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राज-भाग 1: रचना और रेखा की दोस्ती से किसको परेशानी होने लगी थी

संयुक्त परिवार की छोटी बहू बने हुए रचना को एक महीना ही हुआ था कि उस ने घर के माहौल में अजीब सा तनाव महसूस किया. कुछ दिन तो विवाह की रस्मों व हनीमून में हंसीखुशी बीत गए पर अब नियमित दिनचर्या शुरू हो गई थी. निखिल औफिस जाने लगा था. सासूमां राधिका, ससुर उमेश, जेठ अनिल, जेठानी रेखा और उन की बेटी मानसी का पूरा रुटीन अब रचना को समझ आ गया था. अनिल घर पर ही रहते थे. रचना को बताया गया था कि वे क्रौनिक डिप्रैशन के मरीज हैं. इस के चलते वे कहीं कुछ काम कर ही नहीं पाते थे. उन्हें अकेला नहीं छोड़ा जा सकता था. यह बीमारी उन्हें कहां, कब और कैसे लगी, किसी को नहीं पता था.वे घंटों चुपचाप अपने कमरे में अकेले लेटे रहते थे.

जेठानी रेखा के लिए रचना के दिल में बहुत सम्मान व स्नेह था. दोनों का आपसी प्यार बहनों की तरह हो गया था. सासूमां का व्यवहार रेखा के साथ बहुत रुखासूखा था. वे हर वक्त रेखा को कुछ न कुछ बुराभला कहती रहती थीं. रेखा चुपचाप सब सुनती रहती थी. रचना को यह बहुत नागवार गुजरता. बाकी कसर सासूमां की छोटी बहन सीता आ कर पूरा कर देती थी. रचना हैरान रह गई थी जब एक दिन सीता मौसी ने उस के कान में कहा, ‘‘निखिल को अपनी मुट्ठी में रखना. इस रेखा ने तो उसे हमेशा अपने जाल में ही फंसा कर रखा है. कोई काम उस का भाभी के बिना पूरा नहीं होता. तुम मुझे सीधी लग रही हो पर अब जरा अपने पति पर लगाम कस कर रखना. हम ने अपने पंडितजी से कई बार कहा कि रेखा के चक्कर से बचाने के लिए कुछ मंतर पढ़ दें पर निखिल माना ही नहीं. पूजा पर बैठने से साफ मना कर देता है.’’ रचना को हंसी आ गई थी, ‘‘मौसी, पति हैं मेरे, कोई घोड़ा नहीं जिस पर लगाम कसनी पड़े और इस मामले में पंडित की क्या जरूरत थी?’’

इस बात पर तो वहां बैठी सासूमां को भी हंसी आ गई थी, पर उन्होंने भी बहन की हां में हां मिलाई थी, ‘‘सीता ठीक कह रही है. बहुत नाच लिया निखिल अपनी भाभी के इशारों पर, अब तुम उस का ध्यान रेखा से हटाना.’’ रचना हैरान सी दोनों बहनों का मुंह देखती रही थी. एक मां ही अपनी बड़ी बहू और छोटे बेटे के रिश्ते के बारे में गलत बातें कर रही है, वह भी घर में आई नईनवेली बहू से. फिर वह अचानक हंस दी तो सासूमां ने हैरान होते हुए कहा, ‘‘तुम्हें किस बात पर हंसी आ रही है?’’

‘‘आप की बातों पर, मां.’’

सीता ने डपटा, ‘‘हम कोई मजाक कर रहे हैं क्या? हम तुम्हारे बड़े हैं. तुम्हारे हित की ही बात कर रहे हैं, रेखा से दूर ही रहना.’’ सीता बहुत देर तक उसे पता नहीं कबकब के किस्से सुनाने लगी. रेखा रसोई से निकल कर वहां आई तो सब की बातों पर बे्रक लगा. रचना ने भी अपना औफिस जौइन कर लिया था. उस की भी छुट्टियां खत्म हो गई थीं. निखिल और रचना साथ ही निकलते थे. लौटते कभी साथ थे, कभी अलग. सुबह तो रचना व्यस्त रहती थी. शाम को आ कर रेखा की मदद करने के लिए तैयार होती तो रेखा उसे स्नेह से दुलार देती, ‘‘रहने दो रचना, औफिस से आई हो, आराम कर लो.’’

‘‘नहीं भाभी, सारा काम आप ही करती रहती हैं, मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘कोई बात नहीं रचना, मुझे आदत है. काम में लगी रहती हूं तो मन लगा रहता है वरना तो पता नहीं क्याक्या टैंशन होती रहेगी खाली बैठने पर.’’ रचना उन का दर्द समझती थी. पति की बीमारी के कारण उस का जीवन कितना एकाकी था. मानसी की भी चाची से बहुत बनती थी. रचना उस की पढ़ाई में भी उस की मदद कर देती थी. 6 महीने बीत गए थे. एक शनिवार को सुबहसुबह रेखा की भाभी का फोन आया. रेखा के मामा की तबीयत खराब थी. रेखा सुनते ही परेशान हो गई. इन्हीं मामा ने रेखा को पालपोस कर बड़ा किया था. रचना ने कहा, ‘‘भाभी, आप परेशान मत हों, जा कर देख आइए.’’

‘‘पर मानसी की परीक्षाएं हैं सोमवार से.’’

‘‘मैं देख लूंगी सब, आप आराम से जाइए.’’

सासूमां ने उखड़े स्वर में कहा, ‘‘आज चली जाओ बस से, कल शाम तक वापस आ जाना.’’

रेखा ने ‘जी’ कह कर सिर हिला दिया था. उस का मामामामी के सिवा कोई और था ही नहीं. मामामामी भी निसंतान थे. रचना ने कहा, ‘‘नहीं भाभी, मैं निखिल को जगाती हूं. उन के साथ कार में आराम से जाइए. यहां मेरठ से सहारनपुर तक बस के सफर में समय बहुत ज्यादा लग जाएगा. जबकि इन के साथ जाने से आप लोगों को भी सहारा रहेगा.’’ सासूमां का मुंह खुला रह गया. कुछ बोल ही नहीं पाईं. पैर पटकते हुए इधर से उधर घूमती रहीं, ‘‘क्या जमाना आ गया है, सब अपनी मरजी करने लगे हैं.’’ वहीं बैठे ससुर ने कहा, ‘‘रचना ठीक तो कह रही है. जाने दो उसे निखिल के साथ.’’ राधिका को और गुस्सा आ गया, ‘‘आप चुप ही रहें तो अच्छा होगा. पहले ही आप ने दोनों बहुओं को सिर पर चढ़ा रखा है.’’ निखिल पूरी बात जानने के बाद तुरंत तैयार हो कर आ गया था, ‘‘चलिए भाभी, मैं औफिस से छुट्टी ले लूंगा, जब तक मामाजी ठीक नहीं होते हम वहीं रहेंगे.’’ रचना ने दोनों को नाश्ता करवाया और फिर प्रेमपूर्वक विदा किया. अनिल बैठे तो वहीं थे पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी. दोनों चले गए तो वे भी अपने बैडरूम में चले गए. शनिवार था, रचना की छुट्टी थी. वह मेड अंजू के साथ मिल कर घर के काम निबटाने लगी.

शाम तक सीता मौसी फिर आ गई थीं. उन के पति की मृत्यु हो चुकी थी और अपने बेटेबहू से उन की बिलकुल नहीं बनती थी इसलिए घर में उन का आनाजाना लगा ही रहता था. उन का घर दो गली ही दूर था. दोनों बहनें एकजैसी थीं, एकजैसा व्यवहार, एकजैसी सोच. सीता ने आराम से बैठते हुए रचना से कहा, ‘‘तुम्हें समझाया था न अपने पति को जेठानी से दूर रखो?’’

मैं 35 वर्षीया गृहिणी हूं, मेरी देवरानी ऊपर के घर में रहती हैं वह न मुझसे बात करती हैं न घर आना जाना है अब अच्छा नहीं लग रहा क्या करें?

सवाल

मैं 35 वर्षीया गृहिणी हूं. हमारा संयुक्त परिवार है. ऊपर के फ्लोर में मेरी जेठानी और ग्राउंड फ्लोर में हमारा परिवार रहता है. कोरोना महामारी में लौकडाउन के दौरान कोई किसी
के घर न आया न गया लेकिन अब लोग थोड़ाबहुत बाहर निकल रहे हैं, एकदूसरे के घर भी आजा रहे हैं. हमारे घर में करीबी लोग आजा रहे हैं लेकिन जेठानी ऊपर अपने फ्लोर पर किसी को नहीं आने देतीं, यहां तक कि बहुत करीबी भी जैसे मेरी ननद. पता है कि वे कोई कोरोना संक्रमित नहीं हैं, उन्हें भी ऊपर से अपनी बालकनी से हायबाय कर देती हैं. मु झे बड़ा अजीब लगता है, क्या उन का ऐसा व्यवहार उचित है?

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जवाब

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कोरोना महामारी के समय में आप की जेठानी का व्यवहार सुरक्षा की दृष्टि से ठीक है लेकिन उन का तरीका गलत है. आप उन्हें सम झाएं, अब हमें कुछ समय कोरोना के साथ ही जीना है, तो लाइफस्टाइल को थोड़ा बदलना पड़ेगा. हमें बीमारी से दूर रहना है, इंसान से नहीं. सोशल डिस्टैंसिंग अपनानी होगी. जिस का पता है कि वह बिलकुल ठीकठाक है, उसे एहतियात के साथ हाथ धो कर ही घर में प्रवेश कराएं.

वक्त वैसे ही खराब चल रहा है. ऐसा व्यवहार कर के दिल की दूरियां न बढ़ाएं. जेठानी को सम झाइए, कुछ तो समझेंगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

प्रधानमंत्री के भाषण में दरकिनार हुआ किसान आन्दोलन

दिल्ली की सर्दी में आन्दोलनकारी किसानों में से करीब 22 किसानों की मौत का रंचमात्र रंज भी प्रधानमंत्री के भाषण नहीं दिखा. इससे यह बात समझी जा सकती है कि केन्द्र सरकार किसानों का कितना सम्मान करती है. उसे यह लगता है कि 500 रूपये माह की किसान सम्मान निधि से किसानों को खुष किया जा सकता है तो उनसे बात करने का क्या लाभ ?

