मध्यवर्गीय परिवार की रेखा और यतिन ने अपने परिवारों की मरजी के खिलाफ प्रेमविवाह किया था. शादी की शुरुआत में सबकुछ ठीक रहा, लेकिन कुछ समय बाद रेखा के प्रति यतिन का व्यवहार बदलने लगा. वह आएदिन छोटीछोटी बातों को ले कर रेखा पर गुस्सा करने लगा और एक दिन ऐसा आया जब उस ने रेखा पर हाथ उठा दिया. पहली बार हाथ क्या उठाया, यह रोज का नियम बन गया. हालांकि यतिन किसी गलत संगत में नहीं था. खानेपीने का शौकीन यतिन अकसर रेखा के बनाए खाने में कोई न कोई कमी निकाल कर उसे पीटता था.

धीरेधीरे 15 वर्ष गुजर गए. रेखा 3 बच्चों की मां बन गई. बच्चे बड़े हो गए लेकिन यतिन के व्यवहार में बदलाव न आया. वह बच्चों के सामने भी रेखा को पीटता था. वहीं, वह कई बार अपनी गलती के लिए माफी भी मांग लेता था. रेखा चुपचाप पति की मार खा लेती. उन का बड़ा बेटा जब 14 साल का हुआ तो उस ने पिता के इस व्यवहार पर आपत्ति जताते हुए मां को ये सब और न सहने की सलाह दी. रेखा भी पति की रोजरोज की मार से अब तंग आ चुकी थी. एक दिन रेखा का बेटा अपनी मां को महिला आयोग में अपने पिता की शिकायत दर्ज करवाने ले गया. आयोग ने रेखा की परेशानी को ध्यान से सुना और यतिन को बुला कर दोनों को समझाने का प्रयास किया.

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स्थिति यहां तक हो गई थी कि दोनों एक ही छत के नीचे रह कर एकदूसरे के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे. कड़वाहट बढ़ती जा रही थी. कुछ दिनों के बाद रेखा ने घर छोड़ने का फैसला किया. वह बच्चों को ले कर किराए के एक मकान में अलग रहने लगी. अब आएदिन दोनों महिला आयोग में जा कर आमनेसामने खड़े होते थे. दोनों के बीच कहासुनी होती, आरोपप्रत्यारोप होते. बात बनने के बजाय बिगड़ती जा रही थी. यतिन ने घर के मामले को पुलिस में ले जाने को अपने आत्मसम्मान का प्रश्न बना लिया. उसे इस बात को ले कर बच्चों से भी घृणा होने लगी. उसे लगा कि रेखा ने उस के बच्चों को उस के खिलाफ भड़का दिया है.

रेखा घर चलाने के लिए पति से हर माह खर्च देने की मांग कर रही थी. उधर, यतिन खर्च देने को तैयार नहीं था. इस सब के बीच दोनों की रिश्तेदारों व आसपड़ोस में कई लोग ऐसे भी थे जो स्थिति का लुत्फ उठा रहे थे. कुछ महीनों बाद जब यतिन से बच्चों की दूरी नहीं झेली गई तो आखिरकार वह पत्नी और बच्चों को मना कर घर वापस ले आया. इधर रेखा को भी इस दौरान यह समझ आ गया था कि उस के लिए बच्चों को अकेले पालना आसान काम नहीं था. इस तरह एक बिगड़ता हुआ घरौंदा फिर से बस गया. हालांकि इस तरह के हर मामलों में बिगड़ी हुई बात हमेशा बन ही जाए, ऐसा हमेशा संभव नहीं होता. अकसर पतिपत्नी के बीच की बात जब चारदीवारी से निकलती है तो रिश्तों में तल्खियां बढ़ जाती हैं और बनने की संभावना वाला रिश्ता भी टूट जाता है.

