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Crime Story: लखपति बनने की चाहत में 

सौजन्या- सत्यकथा
 उत्तर प्रदेश का एक जिला है फिरोजाबाद. यह शहर कांच की नगरी के नाम से मशहूर है. यहां का एक थाना है रसूलपुर. इसी शहर के मशरूफगंज में मोहम्मद इरशाद अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में 2 बेटियों के अलावा एक बेटा था. उस की सब से छोटी बेटी पौने 2 साल की मायरा थी. वह एक राजमिस्त्री था. बात 24 अगस्त, 2020 की है. शाम करीब 8 बजे बेटी मायरा अपने घर के बाहर खेलते समय अचानक लापता हो गई. इस की जानकारी होते ही बस्ती में हलचल मच गई. पड़ोसियों के साथ ही घर वाले मायरा की खोजबीन में जुट गए. लेकिन मायरा का कोई पता नहीं चला.
इस पर घर वालों ने मसजिद से ऐलान कराने के साथ ही चाइल्ड हेल्पलाइन में भी फोन कर दिया. इस के बाद वह रात साढ़े 10 बजे थाना रसूलपुर पहुंचा और बेटी के गायब होने की सूचना दी. सूचना मिलते ही थाना रसूलपुर थानाप्रभारी प्रमोद कुमार मलिक ने ढाई वर्षीय मायरा की गुमश्ुदगी दर्ज कर के जरूरी काररवाई शुरू कर दी. इरशाद की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. इसलिए फिरौती के मकसद से उस के अपहरण की गुंजाइश नजर नहीं आ रही थी. पुलिस को लग रहा था कि किसी ने दुश्मनी में उसे गायब किया होगा. धीरेधीरे रात गहराती जा रही थी. मासूम बच्ची को लापता हुए कई घंटे बीत चुके थे. बच्ची के न मिलने से घर वाले परेशान हो गए थे. मां को चिंता थी कि उस की मासूम बच्ची कहां और किस अवस्था में होगी. रात लगभग साढ़े 12 बजे जब मायरा की खोजबीन की जा रही थी, उसी दौरान घर वालों को उस का शव मोहल्ले में स्थित ताड़ों वाली बगिया कब्रिस्तान के सामने पड़े होने की सूचना मिली.
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इरशाद और उस के घर वाले वहां पहुंचे तो मायरा की लाश देख कर बिलखबिलख कर रोने लगे. किसी ने उस मासूम बच्ची की हत्या गला रेत कर की थी. इस से बस्ती में सनसनी फैल गई. उसी समय किसी ने बच्ची की लाश मिलने की सूचना पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी के अलावा एसएसपी सचिंद्र पटेल, एसपी (सिटी) मुकेशचंद्र मिश्र, सीओ (सिटी) हरिमोहन सिंह मौके पर पहुंच गए. अधिकारियों ने मौके पर पहुंच कर जांचपड़ताल की. मासूम का गला कटा हुआ था. जिस जगह बच्ची का शव मिला था वहां खून नहीं मिला. इस से इस बात की पुष्टि हो गई कि बच्ची की हत्या कहीं और क रने के बाद शव को यहां ला कर फेंका गया है. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. इस संबंध में मृतक बच्ची मायरा के पिता इरशाद ने मोहल्ला मशरूफगंज के ही रहने वाले गफ्फार व उस के 3 बेटों वसीम, सलमान और अरबाज के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस ने नामजद आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 323, 504, 506 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.
इरशाद ने आरोप लगाया गया था कि बेटी की हत्या साजिश के तहत की गई है. पहली अगस्त को भी गफ्फार और उस के बेटों ने उस के घर पर आ कर गालीगलौज करने के साथ ही जान से मारने की धमकी दी थी. वे लोग उस के भाई अबरार के ससुराल वाले हैं और हम लोगों से रंजिश मानते हैं. उस ने बताया कि इस की शिकायत पुलिस के अधिकारियों से की गई थी लेकिन आरोपियों के विरुद्ध कोई काररवाई नहीं की गई. इस के चलते उन्होंने हमारी बच्ची की हत्या कर दी. एसएसपी सचिंद्र पटेल ने इस जघन्य हत्याकांड के खुलासे के लिए एक टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी प्रमोद कुमार मलिक, एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह, एसआई सुशील कुमार, वासुदेव सिंह, कांस्टेबल आशीष शुक्ला व मुकेश कुमार, कन्हैया, जयनारायण, राजकुमार आदि को शामिल किया गया. पुलिस टीम ने नामजद आरोपियों के मकान पर दबिश डाली तो चारों आरोपी घर पर ही मिल गए. पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी. हिरासत में लिए गए आरोपियों ने अपने आप को निर्दोष बताया. उन्होंने बताया कि इरशाद उन के रिश्तेदार हैं और अपनी बेटी की हत्या के मामले में उन्हें झूठा फंसाना चाहते हैं. इस मामले में आप हम लोगों की पूरी तरह जांच करा लीजिए. अगर हम दोषी पाए जाएं तो हम हर सजा भुगतने को तैयार हैं. जिन लोगों पर हत्या का आरोप लगाया गया था, वे लोग पुलिस को घटना वाली रात घर पर ही मिले थे. इसलिए पुलिस ने उन के बारे में बारीकी से जांचपड़ताल शुरू की.
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जांच में पता चला कि आरोपी घटना वाली रात अपने घर में ही थे. वे घर से बाहर नहीं निकले थे. इस के अलावा पुलिस ने आरोपियों के पड़ोसियों व अन्य लोगों से बात की तो इस बात की पुष्टि हो गई कि जिन लोगों पर हत्या का आरोप लगाया गया है, वे निर्दोष हैं. असली कातिल तो कोई और है. पुलिस के शक की सुई अब बच्ची के घर वालों की तरफ घूम गई. पुलिस ने हाइवे पर घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरे खंगाले तो बालिका की हत्या के कुछ सुराग हाथ लगे. जांच जैसेजैसे आगे बढ़ी शक गहराता गया. पूरी संतुष्टि के लिए सीसीटीवी फुटेज में जो व्यक्ति दिखे, सर्विलांस टीम ने उन व्यक्तियों के फोन नंबरों की लोकेशन पता की तो इस सनसनीखेज हत्याकांड की वास्तविकता को उजागर हो गई. सीसीटीवी कैमरे में घटना से पूर्व मायरा का पिता इरशाद उसे गोद में ले कर जाता दिखाई दे रहा था. शक पुख्ता होने पर पुलिस ने इरशाद को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो पहले वह आनाकानी करता रहा. लेकिन जब सीसीटीवी फुटेज दिखाई व उस के मोबाइल की लोकेशन घटनास्थल पर मिलने की बात बताई तो उस ने बिलखते हुए अपनी बेटी मायरा की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.
इस हत्याकांड में उस का छोटा भाई मोहम्मद मुत्तलिव भी शामिल था. पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर दोनों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल एक छुरी भी बरामद कर ली. अपने ही हाथों अपनी मासूम बेटी की हत्या करने के पीछे अपने विरोधियों को फंसाने और 3 लाख रुपए हड़पने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली— पिछले दिनों सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) को ले कर फिरोजाबाद में हुए उपद्रव के दौरान कई लोगों की मौत हुई थी. उसी दौरान 20 दिसंबर, 2019 को इरशाद के भाई अबरार की भी मौत हो गई थी. मृतकों के घर वालों को कांग्रेस, समाजवादी पार्टी सहित इंडियन मुसलिम लीग ने अलगअलग आर्थिक मदद की थी. इरशाद के भाई अबरार की मौत पर इंडियन मुसलिम लीग ने इरशाद के पिता एजाज के नाम 3 लाख रुपए का चैक दिया था. जबकि अन्य दलों द्वारा दी गई मदद की राशि को ले कर अबरार की पत्नी फरहाना बेटे के साथ मशरूफगंज स्थित अपने पिता गफ्फार के पास चली गई थी. एजाज के नाम का 3 लाख रुपए का चैक इरशाद के पास था.
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मृतक अबरार की पत्नी व साले इस चैक पर अपना दावा जताते हुए चैक की मांग कर रहे थे. लेकिन इरशाद और छोटा भाई मुत्तलिव चैक देने को राजी नहीं थे. वे इस धनराशि को हड़पना चाहते थे. इसी को ले कर इरशाद और उस के भाइयों से अबरार के ससुरालीजनों का कई बार विवाद हो चुका था. इसी विवाद के चलते इरशाद ने अपने छोटे भाई मुत्तलिव के साथ मिल कर अबरार के ससुरालीजनों से छुटकारा पाने व चैक की लाखों रुपए की धनराशि को हड़पने के लिए खौफनाक साजिश रची. योजनानुसार 24 अगस्त, 2020 की रात जब इरशाद की ढाई वर्षीय बेटी मायरा घर के बाहर खेल रही थी, इरशाद उसे गोद में उठा कर ले गया. उस ने मासूम मायरा को खिलौना दिलाने का झांसा भी दिया. अपने पिता के साथ वह खुशीखुशी चली गई. उसे नहीं मालूम था कि उस का पालनहार अपने विरोधियों को फंसाने के लिए उस का ही कत्ल करने के लिए ले जा रहा है. मायरा का चाचा मुत्तलिव भी अपने साथ छुरी ले कर उस के पीछेपीछे आ गया. एक स्थान पर पिता इरशाद ने अपनी मासूम बेटी का गला छुरी से रेत कर उस की जघन्य हत्या कर दी. फिर दोनों भाई बच्ची के शव को कब्रिस्तान के सामने फेंक कर घर आ गए और मायरा के लापता होने की खबर फैला दी. दोनों कई दिनों से योजना को अमलीजामा पहनाने की फिराक में थे. लेकिन मायरा घर के बाहर भाईबहनों व अन्य बच्चों के साथ खेलती थी,
इस से वे घटना को अंजाम नहीं दे पा रहे थे. 24 अगस्त को उन्हें मौका मिल गया. उस दिन मायरा घर के बाहर अकेली मिल गई थी. हत्यारोपियों ने मृत भाई के ससुरालीजनों को केस में झूठा फंसाने की साजिश फूलप्रूफ बनाई थी, लेकिन पुलिस ने गहराई से जांच कर इस हत्याकांड का घटना के 5 दिन बाद 29 अगस्त को खुलासा कर दिया. गिरफ्तार पिता इरशाद व चाचा मुत्तलिव से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. इस घटना में कलयुगी पिता की ऐसी दास्तान सामने आई, जिस ने रिश्तों को शर्मसार कर दिया. घटना को सुन कर हर किसी की रूह कांप गई. जिस गोद में पिता का साया पा कर हर बच्चा अपने को सुरक्षित समझता है, उसी निर्दयी पिता ने अपने विरोधियों को हत्या के आरोप में फंसाने और मृतक भाई की विधवा व बच्चों के रुपयों को हड़पने के चक्कर में अपने ही कलेजे के टुकड़े को मौत के घाट उतार दिया.