25 दिसम्बर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के जन्म दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्चुअल रैली के जरीये देश भर के किसानों को सम्बोधित किया और 18 हजार करोड की प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि देश के किसानों के खातों में भेजी. जिसके तहत किसानों को 2 हजार रूपये मिले. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के रूप में किसानों को 6 हजार रूपये सालाना दिये जा रहे है. वर्चुअल रैली के जरीये प्रधानमंत्री ने करीेब डेढ घंटा किसानों के बीच बिताएं. इसमें से 50 मिनट प्रधानमंत्री ने भाषण दिया और बाकी समय किसानों के साथ संवाद किया. किसानों ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के लाभ बताये.

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25 दिसम्बर को किसान आन्दोलन के 29 दिन यानि करीब एक माह पूरा हो रहा था. कृषि कानूनों का विरोध कर रहे आन्दोलनकारी किसानों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण में किसान आन्दोलन के विषय में कुछ ऐसी बातें होगी जिससे किसान आन्दोलन को सुलझाने की दिषा में कदम उठाये जा सकेगे. प्रधानमंत्री ने अपने पूरे भाषण में किसान आन्दोलन का जिक्र बहुत ही हल्के अंदाज में करते कहा कि यह इवेंट कि तरह से है. जहां लोग सेल्फी खिचवाने जा रहे है. इस आन्दोलन के बारें में प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि यह 20 फीसदी किसानों का आन्दोलन है. देष के 80 फीसदी किसान छोटे किसान है जिनको कृषि कानूनों से लाभ होगा.

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अपने पूरे भाषण में प्रधानमंत्री ने ना तो न्यूनतम समर्थन मूल्य में गांरटी दिये जाने की बात कही और ना ही मंडियों की बेहतरी के लिये कोई बात कहीं. जिससे लगता है कि कृषि कानूनों को लेकर उनका नजरिया साफ है कि यह कानून वापस नहीं होगे. जिस तरह से कृषि कानूनों की बात करते समय छोटे किसानों के होने वाले लाभ के बारें में बताया गया उससे यह लगा कि प्रधानमंत्री अब यह सोच रहे है कि जो काम 70 सालों में देष की सरकारों से नहीं हुआ वह काम निजी कारोबारी कर देगे. प्रधानमंत्री को पूंजीपतियों पर अधिक भरोसा है.

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प्रधानमंत्री के भाषण की सबसे अहम बात थी कि विपक्षी किसानों के नाम पर राजनीति ना करे. किसान आन्दोलन को तोडने और कमजोर करने के लिये जिस तरह से प्रधानमंत्री और उनकी सरकार ने काम किया है उससे यह साफ है कि सबसे बडी किसान राजनीति खुद भाजपा कर रही है. किसानों को कमजोर करने के लिये छोटे और बडे किसान के बीच में विभाजन रेखा प्रधानमंत्री के भाषण में ही खीेची गई. किसान आन्दोलन विपरीत मौसम में भी चल रहा है. करीब 22 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में एक बार भी किसानों के प्रति कोई संवेदना प्रगट नहीं की. देश के मुखिया के रूप में प्रधानमंत्री से किसानो को यह उम्मीद थी कि वह बीच का रास्ता दिखायेगे. प्रधानमंत्री के भाषण के बाद किसान आन्दोलन सुलझने की बजाये उलझ गया है.

राज-भाग 3 : रचना और रेखा की दोस्ती से किसको परेशानी होने लगी थी

राधिका ने रचना को डपटा, ‘‘अनिल को क्यों ले गई थी?’’

‘‘मां, मानसी की बीमारी का पता लगाने के लिए भैया का डीएनए टैस्ट होना था,’’ कह कर रचना किचन में चली गई. रचना ने थोड़ी देर बाद देखा राधिका और सीता की आवाजें मानसी के कमरे से आ रही थीं. सीता जब भी आती थीं, मानसी के कमरे में ही सोती थीं. रचना दरवाजे तक जा कर रुक गई. सीता कह रही थीं, ‘‘अब पोल खुलने वाली है. रिपोर्ट में सच सामने आ जाएगा. बड़े आए हर समय भाभीभाभी की रट लगाने वाले, आंखें खुलेंगी अब, कब से सब कह रहे हैं पति को संभाल कर रखे. निखिल पिता की तरह ही तो डटा है अस्पताल में.’’ राधिका ने भी हां में हां मिलाई, ‘‘मुझे भी देखना है अब रेखा का क्या होगा. निखिल मेरी भी इतनी नहीं सुनता है जितनी रेखा की सुनता है. इसी बात पर गुस्सा आता रहता है मुझे तो. जब से रेखा आई है, निखिल ने मेरी सुनना ही बंद कर दिया है.’’ बाहर खड़ी रचना का खून खौल उठा. घर की बच्ची की तबीयत खराब है और ये दोनों इस समय भी इतनी घटिया बातें कर रही हैं. अगले दिन मानसी की सब रिपोर्ट्स आ गई थीं. सब सामान्य था. बस, उस का बीपी लो हो गया था.

डाक्टर ने मानसी की अस्वस्थता का कारण पढ़ाई का दबाव ही बताया था. शाम तक डिस्चार्ज होना था, निखिल और रेखा अस्पताल में ही रुके. रचना घर पहुंची तो सीता ने झूठी चिंता दिखाते हुए कहा, ‘‘सब ठीक है न? वह जो डीएनए टैस्ट होता है उस में क्या निकला?’’ यह पूछतेपूछते भी सीता की आंखों में मक्कारी दिखाई दे रही थी. रचना ने आसपास देखा. उमेश कुछ सामान लेने बाजार गए हुए थे. अनिल अपने रूम में थे. रचना ने बहुत ही गंभीर स्वर में बात शुरू की, ‘‘मां, मौसी, मैं थक गई हूं आप दोनों की झूठी बातों से, तानों से. मां, आप कैसे निखिल और भाभी के बारे में गलत बातें कर सकती हैं? आप दोनों हैरान होती हैं न कि मुझ पर आप की किसी बात का असर क्यों नहीं होता? वह इसलिए कि विवाह की पहली रात को ही निखिल ने मुझे बता दिया था कि वे हर हालत में भाभी और मानसी की देखभाल करते हैं और हमेशा करेंगे. उन्होंने मुझे सब बताया था कि आप ने जानबूझ कर अपने मानसिक रूप से अस्वस्थ बेटे का विवाह एक अनाथ, गरीब लड़की से करवाया जिस से वह आजीवन आप के रौब में दबी रहे. निखिल ने आप को किसी लड़की का जीवन बरबाद न करने की सलाह भी दी थी, पर आप तो पंडितों की सलाहों के चक्कर में पड़ी थीं कि यह ग्रहों का प्रकोप है जो विवाह बाद दूर हो जाएगा.

‘‘आप की इस हरकत पर निखिल हमेशा शर्मिंदा और दुखी रहे. भाभी का जीवन आप ने बरबाद किया है. निखिल अपनी देखरेख और स्नेह से आप की इस गलती की भरपाई ही करने की कोशिश  करते रहते हैं. वे ही नहीं, मैं भी भाभी की हर परेशानी में उन का साथ दूंगी और रिपोर्ट से पता चल गया है कि अनिल ही मानसी के पिता हैं. मौसी, आप की बस इसी रिपोर्ट में रुचि थी न? आगे से कभी आप मुझ से ऐसी बातें मत करना वरना मैं और निखिल भाभी को ले कर अलग हो जाएंगे. और इस अच्छेभले घर को तोड़ने की जिम्मेदार आप दोनों ही होगी. हमें शांति से स्नेह और सम्मान के साथ एकदूसरे के साथ रहने दें तो अच्छा रहेगा,’’ कह कर रचना अपने बैडरूम में चली गई. यश उस की गोद में ही सो चुका था. उसे बिस्तर पर लिटा कर वह खुद भी लेट गई. आज उसे राहत महसूस हो रही थी. उस ने अपने मन में ठान लिया था कि वह दोनों को सीधा कर के ही रहेगी. उन के रोजरोज के व्यंग्यों से वह थक गई थी और डीएनए टैस्ट तो हुआ भी नहीं था. उसे इन दोनों का मुंह बंद करना था, इसलिए वह अनिल को यों ही अस्पताल ले गई थी. उसे इस बात को हमेशा के लिए खत्म करना था. वह कान की कच्ची बन कर निखिल पर अविश्वास नहीं कर सकती थी. हर परिस्थिति में अपना धैर्य, संयम रख कर हर मुश्किल से निबटना आता था उसे. लेटेलेटे उसे राधिका की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे, तुम कहां चली, सीता?’’

‘‘कहीं नहीं, दीदी, जरा घर का एक चक्कर काट लूं. फिर आऊंगी और आज तो तुम्हारी बहू की निश्ंिचतता का राज भी पता चल गया. एक बेटा तुम्हारा बीमार है, दूसरा कुछ ज्यादा ही समझदार है, पहले दिन से ही सबकुछ बता रखा है बीवी को.’’ कहती हुई सीता के पैर पटकने की आवाज रचना को अपने कमरे में भी सुनाई दी तो उसे हंसी आ गई. पूरे प्रकरण की जानकारी देने के लिए उस ने मुसकराते हुए निखिल को फोन मिला दिया था.

 

Crime Story: मुझसे शादी करोगी?

सौजन्या- सत्यकथा 

25सितंबर, 2020 की रात की बात है. रात 12 बजे 24 वर्षीय रेशमा शीलवंत चव्हाण अपनी
मां के साथ देहू रोड पुलिस थाने पहुंची. रेखा शीलवंत मुंबई से 105 किलोमीटर दूर पूना शहर की रहने वाली थी. उन का घर आदर्श कालोनी में था. उन की कालोनी थाना देहू क्षेत्र में आता था. थाने की ड्यूटी पर मौजूद सबइंस्पेक्टर अशोक जगताप ने उन्हें सामने खाली पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया और उन के आने का कारण पूछा.रेशमा चव्हाण ने अपने आने का जो कुछ कारण उन्हें बताया उसे सुन कर अशोक जगताप के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. उन्होंने बताया कि आधा घंटे पहले प्रशांत अपने 2 साथियों के साथ उन के घर आया था और उस ने उन की छोटी बहन प्रिया चव्हाण को अपने साथ चलने के लिए कहा.

