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कहानी
मन की खुशी
मणिकांत ने परिवार के लिए सबकुछ किया फिर भी क्यों नहीं मिली उन्हें मन की शांति?
Digital Team
,
Apr 7, 2020
भाग - 1
दूसरी तरफ बेटे उन की नाक में दम किए रहते हैं. जब भी घर पहुंचो, या तो वे टीवी देखते रहते हैं या फिर मोबाइल में किसी से बात कर रहे होते हैं या फिर होमथिएटर में आंखें और कान फोड़ते रहते हैं. इस से छुटकारा मिला तो इंटरनैट में अनजान लड़केलड़कियों से दोस्ती काय
भाग - 2
जिस दिन बेटा बिना किसी बैंडबाजे के लड़की को घर ले कर आया, तो उन की पत्नी ने अकेले उन की अगवानी की और रीतिरिवाज से घर में प्रवेश करवाया. पत्नी बहुत खुश थी. छोटा बेटा भी मां का खुशीखुशी सहयोग कर रहा था. वे एक अजनबी की तरह अपने ही घर में ये सब होते देख रहे थ
भाग - 3
मणिकांत सोचने लगे. फिर कहा, ‘‘अब तो जैसे मैं भूल ही गया हूं कि मेरी रुचियां और शौक क्या हैं, परंतु विद्यार्थी जीवन में कविताएं लिखी थीं और कुछ चित्रकारी का भी शौक था.’’
भाग - 4
‘‘इस दुख को अपने मन में रख कर तुम सुखी नहीं रह सकते. यों तो बच्चों के बिगड़ने की जिम्मेदारी लोग अकसर बाप पर ही थोपते हैं, जबकि बच्चों को बनानेबिगाड़ने में मां का हाथ अधिक होता है, परंतु मां की तरफ लोगों का ध्यान कम जाता है. तुम ने अपना कर्तव्य ईमानदारी से
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