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फूलप्रूफ फारमूला-भाग 2 : आखिर क्यों अपूर्वा का इंतजार रजत कर रहे थें

‘‘निखिला का कहना है कि आप की प्रेम कहानी का दुखद अंत देख कर उस का प्यारमोहब्बत पर से विश्वास उठ गया है.’’ ‘‘अकसर अखबारों में घर के पुराने नौकरों की गद्दारी की खबरें छपती रहती हैं लेकिन उन को पढ़ कर लोग नौकर रखना तो नहीं छोड़ते, न ही बीमारी के डर से बाजार का खाना?’’ अपूर्वा हंसी, ‘‘फिक्र मत करो, मैं निखिला को समीर के व्यवहार और अपने अलगाव की वजह समझा कर उस का फैसला बदलवा दूंगी.’’

‘‘कोशिश करता हूं कि अगले टूर पर निखिला को साथ ले आऊं.’’ ‘‘नहीं ला सके तो बच्चों की छुट्टियों में मैं दिल्ली आ जाऊंगी.’’

तभी नौकर खाने के लिए बुलाने आ गया. चलने से पहले रजत ने पूछा कि क्या वह कल फिर बच्चों से मिलने को आ सकता है और अपूर्वा के बोलने से पहले ही मांपापा ने सहर्ष सहमति दे दी. चूंकि उसे उसी रात वापस जाना था.

अगले रोज रजत अपूर्वा के लौटने से पहले ही आ कर चला गया. ‘‘कहता था 10-15 दिन बाद वह फिर आ सकता है,’’ मां ने बताया.

अपूर्वा कहतेकहते रुक गई कि हो सकता है तब उस के साथ निक्की का टूर नहीं बनता तो वह स्वयं उस से मिलने जाएगी. वह जानती थी, निक्की के फैसले के पीछे उस की व्यथाकथा ही नहीं, निक्की की अपनी अमेरिकन बैंक की नौकरी का दर्प भी था. उसे समझाना होगा कि चंद साल के बाद जब सब सहकर्मियों और दोस्तों की शादियां हो जाएंगी तो प्रभुत्व वाली नौकरी के बावजूद उसे लगने लगेगा कि वह नितांत अकेली, असहाय और अस्तित्वहीन है.

एक शाम घर लौटने पर अपूर्वा ने देखा रजत बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहा था. कुछ देर के बाद वह अंदर आया. ‘‘निक्की का टूर नहीं बनवा सके?’’ उस ने कुछ देर के बाद पूछा.

‘‘बनवाने की कोशिश ही नहीं की,’’ रजत ने उसांस ले कर कहा, ‘‘मुझे आप का यह तर्क समझ में आया कि बगैर आप के अलगाव की वजह जाने इतना अहम फैसला कैसे ले लिया और उस के घर वालों ने कैसे लेने दिया.’’ ‘‘सही कह रहे हैं आप,’’ अपूर्वा ने बात काटी, ‘‘मां तो मधु मौसी को हरेक छोटीबड़ी बात बताती हैं. ऐसा हो ही नहीं सकता कि समीर की असलियत के बारे में उन्हें न बताया हो या मेरे लिए फिर से उपयुक्त वर तलाशने के लिए न कहा हो.’’

‘‘इस से तो यही जाहिर होता है कि निखिला शादी ही नहीं करना चाहती, आप का अलगाव महज बहाना है,’’ रजत हंसा. ‘‘प्रभुत्व वाली नौकरी मिलते ही कुछ लड़कियां और मांबाप घमंड में गलत सोचने लगते हैं. मैं मौसी और निक्की से बात करूंगी,’’ अपूर्वा ने आश्वासन के स्वर में कहा.

‘‘आप की मर्जी है. निखिला की बचकानी मनोस्थिति जानने के बाद मेरी अब उस में कोई दिलचस्पी नहीं रही है. वैसे भी वह कभी दिल्ली छोड़ना नहीं चाहती और मुझे तो जहां तरक्की मिलेगी, वहां जाऊंगा,’’ रजत मुसकराया. ‘‘बिलकुल सही एप्रोच यानी जिंदगी के प्रति सही रवैया है,’’ अपूर्वा बोली, ‘‘कितने दिन का टूर है?’’

‘‘अरे, मैं ने आप को बताया नहीं कि मेरी यहां यानी नई ब्रांच में पोस्ंिटग हो गई है.’’ ‘‘जाहिर है तरक्की पर ही हुई होगी सो कुछ पार्टीवार्टी होनी चाहिए.’’

‘‘जरूर…अभी चलिए, किसी बढि़या जगह पर डिनर लेते हैं,’’ समीर फड़क कर बोला. ‘‘बाहर क्यों, घर पर ही बढि़या खाना बनवा लेते हैं.’’

‘‘आज तो बाहर ही खाएंगे. घर पर तो आप रोज ही खाती हैं और जब यहां आ गया हूं तो मैं भी अकसर ही खाया करूंगा बशर्ते आप को मेरे आने पर एतराज न हो.’’ ‘‘अरे, नहीं, एतराज कैसा और हो भी तो मांपापा के सामने उस की कोई अहमियत नहीं होगी. यह बताइए, कहां चलना है ताकि उस के मुताबिक तैयार हुआ जाए.’’

‘‘वह तो आप को ही बताना पड़ेगा. कोई ऐसी जगह जहां बच्चे मौजमस्ती कर सकें.’’ ‘‘हमारी मौजमस्ती तो जू या टै्रजर आईलैंड में होती है,’’ प्रभव बोला, ‘‘मगर वह तो अभी बंद होंगे.’’

‘‘अभी शौपर स्टौप खुला होगा, वहीं चलते हैं,’’ प्रणव ने कहा. ‘‘वहां तो कपड़े मिलते हैं भई और हम खाना खाने जा रहे हैं,’’ रजत हंसा.

‘‘नहीं अंकल, आप चलिए तो सही फिर देखिएगा कि वहां क्याक्या मिलता है,’’ प्रणवप्रभव दोनों बोले. ‘‘वहां मिलता तो बहुत कुछ है लेकिन सब इन के मतलब का,’’ अपूर्वा हंसी, ‘‘पिज्जा, बर्गर, आइसक्रीम या चाट.’’

‘‘अरे, वाह, चाट खाए मुद्दत हो गई… वही खाएंगे. आप को पसंद है न?’’ ‘‘है तो, मगर बात तो कहीं बढि़या खाने की हो रही थी.’’

‘‘किसी और दिन, आज तो बच्चों की पसंद की जगह चलेंगे,’’ रजत ने दृढ़ता से कहा. बाहर जाने और खाने के मौके तो अकसर ही आते रहते थे लेकिन अपूर्वा को बढि़या खाना खिलाने का मौका नहीं आया क्योंकि रजत बच्चों के बगैर कहीं जाता नहीं था और बच्चे फास्ट फूड वाली जगह जाने की ही जिद करते थे. धीरेधीरे रजत परिवार के सदस्य जैसा ही होता जा रहा था. विद्याभूषण सेवानिवृत्ति के बाद क्या करेंगे, पैसे को कहां निवेश करना होगा वगैरा अहम मुद्दों पर उस से सलाह ली जाती थी. एअरकंडीशनर की सर्विसिंग या वाशिंग मशीन की मरम्मत वह सामने बैठ कर करवाता था.

‘‘हम तुम्हें छुट्टी के रोज भी चैन से नहीं बैठने देते, किसी न किसी काम के लिए बुला ही लेते हैं,’’ एक रोज मां ने कहा. ‘‘अच्छा है, नहीं तो मुझे बिन बुलाए आना पड़ता,’’ रजत हंसा, ‘‘घर में अकेले बैठने के बजाय यहां आ कर बच्चों के साथ मन बहला लेता हूं. उन की छुट्टी भी हंसीखुशी से कट जाती है और मेरी भी. जानती हैं मां, बचपन में छुट्टी का दिन मेरे लिए बहुत बुरा होता था क्योंकि सभी दोस्त छुट्टी के रोज अपने पापा के साथ खेलते थे…किसी के पास मेरे लिए फुरसत नहीं होती थी.’’

ग्वार मगौड़ी की सब्जी

ग्वार की सब्जी हमारे सेहत के लिए ज्यादा फायदेेमंद होता है. इस सब्जी में विटामिन और मिनरल ज्यादा मात्रा में पाएं जाते हैं. इसे कुछ लोग फली भी कहते हैं. ग्वार औऱ मगौड़ी सब्जी ज्यादातर लोगों को पसंद आती है. आइए आज जानते हैं ग्वार की सब्जी को कैसे बनाएं.

समाग्री

250 ग्राम ग्वार

1/4 कप मगौड़ी

एक छोटा चम्मच जीरा

हींग चुटकी भर

जीरा

मिर्च बारीक कटा हुआ

धनिया

आमचूर

गरम मसाला

बड़ा चम्मच तेल

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विधि

सबसे पहले ग्वार की फली को अच्छे से साफ कर लें. अगर उसमें कोई धागा लगा हो तो उसे भी हटा दें. अब इसे छोटे- छोटे टुकड़ों में काट लें.

एक माध्यम आंच पर मगौड़ी को सुनहरा होने तक भूनें, अब सुनहरी मगौड़ी को एक कटोरे में निकालकर रख लें. अब इसमें आधा कप पानी और जरा सा नमक डालकर गर्म करें.