प्रिया के मना करने पर वह उसे जबरन अपने साथ ले गया. सर, कुछ कीजिए. मुझे प्रशांत गायकवाड़ पर जरा भी भरोसा नहीं है. वह मेरी बहन प्रिया के साथ कुछ भी कर सकता है. उस की 2 माह की बेटी का रोरो कर बुरा हाल है. मामला काफी संगीन था. सबइंसपेक्टर अशोक जगताप ने रेशमा चव्हाण की तहरीर पर प्रिया चव्हाण के अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के साथ ही उन्होंने इस मामले की जानकारी थानाप्रभारी मनीष कल्याणकर इंसपेक्टर क्राइम पाडूरंग गोकणे, सबइंसपेक्टर छाया बोरकर के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी और रेशमा चव्हाण और उस की मां को आश्वासन दिया कि पुलिस जल्द से जल्द प्रिया को ढूंढ़ने की कोशिश करेगी.

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वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में सबइंस्पेक्टर अशोक जगताप ने अपने सहायकों के साथ अपनी तफ्तीश की रूपरेखा तैयार की और प्रिया चव्हाण अपहरण की तफ्तीश शुरू कर दी. प्रशांत गायकवाड़ के मिलने की जहांजहां संभावना थी वहांवहां छापा मारा गया, लेकिन वह उन के हाथ नहीं लगा.
देहूरोड पुलिस अधिकारियों को मामले की तफ्तीश शुरू किए अभी 12 घंटे भी नहीं हुए थे कि पुलिस कंट्रोल रूम से उन्हें एक बुरी खबर मिली. 26 सितंबर, 2020 को दोपहर कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि आदर्शनगर कालोनी की खाड़ी के पानी में एक महिला का शव तैर रहा है. आदर्श नगर इलाका देहूरोड पुलिस थाने के अंतर्गत आता था. इसलिए मामले की जानकारी देहूरोड पुलिस थाने को दे दी गई थी.

सूचना मिलते ही देहू रोड पुलिस थाने के सबइंसपेक्टर अशोक जगताप अपने सहायकों के साथ तुरंत घटना स्थल पर पहुंच गए. चूंकि रेशमा चव्हाण ने अपनी बहन प्रिया के अपहरण की शिकायत पहले ही थाने में दर्ज करवा रखी थी, इसलिए पुलिस टीम ने रेशमा चव्हाण को सूचना दे कर शिनाख्त के लिए घटनास्थल पर बुला लिया.  शव को देखते ही रेशमा चव्हाण दहाड़ मार कर रोने लगी. इस से पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि खाड़ी में पड़ा शव प्रिया चव्हाण का ही है. रेशमा चव्हाण को सांत्वना देने के बाद प्रिया के शव को बाहर निकलवा कर उस का निरीक्षण किया गया.

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सबइंस्पेक्टर अशोक जगताप अभी शव का निरीक्षण और वहां एकत्र भीड़ से पूछताछ कर ही रहे थे कि मामले की जानकारी पा कर थानाप्रभारी मनीष कल्याणकर, इंसपेक्टर पांडुरंग गोकणे, महिला सबइंसपेक्टर छाया वारेक के साथ मौका ए वारदात पहुंच गए थे. उन के साथ फौरेंसिक टीम भी आ गई थी. शव की फौरेंसिक जांच के बाद थानाप्रभारी मनीष कल्याणकर ने अपने सहायकों के साथ शव का सरसरी निगाह से निरीक्षण किया. फिर लाश को पोस्टमार्टम के लिए स्थानीय सिविल अस्पताल भेज कर थाने  लौट आए.

मामला अब और गंभीर हो गया था. प्रशांत गायकवाड़ पर अब तक प्रिया चव्हाण के अपहरण तक का ही आरोप था. अब उस के विरूद्ध हत्या का भी मामला दर्ज कर लिया गया. थाने के वरिष्ठ अधिकारियों ने विचार कर मामले की तफ्तीश इंसपेक्टर पांडुरंग गोकणे और सबइंस्पेक्टर अशोक जगताप को सौंप दी.
सबइंसपेक्टर अशोक जगताप इस की तफ्तीश पहले ही कर रहे थे. लेकिन प्रशांत गायकवाड़ उन के हाथ नहीं आया था. फिर भी वह निराश नहीं थे. उन्हें अपने मुखबिरों पर पूरा भरोसा था. 27 सितंबर, 2020 को उन के एक मुखबिर ने बताया कि प्रशांत गायकवाड़ आज रात 3 बजे के आसपास पूना थरगांव के डांगे चौक पर अपनी पत्नी और बच्चों से मिलने के लिए आने वाला है.

सबइंसपेक्टर अशोक जगताप ने इस बात की जानकारी अपने वरीष्ठ अधिकारियों को दी और अपना जाल बिछा कर प्रशांत गायकवाड़ को हिरासत में ले लिया. पुलिस हिरासत में प्रशांत गायकवाड़ प्रिया अपहरण और हत्या के मामले में अपने आप को निर्दोष बता कर पुलिस को गुमराह करता रहा. लेकिन पुलिस की सख्ती के बाद वह ज्यादा देर न टिक सका. उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए प्रिया के अपहरण और हत्या के बारे में जो बताया वह काफी हैरान कर देने वाला था.

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सूर्यकांत गायकवाड़ की गिनती पूना शहर के एक प्रतिष्ठित और संपन्न किसानों में होती थी. पूना शहर के देहूरोड पर शानदार बंगला और शहर के बाहर उन का एक फार्महाउस था. जहां उन की अच्छीखासी काश्तकारी थी. बंगले में सुखसुविधाओं की सारी चीजे मौजूद थीं. उन का बेटा प्रशांत बंगले में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था.35 वर्षीय प्रशांत गायकवाड़ स्वस्थ सुंदर और महत्त्वाकांक्षी युवक था. वह सूर्यकांत गायकवाड़ का एकलौता और लाड़ला बेटा था. उसे किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. प्रशांत की शिक्षा पूरी होने के बाद उन्होंने थरगांव डांगे चौक पर रहने वाले अपने एक रिश्तेदार की बेटी से उस की शादी कर दी थी. समय के साथ वह 2 बच्चों का पिता बन गया.

घर में सुंदर सुशील पत्नी होने के बावजूद जब वह किसी शादी प्रोग्राम था पार्टी में किसी संजीसंवरी युवती को देखता तो उस के मुंह में पानी आ जाता था और वह उसे पाने के लिए आतुर हो उठता था. उस के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. 20 वर्षीय प्रिय शीलवंत चव्हाण जितनी सुंदर और खूबसूरत थी उतनी ही चंचल आधुनिक सभ्य समाज की युवती थी. वह किसी से भी बेझिझक बातें तो करती थी लेकिन अपनी मर्यादा में रहती थी. उस की बातें हर किसी को मोह लेती थीं. उस के पिता की मौत हो चुकी थी. परिवार संपन्न था, वह अपनी बड़ी बहन रेशमा और मां के साथ रहती थी.

सजीसंवरी प्रिया को प्रशांत गायकवाड ने अपने एक दोस्त की शादी के समारोह में देखा था. प्रिया की खूबसूरती देख कर प्रशांत गायकवाड़ उस का दीवाना हो गया. प्रिया शादी समारोह में जब तक रही प्रशांत गायकवाड़ की निगाहें उस का पीछा करती रहीं. प्रिया और उस के परिवार से प्रशांत गायकवाड़ का परिचय उस के दोस्त ने करवाया तो प्रशांत प्रिया के करीब आने की कोशिश करने लगा. शादी समारोह खत्म होने के बाद प्रशांत ने प्रिया और उस की मां बहन को अपनी कार में लिफ्ट दे कर उन के घर छोड़ दिया.
रास्ते में प्रिया चव्हाण उस की मां और बहन रेशमा चव्हाण प्रशांत गायकवाड़ की बातों और व्यवहार से इस तरह प्रभावित हुईं कि उसे अपने घर चायनाश्ते पर बुला लिया.

प्रिया और उस के परिवार वालों के इस प्रस्ताव पर प्रशांत गायकवाड़ के मन में लड्डू फूटने लगे. प्रशांत गायकवाड़ यही चाहता था. वह दूसरे दिन ही प्रिया से मिलने उस के घर पहुंच जाना चाहता था. लेकिन किसी तरह अपने मन को काबू कर वह एक सप्ताह बाद प्रिया के घर पहुंचा. यह संयोग ही था कि उस समय प्रिया घर में अकेली थी. प्रशांत गायकवाड़ के लिए यह समय सोने पर सुहागा था. उसे ऐसे ही मौके की तो तलाश थी. प्रशांत ने प्रिया से अधिकतर इधरउधर की बातें की और अपने आप को अनमैरिड बता कर प्रिया का मोबाइल नंबर ले लिया.

प्रिया का मोबाइल नंबर लेने के बाद प्रशांत प्रिया को अक्सर फोन करने लगा. नतीजा यह हुआ कि प्रशांत गायकवाड़ की मीठी लुभावनी बातें प्रिया के मन में धीरेधीरे घर करने लगीं और वह उस की तरफ आकर्षित हो गईं. प्रशांत गायकवाड़ यही चाहता भी था. वह मौका देख कर प्रिया को अपनी कार में बैठा कर लंबे सफर पर ले जाता. दोनों मौल में जा कर शौपिंग करते. प्रिया को वह अच्छेअच्छे उपहार देता था.
प्रिया इस बात से अनभिज्ञ थी कि प्रशांत गायकवाड़ सिर्फ उस के शरीर का भूखा है. प्रशांत ने कई बार मर्यादा की लक्ष्मण रेखा पार करने की कोशिश की, लेकिन प्रिया ने उसे रोक दिया.

जब प्रशांत गायकवाड़ यह बात अच्छी तरह समझ गया कि प्रिया अपनी लक्ष्मण रेखा लांघने वाली नहीं है तो उस ने एक योजना के तहत अपनी पत्नी और बच्चों को उन के ननिहाल भेज कर प्रिया को जरूरी बात के लिए अपने बंगले पर बुलाया और नशे का शरबत पिला कर उस के साथ संबंध बनाए. जब यह बात प्रिया को पता चली तो उसे नागवार लगा.बाद में जब यह बात प्रिया को मालूम हुई की प्रशांत गायकवाड़ शादीशुदा ही नहीं बल्कि 2 बच्चों का पिता भी है तो वह अपने आप को संभाल नहीं पाई और देहूरोड़ पुलिस थाने जा कर उस के विरूद्ध धोखा और बलात्कार की शिकायत दर्ज करवा दी. जिस से पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. यह मामला 2016 का था.

