इस के अगले दिन इकबाल थाने आ गया. वह 30-32 साल का सुंदर जवान युवक था. उस के चेहरे पर परेशानी साफ दिखाई दे रही थी. उस ने आते ही कहा, ‘‘सर, मैं ने सुना है कि समर की हत्या हो गई. किस ने की है उस की हत्या? क्या आप ने हत्यारे का पता लगा लिया?’’ आते ही उस ने कई सवाल किए.
मैं ने उस की आंखां में देखते हुए कहा, ‘‘पहले आप यह बताइए कि अचानक कहां गायब हो गए थे?’’
उस ने कहा, ‘‘यह एक लंबी कहानी है. मुझे लगता है, आप मुझे समर का हत्यारा समझ रहे हैं?’’
‘‘आप ठीक समझ रहे हैं, जब कोई पास का संबंधी या रिश्तेदार अचानक गायब हो जाए तो शक उसी पर जाता है. आप अपनी कहानी सुनाओ, हम यहां कहानी सुनने के लिए ही बैठे हैं.’’
इस के बाद उस ने अपनी कहानी सुनानी शुरू की, ‘‘साहब, मुझे समर से प्रेम हो गया था. मैं ने उस से शादी की और घर ले आया. लेकिन मेरी मां और बहन को वह एक आंख नहीं सुहाई. वह उसे टौर्चर करती रहती थीं. खासतौर पर उस का अस्पताल जाना उन्हें बिलकुल पसंद नहीं था. वे दोनों रातदिन मेरे कान भरती रहती थीं और कहती थीं कि मैं उसे तलाक दे दूं.’’
‘‘आप भी तो उस पर शक करते थे कि वह डा. आतिफ में दिलचस्पी लेती है.’’ मैं ने बीच में ही टोका.
‘‘आप को यह बात किस ने बताई?’’ वह बोला.
‘‘किसी ने भी बताई हो, आप अपनी बात कहो.’’
‘‘नहीं सर, बात दरअसल ऐसी है कि मेरी मां और बहन ने मेरा इतना दिमाग खराब कर दिया था कि मैं भी उस पर शक करने लगा. वह मेरे व्यवहार से तंग आ कर अस्पताल के क्वार्टर में रहने लगी. मुझे अगर यह पता होता कि…’’ उस ने कहा.
मुझे अचानक याद आया तो मैं ने कहा, ‘‘आप को सिगार पिए काफी देर हो चुकी है. आप सिगार पी लीजिए.’’
वह मुसकरा कर बोला, ‘‘ओ हां, लेकिन आप के सामने?’’
‘‘कोई बात नहीं, आप को इजाजत है. आप पी लीजिए.’’ उस ने अपनी जेब से सिगार का एक पैकेट निकाला. मैं ने देखा वह वही सिगार का ब्रांड था, जिस का टुकड़ा डा. समर के कमरे से मिला था.
मैं ने इकबाल से कहा, ‘‘आप एक इज्जतदार आदमी हैं और मुझे उम्मीद है कि आप झूठ नहीं बोलेंगे. आप यह बताइए कि हत्या वाली रात 9 बजे से रात 3 बजे तक आप कहां थे?’’
‘‘ओह यह बात है. उस रात मैं 10 बजे से 12 बजे तक समर के पास रहा. फिर अपनी कार से लौट गया.’’
‘‘आप दोनों में तो अनबन थी फिर आप उस के पास कैसे गए?’’
‘‘बात यह है सर, मुझे उस से बहुत मोहब्बत थी. मैं न चाह कर भी उस के क्वार्टर पर चला गया. मैं ने दरवाजा थपथपाया, तो उस ने दरवाजा खोला और हंस कर मेरा स्वागत किया. उस ने मुझे चाय भी पिलाई. मैं ने उस से माफी मांगनी चाही तो वह उखड़ गई. बोली कि मैं ने आप को इसलिए अंदर नहीं बुलाया बल्कि मैं चाहती हूं कि आप मुझे तलाक दे दें.
‘‘उस की बात से मुझे दुख तो बहुत हुआ लेकिन मैं बिना कुछ कहे ही वहां से चला आया. इस के बाद मैं अपने एक मित्र के पास चला गया. अभी मेरा वहां से आने का इरादा नहीं था लेकिन कल अचानक मैनेजर का फोन गया और उस ने मुझे यहां के हालात बताए तो तुरंत आ गया.’’
मुझे इकबाल की बात पर यकीन होने लगा था. मैं ने उस से आखिरी सवाल यह किया कि उस ने अपनी मां और बहन को यह क्यों बताया कि मिल घाटे में चल रही है, जबकि ऐसा कुछ नहीं था.
‘‘सर, कभीकभी इंसान पर ऐसा समय आता है कि वह अपने आप से भी झूठ बोलता है. मैं ने मां और बहन से जानबूझ कर झूठ बोला था. अगर मैं उन से यह कहता कि मैं समर के कारण परेशान हूं तो मुझे उन की ओर से और भी कुछ बुरा सुनने को मिलता. हां, मुझे एक शक और है.’’ वह बोला.
‘‘कौन सा शक?’’ मैं ने पूछा.
‘‘एक साल पहले मैं ने परवेज नाम के युवक को मिल से मैदा चुराने के आरोप में नौकरी से निकाल दिया था. वह यह काम बहुत सालों से कर रहा था, लेकिन बाद में पकड़ा गया था.’’
मैं ने इकबाल से परवेज का हुलिया पूछा तो उस ने जो बताया, सुन कर मैं उछल पड़ा. यह तो वही युवक था, जिस की मुझे तलाश थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘कैसा शक?’’
उस ने बताया कि मैं ने उस रात अस्पताल में परवेज को देखा था और उसी रात समर की हत्या हो गई. मैं ने परवेज का पता पूछ कर इकबाल को जाने दिया.
इकबाल के जाने के बाद मैं ने एएसआई को बुला कर कहा कि 2 सिपाहियों को ले जा कर वह परवेज को पकड़ लाएं. 2 घंटे बाद वे आए और बताया कि वह घर पर नहीं है.
मैं ने चारों ओर मुखबिरों का जाल बिछा दिया. अगले दिन शाम के समय एक मुखबिर ने हमें बताया कि परवेज को कुछ दोस्तों के साथ साबराबाद गांव के बाहर एक डेरे पर देखा गया है. मैं ने एएसआई के नेतृत्व में एक पुलिस टीम रात में ही परवेज को पकड़ने के लिए साबराबाद गांव के डेरे पर भेज दी.
ऐसा लगा कि उन्हें छापामार पार्टी का पहले से ही पता लग गया था इसलिए सारे लोग वहां से भाग गए. केवल शराब के नशे में धुत परवेज हाथ लगा. उसे थाने ला कर हवालात में बंद कर दिया गया. सर्दियों का मौसम था, हवालात का ठंडा फर्श उस का दिमाग ठंडा करने के लिए काफी था.
अगले दिन परवेज को मेरे सामने लाया गया. एएसआई असलम ने बताया कि इस ने बिना छतरोल के ही अपना अपराध स्वीकार कर लिया है. काम इतनी जल्दी हो गया कि हमें इस का रिमांड लेने की भी जरूरत नहीं पड़ी.
इस हत्या के पीछे की जो कहानी थी, वह यह थी कि परवेज के दिमाग में बहुत पहले से एक लावा पक रहा था जो हत्या की रात फट गया. परवेज की कहानी कुछ इस तरह थी कि उस की मां के मरने के बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली.
सौतेली मां ने उस के साथ गंदा व्यवहार किया. पिता ने भी उस की ओर ध्यान नहीं दिया. वह बुरी संगत में पड़ गया और शादे नाम के एक व्यक्ति के डेरे पर जाना शुरू कर दिया.
शादे के डेरे पर ऐसे ही जवान लड़के आते थे, जिन्हें परिवार का प्यार न मिला हो. शादे अपराधी प्रवृत्ति का एक धूर्त व्यक्ति था. उस ने परवेज को चोरियों के काम पर लगा दिया. परवेज का समय शादे के डेरे पर ही गुजरता था.
परवेज अपने एक रिश्तेदार की बेटी से प्रेम करता था, वह लड़की भी उसे चाहती थी. दोनों चोरीछिपे मिलते थे. फिर एक दिन लड़की के मांबाप को उन के प्रेम प्रसंग का पता चला तो लड़की वालों ने उस का रिश्ता दूसरी जगह कर के उस की शादी भी कर दी.
परवेज के लिए यह बहुत बड़ा दुख था. अब वह अधिकतर शादे के डेरे पर रहने लगा. कुछ समय बाद उस की प्रेमिका गर्भवती हो गई और वह बच्चे की डिलिवरी के लिए अस्पताल गई, जिस का औपरेशन डा. समर ने ही किया था. उस औपरेशन के दौरान उस की प्रेमिका की मौत हो गई.
परवेज को यह यकीन हो गया था कि प्रेमिका की मौत डा. समर की लापरवाही से हुई है. उसे डा. समर के इकबाल के संबंधों का भी पता था, इसलिए उस ने समर की हत्या करने का फैसला कर लिया. इस से उस के 2 निशाने पूरे हो जाते.
एक ओर तो उस की प्रेमिका की मौत का बदला पूरा हो जाता. दूसरी ओर वह इकबाल को भी सबक सिखाना चाहता था, क्योंकि उस ने उसे चोरी के इलजाम में नौकरी से निकाला था.
परवेज की कहानी सुनने के बाद केस बिलकुल साफ था. मैं ने उस का इकबालिया बयान लिया. फिर उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इस केस की जांच मैं ने ही पूरी की.
केस अदालत में चला. गवाहों आदि के बयान हुए. बचाव में परवेज की तरफ से कोई नहीं आया. सेशन कोर्ट ने सबूतों को देखते हुए उसे फांसी की सजा सुनाई. सजा के खिलाफ कोई अपील नहीं हुई लिहाजा उसे फांसी पर लटका दिया गया. यहां यह बात बता दूं कि परवेज को थाने की हवालात से फरार कराने वाला शादे ही था.
अगली सुबह पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट के मुताबिक डा. समर की मौत रात 2 और 3 बजे के बीच हुई थी और हत्या के समय मरने वाली ने अपने बचाव में पूरा जोर लगाया था, जिस से उन की 2 अंगुलियां भी घायल हो गई थीं. अंगुली में 3-4 घाव थे.
मैं ने लाश को अस्पताल के स्टाफ के हवाले कर दिया. अब उस का अंतिम संस्कार तो डा. शमशाद को ही करना था, क्योंकि डा. समर के आगेपीछे कोई नहीं था.
एक बात पर मुझे हैरानी थी कि उन का पति इकबाल अभी तक नहीं आया था. उस की अपनी पत्नी से अनबन जरूर थी, लेकिन ऐसे समय तो उसे आना ही चाहिए था. मैं ने कांस्टेबल मंजूर को इकबाल को थाने बुलाने के लिए कहा.
कुछ देर बाद आ कर उस ने बताया कि इकबाल न तो फ्लोर मिल में है और न ही अपने घर. उस की कोठी मिल के पास ही थी, जिस में वह अपनी मां और बहन के साथ रह रहा था. बहन का पति अरब में नौकरी करने गया हुआ था.
मैं 2 सिपाहियों को ले कर उस की कोठी पर पहुंच गया. उस समय हम पुलिस वर्दी में नहीं थे. मैं ने नौकर को अपना परिचय दिया तो उस ने हमें तुरंत अंदर बुला लिया. इतनी बड़ी कोठी में इकबाल की मां जिन की उम्र 60 के लगभग थी और करीब 40 साल की बहन ही रहती थीं.
मैं ने कोठी में मौजूद बूढ़ी महिला से कहा, ‘‘आप लोगों में से कोई भी डा. समर की लाश नहीं लेने आया.’’
उस बूढ़ी महिला ने जवाब दिया, ‘‘साहब, जब वह हम से नाता तोड़ कर चली गई तो फिर गंदले पानी में हाथ डालने से क्या फायदा.’’
‘‘क्या आप के बेटे ने उसे तलाक दे दिया था?’’
‘‘मैं ने तो उसे कई बार कहा, लेकिन वह टालमटोल कर देता था.’’
मैं ने इकबाल की छोटी बहन से पूछा, ‘‘बीबी, तुम्हारा भाई कहां है?’’
‘‘क्या आप भाईजान पर शक कर रहे हैं?’’ उस ने पूछा.
मैं ने गुस्से से कहा, ‘‘मैं जो पूछ रहा हूं, तुम केवल उस का ही जवाब दो.’’