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हम इस बात की पैरवी बिलकुल नहीं कर रहे हैं कि महिलाओं को चुपचाप घरेलू हिंसा का शिकार होते रहना चाहिए या खुद पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज नहीं उठानी चाहिए बल्कि आशय यह है कि जिन रिश्तों में कुछ गर्माहट हो और उन के बचने की थोड़ीबहुत भी उम्मीद हो तो उन्हें टूटने से बचा लेना ही समझदारी है. रिश्तों के टूटने का दंश किसी एक को नहीं बल्कि कई लोगों को जीवनभर झेलना पड़ता है. ऐसे भी अनेक मामले हैं जिन में मामूली बात पर परिवार टूट जाते हैं. पत्नी आवेश में आ कर घरेलू हिंसा कानून का फायदा उठाना चाहती है.

महिलाओं को उन के कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक रहने की बात की जाती है तो उन अधिकारों के गलत इस्तेमाल न करने की नसीहत भी देनी जरूरी है.

पतिपत्नी में हिंसा

घरेलू हिंसा पूरे विश्व में व्याप्त है. जहां तक हमारे देश का सवाल है तो यहां महिलाओं के विरुद्ध होने वाले सभी तरह के अपराधों में लगभग 50 प्रतिशत घर के अंदर ही किए जाते हैं. पति व पत्नी के बीच झगड़े हर घर में होते हैं और पति गुस्से में आ कर कभीकभार पत्नी पर हाथ भी उठा देता है. लेकिन जब पति छोटीछोटी बात को ले कर हर रोज पत्नी को पीटना शुरू कर देता है तब समस्या खड़ी हो जाती है. अधिकतर पति द्वारा पत्नी को पीटने की नौबत तब आती है जब पति शराबी, नशेड़ी, व्यभिचारी अथवा जुआरी होता है. वैसे, हमारे समाज में पत्नी के साथ मारपीट करना अधिकतर पुरुष अपना अधिकार समझते हैं.

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सवाल यह है कि पत्नी आखिर किस हद तक पति की मार को बर्दाश्त करे. यदि पति हर रोज शराब के नशे में पत्नी को पीटता है और इस हद तक पीटता है कि चोट के निशान लंबे समय तक उस के शरीर पर बने रहते हैं तो यह समस्या काफी गंभीर है. इसे लंबे समय तक चुपचाप सहना पत्नी को मानसिक रूप से अस्थिर बना सकता है. ऐसी स्थिति में पत्नी पहले अपने रिश्तेदारों और फिर आसपड़ोस के लोगों की मदद ले सकती है, ताकि घर की बात घर में ही सुलझ जाए. यदि लंबे समय तक हालत जस की तस रहती है तो पति को सबक सिखाना जरूरी होता है.

वहीं, कई परिवारों में पत्नियां, पति के एक थप्पड़ को भी अपने आत्मसम्मान का प्रश्न बना लेती हैं और घरेलू हिंसा कानून को वे एक हथियार की तरह इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकतीं. ऐसे में महज एक छोटी सी बात पर परिवार के बिखरने की आशंका बन जाती है. यदि पति पत्नी को पीटता है तो सब से पहले अपने स्तर पर उसे प्यार से समझाने की कोशिश करे. इस के बाद घर के बड़ों को इस से अवगत करवाए. अंत में ही कानून का सहारा ले. किसी के बहकावे में आ कर कोई फैसला न लें बल्कि परिस्थितियों का आकलन स्वयं कर के समस्या के निबटारे का रास्ता खोजे.

