लेखक- रोहित और शाहनवाज 

विरोधों को रोकने का जरिया लगातार हर साल यह ट्रैंड देखने में आ रहा है कि मोदी सरकार के खिलाफ बढ़ते विरोध को देख सरकार द्वारा इंटरनैट शटडाउन को अधिकाधिक इस्तेमाल किया जा रहा है. खुद आंकड़े गवाही देते हैं. किसानों की ट्रैक्टर परेड के बाद किसान आंदोलन की दिशा जानने के लिए हम लगातार दिल्ली के अलगअलग बौर्डरों पर जाते रहे. इस में शक नहीं कि कई उठापटकों की संभावनाओं के बाद किसानों के आंदोलन ने पहले से अधिक जोर पकड़ लिया है. यह आंदोलन अब पंजाब, हरियाणा से होते हुए उत्तर प्रदेश के गांवों तक पहुंच गया है. लेकिन जैसेजैसे इस आंदोलन ने जोर पकड़ा, वैसेवैसे धरने पर बैठे किसानों के बीच पहुंचना सरकार ने न सिर्फ दूरदराज से आ रहे किसानों के लिए मुश्किल बना दिया, बल्कि सहानुभूति रखने वाले आम लोगों व आंदोलन को कवर कर रहे पत्रकारों के लिए भी एक टास्क सा बना दिया है.

धरनास्थलों पर लगी कई स्तरों की बैरिकेडिंग, जिन में कंक्रीट की दीवारें, सीमेंट के बड़े पत्थर, ट्रकलोडर, मालगाड़ी कंटेनर, रोडरोलर, कंटीली तारें शामिल हैं, इस बात की गवाही देती हैं. ये सब वे चीजें हैं जिन के बारे में सहीगलत तरह से मीडिया चैनलों में बहस या फसाद हुए हैं. लेकिन किसान आंदोलन के विरोध में सरकार द्वारा इंटरनैट शटडाउन किया जाना ठीक तरह से बहस में शामिल ही नहीं हो पाया है. 26 जनवरी के दिन देश की राजधानी दिल्ली में जब एकतरफ भारतीय जवानों की परेड निकल रही थी तो वहीं दूसरी तरफ राजधानी के अलगअलग बौर्डरों से किसान अपनी ट्रैक्टर रैली निकाल रहे थे. लेकिन उस का एक हिस्सा शांतिपूर्ण रैली से अलग हो कर दिल्ली में लालकिले की ओर कूच करने लगा. उसी दौरान प्रदर्शनकारियों के साथ पुलिस की मुठभेड़ हुई जिस में कई पुलिसकर्मी व किसान घायल हुए. वहीं, एक किसान की मृत्यु भी हो गई.

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मामले को गंभीर समझते देख सरकार ने सभी प्रदर्शनस्थलों के साथ दिल्ली में एक दिन का इंटरनैट शटडाउन कर दिया. शुरुआत में यह कहा गया कि यह शटडाउन रात के लिए लागू किया गया है. लेकिन धरनास्थलों पर अगले 11 दिनों (6 फरवरी, 2021) तक इंटरनैट को दोबारा चालू नहीं किया गया. इस से सरकार की मंशा पर कई सवाल उठाए गए. इंटरनैट शटडाउन के इसी मुद्दे पर 2 फरवरी को इंटरनैशनल सिंगर रिहाना ने सीएनएन की एक रिपोर्ट को टैग करते हुए ट्विटर पर ट्वीट किया, ‘‘हम इस के बारे में बात क्यों नहीं कर रहे?’’ सवाल स्वाभाविक था. सरकार द्वारा इतने लंबे समय तक इंटरनैट बंद करने के कारण स्पष्ट नहीं थे. इसलिए बजाय इस के कि उन के इस सवाल पर भारत के मीडिया चैनलों के प्राइम टाइम पर वादविवाद हो, उलटे, मीडिया और प्रशासन द्वारा इसे विदेशी षड्यंत्र कहा गया.