‘‘वह कतर गए हैं.’’ उस ने बताया.
‘‘इतनी जल्दी जाने की क्या जरूरत थी?’’ मैं ने उस से पूछा.
इस सवाल पर तो वह नहीं बोली पर उस की मां ने जवाब दिया, ‘‘वह तो कई दिनों से जाने के लिए कह रहा था लेकिन उसे मिल के कामों से फुरसत ही नहीं मिल रही थी.’’
मैं ने भांप लिया था कि मांबेटी दोनों झूठ बोल रही हैं. कोई न कोई गड़बड़ जरूर है जो ये झूठ का सहारा ले रही हैं. मैं ने उन से कहा, ‘‘देखो, मुझे सचसच बता दो. मैं आप की इज्जत का खयाल कर के यहां वर्दी में नहीं आया. मैं चाहता तो आप को थाने में भी बुला सकता था.’’
उस की मां ने अपनी बेटी को चुप रहने के लिए कहा और बोली, ‘‘साहब, बात यह है कि वह कुछ दिनों से परेशान था. वजह यह कि मिल की 2 मशीनें खराब हो गई थीं और मिल में रखे कुछ गेहूं भी काले पड़ गए थे. वह कोई बात बताता नहीं था.’’
मैं ने उन से 2-3 बातें और पूछीं और वहां से लौटते समय उन से कह दिया कि इकबाल जब भी घर आए तो उसे थाने भेज देना. थाने लौटने के बाद मैं ने एएसआई असलम को पूरी जानकारी देते हुए पूछा कि अब क्या करना चाहिए. उस ने कहा, ‘‘सर, हमें एक चक्कर मिल का भी लगा लेना चाहिए.’’
मैं ने कहा, ‘‘तुम ने मेरे मुंह की बात छीन ली. ऐसा करो तुम वहां जा कर पूरी स्थिति की जानकारी लो और मुझे कल तक रिपोर्ट जरूर करो.’’
अगले दिन एएसआई असलम ने कहा, ‘‘सर, मामला बिलकुल उलटा है. मिल तो बहुत फायदे में चल रही है. न कोई मशीन खराब है और न ही वहां गेहूं खराब हुआ है.’’
मैं सोचने लगा कि जब ऐसी बात है तो मांबेटी ने झूठ क्यों बोला. कहीं ऐसा तो नहीं कि इकबाल ने ही अपनी मां और बहन से झूठ बोला हो. मैं ने एएसआई से कह कर मिल के जनरल मैनेजर को थाने बुला लिया.
2 घंटे बाद जनरल मैनेजर मेरे सामने बैठे थे. मैं ने उन से कहा, ‘‘आप को यह तो मालूम होगा कि मैं ने आप को यहां किसलिए बुलाया है?’’
‘‘जी, मैं समझ गया कि आप इकबाल साहब के बारे में पता करेंगे.’’ उस ने कहा.
‘‘वह कहां गए हैं?’’ मैं ने पूछा.
‘‘सर, इस बार तो वह मुझे भी चकमा दे गए, पता नहीं कहां चले गए.’’ उस ने कहा.
‘‘आजकल वह परेशान क्यों थे?’’ मैं ने अगला सवाल किया.
‘‘यह तो मुझे भी नहीं पता लेकिन लगता है कि वह अपनी पत्नी के बारे में ज्यादा चिंतित थे.’’ वह बोला.
‘‘लेकिन उन की मां और बहन ने तो उन की पत्नी का जीना हराम कर दिया था, इसलिए वह दुखी हो कर घर से चली गई थी. हो सकता है, मांबेटी ने उस की हत्या करवा दी हो.’’ मैं ने कुरेदा.
‘‘नहीं सर, उन में ऐसा करने की हिम्मत नहीं है.’’ उस ने कहा.
‘‘जैसे ही इकबाल के बारे में कुछ पता लगे तो हमें सूचना देना.’’ कह कर मैं ने जनरल मैनेजर को थाने से भेज दिया.
एक दिन मैं थाने में बैठा था कि एक व्यापारी एक लड़के को पकड़ कर लाया और बोला, ‘‘सर, यह लड़का चोरियां करता है. आज मैं ने इसे रंगेहाथों पकड़ा है.’’
व्यापारी के जाने के बाद मैं ने लड़के की ओर देखा. सर्दियों का मौसम था, वह जो कोट पहने हुए था, उस से लगता था कि वह गरीब घर का है. उस की उमर भी यही कोई 20 बरस रही होगी. मैं ने उस से पूछा कि क्या वह वास्तव में चोर है?
उस ने कहा, ‘‘सर, मैं वास्तव में चोर हूं और दुकानों से सामान चुराता हूं. वजह यह है कि मेरी रीढ़ की हड्डी में दर्द रहता है, जिस से मैं कोई काम नहीं कर सकता.’’
उस की बात सुन कर मैं ने उस से कहा, ‘‘ओए चोर की औलाद, तूने तमाम विकलांगों को सड़क पर सामान बेचते हुए देखा होगा. तू भी ये काम कर सकता है.’’
उस की बातों से मुझे लगा कि वह किसी अच्छे गुरु का चेला है, जिस ने उसे पाठ पढ़ा रखा है. मैं ने हवलदार को बुला कर कहा, ‘‘इसे अभी लौकअप में बंद कर दो, सुबह को इस से पूछताछ होगी.’’
फिर मैं ने उस से कहा, ‘‘अच्छी तरह सोच ले, झूठ बोला तो तेरी हड्डियों का चूरमा बना दूंगा.’’
अगले दिन जब मैं थाने आया तो पता लगा कि वह चोर लौकअप से फरार हो गया है. मेरा गुस्सा आसमान छूने लगा. मैं ने रात की ड्यूटी वाले कांस्टेबलों को बुला कर पूछा, ‘‘बताओ, उसे किस ने फरार कराया है.’’
सब ने यही कहा कि हमें पता नहीं है. अलबत्ता जाहिद नाम के एक कांस्टेबल ने कहा, ‘‘सर, लौकअप का दरवाजा टूटा मिला है. इस से तो यही लगता है कि वह दरवाजा तोड़ कर भाग गया.’’
मैं ने सब कांस्टेबलों को जाने दिया और उसी को पकड़ लिया. उस से जब कड़ाई से बात की तो उस ने कहा कि सर रात को एक व्यक्ति आया था, जो बहुत धनी लगता था. उस ने 10 हजार रुपए दिए और उसे छुड़ा ले गया.
मेरे कमरे में एएसआई असलम भी बैठे थे. उन्होंने उस पर चिल्लाते हुए कहा, ‘‘तुम ने यह कैसे समझ लिया कि तुम इतना बड़ा अपराध कर के बच जाओगे.’’
‘‘सर, बात यह है कि जो व्यक्ति रात को यहां आया था, उस ने मुझ से कहा था कि तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा, उस की पहुंच ऊपर तक है.’’ जाहिद ने बताया.
मैं ने थाने में आने वाले व्यक्ति का हुलिया और पता पूछ कर नोट कर लिया और यह जानकारी मैं ने अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. जिस के बाद कांस्टेबल जाहिद को निलंबित कर दिया गया.
इस घटना के छठे दिन सूचना मिली कि हमारे थाने के पास एक प्राइवेट अस्पताल की लेडी डाक्टर समर की किसी ने छुरा घोंप कर हत्या कर दी है. डा. समर इकबाल की पत्नी थीं, पतिपत्नी दोनों में अनबन रहती थी और वह अस्पताल के ही एक क्वार्टर में रह रही थीं.
सूचना मिलने पर मैं 2 सिपाहियों को साथ ले कर उस के क्वार्टर पर पहुंच गया. वह 2 कमरों का क्वार्टर था. एक कमरे में एक बैड पर उस की लाश पड़ी थी. लाश को देख कर लगा कि हत्या किसी ऐसे आदमी ने की है, जो उस से बहुत नफरत करता था. 2 घाव दिल के पास थे, एक पीठ की ओर था और 2 अंगुलियां भी घायल थीं.
साफसाफ ऐसा लग रहा था कि हत्या के समय लेडी डाक्टर ने अपने आप को बचाने की भरपूर कोशिश की थी. कमरे के बाहर अस्पताल के डाक्टर और नर्सिंग स्टाफ इकट्ठा था. मैं ने आवश्यक काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. वहां मौजूद स्टाफ से मैं ने अलगअलग पूछताछ की. लेडी डाक्टर शमशाद और डा. आतिफ मुझे काम के लगे. उन दोनों को कमरे में बिठा कर उन से कुछ सवाल किए. ऐसा लग रहा था जैसे डा. समर की हत्या का उन दोनों को बहुत दुख था.
मैं ने डा. शमशाद से पूछा कि क्या डा. समर इस कमरे में अकेली रहती थीं? उन्होंने बताया, ‘‘नहीं, वह मेरे साथ रहती थीं.’’
‘‘क्या रात भी आप उन के साथ थीं?’’ मैं ने पूछा.
‘‘नहीं, रात मैं उन के साथ नहीं थी क्योंकि कल एक एक्सीडेंट का केस आ गया था. मैं और डा. आतिफ उस के औपरेशन में सुबह तक व्यस्त थे.’’ उन्होंने बताया.
‘‘इस का मतलब है कि डा. समर मरने वाली रात को बिलकुल अकेली थीं.’’ मैं ने पूछा.
‘‘हां, अकसर ऐसा होता है कि इमरजेंसी में हम दोनों में से एक की ड्यूटी रात की लग जाती है.’’ डा. शमशाद ने कहा.
मैं ने उस सर्जन से पूछा कि आप के विचार में इन की हत्या किस ने की होगी? वह कहने लगीं कि कुछ कहा नहीं जा सकता. मुझे बड़ी हैरानी है कि इतनी शरीफ जो सब के काम आती हों, उन की हत्या इतनी क्रूरता से कौन कर सकता है.
‘‘अच्छा, यह बताइए, इन का पति इकबाल करता क्या है?’’ मैं ने उन से अगला सवाल किया.
‘‘सर इकबाल एक फ्लोर मिल का मालिक है. एक दिन वह हमारे अस्पताल में रोगी बन कर आया था. डा. समर ने उस का इलाज किया. उसी बीच दोनों में प्रेम प्रसंग हो गया और बात शादी तक पहुंच गई.’’
डा. शमशाद ने वहां पर मौजूद डा. आतिफ की ओर देखते हुए कहा, ‘‘इकबाल को यह शक था कि उस की पत्नी डा. आतिफ में रुचि ले रही है.’’
मैं ने 2-3 बातें पूछ कर कमरे को दोबारा ध्यान से देखना शुरू किया. कमरे में मेज पर चाय के 2 खाली कप और पानी के 2 खाली गिलास रखे हुए थे. मैं ने डा. शमशाद से उन के बारे में पूछा तो उन्हें भी कप देख कर हैरानी हुई. मैं ने और ध्यान से देखा तो ऐशट्रे में सिगार का बुझा एक टुकड़ा भी मिला. इस का मतलब था कि रात में वहां कोई मर्द भी था, जो हत्या करने आया होगा. यह बात तय थी कि मरने वाली उस आदमी को जानती थी.
कमरे को सील करने से पहले मैं ने कांस्टेबल से सिगार के टुकड़े को सुरक्षित रखने के लिए कहा. मैं ने एएसआई को बुला कर कहा कि तुम उस फरार आदमी का पता करो और एक परचा उस की ओर बढ़ाते हुए कहा कि इस में जो हुलिया लिखा है, उस का स्कैच भी बनवाओ.
‘‘मौम, आप कब से इतनी नैरो माइंड हो गई हैं, ऐसा क्या हुआ है? क्यों इतनी परेशान हो रही हैं? सब ठीक हो जाएगा, आजकल यह इतनी बड़ी बात नहीं है. सोसायटी में यह सब चलता रहता है. मैं आज ही विपुल से बात करूंगी.’’ तरू के एकएक शब्द ने तृप्ति के रोमरोम को घायल कर दिया. कितनी मुश्किलों और नाजों से उस ने दोनों बेटियों को पाला था. तृप्ति और तपन ने तिनकेतिनके जोड़ कर यह घर बसाया था. उस ने अपने सारे अरमानों एवं इच्छाओं का गला घोंट कर इन्हीं बेटियों की खुशी के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया था.
