कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

विहान के कहने पर प्राची ने हंस कर कहा, ‘‘अपनी पत्नी को लिए बगैर…जा पाएंगे आप…’’

‘‘भाभी, वह तो गुस्से में अकेले ही चल पड़ी थी, मम्मी के कहने पर मैं साथ आया हूं. सोचा तो यही था कि बाहर ही छोड़ चला जाऊंगा पर मन नहीं माना…’’ ‘‘मन इसलिए नहीं माना क्योंकि निधि दीदी से आप बहुत प्यार करते हैं.’’

‘‘यह बात निधि को समझनी चाहिए.’’ प्राची के साथ प्रभादेवी ने भी विहान को मनाने की कोशिश की, ‘‘दामादजी, अगर निधि की इस हरकत के लिए हम लोगों को जिम्मेदार नहीं मानते हैं तो  2 दिन रुक जाइए.’’

‘‘मम्मी, आप की बात मैं टालना नहीं चाहता हूं, लेकिन अभी मु झे मत रोकिए.’’ विहान ने घर जा कर अपनी मां से प्रभादेवी की बात कराई, वे भी आजकल की पीढ़ी के असंयम से आहत थीं. इतना जरूर साफ हुआ कि ससुराल में निधि का स्थान सुरक्षित है. लेकिन निधि कहीं न कहीं सामंजस्य बिठाने में नाकाम हो रही थी. निधि की सास ने यह भी माना कि उन्हें निधि को अपने परिवेश में ढालने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. निर्णय हुआ कि उसे कुछ दिन मायके में रहने दिया जाए, शायद एकदूसरे से दूर हो कर सभी अपनीअपनी चूक का आकलन कर पाएं.

ये भी पढ़ें-ये मन की खुशी

एक हफ्ता निकल गया लेकिन निधि ने वापस जाने की कोई बात नहीं की, न ही विहान का फोन आया. इधर, प्रभादेवी अपने घर में निधि के बढ़ते हस्तक्षेप से परेशान थीं. कारण था घर की बहू प्राची का घर में बढ़ता कद. इतवार के दिन प्रभादेवी को चाय बनाते देख निधि पूछ बैठी, ‘‘मम्मी, भाभी क्या अभी तक सो रही हैं?’’

‘‘हां, क्यों?’’

‘‘मम्मी, आप में इतना धैर्य कैसे है? मेरी सास होतीं तो 8 बजे के बाद से ही उन की चिकचिक शुरू हो जाती.’’

‘‘तुम क्या चाहती हो, मैं भी तुम्हारी सास की तरह संकीर्ण हो जाऊं? जिस वजह से तुम अपनी ससुराल में परेशान हुई हो, वह वजह मैं अपनी बहू के लिए पैदा करूं? वैसे भी आज इतवार है. एक ही दिन मिलता है जब वे दोनों अपनी नींद पूरी कर पाते हैं. वरना एक हफ्ते से तो तुम अपनी भाभी के हाथ की बनी सुबह की चाय पी ही रही हो. तुम कितने बजे उठती हो?’’ मां के सवाल पर वह सकपका गई थी. कुछ बोलते नहीं बना था. क्या कहती. वह तो रोज ही 8 बजे के बाद उठती है. निधि महसूस कर रही थी कि मां अकसर अपनी बहू का पक्ष ले कर उस की कार्यशैली से तुलना कर देती थीं. और प्राची थी भी तो घर की धुरी. उसे देख कर निधि को विश्वास नहीं होता था कि ये वही प्राची भाभी हैं जो घर के कामों में अनगढ़ थीं.

लेकिन, एकएक काम प्रभादेवी से पूछ कर करने की कला ने, आज उन्हें कामकाज में इतना माहिर कर दिया कि अब प्रभादेवी उन से सलाह ले लेती थीं. निधि को यह भी लग रहा था कि मां बहू के आगे बेटी को वह स्नेहदुलार नहीं दे रही हैं जो पहले देती थीं. एक दिन तो हद ही हो गई. कमरे में फैले सामान को देख कर उन्होंने प्राची की सुघड़ता का उदाहरण दे डाला. निधि को यह बात इतनी चुभी कि वह अब बातबात पर प्रभादेवी को सुना देती कि प्राची जब इस घर आई थी तो उसे कुछ भी नहीं आता था. आज भी वह उस डिनर की याद कर हंस रही थी जब प्राची ने कटी भिंडी धो डाली थी. निधि के उस किस्से को याद दिलाने पर कोई मुसकरा नहीं सका. लेकिन प्राची हंस दी थी, ‘‘दीदी, आप बिलकुल ठीक कह रही हैं. आज सोचती हूं, अगर मां की हिदायतें और सीख न होती तो मेरा क्या होता? होस्टल में रहने के कारण काम तो सीखा ही नहीं था.’’