अगर आपके पास माइक्रोवेव नहीं है तो किसी बर्तन में डालकर उबाल लें. अब कड़ाही को गैस पर रखकर उसमें जीरा और हींग डालकर कुछ सेकेण्ड्स के लिए भूनें.

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उसके बाद उसमें मिर्च और सभी मसाले को डालकर अच्छे से मिलाएं. जब यह सब हो जाए तो उसमें कटी हुई ग्वार को डालकर अच्छे से मिलाएं. उसके बाद इसमें मगौड़ी को डालकर अच्छे से मिलाएं.

मिलाने के बाद इसे कुछ देर तक अच्छे से भूने जब सब कुछ अच्छे से भून जाएं तो उसमें मसाले को डालकर कुछ देर के लिए पकने के लिए रख दें. इसके बाद अपने स्वाद अनुसार इसमें नमक डालें.

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धनिया पत्ति को काटकर इस पर अच्छे से सजा दें. जिससे इस सब्जी का स्वाद और भी ज्यादा बढ़ जाएगा.

 

फूलप्रूफ फारमूला-भाग 1 : आखिर क्यों अपूर्वा का इंतजार रजत कर रहे थें

आफिस से लौटने में कुछ देर हो गई थी लेकिन बच्चों ने मुंह फुलाने के बजाय चहकते हुए उस का स्वागत किया. ‘‘मम्मा, दिल्ली से रजत अंकल आए हैं, हमें उन के साथ खेलने में बड़ा मजा आ रहा है. आप भी हमारे कमरे में आ जाओ,’’ कह कर प्रणव और प्रभव अपने कमरे में भाग गए.

‘‘आ गई बेटी तू, रजत बड़ी देर से तेरे इंतजार में इन दोनों की शरारतें झेल रहा है,’’ मां ने बगैर रसोई से बाहर आए कहा. हालांकि दिल्ली रिश्तेदारों से अटी पड़ी थी लेकिन अभी तक किसी रजत से तो कोई रिश्ता जुड़ा नहीं था. पापा और बच्चों के साथ एक सुदर्शन युवक कैरम खेल रहा था. अपूर्वा को याद नहीं आया कि उस ने उसे पहले कभी देखा है. अपूर्वा को देखते ही युवक शालीनता से खड़ा हो गया लेकिन इस से पहले कि वह कुछ बोलता, प्रभवप्रणव चिल्लाए, ‘‘आप गेम बीच में छोड़ कर नहीं जा सकते, अंकल. बैठ जाइए.’’

‘‘इन की बात मान लेने में ही इज्जत है बरखुरदार. जब तक यह खेल खत्म होता है, तू भी फे्रश हो ले बेटी. रजत को हम ने रात के खाने तक रुकने को मना लिया है,’’ विद्याभूषण चहके. ‘‘वैसे मैं अपूर्वाजी का सिर खाए बगैर जाने वाला भी नहीं था,’’ रजत ने हंसते हुए कहा.

‘किस खुशी में भई?’ अपूर्वा पूछना चाह कर भी न पूछ सकी और मुसकरा कर अपने कमरे में आ गई. जब वह फे्रश हो कर बाहर आई तो बाई चाय ले कर आ गई. चाय की प्याली ले कर वह ड्राइंगरूम की बालकनी में आ गई.

‘‘मे आई ज्वाइन यू?’’ कुछ देर के बाद रजत ने आ कर पूछा. ‘‘प्लीज,’’ अपूर्वा ने कुरसी की ओर इशारा किया.

‘‘नाम तो आप सुन ही चुकी हैं, काम निखिला के साथ करता हूं. यहां हमारे बैंक की शाखा खुल रही है इसलिए उसी सिलसिले में आया हूं. आप का पता निखिला…’’ ‘‘निखिला?’’ अपूर्वा ने भौंहें चढ़ाईं.

‘‘निखिला जोशी, आप की मौसेरी बहन.’’ ‘‘ओह निक्की, मधु मौसी की बेटी,’’ अपूर्वा ने खिसिया कर कहा, ‘‘कई साल हो गए मिले हुए इसलिए एकदम पहचान नहीं सकी और उस ने मेरा पता भी याद रखा.’’

‘‘अतापता ही नहीं निखिला को तो आप के बारे में सब याद है. अकसर आप लोगों की बातें करती रहती है.’’ ‘‘मेरी तो खैर क्या बात करेगी, हां, बच्चों की शरारतों के बारे में शायद मां ने मौसी को बताया हो.’’

‘‘लेकिन निखिला तो आप के बचपन से चल रहे फेयरी टेल रोमांस, शादी और फिर शहजादे के मेढक बनने वाले दुखद अंत की बात करती रहती है,’’ रजत ने बेझिझक स्वर में कहा. ‘‘कमाल है, जहां हम नहीं पहुंचे, हमारे चर्चे जा पहुंचे. वैसे उसे कुछ खास मालूम नहीं होगा…’’

‘‘जितना भी मालूम है उस की वजह से उस ने कभी शादी न करने का फैसला किया है,’’ रजत ने बात काटी.

अपूर्वा ने चौंक कर रजत की ओर देखा, ‘तो यह वजह है मुझ से मिलने आने की.’ ‘‘बगैर असलियत जाने या मुझ से मिले, ऐसा फैसला लेना तो सरासर हिमाकत है. मैं ने समीर को इसलिए छोड़ा था क्योंकि उस का दोमुंहा व्यक्तित्व था, सब के सामने कुछ और, और अकेले में कुछ और. अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण भी वह पूर्वाग्रहों से ग्रस्त था जो शादी के बाद एकांत मिलते ही उभरने लगे थे.

‘‘वह बेहद बददिमाग था और गुस्से में उत्तेजित हो कर कुछ भी बोल और कर सकता था. गुस्से का आवेग शांत होते ही वह अपने व्यवहार पर बहुत लज्जित होता था, पश्चात्ताप करता था लेकिन इलाज के लिए मनोचिकित्सक के पास जाने से कतराता था. यह जानने के बावजूद कि मेरे गर्भ में 2 बच्चे हैं, मैं ने गर्भपात नहीं करवाया. क्योंकि मैं ने सोचा कि बाप बनने के बाद शायद अपनी जिम्मेदारियां समझ कर वह अपना इलाज करवा ले. बच्चों से बेहद लगाव होने के बावजूद समीर का व्यवहार नहीं बदला. ‘‘इस से पहले कि बच्चे उस के गुस्से का शिकार बनते और किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होते, मैं समीर से अलग हो गई. मेरी खुद की तो बढि़या नौकरी है ही और मांपापा का संरक्षण भी, इसलिए मुझे कोई परेशानी नहीं है. समीर एक मानसिक रोगी है इसलिए बजाय नफरत के मुझे उस से हमदर्दी है. न ही मेरे दिल में पुरुषों, प्यार या शादी को ले कर कोई कड़वाहट है तो फिर निक्की किस खुशी में मेरे नाम पर शहीद हो रही है?’’ अपूर्वा ने हंसते हुए पूछा.

रजत हंस पड़ा, ‘‘यह तो निखिला ही बता सकती है.’’ ‘‘मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से कोई जिंदगी में गलत फैसले ले. मेरा निखिला से मिलना बहुत जरूरी है.’’

‘‘लेकिन यह जरूरी नहीं है कि निखिला आप की बातों पर विश्वास करे.’’ ‘‘जरूर करेगी जब उसे पता चलेगा कि मैं दूसरी शादी करने को तैयार हूं मगर ऐसे आदमी से जो मेरे बच्चों को एक सुरक्षित, खुशहाल पारिवारिक जीवन दे सके, क्योंकि भौतिक सुविधाओं और नानानानी के लाड़प्यार के अलावा एक पिता का संरक्षण, अनुशासन और स्नेह बच्चों के व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास के लिए बहुत जरूरी है.’’

रजत ने एक गहरी सांस ली और बोला, ‘‘आप ठीक कहती हैं. पिता का अभाव क्या होता है, यह मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूं. पापा मेरे जन्म से पहले ही गुजर गए थे. पैसे की कोई कमी नहीं थी, चाचा और मामा वगैरा ने संरक्षण और भरपूर प्यार दिया लेकिन जिन पापा को कभी मैं ने देखा ही नहीं उन के बगैर आज भी मुझे अपना जीवन अधूरा लगता है.’’ ‘‘ऐसा लगना स्वाभाविक है क्योंकि जीवन में प्रत्येक रिश्ते की अपनी अलग ऊष्मा, अलग अहमियत होती है और कड़वाहट किस रिश्ते में नहीं आती? सगे बहनभाई एकदूसरे के जानी दुश्मन बन जाते हैं लेकिन एक भाई के धोखा देने पर दूसरे भाई से तो कोई मुंह नहीं मोड़ता, फिर पतिपत्नी के अलगाव को ले कर इतना होहल्ला क्यों?’’

बैगन की खेती को कीड़ों व बीमारियों से बचाएं

भारतीय घरों में बैगन का इस्तेमाल काफी ज्यादा किया जाता  है, इसीलिए इस की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. बैगन की फसल अकसर कीड़ों व रोगों की चपेट में आती रहती  है, लिहाजा इस का खयाल रखना बेहद जरूरी  है.

