लेखक-आरवी सिंह, विषयवस्तु विशेषज्ञ (प्रसार), कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती

खरीफ फसलों में धान उत्तर प्रदेश की प्रमुख फसल है. प्रदेश में चावल की औसत उपज में वृद्धि हो रही है. इसी कड़ी में प्रदेश और  देश में खुशबूदार (खुशबूदार चावल) की मांग भी काफी बढ़ रही है.

पूर्वांचल के जिलों में काला नमक धान की खेती की अलग ही पहचान है. इस की क्वालिटी के चलते बाजार भाव भी ज्यादा रहता है. पहले की प्रचलित काला नमक की प्रजातियों में कुछ समस्याएं जैसे उपज का कम होना, ज्यादा समयावधि, पौधों की लंबाई ज्यादा होने के चलते गिर जाना और ज्यादा पानी की जरूरत के चलते इस प्रजाति का क्षेत्रफल लगातार घटता गया. लेकिन काला नमक के खास गुणों के चलते भारतीय कृषि वैज्ञानिकों के लगातार शोध के बाद काला नमक की ज्यादा पैदावार वाली काला नमक 101, काला नमक 102 व काला नमक 103 किस्में बौनी, खुशबूदार व ज्यादा उपज देने वाली प्रजातियां विकसित की गई हैं. इन की खेती कर किसान ज्यादा मुनाफा उठा सकते हैं.

इन प्रजातियों में कई ऐसी खूबियां हैं, जो न केवल स्वाद में अच्छी मानी जा रही हैं, बल्कि ये कुपोषण को दूर करने में सब से ज्यादा मुफीद भी मानी जा रही हैं. इन प्रजातियों में निम्नलिखित खूबियां हैं :

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*      इन में दूसरे चावल की तुलना में आयरन 29.9 फीसदी व जिंक 31.1 फीसदी पाया जाता है, जो दूसरी सभी खुशबूदार प्रजातियों से सब से ज्यादा है.

*      इन के चावल में कुपोषण से लड़ने की ताकत ज्यादा होती है.

*      दाना काला, सफेद व बहुत ज्यादा खुशबूदार होता है

*      पैदावार पुराने काला नमक से डेढ गुना ज्यादा होती है.

*      20 अक्तूबर महीने के करीब बाली आती हैं और फसल नवंबर महीने के आखिर तक तैयार हो जाती है.

*      पुराने काला नमक से पकने में  2 हफ्ते कम समय लेती है.

*      पौधे की ऊंचाई तकरीबन 100-110 सैंटीमीटर तक होती है.

*      बालियां 20-25 सैंटीमीटर लंबी होती हैं.

*      दाने का प्रकार मध्यम होता है. इसे साधारण मशीन से भी कुटाई (चावल निकाला) किया जा सकता है.

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*      चावल का औसत बाजार भाव  55-60 रुपए प्रति किलोग्राम व मांग ज्यादा होने के चलते बेचने में कोई समस्या नहीं आती है.

*      चावल का फीसदी 65-70 तक पाया जाता है.

भूमि का चयन

सभी तरह की भूमियों में, जहां सिंचाई के साधन उपलब्ध हों, आसानी से इस की खेती की जा सकती है. वैसे, दोमट, मटियार व काली मिट्टी इस के लिए अच्छी होती है.

बीज की दर

काला नमक धान की तकरीबन 25-30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर रोपाई के लिए सही है.

नर्सरी का प्रबंधन

काला नमक धान की नर्सरी दूसरी प्रजाति के धान की तुलना में देर से यानी जून के आखिरी हफ्ते से जुलाई के दूसरे हफ्ते तक डालना अच्छा रहता है. एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए तकरीबन 800-1000 वर्गमीटर क्षेत्रफल में नर्सरी डालना सही होता है.नर्सरी की बोआई से पहले 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालते हैं.

नर्सरी में यदि जस्ता (जिंक) या लोहे (आयरन) की कमी दिखाई पड़े, तो 0.5 फीसदी जिंक सल्फेट व 0.2 फीसदी के रस सल्फेट के घोल का छिड़काव करना अच्छा होता है.

