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बिग बॉस 14 : देवोलीना भट्टाचार्जी घर से हुई बाहर , फैंस को है एजाज खान का इंतजार

बिग बॉस 14 अब अपने आखिरी पड़ाव पर है और आए दिन इस शो में आपको कुछ न कुछ नया देखने को मिल रहा है. सभी कंटेस्टेंट अपनी -अपनी टॉस्क को पूरा करने में लगे हुए हैं. ऐसे में बीती रात जानकारी मिली है कि देवोलीना भट्टाचार्जी शो से बाहर जा चुकी हैं.

जिसके बाद फैंस कयाल लगा रहे हैं कि देबोलीना भट्टाचार्जी के जानें के बाद जल्द एजाज खान की वापसी होगी, लेकिन ऐसा नहीं होने वाला है. दरअसल, एजाज खान ने अपनी अपकमिंग फिल्म की शूटिंग को अधूरा छोड़ रखा था , जिसे पूरा करने के लिए बिग बॉस के घर से उन्हें जाना पड़ा अपने कमिटमेंट को पूरा करने के लिए.

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जिसके बाद एजाज खान की जगह देवोलीना भट्टाचार्जी की एंट्री हुई थी. बता दें कि इस हफ्ते 6 लोग घर से नॉमिनेट हुए हैं. देबोलीना भट्टाचार्जी को और राखी सावंत को सबसे कम वोट मिले थें, जिसके बाद से इन लोगों पर सबसे ज्यादा खतरा था घर से बाहर जाने का .

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कुछ दिनों पहले बिग बॉस के घर में बहुत हंगामा हुआ था राखी सावंत और देबोलीना भट्टाचार्जी में जिसकी वजह थी, राखी सावंत लेकिन सलमान खान ने राखी सावंत को न डांटते हुए उन्होंने रुबीना दिलाइक और अभिनव शुक्ला की क्लास लगा दी. जिसके बाद घर वाले भी सलमान खान का यब रूप देखकर दंग रह गए कि आखिर सलमान खान ऐसी हरकत क्यों कर रहे हैं.

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खैर अब फैंस को उस दिन का इंतजार है जिस दिन इस शो का विनर अनाउंस होगा. देखते हैं कौन बनेगा बिग बॉस 14 का विनर  किसे मिलेगा सबसे ज्यादा वोट.

मेरी दिक्कत यह है कि मेरी बीवी का सेक्स करने का मन नहीं करता, बताइए कि मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 28 साल का हूं. मेरी शादी को ढाई साल हो चुके हैं. मेरा 11 महीने का एक बेटा भी है. दिक्कत यह है कि बीवी का हमबिस्तरी करने का मन नहीं करता. उसे काफी दर्द महसूस होता है. फोरप्ले करने से भी उस के अंग में गीलापन नहीं होता है. बताइए कि मैं क्या करूं?

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जवाब

हमबिस्तरी का सारा खेल मन से जुड़ा होता है. अगर आप की बीवी इस में मन से भाग नहीं लेगी, तो उसे तकलीफ होगी ही.

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आप बीवी से खुल कर बात करें और कहें कि यह तो आप का हक है. उस से पूछें कि अगर उसे किसी तरह की कोई दिक्कत हो तो बताए, ताकि डाक्टर से उस का इलाज कराया जा सके. बीवी को प्यार से मनाएंगे, तो बात बन जाएगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

पीरियड्स के दर्द में काफी फायदेमंद है पपीते का पत्ते का जूस

पपीता हमारी सेहत के लिए काफी लाभकारी होता है. पर क्या आपको पता है कि इसके पत्तों का जूस भी पीया जाता है? अगर आपने नहीं पीया है पपीते के पत्तों का जूस तो आज से ह शुरू कर दें. पपीते के जूस के सेवन से कई गंभीर और बड़ी बीमारियां दूर रहती हैं.

आमतौर पर डेंगू और चिकनगुनिया के रोगियों को पपीते के जूस को पीने की सलाह दी जाती है. पर इससे इतर इसके और भी फायदे हैं. तो आइए जाने कि पपीते के जूस को पीने के फायदों के बारे में.

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दूर करे पीरियड्स के दर्द को

बहुत सी महिलाओं को पीरियड्स का दर्द असहनीय होता है. ऐसे में अगर वो पपीते के पत्ती को इमली, नमक और एक गिलास पानी के साथ मिलाकर काढ़ा बनाया जाए और इसे ठंडा कर के पिया जाए तो इस दर्द से काफी आराम मिलेगा.

कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोके

पपीते के पत्तों में कैंसररोधी गुण मौजूद होते हैं. ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करने में भी खासा मदद करती है. सर्वाइकल और ब्रेस्ट कैंसर जैसे रोगों में ये काफी असरदार होती है.

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दूर करे खून की कमी

पपीते का रस कई तरह की बीमारियों में बेहद लाभकारी होता है. अगर आपकी ब्‍लड प्‍लेटलेट्स कम हो रही हैं तो इसे पीने से ब्‍लड प्‍लेटलेट्स बढ़ जाती हैं. बस रोजाना इस जूस को दो चम्‍मच लगभग तीन महीने तक पिएं.

बचाए इंफेक्शन से

शरीर की इंम्यूनिटी को बढ़ाने के साथ साथ बहुत से बैक्टीरिया और इंफेक्शन्स को रोकने में भी पपीते का जूस काफी लाभकारी होता है. यह खून में वाइट ब्‍लड सेल्‍स और प्‍लेटलेट्स को बढ़ाने में भी मदद करता है.

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डेंगू का है इलाज

डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों में पपीते के पत्ते का जूस काफी असरदार होता है. यह बुखार की वजह से गिरती प्लेटलेट्स को बढ़ाने और शरीर में कमजोरी को बढ़ने से रोकता है.

चुनौती- भाग 3 : सुप्रिया अपनी शादी को लेकर घरवालों के सामने क्या प्रस्ताव रखी

‘‘मेरी बेटी को किसी की नजर न लग जाए,’’ ललिता सुप्रिया को देखते ही खिल उठीं.

‘‘काला टीका लगा दो मां. दीदी हैं ही इतनी सुंदर कि जो देखे, देखता ही रह जाए,’’ नीरजा हंसी.

‘‘तुम लोगों को भी मुझे बनाने का अच्छा अवसर मिला है,’’ सुप्रिया हंस दी थी. अपूर्व और प्रताप मेज सजाने में ललिता की सहायता कर रहे थे.

‘‘हमारे समय में विवाह संबंध इसी तरह पक्के किए जाते थे. कई दिनों तक घर में उत्सव का सा वातावरण रहता था.’’