गलती किस की

जिन महिलाओं को घरेलू हिंसा कानून की जानकारी है वे यह बात भी अच्छी तरह जानती हैं कि आयोग या पुलिस में पति के खिलाफ शिकायत करने का अर्थ तुरंत कार्यवाही होना है. ऐसे में वे आवेश में आ कर यह भी नहीं देखतीं कि गलती वास्तव

में पति की थी या उन की. कई पत्नियां ऐसी भी होती हैं जो अपनी गलती को कभी स्वीकार नहीं करना चाहतीं. वे झगड़े के लिए हमेशा पति को दोषी ठहराती हैं. उदाहरण के लिए यदि पत्नी को पति पर किसी और स्त्री के साथ अवैध संबंध रखने का शक है और पति निर्दोष है, लेकिन पत्नी इस बात को ले कर बारबार पति को आरोपित करती रहती है और पति गुस्से में आ कर पत्नी पर हाथ उठा देता है. ऐसे में पत्नी को सिर्फ यह ही दिखाई देता है कि पति ने उस पर हाथ उठाया. वह अपनी गलती स्वीकार नहीं करती. ऐसे में आननफानन वह घर छोड़ देती है अथवा पति के खिलाफ पुलिस में चली जाती है.

इस का नतीजा रिश्ता टूट जाने के रूप में सामने आ सकता है. और एक बार कोई रिश्ता टूट जाता है तो उसे जोड़ना बेहद मुश्किल होता है. यदि वह रिश्ता जैसेतैसे जुड़ भी जाता है तो उस में कसक की गांठ हमेशा के लिए पड़ जाती है.

एक छत के नीचे कानूनी लड़ाई

जब पतिपत्नी के बीच मारपीट का मामला पुलिस में चला जाता है और दोनों एक ही छत के नीचे रह रहे होते हैं तो ऐसे में दोनों के लिए ही स्थिति बेहद खराब हो जाती है. घर में दोनों अंजान लोगों की तरह रहते हैं. बच्चों में बंटवारा हो जाता है. बच्चे हर समय मां के आसपास रहते हैं. पिता उन से बात करने से पहले कई बार सोचता है. वैसे एक छत के नीचे रहते हुए एकदूसरे के खिलाफ लड़ना आसान नहीं होता. हर समय तनातनी रहती है. पति को घर से बाहर जा कर भोजन करना पड़ता है. हालांकि ऐसी स्थिति लंबे समय तक नहीं चलती. या तो दोनों में सुलह हो जाती है या दोनों हमेशा के लिए अलग हो जाते हैं.

विवेक से लें फैसला

जहां पत्नियां लंबे समय तक पति की मार को परिवार की भलाई के लिए चुपचाप सहती रहती हैं वहां इस के विपरीत ऐसा भी देखने को मिलता है कि जरा सी बात को ले कर कई महिलाएं बिना सोचेविचारे मामला घर में सुलझाने के बजाय पुलिस में चली जाती हैं. आमतौर पर पति जब गुस्से में होते हैं तो पत्नी पर हाथ उठाते हैं, वहीं अधिकतर महिलाएं गुस्से में रोने लगती हैं.

घरेलू हिंसा अधिनियम बेशक घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए रामबाण है. लेकिन कई बार रोष में आ कर महिलाएं उस बात को ले कर भी कानून का सहारा लेने पर आतुर हो जाती हैं जो आपस में बातचीत से सुलझाई जा सकती थी. कई पति स्वभाव से गुस्सैल होते हैं जिन्हें पत्नी पर हाथ उठाने के बाद अपनी गलती का एहसास होता है. इसे पत्नियां अपने आत्मसम्मान का प्रश्न बना कर बिना सोचेविचारे पति के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा देती हैं. कोर्टकचहरी के चक्कर काटने पड़ते हैं. बच्चे मांबाप के झगड़े के बीच पिसते हैं. पैसा, शक्ति व समय की बरबादी होती है. जल्दबाजी में लिया गया फैसला जीवन भर पश्चात्ताप देता है. कई बार किसी के बहकावे में आ कर भी महिलाएं ऐसे कदम उठा लेती हैं जिस का एहसास उन्हें बाद में होता है, इसलिए कोई भी फैसला लेने से पहले स्वयं गहन सोचविचार करें.

दिल्ली महिला आयोग का कहना है कि महिला आयोग में अधिकतर निम्न व निम्नमध्य वर्गीय परिवारों के मामले आते हैं. इन में ज्यादातर मामलों में औरत घर से बाहर तब आती है जब हालात उस के बस से बाहर हो जाते हैं और उस के बर्दाश्त करने की क्षमता जवाब दे जाती है. वरना जब तक सहन किया जाता है वह सहती है.

