संदल और उबटन की भीनी भीनी खुशबू के बीच बैठी दुलहन को घेरे उस की सहेलियों की नशीली आंखों में भविष्य के खूबसूरत और रंगीन सपने लहरा रहे थे.
‘‘बाजी, मैं भी दुलहन बनने पर बिलकुल आप की ही तरह कोहनियों तक मेहंदी लगवाऊंगी,’’ जीनत ने दुलहन से कहा.
‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं…जरूर लगवाना, मगर पहले दूल्हा तो मिल जाए,’’ जैनब ने ठिठोली की.
‘‘अरे क्या कहती हो, दूल्हा और वह भी जीनत जैसी हसीन परी के लिए…क्यों नहीं मिलेगा भला? दौलतमंद बाप की पहलौठी है. एक ढूंढ़ेंगे, हजार मिलेंगे,’’ नज्जो ने नहले पे दहला मारा.
‘‘नहीं, नहीं, मुझे हजार से नहीं, एक से शादी करनी है,’’ जीनत घबरा गई. जीनत के भोलेपन पर दुलहन सहित सारी सहेलियां ठहाका मार कर हंस पड़ीं. पूरा कमरा चूडि़यों की खनक और गजरे की महक से भर गया. दुलहन की विदाई के बाद घर वापस आ कर बिस्तर तक पहुंच कर जीनत अपनी शादी के सलोने ख्वाबों को अपनी खुलीखुली आंखों में सजाती रही. दूल्हे की सजीली सोच उसे एकाएक ससुराल की बड़ी सी कोठी के आंगन में खड़ा कर देती. जीनत के पापा जिले के सब से बड़े बारूद के व्यापारी जहीर अहमद ने बेशुमार दौलत और इज्जत कमाई थी. 5 बच्चों के पिता अपनी कदकाठी से गबरू जवान लगते थे. कुरते पर सोने का बटन लगाती बीवी की सुरमेदार आंखों में झांक कर बोले, ‘‘जहरा, मैं ने कल तीनों बेटियों के नाम 5-5 लाख रुपए फिक्स्ड डिपौजिट कर दिए हैं. वह है न अपना यार अरे वह रज्जाक, फौरेस्ट औफिसर, जिसे परसों खाने पर बुलाया था, कह रहा था कि जल्दी ही तीनों बेटियों के दहेज के फर्नीचर के लिए सागौन और शीशम की लकडि़यां ट्रक से भिजवा देगा.’’
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‘‘बस, बच्चों के लिए करते रहिएगा या कभी इस खादिमा के लिए भी कुछ सोचिएगा,’’ शौहर के मुंह में शीरे का रसीला पान डालते हुए जहरा ने बनावटी शिकायत की.
‘‘जानम, आप के नाम तो पूरी बिल्ंिडग है, लाखों के जेवर हैं और हुजूर, मुझ जैसा गुलाम आप की खिदमत में चौबीसों घंटे घुटने टेक कर आदाब बजा लाता है और क्या चाहिए आप को मेरी जान’’, कहते हुए जहीर ने बीवी को कस कर अपने चौड़े सीने में भींच कर होंठों पर प्यार की मुहर लगा दी.