2 साल तक चले इस प्रकरण में जब प्रशांत गायकवाड़ को एहसास हो गया कि वह सजा के बिना नहीं बच सकता तो उस ने प्रिया से मेलमिलाप में ही अपनी भलाई समझी और प्रिया के घर जा कर उस से और उस की मांबहन से अपने किए की माफी मांगी. इतना ही नहीं, उस ने अपनी पत्नी को तलाक दे कर प्रिया से शादी करने का भी वादा किया. साथ ही उस ने मामले को वापस लेने की विनती भी की.

प्रशांत के अनुरोध पर प्रिया ने अपना भविष्य देखते हुए केश वापस ले कर प्रशांत गायकवाड़ को माफ कर दिया. वह पहले की तरह प्रशांत गायकवाड़ से मिलनेजुलने लगी. बीचबीच में जब प्रिया शादी की बात करती तो प्रशांत अपनी पत्नी से तलाक लेने का बहाना कर उसे टाल देता.समय अपनी गति से चलता रहा. प्रिया प्रशांत के बहकावे में आ कर अपने आप को भूल गई और गर्भवती हो गई. समय आने पर उस ने एक बच्ची को जन्म दिया.

बच्ची के जन्म के 2 माह बाद प्रिया ने जब अपनी शादी और बच्ची के भविष्य के लिए प्रशांत गायकवाड़ से बात की तो प्रशांत टालमटोल करता रहा. जिस से प्रिया और उस के परिवार वालों को उस की नीयत का पता चल गया. प्रिया की शादी और उस की बच्ची के हक का दबाव बनाने के लिए प्रिया की मां और बहन ने महिला संगठन का सहारा लिया.घटना के दिन जिस समय महिला संगठन प्रशांत गायकवाड़ के बंगले पर पहुंचा, उस समय प्रशांत घर पर नहीं था. उन का सामना उस की पत्नी और बच्चों को करना पड़ा. संगठन की महिलाओं ने उसे जम कर लताड़ा.

बंगले की खिड़की और बंगले में खड़ी कार के सारे शीशे तोड़ डाले और उस की पत्नी को चेतावनी दे कर निकल गईं कि अगर प्रशांत गायकवाड़ ने प्रिया से शादी नहीं की और बच्ची को पिता का नाम नहीं दिया तो दोबारा फिर आएंगी और अंजाम बुरा होगा.पति प्रशांत के चरित्र और महिला संगठन की चेतावनी से उस की पत्नी बुरी तरह डर गई. उसे पति से नफरत हो गई. वह अपना सारा सामान और बच्चों को ले कर मायके जाने के लिए तैयार हो गई. शाम को प्रशांत गायकवाड़ घर आया तो घर की स्थित देख कर हैरान रह गया. पत्नी ने उसे आडे़ हाथों लेते हुए काफी खरीखोटी सुनाई और अपने दोनों बच्चों को ले कर उसी समय घर छोड़ कर मायके चली गई.

पत्नी के मायके जाने और अपने अपमान को वह सह नहीं सका. उस का खून खौल उठा और उस ने प्रिया चव्हाण के प्रति खतरनाक फैसला ले लिया. उस का मानना था कि न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी. रोजरोज की किटकिट खत्म हो जाएगी. अपने फैसले के अनुसार, प्रशांत गायकवाड़ ने अपने दो दोस्तों विक्रम रोकड़े और अभिजीत दड़े को अपनी मदद के लिए बुलाया और उन्हें अपने साथ ले कर रात को प्रिया चव्हाण के घर जा पहुंचा. दोस्तों के साथ वह प्रिया को उठा कर आदर्श नगर कालोनी की खाड़ी के पास ले गया. उस ने प्रिया चव्हाण का गला दबा कर पहले उस की हत्या की और पहचान मिटाने के लिए वहां पड़े पत्थरों से उस के चेहरे को विकृत कर के खाड़ी के पानी में फेंक दिया. इस के बाद वह फरार हो गया.
प्रशांत सूर्यकांत गायकवाड़ से विस्तृत पूछताछ करने के बाद जांच अधिकारी अशोक जगताप ने उस के खिलाफ अपहरण के मुकदमे में धारा 302/201 और 364 और जोड़ दी.

बाद में उन्होंने उस की निशानदेही पर उस के दोस्त के ठिकानों पर छापा मार कर विक्रम रोकड़े को तो अपनी गिरफ्त में ले लिया. लेकिन अभिजीत दड़े पुलिस टीम के पहुंचने के पहले ही फरार हो गया.
प्रशांत सूर्यकांत गायकवाड़ और विक्रम रोकड़े को पूना के मैट्रोपोलिटन मजिस्टै्रट के सामने पेश कर के यरवदा जेल भेज दिया गया. दोनों अभियुक्त जेल में हैं.

सेहत के लिए घातक रासायनिक कीटनाशक

आज खेती में अनेक तरह के कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा है, जिन में अनेक कीटनाशक ऐसे हैं, जो हमारे लिए हानिकारक हैं. फसल में बीमारी होने पर किस फसल में कौन सा कीटनाशक प्रयोग करना है, इस की जानकारी की कमी में किसान कई बार गलत कदम उठा लेते हैं. कीटनाशक विजेता ने जैसा बताया वैसा किया, जबकि कई चालू कंपनियां लोकल माल बनाती हैं और विके्रताओं को अच्छा मुनाफा भी देती हैं तो विक्रेता भी उन्हीं दवाओं को किसान को इस्तेमाल करने की सलाह  देता है. किसान भी उन के बहकावे में आ कर गलत कदम उठा लेते हैं.

अभी कुछ दिन पहले भारत सरकार ने भी मई, 2020  में 27 कीटनाशकों को बैन करने की बात कही, जिस पर अनेक  कीटनाशक कंपनियों ने होहल्ला मचाया. इस तरह की खबरें आती  रहती हैं, लेकिन तसवीर साफ नहीं होती कि कौन सा कीटनाशक  हमें इस्तेमाल करना है, कौन सा नहीं. अनेक कंपनियां मिलतेजुलते नामों से उन की नकल बना कर भी बेचती हैं, जिस में अकसर  किसान धोखा खा जाते हैं, इसलिए किसान को सजग रहना है.

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अपनी सेहत के साथसाथ फसल की सेहत का भी खयाल रखना है.जहरीले कीटनाशक सभी को हानि पहुंचाते हैं. हमेशा कृषि माहिरों से जानकारी ले कर ही उन्हें इस्तेमाल करें.इस विषय को ले कर कृषि विज्ञान केंद्र, सोहांव, बलिया, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि अनाज हो, फल या सब्जी, अच्छी पैदावार के लिए इन में कीटनाशकों का जो प्रयोग हो रहा है, उस से इनसान की सेहत को गंभीर खतरा है. ये कंपनियां ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में कीटनाशकों में जहर का ओवरडोज मिला रही हैं. किसान अपनी कीट संबंधी समस्या ले कर कीटनाशी विक्रेता के पास जाते हैं, तो अधिकतर विक्रेता सब से जहरीला कीटनाशी पहली बार में ही दे देते हैं या एकसाथ कई कीटनाशी डालने के लिए करते हैं. जोमात्रा संस्तुत है, उसे ज्यादा मात्रा में फसल पर डालते हैं. ऐसा भी देखने में आया है कि ज्यादा मात्रा होने से फसल झुलस भी जाती है. फल, सब्जी या अनाज में मौजूद कीटनाशक कई खतरनाक बीमारियों को जन्म दे रहे हैं. ये रसायन लिवर व किडनी जैसे महत्त्वपूर्ण अंगों के लिए खतरनाक हैं.

किसी भी कीटनाशक को तैयार करने में उस में खतरनाक कैमिकल मिलाने का अनुपात निर्धारित है. कई रासायनिकों की जांच से भी खुलासा हो चुका है कि इन्हें बनाने में तय मानकों का घोर उल्लंघन होता है. अधिक उपज के लिए किसान इन कीटनाशकों को जितना ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं, उतने ही अधिक कीटपतंगों की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ रही है.

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कीटनाशकयुक्त फलसब्जी लेने से आदमी की सेहद पर बुरा असर  पड़ता है. खानेपीने की चीजों में मिले हुए कीटनाशक जब मनुष्य  के पेट में पहुंचते हैं, तो वहां से रक्त में मिल कर शरीर के सभी अंगों तक पहुंच जाते हैं. शरीर में मिलने के बाद कीटनाशक लिवर और किडनी को नुकसान पहुंचाना शुरू करते हैं.
डाक्टरों का कहना है कि कीटनाशकों के दुष्परिणाम के कारण नपुंसकता और डायबिटीज के मामले बढ़ते जा रहे हैं. सिरदर्द, उलटी का अनुभव, अनिद्रा, आंखों से धुंधला दिखना आदि लक्षण दिख सकते हैं.
किसानों से सीधे सब्जी खाने के लिए क्रय किया जाता है, तो  फसल पर छिड़काव तक सीमित रहता है. परंतु वही सब्जी जो स्थायी विक्रेताओं से ली जाती है, तो कभीकभी ज्यादा घातक होती
है.

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एक तो सब्जियां बासी कई दिनों की होती हैं और उसे हराभरा रखने के लिए मेलाकाइट ग्रीन रसायन मिलाते हैं. केला कार्बाइड से पकाते हैं. सेब के ऊपर मोम की परत चढ़ा देते हैं. तरबूज में लाल रंग सेक्रिन में मिला कर इंजैक्शन लगा देते हैं. इस से बचने के लिए विशेष ध्यान रखने की जरूरत है. मौसमी फलसब्जियों का सेवन करें. बेमौसम वाली सब्जियों का प्रयोग न करें, क्योंकि मिलावट इसी में ज्यादा होने की संभावना रहती है. सब्जियों को सिरके के पानी में धो कर प्रयोग करें. सेब को खाने से पहले छिलका हटा लें. कीटनाशी विके्रता जैविक कीटनाशी की बिक्री करें. कीट बीमारी लगने पर इन के प्रबंधन के लिए कीट रोग विशेषज्ञ से राय जरूर लें.

राज-भाग 2 : रचना और रेखा की दोस्ती से किसको परेशानी होने लगी थी

रचना मुसकराई, ‘‘हां मौसी, आप ने समझाया तो था.’’

‘‘फिर निखिल को उस के साथ क्यों भेज दिया?’’