अपूर्व प्रताप को समझा रहे थे कि तभी सब को हैलोहाय कहते हुए शर्वरी का आगमन हुआ. उन के साथ ही एक युवक और उस के मातापिता भी थे. अपूर्व, प्रताप और ललिता ने आगे बढ़ कर उन का स्वागत किया. पहले औपचारिक और फिर अनौपचारिक बातचीत होने लगी. दोनों ही पक्ष बढ़चढ़ कर अपनी संतानों का गुणगान करने लगे. शीघ्र ही ठंडे पेय प्रस्तुत किए गए. उधर, शर्वरी ललिता का हाथ बंटाने उस के साथ चली गई.

‘‘अब बता, क्यों इतनी चिंता कर रही थी तू?’’ शर्वरी ने प्रश्न किया.

‘‘दीदी, सुप्रिया ने तो सुनते ही कह दिया कि वह तो प्रेम विवाह ही करेगी, मातापिता द्वारा तय किए विवाह में उस की कोई रुचि नहीं है.’’

‘‘उस ने कहा और तू ने मान लिया. ये बच्चे हमें बताएंगे कि वे किस प्रकार का विवाह करेंगे. हम ने क्या बिना प्रेम के ही विवाह कर लिया था. सच कहूं तो मुझे तेरे जीजाजी से पहली नजर में ही प्यार हो गया था. हमारा विवाह तो 6 माह बाद हुआ था.’’

‘‘ठीक कह रही हो, दीदी. मैं और अपूर्व तो मांपापा से छिपछिप कर मिलते थे. आप को तो सब पता है. मां को पता लगा तो कितना नाराज हुई थीं. उस मिलन में भी कितना रोमांच था. आधे घंटे की भेंट के लिए मैं दिनभर तैयार होती थी.’’

‘‘वही तो, हमारे प्यार में शालीनता थी, जिसे आज की पीढ़ी चाह कर भी समझ नहीं सकती.’’

‘‘वह सब छोड़ो न दीदी. इस बारे में कभी बाद में बात करेंगे. सुप्रिया का क्या करें, अभी तो यह बताइए?’’

‘‘तू क्यों चिंता करती है, सब ठीक हो जाएगा. मैं अभीष्ट और उस के मातापिता को ले कर आई हूं. अभीष्ट और सुप्रिया एकदूसरे को भली प्रकार जानते हैं. याद है 3 वर्ष पहले सुप्रिया मेरे पास छुट्टियां मनाने आई थी.’’

‘‘हां, याद है.’’

‘‘वहीं दोनों की मित्रता हुई थी जो बाद में घनिष्ठता में बदल गई. तुम चाहो तो इसे प्यार का नाम दे सकती हो.

दोनों घंटों कंप्यूटर पर बातचीत करते थे. फिर अचानक न जाने क्या हुआ कि दोनों के बीच तनाव उत्पन्न हो गया. सुप्रिया को लगा कि अभीष्ट उसे धोखा दे रहा है.’’

‘‘हाय, इतना कुछ हो गया और सुप्रिया ने मुझे हवा तक नहीं लगने दी.’’

‘‘तुझे तो क्या मुझे भी हवा नहीं लगने दी. यह नई पीढ़ी बहुत स्मार्ट है. मुझे तो अभीष्ट की मां ने पूरी कहानी सुनाई. उन्हीं ने बताया कि अभीष्ट ने प्रण लिया है कि विवाह करेगा तो सुप्रिया से नहीं तो जीवनभर कुंआरा रहेगा. मुझ से कहने लगीं कि इस समस्या का हल आप ही निकाल सकती हैं.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर क्या, मैं ने बहुत सोचा. क्या करूं क्या न करूं. अभीष्ट को मैं बचपन से जानती हूं. हर क्षेत्र में सुप्रिया से बीस ही होगा. किसी तरह का कोई व्यसन नहीं. ऐसे युवक आजकल मिलते कहां हैं. सुप्रिया को भी मैं भली प्रकार जानती हूं. किसी से मिलनेजुलने या प्रेम की पींगें बढ़ाने का समय ही कहां है उस के पास. वैसे भी अभीष्ट जैसा वर तो दीया ले कर ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगा. यही सोच कर मैं ने उस के परिवार को तुम सब से मिलवाने का निर्णय लिया. मुझे पूरा विश्वास है कि वह मेरी बात नहीं टालेगी.’’

‘‘काश, ऐसा ही हो. मुझे तो यह सब सुन कर सुप्रिया की चिंता होने लगी है. यह तो बड़ी छिपी रुस्तम निकली. प्रताप और नीरजा ने मुझ से कभी कोई बात नहीं छिपाई.’’

‘‘होता है, ऐसा भी होता है. मेरी छवि ने तो ऐन शादी के दिन बताया था. तुझे तो सब पता है कि कैसे हम ने सारी बात संभाली थी. ऐसी बातों को दिल से नहीं लगाया करते,’’ शर्वरी ने समझाया.

‘‘ललिता, क्या कर रही हो तुम? वहां सारे मेहमान प्रतीक्षा कर रहे हैं,’’ तभी अपूर्व आ खड़े हुए.

‘‘अभी आती हूं. आप जा कर मेहमानों के पास बैठिए न,’’ ललिता ने अनुनय की.

‘‘ललिता, तू जा कर सुप्रिया को ले आ. मैं मेहमानों के पास जा कर बैठती हूं,’’ शर्वरी बोलीं तो ललिता सुप्रिया के कक्ष की ओर बढ़ गईं.

‘‘चल सुप्रिया, तेरे पापा और शर्वरी मौसी तेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं,’’ ललिताजी हड़बड़ाहट में बोलीं.

‘‘क्या मां, मेरा तमाशा बना कर रख दिया है. मैं क्या कोई अजूबा हूं जो सब के सामने मेरी नुमाइश करवा रही हो.’’

‘‘अरे वाह, मन मन भावे, मूड़ हिलावे,’’ ललिताजी हंसीं.

‘‘तात्पर्य क्या है आप का?’’ सुप्रिया ने त्योरियां चढ़ा लीं.

‘‘लो, अब तात्पर्य भी मुझे ही समझाना पड़ेगा. शर्वरी दीदी ने मुझे सब बतला दिया है. ड्राइंगरूम में चल, सब समझ में आ जाएगा.’’

‘‘दीदी, मां क्या कह रही हैं? मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा,’’ नीरजा साक्षात प्रश्नचिह्न बनी खड़ी थी.

‘‘धीरज से काम लो. सब समझ में आ जाएगा. चलो जल्दी, मेहमान प्रतीक्षा कर रहे हैं,’’ ललिता अपनी ही धुन में बोलीं.

अभीष्ट और उस के परिवार को देख कर सुप्रिया को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. ‘शर्वरी मौसी को तो जासूसी कंपनी खोल लेनी चाहिए. न जाने कैसे सब पता लगा लेती हैं,’ उस ने सोचा.