इस के काउंटर के लिए देश की हस्तियों को ढाल बनाया गया. सोशल मीडिया पर चर्चा गैरजरूरी इंटरनैट शटडाउन से अधिक इस बात पर होने लगी कि रिहाना अधनंगी व अश्लील सिंगर है. उस ने इस के लिए पैसे लिए हैं, उस के पुराने गैरजरूरी विवादों को मुद्दा बनाया जाने लगा. उस के चरित्र पर हमला होने लगा. लेकिन अगर रिहाना को एक पल के लिए छोड़ दिया जाए तो क्या यह सवाल नहीं बनता कि इंटरनैट शटडाउन हमारे लिए सच में चिंता का विषय है? किसान आंदोलन इस का ताजा उदाहरण सरकार द्वारा इंटरनैट शटडाउन का ताजा उदाहरण किसान आंदोलन में देखने को मिला. जब से किसान दिल्ली की सीमाओं पर आए, तभी से केंद्र सरकार ने फ्रौडलिंग के माध्यम से इंटरनैट की गति को बहुत धीमा कर दिया था. लेकिन 26 जनवरी को हुए फसाद के बाद मिले बहाने से सरकार ने अगले 11 दिनों के लिए धरनास्थलों पर पूरी तरह से इंटरनैट शटडाउन कर दिया. और यह तब जा कर वापस रिस्टोर किया गया जब देशविदेश, यूनाइटेड नेशन और ह्यूमन राइट संगठनों द्वारा इस कार्यवाही की कड़ी आलोचना होने लगी. आंदोलन में इंटरनैट के शटडाउन की वजह से होने वाली समस्याओं पर जब हम ने वहां के युवा आंदोलनकारियों से इस बारे में बात की तो उन का कहना था, इस तरह से सरकार आंदोलन को पंगु बनाने की सोचती है. इस सिलसिले में हमारी बात किसान आंदोलन के समर्थन में बनाए गए ‘सोशल आर्मी’ के 22 वर्षीय सदस्य प्रदीप हिंदुस्तानी से हुई.

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गांव जनावा, जिला भिवानी से आने वाले प्रदीप किसी धर्म और जाति में विश्वास नहीं करते, जिस कारण वे अपने नाम के पीछे हिंदुस्तानी लिखते हैं. उन का कहना है, ‘‘इस समय किसान आंदोलनकारी मुख्यधारा की मीडिया पर बिलकुल भी भरोसा नहीं कर सकते. यह मीडिया जो जानकारी दे रही है वह हमारे खिलाफ और भ्रम से भरी है. इसलिए हमारी जानकारी का स्रोत वे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स हैं जो यहीं से आंदोलन की असली जानकारियां लोगों तक पहुंचा रहे हैं. सरकार इसे इसलिए बंद कर रही है ताकि हमें रोक कर और मुख्यधारा मीडिया के साथ मिल कर वह हमारे खिलाफ प्रौपगंडा चला सके.’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘हरियाणा के कुछ जिलों, जिन में भिवानी और हिसार हैं, के लोगों ने इंटरनैट बंद करने के मसले पर स्थानीय स्तर पर प्रदर्शन भी किए, जिस कारण उन जिलों में इंटरनैट सुविधा दोबारा रिस्टोर की गई. जिस समय यहां इंटरनैट बंद था, हम यहां रात के समय 15 किलोमीटर दूर जाते थे ताकि गांव के लोगों तक आंदोलन से जुड़ी सही जानकारी पहुंचा सकें.’’ पंजाब के मनसा के रहने वाले 28 वर्षीय जगपाल सिंह कहते हैं, ‘‘इंटरनैट बंद होने के बाद चीजें पहले से मुश्किल तो होती ही हैं, डायरैक्शन में भी कई दिक्कतें आती हैं.