‘‘वहां अस्पताल में मामीजी और भाभी को कोई भी जरूरत पड़ सकती है न.’’

सीता ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘दीदी, छोटी बहू को तो जरा भी अक्ल नहीं है.’’

राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘क्या करूं अब? कुछ भी समझा लो, जरा भी असर नहीं है इस पर. बस, मुसकरा कर चल देती है.’’ रचना घर का काम खत्म कर सुस्ताने के लिए लेटी तो सीता मौसी वहीं आ गईं. रचना उठ कर बैठ गई और बोली, ‘‘आओ, मौसी.’’ आराम से बैठते हुए सीता ने पूछा, ‘‘तुम कब सुना रही हो खुशखबरी?’’

‘‘पता नहीं, मौसी.’’

‘‘क्या मतलब, पता नहीं?’’

‘‘मतलब, अभी सोचा नहीं.’’

‘‘देर मत करो, औलाद पैदा हो जाएगी तो निखिल उस में व्यस्त रहेगा. कुछ तो भाभी का भूत उतरेगा सिर से और आज तुम्हें एक राज की बात बताऊं?’’

‘‘हां बताइए.’’

‘‘मैं ने सुना है मानसी निखिल की ही संतान है. अनिल के हाल तो पता ही हैं सब को.’’ रचना भौचक्की सी सीता का मुंह देखती रह गई, ‘‘क्या कह रही हो, मौसी?’’

‘‘हां, बहू, सब रिश्तेदार, पड़ोसी यही कहते हैं.’’ रचना पलभर कुछ सोचती रही, फिर सहजता से बोली, ‘‘छोडि़ए मौसी, कोई और बात करते हैं. अच्छा, चाय पीने का मूड बन गया है. चाय बना कर लाती हूं.’’ सीता हैरानी से रचना को जाते देखती रही. इतने में राधिका भी वहीं आ गई. सीता को हैरान देख बोली, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘अरे, यह तुम्हारी छोटी बहू कैसी है? इसे कुछ भी कह लो, अपनी धुन में ही रहती है.’’ राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘हां, धोखा खाएगी किसी दिन, अपनी आंखों से देख लेगी तो आंखें खुलेंगी. हम बड़े अनुभवी लोगों की कौन सुनता है आजकल.’’ रचना ने टीवी देख रहे ससुरजी को एक कप चाय दी, फिर जा कर रेखा के बैडरूम में देखा, अनिल गहरी नींद में था. फिर राधिका और सीता के साथ चाय पीनी शुरू ही की थी कि रचना का मोबाइल बज उठा. निखिल का फोन था. बात करने के बाद रचना ने कहा, ‘‘मां, भाभी के मामाजी को 3-4 दिन अस्पताल में ही रहना पड़ेगा. ये छुट्टी ले लेंगे, भाभी को साथ ले कर ही आएंगे.

‘‘मैं ने भी यही कहा है वहां आप दोनों देख लो, यहां तो हम सब हैं ही.’’ राधिका ने डपटा, ‘‘तुम्हें समझ क्यों नहीं आ रहा. जो रेखा चाहती है निखिल वही करता है. तुम से कहा था न निखिल को उस से दूर रखो.’’

‘‘आप चिंता न करें, मां. मैं देख लूंगी. अच्छा, मानसी आने वाली है, मैं उस के लिए कुछ नाश्ता बना लेती हूं और मैं भाभी के आने तक छुट्टी ले लूंगी जिस से घर में किसी को परेशानी न हो.’’ दोनों को हैरान छोड़ रचना काम में व्यस्त हो गई.

सीता ने कहा, ‘‘इस की निश्चिंतता का आखिर राज क्या है, दीदी? क्यों इस पर किसी बात का असर नहीं होता?’’

‘‘कुछ समझ नहीं आ रहा है, सीता.’’ निखिल और रेखा लौट आए थे. रेखा और रचना स्नेहपूर्वक लिपट गईं. उमेश वहां के हालचाल पूछते रहे. अनिल ने सब चुपचाप सुना, कहा कुछ नहीं. उन का अधिकतर समय दवाइयों के असर में सोते हुए ही बीतता था. उन्हें अजीब से डिप्रैशन के दौरे पड़ते थे जिस में वे कभी चीखतेचिल्लाते थे तो कभी घर से बाहर भागने की कोशिश करते थे. सासूमां को रेखा फूटी आंख नहीं सुहाती थी जबकि वे खुद ही उसे बहू बना कर लाई थीं. बेटे की अस्वस्थता का सारा आक्रोश रेखा पर ही निकाल देती थीं. घर का सारा खर्च निखिल और रचना ही उठाते थे. उमेश रिटायर्ड थे और अनिल तो कभी कोई काम कर ही नहीं पाए थे. उन की पढ़ाई भी बहुत कम ही हुई थी. 3 साल बीत गए, रचना ने एक स्वस्थ व सुंदर पुत्र को जन्म दिया तो पूरे घर में उत्सव का माहौल बन गया. नन्हे यश को सब जीभर कर गोद में खिलाते. रेखा ने ही यश की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी. रचना के औफिस जाने पर रेखा ही यश को संभालती थी. कई पड़ोसरिश्तेदार यश को देखने आते रहते और रचना के कानों में मक्कारी से घुमाफिरा कर निखिल और रेखा के अवैध संबंधों की जानकारी का जहर उड़ेलते चले जाते. कुछ औरतें तो यहां तक मजाक में कह देतीं, ‘‘चलो, अब निखिल 2 बच्चों का बाप बन गया.’’

रचना के कानों पर जूं न रेंगती देख सब हैरान हो, चुप हो जाते. रेखा और रचना के बीच स्नेह दिन पर दिन बढ़ता ही गया था. रचना जब भी बाहर घूमने, डिनर पर जाती, रेखा और मानसी को भी जरूर ले जाती. रचना के कानों में सीता मौसी का कथापुराण चलता रहता था, ‘‘देख, तू पछताएगी. अभी भी संभल जा, सब लोग तुम्हारा ही मजाक बना रहे हैं.’’ पर रचना की सपाट प्रतिक्रिया पर राधिका और सीता हैरान हुए बिना भी न रहतीं. वे दोनों कई बार सोचतीं, यह क्या राज है, यह कैसी

औरत है, कौन सी औरत इन बातों पर मुसकरा कर रह जाती है, समझदार है, पढ़ीलिखी है. आखिर राज क्या है उस की इस निश्ंिचतता का? एक साल और बीत रहा था कि एक अनहोनी घट गई. मानसी के स्कूल से फोन आया. मानसी बेहोश हो गई थी. निखिल और रचना तो अपने आौफिस में थे. यश को राधिका के पास छोड़ रेखा तुरंत स्कूल भागी. निखिल और रचना को उस ने रास्ते में ही फोन कर दिया था. मानसी को डाक्टर देख चुके थे. उन्होंने उसे ऐडमिट कर कुछ टैस्ट करवाने की सलाह दी. रेखा निखिल के कहने पर मानसी को सीधा अस्पताल ही ले गई. स्कूल में फर्स्ट ऐड मिलने के बाद वह होश में तो थी पर बहुत सुस्त और कमजोर लग रही थी. निखिल और रचना भी अस्पताल पहुंच गए थे. निखिल ने घर पर फोन कर के सारी स्थिति बता दी थी.

मानसी ने बताया था, सुबह से ही वह असुविधा महसूस कर रही थी. अचानक उसे चक्कर आने लगे थे और वह शायद फिर बेहोश हो गई थी. हैरान तो सब तब और हुए जब उस ने कहा, ‘‘कई बार ऐसा लगता है सिर घूम रहा है, कभी अचानक अजीब सा डिप्रैशन लगने लगता है.’’ रेखा इस बात पर बुरी तरह चौंक गई, रोते हुए बोली, ‘‘रचना, यह क्या हो रहा है मानसी को. अनिल की भी तो ऐसे ही तबीयत खराब होनी शुरू हुई थी. क्या मानसी भी…’’

‘‘अरे नहीं, भाभी, पढ़ाई का दबाव  होगा. कितना तनाव रहता है आजकल बच्चों को. आप परेशान न हों. हम सब हैं न,’’ रचना ने रेखा को तसल्ली दी. मानसी के सब टैस्ट हुए. राधिका और उमेश भी यश को ले कर अस्पताल पहुंच गए थे. सीता मौसी अनिल की देखरेख के लिए घर पर ही रुक गई थीं. रात को निखिल ने सब को घर भेज दिया था. अगले दिन रचना अनिल को अपने साथ ही सुबह अस्पताल ले गई. वहां वे थोड़ी देर मानसी के पास बैठे रहे. फिर असहज से, बेचैनी से उठनेबैठने लगे तो रचना उन्हें वहां से वापस घर ले आई. रेखा मानसी के पास ही थी.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा….

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयन्ती के अवसर पर आज ‘पीएम किसान सम्मान निधि’ के अन्तर्गत देश के 09 करोड़ से अधिक किसानों के बैंक खातों में 18 हजार करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि ऑनलाइन अन्तरित की. इससे उत्तर प्रदेश के 2.13 करोड़ से अधिक किसान 4,260 करोड़ रुपये की सम्मान राशि से लाभान्वित हुए. कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने प्रदेश के जनपद महराजगंज के किसान राम गुलाब सहित अरुणाचल प्रदेश, उड़ीसा, हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु आदि राज्यों के किसानों से संवाद भी किया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ जिले के मोहनलालगंज विकासखण्ड परिसर में आयोजित कार्यक्रम में सम्मिलित होकर प्रधानमंत्री जी द्वारा पीएम किसान सम्मान निधि के तहत धनराशि अन्तरण कार्यक्रम का अवलोकन किया.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि भारत सरकार किसानों के हित और कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है. आत्मनिर्भर किसान ही आत्मनिर्भर भारत का आधार हो सकते हैं. भारत सरकार कृषि सुधारों के सम्बन्ध में तर्क और तथ्य के आधार पर खुले मन से चर्चा के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि बदलते समय के साथ एप्रोच में बदलाव जरूरी है. 21वीं सदी में कृषि को आधुनिक और लाभकारी बनाने की आवश्यकता है. नए कृषि कानूनों के बाद किसान जिसे चाहे, जहां चाहे अपनी उपज बेच सकता है. किसान अपनी उपज एमएसपी पर मण्डी में, व्यापारी को, दूसरे राज्य में, एफपीओ के माध्यम से, जहां भी उचित मूल्य मिले बेच सकता है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि नए कृषि सुधारों के बारे में असंख्य भ्रम फैलाये जा रहे हैं. इन कानूनों को लागू हुए कई महीने बीच चुके हैं. हाल के दिनों में सरकार ने एमएसपी में वृद्धि की है. यह नए कानूनों और सुधारों के बाद किया गया है. कृषि सुधारों से सरकार ने अपनी जिम्मेदारियां बढ़ाई हैं. नए कृषि सुधारों में सुनिश्चित किया गया है कि खरीददार कानूनन समय से भुगतान के लिए बाध्य है. व्यवस्था है कि खरीददार को फसल क्रय के बाद रसीद देनी होगी. साथ ही, तीन दिन में मूल्य का भुगतान भी करना होगा. सरकार किसानों के साथ हर कदम पर खड़ी है. इसलिए व्यवस्था की गई है कि कानून और तंत्र किसान के पक्ष में हो. यदि किसी वजह से किसान की उपज बरबाद हो जाती है, तो भी उससे एग्रीमेण्ट करने वाले को किसान को उपज का मूल्य देना होगा. किसान से एग्रीमेण्ट करने वाला, एग्रीमेण्ट समाप्त नहीं कर सकता, जबकि किसान एग्रीमेण्ट खत्म कर सकता है. किसान की उपज से एग्रीमेण्ट करने वाले को अधिक लाभ होने पर उसे किसान को बोनस भी देना होगा.