‘‘यह सब क्या है? यहां आने से पहले मुझे सूचित तो कर सकते थे,’’ तनिक सा एकांत मिलते ही सुप्रिया ने अभीष्ट से शिकायत की.

‘‘चकित करने का अधिकार क्या केवल तुम्हें है? याद नहीं कैसे बिना कहेसुने गायब हो गई थीं तुम. मैं ने भी कसम खाई थी कि तुम्हें ढूंढ़ कर ही दम लूंगा. भला हो शर्वरी आंटी का जिन्होंने मेरा काम आसान कर दिया.’’

‘‘तुम्हारी सुनयना का क्या हुआ?’’ सुप्रिया ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में प्रश्न किया.

‘‘फिर वही सुनयनापुराण. मैं ने तुम्हें पहले भी समझाया था कि मैं किसी सुनयना को नहीं जानता. पर तुम हो कि सुनने को तैयार ही नहीं हो,’’ अभीष्ट नाराज स्वर में बोला.

‘‘लो और सुनो. उस ने स्वयं मुझे फोन कर के बताया था कि तुम उस से अथाह प्रेम करते हो और विवाह उसी से करोगे.’’

‘‘मुझे क्या पता किस ने तुम्हें यह शुभ समाचार दिया था. पर इस बात का दुख अवश्य है कि तुम्हें मुझ से अधिक किसी अनजान के फोन पर विश्वास है,’’ अभीष्ट के स्वर में क्षोभ स्पष्ट था.

‘‘तुम मुझ पर झूठ बोलने का आरोप लगा रहे हो? मैं ने उस फोन नंबर को संभाल कर रखा है जिस से मुझे पूरे 3 बार फोन आया था.’’

‘‘ठीक है, फोन नंबर दो मुझे. हम दोनों बात करेंगे,’’ अभीष्ट बोला था.

‘‘हैलो सुनयना,’’ फोन पर किसी युवती का स्वर सुनते ही अभीष्ट ने प्रश्न किया था.

‘‘हैलो, अभीष्ट, कहो, कहां तक पहुंची तुम्हारी प्रेम कहानी,’’ उधर से खिलखिलाहट के साथ प्रश्न किया गया.

‘‘कौन, ऋचा? तो यह तुम्हारी शरारत थी. तुम्हीं ने सुप्रिया को सुनयना के नाम से फोन कर के बरगलाया था.’’

‘‘क्या कह रहे हो? मैं ने तो बस तुम्हारे कथनानुसार तुम्हारे प्रेम की परीक्षा ली थी. लगता है तुम्हारी बात ही सच थी. तुम दोनों को सचमुच एकदूसरे पर अटूट विश्वास है. विश्वास ही तो सच्चे प्रेम की नींव का पत्थर होता है.’’

‘‘ठीक कह रही हो तुम, सुप्रिया तो यह मानने को तैयार ही नहीं थी कि मेरे जीवन में कोई और लड़की भी हो सकती है. फिर भी वह यह जानने को बहुत उत्सुक थी कि उसे कई बार फोन किस ने किया था.’’

‘‘मुझे क्या पता था कि तुम सुनयना बन कर फोन कर रही थीं, अब तुम ही उसे समझा दो,’’ अभीष्ट ने फोन सुप्रिया को थमा दिया.

‘‘हाय, सुप्रिया, कैसी हो? अभीष्ट ने तुम्हारे बारे में इतने विस्तार से बताया है कि ऐसा आभास हो रहा है मानो तुम मेरी आंखों के सामने बैठी हो. आशा है हम शीघ्र मिलेंगे. मैं ने ही तुम्हें सुनयना के नाम से फोन किए थे. मेरी अभीष्ट से शर्त लगी थी कि आजकल का कामचलाऊ प्रेम जरा सा झटका भी नहीं सह सकता. उस ने मुझे चुनौती दी थी कि मैं चाहूं तो परीक्षा ले सकती हूं तो मैं ने वही किया. पर मुझे प्रसन्नता है कि अभीष्ट की जीत हुई,’’ ऋचा ने सबकुछ स्पष्ट कर दिया.

‘‘पर तुम हो कौन?’’ सुप्रिया ने प्रश्न किया.

‘‘क्या अभीष्ट ने बताया नहीं अभी तक. मैं ऋचा अभीष्ट के मामाजी की बेटी. हम दोनों भाईबहन कम, मित्र अधिक हैं. नर्सरी से ले कर कालेज तक की पढ़ाई हम दोनों ने साथ की थी, पर विवाह करने में मैं अभीष्ट से आगे निकल गई,’’ ऋचा हंसी. उस की स्वच्छ, निर्मल हंसी सीधे सुप्रिया के दिल में उतर गई.

‘‘तुम से बात कर के बहुत अच्छा लगा, ऋचा. आशा है हम शीघ्र ही मिलेंगे,’’ किसी प्रकार सुप्रिया के मुंह से निकला. वार्त्तालाप समाप्त होते ही सुप्रिया ने सिर झुका लिया. उस की आंखों से टपटप आंसू झरने लगे.

‘‘अब क्या हुआ?’’ अभीष्ट ने प्रश्न किया.

‘‘मैं तो तुम्हारी परीक्षा में असफल हो गई अभीष्ट, मैं ने तुम पर अविश्वास किया.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं है, सुप्रिया. मैं भी तुम्हारी जगह होता तो शायद ऐसा ही सोचता. प्रेम को विश्वास में बदलने में तो सारा जीवन लग जाता है. अब शीघ्रता से अपने आंसू पोंछ लो, सब हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं.’’

सुप्रिया आंसुओं के बीच भी मुसकरा दी थी. शर्वरी ने सुप्रिया को देखा तो आंखों ही आंखों में ललिता को बता दिया कि उन का परिश्रम व्यर्थ नहीं गया था. ललिता अपनी दीदी की योग्यता की कायल हो गई थी.

चुनौती- भाग 2 : सुप्रिया अपनी शादी को लेकर घरवालों के सामने क्या प्रस्ताव रखी

‘‘जी नहीं, किसी को नहीं चुना है अभी तक. समय ही नहीं मिला. पर जब विवाह करना होगा तो समय भी निकाल लूंगी,’’ सुप्रिया का उत्तर था.

‘‘मुझे यही आशा थी. सुप्रिया, प्यार के लिए समय निकाला नहीं जाता, अपनेआप निकल आता है. 26 की हो गई हो तुम. समय रेत की तरह हाथ से फिसलता जा रहा है. तुम सब से बड़ी हो. इसलिए नीरजा और प्रताप का विवाह भी रुका हुआ है,’’ ललिता बेचैन स्वर में बोलीं.

