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Womens Day Special: एक फैसला- भाग 3

“और हमारा परिवार शुरू भी नहीं हुआ है,” कह कर रितेश ने आंख मारी तो रागिनी का गाल शर्म से लाल हो गया. “चलो न, आज औफिस छोड़ देते हैं,” शरारतभरे अंदाज में रितेश बोला, तो रागिने ने उसे पकड़ कर बैठा दिया कि खाओ चुपचाप और औफिस जाओ. “अच्छा बाबा, जा रहा हूं.  वैसे कब हुआ, मेरा मतलब है बच्चा कब हुआ?” रोटी का कौर मुंह में डालते हुए रितेश ने पूछा.

“यह पूछ ही रही थी कि तुम ने मेरे हाथ से फोन छीन लिया, फिर मैं भूल गई. जाने दो, अब बाद में पूछ लूंगी,” रागिनी ने मुंह बनाया. अपनी भाभी के घर बेटा आया सुन कर रागिनी भी बच्चे के लिए मचल उठी. प्रमोशन के चक्कर में अभी तक वे बच्चे को टाल रहे थे. पर अब रागिनी मां बनना चाहती थी. लेकिन दोनों का विचार था कि पहले अपना घर लेंगे, फिर बच्चा प्लान करेंगे. और वे दिल्ली में नहीं, बल्कि अहमदाबाद में बसना चाहते थे क्योंकि अब उन्हें दिल्ली की आबोहवा रास नहीं आ रही थी.  ऊपर से हमेशा यहां कुछनकुछ चलता ही रहता है जिस से आम जनजीवन प्रभावित होता है.  गुजरात शुरू से ही शांतिप्रिय रहा है, ऊपर से रितेश का पूरा परिवार वहीं रहता है. रागिनी को भी अहमदाबाद शहर बहुत सुकून व शांतिभरा लगता है. रितेश ने बताया कि उस के एक दोस्त ने बताया कि अहमदाबाद की सीजी रोड पर अच्छेअच्छे टू, थ्री और फोर बीएचके फ्लैट बन रहे हैं, वह भी ले रहा है. अगर उसे लेना है तो बोले.

“हां, तो बात करो न. लेकिन सीजी रोड तो बहुत महंगी जगह है. घर करोड़ों से कम में आएगा क्या?” रागिनी बोली.

“हां, तो क्या हो गया. हम दोनों को लोन तो मिल ही जाएगा. और तुम्हारे जमा पैसे किस दिन काम आएंगे?“ हंसते हुए रितेश बोला, “अब देखो भाई, अच्छा घर लेना है तो जेबें तो ढीली करनी पड़ेंगी.”

“हां, सही बात है. और मैं तो अपनी सैलरी निकालती नहीं. रुपए जमा ही हो रहे हैं. घर तो तुम्हारी ही सैलरी से चलता है.” दोनों पत्नीपत्नी ने विचार किया था एक की कमाई बैंक में जमा होगी और दूसरे की कमाई से घर चलेगा. वरना, दोनों की सैलरी खर्च होने लगेगी तो पैसे का पता नहीं चलेगा. वैसे, रितेश ने कभी रागिनी पर उस के पैसों को ले कर दबाव नहीं बनाया. वह अपने पैसों का जो करे, उस की मरजी. उस ने तो बस एक सुझाव दिया था तो रागिनी को सही लगा था.

रागिनी मन ही मन यह सोच कर खुश होने लगी कि कम से कम उस के अकाउंट में 40-50 लाख रुपए जमा तो हो ही गए होंगे क्योंकि कई महीनों से उस ने अपने पैसे नहीं निकाले हैं.  इस कोरोना के कारण घर से निकलना ही नहीं होता था, तो पैसे कहां खर्च होते. इस कोरोना महामारी ने कितनों की जान ली, कईयों की नौकरी चली गई. कितने बेघर हो गए. लेकिन यह बात भी सही है कि इस कोरोना ने लोगों को जीना सिखा दिया. कम पैसों में भी कैसे जिया जा सकता है,  कोरोना ने यह अच्छे से लोगों को समझा दिया. वरना, पहले तो अकसर होटलों में खाना, मूवी,  शौपिंग, बिना मतलब के’ रागिनी ने मन ही सोचा.

“अच्छा, ठीक है, अभी मैं औफिस के लिए निकल रहा हूं. इस बारे में हम शाम को बात करेंगे,” बाय कह कर रितेश औफिस जाने के लिए निकल गया. उस के जाने के बाद रागिनी भी औफिस जाने के लिए तैयार होने लगी. गुजरात में यह बात बहुत अच्छी है कि यहां परिवार में बहुत मिल्लत होती है. तीनचार पीढ़ी एकसाथ बड़े आराम से हंसीखुशी रहते है. लेकिन रागिनी का सपना था कि उस का अपना एक घर हो, जिसे वह अपना घर कह सके. और आज जब रितेश ने घर खरीदने की बात कही तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा.

अचानक रितेश को औफिस के काम से 2-3 दिनों के लिए सिंगापूर जाना पड़ गया, इसलिए घर खरीदने वाली बात नहीं हो पाई. रागिनी ने बहुत खुश हो कर घर खरीदने की बात अपने मांपापा से बताई. मदन बेटी के घर खरीदने की बात सुन कर खुशी से चहक उठे. लेकिन सुषमा की आवाज धीमी पड़ गई. वह तुरंत कहने लगी, हां, खुशी की बात है कि तुम घर खरीद रही हो.  दीपक भी अगर अच्छे से पढ़लिख गया होता तो वह भी अपना घर खरीदता न? मगर क्या करें, उस का तो समय ही खराब है.”

सुषमा की आदत थी, कोई भी बात होती, अपने बेटे का दुखड़ा ले कर बैठ जाती. हमेशा वह बेटा बेटी में तुलना करती और जब रागिनी का पलड़ा भारी पड़ता, तो मन ही मन कराह उठती.‘हां, पता है, हर मांबाप चाहते हैं कि उन के सभी बच्चे जीवन में खुश रहें, आगे बढ़ें. लेकिन मांबाप सोच ही सकते हैं न, कुछ बनने के लिए ताकत तो खुद की ही लगानी पड़ती है. बिना मेहनत किए लोग चाहें कि उन के कदमों में सुखसुविधाएं बिछ जाएं, तो ऐसा हो सकता है क्या? यहां तक पहुंचने के लिए मैं ने कितने पापड़ बेले हैं, यह मैं ही जानती हूं. कईकई दिनों तक सिर्फ चाय और बिस्कुट खा कर गुजारे हैं मैं ने, ताकि मेरा सपना पूरा हो सके. मैं पापा से अपने आगे की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं मांगना चाहती थी, इसलिए किसी तरह उन्हीं पैसों में चलाने की कोशिश करती थी.  दीपक भैया की तरह घर में बैठ कर, मां के हाथों का बना खाना खा कर आराम नहीं फरमा रही थी. बल्कि, मैं अपने अच्छे भविष्य के लिए संघर्ष कर रही थी. लेकिन मां को यह बात कहां समझ में आती है. उन्हें तो लगता है पापा ने पैसे से मुझे नौकरी खरीद कर दी है.

सुषमा के व्यवहार से रागिनी का मन कड़वा हो गया. लेकिन वह कुछ बोली नहीं क्योंकि आज जो वह है, अपने मांबाप की ही बदौलत. हां, पता है उसे, सुषमा बेटा व बेटी में पक्षपात करती है. उस का बस चलता तो शायद उसे इतनी दूर पढ़ने भी न भेजती.

12वीं के बाद सुषमा चाहती थी, किसी तरह स्नातक करा कर रागिनी का ब्याह कर दे और छुट्टी पाए. लेकिन रागिनी की शुरू से ही इंजीनियरिंग करने की इच्छा थी. वह शादी कर के किसी का गुलाम बन नहीं जीना चाहती थी, बल्कि पढ़ाई कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी. बिहार में तो क्या, पूरी दुनिया में औरतों की क्या स्थिति है, वह देखपढ़ रही थी. रोज कोई न कोई औरत अपने पति व ससुराल वालों के हाथों जलील होती है. दहेज के लिए लड़कियां ससुराल में जलाकर मार दी जाती हैं आज भी. उस कल्याणी के साथ यही हुआ न? गांव में सब कहते थे कि खाना बनाते समय स्टोव फट गया जिस के कारण कल्याणी जल कर मर गई. लेकिन, रागिनी जानती थी कि उस की सहेली जल कर मरी नहीं, बल्कि उसे जानबूझ कर जला कर मारा गया था वह भी दहेज की खातिर. गरीबी के कारण कम उम्र में ही कल्याणी के मांबाप ने उसे एक दुब्याहे अधेड़ उम्र के साथ ब्याह दिया. वह भी इसलिए कि लड़का नौकरी वाला है, बेटी को खानेपहनने की कोई तकलीफ न होगी. लेकिन उस लालची इंसान ने अपनी दूसरी पत्नी कल्याणी को भी वैसे ही जला कर मार डाला और उस का कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाया क्योंकि वह पुलिस में था. कल्याणी के मांबाप रो कर चुप हो गए और खुद को समझा लिया कि बेटी मर गई.