खास कीट और रोकथाम

तना व फल छेदक : इस कीट की इल्ली अंडे से निकलने के बाद तने केऊपरी सिरे से तने में घुस जाती है. कीट के कारण तना मुरझा कर लटक जाता है व बाद में सूख जाता है. फल आने पर इल्लियां उन में छेद बना कर घुस जाती हैं और अंदर ही अंदर फल खाती हैं. उन के मल से फल सड़ जाते हैं. नियंत्रण के लिए रोग लगे फलों को तोड़ कर नष्ट करें. इल्लियों को इकट्ठा कर के नष्ट करें.

कीटों का हमला होते ही ट्राइजोफास 40 ईसी 750 मिलीलीटर या क्वीनालफास 25 ईसी 1.5 लीटर दवा को 500 से 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. फल वाली दशा में फल तोड़ने के बाद ही कीटनाशी का छिड़काव करना चाहिए.

जैसिड : ये कीड़े पत्तियों का रस चूसते हैं, जिस से पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं. बचाव के लिए खेत को खरपतवार मुक्त रखें ताकि कीटों के घर खत्म हो जाएं. शुरू की दशा में 5 मिलीलीटर नीम का तेल व 2 मिलीलीटर चिपचिपे पदार्थ का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. खड़ी फसल में आक्सी मिथाइल डिमेटान मेटासिस्टाक्स या डायमेथोऐट रोगर की 1.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

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लाल मकड़ी : लाल मकड़ी माइट का रंग लाल होता है. इस के शिशु और प्रौढ़ दोनों नुकसान पहुंचाते हैं. इस कीट का प्रकोप मुलायम पत्तियों पर ज्यादा होता है और इन की संख्या पत्तियों की निचली सतह पर ज्यादा होती है. ये पौधों की कोमल पत्तियों से रस चूसते हैं, जिस से हरा पदार्थ खत्म हो जाता है और सफेद धब्बे जैसे दिखाई देने लगते हैं. पौधों की बढ़वार रुक जाती है. कीट का हमला अधिक होने पर सल्फर की 2 से 2.5 ग्राम या सल्फेक्स नामक  दवा की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.

सफेद मक्खी : ये कीट पौधों की मुलायम पत्तियों से रस चूसते हैं, जिस से वे पीली पड़ कर सूख जाती हैं. साथ ही ये कीट विषाणु जनित रोगों का फैलाव भी रोगी पौधे से स्वस्थ पौधे में करते हैं. शुरू की दशा में नीम की निबौली के सत के 5 फीसदी के घोल का छिड़काव करना चाहिए. रोकथाम के लिए इथोफेनाप्राक्स 10 ईसी या इथियान 50 ईसी या आक्सीडिमेटान मिथाइल 25 ईसी की 1 लीटर मात्रा को 600 से 700 लीटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

नेमेटोड सूत्र कृमि : इस के कारण पौधों की जड़ों में गांठें बन जाती हैं. पौधे बौने रह जाते हैं और कमजोर दिखाई पड़ते है. पत्तियां हरीपीली हो कर मुरझा जाती हैं. इस से पौधे नष्ट तो नहीं होते, लेकिन गांठों के सड़ने पर सूख जाते हैं. जहां पर इस के प्रकोप का खतरा हो, वहां 25 क्विंटल नीम की खली प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल कर मिट्टी में भलीभांति मिला देनी चाहिए. नेमागान 12 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से ले कर भूमि का पौधे रोपने से 3 हफ्ते पहले शोधन करें. रोगी पौधों को खेत से उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.

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खास रोग व इलाज

आर्द्र गलन : यह बीमारी पौधशाला में अधिक लगती है. इस से पौधे जड़ों के पास में सड़ने लगते हैं. यह रोग फाइटोपथेरा पीथियम स्क्लेरोशियम फ्युजेरियम की विभिन्न प्रजातियों से होता है. रोकथाम के लिए बीजों का थीरम की 2.5 से 3 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें.

थीरम या कैप्टान की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल कर 7 से 11 दिनों के अंतर पर 2 बार क्यारी में छिड़कें. बीजों को 50 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान पर 30 मिनट तक उपचारित कर के बोना चाहिए. इस बीमारी को रोकने के लिए ट्राईकोडर्मा की 4 से 5 ग्राम मात्रा से 1 किलोग्राम बीजों का शोधन करें. ट्राइकोडर्मा की 10 से 20 ग्राम मात्रा 1 किलोग्राम कंपोस्ट या गोबर की खाद में मिला कर 1 वर्गमीटर खेत के शोधन के लिए इस्तेमाल करें.

फोमाप्सिस झुलसा : इस के लक्षण पत्ती, फल व तने पर दिखते हैं. पत्ती पर गोल धब्बे, तने का सूखना व फल का सड़ना इस के लक्षण हैं. संक्रमित क्षेत्र में छोटेछोटे बिंदु के समान उभरे लक्षण दिखते हैं.

इस के लिए रोग रहित किस्मों का चुनाव करें और बीजों को बावस्टीन की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. खेत में फल आने से पहले समय पर ही मेंकोजेब 0.25 फीसदी 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेंडाजिम 0.1 फीसदी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव 10 दिनों के अंतर पर करें. बैगन का छोटी पत्ती रोग : इस रोग का प्रकोप बैगन की पत्तियों पर होता है, जिस में पत्तियां काफी छोटी हो जाती हैं. इस में पौधों की शाखाएं छोटी रह जाती हैं और पत्तियों का झुंड बन जाता है. पौधे झाड़ीनुमा दिखाई देते हैं. फूल व फल नहीं बनते हैं.

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इस रोग का फैलाव कीटों द्वारा ग्रसित पौधों से स्वस्थ पौधे में तेजी से होता है. लिहाजा रोग को फैलाने वाले रस चूसक कीटों की रोकथाम के लिए डाईमेथाएट 30 ईसी या आक्सीडेमेटान मिथाइन 25 ईसी की 1.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. पौधों की रोपाई से पहले जड़ों को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के 100 पीपीएम यानी 1 ग्राम मात्रा प्रति 10 लीटर पानी के घोल में भिगोना चाहिए और रोपाई के 4 से 5 हफ्ते बाद दवा का छिड़काव करना चाहिए. प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें. रोगरोधी जातियां जैसे पूसा परपल, क्लस्टर, मंजरी गोटा, अर्का शील व बनारस जाईट को लगाना चाहिए.

जीवाणु उकठा रोग : यह रोग पौधों की निचली पत्तियों से शुरू होता है, जिस में बाद में पूरी पत्तियां पीली हो कर सूखने लगती हैं. तने को काट कर देखने पर दूधिया रंग का लसलसा पदार्थ दिखाई देता है. फसलचक्र में सरसों कुल की सब्जियां जैसे फूलगोभी लगानी चाहिए. पौधे की जड़ों को रोपाई से पहले स्ट्रेप्टोसाइक्लिन नामक दवा के 100 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में आधे घंटे तक डुबाने के बाद रोपाई करनी चाहिए. उकठा रोधी या सहनशील जातियां जैसे पंत सम्राट लगाएं. कार्बेंडाजिम की 1 ग्राम मात्रा या 2.5 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करने से भी फायदा होता  है.

एशिया का नया आर्थिक टाइगर- बांग्लादेश

कोचर छोटे व बेहद गरीब कहे व माने जाने वाले बंगलादेश ने 10-15 सालों में अपने से बड़े अपने ही हिस्से पाकिस्तान को ही नहीं, दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र भारत को भी कई मामलों में पीछे कर दिया है. उस ने ऐसी सफलता कैसे हासिल की, जानने के लिए पढि़ए यह खास लेख. बात लखनऊ की है. वर्ष 2003 की. कुछ पाकिस्तानी छात्रछात्राओं का एक डैलिगेशन अपने 4 टीचर्स के साथ लखनऊ आया था. माल एवैन्यू स्थित एक इंग्लिश मीडियम स्कूल के बच्चों से भी उन्हें मिलना था. उन के बीच बातचीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आदानप्रदान होना था. ये पाकिस्तानी बच्चे 9वीं व 10वीं कक्षाओं से थे.

डैलिगेशन में छात्रों के मुकाबले छात्राओं की संख्या अधिक थी. सभी छात्राएं सिर से पांव तक बुर्कों से ढकी बस से उतरीं. मगर स्कूल के भीतर दाखिल होने के बाद सभी ने अपने बुर्के उतार कर अपनी पीठ पर लटके बैग में डाल लिए, जबकि स्कूल में काफी मर्द अध्यापक, चपरासी और 10वीं व 12वीं के छात्र मौजूद थे. यह बड़ी दकियानूसी और दिखावटी सी बात लगी कि बाहर तो आप शरीर को बुर्के में ढके हैं और अंदर आ कर आप बेपरदा हो गए, जबकि गैरमर्द तो वहां भी बड़ी तादाद में थे. मजेदार बात यह थी कि अधिकतर पाकिस्तानी लडकियां बुर्के के नीचे जींस और टीशर्ट पहने हुए थीं. ऐसा लगता था कि आजादी और उड़ने की चाहत को जबरन बुर्के में लपेट दिया गया था. इंग्लिश माध्यम में पढ़ने और इंग्लिश में फर्राटेदार बातचीत करने के बावजूद बातबात में उभरती इसलाम और रोजेनमाज की बातें भी यह जाहिर कर रही थीं कि आधुनिकता और पिछड़ेपन के बीच काफी रस्साकशी चल रही है.