‘‘मां, मेरे लिए इन दोनों का विवाह रोकने की क्या आवश्यकता है. दोनों ने अपने जीवनसाथी चुन रखे हैं. वे भला कब तक प्रतीक्षा करेंगे. मुझे जब विवाह करना होगा, कर लूंगी. कोई मेरी पसंद का नहीं मिला तो शायद मैं विवाह ही न करूं,’’ सुप्रिया ने चुटकियों में ललिता की समस्या हल कर दी.

‘‘यह तो मैं पहले भी कई बार सुन चुकी हूं पर तुम भी कान खोल कर सुन लो. हमारे संस्कार ऐसे नहीं हैं कि बड़ी बहन बैठी रहे और छोटे भाईबहनों का विवाह हो जाए.’’

‘‘पापा, आप कुछ कहिए न. मां तो जिद पकड़ कर बैठी हैं. मेरे कारण प्रताप और नीरजा का विवाह रोक कर रखने की क्या तुक है?’’

‘‘वे क्या बोलेंगे. उन्हें तो यह समझ  ही नहीं आता कि विवाह भी जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. यों भी हर चीज का एक समय होता है. वे तो तुम्हारी उपलब्धियों का बखान करते नहीं थकते. बस, एक बात इन की समझ में नहीं आती कि अच्छा सा वर देख कर तुम्हारे हाथ पीले कर दें…’’

‘‘ललिता, प्लीज, क्यों बैठेबिठाए घर में तनाव पैदा कर देती हो. हां, मुझे गर्व है कि सुप्रिया मेरी बेटी है. कभी 90 प्रतिशत से कम अंक नहीं आए हैं इस के. इतनी सी आयु में अपनी कंपनी की वाइस प्रैसिडैंट है. यहां तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की है इस ने.

चार लोग इस की प्रशंसा करते हैं तो अच्छा लगता है,’’ अपूर्व ने बीच में ही टोक दिया.

‘‘वह सब तो ठीक है, पर पिता होने के नाते आप का भी कुछ फर्ज है या नहीं? सुप्रिया से पहले प्रताप और नीरजा का विवाह हो गया तो ये लोग ही बातें बनाएंगे.’’

‘‘मां, समय बदल चुका है. सब अपने जीवन में इतने व्यस्त हैं कि दूसरों के लिए समय ही नहीं है? कोई कुछ नहीं कहेगा. आप निश्ंिचत हो कर इन दोनों के विवाह की तैयारी कीजिए.

मुझे भी तो कुछ आनंद उठाने दीजिए. मेरे बाद इन का विवाह हुआ तो मैं भला जी खोल कर खुशियां कैसे मना पाऊंगी. अच्छा, मैं चली, बहुत काम पड़ा है,’’ सुप्रिया उठ खड़ी हुई.

‘‘रुक जा. खाना खा कर जा, नहीं तो फिर परेशान करेगी,’’ ललिता अनमने स्वर में बोलीं. खाने की मेज पर भी यही वादविवाद चलता रहा.

‘‘शर्वरी दीदी अपना समझ कर ही तो मदद कर रही हैं. कितनी आशा ले कर आएंगी वे. जब उन्हें पता चलेगा कि यह महारानी तो विवाह के लिए तैयार ही नहीं हैं तो क्या बीतेगी उन पर. मैं तो सोच रही हूं कि उन्हें फोन कर के मना कर दूं,’’ ललिता देवी अब भी अपनी ही धुन में थीं.

‘‘नहीं मां, ऐसा मत करो, मौसी बुरा मान जाएंगी,’’ नीरजा बोली.

‘‘ठीक कह रही है, नीरजा. पहले से ही यह सोच कर बैठ जाना कि हम तो किसी से मिलेंगे ही नहीं, कहां की बुद्धिमानी है. शर्वरी दीदी किसी को ले कर आ रही हैं तो कुछ सोचसमझ कर ही ला रही होंगी. सुप्रिया, इस बारे में मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूंगा. तुम्हारी मां जो कह रही हैं तुम्हारे भले के लिए ही कह रही हैं. तुम्हें उन की बात का सम्मान करना चाहिए,’’ अपूर्व ने पत्नी का पक्ष लेते हुए कहा.

‘‘ठीक है. मैं आप के अतिथियों से मिल लूंगी. बस, इतना ही आश्वासन दे सकती हूं. क्या करूं, न आप को नाराज कर सकती हूं न शर्वरी मौसी को,’’ सुप्रिया ने हथियार डाल दिए. वह नहीं चाहती थी कि यह बहस और लंबी खिंचे. परिवार का आश्वासन पा कर ललिता तैयारियों में जुट गईं. घर को सजानेसंवारने का काम वे रात में ही पूरा कर लेना चाहती थीं. अगला दिन तो खानेपीने की तैयारियों में ही बीत जाएगा. लगभग 1 बजे जब सुप्रिया अपना लैपटौप बंद कर सोने चली तो पाया कि ललिता देवी अब भी नए कुशन कवर लगाने में जुटी थीं.

‘‘मां, कब तक लगी रहोगी. रात का 1 बजा है. पता नहीं क्यों दिनरात काम में जुटी रहती हो. कभी अपने स्वास्थ्य की भी चिंता कर लिया करो,’’ सुप्रिया बड़े प्यार से उन्हें पकड़ कर शयनकक्ष में ले गई. ललिता मुसकरा कर रह गईं. बात तो सच थी. 3 युवा संतानों की मां होते हुए भी घर के काम में वही जुटी रहती थीं. कभीकभी अपूर्व उन का हाथ बंटा लेते थे. अन्यथा उन्हें अपनी काम वाली बाई आशा का ही सहारा था. उस के नाजनखरे वे केवल इसलिए सह लेती थीं कि वह कामधंधे में उन का हाथ बंटाने में कभी आनाकानी नहीं करती थी. पर आज सुप्रिया ने उन के प्रति चिंता जताई तो उन्हें अच्छा लगा. कम से कम उन के बारे में सोचती तो है सुप्रिया. क्या पता घर के अन्य सदस्य भी उन की चिंता करते हों या शायद न करते हों, कौन जाने. बचपन में सुप्रिया दौड़दौड़ कर उन का हाथ बंटाती थी पर उन्होंने ही पढ़ाई में ध्यान देने का हवाला दे कर उसे ऐसा करने से रोक दिया.

अगले दिन औफिस जाते समय ललिता ने सुप्रिया को समझा दिया था, समय रहते ही घर लौट आए. फिर भी उन का दिल धड़क रहा था. क्या पता कहीं कुछ गड़बड़ हो गई तो. नीरजा को उन्होंने सुप्रिया को समय से घर लाने और तैयार करने का काम सौंप रखा था. अपूर्व अपने औफिस चले गए थे और तीनों बच्चे अपनेअपने काम पर. सभी लगभग तभी घर लौटने वाले थे जब मेहमान के आने का कार्यक्रम था. जरा सी फुरसत मिली तो शर्वरी को फोन मिला लिया. उन्हें सुप्रिया के संबंध में सूचना देना तो आवश्यक था.