Womens Day Special: एक फैसला- भाग 2

यूरोप से अपनी पढ़ाई पूरी कर भारत लौटते ही रितेश को एक बहुत बड़ी कंपनी से जौब का औफर आया और उस ने स्वीकार कर लिया. कंपनी की तरफ से ही उसे घर और गाड़ी भी मिली थी. उस का जो सपना था इंजीनियर बनने का वह पूरा हो चुका था. लेकिन अब भी उस के जीवन में एक कमी थी और वह था थी का प्यार. एक रोज बड़ी हिम्मत कर उस ने अपने दिल की बात रागिनी तक पहुंचा ही दी यह बोल कर कि ‘क्या हम अपनी दोस्ती को प्यार का नाम दे सकते हैं?’

उस की बात पर मुसकराते हुए रागिनी ने जवाब दिया था, ‘मुझे लगता है कि तुम्हें शरत के उपन्यास पढ़ने चाहिए, स्त्रीमन पढ़ना सीख जाओगे,’ रागिनी का इशारा पा कर वह उस के कदमों में बैठ कर ‘आई लव यू रागिनी, विल यू मैरी मी?’ बोल कर लाल गुलाब बढ़ाया था और ‘हां,’ बोल कर उस लाल गुलाब को रागिनी ने अपने सीने से लगा लिया था. लेकिन यह बात जानने के बाद सुषमा ने घर में कुहराम मचा दिया था. वह कहने लगी कि रागिनी को बाहर पढ़ने भेज कर उन्होंने गलती कर दी. मदन भी मन ही मन बेटी को गलत समझ बैठे थे. दीपक भी यह कह कर उस पर दोषारोपण लगाने लगा था कि पढ़ने के बहाने वह वहां मौज कर रही है. लेकिन रितेश और उस के परिवार वालों से मिलने के बाद उन के विचार बदल गए. इतने पैसे वाले होने के बाद भी उन में जरा भी घमंड नहीं था और रितेश तो कोहिनूर हीरा था, हीरा. सब से बड़ी बात कि दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं तो और क्या चाहिए था उन्हें. मगर बोलने वाले यह बोलने से बाज नहीं आए कि ‘लड़के का न जात का पता है न घर्म का, और चले हैं बेटी ब्याहने.’ असल बात तो यह थी कि लोगों को जलन होने लगी कि बेटी पढ़लिख कर इतनी बड़ी इंजीनियर बन गई. लोगों की बातों में आ कर रागिनी की मां और भाई भी इस शादी का विरोध करने लगे थे. लेकिन मदन ने ऐसी झाड़ लगाई उन्हें कि फिर कुछ बोल नहीं पाए. बोलने वालों को भी मदन ने दोटूक शब्दों में जवाब दे दिया था कि नहीं मानते वे जातपांत, ऊंचनीच. बेटी खुश है, तो वे भी खुश हैं. दोनों परिवारों की सहमति से जल्द ही दोनों परिणय सूत्र में बंध गए.

रागिनी और रितेश की बहुत सी आदतें मिलतीजुलती थीं, जैसे की दोनों ही शांत स्वभाव के थे. दोनों प्रकृति से जुड़े हुए थे. और सब से बड़ी बात यह कि पतिपत्नी होने के बावजूद दोनों एकदूसरे को स्पेस देते थे. उन का सोचना था कि भले ही दोनों पतिपत्नी हैं, पर एकदूसरे को स्पेस देना जरूरी है. क्योंकि, दोनों की अपनी अलगअलग जरूरतें होती हैं, अपनीअपनी फैमिलीज के साथ समय गुजारने का मन होता है और कई बार पर्सनल रीजन भी होते हैं. एकदूसरे को स्पेस देने से रिलेशनशिप में हमेशा ताजगी बनी रहती है.

शादी के इन 4 सालों में कभी भी दोनों ने एकदूसरे पर अपनी मरजी थोपने की कोशिश नहीं की. उन का मानना था कि हम पतिपत्नी होने से पहले एक इंसान हैं और हमें अपनी ज़िंदगी अपनी तरह से जीने का हक है. और यही इन की खुशहाल गृहस्थी का राज था. रागिनी के मांपापा पटना में रहते हैं और उस का भाई अपने परिवार के साथ दूसरे शहर में रहता है. रागिनी के पापा एक सरकारी स्कूल में टीचर थे. वे रिटायर्ड हो चुके हैं. जब कभी छुट्टी मिलती है, रागिनी उन से मिलने पटना जाती रहती है. वे भी यहां दिल्ली अपनी बेटी के घर आते रहते हैं. रितेश अपने मांपापा का एकलौता बेटा है. जबकि, उस के पापा 4 भाई हैं. उन का अपना कपड़ों का व्यापार है. सब साथ मिल कर अपना बिजनैस चलाते हैं. रितेश को शुरू से ही अपने पापा के व्यापार में कोई रुचि न थी. वह तो कुछ अलग ही बनना चाहता था, इसलिए उस ने साफतौर पर कह दिया था कि उसे पारिवारिक व्यवसाय में रुचि नहीं है. वह तो पढ़लिख कर कुछ बनना चाहता है. रितेश के पापा ने कभी उस पर अपनी मरजी नहीं थोपी, बल्कि, उसे वही करने दिया जो उस ने चाहा.

रागिनी को किचन में काम करते देख रितेश को शरारत सूझी और जा कर उस ने उसे अपनी बांहों में भर कर चूम लिया. “ऊंह, क्या कर रहे हो रितेश, छोड़ो मुझे, वरना मैं तुम्हारे गाल पर आटा मल दूंगी, फिर नहाना दोबारा जा कर“ हंसते हुए वह बोली.

“मल दो,लो मलो न,” अपना गाल उस के करीब ले जाते हुए रितेश बोला, “तुम्हारे हाथ से तो मैं अपने गाल पर मिट्टी भी मलवा लूं.” लेकिन तभी रागिनी का फोन आ गया और वह अपना फोन उठाने को लपकी यह सोच कर कि जरूर उस कमला का फोन होगा, कहेगी तबीयत ठीक नहीं है, आज नहीं आऊंगी. लेकिन जब उस ने अपनी मां का फोन देखा तो चिहुंक उठी.

“हैलो मां, प्रणाम. कैसी हो आप और पापा कैसे हैं? ठीक हैं? क्या…दीपक भैया को बेटा हुआ. अरे वाह, यह तो बड़ी खुशी की बात है. कब हुआ…” रागिनी पूछ ही रही थी कि रितेश ने उस के हाथ से फोन छीन लिया. “रितेश…….. फोन दो न, मां से बात करनी है मुझे.”  लेकिन रितेश यह बोल कर दूसरे कमरे में चला गया कि अब उसे सासुमां से बात करने दो. रितेश की अपने सासससुर से खूब पटती थी. अकसर वे फोन पर गपें लगाते और ठहाका मार कर हंसते. रितेश ने उन्हें थोड़ाबहुत गुजराती बोलना भी सिखा दिया था. कुछ देर बात कर वह फोन रागिनी को थमा कर औफिस जाने के लिए तैयार होने लगा. फोन पर अपनी मां से बातें करते हुए वह फटाफट हाथ भी चला रही थी क्योंकि रितेश को जल्दी औफिस के लिए निकलना था. “अच्छा, मां, अब मैं फोन रखती हूं. शाम को औफिस से आ कर इत्मीनान से बात करूंगी. हां, हां, मैं भैयाभाभी से बात कर लूंगी, आप चिंता मत करो. पापा को मेरा प्रणाम कहना,” कह कह रागिनी ने फोन रख दिया और नाश्ता परोसते हुए कहने लगी, “एक बेटी तो थी ही, एक बेटा भी हो गया. अच्छा है अब भैया का परिवार पूरा हो गया.“

Womens Day Special: एक फैसला- भाग 1

“रितेश, दिल्ली में किसान जो आंदोलन पर उतर आए हैं, तुम्हें क्या लगता है, इस का क्या नतीजा निकलेगा?”  चाय की चुस्की के साथ रागिनी ने रितेश की तरफ देखते हुए कहा.

“पता नहीं यार, लेकिन मुझे तो लगता है कि किसान अपनी जगह सही हैं. वैसे भी, इस कोरोनाकाल में किसान बहुत ही परेशानी से गुजर रहे हैं. बल्कि, वे ही नहीं, देश का हर नागरिक परेशानी से गुजर रहा है. किसानों के साथ वाकई अन्याय है, खेती पर तो उन का ही हक होना चाहिए,” चाय खत्म कर खाली कप टेबल पर रखते हुए रितेश बोला.

“हां, सही कह रहे हो तुम. वैसे भी, देखो न, डीजल, पैट्रोल, खाद, फ्रिज, टीवी आदि चीजों के अलावा खानेपीने की चीजें भी कितनी महंगी होती जा रही हैं. बेचारे गरीब…कैसे भरेगा उन का पेट? कैसे पालेंगे वे अपना परिवार? मगर सरकार को इन सब से क्या मतलब, वह तो अपने में ही मस्त है,” चाय का जूठा कप बेसिन में रखते हुए रागिनी बोली.