‘‘क्या कर रहे हो, दरवाजा खुला है और नौकर घर में काम कर रहे हैं, बच्चे यहांवहां घूम रहे हैं. शर्म करो,’’ बलिष्ठ बांहों से छिटक कर शरमाती हुई जहरा ने मुसकरा दिया. फूलों के झूलों में झूलता खुशियों का डेरा जीनत के घर के आसपास ही डेरा डाले रहता. किचन से उठती मसालेदार खाने की महक, आसपास के घरों के लोगों की भूख बढ़ा जाती. घर के कोनेकोने में रखे बेशकीमती सामान और खूबसूरत नक्काशीदार फर्नीचर हवेली की खूबसूरती में चादचांद लगा देते. रिश्तेदारों और दोस्तों का जमघट हवेली की चहलपहल को बढ़ाता. जहरा बी महल्ले वालों, रिश्तेदारों, दोस्तों व दूसरे लोगों की शादीब्याह, सालगिरह, मौतमिट्टी में दिल खोल कर तोहफे और मदद देतीं. दौलत, शोहरत और कामकाज के पीछे भागमभाग करते हुए जहीर अहमद को पता ही नहीं चला कब एक के बाद एक बच्चे ने पढ़ाई छोड़ दी. लड़के दिनभर क्रिकेट, फुटबौल, वीडियोगेम, टीवी, डीवीडी, म्यूजिक सिस्टम में खोए हुए जवानी की पहली सीढ़ी पर आ खड़े हुए. जीनत को सिलाईकढ़ाई का बेहद शौक था. अपने दहेज के लिए चादरें, मेजपोश, तकिएगिलाफ काढ़ती रहती, क्रोशिए से दरवाजे खिड़कियों के परदे और थालों के कवर बुनती रहती. दोनों छोटी बहनें दिनभर पड़ोसियों के नन्हेनन्हे बच्चों को खिलानेपिलाने, नहलानेधुलाने के साथ अच्छेअच्छे खाने की फरमाइश पूरी करते दिन गुजार देतीं.
‘जीनत के लिए कहीं से पैगाम नहीं आया’, रिश्तेदारों को जब यह कहते सुना तो जहरा को याद आया कि जीनत शादी लायक हो गई. उस की आंखों में सुरमई लकीरों के बीच गुलाबी डोरे खिंचने लगे हैं. रोहू मछली के तले हुए टुकड़े से कांटा निकाल कर जहीर अहमद की तरफ बढ़ाते हुए जहरा ने अपनी फिक्र शौहर के कंधों पर भी डाल दी, ‘‘जीनत शादी के काबिल हो गई है. कहीं अच्छा सा लड़का देखना शुरू कीजिए.’’ ‘‘2-3 लोगों ने रिश्ते की बात कही तो थी मगर मुझे जंचा नहीं, इसलिए घर तक पैगाम आने नहीं दिया. खुदा पर भरोसा रखिए. हम ने सब का भला चाहा है, वक्त हमारी जीनत के लिए नेक लड़का और अच्छा खानदान ही तजवीज कराएगा.’’ जहरा बेफिक्र हो गई. इसी बीच, एकाएक जहीर अहमद यह कहते हुए कि बेगम सीने में हलकी सी चुभन बारबार हो रही है, सीना पकड़ कर लेट गए. भरेभरे चेहरे पर दर्द की लकीरें उभर आई थीं.
‘‘डाक्टर साहब को फोन कर दूं,’’ जहरा ने शौहर का सीना सहलाते हुए चिंता जताई.
‘‘अरे नहीं, हलका सा दर्द है. कल तक ठीक हो जाएगा.’’ रात को दर्द कुछ कम हुआ तो जहीर अहमद ऊपर वाले कमरे में सोने चले गए. छोटी बेटी को बुखार चढ़ गया था, इस वजह से जहरा नीचे उसी के साथ सो गई. दूसरे दिन का सूरज तबाही और बरबादी का पैगाम ले कर आया. जहीर अहमद पलंग के नीचे फर्श पर मृत पाए गए. जहरा बी और बच्चों की दर्दनाक चीखों ने हवेली के सन्नाटे को तोड़ कर दर्द का बवंडर उठा दिया. जहरा बी सदमे से बारबार बेहोश हो जातीं. होश आते ही चीखतीं, ‘‘हाय, मेरे बच्चों का क्या होगा? कैसे मझधार में छोड़ गए जीनत के अब्बू. मुझ से नहीं संभलेगी तुम्हारी सल्तनत. मुझे भी अपने पास बुला लीजिए. मैं आप के बिना जिंदा नहीं रह पाऊंगी,’’ जहरा की गमजदा आवाज बच्चों को बुत बना गई. दिन गुजरे, जहरा घरबार की सुध लेने के लायक होने लगीं. धीरेधीरे बच्चों को देखदेख कर अपनी जिम्मेदारी का एहसास होने लगा उन्हें.