‘‘बोल ललिता, कैसा चल रहा है सबकुछ? सारी तैयारी हो गई न?’’ शर्वरी ने ललिता का स्वर सुनते ही प्रश्न किया.

‘‘कहां दीदी, कुछ भी ठीक नहीं है. सुप्रिया ने तो साफ कह दिया है कि

वह प्रेम विवाह में विश्वास करती है. ऐसे में सारे तामझाम का क्या अर्थ है, दीदी.’’

‘‘तू छोटीछोटी बातों से परेशान मत हुआ कर. सुप्रिया जैसा चाहती है वैसा ही होगा. शर्वरी ने कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. मैं सब संभाल लूंगी,’’ शर्वरी ने आश्वासन दिया.

‘‘ठीक है, दीदी, पर मुझे बहुत डर लग रहा है. सुप्रिया आजकल की लड़कियों जैसी नहीं है. आप तो उसे अच्छी तरह जानती हैं. वह तो आसानी से किसी से मिलतीजुलती भी नहीं.’’

‘‘चिंता मत कर. सुप्रिया बहुत समझदार है. अपना भलाबुरा भली प्रकार समझती है. वह जो भी निर्णय लेगी सोचसमझ कर ही लेगी. चल, ठीक है. फिर मिलते हैं शाम को,’’ शर्वरी ने उन्हें धीरज बंधाया. सुप्रिया के घर लौटते ही गतिविधियां तेज हो गईं. नीरजा अपने साथ अपनी 2 ब्यूटीशियन सहेलियों को भी लाई थी. तीनों ने मिल कर सुप्रिया को तैयार किया.

पूर्णाहुति: जया दीदी क्यों रो रही थी

मैं बैठक में चाय ले कर पहुंची तो देखा, जया दीदी रो रही हैं और लता दीदी उन्हें चुप भी नहीं करा रहीं. कुछ क्षणों तक तो चुप्पी ही साधे रही, फिर पूछा, ‘‘जया दीदी को क्या हुआ, लता दीदी? क्या हुआ इन्हें?’’

आंसुओं को रूमाल से पोंछ, जबरदस्ती हंसने का प्रयास करते हुए जया दीदी बोलीं, ‘‘हुआ तो कुछ भी नहीं… लता ने प्यार से मन को छू दिया तो मैं रो दी, माफ करना. तेरे यहां के आत्मीय माहौल में ले चलने के लिए लता से मैं ने ही कहा था, पर कभीकभी ज्यादा प्यार भी रास नहीं आता. जैसे ही लता ने अभय का नाम लिया कि मैं…’’ वे फिर रोने लगी थीं.

‘अभय को क्या हुआ?’ मैं ने अब लता दीदी की तरफ देखते हुए आंखोंआंखों में ही पूछा. इस सब से बेखबर अपने को संयत करने की कोशिश में जया दीदी स्नानघर की तरफ बढ़ गई थीं. मुंहहाथ धो कर उन्होंने कोशिश तो अवश्य की थी कि वे सहज लगने लगें या हो भी जाएं, पर लगता था कि अभी फिर से रो पड़ेंगी.

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‘‘मुझे समझ नहीं आता कि कहूं या न कहूं, पर छिपाऊं भी क्या? बात यह है कि अभय अपनी पत्नी सहित मुझ से अलग होना चाह रहा है,’’ भर्राई आवाज में उन्होंने कहा.

‘‘इस में रोने की क्या बात है, जया दीदी, यह तो एक दिन होना ही था,’’ मैं ने कहा.

‘‘यही तो मैं इसे समझा रही थी कि हम दोनों तो इस बात को बहुत दिनों से सूंघ रही थीं,’’ लता दीदी कह रही थीं.

‘‘वह कैसे? तुम लोगों से अचला और अभय बहुत आत्मीयता से मिलते हैं, मेरी सहेलियों में तुम दोनों का घर आना तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है,’’ जया दीदी ने कहा.

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‘‘हमारा घर आना क्यों बुरा लगेगा उन्हें. समस्या तो आप हैं, हम नहीं. और फिर बाहर वालों के सामने तो अपनी भलमनसाहत का सिक्का जमाना ही होता है. वाहवाही जो मिलती है उन से. कितनी सुंदर, सुघड़, मेहमाननवाज, सलीकेदार है आप की बहू. भई, मुसीबत तो घर के लोग होते हैं,’’ मैं ने कहा.

‘‘जया, यह समय सम्मिलित कुटुंब का नहीं रहा है. चाहे परिवार के नाम पर एक मां ही क्यों न हो. और फिर तू घबराती क्यों है? एक प्राध्यापिका की आय कम नहीं होती. 5 साल बाद रिटायर होती भी है तो पैंशन तो मिलेगी ही. एक नौकरानी रख लेना,’’ लता दीदी उन्हें समझा रही थीं.

‘‘जया दीदी, 2-3 साल बाद जो होना है वह अगर अभी हो जाता है तो यह आप के हित में ही है. जब से अभय की शादी हुई है, मैं तो दिनबदिन आप को कमजोर होते ही देख रही हूं. मुझे लगता है, आप भीतर ही भीतर कुढ़ती रहती हैं. आज की सासें बहुओं को कुछ कह तो सकती नहीं, अपनेआप में ही तनाव झेलती और घुलती रहती हैं. मैं तो सोचती हूं, उन का आप से अलग हो जाना आप के लिए अच्छा ही है,’’ मैं ने कहा.

‘‘फिर जया, अब वह जमाना नहीं है कि तुम बेटे से कहो कि बेटा, मैं ने तुम्हें इसलिए पालापोसा था कि बुढ़ापे में तुम मेरी लाठी बन सको. हम लोगों को बच्चों से किसी भी प्रकार की अपेक्षाएं नहीं रखनी चाहिए…’’

‘‘कुछ अपेक्षा नहीं है मेरी,’’ लता की बात को बीच में काटती हुई जया दीदी बोलीं, ‘‘मैं तो केवल यह चाहती हूं कि वे मेरे सामने रहें. साथ रहने के लिए तो मैं ने आगरा विश्वविद्यालय से मिल रही  ‘रीडरशिप’ अस्वीकार कर दी थी.’’

