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चित्र अधूरा है-भाग 1 : क्या सुमित अपने सपने साकार कर पाया

फोन की घंटी लगातार बज रही थी, किचन में काम करतेकरते उमा झुंझला उठी थी, ‘फोन उठाने भी कोई नहीं आएगा, एक पैर पर खड़ी मैं इधर भी देखूं, उधर भी देखूं-..’ गैस का रेगुलेटर कम कर के वह दौड़ी

और रिसीवर उठाया, हैलो– कहते ही सुमित की आवाज सुनाई पड़ी, जो बहुत खुश हो कर कह रहा था, ममा, आप के आशीर्वाद से मेरा भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन हो गया है- मैरिट सूची में नाम ऊपर होने के कारण आशा है कि मुख्य सेवा में मेरा नाम आ जाएगा- मैं 1-2 दिन में घर पहुंचूंगा-

उमा कुछ कहती कि फोन कट गया-

उमा ने सोचा कार्तिकेय को जा कर खुशखबरी सुना दूं, शयनकक्ष में गई तो देखा कार्तिकेय गहरी नींद में सोए हुए हैं- कल रात 1 बजे, 3 दिन के टूर के बाद लौटे थे- थके होंगे वरना 6 बजे के बाद तो बिस्तर पर रह ही नहीं सकते- साढे़ 6 से 7 बजे तक उन का ‘योगा’ करने का समय है और 7 बजे से आसपास के एरिया की फोन के द्वारा जानकारी हासिल करने का, क्योंकि सभी एरिया के स्टाफ अफसरों को नित्य अपने एरिया के कामों की जानकारी देने के निर्देश दिए हुए हैं, ताकि कहीं कोई समस्या होने पर तुरंत उस का समाधान किया जा सके- एक पब्लिक अंडरटेकिंग कंपनी में चीफ इंजीनियर जो हैं-

अनुज ट्यूशन गया है और पिताजी सुबह की सैर के लिए- सन, सन की आवाज आई तो, याद आया कि गैस पर, दही जमाने के लिए दूध गरम करने के लिए रखा था- दोपहर के खाने में सब को खाने के साथ ताजा दही चाहिए इसलिए रोजाना सुबह उठ कर पहले यही काम करना पड़ता है- जल्दी से जा कर गैस का रेगुलेटर बंद किया- अनुज ने आज नाश्ते में आलू के परांठे खाने की फरमाइश की थी इसलिए कुकर में आलू रख कर आटा गूंधने लगी.

उसे याद आया, पिताजी ने उसे एक बार समझाते हुए कहा था, ‘उमा, तुझ में धैर्य क्यों नहीं है? जीवन में प्रत्येक वस्तु, पलक झपकते ही हासिल नहीं हो जाती बल्कि उस के लिए धीरज के साथ प्रयत्न करना पड़ता है- यह बात और है कि किसीकिसी को अपने मकसद में सफलता कम प्रयास करने पर ही मिल जाती है और किसी को बहुत ज्यादा मेहनत करने के बाद, लेकिन सच्ची लगन, धैर्य और विश्वास हो तो कोई वजह नहीं कि मानव अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर पाए- पता नहीं इनसान जरा सी असफलता से बेकार ही इतना विचलित क्यों हो उठता है.?’ और आज सचमुच पिताजी की कही बात सत्य सिद्ध हुई थी, बेवजह ही इतने मानसिक तनाव झेलने के बाद यह खुशी का क्षण आ ही गया— हाथ आटा गूंध रहे थे किंतु अनायास ही दिमाग में आज से 6 साल पहले का दिन चलचित्र की भांति मंडराने लगा.

उस दिन सुबह से ही मन बेचैन था, 12वीं का परीक्षाफल निकलने वाला था- सुमित शुरू से ही पढ़ाई में अच्छा था- हमेशा ही कक्षा में प्रथम आता था, अतः सभी शिक्षक उसे प्यार करते थे और उस से बहुत खुश रहते थे- 10वीं की बोर्ड की परीक्षा में मैरिट सूची में आ कर उस ने न केवल अपना बल्कि अपने स्कूल का नाम भी रोशन किया था और इस साल भी सभी उस से यही आशा कर रहे थे.

महाराष्ट में तो प्रवेश परीक्षा होती नहीं है, केवल 12वीं कक्षा के अंकों के आधार पर ही मेडिकल और इंजीनियरिंग कालिज में एडमीशन मिल जाता है, इसलिए शहर के नामी कालिज में सुमित का दाखिला करा कर हम भविष्य के लिए आश्वस्त हो गए थे.

सुमित के मौसा, दिवाकर काफी दिनों से बीमार चल रहे थे. बेचारी अनिला 2 छोटेछोटे बच्चों के साथ परेशान थी. दिवाकर अपने मातापिता की एकलौती संतान थे, इसलिए अनिला को ससुराल पक्ष से भी कोई मदद नहीं मिल पाती थी- सुमित को अपने मौसामौसी से बेहद लगाव था इसलिए उस ने स्वयं ही दिल्ली मौसी के पास जाने की इच्छा जताई तो उमा ने थोड़ी हिचकिचाहट के साथ जाने की आज्ञादे दी. वैसे उमा ने कभी बच्चों को अकेले नहीं भेजा था, इसलिए वह थोड़ी झिझक रही थी, किंतु कार्तिकेय का विचार था कि एक उम्र के पश्चात बच्चों को स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता आनी चाहिए और यह तभी संभव है जब बच्चों को अकेले रहने और आनेजाने की आदत डाली जाए.

1-2 दिन में सुमित आने वाला था. 10वीं का परीक्षाफल निकलने से पहले जब वह सुमित से बारबार पूछती कि क्या तुम पास हो जाओगे, तो एक दिन वह झुंझला कर बोला था, ‘ममा, आप मुझे किसी से कम क्यों आंक रही हैं. मैं मैरिट में अवश्य आ जाऊंगा.’

सचमुच मैरिट लिस्ट में उस का नाम देख कर घर भर की छाती गर्व से फूल उठी थी. वह सब की आशाओं का केंद्र बिंदु बन बैठा था. दादी कहतीं, ‘डाक्टर बनाऊंगी अपने पोते को, कम से कम बुढ़ापे में मेरी सेवा तो करेगा. दूसरों के पास तो दिखाने नहीं जाना पड़ेगा— उन का वश चले तो एक ही बार में मरीज का खून चूस लें.’

