सवाल

आज तक मेरे जीवन के सभी आर्थिक फैसले उन्होंने ही लिए हैं. 3 महीने पहले ही मैं नौकरी में लगा हूं. मैं 22 वर्ष का हूं. मेरे बैंक अकाउंट में जितने भी पैसे आते हैं उन्हें भैया से बिना पूछे या उन्हें बिना बताए खर्च करने की छूट नहीं है. मैं आजादी चाहता हूं. मैं इस मुश्किल से कैसे निकलूं?

जवाब

आप अपने भैया से बात कीजिए. उन्हें बताइए कि आप अब बच्चे नहीं हैं और आप को अपने आर्थिक निर्णय लेने की पूरी छूट होनी चाहिए. हो सकता है वे थोड़े आहत हों, लेकिन यह आवश्यक है कि आप अपने फैसले खुद लें. हां, आप को शुरूशुरू में थोड़ी परेशानी हो सकती है अपने अकाउंट्स संभालने और खर्च संभालने में, पर कभी न कभी तो आप को यह सब सीखना ही होगा. यकीनन आप के भैया भी यह सब समझेंगे. मन में कुंठा लिए बैठे रहने से बेहतर है कि आप सुस्पष्ट तरीके से बातचीत करें.

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प्यार का दुश्मन छोटा घर

मुरादाबाद की रहने वाली छाया की शादी दिल्ली के रहने वाले राजन के साथ हुई थी. उसकी मौसी ने इस शादी में मध्यस्थ की भूमिका निभायी थी, जो दिल्ली में ही ब्याही हुुई थीं. निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की छाया मुरादाबाद से ढेर सारे सपने लेकर दिल्ली में आयी थी. दिल्ली देश की राजधानी है. दिल्ली दिलवालों की नगरी है. यहां बड़ी-बड़ी कोठियां, चमचमाती चौड़ी सड़कें, बड़े-बड़े पार्क, दर्शनीय स्थल, राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट और पता नहीं किस-किस के बारे में उसने सुन रखा था. मगर ससुराल पहुंच कर छाया के सारे सपने छन्न से टूट गये. वो एक हफ्ते में ही समझ गयी कि यहां वह रह नहीं पाएगी. दरअसल दिल्ली तो बहुत बड़ी थी, मगर उसका घर बहुत छोटा था. इतना छोटा कि उसको अपने लिए एक घंटे का एकान्त भी यहां नहीं मिलता था. मुरादाबाद में छाया के पिता का पांच कमरों वाला बड़ा पुश्तैनी मकान था. घर में पांच प्राणी थे और पांच कमरे, सब खुल कर रहते थे, किसी को प्राइवेसी की दिक्कत नहीं थी. मगर यहां दो कमरों के किराये के घर में सात प्राणी रहते थे - छाया, राजन, उनके माता पिता, दादा दादी और राजन का छोटा भाई. घर में एक बाथरूम था, जिसका इस्तेमाल सभी सातों प्राणी करते थे. सुबह पहले सारे मर्द निपट लेते थे, उसके बाद औरतों की बारी आती थी.

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