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‘‘जो हुआ सो हुआ, अब तुम अपने को उन से अलग हो कर अकेले जिंदगी जीने के लिए तैयार करो. आजकल की मांओं को बेटों के मोह से मुक्त हो कर अलग रहने के लिए तैयार रहना चाहिए. मैं जानती हूं, कहने और करने में बहुत अंतर होता है पर मानसिक तैयारी तो होनी ही चाहिए. अभ्यास से अकेलापन खलता नहीं, विशेषकर हम लोगों को, जिन को पढ़नेलिखने की आदत है. फिर तू तो एक तरह से अकेली ही रही है. अभय के साथ तेरे भीतर का अकेलापन कटा हो, यह तो मैं नहीं मान सकती. हां, दायित्व जरूर था वह तुझ पर.’’

‘‘दायित्व ही सही, व्यस्त तो रखा उस ने मुझे. एक भरीपूरी दिनचर्या तो रही, किसी को मेरी जरूरत है, यह एहसास तो रहा. नहीं लता, यह अकेलापन मुझ से बरदाश्त नहीं होगा.’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा, जया. चाय ठंडी न कर. रोने का मन है तो बेशक रो ले.’’ लता दीदी के ऐसा कहते ही जया हंसने लगीं, ‘‘इसीलिए तो यहां आई थी कि तुम लोगों में बैठ कर कुछ सही सोच पाऊंगी, अपने में कुछ विश्वास प्राप्त कर सकूंगी.’’

जया दीदी मन से उखड़ी हुई थीं, इसीलिए लता दीदी और मेरे प्रयासों के बावजूद अन्यमनस्क वे एकाएक खड़ी हो गईं और लता दीदी से कहने लगीं, ‘‘चल, अब और न बैठा जाएगा आज.’’

मुझे भी लगा, उन्हें अपने को समेटने के लिए बिलकुल अकेलेपन की जरूरत है, जिस का सामना करने से वे बच रही हैं. मैं ने कहा, ‘‘जया दीदी, मेरे पति तो आजकल बाहर हैं, इसलिए जब चाहे, आइए मेरे पास. मुझे आप का आना अच्छा ही लगेगा. इच्छा हो तो 2-4 दिन मेरे पास ही रह जाइए. मैं फिर दोहरा रही हूं, अभय और अचला के चले जाने पर आप अपने ढंग से रह सकेंगी. हमें भी आप के घर आने पर ज्यादा अपनापन लगेगा. अभी तो लेदे कर आप का शयनकक्ष ही अपना रह गया है.’’

जया दीदी लता दीदी के साथ चली गई थीं, पर मैं अभी भी उन्हीं में खोई हुई थी. अभय बड़ा हो गया है, यह उसी दिन महसूस हुआ. यों समझदार तो वह मुझे पहले से ही लगता था. उन दिनों हिंदी विषय पढ़ने के लिए वह अकसर मेरे पास आता था.

एक दिन वह बोला, ‘‘मौसी, ऐसा कुछ बताइए कि…’’

‘‘एक रात में ही तू पढ़ कर पास हो जाए…है न?’’ उस की बात पूरी करते हुए मैं ने कहा था, ‘‘पर बेटे, थोड़े दिन अपने पाठ्यक्रम को एक बार पूरी तरह से पढ़ तो ले.’’

उस की अभिव्यक्ति में कहीं कोई कमी नहीं थी. साहित्य पर उस की पूरी पकड़ थी. कठिनाई आती थी भाषा के संदर्भ में.

‘‘मौसी, इस बार पास नहीं हुआ तो, ‘औनर्स’ की डिगरी नहीं मिलेगी.’’

‘‘नहीं, मुझे पूरा भरोसा है कि तुम हिंदी पास ही नहीं करोगे, अच्छे अंक भी पाओगे.’’

‘‘ओह, धन्यवाद मौसी.’’

‘आषाढ़ का एक दिन’ नामक नाटक पढ़ने में उसे कठिनाई हो रही थी. मुझे याद है, इसलिए मैं ने उसे उन्हीं दिनों ‘संभव’ द्वारा हो रहे इसी नाटक को देखने के लिए भेजा था. परिणाम यह हुआ था कि ‘विलोम’ के चरित्र को उस ने परीक्षा में बड़े खूबसूरत ढंग से लिखा था. जीवन की उसे समझ थी.

‘मल्लिका’ की वेदना वह उस उम्र में भी महसूस कर सका था. फिर अपनी मां की वेदना को? क्या हुआ है अभय को? पर एकसाथ तनावग्रस्त रहने से तो अच्छे, मधुर संबंधों के साथ लगाव रखते हुए अलग रहना कहीं ज्यादा बेहतर है.

लंबी चुप्पी तो नहीं रही जया दीदी के साथ, पर मिलना भी नहीं हुआ. एक दिन फोन आया तो पूछ ही बैठी, ‘‘दीदी, अभय और अचला ने यह निर्णय क्यों लिया? कोई तात्कालिक कारण तो रहा ही होगा?’’

‘‘हां,’’ उन्होंने बताया, ‘‘तू जानती ही है कि नवरात्रों के अंतिम 2 दिन मेरा उपवास रहता है. अचला सुबह 9 बजे चली जाती थी. 10.50 पर मेरी भी कक्षा थी. सुबह मैं ने दोनों को चाय दे ही दी थी, अष्टमी की वजह से नाश्ते के लिए अंडा नहीं रखा था. बस, इसी पर चिल्ला पड़ी, ‘मैं सुबहसुबह पूरीहलवा नहीं खा सकती.’

‘‘मैं ने इतना कहा, ‘बेटे, आज अंडा, औमलेट या जो चाहिए, बाहर हीटर पर बना लो.’

‘‘पर वह तो पैर पटकती हुई चली गई. उसी शाम दफ्तर से वह मायके चली गई और अभय ने मुझे सूचित किया कि वह अलग घर का इंतजाम कर रहा है.

‘‘मेरे पूछने पर कि मेरा दोष क्या है? वह बोला, ‘मां, आप पर बहुत ज्यादा बोझ है. यहां रहते अचला कभी अपना दायित्व नहीं समझेगी और नासमझ ही रह जाएगी. व्यर्थ में आप को भी परेशानी होती है.’

‘‘नया मकान लेने के बाद अभय के साथ अचला भी आई थी. बहुत प्यार से मिली, ‘मां, हम क्या करें, हमें यहां अजीब तनाव सा लगता था. कभी देर रात तक अभय और हमारे मित्र आते तो लगता, आप परेशान हो रही हैं. आप कुछ कहती तो नहीं थीं, पर हमें अपराधबोध होता था. कुछ घुटाघुटा सा लगता था. यहां देखने में कुछ भी गलत न होने पर लगता था, जैसे सबकुछ ही गलत है.’

‘‘बस, ऐसे चले गए वे. अभय अभी हर शाम आता है, पर कब तक आएगा?’’ जया दीदी शायद रो रही थीं क्योंकि एकाएक चुप्पी के बाद ‘अच्छा’ कहा और रिसीवर रख दिया.

