन्होंने भी उस की सहमति पा कर अपना कर्तव्य निभा दिया था.

नन्हे जब तक भारत में रहा तब तक प्रत्येक तीजत्योहार पर आ कर घर में खुशियां भर देता था. यह बात अलग है कि दीवाली पर आ कर भी वह खुद को कमरे में कैद कर लेता था तथा हम सब भी बिना शोरशराबे के सिर्फ रस्में पूरी करते थे.

उमेश के मरने पर अवश्य अनिरुद्ध और अरुणिमा आ कर कुछ दिन उस के पास रहे थे तथा जाते हुए साथ चलने की पेशकश भी की थी, पिंकी डब्बू अपने मातापिता की शह पा कर मचलते हुए बोले थे, ‘दादी चलो न, हमारे साथ. सब बच्चों के दादादादी आ कर उन के साथ रहते हैं. एक आप ही हमारे घर नहीं आती हो.’

‘आऊंगी, बेटा, मैं भी आऊंगी तुम्हारे  घर, किंतु अभी नहीं चल पाऊंगी,’ कह कर बच्चों को शांत किया था किंतु वह चाहते हुए भी कभी नहीं जा पाई थी. पता नहीं क्यों उसे लगा था जब उमेश के साथ ही वह उन के पास जा कर कभी नहीं रही तो अब जाने का क्या औचित्य? यह बात और है कि उमेश के न रहने पर अनिरुद्ध बीचबीच में आ कर उस का हालचाल पूछ जाता था. एक बार साथ चलने के लिए भी कहा था किंतु अरुणिमा के व्यवहार के कारण वह भी ज्यादा जोर नहीं दे पाया था.

नन्हे विदेश में रहने के कारण उस समय नहीं आ पाया था, किंतु सुन कर फोन पर ही रो पड़ा था, ‘मामी, कितना अभागा हूं मैं जो मामा के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सका. वास्तव में वह मेरे मामा ही नहीं, मेरे मार्गदर्शक पिता

भी थे.’

उस के बाद वह हर सप्ताह फोन कर के उस का हालचाल पूछने लगा था तथा बिना नागा हर महीने 200 डौलर का चैक भेजता, मना करने पर उस ने कहा था, ‘मामी, प्लीज मना मत करो, यह एक पुत्र का अपनी मां के प्रति प्रेम का प्रतीक है. मैं जानता हूं आप को इस पैसे की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन प्यार तो जितना ही हो, कम ही है. बस, यह हमारा आप के प्रति प्यार का थोड़ा सा अंश है.’

घंटी की घनघनाहट और उस के साथ ही सिल्की की भूंकने की आवाज ने उसे अतीत से वर्तमान में ला दिया. अतीत चाहे जैसा भी हो उस का अपना था जो उसे खुशियां भी देता था और गम भी और अब तो शायद अकेलेपन का अनकहा, अनदेखा साथी ही बन गया था, फिर घंटी की तेज आवाज सुन कर वह उठते हुए बोली, ‘‘अरे, आ तो रही हूं, इस घुटने के दर्द के कारण जल्दीजल्दी चल भी नहीं सकती.’’

दरवाजा खोला तो सामने नन्हे और अनिरुद्ध के परिवारों को देख कर चौंक गई तथा खुशी से भरे स्वर में आश्चर्य से  बोली, ‘‘अरे, तुम दोनों, अचानक… पहले से कुछ आभास तो दिया होता.’’

‘‘दादी अम्मा, पापा ने कहा था, इस बार अम्मा को सरप्राइज देंगे. इसलिए नहीं बताया,’’ विक्की ने उस का हाथ पकड़ कर रहस्यमय आवाज में कहा.

‘‘नहीं मम्मा, जैसे ही काम समाप्त हुआ वैसे ही जहाज पकड़ा और आ गया. त्योहार साथ मनाना था, इसलिए पहले भैयाभाभी के पास गया और बस, अब आप के सामने हूं,’’ नन्हे ने चिरपरिचित अंदाज में कहा.

‘‘लेकिन तू दीवाली मनाएगा?’’ आश्चर्य से स्मिता के मुंह से निकल गया.

‘‘हां,’’ क्यों नहीं? आज मुझे लगता है मां की मौत एक एक्सिडैंट था, जरा सी असावधानी के कारण घटी एक अनहोनी घटना. दीवाली तो खुशियों का, उमंग और उत्साह का त्योहार है, जब सारी दुनिया में उजाला हो रहा है तो अपने घर में अंधेरा कब तक रहेगा? आज हमारा नहीं हमारे बच्चों का समय है, बच्चों को कब तक हम खुशियों से दूर रखेंगे. हम दीवाली मनाएंगे, अवश्य मनाएंगे, हम सब मिल कर धूमधड़ाके से मनाएंगे, है न बच्चों.’’

‘‘हां, कह कर बच्चों ने गर्मजोशी से समर्थन किया था.

‘‘लेकिन, पहले बता देते तो मैं कुछ इंतजाम कर के रखती.’’

‘‘दादी, आप को कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है. देखिए, हमारे पास कितने पटाखे हैं. ताऊजी ने खरीदवाए हैं,’’ विक्की ने अपना बैग आगे करते हुए कहा.

‘‘और अम्मा, यह देखो नए कपड़े, जो चाचू न्यूयौर्क से ले कर आए हैं,’’ पिंकी, डब्बू अपना सूटकेस खोल कर बैठ गए.

‘‘मांजी, आप चिंता न करें. दीवाली का सब इंतजाम हो जाएगा, हम दोनों मिल कर सब संभाल लेंगी,’’ अरुणिमा ने कहा और निशा ने सहमति दे दी.

स्मिता की समझ में नहीं आ रहा था, इतनी सारी खुशी वह कहां समेटे. उस का तो आंचल भी छोटा पड़ गया था. अरुणिमा, जो उस से कभी सीधे मुंह बात नहीं करती थी, वह इतने प्यार और सम्मान से बात कर रही है. साथ ही अनिरुद्ध और नन्हे, जो एकदूसरे के साथ बैठना तो दूर बातें करना भी पसंद नहीं करते थे, आज ऐसे घुलमिल कर बातें कर रहे हैं जैसे बहुत दिनों के बाद एकाएक मिले 2 बिछुड़े भाई या दोस्त अपने बीते दिनों की बेशुमार यादों को कुछ ही पलों में समेट लेना चाह रहे हों. दोनों के कहकहों से घर भर उठा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि दोनों के बीच दोस्ती कब और कैसे शुरू हुई.

अरुणिमा और निशा का मिलजुल कर काम करना तथा तीनों बच्चों का एकदूसरे के साथ मिलजुल कर खेलना, स्मिता को सुखद आश्चर्य दे रहा था. इस समय उस के मन में बस, एक आस जगी थी. काश, समय ठहर जाए.

अरुणिमा और निशा ने आते ही रसोई संभाल ली थी, सब्जी आदि सब वे रास्ते से ही खरीद लाए थे, अनिरुद्ध और नन्हे उस के सामने बैठे अपनी आपबीती सुना रहे थे. बीचबीच में चाय का दौर भी शुरू हो जाता. दोनों रसोई में ऐसे लगी थीं जैसे वर्षों से यहीं, इसी घर में रह रही हों.

नन्हे सब के लिए दीवाली के उपलक्ष्य में उपहार लाया था. खिलौने, कपड़े, सैंट, पर्स और भी न जाने क्याक्या. एक पूरा सूटकेस ही उपहारों से भरा था. निशा ने जब उसे सुंदर सी साड़ी के साथ कुछ अन्य पैकेट पकड़ाए तो वह भावविभोर हो कर कह उठी, ‘‘बेटा, तुम लोग आ गए यही मेरे लिए बहुत है. अब मैं इन सब का क्या करूंगी?’’

‘‘अम्मा, आज शाम को आप यही साड़ी पहनना, यह मेरी पसंद की है,’’ निशा को उसे साड़ी पकड़ाते हुए देख कर विक्की ने अपना खेलना छोड़ कर उन के  पास आते हुए कहा.

‘‘तेरी पसंद की है तो बेटा मैं अवश्य यह साड़ी पहनूंगी,’’ कहते हुए स्मिता ने उसे चूम लिया.

‘‘आप बस, विक्की भैया को ही प्यार करना, हमें नहीं,’’ किंचित क्रोध से पिंकी ने कहा.

‘‘पिंकी बेटा, ऐसा क्यों सोचती हो, मेरे लिए तो तुम सब एक बराबर हो. डब्बू बेटा, तुम भी मेरे पास आओ,’’ स्मिता ने तीनों को पास बुला कर प्यार किया.

शाम को अरुणिमा और निशा घर को दीयों से सजाने लगीं, अनिरुद्ध और नन्हे बच्चों को पटाखे छुड़वाने के लिए बाहर लौन में निकल आए. उन्होंने सब को सूती कपड़े पहनने का निर्देश दे दिया था. तीनों बच्चों को चमड़े के जूते तथा दस्ताने भी पहना दिए थे. नन्हे और अनिरुद्ध स्वयं अपनी देखरेख में बच्चों से पटाखे छुड़वा रहे थे.

बरामदे में बैठी स्मिता सब को हंसतेखेलते देख कर सोच रही थी, वास्तव में त्योहार जीवन की एकजैसी स्थिति को दूर करने का एक खूबसूरत साधन है. ईर्ष्या और द्वेष की भावना को छोड़ कर प्रेम और सद्भावना के साथ एकदूसरे से मिलजुल कर रहने की शिक्षा प्रदान करते हैं. यह बात और है कि कभीकभी जरा सी असावधानी, जरा सी चूक किसी बड़ी दुर्घटना को जन्म दे जाती है. इसलिए त्योहार मनाना तो चाहिए, लेकिन जरा सावधानी से.

यह बात भी सोलह आने सच है कि ताली एक हाथ से नहीं बजती, यदि सच्चा प्रेम और विश्वास हो तो पत्थर से भी पानी निकाला जा सकता था, यह बात नन्हे और निशा ने आज सिद्ध कर दी थी.

उस के मनमस्तिष्क में उमेश के शब्द भी बारबार गूंज रहे थे, जो वे उस के हताशनिराश होने पर अकसर कहते थे, ‘सुमी, करनी का फल सदा मीठा होता है. आज जैसा पौधा तुम लगाओगी कल वह वैसा ही फल देगा. सुमी, दीया कितना भी छोटा क्यों न हो, अंधकार को चीरने की सामर्थ्य रखता ही है. धीरज रखो, हमारे घर भी एक दिन प्रकाश होगा.’

उसे खुशी थी कि अंतत: उस के नन्हे दीये ने आज उस के घर को खुशियों के प्रकाश से प्रकाशित कर दिया था.      द्य

दीपा को आए हुए एक सप्ताह ही हुआ था. हमउम्र होने के बावजूद नन्हे की मेरे बेटे अनिरुद्ध से ज्यादा दोस्ती नहीं हो पाई थी. पता नहीं क्यों नन्हे हरदम सहमासहमा सा रहता था. शायद उस के पिता की अचानक मौत ने उसे चुप कर दिया था.