ममता का डौलर-आनंदा खुद को क्यों कसूरदार मानती थी

पलंग पर चारों ओर डौलर बिखरे हुए थे. कमरे के सारे दरवाजे व खिड़कियां बंद थीं, केवल रोशनदान से छन कर आती धूप के टुकड़े यहांवहां छितराए हुए थे. डौलर के लंबेचौड़े घेरे के बीच आनंदी बैठी थीं. उन के हाथ में एक पत्र था. न जाने कितनी बार वे यह पत्र पढ़ चुकी थीं. हर बार उन्हें लगता कि जैसे पढ़ने में कोईर् चूक हो गई है, ऐसा कैसे हो सकता है. उन का बेटा ऐसे कैसे लिख सकता है. जरूर कोई मजबूरी रही होगी उस के सामने वरना उन्हें जीजान से चाहने वाला उन का बेटा ऐसी बातें उन्हें कभी लिख ही नहीं सकता. हो सकता है उस की पत्नी ने उसे इस के लिए मजबूर किया हो.

पर जो भी वजह रही हो, सुधाकर ने जिस तरह से सब बातें लिखी थीं, उस से तो लग रहा था कि बहुत सोचसमझ कर उस ने हर बात रखी है.

कितनी बार वे रो चुकी थीं. आंसू पत्र में भी घुलमिल गए थे. दुख की अगर कोई सीमा होती है तो वे उसे भी पार कर चुकी थीं.

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ताउम्र संघर्षों का सामना चुनौती की तरह करने वाली आनंदी इस समय खुद को अकेला महसूस कर रही थीं. बड़ीबड़ी मुश्किलें भी उन्हें तोड़ नहीं सकी थीं, क्योंकि तब उन के पास विश्वास का संबल था पर आज मात्र शब्दों की गहरी स्याही ने उन के विश्वास को चकनाचूर कर दिया था. बहुत हारा हुआ महसूस कर रही थीं. यह उन को मिली दूसरी गहरी चोट थी और वह भी बिना किसी कुसूर के.

हां, उन का एक बहुत बड़ा कुसूर था कि उन्होंने एक खुशहाल परिवार का सपना देखा था. उन्होंने ख्वाबों के घोंसलों में नन्हेंनन्हें सपने रखे थे और मासूम सी अपनी खुशियों का झूला अपने आंगन में डाला था. उमंगों के बीज परिवारनुमा क्यारी में डाले थे और सरसों के फूलों की पीली चूनर के साथ ही प्यार की इंद्रधनुषी कोमल पत्तियां सजा दी थीं. पर धीरेधीरे उन के सपने, उन की खुशियां, उन की पत्तियां सब बिखरती चली गईं. खुशहाल परिवार की तसवीर सिर्फ उन के मन की दीवार पर ही टंग कर रह गई. अपनी मासूम सी खुशियों का झूला जो बहुत शौक से उन्होंने अपने आंगन में डाला था, उस पर कभी बैठ झूल ही नहीं पाईं वे. हिंडोला हिलता रहता और वे मनमसोस कर रह जातीं.

शादी एक समझौता है, यह बात उन की मां ने उन की शादी होने से बहुत पहले ही समझानी शुरू कर दी थी. पर वे हमेशा सोचती थीं कि समझौता करने का तो मतलब होता है कि चाहे पसंद हो या न हो, चाहे मन माने या न माने, जिंदगी को दूसरे के हिसाब से चलने दो. फिर प्यार, एहसास, एकदूसरे के लिए सम्मान और समपर्ण की भावना कैसे पनपेगी उस बंधन में.

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आनंदी को यह सोच कर भी हैरानी होती कि जब शादी एक बंधन है तो उस में कोईर् खुल कर कैसे जी सकता है. एकदूसरे को अगर खुल कर जीने ही नहीं दिया जाएगा या एक साथी, जो हमेशा पति ही होता है, दूसरे पर अपने विचार, अपनी पसंदनापसंद थोपेगा तो वह खुश कैसे रह पाएगा.

मां डांटतीं कि बेकार की बातें मत सोचा कर. इतना मंथन करने से चीजें बिगड़ जाती हैं. मां को उन्होंने हमेशा खुश ही देखा. कभी लगा ही नहीं कि वे किसी तरह का समझौता कर रही हैं. पापामम्मी का रिश्ता उन्हें बहुत सहज लगता था. फिर बड़ी दीदी और उस के बाद मंझली दीदी की शादी हुई तो उन को देख कर कभी नहीं लगा कि वे दुखी हैं. आनंदी को तब यकीन हो गया था कि उन्हें भी ऐसा ही सहज जीवन जीने का मौका मिलेगा. सारे मंथन को विराम दे, वे रंजन के साथ विवाह कर उन के घर में आ गईर् थीं.

शुरुआती दिन घोंसले का निर्माण करने के लिए तिनके एकत्र करने में फुर्र से उड़ गए, खट्टेमीठे दिन, थोड़ीबहुत चुहलबाजी, दैहिक आकर्षण और उड़ती हुई रंगबिरंगी तितलियों से बुने सपनों के साथ. समय बीता तो आनंदी को एहसास होने लगा कि रंजन और वे बिलकुल अलग हैं. रंजन रिश्ते को सचमुच बंधन बनाने में यकीन रखते हैं. खुल कर सांस लेना मुश्किल हो गया उन के लिए.

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दरवाजे पर खटखट हुई तो आनंदी सोच और डौलरों के घेरे से हिलीं. अंधेरा था कमरे में. दोपहर कब की शाम की बांहों में समा गई थी. लाइट जलानी ही पड़ी उन्हें.

‘‘मांजी दूध लाया हूं. आप डेयरी पर नहीं आईं तो मैं ही देने चला आया. एकदम ताजा निकाल कर लाया हूं.’’

चुपचाप दूध ले लिया उन्होंने. वरना अन्य दिनों की तरह कहतीं, ‘बहुत पानी मिलाने लगे हो आजकल.’ जब मेरा बेटा आएगा न, तब एकदम खालिस दूध लाना या तब ज्यादा दूध देना पड़ेगा तुझे. मेरे बेटे को दूध अच्छा लगता है. बड़े शौक से पीता है.

कमरे में आईं तो रोशनी आंखों को चुभने लगी. निराशा की परतें उन के चेहरे पर फैली हुई थीं. ऐसा लग रहा था कि मात्र कुछ घंटों में ही वे 2 साल बूढ़ी हो गई हैं. उदास नजरों से उन्होंने एक बार फिर डौलरों को देखा. पलकें नम हो गईं. नहीं देखना चाहतीं वे इन डौलरों को. क्या करेंगी वे इन का. जीरो वाट का बल्ब जलाया उन्होंने. लेकिन धुंधले में भी डौलर चमक रहे थे. उन के भीतर जो पीड़ा की लपटें सुलग रही थीं, उन की रोशनी से खुद को बचाना उन के लिए ज्यादा मुश्किल था.

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रंजन के साथ लड़ाई होना आम बात हो गई थी. वे कुछ फैसला लेतीं, उस से पहले ही उन्हें पता चला कि उन के अंदर एक अंकुर फूट गया है. सचमुच समझौता करने लगीं वे उस के बाद. उम्मीद भी थी कि रंजन घर में बच्चा आने के बाद सुधर जाएंगे. ऐयाशियां, दूसरी औरतों से संबंध रखना और शराब पीना शायद छोड़ दें, पर वे गलत थीं.