लगभग 15 वर्ष पहले कालेज में एक मेला लगा था. जया दीदी छुट्टी पर थीं. हम लोगों के जोर देने पर अभय को घुमाने के लिए मेले में ले आई थीं.

मां से पैसे ले कर वह कोई खेल खेलने चला गया. भोजन के बाद जया दीदी ने उसे वापस चलने के लिए कहा तो वह बोला, ‘अभी नहीं, अभी और खेलेंगे.’

खेलने के बाद मां को ढूंढ़ते हुए वह हमारे स्टाल पर आया तो हम चाय पी रहे थे. जया दीदी ने फिर कहा था, ‘अब तो चलो अभय, दूर जाना है, बस भी न जाने कितनी देर में मिले.’

तब वह गरदन ऊंची करते हुए बोला, ‘डरती क्यों हो मां. मैं हूं न साथ.’ लेकिन मेला उठने से पहले ही मां को बिना ठिकाने पर पहुंचाए उस ने अपना अलग ठिकाना कर लिया था.

मैं इसी में खोई हुई थी कि फोन की घंटी से तंद्रा भंग हुई, ‘‘अरे आप, सच, लंबी उम्र है आप की. आप ही को याद कर रही थी. कैसी हैं आप? क्या कहा, अभी आप के पास आना होगा? लता दीदी भी आ रही हैं? जैसा आदेश, आती हूं,’’ कहते हुए मैं ने फोन बंद कर दिया था.

जया दीदी का उल्लासयुक्त स्वर बहुत दिनों बाद सुना था. नया फ्लैट दिखाना चाह रही थीं. हमारे परामर्श के बाद ही लेंगी, ऐसा सोच रही थीं. फ्लैट बहुत अच्छा था. लेने का निर्णय भी उसी समय कर लिया था उन्होंने और ‘बयाना’ भी हमारे सामने ही दे दिया था.

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बस, अब तो इंतजार था उन के गृहप्रवेश का. एक दिन शाम को उन का फोन आया कि वे हवन नहीं करवा रहीं. कुछ लोगों को सूचित करने के लिए उन्होंने कहा था. वह सब तो किया, पर लगा कि जया दीदी के पास जाना चाहिए.

लता दीदी को फोन कर के उन के फ्लैट पर पहुंची.

‘‘वाह, यहां तो जो आ जाए उस का जाने का मन ही न हो,’’ इस वाक्य से जया दीदी खुश होने के बदले आहत ही हुईं, ‘‘जाने की क्या बात, यहां तो कोई आना ही नहीं चाहता. अभय, अचला ने हवन पर आने से इनकार कर दिया है. सोचा, वही नहीं आ रहे तो फिर काहे का हवन. अब तो लगने लगा है, पूर्णाहुति की बेला में ही आएगा वह यहां. पर प्रश्न है, क्या उस समय मैं उसे देख पाऊंगी?’’

बैठक के द्वार पर मैं स्तब्ध सी खड़ी रह गई थी. क्या कहती, निराश, निढाल, थकी मां को.

चुनौती- भाग 1: सुप्रिया अपनी शादी को लेकर घरवालों के सामने क्या प्रस्ताव रखी

‘‘सुप्रिया कहां हो तुम?’’ ललिता देवी फोन रखते ही  बेचैनी से चिल्लाईं.

‘‘घर में ही हूं, मां. क्या हो गया? इस तरह क्यों चीख रही हो?’’ सुप्रिया ने उत्तर दिया.

‘‘यही तो समस्या है कि तुम घर में रह कर भी नहीं रहतीं. पता नहीं कौन सी नई दुनिया बसा ली है तुम ने.’’

‘‘मां, मुझे बहुत काम है. प्लीज, थोड़ा धीरज रखो. एक घंटे में आऊंगी. अभी तो मुझे सांस लेने तक की भी फुरसत नहीं है,’’ सुप्रिया ने अपनी व्यस्तता का हवाला दिया.

‘‘देखा, मैं कहती थी न, सुप्रिया तो घर में रह कर भी नहीं रहती. कई सप्ताह बीत जाते हैं, हमें एकदूजे से बात किए बगैर,’’ ललिता ने टीवी देखने में व्यस्त अपने पति, पुत्र व दूसरी पुत्री नीरजा से शिकायत की पर किसी ने उन की बात पर ध्यान नहीं दिया.

‘‘मैं भी कुछ कह रही हूं न. कोई मेरी भी सुन ले,’’ झुंझला कर उन्होंने टीवी बंद कर दिया. टीवी बंद करते ही भूचाल आ गया.

‘‘क्या कर रही हो, ललिता? मैं इतना महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम देख रहा हूं और तुम ने आ कर टीवी बंद कर दिया. मुश्किल से 10-15 मिनट के लिए टीवी देखता हूं मैं. तुम से वह भी सहन नहीं होता,’’ उन के पति अपूर्व भड़क उठे.

‘‘और भी गम हैं जमाने में…’’ ललिता बड़ी अदा से बोलीं.

‘‘मैं शेर सुनने के मूड में नहीं हूं. पहेलियां मत बुझाओ. रिमोट मुझे दो और जल्दी बताओ, समस्या क्या है?’’ वे बोले. उन के पुत्र प्रताप और पुत्री नीरजा ने जोरशोर से पिता की बात का समर्थन किया.

‘‘तो पहले मेरी समस्या सुन लो, बाद में टीवी देख लेना.’’

‘‘जल्दी कहो न, मां. हमारे सीरियल की नायिका एक नए षड्यंत्र की तैयारी कर रही है. वह निकल जाएगा,’’ नीरजा अधीरता से बोली.

‘‘कभी अपने घर के सीरियल की भी चिंता कर लिया करो. पता है अभी किस का फोन था?’’ ललिता ने नीरजा को आंख दिखाई.

‘‘नहीं.’’

‘‘तेरी शर्वरी मौसी का.’’

‘‘यही बताने के लिए आप ने टीवी बंद कर दिया.’’

‘‘यह बताने के लिए नहीं बुद्धू, यह बताने के लिए कि उन्होंने क्या कहा. और टीवी तेरी मौसी से अधिक आवश्यक हो गया?’’ ललिता देवी कुछ और बोलतीं उस से पहले ही सुप्रिया आ पहुंची, ‘‘बोलो मां, क्या हुआ जो आप ने पूरा घर सिर पर उठा रखा है? मेरा कल आवश्यक प्रेजेंटेशन है उसी की तैयारी कर रही थी. पर आप ने बुलाया तो अपना काम छोड़ कर आई हूं.’’