प्रधानमंत्री ने कहा कि नए कृषि सुधारों से भारतीय कृषि में बड़े पैमाने पर तकनीक का प्रवेश होगा. इससे किसान की उपज में वृद्धि होगी. किसानों द्वारा अपने उत्पादों की बेहतर पैकेजिंग की जा सकेगी. कृषि उपज में वैल्यू एड की जा सकेगी. इससे भारतीय कृषि उपज की मांग पूरी दुनिया में होगी. हमारे किसान निर्यातक भी बन सकेंगे. उन्होंने कहा कि जैसे अन्य क्षेत्रों में ब्राण्ड इण्डिया स्थापित हुआ है, इसी प्रकार विश्व के कृषि बाजारों में ब्राण्ड इण्डिया स्थापित होगा.

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प्रधानमंत्री ने कहा कि आज पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वापजेयी की जयन्ती सुशासन दिवस के रूप में मनाई जा रही है. अटल जी ने सदैव गांव, गरीब, किसान को प्राथमिकता दी. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, स्वर्णिम चतुर्भुज योजना सहित विभिन्न योजनाएं उनके द्वारा संचालित की गई. वर्तमान सरकार द्वारा जिन कृषि सुधारों को जमीन पर उतारा गया है, उसके सूत्रधार श्रद्धेय वाजपेयी जी ही थे.भ्रष्टाचार को रोग मानते थे. वर्तमान में दिल्ली से निकला प्रत्येक रुपया सीधे लाभार्थी के खाते में जाता है. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि इसका एक उदाहरण है. यही गुड गवर्नेंस है. उन्होंने कहा कि पीएम किसान निधि योजना के शुरू होने के बाद से अब तक 01 लाख 10 हजार करोड़ रुपये किसानों के खातों में अन्तरित किये जा चुके हैं. तकनीक के प्रयोग से यह सुनिश्चित किया गया है कि कोई लीकेज न हो. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा किसानों के रजिस्ट्रेशन एवं आधार वेरीफिकेशन के बाद पीएम किसान सम्मान निधि का लाभ पूरे देश के किसानों को मिल रहा है. पश्चिम बंगाल सरकार के असहयोग के कारण वहां की लगभग 70 लाख किसान इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं.

प्रधानमंत्री ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकारों की नीतियों के कारण कम जमीन और संसाधनों वाले किसानों को नुकसान हुआ. गरीब किसान को बीज, खाद, बिजली, सिंचाई के साधन सुलभ नहीं हुए. उसके उत्पाद की खरीद भी नहीं हुई. इससे गरीब किसान और गरीब होता गया. देश में ऐसे किसानों की संख्या 80 प्रतिशत है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 में सत्ता मंे आने के बाद उनकी सरकार ने किसानों की स्थिति में बदलाव के गम्भीर प्रयास किये. दुनिया भर में कृषि के क्षेत्र में आए बदलावों का अध्ययन कर अलग-अलग लक्ष्य बनाकर एक साथ कार्य शुरू किया गया.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि कृषि की लागत कम करने एवं उत्पादकता बढ़ाने के प्रयास किये गये. मृदा परीक्षण, सोलर पम्प, यूरिया कोटिंग, पीएम फसल बीमा योजना शुरू की गई. पीएम फसल बीमा योजना में मामूली प्रीमियम के भुगतान पर किसानों को 87 हजार करोड़ रुपये प्राप्त हुए. उन्होंने कहा कि दशकों से लम्बित सिंचाई परियोजनाओं को पूर्ण कर, माइक्रो इरिगेशन को प्रोत्साहित कर हर खेत को सिंचाई सुविधा सुलभ कराने का प्रयास किया गया. फसल की उचित कीमत दिलाने के लिए स्वामीनाथन कमेटी के अनुसार लागत से डेढ़ गुना एमएसपी निर्धारित की गई. पहले कुछ ही फसलों की एमएसपी घोषित की जाती थी. इनकी संख्या बढ़ाई गई. वर्तमान में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर रिकाॅर्ड मात्रा में खरीद और किसान को रिकाॅर्ड धनराशि का भुगतान किया जा रहा है.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि फसल बेचने के लिए किसान को मण्डी के अलावा विकल्प मिलंे, इसके लिए मण्डियों को आॅनलाइन जोड़ा गया. इससे किसानों ने 01 लाख करोड़ रुपये का करोबार किया. सामूहिक रूप से कारोबार करने के लिए किसानों को जोड़ा गया. 10 हजार एफपीओ का गठन कर, उनकी सहायता की जा रही है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में गांव के पास भण्डारण सबसे बड़ी आवश्यकता है. इसे प्राथमिकता दी जा रही है. गांव के पास भण्डारण एवं कोल्ड स्टोरेज विकसित करने के लिए करोड़ों रुपए की धनराशि की व्यवस्था की गई है. इसके साथ ही, खेती से जुड़े व्यवसायों यथा मधुमक्खी पालन, पशुपालन को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि वर्ष 2014 में किसानों को बैंकिंग सुविधा के लिए 07 लाख करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई थी. वर्तमान में 14 लाख करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है, जिससे किसानों को आसानी से ऋण प्राप्त हो सके. 2.5 करोड़ किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा उपलब्ध कराई गई है. वर्तमान केन्द्र सरकार द्वारा मत्स्य पालन, पशुपालन के लिए भी किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा अनुमन्य की गई है. विगत कुछ वर्षों में अनेक कृषि संस्थान स्थापित करने के साथ ही, कृषि की पढ़ाई की सीटों में वृद्धि की गई.

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि वर्तमान सरकार द्वारा गांव के किसान के जीवन को आसान बनाने के लिये कार्य किया गया. सरकार किसान के दरवाजे, खेत तक पहुंची है. उन्होंने कहा कि किसान को पक्का मकान, शौचालय, निःशुल्क बिजली कनेक्शन, निःशुल्क रसोई गैस कनेक्शन, आयुष्मान भारत योजना के अन्तर्गत निःशुल्क उपचार का लाभ प्राप्त हो रहा है. 60 वर्ष की आयु के बाद 03 हजार रुपये मासिक आय का कवच भी किसान के पास है. उन्होंने कहा कि स्वामित्व योजना के अन्तर्गत किसान को उसके मकान, खेत आदि के स्वामित्व के अभिलेख भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं.

इससे पूर्व, जनपद लखनऊ के विकासखण्ड मोहनलालगंज में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने 05 किसानों शोभनाथ, राधे श्याम द्विवेदी, मनोज कुमारी के पुत्र अशोक कुमार, सुरेन्द्र कुमार और राजेन्द्र सिंह के पुत्र कर्मवीर सिंह को ट्रैक्टर की प्रतीकात्मक चाभी प्रदान की. उन्होंने 03 किसानों राम नरेश, मीना कुमारी तथा कविता पाठक को राइस पोर्टेबल मिलर मशीन तथा अमरेश कुमार को स्माल आॅयल एक्सट्रैक्शन मशीन प्रदान किये जाने के प्रमाण पत्र सौपे.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी की जयन्ती सुशासन दिवस को किसान सम्मान दिवस के रूप में मनाया जाना सर्वाधिक उपयुक्त है, क्योंकि आजादी के बाद किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने का प्रयास सबसे पहले श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा वर्ष 1998 में प्रारम्भ किया गया. श्रद्धेय अटल जी ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने का कार्य प्रारम्भ किया. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के माध्यम से किसानों को अपनी उपज मण्डी तक ले जाने के लिये मार्ग सुलभ हुआ. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के हाईवे, हर गरीब के हाथ में मोबाइल फोन भी श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी की देन है. श्रद्धेय वाजपेयी जी द्वारा देश की अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण का जो कार्य शुरू किया गया, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा उसे आगे बढ़ाया जा रहा है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्तमान केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा किसान, मजदूर, महिला, नौजवान आदि सभी के प्रति आत्मीयता के भाव से कार्य किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि देश के सर्वांगीण विकास, किसानों की खुशहाली, नौजवानों के उज्ज्वल भविष्य और मातृ शक्ति के सम्मान और सशक्तिकरण के लिए जो कार्यक्रम 06 वर्ष पहले प्रधानमंत्री जी द्वारा प्रारम्भ किया गया था, आज का कार्यक्रम उसी श्रृंखला की कड़ी है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी द्वारा देश के 09 करोड़ किसानों के खाते में अंतरित की जा रही 18 हजार करोड़ रुपए की धनराशि से प्रदेश के 2.13 करोड़ किसान लगभग 4,300 करोड़ रुपए की धनराशि से लाभान्वित होंगे.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्तमान सरकार ने किसानों को बीज, खाद, बिजली, सिंचाई सुविधाएं सुलभ करायी हैं. वर्तमान सरकार द्वारा किसानों की उपज की बड़ी मात्रा में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की जा रही है. उन्होंने कहा कि वर्तमान केन्द्र सरकार ने स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू करते हुए कृषि लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया. केन्द्र सरकार द्वारा 34 जिन्स का समर्थन मूल्य घोषित किया गया.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्तमान राज्य सरकार ने सत्ता में आते ही किसानों के हित और कल्याण को प्राथमिकता देते हुए प्रभावी कदम उठाए. सबसे पहले 86 लाख किसानों के 36 हजार करोड़ रुपए के ऋण माफी का निर्णय लिया गया. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने दशकों से लम्बित सिंचाई परियोजनाओं को प्राथमिकता पर पूर्ण करने का कार्य किया. वर्ष 1977 से लम्बित बाण सागर परियोजना 01 वर्ष में पूर्ण कर प्रधानमंत्री जी द्वारा राष्ट्र को समर्पित करायी गयी. अर्जुन सहायक, सरयू नहर, मध्य गंगा नहर जैसी परियोजनाओं को तेजी से पूरा किया जा रहा है. मार्च, 2021 तक 20 लाख हेक्टेयर से अधिक अतिरिक्त भूमि को सिंचाई की सुविधा प्राप्त हो जाएगी.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि वर्ष 2017 में हमारी सरकार के सत्ता में आने पर 06 साल से भी अधिक गन्ना मूल्य का बकाया था. पूर्ववर्ती सरकारों ने चीनी मिलों को बेचने का कार्य किया. वर्तमान राज्य सरकार ने रमाला चीनी मिल, बागपत के नवीनीकरण का कार्य किया. अब यहां प्रतिदिन 50 हजार कुन्तल गन्ने की पेराई होती है. उन्होंने कहा कि वर्तमान राज्य सरकार द्वारा अपने कार्यकाल में 01 लाख 12 हजार करोड़ रुपए के गन्ना मूल्य का भुगतान कराया गया. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, मृदा परीक्षण आदि योजनाओं के सुचारू क्रियान्वयन से किसानों के जीवन में खुशहाली आयी है.

