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मैं एक लड़की से प्यार करता हूं ,जब मैंने शादी का प्रस्ताव रखा तो उस ने मेरा मजाक बनाया, क्या करूं?

सवाल
मैं एक आईटी कंपनी में जौब करता हूं और मेरी सैलरी अच्छीखासी है. वहां पास की एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाली 33 वर्षीया युवती से मेरा अफेयर हो गया. वह बहुत ही सुंदर है, मैं उस की सुंदरता का दीवाना हो गया हूं.

वह आएदिन मुझ से गिफ्ट्स की डिमांड करती थी जिसे मैं खुशीखुशी पूरा कर देता था लेकिन जब मैं ने उस के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो उस ने मेरा यह कह कर मजाक बनाया कि तुझ गंजे से कौन शादी करेगा. यह सुन मुझे बहुत दुख हुआ लेकिन मैं उसे चाह कर भी नहीं भूल पा रहा हूं?

ये भी पढ़ें- मैं इस रिश्ते से खुश नहीं हूं, क्या मेरी जिंदगी ऐसी ही चलेगी कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूं?

जवाब
जो प्यार किसी की सीरत से नहीं बल्कि सूरत देख कर किया जाता है वह प्यार नहीं बल्कि सिर्फ उस से मतलब साधने के लिए ही किया जाता है और आप के साथ भी ऐसा ही हुआ है. आप का पैसा देख कर और यह जानकर कि आप उस से बेइंतहा प्यार करते हैं इसी का उस ने फायदा उठाया है और आप से महंगेमहंगे गिफ्ट्स ऐंठे.

जब शुरुआत में ही गिफ्ट्स मांगने का प्रचलन बढ़ा था तभी आप को सख्ती बरतनी चाहिए थी. आप की ढील का ही नतीजा है कि उस की डिमांड बढ़ी और अब जब उसे लगने लगा है कि आप रिलेशन के प्रति सीरियस हैं तो वह आप को गंजा कह कर बेइज्जत कर रही है. ऐसे में आप इस समय को बुरा वक्त समझ कर भूल जाएं और उस से यह कहना भी न भूलें कि रिश्ता दिल से निभाया जाता है न कि चेहरा देख कर.

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शादी से पहले जरूर करवा लें ये 8 टैस्ट

कई फिल्मों में शादी के लिए कुंडली मिलान बहुत जरूरी बताया जाता है और कुंडली न मिलने पर पक्का रिश्ता भी टूट जाता है, लेकिन अधिकतर देखा गया है कि कुंडली मिला कर की गई शादियों में भी तलाक की दर बहुत अधिक है, इसलिए अब लोगों की सोच बदलने लगी है और उन्हें लगता है कि शादी के लिए कुंडली से ज्यादा जरूरी है कि दोनों एकदूसरे के लायक हों और शारीरिक रूप से फिट हों ताकि शादी के बाद किसी तरह की कोईर् परेशानी न आए.

शादी से पहले युवकयुवती को एकदूसरे के बारे में सबकुछ पता हो तो आगे चल कर सिचुएशन हैंडिल करने में काफी आसानी रहती है और दोनों एकदूसरे को उस की कमियों के साथ स्वीकारने की हिम्मत रखते हैं तो ऐसा रिश्ता काफी मजबूत बनता है. इसलिए दूल्हादुलहन शादी से पहले कई तरह के मैडिकल टैस्ट कराने से भी नहीं हिचकिचाते. आइए जानें, ये मैडिकल टैस्ट कौन से हैं और कराने क्यों जरूरी हैं :

एचआईवी टैस्ट

यदि युवक या युवती में से किसी एक को भी एचआईवी संक्रमण हो तो दूसरे की जिंदगी पूरी तरह से बरबाद हो जाती है. इसलिए शादी से पहले यह टैस्ट करवाना बहुत जरूरी है.  इस में आप की सजगता और समझदारी है.

उम्र का परीक्षण

कई बार शादी करने में काफी देर हो जाती है और उम्र अधिक होने के कारण युवतियों में अंडाणु बनने कम हो जाते हैं तथा बच्चे होने में परेशानी आ सकती है. इसलिए यदि बढ़ती उम्र में शादी कर रहे हैं तो टैस्ट जरूर कराएं.

प्रजनन क्षमता की जांच जरूरी

जिन कपल्स को शादी के बाद बच्चे पैदा करने में समस्या आती है, उन्हें प्रजनन क्षमता का टैस्ट जरूर कराना चाहिए ताकि पता चल सके कि कमी युवक में है या युवती में. वैसे तो यह टैस्ट शादी से पहले ही होना चाहिए, जिस से पता चल सके कि वे दोनों संतान पैदा करने योग्य हैं भी या नहीं.

ओवरी टैस्ट

इस टैस्ट को युवतियां कराती हैं ताकि पता चल सके कि उन्हें मां बनने में कोई मुश्किल तो नहीं है. कई युवतियां इस टैस्ट को कराने में हिचकिचाती हैं कि यदि कोईर् कमी पाई गई तो उन का रिश्ता होना मुश्किल हो जाएगा, जबकि ऐसा नहीं है. आज तो मैडिकल साइंस में हर चीज का इलाज है. अच्छा तो यह है कि समय रहते आप को प्रौब्लम के बारे में पता चल जाएगा. यदि टैस्ट सही आया तो आप को वैवाहिक जीवन में कोई तकलीफ नहीं होगी.

सीमन टैस्ट

इस टैस्ट में युवकों के वीर्य की जांच होती है कि वह बच्चा पैदा करने के लिए पूरी तरह से सक्षम है या नहीं और अगर कोई प्रौब्लम है तो उस का इलाज करवा कर पूरी तरह स्वस्थ हुआ जा सकता है. यह टैस्ट इसलिए करवाया जाता है ताकि पहले ही परेशानी के बारे में पता चल जाए और उसी के हिसाब से इलाज करवा कर बंदा शादी के लिए पूरी तरह से परफैक्ट हो जाए.

यौन परीक्षण

कुछ बीमारियां संक्रमित होती हैं, जो शारीरिक संपर्क के दौरान बढ़ती हैं. इन बीमारियों को सैक्सुअली ट्रांसमिटेड बीमारियां कहा जाता है और ये संभोग के बाद पार्टनर को भी बड़ी आसानी से लग जाती हैं. इसलिए ऐसी किसी भी बीमारी से बचने के लिए शादी से पहले ही यह जांच करवा लें ताकि भविष्य में किसी गंभीर बीमारी से पार्टनर और आप दोनों ही बच सकें.

ब्लड टैस्ट

ब्लड टैस्ट कराने से पता चल जाता है कि कहीं ब्लड में कोई ऐसी प्रौब्लम तो नहीं है, जिस का सीधा असर होने वाले बच्चे पर पड़ेगा. हीमोफीलिया या थैलेसीमिया ऐसे खतरनाक रोगों में से एक हैं जिन में बच्चा पैदा होते ही मर जाता है. इस में दोनों के ब्लड की जांच कराना आवश्यक है जिस से आर एच फैक्टर की सकारात्मकता व नकारात्मकता का पता चल सके. यह टैस्ट शादी से पहले कराना अतिआवश्यक है.