दादा कहते, ‘डाक्टर नहीं, मैं अपने पोते को अपनी तरह कलक्टर बनाऊंगा ताकि वह समाज में फैले भ्रष्टाचार को दूर करने में सहायक बन कर समाज के उत्थान हेतु काम कर सके.’

part-2

कार्तिकेय चाहते थे कि उन का बेटा उन की तरह इंजीनियर बन कर देश के नवनिर्माण में सहयोग करे. 12वीं में उसे गणित और जीवविज्ञान दोनों विषय दिलवा दिए गए ताकि जिस ग्रुप में उस के अंक होंगे उसी में उसे दाखिला दिलवा दिया जाए. मगर परिवार का कोई भी सदस्य उस मासूम की इच्छा नहीं पूछ रहा था कि उसे क्या बनना है. उस की रुचि किस में है? मैं तो मूकदृष्टा थी. डर था तो केवल इतना कि वह कहीं दो नावों में सवार हो कर मंझधार में ही न गिर जाए? बस, मन ही मन यही सोचती कि जो भी अच्छा हो, क्योंकि आज प्रतियोगिताओं के दायरे में कैद बच्चे अपनी सुकुमारता, चंचलता और बचपना खो बैठे हैं. प्रतियोगिताओं में उच्च वरीयताक्रम के बच्चे ही सफल माने जाते हैं बाकी दूसरे सभी असफल. हो सकता है कि उन की तथाकथित असफलता के पीछे मानसिक, पारिवारिक और सामाजिक कारण रहे हों, लेकिन आज उन की समस्याओं के समाधान के लिए समय किस के पास है? असफलता तो असफलता ही है, उन के मनमस्तिौक पर लगा एक अमिट कलंक.

घंटी बजने की आवाज सुन कर मैं ने दरवाजा खोला तो अनुज को खड़ा पाया. परीक्षाफल के बारे में पूछने पर वह बोला, ‘मालूम नहीं, ममा, बहुत भीड़ थी इसलिए देख ही नहीं पाया.’

दोपहर में कार्तिकेय उस के कालिज जा कर मार्कशीट ले कर आए. मुंह उतरा हुआ था, देख कर मन में खलबली मच गई. किसी अनहोनी की आशंका से मन कांप उठा, ‘क्या हुआ? कैसा रहा रिजल्ट?’ बेचैनी से मैं पूछ ही उठी.

‘पानी तो पिलाओ, मुंह सूखा जा रहा है,’ कार्तिकेयने पानी मांगते हुए कहा था.

पानी ले कर आई तो कार्तिकेय ने सुमित की मार्कशीट मेरे सामने रख दी. सभी विषयों में कम अंक देख कर मुंह से निकल गया, ‘यह मार्कशीट अपने सुमित की हो ही नहीं सकती. रोल नंबर उसी का है न?’ अविश्वास की मुद्रा में मुंह से निकल गया.

‘क्यों बेवकूफों जैसी बातें करती हो, मार्कशीट भी उसी की है, नाम और रोल नंबर भी,’ वह फिर थोड़ा रुक कर बोले, ‘अच्छा हुआ, मांपिताजी कानपुर दीदी के पास गए हैं वरना ऐसे नंबर देख उन के दिल पर क्या गुजरती?’

‘रिचैकिंग करवाएंगे,’ उन की बात अनसुनी करते हुए उमा ने कहा.

‘रिचैकिंग से क्या होगा? हर सब्जेक्ट में तो ऐसे ही हैं. गनीमत है पास हो गया, लेकिन ऐसे भी पास होने से क्या फायदा?’ कार्तिकेय, फिर थोड़ा रुक कर बोले, ‘तुम्हारी सोशल विजिट भी बहुत हो गई थी उन दिनों, उसी का परिणाम है यह रिजल्ट.’

कार्तिकेय का इस समय उस पर आरोप लगाना पता नहीं क्यों उमा को बेहद अनुचित लगा था किंतु स्थिति की गंभीरता को समझ कर, उस के आरोपों पर ध्यान न देते हुए उमा ने पूरे भरोसे के साथ किंतु धीमे स्वर में कहा, ‘यह रिजल्ट उस का है ही नहीं. क्या आप सोच सकते हो कि वह एकाएक इतना गिर जाएगा?’

‘तुम्हारे कहने से क्या होता है, जो सामने है वही यथार्थ है,’ कार्तिकेय ने एकएक शब्द पर बल देते हुए कहा. वह अनुज को सामने पा कर फिर बोल उठे, ‘इन को तो हीरो बनने से ही फुरसत नहीं है. एक ने तो नाक कटा दी और दूसरा शायद जान ही ले ले,’ कह कर वह आफिस चले गए.

अनुज सिर नीचा कर के अपने कमरे में चला गया. मां को गुस्से में उलटासीधा बोलते तो उस ने जबतब सुना था, किंतु पिताजी को इतना अपसेट नहीं देखा था. मां पहले कभी उन के सामने कभी कुछ कहतीं तो वह उन का पक्ष लेते हुए कहते, ‘बच्चे हैं, अभी शैतानी नहीं करेंगे तो फिर कब करेंगे, रोनेपीटने के लिए तो सारी जिंदगी पड़ी है.’

तब मां बिगड़ कर कहतीं, ‘चढ़ाओ, और चढ़ाओ अपने सिर. कभी अनहोनी हो जाए तो मुझे दोष नहीं देना.’ तो वह कहते, ‘अनहोनी कैसे होगी? मेरे बच्चे हैं, देखना नाक ऊंची ही रखेंगे.’ फिर हमारी तरफ मुखातिब हो कर कहते, ‘बेटा, कभी मुझे शर्मिंदा मत करना, मेरे विश्वास को ठेस मत पहुंचाना.’

