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तलाक हर औरत का अधिकार-भाग 3 : इन 4 तरीकों से पति को तलाक दे सकती है मुसलिम महिला

मोहम्मद साहब के मुताबिक, मनमाना तलाक अत्यंत बुरे कार्यों में से एक है. बावजूद इस के, मुसलिम समाज में 3 तलाक की प्रथा खूब प्रचलित रही मगर औरतों द्वारा दिए गए तलाक के तरीकों का ज्यादा प्रचार नहीं हुआ. जबकि मुसलिम औरत कई तरीकों से अपने पति को तलाक दे सकती है.

1. तलाक ए ताफवीज :
ताफवीज का अर्थ होता है ‘प्रत्यायोजन’. प्रत्यायोजन का अर्थ यह है कि कोई भी मुसलिम पुरुष किसी शर्त के अधीन अपने तलाक दिए जाने के अधिकार को मुसलिम स्त्री को प्रत्यायोजित कर सकता है. अपना तलाक देने का अधिकार वह मुसलिम स्त्री को सौंप सकता है. ‘बफातन बनाम शेख मेमूना बीवी एआईआर (1995) कोलकाता (304)’ मामले में पति पत्नी के बीच में करार किया गया कि यदि उन के बीच कभी असहमति होती है तो पत्नी को अलग रहने का अधिकार होगा और पति भरणपोषण देने के लिए बाध्य होगा. तय हुआ कि यदि पति अपनी पत्नी के भरणपोषण प्रदान करने में असमर्थ होता है तो पत्नी विवाह विच्छेद प्राप्त करने की हकदार होगी. महराम अली बनाम आयशा खातून के वाद में पति ने पत्नी को अधिकार प्रदान किया था कि यदि वह पत्नी की सहमति के बिना दूसरा विवाह करेगा तो पत्नी ताफवीज का प्रयोग कर के उसे तलाक देगी. इस अधिकार का प्रयोग कर के पत्नी द्वारा अपने पति को दिया गया तलाक वैध व मान्य है.

2. खुला :
इसलाम धर्म के आगमन के पूर्व एक पत्नी को किसी भी आधार पर विवाह विच्छेद की मांग का अधिकार नहीं था. कुरान द्वारा पहली बार पत्नी को तलाक प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त हुआ था. फतवा ए आलमगीरी, जोकि भारत में मुसलमानों की मान्यताप्राप्त पुस्तक है, में कहा गया है कि जब विवाह के पक्षकार राजी हैं और इस प्रकार की आशंका हो कि उन का आपस में रहना संभव नहीं है तो पत्नी प्रतिफलस्वरूप कुछ संपत्ति पति को वापस कर के स्वयं को उस के बंधन से मुक्त कर सकती है.

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‘खुला’ एक प्रकार का पारस्परिक सम्मति द्वारा विवाह विच्छेद होता है, जिस में पतिपत्नी दोनों की इच्छा से विवाह विच्छेद कर दिया जाता है. मुंशी बुजुल उल रहमान बनाम लतीफुन्नीसा के वाद में प्रिवी काउंसिल के माननीय न्यायाधीशों द्वारा ‘खुला’ की उपयुक्त परिभाषा की गई है. ‘खुला’ के द्वारा तलाक पत्नी की संपत्ति और प्रेरणा से दिया गया एक ऐसा तलाक है जिस में विवाह बंधन से अपने छुटकारे के लिए वह पति को कुछ प्रतिफल देती है या देने की संविदा करती है. ऐसे मामले में पति और पत्नी आपस में करार कर के शर्तें निश्चित कर सकते हैं और पत्नी प्रतिफलस्वरूप अपने मेहर को और अधिकारों को छोड़ सकती है अथवा पति के लाभ के लिए कोई दूसरा करार कर सकती है. ‘खुला’ में पत्नी द्वारा तलाक का प्रस्ताव रखा जाता है. असल में ‘खुला’ पत्नी द्वारा पति से खरीदा गया तलाक का अधिकार है.

3. मुबारत :
मुबारत का अर्थ होता है पारस्परिक छुटकारा. मुबारत में प्रस्ताव चाहे पत्नी की ओर से आए या पति की ओर से, उस की स्वीकृति तलाक कर देता है. पत्नी को इद्दत काल (3 माह) का पालन करना अनिवार्य होता है ताकि यह तय हो सके कि कहीं वह अपने पति द्वारा गर्भवती तो नहीं है. मुबारत भी विवाह विच्छेद का एक तरीका है. मुबारत में अरुचि पारस्परिक होती है. पतिपत्नी दोनों अलग होना चाहते हैं, इस कारण इस में पारस्परिक सम्मति का तत्त्व निहित रहता है. दोनों ओर से सहमति होने पर मुबारत तलाक हो जाता है.

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खुला और मुबारत में सब से महत्त्वपूर्ण अंतर यह है कि मुबारक दोनों पक्षकारों में से कहीं से भी किया जा सकता है परंतु ‘खुला’ का प्रस्ताव केवल स्त्री द्वारा रखा जाता है. मुबारत में किसी पक्षकार को कोई धनराशि किसी भी पक्षकार को नहीं देनी होती है. खुला का प्रस्ताव पति के तैयार नहीं होने की स्थिति में रखा जाता है परंतु मुबारत में दोनों सहमत होते हैं. भारतीय मुसलमानों में वर्तमान में सब से अधिक इसी तलाक का प्रचलन है.

4. लिएन :

जब कोई पति अपनी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाए, किंतु आरोप झूठा हो, वहां पत्नी का अधिकार हो जाता है कि वह दावा कर के विवाह विच्छेद कर ले. पति यदि अपनी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाता है या पति कहता है कि पत्नी ने किसी अन्य पुरुष के साथ सैक्स किया है तो ऐसे में यदि आरोप झूठा निकलता है तो स्त्री इस आधार पर तलाक मांग सकती है.

अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के टीकाकरण पर उत्तर प्रदेश का जोर

लखनऊ . कोरोना टीकाकरण को लेकर मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ की जनता से की गई अपील का असर मंगलवार को नजर आया. खासकर अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के लोगों में टीकाकरण को लेकर काफी उत्‍साह नजर आया. लख्‍नऊ के छोटे इमामबाड़े में बनाए गए कोविड टीकाकरण केन्‍द्र पर सुबह से ही टीका लगवाने के लिए लम्‍बी लाइन दिखाई दी. इसे पहले इस्‍लामिक सेंटर आफॅ इंडिया ईदगाह में वैक्‍सीनेशन सेंटर बनाया गया है. इस मौके पर शिया धर्मगुरू मौलाना कल्‍बे जवाद व जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने टीकाकरण केन्‍द्र पहुंच कर व्‍यवस्‍थाओं का जायजा लिया. इस दौरान उन्‍होंने लोगों को टीकाकरण के फायदे बताए .

यूपी में मंगलवार से विश्‍व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरूआत हुई है. इस पूरे अभियान के दौरान एक करोड़ से अधिक लोगों का टीकाकरण किया जाएगा. उत्तर प्रदेश में 18 से 44 वर्ष की आयु के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में दो-दो और शहरी क्षेत्र में तीन-तीन विशेष टीकाकरण केंद्र बनाए गए हैं. बड़े जिलों में आवश्यकता के अनुसार दो केंद्र बढ़ाने की अनुमति दी गई है. वहीं 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के अभिभावकों के लिए भी दो-दो विशेष टीकाकरण केंद्र बनाए गए हैं.

