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आखिर कब तक दहेज के कारण जान गंवाती रहेंगी महिलाएं?

और कितनी जानें? और कितनी प्रताड़ना? आखिरकार दहेज के कारण और कितनी लड़कियों को अपनी जान गंवानी पड़ेगी? एक बार फिर दहेज ना मिलने के कारण एक और विवाहिता की जान चली गई. मृतका की पहचान तनुजा के रूप में हुई है. वह एक बैंक में काम करती थी. पिता का आरोप है कि उन्होंने दहेज में दामाद को क्रेटा कार नहीं दी, इसी वजह से उन लोगों ने तनुजा को जहर देकर मार डाला.

दरअसल, तनुजा की शादी 24 मई 2020 को गुरूग्राम के खरखड़ी गांव के निवासी संदीप के साथ हुई थी. 3 दिन पहले यानी 7 मार्च को संदीप के परिजनों ने तनुजा के पिता को फोन किया और बताया कि तनुजा हॉस्पिटल में एडमिट है.

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बताया जा रहा है कि संदीप और उसके परिजन तनुजा को मारते-पिटते भी थे. उसका शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न करते थे. कई बार इस बात को लेकर दोनों परिवारों के बीच बातचीत हुई लेकिन बावजूद इसके संदीप और उसके परिजनों की दहेज की डिमांड बढ़ती चली गयी. इसी दौरान परेशान हाल में तनुजा की संदिग्ध मौत हो गई.

अहमदाबाद की आयशा का सुसाइड

हाल ही में कुछ दिन पहले अहमदाबाद की रहने वाली आयशा ने साबरमती नदीं में कूदकर अपनी जान दे दी थी. सुसाइड करने से पहले आयशा ने एक वीडियो शूट किया था. ये वीडियो बेहद इमोशनल है और साफ देखा जा सकता है कि आयशा एक खुशमिजाज और जिदंगी जीने वाली जिंदादिल इंसान थी. आयशा की शादी 2018 में राजस्थान में रहने वाले आरिफ खान से हुई थी, लेकिन शादी के कुछ महीनों बाद से ही पति और ससुराल वालों की तरफ से दहेज के लिए प्रताड़ना शुरू हो गई और दहेज ना मिलने पर उसे मायके छोड़ आया गया.

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और कितनी मौत?

जिस समाज में एक तरफ बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओं का नारा दिया जाता है उसी समाज में हर दिन आयशा और तनुजा जैसी ना जानें कितनी ही लड़कियां दहेज के कारण अपनी जान गंवा रही है. आयशा का वीडियो देखने के बाद हर कोई ऐसा कह रहा है कि तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था, हम शर्मिंदा है. लेकिन क्या सिर्फ शर्मिंदा होना काफी है. जब तक आयशा और तनुजा जैसी लड़कियां जिंदा होती है तब तक इसी सामज से कोई उनका सहारा नहीं बनता. वे अकेली छोड़ दी जाती है. और जाती भी तो किसके पास? क्योंकि जिन माता-पिता के पास जाती वो उन्हें ‘एडजस्ट’ करने को कहते है. बचपन से यहीं सिखाते है कि शादी के बाद ससुराल ही तुम्हारा घर है चाहें जो भी हो वहीं रहना होगा. आजकल बहुत-सी लड़कियां शादी के बाद ससुराल वालों और पति की तरफ से दहेज मांगने पर ससुराल वालों के साथ जाने से मना कर देती है. लेकिन मां-बाप की इज्जत के लिए चुप लगा देती है. परिवार, समाज, उसकी मान्यताएं, रीति-रिवाज सब लड़कियों की पीठ पर एक प्रेत की तरह लदे हैं, यहीं वजह है जिसके कारण लड़कियां प्रताड़ना झेलती रहती है.

आधुनिक समाज में दहेज मान-सम्मान का प्रतिक
आज के उत्तर-आधुनिक समाज में भी स्त्री कितना ही पढ़-लिख लें, कितनी ही काबिल बन जाएं लेकिन वो दर्जे में पुरूष से कमतर ही मानी जाती हैं, इसलिए उसकी स्वीकारोक्ति के लिए शादी में धन की कई बार खुली और कभी मूक मांग रखी जाती है. इस मांग को यह कहकर जायज़ ठहराया जाता है कि लड़की के माता-पिता जो कुछ भी दे रहे हैं, उनकी बेटी के लिए ही हैं. संपन्न परिवारों को दहेज देने या लेने में कोई बुराई नजर नहीं आती क्योंकि उन्हें यह मात्र एक निवेश लगता है. उनका मानना है कि धन और उपहारों के साथ बेटी को विदा करेंगे तो यह उनके मान-सम्मान को बढ़ाने के साथ-साथ बेटी को भी खुशहाल जीवन देगा.

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दहेज की मांग भारतीय समाज में सामान्य बात हो चुकी है. दहेज की प्रथा मानो शादी का एक अभिन्न अंग बन चुकी है. यह प्रथा सभी समूहों में मौजूद है चाहे वे किसी भी जाति, वर्ग, धर्म के हों. लड़की ब्याहने के लिए लड़के के परिवार की हैसियत के अनुसार दहेज देना पड़ता है. यह ब्याह होने की एक अनिवार्य शर्त भी है. आधुनिक समय में दहेज प्रथा ऐसा रूप धारण कर चुकी है जिसमें लड़केवाले के परिवार वालों का सम्मान लड़के को मिले हुए दहेज पर ही निर्भर करता है. वह खुलेआम अपने बेटे का सौदा करने के लिए राजी रहते हैं.

रूढ़िवादी भारतीय समाज शादी की संस्था और पारिवारिक संरचना में सुधार करने की बजाय इसे पारंपरिक रूप में ही चलाना चाहता है. इस समाज के लिए यह महत्वपूर्ण है ही नहीं कि शादी से पहले लड़के और लड़की में सामंजस्य और आपसी समझ विकसित हो, जिससे बेहतर समाज बन सकें. यहां रिश्ते की नींव ही लड़की के घर से मिलने वाला दहेज तय करता है. शिक्षित और संपन्न परिवार भी दहेज लेना अपनी परंपरा का एक हिस्सा मानते हैं तो ऐसे में अल्पशिक्षित या अशिक्षित लोगों की बात करना बेमानी है.

हर घंटे एक महिला की दहेज के कारण मौत
देश में औसतन हर एक घंटे में एक महिला दहेज संबंधी कारणों से मौत का शिकार होती है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB)के आंकड़े बताते हैं कि विभिन्न राज्यों से साल 2014 में दहेज हत्या के 8,455 मामले सामने आए.

केंद्र सरकार की ओर से जुलाई 2015 में जारी आंकड़ों के मुताबिक, बीते तीन सालों में देश में दहेज संबंधी कारणों से मौत का आंकड़ा 24,771 था. जिनमें से 7,048 मामले सिर्फ उत्तर प्रदेश से थे. इसके बाद बिहार और मध्य प्रदेश में क्रमश: 3,830 और 2,252 मौतों का आंकड़ा सामने आया.

शोध और अध्ययन से पता चलता है कि दहेज हत्या से संबंधित कुल घटनाएं, जो दर्ज होती हैं, उनमें से 93 फ़ीसद मामलों में चार्जशीट दाख़िल होती है और उनमें से केवल 1/3 मामले में आरोपी दोषी साबित हो पाते हैं.

क्या कहता है दहेज से जुड़ा कानून

दहेज-प्रथा को समाप्त करने के लिए कितने ही नियमों-कानून को लाया गया लेकिन अभी तक कोई कारगर सिद्ध नहीं हो पाया है. साल 1961 में सबसे पहले दहेज निरोधक कानून अस्तित्व में आया. जिसके अनुसार दहेज देना और लेना या दहेज लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है. 1985 में दहेज निषेध अधिनियम तैयार किया गया था. इन नियमों के अनुसार शादी के समय दिए गए उपहारों की एक सूची बनाकर रखी जानी चाहिए. इस सूची में प्रत्येक उपहार, उसका अनुमानित मूल्य, जिसने भी यह उपहार दिया है उसका नाम और संबंधित व्यक्ति से उसके रिश्ते का एक संक्षिप्त विवरण मौजूद होना चाहिए.

दहेज मांगने पर ये है सजा
दहेज या कीमती उपहार के लिए पति या उसके परिवार द्वारा परेशान करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है. धारा 406 के अंतर्गत अगर ससुराल पक्ष द्वारा स्त्री को स्त्री धन देने से मना किया जाता है तो भी 3 साल की कैद व जुर्माना या दोनों हो सकता है.

दहेज हत्या पर उम्रकैद की सजा
अगर किसी लड़की की शादी के 7 साल के भीतर उसकी मौत हो जाती है. और यह साबित हो जाता है की मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी के तहत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम 7 साल या आजीवन कारावास की सजा हो सकती है. लेकिन व्यावहारिक रूप से इन कानूनों का कोई लाभ नहीं मिल पाया है.

आधुनिक समय में समाज में यह उपहार सौदेबाजी और लालच का रूप बन गया है. तभी लड़कियां इस कुप्रथा का मुकाबला करने के लिए अग्रसर होंगी. इस बुराई का जड़ मात्र कानून से खत्म नहीं हो सकता है. इससे सामाजिक स्तर पर सतत युद्ध करना होगा. देश की शिक्षित युवा पीढ़ी जब समर्पण भाव के साथ संकल्प करेगी की न तो दहेज लेंगे और ना ही देंगे तब यह दहेज लेने वाले लोभी स्वयं चेत जाएंगे. इस प्रथा का अंत करने के लिए सबसे पहले लड़कियों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना होगा और अपने लिए खुद खड़ा होना होगा.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में होगी मनीष की वापसी, सीरत जीतेगी मैच

हर घर में देखे जानें वाला शो ये रिश्ता क्या कहलाता है में सीरत को फिर से सरप्राइज मिलने वाला है. सीरियल में इन दिनों यह दिखाया जा रहा है कि सीरत और कार्तिक की दोस्ती गहराती जा रही है. दोनों एक दूसरे को समझने लगे हैं.

ऐसे में अगर करैट ट्रैक की बात करें तो दिखाया जा रहा है कि मुकेश सीरत को चैलेंज कर रहा है कि मैच जीतकर दिखाए. अब तक के एपिसोड में आपने देखा होगा कि मुकेश और उसकी टीम सीरत को हार के करीब लाकर खड़ा कर देती है. गोयनका परिवार के सामने अब सीरत को भी लगने लगा है कि वह मुकेश से हार जाएगी.

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लेकिन सीरत को झटका तब लगेगा जब अचानक मैच के दौरान मनीष की धमाकेदार एंट्री होगी. बता दें कि गोयनका हाउस में जबसे सीरत की एंट्री हुआ है , वह मनीष की नजरों में चढ़ चुकी है. बीते दिनों मनीष ने सीरत को गोल्ड ड्रिकर कहकर बुलाया था.

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इस वाक्या के बाद कार्तिक ने घर छोड़ने का फैसला ले लिया था, लेकिन सीरत ने जब उसे समझाया तब वह मान गई. अब ऐसे में मैच में मनीष को अचानक देखकर सीरत चौक जाएगी.

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अब सीरत को बार- बार एक ही सवाल परेशान करेगा कि मनीष ने उसकी मदद क्यों कि वह मैच में अचानक क्यों आ गया. हालांकि मनीष अपने बेटे को हारते हुए नहीं देखना चाहता था, इसलिए आ गया. अगर आपको यह लग रहा है कि मनीष सीरत की मदद करने के लिए आया है तो यह गलत है.