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उन में से कइयों ने वहां सब के सामने अपने नृत्य भी प्रस्तुत किए और बौलीवुड अभिनेताओं की मिमिक्री भी की, जो कबीलेतारीफ थी. लेकिन वापस लौटते समय वे सभी फिर बुर्कों में सिमट गईं. उसी साल 2 बंगलादेशी महिलाओं से भी मुलाकात हुई. बिना दुपट्टे के स्लीवलैस कुरतेसलवार, पोनीटेल, कानों में बड़ेबड़े छल्ले और माथे पर बड़ी सी बिंदी चिपकाए दोनों महिलाएं किसी रिसर्चपेपर पर काम करने के दौरान भारत आई थीं. दोनों ही मुसलिम तबके की थीं, मगर उन की बोली, पहनावा और शृंगार किसी हिंदू बंगाली महिला से ज्यादा मेल खाता था. वे साइंस और नएनए आविष्कारों पर खूब चर्चा करती थीं.

वे बिंदास थीं. किसी भी जकड़न से आजाद. उन के कंधे उन के धर्म को नहीं ढो रहे थे. धर्म उन का निजी मामला था जो आम बातचीत में घुसपैठ नहीं करता था. इन 2 देशों की महिलाओं को देख कर ही दोनों देशों के आतंरिक हालात, सोच और स्थिति का अंदाजा आसानी से लग जाता है. दोनों ही मुसलिम देश हैं. दोनों ने बंटवारे का दर्द सहा. पाकिस्तान ने एक बार तो बंगलादेश ने 2 बार बंटवारा देखा. बावजूद इस के, आज बंगलादेश तरक्की के मामले में पाकिस्तान से कहीं आगे निकल गया है. बंगलादेश पाकिस्तान से आगे वर्ष 1947 में भारतपाक बंटवारे के वक्त पूर्वी पाकिस्तान कहा जाने वाला व आज का बंगलादेश 1971 में पाकिस्तान से अलग होने के बाद भीषण गरीबी व तबाही से ग्रस्त इलाका था. लेकिन धीरेधीरे उस ने अपनी स्थिति सुधारी और अपने पैरों पर खड़ा होने लगा.

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इस में एक लंबा समय लगा. 2006 तक बंगलादेश की तसवीर से काफी धूल छंट गई और तरक्की की रेस में वह पाकिस्तान को पछाड़ता हुआ आगे निकल गया. दुनिया के मानचित्र में पिद्दी सा दिखने वाला बंगलादेश आज पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि कई मानो में भारत को भी पीछे छोड़ चुका है. मानव विकास सूचकांक 2019 पर बंगलादेश दक्षिण एशिया के सभी देशों से आगे है. वह शांत तरीके से अपनी कायापलट कर रहा है. वह हर उस क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन कर रहा है, जिस से उस की जीडीपी में इजाफा हो. बंगलादेश और पाकिस्तान दोनों ही मुसलिम राष्ट्र हैं. मुसलिम बाहुल्य इलाके होने की वजह से ही बंटवारे के वक्त दोनों इलाके भारत से अलग हुए थे. फिर क्या वजह रही कि बंगलादेश पाकिस्तान से हर मामले में बीस ही बैठता है. जबकि उस ने बंटवारे (1947) के जख्म भी खाए और जब तक वह पाकिस्तान से अलग (1971) नहीं हो गया, पश्चिमी पाकिस्तानियों के उत्पीड़न व प्रताड़नाओं के दौर से गुजरता रहा. बंगलादेश बनने से पहले पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने स्थानीय नेताओं और धार्मिक चरमपंथियों की मदद से मानवाधिकारों का खूब हनन किया. 25 मार्च, 1971 को शुरू हुए औपरेशन सर्चलाइट से ले कर पूरे बंगलादेश की आजादी की लड़ाई के दौरान पूर्वी पाकिस्तान में जम कर हिंसा हुई.

बंगलादेश सरकार के मुताबिक, उस दौरान करीब 30 लाख लोग मारे गए. जानमाल की इतनी हानि के बावजूद आज बंगलादेश पाकिस्तान से कहीं आगे निकल चुका है. बंगलादेश की त्रासदियां 1947 में भारत से अलग हो कर पूर्व और पश्चिम में 2 पाकिस्तान बने. पश्चिमी पाकिस्तान ने हमेशा खुद को अव्वल माना और पूर्वी हिस्से को सत्ता में कभी भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया. वजह थी- भाषा और संस्कृति. पूर्वी पाकिस्तान के मुसलमान बांग्ला बोलते थे. उन का रहनसहन भारत के बंगालियों से मेल खाता था. जबकि, पश्चिमी पाकिस्तान में उर्दू, अरबी, फारसी को ज्यादा महत्त्व प्राप्त था. वहां के लोग अपने को सच्चा मुसलमान सम झते थे. लिहाजा, पूर्वी पाकिस्तान हमेशा सामाजिक व राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहा. इस से पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में जबरदस्त नाराजगी रहने लगी और इसी नाराजगी के परिणामस्वरूप उस समय पूर्व पाकिस्तान के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग का गठन किया और पाकिस्तान के अंदर ही और स्वायत्तता की मांग की. 1970 में हुए आम चुनाव में पूर्वी क्षेत्र में शेख की पार्टी ने जबरदस्त विजय हासिल की. उन के दल ने संसद में बहुमत भी हासिल किया. लेकिन बजाय उन्हें पूरे पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाने के, जेल में डाल दिया गया और वहीं से पाकिस्तान के विभाजन की नींव पड़ गई. 1971 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल याहिया खान ने पूर्वी हिस्से में फैली नाराजगी को दूर करने के लिए जनरल टिक्का खान को जिम्मेदारी दी. लेकिन टिक्का खान ने बातचीत के बदले दबाव से स्थिति सुधारने की कोशिश की और नतीजा यह हुआ कि मामला हाथ से निकल गया. 25 मार्च, 1971 को पाकिस्तान के इस हिस्से में सेना एवं पुलिस की अगुआई में जबरदस्त नरसंहार हुआ.

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इस से पाकिस्तानी सेना में काम कर रहे पूर्वी क्षेत्र के निवासियों में जबरदस्त रोष पैदा हुआ और उन्होंने अलग मुक्ति वाहिनी बना ली. पाकिस्तानी फौज का निरपराध, हथियारविहीन लोगों पर अत्याचार जारी रहा. जिस से लोगों का पलायन भारत की तरफ होने लगा. इस को देखते हुए भारत ने भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति सुधारी जाए. लेकिन किसी देश ने ध्यान नहीं दिया और जब वहां के विस्थापित लगातार भारत आते रहे तो अप्रैल 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन दे कर बंगलादेश की आजादी में महत्त्वपूर्ण रोल अदा किया. पश्चिम पाकिस्तान की तत्कालीन सरकार के अन्याय के विरुद्ध 1971 में भारत के सहयोग से एक रक्तरंजित युद्ध के बाद स्वाधीन राष्ट्र बंगलादेश का उद्भव हुआ. स्वाधीनता के बाद बंगलादेश के प्रारंभिक वर्ष राजनीतिक अस्थिरता से परिपूर्ण थे. देश में 13 राष्ट्रशासक बदले गए और 4 सैन्य बगावतें हुईं. 1971 में पाकिस्तान से आजादी की लड़ाई के बाद बंगलादेश ने कई त्रासदियों को झेला. भयावह गरीबी देखी, गंगाबह्मपुत्र के मुहाने पर स्थित इस देश में प्रतिवर्ष मौसमी उत्पात और चक्रवात आम हैं. दुनिया के सब से बड़े शरणार्थी संकट से भी बंगलादेश जू झ रहा है. 7 लाख 50 हजार रोहिंग्या मुसलमान पड़ोसी म्यांमार से अपना घरबार छोड़ बंगलादेश में आ बसे हैं. बावजूद इस के, धार्मिक कट्टरता को हाशिए पर धकेल कर आज बंगलादेश हर दिशा में शानदार प्रदर्शन कर रहा है. बंगलादेश अपनी आर्थिक सफलता की नई इबारत लिख रहा है. वहीं पाकिस्तान धार्मिक कट्टरता के कारण गर्त में जा रहा है. आतंकवाद, बम धमाके, गोलीबारी, हत्याकांड, अपहरण की खबरें पाकिस्तान की हकीकत बयां करती हैं. वह कभी चीन की जीहुजूरी में लगा रहता है, कभी अमेरिका के सामने खड़ा कांपता है. आज पाकिस्तान जहां अपनी दकियानूसी कठमुल्ला प्रवृत्ति के कारण आतंकवाद, पिछड़ेपन, गरीबी और तबाही की गर्त में जा रहा है, वहीं बंगलादेश ने वैज्ञानिक तरीकों कोअपना कर अपनी तरक्की का मार्ग प्रशस्त किया.