जैनेटिक टैस्ट

इस तरह के टैस्ट को परिवार की मैडिकल हिस्ट्री भी कहा जाता है. इस से जीन के विषय में पता चल जाता है कि आप को जैनेटिक डिजीज है भी या नहीं. इस टैस्ट से आनुवंशिक बीमारियों के बारे में भी पता चल जाता है जो पार्टनर को कभी भी हो सकती हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

लोबिया की करी ऐसे बनाएं

लोबिया को सेहत के लिए हमेशा से फायदेमंद बताया गया है. लोबिया खाने से आप  खुद को कई तरह की खतरनाक बीमारियों से दूर रखते हैं. ता आइए आपको बताते है लोबिया से छोले बनाने कि विधि

समाग्री

लबिया

नमक

बड़ी इलायची

प्याज

टमाटर

अदरक

हरी मिर्च

घी

धनिया पाउडर

लाल मिर्च

गरम मसाला

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विधि

सबसे पहले लोबिया को बिनकर धो ले और रातभर पानी में भिंगोकर रख दें. अब अगले दिन लोबिया को कुकर में डालकर एक सीटी मारवा लें. लोबिया के साथ कुकर में डालकर उबालें. लोबिया एक सिटी में आराम से गल जाता है.

प्याज और अदरक का हिस्सा निकालकर धूल लें साथ ही हरी मिर्च का डंटल निकालकर पिस लें. टमाटर को काट कर चार टुकड़े में पीस लें.

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एक कड़ाही में तेल घी गर्म करें उसमें जीरा डालें साथ ही उसमें हरी मिर्च भी डालकर अच्छे से लाल होने तक भूनें. अब इसमें गर्म मसाला , धनिया पाउडर , लाल मिर्च पाउडर बाकी सभी पाउडरों को मिक्स करके भूनें.

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सभी मसाले को अच्छे से मिलाकर भूनने के बाद से उसमें लोबिया को डालें, लोबिया को डालने के बाद अच्छे से मिक्स करके कुछ दर तक उसे भूनें. फिक पानी डालकर उसे उबाल अच्छे से कुछ देर तक चलाएंच जब पानी कुछ जल जा तो गैस को ऑफ करके उसे धनिया पत्ता के साथ सर्व करें.

 

गरम हवा के ठंडे झोंके

गरम हवा के ठंडे झोंके -भाग 3: किस मुहाने पर थी अशरफ की जिंदगी

एक खूनखराबा हिंदुस्तान के बंटवारे के वक्त हुआ था जिस की कड़वाहट आज तक नासूर बन दोनों कौमों के दिलों में पल रही है. क्या अशरफ फिर उस इतिहास को दोहराने का सबब बनेगा? नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूंगा. कभी भी ऐसा नहीं होने दूंगा.

माणिकचंद ने सगीर के सामने दोनों हाथ जोड़ दिए, ‘‘मुझे एक बार अशरफ से मिलने दो, जिंदगीभर तुम्हारा एहसानमंद रहूंगा.’’

पूरी रात करवट बदलते कटी. सुबहसुबह सगीर के गांव जाने के लिए माणिकचंद स्कूटर निकालने लगे. तभी एक औटोरिक्शा गेट के सामने रुका. 80 वर्षीय उन के दारजी के साथ चाईजी उतरती दिखाई दीं. माणिकचंद ने पैर छू कर उन का सामान उठा लिया.

नाश्ते के बाद उन्हें बाहर जाते देख कर चाईजी ने आवाज लगाई, ‘‘पुत्तर, हम सिर्फ 2 दिनों के लिए ही आए हैं. अमृतसर की प्रौपर्टी के बंटवारे के लिए मशवरा करना है.’’ न चाहते हुए भी माणिकचंद को उन्हें अशरफ के बारे में बतलाना पड़ा. दारजी का सवाल उन की आंखों में टंग गया, ‘‘तो क्या तुम मुसलमान लड़के को अपने घर में पनाह देना चाहते हो?’’ माणिकचंद की चुप्पी उन की मौनस्वीकृति थी.

‘‘यह जानते हुए भी कि दंगे की वजह से यहां कर्फ्यू लगा. कितने हिंदूमुसलमानों को जान से हाथ धोना पड़ा. पूरा शहर मजहबी लड़ाई में बारूदी पहाड़ के मुहाने पर बैठा सियासी पलीते का इंतजार कर रहा है. ऐसे में दोनों को अपने घर में रखना सुलगती लपटों में जानबूझ कर अपने हाथ होम करना होगा. लड़की के मातापिता ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी होगी. पुलिस सूंघते हुए तुम्हारे घर आ पहुंचेगी. अशरफ के बहनोई ने उन्हें घर में घुसने नहीं दिया, तो तुम्हें क्या जरूरत है ओखली में सिर देने की. दफा करो मामला.’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं दारजी? भूल गए बंटवारे के वक्त आप ने अपने पड़ोसी मेराज साहब के परिवार को 2 महीने तक पड़ोसी हिंदुओं की नजरों से छिपा कर रखा था. तब आप ने ही तो दादाजी को दलील दी थी कि खूनी रिश्तों से ज्यादा ऊंचा होता है इंसानियत का रिश्ता. मैं तो सिर्फ उस रिश्ते की कमजोर होती जड़ों में खादपानी डालने का काम कर रहा हूं. मुझे ताज्जुब ही नहीं, सख्त अफसोस हो रहा है कि आप की सोच इतनी तंग और कुंठित कैसे हो गई है?’’

‘‘नहीं, मेरी सोच नहीं बदली. लेकिन पिछले 65 सालों के हादसों ने नजरिया बदलने के लिए मजबूर कर दिया है.’’

‘‘वह क्यों दारजी?’’ माणिकचंद ने जानना चाहा.

‘‘पुत्तर, उस वक्त के मुसलमान नेक, वफादार और ईमान वाले थे. हिंदुओं को भाई समझते थे. उन के दिलों में वतन के लिए मोहब्बत और कुरबानी का जज्बा था. तुम्हें दादाजी ने बताया नहीं कि मेराज साहब का परिवार किसी भी कीमत पर हिंदुस्तान की मिट्टी से जुदा नहीं होना चाहता था. लेकिन सियासी करार ने उन्हें पराई मिट्टी में रहने के लिए मजबूर कर दिया. आज हिंदुस्तान के गुमराह मुसलमान सियासी हुक्मरानों की तुरुप चाल में फंस कर मुल्क के साथ गद्दारी करने से गुरेज नहीं करते. उन की हरकतों की वजह से आज उन्हें शक की नजर से देखा जाता है. लोगों का भरोसा उठ गया है इस कौम पर से.’’

‘‘नहीं दारजी, आप का सच, आधा सच है. पूरा सच यह है कि मुसलमान बरसों से अपने मजहबी रहनुमाओं द्वारा गुमराह किया जा रहा है. तालीम की कमी के चलते यह कौम तरक्कीपसंद समाज से काफी पिछड़ गई है. बड़े परिवार, सीमित आय ने उन की खुशहाली पर ग्रहण लगा दिया है. बदहाली इतनी है कि मुसलमान आज कुआं खोदता है तो पानी पीता है. ऐसे में भटके मुसलमान पैसों के लालच में जिहाद के नाम पर बाहरी लोगों की कठपुतलियां बन जाते हैं. सरकारी सहूलियतों के नाम पर उन्हें सिर्फ छला जाता है. राजनीतिक दल कुरसी के लिए हिंदूमुसलिम दंगों को हवा देते हैं.

‘‘लेकिन पढ़ालिखा मुसलमान आज भी अपनी वतनपरस्ती की मिसाल कायम कर रहा है. चंद लोगों की नासमझी की वजह से हम पूरी कौम को कठघरे में खड़ा नहीं कर सकते.’’