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बिग बॉस 14 कि विनर रुबीना दिलैक इन दिनो सुर्खियों में बनी हुई हैं, रुबीना दिलैक के साथ-साथ उनके पति अभिनव शुक्ला भी सुर्खियों में हैं, रुबीना अभी कुछ दिनों पहले ही बिग बॉस 14 कि विनर बनी हैं, इसके कुछ दिनों बाद ही उनके फैंस के लिए दूसरी खुशखबरी आ गई है.

दरअसल, आप सोच रहे होंगे कि यह दूसरी खुशखबरी कौन सी है तो आपको बता दें कि रुबीना दिलैक को बॉलीवुड़ के दिग्गज प्रॉड्यूसर रोहित शेट्टी के रियलीटी शो  खतरों के खिलाड़ी से ऑफर आया है. ऐसे में रुबीना दिलैक और उनके पति को रोहित शेट्टि के टीम की तरफ से मुंहमांगी रकम दी जा रही है.

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हालांकि अभी तक रुबीना दिलैक ने कुछ खुलकर इस विषय पर बात नहीं किया है. यह शो टीवी के दुनिया का सबसे लोकप्रिय शो है. इस शो में लोगों को कई तरह के खतरों का सामना करना पड़ता है. अभी तक शो के 10 सीजन हो चुके हैं. पिछले सीजन की विनर करिश्मा तन्ना बनी थी.

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अब शो के नए सीजन को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं कि कौन होगा इस शो का कंटेस्टेंट, वहीं एक खबर यह भी हैं कि सीजन 11 की शूटिंग गर्मियों में होनी थी, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से शूटिंग को लेट शुरू किया गया.

अगर बात की जाए शो कि शूटिंग लोकेशन की तो इस साल देश के किसी हिस्से में किया जा सकता है, पिछले साल इस शो की शूटिंग बूलगेरिया में हुई थी, जहां पर सभी कंटेस्टेंट ने अपने ट़स्क को ढंग से पूरा किया था.

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हालांकि खबरों की माने तो इस साल बिग बॉस 14 के सीजन में रुबीना दिलैक और अभिनव को लेकर खूब सारी बाते हो रही हैं. इस शो के मेकर्स अभिनव शुक्ला और रुबीना दिलैक को अप्रौच किए हैं. तो वहीं इस शो का हिस्सा एक्टर मोहित मलिक भी हो सकते हैं.

Womens Day Special: एक फैसला

भाजपा की पराजय

दिल्ली नगर निगम की 5 सीटों के लिए हुए उपचुनाव में से भाजपा एक पर भी जीत ही नहीं सकी. उस का वोट शेयर 35-36 से ले कर 20-21  तक रह गया. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पाटी ने 4 सीटें जीतीं और 1 सीट कांग्रेस ने. 2019 के चुनावों में इन जगह पर हुए संसदीय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ही बड़े जोरशोर से जीती थी.

अरविंद केजरीवाल बड़े जुझारू लगते हैं और उन के थोड़े से ही युवा समर्थक नई तरह की राजनीति कर रहे हैं जिस में न देश की विदेश नीति है, न शिक्षा नीति है, न धार्मिक नीति है, न जातीय नीति. वे सिर्फ राज्यों के प्रबंध की बात करते हैं. दिल्ली में उन के पास बहुत थोड़ी सी ताकत है क्योंकि कानून ही ऐसा है, असली बागडोर तो केंद्र सरकार के पास है.

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फिर भी लोगों को उन पर भरोसा है और तभी लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद अरविंद केजरीवाल को विधानसभा चुनाव में भरपूर सफलता मिली, जो भाजपा को अखरती है. उस से पहले हुए नगर निगमों में मिली जीत से भाजपा को उम्मीद थी कि मंजे हुए, तिलकधारी, भगवा कपड़ों वालों को लोग भरभर कर वोट देंगे. पर ऐसा नहीं हुआ और विपक्ष की राजनीति को कुछ सांसें और मिल गईं.

असल में आज का युवा राजनीति से परेशान है.  आज उस के पास भविष्य में सिर्फ अंधेरा दिख रहा है. नौकरियां हैं नहीं. पढ़ाईलिखाई चौपट है. जहां दुनियाभर में नएनए गैजट आ रहे हैं,  भारतीय युवा पुरानों से काम चला रहे हैं. जो पैसे वाले हैं वे मौज करते नजर आ रहे हैं क्योंकि उन के मातापिता पिछली कमाई के बल पर युवाओं को चुप करा पा रहे हैं. पर जिन के मातापिता के पास पैसा नहीं है, किराए के मकानों में आधीअधूरी नौकरियों में काम करते हैं, वे घुट रहे हैं.

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उन्हें धर्म के सपने दिखाए जा रहे हैं. बहुतों को उम्मीद है कि उस में बड़ी सफलता ही उन की सफलता होगी पर बहुतों को साफ दिख रहा है कि यह धर्म की केतली तो अफीम का नशा उबाल रही है. इस में उन के लिए कुछ नहीं है. जबकि, उन की तमन्नाएं बहुत ऊंची हैं. अरविंद केजरीवाल जैसों की पार्टी थोड़ी सी उम्मीद बनाती है कि वह कुछ अलग करेगी.

राजनीति वैसे तो दलदल है पर यह दलदल जरूरी है क्योंकि यही तो सुरक्षाकवच  है कि सरकारी तंत्र हम पर हावी न हो जाएं. चुनावों में हार का, चाहे बहुत छोटे चुनाव हों, बहुत फर्क पड़ता है. इस से लगता है कि अभी चौयस बाकी है. अगर राजनीतिक में चौयस न होगी तो जीवनसाथी चुनने की चौयस न होगी, मनमरजी के कपड़े पहनने की चौयस न होगी, मनचाहा चुनने की चौयस नहीं होगी,  मनमाफिक खाने की चौयस नहीं होगी आदि.

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विपक्ष की छोटीछोटी जीतें सत्तारूढ़ पार्टी को मजबूर करती हैं कि वह चार कदम पीछे हटे. ऐसे में वह अंधसमर्थकों का मुंह बंद करती है. चाहे मामला नगर निगमों के उपचुनावों का ही क्यों न हो,  अगर सत्तारूढ़ पार्टी जीत जाती तो तूफान मच जाता. एक ही देश, एक ही संस्कृति, एक ही पार्टी, एक ही नेता और एक ही राज –गुजरात – का शोर और मच जाता.

Womens Day Special: एक फैसला- भाग 5

रागिनी घर न जा कर, आज औफिस से सीधे बैंक चली गई यह देखने कि उस के अकाउंट में कितने पैसे हैं. लेकिन जब उसे पता चला कि उस के अकाउंट में तो सिर्फ कुछ हजार रुपए ही हैं, तो उस के तो पैरोंतले जमीन खिसक गई. “क्या…पर मैं ने तो कई महीनों से पैसे निकाले ही नहीं,” हैरान होते हुए रागिनी बोली कि जरूर कुछ मिस्टेक है. उस पर बैंक मैनेजर ने कहा कि कोई मिस्टेक नहीं है, बल्कि हर महीने आप के अकाउंट से पैसे निकल रहे हैं.

कुछ समझ नहीं आ रहा था रागिनी को कि यह सब क्या हो रहा है. जब उस ने पैसे निकाले ही नहीं कई महीनों से तो पैसे गए कहां? कहीं ऐसा तो नहीं एटीम कार्ड किसी के हाथ लग गया हो? समझाया गया था रागिनी को एटीम कार्ड के पीछे ‘पिन नंबर मत लिखो, अगर किसी के हाथ लग गया तो गड़बड़ हो जाएगी.’ लेकिन सुषमा बोली थी कि वह पिन नंबर भूल जाती है, इसलिए रहने दो. रागिनी को यह भी लग रहा था कि कहीं साइन किया चैकबुक तो किसी के हाथ नहीं लग गया? हां, जरूर ऐसा ही कुछ हुआ होगा, चिंता से व्याकुल रागिनी ने जब अपनी मां को फोन लगाया और पूछा, तो सुन कर दंग रह गई. उस की मां ने बताया कि दीपक की नौकरी चली गई, इसलिए वह उस के पैसे उसे देती रही निकालनिकाल कर.

“बेटा, वह तेरा अपना सगा भाई है. भूखों मरता, तो क्या तुम्हें अच्छा लगता?” सुषमा दलीलें देने लगी, “तुम्हें तो पता ही है, तुम्हारे पापा की पैंशन हमें ही पूरी नहीं पड़ती, तो मैं उसे कहां से मदद कर पाती. वह कहने लगा कि भूखे मरने से अच्छा है पूरा परिवार जहर खा कर सो जाएंगे. तो मेरा दिल पिघल गया बेटा. और तुम्हें तो किसी बात की कमी नहीं है, इसलिए सोचा, कुछ महीने की हो तो बात है. वह नौकरी ढूंढ रहा है, फिर तुम्हारे पैसे नहीं लेगा.”

क्या बोलती रागिनी. उस ने फोन रख दिया और सिर पर हाथ रख कर बैठ गई. ‘लेकिन मेरे ही पैसे क्यों? मैं इतनी मेहनत क्या इसलिए कर रही हूं ताकि किसी और का घर चल सके और वह बंदा हाथ पर हाथ धरे बैठा रहे?’ मन में यह सोच रागिनी तिलमिला उठी. मन तो किया, अभी फोन लगा कर सुषमा को खरीखोटी सुना दे और कहे कि उस के पैसे बेटे को दे रही है और उस से पूछना तक जरूरी नहीं समझा  फिर मन किया कि अभी के अभी एटीम कार्ड बंद करवा दे. लेकिन उस ने एक गिलास ठंडा पानी पिया और अपने गुस्से को कंट्रोल करने की कोशिश करने लगी. लेकिन गुस्सा कम कैसे हो जब उस के साथ इतना बड़ा छल हुआ हो. यह छल नहीं तो और क्या है?  आखिर कब तक वह बैठेबैठे दूसरे की कमाई खाता रहेगा. और एक बच्चा हो गया, ज़िम्मेदारी बढ़ गई तब भी अक्ल न आई तो अब क्या आएगी. बहुत अच्छे से जानती है वह अपने भाई दीपक को. काम न करना पड़े और बैठेबैठे छप्पन भोग मिलता रहे, यही तो वह चाहता है.  लेकिन एक मां हो कर सुषमा को ऐसा करना चाहिए था क्या? आज उस की ही वजह से दीपक कहीं टिक नहीं पाया. 2 महीने नौकरी की नहीं कि दूसरी ढूंढने लगता है क्योंकि उस नौकरी में उसे खामियां दिखने लगती हैं. अरे भाई, तो कौन तुम्हें बैठा कर तनख्वाह देगा? इस सब की जिम्मेदार सुषमा ही है. अगर शुरू से ही उस पर सख्ती बरतती तो आज ये दिन न देखने पड़ते उसे.

अपनी मां की हरकतों से रागिनी इतनी डिप्रैस्ड हो गई कि पूरी रात उसे ठीक से नींद न आई. वही सब बातें उस के दिमाग में घूमती रहीं. सुबह दर्द के मारे लग रहा था उस का सिर फट जाएगा, इसलिए तबीयत खराब कह कर छुट्टी मार दी. बातबात पर उसे रोना आ रहा था. यह सोच कर उस की आंखें भर आतीं कि सुषमा ने एक बार उसे बताना या पूछना जरूरी नहीं समझा और उस की मेहनत की कमाई दीपक को देती रही. पुत्रमोह में वह इतनी पागल हो गई कि यह भी समझ नहीं आया कि ये रागिनी के पैसे हैं? मन किया रितेश से बात करे, पर जानती थी उस से बात करते रो पड़ेगी वह और फिर रितेश उसे अपनी कसम दे कर पूछने लगेगा कि क्या बात है, बताओ. रागिनी को वह दुखी नहीं देख सकता, तो क्या रोते देख पाएगा. कई दोस्त के फोन आए, पर उस ने आज किसी का फोन नहीं उठाया क्योंकि उसे किसी से बात करने का मन ही नहीं हो रहा था.