साधारण परिवार में जन्मी तृप्ति को पढ़ाई के साथ डांस और एक्ंिटग का जन्मजात शौक था. स्कूल में उस की प्रतिभा निखारने में उस की डांस टीचर मिस गोयल का बड़ा हाथ था. उन्होंने तृप्ति के गुण को परख कर उसे निखारा. तृप्ति ने भी उन्हें निराश नहीं किया और स्कूली शिक्षा के दौरान ही शील्ड और मेडल के ढेर लगा दिए. वह विश्वविद्यालय में पहुंची तो सहशिक्षा के कारण उस के मातापिता ने इस तरह के कार्यक्रम से उसे दूर रहने की हिदायत दे दी, साथ ही कह दिया, ‘बहुत हुआ, अब जो करना हो अपने घर में करना.’ वह मन मार कर डांस और एक्ंिटग से दूर हो गई, लेकिन मन में एक कसक थी तभी उस का विवाह तपन से हो गया. तपन बैंक में क्लर्क थे.
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सामान्य तौर पर घर में कोई कमी नहीं थी, लेकिन उस का शौक मन में हिलोरे मार रहा था. उस ने डांस स्कूल में काम करने के लिए तपन को किसी तरह से तैयार किया था तभी तन्वी के आगमन का एहसास हुआ. तन्वी छोटी ही थी तभी गोलमटोल तरू आ गई और वह इन दोनों बेटियों की परवरिश में सब भूल गई. 5-6 साल कब निकल गए, पता ही नहीं लगा. अब तृप्ति को अपनी खुशहाल जिंदगी प्यारी लगने लगी. धीरेधीरे तन्वी और तरू बड़ी होने लगीं. जब दोनों छोटेछोटे पैरों को उठा कर नाचतीं तो तृप्ति का मन खिल उठता और अनायास ही अपनी बेटियों को स्टेज पर नृत्य करते हुए देखने की वह कल्पना करती. तन्वी एवं तरू को तृप्ति ने डांस स्कूल में दाखिला दिलवा दिया.
जल्द ही उन की प्रतिभा रंग दिखाने लगी. वे नृत्य में पारंगत होने लगीं और इसी के साथ तृप्ति के सपने साकार होने लगे. एक दिन तपन ने टोक दिया, ‘अब ये दोनों बड़ी हो गई हैं, डांस आदि छोड़ कर पढ़ाई पर ध्यान दें.’ तपन के टोकने से तृप्ति नाराज हो उठी और समय बदलने की दुहाई देने लगी. दोनों का आपस में अच्छाखासा झगड़ा भी हुआ और अंत में जीत तृप्ति की ही हुई. तपन चुप हो गए. उन्होंने दोनों लड़कियों को डांस और एक्ंिटग में आगे बढ़ने की इजाजत दे दी. तन्वी का रुझान अपनेआप ही डांस से हट गया. वह पढ़ाई में रुचि लेने लगी. प्रोफेशनल कोर्स के लिए तन्वी होस्टल चली गई.
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तरू अकेली हो गई. चूंकि उस पर मां का वरदहस्त था, अत: वह डांस एवं एक्ंिटग के साथ ग्लैमर से भी प्रभावित हो गई थी. अब तरू के आएदिन स्टेज प्रोग्राम होते. तृप्ति बेटी में अपने सपने साकार होते देख मन ही मन खुश होती रहती. तपन को तरू का काम पसंद नहीं आता था. तरू अकसर ग्रुप के साथ कार्यक्रम के लिए बाहर जाया करती थी. उस को अब बाहर की दुनिया रास आने लगी थी. उस के उलटेसीधे कपड़े तपन को पसंद न आते.
अकसर तृप्ति से कहते, ‘तरू, हाथ से निकल रही है.’ इस पर वह दबी जबान से तरू को समझाती लेकिन उस ने कभी भी मां की बातों पर ध्यान नहीं दिया. ‘‘मौम, मुझे 1 हजार रुपए चाहिए.’’ ‘‘क्यों? अभी कल ही तो तुम ने पापा से रुपए लिए थे.’’ ‘‘मौम, सब मुझ से पार्टी मांग रहे थे… उसी में पैसे खर्च हो गए.’’ ‘‘मैं तुम्हारे पापा से कहूंगी.’’ तरू तृप्ति से लिपट गई…तृप्ति पिघल गई. रुपए लेते ही वह फुर्र हो गई. ‘‘मौम, आजकल थिएटर में मेरा रिहर्सल चल रहा है, इसलिए देर से आऊंगी.’’ तृप्ति का माथा ठनका, ‘कल तो तरू ने कहा था कि इस हफ्ते मेरा कोई शो नहीं है.’ अभी वह इस ऊहापोह से निकल भी न पाई थी कि तपन पुकारते हुए आए. ‘‘तरू… तरू…’’ तृप्ति ने उत्तर दिया, ‘‘तरू का आज रिहर्सल है.’’ ‘‘वह झूठ पर झूठ बोलती रहेगी, तुम आंख बंद कर उस पर विश्वास करती रहना.
वह किसी लड़के की बाइक पर पीछे बैठी हुई कहीं जा रही थी, लड़का बाइक बहुत तेज चला रहा था,’’ तपन क्रोधित हो बोले थे. तृप्ति घबरा कर चिंतित हो उठी. वह सोचने को मजबूर हो गई कि क्या तरू गलत संगत में पड़ गई है. मन ही मन घुटती हुई वह तरू के आने का इंतजार करने लगी. लगभग रात में 11 बजे घंटी बजी. तृप्ति सोने की कोशिश कर रही थी. घंटी की आवाज सुन वह गुस्से में तेजी से उठी. दरवाजा खोलते ही तरू की हालत देख कर वह सन्न रह गई. तरू की आंखें लाल हो रही थीं, एक लंबे बालों वाला लड़का उसे पकड़ कर खड़ा था. तृप्ति तपन से छिपाना चाह रही थी, इसलिए चुपचाप उस को सहारा दे कर उस के कमरे में ले गई और उसे बिस्तर पर लिटा दिया.
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तरू के मुंह से शराब की दुर्गंध आ रही थी. तृप्ति की आंखों की नींद उड़ चुकी थी. वह मन ही मन रो रही थी और अपने को कोस रही थी. तरू को किस तरह सुधारे, वह क्या करे, कुछ सोच नहीं पा रही थी. उस का मन आशंकाओं से घिरा हुआ था. उसे तन्वी की याद आ रही थी. उस के मन में छात्रावास के प्रति अच्छे विचार नहीं थे लेकिन तरू तो उस की आंखों के सामने थी फिर कहां चूक हुई जो वह गलत हो गई. तपन ने तो सदैव उसे आगाह किया था, ‘लड़कियों को आजादी दो परंतु आजादी पर निगरानी आवश्यक है. नाजुक उम्र में बच्चे आजादी का नाजायज फायदा उठा कर खतरे में पड़ जाते हैं.’
तृप्ति ने रात पलकों में गुजारी. सुबह जब तरू उठी तो रात के बारे में पूछने पर अनजान बनती हुई बोली, ‘‘कल पार्टी में किसी ने उस की डिं्रक में कुछ मिला दिया था.’’ मां की ममता फिर से हावी हो गई. तृप्ति फिर से उस की बातों में आ गई थी. अब जब हालात नियंत्रण से बाहर हो चुके थे तो तृप्ति उस पर रोक लगाना चाह रही थी. तरू एक न सुनती. एक दिन तृप्ति प्यार से उस का हाथ सहला रही थी, तभी उस के हाथों के काले निशान पर उस की नजर पड़ी. तुरंत तरू ने सफाई दी, ‘‘कुछ नहीं मौम. मैं स्कूटी ड्राइव करती हूं न, उसी का निशान है,’’ लेकिन उस के बहाने तृप्ति को विचलित कर चुके थे…उंगलियों के बीच में जले के निशान केवल सिगरेट के हो सकते हैं. तृप्ति अब उस पर नजर रखने लगी. उसे तरहतरह से समझाने का प्रयास करती लेकिन तरू की आंखों पर तो ग्लैमर का चश्मा चढ़ा हुआ था.
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मोबाइल की घंटी सुनते ही वह भाग जाती थी. तृप्ति हालात को स्वयं ही सुधारने में लगी थी लेकिन तरू उस की एक न मानती. निराशा एवं हताशा में तृप्ति बीमार रहने लगी तो तपन को चिंता हुई. उन्होंने तरू से कहा, ‘‘तुम कुछ दिन छुट्टी ले कर घर में रहो और मां की देखभाल करो, फिर कुछ दिन मैं छुट्टी ले लूंगा. लेकिन तरू ने एक न सुनी. तपन बहुत नाराज हुए और तृप्ति को ही कोसने लगे. तरू की बरबादी के लिए उसे ही जिम्मेदार बताने लगे. दिन और रात ठहर गए थे. अभी तक तृप्ति परेशान रहती थी अब तपन भी चिंतित और दुखी रहने लगे. आज तो तरू को बेसिन पर उलटी करते देख कर तृप्ति सिहर गई. उस की बातों ने तो आग में घी का काम किया. ‘‘क्या हुआ, मौम? कोई पहाड़ टूट पड़ा है, क्यों मातम मना रही हो, क्या कोई मौत हो गई है. मैं डाक्टर के पास जा रही हूं, 1 घंटे की बात है, बस, सब नार्मल.’’ तृप्ति फूटफूट कर रो पड़ी. क्या हो गया इस नई पीढ़ी को. यह युवा वर्ग किधर जा रहा है, कहां गईं हमारी मान्यताएं. कहां गई शिक्षा. इतनी जल्दी इतना परिवर्तन. इतनी भटकन, क्या ऐसा संभव है?
शादी के बाद पतिपत्नी पर जैसेजैसे जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ने लगता है वैसेवैसे उन की सैक्स लाइफ पर उस का असर पड़ने लगता है. रोजाना के कामों में व्यस्त हो जाने से उन की सैक्स लाइफ से रोमांटिक लमहे गायब से हो जाते हैं. आइए, जानते हैं कुछ छोटीछोटी ऐक्टिविटी टिप्स, जिन से वे अपने जीवन में रोमांच और रोमांस का भरपूर आनंद ले सकें.
पतिपत्नी के बीच सब से अहम चीज क्या है? जी हां प्यार. रोमांटिक शारीरिक संबंध उन के यौन जीवन को बहुत प्रभावित करता है. अकसर देखा गया है कि जिन पतिपत्नी के रिश्ते में सैक्स की कमी होती है उन में बहुत जल्दी दरार पड़ती है या फिर कपल्स के बीच मनमुटाव हो जाता है. क्योंकि सैक्सुअल लाइफ से ही पता चलता है कि पार्टनर्स के बीच कैसी अंडरस्टैंडिंग है. वे एकदूसरे में कितनी रुचि रखते हैं और एकदूसरे के लिए क्या सोचते हैं. किसी भी कपल की सैक्स लाइफ उन के बीच के भरोसे का प्रतीक होती है.
शादी के बाद पतिपत्नी जैसेजैसे रोजाना के कामों में व्यस्त होते जाते हैं उन के बीच सैक्स की इच्छा घटने लगती है या फिर वह स्पार्क नहीं रह पाता. पतिपत्नी बिस्तर पर होते जरूर हैं लेकिन उन के बीच रोमांटिक शारीरिक संबंध नहीं बन पाता और न ही वे एकदूसरे को सैक्सुअली संतुष्ट कर.
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पाते हैं.
यदि आप अपनी शादीशुदा जिंदगी को भरपूर एनर्जी के साथ जीना चाहते हैं, उसे रोमांस के नए रंगों से भरना चाहते हैं तो कुछ छोटीछोटी ऐक्टिविटीज के लिए तैयार हो जाइए. हां, कुछ एफर्ट तो आप को करने होंगे लेकिन उस के बाद प्यार के लिए एकदूसरे की गर्मजोशी आप खुद महसूस करेंगे.
सैक्स बनाएं रोमांचकारी : पतिपत्नी हैं तो क्या हुआ, गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड की तरह अपने सैक्स को रोमांचकारी बनाने के लिए रात को कुछ नया कर सकते हैं. सैक्स के लिए मूड बनाने के लिए कुछ ऐसा करना जरूरी है जिस से उबाऊ सैक्स से बचा जा सके. कुछ नया करने के लिए आप कमरे में रोमांटिक म्यूजिक प्ले कर सकते हैं. परफ्यूम कैंडिल जला सकते हैं. सैक्सी कपड़े पहन कर एकदूसरे को अट्रैक्ट कर सकते हैं. इसलिए ऐसा कुछ कीजिए जिस से आप का मजा बढ़े.