नन्हा दिया-भाग 2: सिल्की को किस बात से डर लग रहा था, जिसे वह बताना नहीं चाहती थी

अब पटाखे छोड़ने में नन्हे को मजा आने लगा तो वह अपनी मां से अलग हो कर अनिरुद्ध के साथ फुलझड़ी छुड़ाने लगे. दीपा वहीं एक कुरसी पर बैठ कर दोनों को देखने लगी. तभी पता नहीं कहां से एक रौकेट दनदनाता हुआ आया और उस की गोद में गिर गया और पलभर में आग लग गई. वह चिल्लाई, नन्हे ने मांमां कहते हुए उस से चिपट कर बचाने का प्रयत्न किया किंतु दीपा ने उसे परे धकेल दिया. उसे स्वयं से ज्यादा नन्हे की चिंता थी और नन्हे मां को बचाने के लिए बारबार उस से चिपकने की कोशिश कर रहा था, जिस के कारण उस के हाथ झुलस गए थे. जब तक कोई कुछ कर पाता, समझ पाता, बहुत देर हो चुकी थी. दीपा की सिंथैटिक साड़ी क्षणभर में जल कर उस के जिस्म से ऐसे चिपक गई कि उस को निकालना भी कठिन हो गया था.

दीवाली के आमोदप्रमोद में व्यस्त डाक्टरों के अनुपस्थित रहने के कारण उसे समय पर सही चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाई. 10 घंटे जिंदगी और मौत के बीच झूलने के बाद आखिरकार उस ने प्राण त्याग दिए थे.

वैसे तो मनीष की मौत के बाद ही जिंदगी उस के लिए रसहीन हो चुकी थी, वह जी रही थी सिर्फ नन्हे के लिए. उस की सांस चल रही थी तो सिर्फ नन्हे के लिए, किंतु इस भयानक घटना के बाद उस के मन में एक ही वेदना थी कि अब नन्हे का क्या होगा? उस की परवरिश कौन करेगा? उस के मन की वेदना और आंखों में भरी याचना को समझ कर उसे दिलासा देते हुए स्मिता ने कहा था, ‘दीपा, तुम नन्हे की चिंता मत करो, उस की देखभाल मैं करूंगी. बस, तुम शीघ्र ठीक हो जाओ.’

‘भाभी, बस, मैं यही चाहती थी, अब मैं शांति से मर तो सकूंगी,’ यत्नपूर्वक पीड़ायुक्त शब्दों में अपनी भावना प्रकट कर उस ने आंखें बंद कर ली थीं, जो फिर कभी नहीं खुल पाईं.

नन्हे, जिस ने अपने मातापिता को एक साल के अंदर ही खो दिया था, को संभालना मुश्किल हो गया था. वह समझ ही नहीं पा रहा था कि उस के पिता के साथ मां भी कहां चली गई तथा अब वे दोनों ही लौट कर क्यों नहीं आ सकते. वह नन्हे न तो किसी से बोलता था और न ही किसी के साथ खेलना चाहता था और न ही खाना… बस, सहमासहमा सब को देखता रहता था.

उमेश भी इस घटना से भौचक्के रह गए, कहां वे तो दीपा को ससुराल से इसलिए लाए थे कि वह अपनी दुखभरी यादों से कुछ समय के लिए मुक्ति पा सके, लेकिन वह तो सदा के लिए ही इस संसार से मुक्ति पा गई थी. अपराधबोध से ग्रस्त उमेश के लिए अब नन्हे की परवरिश, उस की उचित देखभाल केवल कर्त्तव्य ही नहीं, दायित्व भी बन गया था और यही बहन के प्रति उन की श्रद्धांजलि थी. यही कारण था कि नन्हे के दादादादी जब उसे लेने आए तो नम्र स्वर में अपनी इच्छा प्रकट कर दी थी तथा उन्होंने भी उन की इच्छा का मान रखा था.

उमेश ने अनिरुद्ध के स्कूल में ही नन्हे का नाम लिखा दिया था. स्कूल जाने से उस के व्यवहार में थोड़ा बदलाव आया था किंतु जब अनिरुद्ध को उमेश के साथ हंसतेबोलते देखता तो चुप हो जाता था. स्मिता और उमेश दोनों ही उसे पास बुला कर प्यार करना चाहते. अनिरुद्ध की तरह उस का होेमवर्क कराने में मदद करने का प्रयास करते, लेकिन चाह कर भी वह उस के मन की ग्रंथि को तोड़ नहीं पाए थे. रात में अकसर मांमां कहता हुआ चौंक कर उठ बैठता तब स्मिता ने उसे अपने पास सुलाने का फैसला लिया था.

पहले तो अनिरुद्ध ने कुछ नहीं कहा, लेकिन फिर बातबात पर वे नन्हे से झगड़ने लगा, कभी वह उस की किसी वस्तु पर गलती से भी हाथ लगा लेता तो वह चिढ़ जाता तथा कभीकभी मार भी देता था. उस की इन हरकतों पर स्मिता डांटती तो वह चिढ़ कर कहता, ‘आप तो बस, उसे ही प्यार करती हो, मुझे नहीं. क्या मैं आप का बेटा नहीं रहा?’

अनिरुद्ध को प्यार से समझाना चाहती, ‘बेटा, उस के मातापिता नहीं हैं इसलिए उसे प्यार की तुम से ज्यादा आवश्यकता है.‘तो इस का मतलब यह तो नहीं कि उस की गलत बात पर भी उसे कुछ न कहो, बस, मुझे ही डांटती रहो,’ चिढ़ते हुए उस ने जवाब दिया था.

अनिरुद्ध के मन में नन्हे के लिए न जाने कहां से इतनी कटुता, ईर्ष्या आ गई थी कि वह अपनी चीजें अपने दूसरे दोस्तों के साथ शेयर कर सकता था, पर नन्हे के साथ नहीं.

अनिरुद्ध की उद्दंडता दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. एक दिन नन्हे ने अनिरुद्ध की गैरमौजूदगी में उस का गिटार बजाने की कोशिश की, तभी अनिरुद्ध आ गया. उस ने नन्हे के हाथ से गिटार छीनते हुए एक जोरदार चांटा उस के गाल पर मारा तथा चीखते हुए बोला, ‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी चीजें छूने की, टूट जाता तो क्या होता?’

नन्हे को सहमा हुआ देख कर स्मिता ने कहा, ‘टूटा तो नहीं. क्या छोटे भाई के साथ इस तरह का व्यवहार किया जाता है?’‘किस का भाई, यह मेरा भाई नहीं है, कैसी मां हो जो अपने बेटे से अधिक दूसरे के बेटे को चाहती हो.’अनिरुद्ध का उत्तर सुन कर गुस्से से उस के गाल पर एक चांटा लगाते हुए वह बोली, ‘तुम एकदम बिगड़ गए हो, तुम्हें इतनी भी समझ नहीं है कि अपने से बड़ों से कैसे बात की जाती है.’

अनिरुद्ध ने जोरों से रोना शुरू कर दिया था. उमेश भी आवाज सुन कर अपने कमरे से बाहर निकल आए थे और नन्हे इस सारी घटना के लिए स्वयं को दोषी समझ कर सुबक कर बोला, ‘भैया, मुझे माफ कर दो. अब मैं इसे हाथ भी नहीं लगाऊंगा.’

उमेश ने सारे घटनाक्रम पर नजर डाली तथा नन्हे की स्वीकारोक्ति सुन कर उसे गोद में उठा कर बोले, ‘बेटे, यदि तुम भी गिटार बजाना सीखना चाहते हो तो मैं तुम्हारे लिए भी ऐसा ही गिटार खरीद दूंगा.’

नन्हे तो संतुष्ट हो गया था लेकिन अनिरुद्ध दिनोंदिन और भी ज्यादा उद्दंड होता जा रहा था, शायद वह अपने प्यार में और किसी की हिस्सेदारी सहन नहीं कर पा रहा था. अब नन्हे से न वह बोलना चाहता था और न ही उस के साथ खेलना चाहता था. यहां तक कि स्कूल भी साथसाथ जाने में आनाकानी करने लगा था.

अनिरुद्ध की निरंतर बढ़ती उद्दंडता तथा नन्हे का अंतर्मुखी होते जाना देख कर आखिरकार उमेश ने सुझाव दिया था, ‘नन्हे को होस्टल में डाल दिया जाए जिस से कम से कम वह सहज हो कर रह सके.’

स्मिता उमेश का सुझाव

सुन कर अनचाहे ही अपराधबोध से ग्रस्त हो उठी थी, लेकिन स्थिति की गंभीरता को समझ कर न चाहते हुए भी उसे उमेश का समर्थन करना पड़ा था, वास्तव में वह विवश हो गई थी. तमाम कोशिशों के बाद भी वह अनिरुद्ध के व्यवहार में परिवर्तन नहीं ला पाई थी, और न ही यह कह पाई थी, ‘होस्टल में डालना है तो अनिरुद्ध को डालो, नन्हे को नहीं, बेचारा अनाथ है, इसलिए क्या उसे सजा दे रहे हो… आखिर है तो वह तुम्हारी बहन का ही लड़का, फिर उस के साथ ऐसा व्यवहार क्यों?’

 

गाजर के बीज की उत्पादन तकनीक

सब्जी की पैदावार बढ़ाने में अच्छे बीजों की जरूरत पड़ती है. लेकिन अच्छे किस्म के बीज ज्यादातर किसानों को मिल नहीं पाते हैं. इस की खास वजह है बीजों का महंगा होना. गाजर के बीज का उत्पादन एक फायदेमंद काम है. बीज की पैदावार में निम्न बातों का ध्यान रखा जाता है:

खेत का चुनाव : गाजर के बीज के उत्पादन के लिए जो खेत चुना जाए, उस में अपनेआप उगे हुए पौधे नहीं होने चाहिए.

दूरी : मधुमक्खियों व अनेक कीटों के द्वारा गाजर में परपरागण होता है, इसलिए बीज की फसल की दूसरी अलग किस्मों से आधार बीज उत्पादन के लिए 1000 मीटर व प्रमाणित बीज के लिए 800 मीटर दूरी रखनी चाहिए.

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जलवायु : बीज फसल के लिए गाजर 2 साल वाली फसल है. पहले मौसम में खाने के लिए इस्तेमाल करने लायक गाजर जड़ का विकास होता है और दूसरे मौसम में बीज वृंत निकलते हैं, जो फसल की किस्म के मुताबिक 0.5 से 1.5 मीटर की ऊंचाई तक जाते हैं. बीज उत्पादन के लिए 15 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान सही रहता है. पहाडि़यों या ऊंचे स्थानों पर बीजोत्पादन आसानी से किया जा सकता है. प्रजाति का चयन : अच्छे उत्पादन के लिए सही प्रजातियों को चुनें. पूसा केसर, कल्याणपुर पीली, अर्लीनेट्स, पूसा यमदागिली व हरियाणा सलेक्शन वगैरह गाजर की उम्दा प्रजातियां हैं.

जमीन : अच्छे जलनिकास वाली हलकी दोमट जमीन सही रहती है.

बीज उत्पादन की विधियां

गाजर बीज उत्पादन की 2 खास विधियां हैं जड़ (गाजर) से बीजोत्पादन और बीज से बीज उत्पादन. जड़ से बीज उत्पादन विधि ज्यादा अच्छी मानी जाती है.