लेकिन सुशमा का फोन आया देख, झट से उस ने फोन उठा लिया और अभी कुछ बोलती ही कि मदन की आवाज सुन रुक गई. “हेलो, कैसी है मेरी ड्रामा क्वीन?” हंसते हुए मदन बोले, “याद है न, बचपन में तुम कितनी ड्रामेबाज थी. बेटा, तुम्हारे बचपन की फोटो देख रहा था तो मन मचल गया तुम से बात करने को. और तुम्हारी मां, यह देखो, तुम्हारे बचपन के कपड़े निकाले बैठी है. ये तुम्हारे जूते…कैसे तुम इन्हें पहन कर पूरे घर में घूमा करती थी. जब जूते आवाज करते तो तुम खुश हो जाती थी और, और तेज चलने लगती थी,” बोलते हुए ठहाका मार कर मदन हंसने लगे और फिर बोलर, “बेटा, इन यादों के सहारे ही तो जीवन कट रहे हैं. तू नहीं आ सकती हम से मिलने, जानता हूं, बहुत बिजी रहती है. ठंड खत्म हो जाने दो, तो हमी आ जाएंगे तुम से मिलने. अच्छा, चलो, और सब ठीक है न बेटा?”

“हां, पापा,” भर्राए गले से रागिनी बोली.

“क्या हुआ, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है? आवाज इतनी भारीभारी क्यों लग रही है?” चिंतित होते मदन बोले.

“कुछ नहीं पापा, वह मौसम बदल रहा है न, इसलिए. ठीक है पापा, मैं फोन रखती हूं, प्रणाम.” जानती थी रागिनी इस बारे में मदन को कुछ पता नहीं होगा क्योंकि सुषमा ही पैसे निकालती है. याद है जब एटीम कार्ड और चैकबुक वह अपने पापा को देने लगी थी तब यह बोल कर सुषमा ने उस के हाथ से वह छीन लिया था कि मदन तो एक नंबर का लापरवाह इंसान हैं. अपनी चीजें तो संभलती नहीं इन से, तो यह सब क्या संभाल पाएंगे. कार्ड, चैकबुक कहीं यहांवहां रख दिया और किसे के हाथ लग गई तो सारे पैसे हवा में उड़ जाएंगे. रागिनी को भी लगा था सुषमा सही कह रही है. इसलिए उस ने भी कुछ नहीं बोला और सुषमा को वह एटीएम कार्ड और चैकबुक थमा दिया था. लेकिन आज लग रहा है उस से बहुत बड़ी गलती हो गई. लेकिन वह सुषमा से पूछेगी जरूर कि उस ने ऐसा क्यों किया?

वहां सिंगापुर से रितेश ने कई बार रागिनी को कौल किया. पर उस ने उस का फोन नहीं उठाया. तो रितेश को चिंता होने लगी. पता चला कि वह औफिस भी नहीं आई है. तो उस की चिंता दोगुनी हो गई. काम की परवा न कर के रितेश आधी मीटिंग से ही फ्लाइट पकड़ कर दिल्ली आ गया. दूसरी चाबी से दरवाजा खोल कर अभी वह घर में दाखिल हुआ ही था कि रागिनी की आवाज सुन ठिठक कर कमरे के बाहर ही रुक गया.

“मेरे पैसे भैया को देती रहीं और मुझे बताना जरूरी भी न समझा आप ने? यह भी नहीं सोचा कि रितेश जब पूछेंगे पैसों के बारे में तो मैं उन्हें क्या जवाब दूंगी? नहीं मां, मुझे कुछ नहीं सुनना. और कब तक आप उन की गलतियां छिपाती रहेंगी? कब तक उन्हें यों ही बैठा कर खिलाती रहेंगी? कुछ समझ रही हैं आप कि आप उन का कोई भला नहीं कर रही हैं, बल्कि और उन्हें गर्त में गिरा रही हैं.”  मन तो किया रागिनी का बोल दे कि गलती हो गई उस से अपना एटीम कार्ड और चैकबुक उस के हाथों में दे कर और अब वह ऐसी गलती नहीं करेगी. आगे और कुछ बोलती कि रितेश को देख सकपका कर चुप हो गई. जब रितेश ने पूछा कि वह फोन क्यों नहीं उठा रही थी और औफिस से छुट्टी क्यों लिया तो उस के कंधे पर अपना सिर रख रागिनी सिसक पड़ी.

“क्या हुआ, रो क्यों रही हो? तबीयत ठीक नहीं है क्या तुम्हारी?” रागिनी का माथा सहलाते हुए रितेश घबरा उठा, “बोलो न, क्या हुआ?”

“कु…कुछ नहीं, रितेश. वह…वह तुम नहीं थे, इसलिए,” बोल कर वह फफक पड़ी, “रितेश, ए…एक बात कहनी है. हम अपना घर कैसे खरीद पाएंगे क्योंकि मेरे पैसे… फिर धीरेधीरे कर के रागिनी ने रितेश को सब बता दिया. “सौरी रितेश, मैं बहुत शर्मिंदा हूं.“

“बस, इतनी सी बात के लिए सौरी, पागल,” कह कर उस ने रागिनी को गले लगा लिया. उस के उलझे बालों को प्यार से सुलझाते हुए कहने लगा, “तो क्या हो गया जो मां ने तुम्हारे पैसे भैया को दे दिए तो. आज नहीं तो कल, उन की जौब लग ही जाएगी कहीं न कहीं. चिंता मत करो. जानती हो न, कोरोना के कारण कितनों की नौकरी छूट चुकी है. और परिवार होते किस दिन के लिए हैं, मुसीबत में साथ देने के लिए ही न?” रागिनी को लगा रितेश कितना अच्छा इंसान है. कोई और होता तो जाने क्या कर डालता, लेकिन यह तो उलटे उसे ही समझा रहा है. आज भी ऐसे इंसान हैं दुनिया में.

“लेकिन हमारा घर?” रागिनी बोली.

“घर नहीं, बंगला बनवाऊंगा मैं तुम्हारे लिए और तुम यह गाना गुनगुनाना- ‘छोटा सा बंगला हो, बंगले में गाड़ी हो, गाड़ी में मेरे संग बलमा अनाड़ी हो…’ गाओगी?” यह बोल कर रितेश ठठा कर हंसने लगा. तो रागिनी भी खिलखिला पड़ी. “रागिनी, पैसे और घर तो बहुत आएंगेजाएंगे, लेकिन सब से महत्त्वपूर्ण है हमारा साथ, वह बना रहे,” कह कर उस ने अपनी रागिनी को सीने से लगा लिया. मगर रागिनी ने मन ही मन एक फैसला ले लिया कि अब वह अपने पैसों का हिसाब  खुद रखेगी. जिसे देना होगा, खुद देगी. सुषमा और मदन उस की ज़िम्मेदारी हैं, दीपक और उस का परिवार नहीं.

आम के प्रमुख कीट और उनका प्रबंधन

लेखक-डा. प्रेम शंकर, डा. एसएन सिंह, डा. शैलेंद्र सिंह, डा. दिनेश कुमार यादव

आम के प्रमुख कीट और उनका प्रबंधन हमारे देश में फलोत्पादन में सब से पहले अगर किसी फल का नाम आता है तो वह है फलों का राजा ‘आम’. इस का प्रमुख कारण इस में पाए जाने वाले पोषकीय तत्त्वों, स्वाद, सुगंध व स्वास्थ्यवर्धक गुणों के साथसाथ विटामिन ‘ए’ की प्रचुर मात्रा में पाया जाना है. विश्व में इस फल का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है, लेकिन विगत वर्षों में देखा जा रहा है कि बागबान आम का भरपूर उत्पादन नहीं ले पा रहे हैं, जिस का प्रमुख कारण है आम में लगने वाले कीट. इन्हीं सब समस्याओं को देखते हुए बागबानों के लिए आम के प्रमुख लगने वाले कीट व उन के उचित प्रबंधन के बारे में बताया जा रहा है. फुदका कीट कीट की उच्च संख्या : कीट पूरे वर्ष पेड़ों पर पाया जाता है, परंतु फरवरी से अप्रैल और जुलाई से अगस्त माह में कीट की छाया व उच्च आर्द्रता उपलब्ध होती है. कीट की संख्या तीव्रता से बढ़ती है.

अनुकूल वातावरण : उच्च आर्द्रता के साथ मध्यम उच्च तापक्रम और छाया. कीट की पहचान और क्षति का प्रकार : यह कीट आम को सर्वाधिक हानि पहुंचाने वाला है. यह उन सभी स्थानों पर पाया जाता है, जहां पर भी आम की खेती की होती है. यह कीट अत्यधिक संख्या में आम पर पाया जाता है और पेड़ के मुलायम भागों का रस चूस कर पेड़ की ओज को कमजोर कर देता है. लगातार रस चूसने के कारण कीटग्रसित भाग के ऊतक सिकुड़ कर सूख जाते हैं. रस चूसने के अलावा ये कीट एक मीठा स्राव भी छोड़ते हैं, जिस पर कज्जली फफूंदी का आक्रमण हो जाता है और पेड़ की पत्तियों पर कवक की काली परत उग जाती है, जिस से कीटग्रस्त पेड़ की प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है.

कीट की एक मादा नई पत्तियों की मध्यशिरा, कलिकाओं और मंजरियों पर 100-200 अंडे देती है. गरमियों में इस कीट का पूरा जीवनचक्र मात्र 2-3 हफ्ते में पूरा हो जाता है. प्रबंधन * वर्षा के मौसम के उपरांत अत्यधिक घने पेड़ों की कटाई, छंटाई अवश्य करनी चाहिए और बाग की स्थापना के समय इस बात का ध्यान अवश्य रहे कि बाग में पेड़ 10 मीटर × 10 मीटर की दूरी पर लगाएं. * बाग को खरपतवाररहित रखने के लिए बाग की समयसमय पर जुताई करते रहें.

* बाग में भक्षक कीट जैसे मेलेडा वोनिनेसिंस, क्राइसोपा लेक्सिपरडा, स्प. और कवक वर्टिशिलियम लेकेनाई को आश्रय देना चाहिए.

* फुदका के आक्रमण की प्रारंभिक अवस्था में निबिंसिडीन या अजाडिरेक्टिन 3000 पीपीएम के घोल का छिड़काव करना चाहिए. * पेड़ों पर मंजरी बनने की अवस्था में यदि फुदका प्रति मंजरी 5-10 की संख्या में उपस्थित है, तो इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 01 मिलीलिटर प्रति लिटर या फिब्रोनिल की 02 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. पूर्ण पुष्पन की अवस्था में पेड़ों पर कीटनाशी का दूसरा छिड़काव और फलों के बन जाने पर तीसरा छिड़काव करना चाहिए.

आम की कड़ी/गुजिया कीट कीट की उच्च संख्या : मार्चमई. अनुकूल वातावरण : न्यून तापक्रम. कीट की पहचान और क्षति का प्रकार : यह कीट पूरे भारत में जहां भी आम की फसल और इस के अतिरिक्त कटहल, अंजीर, अमरूद, पपीता, नीबू, अनार, लीची पर भी पाया जाता है. इस कीट के निम्फ और वयस्क पेड़ की मुलायम टहनियों व मंजरियों का रस चूसते हैं. इस वजह से पेड़ की फलत कम हो जाती है. हलकी हवा, पक्षियों के डाल पर बैठने या हलकी डाल के हिलाने पर डाल पर लगे फल आसानी से गिरने लगते हैं. लगातार कीट के रस चूसने के कारण प्रभावित जगह के ऊतक मर जाते हैं और ऐसी टहनी मर कर सूख जाती है.