फोरप्ले है जरूरी : प्यार की शुरुआत करने और अपने पार्टनर को सैक्स के लिए तैयार करने के लिए फोरप्ले करना बहुत जरूरी होता है. आप के प्यार की गरमी उस में यौनसंबंध बनाने की इच्छा पैदा करती है, इसलिए फोरप्ले करने के लिए उस के होंठों, चेहरे, पेट, कमर, गरदन आदि पर किस करें. इस से जननांगों में रक्त का प्रवाह बेहतर होता है और पार्टनर बहुत जल्दी सैक्स के लिए उत्तेजित हो जाता है. फोरप्ले सैक्स का एक अहम हिस्सा है, इसलिए फोरप्ले करने से व्यक्ति अधिक देर तक अंतरंग रहता है और उतना ही अधिक सैक्स का आनंद लेता है.
पहले ओरल सैक्स : सैक्सुअल इंटरकोर्स एक शारीरिक जरूरत है और उसी की पूर्ति के लिए व्यक्ति अपने पार्टनर के साथ सैक्स करता है लेकिन ओरल सैक्स, सैक्स क्रिया शुरू करने से पहले का एक स्टेप है. ओरल सैक्स करने का एक अन्य फायदा यह है कि पतिपत्नी के बीच इंटीमेसी बढ़ती है और अपने पार्टनर के साथ सैक्स की बातें या अंतरंग बातें करने या पोजिशन के बारे में बात करने में उसे झिझक नहीं होती है. अगर आप चाहते हैं कि आप दोनों की उत्तेजना चरम पर हो और एकदूसरे को बराबर मजा आए तो इस के लिए जरूरी है कि आप ओरल सैक्स करें.
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करें मसाज : पतिपत्नी रोजाना शारीरिक संबंध बनाएं, यह जरूरी नहीं है. आप की पार्टनर औफिस और घर के काम के बाद थक गई है, ऐसे में उस के पैरों की मसाज गजब की ऐक्टिविटी हो सकती है. इसी तरह यदि कभी पति पूरे दिन औफिस में काम कर के घर लौटता है तो रात में बैड पर पत्नी उसे प्यार से मसाज करे. इस से थोड़े ही समय में वह पति का दिल जीत सकती है. पति और पत्नी के बीच प्यार बढ़ाने के लिए एकदूसरे की न्यूड शरीर मालिश करना थ्रिल ऐक्टिविटी है.
सैक्स टौय का भी मजा : पतिपत्नी अपनी सैक्स लाइफ को मजेदार बनाने के लिए सैक्स टौय का इस्तेमाल कर सकते हैं. क्लिटोरिस और योनि में उत्तेजना पैदा करने में सैक्स टौय काफी सहायक होता है जिस से बैड पर पति का काम आसान हो जाता है और पत्नी एक मजेदार और्गेज्म का अनुभव कर सकती है. इसलिए पतिपत्नी एकदूसरे के साथ शारीरिक संबंध बनाते समय हर वह चीज करें जो मजे को बढ़ा दे. सिर्फ अधिक से अधिक आनंद का ध्यान रखें.
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पार्टनर के साथ देखें एडल्ट मूवी : कभीकभी अधिक तनाव या यौन रोगों के कारण यौन इच्छा में कमी आ जाती है, ऐसे में सैक्सुअल लाइफ प्रभावित होती है. आमतौर पर सैक्स की इच्छा तीव्र करने के लिए डाक्टर भी एडल्ट मूवी देखने की सलाह देते हैं. साथसाथ एडल्ट मूवी देखने के बाद पतिपत्नी नईनई पोजिशन में एकदूसरे के साथ सैक्स कर सकते हैं. शादी के कुछ वर्षों बाद पतिपत्नी अपने को नए कपल्स नहीं समझते हैं. एकदूसरे को संतुष्ट किए बिना ही सो जाते हैं, इसलिए उत्तेजना बनाए रखने के लिए एडल्ट मूवी जरूर देखें.
एकदूसरे को अच्छा महसूस कराएं: हर समय हर कोई सैक्स के लिए तैयार नहीं भी हो सकता है, इसलिए साथी से पूछ लेना अच्छा होता है या प्यारभरे टच से भी इस बात का पता लगाया जा सकता है कि वह मानसिक व शारीरिक तौर पर सैक्स के लिए तैयार है कि नहीं. इसलिए दोनों पार्टनरों को मानसिक रूप से तैयार होने के लिए आपसी बातचीत और फन करना जरूरी है. एकदूसरे को अच्छा महसूस कराएं.
सैक्स एक संवेदनशील स्थिति है, इसलिए पतिपत्नी को एकदूसरे को हग कर के, एकदूसरे की न्यूड बौडी को छू कर उस के सैक्सी शरीर की तारीफ करनी चाहिए. इस से आप एकदूसरे को अच्छा महसूस कराते हैं.
बहाना न बनाएं : बिस्तर पर सैक्स के लिए न कहना शादीशुदा जिंदगी को प्रभावित करता है. वास्तव में सैक्स शारीरिक दर्द को दूर करने, तनाव को कम करने और बेहतर नींद को बढ़ावा देने में काफी मददगार होता है. इसलिए सैक्स को ले कर आपसी समझ और तालमेल बिठाए रखना चाहिए ताकि दोनों की रात खराब न हो.
हाल में हुई एक स्टडी में पाया गया है कि शादीशुदा लोगों के जीवन में सैक्स का एक अलग स्थान है. अगर पतिपत्नी रोजाना शारीरिक संबंध बनाते हैं तो उन के चेहरे पर उन की उम्र का असर 7 साल कम दिखाई देता है.
इन सब बातों के अलावा भी कई छोटीछोटी बातें हैं जो प्यार की गर्मजोशी को बढ़ाती हैं, जैसे दिन में पार्टनर को सिंपल ‘आई लव यू’ बोल कर उसे स्पैशल फील कराएं. बिना वजह पार्टनर को गले लगा लें, प्यारभरा लव नोट उस की ड्रैसिंग टेबल पर लगा कर, उस का असर देखें. जज्बातों के शब्द सामने वाले के दिल तक उतर जाते हैं.
लोग हमेशा चाहते हैं कि उन की लव लाइफ में सैक्स लाइफ भी उतनी ही बेहतर हो जितना कि वे भावनात्मक रूप से एकदूसरे से जुड़े हुए होते हैं. एक रिलेशनशिप में अगर भावनाओं के साथसाथ सैक्स रिलेशन भी बेहतर हो तो आप का रिश्ता एक परफैक्ट रिश्ता बन जाता है.
सौजन्य-सत्यकथा
श्रद्धा के रहस्यमय ढंग से गायब हो जाने के बाद उस के पति योगेंद्र ने अपने दोस्त प्रमोद के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी. जिस से प्रमोद 14 महीने तक जेल में रहा. फिर एक दिन पुलिस ने श्रद्धा को जीवित बरामद कर लिया. श्रद्धा से पूछताछ करने के बाद इस कहानी का ऐसा रहस्य सामने आया कि…
उन्नाव शहर का एक मोहल्ला है—जुराखन खेड़ा. हिंदूमुसलिम की मिलीजुली आबादी वाले इस मोहल्ले में राजेंद्र अवस्थी का परिवार रहता था. उन की पत्नी कमला अवस्थी घरेलू महिला थी, जबकि राजेंद्र अवस्थी सामाजिक कार्यकर्ता थे. वह दौलतमंद तो न थे, लेकिन समाज में उन की अच्छी छवि थी.
शहर में उन का निजी मकान था और उन के 3 बच्चों में योगेंद्र कुमार सब से बड़ा था. राजेंद्र अवस्थी की तमन्ना थी कि उन का बेटा योगेंद्र कुमार उच्चशिक्षा हासिल कर अफसर बने और उन का नाम रोशन करे. लेकिन उन की यह तमन्ना अधूरी रह गई.
योगेंद्र कुमार ने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी और नौकरी की तलाश में लग गया. कई महीने की दौड़धूप के बाद उसे उन्नाव की एक निजी कंपनी में नौकरी मिल गई.
योेगेंद्र कुमार नौकरी करने लगा तो राजेंद्र को उस के ब्याह की फिक्र होने लगी. उन के पास कई रिश्ते आए भी, लेकिन बात नहीं बनी. दरअसल वह सीधीसादी सामाजिक व संस्कारवान लड़की चाहते थे, लेकिन ऐसी लड़की उन्हें मिल नहीं रही थी. इस तरह कई साल गुजर गए और योगेंद्र कुंवारा ही रहा.
उन्हीं दिनों योगेंद्र कुमार की मुलाकात श्रद्धा से हुई. श्रद्धा स्टेशन रोड, उन्नाव में रहती थी और एक फर्म में जौब करती थी. मुलाकातों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो फिर वक्त के साथ बढ़ता चला गया. आकर्षण दोनों ही तरफ था, सो वे जल्द ही एकदूसरे से मन ही मन प्यार करने लगे. छुट्टी वाले दिन दोनों साथसाथ घूमते, हंसते बतियाते और प्यार भरी बातें करते.
एक रोज योगेंद्र और श्रद्धा गंगा बैराज गए. वहां वे कुछ देर घूमते रहे और गंगा की लहरों का आनंद उठाते रहे फिर एकांत में बैठ कर बातें करने लगे. बातचीत के दौरान ही अचानक योगेंद्र श्रद्धा का हाथ अपने हाथ में ले कर बोला, ‘‘श्रद्धा, मैं तुम से कुछ कहना चाह रहा हूं. मेरी बात का बुरा तो नहीं मानोगी.’’
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‘‘ऐसी क्या बात है, जिसे कहने के लिए तुम सकुचा रहे हो. जो भी दिल में हो, साफसाफ कहो. मैं जरा भी बुरा नहीं मानूंगी.’’ ‘‘श्रद्धा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं.’’
श्रद्धा थोड़ा लजाई, शरमाई फिर मंदमंद मुसकराते हुए बोली, ‘‘योगेंद्र तुम्हारे मुंह से यह सब सुनने के लिए मैं बेकरार थी. मैं भी तुम से उतना ही प्यार करती हूं, जितना तुम मुझ से करते हो. लेकिन मुझे डर लग रहा है.’’
‘‘कैसा डर?’’ योगेंद्र ने श्रद्धा के चेहरे पर नजर गड़ाते हुए पूछा.‘‘यही कि हमारे तुम्हारे घर वाले हम दोनों के प्यार को स्वीकार करेंगे क्या?’’ उस ने मन की शंका जाहिर की. ‘‘क्यों नहीं करेंगे? यदि मना करेंगे तो हम उन्हें मनाएंगे.’’ योगेंद्र ने समझाया. ‘‘तब ठीक है.’’ श्रद्धा संतुष्ट हो गई.
उस दिन के बाद दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. लेकिन एक दिन योगेंद्र कुमार ने अपने मातापिता से श्रद्धा के बारे में बताया तो वे भड़क गए उन्होंने उसे अपने घर की बहू बनाने से साफ मना कर दिया. योगेंद्र ने जब उन्हें प्यार से समझाया तो वह किसी तरह से राजी हो गए. इधर श्रद्धा के मातापिता भी बेटी की जिद के आगे झुक गए. इस के बाद योगेंद्र और श्रद्धा ने सामाजिक रीतिरिवाज से शादी कर ली.
श्रद्धा योगेंद्र की दुलहन बन कर ससुराल आ तो गई थी किंतु राजेंद्र व कमला अवस्थी ने उसे मन से बहू के रूप मे स्वीकार नहीं किया था. उन्होंने जिस संस्कारवान बहू के सपने संजोए थे, श्रद्धा वैसी नहीं थी. वह तो खुले विचारों वाली आधुनिक थी. वह न तो सासससुर के नियमों को मानती थी और न ही उन के रीतिरिवाजों को. वह न तो ससुर से परदा करती थी और न ही सास का सम्मान करती थी.
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शादी के 2 साल बाद श्रद्धा ने एक बेटी को जन्म दिया. जिस का नाम गौरी रखा. गौरी के जन्म से जहां श्रद्धा और योगेंद्र खुश थे, वहीं राजेंद्र और कमला अवस्थी का चेहरा उतर गया था. गौरी के जन्म के बाद कमला को उम्मीद थी कि बहू की चालढाल में सुधार आ जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बल्कि वह पहले से ज्यादा स्वच्छंद हो गई.
आधुनिक कपड़े पहन वह बनसंवर कर घर से निकलती और फिर कई घंटे बाद लौटती. रोकनेटोकने पर वह सास से बहस करती.गौरी के जन्म के बाद श्रद्धा ने नौकरी छोड़ दी थी, जिस से वह आर्थिक संकट से जूझने लगी थी. उस के पति योगेंद्र की इतनी कमाई नहीं थी कि घर का खर्च ठीक से चल सके. इस आर्थिक संकट के कारण श्रद्धा और योगेंद्र में झगड़ा होने लगा था. श्रद्धा की जुबान ज्यादा खुली तो योगेंद्र उस की पिटाई भी करने लगा.