बच्चा आने के बाद रंजन और उग्र हो गए और बोलने लगे, बहुत कहती थी न कि चली जाएगी. अकेले बच्चे को पालना आसान नहीं. हां, वे जानती थीं इस बात को, इसलिए सहती रहीं रंजन की ज्यादतियों को.

तब मां ने समझाया, तू नौकरी करती है न, चाहे तो अलग हो जा रंजन से. हम सब तेरे साथ हैं. वह नहीं मानी. जिद थी कि समझौता करती रहेंगी. सुधाकर पर रंजन का बुरा असर न पड़े, यह सोच कर दिल पर पत्थर रख कर उसे होस्टल में डाल दिया.

उन की सारी आस, उम्मीद अब सुधाकर पर ही आ कर टिक गई थी. बस, वे चाहती थीं कि सुधाकर खूब पढे़ और रंजन के साए से दूर रहे. वैसे भी रंजन के सुधाकर को ले कर न कोई सपने थे न ही वे उस के कैरियर को ले कर परेशान थे. संभाल लेगा मेरा बिजनैस, बस वे यही कहते रहते. आनंदी नहीं चाहती थीं कि सुधाकर उन का बिजनैस संभाले जो लगभग बुरी हालत में था. उन का औफिस दोस्तों का अड्डा बन चुका था.

वे कभी समझ ही नहीं पाईं रंजन को. कोई अपने परिवार से ज्यादा दोस्तों को महत्त्व कैसे दे सकता है, कोई अपनी पत्नी व बेटे से बढ़ कर शराब को महत्त्व कैसे दे सकता है, कोई परिवार संभालने की कोशिश कैसे नहीं कर सकता. पर रंजन ऐसे ही थे. जिम्मेदारी से दूर भागते थे. कमिटमैंट तो जैसे उन के लिए शब्द बना ही नहीं था.

यह तो शुक्र था कि सुधाकर मेहनती निकला. लगातार आगे बढ़ता गया. रंजन उन दोनों को छोड़ कर किसी और औरत के पास रहने लगे. सुधाकर अकसर दुखी रहने लगा. बिखरे हुए परिवार में सपने दम न तोड़ दें, यह सोच कर आनंदी ने अपनी जमापूंजी की परवा न कर उसे विदेश भेज दिया. वे चाहती थीं कि बेटा विदेश जाए, खूब पैसा और नाम कमाए ताकि उन के जीवन की काली परछाइयों से दूर हो जाए. उसे उन के जीवन की कड़वाहट को न झेलना पड़े. पतिपत्नी के रिश्तों में आई दीवारों व अलगाव के दंश उसे न चुभें.

मां से अलग होना सुधाकर के लिए आसान न था. उस ने देखा था अपनी मां को अपने लिए तिलतिल मरते हुए, उस की खुशियों की खातिर त्याग करते हुए. वह नहीं जाना चाहता था विदेश, पर आनंदी पर जैसे जिद सवार हो गई थी. सब ने समझाया था कि ऐसा मत कर. बेटा विदेश गया तो पराया हो जाएगा. तू अकेली रह जाएगी. पर वे नहीं मानीं.

वे सुधाकर को कामयाब देखना चाहती थीं. वे उसे रंजन की परछाईं से दूर रखना चाहती थीं, मां की ममता तब शायद अंधी हो गईर् थी, इसीलिए देख ही नहीं पाईं कि बेटे को यह बात कचोट गई है.

पिता का प्यार जिसे न मिला हो और जो मां के आंचल में ही सुख तलाशता हो, जिस के मन के तार मां के मन के तारों से ही जुड़े हों, उस बेटे को अपने से दूर करने पर आनंदी खुद कितनी तड़पी थीं, यह वही जानती हैं. पर सुधाकर भी आहत हुआ था.

कितना कहा था उस ने, ‘मां, तुम मेरे बिना कैसे रहोगी. मैं यहीं पढ़ सकता हूं.’ पर वे नहीं मानीं और भेज दिया उसे आस्ट्रेलिया. फिर उसे वहीं जौब भी मिल गई. वह बारबार उन्हें बुलाता रहा कि मां अब तो आ जाओ. और वे कहती रहीं कि बस 2 साल और हैं नौकरी के, रिटायर होते ही आ जाऊंगी. वे जाने से पहले सारे लोन चुकाना चाहती थीं. बेटे पर कोई बोझ डालना तो जैसे आंनदी ने सीखा ही नहीं था. फिर विश्वास भी था कि बेटा तो उन्हीं का है. एक बार सैटल हो जाए तो कह देंगी कि आ कर सब संभाल ले. बुला लेंगी उसे वापस. कामयाबी की सीढि़यां तो चढ़ने ही लगा है वह.

नहीं आ पाया सुधाकर. जौब में उलझा तो खुद की जड़ें पराए देश में जमाने की जद्दोजेहद में लग गया. फिर उस की मुलाकात रोजलीना से हुई और उस से ही शादी भी कर ली. मां को सूचना भेज दी थी. पर इस बार आने का इसरार नहीं किया था. रोजलीना का साथ पा कर उस के बीते दिनों के जख्म भर गए थे. अपने परिवार को सींचने में वह मां के त्याग को याद रखना चाह कर भी नहीं रख पाया.

रोजलीना ने साफ कह दिया था कि वह किसी तरह की दखलंदाजी बरदाश्त नहीं कर सकती. वैसे भी वह मानती थी कि इंडियन मदर अपने बेटों को ले कर बहुत पजैसिव होती हैं, इसलिए वह नहीं चाहती थी कि आनंदी वहां उन के साथ आ कर रहें.

सुधाकर मां से यह सब नहीं कह सकता था. मां की तकलीफें अभी भी उसे कभीकभी टीस दे जाती थीं. पर अब उस की एक नई दुनिया बस गई थी और वह नहीं चाहता था कि मांपापा की तरह उस के वैवाहिक जीवन में भी कटुता की काली छाया पसरे.

रोजलीना को वह किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था. एक सुखद वैवाहिक जीवन की राह न जाने कब से उस के भीतर पलती आईर् थी. बहुत कठिन था उस के लिए मां और पत्नी में से एक को चुनना, पर मां के पास वह वापस लौट नहीं पा रहा था और पत्नी को छोड़ना नहीं चाहता था.

वैसे भी मां का उसे अपने से दूर करने की टीस भी उसे अकसर गहरी पीड़ा से भर जाती थी. पिता के प्यार से वंचित सुधाकर मां से दूर नहीं रहना चाहता था. भले ही मां ने उसे भविष्य संवारने के लिए अपने से उसे दूर किया था, पर फिर भी किया तो, अकसर वह यही सोचता. ऐसे में रोजलीना का पलड़ा भारी होना स्वाभाविक ही था.

आनंदी को लगा जैसे उन का गला सूख रहा है, पर पानी के लिए वे उठीं नहीं. रात गहरा गईर् थी. वे समझ चुकी थीं कि सुधाकर को विदेश भेजने की उन की जिद ने उन के जीवन में भी इस रात की तरह अंधेरा भर दिया है. बेटे की खुशियां चाहना क्या सच में इतना बड़ा कुसूर हो सकता है या नियति की चाल ही ऐसी होती है. शायद अकेलापन ही उन के हिस्से में आना था. वे जान चुकी थीं कि वह जा चुका है कभी न लौटने के लिए. उन्होंने एक बार और पत्र पढ़ा.

लिखा था, ‘‘मां, आई एम सौरी. मैं आप से दूर नहीं जाना चाहता था पर मुझे जाना पड़ा और अब चाह कर भी मैं स्वदेश वापस लौटने में असमर्थ हूं. आप के त्याग को कभी भुलाया नहीं जा सकता और इस बात की ग्लानि भी रहेगी कि मैं आप के प्रति कोई फर्ज न निभा सका. शायद पापा से विरासत में मुझे यह अवगुण मिला होगा. जिम्मेदारी नहीं निभा पाया, तभी तो डौलर भेज रहा हूं और आगे भी भेजता रहूंगा. पर मेरे लौटने की उम्मीद मत रखना. अब मैं इस दुनिया में बस गया हूं, यहां से बाहर आ कर फिर भारत में बसना मुमकिन नहीं है. आप भी ऐसा ही चाहती थीं न.’’

आनंदी ने डौलरों पर हाथ फेरा. पूरी ममता जिस बेटे पर लुटा दी थी, उस ने कागज के डौलर भेज उस ममता के कर्ज से मुक्ति पा ली थी.

 काला तिल : खेती से कायम की मिसाल

राम तिल पहाड़ी इलाकों में होने वाली तिलहनी फसल है. इसे गाय, हिरन, जंगली सूअर वगैरह जानवर नहीं खाते हैं. आमतौर पर बारिश में भी होने वाली इस फसल को काला तिल या नाइजर नाम से भी जाना जाता है. इस में पीले रंग के फूल लगते हैं और फूलों के अंदर से निकलने वाले काले दानों को राम तिल कहा जाता है.

राम तिल से 40 से 45 फीसदी तेल निकलता है, जिस में प्रोटीन की मात्रा 30 से 35 फीसदी के होने की वजह से यह तेल खाने के लिए काफी फायदेमंद होता है.