त्रासदियों से उबरता बंगलादेश भारतपाकिस्तान बंटवारे के बाद पूर्वी पाकिस्तान यानी बंगलादेश ने तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान के कारण बड़ी त्रासदी झेली. बंटवारे में पूर्व और पश्चिम मुसलिम बाहुल्य इलाके पाकिस्तान तो घोषित किए गए, लेकिन दोनों इलाकों के मुसलामानों में काफी फर्क था. पूर्वी पाकिस्तान, जिसे आज बंगलादेश कहते हैं, और पश्चिमी पाकिस्तान के मुसलमानों में ये फर्क जातिगत, रहनसहन, खानपान और भाषा के थे. पाकिस्तान के गठन के समय पश्चिमी क्षेत्र में सिंधी पठान, बलोच और मुजाहिरों की बड़ी संख्या थी, जिसे पश्चिम पाकिस्तान कहा जाता था, जबकि पूर्व वाले हिस्से में बंगाली बोलने वालों का बहुमत था, जिसे पूर्व पाकिस्तान कहा जाता था. बांग्लाभाषी मुसलमानों का रहनसहन, खानपान और बोली पश्चिमी पाकिस्तानी लोगों से भिन्न थे. इस मामले में वे पश्चिम बंगाल के रहवासियों के ज्यादा करीब थे. बंगालियों का माछभात प्रिय भोजन था और उन की औरतें बंगाली औरतों की तरह साड़ी पहनने व शृंगार करने की शौकीन थीं. बुर्के का चलन है मगर उस तरह नहीं जैसा कि पाकिस्तान में है. अधिकतर महिलाएं बिना बुर्के के रहने में सहूलियत सम झती हैं. पूर्व पाकिस्तान यानी बांग्लादेश के लोगों में न तो धार्मिक कट्टरता है और न उन्होंने कभी अपनी औरतों को उस तरह चारदीवारी में कैद रखा जैसा कि पाकिस्तान का आम रवैया है. बंगलादेश में राजनीतिक चेतना की भी कमी नहीं थी. वहां औरतों का भी राजनीति की तरफ खासा रु झान था. खालिदा जिया, शेख हसीना जैसी नेत्रियां बंगलादेश का प्रतिनिधित्व लंबे समय से करती आ रही हैं. 1971 में आजादी हासिल करने के बाद से बंगलादेशी महिलाओं ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की है. तस्लीमा नसरीन जैसी नामी लेखिका इसी मिट्टी में जन्मी हैं जिन्होंने पुरुषों द्वारा औरतों के लिए रची हर जंजीर को तोड़ने का हौसला दिखाया है.

पिछले 4 दशकों में वहां महिलाओं के लिए राजनीतिक सशक्तीकरण में वृद्धि हुई है, बेहतर नौकरी की संभावनाएं, शिक्षा के अवसर बढ़े हैं और उन के अधिकारों की रक्षा के लिए नए कानूनों को अपनाया गया है. 2018 तक बंगलादेश की प्रधानमंत्री, संसद के अध्यक्ष, विपक्ष के नेता महिलाएं थीं. ये तमाम बातें दर्शाती हैं कि बंगलादेश पाकिस्तान की तरह संकुचित दिलदिमाग वाला रूढि़वादी, कट्टरपंथी कठमुल्लों का राष्ट्र नहीं है, बल्कि आधुनिक और वैज्ञानिक सोच रखने वाला देश है जो लकीर का फकीर न हो कर समय की गति के साथ कदम मिला कर आगे बढ़ रहा है. आर्थिक संपन्नता पाकिस्तान बंगलादेश से क्षेत्रफल में पांचगुना बड़ा है. लेकिन विदेशी मुद्रा उस के पास बंगलादेश के मुकाबले लगभग पांचगुना ही कम है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 8 अरब डौलर है जबकि बंगलादेश का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 35 अरब डौलर है. बंगलादेश की वृद्धिदर 8 फीसदी है जबकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था 5 और 6 फीसदी के बीच जू झ रही है. कोरोनाकाल के आगमन से पहले भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धिदर भी घट कर 4 फीसदी रह गई थी. बंगलादेश में प्रतिव्यक्ति कर्ज 434 डौलर है जबकि पाकिस्तान में प्रतिव्यक्ति 974 डौलर है.

एक और हैरान करने वाली बात है कि 1951 की जनगणना के अनुसार पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बंगलादेश की आबादी 4.2 करोड़ थी और पश्चिमी पाकिस्तान की आबादी 3.37 करोड़ थी, वहीं आज बंगलादेश की आबादी 16.5 करोड़ है जबकि पाकिस्तान की आबादी 20 करोड़ है. यानी, बंगलादेश ने कुछ हद तक परिवार नियोजन के महत्त्व को सम झा और अपनाया. उस ने अपनी आबादी को नियंत्रित किया है जो पाकिस्तान और भारत नहीं कर पाए. पाकिस्तान में तो परिवार नियोजन इसलाम के विरुद्ध माना जाता है. वर्ल्ड इकोनौमिक फोरम के अनुसार तो बंगलादेश की 120 से ज्यादा कंपनियां आज एक अरब डौलर से ज्यादा की सूचना और प्रौद्योगिकी तकनीक दुनिया के 35 देशों में निर्यात कर रही है. बंगलादेश ने आर्थिक प्रगति के उन हिस्सों में भी मजबूती से दस्तक देना शुरू कर दिया है जहां भारत का दबदबा रहा है. औक्सफौर्ड इंटरनैट इंस्टिट्यूट के अनुसार, बंगलादेश दुनिया में दूसरा सब से बड़ा देश है जहां औनलाइन वर्कर सब से ज्यादा हैं. दक्षिण एशिया में भारत की बादशाहत को बंगलादेश चुनौती दे रहा है. हाल के एक दशक में बंगलादेश की अर्थव्यवस्था औसत 6 फीसदी की वार्षिक दर से आगे बढ़ी है. बंगलादेश की आबादी 1.1 फीसदी दर से प्रतिवर्ष बढ़ रही है जबकि पाकिस्तान की 2 फीसदी की दर से बढ़ रही है.

इस का मतलब यह भी है कि पाकिस्तान की तुलना में बंगलादेश में प्रतिव्यक्ति आय भी तेजी से बढ़ रही है. साल 2018 के जून महीने में यह वृद्धिदर 7.86 फीसदी तक पहुंच गई थी. 1974 में भयानक अकाल के बाद 16.6 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाला बंगलादेश खाद्य उत्पादन के मामले में आज आत्मनिर्भर बन चुका है. बंगलादेश में बड़ी संख्या में लोग गरीबी में जीवनबसर कर रहे हैं लेकिन विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार. प्रतिदिन 1.25 डौलर में अपना जीवन चलाने वाले कुल 19 फीसदी लोग थे जो अब 9 फीसदी ही रह गए हैं. विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2017 में बंगलादेश में जिन लोगों का बैंक खाता है उन में से 34.1 फीसदी लोगों ने डिजिटल लेनदेन किया जो दक्षिण एशिया में औसत 27.8 फीसदी ही है. भारत में ऐसे लोगों की तादाद 48 फीसदी है जिन के पास बैंक खाता तो है लेकिन उस से कोई लेनदेन नहीं करते. ऐसे खातों को डौर्मंट अकाउंट (निष्क्रिय खाता) कहा जाता है. दूसरी तरफ बंगलादेश में ऐसे सिर्फ 10.4 फीसदी लोग ही हैं. यही वजहें हैं कि बंगलादेश को आज दक्षिण एशिया का नया टाइगर कह कर पुकारा जा रहा है. कपड़ा एक्सपोर्ट यों तो ज्यादातर मोरचों पर बंगलादेश प्रदर्शन के मामले में अपने सरकारी लक्ष्यों से आगे निकल चुका है, मगर मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर पर वह सब से ज्यादा ध्यान दे रहा है. कपड़ा उद्योग में बंगलादेश का प्रभुत्व दुनियाभर में बढ़ रहा है. इस मामले में बंगलादेश चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. भारत के कपड़ा एक्सपोर्ट पर भी आज बंगलादेश छा गया है. बंगलादेश में बनने वाले कपड़ों का निर्यात सालाना 15 से 17 फीसदी की दर से आगे बढ़ रहा है. 2018 में जून महीने तक कपड़ों का निर्यात 36.7 अरब डौलर तक था.

2019 के लिए यह लक्ष्य 39 अरब डौलर का रखा गया था और माना जा रहा था कि 2021 में बंगलादेश जब अपनी 50वीं वर्षगांठ मनाएगा तो यह आंकड़ा 50 अरब डौलर तक पहुंच जाएगा. हालांकि, कोरोना वायरस ने इस उम्मीद को पूरा होने में थोड़ी रुकावट जरूर डाल दी है. बंगलादेश की आर्थिक सफलता में रेडिमेड कपड़ा उद्योग की सब से बड़ी भूमिका मानी जाती है. कपड़ा उद्योग ही बंगलादेश के लोगों को सब से ज्यादा रोजगार भी मुहैया कराता है. कपड़ा उद्योग से बंगलादेश में 40.5 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है. बंगलादेश में कपड़ों की सिलाई का काम व्यापक पैमाने पर होता है और इस में बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं. 2013 के बाद से वहां औटोमेटेड मशीनों का इस्तेमाल हो रहा है. कपड़ा फैक्ट्रियों को अपग्रेड किया गया है और उन में काम करने वाले कामगारों की स्थिति में बेहतरी के लिए कई कदम सरकार ने उठाए हैं. 2009 से बंगलादेश में प्रतिव्यक्ति आय तीनगुनी हो गई है. अमेरिका और चीन के बीच छिड़े ट्रेड वार में बंगलादेश की टैक्सटाइल इंडस्ट्री को काफी उम्मीद है. बंगलादेश को लगता है कि अगर चीन का कपड़ा निर्यात कम हुआ तो वह इस की भरपाई की क्षमता रखता है. हालांकि, इस का फायदा वियतनाम, तुर्की, म्यांमार और इथोपिया को भी मिल सकता है. भारत फिसड्डी ही रहेगा. बढ़ते उद्योगधंधे व टैक्नोलौजी बंगलादेश की सरकार देशभर में 100 विशेष आर्थिक क्षेत्रों का नैटवर्क तैयार करना चाहती है.