आज वही डैडी सुमित भैया के परीक्षाफल को देख कर इतने दुखी हैं? वैसे उन के रिजल्ट पर तो उसे भी भरोसा नहीं हो रहा था. ‘कभी किसी दिन यदि कोई पेपर खराब भी होता तो उसे अवश्य बताते, कहीं कुछ गड़बड़ तो अवश्य हुई थी, कहीं कंप्यूटर में तो माव्फ़र्स फीड करने में किसी ने गड़बड़ी तो नहीं कर दी—?’ सवाल मस्तिष्क में कुलबुला तो रहे थे किंतु कोई समाधान उस के पास न था.

तभी फोन की घंटी बज उठी. फोन अमिता आंटी का था. अनुज मम्मी के कमरे में गया तो देखा, मम्मी सुबक रही हैं, उन को फोन देना उचित न समझ कर कह दिया कि वह सो रही हैं. परीक्षाफल पूछने पर कह दिया कि ‘पता नहीं’. वह जानता था कि वह कालोनी की इनफारमेशन सेंटर हैं. हर घर के समाचार उन के पास रहते हैं और पल भर में ही सब के पास पहुंच भी जाते हैं. पता नहीं उन को सब की घरेलू जिंदगी में इतनी दिलचस्पी क्यों रहती है? वैसे जब से उन की एकलौती पुत्री ने घर से भाग कर लव मैरिज की है तब से वह थोड़ा शांत जरूर हो गई हैं, लेकिन आदत तो आदत ही है, फोन रखने के बाद मम्मी ने अनुज से पूछा, ‘किस का फोन था?’

‘अमिता आंटी का.’

‘क्या कहा तू ने?’

‘कह दिया अभी पता नहीं चला है, डैडी ने किसी को भेजा है.’

part-3

‘कब तक झूठ बोलोगे? सचाई छिपाने से भी नहीं छिपती,’ उन की आंखों से आंसू निकलते जा रहे थे और वह कहे जा रही थी, ‘तुम लोगों ने कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. कल तक जिन के सामने मैं गर्व से कहती थी कि मेरे बच्चे हीरे हैं, अब उन्हें क्या जवाब दूंगी? तुम तो कोयला ही निकले. अपने मुंह पर तो कालिख पोती ही तुम ने हमारे मुंह पर भी पोत दी.’

अनुज जानता था अभी मां से कुछ भी कहना ठीक नहीं है और उमा सदमे की स्थिति में कहती जा रही थीं, ‘अरे, इन्हीं हाथों से खिलाया, पिलाया, पढ़ाया, दिनरात एक कर दिए अपनी सभी इच्छाएं कुरबान कर दीं तुम दोनों पर, किंतु क्या मिला मुझे? यह अपमान, दुख और?’

तभी दोबारा फोन की घंटी घनघना उठी, तब तक अनुज वहां से चला गया था. उमा अचानक सामने रखे सुमित के आईकार्ड पर लगे फोटो पर तड़ातड़ चांटे मारने लगी, बोल, क्या जवाब दूं दुनिया को— उन को जिन्होंने 10वीं में मैरिट में आने पर मिठाई खाई थी, हमारे आत्मगर्वित चेहरे को देख कर जिन आंखों में ईर्ष्या पैदा हो गई थी, वह आज क्या हमारा मजाक नहीं उड़ाएंगे?’

ममा, क्या हो गया है आप को? पागल तो नहीं हो गईं—? कम से कम आप तो धीरज रखिए, अनुज ने कहा.

हां, मैं पागल हो गई हूं अनुज, मैं अब और धीरज कैसे रखूं? सच बेटा, बेटियों से कहीं अधिक मुश्किल है आज बेटों को पालना— बेटी एक बार न भी पढ़े तो लायक लड़का देख कर शादी कर दो, उस का जीवन तो कट ही जाएगा, लेकिन तुम लोग कुछ बन नहीं पाए तो क्या करोगे? तुम्हारे पिता के पास तो इतना पैसा भी नहीं है कि कोई व्यापार करा सकें, लेकिन यह भी तो जरूरी नहीं कि व्यापार में भी सफल हो पाओ. हर जगह प्रतियोगिता है, आज यदि एक जगह सफल नहीं हो पाए तो कैसे आशा करें कि दूसरी जगह भी सफल हो पाओगे?

तभी दरवाजे की घंटी बजी, अनुज दरवाजा खोलने गया तो देखा रमा ताई खड़ी हैं. उमा की अव्यवस्थित हालत देख कर वह बोलीं, क्या हालत बना रखी है उमा तुम ने?

क्या करूं, दीदी, आप ही बताओ… उमा ने कहा.

कार्तिकेय से सुन कर बुरा तो बहुत लगा, लेकिन यही तो जिंदगी है उमा, जीवन एक धूपछांव है, कभी दुख, कभी सुख. कभी सफलता कभी असफलता. सच्चा मानव तो वह है जो किसी भी हालत में हार न माने,और धैर्य व संयम का परिचय देते हुए लक्ष्य पाने का निरंतर उपाय करता रहे.

तुम ही सोचो, जब तुम्हें इतना दुख हो रहा है— अपमानित महसूस कर रही हो तो सुमित को कितना दुख हो रहा होगा? उमा, सुमित बहुत ही भावुक लड़का है. उस के आने पर तुम्हें बहुत ही संयमित व्यवहार करना होगा. उसे धैर्य बंधाना होगा. सोचना होगा कि आगे क्या और कैसे करना है? एक बार एक परीक्षा में असफल होने का अर्थ यह नहीं है कि वह नकारा हो गया. हो सकता है दूसरी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो जाए.

रमा भरी जवानी में ही विधवा हो गई थीं, समाज की परवा न कर छोटी नौकरी करते हुए उन्होंने न केवल बच्चों को पढ़ाया बल्कि खुद भी एम-ए-, बी-एड- कर के आज माध्यमिक स्कूल में शिक्षिका के पद पर काम कर रही हैं. दोनों बच्चे अच्छी जगहों पर नौकरी कर रहे हैं और उन्हें भी अपने मृदु व्यवहार के कारण समाज में सम्मानजनक स्थान मिला हुआ है.

कहती तो आप ठीक हैं, दीदी, लेकिन मन खुद ही बेकाबू हो उठता है, क्याक्या सपने संजोए थे, सब धूल में मिल गए, उमा ने कहा.