योगेंद्र कुमार का एक दोस्त प्रमोद कुमार वर्मा था. वह उस के मोहल्ले में ही रहता था. प्रमोद का योगेंद्र के घर गाहेबगाहे आनाजाना होता था. वह योगेंद्र को भैया और श्रद्धा को भाभी कहता था. इस आनेजाने में प्रमोद की नीयत श्रद्धा पर खराब हुई. वह उसे पाने के सपने देखने लगा.
प्रमोद पहले तो जबतब ही आता था, लेकिन जब से नीयत खराब हुई थी तब से उस के चक्कर बढ़ गए थे. वह जब भी घर आता, गौरी तथा श्रद्धा के लिए कुछ न कुछ उपहार जरूर लाता. नानुकुर के बाद श्रद्धा उस के लाए उपहार स्वीकार कर लेती. हालांकि सास कमला को प्रमोद का घर आना अच्छा नहीं लगता था. कभीकभी वह उसे टोक भी देती थी.
कहते हैं, औरत को मर्द की नजर की परख होती है. श्रद्धा भी जान गई थी कि प्रमोद की नजर में खोट है. वह उस पर लट्टू है. श्रद्धा उस से बातचीत और हंसीठिठोली तो करती थी, लेकिन उसे सीमा पार नहीं करने देती थी. श्रद्धा को जब कभी पैसों की जरूरत होती थी, तो वह उस से मांग लेती थी. दरअसल, श्रद्धा जानती थी कि न प्रमोद पैसा मांगेगा और न ही उसे उधारी चुकानी पड़ेगी.
कुछ समय बाद गौरी बीमार पड़ी, तो उस के इलाज हेतु योगेंद्र और श्रद्धा ने प्रमोद से 10 हजार रुपए उधार मांगा. प्रमोद ने पहले तो मना कर दिया, लेकिन जब श्रद्धा ने विशेष अनुरोध किया तो उस ने योगेंद्र को रुपया दे दिया. उचित समय पर इलाज मिल गया तो उस की बेटी गौरी स्वस्थ हो कर घर आ गई.
प्रमोद ने कुछ माह तक पैसों का तगादा नहीं किया. उस के बाद पैसे मांगने के बहाने वह अकसर श्रद्धा के घर आने लगा और श्रद्धा से नजदीकियां बढ़ाने लगा. वह हंसीमजाक में सामाजिक मर्यादाएं भी तोड़ने लगा था .श्रद्धा उस के अहसानों तले दबी थी तो उस की हरकतों का ज्यादा विरोध भी नहीं कर पाती थी.
एक शाम कमला किसी काम से पड़ोस में गई थी. तभी प्रमोद आ गया. उस ने श्रद्धा को घर में अकेले पाया तो वह उस से अश्लील हंसीमजाक व छेड़छाड़ करने लगा. उसी समय योगेंद्र काम से घर वापस आ गया. उस ने दोनों को हंसीमजाक करते देखा तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने प्रमोद को जलील कर वहां से भगा दिया फिर पत्नी पर कहर बन कर टूट पड़ा. उस ने श्रद्धा की जम कर पिटाई की.
घर में कलह बढ़ी तो बढ़ती ही गई. योगेंद्र कभी प्रमोद के बहाने तो कभी आर्थिक तंगी के बहाने श्रद्धा को प्रताडि़त करने लगा. घर में श्रद्धा की कोई सुनने वाला न था. सासससुर अपने बेटे का पक्ष लेते और उसे ही दोषी ठहराते थे. पति की प्रताड़ना से श्रद्धा बहुत परेशान थी. वह अपने भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगी.
8 मार्च, 2018 की शाम 4 बजे श्रद्धा अपनी बेटी गौरी को सास कमला को थमा यह कह कर घर से निकली कि वह बाजार से कुछ सामान खरीदने जा रही है. 2 घंटे में वापस आ जाएगी. लेकिन जब वह रात 8 बजे तक वापस नहीं आई तो घर वालों को चिंता हुई. श्रद्धा का पति योगेंद्र उस की खोज में जुट गया.
वह सारी रात उन्नाव शहर की गलियों की खाक छानता रहा, लेकिन श्रद्धा का पता नहीं चला. एक कहावत है कि नेकी जाए नौ कोस और बदी जाए सौ कोस. अच्छी खबर देर से पता चलती है, लेकिन बुरी खबर जल्दी फैलती है.
जुराखन खेड़ा मोहल्ले में भी यह खबर बहुत जल्द फैल गई कि राजेंद्र अवस्थी की बहू श्रद्धा घर से भाग गई है. बदनामी से बचने के लिए राजेंद्र व उन के बेटे योगेंद्र ने श्रद्धा को हर संभावित जगह पर तलाश किया. लेकिन उस के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली.
लगभग 2 हफ्ते तक योगेंद्र कुमार अपनी पत्नी श्रद्धा की तलाश में जुटा रहा, जब वह नहीं मिली तो आखिर 22 मार्च, 2018 को वह उन्नाव कोतवाली जा पहुंचा. उस ने कोतवाल सियाराम वर्मा को बताया कि उस की पत्नी श्रद्धा 8 मार्च, 2020 से घर से गायब है. उसे शक है कि उस की पत्नी को उस का दोस्त प्रमोद कुमार भगा ले गया है. रिपोर्ट दर्ज कर पत्नी को बरामद करने की कृपा करें.
योगेंद्र की तहरीर पर कोतवाल ने भादंवि की धारा 366 के तहत प्रमोद कुमार वर्मा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और श्रद्धा को बरामद करने के प्रयास में जुट गए.
प्रमोद को रिपोर्ट दर्ज होने की जानकारी हुई तो वह घबरा गया और डर की वजह से अपने घर से फरार हो गया. इधर 2 अप्रैल, 2018 की सुबह उन्नाव जिले के शेरपुर कलां गांव के लोगों ने सड़क किनारे एक महिला की अधजली लाश देखी. ग्रामप्रधान किशन पाल ने इस की सूचना थाना असीवन पुलिस को दी. प्रधान की सूचना पर पुलिस ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा शिनाख्त न होने पर शव को पोस्टमार्टम हेतु उन्नाव भेज दिया.
इस अज्ञात लाश की जानकारी उन्नाव के कोतवाल सियाराम वर्मा को हुई तो उन्होंने योगेंद्र कुमार को थाना कोतवाली बुलवाया और लाश शिनाख्त हेतु थाना असीवन चलने को कहा. योगेंद्र अपनी मां तथा परिवार की 2 अन्य महिलाओं को साथ ले कर असीवन पहुंचा.
योगेंद्र तथा महिलाओं ने लाश की फोटो, कपड़े तथा चूडि़यां देख कर लाश की शिनाख्त श्रद्धा के रूप में की. योगेंद्र ने आरोप लगाया कि उस की पत्नी की हत्या प्रमोद कुमार वर्मा ने की है.कोतवाली पुलिस ने इस मामले को भादंवि की धारा 366/302/201 के तहत दर्ज कर प्रमोद वर्मा की तलाश तेज कर दी.
सियाराम वर्मा इस मामले में प्रमोद कुमार वर्मा को गिरफ्तार कर पाते, उस के पहले ही उन का तबादला हो गया. नए कोतवाल जयशंकर ने इस मामले में तेजी दिखाई और आरोपी प्रमोद कुमार वर्मा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. प्रमोद गुहार लगाता रहा कि वह निर्दोष है. लेकिन पुलिस ने उस की एक न सुनी.
हत्यारोपी प्रमोद कुमार लगभग 14 महीने तक जेल में रहा, उस के बाद हाईकोेर्ट से उस की जमानत स्वीकृत हुई. जेल से बाहर आने के बाद प्रमोद ने नए कोतवाल राजेश सिंह से गुहार लगाई कि वह निर्दोष है. उस के दोस्त योगेंद्र ने उसे पत्नी की हत्या के आरोप में गलत फंसाया है.
राजेश सिंह ने श्रद्धा की फाइल का निरीक्षण किया तो उन्हें भी शक हुआ. अत: उन्होंने माननीय न्यायालय में मृतक महिला श्रद्धा, उस की बेटी गौरी तथा परिवार के अन्य जनों का डीएनए टेस्ट कराने के लिए प्रार्थनापत्र दिया.
अनुमति मिलने के बाद टेस्ट कराया गया तो डीएनए रिपोर्ट परिवार के सदस्यों से मेल नहीं खाई. इस से कोतवाल राजेश सिंह समझ गए कि परिवार वालों ने जिस मृत महिला की शिनाख्त श्रद्धा के रूप में की थी, वह श्रद्धा नहीं थी. लेकिन सवाल यह भी था कि आखिर श्रद्धा है कहां?
इधर सितंबर, 2020 के आखिरी सप्ताह में योगेंद्र के घर रजिस्टर्ड डाक से एक पत्र आया. पत्र पर श्रद्धा अवस्थी का नाम, पता तथा मोबाइल नंबर अंकित था. पत्र देख कर योगेंद्र चौंका. उस ने पोस्टमैन को श्रद्धा को अपनी पत्नी बता कर पत्र रिसीव कर लिया. उस ने लिफाफा खोल कर देखा तो उस में एक्सिस बैंक का एटीएम कार्ड था, जिसे अहमद नगर स्थित एक्सिस बैंक से भेजा गया था.
एटीएम कार्ड देख कर योगेंद्र का माथा ठनका. वह सोचने लगा कि क्या श्रद्धा जीवित है? घबराया योगेंद्र कोतवाली पहुंचा और सारी जानकारी कोतवाल राजेश सिंह को दी. राजेश सिंह ने यह बात एसपी आनंद कुलकर्णी को बताई और आशंका जताई कि श्रद्धा अवस्थी जीवित है. आनंद कुलकर्णी ने सर्विलांस टीम को मामले की जांच में लगाया.
सर्विलांस टीम ने जांच शुरू की तो श्रद्धा की लोकेशन महाराष्ट्र के अहमद नगर शहर में ट्रेस हुई. पुलिस ने श्रद्धा की निगरानी शुरू कर दी. 13 अक्तूबर, 2020 की शाम 4 बजे श्रद्धा की लोकेशन झांसी की मिली.
थानाप्रभारी समझ गए कि श्रद्धा एटीएम कार्ड लेने आ रही है. अत: वह योगेंद्र को साथ ले कर पुलिस टीम सहित कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंच गए. क्योंकि यहीं श्रद्धा को ट्रेन से उतरना था. उस के बाद उसे बस से उन्नाव रवाना होना था. शाम 6 बजे ट्रेन कानपुर स्टेशन पहुंची. ट्रेन से उतरते ही पति योगेंद्र ने उसे पहचान लिया, तभी पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. श्रद्धा को उन्नाव कोतवाली लाया गया. श्रद्धा के जीवित होने की सनसनी उन्नाव शहर में फैली तो कोतवाली में उसे देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी. मीडिया का भी जमावड़ा लग गया. पीडि़त प्रमोद कुमार वर्मा का परिवार भी कोतवाली आ गया. पुलिस कप्तान आनंद कुलकर्णी भी वहां पहुंचे और उन्होंने भी श्रद्धा से पूछताछ की.
श्रद्धा ने पुलिस व मीडिया को जानकारी दी कि वह पति की प्रताड़ना से परेशान हो कर खुद ही घर से गई थी. घर से भाग कर वह उन्नाव स्टेशन पहुंची. उस समय लखनऊ से मुंबई जाने वाली ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़ी थी. वह उसी में सवार हो गई.
झांसी से एक युवक ट्रेन में सवार हुआ. वह महाराष्ट्र के अहमद नगर शहर का रहने वाला था. उस से परिचय हुआ तो उस ने उसे आपबीती बताई. वह युवक उसे अहमद नगर ले गया. उसी की मदद से वह एक अस्पताल में काम करने लगी और महिला हौस्टल में रहने लगी.
अस्पताल से उस की सैलरी बैंक एकाउंट में ट्रांसफर होनी थी, जिस के लिए श्रद्धा ने सितंबर, 2020 में अहमदनगर स्थित एक्सिस बैंक शाखा में अपना खाता खुलवाया था.
बैंक ने उस का एटीएम कार्ड आधार कार्ड के पते पर भेज दिया. जिस पर ससुराल (उन्नाव) का पता दर्ज था. उसे जब बैंक से जानकारी हुई तो वह 11 अक्तूबर, 2020 को अहमद नगर से उन्नाव के लिए रवाना हुई. जहां 13 अक्तूबर को पुलिस ने उसे कानपुर सैंट्रल रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया.