अल्‍पसंख्‍यक समुदाय में उत्‍साह

लखनऊ में हुसैनाबाद स्थित  छोटे इमामबाड़े में कोरोना वैक्‍सीनेशन के लिए बड़ा केन्‍द्र बनाया गया था. सुबह से ही लोग उत्‍साह के साथ टीकाकरण अभियान में शामिल हो रहे थे. इस मौके पर इमाम ए जुमा मौलाना कल्‍बे जवाद ने टीकाकरण केन्‍द्र पहुंच कर लोगों को टीके के फायदे बताए . उन्‍होंने कहा कि कोरोना से बचाव का एक मात्र तरीका कोरोना टीका है. उन्‍होंने लोगों से अपील की वह किसी भी तरह की अफवाह में न आए और अपना टीकाकरण कराए. टीकाकरण को लेकर अफवाहे फैलाने वाले मुस्लिम समुदाय के दुश्‍मन है.

हुसैनाबाद निवासी शहजाद ने बताया कि सरकार ने पुराने लखनऊ में बड़ा केन्‍द्र बनाकर लोगों को राहत दी है. पुराने लखनऊ के लोगों को टीका लगवाने के लिए काफी दूर जाना पड़ रहा था. ऐसे में जिन लोगों के पास साधन नहीं थे, वह टीका नहीं लगवा रहे थे. सरकार छोटा इमामबाड़े में केन्‍द्र लगाने से लोगों को काफी राहत पहुंची है. छोटे इमामबाड़े में 18 से 44 साल के लोगों का अलग टीकाकरण किया जा रहा था जबकि 44 से ऊपर के लोगों का टीकाकरण अलग से किया जा रहा था. टीकाकरण केन्‍द्र पर सेल्‍फी प्‍वाइंट भी बनवाया गया था. जहां पर युवाओं ने टीका लगवाने के बाद अपनी सेल्‍फी ली. वहीं, मौके पर मौजूद सिविल डिफेंस कर्मी लोगों के बीच सोशल डि‍स्‍टेंसिंग बनाने का काम कर रहे थे.

टीकाकरण केन्‍द्र पर बड़े पैमाने पर मुस्लिम महिलाएं भी उपस्थित थी. जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने छोटा इमामबाड़ा स्थित टीकाकरण केन्‍द्र का निरीक्षण किया. उन्‍होंने कहा कि जिला प्रशासन की ओर से आसपास के इलाकों से टीकाकरण केन्‍द्र तक लाने के लिए विशेष बसों का संचालन भी किया गया था. इसमें बिल्‍लौचपुरा, अकबरीगेट आदि से बसें लोगों को टीकाकरण केन्‍द्र तक ला रही थी. वहीं, सरकार ने जून महीने में एक करोड़ टीके लगाकर इस संख्या को तीन करोड़ तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है.

Nisha Rawal लेंगी बेटे की कस्टडी, कहा- ‘करण नहीं रखना चाहते साथ’

निशा रावल और करण मेहरा के रिश्ते कि सच्चाई अब सबके सामने आ चुकी हैं. सभी को पता चल चुका है कि इऩके रिश्ते में अब कुछ नहीं बचा है. पहले इन दोनों को टीवी के आइडियल कपल के रूप में देखा जाता है. लेकिन अब ये दोनों एक-दूसरे से अलग होने जा रहे हैं.

कुछ दिन पहले ही यह खबर आई थी कि इन दोनों में कुछ अनबन चल रहा है लेकिन अब दोनों एक-दूसरे के खिलाफ कैमरे के सामने आकर बोलने लगे हैं. इसी बीच दोनों के फैंस को उनके छोटे से मासूम काविश को लेकर टेंशन हो रही है कि उसकी देखरेख कौन करेगा.

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फैंस इस बात की चिंता लेकर परेशान हो रहे हैं कि इस मासूम पर इन सबका क्या असर पड़ेगा. निशा और करण के बीच की कड़वाहट हर घंटे आगे बढ़ते जा रही है. एक इंटरव्यू में निशा रावल ने  खुलासा किया है कि वह अपने बच्चे कि कस्टडी लेंगी क्योंकि करण नहीं रखना चाहते हैं अपने बेटे को.

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इस बात पर उन दोनों कि कोई लड़ाई नहीं हुई है , करण ने एक बार कहा था कि वह जब शूट पर जाएगा तो अपने मम्मी पापा के पास बच्चे को छोड़ कर जाएगा तो ऐसे में निशा रावल ने सोचा कि वह अपने बच्चे कि कस्टडी खुद करेंगी.

 

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निशा और करण के इस टूटते रिश्ते से फैंस काफी ज्यादा अपसेट नजर आ रहे हैं. फैंस का कहना है कि हमने कभी इनके बारे में अलग होने का नहीं सोचा था.

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बता दें कि निशा और करण एक-दूसरे को करीब 15,16 साल से एक दूसरे को जानते थें. इसी बीच दोनों ने लंबे वक्त तक डेट करने के बाद शादी किया था. अब ये दोनों अलग भी होने जा रहे हैं.

यूजर ने पूछा दुपट्टा क्यों नहीं पहनती तो दिव्यांका त्रिपाठी ने दिया ये जवाब

टीवी की जानी मानी अदाकारा दिव्यांका त्रिपाठी को हर कोई पसंद करता है. वह अपने लुक के लिए काफी ज्यादा जानी जाती है. आए दिन वह सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती है. उनके पहनावे की तारीफ हर कोई करता नजर आता है.

कुछ दिनों पहले दिव्यांका क्राइम पेट्रोल शो को होस्ट कर रही थी, जिसमें वह भारतीय परिधान में नजर आ रही थी. जिसमें उन्होंने कुर्ता पहना हुआ था और साथ में दुपट्टा नहीं लिया था, जिसके बाद एक यूजर ने लिखा कि दिव्यांका आपने दुपट्टा क्यों नहीं लिया है.

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जिसके बाद जब दिव्यांका ने जवाब दिया उससे यूजर की बोलती बंद हो गई. दिव्याकां ने जवाब में लिखा कि ” ताकी आप जैसे लोग बिना दुपट्टे की लड़कियों को देखने की इज्जत डालें, कृप्या खुद की और आसपास के लड़कों की नियत को सुधारें, ना कि औरत जात के पहनावे पर बीड़ा उठाएं, मेरा शरीर, मेरी इज्जत मेरी आबरु.

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फिर यूजन ने नीचे कमेंट करते हुए लिखा कि आरे मैडम आपने तो मेरी बैंड बजा दी, मैंने तो इसलिए लिखा था कि आप दुपट्टे में अच्छी लगती हैं.

दिव्यांका के वर्कफ्रंट कि बात करें तो कुछ समय पहले दिव्यांका त्रिपाठी क्राइम पेट्रोल शो को होस्ट करती दिख रही थी इन दिनों वह केपटाउन में स्टंट का सबसे बड़ा रियलिटी शो खतरों के खिलाड़ी की शूटिंग करने केपटाउन अपनी पूरी टीम के साथ गई हुईं हैं.

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जहां से वह लगातार नए-नए पोस्ट शेयर करती रहती हैं. दिव्यांका का लुक और अंदाज लोगों को काफी ज्यादा पसंद आता है. इसलिए फैंस दिव्याकां को खूब प्यार भी देते हुए नजर आते हैंं.

बेबस -भाग 4 : शैलेश एकटक देखते हुए किसकी तरफ इशारा कर रहा था

लेखकमनोज शर्मा

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या ठीक है, क्या गलत. मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मैं झूठे आनंद की रौ में अपना जीवन दांव पर लगा रहा हूं. क्या ये सही था?

मुझे नहीं मालूम. शैलेश की आंखें नम थीं, जैसे वो कोई सजा काट रहा हो. ‘‘अब…?’’ मैं ने शैलेश के कंधे को ठेलते हुए पूछा. ‘‘अब क्या…?’’

‘‘बस जी रहा हूं. जैसेतैसे. आरंभ में सब ठीक लगता है, पर धीरेधीरे जैसे ही जिंदगी की सचाई से रूबरू होते जाते हैं सब अलग होता है. जैसा आदमी पहले दिखता है वैसा वो असल में तो नहीं होता. चूंकि इनसान के दो चेहरे होते हैं, एक जो हमें दिखाई देता है और दूसरा जो असली चेहरा होता है, जिसे हम साथ रह कर ही देख सकते हैं, समझ सकते हैं. उस ने अपने पति को छोड़ा मुझे पाने के लिए. और अब लगता है कि वो मुझे भी त्याग देगी. वह रोआंसा हो कर बोलता रहा.