पेड़ का रस चूसने के साथसाथ कीट पेड़ पर तरल स्राव भी छोड़ता है, जिस पर कज्जली कवक उग जाती हैं, जिस से कीट ग्रसित डालियां काली पड़ जाती हैं. कीट की मादा मई माह में पेड़ से नीचे उतर कर भूमि की दरारों में अंडे देती हैं. दिसंबर माह में अनुकूल वातवरण में अंडों से छोटेछोटे आकार के गुलाबीभूरे रंग के निम्फ निकल कर पेड़ों पर चढ़ना आरंभ कर देते हैं. निम्फ पेड़ों पर चढ़ कर सब से पहले मुलायम टहनियों पर पहुंच कर रस चूसना प्रारंभ कर देते हैं. निम्फ की पेड़ पर उच्च संख्या पुष्पन अवस्था में होती है. यदि मंजरियों पर निम्फ के आक्रमण की प्रारंभिक अवस्था में रोकथाम न की जाए, तो पेड़ की मंजरियों को पूरी तरह खत्म कर देते हैं.

प्रबंधन * मईजून माह में पेड़ों के आसपास की गुड़ाई कर के अंडों को धूप में सूखने/मरने के लिए खोल देना चाहिए.

अक्तूबरनवंबर माह में बाग की जुताई करनी चाहिए, जिस से निम्फ की संख्या को कम किया जा सके. * निम्फ को पेड़ पर चढ़ने से बचाने के लिए पेड़ के तने पर 25 सैंटीमीटर चौड़ी और 400 गेज की पौलीथिन नवंबरदिसंबर माह में लपेटनी चाहिए, जिस के निचले सिरे पर 10 सैंटीमीटर तक ग्रीस लगा कर पट्टी व तने के बीच की जगह अच्छी तरह भर दें.

* अंडों के फूटने से पहले पेड़ के तने पर व तने के 1 मीटर चारों तरफ 2 प्रतिशत मिथाइल पैराथियान धूल का छिड़काव करना चाहिए. * पेड़ पर चढ़े हुए निम्फ को मारने के लिए ट्राइजोफास 0.2 मिलीलिटर या मेथोमिल 0.2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. मंजरियों का मिज कीट की उच्चतम संख्या : फरवरीअप्रैल माह.

अनुकूल वातावरण : मध्यम से उच्च तापक्रम के साथ वातावरण में नमी की कमी. कीट की पहचान और क्षति का प्रकार : मंजरियों का मिज कीट आम की फसल को भारत के कई भागों में मंजरियों और नए बने फलों को भारी हानि पहुंचाता है. आम की फसल को मिज कीट 3 अवस्थाओं में हानि पहुंचाता है. पहली अवस्था में जब मंजरियों की कलिकाएं बनती हैं, कीट इसी समय निकलने वाली मंजरियों में अंडे देता है. अंडों से इल्लियां निकल कर मंजरियों में सुरंगें बना देती हैं,

जिस से पुष्प मंजरियां पूरी तरह नष्ट हो जाती हैं. दूसरी अवस्था में नए बने फलों को कीट हानि पहुंचाता है. इस अवस्था में कीट की इल्ली नए फलों में छेद बना देती है, जिस से फल पीले पड़ कर पेड़ से गिर जाते हैं. तीसरी अवस्था में नई कोंपलों पर कीट आक्रमण करता है. कीट की तीनों हानिकारक अवस्थाओं में पुष्प मंजरियों को होने वाली हानि सब से घातक है.

प्रबंधन – बाग में कीट की संख्या कम करने के लिए जब जमीन में प्यूपा अवस्था में होता है, तब बाग की जुताई करनी चाहिए, जिस से प्यूपा धूप में खुल जाए और खुले हुए प्यूपा धूप के कारण मर जाएं.  प्यूपा को मारने के लिए कारटाप हाईड्रोक्लोराइड 50 प्रतिशत एसपी की एक किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलाना चाहिए.

पुष्प मंजरियों के फूटने की अवस्था पर बाग में फिब्रोनिल की 0.2 मिलीलिटर मात्रा को प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. फल मक्खी कीट की अधिकतम संख्या : जूनजुलाई माह. कीट की पहचान और क्षति का प्रकार : हमारे देश से आम के फल निर्यात उद्योग में फल मक्खी एक मुख्य बाधक के रूप में काम करती है. यह मक्खी पके फलों को मुख्य रूप से हानि पहुंचाती है. कीट की मादा पेड़ पर पके हुए फलों पर त्वचा को छेद कर फल के गूदे में झुंड में अंडे देती हैं. फल सामान्य दिखते हैं. अंडों से इल्लियां निकल कर गूदे को खाती हैं.

इस से फल कमजोर पड़ कर गिर जाता है. गिरे हुए फलों से इल्लियां बाहर निकल कर भूमि में प्यूपा बना देती हैं. कभीकभी कीट ग्रस्त फल से गाढ़ा स्राव भी निकलता देखा जा सकता है. प्रबंधन * कीटग्रसित भूमि पर पड़े फलों को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए, जिस से कीट की संख्या आगे न बढ़े. * कीट के प्यूपा को मारने के लिए बाग की नवंबरदिसंबर माह में ब्यूवेरिया बेसियाना को 2.5 किलोग्राम मात्रा को 50 किलोग्राम गोबर की खाद में मिला कर जुताई करनी चाहिए.

* फलों के मौसम में (अप्रैल से अगस्त माह तक) पेड़ पर फल मक्खी के नियंत्रण के लिए भूमि से 3-5 फुट ऊंचाई पर लकड़ी के मिथाइल यूजेनाल मौन गंध ट्रैप (5×5×1) के बौक्स फंदे में लटकाने चाहिए, जो इथेनाल, मिथाइल यूजेनाल और इमिडाक्लोप्रिड के 6:4:1 के अनुपात से भीगे हों और इन बक्सों को मजबूती से बांधना चाहिए. यह बक्सा वयस्क मक्खियों को आकर्षित करता है और प्रजनन प्रक्रिया को भी कम करता है. प्रति हेक्टेयर के लिए 10 ट्रैप की आवश्यकता पड़ती है. * कीट की संख्या को कम करने के लिए पेड़ों पर ट्राइजोफास की 0.2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. * कीट की संख्या को और भी कम करने के लिए कीट की अंडा अवस्था में प्रोटीन हाईड्रोलाइसेट के साथ फिब्रोनिल का 0.2 प्रतिशत चारे के रूप में पेड़ पर छिड़काव करना चाहिए.

* तुड़ाई के उपरांत फलों को 48+1 डिगरी सैंटीग्रेड के गरम पानी में एक घंटे तक डुबाना चाहिए. ठ्ठ कीट की उच्चतम संख्या : जुलाई-अगस्त कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : बीसवीं शताब्दी के अंत तक आम में शल्क कीट के द्वारा हानि को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता था. परंतु अब महसूस किया जाने लगा है कि शल्क कीट द्वारा आम के पेड़ को भारी क्षति पहुंचती है. कीट के निम्फ व वयस्क पेड़ की पत्तियों एवं मुलायम भागों का रस चूसते हैं जिस से पेड़ की आज कम हो जाती हैं. कीट पेड़ का रस चूसने के साथसाथ एक प्रकार का गाढ़ा श्राव भी छोड़ता है जिस पर कज्जली फफूंदी का आक्रमण हो जाने से पेड़ की पत्तियां एवं मुलायम भाग कवक के कारण काले हो जाते हैं.

कीट अधिकता की दशा में पेड़ों की वृद्धि रूक जाती हैं तथा पेड़ के फलन पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. प्रबंधन * पेड़ के उन सभी भागों की जिन पर कीट का आक्रमण अत्यधिक है कटाईछंटाई कर नष्ट कर देना चाहिए. * कीट ग्रसित बागों में इमिडाक्लोरोप्रिड 01 मिली. या फिब्रोनिल 02 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 15-15 दिनों के अंतर पर दो छिड़काव करें. शीर्ष स्तम्भ वेधक कीट की उच्चतम संख्या : जुलाई-सितंबर अनुकूल वातावरण : मध्यम तापक्रम के साथ वातावरण में मध्यम नमी. कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : यह कीट देश के सभी भागों में पाया जाता है. कीट के पतंगे चमकीले भूरे रंग के होते हैं तथा पंख फैलाव के बाद इन की माप 17.5 मिमी. होती है. इन के पिछले पंख हल्के रंग के होते हैं. कीट की वयस्क मादा पेड़ की नयी पत्तियों की मध्य शिरा पर अंडे देती है.

अंडों से फुट कर नई इल्ली पत्ती की मध्यशिरा में छेद कर सुरंग बनाने के साथसाथ पुष्प मंजरी में भी सुरंग बना कर हानि पहुंचाता है कीट की पूर्ण विकसित इल्ली गहरे गुलाबी रंग की गंदे धब्बों वाली होती हैं. कीट पूरे वर्ष में चार जीवन चक्र पूरे करता है. प्रबंधन * कीट से ग्रसित तनों की क्लिपिंग कर के ग्रसित भाग को तुरंत नष्ट करना चाहिए.  कीट की रोकथाम हेतु पेड़ पर नए पत्ते आते समय फिब्रोनिल या मेथोमिल की 02 मिली. मात्रा प्रति लीटर की दर से घोल तैयार कर 15-15 दिन के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए. छाल खाने वाली इल्ली कीट की अधिकतम संख्या : अप्रैल-दिसम्बर कीट की पहचान व क्षति की प्रकृति : पेड़ की छाल खाने वाला यह कीट पूरे देश में आम के पेड़ के साथसाथ अन्य कई फल वृक्षों एवं जंगली पेड़ों की छाल हो हानि पहुंचाता है.

इस कीट का प्रकोप उन्हीं बागों में अधिक पाया जाता है जिन बागों का सही रख रखाव न होता हो या जिन बागों में सूर्य के प्रकाश का सही आदानप्रदान न होता हो. कीट की इल्लियां पेड़ की छाल को खा कर पेड़ में बनी सुरंगों में ही आराम करती हैं. कीट का पतंगा हल्के धूसर रंग का गहरे भूरे रंग के धब्बों वाला होता है. पंख फैली हुई अवस्था में इस कीट की माप 25-40 मिमि. की होती है. पूणत: विकसित इल्ली भद्दे भूरे रंग की 35-45 मिमी. की होती है तथा कीट एक वर्ष में एक ही जीवन चक्र पूरा करता है. प्रबंधन * कीट ग्रसित छेदों की सफाई कर छेदों में 0.02 प्रतिशत के फिब्रोनिल के इमल्सन को डालना चाहिए एवं छेदों को कीचड़ से ढ़क देना चाहिए. * यदि कीट का प्रकोप अधिक हो तो 0.02 प्रतिशत के मेथोमिल के घोल की डेऊचिंग करनी चाहिए. तना बेधक कीट की उच्चतम संख्या : जुलाई-अगस्त कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : पूरे भारत वर्ष में विस्तृत रूप में पाया जाने वाला यह कीट आम के पेड़ों के अतिरिक्त अन्य कई फल वृक्षों को हानि पहुंचाता है.