कई काम ऐसे होते हैं जो हम बिना घर जाए यहीं बैठेबैठे कर लिया करते थे, जो ऐसे माहौल में मुश्किल हो जाता है.’’ इसी प्रकार टिकरी बौर्डर पर सोशल आर्मी के एक सदस्य 21 वर्षीय अंकुर सांगवान मिले. वे चरखी दादरी (हरियाणा) से हैं. उन्होंने कहा, ‘‘किसानों के शांतिप्रिय प्रदर्शन से लोग बड़ी संख्या में जुड़ रहे हैं. सरकार इसी बात से डर रही है. एक तरफ गोदी मीडिया ने सच दिखाना बिलकुल छोड़ दिया है तो वहीं दूसरी तरफ यूट्यूबर और सोशल मीडिया वालों ने सच दिखा कर इस आंदोलन की नींव को मजबूत करने का काम किया है. इसलिए सरकार ने सभी प्रदर्शनस्थलों पर इंटरनैट शटडाउन किया हुआ है.’’ अंकुर का मानना है कि इंटरनैट बंद किया जाना उतना बड़ा इश्यू नहीं है. जब इंटरनैट नहीं था तब भी आंदोलन हुआ करते थे और सफल भी होते थे. समस्या बस, सरकार के झूठ और गोदी मीडिया से है जिस के खिलाफ पैरलल मीडिया बनाए जाने की जरूरत है. अंकुर कहते हैं, ‘‘कहां है डिजिटल इंडिया, जिस की कसमें मोदीजी खाया करते थे. क्या यही है हमारा फ्रीडम औफ स्पीच कि जिसे एक बटन से बंद करने की कोशिश करते रहते हो.

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इंटरनैट को बंद करने से हम किसान, सोशल आर्मी, लोगों को समस्या का सामना करना पड़ा. हमारे लोगों को सच्ची जानकारियां फेसबुक व बाकी सोशल मीडिया पर डालने में समस्या आई. हमारे जो व्हाट्सऐप ग्रुप बने हैं उन तक हम अपना मैसेज नहीं पहुंचा पा रहे हैं और इसी समस्या के चलते अब हमारी कोशिश रहेगी कि यहां हम वाईफाई का अरेंजमैंट करें.’’ कबकहां इंटरनैट शटडाउन जम्मू कश्मीर : 5 अगस्त, 2019 को जम्मूकश्मीर से केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए के हटाए जाने से एक दिन पहले ही सरकार ने जम्मूकश्मीर से इंटरनैट शटडाउन कर दिया. जम्मूकश्मीर राज्य को जम्मू और कश्मीर व लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था. बता दें कि संविधान के अनुसार, अनुच्छेद 370 को केवल राज्य सरकार के समझौते के साथ ही संशोधित किया जा सकता है. लेकिन वहां की गठबंधन वाली राज्य सरकार में भाजपा के अलग हो जाने के बाद पीडीपी माइनोरिटी में आ गई. जिस कारण वहां गवर्नर शासन लागू हो गया.

जिस के बाद केंद्र सरकार ने रातोंरात फैसला कर राज्य से उस का स्पैशल स्टेटस छीन लिया. जम्मूकश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया जाना केंद्र सरकार का कोई छोटा कदम नहीं था बल्कि यह पूरा काम स्टेट की ताकत यानी पुलिसबल और आर्मी इत्यादि की मदद से किया गया. स्पैशल स्टेटस हटाए जाने के बाद वहां के लोग जब सड़कों पर आंदोलन करने उतर पड़े तो उन के आंदोलन को कुचलने का काम प्रशासन ने किया. वहां पर प्रैस और मीडिया की स्वतंत्रता को पूरी तरह से दबा दिया गया. कई महीनों कर्फ्यू लगाया गया और राज्य में सैन्यबल की उपस्थिति को बढ़ा दिया गया. नागरिकता संशोधन कानून : पश्चिम बंगाल में लोगों द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में दिनाजपुर, मालदा, मुर्शिदाबाद, हावड़ा, उत्तर 24-परगना और दक्षिण 24-परगना जिलों के कुछ हिस्सों में इंटरनैट सेवाओं को कई दिनों के लिए रोक दिया. इस के साथ ही जब बिल लोकसभा से पास हो कर 11 दिसंबर, 2019 को राज्यसभा में पास होने वाला था तब असम में 24 घंटों के लिए इंटरनैट शटडाउन किया गया. उसी दिन मेघालय में भी 48 घंटों के लिए इंटरनैट शटडाउन कर दिया गया था.