प्रजातियों का चयन

काला नमक 101, काला नमक 102 व काला नमक 103 ये किस्में बौनी, खुशबूदार व ज्यादा उपज देने वाली प्रजातियां हैं, जो भारतीय राइस इंस्टीट्यूट फिलीपींस द्वारा विकसित की गई हैं. इन में से काला नमक 101 का नतीजा बहुत अच्छा है.

बीज शोधन

नर्सरी डालने से पहले बीज शोधन जरूर कर लें. इस के लिए जहां पर जीवाणु ?ालसा या जीवाणुधारी रोग की समस्या हो, वहां पर  25 किलोग्राम बीज के लिए 0.4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या 40 ग्राम प्लांटोमाइसीन को मिला कर पानी में रातभर भिगो दें. दूसरे दिन छाया में सुखा कर नर्सरी डालें.

अगर जीवाणु ?ालसा की समस्या क्षेत्र में न हो तो 25 किलोग्राम बीज को रातभर पानी में भिगोने के बाद दूसरे दिन निकालने के बाद ऐक्स्ट्रा पानी निकल जाने के बाद 75 ग्राम थीरम या 50 ग्राम कार्बंडाजिम को 8-10 लिटर पानी में घोल कर बीज में मिला दिया जाए. इस के बाद छाया में अंकुरित कर के नर्सरी में डाला जाए. बीज शोधन के लिए बायोपैस्टिसाइड का इस्तेमाल किया जाए.

समय से करें रोपाई

नर्सरी डालने के 21-25 दिन बाद अच्छी तरह से तैयार किए गए खेत में इस की रोपाई करनी चाहिए. उचित गहराई व दूरी पर रोपाई इस प्रजाति की पौध की रोपाई 3-4 सैंटीमीटर से ज्यादा गहराई पर नहीं करनी चाहिए, वरना कल्ले कम निकलते हैं और उपज कम हो जाती है. पौधों की दूरी 20310 सैंटीमीटर की दूरी पर एक जगह पर 2-3 पौधे  लगाने चाहिए.

उर्वरक प्रबंधन

100-120 किलोग्राम नाइट्रोजन,  60 किलोग्राम फास्फोरस व 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से व सड़ी हुई गोबर की खाद 10-15 टन प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल अच्छा होता है. साथ ही, 20-25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर अच्छा नतीजा देता है.

खरपतवार प्रबंधन

धान की फसल में 2 तरीके से खरपतवार कंट्रोल किया जाता है. एक तो रोपाई के फौरन बाद और 3 दिन के अंदर ब्यूटाक्लोर 0.3 लिटर प्रति हेक्टेयर या एनीलोफास 1.5 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें या फिर रोपाई के 20-25 दिन के अंदर विस्पाईरीबैक सोडियम (नोमनी गोल्ड) 200-250 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर के खरपतवार पर काबू पाया जा सकता है.

यांत्रिकीकरण द्वारा खरपतवार नियंत्रण

अगर रसायनों का इस्तेमाल किए बिना निराईगुड़ाई के द्वारा खरपतवार कंट्रोल किया जाए, तो इस से उपज भी अच्छी मिलती है.

सिंचाई प्रबंधन

इस प्रजाति को खेत में बराबर नमी की जरूरत पड़ती है. यह 30-60 सैंटीमीटर अस्थायी पानी में भी अच्छी पैदावार देता है. ज्यादा पानी की दशा में जल निकासी का अच्छा इंतजाम करें.

फसल सुरक्षा

काला नमक धान की इन प्रजातियों में धान का बंका, तना छेदक, धान की गंधी और सैनिक कीट का प्रकोप प्रमुख रूप से होता है. कीट रसायन का प्रयोग अधिक प्रकोप के समय करना चाहिए. जहां तक संभव हो, एकीकृत प्रबंधन की विधियां अपनाई जाएं.

कटाई व मड़ाई

इस प्रजाति की धान की कटाई 85-90 फीसदी दानों के पक जाने के बाद कर लें. तैयार फसल की मड़ाई के लिए छाया में हवादार जगह पर सुखा कर मड़ाई करें.

काला नमक की इस प्रजाति की औसत उपज 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

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