कीट का भृंग एवं सूड़ी दोनों ही तने एवंज ड़ों पर सुरंग बना कर अपना भोजन प्राप्त करते हैं कीट सुरंगे ऊपर की ओर बनता है जिस कारण पेड़ की शाखाएं सूख जाती हैं. कभीकभी जब कीट का अत्यधिक आक्रमण होता है तो पूरा पौधा सूख जाता है. कीट का भृंग मजबूत शरीर वाला 35-50 मिमी. आकार का होता है तथा वयस्क भृंग का रंग घूसर भूरा तथा शरीर पर गहरे भूरे और काले रंग के धब्बे बने होते हैं. मादा भृंग पेड़ की दरारों में अंडे देती है जो तरल पदार्थ से ढके हुए होते हैं. पूर्ण विकसित सूंड़ी 90×20 मिमी. आकार की क्रीमी रंग की होती है जिस का सिर गहरे रंग को होता है. कीट की प्यूपा अवस्था तने में ही रहती है.

प्रबंधन – बाग में खाद पानी तथा साफसफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए.  सूखी डालों को काट कर जला देना चाहिए. * कीट द्वारा बनाए गए छिद्रों को साफ कर छिद्रों में ट्राइजोफास 0.02 प्रतिशत के इमल्सन या मिट्टी के तेल या पेट्रोल में भीगी हुई रूई ठूंस कर छिद्रों को कीचड़ या गीली मिट्टी से बंद कर देना चाहिए. जाल बुनने वाला कीट कीट की उच्चतम संख्या : कीट का आक्रमण अप्रैल माह से दिसम्बर माह तक रहता है.

अनुकूल वातावरण : उच्च आर्द्रता के साथ उच्च तापक्रम कीट की पहचान एवं क्षति का प्रकार : ऐसे बागों में जिन में पेड़ घने लगे हो तथा सूर्य का प्रकाश कम पहुंचता है. उन बागों में यह कीट एक गंभीर समस्या पैदा करता है. वयस्क मादा एक या झुंड में जान से बुनी हुई पत्तियों में अंडे देती है. अंडे से निकल कर इल्ली सर्वप्रथम पत्तियों को खुरच कर खाती है तथा कुछ समय पश्चात में इल्लियां नई कलियों एवं पत्तियों को जाल में बुन कर एक साथ खाती हैं. यह देखा गया है कि एक जाल में 1-9 तक इल्लियां पाई जाती हैं. कीट की प्यूपा अवस्था बुने हुए जाल के अंदर ही कोकून में होती हैं कीट का पतंगा माध्यम आकार का होता है तथा पूर्ण विकसित इल्ली 2.5 से 3 सेमी.

आकार की भूरे रंग की होती है. इल्ली की पीठ पर सफेद रंग की आड़ी धारियां तथा भूरे रंग के धब्बे होते हैं. कीट की प्यूपा अवस्था 5-6 माह तक चलती है. प्रबंधन  बाग में पूर्ण रूप से प्रकाश पहुंचे इस के लिए अतिरिक्त शाखाओं को काट देना चाहिए. * कीट द्वारा बनाए गए जालों को पत्तियों एवं टहनियों सहित काट कर जला देना चाहिए. बाग में मेथोमिल या ट्राइजोफास या इमेक्टिन बेन्जोएट के 0.02 प्रतिशत के घोल का जुलाई माह से प्रारंभ कर 15-15 दिन के अंतर पर तीन छिड़काव करना चाहिए. यह अवश्य ध्यान रखा जाए कि एक ही रसायन का प्रयोग बारबार न हो.

आम की गुठली का घुन कीट की उच्चतम संख्या : जून-जुलाई उपयुक्त जलवायु : उच्च आर्द्रता कीट की पहचान एवं क्षति का प्रकार : कीट का प्रकोप दक्षिण भारत में अधिक पाया जाता है. कीट के वयस्क हष्टपुष्ट गहरे धूसर रंग के तथा शरीर पर हल्के रंग के धब्बे होते हैं एवं इन का आकार 7-8 मिमी. होता है. मादा कंचों के आकार के फलों में छेद कर के श्वेत क्रीमी रंग के अंडे त्वचा के नीचे देती हैं. इल्ली अंडों से फूट कर फल का गूदा खाती हुई वयस्क कीट फल में छेद बना कर बाहर निकलता है कीट का पूरा जीवनचक्र 40-45 दिन में पूरा हो जाता है. कीट ग्रसित फलों पर मादा द्वारा अंडा देने के लिए जो छेद बनाया जाता है.

वह बाद में भर जाता है तथा फल की त्वचा पर केवल एक गहरे रंग का धब्बा रह जाता है. ग्रसित फलों का गूदा भद्दे रंग का तथा बीज की जमाव क्षमता का भी हृस हो जाता है. कीट एक वर्ष में एक ही जीवनचक्र पूरा कर पाता है. प्रबंधन भूमि पर गिरे हुए ग्रसित फलों को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए? * शीतशयन में गए कीटों को भूमि की खुदाई कर नष्ट कर देना चाहिए.  पेड़ के तने पर कीट द्वारा अंडे देने के समय 0.02 प्रतिशत मेथोमिल के घोल का छिड़काव करना चाहिए.

सूट गाल सिल्ला कीट की उच्चतम संख्या : अगस्त-सितम्बर उपयुक्त जलवायु : मध्यम तापक्रम के साथ रूकरूक कर वातावरण में उच्च आर्द्रता कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : उत्तर भारत में कीट का सर्वाधिक प्रकोप उत्तराखंड में है क्योंकि कीट का आक्रमण उन्हीं क्षेत्रों में अधिक होता है जहां जलवायु नम हो. कीट के अंडे श्वेत रंग के निम्फ हल्के पीले रंग के तथा वयस्क कीट 3-4 मिमी. का गहरे भूरे रंग का होता है. कीट पूरे वर्ष में एक ही जीवनचक्र पूर्ण करता है. एक वयस्क मादा कीट मार्चअप्रैल माह में पत्तियों की निचली सतह पर 150 अंडे देती है जिस से छोटे निम्फ अगस्त, सितंबर में निकल कर पत्तियों के अक्ष पर कलिका का रस चूसते हैं. जिस से पत्तियों की अक्ष की कलिकाएं हरी शंक्वाकार गाल में परिवर्तित हो जाती है.

कलिकाओं के घाव सितंबरअक्तूबर माह में पूर्णत: स्पष्ट दिखाई देते हैं. कीट ग्रसित पेड़ की टहनियां, पुष्प एवं फल विहीन हो जाती है. कीट का आक्रमण पुराने पेड़ों पर ही अधिक पाया जाता है. प्रबंधन  कीट ग्रसित टहनियों की कटाईछटाई कर नष्ट कर देनी चाहिए.  कीट का प्रभावी तरीके से नियंत्रण के लिए पेड़ पर पहला ट्राइजोफास (0.02 प्रतिशत), इमेक्टिन बेंजोएट (0.02 प्रतिशत) दूसरा तथा फिब्रोनिल (0.02 प्रतिशत) का 10-15 दिन के अंतर पर 3 छिड़काव करना चाहिए. पहला छिड़काव जुलाई के अंत में करें. * लगातार एक ही रसायन के छिड़काव से बचना चाहिए.

फुदका कीट की उच्चतम संख्या : मार्च-अप्रैल कीट की पहचान एवं क्षति का प्रकार : कीट की ष्ट. ढ्ढठ्ठस्रद्बष्ह्वह्य तथा क्त्र. ष्टह्म्ह्वद्गठ्ठह्लड्डह्लह्वह्य पत्तियों से भोजन प्राप्त कर जीवनयापन करती हैं जबकि स्. स्रशह्म्ह्यड्डद्यद्बह्य पुष्प मंजरियों एवं नए फलों से भोजन प्राप्त करती हैं. थ्रिप्स की वयस्क मादा लगभग 1 मिमी. की शंक्वाकार, नई पत्तियों की निचली सतह पर लगभग 50 अंडे देती हैं. अंडों से निम्फ निकलता हैं. कीट लगभग 9 दिनों में दो निम्फ अवस्थाएं पूर्ण करता है तथा इस अवस्था में कीट पत्तियों एवं पुष्पों से भोजन प्राप्त करता हैं.

निम्फ अवस्था के बाद दो प्यूपा अवस्थाओं में पांच दिन बिता कर नया वयस्क कीट निकलता है. कीट के निम्फ तथा वयस्क उत्तकों को खुरचते हैं परिणामस्वरूप कोशिकाओं से निकले श्राव से अपना भोजन प्राप्त करता है. थ्रिप्स मलद्वार से गाढ़ा श्राव निकालते हैं जिस से फलों एवं पत्तियों पर सिलवरी परत तथा मल के धब्बे बन जाते हैं. फलों पर ये धब्बे फलों के बाजार भाव को कम कर देते हैं तथा पत्तियां सूर्य के प्रकाश के कारण झुलसी हुई दिखती हैं. यह कीट जब भोजन नहीं कर रहा होता है तो कीट पत्तियों की निचली सतह पर या कलिकाओं के अंदर आराम करता रहता है. प्रबंधन * कीट के अत्यधिक आक्रमण की दशा में पुष्पन अवस्था में पेड़ पर फिब्रोनिल या मेथोमिल की 02 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से घोल का छिड़काव करना चाहिए. आम का फल बेधन (कीट की उच्चतम संख्या : आम का फल बेधक कीट माह जनवरी से मई तक सक्त्रिय रहता है.

कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : कीट की वयस्क मादा फल के ऊपरी भाग या फल के डंठल पर 1 मिमी. से छोटे आकार के सफेद अंडे देती है. इन अंडों का रंग कुछ समय बाद लाल हो जाता है. अंडे दो से तीन दिन के अंदर फूटते हैं जिन से छोटीछोटी इल्लियां निकल कर पहले फल की त्वचा को खाती हैं तथा बाद में फल की त्वचार पर छेद बना कर सुरंग बनाती हुई खाती हैं. त्वचा पर बना छेद इल्ली के मल से बंद हो जाता है.

ऐसे कीट ग्रस्त फल समय से पेड़ से गिर कर सड़ जाते हैं. कीट की इल्ली के शरीर पर क्रमवार सफेद व लाल रंग के बैंड होते हैं. प्रबंधन  पेड़ों के नीचे गिरे हुए ग्रसित फलों व टहनियों को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए. * यदि कीट का अत्यधिक आक्रमण हो तो फलों के कंचे के आकार की अवस्था पर इमिडाक्लोरोप्रिड का 0.1 प्रतिशत तथा 2 सप्ताह बाद इमेक्टिन बेंजोएट 02 मिली. प्रति ली. की दर से दो छिड़काव करने चाहिए. * फलों की तुड़ाई के 20 से 25 दिन पूर्व किसी भी प्रकार के छिड़काव से बचना चाहिए.

Womens Day Special: एक फैसला- भाग 4

लेकिन रागिनी ने उसी रोज एक फैसला ले लिया था कि वह शादी तभी करेगी जब अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी. रागिनी की एक सहेली, जिस के पापा डाक्टर थे, गुजरात आ कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने की बात बोली, तो रागिनी ने भी ठान लिया कि वह भी वहीं जा कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करेगी. लेकिन यह सुनते ही सुषमा ने पूरा घर सिर पर उठा लिया कि अब बेटी बाहर पढ़ाई करने जाएगी?

‘हां, जाऊंगी. मैं दीवारों में कैद हो कर जीने के लिए या जला कर मारने के लिए पैदा नहीं हुई हूं. मुझे कुछ बनना है. मां, मेरी सहेली भी तो जा रही है न बाहर पढ़ने, तो मैं क्यों नहीं जा सकती?’ रागिने ने अपना राग छेड़ दिया.

‘पागल हो गई है यह लड़की,’ गरजते हुए सुषमा बोली थी, ‘उस का बाप डाक्टर है गुजरात में, तो क्या वह अपनी बेटी को इंग्लैंड भेज कर पढ़ा सकता है. लेकिन हमारी इतनी औकात नहीं. चुपचाप यहीं पढ़ाई करो जितनी करनी हो. सोचा था दीपक को इंजीनियर बनाऊंगी, पर वह तो बना नहीं और यह चली है इंजीनियर बनने.’ अपनी मां के मुंह से ऐसी बातें सुन कर रागिनी रो पड़ी थी.