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जड़ से बीज उत्पादन विधि : 75-90 सेंटीमीटर दूरी पर मेंड़ों के ऊपर बीजों की बोआई की जाती?है. बीज आने तक मेंड़ों पर नमी होना जरूरी है. जब पौधों की ऊंचाई 5-6 सेंटीमीटर हो जाती है, तब फालतू पौधों की संख्या कम कर के दूरी 6-7 सेंटीमीटर कर दी जाती है. जड़ें तैयार हो जाने के बाद उन्हें उखाड़ कर 30 डिगरी फारेनहाइट के भंडारगृहों में भंडारित कर लिया जाता है. जड़ों को छांट कर केवल अच्छी प्रजाति की जड़ों को ही बीज उत्पादन के लिए चुनना चाहिए.

बोआई का समय : प्रजाति व जलवायु की दशा के मुताबिक जुलाई व अगस्त में बोआई की जाती है.

बीज दर : 3-4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर में उत्पादित जड़ों से 3-4 हेक्टेयर रकबे में रोपाई हो जाती है.

रोपाई विधि : तैयार जड़ों की 75×25-3 सेंटीमीटर दूरी पर फरवरी में रोपाई कर दी जाती है. इस के बाद जड़ों के चारों ओर मिट्टी चढ़ा कर तुरंत सिंचाई कर दी जाती है.

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खाद व उर्वरक : गाजर जड़ उत्पादन के दौरान 15-20 टन गोबर की खाद बोआई से पहले डालें. 40-50 किलोग्राम फास्फोरस व पोटाश को बोआई के समय डालें और 15-20 किलोग्राम नाइट्रोजन का छिड़काव निराई के बाद करें.

बीज उत्पादन के दौरान 20 टन गोबर की खाद डालें. 40-50 किलोग्राम फास्फोरस, 60-80 किलोग्राम पोटाश बोआई से पहले डालें और 50-60 किलोग्राम नाइट्रोजन का गुड़ाई के बाद अप्रैलमई में इस्तेमाल करें.

सिंचाई : जरूरत के हिसाब से 8-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए. खाद देने के बाद व सिंचाई से पहले पौधों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए.

फसल सुरक्षा : समयसमय पर निराई व गुड़ाई करते रहना चाहिए. फसल की शुरुआती अवस्था में खास ध्यान देना चाहिए. गाजर में रोगों और कीटों की कोई खास समस्या नहीं होती है. फसल में लगने वाले कीटों को रोगोर 30 ईसी 0.05 फीसदी का घोल छिड़क कर रोका जा सकता है.

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फालतू पौधों को निकालना : गाजर की जड़ों को दोबारा लगाने से पहले छोटी गाजर वाले पौधों, रोगग्रस्त पौधों व खरपतवार के पौधों को निकाल देना चाहिए. इस के बाद फूल आने के समय फूल के रंग और आकारप्रकार से अलग पौधों को?भी निकाल देना चाहिए.

बीज फसल की कटाई व सुखाई : आमतौर पर गाजर की बीज फसल सितंबर तक पक कर तैयार हो जाती है. इस के सभी सिरे एकसाथ नहीं पकते?हैं, इसलिए इसे 2-3 बार में तोड़ना ठीक रहता?है. सिरों को अच्छी तरह से सुखाने के बाद बीज निकाल लिए जाते हैं. बीज फसल से 500-600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज हासिल होते हैं.

बीज फसल की छनाई व ग्रेडिंग : बीजों को छान कर साफ कर लिया जाता है. छनाई के लिए ऊपरी छन्ना 2.30 मिलीमीटर और निचला छन्ना 1.00 मिलीमीटर का रखा जाता है. छने बीजों से 30 ग्राम नमूना बीज परीक्षण के लिए भेजे जाते हैं. यदि बीज मानक के मुताबिक होते हैं, तो उन्हें प्रमाणित किया जाता है.

नन्हा दिया-भाग 1: सिल्की को किस बात से डर लग रहा था, जिसे वह बताना नहीं चाहती थी

उमेश ने अपनी बहन के अनाथ लड़के नन्हे को अपने पास रख तो लिया लेकिन उन के बेटे अनिरुद्ध को यह खलने लगा कि नन्हे को उस के हिस्से का प्यार मिल रहा है. हालांकि स्मिता की सूझबूझ ने दोनों की परवरिश में कमी नहीं आने दी, फिर भी नन्हे के प्रति अनिरुद्ध का व्यवहार नहीं बदला. क्या नन्हे कभी अनिरुद्ध का दिल जीत पाया?

स्मिता का आज बिस्तर से उठने का मन नहीं कर रहा था. पता नहीं क्यों रातभर सोने के बाद भी सिर में भयंकर पीड़ा हो रही थी. सिल्की कभी उस के पैरों के पास से चादर खींच कर उसे उठाने का प्रयास करती तो कभी उस के सामने बैठ कर उसे एकटक देखती. उस का बाहर जाने का समय हो गया था, इसलिए उसे बेचैनी हो रही थी.

उसे आज भी याद है कि उस का बेटा अनिरुद्ध अपने मित्रों की देखादेखी कुत्ता पालने के लिए कहता तो वह यह कह कर झिड़क देती थी कि मुझ से तुम्हीं लोगों का काम नहीं हो पाता, उस बेजबान जानवर की देखभाल कौन करेगा. वैसे भी उसे पशुपक्षियों को कैद कर के रखना पसंद नहीं था, जब तक कि वह उन की देखभाल के बारे में पूरी तरह से आश्वस्त न हो.

आज जब वह दूर जा चुका है तो इस पामेरियन कुत्ते को अपना अकेलापन दूर करने के लिए पालना पड़ा. अकेले रहने पर एक बार एक अनाथ बच्चे की परवरिश का सुझाव भी अनिरुद्ध के पिता उमेशकांत ने दिया था किंतु आज के बदलते परिवेश में जब अपने ही साथ छोड़ देते हैं तो दूसरों से क्या आशा, क्या आकांक्षा. आएदिन अखबार में बूढ़ों की हत्या कर लूटपाट किए जाने की घटनाएं भी उसे आतंकित करने लगी थीं, तब उसे लगा था कि अब इंसान पर भरोसा करने के बजाय जानवर पर भरोसा करना ज्यादा ठीक है, कम से कम जानवर पीछे से तो वार नहीं करता.

उमेश के निधन के बाद सिल्की उस के अकेलेपन की एकमात्र साथी बन चुकी थी, क्योंकि इतना बड़ा घर उसे काटने को दौड़ता था. इस घर को बनवाने में उसे और उमेश को न जाने कितने कष्ट झेलने पड़े थे, क्याक्या कटौतियां नहीं की थीं, किंतु जिन के लिए इतना सब किया था उन्होंने तो अपनेअपने अलग घोंसले बना लिए. उस के बाद पता नहीं इस घर का क्या होगा. इस की किसी वस्तु को उन की निशानी समझ कर कोई सहेज कर रखेगा या व्यर्थ समझ कर औनेपौने भाव में बेच देगा.

एक लंबी सांस खींच कर उस ने एक बार अपनी निगाह जगहजगह से एकत्रित की गई कलाकृतियों पर डाली. अब उसे लगने लगा था कि इंसान पूरी जिंदगी पैसे कमाने के लिए व्यर्थ ही भागदौड़ करता रहता है, जबकि एक समय ऐसा आता है जब इंसान को पैसों से भी अधिक अपनों के प्यार की, साथ की आवश्यकता होती है. लेकिन न जाने परवरिश में कहां कमी रह जाती है कि जिन अपनों के लिए इंसान जीवन के सुनहरे पल कर्तव्य के नाम पर अर्पित कर देता है, वही अपने धीरेधीरे उन से दूर होते जाते हैं.

सिल्की को ले कर वह बाहर निकली तो देखा बच्चे घर की दीवारों पर रंगबिरंगे बल्ब लगा रहे हैं. लड़कियां घर के दरवाजे के सामने रंगोली बनाने में व्यस्त हैं तथा कुछ बच्चे पटाखे छुड़ा कर इस त्योहार का आनंद ले रहे हैं. लेकिन उस के लिए क्या होली और क्या दीवाली. सब दिन एक जैसे ही हैं. यह सोच कर उस ने गहरी सांस ली.

वास्तव में त्योहार तो जीवन की एकरसता को दूर करने का मानव निर्मित एक प्रयास भर है. इन्हें मिलजुल कर मनाने में जो आनंद मिलता है वह अकेले में नहीं. वैसे भी महंगाई और व्यस्तता के कारण किसी के मन में त्योहार मनाने के लिए पहले जैसा जोश नहीं रह गया है.

सिल्की पटाखों की आवाज से डर रही थी, इसलिए स्मिता शीघ्र ही लौट आई. सिरदर्द की गोली ले कर चाय पीते हुए एक सप्ताह पूर्व आया अखिलेश उर्फ नन्हे का पत्र खोल कर बैठ गई. लिखा था, ‘मम्मी, इस बार दीवाली आप के साथ मनाना चाहता था किंतु छुट्टी नहीं मिल पा रही है. जैसे ही मेरा काम समाप्त होगा, मैं आऊंगा और अपना पासपोर्ट बनवा कर रखना, इस बार मेरे साथ यहां आ कर रहना होगा, कोई बहाना नहीं चलेगा.’

‘दीवाली मनाएंगे,’ वह बारबार लिखावट को पहचानने का प्रयास करती, उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि अखिलेश, जिस ने अपनी मां की मौत के बाद कभी एक फुलझड़ी भी नहीं छुड़ाई, वही आज दीवाली मनाने की बात कर रहा है.

अचानक उस के जेहन में आज से 25 साल पहले की घटना चलचित्र की भांति घूमने लगी. ऐसा ही एक दीवाली का दिन था. वह पूजा की तैयारी कर रही थी. उस की ननद दीपा, जो कुछ महीने पहले ही विधवा हुई थी, उस के काम में हाथ बंटा रही थी. उस का 8 वर्षीय पुत्र नन्हे उस की साड़ी का आंचल पकड़ कर उस के पीछेपीछे घूम रहा था.

दीपा को आए हुए एक सप्ताह ही हुआ था. हमउम्र होने के बावजूद नन्हे की मेरे बेटे अनिरुद्ध से ज्यादा दोस्ती नहीं हो पाई थी. पता नहीं क्यों नन्हे हरदम सहमासहमा सा रहता था. शायद उस के पिता की अचानक मौत ने उसे चुप कर दिया था. उस के बालमन में कोई ऐसी ग्रंथि बैठ गई थी जिसे निकाल पाने में वह और उमेश असफल रहे थे. उमेश और अनिरुद्ध के बारबार बुलाने पर भी वह दीवाली की सजावट देखने उन के साथ नहीं गया था.

उमेश दीपा को बहुत चाहते थे. वे चाहते थे कि उन की बहन जितनी जल्दी हो सके अपने दुखों पर काबू पा ले. इसलिए दीवाली के अवसर पर वे उस को यह कह कर लिवा लाए कि इस बार उस की भाभी चाहती है कि वह भाईदूज का टीका वहीं करे.

लोग एकदूसरे को बधाई देने आने लगे. दीपा किसी के सामने आना नहीं चाहती थी और उमेश ने भी ज्यादा जोर नहीं दिया.

अनिरुद्ध ने बाहर लौन में पटाखे छुड़ाने प्रारंभ कर दिए थे. नन्हे का मन रखने के लिए दीपा भी बाहर आ गई तथा नन्हे के हाथों फुलझड़ी छुड़वाने लगी.