आयोग में जाने पर भी महिलाओं का तात्पर्य परिवार तोड़ना नहीं होता बल्कि यहां भी वे इस उम्मीद के साथ आती हैं कि किसी तीसरे की डांट या सलाह से उन का पति सुधर जाए और एक बार फिर सबकुछ सामान्य हो जाए.

जहां तक पतियों का सवाल है तो अधिकतर वे लोग ही पत्नी को पीटते हैं जो अशिक्षित होते हैं. वैसे नोकझोंक हर पतिपत्नी में होती है लेकिन अधिकतर पढ़ेलिखे पतिपत्नियों के बीच मारपीट की नौबत नहीं आती. ऐसा इसलिए क्योंकि उन के पास अलगअलग हो कर रहने के साधन मुहैया होते हैं. जबकि निम्न या निम्नमध्य वर्गीय परिवार की एक औरत आर्थिक रूप से पति पर ही निर्भर रहती है.

आयोग में इस तरह के मामले आते हैं तो वह दोनों पक्षों को बुला कर काउंसलिंग करता है. 60-70 प्रतिशत मामलों में परिवार दोबारा बस जाते हैं. उन्हें अपनी गलती का एहसास हो जाता है. थोड़े ही ऐसे मामले होते हैं जिन में पति चाहता है कि पत्नी से पिंड छूटे अथवा वे इसे अपने आत्मसम्मान का प्रश्न भी बना लेते हैं.

दरअसल, जहां विश्वास खत्म हो जाता है या पतिपत्नी के बीच मानसिक रूप से आपसी समझ पैदा नहीं हो पाती वहां रिश्ते टूटने से बच नहीं पाते, हालांकि उस स्थिति में भी गुंजाइश रहती है कि वे समस्या से सकारात्मक रूप से निबटें, अपने मन को, विचारों को सकारात्मक रूप दें और समझौता कर लें ताकि पारिवारिक जीवन व रिश्ता कायम रहे.

क्या है घरेलू हिंसा

घरेलू हिंसा में घर के एक सदस्य द्वारा दूसरे सदस्य के साथ कोई ऐसा व्यवहार किया जाए जिस से पीडि़त सदस्य के स्वास्थ्य या जीवन को कोई खतरा पैदा हो जाए. साथ ही किसी को मानसिक, आर्थिक या लैंगिक रूप से प्रभावित करना भी घरेलू हिंसा के अन्य प्रकार हैं. आमतौर पर हमारे यहां ससुराल में बहुओं को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है. दहेज को ले कर बहू को ससुराल वालों द्वारा परेशान किया जाता है, मारापीटा जाता है, यहां तक कि कभीकभी तो उसे जान से मार दिया जाता है. पति द्वारा भी पत्नियां घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं. आमतौर पर पति द्वारा पत्नियों को पीटने के मामले सामने आते हैं.

क्या कहता है घरेलू हिंसा अधिनियम

घरेलू हिंसा अधिनियम (प्रिवैंशन औफ डोमैस्टिक वायलैंस ऐक्ट 2005) 2005 में बना और इसे 2006 में लागू किया गया. यह कानून ऐसी महिलाओं के लिए है जो कुटुंब के भीतर होने वाली किसी किस्म की हिंसा से पीडि़त हैं. इस में अपशब्द कहे जाने, किसी प्रकार की रोकटोक करने और मारपीट करना आदि प्रताड़ना के प्रकार शामिल हैं. इस अधिनियम के अंतर्गत प्रताडि़त महिला किसी भी वयस्क पुरुष को अभियोजित कर सकती है अर्थात उस के विरुद्ध प्रकरण दर्ज करवा सकती है. मामला दर्ज होने के बाद पुलिस तुरंत कार्यवाही करती है.

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