‘‘तुम ऐसा क्यों सोचते हो?’’ दिनेश ने उस की आंखों में झांक कर पूछा. ‘‘मेरे और प्रोमिला से विवाह के पश्चात मैं ने अकसर कुछ लड़कों को पढ़ाई के बहाने आते देखा है. वह कुछ ज्यादा ही खुशमिजाज औरत है, जिसे हर वक्त कोई ना कोई मर्द चाहिए, जो उसे खुश रख सके.

‘‘मैं जब से यहां आया हूं, उसे हमेशा युवा मर्दों से घिरा देखा है. वह यूज एंड थ्रो में विश्वास रखती है. पहलेपहल जब मुझे भी लगा था कि मैं भी उस के प्रेम में गिरफ्त हूं, यकीन मानो अच्छा लगता था, पर शादी तो हर वक्त संग रखने का बहाना था.

‘‘आज वो जब चाहे मुझे भलाबुरा कह देती है. यदि मैं कुछ भी रोकटोक करूं, तो वो मेरी पीएचडी पूरी न करने की धमकी देती है. साथ ही, बोलती है कि वो जब चाहे मुझे नौकरी से निकलवा सकती है,’’ जेब से रूमाल निकाल कर नाक पोंछते हुए वह एक पल के लिए रुका और गला साफ करते हुए बोला, ‘‘तुम नहीं जानते कि उस के कितने लोगों से संबंध हैं, प्रिंसिपल से भी, तभी शायद उस की इतनी चलती है.

‘‘यद्यपि वो मेरे साथ खुश है, पर मुझे उस के मुताबिक ही जीना होगा. जैसा वो चाहे शायद उसी तरह सब करना होगा. आंखों पर पट्टी बांध कर जीना होगा या ऐसे जाहिर करना होगा कि कोई कुछ नहीं जानता और जो चल रहा है वही ठीक है.’’

सहसा शैलेश का फोन बजा. उस ने कानों पर फोन लगा कर बोला, ‘‘हैलो, कौन? ‘‘मैं… मैं…’’ ‘‘बोलो?’’ ‘‘आप… वो दिनेश मेरा दोस्त है ना? आज ही गांव से आया है. हां… हां… मैं उसी के साथ हूं.’’ ‘‘आप को बताया तो था. क्या भूल गए हो. कोई बात नहीं.’’

‘‘हां, बस थोड़ी देर में पहुंचता हूं,’’ कह कर शैलेश फोन कट करता हुआ इधरउधर देखता है. टेबल पर बैठे सभी एकदूसरे में व्यस्त हैं और इतने व्यस्त कि आसपास उन के क्या चल रहा है, किसी को कोई खबर तक नहीं.पीली रोशनी में खोए ऐसे अभ्यस्त चेहरे, जो रोज किसी न किसी रूप में किसी नए साथी को तलाश ही लेते हैं अपनी शारीरिक जरूरतों की पूर्ति के लिए.

‘‘अच्छा शैलेश, मैं आज रात को ही लौटूंगा,’’ दिनेश ने शैलेश के हाथों को छूते हुए कहा. ‘‘आज ही…’’ शैलेश आश्चर्य से देखते हुए पूछा.. ‘‘हां… हां,’’ दिनेश ने फिर दोहराया. ‘‘नहीं… नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है? आओ, एक बार तो घर चलो.प्रोमिला से तो मिल लो. बस एक मर्तबा.’’

‘‘नहीं…. नहीं दिनेश. एक मर्तबा तो मिल ही लो तुम भी. कम से कम तुम तो…’’ ‘‘ओके शैलेश. पर, मुझे रात को ही निकलना है. और वो भी 10 बजे की ट्रेन से,’’ दिनेश ने जोर देते हुए कहा.

‘‘ओके. मेरे बाप अब चलें,’’ शैलेश दिनेश का हाथ पकड़े हुए चलता है. बैरा बिल के साथ टिप ले कर मुसकराता हुआ लौट जाता है. घर पहुंच कर, ‘‘वाह… क्या घर है शैलेश,’’ दिनेश ने मुसकराते हुए कहा.

एक नौकर दौड़ा हुआ शैलेश के पास पहुंचता है और उस के हाथों से बैग ले लेता है. शैलेश डाइनिंग टेबल पर बैग रख कर वाशबेशिन में हाथ धोते हुए दिनेश को देखता रहा. एक छोटे कद का नौकर तौलिया लिए पास ही खड़ा है, जिसे वो शैलेश के हाथों में थमा देता है.

“नमस्कार! मैम कहूं या भाभी?’’ प्रोमिला सामने दिखती है. दिनेश हाथ जोड़ कर नमस्ते करता हुआ मुसकराने लगता है और हतप्रभ हो कर सारे घर को, नौकरचाकरों को देखता रहता है. ‘‘ओह… तो आप हैं दिनेश? आइए,’’ प्रोमिला ड्राइंगरूम की ओर चलने का निर्देश देती हुई आगे बढ़ती है.

चमकदार घर दूधिया रोशनी से नहाया हुआ दिख रहा है, इतना कि एक सूई भी गिर जाए तो साफ गिरी मिले. घर में लहराते कीमती परदे दीवारों पर नक्काशी देखते १बनी है. जमीं पर चमकदार कालीन किनारों पर सुंदर सजे सुगंधित गमले घर को १महल की सी शक्ल देते थे.

आधुनिक पढ़ीलिखी तेजतर्रार युवती गठा हुआ बदन कंधे पर लहराते बाल सफेद मोतियों से दांत उम्र करीब 40, पर चेहरे पर ताजगी.

‘‘अच्छा बताइए कि क्या लेंगे? जूस, चाय या कौफी?’’ मदभरी आंखों से देखते हुए वो पूछती है. ‘‘नहीं भाभी, कुछ नहीं. मुझे तो बस एकपल आप को देखने की तमन्ना थी. सो देख लिया. रियली, आप बहुत सुंदर हैं. शायद शैलेश ठीक ही कहता था.’’

‘‘अच्छा बोलिए तो क्या कहा है आप को शैलेशजी ने हमारे बारे में.कोई बुराई तो नहीं की ना?’’ एक भौंडी सी मुसकराहट के साथ आंख मारते हुए शैलेश को देखती हुई दिनेश से पूछती है. ‘‘अरे नहीं भाभी. ये तो बहुत तारीफ कर रहा था आप की रियली.’’

‘‘अच्छा…’’ ‘‘मुझे आज ही निकलना है और अब मैं निकलूंगा. फिर मेरी ट्रेन का समय भी तो है रात 10 बजे का,’’ दिनेश घड़ी की सूइयों को देखते हुए बोलता है.

‘‘क्या कहा 10 बजे,’’ प्रोमिला हंसती हुई कहती है, ‘‘शैलेश आप को छोड़ आएंगे. फिर अभी तो 7 ही बजे हैं,’’ साड़ी के पल्लू को उंगली में लपेटते हुए वो कुछ बोलती, तभी जूस का जार थामे एक बुजुर्ग सा नौकर प्रकट हुआ. गिलास में जूस भरते हुए एक पल दिनेश को तो दूसरे पल प्रोमिला की तरफ देखता है.

 

‘‘अरे नहीं बाबा, बस थोड़ा ही,’’ दिनेश बुजुर्ग को बीच में ही टोकता हुआ कहता है.‘‘तुम ने बताया क्यों नहीं कि इन को आज ही लौटना है?’’ प्रोमिला शैलेश को देखते हुए बोलती है.

‘‘मुझे स्वयं को नहीं पता था कि ये आज ही…’’ शैलेश टाई खोलता हुआ बताता है.