माणिकचंद की अर्थपूर्ण व तर्कपूर्ण बातों ने अपर्णा का हौसला बढ़ाया. उस ने पहली बार ससुर के सामने मुंह खोला, ‘‘पापाजी, याद है जब आप अल्सर के दर्द से छटपटा रहे थे तो इसी मुसलमान लड़के ने आप को गोद में उठा कर अस्पताल की तीसरी मंजिल पर पहुंचाया था. अस्पताल की बिजली गुल हो गई थी. अशरफ ने एक महीने तक आप की सेवा में दिनरात एक कर दिए थे. तब आप को उस की वफादारी पर शक क्यों नहीं हुआ. आप का उस से कोई खूनी रिश्ता नहीं था, आप उस के किसी काम नहीं आ सकते थे. फिर भी उस ने क्यों तीमारदारी की. उस ने ये सब इसलिए किया क्योंकि वह एक अच्छा इंसान है.’’

कड़वी सचाई ने दारजी को कुछ लमहों के लिए तो चुप करा दिया, लेकिन सांप्रदायिकता का काला सांप कुंडली मार कर बैठा था उन के जेहन में, बोल पड़े, ‘‘एक नौजवान भावुकता में बह कर किसी बुजुर्ग की सेवा कर देता है तो क्या उसे पूरी कौम का प्रतिनिधि समझ लिया जाए? मुसलमान हमारे साथ रहते जरूर हैं लेकिन अपने रहनसहन, खानपान और संस्कृति के कारण वे हम से बिलकुल भिन्न हैं. इसलिए इन के साथ मेलजोल तो रखा जा सकता है लेकिन इन के साथ रहा नहीं जा सकता है.’’

‘‘दारजी, यों तो 2 भाई भी इकट्ठे नहीं रह सकते, लेकिन जहां दिल मिलते हों वहां हर अलगाव में भी एकता दिखाई पड़ती है,’’ माणिकचंद हार मानने के मूड में नहीं थे.

‘‘ये सब कोरी, किताबी बातें हैं. तुम नहीं जानते, आज दोनों कौमों के बीच कितनी नफरत की आग धधक रही है. ऐसे में तुम्हारा अशरफ की मदद करना तुम्हारे परिवार पर भारी पड़ जाएगा,’’ कह कर दारजी हांफने लगे थे.

‘‘दारजी, अशरफ इस वक्त बिलकुल अकेला पड़ गया है. वह ड्यूटी पर जा नहीं रहा है, तो पैसों से भी मजबूर हो गया होगा. गांव में रह रहा है, साथ में पत्नी है. पता नहीं किनकिन परेशानियों को झेल रहा होगा. उस को हमारी मदद की जरूरत है,’’ माणिकचंद की पत्नी अपर्णा नम्रता से बोली.

‘‘जो जी में आए करो बहू. लेकिन कहे देती हूं, अगर दंगाइयों ने हमला बोल दिया तो अशरफ सीना तान कर तुम लोगों को बचाने के बजाय पीछे के दरवाजे से खिसक जाएगा. जो कौम अपने मुल्क की नहीं हुई, वह तुम्हारी क्या होगी,’’ इस बार चाई जी ने सीधे दिल पर चोट की.

‘‘बस, बस. आप लोग मेरे और अशरफ के बीच पनपी मोहब्बत व वफादारी की मजबूत जड़ों को हिलाने की कोशिश न कीजिए. मुझे मानवता से भरे इंसान के खिलाफ बरगलाएं नहीं,’’ माणिकचंद ने साफ कहा.

‘‘मैं तुम्हें आने वाले तूफान से आगाह कर रहा हूं,’’ दारजी भी हार मानने को तैयार नहीं थे.

‘‘दारजी, मैं अशरफ जैसे दोस्त के लिए समाजी, सियासी, मजहबी हर अत्याचार सहने के लिए तैयार हूं. मैं जातीयता की संकरी दीवार को तोड़ कर हिंदूमुसलमानों के बीच आपसी सौहार्द का एक मजबूत पुल बनाना चाहता हूं.’’ माणिकचंद ने एक झटके से किक मारी और स्कूटर सगीर के गांव की तरफ मुड़ गया.

दारजी सफेद पलकों से बेटे की पीठ पर नजरें जमाए उस के हौसले और हिम्मत की दाद देते हुए 65 साल पहले की टीस की चुभन को शिद्दत से महसूस कर तड़प गए. काश, मेराज साहब की बेटी शम्सून से किए गए साथ जीनेमरने के वादे को पूरा करने के लिए वे भी बेटे की तरह अड़ कर खड़े हो जाते तो मेराज परिवार को पाकिस्तान जाने के लिए दुनिया की कोई भी ताकत मजबूर नहीं कर सकती थी. उन की हवेली में आदमियों के स्वर गूंज उठते, न कि धर्म के अंधविश्वासियों के नारे. मुल्क के बंटवारे की गरम हवा मोहब्बत के प्यारे मुकाम को छू कर ठंडी हवा के झोंकों में तबदील हो जाती.

 

गरम हवा के ठंडे झोंके -भाग 2: किस मुहाने पर थी अशरफ की जिंदगी

‘‘मेरे घर में तो वह अब कदम भी नहीं रख सकता.’’

‘‘क्यों, ऐसा क्या कर दिया उस ने? क्या गुनाह हो गया उस से?’’

‘‘गुनाह की तो सजा होती है माणिकचंद, लेकिन उस की हरकत ने मेरे पूरे खानदान को समाज से बाहर कर देने की वजह बना दी है.’’

‘‘आखिर क्या किया है अशरफ ने, साफसाफ बताइए न मंजूर साहब,’’ माणिकचंद चिंतित हो गए.

‘‘आप के अशरफ ने शादी कर ली है.’’

‘‘दैट्स गुड.’’ बांछें खिल गईं माणिकचंद परिवार की. ‘‘कब? कहां? किस से?’’ माणिकचंद ने जानना चाहा.

‘‘उस नालायक ने एक महीने पहले नासिक में गैरकौम की लड़की से शादी कर के हमारे मुंह पर कालिख पोत दी है.’’ मंजूर के ये चुभते शब्द सुन कर अशरफ की बहन के चेहरे पर उदासी के बादल घिर गए.

‘‘लड़की किस धर्म की है?’’ माणिकचंद बोले.

मंजूर ने बीवी की तरफ देखा, ‘बतलाएं कि नहीं? लेकिन बतलाना तो पड़ेगा ही.’ बीवी की आंखों में अपील थी. ‘‘लड़की हिंदू है,’’ मंजूर के शब्द धमाके की तरह गूंजे.

कड़ाके की सर्दी में भी माणिकचंद के माथे पर पसीना चुहचुहा गया. बड़ी मुश्किल से खुद को संभाल कर होंठों पर जबान फेर कर बोले, ‘‘कहां की है लड़की?’’

‘‘नासिक की है. निकाह कर के घर पर ले कर आया तो इन्होंने उसे घर में घुसने नहीं दिया क्योंकि इन की भांजी के साथ अशरफ की बात पक्की हो गई थी. इन्होंने कह दिया कि हिंदूमुसलिम फसाद की वजह से पहले ही शहर की हवा गरम है. तुम हिंदू लड़की को ले कर हमारे घर में रहोगे, तो हिंदू हमारा घर फूंक देंगे,’’ कहती हुई अशरफ की बहन हिचकियां ले कर रो पड़ी.