इन में से 11 बन कर तैयार हो गए हैं और 79 पर काम चल रहा है. चीन कई मोरचों पर बंगलादेश को ‘वन बैल्ट वन रोड’ परियोजना के तहत मदद कर रहा है. चीन बंगलादेश के कई बड़े प्रोजैक्टों में आर्थिक मदद भी मुहैया करा रहा है. 2018 में चीन ने बंगलादेश के ढाका स्टौक एक्सचैंज का 25 फीसदी हिस्सा खरीद लिया था. इसे खरीदने की कोशिश भारत ने भी की थी कि लेकिन चीन ने इस की ज्यादा कीमत चुकाई और भारत के हाथ से यह सौदा निकल गया. बंगलादेश पाकिस्तान के बाद चीन से सैन्य हथियार खरीदने वाला दुनिया का दूसरा सब से बड़ा देश है. धर्म और बंगलादेश बंगलादेश ने कभी भी धर्म को अपनी उन्नति में बाधक नहीं बनने दिया. कठमुल्लों और उन की सड़ीबुसी बातों को कभी तवज्जुह नहीं दी गई. बंगलादेश ने महिलाओं की शिक्षा, गर्भनिरोध के प्रचार, व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा के साथ माध्यमिक और उच्च शिक्षा पर अधिक जोर दिया है. डिजिटल व्यवस्था की ओर उस के कदम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में शेख हसीना ने डिजिटल बंगलादेश लौंच किया था ताकि टैक्नोलौजी को बढ़ावा दिया जा सके. शेख हसीना ने अपने कार्यकाल में डिजिटल व्यवस्था को काफी दुरुस्त किया है. इस के लिए अमेरिका में पढ़े शेख हसीना के बेटे सजीब अहमद की भूमिका को काफी अहमियत दी जाती है. उन के प्रयासों से बंगलादेश में सूचना टैक्नोलौजी का काफी विस्तार हुआ और देशभर में इस से जुड़े 12 हाईटैक पार्क बनाए गए. बंगलादेश आज आईटी सैक्टर में भारत से मुकाबला कर रहा है. सौफ्टवेयर कंपनी टैक्नो हैवन और बंगलादेश एसोसिएशन औफ सौफ्टवेयर एंड इंफौर्मेशन सर्विसेस के सह संस्थापक हबीबुल्लाह करीम के मुताबिक, ‘बंगलादेश में बीते साल 30 जून तक आईटी सर्विसेस और सौफ्टवेयर का निर्यात 80 करोड़ डौलर तक पहुंच गया. सरकार ने 2021 तक इस का लक्ष्य 5 अरब डौलर रखा है जो कि काफी चुनौतीपूर्ण है. बंगलादेश में आईटी सैक्टर में कई काम हुए हैं. अब यहां एयरलाइन, होटल बुकिंग और इंश्योरैंस क्लेम सबकुछ औनलाइन हो रहा है.’ दुनियाभर में जेनरिक दवाइयों के निर्माण में भारत का नाम है, लेकिन बंगलादेश इस क्षेत्र में चुनौती दे रहा है. अल्पविकसित देश का दर्जा होने के कारण बंगलादेश को पेटैंट के नियमों से छूट मिली हुई है. इस छूट के कारण बंगलादेश जेनरिक दवाइयों के निर्माण में भारत को चुनौती रहा है. बंगलादेश जेनरिक दवाइयों के निर्माण में दूसरा सब से बड़ा देश बन गया है और 60 देशों में इन दवाइयों का निर्यात कर रहा है. बाल मृत्युदर, लैंगिक समानता और औसत उम्र के मामले में बंगलादेश भारत को पीछे छोड़ चुका है. बंगलादेश में एक व्यक्ति की औसत उम्र 72 साल हो गई है जो कि भारत के 68 साल और पाकिस्तान के 66 साल से ज्यादा है.

बंगलादेश में महिलाओं का सशक्तीकरण तेजी से हो रहा है. कपड़ा उद्योग में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या अधिक है. बंगलादेश की अर्थव्यवस्था में महिलाओं का विशेष योगदान है. अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने में विदेशों में काम करने वाले करीब 25 लाख बंगलादेशियों की भी बड़ी भूमिका है. ये विदेशों से जो पैसे कमा कर भेजते हैं उन में सालाना 18 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है. 2018 में यह 15 अरब डौलर तक पहुंच गया था. बंगलादेश के लिए वह पल काफी निर्णायक रहा जब संयुक्त राष्ट्र ने बंगलादेश को अल्पविकसित देश की श्रेणी से निकाल 2024 में विकासशील देशों की पंक्ति में खड़ा करने की बात कही. अल्पविकसित श्रेणी से बाहर निकलना बंगलादेश के आत्मविश्वास और उम्मीदों की मजबूती के लिए बहुत खास है. अगर आप निचले दर्जे में रहते हैं तो प्रोजैक्ट और प्रोग्राम पर बातचीत भी उन्हीं की शर्तों के हिसाब से होती है.

ऐसे में आप दूसरों की दया पर ज्यादा निर्भर करते हैं. एक बार जब आप उस श्रेणी से बाहर निकल जाते हैं तो किसी की दया पर नहीं, बल्कि अपनी क्षमता के दम पर आगे बढ़ते हैं. बंगलादेश भारत के लिए एक बड़ी मानसिक चुनौती बन रहा है. जिन बंगलादेशियों को भारत में भूखेनंगे कह कर अपमानित किया जाता है और उन पर घुसपैठिए होने का आरोप लगता था, वे अब फख्र से सिर उठा कर चलेंगे. बंगलादेश से भाग कर आने वाले तो कम हो ही जाएंगे. उलटे, भारतीय बंगाली अपने को, बंगलादेशी कह कर बंगलादेश में काम ढूंढ़ने व घुसने लगें, तो बड़ी बात न होगी. भारत की आंतरिक स्थिति बेहद नाजुक है जबकि बंगलादेश उस से गुजर चुका है. नागरिकता संशोधन कानून जैसे कानून अब भारत के लिए बेमाने हो गए हैं क्योंकि इन के सहारे भारतीयों को बंगलादेश में जाने का मौका मिलेगा.

नई हुंडई i20 लुक दे रहा है सभी कारों को मात

कॉम्पैक्ट एसयूवी हर जगह मार्केट में छाया हुआ है. यह प्रीमियम हैचबैक बाजार के लिए खतरा बनते जा रहा है. वह सफल हो जाता अगर हमारे पास नई Hyundai i20 की चौथी पीढ़ी नहीं होती .  नई हुंडई i20 की चौथी पीढ़ी  न केवल अपने सेगमेंट की कारों बल्की सभी कॉम्पैक्ट एसयूवी को भी टक्कर देता है.

हुंडई के डिजाइन टीम ने इस कार के लुक को इतना शानदार बनाया है कि इसे देखने के बाद लोग सोचना शुरू कर दे रहे हैं. इसका लुक कॉम्पैक्ट एसयूवी के लुक को भी मात दे रहा है. इसे डिजाइन करने की प्रेरणा  Le Fil रूज  कंसेप्ट से लिया गया है. नई हुंडई i20 के फ्रंट को शार्प लुक दिया है इसके साथ ही एलईडी हेडलैंप और डीआरएल भी लगाया गया है.

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कार में लगे नई पैरामीट्रिक ज्वेल  ग्रिल इसकी खूबसूरती को और भी ज्यादा बढ़ा देता है. वहीं हुंडई i20 में दिए गए क्रीज लाइन इसे स्पोर्टी लुक देता है. बता दें कि यह लाइन आपके आखों को कार की हेडलाइट्स की तरफ से पीछे की ओर ले जाती हैं. जहां वे टेललाइट्स पर अचानक समाप्त हो जाती है अपने एक नए डिजाइन के साथ हुंडई i20 #BringsTheRevolution.