शैलेश दिनेश को घर दिखाने लगता है. आओ तो तुम्हें अपना कमरा दिखाऊं. 2-3 मिनट के बाद ही कमरे से बाहर निकलते हुए तेज हंसनेचहकने की आवाजें सुनते हुए बगल वाले कमरे में झांकते हुए देखते हैं कि कमरे में प्रोमिला 2-3 कालेज के लड़कों के साथ कमरे में बैठी हंसहंस कर बातें कर रही है.

शैलेश आंखें मूंदता दिनेश को वहां से आगे ले जा कर कोने में खड़ा हो जाता है. देख लो, मेरे भाई अब आंखों से. यहां मेरे ही सामने ये सब चलता है रोज ही. मुझे ये सब पसंद नहीं, पर इस से किसी को क्या… सोचता हूं, मैं भी गांव चलूं, पर ये मुझे इतना बदनाम कर देगी कि मैं कहीं का नहीं रहूंगा. पर, मैं इस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता… फिर आदमी के पास एक ही तो जिंदगी है, जैसे चाहे जीयो हंस कर या रो कर.

दिनेश मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. नौकरी, पीएचडी आदि से मेरा जो रुतबा है लोगों के बीच ही सही. एकदम से ये खत्म कर देगी. क्या करूं? जो है वह ठीक है या गलत. घर में रह कर ये सब सोचने की शक्ति तो चली गई.

एक पुरानी डायरी दिनेश को दिखाता हुआ पूछता है कि जानते हो इस डायरी को?‘‘हां… हां, कैसे भूल सकता हूं?’’ दिनेश ने जवाब दिया.‘‘अच्छा, रजनी कैसी है?’’ दिनेश की ओर दुखी मन से देखते हुए शैलेश पूछता है.

‘‘उस ने पिछले साल शादी कर ली…’’ शैलेश यह सुन कर ठिठक जाता है.‘‘रजनी शादी होने से पहले तक तुम्हें पूछती रही. कितनी ही बार तुम्हारा पता जानना चाहा, पर जब कुछ न हो सका तो उस के पिता ने पास ही शहर में उस की शादी कर दी. पर अब वो बहुत खुश दिखती है. सच्ची…’’ शैलेश चुप खड़ा सिसकता रहा.

‘‘अच्छा… अब मुझे चलना चाहिए?’’ दिनेश घड़ी देखते हुए बोला.दिनेश गले मिल कर चलने लगता है.‘‘रुक जाओ दोएक रोज,’’ शैलेश ने आग्रह किया.‘‘नहीं, बड़ी बहन आई हुई है. वह बीमार है. यकीन करो कि फिर आऊंगा. जल्दी ही. इस बार तो अचानक ही आना हुआ. पर, अगली बार पक्का,’’ कह कर वह चलने लगता है.

‘‘ठहरो, मैं छोड़ आता हूं,’’ शैलेश बोला.‘‘नहींनहीं, मैं आटोरिकशा से चला जाऊंगा.’’एक बड़े से बैग में कुछ सामान और पैसे, गिफ्ट वगैरह दिनेश को थमाते हुए शैलेश कहता है, ‘‘भइया, ये तुम रख लेना. मेरा तो अब गांव में कोई नहीं. तुम तो जानते ही हो कि वहां न मां है, न बाप, न भाईबहन. कोई है ही नहीं. मैं ही अकेला हूं, जो यहां आ कर यहीं का हो कर रह गया हूं. अब जैसा हूं यहीं रह कर जी सकता हूं. इसे मजबूरी समझो या मेरी नियति. अब इन के साथ ही मेरा जीवन है. यहां से निकलते ही मेरे सारे रास्ते खत्म.’’

पास ही रखे एक्वेरियम में छोटी मछलियां बड़ी मछलियों के भय से ऊपरनीचे, इधरऊधर दौड़ रही हैं. हलकी भीनी रंग की मछलियों के पंख यद्यपि लहरा रहे हैं, पर उन के खुले मुख से निकलती ध्वनि किसी भयानक चीख से कम नहीं लग रही थी. जैसे आजाद पंछी को सोने के पिंजरे में कैद कर लिया हो और उसे जीना है तो यहीं जीना होगा, वरना उस के पंख कतर दिए जाएंगे, जिस से ना उड़ सकेगा और ना शायद जी ही सकेगा.

दिनेश लौट गया. शैलेश दिनेश को छोड़ कर तकरीबन 11 बजे घर लौटा. शांत घर में हंसी की फुलझड़ी सुनाई पड़ रही थी. शैलेश ने प्रोमिला का दरवाजा खोला. वो कालेज के लड़को के साथ अभी तक हंसहंस कर बातें कर रही थी. शैलेश एक पल रुका और अपने कमरे की ओर बढ़ गया.

चित्र अधूरा है-भाग 3 : क्या सुमित अपने सपने साकार कर पाया

‘कब तक झूठ बोलोगे? सचाई छिपाने से भी नहीं छिपती,’ उन की आंखों से आंसू निकलते जा रहे थे और वह कहे जा रही थी, ‘तुम लोगों ने कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. कल तक जिन के सामने मैं गर्व से कहती थी कि मेरे बच्चे हीरे हैं, अब उन्हें क्या जवाब दूंगी? तुम तो कोयला ही निकले. अपने मुंह पर तो कालिख पोती ही तुम ने हमारे मुंह पर भी पोत दी.’

अनुज जानता था अभी मां से कुछ भी कहना ठीक नहीं है और उमा सदमे की स्थिति में कहती जा रही थीं, ‘अरे, इन्हीं हाथों से खिलाया, पिलाया, पढ़ाया, दिनरात एक कर दिए अपनी सभी इच्छाएं कुरबान कर दीं तुम दोनों पर, किंतु क्या मिला मुझे? यह अपमान, दुख और?’

तभी दोबारा फोन की घंटी घनघना उठी, तब तक अनुज वहां से चला गया था. उमा अचानक सामने रखे सुमित के आईकार्ड पर लगे फोटो पर तड़ातड़ चांटे मारने लगी, बोल, क्या जवाब दूं दुनिया को— उन को जिन्होंने 10वीं में मैरिट में आने पर मिठाई खाई थी, हमारे आत्मगर्वित चेहरे को देख कर जिन आंखों में ईर्ष्या पैदा हो गई थी, वह आज क्या हमारा मजाक नहीं उड़ाएंगे?’

ममा, क्या हो गया है आप को? पागल तो नहीं हो गईं—? कम से कम आप तो धीरज रखिए, अनुज ने कहा.

हां, मैं पागल हो गई हूं अनुज, मैं अब और धीरज कैसे रखूं? सच बेटा, बेटियों से कहीं अधिक मुश्किल है आज बेटों को पालना— बेटी एक बार न भी पढ़े तो लायक लड़का देख कर शादी कर दो, उस का जीवन तो कट ही जाएगा, लेकिन तुम लोग कुछ बन नहीं पाए तो क्या करोगे? तुम्हारे पिता के पास तो इतना पैसा भी नहीं है कि कोई व्यापार करा सकें, लेकिन यह भी तो जरूरी नहीं कि व्यापार में भी सफल हो पाओ. हर जगह प्रतियोगिता है, आज यदि एक जगह सफल नहीं हो पाए तो कैसे आशा करें कि दूसरी जगह भी सफल हो पाओगे?

तभी दरवाजे की घंटी बजी, अनुज दरवाजा खोलने गया तो देखा रमा ताई खड़ी हैं. उमा की अव्यवस्थित हालत देख कर वह बोलीं, क्या हालत बना रखी है उमा तुम ने?

क्या करूं, दीदी, आप ही बताओ… उमा ने कहा.