‘बेटे को इंजीनियर बनाने की औकात थी आप लोगों में, लेकिन मुझे नहीं, क्यों? क्योंकि मैं लड़की हूं? और भैया इंजीनियर नहीं बन पाए तो  इस में मेरा क्या कुसूर? मुझे गुजरात जा कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनी है और मैं करूंगी,’ रागिनी ने मन ही मन दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह गुजरात जा कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई जरूर करेगी. इस के लिए उस ने खानापीना सब छोड़ दिया. जानती थी घर में वही होता है जो सुशमा चाहती है. लेकिन आज वही होगा, जो रागिनी चाहेगी.  और क्या गलत चाह रही है वह?  पढ़ना ही तो चाहती है? लेकिन सुषमा को तो अपने बेटे को इंजीनियर बनना था जो बन नहीं पाया. इस में भी सुषमा का ही हाथ है.  बेटा, बेटा कर के उस की सभी गलतियों पर परदा डालती रही. पढ़ाई के समय वह अपने आवारा दोस्तों के साथ उड़ता फिरता और सुषमा कहती, वह तो पढ़ाई कर रहा है अपने कमरे में बैठ कर. जब पढ़ाई ही नहीं किया था, तो परीक्षा में लिखता क्या? इसलिए लगा चोरी करने और पकड़ा गया.  कितने शर्मिंदा हुए मदन सब के सामने. यह सोच कर उन का सिर शर्म से झुक गया था कि लोग कहेंगे एक मास्टर का बेटा हो कर चोरी करते हुए पकड़ा गया. मदन ने अगर प्रिंसिपल के सामने अपने हाथपांव न जोड़े होते तो 2 साल के लिए सुषमा का लाड़ला बेटा रैस्टीकेट हो चुका होता. लेकिन फिर भी कहां सुधरा वह? वैसे ही अपने आवारा दोस्तों के साथ रातरातभर घर से बाहर रहता और सुषमा कहती, वह तो बैठ कर पढ़ाई कर रहा है. हद तक बिगाड़ कर रख दिया था उस ने दीपक को. मां की शै पा कर ही वह पिता से बहस लगाता, बहन पर हाथ उठाता. लेकिन फिर भी उस की सारी गलती छम्य थी क्योंकि वह बेटा था. उधर, रागिनी अपने भाई से इतर, पढ़ाई से ले कर घर के कामों में भी दक्ष थी. अपने स्कूल में वह हमेशा अव्वल आती थी. नाज होता मदन को जब कोई रागिनी की तारीफ करता तो जबकि अपने बेटे को ले कर वे हमेशा शर्मिंदा होते रहते थे.  लेकिन रागिनी ने सोच लिया था कि जो भी हो, वह गुजरात पढ़ने जरूर जाएगी. इस के लिए उस ने खानापीना तक त्याग दिया. मदन जब रागिनी को समझाने आए कि वह अपना जिद छोड़ दे और वैसे भी उन की इतनी औकात नहीं है कि उसे बाहर पढ़ने भेज सकें. तो वह विफर उठी.

‘क्यों पापा, अगर भैया बाहर जा कर पढ़ना चाहते, तो भेजते न आप लोग? भेजते कि नहीं? तो फिर मुझ से ऐसा बरताव क्यों? आप मेरी शादी के लिए जो जमीन का टुकड़ा रखे हो न, उसे मेरी पढ़ाई के लिए बेच दो. मुझे पढ़ना है पापा, दहेज मत देना, पर मुझे पढ़ना है पापा. मैं घर की मानमर्यादा या आप की इज्जत पर कभी कोई आंच नहीं आने दूंगी, वादा करती हूं आप से पापा,’ बोलतेबोलते वह बिलखबिलख कर रोने लगी. मदन का हृदय पिघल गया. पढ़ाई को ले कर बेटी का  जनून देख मदन ने भी उसे इंजीनियर बनाने का फैसला कर लिया. इस के लिए भले ही उन्हें लोगों से कर्ज ही क्यों न लेना पड़े, पर वह अपनी बेटी को बाहर पढ़ने जरूर भेजेंगे. वैसे, तो सुषमा नहीं मान रही थी पर रागिनी की जिद के आगे उसे भी झुकना पड़ा. लेकिन उसे इस बात की चिंता सता रही थी कि अकेली लड़की इतने बड़े शहर में मांबाप से दूर कैसे रहेगी. कोई अपना नहीं है वहां. कोई अनहोनी हो गई तो क्या करेंगे.

‘कुछ नहीं होगा. विश्वास रखो अपनी बेटी पर. वह हमारा सिर कभी शर्म से झुकने नहीं देगी,’ मदन ने कहा तो रागिनी ने भी विश्वास दिलाया कि वह कभी कोई ऐसा काम नहीं करेगी जिस से उन का सिर शर्म से झुक जाए.

रागिनी आज भी इस बात के लिए अपने मांपापा की शुक्रगुजार है कि उन्होंने उस पर विश्वास कर उसे पढ़ने के लिए इतनी दूर गुजरात भेजा. वरना, शायद वह भी अपनी सहेली कल्याणी की तरह जला कर मार दी जाती है या चूल्हेचौंके में पिस रही होती. मदन ने उस की पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. एक मास्टर की तनख्वाहहोती ही कितनी है, फिर भी उन्होंने रागिनी का इंजीनियर बनने का सपना साकार किया. लेकिन रागिनी भी एक बेटे की तरह अपना फर्ज निभा रही है. कभी किसी बात की कमी नहीं होने देती है उन्हें. उन्हें किसी बात की कमी न होने पाए, इस के लिए उस ने एटीम कार्ड और चैकबुक साइन कर सुषमा को दे रखा है ताकि जब उन्हें पैसों की जरूरत पड़े, निकाल लिया करे, संकोच न करे. शादी से पहले ही रागिनी ने स्पष्ट शब्दों में बोल दिया था कि वह अपनी कमाई का कुछ हिस्सा अपने मांपापा को देना चाहती है,क्योंकि उन्होंने उसे एक बेटे की तरह पढ़ायालिखाया है, तो उस का भी तो उन के प्रति कुछ फर्ज बनता है.

उस पर हंसते हुए रितेश ने कहा था, ‘बिलकुल बनता है और मैं कभी तुम्हें तुम्हारा फर्ज पूरा करने से नहीं रोकूंगा. बल्कि, मुझे तुम पर फख्र है कि तुम ऐसा सोचती हो. वैसे भी, रागिनी, मैं तुम से प्यार करता हूं, तुम्हारे पैसों से नहीं. तुम अपने पैसे जिसे देना चाहो, बेशक दे सकती हो, मुझे कोई एतराज नहीं होगा. और एक बात, तुम मेरी ज़िम्मेदारी हो. तुम्हारी हर खुशी का ख़याल रखना मेरा फर्ज है,’ रितेश के मुंह से ऐसी बातें सुन कर रागिनी उस की कायल हो गई थी. उस ने तो कभी सोचा भी न था कि उसे रितेश जैसा जीवनसाथी मिलेगा. और सच में, उस के पैसों के बारे में पूछना तो दूर, कभी रितेश ने रागिनी की कमाई का एक पैसा छुआ तक नहीं. रागिनी की ससुराल वाले भी, कभी उस से उस की कमाई को ले कर कोई सवालजवाब नहीं किया. वे लोग तो खुद करोड़पति हैं. लेकिन रितेश शुरू से आत्मसम्मान से जीने वाला इंसान है. उस का कहना है, उस के पिता के पैसे उस के पिता के हैं. वह अपने दम पर जीना पसंद करता है. अपनी सारी ज़िम्मेदारी खुद उठाना पसंद करता है.

Womens Day Special: एक फैसला- भाग 4

लेकिन रागिनी ने उसी रोज एक फैसला ले लिया था कि वह शादी तभी करेगी जब अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी. रागिनी की एक सहेली, जिस के पापा डाक्टर थे, गुजरात आ कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने की बात बोली, तो रागिनी ने भी ठान लिया कि वह भी वहीं जा कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करेगी. लेकिन यह सुनते ही सुषमा ने पूरा घर सिर पर उठा लिया कि अब बेटी बाहर पढ़ाई करने जाएगी?

‘हां, जाऊंगी. मैं दीवारों में कैद हो कर जीने के लिए या जला कर मारने के लिए पैदा नहीं हुई हूं. मुझे कुछ बनना है. मां, मेरी सहेली भी तो जा रही है न बाहर पढ़ने, तो मैं क्यों नहीं जा सकती?’ रागिने ने अपना राग छेड़ दिया.

‘पागल हो गई है यह लड़की,’ गरजते हुए सुषमा बोली थी, ‘उस का बाप डाक्टर है गुजरात में, तो क्या वह अपनी बेटी को इंग्लैंड भेज कर पढ़ा सकता है. लेकिन हमारी इतनी औकात नहीं. चुपचाप यहीं पढ़ाई करो जितनी करनी हो. सोचा था दीपक को इंजीनियर बनाऊंगी, पर वह तो बना नहीं और यह चली है इंजीनियर बनने.’ अपनी मां के मुंह से ऐसी बातें सुन कर रागिनी रो पड़ी थी.

‘बेटे को इंजीनियर बनाने की औकात थी आप लोगों में, लेकिन मुझे नहीं, क्यों? क्योंकि मैं लड़की हूं? और भैया इंजीनियर नहीं बन पाए तो  इस में मेरा क्या कुसूर? मुझे गुजरात जा कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करनी है और मैं करूंगी,’ रागिनी ने मन ही मन दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह गुजरात जा कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई जरूर करेगी. इस के लिए उस ने खानापीना सब छोड़ दिया. जानती थी घर में वही होता है जो सुशमा चाहती है. लेकिन आज वही होगा, जो रागिनी चाहेगी.  और क्या गलत चाह रही है वह?  पढ़ना ही तो चाहती है? लेकिन सुषमा को तो अपने बेटे को इंजीनियर बनना था जो बन नहीं पाया. इस में भी सुषमा का ही हाथ है.  बेटा, बेटा कर के उस की सभी गलतियों पर परदा डालती रही. पढ़ाई के समय वह अपने आवारा दोस्तों के साथ उड़ता फिरता और सुषमा कहती, वह तो पढ़ाई कर रहा है अपने कमरे में बैठ कर. जब पढ़ाई ही नहीं किया था, तो परीक्षा में लिखता क्या? इसलिए लगा चोरी करने और पकड़ा गया.  कितने शर्मिंदा हुए मदन सब के सामने. यह सोच कर उन का सिर शर्म से झुक गया था कि लोग कहेंगे एक मास्टर का बेटा हो कर चोरी करते हुए पकड़ा गया. मदन ने अगर प्रिंसिपल के सामने अपने हाथपांव न जोड़े होते तो 2 साल के लिए सुषमा का लाड़ला बेटा रैस्टीकेट हो चुका होता. लेकिन फिर भी कहां सुधरा वह? वैसे ही अपने आवारा दोस्तों के साथ रातरातभर घर से बाहर रहता और सुषमा कहती, वह तो बैठ कर पढ़ाई कर रहा है. हद तक बिगाड़ कर रख दिया था उस ने दीपक को. मां की शै पा कर ही वह पिता से बहस लगाता, बहन पर हाथ उठाता. लेकिन फिर भी उस की सारी गलती छम्य थी क्योंकि वह बेटा था. उधर, रागिनी अपने भाई से इतर, पढ़ाई से ले कर घर के कामों में भी दक्ष थी. अपने स्कूल में वह हमेशा अव्वल आती थी. नाज होता मदन को जब कोई रागिनी की तारीफ करता तो जबकि अपने बेटे को ले कर वे हमेशा शर्मिंदा होते रहते थे.  लेकिन रागिनी ने सोच लिया था कि जो भी हो, वह गुजरात पढ़ने जरूर जाएगी. इस के लिए उस ने खानापीना तक त्याग दिया. मदन जब रागिनी को समझाने आए कि वह अपना जिद छोड़ दे और वैसे भी उन की इतनी औकात नहीं है कि उसे बाहर पढ़ने भेज सकें. तो वह विफर उठी.