“तुम यही सोचो न, कोरोना महामारी के कारण जहां देश में आजीविका खोने के बाद भारत का आधा हिस्सा भुखमरी से गुजर रहा है, वहां 1,000 करोड़ रुपए लगा कर संसद भवन बनाना कहां तक जायज है? पता नहीं रागिनी, देश किस ओर जा रहा है. मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है,” अखबार एक तरफ मोड़ कर रखते हुए रितेश बोला, “अब छोड़ो देशदुनिया की बातें, कुछ नहीं बदलने वाला. जल्दी नाश्ता बना दो, आज औफिस जल्दी निकलना है, एक जरूरी मीटिंग है,”

‘एक तो वैसे ही कोरोना ने लोगों को परेशान किया हुआ है, ऊपर से कभी किसान आंदोलन तो कभी कुछ होता ही रहता है. लेकिन इन सब से  दिल्ली वालों को कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, कितनी असुविधाएं होती है हमें यह कोई नहीं समझाता’ खुद में ही भुनभुनाते  हुए रितेश बाथरूम चला गया.

रागिनी  किचन में चली गई. रितेश को औफिस भेज कर उसे अपने औफिस के लिए निकलना था. ‘गाड़ी में शायद पैट्रोल भी भरवाना पड़े और इस कमला को देखो, अब तक नहीं आई है. आएगी भी या नहीं, क्या पता. फोन कर के बोल देगी, दीदी, आज तबीयत जरा खराब है, नहीं आ पाऊंगी. यही तो करती है हमेशा. उसे निकालती नहीं हूं क्योंकि ईमानदार औरत है, वरना तो…’ बुदबुदाते हुए रागिनी जल्दीजल्दी सब्जी काटने लगी.

वैसे तो दोनों साथ ही औफिस जाने के निकलते थे. रागिनी को उस के औफिस छोड़ कर रितेश अपने औफिस चला जाता था और लौटते समय रागिनी को लेते हुए घर आ जाता था. जब कभी उन्हें घर आने में देर होती, बाहर से ही खाना खा कर आ जाते, वरना दोनों मिल कर खाना बना लेते थे. कभी किसी वजह से अगर दोनों में से किसी एक को आगेपीछे औफिस के लिए निकलना पड़ता, तो दूसरा अपनी गाड़ी से औफिस चला जाता था. रागिनी के जन्मदिन पर रितेश ने उसे ‘किया सेल्टोस’ गाड़ी गिफ्ट किया था. लेकिन फिर भी दोनों एक ही गाड़ी से औफिस आतेजाते थे, क्योंकि उन का सोचना था कि जब एक गाड़ी से काम चल सकता है तो 2 गाड़ियों को इस्तेमाल करने की क्या जरूरत है. बेकार में पैट्रोल तो ज्यादा खर्च होगा ही,  पौल्यूशन भी बढ़ेगा जो प्रकृति के लिए ठीक नहीं. वैसे ही बढ़ती जनसंख्या, वायु प्रदूषण, औद्योगिकीकरण, वृक्षों का व्यावसायिक पतन, फैक्टरियों से निकलने वाला धुआं क्या कम है, जो हम और पौल्यूशन बढ़ाएं. देशदुनिया में चल रहे टौपिक पर अकसर दोनों पतिपत्नी बातें करते रहते थे.

रितेश एक इंटरनैशनल कंपनी में बड़े ओहदे पर कार्यरत था. वहीं रागिनी भी एक कंपनी में जौब कर रही थी. रागिनी बिहार की रहने वाली थी और रितेश एक गुजराती छोरा. रागिनी बिहार से यहां अहमदाबाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने आई थी. दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे, इसलिए पढ़ाई को ले कर अकसर दोनों में बातें होते रहती थीं. इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर रितेश मास्टर करने यूरोप जाना चाहता था. लेकिन रागिनी इंजीनियरिंग के बाद यहीं अहमदाबाद में रह कर एमबीए करने की सोच रही थी. परंतु अपने पापा पर वह और अधिक पैसों का भार नहीं डालना चाहती थी. क्योंकि यह इंजीनियरिंग की पढ़ाई ही वे कितनी मुश्किल से करवा पा रहे थे. लेकिन उस ने भी सोच लिया कि जो भी हो, वह एमबीए जरूर करेगी. इसलिए कालेज की पढ़ाई पूरी होते ही उस ने एक कंपनी में नौकरी कर ली. वहीं रितेश मास्टर करने 2 साल के लिए यूरोप चला गया. लेकिन इस बीच दोनों में फोन पर और वीडियोकौलिंग के जरिए बातें होती रहती थीं. महसूस किया उन्होंने कि वे एकदूसरे को बहुत ज्यादा मिस कर रहे हैं.  नहीं बताया कभी रितेश ने लेकिन आंखों के रास्ते कब और कैसे रागिनी उस के दिल में उतरती चली गई, उसे पता ही न चला. रागिनी को एक दिन भी न देख वह व्याकुल हो उठता था. कालेज में रागिनी का किसी से ज्यादा बातें न करना, अपने काम से काम रखने वाली आदतों से उसे लगता कि अगर उस ने अपने दिल की बात उस से कह दिया, तो कहीं उस की दोस्ती भी खतरे में न पड़ जाए, इसलिए अपने प्यार को एकतरफा प्यार समझ कर वह कुछ नहीं बोला पाया था. मगर उसे नहीं पता था कि रागिनी भी उस की ओर आकर्षित होने लगी थी.  रितेश जब पढ़ाई में व्यस्त रहता या अपने किसी दोस्त से बातें करता होता, तो रागिनी उसे छिपछिछुप कर देखती रहती थी.  सच तो यह था कि दोनों को एकदूसरे के प्रति गहन आकर्षण था. लेकिन बोलने में दोनों हिचक रहे थे.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है ‘ में आएगा धमाकेदार ट्विस्ट, इस शख्स की वजह से कार्तिक से दूर होगी सीरत

सालों से टीआरपी लिस्ट में छाया हुआ है सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में एक बार फिर से ट्विस्ट आने वाला है. इस सीरियल में नायरा कि हमशक्ल सीरित से कायरव को बहुत ज्यादा लगाव है.

वहीं सीरत का सपना है कि वह प्रॉफेशनल बॉक्सर बने , जिसके लिए वह आए दिन प्रैक्टिस करती हुई नजर आती है. अब धीरे- धीरे कार्तिक और सीरत की दोस्ती अच्छी हो गई है. वह दोनों एक-दूसरे को समझने लगे हैं. इस लेटेस्ट ट्रैक की वजह से इस सीरियल ने टीआरपी लिस्ट में एंट्री मार ली है. जिसके बाद से लोग इस सीरियल को पहले से ज्यादा देखने लगे हैं.

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इस सीरियल के मेकर्स इस सीरियल में ट्विस्ट लाने के लिए एक धासू एंट्री करवाने वाले हैं. अब इस लव इंस्टेंट की वजह से कार्तिक और सीरत के बीच गलतफहमियां पैदा होगी और दोनों एक दूसरे पर शक करना शुरू कर देंगे.

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अब फैंस इस सीरियल में चाहते हैंं कि कार्तिक और सीरित फिर से एक हो जाए, जिसे दिखाने के लिए मेकर्स भी इस सीरियल में जबरदस्त बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं. इस सीरियल के मेकर्स ने इस सीरियल को टॉप 5 में ला दिए हैं. उनका कहना है कि इस दायरे को मेंटेन करके रखना है. हालांकि देखते हैं कि कब तक यह बना रहता है.

बता दें कि कार्तिक यानी मोहसिन खान इस सीरियल के आखिरी एपिसोड की शूटिग करने के बाद वह इस सीरियल को अलविदा कह चुके हैं. हालांकि उन्होंने इस सीरियल को छोड़ने से पहले अपनी सारी शूटिंग पूरी की थी.

कुछ वक्त पहले खबर आ रही थी, एकता कपूर और मोहसिन खान के बीचमें अनबन की वजह से उन्होंने इस सीरियल को अलविदा कहा था.

संजय लीला भंसाली भी हुए कोरोना पॉजिटिव तो आलिया भट्ट हुई आइसोलेट

कोरोना वायरस ने एक बार फिर से इंडस्ट्री में हलचल मचा दिया है. गंगूबाई काठियावाड़ी के डायरेक्ट संजय लीला भंसाली का कोरोना  रिपोर्ट पॉजिटिव आया है. इस खबर के आने के बाद संजय लीला भंसाली के अपकमिंग फिल्म की एक्ट्रेस आलिया भट्ट ने खुद को कमरे में बंद कर लिया है.

आलिया भट्ट कुछ वक्त पहले संजय लीला भंसाली के साथ फिल्म के आखिरी पार्ट्स की शूटिंग कर रही थी. जैसे ही संजय लीला भंसाली की रिपोर्ट पॉजिटिव आई आलिया भट्ट ने खुद का कोरोना टेस्ट करवाया जिसके बाद आलिया का रिपोर्ट निगेटिव आया, बावजूद इसके आलिया भट्ट ने खुद को आइसोलेट  कर लिया है.