कार्तिकेय से सुन कर बुरा तो बहुत लगा, लेकिन यही तो जिंदगी है उमा, जीवन एक धूपछांव है, कभी दुख, कभी सुख. कभी सफलता कभी असफलता. सच्चा मानव तो वह है जो किसी भी हालत में हार न माने,और धैर्य व संयम का परिचय देते हुए लक्ष्य पाने का निरंतर उपाय करता रहे.

तुम ही सोचो, जब तुम्हें इतना दुख हो रहा है— अपमानित महसूस कर रही हो तो सुमित को कितना दुख हो रहा होगा? उमा, सुमित बहुत ही भावुक लड़का है. उस के आने पर तुम्हें बहुत ही संयमित व्यवहार करना होगा. उसे धैर्य बंधाना होगा. सोचना होगा कि आगे क्या और कैसे करना है? एक बार एक परीक्षा में असफल होने का अर्थ यह नहीं है कि वह नकारा हो गया. हो सकता है दूसरी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो जाए.

रमा भरी जवानी में ही विधवा हो गई थीं, समाज की परवा न कर छोटी नौकरी करते हुए उन्होंने न केवल बच्चों को पढ़ाया बल्कि खुद भी एम-ए-, बी-एड- कर के आज माध्यमिक स्कूल में शिक्षिका के पद पर काम कर रही हैं. दोनों बच्चे अच्छी जगहों पर नौकरी कर रहे हैं और उन्हें भी अपने मृदु व्यवहार के कारण समाज में सम्मानजनक स्थान मिला हुआ है.

कहती तो आप ठीक हैं, दीदी, लेकिन मन खुद ही बेकाबू हो उठता है, क्याक्या सपने संजोए थे, सब धूल में मिल गए, उमा ने कहा.

फिर वही बात, धैर्य रखो, सब ठीक हो जाएगा. दूर क्यों जाती हो, अब मेरे देवर को ही लो, 2 बार मैट्रिक में फेल हुए, लेकिन आज अफसर हैं कि नहीं? हिम्मत रखो, यदि तुम ही मुंह छिपाओगी तो दूसरों को तो कहने का और भी मौका मिलेगा. सामने भले ही अफसोस जाहिर करें, लेकिन पीठ पीछे वही लोग मजाक बनाने से नहीं चूकेंगे, रमा बोली.

जो हुआ सो हुआ, हमारा दुख है, सहन करते हुए उपाय तो ढूंढ़ना ही पडे़गा, लेकिन दीदी, दूसरों की उपहास भरी निगाहों से कैसे पीछा छुड़ा पाऊंगी? यही सोच कर मैं और भी ज्यादा बेचैन हो रही हूं, उमा ने कहा.

हमारे समाज में यही तो बुराई है कि लोगों के कहने से डर कर हम असंयमित व्यवहार करने लगते हैं और हमें भलेबुरे और उचितअनुचित का भी ज्ञान नहीं रहता— तुम्हें समाज की परवा न कर सुमित के बारे में सोचना होगा, उसे डांटनेफटकारने के बजाय उस की इच्छा जाननी होगी, कारण पता लगाना होगा कि ऐसा कैसे हुआ है? रमा ने सलाह देते हुए कहा.

आप ठीक कह रही हैं, दीदी, शायद यही सही रास्ता है, उमा ने कहा.

शाम को कार्तिकेय के आफिस से आने के बाद उमा ने रमा दीदी की सलाह उन्हें बताई तो उन्हें भी महसूस हुआ कि सुमित को विश्वास में ले कर ही कुछ फैसला लिया जा सकता है.

तीसरे दिन सुमित आया. उस ने आते ही पूछा, रिजल्ट निकला क्या?

हां, निकल तो गया, लेकिन बताओ तुम्हें कितने प्रतिशत अंकों की उम्मीद थी…? कार्तिकेय ने पूछा.

लो बेटा, पहले नाश्ता कर लो, तुम्हारे लिए गरमगरम आलू के परांठे बनाए हैं, उमा ने बात को बीच में काटते हुए कहा.

क्या बात है, मां, रास्ते में मैं ने अनुज से पूछा था कि क्या रिजल्ट निकला तो उस ने मना कर दिया और डैडी कह रहे हैं कि निकल गया- आप मुझ से जरूर कुछ छिपा रहे हैं, उस ने हम दोनों की तरफ संदेह की नजरों से देखते हुए कहा.

रिजल्ट निकल गया बेटा, लेकिन तुम नाश्ता तो करो, तब तक यह बताओ कि तुम्हें कितने प्रतिशत अंक आने की आशा थी? उमा ने पूछा.

80 से 85 प्रतिशत तो आने ही चाहिए. अब आप मार्कशीट दिखाएं तभी मैं नाश्ता करूंगा, सुमित बोला.

उस की जिद देख कर कार्तिकेय ने मार्कशीट उस के आगे कर दी. मार्कशीट देख कर वह बौखला कर बोला, यह मेरे अंक हो ही नहीं सकते.

शांत हो जाओ, धैर्य रखो, कभीकभी ऐसी अनहोनी हो जाती है- तुम यदि चाहोगे तो कापियों की रिचैकिंग करवाएंगे.

रिचैकिंग से क्या होगा, मेरा तो भविष्य ही बिगड़ गया, कहते हुए वह कमरे में घुस गया और कमरा अंदर से बंद कर लिया.

अरे, कोई उसे रोको, कहीं कुछ कर न ले, उमा कार्तिकेय को देख कर चिल्लाई.

नहीं, वह कुछ नहीं करेगा. वह मेरा बेटा है, उसे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दो, कार्तिकेय ने आत्मविश्वास के साथ कहा.

इतनी देर से अनुज दीवार के सहारे खड़ा हम सब की बातें सुन रहा था, लेकिन सुमित का कमरा बंद करना उसे झकझोर गया- वह डर के कारण मेरे पास आ कर निशब्द खड़ा हो गया, लेकिन उस की आंखें कह रही

थीं, ‘ममा, भैया को रोको’, शायद कार्तिकेय की बात पर उसे यकीन नहीं हो रहा था.

उस की ऐसी हालत देख कर कार्तिकेय ने दरवाजा खटखटाते हुए  कहा, सुमित बेटा, दरवाजा खोलो, बाहर आ जाओ— हम सब तुम्हारे दुख में बराबर के हिस्सेदार हैं, सुख तो तुम एक बार अकेले झेल ही लोगे, लेकिन दुख अकेले नहीं, दुख सब के साथ बांटने पर ही हलका हो पाता है.

 

जब मां बाप ही लगें पराए

रीतेश अपनी क्लास का मेधावी छात्र था. पर पिछले दिनों उस का नर्वस ब्रेक डाउन हो गया. इस से उस की योग्यता का ग्राफ तो गिरा ही दिनप्रतिदिन के व्यवहार पर भी बहुत असर पड़ा. खासतौर पर मां और भाई के प्रति उस का आक्रामक व्यवहार इतना बढ़ गया कि उसे मनोचिकित्सालय में भरती कराना पड़ा. उस के साथसाथ घर वालों की भी पर्याप्त काउंसलिंग की गई. तब 3 महीने बाद यह मनोरोगी फिर ठीक हुआ. उस के मांबाप को बच्चों के साथ बराबर का व्यवहार करने की राय दी गई.

क्यों पड़ी यह जरूरत

डा. विकास कुमार कहते हैं, दरअसल किसी भी मनोरोग की जड़ हमेशा रोगी के मनमस्तिष्क में नहीं होती. परिवार, परिवेश और परिचित से भी उस का जुड़ाव होता है, उस का असर अच्छेभले लोगों पर पड़ता है. हम औरों की दृष्टि से नहीं सोच पाते. अकसर मनोचिकित्सकों के पास ऐसे केस आते रहते हैं. ‘सिबलिंग राइवलरी’ बहुत कौमन है. ऐसा छोटेछोटे बच्चों में भी होता है, जिन बच्चों में उम्र का अंतर कम होता है उन में खासतौर पर. यदि मांबाप वैचारिक या अधिकार अथवा व्यवहार में बच्चों में ज्यादा भेद करें तो भाईबहनों में यह प्रवृत्ति आ जाती है.