‘क्यों पापा, अगर भैया बाहर जा कर पढ़ना चाहते, तो भेजते न आप लोग? भेजते कि नहीं? तो फिर मुझ से ऐसा बरताव क्यों? आप मेरी शादी के लिए जो जमीन का टुकड़ा रखे हो न, उसे मेरी पढ़ाई के लिए बेच दो. मुझे पढ़ना है पापा, दहेज मत देना, पर मुझे पढ़ना है पापा. मैं घर की मानमर्यादा या आप की इज्जत पर कभी कोई आंच नहीं आने दूंगी, वादा करती हूं आप से पापा,’ बोलतेबोलते वह बिलखबिलख कर रोने लगी. मदन का हृदय पिघल गया. पढ़ाई को ले कर बेटी का  जनून देख मदन ने भी उसे इंजीनियर बनाने का फैसला कर लिया. इस के लिए भले ही उन्हें लोगों से कर्ज ही क्यों न लेना पड़े, पर वह अपनी बेटी को बाहर पढ़ने जरूर भेजेंगे. वैसे, तो सुषमा नहीं मान रही थी पर रागिनी की जिद के आगे उसे भी झुकना पड़ा. लेकिन उसे इस बात की चिंता सता रही थी कि अकेली लड़की इतने बड़े शहर में मांबाप से दूर कैसे रहेगी. कोई अपना नहीं है वहां. कोई अनहोनी हो गई तो क्या करेंगे.

‘कुछ नहीं होगा. विश्वास रखो अपनी बेटी पर. वह हमारा सिर कभी शर्म से झुकने नहीं देगी,’ मदन ने कहा तो रागिनी ने भी विश्वास दिलाया कि वह कभी कोई ऐसा काम नहीं करेगी जिस से उन का सिर शर्म से झुक जाए.

रागिनी आज भी इस बात के लिए अपने मांपापा की शुक्रगुजार है कि उन्होंने उस पर विश्वास कर उसे पढ़ने के लिए इतनी दूर गुजरात भेजा. वरना, शायद वह भी अपनी सहेली कल्याणी की तरह जला कर मार दी जाती है या चूल्हेचौंके में पिस रही होती. मदन ने उस की पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. एक मास्टर की तनख्वाहहोती ही कितनी है, फिर भी उन्होंने रागिनी का इंजीनियर बनने का सपना साकार किया. लेकिन रागिनी भी एक बेटे की तरह अपना फर्ज निभा रही है. कभी किसी बात की कमी नहीं होने देती है उन्हें. उन्हें किसी बात की कमी न होने पाए, इस के लिए उस ने एटीम कार्ड और चैकबुक साइन कर सुषमा को दे रखा है ताकि जब उन्हें पैसों की जरूरत पड़े, निकाल लिया करे, संकोच न करे. शादी से पहले ही रागिनी ने स्पष्ट शब्दों में बोल दिया था कि वह अपनी कमाई का कुछ हिस्सा अपने मांपापा को देना चाहती है,क्योंकि उन्होंने उसे एक बेटे की तरह पढ़ायालिखाया है, तो उस का भी तो उन के प्रति कुछ फर्ज बनता है.

उस पर हंसते हुए रितेश ने कहा था, ‘बिलकुल बनता है और मैं कभी तुम्हें तुम्हारा फर्ज पूरा करने से नहीं रोकूंगा. बल्कि, मुझे तुम पर फख्र है कि तुम ऐसा सोचती हो. वैसे भी, रागिनी, मैं तुम से प्यार करता हूं, तुम्हारे पैसों से नहीं. तुम अपने पैसे जिसे देना चाहो, बेशक दे सकती हो, मुझे कोई एतराज नहीं होगा. और एक बात, तुम मेरी ज़िम्मेदारी हो. तुम्हारी हर खुशी का ख़याल रखना मेरा फर्ज है,’ रितेश के मुंह से ऐसी बातें सुन कर रागिनी उस की कायल हो गई थी. उस ने तो कभी सोचा भी न था कि उसे रितेश जैसा जीवनसाथी मिलेगा. और सच में, उस के पैसों के बारे में पूछना तो दूर, कभी रितेश ने रागिनी की कमाई का एक पैसा छुआ तक नहीं. रागिनी की ससुराल वाले भी, कभी उस से उस की कमाई को ले कर कोई सवालजवाब नहीं किया. वे लोग तो खुद करोड़पति हैं. लेकिन रितेश शुरू से आत्मसम्मान से जीने वाला इंसान है. उस का कहना है, उस के पिता के पैसे उस के पिता के हैं. वह अपने दम पर जीना पसंद करता है. अपनी सारी ज़िम्मेदारी खुद उठाना पसंद करता है.

 

कर्ज : डीआईजी सिंह अचानक बचपन की यादों में क्यों खो गया

‘‘जयहिंद, सर.’’

‘‘जयहिंद, आइए डीआईजी सिंह साहब, कैसे आना हुआ?’’ आईजी चमक सिंह ने कहा.

‘‘हैडक्वार्टर गया था, सर. आप के ट्रांसफर की खबर ले कर आया हूं.’’

‘‘अच्छा, कहां?’’

‘‘सर, आप को गुरदासपुर जिले का आईजी बना कर भेजा जा रहा है. पंजाब का बहुत बड़ा जिला है.’’

‘‘जानता हूं, जितना बड़ा जिला होगा जिम्मेदारियां भी उतनी ज्यादा होंगी. यह खुशी की बात है, लंबे अरसे बाद होम स्टेशन मिला है,’’ चमक सिंह ने खुशी जाहिर की.

‘‘काफी डिस्टर्ब इलाका है. वहां आप जैसे सख्त अफसर की जरूरत है.’’

‘‘हां, यह तो है. मेरी वहां से बहुत सी यादें भी जुड़ी हैं, कुछ बचपन की कुछ जवानी की. मैं चुपचाप सबकुछ देखना चाहता हूं. देखने का मौका भी मिलेगा.’’

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‘‘आप जिले के मालिक होंगे, कुछ भी देखना, सर,’’ कह कर डीआईजी सिंह साहब चले गए परंतु चमक सिंह दूर बचपन की यादों में खो गया.

कलानौर, गुरदासपुर जिले का छोटा सा कसबा, उस का गांव. यह वही कलानौर है जहां मुगल बादशाह अकबर को बादशाह घोषित किया गया था. दादू याद आए जो उसे बहुत प्यार करते थे. चाचू की याद नहीं आई जिन की बुरी आदतों के कारण सब बरबाद हो गया था. सब बिक गया था, जमीन, मकान सबकुछ. हमारा नौकर गिरधारी याद आया जो रोज रात को सोते समय अपने मधुर स्वर में हीर गाया करता था. वहां का स्कूल आंखों के सामने आ गया जहां वह पहली से ले कर 12वीं तक पढ़ा था. वे उस के जीवन के सब से हसीन साल थे. बचपन की चपलता चरमसीमा पर थी. पढ़ाई और खेल के अलावा कुछ सूझता नहीं था. पढ़ाई कम खेल ज्यादा. वह अपनी पढ़ाई को ले कर संजीदा नहीं था. कभी होता भी न, यदि उस के जीवन में राजो न आती. राजो उस की क्लास 7वीं में आई. सुंदर और सजीली. गंभीर, हमेशा अपनी किताबों में खोई रहती. उस की किसी से दोस्ती न थी. उस के साथ डैस्क पर बैठती थी. उस ने अपना नाम राजो और गांव के नाम के अतिरिक्त और कुछ नहीं बताया था. वह उस की तरफ आकर्षित तब हुआ जब छमाही परीक्षा में 7वीं की सभी क्लासों में हर विषय में वह प्रथम आई. पढ़ाई में चाहे वह इतना ध्यान नहीं देता था तो भी उस का परिणाम इतना बुरा नहीं आता था. राजो के प्रथम आने पर उसे बुरा लगा था. मन को धक्का भी लगा. एक लड़की हो कर यदि वह प्रथम आ सकती है तो मैं क्यों नहीं. पहली बार मन में जलन हुई और संजीदगी भी आई. अगली परीक्षाओं में वह उस की बराबरी तो न कर पाया परंतु उस के नजदीक जरूर आ गया. राजो यदि प्रथम थी तो वह चौथे नंबर पर था. तब राजो शायद उस की तरफ आकर्षित हुई. एक ही डैस्क पर बैठने पर भी उन की आपस में ज्यादा बोलचाल नहीं होती थी. चौथे नंबर पर आने पर राजो ने कहा था, ‘चमक सिंह, अगली बार तुम मेरी बराबरी कर लोगे.’

‘अगर ऐसा हुआ तो तुम्हें खुशी होगी?’ उस ने भोलेपन से प्रश्न किया था.

‘हां, क्यों नहीं. मुझे हर वह लड़का या लड़की अच्छी लगती है जो पढ़ाई में होशियार हो. इधरउधर की बातों में अपना समय न बिताता हो,’ राजो ने उसी भोलेपन से उत्तर दिया था. फिर उन की दोस्ती गहरी होती चली गई. पढ़ाई में राजो ने कभी उसे आगे नहीं निकलने दिया. राजो 12वीं में पूरे जिले में प्रथम आई तो चमक सिंह दूसरे नंबर पर आया. उस ने 12वीं में भी उस से बाजी मार ली. बाद में वह छात्रवृत्ति ले कर अमृतसर डीएवी कालेज में आगे की पढ़ाई के लिए चला आया और राजो को सरकारी कालेज, गुरदासपुर ने छात्रवृत्ति दे दी. वह वहां पढ़ने लगी. वह अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गया. राजो से उस की दूरियां बढ़ती गईं. शायद वह भी अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गई थी. मन ही मन राजो के लिए उस का आकर्षण बना रहा.

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जब भी वह कलानौर आता, राजो के बारे में जानने की कोशिश करता. बीए पास कर के आईएएस परीक्षा दे कर कलानौर आया तो पता चला गांव के पास भागोवाल गांव में उस की शादी हो गई है. खातापीता परिवार है. अकेला बेटा है और काफी जमीनजायदाद वाले हैं.यह सब सुन कर जाने क्यों उस को अच्छा नहीं लगा और उस के मन के किसी कोने में जलन हुई. राजो के प्रति उस के दिल में आज भी आकर्षण बना है. शायद राजो का भी हो. उन दोनों ने कभी इस बारे में बात नहीं की. कभी मिलना ही नहीं हुआ. इतने सालों बाद जब होम पोस्ंिटग पर वह आया तो उस के मन में राजो की याद प्रबल हो उठी. उस के बारे में सबकुछ जान लेने की इच्छा को वह दबा नहीं पाया. उस ने भागोवाल थाने के एसएचओ से बात करवाने के लिए ऐक्सचेंज को कहा. थोड़ी देर बाद-

‘‘जयहिंद सर, मैं इंस्पैक्टर धर्म सिंह एसएचओ भागोवाल, सर.’’

‘‘मैं आईजी चमक सिंह बोल रहा हूं.’’

‘‘हुक्म करें, जनाब.’’