Diwali Special: जानें कैसे बनाएं बाजरे की पूरी

बाजरे को बहुत ज्यादा पौष्टिक माना है. अगर बाजरे की रोटी या पूरी कोई खाएं तो उसके शरीर से कमजोरी खत्म हो जाता है. आइए जानते हैं कैसे बनाएं बाजरे की पूरी.

समाग्री

गुड़ 1/3 कप

पानी लगभग चार कप

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बाजरे के 1 या 2 कप

घी तेल तलने के लिए

विधि

-सबसे पहले गुड को पानी में अच्छे से भगों लें. एक कटोरे में बाजरे के आटे को ले और उसमे सफेद तिल को डाल लें.

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-अब इसमें गुड का पानी मिला ले और आटा को गुथ लें. अच्छे से मिलाकर आटा को गुथें.

– ध्यान रखें कि आटा को गुथते समय कि यह आटा थोड़ा कड़ा होना चाहिए. साथ ही आटा को चिकना रखें.

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अब इस आटे को कुछ देर तक ढंक कर छोड़ दें. इसके बाद इसे कई पार्ट में बांट ले और इस आटे की गोल-गोल पुरीयां बना लें. इस आटे की पूरियां बना लें.

Crime Story : चस्का, मस्का, सजा और मजा

40 वर्षीय प्रशांत कुमार सोशल मीडिया में कुछ इस तरह खो गए थे कि उन का ज्यादातर समय मोबाइल पर ही बीतने लगा था. वह वाट्सऐप, फेसबुक मैसेंजर, ट्विटर पर फोटो, कविताएं, शायरी और तरहतरह के विचार डालते रहते थे. लोग लाइक या प्रशंसा में कमेंट करते तो वह और उत्साहित होते. वैसे उन्हें लिखनेपढ़ने का कोई शौक नहीं था.

एक दिन उन्होंने फेसबुक खोला तो एक फ्रैंड रिक्वेस्ट आई हुई थी. उन्होंने प्रोफाइल खोल कर देखी, वह किसी लड़की की फ्रैंड रिक्वेस्ट थी. प्रोफाइल में लड़की का सुंदर सा फोटो लगा था. उन की फ्रैंड लिस्ट में तमाम लड़कियां और महिलाएं थीं, लेकिन ये सब वह थीं, जिन्हें प्रशांत ने अपनी ओर से फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी थी. उन्हें किसी लड़की ने पहली बार फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी थी.

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लड़की की फ्रैंड रिक्वेस्ट कन्फर्म कर के वह फेसबुक सर्च कर रहे थे कि मैसेंजर पर एक मैसेज आया. उन्होेंने तुरंत मैसेंजर खोल कर देखा. उसी लड़की का मैसेज था, जिसे उन्होंने थोड़ी देर पहले कन्फर्म किया था. मैसेज में लिखा था, ‘हैलो’.

इस के बाद दोनों के बीच मैसेजबाजी शुरू हो गई. लड़की ने पूछा, ‘‘आप क्या करते हैं?’’

‘‘नौकरी करता हूं. क्यों?’’ प्रशांत ने मैसेज का जवाब मैसेज से दिया.

‘‘कितना वेतन मिलता है आप को?’’ लड़की ने पूछा.

लड़की के इस सवाल पर प्रशांत को गुस्सा आ गया. उन्होंने मैसेज भेजा, ‘‘मुझ से शादी करनी है क्या, जो मेरे वेतन के बारे में पूछ रही हो?’’

‘‘आप मेरे सवाल से नाराज हो गए?’’ लड़की ने मैसेज भेजा, ‘‘मैं ने तो यूं ही पूछ लिया था. वैसे आप बहुत अच्छे आदमी हैं.’’

‘‘आप को कैसे पता?’’ प्रशांत ने पूछा.

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‘‘आप की पोस्ट से पता चला. आप अपनी वाल पर बड़ी अच्छी पोस्ट डालते हैं.’’ लड़की ने मैसेज भेजा.

यह मैसेज पढ़ कर प्रशांत की नाराजगी तुरंत दूर हो गई. उन्होंने भी ‘धन्यवाद’ लिख कर भेज दिया. साथ ही उन्होंने यह भी लिखा, ‘‘आप भी तो बहुत सुंदर हैं. मेरी फ्रैंड लिस्ट में जितनी भी लड़कियां हैं, उन सब से ज्यादा सुंदर.’’

प्रशांत ने यह संदेश लड़की को खुश करने के लिए भेजा था. उन्होंने जानबूझ कर उस की सुंदरता की तारीफ की थी. लड़की ने ‘थैंक्यू’ के साथ मैसेज में यह भी लिखा, ‘‘आप भी तो बहुत अच्छे हैं और स्मार्ट भी.’’

लड़की की इस तारीफ पर प्रशांत खुश हो गए.

मैसेज के माध्यम से दोनों के बीच बातों का दायरा बढ़ा तो बढ़ता ही गया. बातोंबातों में प्रशांत ने कह दिया कि कोई काम हो तो बताना.

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इस पर लड़की ने मैसेज भेजा, ‘‘जो काम बताऊंगी, आप कर देंगे?’’

‘‘मेरे करने लायक हुआ तो जरूर करूंगा.’’

प्रशांत के मैसेज भेजते ही लड़की का लंबा सा मैसेज आया, ‘‘मैं हौस्टल में रहती हूं. घर वालों ने जो पैसे दिए थे, खर्च हो गए. आप मेरा फोन रिचार्ज करा दीजिए, प्लीज.’’

‘‘इस से मुझे क्या फायदा होगा?’’ प्रशांत ने पूछा तो उस ने मैसेज भेजा, ‘‘आप से बातें करूंगी. जैसी आप चाहेंगे. वीडियो कालिंग भी.’’

बिना सोचेसमझे मैसेज भेजना भी खतरनाक

मैसेजबाजी में बात यहां तक पहुंची कि लड़की कपड़े उतार कर वीडियो कालिंग करने को तैयार हो गई.

प्रशांत के साथ ऐसा पहली बार हुआ था. कुछ समझ में नहीं आया तो उन्होंने न चाहते हुए भी एक मैसेज भेज दिया, ‘‘मैं कैसे मानूं कि आप लड़की ही हैं. फेसबुक पर तो…’’

‘‘आप मुझ पर विश्वास कीजिए, मैं लड़की ही हूं.’’ मैसेज के साथ लड़की का फोटो भी आ गया. डीपी में भी वही फोटो लगा हुआ था. फोटो देख कर प्रशांत को समझते देर नहीं लगी कि वह फोटो फेसबुक से ही डाउनलोड की गई है. उन्होंने संदेश भेजा, ‘‘ठीक है, आप नंबर दो.’’

‘‘प्लीज, रिचार्ज करा दोगे न?’’ दूसरी ओर से संदेश आया.

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‘‘इसीलिए तो नंबर मांग रहा हूं.’’ प्रशांत ने मैसेज भेजा. एक बार प्रशांत ने सोचा भी कि हो न हो लड़की परेशानी में हो, इसलिए 3 महीने का नहीं तो एक महीने का पैक डलवा देते हैं.

लेकिन तुरंत उन के दिमाग में आया कि उन के रिचार्ज कराते ही उस ने उन्हें ब्लौक कर दिया तो. उन्होंने यह आशंका मैसेज द्वारा प्रकट की तो लड़की का संदेश आया, ‘‘मां कसम मैं ऐसा नहीं करूंगी. आप जिस तरह चाहेंगे, आप से उस तरह बातें करूंगी.’’

प्रशांत का दिमाग बड़ी तेजी से चल रहा था. वह समझ गए कि यह कोई फ्रौड है, वरना 400 रुपए के लिए कोई लड़की कपड़े उतार कर वीडियो काल क्यों करेगी? उन्होंने यह देखने के लिए उस से उस का नंबर मांग लिया कि वह नंबर देती है या नहीं. प्रशांत के मांगते ही उस ने नंबर के साथ शहर और कंपनी का नाम भी भेज दिया.

थोड़ी देर बाद उन्होंने उस नंबर पर फोन किया. फोन उठा तो लड़के की आवाज आई. उन्होंने उसे धमका कर फोन काट दिया. इस के बाद उन्होंने इस बात की चर्चा अपने कुछ साथियों से की तो सब ने कहा कि वे बच गए. इस तरह के मैसेज अकसर आते रहते हैं और यह सब लड़के करते हैं.

इस से प्रशांत को पता चल गया कि फेसबुक मात्र दोस्तों को मिलाने, अपने विचार रखने और दूसरों के विचार जानने का ही मंच नहीं है. इस के माध्यम से बहुत कुछ होता है.

नीरज की अलग कहानी

प्रशांत की ही तरह नीरज भी फेसबुक पर काफी समय बिताते थे. उन की उम्र प्रशांत से कुछ ज्यादा थी. वह नौकरी से सेवानिवृत्त हो चुके थे, इसलिए अपना ज्यादातर समय मोबाइल पर ही बिताते थे.

इस की एक खास वजह यह थी कि उन की फ्रैंड लिस्ट में कुछ ऐसे लड़के और कथित लड़कियां (जिन के नाम तो लड़कियों के थे, असल में वे लड़के थे) थीं. जिन से वह अश्लील चैट करते थे.

नीरज की फ्रैंडलिस्ट में एक लड़का था, जिस का नाम पीयूष मिश्रा था. उसी ने नीरज को फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी थी. प्रोफाइल के हिसाब से लड़का ठीकठाक लगा था. इसलिए उन्होंने उस की रिक्वेस्ट कन्फर्म कर दी थी. एक सुबह वह फेसबुक सर्च कर रहे थे, फेसबुक से जुड़े मैसेंजर पर मैसेज आया. खोलने पर पता चला कि पीयूष मिश्रा ने गुडमार्निंग का संदेश भेजा था. उन्होंने भी जवाब में गुडमार्निंग लिख दिया.

इस के बाद दोनों के बीच मैसेजबाजी का सिलसिला जुड़ा तो बात अश्लील मैसेजों पर जा कर रुकी.

इस के बाद पीयूष ने अश्लील मैसेज भेजने शुरू कर दिए. नीरज ने सोचा था, सच्चाई जान कर उसे ब्लौक कर देंगे. पर जब संदेशों का आदानप्रदान होने लगा तो उन्हें भी मजा आने लगा. उन के लिए यह टाइम पास करने का साधन बन गया था.

जैसेजैसे बात बढ़ती गई दोनों एकदूसरे से खुलते गए. नीरज ने पीयूष से ही बात करने के लिए मैसेंजर डाउनलोड कर लिया. जिस से मैसेज करने में ही नहीं, फोटो और वीडियो भेजने में आसानी रहे.

जल्दी ही उन की हालत यह हो गई कि दोनों एकदूसरे को दिगंबर अवस्था में अपनेअपने फोटो भेजने लगे. फेसबुक की हकीकत जान कर नीरज फेसबुक पर ढूंढ कर स्मार्ट लड़कों को फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजने लगे. रिक्वेस्ट कन्फर्म होने पर वह मैसेज भेज कर इसी तरह की बातें करने को उकसाते. ज्यादातर लड़के इस तरह की बातें करने से मना कर देते. जो तैयार हो जाते, उन से अश्लील चैट कर के वह अपना समय पास करते हैं.