फिर वही बात, धैर्य रखो, सब ठीक हो जाएगा. दूर क्यों जाती हो, अब मेरे देवर को ही लो, 2 बार मैट्रिक में फेल हुए, लेकिन आज अफसर हैं कि नहीं? हिम्मत रखो, यदि तुम ही मुंह छिपाओगी तो दूसरों को तो कहने का और भी मौका मिलेगा. सामने भले ही अफसोस जाहिर करें, लेकिन पीठ पीछे वही लोग मजाक बनाने से नहीं चूकेंगे, रमा बोली.

जो हुआ सो हुआ, हमारा दुख है, सहन करते हुए उपाय तो ढूंढ़ना ही पडे़गा, लेकिन दीदी, दूसरों की उपहास भरी निगाहों से कैसे पीछा छुड़ा पाऊंगी? यही सोच कर मैं और भी ज्यादा बेचैन हो रही हूं, उमा ने कहा.

हमारे समाज में यही तो बुराई है कि लोगों के कहने से डर कर हम असंयमित व्यवहार करने लगते हैं और हमें भलेबुरे और उचितअनुचित का भी ज्ञान नहीं रहता— तुम्हें समाज की परवा न कर सुमित के बारे में सोचना होगा, उसे डांटनेफटकारने के बजाय उस की इच्छा जाननी होगी, कारण पता लगाना होगा कि ऐसा कैसे हुआ है? रमा ने सलाह देते हुए कहा.

आप ठीक कह रही हैं, दीदी, शायद यही सही रास्ता है, उमा ने कहा.

शाम को कार्तिकेय के आफिस से आने के बाद उमा ने रमा दीदी की सलाह उन्हें बताई तो उन्हें भी महसूस हुआ कि सुमित को विश्वास में ले कर ही कुछ फैसला लिया जा सकता है.

तीसरे दिन सुमित आया. उस ने आते ही पूछा, रिजल्ट निकला क्या?

हां, निकल तो गया, लेकिन बताओ तुम्हें कितने प्रतिशत अंकों की उम्मीद थी…? कार्तिकेय ने पूछा.

लो बेटा, पहले नाश्ता कर लो, तुम्हारे लिए गरमगरम आलू के परांठे बनाए हैं, उमा ने बात को बीच में काटते हुए कहा.

क्या बात है, मां, रास्ते में मैं ने अनुज से पूछा था कि क्या रिजल्ट निकला तो उस ने मना कर दिया और डैडी कह रहे हैं कि निकल गया- आप मुझ से जरूर कुछ छिपा रहे हैं, उस ने हम दोनों की तरफ संदेह की नजरों से देखते हुए कहा.

रिजल्ट निकल गया बेटा, लेकिन तुम नाश्ता तो करो, तब तक यह बताओ कि तुम्हें कितने प्रतिशत अंक आने की आशा थी? उमा ने पूछा.

80 से 85 प्रतिशत तो आने ही चाहिए. अब आप मार्कशीट दिखाएं तभी मैं नाश्ता करूंगा, सुमित बोला.

उस की जिद देख कर कार्तिकेय ने मार्कशीट उस के आगे कर दी. मार्कशीट देख कर वह बौखला कर बोला, यह मेरे अंक हो ही नहीं सकते.

शांत हो जाओ, धैर्य रखो, कभीकभी ऐसी अनहोनी हो जाती है- तुम यदि चाहोगे तो कापियों की रिचैकिंग करवाएंगे.

रिचैकिंग से क्या होगा, मेरा तो भविष्य ही बिगड़ गया, कहते हुए वह कमरे में घुस गया और कमरा अंदर से बंद कर लिया.

अरे, कोई उसे रोको, कहीं कुछ कर न ले, उमा कार्तिकेय को देख कर चिल्लाई.

नहीं, वह कुछ नहीं करेगा. वह मेरा बेटा है, उसे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दो, कार्तिकेय ने आत्मविश्वास के साथ कहा.

इतनी देर से अनुज दीवार के सहारे खड़ा हम सब की बातें सुन रहा था, लेकिन सुमित का कमरा बंद करना उसे झकझोर गया- वह डर के कारण मेरे पास आ कर निशब्द खड़ा हो गया, लेकिन उस की आंखें कह रही

थीं, ‘ममा, भैया को रोको’, शायद कार्तिकेय की बात पर उसे यकीन नहीं हो रहा था.

उस की ऐसी हालत देख कर कार्तिकेय ने दरवाजा खटखटाते हुए  कहा, सुमित बेटा, दरवाजा खोलो, बाहर आ जाओ— हम सब तुम्हारे दुख में बराबर के हिस्सेदार हैं, सुख तो तुम एक बार अकेले झेल ही लोगे, लेकिन दुख अकेले नहीं, दुख सब के साथ बांटने पर ही हलका हो पाता है.

part-4

कार्तिकेय की बात सुन कर सुमित दरवाजा खोल कर उन से लिपट कर रोने लगा, विश्वास कीजिए पापा, मेरे सारे पेपर अच्छे हुए थे— पता नहीं अंक क्यों इतने कम आए?

कोई बात नहीं, बेटा, जीवन में कभीकभी अप्रत्याशित घट जाता है. उस के लिए इतना निराश होने की आवश्यकता नहीं है. अब हमें आगे के लिए सोचना है. क्या करना चाहते हो, अगले वर्ष प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठना चाहोगे या किसी कालिज में दाखिला ले कर पढ़ना चाहोगे? कार्तिकेय ने पूछा.

पापा, मैं कालिज में दाखिला ले कर पढ़ने के बजाय प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो कर अपनी योग्यता सिद्ध करना चाहूंगा, लेकिन अब मैं यहां नहीं पढ़ना चाहूंगा बल्कि दिल्ली में मौसीजी के पास रह कर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करूंगा, सुमित ने कहा.

ठीक है, जैसी तेरी इच्छा. वैसे भी तेरे मौसाजी तो इसी वर्ष प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने के लिए कह रहे थे. किंतु हम सोच रहे थे कि तुम्हारा काम यहीं हो जाएगा, लेकिन तब उन की बात पर हम ने यान ही नहीं दिया था. दिल्ली में अच्छे कोंचिंग इंस्टीट्यूट भी हैं, कार्तिकेय बोले.