नवीन कस्तूरिया और अदा शर्मा की मुख्य भूमिका वाली वेब सीरीज‘‘पति पत्नी और पंगा’’का ट्रेलर हुआ वायरल

उप दलाल के रूप में कार्यरत रोमांचक(नवीन कस्तूरिया) अपनी सुस्त जिंदगी को रोमांचक बनाना चाहते थे,लेकिन उन्हें क्या पता था कि शिवानी भटनागर(अदा शर्मा) से शादी करने से उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाएगी!जी हाॅ!ऐसा ही कुछ होने वाला है 11 दिसंबर को ‘‘एम एक्स प्लेअर’’पर प्रसारित होने वाली छह एपीसोड की वेब सीरीज ‘पति पत्नी और पंगा’ में.वैसे हम बता दें कि यह दो वर्ष पहले बनी फिल्मकार अबीर सेन गुप्ता की फिल्म‘‘मैन टू मैन’’है,जिसे नए नाम के साथ छह एपीसोड की वेब सीरीज के रूप में प्रसारित किया जाएगा.

वेब सीरीज‘‘पति पत्नी और पंगा’’की हास्य कहानी पति-पत्नी के बिगड़े संबंधों पर आधारित है,लेकिन इसकी वजह ‘सेक्स चेंज ऑपरेशन’ है.जी हाॅ! पिछले कुछ वर्षों के दौरान कुछ लड़के व कुछ लड़कियां अपना ‘सेक्स चेंज ऑपरेशन’ करवाकर लड़के से लड़की अथवा लड़की से लड़के बन रही हैं.हमें याद लगभग दो वर्ष पहले एक लड़के के माता पिता ने एतराज जताया था,तब उस लड़के ने अदालत की शरण लेकर अपना सेक्स चेंज ऑपरेशन करवाकर लड़की बन गया.मगर अहम सवाल यह है कि सेक्स चेंज ऑपरेशन से लिंग परिवर्तन तो कर सकते हैं,मगर पुरूष और स्त्री के अंदर प्राकृतिक तौर पर जो भावनाएं व संवेदनाएं होती हैं,वह तो नहीं बदल सकती?इस वजह से किस तरह की समस्याएं इंसान की जिंदगी में पैदा हो सकती हैं,इसी को हास्य के साथ उठाते हुए एक संदेष देने का भी प्रयास लेखक व निर्देशक अबीर सेन गुप्ता ने किया है.

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इस वेबसीरीज का ट्रेलर जारी हो चुका है.ट्रेलर की शुरुआत रोमांचक(नवीन कस्तूरिया) और उसकी मां (अलका अमीन) से होती है,जो वकील(हितेन तेजवानी)के पास तलाक के लिए मिलते हैं.यहां तलाक की वजह पति या पत्नी का किसी गैर औरत या मर्द से संबंध नहीं,बल्कि लड़की का शादी से पहले एक मर्द होना है.जो सेक्स चेंज करा के अब महिला बन चुकी है.शिवानी भटनागर उर्फ शिव (अदा शर्मा)उस लड़की की भूमिका में हैं,जो शादी से छह माह पहले तक मर्द थी,पर फिर ऑपरेशन के द्वारा लिंग परिवर्तन कराकर खूबसूरत लड़की बनकर रोमांचक की जिंदगी में आती है.दोनों एक- दूसरे के रोमांस में डूब जाते हैं.फिर यह रिश्ता शादी में बदल जाता है.

शादी के बाद पर जब रोमांचक को सच का पता चलता है,तो वह तलाक लेने का प्रयास करते हैं..अब क्या होेता है,यह तो वेब सीरीज देखने पर ही चता चलेगा…ट्रेलर में एक जगह रोमांचक का दोस्त उससे पूछता है कि क्या वह शिवानी के किसी दोस्त या परिवार से कभी मिला या बात की थी? रोमांचक के इनकार करने पर उसे लानत भेजता है कि वह शादी करने के लिए सिर्फ इसलिए तैयार हो गया कि लड़की सुंदर दिखी?
इस वेब सीरीज के अपने किरदार की चर्चा करते हुए अदा शर्मा कहती हैं-‘‘मैं खुद को खुद किस्मत समझती हॅूं कि मुझे इस तरह की भूमिका निभाने का अवसर मिला.इसकी कहानी एक-दूसरे से बेहद प्यार करने वाले एक प्रेमी जोड़े के इर्द-गिर्द घूमती है.इस कहानी में रोमांच तब आता है,जब शादी के बाद लड़के को पता चलता है कि उसने जिस लड़की से शादी की है, वह कोई लड़की नहीं,बल्कि वह भी लड़का है.

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मैंने इसी लड़के का किरदार निभाया हैं.मैं यह जानने के लिए काफी उत्सुक हूं कि मुझे एक पुरुष किरदार में देखकर लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी?सच कहॅूं तो यह एक ऐसी भूमिका है,जिसे किसी भी अभिनेत्री ने कम से कम भारत में निश्चित रूप से नहीं निभाया है.यह वेब सीरीज न सिर्फ दर्शकों को हंसाएगी,बल्कि हमारे समाज में व्याप्त रूढ़ियों पर भी प्रकाश डालेगी.”

जबकि रोमांचक किरदार निभाने वाले अभिनेता नवीन कस्तूरिया कहते हैं-‘‘वेब सीरीज ‘पति पत्नी और पंगा’में अदा शर्मा मेेरे साथ हैं.एक लड़के को एक लड़की से प्यार हो जाता है और दोेनों शादी कर लेते हैं. शादी के बाद लड़के को पता चलता है कि उसने जिस लड़की से शादी की है,वह तो छह माह पहले तक लड़का थी.अब उसने अपना सेक्स चेंज करवाया हुआ है.लड़के को लगता है कि उसके साथ धोखा हुआ है.फिर कहानी में कई मोड़ आते हैं.एक हास्य फिल्म है.पर मनोरंजन के साथ संदेश भी है,लेकिन उपदेषात्मक भाषणबाजी नहीं है.यह एक हल्की-फुल्की कॉमेडी है,लेकिन साथ ही साथ एक सामाजिक संदेश भी है.जो इसे एक बेहतरीन कहानी बनाता है.

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अदा के साथ काम करने में बहुत मजा आया और अबीर ने दर्शकों के मनोरंजन के लिए कहानी को बहुत अच्छी तरह से मिश्रित किया है.साथ ही अंतर्निहित संदेश को खूबसूरती से सामने लेकीर आए हैं.इस परियोजना पर काम करना, व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए अद्भुत अनुभव रहा है. ”
अबीर सेनगुप्ता लिखित व निर्देशित वेब सीरीज‘‘पति पत्नी और पंगा’’में अदा शर्मा, नवीन कस्तूरिया, हितेन तेजवानी,गुरप्रीत सैनी और अलका अमीन नजर आएंगे.?

प्रियंका चोपड़ा ने किया किसानों का समर्थन, तो लोगों ने किया ये कमेंट

बॉलीवुड से हॉलीवुड तक अपनी पहचान बनाने वाली भारतीय अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने किसान बिल के खिलाफ प्रर्दशन कर रहे हैं किसानों का साथ दिया है. उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंड पर लिखा है कि किसानों के अंदर का डर खत्म करना चाहिए सरकार को उनकी बात सुननी चाहिए.

जिसके बाद से किसान प्रियंका चोपड़ा की वाह वाही करने लगे हैं. वहीं अदाकारा की सोशल मीडिया पर जमकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं. और अमेरिका से किसान के समर्थन में आ गई हैं.

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कुछ दिनों पहले प्रियंका चोपड़ा ने सिंगर दलजीत दोसांझ के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा था हमारे किसान भारत के खाद्य सैनिक है उनके डर को दूर करना चाहिए. उनकी आशाओं पर खरा उतरने की जरूरत है. हमें किसानों के संकट को जल्द खत्म करना चाहिए.

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प्रियंका चोपड़ा के इस ट्वीट के बाद देश में उनकी सराहना हो रही है. कुछ लोगों ने उनके इस ट्वीट की तारीफ करते हुए उन्हें शेरनी कहा है. प्रियंका भले ही अमेरिका में रह रही हैं लेकिन उन्हें अपने देश और मिट्टी से बहुत ज्यादा लगाव है. यहीं वजह है जिससे प्रियंका चोपड़ा अपने देश के किसानों के लिए इतना सारा प्यार दिखा रही हैं.

बता दें कि प्रियंका चोपड़ा के अलावा सोनम कपूर, रितेश देशमुख और भी कई कलाकार इनके समर्थन में आएं हैं. इन सभी का कहना है कि किसान बिल पर सरकार को सुनवाई करनी चाहिए. किसान हमारे देश के अन्नदाता हैं.

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वहीं कुछ दिनों पहले कंगना रनौत और दलजीत दोसांझ के बीच किसान बिल को लेकर बहुत लंबी झडप हो गई थी. जो लगातार कुछ वक्त तक सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थी.

 

प्रहरी-भाग 3 : कैसे उतरा विभा की आंखों पर पड़ा नासमझी का परदा

विभा की आंख जब लगी, तब शायद सुबह हो चुकी थी, क्योंकि फिर वह सुबह देर तक सोई रही. किंतु उस दिन शनिवार होने के कारण तपन की छुट्टी थी, सो, किसी काम की कोई जल्दी न थी. मुंह धो कर जब विभा रसोई में पहुंची तो सुषमा चाय बना चुकी थी. उसे देखते ही चिंतित सी बोली, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां, वह तो ठीक है,’’ विभा ने कहा, ‘‘रात नींद ही बड़ी देर से आई.’’ सादगी से कही उस की इस बात पर तपन और सुषमा दोनों ही सोच में डूब गए. वे दोनों जानते थे कि उन के आपसी झगड़ों से मां का दिल दुखी हो उठता है और मुंह से कुछ भी न कह कर वे उस दुख को चुपचाप सह लेती हैं.