नीरज इस तरह की चैटिंग में ऐसे रम गए कि उन्हें लगा कि फेसबुक सिर्फ इसी के लिए है. जो उन के मानमाफिक बातें करने से मना कर देता, तो उसे वह तुरंत ब्लौक कर देते. क्योंकि उन के लिए वह फालतू का आदमी होता था.

इस तरह की अश्लील चैटिंग मात्र लड़के या बड़ी उम्र के पुरुष ही नहीं करते, कुछ महिलाएं और लड़कियां भी करती हैं, जो ऐसी चैटिंग कर के मजे लेती हैं. फेसबुक यानी सोशल मीडिया पर यह सब क्यों, कैसे और क्याक्या होता है, यह जानने से पहले आइए थोड़ा सोशल मीडिया के बारे में जान लेते हैं. क्योंकि लगभग सभी के मन में यह उत्सुकता होती है कि आखिर यह सोशल मीडिया है क्या?

सोशल मीडिया का अस्तित्व

कहना गलत नहीं होगा कि सोशल मीडिया का अस्तित्व इंटरनेट की वजह से है. क्योंकि इंटरनेट से ही सोशल मीडिया चलता है. इंटरनेट पर विश्व की कुछ ऐसी जानीमानी वेबसाइटें हैं, जिन्होंने हमें सोशल मीडिया से अवगत कराया. इन में फेसबुक, ट्विटर, वाट्सऐप, यूट््यूब, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट जैसी कई वेबसाइटें हैं.

ये सभी वेबसाइटें मिल कर इंटरनेट के जमाने में सोशल मीडिया बनाती हैं. आज सोशल मीडिया एक ऐसा साधन बन गया है, जब आम आदमी भी अपने दिल की बात दुनिया के सामने रख सकता है और इस के लिए उसे किसी तरह की मेहनत भी करने की जरूरत नहीं है. इतना ही नहीं, इस सोशल मीडिया ने बहुत लोगों को रातोंरात स्टार बना दिया है. क्योंकि सोशल मीडिया पर किसी की फोटो या वीडियो वायरल होने में समय नहीं लगता.

यही नहीं, सोशल मीडिया ऐसे तमाम लोगों को भी सामने लाया है, जिन की प्रतिभा कोई नहीं जानता था. यूट्यूब एक ऐसी वेबसाइट है, जिस के माध्यम से लोग करोड़ों की कमाई कर रहे हैं, जबकि यह वेबसाइट औनलाइन डेटिंग के लिए बनाया गया था. लेकिन इसे गूगल ने खरीद लिया, जिस के बाद यह लोगों की कमाई का जरिया बन गया.

अब आते हैं सोशल वेबसाइट फेसबुक पर. इस वेबसाइट के जरिए घर बैठे हजारों दोस्त बनाए जा सकते हैं. इस समय सोशल मीडिया में फेसबुक नंबर एक पर है. क्योंकि इस के यूजर्स सब से ज्यादा हैं. लेकिन सेलिब्रिटी और बड़ी हस्तियों की बात की जाए तो उन की पहली पसंद ट्विटर है. ट्विटर के जरिए ही वे अपनी बात आम लोगों और दुनिया के सामने रखते हैं. सोशल मीडिया द्वारा हम जो दोस्त बनाते हैं. उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता.

आमतौर पर फेसबुक पुराने मित्रों को खोजने, उन से जुड़ने और परिचितों के साथ संदेश और चर्चा करने के लिए उत्तम माध्यम है. इस माध्यम से लोग अपने फोटो, वीडियो और पसंद की अन्य चीजें, समाचार, जानकारियां और रचनाएं अपने मित्रों के साथ शेयर कर सकते हैं.

मार्क जकरबर्ग ने फेसबुक पुराने दोस्तों को खोजने, संपर्क करने, नए दोस्त बनाने और अपने विचार आसानी से दुनिया के सामने रखने और बिजनैस प्रमोशन के लिए किया था. यह अलग बात है कि हमारे यहां लोग इस का उपयोग दूसरे तरीके से करने लगे हैं.

इसीलिए फेसबुक आज युवाओं की पहली पसंद बन चुका है. वे रात ढाईतीन बजे तक सोशल मीडिया पर लगे रहते हैं. इस में लड़केलड़कियां ही नहीं, बड़ी उम्र के पुरुष और गृहिणियां भी शामिल हैं.

जो लड़केलड़कियां घर से बाहर रहते हैं, उन्हें तो किसी का कोई डर नहीं है. इसलिए वे इस में खासा समय गंवाते हैं. ऐसा ही हाल उन पुरुषों का है जो परिवार से दूर अकेले रहते हैं. इसी तरह वे गृहिणियां भी इस का खूब आनंद लेती हैं, जिन के पति बाहर रहते हैं. इस की मुख्य वजह है चैटिंग, औडियो वीडियो कालिंग, अश्लील चैटिंग.

इस के बारे में हर किसी को पता नहीं. लेकिन जिन्हें पता है, वे इस तरह के साथी खोज निकालते हैं, जो उन की पसंद की बातें करते हैं. विकास को भी पहले इस बारे में कुछ पता नहीं था. उस ने तो अपने दोस्तों से जुड़ने के लिए फेसबुक डाउनलोड किया था. दोस्तों से चैट के लिए वह मैसेंजर का उपयोग करता था.

दो दोस्तों की कहानी

एक दिन वह अपने दोस्त रवि से चैटिंग कर रहा था, उसी दौरान उस ने विकास को कुछ फोटो भेजे. वे फोटो देख कर विकास यह सोच कर हैरान रह गया कि ये फोटो रवि के पास कहां से आए. फोटो एक 30-32 साल की महिला के थे, जिस के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था.

गले में मंगलसूत्र जरूर लटक रहा था, जिस से साफ पता लगता था कि वह शादीशुदा थी. हां, उस ने इतना जरूर किया था कि गरदन के ऊपर का हिस्सा काट दिया, जिस से उसे कोई पहचान न सके.

फोटो देख कर विकास ने रवि से पूछा, ‘‘ये किस के फोटो हैं, तुझे कहां से मिले?’’

‘‘एक फेसबुक फ्रैंड ने भेजी हैं,’’ रवि ने कहा तो विकास ने मैसेज द्वारा हैरानी व्यक्त की, ‘‘फेसबुक फ्रैंड इस तरह के भी फोटो भेजती हैं?’’

‘‘वह मुझ से अश्लील चैटिंग करती थी. ऐसे में मैं ने उस से फोटो भेजने को कहा तो उस ने ये फोटो भेज दिए.’’ रवि ने बताया.

‘‘तू ने भी इसी तरह के अपने फोटो भेजे होंगे?’’ विकास ने पूछा.

‘‘नहीं, उस ने मांगे ही नहीं, इसलिए मैं ने नहीं भेजे.’’

‘‘अगर मांगे तो…?’’

‘‘पहले तो टालूंगा, नहीं मानी तो भेजना ही पड़ेगा. ऐसे दोस्त को छोड़ा तो नहीं जा सकता.’’ रवि ने मैसेज से जवाब दिया.

रवि से यह बात होने के बाद विकास की भी इस तरह की लड़कियों और औरतों से चैटिंग करने की इच्छा हुई. वह खोज में जुट गया.

आखिर उस की मेहनत रंग लाई और अब उस की ऐसी कई महिला मित्र हैं, जो उस से अश्लील चैटिंग करती हैं. अब विकास दिन में तो इन से चैटिंग करता ही है, रात को भी देर तक मोबाइल पर लगा रहता है.

मित्र बनाने के लिए उस ने वही तरीका अपनाया था, जैसा उस के दोस्त ने बताया था. मित्र यानी रवि द्वारा दी गई सलाह के अनुसार विकास ढूंढढूंढ कर फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजता. कन्फर्म होने पर पहले वह उन के मैसेज बौक्स में हायहैलो और गुड मार्निंग के मैसेज भेजता. जवाब आ जाता तो वह पूछता, ‘‘कहां से हो, कैसी हो, क्या करती हो?’’

इन के भी जवाब आ जाते तो विकास समझ जाता कि महिला बात करने में उत्सुकता दिखा रही है. आगे पूछता, ‘‘आप के शौक यानी आप को क्या पसंद है?’’

इन सवालों के जवाब मिल जाते तो विकास को सारा रहस्य समझ में आ जाता और फिर शुरू हो जाती चैटिंग. चैटिंग होतेहोते ही फोटो के आदानप्रदान होने लगते हैं. कुछ दिनों बाद बिना कपड़ों के फोटो भेजे जाते हैं. यह सब अच्छा तो बहुत लगता है, लेकिन इस में खतरा भी बहुत है. लोग मजे लेने के लिए उत्तेजना में ऐसे फोटो भेज देते हैं, लेकिन कभीकभी इस तरह के फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाते हैं या फिर लोग ब्लैकमेल होने लगते हैं. जिस से बदनामी तो होती ही है, घर तक छूट जाते हैं.

सुमन का भी कुछ ऐसा ही मामला है. घर में अकेली होने की वजह से उसे चैटिंग का चस्का लग गया था. पति सुबह निकल जाते तो रात साढ़े 10-11 बजे घर लौटते थे. घर में काम करने के लिए कामवाली आती थी. पति का दोनों टाइम का खाना लगभग बाहर ही यानी आफिस कैंटीन में होता था. सुमन का कोई बच्चा भी नहीं था, जो उसी के साथ समय कट जाता.

पति के जाने के बाद रात साढ़े 10-11 बजे तक सुमन घर में अकेली रहती थी. कोई कामधाम भी नहीं रहता था. दोपहर का खाना वह कामवाली से बनवा लेती थी. टीवी भी कितना देखती. टीवी से ऊब जाती तो फोन में लग जाती. फेसबुक, वाट्सऐप पर समय बिताती, पति से उस की चैटिंग होती ही रहती थी. इस के बावजूद कुछ सहेलियां थीं, जिन से वह चैटिंग करती थी. उस के मैसेंजर पर अन्य लोगों के भी मैसेज आते रहते थे. जिन्हें वह बिना देखे ही डिलीट कर दिया करती थी.

एक दिन वह बोर हो रही थी तो इनबौक्स में पडे़ पेंडिंग मैसेज खोल कर पढ़ने लगी. इसी बीच एक और मैसेज आया तो टाइम पास के लिए उस ने उस का जवाब दे दिया. इस के बाद एकदूसरे का हालचाल पूछा गया. सुमन ने उस आदमी की प्रोफाइल खोल कर देखी तो प्रोफाइल के हिसाब से वह ठीकठाक लगा. फिर तो सुमन की उस आदमी से चैटिंग होने लगी. शुरूशुरू में यह चैटिंग समान्य रही, लेकिन कुछ ही दिनों में यह बैडरूम तक पहुंच गई यानी अश्लील चैटिंग होने लगी.

सुमन को भी इस में मजा आ रहा था, क्योंकि उस का समय आसानी से कट जाता था. पुरुष तो वैसे भी चालाक होता है. उस की नजर हमेशा स्त्री देह पर होती है. उस आदमी ने भी सुमन को बरगला कर उस के निर्वस्त्र फोटो प्राप्त कर लिए.

