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लेखकआर एस खरे

किशोर रुग्ण शैया पर पड़ा सोच रहा था कि मानव मस्तिष्क का यह कौन सा विज्ञान है कि जैसेजैसे वृद्धावस्था में काया जीणॆ और याददाश्त कमजोर हो रही है, वैसेवैसे बचपन की दबी स्मृतियां एकएक कर के चित्रपट की रील की भांति मानस पटल पर उभर कर आने लगी हैं.

आज न जाने क्यों स्कूल के दिनों के दोस्त जमना की याद फिर से उभर आई. गांधी नवीन माध्यमिक विद्यालय में हम दोनों का वह पहला दिन था. तब 2 माह के ग्रीष्म अवकाश के बाद एक जुलाई को स्कूल खुला करते थे. मेरे और जमना दोनों के लिए ही यह नया स्कूल था. हम 5वीं कक्षा पृथकपृथक प्राथमिक विद्यालयों से उत्तीर्ण कर यहां आए थे. दरअसल, जमना का घर इस छोटे से शहर के बिलकुल बाहरी छोर पर था और मेरा शहर के मध्य में. इस शहर में  तब प्राथमिक विद्यालय तो चारपांच थे पर माध्यमिक विद्यालय एवं उच्च माध्यमिक विद्यालय एक ही था.

हमारे विद्यालय का नाम गांधी नवीन माध्यमिक विद्यालय कैसे पड़ा,  इस की सही जानकारी तो नहीं, पर शायद स्कूल की नई बिल्डिंग बन जाने से यह नाम चल निकला होगा. माध्यमिक शाला से ही सटी हुई उच्च माध्यमिक शाला की बिल्डिंग थी. 8वीं कक्षा उत्तीर्ण कर विद्यार्थी इस में प्रवेश लेते.

खपरैल वाले हमारे प्राथमिक विद्यालय की तुलना में माध्यमिक शाला का पक्का भवन था. प्राथमिक विद्यालय में जहां हम टाटपट्टियों पर बैठा करते थे, यहां लकड़ी की बैंचडैस्क थीं.

मां ने मुझे सुबहसुबह नहला कर नया खाकी हाफपैंट और आधी बांह की सफेद कमीज पहनाई थी. स्कूल का यही गणवेष था.

स्कूल के बाहर गेट पर हमारे प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक विद्यार्थियों की सूची लिए खड़े थे. मुझ से कहा कि मैं 6ठी कक्षा के सैक्शन ‘ए’ में जा कर बैठूं. हर एक कमरे के बाहर काले रंग से बडेबड़े अक्षरों में कक्षा और सैक्शन लिखे थे.

कक्षा में पहुंच कर मैं पीछे की बैंच पर जा कर बैठ गया था. उसी समय बाजू में एक गोरा सुंदर सा लड़का आ कर बैठा था. पूछने पर उस ने अपना नाम जमना बताया था. “और तुम्हारा नाम?’’ उस ने पलट कर मुझ से पूछा था.” “किशोर’’ मैं ने बताया तो वह धीरे से मुसकरा दिया था. उस की मुसकान में भोलापन था. धीरेधीरे सभी बैंच विद्यार्थियों से भर गई थीं. फिर थोड़ी देर में जानकी मास्टर साहब हाथ में एक बड़े आकार का रजिस्टर लिए कक्षा में आए थे. इसी रजिस्टर में सभी विद्यार्थियों के नाम लिखे थे.  उन्होंने एकएक कर के सभी के नाम पुकारे और हाजिरी लेने के बाद अपना परिचय देते हुए बताया था कि वे 6ठी कक्षा के सैक्शन ‘ए’  के कक्षा अध्यापक रहेंगे.

जानकी मास्टीर साहब ने उसी दिन टाइम टेबल लिखवाया  कि प्रतिदिन पहले पीरियड से 6ठे पीरियड तक किस विषय को कौन से शिक्षक पढ़ाएंगे और यह कि चौथे पीरियड के बाद 15 मिनट का अवकाश मिलेगा. इस अवकाश को उस समय सभी इंटरवल कहा करते थे.

इंटरवल में सभी विद्यार्थी कक्षा से बाहर निकल आते और स्कूशल के गेट के बाहर खड़े चाट के ठेलों पर भीड़ लग जाया करती थी. जमना अक्सर अपने बस्ते (स्कूलबैग) में अमरूद, सीताफल या बेर रख कर लाता. वह बताया करता कि, उस के घर के आंगन में इन के पेड़ लगे हैं. इंटरवल में फल का आधा भाग मुझे देता और आधा वह खाता. कभीकभी हम चाट के ठेलों पर भी पहुंच जाते जहां एक पत्ते पर चाट ले कर आधाआधा हिस्सा खाते. धीरेधीरे मैं और जमना दोनों पक्के दोस्त बन गए. अब जो भी कक्षा में पहले आ जाता, वह एकदूसरे के लिए अपनी बैंच पर जगह रोक कर रखता. वैसे भी, जो विद्यार्थी पहले दिन जिस बैंच पर बैठ गया था, वह रोज वहीं बैठने लगा था. विद्यार्थियों का यह मनोविज्ञान है कि कक्षा में पहली बार जिस स्थान पर बैठ गए, उस से लगाव हो जाता है.

जमना पढ़ने में बहुत होशियार था. शिक्षक एक बार जो कुछ समझाते, उसे वह आसानी से समझ जाता. कक्षा में जब कोई प्रश्न पूछा जाता, उत्तर देने के लिए उस का हाथ सब से पहले उठता. मासिक परीक्षा में या तो मैं प्रथम आता  या जमना. जब अर्द्धवार्षिक परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ तो कक्षा छठवीं के तीनों सैक्शन में सर्वाधिक अंक जमना के थे. शनिवार की आम बालसभा में प्रधानाध्यापक ने सभी बच्चों के सामने जमना को मंच पर बुला कर पीठ थपथपाई थी. उसे उपहारस्वरूप बाल कथाओं की एक पुस्तक दी गई थी. तब से जमना सभी शिक्षकों का चहेता भी बन गया था. अब कक्षा के सभी बच्चे चाहते कि जमना उन का दोस्त बन जाए. जब जमना कक्षा में पहुंचता तो कई छात्र उस से कहते कि वह उन के पास आ कर बैठे. पर जमना अनसुनी करता हुआ मेरे पास आ कर ही बैठता.

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