हत्यारोपी प्रमोद कुमार ने मीडिया को जानकारी दी कि उस का तो कैरियर ही चौपट हो गया. पढ़ाई बंद हो गई, धंधा चौपट हो गया तथा निर्दोष होते हुए भी 14 माह जेल में रहना पड़ा.जिन लोगों ने उसे झूठे मामले में फंसाया उन के खिलाफ वह धारा 169 आईपीसी के तहत काररवाई करेगा. उस ने पुलिस कप्तान को फूलों का गुलदस्ता भेंट कर बधाई दी. अब पुलिस श्रद्धा के जीवित होने के सारे सबूत कोर्ट में पेश करेगी.
श्रद्धा तो जीवित मिल गई, लेकिन यक्ष प्रश्न फिर भी है कि आखिर वह अधजली लाश किस महिला की थी, जिस की पहचान योगेंद्र और उस के घर वालों ने श्रद्धा के रूप में की थी. क्या उस की पहचान पुलिस करा पाएगी? क्या उस के कातिलों को सजा मिल पाएगी? हालांकि पुलिस कप्तान आनंद कुलकर्णी उस मामले की दोबारा जांच की बात कह रहे हैं. यह तो समय ही बताएगा कि मृत महिला की मौत का रहस्य खुलता भी है या फिर पुलिस लीपापोती कर फाइल बंद कर देगी.
सवाल
मैं 19 साल का हूं और 21 साल की एक लड़की से बहुत प्यार करता हूं. पर वह लड़की किसी और को चाहती है और उन दोनों की शादी भी होने वाली है. इस बात से मैं बहुत तनाव में रहता हूं. मैं क्या करूं?
जवाब
उस लड़की को भूल जाने में ही आप की और सब की भलाई है. जब वह लड़की आप को नहीं चाहती और दूसरे से शादी भी कर रही है तो आप फिल्म ‘डर’ के शाहरुख खान बनने के बजाय फिल्म ‘प्रेम रोग’ के ऋषि कपूर बनें और अपने कैरियर पर ध्यान दें. यह एकतरफा प्यार है. जब कोई लड़की वाकई आप को दिल से चाहने लगेगी तो वह खुद आप को ‘आई लव यू’ बोलते हुए शादी की भी पेशकश करेगी.
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जब दोस्ती में बढ़ जाए Jealousy
दोस्ती में प्यार है तो तकरार भी है. रूठना है तो मनाना भी है. यह सिलसिला तो दोस्तों के बीच चलता ही रहता है. लेकिन कई बार बेहद प्यार और परवा के बावजूद दोस्ती में जलन की भावना पैदा हो जाती है. क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों होता है? वैसे तो इस के कई कारण हैं, जैसे दोस्तों के बीच किसी तीसरे का आ जाना, पढ़ाई में किसी एक का तेज होना वगैरह. लेकिन इन सब के अलावा एक ऐसा कारण भी है जो दोस्ती में तकरार, ईर्ष्या और जलन जैसी भावनाओं को उत्पन्न कर देता है.
दरअसल, जब 2 दोस्तों के बीच पहनावे या खानेपीने जैसी चीजों में अंतर हो तो यह जलन जैसी भावनाओं को पैदा कर देता है. ऐसा ही कुछ हुआ सुहानी और अनन्या के साथ.
अनन्या और सुहानी 11वीं कक्षा से ही दोस्त हैं. वे एकदूसरे के काफी क्लोज हैं. वैसे तो सुहानी कानपुर से है लेकिन 16 वर्ष की उम्र में वह अपने पूरे परिवार के साथ दिल्ली आ गई थी. सुहानी ने 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई कानपुर से की थी और आगे की पढ़ाई उस ने दिल्ली आ कर पूरी की.
सुहानी और अनन्या की दोस्ती दिल्ली में हुई. दरअसल, जिस कंपनी में अनन्या के पापा काम करते थे उसी कंपनी में सुहानी के पापा की भी नौकरी लग गई थी. एक दिन सुहानी के पापा ने सुहानी के दाखिले के लिए अनन्या के पापा से किसी अच्छे स्कूल के बारे में पूछा, तो उन का कहना था, ‘‘अरे, मेरी बेटी जिस स्कूल में पढ़ती है वह स्कूल तो बहुत अच्छा है. तुम चाहो तो वहां दाखिला करवा सकते हो.’’
सुहानी के पापा और सुहानी जब स्कूल में दाखिले के लिए गए तो उन्हें स्कूल काफी पसंद आया. कुछ दिनों बाद सुहानी स्कूल जाने लगी. इधर सुहानी और अनन्या बहुत अच्छी दोस्त बन गई थीं और उधर दोनों
के पापा में भी अच्छी बौंडिंग हो गई थी. दोनों के परिवार में आनाजाना भी होने लगा था.
सोच में बदलाव रिश्तों में टकराव
सुहानी और अनन्या दोनों के ही परिवार बहुत अच्छे थे, बस अंतर था तो दोनों के परिवारों के रहनसहन में. अनन्या के परिवार वाले बहुत खुले विचारों के थे. वे कभी अनन्या पर किसी प्रकार की रोकटोक नहीं करते थे. अनन्या को अपनी तरह से जिंदगी जीने की आजादी थी. वहीं, दूसरी तरफ सुहानी का परिवार खुले विचारों वाला नहीं था. वे कुछ भी सुहानी के लिए करते तो पूरे परिवार का मशवरा ले कर. जहां एक तरफ अनन्या हर तरह के कपड़े पहना करती थी, वहीं सुहानी सिर्फ जींस, टौप और कुरती ही पहनती. उसे ज्यादा स्टाइलिश और छोटे कपड़े पहनने की आजादी नहीं थी.
स्कूल में अनन्या और सुहानी साथ ही रहा करती थीं. दोनों की दोस्ती गहरी होती जा रही थी. परीक्षा में दोनों साथ में ही पढ़ाई करतीं. अनन्या पढ़ने में एवरेज थी, पर सुहानी क्लास में अव्वल आती थी. हम अकसर देखते हैं कि मांबाप पढ़ाई को ले कर अपने बच्चों की दूसरे बच्चे से तुलना करने लगते हैं लेकिन यहां कभी न अनन्या के मातापिता ने तुलना की न खुद अनन्या ने. बल्कि अनन्या को खुशी मिलती थी सुहानी के अव्वल आने पर. परंतु सुहानी के साथ ऐसा नहीं था. सुहानी के व्यवहार में धीरेधीरे बदलाव दिखने लगा था.
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जब इच्छाएं दबा दी जाती हैं
दोनों की स्कूली पढ़ाई खत्म होने को थी. 12वीं की परीक्षा से पहले स्कूल में फेयरवैल पार्टी का आयोजन किया गया था, जिस के लिए सभी उत्सुक थे. अनन्या और सुहानी ने उस दिन साड़ी पहनी थी. वैसे तो दोनों ही अच्छी लग रही थीं लेकिन सब की नजर अनन्या पर ज्यादा थी. सुहानी के सामने सब अनन्या की ज्यादा तारीफ कर रहे थे.
अनन्या की साड़ी बेहद खूबसूरत थी और उस के ब्लाउज का डिजाइन सब से अलग और स्टाइलिश था. सुहानी की साड़ी बहुत सिंपल थी और उस के ब्लाउज का डिजाइन उस से भी ज्यादा सिंपल. वैसे सुहानी का बहुत मन था बैकलैस ब्लाउज पहनने का लेकिन घरवालों के कारण उस ने अपनी यह इच्छा भी दबा दी थी.
सुहानी उस दिन बहुत शांत हो गई थी. जब भी अन्नया उस के पास आती वह उसे नजरअंदाज करने लग जाती और उस से दूर जा कर खड़ी हो जाती. अनन्या भी समझ नहीं पा रही थी कि आखिर सुहानी को हुआ क्या है. फेयरवैल के बाद सभी घूमने जा रहे थे लेकिन सुहानी पहले ही घर निकल गई थी. सुहानी को न देख कर अनन्या भी घर चली गई.
अनन्या को सुहानी की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आ रहा था, इसलिए उस ने सुहानी से पहले बात करने की कोशिश भी नहीं की. 2 दिन बाद सुहानी खुद अनन्या के पास आई. अनन्या ने जब गुस्से में पूछा, ‘‘तू उस दिन कहां चली गई थी?’’ तब सुहानी ने कहा, ‘‘उस दिन मेरी तबीयत खराब हो गई थी, इसलिए मैं तुझे बिना बताए चली गई. मैं नहीं चाहती थी कि तेरा फेयरवैल मेरी वजह से खराब हो.’’ यह सुन कर अनन्या ने उसे गले लगा लिया. लेकिन असलियत तो कुछ और ही थी. उस दिन सुहानी को अनन्या को देख कर जलन हो रही थी.
यह बात सुहानी ने उस वक्त अपने चेहरे पर जाहिर नहीं होने दी. दोनों ने 12वीं की परीक्षा दी. जब रिजल्ट आया तो अनन्या अच्छे नंबरों से पास हो गई लेकिन सुहानी ने पूरे स्कूल में टौप किया था. यह सुन कर सभी खुश हुए. अनन्या भी बहुत खुश हुई.
जब तारीफें चुभने लगें
स्कूल के बाद दोनों ने एक ही कालेज में दाखिला ले लिया. दाखिला लेने के कुछ महीने बाद ही दोनों की दोस्ती में दरार आने लगी. कालेज में अनन्या सारी एक्टिविटीज में हिस्सा लेती थी. इस कारण कालेज में उसे सब जानने लगे थे. उस के कपड़े सब से अलग और स्टाइलिश होते थे. क्लास में सभी उस को बहुत पसंद करते थे. वह कालेज की फैशन सोसाइटी का हिस्सा भी बन गई थी.
सुहानी को सिर्फ पढ़ाई में ध्यान देने को कहा गया था. हालांकि उस का भी बहुत मन होता था पढ़ाई के अलावा भी बाकी एक्टिविटीज में भाग लेने का, लेकिन घर वालों के कारण वह हमेशा अपने कदम पीछे कर लिया करती थी. यही वजह थी जो सुहानी धीरेधीरे अनन्या से दूर होने लगी थी. उस के मन में अनन्या के प्रति ईर्ष्या की भावना आने लगी थी.
स्कूल के फेयरवेल के समय सुहानी को इतना फर्क नहीं पड़ा था. लेकिन, अब उसे अनन्या की यह आजादी चुभने लगी थी. सुहानी अपनी पसंद से न कपड़े पहन सकती थी न कहीं अपनी मरजी से जा सकती थी. वहीं अनन्या के घर वाले उसे पूरा सपोर्ट करते थे. अपने मनपसंद के कपड़े पहनना, घूमनाफिरना, वह सब करती थी. ऐसा नहीं था कि अनन्या की फैमिली सभी चीजों के लिए हां कर देती थी, हां, उसे उस के फैसले, वह क्या पहनना चाहती है, क्या करना चाहती है, यह डिसाइड करने का पूरा हक था.
जलन जब नफरत बन जाए
सुहानी और अनन्या की दोस्ती में काफी बदलाव नजर आने लगा था. अनन्या हमेशा उस के साथ रहती, लेकिन सुहानी उस से दूरियां बनाने में लगी हुई थी. यह बात अन्नया समझ रही थी लेकिन उसे लगा शायद सुहानी पढ़ाई को ले कर परेशान है. मगर आगे कुछ ऐसा हुआ कि दोनों सहेलियां हमेशा के लिए अलग हो गईं. दरअसल, अनन्या को फोटोग्राफी का कोर्स करना था जिस की स्टडी के लिए वह विदेश जाना चाहती थी. जब यह बात उस ने सुहानी को बताई तो सुहानी का कहना था, ‘‘अरे, इतनी दूर क्यों जाना है? यहीं से कर ले. और वैसे भी इस कोर्स का क्या होगा जो तू अभी कर रही है?’’ इस बात पर अनन्या का कहना था, ‘‘यह कोर्स तो मैं ने ऐसे ही जौइन कर लिया था. अच्छा, एक काम कर दे, अपने लैपटौप से इस कालेज का फौर्म भर दे. कल इस की लास्ट डेट है.’’
दोनों फौर्म भरने बैठ गईं. सभी डिटेल्स तो दोनों ने भर दीं लेकिन नैटवर्क प्रौब्लम की वजह से आगे का प्रौसेस नहीं हो पाया. यह देख कर अनन्या ने कहा, ‘‘कोई नहीं, तू आज शाम को दोबारा ट्राई कर लेना, बाकी सब तो हो ही गया है.’’