पहाड़ी और गैरउपजाऊ जमीन में होने वाली राम तिल की फसल को मध्य प्रदेश के मैदानी इलाकों में भी किसानों ने बड़े पैमाने पर लगा कर एक मिसाल कायम की है.

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले की बनखेड़ी तहसील के गुंदरई गांव के किसान दिनेश माहेश्वरी, दीपक माहेश्वरी और हेमंत माहेश्वरी के साथ दूसरे किसानों ने इसे तकरीबन 250 एकड़ रकबे में लगाया है.

खरीफ फसल के रूप में कम लागत वाली इस फसल से एक हेक्टेयर में तकरीबन 10 क्विंटल तक की पैदावार मिलती है और 50,000 रुपए का खालिस मुनाफा होता है.

राम तिल की उन्नत खेती करने वाले किसान दिनेश माहेश्वरी ने बताया कि इस बार भारी बारिश होने के चलते जहां परंपरागत फसलों को अच्छाखासा नुकसान हुआ है, वहीं राम तिल की फसल अच्छी हुई है. यह फसल उड़द, मूंग और सोयाबीन का एक अच्छा विकल्प साबित हुई है.

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कैसे करें राम तिल की खेती

खेती में नवाचार करने वाले किसान दिनेश माहेश्वरी राम तिल की खेती के तौरतरीके बताते हुए कहते हैं कि फसल की बोआई के लिए खेत को कल्टीवेटर से 2-3 बार गहरी जुताई कर के रोटावेटर से एकसार कर लिया जाता है.

राम तिल के बीज की उन्नत किस्मों उटकमंड, जेएनसी 1, जेएनसी 6, विरसर नाइजर 1 और 2, जेएनएस, पूजा, गुजराती नाइजर का भरपूर मात्रा में इस्तेमाल किया जा सकता है.

गुंदरई गांव के किसानों ने मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा के कृषि अनुसंधान केंद्र में राम तिल का ब्रीडर सीड जेएनएस 28 को 2 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से बोया है.

इस फसल में बीजों को छिड़कने के बजाय कतारों में लगाने से ज्यादा उत्पादन हासिल होता है. आमतौर पर कतार से कतार की दूरी 30 सैंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 10 से 15 सैंटीमीटर रखने से एक हेक्टेयर में 2 लाख से ज्यादा पौधों की तादाद हो जाती है.

राम तिल की बोआई जुलाईअगस्त महीने में की जा सकती है. बीजों के समान वितरण के लिए बीज को गोबर की खाद या बालू में मिला कर बोआई करना अच्छा रहता है.

राम तिल की बडे़ पैमाने पर खेती करने के चलते कृषि विभाग के अधिकारी और जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के कृषि वैज्ञानिकों की सलाह भी समयसमय पर किसानों को मिलने से इस बार फसल अच्छी हुई है.

उर्वरकों का प्रयोग

राम तिल की बड़े पैमाने पर खेती करने के चलते कृषि विभाग के अधिकारी और जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से उर्वरकों को सही मात्रा में औैर सही समय पर इस्तेमाल करने से इस बार किसानों की फसल में अच्छा इजाफा हुआ.

दीपक माहेश्वरी और हेमंत माहेश्वरी ने बताया कि थाइरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या ट्राइकोडर्मा बिरडी की 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से राम तिल के बीजों को उपचार कर के बोना चाहिए.

अच्छी उपज हासिल करने के लिए झ्र 20:20:20 किलोग्राम एनपीके प्रति हेक्टेयर यानी तकरीबन 45 किलोग्राम यूरिया, 130 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 32 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए.

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बोआई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा और सिंगल सुपर फास्फेट और पोटाश की पूरी मात्रा दें. नाइट्रोजन की बाकी बची मात्रा बोआई के 25 से 30 दिनों के बाद निराईगुड़ाई करने के बाद डालनी चाहिए.

वैसे, यह फसल 100 से 110 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. जब पौधों की पत्तियां सूख कर गिरने लगें, फली का शीर्ष भाग भूरे और काले रंग का हो कर मुड़ने लगे तब फसल को काट लेना चाहिए. कटाई के बाद पौधों का गट्ठर बना कर बांध कर खेत में खुली धूप में एक सप्ताह तक सुखाना चाहिए. उस के बाद खलिहानों में लकड़ी या डंडों द्वारा पीट कर गहाई करनी चाहिए.

अतिरिक्त आमदनी के लिए मधुमक्खीपालन

गुंदरई गांव के इन किसानों ने राम तिल फसल के साथ मधुमक्खीपालन का काम भी शुरू किया है. राम तिल के खेतों में मधुमक्खीपालन करने के लिए हनी कलैक्ट बौक्स रखे हैं. मधुमक्खियां राम तिल के फूलों के रस को चूसती हैं और बौक्स में रस जमा करती हैं. इन बौक्सों से शहद तैयार कर अतिरिक्त आमदनी ली जा सकती है. मधुमक्खीपालन से तकरीबन 20 से 25 फीसदी मुनाफा बढ़ जाता है.

किसानों द्वारा किए जा रहे नवाचार को देखने जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के कुलपति पीके बिसेन के साथ कृषि वैज्ञानिकों का एक दल नवंबर माह के पहले हफ्ते में गुंदरई गांव पहुंचा और राम तिल की लहलहाती फसल को देख कर किसानों के उन्नत ढंग से खेती करने की सराहना की.

नर्मदापुरम, होशंगाबाद के कमिश्नर आरके मिश्रा और कलक्टर शीलेंद्र सिंह ने भी राम तिल की खेती को देख कर किसानों के प्रयासों को सराहा. उन्होंने कृषि विभाग के अधिकारियों को मौके पर ही निर्देश दिए कि जिले के दूसरे किसानों को भी यहां का दौरा करा कर राम तिल की खेती के लिए प्रेरित किया जाए.

राम तिल की खेती को बढ़ावा देने के लिए गुंदरई गांव पहुंचे जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के कृषि विज्ञान केंद्र के संचालक डीके पहलवान, कृषि विभाग के संयुक्त संचालक जितेंद्र कुमार सिंह, राम तिल परियोजना समन्वयक रजनी बिसेन ने किसानों को बताया कि पहले ही मध्य प्रदेश में 40 से 42 हजार हेक्टेयर भूमि में राम तिल की फसल ली जा रही है.

उन्होंने आगे बताया कि ज्यादा पैदावार हासिल करने के लिए राम तिल की उन्नत किस्मों की ही बोनी कतारों में दोफन, त्रिफन या सीड ड्रिल से करनी चाहिए.

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इस फसल को अमरबेल से बचाने के लिए पेंडीमिथेलिन यानी स्टांप ऐक्स्ट्रा 38.7 फीसदी यानी सीएस 700 ग्राम प्रति एकड़ की व्यापारिक मात्रा 150 लिटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करने से पैदावार में बढ़ोतरी होती है.

राम तिल की खेती से संबंधित जानकारी के लिए प्रगतिशील किसान दिनेश माहेश्वरी से उन के मोबाइल नंबर 9425939000 पर बात की जा सकती है.

टूटा गरूर-भाग 3 : पल्लवी का गुमान कैसे और किस ने तोड़ दिया

जले मन पर मानो नमक छिड़क दिया पारुल ने. तिलमिला कर कहने जा रही थी कि बहुत काम रहता है प्रशांत को… इतना बड़ा बिजनैस हैंडल करना आसान नहीं है. पीयूष की तरह फुरसतिया नहीं हैं कि चौबीसों घंटे मोबाइल पर बीवी से बातें या मैसेज करते रहें. लेकिन हड़बड़ा कर झूठ ही बोल गई, ‘‘सुबह ही तो तेरे आने से पहले बहुत देर तक बातें हुई थीं. फिर रात में भी बहुत देर तक बातें करते रहे. आखिर मैं ने ही कहा कि अब सो जाओ तब बड़ी मुश्किल से फोन काटा,’’ कहते हुए पल्लवी पारुल से आंखें नहीं मिला पाई. नाश्ता परोसने के बहाने आंखें यहांवहां घुमाती रही.

मोबाइल को हाथ में पकड़े पल्लवी घूर रही थी. सुबह के 10 बज गए हैं. क्या अब तक प्रशांत सो कर नहीं उठे होंगे? क्या उन्होंने मेरी मिस कौल नहीं देखी होंगी? क्या एक बार भी वे फोन नहीं लगा सकते? पता नहीं क्यों अचानक पल्लवी का मन तेजी से यह इच्छा करने लगा कि काश प्रशांत का फोन आ जाए. हमेशा से इस अकेलेपन को आजादी मानने वाली पल्लवी आज पारुल के सामने बैठ कर अचानक ही क्यों इस अकेलेपन से ऊब उठी है? क्यों किसी से कोने में जा कर बात करने को उस का मन लालायित हो उठा.

अपनेआप के साथ रह कर, जो अकेलापन कभी अकेलापन नहीं लगा वही पारुल के साथ होने पर भी क्यों आज इतने बरसों बाद काट खाने को दौड़ रहा है? शायद इसलिए कि पारुल उस के साथ, उस के सामने होते हुए भी लगातार पीयूष से जुड़ी हुई है, उस के साथ और जुड़ाव का एहसास ही पल्लवी के अकेलेपन को लगातार बढ़ाता जा रहा था.