सुषमा के हाथ से कप ले कर विभा खामोशी से चाय पीने लगी. तपन पास आ कर बैठते हुए बोला, ‘‘चलो मां, तुम्हें कहीं घुमा लाते हैं.’’ ‘‘कहां चलना चाहते हो?’’ विभा ने हलके से हंस कर पूछा तो तपन और सुषमा दोनों के चेहरे चमक उठे.

‘‘चलो मां, किसी अच्छे गार्डन में चलते हैं. सुषमा थर्मस में चाय डाल लेगी और थोड़े सैंडविच भी बना लेगी, क्यों, ठीक है न?’’ ‘‘हांहां,’’ कहते हुए सुषमा ने जब तपन की ओर देखा तो उस नजर में उन दोनों के बीच हुए समझौते की झलक थी. विभा का चिंतित मन यह देख खुश हो गया.

नवंबर की धूप में गार्डन फूलों से लहलहा रहा था. शनिवार की छुट्टी होने के कारण अपने छोटे बच्चों को साथ ले कर आए बहुत से युवा जोड़े वहां घूम रहे थे. दिल्ली शहर के छोटे मकानों में रहने वाले मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चे खुली हवा के लिए तरसते रहते हैं. अब इस समय यहां मैदान में बड़ी ही मस्ती से होहल्ला मचाते एकदूसरे के पीछे भाग रहे थे. बच्चों की इस खुशी का रंग उन के मातापिता के चेहरों पर भी झलक रहा था.

विभा का मन भी यहां की रौनक में डूब कर हलका हो उठा. सब से बड़ी बात तो यह थी कि तपन और सुषमा के बीच कल वाला तनाव खत्म हो गया था और वे दोनों सहज हो कर आपस में बातें कर रहे थे. एक तरफ पेड़ की छाया में साफ जगह देख कर सुषमा ने दरी बिछा दी. ठंडी बयार में फूलों की महक घुली थी. विभा को यह सब आनंद दे रहा था. दरी पर बैठी वह मन ही मन सोच रही थी कि आने वाले दिनों में शायद तपन और सुषमा भी जब यहां आएंगे तो नन्हें हाथ उन की उंगलियां थामे होंगे. यह सोच कर विभा का दिल एक सुखद एहसास से भीग उठा. अचानक सुषमा की आवाज से उस की विचारशृंखला टूटी, ‘‘मांजी, यह चाय ले लीजिए.’’

अचानक तपन बोला, ‘‘सुषमा, वह देखो, उधर शंकर और सविता बैठे हैं. चलो, मिल कर आते हैं.’’ किंतु सुषमा बोली, ‘तुम हो आओ, मैं यहां मांजी के साथ ही बैठूंगी.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर तपन उधर चला गया. विभा ने एक गहरी नजर सुषमा पर डाली, जो घुटनों पर सिर रखे चुप बैठी थी. चाय पी कर गिलास नीचे रखते ही विभा उस के पास खिसक आई और पूछा, ‘‘तुम गई क्यों नहीं? शायद उस के दफ्तर का कोई दोस्त है.’’

‘‘क्या फायदा मांजी, फिर झगड़ाझंझट करेंगे. अब आप ही बताइए, इन के मित्र मुझ से बात करें तो क्या मैं अशिष्ट बन जाऊं? उन के साथ हंस कर बात करूं तो ये नाराज, और न करूं तो वे लोग बुरा मानेंगे. मैं तो बीच में फंस जाती हूं न. अब तो मैं इन के साथ पार्टियों में जाना भी बंद कर दूंगी, घर पर ही ठीक हूं,’’ सुषमा थोड़ा तल्खी से बोली.

विभा कुछ देर उस के खूबसूरत चेहरे को देखती रही जहां एक आहत सी अहं भावना की परछाईं थी. फिर कुछ सोच कर समझाते हुए बोली, ‘‘तपन तुम्हें बहुत चाहता है, इसी से उस में तुम्हारे प्रति यह भावना है. पति के दिल की एकछत्र स्वामिनी होना तो बड़े गर्व की बात है.’’

‘‘वह तो ठीक है,’’ सुषमा का चेहरा शर्म से लाल हो गया, ‘‘किंतु जब औरों को देखती हूं तो लगता है कि उन्हें इस बात की चिंता ही नहीं कि उन की पत्नियां कहां, किस से बातें कर रही हैं.’’ ‘‘तब तो तुम यह भी देखती होगी कि वही लोग कभीकभी शराब के नशे में डूबे उन से गलत व्यवहार भी करते होंगे?’’

‘‘यह सब तो कभीकभी चलता है, इन पार्टियों में सभी तरह के लोग होते हैं.’’

‘‘तो फिर अब इस बात को भी समझो कि तुम्हारे साथ किसी का गलत व्यवहार तपन को कभी सहन न होगा. विवाहित जीवन में पति का अंकुश पत्नी पर और पत्नी का अंकुश पति पर होना बहुत जरूरी है. यही एक सफल दांपत्य जीवन का मंत्र है, जहां पतिपत्नी दोनों एकदूसरे को गलत कामों के लिए टोक सकते हैं, एकदूसरे को सही राह दिखा सकते हैं. किंतु इस के लिए विश्वास की मजबूत नींव जरूरी है, जिस में एकदूसरे के इस टोकने को गलत न समझा जाए, बल्कि उस के मूल में छिपी सही विचारधारा को समझा जाए, सुषमा, इस अधिकार को एक का दूसरे पर शासन मत समझो बल्कि एक की दूसरे के प्रति अतिशय प्रेम की अभिव्यक्ति समझो. ‘‘यदि तुम्हें वह सदैव अपनी नजरों के सामने रखना चाहता है तो यह तुम्हारा बहुत बड़ा सम्मान है. पति जिस स्त्री का सम्मान करता है, उस का सम्मान सारी दुनिया करती है, इसे हमेशा याद रखना.’’

इतना सबकुछ एक सांस में ही कह चुकने के बाद विभा खामोश हो गई. उस की बातें बड़े गौर से सुनती सुषमा के सामने विवाहिता जीवन का एक नया ही रहस्य खुला था कि आज के इस नारीमुक्ति युग में पति का पत्नी पर अपना अधिकार साबित करना कोई अमानवीय काम नहीं बल्कि उस के अखंड प्रेम का संकेत है.

सुषमा सोचने लगी कि न जाने उस की कितनी सहेलियां अकेली घूमतीफिरती हैं, अकेली ही पार्टियों में भी जाती हैं. किंतु सच तो यह है कि सुषमा को उन पर बड़ी दया आती है, क्योेंकि अकसर ही उन्हें किसी न किसी पुरुष के गलत व्यवहार का शिकार होना पड़ता है, जिस से उन को बचाने वाला वहां कोई नहीं होता. लेकिन उस के साथ तो उलटा ही है, किसी की टेढ़ी तो क्या, सीधी नजर भी उस पर पड़े तो पति सह नहीं पाता. हमेशा ढाल बन कर खड़ा हो जाता है. इसलिए तो आज तक कभी किसी पार्टी में उस के साथ गलत व्यवहार करने की किसी की हिम्मत नहीं हुई. बुरे से बुरा व्यक्ति भी उस के सामने आ कर इज्जत से हाथ जोड़ कर उसे ‘भाभीजी’ ही कहता है. फिर वह खुद भी तो किसी को ऐसा ओछा व्यवहार करने का मौका नहीं देती.

किंतु उस की मर्यादा का सजग प्रहरी तो तपन ही है न, उस का अपना तपन, जो इन पार्टियों में हर समय साए की तरह उस के साथ रहता है. अकसर उस के दोस्त हंसते भी हैं और कहते भी हैं, ‘बीवी को कभी अकेला छोड़ता ही नहीं.’ किंतु तपन उन के हंसने या मजाक बनाने की कतई परवा नहीं करता. ये विचार मन में आते ही सुषमा को अपने तपन पर बहुत ज्यादा प्यार आया. उस की इच्छा हो रही थी कि दौड़ कर जाए और दूर खड़े तपन के गले में अपनी बांहें डाल दे और कहे, ‘अब मैं तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं मानूंगी. मांजी ने मेरी आंखों से नासमझी का परदा उठा दिया है. तुम्हारी नाराजगी का भी सम्मान करूंगी, क्योंकि वह मेरा सुरक्षाकवच है. मेरे अब तक के व्यवहार के लिए मुझे माफ कर दो.’

मन ही मन इन विचारों में घिरी सुषमा का चेहरा विश्वास की आभा से जगमगा रहा था. आंखों में मानो प्यार के दीए जल उठे थे. बड़ी बेसब्री से वह तपन के आने की प्रतीक्षा कर रही थी. सुषमा सोच रही थी कि कैसी अजीब बात है कि जब तक वह घटनाओं से खुद को जोड़े हुए थी, कुछ भी साफ देख, समझ नहीं पा रही थी, किंतु जब घटनाओं से अलग हो कर उस ने खुद को तटस्थ किया तो सबकुछ शीशे की तरह साफ हो गया. उस के अपने ही दिल ने पलभर में सहीगलत का फैसला कर लिया.

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