‘‘हांहां, मैं ने उसे घर से निकाल दिया. मेरी 2-2 जवान बेटियां हैं. कब तक हिंदू लड़की को छिपा कर रखते. मुसलमान हमें जाति से बाहर कर देंगे और हिंदू हमें जिंदा जला देंगे,’’ मंजूर की दहाड़ सुन कर माणिकचंद के घर की दीवारें भी दहल गईं.

‘‘बड़ी आस ले कर सहारा मांगने आया था मेरा भाई, लेकिन इन्होंने उसे घर में घुसने ही नहीं दिया,’’ अशरफ की बहन की दर्दीली आवाज ने माणिकचंद की रगों का खून जमा दिया. अपनी मुखालफत सुन कर मंजूर ने बीवी को कच्चा खा जाने वाली नजरों से घूरा.

माणिकचंद के घर में मौत का सा सन्नाटा पसर गया. अपर्णा गहरी चिंता में बैठी, फर्श पर बिछे कालीन को एकटक देख रही थी.

‘‘अपनी बीवी को ले कर कहां गया होगा अशरफ,’’ होंठों में ही बुदबुदाए माणिकचंद.

‘‘वो मर जाए, हमारी बला से. हमें उस से कोई मतलब नहीं है. उस नालायक ने न तो हमारी इज्जत का खयाल रखा, न ही मुझे अपनी बहन के सामने मुंह दिखाने के काबिल छोड़ा. अगर मुझे अपने बच्चों की फिक्र न होती तो इन भाईबहनों को जान से मार डालता. इस दुष्ट खानदान ने पूरी कौम के लिए हिंदुओं के दिलों में नफरत की आग फैला दी है,’’ पत्नी की ओर देख कर मंजूर फिर भड़के. माणिकचंद खामोश थे.

‘‘मैं ने क्या किया है भला? मुझे तो पता भी नहीं था,’’ अशरफ की बहन घिघियाई.

‘‘खामोश रहो. ज्यादा नाटक करने की जरूरत नहीं. माणिकचंद, यह औरत इस साजिश में शामिल है. ये मेरी बहन से चिढ़ती है, इसलिए अपने भाई की शादी गुपचुप तरीके से होने दी. ये अच्छी तरह जानती है कि इस उम्र में मैं इसे तलाक नहीं दे सकता.’’ मंजूर की अपनी पत्नी को दी जा रही यह धमकी सुन कर माणिकचंद सन्न रह गए.

इतना बेदर्द फैसला. क्या खूनी रिश्ते इतने निष्ठुर होते हैं कि कुटुंब के किसी व्यक्ति के निजी फैसले से नाखुश हो कर उस को दंडित करने के लिए उस के पूरे परिवार से ही रिश्ता तोड़ दें. क्या परिवार के आश्रित लोगों के जज्बात और एहसास की कोई कीमत नहीं. क्या 21वीं सदी में भी नौजवान पीढ़ी अपने बुजुर्गों की उंगली पकड़ कर ही चलती रहेगी. मजहब और कौम के नाम पर वह अपनी मोहब्बतों को कुरबान करती रहेगी. क्या उसे अपने तरीके से जीने और खुशियां हासिल करने का हक नहीं है.

कर्फ्यू लगने का वक्त हो रहा था, इसलिए मंजूर ने स्कूटर स्टार्ट कर दिया, अशरफ की बहन चुपचाप सिर झुकाए पीछे की सीट पर बैठ गई.

वह रात माणिकचंद के लिए कत्ल की रात थी. अपनी तमन्नाओं को खुशियों में तबदील करने की कोशिश अशरफ को घर से निकल कर फुटपाथ पर खड़ा कर देगी, इस तूफान का इल्म नहीं था उन्हें. न जाने कहां, किस हाल में होगा अशरफ? मेरे घर क्यों नहीं आया, क्या मुझ पर एतबार नहीं था उसे? हजारों सवाल दिलोदिमाग में बवंडर उठाते रहे.

पूरा शहर दंगे की आग में धूधू कर रहा था, उस पर मुसलमान लड़के का हिंदू लड़की से शादी करना, जले में नमक छिड़कने की तरह होगा. सियासी पार्टियां मजहब के तवे पर अपने स्वार्थ की रोटियां सेकेंगी और चूल्हे की लकडि़यों की तरह धूधू कर जलेंगे बेकुसूर लोगों के मासूम ख्वाब. कट्टरपंथी और फिरकापरस्त चिंगारी को हवा दे कर अशरफ का चमन खिलने से पहले ही जला कर खाक कर देंगे. हमेशा हंसते रहने वाला अशरफ जिंदगी की अंधेरी खोहों में गुमनामी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हो जाएगा.

माणिकचंद जिंदगी की कंटीली झाडि़यों से गुजरे हुए, जख्म खाए, तजरबेकार व्यक्ति थे. नाजुक दौर के इस संवेदशील मसले पर सोचते हुए पूरी रात कट गई.

यह नौजवान पीढ़ी तो भावनाओं को अहमियत देती है. इस पीढ़ी के युवा इंसान की कद्र और पहचान उस की जबान, कौम, मजहब से नहीं, बल्कि उस के किरदार से करते हैं. ये तो दिल के सौदागर हैं. जिस से दिल मिल जाए, उस के लिए जान निछावर. लेकिन बुजुर्गों की तंग और अडि़यल सोच कभी खानदान की इज्जत के नाम पर तो कभी भाईबहनों के भविष्य के नाम पर उन को मानसिक चोटें देने से बाज नहीं आती.

कर्फ्यू 3 दिनों बाद खुला. माणिकचंद ने अशरफ के औफिस जा कर पूछा, लेकिन वहां से भी कोई सूचना नहीं मिली. कहीं अशरफ अपनी पत्नी के साथ वापस नासिक तो नहीं चला गया, अपनों के दिल से निकाले गए लोगों के पास भटकने के सिवा और क्या रास्ता होता है.

माणिकचंद और अपर्णा चिंता व बेचैनी के अंधेरे में भटक रहे थे कि रोशनी की किरण की तरह अशरफ का एक पुराना दोस्त सगीर, जो शहर से 50 किलोमीटर दूर रहता है, बाजार में मिल गया. पहले तो उस ने इनकार किया, लेकिन माणिकचंद ने अपर्णा के बीमार हो जाने की वजह बताई तो वह कुछ पसीजा, ‘‘अशरफ अपनी पत्नी के साथ हमारा मेहमान है.’’ यह सुन कर वे खुश हुए लेकिन उन की खुशी तब काफूर हो गई जब उस ने यह बताया कि वह अपने मातापिता, बीवीबच्चों के साथ 2 कमरों के कच्चे मकान में रहता है. जहां टाटपट्टी के घेरे में ईंटों के फर्श पर बैठ कर नहाया जाता है. और सुबह मुंहअंधेरे टौयलेट के लिए खेतों में जाया जाता है. हिंदुओं की उस बस्ती में 8-10 घर मुसलमानों के हैं. अगर किसी को कानोंकान भी खबर हो जाती कि मुसलमानों ने हिंदू लड़की को छिपा कर रखा है तो मुसलमान टोला लाशों का ढेर बन जाता है. गरीब मुसलमान दोस्त के परिवार ने टिकुली लगाने और एडि़यों को महावर से सजाने वाली बहू को कैसे बुरके में छिपाया होगा, यह सोच कर माणिकचंद सहम गए.