पल्लवी ने फिर प्रशांत को फोन लगाया. लेकिन अब की बार उस का फोन स्विच औफ मिला. झुंझला कर पल्लवी ने प्रशांत के औफिस में फोन लगाया. उस की पी.ए. को तो कम से कम पता ही होगा कि प्रशांत कहां हैं, किस होटल में ठहरे हैं. औफिस में जिस ने भी फोन उठाया झिझकते हुए बताया कि सर की पी.ए. तो सर के साथ ही मुंबई गई है.

पल्लवी सन्न रह गई. तो इसलिए प्रशांत फोन नहीं उठा रहे थे. रात में और सुबह से ही फोन का स्विच औफ होने का कारण भी यही है. मुंबई के बाद बैंगलुरु फिर हैदराबाद. एक से एक आलीशान होटल और… पल्लवी हर बार कहती कि घर में बच्चे तो हैं नहीं, मैं भी साथ चलती हूं तो प्रशांत बहाना बना देते कि मैं तो दिन भर काम में रहूंगा. रात में भी देर तक मीटिंग चलती रहेगी. तुम कहां तक मेरे पीछे दौड़ोगी? बेकार होटल के कमरे में बैठेबैठे बोर हो जाओगी.

सच ही तो है बीवी की जरूरत ही नहीं है. पी.ए. को साथ ले जाने में ही ज्यादा सुविधा है. दिन भर काम में मदद और रात में बिस्तर में सहूलत. अचानक पल्लवी की आंखों के सामने आपस में हंसीचुहल करते हुए खाना बनाते और  काम करते पीयूष और पारुल के चित्र घूम गए. पहले जिस बात को सुन कर पल्लवी तुच्छता से हंस दी थी आज उसी चित्र की कल्पना कर के उसे ईर्ष्या हो रही थी.

ईर्ष्या, क्षोभ, प्रशांत द्वारा दिया जा रहा धोखा और अपमान सब पल्लवी की आंखों से बहने लगे. क्यों बुलाया पारुल को उस ने? आराम से इस ऐश्वर्य और पैसे से खरीदे गए सुखसाधनों से, अपनेआप को संपन्न, सुखी मान कर सुख से बैठी थी कि पारुल ने आ कर उस के सुख को चूरचूर कर दिया. जीवन में पहली बार पारुल का सुख और चेहरे की चमक देख कर पल्लवी को लगा कि पैसा ही सुख का पर्याय नहीं है.

पारुल के चेहरे को घूरघूर कर पल्लवी दुख की लकीर ढूंढ़ना चाह रही थी. आज उसी चेहरे की चमक देख कर उस के अपने चेहरे पर मायूसी के बादल छा रहे हैं. अब वह पारुल के चेहरे पर नजर डालने की ही इच्छा नहीं कर पा रही है, डर रही है. उस के चेहरे की रोशनी से खुद के मन का अंधेरा और घना न हो जाए.

दोपहर के खाने के बाद दोनों बातें करने बैठीं.

‘‘तुम ने अपनी क्या हालत बना रखी है दीदी? बच्चे होस्टल में, जीजाजी इतनेइतने दिन टूअर पर… पहाड़ सा दिन अकेले कैसे काटती हो?’’ पारुल के चेहरे पर पल्लवी के लिए सचमुच की हमदर्दी थी.

शाम को दोनों फिर घूमने निकल गईं. पल्लवी पारुल को शहर के सब से महंगे बुटीक में ले गई.

‘‘अपने लिए कोई सूट पसंद कर ले,’’ पल्लवी ने कहा.

‘‘बाप रे, यहां तो सारे सूट बहुत महंगे और चमकदमक वाले हैं. मैं ऐसे सूट पहन कर कहां जाऊंगी दीदी. इतनी चमकदमक मेरे प्रोफैशन को सूट नहीं करती,’’ पारुल के स्वर में चमकदमक के लिए तिरस्कार और अपने प्रोफैशन के प्रति स्वाभाविक गर्व का आभास था.

चोट मानो पल्लवी पर ही हुई थी. तब भी पल्लवी ने बहुत कहा पर पारुल मुख्यतया पैसों पर ही अड़ी रही. कहती रही कि यह फुजूलखर्ची है.

‘‘अरी, शादी के बाद पहली बार आई है. पैसों की चिंता मत कर. मैं उपहार दे रही हूं,’’ पल्लवी बोली.

‘‘बात पैसों की नहीं है दीदी. तुम दो या मैं दूं. बात वस्तु के उपयोग की है. बेकार अलमारी में बंद पड़ा रहेगा. अब मैं तुम्हारी तरह हाईफाई बिजनैस पार्टियों में तो जाती नहीं हूं,’’ कह कर पारुल बुटीक से बाहर आ गई.

रात खाना दोनों बाहर ही खा कर आईं. घर लौटते ही पीयूष का फोन आया. सेमिनार खत्म हो चुका है. वह सुबह की फ्लाइट पकड़ कर आ रहा है. उस ने पारुल से भी कहा कि कल ही फ्लाइट से वापस आ जाओ.

‘‘पर तेरा तो परसों रात का रिजर्वेशन है न?’’ पल्लवी ने पूछा.

‘‘उसे मैं कल सुबह कैंसल करवा आऊंगी. 11 बजे की फ्लाइट है. टिकट तो मिल ही जाएगा. एअरपोर्ट पहुंच कर ही ले लूंगी. 2 बजे तक पहुंच जाऊंगी,’’ पारुल के चेहरे की चमक और खुशी दोनों जैसे कई गुना बढ़ गई थीं.

‘‘इतने सालों बाद आई है. ठीक से बात भी नहीं कर पाई और 2 ही दिन में वापस जा रही है. ऐसा भी क्या है कि पीयूष 2 दिन भी नहीं छोड़ सकता तुझे,’’ पल्लवी नाराजगी वाले स्वर में बोली.

‘‘फिर कभी आ जाऊंगी दीदी. बल्कि तुम ही क्यों नहीं आ जाया करतीं. बच्चे दोनों घर पर नहीं हैं और जीजाजी इतनेइतने दिन टूअर पर… उफ, कैसे रहती हो तुम,’’ पारुल के स्वर में सहजता थी. लेकिन पल्लवी को लगा पारुल कटाक्ष कर रही है.

सच ही तो है. ऐसी दीवानगी है एकदूसरे के लिए जैसी पल्लवी ने अपने लिए 4 दिन भी नहीं देखी. दीवानगी नहीं देखी यह बात नहीं है, लेकिन अपने लिए नहीं देखी, देखी है पैसे के लिए. पैसे से खरीदी जा सकने वाली हर चीज के लिए. एक पल्लवी में भी तो दीवानगी बस पैसे के लिए ही रही है. और किसी के लिए भी जीवन में दीवाना हुआ जा सकता है, यह तो पारुल को देख कर पता चला. जो पारुल महज पैसों की खातिर महंगा सूट नहीं खरीद रही थी वह और पीयूष से 2 दिन जल्दी मिमने की खातिर प्लेन से वापस जाने को तैयार हो गई. जो पल्लवी से मिलने व साधारण स्लीपर क्लास में आई थी. यानी पैसा है, लेकिन मनुष्य के लिए पैसा है, पैसे के लिए मनुष्य नहीं है.

जिस शानदार पलंग पर पल्लवी पैर पसार कर निश्चिंत सोती थी, आज उसी पलंग पर मानों वह अंगारों की जलन महसूस कर रही थी. वह यहां अकेली है और वहां प्रशांत के साथ… पैसे से हर सुख नहीं खरीदा जा सकता, कम से कम औरतों के बारे में तो यह बात लागू होती ही है.

उठ कर पल्लवी पता नहीं किस अनजाने आकर्षण में बंध कर पारुल के कमरे की तरफ गई. देखा पलंग के सिरहाने की तरफ रोशनी झिलमिला रही है. अपने पलंग पर औंधी पड़ कर पल्लवी सुबकने लगी. उस का गरूर टूट कर आंखों के रास्ते बहने लगा.

टूटा गरूर-भाग 2 : पल्लवी का गुमान कैसे और किस ने तोड़ दिया

‘‘अरे हां, जीजाजी क्या औफिस चले गए?’’ पारुल ने उत्साह से पूछा.

‘‘नहीं, वे तो काम से मुंबई गए हैं. वही से फिर बैंगलुरु और फिर हैदराबाद जाएंगे. व्यवसाय बढ़ गया है. महीने में 20 दिन तो वे बाहर ही रहते हैं,’’ पल्लवी ने अपने स्वर में भरसक गर्व का पुट भरते हुए कहा.

‘‘और तुम ने भी दोनों बच्चों को क्यों होस्टल में डाल दिया? बच्चे घर में होते हैं, तो रौनक रहती है,’’ पारुल ने एक कौर मुंह में डालते हुए कहा.