‘‘अम्मी चलिए, खाना खा लीजिए,’’ वक्त से पहले बड़ी हो गई जीनत. मां को तसल्ली देती हुई खुद छोटे चारों भाईबहनों की मां बन गई. ‘‘क्या खाना खाऊं बेटा. कोई थोड़ा सा जहर दे दे तो दर्द से नजात मिल जाए मुझे. फूलों की तरह रखने वाले ने क्यों कांटों के रास्ते पर धकेल दिया.’’ बिजनैस में कहां कितना पैसा लगा है? किस बैंक में कितना पैसा है? किस को कितना उधार दे रखा है…? जहरा को कुछ भी पता नहीं था.
‘‘कैसे खींचूंगी यह गृहस्थी की गाड़ी 5 बच्चों के साथ? कैसे चलाऊंगी कारोबार? कैसे होगा सब का शादीब्याह? मैं तो पढ़ीलिखी भी नहीं हूं, न ही बच्चे पढ़ेलिखे हैं. इन्होंने तो कारोबार के बारे में कभी बच्चों को बताया ही नहीं, क्या करूंगी मैं,’’ जहरा बच्चों को बांहों में भर कर बुक्का फाड़ कर रो पड़तीं. 17 और 15 साल के दोनों बेटों ने पापा की फैक्टरी में पटाखे बनते तो देखे थे मगर कभी खुद कुछ नहीं किया. दीवाली और उस के बाद शादीब्याह का सीजन शुरू हो गया था. दीवाली के एक हफ्ते पहले माल को जब बाजार में भेजने की तैयारी हो रही थी तब नातजरबेकार मालिक और उस से ज्यादा अनुभवहीन कामगार. माल को जल्दी सुखाने के लिए रूमहीटर का इस्तेमाल कर बैठे. बारूद ने आग पकड़ ली और ऐसा जबरदस्त धमाका हुआ कि आसपास के 3 गांवों के लोगों का कलेजा दहल गया. आग से झुलसते 2 कामगारों को बचाते हुए दोनों भाइयों के हाथ, मुंह और छाती जल गई. वे अपना जख्म भूल कर दोनों कामगारों को शहर ले कर भागे. इलाज में पानी की तरह पैसा बहाया, मगर बुरा वक्त कभी टाले टला है भला. बुरी तरह से जले दोनों कामगारों की मौत हो गई. उन के शवों को जलाने, बिरादरी को भोज खिलाने से ले कर हरिद्वार जा कर फूल सिराने तक की प्रक्रिया में लाखों का चूना लग गया. गांव के सीधेसादे दिखने वाले लोगों को मदद करने, उन्हें कानूनी सलाह देने के लिए समाजसेवी कुकरमुत्ते की तरह पैदा हो जाते हैं.