दिसंबर महीने के जरूरी काम

सर्दी वाले गन्ने में अगर पिछले महीने सिंचाई नहीं की है, तो सिंचाई जरूर करें. गन्ने के साथ तोरिया, राई वगैरह की बोआई की है, तो निराईगुड़ाई कर लें. दिसंबर महीने में गन्ने की तकरीबन सभी किस्में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं. चीनी मिल की मांग के अनुसार कटाई का काम शुरू करें. अभी अगर गेहूं की बोआई नहीं की है, तो 15 दिसंबर तक पूरी कर लें. इस समय बोआई के लिए ज्यादा पैदावार देने वाली पछेती किस्मों का चुनाव करें. बीज की मात्रा 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें. अगर गेहूं की बोआई किए हुए 20-25 दिन हो चुके हैं, तो पहली सिंचाई कर दें. फसल के साथ उगे खरपतवारों को खत्म करें.

जौ की बोआई नहीं की गई है, तो फौरन बोआई करें. पिछले महीने बोई गई फसल 30-35 दिन की हो गई हो, तो सिंचाई जरूर करें. सरसों की फसल में खरपतवारों को न पनपने दें. सरसों की फसल में जरूरत से ज्यादा पौधे उग आए हों, तो उन्हें उखाड़ कर पशुओं के लिए चारे के तौर पर इस्तेमाल करें. फसल पर कीटबीमारी का हमला दिखाई दे, तो फौरन जरूरी व कारगर दवाओं का छिड़काव करें. मटर की फसल में फूल आने से पहले हलकी सिंचाई करें. मटर के तना छेदक कीट की रोकथाम के लिए डाइमिथोएट 30ईसी दवा की 1 लीटर मात्रा व फलीछेदक कीट की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 36 ईसी की 750 मिलीलीटर मात्रा 800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. रतुआ बीमारी को काबू में करने के लिए मैंकोजेब दवा की 2 किलोग्राम मात्रा 800 सौ लीटर पानी में घोल कर खड़ी फसल पर छिड़काव करें. मसूर की बोआई इस महीने में भी कर सकते हैं. लिहाजा ज्यादा पैदावार देने वाली किस्मों को बोआई के लिए चुनें.

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इस महीने मिर्च की फसल पर डाईबैक बीमारी का अकसर हमला देखा जाता है. इस की रोकथाम के लिए डाइथेन एम 45 या डाइकोफाल 18 ईसी दवा का छिड़काव करें. अगर प्याज की पौध तैयार हो गई हो, तो इस महीने के आखिरी हफ्ते में रोपाई का काम पूरा कर लें. आलू की फसल में जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. बीमारियों से बचाव के लिए मैंकोजेब दवा का छिड़काव करें. अगर आसमान में बादल छाए हैं और नमी है, तो सायमोक्जेनिल 8 फीसदी व मैंकोजेब 64 फीसदी को मिला कर छिड़काव करें. आम के बागों की साफसफाई करें. 10 साल या इस से ज्यादा उम्र के पेड़ों में प्रति पेड़ 750 ग्राम फास्फोरस, 1 किलोग्राम पोटाश थालों में दें. इस के साथ ही नए लगाए गए छोटे पौधों को पाले से बचाने का इंतजाम भी करना चाहिए.

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मिलीबग कीट की रोकथाम के लिए तने के चारों तरफ 2 फुट की ऊंचाई पर 4 सौ गेज वाली 30 सेंटीमीटर पौलीथिन की पट्टी बांधें. इस पट्टी के नीचे की तरफ वाले किनारे पर ग्रीस का लेप कर दें.  अगर मिलीबग कीट तने पर दिखाई दे, तो पेड़ के थालों की मिट्टी में क्लोरोपाइरीफास पाउडर की 250 ग्राम मात्रा प्रति पेड़ के हिसाब से छिड़कें. नए लगाए बागों के छोटे पेड़ों को पाले से बचाने के लिए फूस के छप्पर का इंतजाम करें व सिंचाई करें. इस आखिरी महीने की ठंड पशुओं के लिए काफी जोखिमभरी होती है. लिहाजा पशुओं को कमरों में बंद कर के रखें और रोशनी का उचित प्रबंध करें. इस ठंड का असर मुरगीपालन के कारोबार पर भी पड़ता है. ठंड से मुरगियों को बचाने का भी उचित प्रबंध करना बहुत जरूरी होता है.

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पहाड़ी इलाकों में आलू के खेत में निराईगुड़ाई करें. नाइट्रोजन की बाकी बची एक तिहाई मात्रा यूरिया या कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट के रूप में खेत में डाल कर मोटी मेंड़ बना कर मिट्टी चढ़ाएं. नारियल की खेती में बलुई व दोमट मिट्टी में टीले बनाएं और खेत की जुताई करें. नारियल की जड़ के आसपास की मिट्टी को नारियल के छिलकों से ढक दें ताकि नमी बनी रहे.

जी रिश्ते अवॉर्ड्स 2020: सुशांत सिंह राजपूत को यादकर इमोशनल हुई अंकिता लोखंडे और ऊषा नाडकर्णी

अंकिता लोखंडे इन दिनों सोशल मीडिया पर डांस रिहर्लस की पोस्ट डालती रहती हैं. इस पोस्ट को दखने के बाद आपके मन में भी यह सवाल उठता होगा कि आखिर यह पोस्ट किस लिए अंकिता इन दिनों शेयर कर रही हैं.

बता दें कि अंकिता लोखंडे यह पोस्ट जी रिश्ते अवार्ड 2020 की तैयारी करत हुए डाल रही हैं. जी रिश्ते अवार्ड में अंकिता लोखंडे स्पेशल पर्फॉर्मेश देने वाली है जिसमें वह सुशांत सिंह राजूपत को ट्रीब्यूट करती देती नजर आएंगी.

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रिहर्सल के दौरान बीच- बीच मं अंकिता लोखंडे काफी इमोशनल हो जाती हैं. जिसके बाद बीच- बीच में अंकिता लोखंड़े ब्रेक लेकर काम करती हैं. इसी बीच अंकिता से मिलने पहुंची सुशांत सिंह राजपूत की ऑनस्क्रीन मां ऊषा नाडकर्णी .

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सीरियल पवित्र रिश्ता में वह सुशांत की मां का किरदार निभाया करती थीं. सुशांत की ऑनस्क्रीन मां अंकिता लोखंडे से मिलने के बाद काफी ज्यादा इमोशनल हो गई.

 

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सीरियल पवित्र रिश्ता खत्म होने के बाद इन दोनों ने कभी एक –दूसरे से मुलाकात नहीं किया था. दोनों ने अपने पुराने दिन और पुरानी बातों को याद करके रोने लगी. उषा की बातों से लग रहा था कि वह सुशांत को बहुत ज्यादा मिस करती हैं.

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अंकिता लोखंडे के साथ वहां उनकी मां वंदना लोखंडे भी मौजूद थी. उषा सुशांत के साथ बहुत ज्यादा घूल मिल गए थें. दोनों साथ मं काफी ज्यादा वक्त बीताते थें.

उषा के आंखों से आंसू छलक गए पुरानी यादों को ताजा करते हुए. दोनों ने बहुत ज्यादा समय एक-दूसरे के साथ बिताया था.

अनिल कपूर की गलत कोरोना रिपोर्ट की अफवाह पर भड़की सोनम कपूर, ट्वीट कर कही ये बात

कुछ समय पहल ही यह खबर आई थी कि अपककमिंग फिल्म ‘जुग जुग जियो”   की शूटिंग के दौरान अनिल कपूर कोरोना के चपेट में आ गए हैं उनके साथ काम कर रहे वरुण धवन औऱ नीतू कपूर की भी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटीव आई है. जिसके बाद से लगातार सोशल मीडिया पर कई तरह की अफवाहें आने लगी है.