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फिल्म   ‘गंगूबाई काठियावाड़ी ‘ की लीड एक्ट्रेस होने के साथ- साथ आलिया भट्ट रणबीर कपूर की गर्लफ्रेंड भी है. ये दोनों बीते दिनों कई दिनों तक एक साथ रहें हैं. जिसके बाद अब जल्द ही दोनों शादी का पेलान भी कर रहे हैं. बता दें कि रणबीर औऱ आलिया पिछले साल ही शादी के बंधन में बंध चुके होते लेकिन रणबीर कपूर के पापा ऋषि कपूर के देहांत के बाद से इनकी शादी के समय को टाल दिया गया.

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बता दें कि संजय लीला भंसाली की फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी लंबे समय से अटकी पड़ी है, इस फिल्म कि शूटिंग कोरोना आने से पहले शुरू हो गई थी, लेकिन कोरोना की वजह से अभी तक अटकी पड़ी हुई थी, कोरोना काल में इस फिल्म के शूटिंग मे बहुत सी दिक्कते आई थी. हालांकि फिल्म का टीजर रिलीज हो चुका है. खबर है कि यह फिल्म इस साल जुलाई में रिलीज हो जाएगी.

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आलिया भट्ट के फैंस उन्हें गंगूबाई के अवतार में देखने के लिए काफी ज्यादा उत्साहित नजर आ रहे हैं, आलिया भट्ट हमेशा से सॉफ्ट फिल्म करती नजर आई हैं लेकिन इस बार वह पहली बार संजय लीला भंसानी की फिल्म में अलग अवतार में नजर आएंगी.

जंतरमंतर : सिराज में अचानक बदलाव देखकर लोगों को क्या लगा -भाग 1

“अरे, यह अपना सिराज ही है न?” मैं ने आबिद से पूछा. बरसों बाद मैं ने सिराज को देखा वह भी मुंबई में, इसलिए एकदम से पहचान नहीं पाया.

“हां यार, लग तो वही रहा है. लेकिन इस के तो रंगढंग ही बदले हुए हैं,” आबिद ने भी गौर से देखते हुए कहा. लंबी सी गाड़ी से उतरते हुए सिराज के बदन पर महंगे कपड़े, ख़ूबसूरत घड़ी, और हाथों में एकदम लेटेस्ट मौडल का आईफ़ोन देख कर हमें यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि यह वही अपना सिराज है.

6ठी क्लास से हाईस्कूल तक सिराज हमारे साथ ही पढ़ा करता था. पढ़नेलिखने में उस का ज़रा भी मन न लगता था. बड़ी मुश्किल से किसी तरह पास होतेहोते वह हाईस्कूल तक पहुंच गया लेकिन बोर्ड की परीक्षा में वह 5 बार भी पास न हो पाया. उस के अब्बा हर बार उस की तबीयत से धुनाई करते, लेकिन वह 10वीं पास नहीं कर पाया. यहां तक कि उस का छोटा भाई इंटर पास कर के नगरपालिका में काम करने लगा. लेकिन सिराज के भेजे में पढ़ाई को न घुसना था, न घुसी वह.

3 साल फ़ेल होने के बाद सिराज के अब्बा ने उस को एक सुनार की दुकान पर काम सीखने के लिए लगवा दिया था. हमारे छोटे शहर में तो वैसे ही कोई ख़ास कामधंधा नहीं था, सिराज, बस, टाइम पास करने के लिए ही वहां जाता. वैसे दुकान पर उस का दिल लगता न था. उस को एक ही शौक था, फ़िल्में देखने का. चाहे कैसी भी फिल्म लगी हो, सिराज हमेशा फर्स्ट डे फर्स्ट शो में हाज़िर होता. अमिताभ बच्चन और मिथुन चक्रवर्ती का तो वह जबरा फैन था. वैसे उस के

दिल में भी कहीं न कहीं फिल्मों में काम करने की हसरत थी. तब तक मैं और आबिद आगे की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली चले गए थे. छुट्टियों में कभी हम घर जाते, तो अकसर सिराज से मुलाक़ात हो जाती. वक़्त के साथसाथ फिल्मों में काम करने का उस का इरादा और भी मज़बूत होता जा रहा था. आबिद तो उस से मज़े लेने के लिए उस को चने के झाड़ पर चढ़ा देता. ‘सिराज भाई, क्या मस्त शर्ट पहनी है, एकदम हीरो लग रहे हो.’ आबिद उस की झूटीमूठी तारीफ कर देता, तो सिराज फ़ौरन हमें कोल्डड्रिंक पिलाने ले जाता.

फिर एक दिन अचानक सिराज भाई घर से भाग गए. उन के दोस्तों का कहना था, वे कह गए हैं कि अब वापस आऊंगा तो कुछ बन कर ही. घर में उन की ख़ास इज़्ज़त और ज़रूरत तो वैसे भी नहीं थी, इसलिए उन के घर वालों ने ज़्यादा भागदौड़ नहीं की और सबकुछ वक़्त पर छोड़ दिया.

सुना है भाग कर वे सीधे मुंबई पहुंचे. किसी फिल्म में उन को हीरो बनते हुए तो हम ने नहीं देखा, पर सुना है काफी ठोकरें खाने के बाद उन्होंने कभी टैक्सी चलाई तो कभी किसी दुकान पर नौकरी की. फिर हम भी अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए और एक तरह से सिराज को भूल ही गए. आज यों अचानक उस को इतने ठाटबाट के साथ देख कर हम दोनों ही काफी हैरान थे.

एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में आबिद मुंबई जा रहा था और मेरी भी 2 हफ़्तों की छुट्टियां पड़ी थीं तो मैं भी उस के साथ मुंबई घूमने चला आया था.

हम ने सिराज को आवाज़ दी, तो थोड़ी मुश्किल के बाद उस ने हमें पहचान लिया और खूब गर्मजोशी से हम से मिला. फिर ज़िद कर के हमें अपने फ्लैट पर ले गया. बड़ा शानदार फ्लैट बना रखा था सिराज ने. सिराज के बीवी, बच्चे अपनी नानी के घर मेरठ गए हुए थे. सिराज ने हमें अपने घर पर ही रोक लिया.

“अरे भाई सिराज, सच में फिल्मों में हीरो बन गए हो क्या? बड़ा शानदार घर बना रखा है,” आबिद ने आंखें गोल करते हुए कहा. जवाब में सिराज बस हंस दिया.

“तुम तो यार बड़े आदमी बन गए हो. हमें भी बताओ क्या बिज़नैस कर रहे हो,” मैं ने हंसते हुए सिराज से कहा. “मैं डर का बिज़नैस कर रहा हूं,” सिराज ने धीमी आवाज़ में अजीब सी मुसकराहट से कहा. तो मेरे अंदर एक कंपकंपी सी दौड़ गई.“ओ भाई, कहीं अंडरवर्ल्ड में तो नहीं चले गए,” आबिद ने घबराहट को छिपाते हुए बनावटी हंसी के साथ पूछा. “अरे नहीं, ऐसा कुछ नहीं है,” सिराज ने हंसते हुए कहा तो हमारी जान में जान आई. “असल में मैं तांत्रिक बन गया हूं, बाबा सिराज बंगाली,” सिराज ने नाटकीय अंदाज़ में बोलते हुए बताया.

“मज़ाक अच्छा कर लेते हो,” मैं ने ज़रा सहज होते हुए कहा. मुझे पूरा विश्वास था कि वह मज़ाक कर रहा है.

Crime Story: दिलफरेब हसरत

लेखक-प्रफुल्लचंद्र सिंह

सौजन्या-सत्यकथा

 28 जनवरी, 2021 को फरीदाबाद के डबुआ कालोनी थाने की पुलिस को सूचना मिली कि गहरे नाले में एक लाश पड़ी है. इस बात की जानकारी मिलते ही वहां के थानाप्रभारी संदीप कुमार अतिरिक्त थानाप्रभारी यासीन खान और कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि नाले की कीचड़ में एक लाश पड़ी थी, जिस से काफी दुर्गंध आ रही थी. लाश पुरानी थी, जिसे देख कर पहचानना काफी मुश्किल था. लगता था हत्यारों ने वह कई दिन पहले नाले में फेंकी होगी.

थानाप्रभारी संदीप कुमार ने पुलिसकर्मियों की मदद से लाश बाहर निकलवाई. क्राइम टीम द्वारा लाश की विभिन्न ऐंगल से फोटो लेने के बाद उस की शिनाख्त के प्रयास किए गए. लेकिन उस की शिनाख्त नहीं हो सकी तो उसे फरीदाबाद के बी.के. अस्पताल में सुरक्षित रखवा दिया गया.

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उसी दिन थानाप्रभारी संदीप कुमार ने अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर के जांच अतिरिक्त थानाप्रभारी यासीन खान को सौंप दी.

इस केस को सुलझाने के लिए डबुआ थाने की एक पुलिस टीम गठित की गई, जिस में थानाप्रभारी संदीप कुमार, एसआई यासीन खान, एएसआई कुलदीप और कांस्टेबल पवन शामिल थे. जांच अपने हाथ में लेने के बाद विवेचनाधारी अतिरिक्त थानाप्रभारी यासीन खान अपने आसपास के इलाके से इस बात का पता लगाने का प्रयास किया कि पिछले कुछ दिनों में शहर का कोई व्यक्ति गायब तो नहीं है.

