दीपा इतनी भी नासमझ नहीं थी कि आलोक सर की कुत्सित चाल को न समझ सके. उन की उंगलियां वर्जनाओं का अतिक्रमण करतीं इस से पहले वह एकाएक तेजी से उठी. चेहरा आलोक सर की तरफ घुमा कर एक जोरदार तमाचा उन के गाल पर जड़ दिया. वे तिलमिला कर पीछे हटे. उन्हें सपने में भी दीपा से ऐसी प्रतिक्रिया का भान न था. दीपा की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं. आंखें शेरनी की तरह लाल. मानो जिंदा निगलने के लिए तैयार हो. आलोक सर उस का रौद्र रूप देख कर सहम गए. अब तक महिलाओं ने या तो समर्पण किया या तो स्कूल छोड़ कर चली गईं. मगर पहली बार दीपा जैसी महिला से उन का पाला पड़ा. आलोक सर ने कोई प्रतिरोध नहीं किया. समर्पण के मूड में आ गए. गिड़गिड़ाते हुए बोले, ‘‘देखो, यह खबर बाहर तक नहीं जानी चाहिए.’’
‘‘बदनामी होगी?’’ दीपा के चेहरे पर व्यंग्य की रेखाएं खिंच गईं.
‘‘मैं तुम्हारे पैर पड़ता हूं,’’ कह कर वह दीपा के पैरों पर गिर पड़े.
कायर आदमी रंग बड़ी तेजी से बदलता है. दीपा ने उन्हें झटक दिया. धड़ाक से केबिन का दरवाजा खोला. तेज कदमों से बाहर आई. अपनी आपबीती मुझे सुनाई. मेरा सिर गर्व से तन गया.
‘‘तुम ने औरत जाति की लाज रख ली,’’ मैं ने कहा.
जब उस ने स्कूल को अलविदा किया तो वह आत्मविश्वास से भरी थी. चेहरे पर डर, भय का नामोनिशान तक न था. आखिर भय का ही तो फायदा आलोक सर ने उस से उठाना चाहा था. मुझे उस के जाने का दुख था तो खुशी भी थी कि अब कोई आलोक किसी स्त्री को कमजोर समझने की जुर्रत नहीं करेगा.