उत्तराखंड में भाजपा नेताओ के बीच विद्रोह का प्रभाव अगले साल होने वाले विधान चुनाव पर ना पडे इसके लिये हाई कमान ने स्थानीय नेताओं की जगह पर अपने फैसले से मुख्यमंत्री चुना. स्थानीय नेताओं के गुस्से को दबाने के लिये ऐसा फामूर्ला 80 के दशक में कांग्रेस में भी लिये जाते थे. जिसमें हाई कमान ताश के पत्तों की तरह मुख्यमंत्रियों के फेरबदल करती थी.

श्रीपति मिश्रा उत्तर प्रदेश बनायें गये थे. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता थे. इसके पहले वह विधान सभा अध्यक्ष भी थे. श्रीपति मिश्रा ने वाराणसी तथा लखनऊ विश्वविद्यालयों में पढ़ाई की थी. 1962 में वह पहली बार विधान सभा सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए. कई महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बाद भी उत्तर प्रदेष के मुख्यमंत्री पद की दौड में कभी उनका नाम नहीं लिया गया. अचानक 19 जुलाई 1982 को उस समय की कंाग्रेस नेता इंदिरा गांधी ने श्रीपति मिश्रा को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया. 02 अगस्त 1984 तक वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. श्रीपति मिश्रा को जिस दौर में उत्तर प्रदेष का मुख्यमंत्री बनाया गया उस समय मुख्यमंत्री पद की दौड में कांग्रेस के कई कद्दावर नेता लगे थे. साल 2000 में जब मेरी श्रीपति मिश्रा ने उनके सरकार आवास लखनऊ में मुलाकात हुई थी  रिटायर मुख्यमंत्री के रूप में उनसे बात की थी. उस समय उन्होने कहा कि ‘उनके नाम पर कोई विवाद नहीं था इस कारण हाईकमान उनको पंसद करता था. हाईकमान ने ही उनको मुख्यमंत्री बनाया था.’
1980 के बाद जब इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को अपने हिसाब से चलाना शुरू किया तो  राज्यों में मुख्यमंत्री बनाने का काम विधायको की जगह हाई कमान के हाथ में आ गया था.

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