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मांबाप हैं इस की जड़

छोटेछोटे बच्चे छोटे होने के बावजूद भाईबहनों को स्वाभाविक रूप से प्यार करते हैं. अकेला बच्चा मांबाप से पूछता है, औरों के भाईबहन हैं पर उस के नहीं. उस को भाई या बहन कब मिलेंगे? बच्चा बहुत निर्मल मन से उन का स्वागत करता है पर धीरेधीरे वह देखता है कि उस के भाईबहन को ज्यादा लाड़प्यार दिया जा रहा है, ज्यादा अटैंशन दी जा रही है तो अनजाने ही वह पहले उस बच्चे को और फिर मांबाप को अपना शत्रु समझने लगता है. फिर अपनी बुद्धि के अनुसार बदला लेने लगता है.

रिलेशनशिप काउंसलर निशा खन्ना कहती हैं, ‘‘अकसर मांबाप बच्चों को चीजें बराबर दिलाते हैं, खिलातेपिलाते एकजैसा हैं पर वे मन के स्तर पर एकरूपता नहीं रख पाते. जैसे किसी बच्चे की ज्यादा प्रशंसा करेंगे, उसे भविष्य की आशा बताएंगे, अपने सपनों को साकार करने वाला बताएंगे. वे यह भूल जाते हैं कि हर एक बच्चे का बौद्धिक व भावनात्मक स्तर भिन्न होता है. इसलिए मांबाप को चाहिए कि वे बच्चों के साथ डेटूडे व्यवहार में चौकस रहें. उन से बराबरी का व्यवहार करें वरना एक बच्चा कुंठित, झगड़ालू, ईर्ष्यालु और हिंसक तक हो सकता है. इस के दुष्परिणाम हत्या, आत्महत्या, तोड़फोड़ मनोरुग्णता जैसे कई रूपों में हो सकते हैं.’’

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पेरैंटिंग सब से बड़ी चुनौती

गृहिणी राजू कहती हैं, ‘‘बच्चों को पैदा करने से ज्यादा मुश्किल है प्रौपर पेरैंटिंग. यह आज की सब से बड़ी चुनौती है. पहले बच्चा संयुक्त परिवार में पलता था, उस की भीतरी, आंतरिक और भावनात्मक शेयरिंग के लिए दादादादी, बूआ, चाचाताऊ आदि थे. उन के पास बच्चों के लिए अवसर था. फिर अभाव भी थे तो बच्चे थोड़े में संतुष्ट थे परंतु आज का बच्चा जागरूक है. मीडिया के माध्यम से सबकुछ घर में देखता है, इसलिए वह मांबाप से अपने अधिकार चाहता है. वह तर्कवितर्क करता है, बहस में जरा भी संकोच नहीं करता. ऐसे में मांबाप को चाहिए कि वे सजग हो कर पेरैंटिंग करें. पैसा खर्च कर के कर्तव्य की इतिश्री न करें.’’

मांबाप अकसर बच्चों के प्रति सोचविचार कर व्यवहार नहीं करते. किशोर बबली कहती है, ‘‘मेरे मांबाप मेरी टौपर बहन पर जान छिड़कते हैं. मैं घर के सारे काम करती हूं, दादी का ध्यान रखती हूं. उन्हें इस से कोई मतलब नहीं. दीदी तो पानी तक हाथ से ले कर नहीं पीतीं. ऐसे में मैं टौपर बनूं तो कैसे?’’ दादी उस के मनोभावों का उद्वेलन शांत करती हैं पर मांबाप की ओर से वह खास संतुष्ट नहीं है. वह उन से अपने काम का रिटर्न और प्यार चाहती है.

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शेयरिंग जरूरी है

रमन मल्टीनैशनल कंपनी में ऊंचे ओहदे पर हैं. मांबाप का खूब खयाल रखते हैं. उन की बैंक मैनेजर पत्नी भी पूरा ध्यान रखती है. पर उन को यह बड़ा ही शौकिंग लगा जब मातापिता ने छोटे बेटे के साथ रहने का निर्णय लिया. छोटा बेटा मांबाप पर खास ध्यान भी नहीं देता, न ही उस के बच्चे. उस की घरेलू पत्नी भी अपने में ही मगन थी. मांबाप के इस निर्णय पर रमन व उन की पत्नी बहुत नाराज हो गए. फूटफूट कर रोए. एक पड़ोसिन ने रमन के मांबाप को यह बात बताई तो मांबाप को लगा सचमुच उन से गलती हो गई. वे रमन और उन की पत्नी को अपनी ओर से श्रीनगर घुमाने ले गए. वहां उन्होंने बताया कि छोटा लड़का कम कमाता है. उस की बीवी भी नौकरी नहीं करती. दोनों के बच्चे भी आज्ञाकारी नहीं हैं. ऐसे में वे साथ रहेंगे तो उन्हें कुछ आर्थिक मदद भी मिल जाएगी और बच्चों की पढ़ाईलिखाई व पालनपोषण भी अच्छा रहेगा. भले ही उन्हें रमन के साथ सुख ज्यादा है पर 8-10 साल भी हम जी गए तो उस की गृहस्थी निभ जाएगी वरना रोज की चिकचिक से मामला बिगड़ जाएगा.

रमन व उन की पत्नी ने काफी हलका महसूस किया, साथ ही हकीकत जान कर उन का छोटे भाई के प्रति नजरिया भी बदला. उन्होंने भी आर्थिक स्तर के चलते जो दूरियां आने लगी थीं उन्हें समय रहते पाट दिया.

पैसा ही सबकुछ नहीं

डा. जय अपने मातापिता को हर माह खर्च के लिए अच्छी राशि देते हैं पर उन्हें लगता है कि उन के मांबाप रिश्तेदारों में छोटे भाई का गुणगान ज्यादा करते हैं जिस ने कभी उन की हथेली पर कुछ नहीं रखा. इस के चलते परिवार में 2 गुट होने लगे. तब जय के मातापिता ने स्पष्ट किया कि बेटा, पैसे की मदद बहुत बड़ी है पर तुम्हारे छोटे भाई का पूरा परिवार भी कम मदद नहीं करता, राशनपानी लाना, कहीं लाना, ले जाना, छोड़ना, सामाजिकता निभाने में मदद करना. अगर हम इन्हीं कामों को

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पैसे से तौलें तो तुम्हारे पैसे से ज्यादा ही रहेगी यह मदद. कोई नापने में समझता है तो कोई तौलने में. डा. जय को भी लगा कि यह बात तो सही है कि पैसे देने के बाद वे मातापिता की खैरखबर नहीं ले पाते. उन को पिता के हार्टअटैक के समय छोटे भाई के ससुराल वालों की दौड़भाग भी याद आई.

नजरिए का विस्तार

सुरंजय और संजय मांबाप से खूब लड़ते हैं. उन के मंझले भाई अजय इन दोनों से अलग हैं. अजय शराब नहीं छूते. वे आज्ञाकारी व मांबाप के सहायक हैं. फिर भी मांबाप उन दोनों को भी बराबर प्यार देते हैं. उस के अच्छे होने का फायदा ही क्या? अजय के इस कौन्फ्लिक्ट पर मांबाप ने समझाया, ‘शरीर का कोई अंग जब तक ठीक होने लायक हो तब तक उस की पूरी परवा की जाती है. उन की संगत ठीक नहीं थी, हमारे प्यार से वह सुधरी, आगे और भी सुधार संभव है. तुम पर जो नाजविश्वास हमें है, उस का तो कहना ही क्या पर हम इन दोनों को नजरअंदाज नहीं कर सकते तुम्हारी मांग जायज होने के बावजूद. अजय की शिकायत काफी कम हो गई. वे समझ सके कि सब को बराबर प्यार देना मांबाप की जिम्मेदारी है. यही उन के भाइयों को भी करना चाहिए पर वे अपरिपक्व हैं.