कई लोगों से पूछताछ करने के बाद उन्हें जानकारी मिली कि दिनेश धवन नाम का एक व्यक्ति सैनिक कालोनी से लापता है. उस का मोबाइल भी इन दिनों स्विच्ड औफ चल रहा है. कहीं मरने वाला वही तो नहीं, ऐसा विचार करते हुए अतिरिक्त थानाप्रभारी यासीन खान सैनिक कालोनी स्थित दिनेश धवन के घर पहुंचे.

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वहां उस की पत्नी अनु मिली. अनु के साथ एक व्यक्ति और था. उस का नाम पूछने पर उस ने अपना नाम हरजीत बताया. उन्होंने अनु को नाले से मिली लाश की फोटो दिखाई तो अनु और उस के साथ बैठे हरजीत ने उसे देखने के बाद लाश पहचानने से इनकार कर दी.

सैनिक कालोनी से वापस लौट कर अतिरिक्त थानाप्रभारी यासीन खान ने थानाप्रभारी संदीप कुमार को मृतक की पत्नी अनु से हुई पूछताछ के बारे में जानकारी दी तो थानाप्रभारी ने मृतक की फोटो को सोशल मीडिया के अतिरिक्त उस के पोस्टर बनवा कर फरीदाबाद के प्रमुख चौकचौराहों पर चस्पा करने की सलाह दी.

यासीन खान ने ऐसा ही किया. ऐसा करने पर अगले दिन यानी 29 जनवरी को दीपा नाम की औरत डबुआ थाने में आई और उस ने लाश को देखने की इच्छा जाहिर की. तब पुलिस ने उसे फरीदाबाद के बी.के. अस्पताल में रखी लाश दिखाई.

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लाश काफी बदतर अवस्था में थी, उसे देख कर उस की शिनाख्त करना मुश्किल था लेकिन लाश की दाहिनी कलाई पर एक ब्रेसलेट था, जिसे देख कर दीपा ने बताया कि उस ने यह ब्रेसलेट रक्षाबंधन पर अपने मुंहबोले भाई दिनेश धवन को पहनाया था. इस ब्रेसलेट पर धवन गुदा हुआ था.

दिनेश धवन के कुछ और दोस्तों को बुला कर जब यह लाश दिखाई गई तो उन लोगों ने भी बे्रसलेट देखने के बाद उस की शिनाख्त दिनेश धवन के रूप में की.

यह सब जानने के बाद अतिरिक्त थानाप्रभारी यासीन खान को दिनेश धवन की पत्नी अनु पर शक हो गया. क्योंकि वह लाश की फोटो देखने के बाद उसे पहचानने से साफ इनकार कर चुकी थी. जबकि दूसरी तरफ दिनेश धवन की मुंहबोली बहन दीपा और दोस्त अस्पताल में रखी लाश को दिनेश धवन का होने का दावा कर रहे थे.

यासीन खान ने एएसआई कुलदीप को दिनेश धवन के घर भेज कर उस की पत्नी अनु को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. पहली फरवरी, 2021 को अनु थाने में पहुंची. पूछताछ के दौरान उस के पति के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि करीब 20 दिन पहले वह नौकरी करने झारखंड चला गया है जिस से उस की वाट्सऐप पर रोज चैटिंग होती है. लेकिन जब अनु से दिनेश धवन का मोबाइल नंबर ले कर उस की लोकेशन निकाली गई तो मोबाइल की लोकेशन फरीदाबाद में ही मिली.

यह देख कर यासीन खान ने अनु से दोबारा सख्तीपूर्वक पूछताछ की तो वह टूट गई और उस ने अपने प्रेमी नितिन और उस के साथियों के साथ मिल कर अपने पति दिनेश धवन की हत्या की बात स्वीकार कर ली. पूछताछ के दौरान अनु ने अपने बयान में जो कुछ बताया और पुलिस की जांच के दौरान दिनेश की हत्या के पीछे जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है—

35 वर्षीय दिनेश धवन पेशे से प्रौपर्टी डीलर था. वह पत्नी अनु के साथ फरीदाबाद की सैनिक कालोनी में रहता था. घर से कुछ ही दूरी पर उस का औफिस था, जहां बैठ कर वह मकान की खरीदफरोख्त और लोगों को दुकान आदि किराए पर दिलवाने का काम करता था. इस काम में उसे अच्छाखासा कमीशन मिल जाता था, जिस से वह बड़े आराम की जिंदगी गुजार रहा था.

दिनेश ने लगभग 10 साल पहले अनु से प्रेम विवाह किया था. अनु का मायका भी सैनिक कालोनी में ही था, जहां उस के पिता भाई और अन्य रिश्तेदार रहते थे.दिनेश धवन और अनु दोनों एकदूसरे को जीजान से प्यार करते थे. वह अनु के सभी नाजनखरे उठाता तो अनु भी दिनेश के मूड का खयाल रखती थी. वह कभी कोई ऐसा काम नहीं करती, जो दिनेश को नागवार गुजरे.

धीरेधीरे वक्त गुजरता गया. जिंदगी के खुशनुमा लम्हों को गुजरने में पता कहां चलता है. देखते ही देखते कई साल गुजर गए, लेकिन अनु की गोद हरी नहीं हुई. संतान नहीं होने के कारण उन के जीवन में नीरसता घुलने लगी तो अनु को चिंता हुई.

उस ने दिनेश के सामने अपनी चिंता जाहिर की तो उस ने शहर के कई अच्छे डाक्टरों से अपना इलाज करवाया मगर कोई नतीजा नहीं निकला. आखिर में रिश्तेदारों के कहने पर दिनेश धवन और अनु ने बाल आश्रम से एक बच्ची गोद ले ली और उस की परवरिश करने लगे.

दिनेश धवन के औफिस में मिलने के लिए तरहतरह के लोग आते थे. कभीकभार पीनेपिलाने का दौर भी चलता था. वह खुद भी पीने का शौकीन था. पहले तो इतना ही पीता था, जितना पीने के बाद वह अपना होश कायम रख सके. लेकिन बाद में उस के पीने की लिमिट ज्यादा बढ़ गई तो अनु के साथ उस के संबंधों में कड़वाहट आने लगी.

अनु दिनेश को पीने से मना करती तो दिनेश एक कान से उस की बात सुनता दूसरे से बाहर निकाल देता था. वह रोज अनु के सामने नहीं पीने की कसम खा कर घर से औफिस निकलता था, लेकिन जब वह वापस लौटता तो उस के कदम लड़खड़ा रहे होते थे.

पति की पीने की आदत से परेशान अनु अपना दुखड़ा लोगों को सुनाती रहती थी. उस की इस परेशानी का फायदा पड़ोस में रहने वाले हरजीत ने उठाया. उस की नजर अनु के खूबसूरत बदन पर टिकी थी. अनु की दुखती रग पर हाथ रख कर वह धीरेधीरे अनु के दिल के करीब आ गया. अनु को भी लगा एक हरजीत ही उस का दुख समझता है.

वह कोई भी काम उसे कहती तो वह सब से पहले अनु का कहा काम पूरा करता फिर बाद में अपना काम करता था. दिनेश की शराब की लत के कारण हर रात अनु का उस से विवाद हो जाता था.

सुबह उस के औफिस चले जाने के बाद अनु अपना अपना दुखड़ा हरजीत को सुनाती थी.  हरजीत पहले से अनु को पाने की फिराक में था. वह अनु की हां में हां मिला कर उस के जख्मों पर मरहम लगा कर उस के कोमल दिल में अपनी जगह बनाने की कोशिश करता था. कुछ ही महीनों में अनु के दिल में इस का असर हुआ और हरजीत मौका देख कर उस के साथ जिस्मानी संबंध बनाने में कामयाब हो गया.

हरजीत और अनु के इन संबंधों की जानकारी काफी दिनों तक दिनेश धवन को नहीं हुई, मगर जब आसपड़ोस में उस की पत्नी और हरजीत के अवैध संबंधों के बारे में तरहतरह के चर्चे होने लगे तो दिनेश ने अनु से पूछा कि उस के औफिस जाने के बाद हरजीत यहां क्यों आता है.

अनु ने पति के आरोप सिरे से खारिज करते हुए कहा कि हरजीत उम्र में उस से काफी बड़ा है, जिसे वह चाचा कह कर पुकारती है. वह कभीकभार जरूरत पड़ने पर घर का कोई काम उस से करवाती है. जिसे देख कर लोग बेवजह उस से जलते हैं और तुम्हें मेरे खिलाफ भड़काने का काम कर रहे हैं.

लेकिन दिनेश ने अपनी गैरमौजूदगी में हरजीत के घर आने पर रोक लगा दी और उसे अपना काम खुद ही निबटाने के लिए कहा.

पति की बात सुन कर अनु ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए हरजीत को भविष्य में कभी नहीं बुलाने की कसम खाई.

अनु की गलती मानने पर दिनेश ने उसे माफ कर दिया. लेकिन हरजीत और अनु का रिश्ता खत्म नहीं हुआ. पति की नजरों में धूल झोंक कर अनु ने हरजीत से मिलना जारी रखा.