पुरुषों में सब से गंदी आदत यह होती है कि इस तरह की बातें वे छिपा कर यानी अपने दिल तक नहीं रख पाते. दोस्तों पर रौब जमाने के लिए वे इस तरह की बातों को बढ़ाचढ़ा कर बताते हैं. इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ. विकास के मामले की तरह सुमन से चैटिंग करने वाले उस आदमी ने सुमन के फोटो दोस्तों में बांट दिए.

चैटिंग में पुरुष भी बन जाते हैं महिलाएं

नतीजतन सुमन के फोटो एकदूसरे से होते हुए आगे बढ़ते गए और वायरल हो कर वे उस के पति के परिचित तक पहुंच गए. इस से सुमन की बड़ी बदनामी हुई. अच्छा यह था कि पति समझदार था, जिस से घर टूटने से बच गया. इस तरह सोशल मीडिया का चस्का और मजा सुमन के लिए सजा बन गया.

सुमन के तो फोटो ही वायरल हुए पर राजेश के साथ जो हुआ, वह किसी से कह भी नहीं सकता. उसे तो इस तरह ब्लैकमेल किया गया कि पैसे भी दिए और इज्जत भी गंवाई. राजेश युवा था, इसलिए वह लड़कियों को ही फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजता था और फिर उन्हें मैसेज भेज कर बातें करने की कोशिश करता था. ऐसे ही उस की सुनीता नाम की एक लड़की से चैटिंग होने लगी.

इस तरह के मामले में अकसर लोग लड़कियों के फोटो मांगते हैं, पर यहां उल्टा हुआ. सुनीता ने राजेश से उस के इस तरह के फोटो मंगवा लिए, जिन्हें देख कर कोई भी शरमा जाए.

राजेश सुनीता के प्यार में इस कदर पागल था कि उस ने अपना पूरा फोटो उसे भेज दिया यानी चेहरे सहित. इस का नतीजा यह निकला कि सुनीता उसे ब्लैकमेल कर के पैसे ऐंठने लगी. यह बात यहीं तक सीमित नहीं रही.

राजेश पढ़ाई कर रहा था, इसलिए वह ज्यादा पैसे कहां से देता. उस ने हाथ जोड़ लिए. तब सुनीता ने मिलने के लिए संदेश भेजा, ‘‘तुम ने मुझे बहुत पैसे दिए हैं. इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम मुझ से कम से कम एक बार तो मिल लो. तुम्हें भी तो पैसे के बदले कुछ मिल जाए.’’

राजेश ने सोचा, चलो कुछ तो सुनीता ने उस पर दया की. वह सुनीता से मिलने उस के घर पहुंचा तो पता चला, वह लड़की नहीं 40 साल का आदमी था. कुछ मिलने की उम्मीद में गए राजेश को काफी कुछ गंवाना पड़ा. उस आदमी ने राजेश के साथ कुकर्म भी किया.

वह आगे भी राजेश को परेशान करना चाहता था. लेकिन अब तक परेशान हो चुके राजेश ने उसे धमकी दे दी कि कुछ भी हो, अगर उस ने पैसे मांगे या किसी भी तरह परेशान किया तो वह उस की शिकायत पुलिस में कर देगा. राजेश की यह धमकी कारगर साबित हुई और उस आदमी ने राजेश के फोटो डिलीट कर दिए.

राजेश तो मात्र एक उदाहरण है. उस की तरह न जाने कितनी लड़कियां और महिलाएं थोड़ा मजा लेने के चक्कर में ब्लैकमेल तो हो ही रही हैं, दुष्कर्म का शिकार होती हैं. अपनी जरा सी गलती की वजह से वे मुंह भी नहीं खोल पातीं. कई बार लड़कियों को मांबाप की कमाई भी चोरी कर के देनी पड़ती है. इस तरह की खबरें तो आए दिन अखबारों में पढ़ने को मिल रही हैं कि फेसबुक पर हुई दोस्ती के बाद लड़की को बुला कर नशीला पदार्थ दे कर दुष्कर्म किया.

मजे की बात तो यह है कि फेसबुक पर फ्रैंड लिस्ट में पता ही नहीं चलता कि फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजने वाली लड़की है या लड़का या जिसे फ्रैंड रिक्वेस्ट भेज रहे हैं, वह कौन है.

इस बारे में कई लड़कियों से पूछने पर पता चला, उन के पास दिन में 50 से 60 फ्रैंड रिक्वेस्ट आ जाना आम बात है. कहने को तो ये सभी रिक्वेस्ट लड़कियों की होती हैं, जबकि असलियत यह होती है कि उन में एक भी लड़की नहीं होती. आज ज्यादातर लड़के या अश्लील चैटिंग करने वाले लड़की के नाम से फेसबुक आईडी बना कर प्रोफाइल में सुंदर लड़की की फोटो लगा देते हैं, जिस से कोई अंदाजा नहीं लगा सकता कि वह लड़की है या लड़का. इस का पता चैटिंग करने पर चलता है. क्योंकि लड़का जल्दी ही अश्लील चैटिंग करने लगता है.

चैटिंग शुरू होते ही हायहैलो के बाद पहला सवाल यही होता है लड़का या लड़की. कुछ तो तुरंत बता देते हैं. लेकिन धूर्त टाइप के लड़के नहीं बताते. वे भी यही सवाल करते हैं. फिर जैसा जवाब मिलेगा. वैसा जवाब दे कर थोड़ी देर चैटिंग करेंगे. उस के बाद कहेंगे, ‘‘दीदी, आप से मेरा भाई या ब्वायफ्रैंड बात करना चाहता है.’’ इस के बाद अपना फोटो भेज कर पूछेंगे, ‘‘कैसा लगता है?’’

एक सर्वे के अनुसार सुंदर फोटो लगे जितने भी फेसबुक पेज हैं, उन में 99 प्रतिशत लड़कों के हैं. कोई भी लड़की या महिला किसी अजनबी लड़की या महिला को जल्दी फ्रैंड रिक्वेस्ट नहीं भेजती. इसलिए फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजने या स्वीकारने के पहले यह जरूर सोच लें कि जो शुरुआत ही गलत काम से हो रहा हो, उस के इरादे नेक नहीं हो सकते.

यमुना ने लिखी बरबादी की स्क्रिप्ट

इस तरह छोटामोटा मजा कभीकभी ऐसी सजा बन जाता है कि किसी की जान जाती है तो कइयों की जिंदगी बरबाद होने के साथ घरपरिवार तबाह हो जाता है. हरियाणा के रोहतक में अभी कुछ दिनों पहले ऐसा ही हुआ. रोहतक के सूर्यनगर की रहने वाली यमुना की समालखा के इनेलो नेता के मौल में सिक्योरिटी सुपरवाइजर की नौकरी करने वाले दीपक से फेसबुक पर दोस्ती हो गई.

यमुना के पति सुरेश कुमार सीआरपीएफ में डीएसपी थे. वह जम्मू में तैनात थे. पति के बाहर रहने की वजह से यमुना सोशल मीडिया पर खासा समय बिताती थी. ऐसे में ही दीपक से उस की दोस्ती हो गई. पहले दोनों की मैसेंजर चैटिंग होती थी. साथ ही वाट्सऐप पर चैटिंग भी. कभीकभी दोनों की फोन पर बातें हो जाती थीं.

इस सब के चलते मिलने की बातें करने लगे. अंतत: यमुना दीपक से मिलने को राजी हो गई. दीपक तो उस से मिलने के लिए बेचैन था ही. दोनों की यह बात चल ही रही थी कि यमुना के पति सुरेश ने फोन कर के बताया कि वह एक महीने की छुट्टी ले कर घर आ रहे हैं. लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया था कि वह किस तारीख को आएंगे. पति के आने से यमुना और दीपक के मिलने का प्रोग्राम एक महीने टल सकता था, इसलिए यमुना ने सोचा, वह पति के आने से पहले ही अपने इस नए प्रेमी से मिल ले.

यमुना ने 29 सितंबर की रात दीपक को बुला लिया. दीपक अपने एक दोस्त काली के साथ रहता था. काली से मौल जाने की बात कह कर दीपक अपनी मोटरसाइकिल से यमुना से मिलने निकल गया. रोहतक पहुंच कर उस ने मोटरसाइकिल बस अड्डे पर खड़ी कर दी. क्योंकि यमुना ने मना किया था कि वह किसी वाहन से नहीं आएगा, क्योंकि वाहन देख कर लोगों को शक हो सकता है.

इस के बाद वह यमुना के घर पहुंच गया.दीपक ने रात यमुना के साथ उस के घर में बिताई. सुबह वह यमुना के घर से निकल पाता, उस के पहले ही उस का पति सुरेश कुमार घर आ गया. पत्नी के साथ किसी अजनबी को देख कर सुरेश कुमार ने दोनों को घर के अंदर बंद कर दिया और ससुराल वालों को इस बात की सूचना दे दी. यमुना ने गलती तो की ही थी. इस गलती को छिपाने के लिए उस ने एक और भयंकर गलती कर डाली.

इज्जत बचाने के लिए उस ने दीपक को जबरदस्ती सल्फास की गोली खिला दी, जिस से उस की मौत हो गई. कहते हैं दीपक जान बचाने के लिए गुहार लगा रहा था, लेकिन सुरेश घर के बाहर ही बैठा था. इसलिए मदद के लिए कोई नहीं आ सका. साले के आने पर सुरेश कुमार ने दरवाजा खोला तो दीपक को मरा हुआ पाया.

निर्दोष फौजी पति भी फंस गया बीवी की वजह से

इज्जत बचाने के लिए सुरेश कुमार ने साले की मदद से लाश को स्कूटी से ले जा कर ठिकाने लगा दिया. इन लोगों का सोचना था कि पुलिस उन तक नहीं पहुंच पाएगी. लेकिन लाश मिलने पर पुलिस ने मामले की जांच शुरू की तो काल डिटेल्स और फोन की लोकेशन से यमुना तक पहुंच गई. सख्ती से की गई पूछताछ में सारा रहस्य खुल गया.

इस तरह सोशल मीडिया पर मजा लेने के चक्कर में उस ने जो गलती की, उस के लिए वह खुद तो जेल गई ही, अच्छीभली नौकरी वाले पति तथा भाई को भी जेल भेज दिया. देखा जाए तो यमुना के लिए सोशल मीडिया का मजा सजा बन गया. अच्छाखासा घर बरबाद कर दिया. दूसरी ओर दीपक को भी जान से हाथ धोना पड़ा.

इस सब के अलावा एक चीज अकसर देखने को मिलती है. फेसबुक पर किसी सुंदर लड़की के फोटो के साथ एक मोबाइल नंबर दिया रहता है, जिस के साथ लिखा रहता है कि जिसे मुझ से दोस्ती करनी हो इस नंबर पर वाट्सऐप करे. उस नंबर पर मैसेज करते ही तुरंत जवाब आएगा, ‘अगर आप को मुझ से बातें करनी है तो आप 2000 रुपए पेटीएम करें.’ मांगने पर लड़की, अपने उत्तेजक फोटो भी भेज देगी. पर पैसे न मिलने पर गालियां दे कर ब्लौक कर देगी.