पुलिस केस बन गया था. आएदिन दारोगा की जीप जहीर अहमद की कोठी के सामने खड़ी रहती. दारोगा कासिम अली को सारी बातें सचसच बतलाने के बावजूद हजारों रुपए के तोहफे उन की छोटी सी लपलपाती जीभ को न हिलने देने की कवायद में उन के घर भेजे जाते रहे. वे लोग जो कभी जहीर अहमद के सामने खड़े रहने और बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे, उन की नेकनामी और ईमानदारी के दबदबे का खौफ खाते थे, वे अब घर की बैठक में नरम मखमली सोफे पर अधलेटे से चायनाश्ते का लुत्फ उठाते हुए नाबालिग बच्चों में कभी दहशत पैदा करते, कभी कानून के पंजे से बचने की सलाह देते. जहरा बी सिर का पल्लू डाले परदे की ओट से अनजान लोगों के वहशी चेहरे देखतीं तो जारजार रो पड़तीं. दोनों मृतक कामगारों के रवालों ने 4-4 लाख रुपए का मुआवजा ठोंक दिया था. 8वीं फेल बड़ा बेटा 2-2 वकीलों के चंगुल में फंसा, हर पेशी पर बैंक की पैसे निकालने वाली पर्ची पर मोटीमोटी रकम भरता. ‘‘मेरी निगाह में एक लड़का है. वह करता तो प्राइवेट काम है मगर समझदार और कायदे का है. जीनत की शादी उस से हो जाएगी तो भाईजान का पूरा कारोबार संभाल लेगा,’’ जीनत की फूफी ने जहरा बी को सलाह दी. रिश्ते की बात चली. लड़का जरा दाहिने पैर से लंगड़ाता है मगर दुनियादारी में बड़ा तेज है. फूफाजान ने मुलम्मा चढ़ाया था. घर किराए का है, कोई बात नहीं. मेहनत करेगा तो अपना घर भी खरीद लेगा. डूबते को तिनके का सहारा. ननदननदोई पर भरोसा था. जहरा ज्यादा क्या छानबीन करतीं, धूमधाम से मंगनी कर दी. 6 माह बाद शादी की तारीख तय हो गई.
जीनत का रोरो कर बुरा हाल था. घर के बिखरे हालात, अनपढ़ और गमजदा मां, नासमझ भाइयों और दोनों छोटी बहनों का भविष्य संवारने के लिए जीनत को हालात से समझौता करना पड़ा. एक शख्स के न रहने से खुशहाल घर कैसे वीराने में बदल जाता है. उस के आश्रितों का भविष्य कैसे अंधकार में हिचकोले खाता है, इस का अंदाजा अब लगा पाई जीनत. मंगनी हो गई थी, इसलिए कुछ कहना भी मुश्किल था. रोज ही, होने वाले दामाद मकसूद का फोन आ जाता. जहरा बी पहले तो झिझकी, मगर जब ननद ने बदलती दुनिया के बदलते तौरतरीकों को मान लेने में ही भलाई है का मशविरा दिया तब से जीनत को फोन पकड़ाने लगीं. शादी से पहले लड़कालड़की एकदूसरे को अच्छी तरह समझ लेते हैं तो जिंदगी खुशहाली से गुजरती है. जहरा बी ठंडी सांस भर कर रह जातीं. शादी, हनीमून, बच्चे, घर, सारे सपने फोन पर एकदूसरे को सुनाए जाते. टूटा मन, भोला दिल, सपनों की गगरी छलकने लगती. ‘‘मेरी शादी के लिए 5 लाख रुपए पापा ने बैंक में जमा कर रखे हैं. मेरी अम्मा धूमधाम से शादी करेंगी. पहली जो हूं,’’ जज्बात की रौ में जाने कब जीनत ने मंगेतर को घर की बातें बता कर अपने ही घर में सेंध लगा दी. जीनत की शादी को 1 महीना बाकी रह गया था तो मकसूद ने जीनत से फोन पर कहा, ‘‘अम्मी से बात करवा दो.’’ जीनत ने अम्मी को फोन पकड़ा दिया.
‘‘अम्मी, वो…म…मैं कुछ बात कहना चाह रहा हूं अगर आप बुरा न मानें तो…’’ सधे हुए खिलाड़ी की तरह दुनियाभर की मिठास आवाज में भर कर बोला मकसूद.
‘‘हांहां, कहिए, बेझिझक कहिए.’’
‘‘जी…वो आप ने सूट के लिए 25 हजार रुपए भिजवाए हैं न, उस में तो बड़ा हलका सा कपड़ा आ रहा है. एक निकाह और एक विदाई का, 2 सूट तो बनेंगे ही न, फिर हौजरी का सामान, जूते…फिर शादी में सब लोग दूल्हे को ही देखते हैं. आप की इज्जत…आप समझ रही हैं न, मैं क्या कहना चाह रहा हूं.’’