कुछ देर बात सच पता चला कि यह सब खबर अफवाह है ऐसा कुछ भी नहीं हुआ सभी लोग सुरक्षित है और रिपोर्ट निगेटीव है. जिसके बाद सोनम कपूर ने जमकर सोशल मीडिया पर सभी की क्लास लगाई.

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सोनम कपूर ने ट्वीट करते हुए कहा है कि आप लोग रिपोर्टिग करते समय जिम्मेदारी का ध्यान रखिए गलत खबरे खतरनाक साबित हो सकती है. मैं लंदन में बैठई हूं अभी तक मेरे फैमली से बात नहीं हुई है. आप अपन काम को जिम्मेदारी के साथ करिए.

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सोनम कपूर का यह ट्वीट सोशल मीडिया पर लगातार वायरल हो रहा है. फैंस भी सोनम के इस ट्वीट को सपोर्ट करते नजर आ रहे हैं. वहीं कुछ फैंस इस ट्वीट को लेकर सोनम कपूर को टारगेट करते नजर आ रहे हैं.

बता दें इन दिनों सोनम कपूर लंदन में पति आनंद के साथ क्वालिटी टाइम बीता रही हैं. आए दिन सोशल मीडिया पर सोनम पोस्ट शेयर करती रहती हैं.

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सोनम कपूर अपन खुले विचार के लिए जानी जाती हैं. सोनम कपूर आए दिन अपने सोशल मीडिया पर एक्टिव नजर आती हैं.

लौकी पोस्तो की सब्जी

वैसे तो लौकी स्वास्थ्य के लि बहुत ज्यादा लाभकारी होत है. अगर उसमं पोस्ता मिला दें तो उसके स्वाद और भी ज्यादा बढ़ जाते हैं. आइए जानते हैं लौकी और पोस्ता के सब्जी को कैसे बनाते हैं. लौकी और पोस्ता मिक्स बहुत स्वादिष्ट बनता है.

समाग्री

लौकी

हरी मिर्च

घी

जीरा

हींग

हल्दी पाउडर

लाल मिर्च

धनिया पाउडर

गर्म मसाला

नमक

पोस्ता दाना

हरा धनिया

विधि

-लौकी का तना काटकर हटा ल फिर लौकी को धोकर मनचाहे अकार में काट लें. अब कड़ाही में तेल या घी गर्म करें फिर उसमें जीरा को डालें.

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-अब उसमें लौकी के टुकड़े और पोस्ता दाना मिलाकर कुछ देर तक चलाकर भूने. कुछ देर के बाद उसमें नमक धनिया पाउडर, लाल मिर्च डालकर अच्छे से भूनें.

-ध्यान रखें पोस्ता दाना को पिसकर ही डालें इससे पोस्ता का स्वाद अच्छा आता है. लौकी को ज्यादा न गलाएं. लौकी खड़ा ही अच्छा लगता हैं.

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-कुछ देर तक ढ़ककर पकाएं ढ़कने के बाद उसमें गरम मसाला ऊपर से डालकर अच्छे मिलान के बाद गैस को बंद कर दें अब कड़ाही से निकारकर थाली में परोसें.

 

मुक्ति : जिंदगी मिली है तो जीना ही पड़ेगा

फोन की घंटी रुकरुक कर कई बार बजी तो जया झुंझला उठी. यह भी कोई फोन करने का समय है. जब चाहा मुंह उठाया और फोन घुमा दिया. झुंझलातीबड़बड़ाती जया ने हाथ बढ़ा कर टेबिल लैंप जलाया. इतनी रात गए किस का फोन हो सकता है? उस ने दीवार घड़ी की ओर उड़ती नजर डाली तो रात के 2 बजे थे. जया ने जम्हाई लेते हुए फोन उठाया और बोली, ‘‘हैलो.’’ ‘‘मैं अभिनव बरुआ बोल रहा हूं,’’ अभिनव की आवाज बुरी तरह कांप रही थी.

‘‘क्या बात है? तुम इतने घबराए हुए क्यों हो?’’ जया उद्विग्न हो उठी. ‘‘सुनीता नहीं रही. अचानक उसे हार्टअटैक पड़ा और जब तक डाक्टर आया सबकुछ खत्म हो गया,’’ इतना कह कर अभिनव खामोश हो गया.

जया स्वयं बहुत घबरा गई लेकिन अपनी आवाज पर काबू रख कर बोली, ‘‘बहुत बुरा हुआ है. धीरज रखो. अपने खांडेकरजी और मुधोलकरजी को तुरंत बुला लो.’’ ‘‘इतनी रात को?’’

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‘‘बुरा वक्त घड़ी देख कर तो नहीं आता. ये अपने सहयोगी हैं. इन्हें निसंकोच तुरंत फोन कीजिए. इस के बाद अपने घर और रिश्तेदारों को सूचना देना शुरू करो. यह वक्त न तो घबराने का है और न आपा खोने का.’’ ‘‘मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है.’’

‘‘तुम खुद घबराओगे तो बच्चों को कौन संभालेगा? क्रियाकर्म तो करना ही है.’’ टेबिल लैंप बिना बंद किए जया पलंग पर धम्म से बैठ गई. अभिनव की अभी उम्र ही क्या होगी? यही कोई 50 वर्ष. 4-5 साल में बच्चे अपनीअपनी घरगृहस्थी में रम जाएंगे तब वह बेचारा कितना अकेला हो जाएगा. आज भी तो वह कितना अकेला और असहाय है? उस के दोनों बच्चे बाहर इंजीनियरिंग में पढ़ रहे हैं. घर में ऐसी घटना से अकेले जूझना कितना त्रासद होगा?

जया के दिमाग में एक बार सोच का सिलसिला चला तो चलता ही रहा. आजकल मानवीय संवेदनाएं भी तो कितनी छीज गई हैं. किसी को भी दूसरे के सुखदुख से कोई लेनादेना नहीं है. उसे इस मुसीबत की घड़ी में कोई अपना नहीं दिखाई दिया. कहने को तो उस के अपनों का परिवार कितना बड़ा है…भाईबहन, मांबाप, रिश्तेदार, पड़ोसी, सहकर्मी और न जाने कौनकौन. मुसीबत में तो वही याद आएगा जिस से सहायता और सहानुभूति की उम्मीद हो. उस ने सब से पहले फोन उसी को किया तो क्या उसे किसी अन्य से सहायता की उम्मीद नहीं है? वह क्या सहायता कर सकती है? एक तो महिला फिर रात के 2 बजे का वक्त. जो भी हो इस वक्त अभिनव के पास सहायता तो पहुंचानी ही होगी. मगर कैसे? वह तो स्वयं इस शहर में अकेली है. अब तो अपना कहने को भी कुछ नहीं बचा है. भाईबहन अपनीअपनी जिंदगी में ऐसे रम गए हैं कि सालों फोन तक पर बात नहीं होती. उन दोनों की जिंदगी तो संवर ही चुकी है. अब बड़ी बहन जिए या मरे…उन्हें क्या लेनादेना है?