उमा की सुमित को दिल्ली भेजने की बिलकुल भी इच्छा नहीं थी. अनुज भी भैया के दूर होने की सोच कर उदास हो गया था, इसलिए दोनों ही चाहते थे कि वह यहीं रह कर कुछ करे. यहां भी तो सुविधाओं की कमी नहीं है, यहां रह कर भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की जा सकती है.

कल सुमित की कुशलक्षेम पूछने के लिए दिवाकर और अनिला का फोन आया था, उस के खराब रिजल्ट की बात सुन कर उन्होंने फिर अपनी बात दोहराई तो उमा को भी लगने लगा कि शायद दिल्ली भेजना ही उस के लिए अच्छा हो. कभीकभी स्थान परिवर्तन भी सुखद रहता है और फिर जब स्वयं सुमित की भी यही इच्छा है…

वैसे भी जीवन में कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है. बच्चों को सदा बांध कर तो नहीं रखा जा सकता. संतोष इतना था कि दिल्ली जैसे महानगर में वह अकेला नहीं बल्कि दिवाकर और अनिला की छत्रछाया और मार्गदर्शन में रहेगा.

दिवाकर दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे, सुमित को सदा प्रथम आते देख कर उन्होंने कई बार कहा था कि उसे दिल्ली भेज दिया जाए जिस से वह प्रतियोगी परीक्षाओं की उचित तैयारी कर किसी अच्छे इंस्टीट्यूट से इंजीनियंरिंग या मेडिकल की डिगरी ले तो भविष्य के लिए अच्छा होगा.

सुमित को दिल्ली भेज दिया था. वह बीचबीच में छुट्टियों में घर आता रहता था. एक बार सुमित और अनुज किसी बात पर झगड़ रहे थे. बेकार ही उमा कह बैठी, पता नहीं, कब तुम दोनों को अक्ल आएगी? दूर रहते हो तब यह हालत है. यह नहीं कि बैठ कर परीक्षा की तैयारी करो. पड़ोस के नंदा साहब के लड़के को देखो, प्रथम बार में ही मेडिकल में सेलेक्शन हो गया. कितनी प्रशंसा करती है वह अपने बेटे की- मैं किस मुंह से तुम्हारी तारीफ करूं- यही हाल रहा तो जिंदगी में कुछ भी नहीं कर पाओगे— जब तक हम हैं, दालरोटी तो मिल ही जाएगी, उस के बाद भूखों मरना.

सुमित तो सिर झुका कर बैठ गया किंतु अनुज बोल उठा, ममा, आप ने कभी अधूरे चित्र को देखा है, कितना अनाकर्षक लगता है…

मुझे असमंजस में पड़ा देख कर वह फिर बोला, ममा, अभी हम अधूरे चित्र के समान ही हैं— कभी कोई चित्र शीघ्र पूर्णता प्राप्त कर लेता है और कभीकभी पूर्ण होने में समय लगता है.

मैं उस की बात का आशय समझ कर कह उठी, बेटा, पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं.

कार्तिकेय, जो पीछे खड़े सारा वार्तालाप सुन रहे थे, भी कह उठे, बातें बनाना तो बहुत आसान है बेटा, किंतु कुछ कर पाना—कुछ बन पाना बहुत ही कठिन है. जब तक परिश्रम और लगन से येय की प्राप्ति की ओर अग्रसर नहीं होगे तब तक सफल नहीं हो पाओगे.

सुमित के 2 बार प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल हो जाने से हम सब निराश हो गए थे. कार्तिकेय ने तो सुमित से बातें करना ही छोड़ दिया था. वह बीचबीच में घर आता भी तो अपने कमरे में ही बंद पड़ा किताबों में सिर छिपाए रहता, मेरे मुंह से ही जबतब न चाहते हुए भी अनचाहे शब्द निकल जाते. तब दादाजी ही उस का पक्ष लेते हुए कहते, बेटा, ऐसा कह कर उस का मनोबल मत तोड़ा कर— सब डाक्टर और इंजीनियर ही बन जाएं तो अन्य क्षेत्रें का काम कैसे चलेगा? धैर्य रखो— एक दिन अवश्य वह सफल होगा.

पिताजी, न जाने वह शुभ घड़ी कब आएगी—? मांजी तो पोते से इलाज करवाने की अधूरी इच्छा लिए ही चली गईं. अब और न जाने क्या देखना बाकी है—?

बेटा, इच्छा तो इच्छा ही है, कभी पूरी हो पाती है कभी नहीं. वैसे भी क्या आज तक किसी मनुष्य की समस्त इच्छाएं पूर्ण हुई हैं, लिहाजा उस के लिए किसी को दोष देना और अपमानित करना उचित नहीं है, वह उतने ही संयम से उक्कार देते, तब लगता कि मुझ में और कार्तिकेय में पिताजी के समान सूझबूझ क्यों नहीं है. सुमित की परीक्षा की इन घडि़यों में अपने मधुर वचनों से और उस के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का पता लगा कर उस का मनोबल बढ़ाने का प्रयास क्यों नहीं करते?

वैसे भी सुमित को बचपन से ही मुझ से ज्यादा अपने पापा से लगाव था, अतः उन की बेरुखी से वह बुरी तरह घायल हो गया था. तभी, इस बार सुमित जो गया, आया ही नहीं.

अनिला लिखती, ‘दीदी, सुमित ने स्वयं को पढ़ाई में डुबो लिया है, लेकिन पता नहीं क्यों वह सफल नहीं हो पा रहा है…? जबजब वह घर से लौटता है तबतब वह और भी ज्यादा निराश हो जाता है. शायद अपनी उपेक्षा और अवहेलना के कारण.’

अब उमा को भी महसूस होने लगा था कि शायद अभी तक का हमारा व्यवहार ही उस के प्रति गलत रहा है. तभी उस में आत्मविश्वास की कमी आती जा रही है, और हो सकता है वह पढ़ने का प्रयत्न करता हो, लेकिन अति दबाव में आ कर वह पूरी तरह यान केंद्रित न कर पा रहा हो.