नागरिकता संशोधन कानून का विरोध भारत में अलगअलग राज्यों में विभिन्न स्थानों पर और बड़े स्तर पर हुआ था. जिस में उत्तर प्रदेश, असम, त्रिपुरा, दिल्ली, हैदराबाद, बंगाल, मेघालय राज्य मुख्य थे. ऐसे में इंटरनैट शटडाउन की स्थिति बेहद आम हो गई थी. विभिन्न यूनिवर्सिटियां भी चपेट में : इस का सब से पहला असर दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद देखने को मिला था जब हैदराबाद में आंदोलन शुरू होने से यूनिवर्सिटी में इंटरनैट शटडाउन किया गया. 15 दिसंबर के दिन जामिया में जब छात्र सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे तो शाम को सैकड़ों पुलिस अधिकारियों ने बलपूर्वक परिसर में प्रवेश किया और प्रदर्शनकारियों के साथ टकराव के दौरान सौ से अधिक छात्रों को हिरासत में लिया. इस दौरान प्रशासन द्वारा पूरे इलाके में इंटरनैट शटडाउन कर दिया गया. कुछ ऐसा ही हाल उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में देखने को मिला जब 13 दिसंबर को छात्रों के सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान वहां जिला प्रशासन द्वारा इंटरनैट शटडाउन किया गया.

इसी प्रकार जेएनयू से भी इंटरनैट शटडाउन की खबरें आती रही हैं. कब कितना इंटरनैट शटडाउन नैटब्लौक्स के फाउंडर अल्प टोकर कहते हैं, ‘‘किसी भी वैबसाइट या इंटरनैट पर किसी भी कंटैंट को बंद करना या फिर ब्लौक करना किसी भी देश की सरकार के लिए एक बटन दबाने जितना आसान है.’’ यह चीज होते हुए भी देखा जा सकता है. आज के समय में इंटरनैट शटडाउन करना सरकार के लिए बेहद सामान्य बन चुका है. आजकल इंटरनैट शटडाउन के किस्से इतने आम हो चले हैं कि कहीं भी कोई घटना घटती है तो प्रशासन के हरकत में आने से पहले सरकार वहां पर इंटरनैट को बंद कर देती है. जम्मूकश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के एक दिन पहले ही (4 अगस्त, 2019) केंद्र सरकार द्वारा पूरे राज्य में इंटरनैट बंद कर देना इस का एक मुख्य उदाहरण है. 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से इंटरनैट शटडाउन की संख्या में लगातार इजाफा ही हुआ है. दिसंबर 2019 की इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, 2014-19 तक भारत में 357 बार इंटरनैट को इंटैंशनली बंद किया गया था. एसएफएलसी और इंटरनैट शटडाउन डौट इन के अनुसार, भारत में 2014 में 6 बार, 2015 में 14, 2016 में 31, 2017 में 79, 2018 में 134, 2019 में 106, 2020 में 83 और 2021 में अभी तक शुरुआती जनवरी माह में 7 बार इंटरनैट को बंद किया गया है. सीरिया और टर्की जोकि लोकतांत्रिक मानो के लिए नहीं जाने जाते, वहां भी 2018 में केवल 1-1 बार ही इंटरनैट बंद किया गया, जबकि भारत, जोकि खुद को लोकतांत्रिक देश बताता है, पूरी दुनिया में इंटरनैट शटडाउन का कैपिटल बन कर उभरा. वर्ष 2018 में स्टैटिस्टा की रिपोर्ट के अनुसार, भारत पूरे विश्व में सब से अधिक इंटरनैट शटडाउन करने की लिस्ट में सब से ऊपर है और 3 फरवरी, 2021 को प्रकाशित हुई ‘डैमोक्रेसी इंडैक्स’ में भारत का स्थान 53वें नंबर पर आ चुका है जोकि पिछले साल के मुकाबले 2 स्थान और नीचे गिर चुका है.