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एक जन्मस्थान वाला शहर है, वहां भी अब अपना कहने को क्या रह गया है? जब पिता का देहांत हुआ था तब वह बी.ए. में पढ़ रही थी. घर में वह सब से बड़ी संतान थी. घर में छोटे भाईबहन भी थे. मां अधिक पढ़ीलिखी नहीं थीं. मां को मिलने वाली पारिवारिक पेंशन परिवार चलाने के लिए अपर्याप्त थी. यों तो भाई भी उस से बहुत छोटा न था. सिर्फ 2 साल का फर्क होगा. उस समय वह इंटर में पढ़ रहा था और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था. मां सोचती थीं कि वंश का नाम तो लड़का ही रौशन करेगा अत: भाई की पढ़ाई में कोई रुकावट न आए. परंपरागत रूप से हल का जुआ बैल की गरदन पर ही रखा जाता है लेकिन यहां पारिवारिक जिम्मेदारी का जुआ उस के ऊपर डाल दिया गया और भाई को भारमुक्त कर दिया गया.

पिता के फंड व बीमा के मिले रुपए भी मां ने भाई की पढ़ाई के लिए सुरक्षित बैंक में जमा कर दिए. वह मेधावी छात्रा तो थी ही. उस ने समझ लिया कि संघर्ष का रास्ता कठोर परिश्रम के दरवाजे से ही निकल सकता है. वह ट्यूशन कर के घरखर्च में सहयोग भी करती और मेहनत से पढ़ाई भी करती. एकएक पैसे के लिए संघर्ष करतेकरते अभाव का दौर भी गुजर ही गया, लेकिन यह अभावग्रस्त जीवन मन में काफी कड़वाहट घोल गया. पिता के किसी भी मित्र या रिश्तेदार ने मदद करना तो दूर, सहानुभूति के दो शब्द भी कभी नहीं बोले. समय अपनी चाल चलता रहा. उस ने एम.ए. में विश्वविद्यालय टौप किया. शीघ्र ही उसे अपने विभागाध्यक्ष के सहयोग से एक महाविद्यालय में प्रवक्ता के पद पर नियुक्ति भी मिल गई. यद्यपि उस की नियुक्ति अपने शहर से लगभग 200 किलोमीटर दूर हुई थी फिर भी उस की खुशी का पारावार न था. चलो, इस लंबे आर्थिक और पारिवारिक संघर्ष से तो मुक्ति मिली.

आर्थिक संघर्ष ने उसे सिर्फ तोड़ा ही नहीं था, कई बार आहत और लज्जित भी किया था. उस का अभिनव से परिचय भी महाविद्यालय में ही हुआ था. वह भी इतिहास विभाग में ही प्रवक्ता था. नई उम्र, नया जोश और अनुभव का अभाव जया की कमजोरी भी थे और ताकत भी. महाविद्यालय की गोष्ठी, सेमिनार, वार्षिकोत्सव जैसे अवसरों पर उस की अभिनव से अकसर भिड़ंत हो जाती थी. उसे लगता कि उस के जूनियर होने के कारण अभिनव उस पर हावी होना चाहता है. महाविद्यालय के वार्षिकोत्सव के स्टेज शो की प्रभारी कमेटी में ये दोनों भी शामिल थे. जया विद्यार्थी जीवन से ही स्टेज शो में हिस्सा लेती रही थी अत: उसे स्टेज शो की अच्छी जानकारी थी. अभिनव अपनी वरिष्ठता और पुरुष अहं के कारण जया की सलाह को अकसर जानबूझ कर नजरअंदाज करने की कोशिश करता. जया कहां बरदाश्त करने वाली थी. वह रणचंडी बन जाती और तीखी नोकझोंक के बाद अभिनव को हथियार डालने के लिए मजबूर कर देती. अभिनव खिसिया कर रह जाता.

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सोचतेसोचते जया की आंख लग गई. फोन की घनघनाहट ने नींद में पुन: बाधा डाली. खिड़की के खुले परदों से कमरे में सुबह की धूप बिखर रही थी. घड़ी 8 बजा रही थी. इतनी देर तक तो वह कभी नहीं सोती. अनुमान सही निकला. यह अभिनव की ही काल थी. ‘‘सभी नजदीकी रिश्तेदारों को फोन कर दिया है. मैं ने न जाने किस मुहूर्त में सिलीगुड़ी से आ कर पूना में नौकरी की थी. सारे रिश्तेदार तो वहीं हैं. कोई भी कल शाम से पहले नहीं आ पाएगा.’’

‘‘तो फिर?’’ ‘‘क्रियाकर्म तो इंतजार नहीं कर सकता. सारी व्यवस्था अभी करनी है.’’

‘‘सब हो जाएगा. आखिर महा- विद्यालय परिवार किस दिन काम आएगा?’’ ‘‘प्रिंसिपल साहब आ चुके हैं, 20-25 स्टाफ के लोग भी आ चुके हैं.’’

‘‘तब क्या मुश्किल है?’’ ‘‘क्रियाकर्म के पहले सुनीता का स्नान और सिंगार भी होना है. तुम आ जातीं तो फोन कर के स्टाफ की दोचार महिलाएं ही बुला लेतीं.’’

‘‘ठीक है, मैं 15-20 मिनट में पहुंचती हूं,’’ जया के पास हां कहने के अलावा कोई विकल्प भी तो न था. विषम परिस्थितियों में अपने लोगों पर स्वत: विशेषाधिकार प्राप्त हो जाता है. तब संकोच का स्थान भी कहां बचता है? क्या आज अभिनव का यह विशेषाधिकार पूरे महाविद्यालय परिवार पर नहीं है? प्राचार्य तो अनुभवी हैं और सामाजिक परंपराओं से अच्छी तरह परिचित भी हैं. तो उन्होंने स्वयं इस समस्या का समाधान क्यों नहीं निकाला? वहां बैठे हुए अन्य सहकर्मी भी बेवकूफ तो नहीं हैं. वे संवेदनशून्य क्यों बैठे हैं? आखिर अर्थी उठने के पहले की रस्में तो महिलाएं ही पूरा करेंगी. अब ये महिलाएं आएंगी कहां से? इस के लिए या तो महिला सहकर्मी आगे आएं या पुरुष सहकर्मियों के परिवारों से महिलाएं आएं. शुभअशुभ जैसी दकियानूसी बातों से तो काम चलेगा नहीं. अभिनव तो बाहरी व्यक्ति है और किराए के मकान में रह रहा है अत: महल्ले में सहयोग की अपेक्षा कैसे कर सकता है?

आज के दौर में नौकरी के लिए दूरदूर जाना सामान्य बात है. मौके बेमौके घरपरिवार वाले मदद करना भी चाहें तो भी आनेजाने की लंबी यात्रा और समय के कारण ये तुरंत संभव नहीं है. फिर दूर की नौकरी में परिवार से मेलमिलाप भी तो कम हो जाता है. ऐसे में संबंधों में वह ताप आएगा कहां से कि एकदूसरे की सहायता के लिए तुरंत दौड़ पड़ें. ऐसे में अड़ोस- पड़ोस और सहकर्मियों से ही पारिवारिक रिश्ते बनाने पड़ते हैं. क्या अभिनव ऐसे कोई रिश्ते नहीं बना पाया जो दुख की इस घड़ी में काम आते? रिश्ते तो बनाने पड़ते हैं और उन्हें जतन से संजोना पड़ता है. और अधिकार बोध? ये तो मन के रिश्तों से उपजता है.

जया को याद आया. 10-12 वर्ष पुरानी घटना होगी. उस समय भी वह गर्ल्स होस्टल की वार्डेन थी. रात के 1 बजे होस्टल की एक छात्रा को भयंकर किडनी पेन शुरू हो गया. वह दर्द से छटपटाने लगी. होस्टल की सारी छात्राएं आ कर वार्डेन के आवास पर जमा हो गईं. वह रात को 1 बजे करे भी तो क्या? अगर कोई अनहोनी हो गई तो कालिज में बवंडर तय है. उस से भी बड़ी बात तो मानवीय सहायता और गुरुपद की गरिमा की थी. उस ने आव देखा न ताव, सीधा अभिनव को फोन घुमा दिया. 15 मिनट के अंदर अभिनव टैक्सी ले कर होस्टल के गेट पर खड़ा हो गया. उस दिन सारी रात अभिनव भी नर्सिंगहोम में जमा रहा.