‘‘जी…जी, मैं समझने की कोशिश कर रही हूं,’’ दामाद का इशारा समझ कर भी बेटी की मां अपना उबाल भीतर ही भीतर पीते हुए बोलीं.
‘‘जी…, इधर कंपनी के काम से काफी बिजी रहा. आप लोगों को बताना ही भूल गया कि मेरी पोस्ंिटग आप के कसबे के पास के ही बड़े शहर में होने वाली है. तो शादी में जो सामान आप देंगी, उसे ट्रक में डाल कर ले जाना रिस्की होगा, रास्ते में टूटफूट या गिर जाए तो बेकार में नुकसान. इसलिए आप उतने सामान का कैश दे दें तो मैं सामान जरूरत का वहीं से खरीद लूंगा. आप अकेली औरत जात, क्याक्या करेंगी भला. आप भी खरीदने की परेशानी से बच जाएंगी और मुझे भी आराम रहेगा. जीनत अपनी पसंद की चीजें खुद खरीद लेगी शहर से. अगर आप ये सब मंजूर करती हैं तो बेहतर होगा वरना तो…’’
‘‘हांहां…क्या? वरना तो…’’ जहरा की जबान अनजानी आशंका से कंपकंपाई.
‘‘वरना तो 2 साल और आप को ठहरना होगा, मेरी अम्मी ने कहा है.’’ यह सुनते ही जहरा बी सीना पकड़ कर फर्श पर बिखर गईं. मोबाइल हाथ से छिटक कर दूर जा गिरा. ‘‘क्या हुआ, अम्मी,’’ तीनों लड़कियां दौड़ीं और अम्मी को फर्श से उठा कर पलंग पर डाल दिया. डाक्टर ने चैक किया. ‘‘हार्टअटैक हुआ है.’’
डाक्टर से दूसरे दिन सारे चैकअप करवा कर के ही दवा दी गई. दवा की परची हाथ में लिए खड़ी जीनत के पैर कईकई फुट जमीन में धंस गए. निशब्द, अवाक् सूनी दीवार पर टंगी पापा की मुसकराती तसवीर को खड़ीखड़ी देखती रही. इंसेटिव केयर यूनिट के वे 3 दिन, जीनत के पैरों ने घर और अस्पताल के रास्ते की धूल उड़ा दी. दूर तक…कोई सहारा नहीं… एक अदद हमदर्द 70 साल की सफेद बालों वाली नानी. खाल लटकते हाथों से रोतेबिलखते बच्चों को समेट लिया था उन्होंने. जीनत की रेगिस्तान सी आंखों में बैंक की खाली होती पासबुक थी चौथे दिन शाम को डाक्टर सिर झुका कर इंसेंटिव केयर यूनिट से बाहर निकले. जीनत के कंधे पर हमदर्दीभरा हाथ रख का नजर झुका ली, ‘‘दूसरा अटैक आया था, हम बचा नहीं पाए.’’ ‘‘क्या…?’’ जीनत का हलक सूख गया. जबान तालू से चिपक गई और वार्ड का कौरीडोर हृदयविदारक चीख से भर गया. 19 साल की जीनत, पत्थर हुई जीनत, 4 भाईबहनों की मां बनी जीनत, मजबूरियों के जंगी मैदान में तन्हा खड़ी जीनत, मखमली महकते ख्वाबों की सेज पर उगे हालात के कांटों को किचकिचा कर मुट्ठी में भर कर लहूलुहान होती जीनत. अरमानों के छलकते सागर को बेदर्दी से दफनाती जीनत. एक महबूबा के रुपहले ख्वाब की लाश को कंधे पर लिए धीरेधीरे चलती इंसेंटिव केयर यूनिट के दरवाजे की तरफ बढ़ती जीनत ने पर्स से फोन निकाल कर नंबर मिलाया, ‘‘मकसूद साहब, अब यह शादी नहीं हो सकेगी. हमें माफ कीजिएगा.’’