इस के साथ ही सरकार का इंटरनैट शटडाउन आर्थिक मानो पर बड़ी गहरी चोट करता है. टौप 10 वीपीएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में इंटरनैट शटडाउन के चलते वैश्विक लागत का आकलन किया गया था. उस में यह बताया गया कि भारत सब से ज्यादा इस से ग्रसित है. 2020 में भारत में 8,927 घंटों के इंटरनैट शटडाउन की लागत 2.7 बिलियन डौलर थी. प्रतिघंटे और रुपए के हिसाब से इस का आकलन किया जाए तो हमें 2 करोड़ रुपए प्रतिघंटे का नुकसान झेलना पड़ा था. इंडियन कौंसिल फोर रिसर्च औन इंटरनैशनल इकोनौमिक रिलेशन (आईसीआरआईईआर) के अनुसार, भारत में पिछले 5 सालों में लगभग 16 हजार घंटे इंटरनैट शटडाउन रहा. जिस के चलते 3 बिलियन डौलर की लागत का नुकसान झेलना पड़ा. लेकिन सवाल यह भी कि क्या सरकार इसे अपने राजनीतिक फायदे के लिए भी इस्तेमाल करती है? डिजिटल रैंकिंग राइट्स नाम के एनजीओ के रिसर्च एनालिस्ट जान रिदजैक, जिन्होंने भारत के इंटरनैट शटडाउन पर बड़े पैमाने पर अध्ययन किया है, कहते हैं, ‘‘इंटरनैट शटडाउन राज्य की हिंसा को अदृश्य बना देता है. कनैक्टिविटी के बाधित होने पर बहुत सी चीजें हैं जो रडार के नीचे उड़ सकती हैं.’’

यों तो सरकार इंटरनैट शटडाउन करने के कई कारण गिनवाती है, जिस में मुख्य रूप से उपद्रव और फेक न्यूज का हवाला दिया जाता है, लेकिन इंटरनैशनल न्यूज एजेंसी डीडब्लू की एनालिसिस भारत में इंटरनैट शटडाउन की कुछ और ही तसवीर पेश करती है. ‘एसएफएलसी’ के डेटा का इस्तेमाल कर डीडब्लू जो एनालिसिस कर पाई, उस में 2012-19 तक भारत में इंटरनैट शटडाउन के मुख्य कारण स्टेट वायलैंस और आम लोगों के प्रोटैस्ट हैं. इस में बाकी बातें भी गिनाई गई हैं लेकिन मुख्यतौर पर ये सामने आई हैं. इस के अनुसार पता चलता है कि राज्य द्वारा हिंसा की गतिविधियों को ब्लैकआउट करने के लिए इंटरनैट शटडाउन 45 फीसदी था और आम लोगों द्वारा विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए 44 फीसदी. जिस की जड़ें हमें बीते कुछ सालों दिख सकती हैं. एक्सैस टू इंटरनैट है फंडामैंटल राइट 10 जनवरी, 2020 को जम्मूकश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद अनिश्चितकालीन इंटरनैट बंद किए जाने की एक सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय बैंच ने कहा, ‘‘एक्सैस टू इंटरनैट संविधान के मौलिक अधिकारों में से एक है.’’ 5 सदस्यों की इस पीठ ने इंटरनैट का उपयोग संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकार माना.

