श्रृंगार रस, संगीत रस, हास्य रस, वाद्य रस और सब से रोचक स्वाद रस का भंडार है बनारस. साड़ी व कालीन उद्योग बनारस की प्रतिष्ठा में आज भी योगदान दे रहे हैं. बनारस अपने खानपान के लिए भी खास पहचाना जाता है. यहां की मिठाइयों का स्वाद लाजवाब है.
पहले यहां जो मिठाइयां बनती थीं उन में लड्डू, पेड़ा, बरफी, गुलाबजामुन, मगदल, खजूर, इमरती, बालूशाही, तिरंगी बरफी, राधाप्रिय, गांधी गौरव शामिल थीं. इन में से 2-4 को छोड़ कर अब भी वे सब मिठाइयां बिकती हैं. धीरेधीरे छेना ने अपना साम्राज्य फैलाना शुरू किया.
छेने की मिठाइयों में खीरमोहन, खीरकदम, रसमलाई, मलाईचाप, मलाई कोफ्ता, मलाई सैंडविच, मलाई के लड्डू, मलाई गिलौरी, मलाई पूड़ी, रसमाधुरी, रसमंजरी, राजभोग, रसगुल्ला, राजबहार आदि हैं. बनारस में छेने की मिठाइयों का चलन 5 दशक पूर्व हुआ था. पहले दुकानों पर खोये की चंद्रकला, लाल पेड़ा, केसरिया बरफी, गुलाबजामुन, इमरती, टिकिया बनती थीं.
बनारस की मिठाइयों में यहां के जानेमाने कारीगर व इस व्यवसाय के पारंगत कलाकार मिठाइयों के रंगरूप, आकारप्रकार तथा स्वाद को बदलते रहे व नई मिठाइयों को ईजाद भी करते रहे.
बनारस की मिठाइयों में मगदल को मिठाइयों का राजा माना जाता है. यह केवल जाड़े में बिकता है. यह यहां की सब से प्रिय मिठाई है. बनारस में वैसे तो मिठाइयों की सैकड़ों दुकानें हैं, लेकिन इन में से कई काफी मशहूर हैं. विदेशी या देशी पर्यटक
जब बनारस आते हैं तो यहां की खास मिठाइयां ले कर ही लौटते हैं. काशी में जितने महल्ले हैं उतनी तरह की मिठाइयां आज भी बिकती हैं. आप को जान कर आश्चर्य होगा कि सुविख्यात सितारवादक पं. रविशंकर को काशी के एक मिष्ठान कारीगर ने मिठाइयों का सितार बना कर भेंट किया था.
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