दिनेश घवन के दोस्तों में एक नाम नितिन पंडित का था. दिनेश धवन से उम्र में करीब 10 साल छोटा नितिन बल्लभगढ़ की एक कैमिकल फैक्ट्री में नौकरी करता था. छोटा होने के बावजूद उस की दिनेश के साथ खूब छनती थी. दोनों साथ दारू पीते और लंबीलंबी डींगे हांका करते थे.

दिनेश धवन जब शराब के नशे में टल्ली हो जाता तो नितिन उसे संभाल कर उस के घर सैनिक कालोनी पहुंचा आता था. नितिन दिनेश की पत्नी अनु को भाभी कहता था. भाभीदेवर का रिश्ता होने के कारण दोनों अकसर हंसीमजाक करते रहते थे. नितिन अनु की खूबसूरती की जी भर कर तारीफ करता था.

धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के करीब आ गए और उन के बीच मधुर संबंध कायम हो गए. इस के बाद अनु और नितिन को जब भी मौका मिलता, वे अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.

पिछले साल जब पूरे देश में लौकडाउन शुरू हुआ तो सारी दुनिया जैसे ठहर सी गई. लोगों के कामधंधे बंद हो गए. दिनेश घवन की आमदनी बंद हो गई तो वह परेशान रहने लगा. अनु को ऐसी हालत में पति की मदद करनी चाहिए थी, लेकिन हुआ एकदम उलटा. वह दिनेश को अपने जरूरत की चीजें नहीं देने पर उसे ताना मारने लगी.

एक तो आमदनी बंद दूसरे अनु के व्यवहार ने उसे अंदर से तोड़ दिया. परेशान हो कर वह हर वक्त नशा करने लगा. इस प्रकार अनु और दिनेश के बीच की दूरी बढ़ती चली गई.

दूसरी तरफ पति के हमेशा घर में रहने से उस के और नितिन के प्यार की कहानी में ब्रेक लग गया. वे दोनों मोबाइल पर बातें कर अपने प्यार का इजहार करते, लेकिन अकेले में मिल कर अपने दिल की प्यास नहीं बुझा पाते थे.

घटना से करीब 2 महीने पहले अनु धवन ने नितिन के साथ मिल कर पति को हमेशा के लिए रास्ते से हटा देने की योजना तैयार की. इस काम में मदद के लिए उस का पुराना प्रेमी हरजीत भी राजी हो गया. नितिन ने अपने दोस्त विनीत और विष्णु को इस योजना में शामिल कर लिया.

11 जनवरी, 2021 की शाम को नितिन, विष्णु और विनीत दिनेश के औफिस से घर लौटने के पहले ही अनु के घर में आ कर छिप गए. रोज की तरह उस दिन भी दिनेश धवन नशे में धुत हो कर घर लौटा था. वह खाना खा कर सो गया. रात के लगभग एक बजे अनु ने अपने प्रेमी नितिन से कहा कि दिनेश नशे में बेसुध है उस का जल्दी से काम तमाम कर दो.

अनु का इशारा पा कर नितिन, विनीत और विष्णु दबे पांव गहरी नींद में सो रहे दिनेश धवन के पास पहुंचे और गला दबा कर उसे मौत की नींद सुला दिया. कहीं वह जिंदा न रह जाए, इसलिए उन्होंने उस के सिर परभी डंडे मारे.

सुबह लगभग 4 बजे हरजीत अनु के घर पहुंचा तो नितिन ने उस से कहा कि वह अपना काम कर चुका है. वह दिनेश की लाश को अच्छी तरह पैक कर घर में ही छिपा दे. मौका मिलते ही वे लाश को कहीं ठिकाने लगा देंगे.

इतना कह कर नितिन अपने दोस्तों के साथ अनु के घर से निकल गया. हरजीत ने दिनेश धवन की लाश बैडशीट और प्लास्टिक में पैक कर घर के बाथरूम में छिपा दी.

4-5 दिन बाद जब लाश से बदबू आने लगी तब अनु ने घबरा कर नितिन तथा हरजीत से उसे जल्दी ठिकाने लगाने के लिए कहा.

तब 18 जनवरी, 2021 को नितिन, हरजीत, विष्णु और दीपक अनु के घर पहुंचे और लाश बैड के अंदर छिपा दी. फिर बैड सहित लाश को एक रेहड़ी के ऊपर डाल कर गहरे नाले के पास ले गए और ठिकाने लगा दी. जब रास्ते में लोगों ने बैड के बारे में पूछा तो हरजीत ने बताया कि वह बैड को रिपेयर कराने के लिए ले जा रहा है. लाश उन्होंने नाले में डाल दी.

लाश ठिकाने लगाने के बाद हरजीत बैड को वापस अनु के घर ले आया, जिसे अनु ने घर की छत पर रखवा दिया. नितिन ने विष्णु को दिनेश धवन की हत्या करने के बदले 41 हजार रुपए देने का वादा किया था, जो अनु ने अपने अकाउंट से विष्णु को ट्रांसफर कर दिए. दिनेश धवन की हत्या करने के बाद अनु और नितिन अपनी आने वाली नई जिंदगी गुजारने के हसीन सपने देख रहे थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर उन के सपनों को चकनाचूर कर दिया.

अनु को पहली फरवरी, 2021 को गिरफ्तार  करने के बाद अगले दिन पुलिस ने पहले अनु के प्रेमी नितिन तथा उस के दोस्तों विनीत, विष्णु, हरजीत और दीपक को भी गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने सभी आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

जंतरमंतर : सिराज में अचानक बदलाव देखकर लोगों को क्या लगा -भाग 3

निती के उत्साह का गुब्बारा फुस्स हो गया. उस ने सोच लिया था कि अब वह अगले संडे भी पिकनिक पर नहीं जाएगी. उसे जाना ही नहीं है इन लोगों के साथ…

एक दिन पापा ने पुकारा, ‘निती…’ निती अपने कमरे से आ कर बोली, ‘पापा, आप ने मुझे बुलाया?’‘तुम ने बताया नहीं, तुम नैशनल बैडमिंटन टीम में खेलने के लिए चुनी गई हो.’

‘मैं भूल गई होऊंगी,’ निती ने लापरवाही से कहा. तभी निशा भी आ गई. अजेय ने कहा, ‘देखो, हमारी निती नैशनल लैवल की टीम में चुनी गई है और पेपर में इस का नाम निकला है.’

निशा ने खुश हो कर कहा, ‘अरे वाह, हमारी बेटी तो लाखों में एक है, क्या पढ़ाई, क्या स्पोर्ट्स और क्या आर्ट.’ अजेय ने गर्व से कहा, ‘आखिर बेटी किस की है, बोलो बेटी. इसी बात पर  क्या ईनाम  लोगी? तुम जो मांगो मिलेगा.’

निशा ने भी हंसते हुए कहा, ‘बेटी पापा बड़ी मुश्किल से देते हैं, मांग लो जो लेना हो तुम को.’ पर निती ने निर्लिप्त भाव से कहा, ‘आप ने पहले ही सबकुछ दे दिया है और मैं क्या मांगूं.’

निशा ने कहा, ‘हमारी बेटी तो अभी से संन्यासिन बन गई है. न तो इसे पहनने का शौक है, न सजने का. मैं इस के लिए देशविदेश से कितनी ड्रैसेस लाती हूं पर सब अलमारी में वैसे ही पड़ी रहती हैं.’

निती अपने कमरे में चली गई. वह मम्मा को बताना चाहती थी कि उसे ड्रैसेस नहीं चाहिए, उसे मम्मा से बात करने का मन होता है, पापा के साथ कहीं लौंगड्राइव पर जाने का मन होता है. पर वह जानती है वे दोनों कितने व्यस्त हैं. उन के पास समय नहीं है, इसीलिए वह कुछ नहीं कहती. वह तो यह भी नहीं बताती कि  मानस उसे रोज तंग करता है. उसे पता है, मम्मा उस की किसी बात को गंभीरता से लेती ही नहीं. एक बार उस ने उन्हें बताना चाहा था, ‘मम्मा, मुझे मानस बिलकुल अच्छा नहीं लगता.’

‘वह मानस… पर वह तो तेरे साथ बचपन से पढ़ा है.’‘हां, लेकिन बचपन की बात और है. अब वह जब देखो कौफी पीने चलने को कहता है.’ ‘अरे, तो क्या हुआ, तुम्हारा पुराना फ्रैंड है, चली जाओ उस के साथ.’

‘पर मेरा मन नहीं करता,’ निती ने कहा. ‘इस बात पर इतनी परेशान क्यों हो, मना कर दो. वैसे मुझे लगता है कि तुम कुछ ज्यादा ही रिजर्व होती जा रही हो. अरे, अपने दोस्तों से मिलोजुलो, घूमोफिरो,’ कहतेकहते निशा अपने लैपटौप पर काम में व्यस्त हो गई.

एक दिन स्कूल के बाद मानस ने उसे रोक कर कहा, ‘आज तो तुम को मेरे साथ कौफी़ पीने चलना ही होगा.’ निती ने कहा, ‘कोई जबरदस्ती है, मुझे तुम्हारे साथ कौफी पीने नहीं जाना है.’