‘‘इस सिखाईपढ़ाई का फायदा तब है जब किसी में सीखने की लगन हो. तुम मेरे प्रयास को टोकाटाकी मान कर चिढ़ती तो क्या होता?’’ प्रभादेवी ने अपनी बहू प्राची की बात का जवाब दिया तो निधि सम झ गई कि ये सारे वार्त्तालाप किसे सुनाए जा रहे हैं. निधि का प्राची पर किया वार अकसर उलट कर उसी को घायल कर जाता. प्राची और साकेत के अच्छे व्यवहार के बावजूद, निधि को मायके में एक घुटन सी होने लगी थी. खुद को उपेक्षित महसूस करते हुए निधि ने खुद को अपने कमरे में सीमित कर दिया पर प्राची उसे अकेले नहीं रहने देती थी. आज भी वह उसे जबरदस्ती कैरम खेलने के लिए बुलाने आ गई थी.

‘‘दीदी, आप यहां अकेले कमरे में क्या कर रही हैं, बाहर आइए न,’’ कैरम की गोटियां पकड़े प्राची को देख कर निधि अपने मन में होने वाले आत्ममंथन को रोक नहीं पाई. वह सोचती कि कैसे प्राची सब के साथ समय बिता लेती है. वह तो अपनी ससुराल में अपने कमरे तक ही सीमित रहती है. जब रागिनी घर आती है तो औपचारिक बातचीत के बाद वह अकसर अपने कमरे में चली जाती है. उस का मानना है कि हर लड़की अपने मायके में अपनी मां से मिलने आती है. अगर प्राची भाभी भी ऐसा सोचतीं, तो क्या इस घर में 2 दिन भी रहना मुमकिन हो पाता? बैठक में रखी उस की सालों पुरानी जीती शील्ड उसे, ससुराल की अलमारी का वह कोना याद दिला देती, जिस में रागिनी के गायन प्रतियोगिता में मिले प्रशस्तिपत्र को हटा कर उस ने अपनी सहेली का दिया फोटोफ्रेम रख दिया था. उस वक्त सास की दर्ज आपत्ति से निधि ने आहत हो कह दिया कि यह घर बस कहने को अपना है. भावनात्मक जुड़ाव के नाम पर कबाड़ इकट्ठा करना बेवकूफी है. उस वक्त सास को दिए जवाब से उसे आत्मसंतुष्टि मिली थी. जाने क्यों आज आत्मग्लानि से आंखें भर आईं.

करवट बदलती निधि की आंखों में नींद नहीं थी तो उठ कर वह प्राची के कमरे की ओर गई. प्राची और साकेत निधि को देख कर अचकचा गए तो वह संकोच में घिर गई कि नाहक ही वह यहां चली आई.

‘‘मैं बाद में आऊंगी,’’ कह कर वह चली आई.

‘‘अरे, बाद में क्यों, अच्छे मौके पर आई हो. मैं और साकेत डिसाइड नहीं कर पा रहे थे कि महाबलेश्वर जाएं या खंडाला?’’

‘‘आप लोग घूमने जा रहे हैं?’’

‘‘हां, निधि, बहुत दिन हो गए, कहीं निकले नहीं, सोचा वीकेंड का फायदा उठा लें.’’ कमरे में वापस आई निधि का मन खराब हो चुका था. 2 दिन बाद ही तो उस का जन्मदिन आने वाला है लेकिन यहां किसी को याद तक नहीं है. सब अपनीअपनी दुनिया में मस्त हैं और विहान… इतने दिनों से उस ने फोन तक नहीं किया, कहीं कल भी फोन न आया तो? निधि की आंखें भर आई थीं. आधी रात तक करवटें बदलती बेचैन निधि कब सोई, पता ही नहीं चला. अलसुबह दरवाजे पर दस्तक होने पर बाहर आई तो वहां कोई नहीं दिखा. अलबत्ता चाय की ट्रे नीचे रखी दिखी. शायद प्राची भाभी जल्दी में थीं. सोचते हुए उस ने ट्रे उठाई. 2 कपों में रखी चाय पर उस का ध्यान गया. 2 कप चाय? वह सोच ही रही थी कि नजर सामने आ खड़े हुए मुसकराते विहान पर पड़ी. हाथों में लाल गुलाब के फूलों का गुलदस्ता और चेहरे पर सहज मुसकान थी.

‘‘हैप्पी बर्थडे, निधि,’’ विहान के बोलते ही, ‘जन्मदिन मुबारक हो’ के हंगामे के साथ प्राची और साकेत आ गए थे. प्राची बोल रही थी, ‘‘दीदी, विहानजी ने हमें सख्त ताकीद कर दी थी कि आप को पहली बर्थडे विश वही करेंगे.’’

निधि की आंखें आवेग से भर आई थीं जिसे देख कर प्रभादेवी सम झ गईं कि सख्त बर्फ के पिघलने का समय आ गया है. उन के इशारे पर सभी उन्हें अकेला छोड़ कर चले गए थे.

‘‘निधि क्या अब भी नाराज हो?’’ विहान ने निधि के हाथ को पकड़ते हुए कहा, तो वह रो पड़ी. इतने दिनों का गुबार आंसुओं के रूप में बहता गया.

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...