आज बाहर काफी तेज़ बरसात हो रही है. उमड़घुमड़ कर आते मेघों को देख कर निमिषा का मन घबरा रहा है. बारिश का मौसम उसे पसंद नहीं. सब तरफ छाई घटा, दिन में भी उजाले की जगह अंधियारा और शोर मचाती बरखा बूंदें. पता नहीं लोगों को इस मौसम में क्या पसंद आता है. उसे तो लगता है कि परिवार के सभी सदस्य घर पर सुरक्षित लौट आएं. मुदित तो आ गए हैं, चाय भी पी ली. अब विहा भी आ जाए तो उस की जान में जान आए.

विहा के घर में क़दम रखते ही निमिषा ने पुकारा, "विहा, आज का खराब मौसम देख कर मेरी चिंता बढ़ती जा रही थी. ऐसे में थोड़ी जल्दी निकल आया कर क्लास से.”

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"आप भी कमाल करती हो, मां. जिस मौसम को दुनिया बेहतरीन कहती है, उसे आप खराब कह रही हो," विहा कंधे उचका कर बोली.

"अच्छा चल, अब चायनाश्ता कर ले. मैं ने कब से तैयारी कर रखी है," निमिषा रसोई में चली गई. वहीं से आवाज़ दे कर बोली, "आज तेरे मामा जी का फोन आया था. फिर वही बात कि विहा किस चीज़ में इंजीनियरिंग कर रही है.”

"पता नहीं उन्हें कब समझ आएगी मेरी स्ट्रीम," विहा हंसने लगी.

"उन्हें क्या दोष दूं, वे तो मुझ से 10 साल बड़े हैं, तेरी स्ट्रीम तो मुझे भी समझ नहीं आती," जीभ काटते हुए निमिशा ने कहा.

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