प्रारंभ से ही बच्चों को हम अपनी आकांक्षाओं, आशाओं के इतने बड़े जाल में फांस देते हैं कि वह बेचारे अपना अस्तित्व ही खो बैठते हैं, समझ नहीं पाते कि उन की स्वयं की रुचि किस में है, उन्हें कौन से विषय चुनने चाहिए. वैसे भी हमारी आज की शिक्षा प्रणाली बच्चों के सर्वांगीण विकास में बाधक है. वह उन्हें सिर्फ परीक्षा में सफल होने हेतु विभिन्न प्रकार के तरीके उपलब्ध कराती है न कि जीवन के रणसंग्राम में विपरीत परिस्थितियों से जूझने के. बच्चे की सफलता, असफलता और योग्यता का मापदंड केवल विभिन्न अवसरों पर होने वाली परीक्षाएं ही हैं. चाहे उसे देते समय बच्चे की शारीरिक, मानसिक स्थिति कैसी भी क्यों न हो?

सुमित के न आने के कारण उमा ही बीचबीच में जा कर मिल आती. उसे अकेला ही आया देख कर वह निराश हो जाता था. वह जानती थी कि उस की आंखें पिता के प्यार के लिए तरस रही हैं, लेकिन कार्तिकेय ने भी स्वयं को एक कवच में छिपा रखा था, जहां बेटे की अवहेलना से उपजी आह पहुंच ही नहीं पाती थी. शायद पुरुष बच्चों की सफलता को ही ग्रहण कर गर्व से कह सकता है— ‘आखिर बेटा किस का है?’ लेकिन एक नारी—एक मां ही बच्चों की सफलताअसफलता से उत्पन्न सुखदुख में बराबर का साथ दे कर उन्हें सदैव अपने आंचल की छाया प्रदान करती रहती है.

सुमित की ऐसी दशा देख कर उमा काफी विचलित हो गई थी, लेकिन अब कुछ भी कर पाने में स्वयं को विवश पा रही थी. पितापुत्र के शीत युœ ने पूरे घर के माहौल को बदल दिया था. अब तो हंसमुख अनुज के व्यक्तित्व में भी परिवर्तन आ गया था. वह भी धीरेधीरे गंभीर होता जा रहा था. सिर्फ काम की बातें ही करता था. पूरे दिन अपने कमरे में कैद किताबों में ही उलझा रहता— शायद पापा की खामोशी ने उसे बुरी तरह झकझोर कर रख दिया था.

अनिला से ही पता चला कि सुमित ने बी-एससी- प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर सिविल सर्विसेस की कोचिंग करनी प्रारंभ कर दी है और उसी में रातदिन लगा रहता है-पिताजी के हंसमुख स्वभाव के कारण ही घर में थोड़ी रौनक थी वरना अजीब सी खामोशी छाती जा रहा थी— मां की मृत्यु के पश्चात वह दोपहर का समय अनाथाश्रम जा कर बच्चों और प्रौढ़ों को शिक्षादान करने में व्यतीत करते थे. इस नेक काम की दीप्ति से ही आलोकित उन का तनमन मरुस्थल हो आए. घर में थोड़ी शीतल बयार का झोंका दे कर प्रसन्नता देने का प्रयास करता रहता था.

उमा बेटा, एक कप चाय मिलेगी? सुबह की सैर से लौट कर आए पिताजी ने किचन में आ कर दूध से भरा जग रखते हुए कहा.

बस, एक मिनट, पिताजी—

वास्तव में उन की सैर और भैंस का ताजा दूध लाने का काम दोनों साथसाथ हो जाते थे. कभीकभी सब्जी, फल इत्यादि यदि उचित दाम में मिल जाते तो वह भी ले आते थे.

चाय का कप टेबुल पर रखते हुए उमा ने कहा, पिताजी, आप का स्वप्न पूरा हो गया.

स्वप्न— कैसा स्वप्न—? क्या सुमित सिविल सर्विसेज में आ गया? पिताजी ने चौंकते हुए पूछा.

हां, पिताजी, आज ही उस का फोन आया था, उमा ने कहा.

मुझे मालूम था, आखिर पोता किस का है? वह हर्षातिरेक से बोल उठे थे, साथ ही उन की आंखों में खुशी के आंसू भी छलक आए थे.

सब आप के आशीर्वाद के कारण ही हुआ है. बेटा, बड़ों का आशीर्वाद तो सदा बच्चों के साथ रहता है, लेकिन उस की इस सफलता का मुख्य श्रेय दिवाकर और अनिला को है जिन्होंने उसे पलपल सहयोग और मार्गदर्शन दिया वरना जैसा व्यवहार उसे तुम दोनों से मिला उस स्थिति में वह पथभ्रष्ट हो कर या तो चोरउचक्का बन जाता या बेरोजगारों की संख्या में एक वृद्धि और हो जाती.

पिताजी ज्यादा ही भावुक हो चले थे, वरना इतने कठोर शब्द वह कभी नहीं बोलते. वह सच ही कह रहे थे, वास्तव में दिवाकर और अनिला ने उसे उस समय सहारा दिया जब वह हमारी ओर से निराश हो गया था. मैं पीछे मुड़ी तो देखा कार्तिकेय खड़े थे. एक बार फिर उन का चेहरा दमक उठा था शायद आत्माभिमान के कारण— योग्य पिता के योग्य पुत्र होने के कारण, लेकिन वह जानती थी कि वह अपने मुंह से प्रशंसा का एक शब्द भी नहीं कहेंगे. मैं कुछ कहने को हुई कि वह अपने कमरे में चले गए.

आज सुमित के कारण हमारी नाक ऊंची हो गई थी. कल तक जो बेटा नालायक था, आज वह लायक हो गया. संतान योग्य है तो मातापिता भी योग्य हो जाते हैं वरना पता नहीं कैसे परवरिश की बच्चों की कि वे ऐसे निकल गए कि ताने सुनसुन कर जीना दुश्वार हो जाता है. यह दुनिया का कैसा दस्तूर है?