कार्यक्रम को सांसद कौशल किशोर एवं अपर मुख्य सचिव कृषि देवेश चतुर्वेदी ने भी सम्बोधित किया. इस अवसर पर अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी, अपर मुख्य सचिव एमएसएमई एवं सूचना नवनीत सहगल, मण्डलायुक्त व जिलाधिकारी लखनऊ सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी एवं बड़ी संख्या में किसान उपस्थित थे.

अड़ियल कौन : किसान या सरकार?

लेखक-रोहित और शाहनवाज

सरकार द्वारा किसानों पर खालिस्तानी, देशद्रोही, माओवादी, टुकड़ेटुकड़े गैंग, जैसे तमाम मनगड़ंतआरोपों और लांछनों को लगाने के बावजूद,किसान अनोदोलन पिछले एक महीने से और भी मजबूत होता दिख रहा है. यह आन्दोलन अपने मजबूत इरादों के साथ 21वीं सदी में किसान आन्दोलन का नया इतिहास भी लिख रहा है. और इस ने सरकार द्वारा लगाए गए आरोपों को न सिर्फ धुंधला किया बल्कि झूठा भी साबित कर दिया है. किन्तु सरकार के तरकश में मानो लग रहा है उन तीरों की कमी हो गई है जिन तीरों से उस ने छात्र, दलित, जनवादी और सीएए विरोधी आंदोलनों को कुचला था. इसीलिए अब लग रहा है कि सरकार के पास ‘विक्टिम प्ले’ का आखरी हथियार बचा है जिसे वह इस समय भुनाने पर लगी हुई है.

किसान, दिल्ली के अलगअलग बोर्डेरों पर 26 नवंबर से डेरा जमाएं हैं. इस सर्द मौसम में लगभग उन्हें 1 महीने से ऊपर हो चला है.किसान और सरकार के बीच शुरूआती6 राउंड की बातचीत हो चुकी हैं, कहने को सरकार की और से किसानों को 8 सूत्रीय प्रस्ताव भी दिया जा चूका है और अब चिठ्ठियों का दौर भी चल पड़ा है,लेकिन समाधान का कोई नामों निशान नहीं. आखिर वजह क्या है? क्या सरकार सच में मासूम है जिसे अड़ियल किसान लताड़ रहे हैं? या सरकार ही अड़ियलहै जो किसानों की मांग समझ कर भी मानने को तैयार नहीं है? आखिर पेंच कहां फसा हैं?

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23 दिसम्बर को मिनिस्ट्री ओफ एग्रीकल्चरल एंड फार्मर्स वेलफेयर की तरफ से 40 किसान नेताओं को 3 पेज का पत्र भेजा गया. पत्र में कृषि कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव था और साथ में किसान नेताओं से की गई एक उदार अपील भी थी. जौइंट सेक्रेटरी विवेक अग्रवाल ने पत्र के माध्यम से किसानों से कहा कि, “सरकार खुले दिल से और साफ नियत के साथ आप के सभी मुद्दों पर बात करने को तैयार है. कृपया दिन और समय बात करने के लिए तय करें.” इस लैटर में सरकार ने फिर से दोहराया कि इन कानूनों से एमएसपी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

चर्चा का भ्रम
अब जाहिर सी बात है सरकार के इस रवैय्ये से किस का दिल नहीं पसीजेगा. सरकार लगातार मीडिया के माध्यम से किसानों से यही अपील कर रही है कि किसान उन से बात करे जिस के बाद उन्होंने अगले दिन यानी 24 तारीख को भी किसान नेताओं को दूसरा पत्र भेजा और कहा, “सरकार के लिए चर्चा के सभी दरवाजे खुले रखना महत्वपूर्ण है. किसान संगठनों और किसानों की बात सुनना सरकार की जिम्मेदारी है और सरकार इससे इनकार नहीं कर सकती.”सरकार ने दोहराया कि वह किसान यूनियनों के आन्दोलन द्वारा उठाए गए मुद्दों पर “तार्किक समाधान” खोजने के लिए तैयार है.

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एक तरीके से सरकार ने यह संकेत दिया कि वह इस मसले को लेकर काफी उदार है और चर्चा का रास्ता बनाए रखना चाहती है. 2014 के बाद यह पहला मौका है जब सरकार का इस तरीके का रवैय्या देखने को मिला. सरकार ने लगातार यह स्थापित कर नेकी भी कोशिश की, किमसले पर सरकार तो अपनी जिम्मेदारी निभा रही लेकिन किसान अड़ियल है. वे (किसान) सिर्फ मोदी विरोध के चलते आन्दोलन करना चाहते हैं. इस बात का अधिकतर किसानों से कोई लेना देना नहीं है और जिस से दिखता है की वे पोलिटिकली मोटीवेटेड हैं. यही कारण है की सरकार इस के चलते उन पर कभी खालिस्तानी होने का आरोप लगा रही थी, तो कभी माओवादी, तो कभी ओपोजीशन के बहकावे में होने का आरोप लगाती आई है.

इस बात में कितनी सच्चाई है? यह पता करने के लिए हम सिंघु बोर्डर कूच किए. वहां हमारी मुलाकात किसान संयुक्त मोर्चा (एआईकेएससीसी) कमिटी के जिम्मेदार सदस्य व एआईकेएस के वाईस प्रेसिडेंट लखबीर सिंह से हुई. जिन्होंने कहा, “हम शुरुआत से ही सरकार से समस्याओं पर बातचीत करने के पक्ष में हैं. हमारा आन्दोलन इन तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग के साथ ही खड़ा हुआ था. ऐसे में जबजब सरकार ने इस मसले पर बातचीत करने का प्रस्ताव रखा है हम तबतब अपनी मांगों को ले कर उन से बात करने के लिए पहुंचे हैं.

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“3 दिसम्बर के दिन 7 घंटे चली मीटिंग में केन्द्रीय मंत्री पियूष गोयल और कई अन्य नेताओं के साथ बातचीत में हम किसानों ने 39 बिन्दुओं का मसौदा रख अपनी बात सरकार के सामने रखी थी. उस के बाद 5 दिसम्बर को कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की तरफ से मीटिंग का प्रस्ताव रखा गया, जिस में हम मौजूद थे. फिर 9 तारीख को कृषि मंत्री की तरफ से दोबारा मीटिंग का प्रस्ताव रखा गया, जिसे उन के द्वारा कैंसिल कर एक दिन पहले ही भारत बंद के दिन इमरजेंसी में करवाई गई. और उस में भी हम मौजूद थे.”
वे आगे कहते हैं,“सरकार के पीछेकौर्पोरेट का हाथ है. ये तीनों कानून कौर्पोरेट के फायदे के लिए बनाए गए हैं. भाजपा यह अच्छे से जानती है कि उसे जनता ने नहीं बल्कि इन्ही कौर्पोरेटों लौबीने प्रधानमंत्री बनाया है. जिस कारण सरकार इन कानूनों को वापस नहीं लेना चाहती. यही कारण भी है कि सरकार कौर्पोरेट और प्राइवेट प्लेयर्स को अपना दोस्त समझती है और हम किसानों को अपना दुश्मन. सरकार अबहमें किसान नहीं बल्कि अपना ‘पोलिटिकल राइवल समझ रही है.

“समझने वाली बात है,हमें चिठ्ठी भेजने से पहले सरकार इसे मीडिया को भेजती है. यह हमारे खिलाफ सरकारी प्रोपगंडा है. सरकारी चिठ्ठियों का तो मीडिया खूब बखान करती है लेकिन हमारा जवाब और उस में लिखी हमारी मांगों और असहमतियोंपर कोई चर्चा नहीं होती. मीडिया के माध्यम से सरकार यही जाताने की कोशीश कर रही है कि वे चर्चा के लिए तैयार है और हम कड़क बने हैं, जब कि ऐसा नहीं है.”

सरकार के प्रस्ताव पर किसानों के जवाब
9 दिसम्बर को केंद्र सरकार ने पहली बार किसानों को 8 सूत्रीय प्रस्ताव भेजा था. यह 8 सूत्रीय प्रस्ताव कृषि कानूनों में संशोधन का प्रपोजल था. जिस में एमएसपी को जारी रखने का लिखित आश्वासन, एपीएमसी मंडियों के बाहर प्राइवेट मंडियों को भी टैक्स जोन में लाने, ट्रेडर्स का सरकारी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन और वेरिफिकेशन होने,न्याय के लिए कोर्ट में अर्जी की आज्ञा, पोल्यूशन एक्ट और इलेक्ट्रिसिटी एक्ट-2020 को वापस लिए जाने के मुख्य बिंदु शामिल हैं. इस के अलावा आन्दोलन के दौरान नामजद किसानों पर से बिना शर्त मुकदमा वापस लिएजाने की बात भी शामिल थी.