कमजोर बच्चे की ओर झुकाव

मांबाप का मन अकसर छोटे और कमजोर बच्चों की ओर ज्यादा रहता है. वे सब बच्चों को समान व स्तरीय देखना चाहते हैं. ऐसे में कभीकभी भेदभाव जैसा व्यवहार लगता है पर असल में उन का भाव वैसा नहीं होता. बड़े बच्चों के साथ मांबाप दोस्ताना होते हैं. वे उन्हें जिम्मेदार समझ कर उन से उम्मीद करते हैं कि वे छोटे भाईबहनों का भी ध्यान रखें.

सही सलाह भी जरूरी

प्रकाश वैसे आईआईटी का छात्र है पर उसे लगता है कि उस के विकलांग भाई के पीछे मांबाप पागल हैं. अगर उस पर इस से आधा भी प्यार लुटाते तो वह 2 चांस नहीं गंवाता. उसे उस के दोस्तों ने समझाया, ‘तुम समर्थ हो, सबल हो. तुम्हारा बड़ा भाई हर काम के लिए उन पर निर्भर है. इसलिए अगर वे राधूराधू करें तो तुम परेशान मत हुआ करो. तुम्हारे पास बाहर की पूरी दुनिया है. राधू के पास व्हीलचेयर, किताबें, टीवी और इक्कादुक्का लोगों के अलावा कौन है? इतने पराधीन जीवन में मांबाप ही उस का साथ नहीं देंगे तो वह जी ही नहीं पाएगा.’ प्रकाश को लगा कि उस की सोच भी दोस्तों जैसी परिपक्व व सकारात्मक होनी चाहिए.

देनेलेने में फर्क

चाहे किसी के पास कितना ही धन हो पर अधिकार की प्राप्ति सब बराबर चाहते हैं. एक प्रोफैसर मां कहती हैं, मेरे बेटे का 5 लाख रुपए महीने का पैकेज है पर फिर भी वह छोटीछोटी बातों पर लड़ता है. उस के भाई को 20 हजार रुपए मिलते हैं. दो पैसा उसे दे दूं तो रूठ कर मेरी चीज मेरे सामने ही रख जाता है. तब मेरी सखी ने समझाया, ‘इस व्यवहार से तुम बेटेबहू दोनों खो दोगी.’ तब मैं ने समझा पैसे से भी ज्यादा जरूरी है भावनात्मकता व्यक्त करना. अब से मैं होलीदीवाली सब को बराबर देती हूं. भाईभाई आपस में कन्सर्न रख कर अब कुछ तरक्की पर हैं. बड़े भाई ने छोटे भाई के बिजनैस को प्रौफिटेबल बनाने में भी मदद की. होड़ और ईर्ष्या की जगह अच्छे अनुकरण ने ली. बलवीर कहते हैं, ‘‘मेरे बड़े बेटे के पास अकूत दौलत है. मैं ने अपनी प्रौपर्टी बांटी तो हिस्सा उस के हाथ से कराया. उस ने यादगार के तौर पर मामूली चीजें लीं बाकी भाईबहनों को दे दीं. उन सब में प्रेम भी खूब है. छोटा बेटा नशे का शिकार था उसे भी संभाला.’’

मनोचिकित्सक डा. विकास कहते हैं, ‘‘एकजैसी परवरिश पाने पर लगभग सब बच्चे एकजैसे योग्य निकल सकते हैं. उन में 19-20 का अंतर होता है. यह नैचुरल व ऐक्सेप्टेबल होता है.’’

मेरी माहवारी अनियमित है, साथ ही उन दिनों बहुत ज्यादा दर्द भी रहता है, क्या मैं पीसीओएस से पीड़ित हूं, और क्या मैं मां बन सकती हूं?

सवाल
मेरी उम्र 29 साल है. मेरी माहवारी अनियमित है, साथ ही उन दिनों बहुत ज्यादा दर्द भी रहता है. क्या मैं पीसीओएस से पीड़ित हूं, और क्या मैं मां बन सकती हूं?

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जवाब
अगर आप को अनियमित माहवारी है और बहुत ज्यादा गरमी व पसीना आने की शिकायत है, तो जल्द से जल्द किसी फर्टिलिटी सैंटर में जा कर अपनी जांच करवाएं. अगर ब्लड टैस्ट में आप का फौलिकल स्टिम्युलेटिंग हारमोन 25% से ज्यादा है, तो आप को पीओएफ का खतरा हो सकता है. हालांकि यह समस्या आनुवंशिक है लेकिन पर्यावरण और जीवनशैली जैसेकि धूम्रपान, शराब का सेवन, लंबी बीमारी जैसे थायराइड व आटोइम्यून बीमारियां, रेडियोथेरैपी या कीमोथेरैपी होना भी इस के मुख्य कारण हैं. इसलिए संपूर्ण जांच करानी बहुत जरूरी है.

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पीसीओएस : अनदेखी न करें

एक जमाना था जब महिलाओं के लिए घर से बाहर काम करना बहुत मुश्किल था. लेकिन वर्तमान समय में बाहरी दुनिया ही नहीं चांद पर भी उन का परचम लहरा रहा है. ऐसे में घर और बाहर को संतुलित करतेकरते एक महिला खुद के लिए समय नहीं निकाल पाती है. बेवक्त खाना, सेहत की अनदेखी, मशीनी बनती जीवनशैली और तनाव के कारण आजकल महिलाएं अनेक बीमारियों से ग्रस्त रहने लगी हैं. कैंसर, हार्ट डिजीज व आर्थ्राइटिस जैसी बीमारियों से आज हर तीसरी महिला ग्रस्त है. इन्हीं में से एक है पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम यानी पीसीओएस.

क्या है पीसीओएस

दिल्ली के बीएल कपूर हौस्पिटल की गाइनैकोलौजिस्ट डा. इंदिरा गणेशन बताती हैं, ‘‘महिलाओं के मासिकधर्म में अनियमितता और हारमोनल असंतुलन के कारण यह बीमारी जन्म लेती है. हर 10 में से 5 महिलाएं पीसीओएस की शिकार हैं. उत्तरी भारत की 40% महिलाओं में इस बीमारी के लक्षण पाए गए हैं.’’ समय पर भोजन न करना, अतिरिक्त तनाव और शरीर की सही देखभाल न करने की वजह से पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम के मामले बढ़ते जा रहे हैं. पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम में शरीर की पाचन क्षमता ग्रहण करने वाली ग्रंथियों की क्षमता कम हो जाती है, जिस की वजह से रिप्रोडक्टिव डिसऔर्डर के मामले सामने आते हैं.
लक्षण
पीसीओएस से ग्रस्त रोगियों में प्राय: निम्न लक्षण देखे जाते हैं:

– मासिकधर्म का नियमित न होना. कई बार 2-3 महीनों तक नहीं होता है.
– चेहरे पर अनचाहे बालों का उगना, ऐक्ने की समस्या जो इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं.
– पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का शिकार होने वाली 50% महिलाओं को मोटापे की शिकायत होती है.

कैसे की जा सकती जांच
डा. इंदिरा गणेशन बताती हैं, ‘‘इस बीमारी की जानकारी के लिए हम रोगी का ब्लड टैस्ट कराते हैं. इस के अलावा अल्ट्रासाउंड के माध्यम से भी चैक किया जा सकता है. यदि अल्ट्रासाउंड में ओवरी का साइज मिनिमम साइज (6 एमएम) से बढ़ कर (8 से 10 एमएम) आता है, तो इस का मतलब है कि रोगी इस बीमारी से ग्रस्त है.’’