इसी तरह यह भी लिखा मिल जाएगा कि मेरा मोबाइल नंबर 7599760333 है. मैं 200 रुपए ले कर वीडियो सैक्स करती हूं. जिस के पास पेटीएम हो, वह मुझे वाट्सऐप करे. लोग बिना मतलब परेशान करते हैं. इसलिए पैसे मिलने के बाद ही मैं फोटो भेजूंगी. अगर पैसे भेजने से पहले मैसेज किया तो ब्लौक कर दूंगी.

यह सब तो लड़कियों की बातें हैं. इसी तरह की सूचनाएं लड़के भी अश्लील फोटो के साथ अपनी प्रोफाइल पर फोन नंबर के साथ देते हैं. इस में जिगोलो यानी कालबौय भी होते हैं और गंदी चैट करने वाले भी होते हैं.

सोशल मीडिया का सशक्त माध्यम कहे जाने वाले फेसबुक के माध्यम से ठगी भी होती है. किसी को सस्ता सामान या मकान दिलाने के बहाने ठगा जाता है तो किसी को शादी के नाम पर तो किसी को प्यार के नाम पर. सारा कुछ देखते हुए यही कहा जा सकता है कि बडे़ धोखे हैं इस राह में.

हितैषी : कोरियन दंपती क्या पी रहा था

गरमी के दिन थे लेकिन कैलांग में लोग अभी भी गरम कपड़े पहने हुए थे. एसोचेम के अध्यक्ष द्वारा विदेशी प्रतिनिधियों के आग्रह पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सम्मेलन आयोजित किया गया था. इस में विदेशी प्रतिनिधियों के साथ कुछ आप्रवासी भारतीय भी थे. आप्रवासी भारतीयों का विचार यह था कि सम्मेलन किसी बड़े मैट्रो शहर में न करवा कर किसी रोमांचक पर्वतीय क्षेत्र में आयोजित किया जाए. इसी कारण से 40 प्रतिनिधियों का प्रतिनिधिमंडल कैलांग के होटल में ठहरा हुआ था. मुक्त व्यापार, भारत में विदेशी निवेश के लिए नई संभावना, अवसर तलाशने के लिए नई रूपरेखा बनाने के लिए सम्मेलन आयोजित किया गया था.

दिनभर वक्ताओं ने अपनेअपने विचार प्रकट किए और अपनेअपने प्रोजैक्ट से अपनी प्रस्तुतियां पेश की. कैलांग की प्रदूषणरहित शीतल जलवायु में रात होते ही प्रवीन जैना और उन की मंडली ने पार्टी आयोजित की. पार्टी में सभी देशीविदेशी प्रतिनिधियों ने जम कर शराब पी. एक कोरियन दंपती ऐसा भी था जो शराब की जगह शरबत पी रहा था. दूसरे लोग उन का उपहास उड़ा रहे थे.

‘‘सब से ज्यादा मैं ने पी है, मेरा कोई भी डेलीगेट मुकाबला नहीं कर सकता मिस्टर जैना,’’ राजेश ढींगरा ने झूमते हुए जोर से कहा.

‘‘आप ने कोई बहुत बड़ा काम नहीं किया है मिस्टर ढींगरा, कल आप का ट्रैकिंग में जाना कैंसिल,’’ जैना ने कहा.

‘‘नो वरी, पूरे 10 हजार रुपए की पी है मैं ने. मैं महंगी से महंगी पीता हूं मिस्टर जैना, यू आर जीरो,’’ राजेश ढींगरा चिल्ला कर बोला और बोतल को जोर से उछाल दिया. नाचरंग में भंग पड़ गया. विदेशी प्रतिनिधि एकदूसरे का मुंह देख रहे थे. आखिरकार, राजेश ढींगरा बेहोश हो कर गिर पड़ा तो होटल के कर्मचारी उसे उठा कर उस के कमरे में लिटा आए.

अगले दिन शैक्षणिक कार्यक्रम के अंतर्गत 5 किलोमीटर की स्थानीय स्तर की ट्रैकिंग का कार्यक्रम रखा गया. इस में कुल 35 सदस्यों को कैलांग परिक्षेत्र में किब्बर नामक क्षेत्र में भेजने का निश्चय हुआ. 35 सदस्यों को 7-7 सदस्यों की 5 टोलियों में बांटा गया. टोली संख्या 5 में 2 भारतीय, 3 जापानी, 2 कोरियन थे. इन में एक कोरियन दंपती जीमारोधम और इमाशुम भी थे. इन के साथ भारवाहक लच्छीराम था. लच्छीराम ने अपनी टोली को सब से आगे ले जाने का निश्चय किया और यह टोली सब से आगे रही. 3 किलोमीटर चलने के बाद अब सीधी चढ़ाई शुरू हुई. टोली के कुछ सदस्य हांफने लगे. 2 भारतीय सदस्यों संतोष और नितीन एक वृक्ष के पास रुक गए.

‘‘हम लोग आगे चलने में असमर्थ हैं, पैरों में दर्द हो रहा है,’’ संतोष बोला.

‘‘वी आर औलसो टायर्ड, वी विल नौट मूव फरदर,’’ जापानियों ने भी आगे जाने में असमर्थता व्यक्त की.

‘‘ठीक है, आप लोग रुक जाएं और दूसरे लोगों के साथ वापस चले जाएं,’’ लच्छीराम बोला.

‘‘सर, क्या आप लोग जाएंगे?’’ लच्छीराम ने कोरियन दंपती से पूछा.

‘‘हां, हम जाएंगे,’’ कोरियन दंपती बोले. लच्छीराम कोरियन दंपती को ले कर आगे पहाड़ी की ओर चला, सामने एक पहाड़ी नाला था, जिस में पानी कम था.

‘‘साहब, बरसात में इस नाले को कोई भी पार नहीं कर सकता,’’ लच्छीराम ने कहा.

‘‘आप कहां रहते हैं?’’ इमाशुम ने पूछा.

‘‘मेरा घर उस पहाड़ी के पीछे है, अगर हिम्मत करें तो आप वहां चल सकते हैं,’’ लच्छीराम बोला.

‘‘हम जरूर चलेंगे,’’ जीमारोधम बोला.

‘‘सर, एक बात पूछना चाहता हूं, मुझे बताइए कि आप ने हिंदी कहां से सीखी?’’ लच्छीराम ने पूछा.

‘‘हम दोनों ने बनारस और जयपुर में हिंदी सीखी,’’ जीमारोधम ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘मुझे हिंदी भाषा अच्छी लगती है, मैं ने प्रेमचंद की कुछ कहानियों को कोरियन भाषा में अनुवाद किया है,’’ अब की बार इमाशुम बोली. लच्छीराम उन की हिंदी के प्रति रुचि देख कर आश्चर्यचकित था. बातोंबातों में 2 घंटे चलने के बाद वे पहाड़ी के पार लच्छीराम के गांव में पहुंचे. गांव में 10 परिवार थे जो कि भारवाहक का ही कार्य करते थे.

लच्छीराम का घर ऐसा था जैसे बर्फ में रहने वाले इगलू या जंगल में रहने वाले वन गूजर का तबेला हो. इस में लकड़ी का बाड़ा बना हुआ था जो तनिक झुका हुआ था, ऊपर से उसे घासफूस और खपचियों से ढक रखा था. इस झोंपड़ी में पर्याप्त जगह थी. इस में जंगली जानवरों से बचने के लिए पूरी व्यवस्था थी. झोंपड़ी के अंदर लच्छीराम की पत्नी पारुली भोजन पकाने की व्यवस्था कर रही थी और साथ ही, पशुओं के बाड़े में पशुओं के लिए चारे का इंतजाम भी कर रही थी. झोंपड़ी के अंदर फट्टे बिछा रखे थे जो चारपाई का काम करते थे. लच्छीराम के 3 बच्चों, पत्नी और बूढ़े मांबाप ने जीमारोधम और इमाशुम का सत्कार किया. फट्टे पर ही एक फटी चादर बिछाई गई. पशुओं के बाड़े में बकरियां, भेड़े रहरह कर मिमिया रही थीं.

‘‘बाबाजी नमस्कार, आप कैसे हैं?’’ कोरियन दंपती ने बड़ी विनम्रता से झुकते हुए कोरियन शैली में अभिवादन किया.

‘‘साहब, बस आंखों की समस्या है, नजर कम हो गई है,’’ वृद्घ बोला.

बच्चे उन अजनबी लोगों को देख कर संकोच कर के एक कोने में बैठे थे. लच्छीराम ने फट्टे पर बिछी चादर पर कोरियन दंपती को बिठाया. इमाशुम पारुली से बातें करने लगी और चूल्हे पर उबलते बकरी के दूध को देखने लगी. पारुली देवी ने उबले दूध को गिलास में डाला और काले रंग का चियूरा के गुड़ की डली भी परोसी. 12 हजार फुट से ज्यादा ऊंचाई में उगने वाले पर्वतीय कामधेनु वृक्ष है चियूरा, जिस के फल से शहद, गुड़ और वनस्पति बनाए जाते हैं.

‘‘यह बकरी का दूध है,’’ लच्छीराम बोला.

‘‘ठीक है, हम पहली बार बकरी का दूध पिएंगे,’’ जीमारोधम बोला.

‘‘बहुत पतला दूध है,’’ इमाशुम ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा. अब लच्छीराम के तीनों बच्चे भी उन के पास आ कर बैठ गए.

‘‘बेटा, स्कूल जाते हो?’’ जीमारोधम ने पूछा. बच्चों ने सिर हिला कर बतलाया कि वे स्कूल नहीं जाते, बल्कि भेड़बकरियों की देखभाल करते हैं, उन को चराते हैं.

‘‘साहब, यहां गांव में कोई स्कूल नहीं है, यहां से 10 किलोमीटर दूर उस पहाड़ी के पीछे एक कसबा है लेकिन वहां जाने के लिए 10 किलोमीटर घूम कर जाना पड़ता है. बीच में एक पहाड़ी नाला पड़ता है जिस पर पुल नहीं है. अगर पुल बन जाएगा तो दूरी घट कर 3 किलोमीटर रह जाएगी,’’ लच्छीराम बोला.

‘‘क्या सरकार की तरफ से पुल नहीं बना?’’ इमाशुम ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, आज तक इस गांव में कोई जनप्रतिनिधि नहीं पहुंचा है. इस गांव में अधिकांश बच्चे भेड़ और बकरी चराते हैं या फिर भारिया बनते हैं, मैं भी भारिया हूं और मेरे बच्चे भी भारिया बनेंगे,’’ लच्छीराम ने उदास श्वास छोड़ते हुए कहा.

‘‘ये भारिया क्या होता है?’’ इमाशुम ने पूछा.

‘‘पोरटर, भार ढोने वाला,’’ लच्छीराम बोला.

‘‘सरकार की तरफ से कोई भी विकास कार्यक्रम यहां नहीं होता क्योंकि यहां कोई आता ही नहीं,’’ इस बार पारुली ने वेदनापूर्ण स्वर में कहा. कुछ देर बैठ कर कोरियन दंपती ने पूरे परिवार, घर और उस स्थान की फोटो खींची और फिर वे लौटने लगे.