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इन प्रस्तावों से किसानों को क्या समस्या है और आखिर सहमती क्यों नहीं बन पा रही, जब इस मसले पर किसान संयुक्त मोर्चा (एआईकेएससीसी) और पानीपत से खेत मजदुर सभा व सीटू के नेता गुलाब सिंह (45) से पूछा तो उन्होंने कहा, “किसी भी कानून में संशोधन तभी किया जाता है जब उस में खामियां हों. जब सरकार भी यह मान चुकी है कि इस में खामियां हैं तो उन्हें प्रस्ताव के रूप में आन्दोलन को खत्म किए जाने की शर्त के तौर पर भेजना धोखाधड़ी है. अगर यह खामियां थी तो इन्हें अमेंडमेंट करने का प्रोसीजर तो उन्हें स्वतः चालू कर देना चाहिए था.”

वे आगे कहते हैं, “हमारा मसला संशोधन का तो कभी रहा ही नहीं. क्योंकि यह तीनों कानून संविधान के खिलाफ है, और हमारे देश के संघीय ढांचे के साथ छेड़छाड़ है. इस के साथ ही यह यूनाइटेड नेशन के रेजोल्यूशन का भी उल्लंघन करता है. हम शुरुआत से इन तीनों कानूनों को रद्द किए जाने की बात कर रहे थे, जिस पर सरकार ही बात करने को तैयार नहीं है. उन्होंने जो प्रस्ताव भेजा उस में एमएसपी के लिखित आश्वासन की बात है जबकि देश का किसान इस के लीगल गारंटी की मांग कर रहा है.

“एमएसपी को तय करना और एमएसपी पर खरीद करना दोनों अलगअलग विषय हैं. हम चाहते हैं कि छोटे से छोटा किसान जहां भी अपनी फसल बेचे उस की एमएसपी की गारंटी हो. अगर जो कोई भी एमएसपी के नीचे खरीद करता हो, चाहे वह सरकारी हो या गैरसरकारी, उस पर क्रिमिनल ओफेंस का चार्ज लगे. और वैसे भी यह सरकार जो एमएसपी की कथित गारंटी दे रही है वह सिर्फ एडमिनिस्ट्रेटिव आर्डर है, जिस से कल को सरकार द्वारा मुकरा भी जा सकता है. सरकार बाध्य नहीं है.”

किसानों का यह सीधा मानना है कि सरकार प्रस्ताव में जो किसानों को लुभाने के लिए प्राइवेट प्लेयर्स को टैक्स के दायरे में रखने, रजिस्टर कराने और वेरीफाई करने की बात कर रही है वह एक भ्रमजाल है, मंडियों को ख़त्म करने का. सवाल यह है कि प्राइवेट प्लेयर्स को मंडी में लाने की सरकार की क्या मजबूरी है?”वह आगे कहते हैं, “प्राइवेट प्लेयर को मंडी में लाने का कानून ही इसीलिए बनाया गया है ताकि सरकार अपना पल्ला झाड़ कर मंडी से बाहर निकल सके. इतिहास गवाह है जहांजहां सरकारी संस्थाओं के सामानांतर प्राइवेट संस्थाएं खड़ी हुई हैं, वहां सरकारी संस्थाएं बर्बाद हुई हैं या उसी कगार पर है. जिओ का नेटवर्क आया और बीएसएनएल बर्बाद हो गया. प्राइवेट स्कूल और हौस्पिटल आए तो सरकारी स्कूल और हौस्पिटल की हालत खराब हो गई.”

लखबीर सिंह (एआईकेएससीसी कमिटी मेम्बर) का कहना है. “सरकार संविधान के साथ खिलवाड़ कर रही है, खेतीबाड़ी राज्यों का विषय है. उन का इस पर हम किसानों से बिना कंसल्ट किए कानून बना कर राज्यों पर थोपना देश के फैडरल सिस्टम पर हमला है.इलेक्ट्रिसिटी एक्ट-2020 में सरकार राज्यों पर अतिरिक्त भार डाल कर किसानों की बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म करने का काम कर रही है.”
वे आगे कहते हैं, “अब देखिये ये एसेंशियल कमोडिटी एक्ट 1955 को रद्द कर के 2020 का एक्ट ले कर आएं हैं जिस में भंडारण की कोई सीमा नहीं होगी. यह कौन नहीं जानता कि भंडारण करने कि किस की औकात है. सीधी सी बात है ये कौर्पोरेट को देश की मार्किटकंट्रोल करने की पूरी ताकत दे रहे हैं.”

‘किसान संयुक्त मोर्चा’ के कमिटी सदस्य व ‘जम्हूरी किसान सभा’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाक्टर सतनाम सिंह अजनाला सीधे व खरे तौर पर कहते हैं कि किसानों को समस्या नए कृषि कानूनों से है, इस पर बात करने की जगह, बारबार हमारे द्वारा रिजेक्टेड प्रस्तावों को भेजना ही उन की हठधर्मिता है. वे कहते हैं, “अब कौन्ट्रैक्ट फार्मिंग को ही ले लें, सोचिए अगर व्यापारी-किसान का करार टूटता है, तो उस की जिम्मेदारी कौन लेगा, उसे मैनेज कौन करेगा? सरकार ने तो अपना पल्ला झाड़ दिया है. क्या व्यापारी उस से सही खरीद देगा?क्या इस की गारंटी दे रही है सरकार? नहीं. इसीलिए हम एमएसपी की लीगल गारंटी की बात कर रहे हैं. सरकार सिर्फ इन प्रस्तावों पर ही देश को भटका रही है.”

वे आगे कहते हैं, “पराली जलाने पर जेल और 1 करोड़ का जुर्माना है. पहली बात यह कि देश में पराली के निपटारे के लिए सरकार के द्वारा आधुनिक उपकरणों को किसानों तक पहुंचाना प्राथमिकता होनी चाहिए थी. इस के उलट किसानों पर मुकदमा होना हास्यास्पद है. मानो, कल को कोई आपसी रंजिश में रात को किसी की पराली में आग लगा दे, तो उसे सरकार कैसे हैंडल करेगी?”

सतनाम सिंह कहते हैं, “8 दिसंबर को गृहमंत्री से हुई बातचीत में हम ने मुख्य पौइंट रेज किए थे. जहां ‘भाव अंतर’ के नेगोसिएशन पर भी बात हुई थी, जिस पर भी सरकार तैयार नहीं थी. तब उन्होंने (अमित शाह) कहा था कि इसे कैबिनेट में रखा जाएगा और विचार होगा. लेकिन कानूनों पर विचार नहीं हुआ, बस हमें प्रस्ताव लैटर भेजा गया. हमारे रिजेक्ट करने के बाद फिर वही बातेंघूमफिर कर सरकार की तरफ से रिपीट हो रही हैं. यह जाहिर करता है कि सरकार हमारी बात सुनने को तैयार ही नहीं है.”

अड़ियल कौन?
जब से देश में कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन चला है तब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कानूनों का सिर्फ बचाव करते रहे. और जब भी वह कृषि कानूनों को ले कर कुछ बोले, तभ तब आन्दोलनकारी किसानों और प्रधानमंत्री के बीच संवाद बिलकुल गायब रहा. चाहे प्रधानमंत्री के मन की बात हो, उत्तर प्रदेश में काशी दौरा हो या 12 दिसम्बर को फिक्की (पूंजीपतियों का संगठन) के मंच से कानून के पक्ष में दलीले देते रहे. लेकिन एक बार भी आन्दोलनकारी किसानों से सीधा संवाद कायम करने की कोशिश नहीं की.
15 दिसम्बर के दिन प्रधानमंत्री गुजरात में जिन किसानों से मिलने गए वह भी पूरी तरह से स्क्रिप्टेड था. 10-12 किसानों के साथ हस्ते मुस्कुराते हुए प्रधानमंत्री ने आम लोगों के बीच यह मेसेज दिया कि वह किसानों के साथ संवाद स्थापित कर रहे हैं. इसी तरह से 18 दिसम्बर को मध्य प्रदेश के किसानों के साथ विडियो कांफ्रेंसिंग में की गई वार्तालाप इसी नाटक का हिस्सा थी.

वहीं देश के गृह मंत्री अमित शाह मानों गृह मंत्री नहीं, अपनी पार्टी के प्रचारक मात्र ही हैं. देश में किसान आंदोलन का इतना बड़ा घटनाक्रम घट रहा है, उसे लेकर उन्होंने मात्र एक मीटिंग की वह भी आनन् फानन में. गृह मंत्रालय से 35-45 किलोमीटर दूर दिल्ली के बोर्डेरों पर बैठे किसानों से मिलने की जगह 1400 किलोमीटर दूर बंगाल चुनावों में पूरे जोरशोर से व्यस्त हो चुके हैं. मानों उन का ध्येय देश की समस्याओं को सुलझाने के बजाय सत्तालोभ मात्र रह गया है.

आज आंदोलन का स्वरूप पहले से बड़ा हो चुका है. इतने वर्षों में यह पहला मौका ऐसा आया है जब इतने तीखे तौर पर सरकार पर कॉर्पोरेट की दलाली करने का आरोप लग रहा है. इस का असर इस से सीधा समझा जा सकता है कि हरियाणा पंजाब में अदानी अंबानी के चीजों का न सिर्फ बोयकोट हो रहा है बल्कि जिओ के टावरों को, कॉर्पोरेट मॉल को, टोल प्लाजाओं पर किसान अपना अधिपत्य जमाने लगे हैं.
जाहिर सी बात है किसानों को सरकार की मंशा समझ आ चुकी है. वे भलीभाति जान रहे हैं की सरकार अपने द्वारा फैंके गए प्रस्ताव के अजेंडे पर देश को घुमा रही है और यह जता रही है वह फ्लेक्सिबल है जबकि पूरे घटनाक्रम को समझते हुए यह देखा जा सकता है कि सरकार किसानों की मांगों पर बात करने की बजाय अपने ही बातों को चर्चा का केंद्र बना रही है जिस में किसानों की मांगें पूरी तरह से नदारत है. इस हिसाब से अड़ियल किसान नहीं बल्कि सरकार है.

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