जब तक आज का युवा पूरा वयस्क होगा, भारत कट्टरपंथी, धार्मिक, सऊदी अरब, पाकिस्तान जैसा देश बन चुका हो, तो बड़ी बात नहीं है. आज भी कमजोर वर्गों के कम पढ़ेलिखे युवाओं के लिए धर्म का धंधा सब से बड़ा काम है जहां खुद की सोचने की आजादी का कोई काम नहीं होता.वाशिंगटन में हैडक्वार्टर वाली संस्था फ्रीडम हाउस ने इस साल भारत का स्टेटस ‘फ्री’ से घटा कर ‘पार्टली फ्री’ कर दिया है. एक तरह से अभी भी उदारपना दिखाया गया है क्योंकि जो माहौल है उस में पार्टली फ्री भी केवल सरकार समर्थक हैं जिन्हें आजादी है कि वे सरकार के आलोचकों को देशद्रोही, अपराधी, खालिस्तानी, पाकिस्तानी, चीनी या कुछ और भी कहने की स्वतंत्रता रखते हैं.

यह संस्था पूर्ण स्वतंत्रता वाले देश को 100 अंक देती है. भारत के अंक 71 से गिर कर इस वर्ष 67 पर आ गए और उस का 211 देशों में से रैंक 83 से घट कर 88 पहुंच गया. यह आज के युवाओं के लिए चौंकाने वाली बात नहीं रह गई है क्योंकि जो 20 और 30 वर्षों की उम्र के बीच हैं, उन्हें तो फ्री का अर्थ ही न के बराबर मालूम है. वे तो सोचते हैं कि जो आज है वही समस्या है जिस में भगवे लठैत की चलती है. वैसे, फ्रीडम तो मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को भी नहीं है जिन्हें जरा सी सरकार की असहमति जताने पर दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल दिया जाता है. जहां धर्म का राज होता है वहां फ्रीडम का क्या काम है क्योंकि जो गुरु ने कह दिया, वही सत्य है और गलीमहल्ले के गुरु वही कह सकते हैं जो महागुरू की सोच है.

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