मानस ने कहा, ‘तुम्हें चलना तो पड़ेगा, मेरे फ्रैंड्स ने मुझे चैलेंज किया है कि मैं तुम्हारे साथ कौफी पीने जा कर दिखाऊं.’‘यह तुम्हारी प्रौब्लम है, मैं क्यों जाऊं?’ कहते हुए वह आगे बढ़ने लगी तो मानस ने उस का हाथ पकड़ लिया. निती को गुस्सा आ गया, उस ने उसे एक झापड़ मार दिया. उस समय स्कूल के और छात्रछात्राएं भी थे. उन के सामने झापड़ खा कर मानस बौखला गया. उस ने धमकी दी, ‘मैं तुम को छोडूंगा नहीं.’

निती आगे बढ़ गई. दूसरे दिन क्लास में जब संजय सर मैथ्स पढ़ा कर बाहर निकले तो क्लास के सब छात्रछात्राएं झुंड बना कर मोबाइल पर वीडियो देखने लगे. निती ने आ कर कहा, ‘तुम लोग क्या देख रहे हो, हम को भी दिखाओ.’

इस पर कुछ छात्र मुंह दबा कर हंसने लगे, कुछ वहां से हट गए. निती को कुछ समझ न आया. उस ने प्रिया के हाथ से मोबाइल ले कर देखा. उस पर उस ने जो देखा, उसे देख कर स्तब्ध रह गई. उसी की गंदीगंदी वीडियो थीं.  वह समझ गई कि यह मानस ने ही उस के झापड़ का बदला लेने के लिए उस का झूठा, अश्लील वीडियो बना कर वौयरल किया है. पर वह तो वहां था ही नही, शायद आज स्कूल ही नहीं आया था. निती के मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया.

वह किसी तरह घर आई, तो बदहवास सी अपने कमरे में गई. उस ने आवेश में अपना बस्ता उठा कर फेंक दिया. उस की दृष्टि के सामने अपना वह अश्लील वीडियो तैर रहा था. वह लज्जा से पानपानी हुई जा रही थी. अब वह कैसे किसी से आंख मिलाएगी. सब उस के बारे में क्या सोचेंगे. उस के कहने से कोई मानेगा क्या कि यह वीडियो झूठा है. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे. तभी उसे  चाकू रखा दिख गया. उस ने उठा लिया अपनी हाथ की नस काटने के लिए. वह नहीं जी सकती इतना अपमान ले कर. पर इस से पूर्व कि वह अपनी नस काटती, पता नहीं कैसे मम्मा आ गईं. उस की मनोदशा से अनभिज्ञ  उन्होंने कहा, ‘अरे, यह कमरे का क्या हाल बना रखा है तुम ने? इतनी बड़ी हो गई हो पर कभी सामान ठीक से नहीं रखती.’

सुनते ही निती को पता नहीं क्या हुआ, उस ने अपनी नस काटने के बजाय मम्मा पर उसी चाकू से लगातार वार पर वार कर दिए. निशा इस हमले के लिए तैयार न थी, सो, संभल भी न पाई और गिर पड़ी. निती पागलों की तरह मम्मा पर वार करती रही और चिल्लाती रही, ‘सब तुम्हारी वजह से हुआ है, सब तुम्हारी वजह से हुआ.’

जब उसे होश आया तब तक मम्मा इस दुनिया को छोड़ कर जा चुकी थीं. अब उसे सुध आई कि उस ने क्या कर डाला. निती मम्मा से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ी.

उपन्यास की अंतिम पंक्तियां पढ़तेपढ़ते कविता को  अनायास ही अपनी वर्षों पुरानी छात्रा नितारा की याद आ गई. उस की मां की भी तो हत्या हुई थी. कुछ दबे शब्दों में यह अफवाह उड़ी थी कि नितारा ने ही अपनी मम्मा को मार दिया. पर इस पर भला कौन विश्वास करता. नितारा जैसी शांत लड़की ऐसा क्यों करती. हां, अपनी मम्मा की मौत के बाद नितारा ने वह स्कूल अवश्य छोड़ दिया था. ज्ञात हुआ था कि वह कहीं बाहर पढ़ने चली गई थी.

कविता की प्रिय छात्रा थी नितारा. मेधावी पर हमेशा चुप, अपने में गुमसुम रहने वाली नितारा के प्रति न जाने क्यों कविता को विशेष स्नेह उमड़ता था. उसे नितारा को देख कर सदा यह अनुभव होता था कि इस के अंदर बहुतकुछ है जो यह कहना चाहती है. इसीलिए वह उस पर विशेष स्नेह रखती थी और उस से स्कूल के बाद अकसर ही बात कर लिया करती थी. पर समय की रेत में नितारा की स्मृति कहीं दब गई थी जो फिर से उभर आई.

इस उपन्यास की नायिका निती की बहुत बातें नितारा की ही कहानी लग रही थीं. क्या पता यह कहानी उसी की हो? नहींनहीं, यह तो मात्र संयोग है. सोच कर कविता ने अपनी सोच को पिटारे में बंद कर दिया. पर उस की सोच ढीठ बच्चे की तरह मना करने पर भी बारबार पिटारे से बाहर झांकने लगती. कविता चाह कर भी इस उपन्यास की नायिका निती और नितारा के जीवन की समानता को मात्र संयोग मान कर हवा में उड़ा नहीं पा रही थी. इस उपन्यास ने कविता की नींद उड़ा दी.  आखिरकार उस ने निश्चय कर लिया नंदना से संपर्क करने का. उस ने पुस्तक उलटपलट का देखा तो उसे नंदना का मोबाइल नंबर मिल गया. उस ने कौल किया तो उधर से आवाज आई, “जी, मैं नंदना बोल रही हूं.”

कविता ने कहा, ‘‘तुम नितारा हो न?’’‘‘आप कविता मैम हैं न?’’‘‘मतलब, तुम नितारा ही हो. उपन्यास तुम्हारी अपनी कहानी है न?’’‘‘जी मैम.’’‘‘तो तुम ने ही मुझे भेजा था.’’‘‘जी मैम.’’‘‘तो क्या तुम ने ही मम्मा को…?’’‘‘जी मैम.’’‘‘तो अब तुम कहां हो और मुझे यह उपन्यास क्यों भेजा?’’

कुछ देर चुप रह कर नंदना बोली, “मैम, मैं अपने अतीत से पीछा नहीं छुड़ा पा रही हूं.”‘‘उस दिन मैं ने न जाने किस जुनून में मम्मा पर वार कर दिया था. वह तो मम्मा के पीछेपीछे ही गाड़ी पार्क कर के पापा भी आ गए. उन्होंने जब यह देखा तो उन्होंने मुझे संभाला और साक्ष्य मिटा दिए. कुछ पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव, कुछ मेरी कम आयु और पापा के सक्षम वकीलों के कारण केस का निर्णय मेरे पक्ष में हुआ. मुझे संशय के आधार पर छोड़ दिया गया. मैम, पापा ने मुझे अमेरिका भेज दिया. अब मेरा नाम नंदना है और यहां कोई मेरा अतीत नहीं जानता.’’

‘‘तो तुम उस अतीत को फिर से क्यों जीवित कर रही हो?’’‘‘ मैम, मेरे मन में वह अतीत मरा ही कहां, मैं आज तक यह बोझ ले कर जी रही हूं. मैं एक क्षण भी नहीं भूल पाती कि मैं अपराधिन हूं.’’

‘‘मैम, एक आप ही हैं जो मुझे समझती थीं. आप उस समय एक माह की छुट्टी पर न होतीं तो मैं आप को अपनी समस्या बताती. मुझे विश्वास है, आप कोई न कोई राह निकाल लेतीं और वह सब न होता.’’

‘‘पर, अब तुम मुझ से क्या चाहती हो?’’‘‘मैं उस अतीत से छुटकारा चाहती हूं, पश्चात्ताप करना चाहती हूं. मैं ने उपन्यास लिख कर अपना अपराध स्वीकारा कि शायद अब मुझे चैन मिले, पर फिर भी नहीं मिला. मुझे आज भी विश्वास है कि आप ही मुझे राह दिखा सकती हैं.’’

कविता को नितारा पर दया आई, उस ने कहा, ‘‘दुनिया में बहुत नितारा हैं, उन्हें ढूंढो और जो तुम ने नहीं पाया, वह उन को दो. नितारा को तो जीतेजी मरना पड़ा  पर अब किसी और नितारा को मर कर नंदना का जन्म न लेना पड़े.’’

आज नंदना की कौल के बाद कविता को विश्वास हो गया कि अब वह चैन की नींद सोती है.

 

जंतरमंतर

‘मुझे नहीं सोना है.’ ‘निती, डोन्ट बी बैड गर्ल. जाओ, सो जाओ,’ कहते हुए मम्मा उसे गोद में उठा कर बिस्तर पर सुला आईं.

यह तो रोज की ही बात हो गई थी. उसे कितनी बातें मम्मापापा को बतानी होतीं पर उन के पास समय ही न होता. धीरेधीरे निती ने मम्मापापा से कुछ कहना छोड़ दिया. उस ने अपनी एक गुड़िया को अपनी दोस्त बना लिया. अब उसे जो भी बात बतानी होती, अपनी गुड़िया से करती. उस ने गुड़िया का नाम चिंकी रखा था. वह स्कूल से आ कर रोज चिंकी को स्कूल की सारी बातें बताती. कभी कहती, ‘पता है चिंकी, मेरे क्लास में जो तनुज पढ़ता है, बहुत गंदा है. जब मैं खेलती हूं न, तो मुझे वह धक्का दे देता है. मेरी पैंसिल भी चुरा लेता है. तुम उस से कभी बात मत करना.’