‘‘अरे, इन का स्कूल माना हुआ है, इन की इच्छा तो फौरेन भेजने की थी पर मैं ने कहा अभी बहुत छोटे हैं. हायर ऐजुकेशन के लिए भेज देना विदेश, अभी तो देहरादून ही ठीक है. यों भी जब पैसे की कोई कमी नहीं है तो बच्चों को क्यों न बैस्ट ऐजुकेशन दिलाई जाए. हां, जिन के पास पैसा न हो उन की मजबूरी है…’’ कहते हुए पल्लवी ने एक चुभती हुए गर्वीली दृष्टि पारुल पर डाली. लेकिन तब तक पारुल के मोबाइल पर बीप की आवाज आई और वह मैसेज पढ़ने में व्यस्त हो गई.

लिहाजा पल्लवी को चुप रह जाना पड़ा. फिर तो जब तक दोनों नाश्ता करती रहीं, पारुल मैसेज पढ़ती रही और जवाबी मैसेज भेजती रही. उस ने एक बार भी मुंह ऊपर नहीं उठाया. उलटे हाथ से लैटर टाइप करते हुए सीधे हाथ से एक कौर उठाती और मुंह में डाल लेती. क्या खा रही है, कैसा स्वाद है, मैसेज में मगन पारुल को कुछ पता नहीं चल रहा था.

पल्लवी मन ही मन खीज रही थी कि उस के इतने कीमती और ढेर सारे नाश्ते पर पारुल का ध्यान ही नहीं है.

पारुल के लगातार बेवजह हंसते रहने को पल्लवी उस की आंतरिक खुशी नहीं उस की दुख छिपाने की चेष्टा ही समझी. पल्लवी जैसी बुद्धिहीन और समझ ही क्या सकती थी. तभी तो यह सुन कर कि पारुल के यहां खाना बनाने को बाई या रसोइया नहीं, पल्लवी अवाक उसे देखती रही.

‘‘इस में इतना अचरज करने की क्या बात है दीदी? 2 ही तो लोग हैं. पीयूष को भी खाना बनाने का शौक है. हम दोनों मिल कर खाना बना लेते हैं और जरूरी बातचीत भी हो जाती है,’’ पारुल ने सहज रूप से उत्तर दिया.

अब तो पल्लवी के आश्चर्य की सीमा नहीं रही. पुरुष और किचन में? यह तो जैसे दूसरी दुनिया की बात है. उस ने न तो अपने पिताजी को कभी किचन में जाते देखा न कभी प्रशांत ने ही कभी वहां पैर रखा. पुरुष तो छोडि़ए, पल्लवी ने तो अपने घर की औरतों यानी मां या दादी को भी सिवा रसोइए को क्या बनेगा के निर्देश देने के और किसी काम से किचन में पैर रखते नहीं देखा.

‘‘पर तूने खाना बनाना कहां से सीखा?’’ पल्लवी ने प्रश्न किया.

‘‘पीयूष से ही सीखा दीदी. वे बहुत अच्छा खाना बनाते हैं,’’ पारुल ने उत्तर दिया.

रसोईघर की गरमी में पारुल खाना बनाती है, रोटियां बेलती है सोच कर ही पल्लवी को पहली बार बहन से सचमुच सहानुभूति हो आई.

‘‘असिस्टैंट प्रोफैसर की तनख्वाह इतनी भी कम नहीं होती कि एक रसोइया न रखा जा सके. इतना कंजूस भी क्यों है पीयूष?’’ पल्लवी विषाद भरे स्वर में बोली.

‘‘वे कंजूस नहीं हैं दीदी, उन्होंने तो बहुत कहा था कि रसोइया रख लो, लेकिन जिद कर के मैं ने ही मना किया. हाथपैर चलते रहते हैं तो शरीर पर बेकार चरबी नहीं चढ़ती. वरना बैठेबैठे खाते रहो तो मोटे हो कर सौ परेशानियों को निमंत्रण दो.’’

पारुल तो सहज बात बोल गई लेकिन पल्लवी को लगा पारुल उस पर व्यंग्य कर रही है. सचमुच कम उम्र में एक के बाद एक 2 बच्चे और उस पर तर माल खा कर बस सारा दिन आराम करना. घूमने के नाम पर गाडि़यों में घूमना, पार्टियों में जाना और मौल में शौपिंग करना. और करती ही क्या है पल्लवी. तभी तो जगहजगह थुलपुल मांस की परतें झांकने लगी हैं. शरीर बड़ी मुश्किल से कपड़ों में समाता है.

पहली बार पारुल के छरहरे कसे शरीर को देख कर ईर्ष्या का अनुभव किया पल्लवी ने. वह पारुल से मात्र 6 वर्ष बड़ी है,  लेकिन मांस चढ़ जाने के कारण 20 वर्ष बड़ी लग रही है. जबकि पारुल के चेहरे और शरीर पर आज भी 20-22 की उम्र वाली कमनीयता बरकरार है.

पल्लवी भी कपड़े बदल कर पलंग पर लेट गई. एक ही दिन हुआ है पारुल को आए. लेकिन सुबह से पीयूष के न जाने कितने फोन और मैसेज आ गए होंगे. अब भी शायद दोनों एकदूसरे को मैसेज ही कर रहे होंगे. 4 साल हो गए शादी को, लेकिन लग रहा है मानो महीना भर पहले ही ब्याह हुआ है. कितनी दीवानगी है एकदूसरे के लिए.

पहली बार पल्लवी के मन में एक गहरी टीस उठी. शादी के इतने बरसों में कभी याद नहीं किया काम के सिवा प्रशांत ने. उन के टूअर पर जाने पर यदि कभी अकेलेपन से ऊब कर पल्लवी ही बातचीत के उद्देश्य से फोन मिलाती तो प्रशांत झल्ला जाता कि मेरे पास गप्पें मारने के लिए फालतू समय नहीं है.

दिन में न सही, लेकिन रात में भी प्रशांत का कोई न कोई बहाना रहता कि पार्टी के साथ मीटिंग में हूं या डिनर पर काम की बातें हो रही हैं या फिर सो रहा हूं.

हार कर पल्लवी ने फोन करना बंद कर दिया. लेकिन आज पारुल और पीयूष को एकदूसरे के कौंटैक्ट में रहते देख कर पल्लवी के अंदर एक टीस सी उठी. इस बार तो 4 दिन हो गए प्रशांत को गए हुए. पहुंचने के फोन के बाद से कोई खबर नहीं है. देर तक छटपटाती रही पल्लवी. सुबह से पारुल के फोन को चैन नहीं है और पल्लवी… उस का फोन इतना खामोश है कि पता ही नहीं चलता कि फोन पास है या नहीं.

हाथ में पकड़े मोबाइल को देर तक घूरती रही पल्लवी और फिर प्रशांत को फोन लगाया. 1 2 3 … 10 बार लगातार फोन किया पल्लवी ने, लेकिन प्रशांत ने फोन नहीं उठाया. लगता है फोन साइलैंट मोड पर कर के सो गए हैं.

पारुल सो रही है या… सहज कुतूहल और ईर्ष्या के वशीभूत हो कर पल्लवी उठ कर पारुल के कमरे तक गई. दरवाजा बंद नहीं था. केवल परदे लगे थे. पल्लवी ने बहुत थोड़ा सा परदा सरका कर देखा. पलंग के सिरहाने वाले कोने पर एक मद्धिम रोशनी झिलमिला रही थी. उस रोशनी को देख कर पल्लवी के मन का अंधेरा घना हो गया.

आ कर चुपचाप पलंग पर लेट कर देर रात तक अपनेआप को तसल्ली देती रही. पल्लवी कि कल सुबह उठते ही उस की इतनी मिस कौल देख कर प्रशांत खुद ही फोन लगा लेंगे.

दूसरे दिन नाश्ता करते हुए पारुल ने टोक ही दिया, ‘‘कल से देख रही हूं, दीदी जीजाजी का एक बार भी फोन नहीं आया.’’

अब भुगतो केजरीवाल का मजाक उड़ाने की सजा

भक्तों ने पिछले साल केजरीवाल की खांसीजुकाम का खूब मखौल बनाया था. अब केजरीवाल के पास कलश तो है नहीं कि मार ?ाड़ा, मंतर फूंक श्राप दे दें. लेकिन अब पूरी दिल्ली खांस और कराह रही है तो लगता है कि एक बद्दुआ, जो उन्होंने दी ही नहीं, दिल्ली के लोगों के चिपक गई है.