‘‘आ, मेरे पास बैठ. तू ही मेरी रानी बेटी है और किसी को तो मेरी चिंता ही नहीं है. तेरी शर्वरी मौसी का फोन आया था. वे कल अपने किसी परिचित को साथ ले कर यहां आ रही हैं. वे उन के बेटे से तुझे मिलवाना चाहती हैं. कह रही थीं कि रूप और गुण का ऐसा संयोग शायद ही कहीं मिले. वह तुझे अवश्य पसंद आएगा.’’

‘‘क्या हो गया है आप लोगों को? यदि आप यह सोचती हैं कि मैं चाय की टे्र ले कर सिर पर पल्लू रखे शरमाती, सकुचाती स्वयं को वर पक्ष के सम्मुख प्रस्तुत करूंगी तो भूल जाइए. मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली. मैं प्रेमरहित विवाह में विश्वास ही नहीं करती.’’

सुप्रिया ने अपना निर्णय कुछ इस अंदाज में सुनाया कि सब के कान खड़े हो गए. किसी को न टीवी की चिंता रही न अपने पसंद के कार्यक्रम की. सुप्रिया और प्रेम विवाह? किसी को विश्वास ही नहीं हुआ. सदा  अपनी पढ़ाईलिखाई में व्यस्त रहने वाली और सदैव हर परीक्षा में प्रथम रहने वाली सुप्रिया प्रेम विवाह की बात भी करेगी, ऐसा तो उन में से किसी ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था.

‘‘कोई है क्या?’’ अपूर्व, नीरजा और प्रताप ने समवेत स्वर में पूछा.

‘‘कोई है, क्या मतलब है?’’ सुप्रिया ने प्रश्न के उत्तर में प्रश्न ही पूछ डाला.

‘‘मतलब यह है दीदी कि प्रेम विवाह के लिए एक अदद प्रेमी की भी आवश्यकता पड़ती है. हम सब यही जानने का यत्न कर रहे थे कि आप ने किसी को चुन रखा है क्या? या शायद आप किसी के प्रेम में आकंठ डूबी हुई हैं और हमें पता तक नहीं,’’ नीरजा हर एक शब्द पर जोर दे कर बोली.

बिग बॉस 14: रुबीना दिलाइक को बार-बार टारगेट कर रही जैस्मिन भसीन पर भड़के अली गोनी

आज से 10 दिन बाद बिग बॉस 14 का फिनाले होने वाला है. जिससे पहले ही घर की शांति भंग हो गई है. इसके पीछे की वजह है सभी घर वालों के कनेक्शन . हर दिन कुछ न कुछ नया ड्रामा इस घर में देखने को मिलता रहता है.

इन दिनों सभी कंटेस्टेंट फिनाले में जानें के लिए कड़ी मशक्कत करते दिखाई दे रहे हैं. जैस्मिन भसीन इस घर में एली गोनी का कनेक्शन बनकर आई हैं. जब से उनकी एंट्री हुई है वह लगातार रुबीना दिलाइक की बुराई करती नजर आ रही हैं.

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एली गोनी जैस्मिन भसीन को कई बार समझा चुके हैं कि इस वक्त रुबीना दिलाइक के साथ उनके रिश्ते अच्छे हैं . उनके साथ कुछ भी जैस्मिन ऐसा न करें जिससे उनके रिश्ते खराब हो जाए. लेकिन जैस्मिन भसीन कहा किसी कि सुनने वाली हैं. वह लगातार बुराईयां करती जा रही हैं.

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बिग बॉस के लेटेस्ट एपिसोड़ में दिखाया गया है कि जैस्मिन भसीन राहुल महाजन से रुबीना दिलाइक की बुराई करती नजर आ रही हैं कि वह इस शो में नहीं आना चाहती थी दोबारा जिसकी वजह सिर्फ रुबीना दिलाइक है. वहीं एली गोनी के लिए उन्हें आना पड़ा.

जैसे ही इस बात की जानकारी एली गोनी को लगी उन्होंने गुस्सा दिखाते हुए कहा कि उन्हें जीवन में शांति चाहिए दुख नहीं और जैस्मिन भसीन की क्लास लगाई.

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वहीं रुबीना दिलाइक ने टिकट टू फिनाले का टॉस्क जीत लिया है. नॉमिनेट होने कि वजह से वह इस टिकट का इस्तेमान नहीं कर सकती था लेकिन उन्होंने अपने पॉवर का इस्तेमाल किया है और वह विनर हो गई हैं.

इस हफ्ते राखी सावंत और देबालीना भट्टाचार्जी का नाम वोटिंग लिस्ट में सबसे नीचे हैं. लगता है कि इन दोनों मेें से किसी एक कि विदाई तय है.

ये रिश्ता क्या कहलाता है: गोयनका हाउस में सीरत की एंट्री होते ही मचेगा हंगामा, जानें क्या कहेगा कार्तिक

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में आखिर वो दिन आ ही गया जिसका सभी को इंतजार था. यानि सीरत की एंट्री गोयनका हाउस में होगी . जहां सीरत कार्तिक और कायरव से अपनी गलती की मांफी मांगने के लिए जाएगी.

जैसे ही गोयनका परिवार सीरत को देखेगा उनके होश उड़ जाएंगे , पहले तो उन्हें लगेगा कि नायरा वापस  आ गई है. लेकिन उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि सामने खड़ी लड़की नायरा नहीं बल्कि सीरत है.

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वहीं जैसे ही कार्तिक और कायरव को इस बात की खबर लगेगी वह भागे- भागे आएंगे. उनकी घबराहट देखकर सभी चौक जाएंगे कि आखिर इन दोनों को क्या हुआ है. कार्तिक नहीं चाहता कि सीरत की सच्चाई घर में किसी को पता चले.

वहीं कायरव नायरा को देखकर इतना ज्यादा खुश हो जाएगा कि एक बार फिर से उसे गले लगा लेगा. वहीं अब इस कहानी में ट्विस्ट आने वाला है देखना यह है कि घर वालों से मिले प्यार के बाद नायरा क्या फैसला लेगी. वहीं कहानी में तगड़ा मोड़ आने वाला है  .

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अगर आप ये सोच रहे हैं कि अचानक सीरत गोयनका हाउस जानें का प्लान क्यों करती है तो बता दें कि नायरा कि तस्वीर को देखने के बाद उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वह जानें का फैसला कर लेती है.

खैर फैंस इस सीरियल में आएं टविस्ट को लेकर काफी ज्यादा उत्साहित हैं. उन्हें अच्छा लग रहा है कि सीरत की वापसी हुई है. जिससे फैंस इस सीरियल को पहले से भी ज्यादा देखऩा पसंद करने लगे हैं.

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वहीं गोयनका परिवार भी नायरा कि हमशक्ल पा कर खुश रहेगा. देखते हैं कि लोगों को नायरा का यह नया रूप कितना पसंद आता है. पहले जितना प्यार सीरत को मिल पाता है या नहीं.

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