फिर चिंकी का सिर स्वयं ही हिलाती, मानो चिंकी ने कहा हो नहीं. कभी कहती, ‘चिंकी, तुम मेरी बैस्ट फ्रैंड हो. स्कूल में मायरा भी मेरी फ्रैंड है पर वह कभी मेरे साथ खेलती है तो कभी मुझे छोड़ कर सामी के साथ खेलने लगती है. पर तुम तो केवल मेरे साथ रहती हो, मेरी सारी बातें सुनती हो. आय लव यू.’ और निती उसे अपने वक्ष से लगा लेती.

वह रात को सोती तो चिंकी के साथ, अपना होमवर्क करती तो चिंकी को पास बैठा कर. रात में उस की नींद खुलती तो सब से पहले उसे टटोल कर अपने हृदय से चिपका लेती.

एक दिन निती स्कूल से लौटी तो अपने कमरे में नित्य की तरह वह चिंकी को लेने गई. पर उसे चिंकी मिली ही नहीं. उस ने बहुत ढूंढा, फिर दौड़ कर रानी आंटी के पास गई, ‘रानी आंटी, मेरी चिंकी नहीं मिल रही, क्या आप ने उसे देखा है?’

‘नहीं बेबी, मैं तो तुम्हारे कमरे में गई ही नहीं.’ चिंकी ने मम्मा को मोबाइल पर कौल किया, ‘मम्मा, मेरी चिंकी कहीं खो गई है.’ मम्मा ने कहा, ‘बेटी, अभी मैं मीटिंग में हूं. शाम को आ कर बात करेंगे.’

निती के लिए पूरा दिन व्यतीत करना दूभर हो गया. शाम को मम्मा के आते ही वह  दौड़ कर गई और आंखों में आंसू भर कर बोली, ‘मम्मा, मेरी चिंकी पता नहीं कहां चली गई.’

मम्मा ने उसे एक सुंदर सी नई गुड़िया देते हुए कहा, ‘अरे, देखो मैं तुम्हारे लिए उस से भी सुंदर गुड़िया ले आई हूं.’ ’ निती ने उस गुड़िया को उठा कर दूर फेंक दिया और मचल कर बोली, ‘मुझे मेरी चिंकी चाहिए, यह नहीं चाहिए.’

मम्मा ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा, ‘बेटी, वह तुम्हारी गुड़िया बहुत पुरानी और गंदी हो गई थी. तुम इसी का नाम चिंकी रख लो. देखो, इस की तो नीली आंखें हैं, इस की फ्रौक भी कितनी सुंदर है.’

 

पर निती ने उसे हाथ भी नहीं लगाया. वह चिंकी की ही रट लगाए रही. उस दिन निती रोतेरोते ही सो गई. अजेय ने निशा से कहा, ‘तुम को निती की गुड़िया फेंकने से पहले उस से पूछ लेना चाहिए था.’

 

निशा ने कहा, ‘वह इतनी गंदी और पुरानी हो गई थी, इसीलिए फेंक दी. मैं ने सोचा था कि निती नई व इतनी सुंदर गुड़िया देख कर खुश हो जाएगी. मुझे क्या पता था कि वह इतनी नाराज हो जाएगी. वैसे भी आजकल कुछ ज्यादा ही जिद्दी होती जा रही है.’

 

निशा और अजेय के लिए चिंकी भले ही एक निर्जीव गुड़िया थी पर निती की के लिए उस की सब से आत्मीय साथी खो गई थी. वह उसे भूल नहीं पा रही थी. धीरेधीरे उस ने चिंकी के वापस आने की आस छोड़ दी.

जैसेजैसे वह बड़ी हो रही थी, घर पर अपने कमरे में ही रहने लगी थी. एक दिन निती एकांत में बैठी कुछ बड़बड़ा रही थी. निशा ने देखा तो उस से पूछा, ‘यह अकेले में क्या बड़बड़ा रही थी निती?’

निती मम्मा को देख कर चुप हो गई.निशा ने अजेय से कहा, ‘निती दिनप्रतिदिन अंतर्मुखी होती जा रही है. आज मैं ने देखा अपने कमरे में बैठी पता नहीं क्या बड़बड़ा रही थी.’अजेय ने कहा, ‘तुम उस को थोड़ा समय दिया करो. मुझे तो लगता है कि उसे अकेलापन लगता है.’

‘मतलब, तुम्हारे हिसाब से मैं उस का ध्यान नहीं रखती.’अजेय ने कहा, ‘मेरा मतलब यह नहीं है. पर वह बड़ी हो रही है, हम को ध्यान रखना चाहिए.’

‘मैं उस की जरूरत का सारा सामान तो उस के कहने से पहले ही उस के लिए ला देती हूं. मुझे विश्वास है कि उस के पास जितने कपड़े, मोबाइल, घड़ी वगैरह हैं, उस की किसी भी दोस्त के पास नहीं हैं.’

‘मैं तुम्हारी समस्या समझता हूं. मुझे पता है निशा, तुम कितनी बिजी रहती हो. आखिर हम दोनों जो भी कर रहे हैं निती के लिए ही तो कर रहे हैं न? पर वह अभी बच्ची है, समझती नहीं. जब बड़ी होगी तब समझेगी कि हम ने उस के लिए क्या किया.’

निशा ने कहा, ‘चलो, आज हम तीनों कहीं घूमने चलते हैं, निती का मूड बदल जाएगा.’ अजेय ने निती को बुला कर कहा, ‘ निती बेटी, चलो आज हम लोग पिकनिक पर चलते हैं.’ निती ने प्रफुल्लित हो कर कहा, ‘सच पापा, आप और मम्मा दोनों लोग मेरे साथ चलेंगे, वाऊ, मजा आएगा.’

निती तुरंत तैयार हो कर, खेलने के लिए रैकेट शटल कौक ले कर अपने कमरे से बाहर आई. उस ने देखा, मम्मा साड़ी पहन कर तैयार हैं. उस ने कहा, ‘मम्मा, आप पिकनिक पर साड़ी पहन कर चलेंगी? फिर तो आप खेल चुकीं बैडमिंटन मेरे साथ.’

निशा ने कहा, ‘नो माई बेबी, मेरे औफिस से फोन आ गया, मुझे अभी जाना होगा. हम लोग अगले संडे को चलेंगे,’

 

संपादकीय

रात के 2 बजे पार्टी से लौटने का हक हरेक को है, (फिलहाल अभी तक जब तक इसे देशद्रोह न मान लिया जाए) पर यह न भूलें कि इस संस्कारी देश में सतर्क पर बिखरे गुंडों की कमी नहीं है. रात को लड़की के अकेले या सिर्फ एक पुरुष को, चाहे पिता हो या पति, देख कर हैरेस करना आम बात है. अब गुंडोंमवालियों के पास अपनी नई गाड़ियां भी हैं क्योंकि ज्यादातर लोग सत्तारूढ़ पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता हैं और पुलिस वालों को धमकाना आसान है.

दिल्ली की एक टीवी एक्ट्रेस रात 2 बजे सड़क पर बुरी तरह भयभीत हुए जब एक कार में सवार लोगों ने उस का पीछा करना शुरू कर दिया और फिर उस के घर तक पहुंच गए. उन्होंने पुलिस की परवाह भी नहीं की क्योंकि पुलिस ने तुरंत उन्हें जमानत भी दे डाली. उन के संपर्क ही ऐसे थे. रोहिणी इलाके के डीसीपी प्रमोद कुमार मिश्रा कहते रहें कि अपराध जमानती था, पर असल बात कुछ और है.

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देश का कानून आजकल केवल सत्ताधीशों की सुरक्षा के लिए इस्तेमाल हो रहा है और अदालतें, यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय तक पर पूरा भरोसा नहीं रह गया है. क्योंकि आज का न्यायाधीश कल सत्तारूढ़ दल का बाकायदा सदस्य हो सकता है.

इसलिए जो लड़कियां सड़क पर रात के चलने का जोखिम ले रही हैं उन्हें किसी भगवाधारी को पटा कर रखना चाहिए ताकि वे भी आफत में किसी की शरण ले सकें. ऋषिमुनियों की शरण में ही सुरक्षा मिलती है, यह वैसे भी हमारे पुराण कहते हैं और प्रवचनों के बल पर चल रही पुलिस फोर्स अब औरतों की सुरक्षा को सैकेंड्री काम ही मानती है. रात को चलो तो गाड़ी पर भगवा झंडा लहरा लेना एक सुरक्षात्मक जरिया हो सकता है. सिर पर भगवा दुपट्टा भी काफी सुरक्षा की गारंटी है.

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अफसोस यह है कि आज भी मीडिया में ऐसे लोग हैं जो आज तक, जी न्यूज की नहीं सुनते और मानते हैं कि देश की कानून व्यवस्था संविधान से चलती है, प्रवचनों वालों के नारों से नहीं. उन के साथ वही हुआ जो इस युवती और उस के पति के साथ हुआ.

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