ज ब राजनाथ सिंहजी ने राफेल के पहियों के नीचे नीबू रखे थे तब से मेरी टोनेटोटकों में आस्था बढ़ रही है. इस के पीछे एक व्यक्तिगत अनुभव या संक्षिप्त कहानी यह है कि अपनी जवानी के दिनों में मेरा दिल माया नाम की सहपाठिन पर आ गया था. लेकिन, वह राम को चाहती थी. राम और माया में फूट डालने के लिए मैं ने और मेरे चंद लंपट दोस्तों ने साम, दाम, दंड, भेद सब का सहारा लिया. फिर भी दोनों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. माया के चालचलन को ले कर मेरे गुट ने खूब दुष्प्रचार किया और एकाध बार अकेले में ले जा कर राम की खूब कुटाई भी की पर वे अपने लैलामजनूं छाप प्यार के रास्ते से हटने को तैयार नहीं हुए.
फिर ‘तीन पत्ती’ के एक विशेषज्ञ दोस्त की सलाह पर मैं तत्कालीन नामी तांत्रिक से मिला जो चुटकियों में लड़कियां वश में करवा देने के लिए मशहूर था. उस तांत्रिक ने 51 रुपए लिए और पानी की एक शीशी अभिमंत्रित कर दी कि इसे जैसे भी हो, माया को पिला दो, वह मीरा की तरह तुम्हारे भजन गाने लगेगी. पर माया को पानी पिलाऊं कैसे? यह वैसी ही समस्या थी जैसी 11 दिनों से महाराष्ट्र में देखने में आ रही है कि सरकार बने कैसे. उन दिनों में स्कूल में लंचबौक्स और पानी की बोतल ले जाने का रिवाज नहीं था. लड़केलड़कियां टोंटी वाले नल से मुंह लगा कर पानी गुटकते थे. अब मैं वह बोतल अगर टंकी में उड़ेल देता तो पूरी लड़कियों के मेरे वश में हो जाने का अंदेशा था जिस से अफरातफरी मचती और मेरा स्कूल का दरवाजा पार करना भी मुहाल हो जाता.

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कई दिनों तक वह शीशी बस्ते में डाले मैं माया के आगेपीछे डोलता रहा. लेकिन बात नहीं बनी तो एक दिन हिम्मत करते मैं ने उसे शीशी दे कर कहा. ‘तुम अगर मु?ा को न चाहो तो कोई बात नहीं, लेकिन यह पानी पी लो.’ मैं उस वक्त हैरान रह गया जब उस ने बिना किसी विरोध के शीशी का पानी अपने हलक में उड़ेल लिया और फिर मुसकरा कर बोली, ‘इसे ले जा कर उस तांत्रिक बाबा को वापस कर देना. तुम से पहले और 6 लड़के मु?ो यह पानी पिला चुके हैं. पर, मु?ो कुछ नहीं हुआ. मेरी तो रगरग में राम है. प्यार खुद अपनेआप में इतना बड़ा टोटका है कि इस के आगे ये फुटपाथिए जतन कर कहीं नहीं ठहरते.

उस दिन मैं बिना किसी त्यागतपस्या के और बिना भूखेप्यासे रहे स्कूल के नीम के ठूंठ के नीचे ही बुद्धत्व को प्राप्त हो गया और तंत्रमंत्र वगैरह से मेरा भरोसा, जो दरअसल में था ही नहीं, हमेशा के लिए उठ गया. लेकिन राजनाथ सिंहजी ने राफेल के पहियों के नीचे नीबू रखे, तो मेरी टोनेटोटकों में अनास्था करोड़ों भारतीयों की तरह डगमगाने लगी, जिसे जैसेतैसे मैं ने स्वरचित तर्कों और बचेखुचे आत्मविश्वास के दम पर संभाल लिया और पूर्ववत परिवार का पेट पालने के अपने कर्तव्य में लग गया जो नोटबंदी के बाद से और दुष्कर काम हो चला है.

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पिछले दिनों दिल्ली के प्रदूषण पर जो बवंडर मचा वह मेरी भी चिंता का विषय नहीं था. लेकिन उत्तर प्रदेश के एक मंत्रीजी का यह बयान पढ़ कर कि, यह यज्ञ से दूर हो सकता है, मेरे दिमाग में भी अंधविश्वास का कीड़ा फिर कुलबुलाने लगा. इस के बाद तो 2 केंद्रीय मंत्रियों ने अचूक नुस्खे सु?ाए. स्वास्थ मंत्री बोले कि गाजर खाओ तो दूसरे ने अपना संसदीय ज्ञान बघारा कि सुबह संगीत सुनो तो स्वस्थ रहोगे. यानी, दिल्ली की जहरीली हवा ब्रह्मा द्वारा निर्मित फेफड़ों पर बेअसर रहेगी.

इस पर भक्त लोग खामोश रहे. उन्होंने इन तीनों में से किसी का मजाक नहीं उड़ाया क्योंकि ये राम दल के सैनिक हैं. लेकिन जाने क्यों मु?ो लग रहा है कि इन्हीं भक्तों ने पिछले साल तक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सर्दीजुकामखांसी और मफलर तक का खूब मजाक उड़ाया था. केजरीवाल कोई दुर्वासा नहीं हैं, जो बातबात पर श्राप दें. लेकिन अब पूरी दिल्ली खांस और कराह रही है, तो लगता है एक बद्दुआ, जो उन्होंने दी ही नहीं, दिल्ली के लोगों को लग गई है. द्रौपदी ने दुर्योधन का मजाक उसे अंधे का बेटा कहते उड़ाया था, इस के बाद उस की जो दुर्दशा और महाभारत हुई, उसे सब जानते हैं.

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जमाना और दौर दुआओंबद्दुआओं का ही है, बाकी तो करने को किसी के पास कुछ बचा नहीं है. स्टोरी का मौरल यह है कि कभी किसी भले आदमी का मजाक महज इसलिए नहीं उड़ाना चाहिए कि वह पौराणिकवादी नहीं है. लेकिन, टोनेटोटके जरूर करते रहने चाहिए और इस के लिए अब कानून बनना चाहिए कि प्रदूषित शहरों के लोग कमाएंगेखाएंगे बाद में, पहले यज्ञहवन करेंगे और सुबह उठते ही गाजर खाते संगीत सुनेंगे और इस में भी सुंदर कांड को प्राथमिकता देंगे. वहीं, अगर दिल्ली के लोग वाकई प्रदूषण से छुटकारा बिना इन टोटकों के चाहते हैं तो उन्हें अरविंद केजरीवाल से माफी मांगनी चाहिए.

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यह बड़ा आध्यात्मिक टोटका है जिसे आजमा कर घंटों में दिल्ली प्रदूषण मुक्त हो सकती है. अगर इस व्यंग्य को आप 21 लोगों को फौरवर्ड करेंगे तो 2 दिनों में ही दिल्ली और आसपास के इलाकों में धूप चमकने लगेगी और यदि फौरवर्ड नहीं करेंगे तो फिर से खांसने और छींकने को मजबूर हो जाएंगे.

Winter Special : सर्दियों में बनाएं चॉकलेट केक

चॉकलेट केकका नाम सुनते ही सभी के मुंह में पानी आ जाता है. चाहे बच्चे हो या फिर बुढ़ें सभी को चॉकलेट खाना पसंद आता है. आइए जानते हैं घर पर कैसे बनाएं चॉकलेट केक घर पर . इन दिनों ज्यादातर लोग घर पर ही केक बनाना पसंद करते हैं. ऐसे में आपको भी अगर मन हो रहा है घर पर चॉकलेट केक बनाने का तो आइए बनाते हैं चॉकलेट केक.

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समाग्री

शक्कर

बिना मिल्क का दूध

मक्खन

कोको पाउडर

बेकिंग पाउडर

वेनिला एसेस

विधि

मैदा, कोको पाउडर और बेकिंग पाउडर को अच्छे से छान लें, इसके बाद आप इसमें एक कटोरा शक्कर और मक्खन मिला लें. अब इसे हैंड ब्लेंड में डालकर अच्छे से मिलाएं.अब इसे 15 से 20 मिनट इसे एक ही डायरेक्शन में फेटे.

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अब इसमें वेनिला एसेंस को डालें और कुछ देर के लिए फेटे, मक्खन और शक्कर को धीरा- धीरे करके डालें साथ ही इसे फेंटते रहें, अगर आपको पानी कम लग रहा है तो इसे अच्छे से मिलाएं.

प्रेशर कुकर में पानी डालें फिर उसमें केक टीन को रख दें और उसमें सारें पेस्ट को डाल दें अब इसे ढ़ककर 15 से 20 मिनट तक पकने दें.

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अबएक बार फिर से देख लीजिए अगर आपका केक पक गया है तो उसे निकालकर सर्व कर दें.

टूटा गरूर-भाग 1 : पल्लवी का गुमान कैसे और किस ने तोड़ दिया

पल्लवी ने कलाई पर बंधी घड़ी में समय देखा. सुबह के 9 बजे थे. ट्रेन आने में अभी 1 घंटा था. अगर वह 10 बजे भी स्टेशन के लिए निकली तब भी टे्रन के वक्त पर पहुंच जाएगी. स्टेशन 5-7 मिनट की दूरी पर ही तो था.

पल्लवी एक बार किचन गई. महाराज नाश्ते की लगभग सभी चीजें बना चुके थे. 10 बजे तक नाश्ता टेबल पर तैयार रखने का आदेश दे कर वह वापस ड्राइंगरूम में आ गई और सरसरी तौर पर सजावट की मुआयना करने लगी. ड्राइंगरूम की 1-1 चीज उस की धनाढ्यता का परिचय दे रही थी.

पारुल तो दंग रह जाएगी यह सब देख कर. पल्लवी की संपन्नता देख कर शायद उसे अपनी गलती का एहसास हो. पश्चात्ताप हो.