मेनका गांधी बनाम यूनियन औफ इंडिया के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘व्यक्ति की पर्सनल लिबर्टी केवल आर्टिकल 21 के तहत नहीं है. बल्कि आर्टिकल 14 और आर्टिकल 19 भी व्यक्ति को उस की पर्सनल लिबर्टी की आजादी देते हैं.’’ भारतीय संविधान के आर्टिकल 21, 19 और 14 को संविधान का गोल्डन ट्रायंगल कहा जाता है जोकि मानव अधिकारों की रक्षा करते हैं और उन के लिए जरूरी है. इंटरनैट एक्सैस भी उसी गोल्डन ट्रायंगल के पैरामीटर के अंतर्गत ही आता है. इंटरनैट वैश्विक मंच पर अपनी राय व्यक्त करने के लिए नागरिकों की सहायता करता है जो संविधान के आर्टिकल 19(1)(ए) के दायरे में आता है. भारत में केरल पहला ऐसा राज्य है जिस ने 2017 में इंटरनैट को बेसिक फंडामैंटल राइट घोषित किया था. इसी तरह यूनाइटेड नैशन के ह्यूमन राइट कमीशन की जनरल असैंबली ने साल 2016 में इंटरनैट को एक आवश्यक मानवाधिकार के रूप में व्यक्त किया था.

दुनिया में यूएन की इस घोषणा से पहले भी कई देशों ने इंटरनैट को फंडामैंटल राइट घोषित कर दिया था. जैसे, साल 2000 में एस्टोनिया, 2001 में ग्रीस, 2009 में यूरोपियन यूनियन के देशों, इसी साल फ्रांस, 2010 में फिनलैंड और कोस्टा रिका और 2016 में कनाडा में इसे मानवाधिकार घोषित किया गया. इंटरनैट शटडाउन अथौरिटेरियन डिक्टेटरशिप नैटब्लौक्स के फाउंडर अल्प टोकर का कहना है, ‘‘इंटरनैट को बंद करना पूरी तरह से सरकार का अथौरिटेरियन डिक्टेटरशिप रवैया दर्शाता है.’’ आज किसी भी सरकार के लिए यह बहुत ही आसान हो गया है कि वह इन्फौर्मेशन को प्रभावित कर दे. वह एक झटके में इंटरनैट बंद कर देती है जिस से एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से संपर्क न कर सके. यह किसी विशेष स्थिति में तो समझ में आता है लेकिन इंटरनैट को अपने विरोधों में उठ रही आवाजों व अपने हित में शटडाउन करने की कार्यवाही पचती नहीं है. म्यांमार इस का ताजा व ज्वलंत उदाहरण है जब कुछ दिनों पहले वहां मिलिट्री ने तख्ता पलट कर सैनिक शासन लागू कर दिया और तमाम नेताओं को जेल में कैद कर दिया. जिस के विरोध में जब वहां के लोग सड़कों पर उतरे तो विरोधों को रोकने के लिए पूरे देश में इंटरनैट शटडाउन कर दिया गया है. वर्तमान समय में इन्फौर्मेशन का सब से बड़ा महाजाल इंटरनैट ही है. इंटरनैट अन्य मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक साधन बन सकता है क्योंकि यह न केवल जानकारियां प्रदान करता है, बल्कि आसानी से जीवन जीने में सहायक भी होता है.

लेकिन दुनिया की तमाम अथौरिटेरियन सोच रखने वाली सरकारें लगातार इसी कोशिश में हैं कि वे सूचनाओं के तमाम माध्यमों को अपने कब्जे में कर लें. यही कारण है कि इसी सीक्वैंस में सब से पहले देश के न्यूज चैनल पर प्रहार किया जाता है, फिर विभिन्न सूचना के अधिकार को पंगु बनाया जाता है, फिर बचेखुचे इंटरनैट को भी अपने नियंत्रण से जब मरजी शटडाउन किया जाता है. यही पिछले कुछ सालों में भारत में भी होता हुआ देखा जा सकता है जहां अपने हित व अहित को ध्यान में रखते हुए सूचनाओं को कंट्रोल करने की सरकार द्वारा कोशिश की जा रही है.

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