2 लाख रुपए का चैक देख कर कविता की आंखें फटी की फटी रह गईं. उसे लगा कि वह हर्षातिरेक से उछल पड़ेगी. आज उस की नौकरी का पहला दिन था और यह राशि उसे जौइनिंग अमाउंट के तौर पर दी गई थी. कविता किसी कवि की कल्पना की तरह खूबसूरत तो थी ही, प्रतिभाशाली भी थी, ऊपर से मेहनती. ऐसा संयोग किसी संतान में विरले ही देखने को मिलता है. श्रीहीन मातापिता के पास अपनी संतान को देने के लिए संस्कारों के सिवा और होता ही क्या है? कविता को देख कर सब उसे गुदड़ी का लाल कहते हैं. शुरू से ही कविता को पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति मिलती थी. आई आई टी और आई आई एम जैसी शिक्षा के मुश्किल पड़ावों को भी उस ने अपने बलबूते पर पार किया था. पढ़ाई पूरी होने से पहले ही कविता को 1 लाख रुपए मासिक आय पर नौकरी मिल गई. सुबह मां ने कविता को हंसीखुशी दफ्तर के लिए विदा किया था. दोपहर को मांपापा पड़ोसियों के जत्थे के साथ मिल कर यात्रा के लिए निकल पड़े थे. कविता मन ही मन योजनाएं बनाने लगी कि अगले हफ्ते मांपापा लौट आएंगे. इस सप्ताहांत में वह मांपापा की जरूरत की सारी चीजें खरीद कर घर भर देगी. जब वे लौट कर आएंगे तो उन से साफसाफ कह देगी कि अब वे आराम करेंगे और वह काम करेगी.

पलभर में ही जैसे कविता की सारी योजनाओं पर पानी फिर गया, जब उसे पता चला कि जिस बस में उस के मांपापा यात्रा कर रहे थे वह दुर्घटनाग्रस्त हो गई है. कविता को बारबार यह लग रहा था कि उस के मांपापा अवश्य सहीसलामत होंगे. पड़ोसियों के साथ कविता कैसे उस अस्पताल तक पहुंची, जहां उन घायलों को ले जाया गया था, उसे कुछ याद नहीं रहा. वहां उस ने मूर्छित पड़ी मां को पहचान लिया, लेकिन पापा का तो निर्जीव शरीर ही उसे प्राप्त हुआ था. पिता का शोक मनाने का भी वक्त नहीं था कविता के पास. मां के घायल शरीर को लोगों की मदद से किसी तरह उस ने दिल्ली के बड़े अस्पताल में और पिता के पार्थिव शरीर को वहीं के शवगृह में पहुंचाया. घर पहुंचते ही जैसे उस के सब्र का बांध टूट पड़ा और वह फूटफूट कर रोने लगी.

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