आज का मानव, जीवन में आए तनिक से झंझावातों से स्वयं को इतना असुरक्षित क्यों महसूस करने लगता है कि अपने भी उसे पराए लगने लगते हैं? अनुज का कथन याद हो आया था— ‘एक अधूरा चित्र तो पूर्णता की ओर अग्रसर हो रहा है दूसरा भी समय आने पर रंग बिखेरेगा ही,’ इस आशा ने मन में नई उमंग जगा दी थी.

चित्र अधूरा है

चित्र अधूरा है-भाग 2 : क्या सुमित अपने सपने साकार कर पाया

कार्तिकेय चाहते थे कि उन का बेटा उन की तरह इंजीनियर बन कर देश के नवनिर्माण में सहयोग करे. 12वीं में उसे गणित और जीवविज्ञान दोनों विषय दिलवा दिए गए ताकि जिस ग्रुप में उस के अंक होंगे उसी में उसे दाखिला दिलवा दिया जाए. मगर परिवार का कोई भी सदस्य उस मासूम की इच्छा नहीं पूछ रहा था कि उसे क्या बनना है. उस की रुचि किस में है? मैं तो मूकदृष्टा थी. डर था तो केवल इतना कि वह कहीं दो नावों में सवार हो कर मंझधार में ही न गिर जाए? बस, मन ही मन यही सोचती कि जो भी अच्छा हो, क्योंकि आज प्रतियोगिताओं के दायरे में कैद बच्चे अपनी सुकुमारता, चंचलता और बचपना खो बैठे हैं. प्रतियोगिताओं में उच्च वरीयताक्रम के बच्चे ही सफल माने जाते हैं बाकी दूसरे सभी असफल. हो सकता है कि उन की तथाकथित असफलता के पीछे मानसिक, पारिवारिक और सामाजिक कारण रहे हों, लेकिन आज उन की समस्याओं के समाधान के लिए समय किस के पास है? असफलता तो असफलता ही है, उन के मनमस्तिौक पर लगा एक अमिट कलंक.

घंटी बजने की आवाज सुन कर मैं ने दरवाजा खोला तो अनुज को खड़ा पाया. परीक्षाफल के बारे में पूछने पर वह बोला, ‘मालूम नहीं, ममा, बहुत भीड़ थी इसलिए देख ही नहीं पाया.’

दोपहर में कार्तिकेय उस के कालिज जा कर मार्कशीट ले कर आए. मुंह उतरा हुआ था, देख कर मन में खलबली मच गई. किसी अनहोनी की आशंका से मन कांप उठा, ‘क्या हुआ? कैसा रहा रिजल्ट?’ बेचैनी से मैं पूछ ही उठी.

‘पानी तो पिलाओ, मुंह सूखा जा रहा है,’ कार्तिकेयने पानी मांगते हुए कहा था.

पानी ले कर आई तो कार्तिकेय ने सुमित की मार्कशीट मेरे सामने रख दी. सभी विषयों में कम अंक देख कर मुंह से निकल गया, ‘यह मार्कशीट अपने सुमित की हो ही नहीं सकती. रोल नंबर उसी का है न?’ अविश्वास की मुद्रा में मुंह से निकल गया.

‘क्यों बेवकूफों जैसी बातें करती हो, मार्कशीट भी उसी की है, नाम और रोल नंबर भी,’ वह फिर थोड़ा रुक कर बोले, ‘अच्छा हुआ, मांपिताजी कानपुर दीदी के पास गए हैं वरना ऐसे नंबर देख उन के दिल पर क्या गुजरती?’

‘रिचैकिंग करवाएंगे,’ उन की बात अनसुनी करते हुए उमा ने कहा.

‘रिचैकिंग से क्या होगा? हर सब्जेक्ट में तो ऐसे ही हैं. गनीमत है पास हो गया, लेकिन ऐसे भी पास होने से क्या फायदा?’ कार्तिकेय, फिर थोड़ा रुक कर बोले, ‘तुम्हारी सोशल विजिट भी बहुत हो गई थी उन दिनों, उसी का परिणाम है यह रिजल्ट.’

कार्तिकेय का इस समय उस पर आरोप लगाना पता नहीं क्यों उमा को बेहद अनुचित लगा था किंतु स्थिति की गंभीरता को समझ कर, उस के आरोपों पर ध्यान न देते हुए उमा ने पूरे भरोसे के साथ किंतु धीमे स्वर में कहा, ‘यह रिजल्ट उस का है ही नहीं. क्या आप सोच सकते हो कि वह एकाएक इतना गिर जाएगा?’

‘तुम्हारे कहने से क्या होता है, जो सामने है वही यथार्थ है,’ कार्तिकेय ने एकएक शब्द पर बल देते हुए कहा. वह अनुज को सामने पा कर फिर बोल उठे, ‘इन को तो हीरो बनने से ही फुरसत नहीं है. एक ने तो नाक कटा दी और दूसरा शायद जान ही ले ले,’ कह कर वह आफिस चले गए.

अनुज सिर नीचा कर के अपने कमरे में चला गया. मां को गुस्से में उलटासीधा बोलते तो उस ने जबतब सुना था, किंतु पिताजी को इतना अपसेट नहीं देखा था. मां पहले कभी उन के सामने कभी कुछ कहतीं तो वह उन का पक्ष लेते हुए कहते, ‘बच्चे हैं, अभी शैतानी नहीं करेंगे तो फिर कब करेंगे, रोनेपीटने के लिए तो सारी जिंदगी पड़ी है.’

तब मां बिगड़ कर कहतीं, ‘चढ़ाओ, और चढ़ाओ अपने सिर. कभी अनहोनी हो जाए तो मुझे दोष नहीं देना.’ तो वह कहते, ‘अनहोनी कैसे होगी? मेरे बच्चे हैं, देखना नाक ऊंची ही रखेंगे.’ फिर हमारी तरफ मुखातिब हो कर कहते, ‘बेटा, कभी मुझे शर्मिंदा मत करना, मेरे विश्वास को ठेस मत पहुंचाना.’