‘‘नोट करो, मैं भागोवाल की एक औरत, राजो, जिस का मायका कलानौर है, के बारे में जानना चाहता हूं. उस के पति का नाम शायद कर्म सिंह सेखों है. वे आजकल कैसे हैं और उन का क्या हालचाल है?’’

‘‘राजो, कर्म सिंह, सर,’’ इंस्पैक्टर धर्म सिंह थोड़ी देर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘राजो, कर्म सिंह के पूरे परिवार को मैं जानता हूं, सर. राजो के साथ बहुत बुरा हुआ. उस के सासससुर तो पहले ही मर गए थे. कर्म सिंह भी एक रोज अपने बिस्तर पर मृत पाया गया. राजो पर अपने पति की हत्या का आरोप लगा. इस समय वह गुरदासपुर जेल में बंद है.’’

‘‘ओह, यह तो सचमुच बुरा हुआ. राजो को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं. वह मेरे साथ 12वीं तक पढ़ी है. वह तो चींटी तक नहीं मार सकती, बंदा क्या मारेगी. कुछ न कुछ गलत हुआ है,’’ चमक सिंह ने कहा.

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‘‘मेरे लिए क्या हुक्म है, जनाब?’’

‘‘उन के जो खेत थे, उन का क्या हुआ?’’

‘‘सर, उन पर कलानौर के इंस्पैक्टर ईश्वर चंद के रिश्तेदारों ने कब्जा कर रखा है. काफी रसूख वाले लोग हैं वे.’’

‘‘हूं, राजो को जेल हुए कितना समय हुआ? उस के कोई बच्चा है?’’

‘‘अभी 1 महीना हुए जेल हुए. राजो के कोई बच्चा नहीं है, सर. लोअर कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा दी है. उस के घर पर ताला लगा हुआ है.’’

‘‘मेरी पोस्ंटग गुरदासपुर हुई है. अगले हफ्ते चार्ज ले लूंगा. आप इंस्पैक्टर ईश्वर चंद से बात करें. वह अपने रिश्तेदारों से बात करे और राजो के खेत छुड़वाए,’’ चमक सिंह ने कहा.

‘‘सर, मैं बात कर के आप को बताता हूं.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर उस ने लाइन काट दी.

2 दिन बाद भागोवाल के एसएचओ इंस्पैक्टर धर्म सिंह का फोन आया, ‘‘सर, मैं ने इंस्पैक्टर ईश्वर चंद से बात की थी. पहले तो वह अपने पैरों पर पानी न पड़ने दे रहा था, लेकिन जब मैं ने उस से बताया कि आप इस में पर्सनली इन्वौल्व हैं तो वह घबराया, बोला, अपने रिश्तेदारों से बात कर के बताऊंगा.’’

‘‘हूं, फिर?’’

‘‘सर, आज उस का फोन आया था. कहने लगा, उस के रिश्तेदार कब्जा छोड़ने को तैयार हैं पर इस साल उन्होंने फसल बो दी है. वे इस साल की फसल ले कर कब्जा छोड़ देंगे.’’

‘‘घर का राज है. पहले नाजायज कब्जा किया, अब फसल ले कर कब्जा छोड़ने की बात कर रहे हैं. कब्जा लिया ही क्यों था? किस ने ऐसा करने को कहा था? अगर मैं खुद वहां आ गया, उन सब को लेने के देने पड़ जाएंगे,’’ चमक सिंह की आवाज में गुस्सा था. फिर थोड़ी देर बाद कहा, ‘‘कब्जा तो उन को अभी छोड़ना होगा, छोड़ना पड़ेगा. आप ऐसा करें, उन से कहें कि बीज और लेबर की जो लागत लगी है, उन की कीमत ले लें और कब्जा छोड़ दें. फसल उन को नहीं मिलेगी. यह सुझाव उन को अपनी ओर से देना. कहना, आईजी साहब बहुत गुस्से में थे. खुद आने की बात कर रहे थे. अगर वे आ गए तो सब जेल में होंगे. फिर वह कुछ नहीं कर पाएगा. देखो, वे क्या कहते हैं. 2 दिन बाद मैं गुरदासपुर का चार्ज ले लूंगा. मैं जानता हूं, वे इस प्रैशर को झेल नहीं पाएंगे और मान जाएंगे,’’ चमक सिंह ने फोन काट दिया.

और सचमुच 2 दिन बाद मामला सुलझ गया. इंस्पैक्टर ईश्वर चंद और उस के रिश्तेदारों ने बीज और लेबर के पैसे लेना स्वीकार कर लिया. एक थानेदार से पैसे भिजवा कर सब लिखित में ले लिया गया. एक जिम्मेदार आदमी को खेतों और फसल की देखभाल का काम सौंप कर चमक सिंह ने संतोष की सांस ली. उसे तसल्ली हुई कि उस के बिना वह सारा मामला ठीक हो गया. अब चार्ज ले कर सब से पहले वह राजो से मिलने का प्रबंध करेगा. चार्ज ले कर उस ने गुरदासपुर जेल का इंस्पैक्शन करने का प्रोग्राम बनाया. उस के इंस्पैक्शन के कारण सारी जेल चमक रही थी. इंस्पैक्शन के बाद उस ने जेलर से राजो से मिलने की इच्छा जाहिर की. जेलर ने पूछा, ‘‘कोई बात, सर?’’

चमक सिंह ने कहा, ‘‘मैं उसे व्यक्तिगत रूप से जानता हूं. मैं उस के साथ 12वीं तक पढ़ा हूं. वह अपने पति के खून के सिलसिले में यहां बंद है. मैं जानता हूं, कहीं न कहीं उस के साथ गलत हुआ है. इसी सिलसिले में मैं उस से मिलना चाहता हूं. तुरंत इस का प्रबंध किया जाए.’’ हुक्म की तामील हुई. राजो को जब उस के सामने लाया गया तो वह जेल के कपड़ों में थी. वह पहले की तरह सुंदर और सजीली थी, चाहे हालात ने उस के चेहरे पर प्रौढ़ता ला दी थी. वह दुबली भी हो गई थी. चमक ने सब को बाहर जाने के लिए कहा. जब एकांत हुआ तो उस ने राजो से कहा, ‘‘कहो, राजो, पहचाना?’’ राजो काफी देर तक उसे घूरती रही. फिर कहा, ‘‘आप, चमक सिंह.’’

‘‘तो आखिर तुम ने मुझे पहचान ही लिया. समय के लंबे अंतराल ने भी तुम्हारी याददाश्त को धूमिल नहीं होने दिया.’’ चमक सिंह ने महसूस किया कि अब वह उस के लिए तुम नहीं रहा, आप हो गया है. बेगानेपन का एहसास भी हुआ पर उस ने इस एहसास को जबरदस्ती दबा दिया.

‘‘मैं आप को भूली ही कब थी. आप के मित्र रौनक सिंह से आप के बारे सारी जानकारियां मिलती रहती थीं. कब आप पुलिस में गए और कब आप बड़े अफसर बन गए. बस, यह न जान पाई कि आप यहां आ गए हैं. अब शायद आप आईजी हैं.’’

यह सब सुन कर चमक सिंह को सुखद लगा कि उस की तरह ही इस के मन में भी उस के लिए जगह खाली है.

‘‘राजो, कैसी हो?’’

‘‘ठीक हूं, चमक, पर मैं ने अपने पति का खून नहीं किया. मैं उन का खून कर ही नहीं सकती. वे मेरे पति थे. हालात और गवाह सब मेरे विरोध में थे. मुझे फंसाया गया है. मैं बेकुसूर हूं.’’

‘‘मैं जानता हूं, तुम ऐसा कर ही नहीं सकतीं. किसी का खून तो बिलकुल नहीं. वह भी अपने पति का. इसीलिए मैं तुम से सारी बात जानने आया हूं. मुझे डिटेल में बताओ ताकि हाईकोर्ट में अपील की जा सके.’’

‘‘पर चमक, मेरे पास अपील के लिए कुछ भी नहीं है. मतलब, पैसे आदि. मेरे खेतों पर भी किसी ने कब्जा जमा रखा है, रौनक सिंह ने बताया था.’’

‘‘तुम उस की फिक्र मत करो. खेतों पर से कब्जा हटवा दिया गया है. एक जिम्मेदार आदमी को खेतों और फसल की देखभाल के लिए रख लिया है,’’ चमक सिंह ने कब्जे को ले कर सारी कहानी बता दी.

राजो ने एक लंबी सांस ली. चेहरे पर संतोष झलक उठा, ‘‘मैं आप का किस तरह धन्यवाद करूं.’’

‘‘अपनों से इस तरह की फौरमैलिटी नहीं की जाती. अच्छा, बताओ उस रोज क्या हुआ था?’’

‘‘कुछ नहीं, वे रात को शराब पी कर आए. पहले भी आते थे. बिना कुछ खाए, सो गए. सुबह मृत पाए गए. घर के खाने में जहर था, जाने कैसे यह साबित कर दिया गया. गवाह भी खड़े कर दिए गए और मुझे जेल हो गई. मैं कुछ नहीं कर पाई. मेरी बात किसी ने नहीं सुनी.’’

‘‘तुम चिंता मत करो. मैं आ गया हूं. तुम्हारी बातें सब सुनेंगे. अपील के लिए कल मैं एक नामी वकील को भेजूंगा. कुछ पेपर ले कर आएगा. सब साइन कर देना. सब ठीक हो जाएगा. वह कोर्ट में तुम्हें निर्दोष साबित कर देगा.’’

‘‘जी, धन्यवाद.’’

‘‘फिर वही बात.’’

‘‘अच्छा, नहीं कहती. अब जाती हूं.’’

राजो चुपचाप चली गई और वह अपने औफिस चला आया.दूसरे रोज नामी वकील द्वारा अपील की सारी कार्यवाही कर ली गई. चमक सिंह ने अपने प्रभाव से जल्दी तारीख भी दिलवा दी. राजो के वकील ने हाईकोर्ट में यह साबित कर दिया कि राजो के पति ने घर में खाना खाया ही नहीं. यह उन लोगों का काम था जो उस की जमीन पर कब्जा करना चाहते थे. गवाह भी उन्होंने ही खड़े किए थे. पुलिस को हिदायत दी जाए कि वह असली खूनी की खोज करे. चमक सिंह और वकील की मेहनत रंग लाई. हाईकोर्ट ने राजो को निर्दोष करार दे दिया. वह जेल से बाहर आ गई. बाहर आ कर वह चमक सिंह से मिलने आई. बड़े विनीत भाव से कहा, ‘‘सच में चमक, यदि आप और वकील साहब न होते तो मैं कभी निर्दोष साबित न हो पाती. आप का बहुतबहुत धन्यवाद. खर्चे के रूप में आप का कर्ज मुझ पर है. मैं बहुत जल्दी उसे उतार दूंगी. वैसे, मैं आप के एहसानों के कर्ज से कभी मुक्त नहीं हो पाऊंगी.’’

‘‘तुम कर्ज लौटाने की बात मत सोचो. अपनेआप को संभालो. कर्ज अपनेआप चुकता हो जाएगा. यह एक मित्र का तुम्हें तोहफा होगा.’’

‘‘मैं कभी आप का कर्ज नहीं चुका पाऊंगी, जानती हूं. संबंध बनाए रखना. कभी अपने परिवार के साथ मेरे यहां आओ, मुझे अच्छा लगेगा,’’ कहते हुए राजो की आंखें भर आईं. चमक सिंह ने हामी भरी कि ऐसा ही करेगा. राजो धीरेधीरे चल कर उस के औफिस से बाहर चली गई. वह उसे बाहर तक छोड़ने भी नहीं जा सका. अपनी कुरसी में धंस सा गया. उस ने महसूस किया कि उस की आंखें भी नम हैं.

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