सुहानी ने भी हां कह दिया. दोनों घर चली गईं. शाम को अन्नया ने फोन पर फौर्म के लिए पूछा तो सुहानी का कहना था, ‘‘मैं ने कोशिश की लेकिन बारबार प्रौसेस फेल हो रहा है. तू चिंता मत कर, मैं कर दूंगी.’’
अगला दिन फौर्म का आखिरी दिन था. जब दोनों अगले दिन कालेज में मिले तो सुहानी ने अनन्या को देखते ही कहा, ‘‘फौर्म का प्रौसेस पूरा हो गया है.’’ यह सुनते ही अनन्या बहुत खुश हुई.
जब अनन्या ने सुहानी से ऐंट्रैंस परीक्षा की डेट पूछी तो वह थोड़ी घबरा गई. उस ने कहा, ‘‘मैं देख कर बताती हूं, ‘‘ ‘‘तभी अनन्या को याद आया उस के मेल आईडी पर सारी डिटेल्स आ गई होंगी. जब उस ने मेल चैक किया तो कुछ नहीं था. उस ने दोबारा सुहानी से पूछा, ‘‘तूने फौर्म फिल कर दिया था?’’ यह सवाल सुनते ही सुहानी शांत हो गई. दरअसल, सुहानी ने घर जाने के बाद लैपटौप चैक भी नहीं किया था. जब अनन्या ने लैपटौप में चैक किया तो कोई फौर्म फिल करने का प्रौसेस ही नहीं हुआ था.
यह देख कर अनन्या को बहुत अजीब लगा. अनन्या ने जब सुहानी के झूठ बोलने पर सवाल किया तो वह गुस्से में बोलने लगी, ‘‘मेरे पास इतना टाइम नहीं था. तेरी तरह मेरी लाइफ नहीं है. मुझे घर जा कर भी बहुत काम होता है. और वैसे भी तू विदेश जा कर क्या करेगी? तू सारी मौजमस्ती यहां कर ही लेती है. मेरा देख, सिर्फ किताबों में या घर के काम में ही पूरा दिन बीतता है.’’
अनन्या समझ गई कि जिस दोस्त पर वह इतना भरोसा करती थी वह सिर्फ उस से जलती थी. उस ने जानबूझ कर उस का फौर्म फिल नहीं किया.
वैसे आज के समय में जलन की भावना बहुत आम हो गई है. लोग एकदूसरे का काम बिगाड़ने में लगे रहते हैं, चाहे उस से उन को फायदा हो या न हो. लड़कियों में सब से ज्यादा जलन की भावना कपड़ों या फिर खुली छूट की वजह से होती है.
जो हमें नहीं मिलता वह हम किसी दूसरे के पास भी देखना पसंद नहीं करते, जोकि सरासर गलत है. अगर आप को आप की इच्छा के अनुसार जिंदगी में कुछ करना है तो उस के लिए परिवार से बात करें. दूसरों से लड़ने के बजाय परिवार से लड़ना जरूरी है. दूसरों से ईर्ष्या कर उन को तकलीफ पहुंचा कर आप उन सभी से दूर होते चले जाएंगे. यह सब एक दिन आप को सब से अकेला कर देगा और तब पछताने के अलावा आप के पास कुछ नहीं रहेगा.
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नई किस्मों की बदौलत सब्जी उत्पादन के मामले में भारत चीन के बाद अब दूसरे नंबर पर आ गया है. फिलहाल देश के 95 लाख हेक्टेयर रकबे में सब्जियों की पैदावार करीब 17 करोड़ टन सालाना हो रही है. अभी यह और बढ़ सकती है, लेकिन तोड़ाई, लदाई, पैकिंग, मंडी की खामियों, भंडारण व प्रोसेसिंग वगैरह की कमी से करीब एक तिहाई सब्जियां खराब हो जाती हैं. सरकारें पैदावार बढ़ाने पर जोर देती हैं, लेकिन उपज ज्यादा होते ही मंडी में भाव गिरने से किसानों की हालत खराब हो जाती है. खासकर सब्जियों की खेती करने वालों को दोधारी तलवार पर चलना पड़ता है, क्योंकि ज्यादातर सब्जियों को अनाजों की तरह गोदामों में नहीं भर सकते. लिहाजा नुकसान किसानों का और फायदा बिचौलियों, आढ़तियों व सब्जी उत्पाद बनाने वाली कंपनियों का होता है. इसलिए सब्जियों की खेती व कारोबार में बदलाव जरूरी है, ताकि किसानों को नुकसान न हो.
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क्या करें किसान
ज्यादातर किसान आज भी सब्जियां उगाने व मंडी में ले जा कर बेच देने की पुरानी घिसीपिटी लीक पर ही चल रहे हैं. लिहाजा कड़ी मेहनत के बावजूद उन्हें मुनाफा मिलना तो दूर, उपज की वाजिब कीमत भी नहीं मिलती है. लिहाजा जरूरी है कि किसान, नई तकनीक अपनाएं और कम जमीन में जल्दी, ज्यादा व बेहतर क्वालिटी की उपज देने वाली सब्जियों की नई किस्में ज्यादा से ज्यादा लगाएं.
इस के लिए जानकारी बढ़ाना, नए कदम उठाना व कृषि वैज्ञानिकों से तालमेल बनाना जरूरी है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने सब्जियों की 485 उम्दा किस्में निकाली हैं. वाराणसी, उत्तर प्रदेश में चल रहे भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान व भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान, हैसरघट्टा, बेंगलूरू के माहिर लगातार सब्जियों की खेती से जुडे़ तमाम पहलुओं पर खोजबीन कर रहे हैं. उन से सब्जियों की बोआई से कटाई तक बेहतर ढंग से खेती करने व नई किस्मों की जानकारी हासिल की जा सकती है.
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निर्यात
जहरीली दवाओं व अंगरेजी खाद का इस्तेमाल किए बगैर आरगैनिक तरीके से उम्दा क्वालिटी की सब्जियां उगा कर बेहतर ढंग से पैक की जाएं, ताकि दूसरे मुल्कों को उन का निर्यात कर के ज्यादा धन कमाया जा सके. हमारे देश से ताजी सब्जियों व उन से तैयार प्रोसेस्ड उत्पादों का निर्यात लगातार बढ़ रहा है. साल 2015 में 5000 करोड़ रुपए कीमत की प्याज, भिंडी, मिर्च, मशरूम व आलू आदि सब्जियों का निर्यात यूके, अरब, मलेशिया, नीदरलैंड, श्रीलंका व नेपाल वगैरह को हुआ था.
सब्जियों के निर्यात में पंजाब, उत्तर प्रदेश व पश्चिम बंगाल वगैरह राज्य आगे हैं. यह कारोबार करने के इच्छुक किसान कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात प्राधिकरण, एपीडा, नई दिल्ली से इस बारे में जानकारी हासिल कर के अपना रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं. फिलहाल 5000 से भी ज्यादा निर्यातक फर्में व कंपनियां कृषि उत्पादों का निर्यात कर रही हैं, लेकिन इन निर्यातकों में कई किसान व उन के समूह भी शामिल हैं.
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करें प्रोसेसिंग
सब्जियों की खेती से ज्यादा कमाने के लिए लाजिम है कि किसान सब्जियों की कुल उपज को सीधे मंडी ले जा कर कच्चे माल की तरह न बेचें. हालांकि इस से किसानों को उन की उपज की कीमत तुरंत मिल जाती है, लेकिन कम मिलती है. इसलिए किसान पोस्ट हार्वेस्ट यानी कटाई बाद इस्तेमाल होने वाली बेहतर व किफायती तकनीक सीखें ताकि सब्जियों को खराब होने से बचाया जा सके. किसान माली नुकसान से बचने के लिए सब्जियों की कीमत बढ़ाएं. नए उपायों पर ध्यान दें. गांव में ही सब्जियों की प्रोसेसिंग इकाई लगाएं. अपने बच्चों को पढ़ालिखा कर इस रोजगार में लगाएं. साथ ही साथ राष्ट्रीय बागबानी मिशन आदि एजेंसियों द्वारा चलाई रही सरकारी स्कीमों के तहत मिल रही सहूलियतों का फायदा उठाएं.
इस के लिए सब से पहले किसान यह देखें कि किस इलाके में किस सब्जी की बहुतायत है. उन में किसी सब्जी से कौन से उत्पाद, कैसे व कहां तैयार करने हैं. फिर उस के बारे में सिलसिलेवार पूरी, सही व नई जानकारी इकट्ठी करें. हो सके तो किसी ऐसी इकाई में काम कर के प्रोसेसिंग, पैकिंग व बाजार में बेचने तक का तजरबा भी हासिल करें. सब्जियों को साल भर के लिए महफूज रखने व खाने लायक रखने का काम नया नहीं है.
आलू, गोभी व गाजर जैसे सब्जियों को पहले भी बेमौसम में इस्तेमाल करने के लिए सुखा कर रख लिया जाता था. पुराने जमाने में सब्जियों के टुकड़ों को तेल, नमक, चीनी, सिरके वगैरह में डाल कर या सुखा कर महफूज रखा जाता था. आलू की पिट्ठी से बडि़यां, चिप्स व पापड़ बनते थे. सिरके में मूली, प्याज, मिर्च और गाजर डाले जाते थे. बहुत से गांवों, कसबों और शहरों में यह सिलसिला कमोबेश आज भी बरकरार है.
अब सब्जियों को सुख कर, ठंडा कर के नमी, फफूंदी व कीटाणुरहित डब्बाबंदी की जाती है. यदि किसान खुद अपनी उपज का बेहतर इस्तेमाल करने की गरज से यह सहायक रोजगार करें, तो इस काम में फायदे की बहुत गुंजाइश है.
फायदा ही फायदा
हरी मटर का उदाहरण लें. आमतौर पर इस का सीजन सर्दियों में 4-5 महीने चलता है, लेकिन मटर के सूखे व फ्रोजन पैक दाने पूरे साल मिलते व खाए जाते हैं. मदर डेरी की सफल समेत बहुत सी छोटीबड़ी कंपनियां मटर के फ्रोजन दाने प्रोसेस्ड कर के बेचती हैं. मटर के दाने सुखाने में 8-10 फीसदी तक नमी घट जाती है, लेकिन सीजनल मटर के मुकाबले दानों की कीमत भी 8-10 गुने तक ज्यादा रहती है. यह जरूरी नहीं कि सब्जियों के परिरक्षण का काम बड़े पैमाने पर ही शुरू किया जाए. अपनी कूवत के मुताबिक किसान छोटे पैमाने पर भी यह काम शुरू कर सकते हैं. इस काम में लगे राजकुमार ने बताया कि मटर की धुलाई, छंटाई व छिलाई के बाद साफ दाने निकाल लें. एक बरतन में पानी उबालें और 2 मिनट के लिए उस में मटर के दाने डाल दें. फिर दाने बाहर निकाल कर उन्हें धो लें व पालीथीन में भर कर उन्हें फ्रीजर में रख लें और जब जरूरत हो तब उन्हें इस्तेमाल करें. बड़ी यूनिटों में मटर के दाने उबालने, सुखाने, कूलिंग, केनिंग व पैकिंग तक का सारा काम आटोमैटिक मशीनों से होता है. 5 से 10 टन कूवत का प्लांट करीब 20 से 40 लाख रुपए तक में लग जाता है. सूखी मटर, टमाटर व दूसरी सब्जियों की प्रोसेसिंग करने की मशीनों के कई निर्माता अब भारत में ही मौजूद हैं.
मै. शिवा इंजीनियर्स, टी 533, एमआईडीसी, भोसारी 411038, पुणे, महाराष्ट्र या मैं. इंटरनेशनल फूड मशीनरी कारपोरेशन, पं. नेहरू मार्ग, जामनगर, गुजरात या मै. बजाज प्रोसेस्ड पैक लि., बी 136, सेक्टर 63, नोएडा, फोन : 120-4639950-99 से ऐसी मशीनें खरीदी जा सकती हैं. ताजी सब्जियों को प्रोसेस करने की तकनीकी जानकारी व ट्रेनिंग केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान, सीएफटीआरआई, मैसूर से हालिस की जा सकती है. इस संस्थान से किसान व उद्यमी कम मियाद के कोर्स कर सकते हैं. यहां से आलू, आंवला, अदरक, प्याज, मशरूम व हरी मिर्च वगैरह को महफूज रखने व उन के उत्पाद बनाने की तकनीक हासिल की जा सकती है. किसान ऐसे रिसर्च सेंटरों के वैज्ञानिकों से जानकारी लें तो सब्जियों की प्रोसेसिंग से ज्यादा कमाई के बहुत से गुर सीख सकते हैं. मटर ही नहीं ब्रोकली व बींस जैसी सब्जियों को भी परिरक्षित यानी बेमौसम के लिए महफूज किया जा सकता है. सब्जियों से कई तरह के उम्दा उत्पाद बनाए व बेचे जा सकते हैं. मसलन केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला, हिमाचल प्रदेश की मदद से आलू के चिप्स, बड़ी, पापड़, टिक्की, स्टार्च व भुजिया वगैरह उत्पाद बनाए जा सकते हैं. इसी तरह टमाटर से सौस, कैचप, प्यूरी, पेस्ट और पाउडर बनाए जाते हैं.