जया ने अभिनव को धन्यवाद कहा तो अभिनव दार्शनिकों की भांति गंभीर हो गया. ‘धन्यवाद को इतना छोटा मत बनाइए. जिंदगी के न जाने किस मोड़ पर किस को किस से क्या सहायता की जरूरत पड़ जाए?’ टैक्सी और नर्सिंगहोम का भुगतान भी अभिनव ने ही किया था.

रिकशा अभिनव के दरवाजे पर जा कर रुका. जया का ध्यान टूटा. दरवाजे पर 40-50 आदमी जमा हो चुके थे, लेकिन कोई महिला सहकर्मी वहां नहीं थी. उसे थोड़ा संकोच हुआ. सामान्यत: ऐसे मौकों पर पुरुषों का ही आनाजाना होता है. सिर्फ परिवार, रिश्तेदार और पारिवारिक संबंधी महिलाएं ही ऐसे मौके पर आतीजाती हैं अत: अभिनव के घर महिलाओं का न पहुंचना स्वाभाविक ही था. वह सीधी प्राचार्य के पास पहुंची और बोली, ‘‘सर, अब क्या देर है?’’

‘‘दोचार महिलाएं होतीं तो लाश का स्नान और सिंगार हो जाता.’’ जया को महाविद्यालय परिवार याद आया तो उस ने पूछ लिया, ‘‘महा- विद्यालय परिवार कहां गया?’’

प्राचार्य गंभीर हो कर बोले, ‘‘आमतौर पर महिला सहकर्मी ऐसे अशुभ मौकों पर नहीं आती हैं.’’ जया को मन ही मन क्रोध आया लेकिन मौके की नजाकत देख कर उस ने वाणी में अतिरिक्त मिठास घोली, ‘‘सर, यह सामान्य मौका नहीं है. अभिनव अपने घर से कोसों दूर नौकरी कर रहा है. इतनी जल्दी परिवार वाले तो आ नहीं सकते. क्रियाकर्म तो होना ही है.’’

प्राचार्य ने चुप्पी साध ली. अगल- बगल बैठे सहकर्मी भी बगलें झांकने लगे. जया की समझ में अच्छी तरह से आ गया कि महाविद्यालय परिवार की अवधारणा स्टाफ से काम लेने के लिए है, स्टाफ के काम आने की नहीं. जया प्राचार्यजी के पास से उठ कर सीधी अंदर चल दी. मानवीय संवेदना के आगे परंपराएं और सामाजिक अवरोध स्वत: बौने हो गए. फिर यह चुनौती मानवीय संवेदना से कहीं आगे की थी. अगर एक नारी ही दूसरी नारी की गरिमा और अस्मिता की रक्षा नहीं कर सकती है तो इस रूढि़वादी सड़ीगली मानसिकता वाली भीड़ से क्या अपेक्षा की जा सकती है?

जातेजाते जया ने एक उड़ती हुई नजर वहां मौजूद जनसमूह पर भी डाली. भीड़ में ज्यादातर सहकर्मी ही थे जो छोटेछोटे समूहों में बंट कर इधरउधर गप्पें मार रहे थे. अभिनव भी जया के पीछेपीछे अंदर जाने लगा. अभिनव की आंखों में बादल घुमड़ रहे थे, जो किसी भी क्षण फटने को तैयार थे. जया ने आंखों के इशारे से ही अभिनव को रोक दिया. इस रोकने में समय की न जाने कितनी मर्यादाएं छिपी हुई थीं.

अभिनव दरवाजे के बाहर से ही लौट गए. जया ने गीले कपड़े से पोंछ कर सुनीता को प्रतीक स्नान कराया. सुनीता के चेहरे पर योगिनी जैसी चिर शांति छाई हुई थी. जया सुनीता का रूप सौंदर्य देख कर विस्मित हो गई, तो अभिनव ने इतनी रूपसी पत्नी पाई थी? अभिनव ने पहले कभी पत्नी से मुलाकात भी तो नहीं कराई और आज मुलाकात भी हुई तो इस मोड़ पर. जया गमगीन हो गई. कभी अभिनव ने उस के सामने भी तो विवाह का प्रस्ताव रखा था. उस समय वह रोंआसी हो कर बोली थी, ‘अभिनव, ये मेरा सौभाग्य होता. तुम बहुत अच्छे इनसान हो लेकिन परिवार की जिम्मेदारियां रहते मैं अपना घर नहीं बसा सकती. हो सके तो मुझे माफ कर देना.’

फिर भी अभिनव ने कई वर्ष तक जया का इंतजार किया. वैसे उन दोनों के बीच प्रेमप्रसंग जैसी कोई बात भी नहीं थी. पारिवारिक जिम्मेदारियां समाप्त होतेहोते बहुत देर हो गई. उस के बाद अगर वह चाहती तो आासनी से अपना घर बसा लेती लेकिन उस के मन ने किसी और से प्रणय स्वीकार ही नहीं किया.

अभी पिछले हफ्ते ही तो अभिनव उसे समझा रहा था, ‘जया, जिद छोड़ो, अपनी पसंद की शादी कर लो. युवावस्था का अकेलापन सहन हो जाता है, प्रौढ़ावस्था का अकेलापन कठिनाई से सहन हो पाता है. मगर वृद्धावस्था में अकेलेपन की टीस बहुत सालती है.’

जया ने हंस कर बात टाल दी थी, ‘अब इस उम्र में मुझ से शादी करने के लिए कौन बैठा होगा? फिर अगर आज शादी कर भी ली जाए तो 10-5 साल बाद मियांबीवी बैठ कर घुटनों में आयोडेक्स ही तो मलेंगे. अब यह भी क्या कोई मौजमस्ती की उम्र है? इस उम्र में तो आदमी अपने बच्चों की शादी की बात सोचता है.’ अभिनव ने प्रतिवाद किया था, ‘10 साल बाद की बात छोड़ो, वर्तमान में जीना सीखो. हम सुबह घूमने जाते हैं, उगता हुआ सूरज का गोला देखते हैं, फूल देखते हैं, सृष्टि के अन्य नजारे देखते हैं. मन में कैसा उजास भर जाता है. कुछ पलों के लिए हम जिंदगी के सभी अभावों को भूल कर प्रफुल्लित हो जाते हैं. क्या यह जीवन की उपलब्धि नहीं है?’

जया का ध्यान टूटा…सामने अभिनव की पत्नी की मृत देह पड़ी थी. वह धीमेधीमे सुनीता का सिंगार करने लगी. उसे लगा जैसे मन पूछ रहा है कि आज वह इस घर में किस अधिकार से अंदर चली आई? नहीं, वह इस घर में अनधिकार नहीं आई है. आज अभिनव को उस की बेहद जरूरत थी. ‘और अगर अभिनव को कल भी उस की जरूरत हुई तो?’ अचानक उस के मन में प्रश्न कौंधा.

जया ने हड़बड़ा कर सुनीता की मृत देह की ओर देखा : अब वह उस मृत देह का शृंगार कर के, अंतिम बार निहार कर बाहर आ गई. अन्य लोग उस की अंतिम क्रिया की तैयारी करने लगे.

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