‘‘अच्छा, अब हम चलते हैं. हम अगले साल आएंगे और आप के इस गांव में एक पुल, स्कूल और डिस्पैंसरी जरूर खोलेंगे, यह हमारा प्रौमिस है,’’ जीमारोधम बोला और उस की पत्नी इमाशुम ने हां भरी, साथ ही अपने हैंडबैग से 500 रुपए के 4 नोट निकाले और पारुली को देते हुए कहा, ‘‘लो बहन, तुम सब लोग अपने लिए नए कपड़े बनवा लेना.’’ पारुली शर्म एवं संकोच से कुछ नहीं बोल पाई, उस का मन एक बार तो ललचाया लेकिन अंदर के स्वाभिमान की कशमकश ने विवश किया, उस ने नोट पकड़ने से मना कर दिया.

इमाशुम ने अपने हाथ से पारुली की मुट्ठी में नोट ठूंस दिए. पारुली की आंखों से झरझर आंसू टपकने लगे.

इमाशुम ने अपने दोनों हाथों से पारुली के हाथों को कस कर पकड़ लिया. पारुली संकोचवश कुछ नहीं बोल पाई. उस ने जिंदगी में पहली बार 500 रुपए का नोट देखा था. ‘‘साहब, अब आप से कब मुलाकात होगी?’’ अब लच्छीराम के वृद्ध पिता ने पूछा. ‘‘हम अगले साल आएंगे और आप की आंखों का इलाज भी करवाएंगे,’’ जीमारोधम ने कहा. लच्छीराम कोरियन दंपती को ले कर वापस लौटने लगा. ‘‘सर, आप पहले इंसान हैं जिन्होंने इतनी बड़ी धनराशि हमें दी है,’’ लच्छीराम बोला.

‘‘कल आप ने देखा होटल में डेलीगेट्स लाखों रुपए की शराब पी गए लेकिन वे चाहते तो किसी पीड़ित को मदद दे सकते थे. हम कभी शराब नहीं पीते, उस पैसे को जरूरतमंद को दान करते हैं,’’ जीमारोधम बोला.

रात देर गए कोरियन दंपती की यह टोली होटल पहुंची और उन्होंने देखा, कई शराबी सदस्य हाथ में खाने की थाली में रखे भोजन को यों ही चखचख कर फेंक रहे थे. कईयों ने अपनी थाली में पूरा भोजन ले रखा था और उस भोजन की थाली को शराब के नशे में नीचे गिरा रहे थे. कई सदस्य अभी भी नाचरंग में मस्त थे. अन्न की बरबादी का नजारा लच्छीराम ने देखा. उस ने देखा कि 10 भोजन की थालियां तो बिलकुल भोजन से लबालब भरी हुई थीं. शराब ज्यादा पीने वाले प्रतिनिधियों ने सिर्फ एक चम्मच खा कर भोजन की थाली एक तरफ लुढ़का दी. लच्छीराम ने नजर बचा कर उस थाली के भोजन को अपने थैले में जैसे ही डाला, ‘‘डौंट टच दिस प्लेट, यू पिग,’’ एक विदेशी अंगरेज प्रतिनिधि ने चिल्ला कर उसे डांटा. लच्छीराम ने अपना थैला वहीं छोड़ दिया, भय से वह सकपका गया. होटल स्टाफ ने देखा, कोरियन दंपती ने भी देखा. कोरियन दंपती यह देख कर आहत था. उन के चेहरे पर उस अंगरेज प्रतिनिधि के प्रति रोष था, लेकिन वे चुप रह गए. भारी कदमों से लच्छीराम ने कोरियन दंपती से विदा ली और उन्हें अपना पताठिकाना लिखवाया.

सम्मेलन समाप्त हो गया. सभी लोग चले गए. कैलांग की वादियों से लच्छीराम और उस के परिवार की स्मृति लिए कोरियन दंपती भी चले गए. 1 वर्ष बीता. लच्छीराम को पत्र मिला जो कोरियन दंपती ने भेजा था. कोरियन दंपती ने अपने आने के बारे में और परियोजना के बारे में सूचित किया था. ठीक समय पर कोरियन दंपती अपनी टीम के साथ पहुंचे. उन के साथ तकनीशियनों की टोली भी थी. वे लोग किब्बर में पुल बनाना चाहते थे, स्कूल खोलना चाहते थे, डिस्पैंसरी खोलना चाहते थे. इन लोगों ने सब से पहले नाले पर पुल बनाने की सोची जिस से वहां निर्माण सामग्री लाने में मदद मिलती. वन विभाग ने आपत्ति लगा दी.

‘‘यहां आप पुल नहीं बना सकते विदाउट परमिशन औफ कंजर्वेटर,’’ वन विभाग के अधिकारियों ने सूचित किया. पुल का कार्य रोक दिया गया. कोरियन दंपती तब कंजर्वेटर से मिले.

‘‘देखिए, पर्यावरण का मामला है, जब तक एनओसी पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार से नहीं मिलेगी, तब तक अनुमति नहीं दी जा सकती,’’ कंजरर्वेटर बोला.

‘‘हमें क्या करना चाहिए?’’ जीमारोधम ने बड़े भोलेपन से पूछा.

‘‘यू शुड सबमिट योर ऐप्लीकेशन थ्रू प्रौपर चैनल, फर्स्ट सबमिट ऐप्लीकेशन ऐट योर एंबैसी,’’ कंजर्वेटर बोला.

‘‘सर, आप मेरे से हिंदी में बात कर सकते हैं, हमें हिंदी भाषा आती है,’’ जीमारोधम बोला.

‘‘सौरी, क्या करें अंगरेजी की आदत पड़ गई है,’’ कंजर्वेटर बोला.

‘‘आप अपनी ऐप्लीकेशन में यह भी लिखिए कि आप किस पर्पज से पुल बनाना चाहते हैं? आप के क्या प्रोजैक्ट हैं? आप की सोर्स औफ इनकम क्या है? ये सब डिटेल लिखिए.’’

कोरियन दंपती ने पुल बनाने, स्कूल खोलने, डिस्पैंसरी खोलने संबंधी अपनी परियोजना का खाका तैयार किया और अनुमति हेतु फाइल को अपने दूतावास के माध्यम से पर्यावरण मंत्रालय को भेजा. एक वर्ष के बाद पर्यावरण मंत्रालय ने टिप्पणी लिख कर सूचित किया, ‘‘एज सून एज द कंपीटैंट अथौरिटी विल ग्रांट परमिशन, यू विल बी इनफौमर्ड थ्रू योर कोरियन एंबैसी.’’ जीमारोधम ने उस पत्र को अपने पुत्र ईमोमांगचूक को देते हुए उसे संभाल कर रखने को कहा.

21 वर्ष बीत गए, इस बीच कोरियन दंपती का निधन हो चुका था. एक दिन कोरियन दंपती के पुत्र ईमोमांगचूक को एक पत्र अपने कोरिया के घर पर मिला. पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार का यह पत्र कोरियन दूतावास के माध्यम से कोरियन दंपती को संबोधित था जो उन के पुत्र ईमोमांगचूक ने प्राप्त किया. उस में लिखा था, ‘‘विद रैफरैंस टू योर ऐप्लीकेशन अबाउट एनओसी, द कंपीटैंट अथौरिटी इज प्लीज्ड टू इनफौर्म यू दैट द परमिशन इज ग्रांटेड विद इफैक्ट फ्रौम सबमिशन औफ योर प्रौजैक्ट ऐप्लीकेशन औन कंस्ट्रकशन वर्क एट किब्बर, कैलांग, हिमाचल प्रदेश, इंडिया.’’

ईमोमांगचूक ने उस सरकारी पत्र को अपने दिवंगत मातापिता की तसवीर के पास रख दिया और अपने पिता की पुरानी फाइलों को तलाशने लगा जिस में उसे लच्छीराम का पुराना बदरंग फोटो मिला. ईमोमांगचूक असमंजस के सागर में डूबनेउतरने लगा और वह अपने मातापिता की उस परियोजना को यथार्थ में बदलने के बारे में सोचने लगा.

COVID-19 संक्रमण के दौरान हाइजीन प्रोडक्ट की बढ़ी मांग

लेखिका-सुचित्रा अग्रहरी

नोवेल कोरोनावायरस महामारी के संक्रमण ने हमारे जीने, काम करने और एक ग्राहक के तौर पर लोगों की इच्छाओं, पसंद-नापसंद को काफी हद तक बदल दिया है. इस छोटे से वायरस के संक्रमण ने हर मार्केट इंडस्ट्री के कार्य प्रणाली और बिज़नेस को प्रभावित किया है. हालांकि, हम जानते है कि हर क्राइसिस के बाद बदलाव देखने को मिलता है जो दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने का अवसर लेकर आती है. कोरोनावायरस महामारी ने न सिर्फ हमारी स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रश्न उठाए हैं, बल्कि हमारी स्वयं की स्वच्छता के बारे में भी सोचने को मजबूर कर दिया है.

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कोरोना संक्रमण से पहले हाइजीन इंडस्ट्री

हाइजीन प्रोडक्ट इंडस्ट्री यानि कि एक ऐसा क्षेत्र, जहां हमारी निजी सफाई और खुद को किसी भी तरह के संक्रमण या किसी भी तरह के संक्रामक बीमारियों से बचाव करने के लिए जो उत्पाद बनाए जाते हैं. कोरोनावायरस संक्रमण के फैलने से पहले भी हाइजीन इंडस्ट्री अपनी ऊंचाइयों पर ही था क्योंकि लोग अपने रहन-सहन और जीने के तरीकों को सेहतमंद बनाने की ओर चौकना होने लगे थे. इससे लोगों के रहन सहन भी उच्च हुआ था. विभिन्न एनजीओ के जागरूकता और लाइफस्टाइल में बदलाव के चलते हाइजीन प्रोडक्ट्स के की मांग में काफी बढ़ोतरी होने लगी थी. सिर्फ इतना ही नहीं, सोशल मीडिया ट्रेंड्स और अनेक ब्रैंड्स के विज्ञापनों के चलने से हाइजीन प्रोडक्ट मार्केट में आसानी से मिल जाते थे.

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हाइजीन इंडस्ट्री पर कोविड-19 का असर

कोविड-19 के संक्रमण फैलने से हाइजीन प्रोडक्ट्स की मांग में भारी इजाफा देखा गया है. दुनियाभर की सरकारी गैर सरकारी संस्थाएं NGO भी लोगों संक्रमण से बचाव के लिए साबुन और सैनिटाइजर का इस्तेमाल करने व हाइजीन का ख्याल रखने के लिए जागरूक कर रहे है साथ ही सरकार के तरफ से भी जागरूकता गाइडलाइंस जारी किये जा रहे हैं. लोगों के अंदर जागरूकता बढ़ने के साथ ही लोग अपनी सेहत के प्रति भी ज्यादा सचेत हो रहे हैं और इस वायरस के फैलाव को रोकने के सरकार द्वारा जारी किये गए तरीको को भी अपना रहे हैं. इससे सैनिटाइजर और साबुन की मांग बढ़ती जा रही है. लोग घरों से बाहर निकलने से पहले सैनिटाइजर रखना नहीं भूलते सेनेटाइजर की डिमांड मार्केट में अब पहले से भी ज्यादा बढ़ती जा रही है. सैनिटाइजर की मांग बढ़ने से यह अब आसानी से हर जगह उपलब्ध हो जाता है औऱ इसे कैरी करने में भी आसानी होती है.

 

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