अमरावती, महाराष्ट्र में जब एक किसान महिला कमला बाई ने देखा कि बाजार में उन की हरी मिर्च की वाजिब कीमत नहीं मिल रही है, तो उन्होंने फूड प्रिजर्वेेशन के नजदीकी सेंटर पर ट्रेनिंग ली. फिर मिर्चों को चीर कर उन में अचार का मसाला भर कर थोड़ा सुखाया और पैकेटबंद कर के बेचना शुरू कर दिया. उन का यह काम चल निकला. पैसे 8 गुना ज्यादा मिले. अब उन का पैक्ड मिर्च अचार दूरदूर तक जाने लगा है.
पूंजी का इंतजाम
केंद्र सरकार के खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय की स्कीमों में भी कूल चेनें व फूडपार्क बनाने आदि के लिए सुहूलियतें दी जाती हैं. दरअसल, ज्यादातर किसानों को इन की जानकारी नहीं है. नई दिल्ली में चल रहा राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम, एनसीडीसी अपनी स्कीमों के तहत खाद्य प्रसंस्करण में लगी सहकारी समितियों को माली इमदाद देता है. लिहाजा किसान सब्जी परिरक्षण के लिए अमूल, इफको व कृभको वगैरह की तरह बड़े सहकारी कारखाने भी लगा सकते हैं. लघु किसान व्यापार संगठन भी इस काम के लिए पूंजी मुहैया कराता है. किसानों व कारोबारियों को जागरूक करने और ट्रेनिंग देने आदि का काम नेशनल सेंटर फौर कोल्ड चेन डेवलपमेंट, एनसीसीडी कर रहा है. इस का दफ्तर नई दिल्ली के जनपथ भवन में बी ब्लाक के दूसरे तल पर चल रहा है.
सावधानी
ध्यान रहे कि फलसब्जियों आदि से खानेपीने की पैक्ड चीजें बनाने में सावधानी रखना जरूरी है. साथ ही बनाने व बेचने से पहले एफपीओ मार्क यानी फूड प्रिजर्वेशन आर्डर का निशान लगाने की मंजूरी लेनी होती है. इस के अलावा पीएफए एक्ट यानी मिलावट की रोकथाम करने वाले कानून की दस्तावेजी खानापूरी करना भी जरूरी है. इस बारे में इच्छुक किसान व कारोबारी अपने जिले के उद्योग महकमे से जानकारी ले सकते हैं.
केंद्र व राज्य सरकारों की स्कीमों के तहत सब्जी प्रसंस्करण की इकाइयां लगाने के लिए खादी आयोग व राज्य ग्रामोद्योग बोर्ड की सिफारिश पर कई बैंक आसान किश्तों, रियायती ब्याज व छूट पर कर्ज भी देते हैं. इस संबंध में किसान अपने जिले के लीड बैंक या राष्ट्रीय कृषि एवं ग्राम्य विकास बैंक, नाबार्ड के दफ्तर से संपर्क कर सकते हैं. सब्जियों के प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए देश के अलगअलग राज्यों में अलगअलग स्कीमें चल रही हैं. मसलन उत्तर प्रदेश का उद्यान एवं प्रसंस्करण महकमा किसानों को पोस्ट हार्वेस्ट टैक्नोलाजी के तहत कोल्ड रूम, माकूल वाहन, शीत गृह, भंडार गृह, प्रोसेसिंग यूनिट, प्रिजर्वेशन यूनिट लगाने और सब्जियों के बीज उत्पादन करने पर माली इमदाद व ट्रेनिंग वगैरह दूसरी कई तरह की सहूलियतें मुहैया कराता है. किसानें को आगे आ कर उन से भरपूर फायदा उठाना चाहिए, ताकि सब्जियों की खेती करना पहले के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद साबित हो सके. ठ्ठ
कैसे सीखें
ज्यादातर राज्यों में कृषि विज्ञान केंद्र चल रहे हैं. कृषि विश्वविद्यालयों में फूड प्रोसेसिंग के सैक्शन होते हैं. कृषि उद्यान, उद्योग, खादी, ग्रामोद्योग और फलसब्जी प्रसंस्करण महकमों के ट्रेनिंग सेंटर हैं. साथ ही प्रधानमंत्री कौशल विकास स्कीम के तहत चुने हुए प्राइवेट सेंटरों पर भी किसानों को सब्जी परिरक्षण की बेसिक ट्रेनिंग व बहुत सी फायदेमंद जानकारी मिल सकती है. बस आगे आ कर पहल करने की जरूरत है. देश के बहुत से बड़े शहरों में नईनई विदेशी सब्जियों की मांग भी तेजी से बढ़ रही है, लिहाजा उन्हें उगाने वालों की गिनती भी बढ़ रही है. यह बात दूसरी है कि सिर्फ प्रचलित सब्जियों के उत्पादन व औसत उपज वगैरह पर ही भारत सरकार का कृषि मंत्रालय नजर रखता है.
केंद्र सरकार ने फलों, फूलों व सब्जियों वगैरह की खेती को बढ़ावा देने के लिए साल 1984 से गुड़गांव के सेक्टर 85 में राष्ट्रीय हार्टीकल्चर मिशन, एनएचबी चला रखा है. इसी तरह कई राज्यों ने भी अपने औद्यानिक मिशन चलाए हैं. इन के बारे में किसान अपने जिले के कृषि या उद्यान महकमे से जानकारी ले सकते हैं. इस के अलावा चौधरी चरण सिंह, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के होमसाइंस कालेज द्वारा बाजरे से अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है, जो केवल 1 से 2 दिन की ही होती है. इस ट्रेनिंग में बाजरे से बने लड्डू, ढोकला, बिसकुट, सेव (नमकीन), केक, इडली जैसी चीजें बनानी सिखाई जाती?हैं, जो स्वादिष्ठ और पौष्टिक होने के साथसाथ बनाने में आसान और कम खर्चीली भी हैं. होमसाइंस कालेज की डीन डा. प्रवीण पुनिया के नेतृत्व में उन के विशेषज्ञों द्वारा ट्रेनिंग दी जाती?है. यह ट्रेनिंग एकदम मुफ्त दी जाती है, जो 1 से 2 दिनों की होती है. ट्रेनिंग करने के बाद आप अपना छोटा रोजगार भी शुरू कर सकते?हैं. खासकर घरेलू महिलाओं के लिए तो यह बहुत ही फायदे का सौदा है. वैसे भी आजकल तो हाथ से बनी चीजों की खासी मांग भी है और लोग विश्वास से खरीदते?भी हैं. जो लोग ट्रेनिंग लेना चाहते हैं, वे चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के होमसाइंस कालेज के फूड एवं न्यूट्रीशियन विभाग से संपर्क कर सकते हैं. साथ ही उन के टोल फ्री नंबर 18001803001 पर बात कर सकते हैं.
लखनऊ . उत्तर प्रदेश सरकार ने सैमसंग डिस्प्ले नोएडा प्रा.लि. को विशेष प्रोत्साहन का प्रस्ताव अनुमोदित कर दिया है. मोबाइल एवं आई.टी. डिस्प्ले उत्पादों के निर्माण हेतु यह प्रथम इकाई, जो चीन से विस्थापित होकर उत्तर प्रदेश में स्थापित की जा रही.
सैमसंग डिस्प्ले नोएडा प्राइवेट लिमिटेड द्वारा फेज-2 नोएडा में 4,825 करोड़ रुपए के निवेश से मोबाइल एवं आई.टी. डिस्प्ले उत्पादों के विनिर्माण हेतु इकाई की स्थापना की जा रही है.
विश्व में टी.वी., मोबाइल फोन, टैबलेट, घड़ियों आदि में उपयोग होने वाले कुल डिस्प्ले उत्पाद का 70 प्रतिशत से अधिक सैमसंग द्वारा दक्षिण कोरिया, वियतनाम तथा चीन में निर्मित होता है. दक्षिण कोरिया की प्रतिष्ठित बहुराष्ट्रीय कम्पनी सैमसंग की परियोजना देश में मोबाइल एवं आई.टी. डिस्प्ले उत्पादों के निर्माण हेतु प्रथम इकाई है जो कि चीन से विस्थापित होकर उत्तर प्रदेश में स्थापित की जा रही है.
भारत इससे निर्मित मोबाइल डिस्प्ले विनिर्माण वाला तीसरा देश बन जाएगा. डिस्प्ले इकाइयों का प्रस्तावित निवेश मूल उत्पाद का एक ज्यादा लागत वाला हाई टेक्नोलाॅजी कम्पोनेण्ट है, यह बीच की सप्लाई चेन की कड़ी को पूर्ण करने के लिये तथा भविष्य में प्रदेश में डिस्प्ले से सम्बन्धित फैब इकाई की स्थापना हेतु यह इकाई एक मील का पत्थर साबित होगी.
विगत वित्तीय वर्ष 2.7 बिलियन डाॅलर के निर्यात के द्वारा मेसर्स सैमसंग उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा निर्यातक है. सैमसंग ग्रुप ने अगले पांच वर्षों में कुल 50 बिलियन डाॅलर का निर्यात लक्ष्य रखा है. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किये गये प्रयासों से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एक ईको-सिस्टम विकसित हो गया है तथा देश/विदेश में मोबाइल एवं अन्य इलेक्ट्राॅनिक्स उपकरणों की बढ़ती हुई मांग के दृष्टिगत भारत सरकार भी निर्यात हब बनाने हेतु निरन्तर प्रयासरत है.
सैमसंग डिस्प्ले नोएडा प्राइवेट लिमिटेड को केस-टू-केस आधारित विशेष प्रोत्साहन दिए जाने के सम्बन्ध में मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश की अध्यक्षता में गठित सशक्त समिति की अनुशंसा तथा सुझावों पर विचार-विमर्श कर मंत्रिपरिषद के विचारण हेतु अभिमत/संस्तुतियां दिए जाने के सम्बन्ध में मुख्यमंत्री द्वारा तीन वरिष्ठ मंत्रियों की एक समिति गठित की गई थी, जिसकी अनुंशसा के पश्चात मंत्रिपरिषद द्वारा इस इकाई को विशेष प्रोत्साहन अनुमन्य किए गए हैं.
विनिर्माण नीति-2017’ के अन्तर्गत पूंजी उपादान, भूमि हस्तान्तरण पर स्टाम्प ड्यूटी में छूट की अनुमन्यता होगी. चीन से विस्थापित होकर उत्तर प्रदेश आ रही इस परियोजना को पूंजी उपादान के लिए भारत सरकार द्वारा निर्गत ‘स्कीम फाॅर प्रमोशन ऑफ मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्राॅनिक कम्पोनेन्ट्स एण्ड सेमीकण्डक्टर्स योजना के अन्तर्गत निर्धारित मानकों के अनुसार स्थिर पूंजी निवेश में पुरानी मशीनों की लागत को भी अनुमन्य किया जायेगा. इस परियोजना के लिए प्रदेश सरकार पर 5 वर्षों की अवधि में 250 करोड़ रुपए का वित्तीय उपाशय अनुमानित है. प्रस्तावित परियोजना से 1,510 व्यक्तियों हेतु प्रत्यक्ष तथा बड़ी संख्या में अन्य व्यक्तियों हेतु अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होंगे. प्रस्तावित निवेश से प्रदेश के इस क्षेत्र को विश्व पटल पर एक निर्यात हब की पहचान प्राप्त होगी जो प्रदेश में अधिक एफ0डी0आई0 लाने में सहायक होगा.
भारत सरकार की योजना ‘स्कीम फाॅर प्रमोशन ऑफ मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्राॅनिक कम्पोनेन्ट्स एण्ड सेमीकण्डक्टर्स के अन्तर्गत भी लगभग 460 करोड़ रुपए वित्तीय प्रोत्साहन निवेशक को प्राप्त होगा.