पारुल पल्लवी की छोटी बहन थी. आज वह पल्लवी के यहां 4-5 दिनों के लिए आ रही है. ऐसा नहीं है कि पारुल ने पल्लवी का घर नहीं देखा है. लेकिन वह यहां 5 वर्ष पहले आई थी. पिछले 5 वर्षों में तो पल्लवी के पति प्रशांत ने व्यवसाय में कई गुना प्रगति कर ली है और उन की गिनती शहर के सब से धनी लोगों में होने लगी है. 5 साल पहले जब पारुल यहां आई थी तो पल्लवी 5 हजार वर्गफुट की जगह में बने बंगले में रहती थी. लेकिन आज वह शहर के सब से पौश इलाके में अति धनाढ्य लोगों की कालोनी में 25 हजार वर्गफुट में बने एक हाईफाई बंगले में रहती है. अपनी संपन्नता के बारे में सोच कर पल्लवी की गरदन गर्व से तन गई.

पल्लवी का मायका भी बहुत संपन्न है. पल्लवी से 6 साल छोटी है पारुल. पढ़ने में पल्लवी का कभी मन नहीं लगा. वह सारा दिन बस अपने उच्चवर्गीय शौक पूरे करने में बिता देती थी. इसीलिए 20 वर्ष की होने से पहले ही उस के पिता ने प्रशांत के साथ उस का विवाह कर दिया.

प्रशांत से विवाह कर के पल्लवी बहुत खुश थी. रुपयापैसा, ऐशोआराम, बस और क्या चाहिए जीवन में. हर काम के लिए नौकर. पल्लवी जैसी सुखसुविधाएं चाहती थी वैसी उसे मिली थीं.

पिताजी पारुल का भी विवाह जल्द ही कर देना चाहते थे, लेकिन वह तो सब से अलग सांचे में ढली हुई थी. जब देखो तब किताबों में घुसी रहती. पढ़ाई के अलावा भी न जाने और कौनकौन सी किताबें पढ़ती रहती. उसे एक अलग ही तरह के लोग और परिवेश पसंद था. स्कूलकालेज में भी वह बस पढ़ाई में तेज और बुद्धिमान लड़कियों से ही दोस्ती करती थी. उसे रुपए की चकाचौंध में जरा भी रुचि नहीं थी. तभी एक से एक धनी व्यवसायी घरानों के रिश्ते ठुकराते हुए 4 साल पहले उस ने अचानक कालेज के एक असिस्टैंट प्रोफैसर से विवाह कर के सब को सकते में डाल दिया.

घर वालों को यह सहन न हुआ. तभी से मातापिता ने पारुल से रिश्ता तोड़ लिया था. लेकिन एक ही शहर में होने के बाद मातापिता आखिर कब तक बेटी से नाराज रहते. इधर 6 महीने से उन लोगों ने पारुल और पति पीयूष को घर बुलाना और उन के यहां आनाजाना शुरू कर दिया. तब पल्लवी ने भी पारुल से फोन पर बात करना और उसे अपने घर आने का आग्रह करना शुरू कर दिया.

ऐसा नहीं है कि पल्लवी को पारुल से बहुत लगाव है और वह बस स्नेहवश उस से मिलने को आतुर है, बल्कि पल्लवी तो अपनी संपन्नता के प्रदर्शन से पारुल को चकाचौंध कर के उसे यह एहसास दिलाना चाह रही थी कि देखो तुम ने मामूली आदमी से ब्याह कर के क्या कुछ खो दिया है जिंदगी में.

पल्लवी और उस के परिवार ने जीवन में हमेशा पैसे को महत्त्व दिया था. चाहे उस के पिता हों या पति, दोनों ही पैसे से ही आदमी को छोटाबड़ा समझते थे.

पौने 10 बज गए तो पल्लवी ने अपने विचारों को समेटा और ड्राइवर से गाड़ी निकालने को कहा. चमचमाती कार में बैठ कर वह स्टेशन पहुंची. समय पर ट्रेन आ गई.

स्लीपर क्लास से उतरती पारुल पर नजर पड़ते ही पल्लवी का जी कसैला हो उठा कि अगर संपन्न घर में शादी करती तो इस समय प्लेन से उतरती.

‘‘ओ दीदी कैसी हो? कितने साल हो गए तुम्हें देखे हुए,’’ पारुल ने लपक कर पल्लवी को गले लगा लिया और जोर से बांहों में भींच लिया.

क्षण भर को पल्लवी के मन में भी बहन से मिलने की ललक पैदा हुई पर तभी अपनी प्योर सिल्क की साड़ी पर उस का ध्यान चला गया कि उफ, गंदे कपड़ों में ही छू लिया पारुल ने. पता नहीं ट्रेन में कैसेकैसे लोग होंगे. अब तो घर जा कर तुरंत इसे बदल कर ड्राईक्लीन के लिए देना होगा.

घर पहुंच कर पल्लवी ने पारुल को बैठने भी नहीं दिया, सीधे पहले नहाने भेज दिया. ट्रेन के सफर के कारण पारुल के शरीर से गंध सी आ रही थी. पल्लवी स्वयं भी कपड़े बदलने चली गई.

डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगवा कर पल्लवी ने पारुल को आवाज लगाई. मोबाइल पर बात करते हुए पारुल आ कर कुरसी पर बैठ गई. बात खत्म कर के उस ने मुसकरा कर पल्लवी को देखा.

‘‘बाप रे दीदी… यह इतना सारा क्याक्या बनवा दिया है तुम ने,’’ पारुल आश्चर्य से नाश्ते की ढेर सारी चीजों को देख कर बोली.

‘‘कुछ भी तो नहीं. जब तक यहां है अच्छी तरह खापी ले… वहां तो पता नहीं…’’ पल्लवी ने अपनेआप को एकदम से रोक लिया वरना वह कहना चाह रही थी कि एक मामूली सी तनख्वाह में वह दालरोटी से अधिक क्या खा पाती होगी भला. पर यह कहने से अपनेआप को रोक नहीं पाई कि यहां तो रोज ही यह बनता है… तेरे जीजाजी तो ड्राईफ्रूट हलवे के सिवा और कोई नाश्ता ही नहीं करते.

‘रात अकेली है’के लिए नवाजुद्दीन सिद्दीकी को मिला सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार!

14 वर्ष के लंबे संघर्ष के बाद नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने सफलता की जो दिशा पकड़ी थी,वह निरंतर आगे ही बढ़ी जा रही है.नवाजुद्दीन सिद्दिकी निरंतर या यूं कहें फिल्म दर फिल्म अभिनय के नए आयाम को छूते जा रहे हैं.उनके उत्कृष्ट अभिनय के चलते नवाजुद्दी सिद्दिकी को अब तक लगभग दो दर्जन राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है.

2020 में जब कोरोना महामारी के चलते सभी परेशान रहे और फिल्म उद्योग भी लगभग सात माह तक पूर्णरूपेण बंद रहा,तब भी नवाजुद्दीन सिद्दिकी चर्चा में बेन रहे.ओटीटी प्लेटफार्म पर ‘सीरियस मैन’,‘रात अकेली है’ने धमाल मचाया.इतना ही नहीं वर्ष की समाप्ति से पहले नवाजुद्दीन सिद्दकी को फिल्म ‘रात अकेली है’ की शानदार भूमिका और उल्लेखनीय प्रदर्शन के लिए‘सर्वश्रेष्ठ अभिनेता‘ के खिताब से सम्मानित किया गया.

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जी हाॅ!अपने कैरियर में एक नया अचीवमेंट जोड़ते हुए नवाजुद्दीन ने फिल्म‘रात अकेली है’के अपने किरदार जटिल यादव की अपनी भूमिका के लिए प्रतिष्ठित ‘फिल्मफेअर ’अवार्ड जीता.फिल्मफेअर ने इसी वर्ष से इस अवार्ड की षुरूआत की है.यह फिल्म इस वर्ष 31 जुलाई को ओटीटी प्लेटफार्म ‘नेटफ्लिक्स’पर प्रदर्शित हुई.‘रात अकेली है’ में उनका किरदार निश्चित रूप से इस वर्ष में सबसे प्रमुख था.इस फिल्म में नवाजुद्दीन की भूमिका ने दर्शकों और आलोचकों से बहुत प्यार प्राप्त किया, जो स्पष्ट रूप से उनके त्रुटिहीन प्रदर्शन को उजागर करता है.

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एक कलाकार के रूप में उन्होंने वेब सीरीज के साथ-साथ फिल्मों में अविश्वसनीय प्रदर्शनों के साथ ओटीटी प्लेटफार्म पर मजबूती से अपनी जगह बनाई है.उन्होंने कई प्रशंसाएं जीती हैं और यह विशेष जीत महत्वपूर्ण है,क्योंकि 2020 समाप्ति के कगार पर है.इससे पहले उन्हें ‘सेक्रेड गेम्स’और ‘सीरियस मेन’ में उनके शानदार प्रदर्शन के लिए बहुत प्रशंसा मिली थी.वह हमेशा एक ऐसे अभिनेता रहे हैं,जो एक चरित्र को बड़ी सहजता आत्मसात कर लेते हैं.यही गुण उन्हें एक बहुमुखी कलाकार बनने और हर फिल्म के साथ अपने शिल्प को बढ़ाने में मदद करता है.

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फिलहाल नवाजुद्दीन सिद्दीकी को ‘बोले चूड़ियां’,‘संगीन’और ‘जोगीरा सारा रा रा’के प्रदर्षन का बेसब्री से इंतजार है.

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