उपचार
डा. इंदिरा गणेशन का कहना है, ‘‘इस बीमारी को रोका तो नहीं जा सकता है, लेकिन इसे कंट्रोल जल्द किया जा सकता है. सब से पहले हर युवा लड़की और महिला को इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि साल में 5-6 बार पीरियड जरूर आना चाहिए. अगर पीरियड बहुत कम आते हैं या 2-3 महीने के अंतराल में आते हैं, तो तुरंत महिला डाक्टर से संपर्क करें. इस के अलावा 2 तरह के हारमोंस होते हैं- प्रोजेस्टेरौन और ऐस्ट्रोजन. इन का संतुलन बनाए रखने के लिए दवा दी जाती है. इस बीमारी से गर्भ ठहरने में भी काफी दिक्कत होती है, इसलिए इस बीमारी के लक्षण दिखते ही सतर्क हो जाएं. लापरवाही कतई न बरतें.’

बचाव
– शरीर और चेहरे के अनचाहे बालों और मुंहासों का उपचार कराना.
– सही समय पर गर्भधारण करना.
– गर्भाशय की बाहरी परत के पतले होने पर कैंसरे के बढ़ते खतरे से बचाव करना.
– चरबी बनाने वाली कोशिकाओं को नियंत्रित रखना. ऐसा करने पर दिल से संबंधित बीमारियों पर भी काबू पाया जा सकता है.
प्रभाव
अगर पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का वक्त रहते सही उपचार नहीं होता है तो इस का पूरे शरीर पर असर दिखने लगता है. इस बीमारी की वजह से पाचन क्षमता वाली ग्रंथियां भी कमजोर होने लगती हैं. पीसीओएस को जड़ से खत्म न किए जाने पर कई और खतरनाक बीमारियां भी हो सकती हैं, जैसे स्तन कैंसर, ओवरी कैंसर, मधुमेह, रिप्रोडक्टिव सिस्टम में अनियमितता आदि.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

जमाना बदल गया- भाग 2 : आकांक्षा को अपने नाम से क्यों परेशानी थी

लड़का देख कर मामाजी ने कहा, “यह तो हीरा है. ऐसे लड़के को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए.” पापा बोले,”देखिए, वे लोग कर्मकांडी लोग हैं. हमारी बिटिया आकांक्षा आधुनिक विचारों की है. कर्मकांड और अंधविश्वास उसे पसंद नहीं.”

मम्मी बोलीं,”अरे लड़का नामी कालेज में पढ़ा हुआ है. अभी तो मांबाप के कहे पर है पर वह बाद में अंधविश्वास, कर्मकांड में विश्वास नहीं करेगा. आप भी तो गांव के थे, अब कैसे बदल गए?”

मेरे घर में सभी खुले विचारों के थे,”आप की बहन के घर में तो ऐसा ही वातावरण था. पर सब बच्चे पढ़लिख कर बड़ीबड़ी पोस्टों में आ गए और सब बदल गए. राजीव भी बदल जाएगा.”

मामा और नानी के बहुत कहने के पापा ने परेशान हो कर ‘हां’ कह दिया. पर उन्होंने कहा कि 1 महीने में मैं तैयारी नहीं कर सकता?” “अजी हम लोग हैं ना…हम कर लेंगे…”

पापा को मजबूरी में मानना पड़ा.शादी की तारीख तय कर दी गई. तैयारियां शुरू हो गईं. मैं बात को ठीक से समझ नहीं पाई, क्योंकि मैं तब सिर्फ 20 साल की थी. मुझे सोचनेसमझने का समय ही नहीं दिया गया.

एक दिन जब सगाई की अंगूठी के लिए हम बाजार गए तो वे लोग भी आए. जब मेरी बात राजीव से हुई तब मैं समझ चुकी थी कि घर के सभी लोगों की सोच एकजैसी है और सब के सब अंधविश्वासी और रूढ़िवादी हैं. तब तक पापा भी समझ चुके थे.

वहां से वापस आ कर जब मैं ने शादी के लिए मना किया तो सारे रिश्तेदार, जो घर पर आ चुके थे उन लोगों ने कहा,”इस में तो बचपना है. कार्ड छप चुका है, खानेपीने का ऐडवांस दे चुके हैं. अब कुछ नहीं हो सकता. हमारी बदनामी होगी. यह शादी तो करनी होगी…”

मेरे मन में तो आया कि मैं भाग जाऊं. पर पापा के बारे में सोच कर ऐसा ना कर सकी. 2-3 दिनों बाद पता चला कि होने वाले ससुरजी का व्यवहार भी बड़ा अजीब है. पापा से कुछ बात हुई थी और तब वे खासा परेशान हुए थे.

घर के बुजुर्गों ने पापा को समझा दिया,”शादी में ऐसी बातें होती रहती हैं, उस पर ध्यान मत दो.” मेरा मन बहुत ही आहत हुआ. मैं तो रोने लगी… “तू हम से ज्यादा समझती है क्या? समय आने पर सब ठीक हो जाएगा,” मामानाना कहने लगे.

मम्मी को अपने पीहर वालों पर बहुत भरोसा था. उन्हें लगा की वे कह रहे हैं तो सब ठीक ही हो जाएगा. शादी हो गई. शादी भी लड़के वालों ने अपने घर से नहीं की. एक धर्मशाला से की.

पापा बोले,”इस में भी कोई राज है जो वे लोग कुछ छिपा रहे हैं. वरना अपनी बहू का गृहप्रवेश अपने घर में करते हैं, कोई धर्मशाला में नहीं.” “आकांक्षा, तुम घुंघट करोगी,” यह हिदायत पहले ही दिन मैं सुन चुकी थी. जयपुर शहर की बात है. गलती से भी थोङा सिर दिखता तो ससुरजी देवर से कहते,”जा पंकज, भाभी का घुंघट खींच ले.‌”

मुझे बहुत बुरा लगता पर मैं खून के घूंट पी कर रह जाती. एक दिन तो मुझ से रहा नहीं गया, “पापाजी, आप तो अंडरवियर पहन कर बहूबेटियों के सामने घूमते हो, मेरे सिर ने ऐसा क्या कर दिया, जो उसे ढंकने की जरूरत है?”

ससुरजी ने इसे अपना इंसल्ट तो माना पर मुझे घूंघट पर छूट नहीं दी. फिर नाग पंचमी आई. तब मुझे पारंपरिक ड्रैस लहंगा पहना कर सिर में बोड़ला लगा कर घुंघट में जहां पर सांपों के बिल थे वहां जा कर पूजा करने और बिल में दूध डालने को कहा गया. इसे मुझे सहन करना बहुत मुश्किल हो रहा था.

उसी समय इस तमाशा को देखने के लिए मेरे साथ पढ़ने वाली एक सहेली वहां आई. वहां सब औरतें कह रही थीं कि नई बहू है. बहुत सुंदर है. इंग्लिश स्कूल में पढ़ी हुई है. अंगरेजी में एमए कर रही है.

उस लड़की ने उत्सुकतावश मेरा घूंघट हटा कर मुझे देखा तो हैरान रह गई,”अरे आकांक्षा… तेरी शादी कब हुई? तू ने हमें क्यों नहीं बुलाया? तू ने तो बताया भी नहीं? तुम तो कहती थीं  कि तुम्हारी फैमिली बहुत आधुनिक सोच वाली है और पापा दकियानुसी सोच वाले लोगों से शादी नहीं करेंगे? मगर तू यहां कैसे फंस गई? ये लोग तो बहुत ही अंधविश्वासी हैं?”

उस का इतना कहना था कि मेरा रोना फट पड़ा. मैं ने उसे बड़ी मुश्किल से रोका. वह सहेली मेरे साथ ही मेरे ससुराल भी आ गई. जब उस ने घर की हालत देखी तो बोली,”आकांक्षा तू तो सचमुच में फंस गई?” उस का इतना कहना था कि मुझे बहुत तेज रोना आया. दूसरे दिन जब मैं अपने पीहर आई तो बुरी तरह रोई.

मम्मी कहने लगीं, “बेटी, सहन करो थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा.”

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