आज वही डैडी सुमित भैया के परीक्षाफल को देख कर इतने दुखी हैं? वैसे उन के रिजल्ट पर तो उसे भी भरोसा नहीं हो रहा था. ‘कभी किसी दिन यदि कोई पेपर खराब भी होता तो उसे अवश्य बताते, कहीं कुछ गड़बड़ तो अवश्य हुई थी, कहीं कंप्यूटर में तो माव्फ़र्स फीड करने में किसी ने गड़बड़ी तो नहीं कर दी—?’ सवाल मस्तिष्क में कुलबुला तो रहे थे किंतु कोई समाधान उस के पास न था.

तभी फोन की घंटी बज उठी. फोन अमिता आंटी का था. अनुज मम्मी के कमरे में गया तो देखा, मम्मी सुबक रही हैं, उन को फोन देना उचित न समझ कर कह दिया कि वह सो रही हैं. परीक्षाफल पूछने पर कह दिया कि ‘पता नहीं’. वह जानता था कि वह कालोनी की इनफारमेशन सेंटर हैं. हर घर के समाचार उन के पास रहते हैं और पल भर में ही सब के पास पहुंच भी जाते हैं. पता नहीं उन को सब की घरेलू जिंदगी में इतनी दिलचस्पी क्यों रहती है? वैसे जब से उन की एकलौती पुत्री ने घर से भाग कर लव मैरिज की है तब से वह थोड़ा शांत जरूर हो गई हैं, लेकिन आदत तो आदत ही है, फोन रखने के बाद मम्मी ने अनुज से पूछा, ‘किस का फोन था?’

‘अमिता आंटी का.’

‘क्या कहा तू ने?’

‘कह दिया अभी पता नहीं चला है, डैडी ने किसी को भेजा है.’

मैं शादीशुदा हूं और 2 बच्चे हैं, लेकिन अभी भी मैं अपने पुराने प्रेमी से मिलती हूं,कृपया सलाह दें, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 42 वर्षीय गृहिणी हूं, पति ऊंचे और प्रतिष्ठित सरकारी पद पर हैं. एक बेटी व एक बेटा हैं, जो पढ़ाई करते  हैं. हमारे पास सब कुछ है मान सम्मान, पैसा और सबसे महत्वपूर्ण परिवार में सुख शांति. लेकिन पिछले 6 महीनों से मेरे दिल में अशांति और दिमाग में तनाव आता जा रहा है. वजह कालेज के जमाने का मेरा प्रेमी है. कुछ दिन पहले फेसबुक पर उससे औपचारिक हाय हेलो हुई थी लेकिन फिर लंबी लंबी चैटिंग और फोन पर भी बातें होने लगीं. एक बार फिर हम लोग चोरी छिपे एक मौल में मिले भी और पुरानी यादें ताजा कीं.

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जबाब

आप यह सही सोच रही हैं कि आप अपने पति को धोखा दे रहीं हैं. यह भी ठीक है कि पहले प्यार को भूलना मुश्किल होता है लेकिन लंबा सुखद वैवाहिक जीवन जीने के बाद गड़े मुर्दे उखाड़ना कतई बुद्धिमानी की बात नहीं. उससे चोरी छिपे मिलना और बातें करना अब आ बैल मुझे मार जैसी बात है. जरा सोचें कि इससे आप को क्या मिल रहा है और आगे क्या मिलेगा. अगर पति को इस बात का पता चला जिसकी  संभावनाएं ज्यादा हैं तो उन पर क्या गुजरेगी. हर पति सिलसिला फिल्म का संजीव कुमार नहीं होता जो पत्नी के पुराने प्यार को पचा ले.  बात उजागर हुई और उसने तूल पकड़ा तो पति तो पति आप जवान होते बच्चों से भी ज़िंदगी भर नजरें उठाकर बात नहीं कर पाएंगी और खुद की निगाह में गिरेंगी सो अलग.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

संपादकीय

केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन का अपने दूसरे मंत्रिमंडल में पूर्व स्वास्थ्य मंत्री कुमारी शैलजा को न लेने पर बहुत सी आंखें चौड़ी हुई हैं. पर यह बहुत गलत कदम नहीं. केरल ने एक बड़े अच्छे ढंग से स्वास्थ्य समस्या का सामना किया था और पहले कोविड दौर में शैलजा के खूबखूब वाहवाही मिली थी. सब को विश्वास था कि माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी दोबारा सत्ता में आने पर शैलजा को तो बरकरार ही रखेंगी. उन्हें ड्रौय कर देना आश्चर्य पैदा करता है पर यह कदम बुरा भी नहीं है.

आमतौर पर एक बार मंत्री तो हमेशा मंत्री का सिद्धंात बारबार चुनाव जीतने वाली पाॢटयों के साथ चलता है और यही लोकतंत्र के लिए खतरनाक होता है. लोकतंत्र में राजनीति का एक मात्र उद्देश्य मंत्री बन कर बने रहना ही हो जाता है और फिर हर तरह की हेरफेर की जाती है. जब एक मत्री को मालूम हो कि उस का कार्यकाल तो एक बार का है तो वह अपनी पहचान तो छोडऩा चाहता है पर कहीं किसी से समझौता नहीं करता. वह राजनीति में आजाद रहना है जो राजनीति की पहली आवश्यकता है.

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हर मंत्री को आम चुने हुए सांसद या विधायक की तरह बैठने की आदत हो तो सरकार के फैसले सही होते हैं और उन में बेइमानी की गुंजाइश कम हो जाती है. जब यह मालूम हो कि जो भी करोगे वह आने वाले की नजर में तो पड़ेगा ही तो कोई भी गलत काम नहीं किया जाता. अच्छे काम तो वैसे ही जनता को पता चल जाते हैं. जैसे शैलजा का कोविड प्रबंध सब को पता चला. जो मंत्री जब भी कुछ अच्छा करता है जनता हाथोंहाथ तुरंत लेती है और उसे बारबार पद देना जरूरी नहीं होता.

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हां पार्टी के लिए यह जरूरी है कि वह सिर्फ नए लोगों को लाने और अवसर देने के लिए पुराने अनुभवी व सफल नेताओं को बनवास न दे दे और उन्हें पूरे काम का अवसर भी दे और उन की वरीष्ठता बनाए रखे. ऐसे हर मंत्री को मंत्री जैसी सुविधाएं और आदर मिलते रहना चाहिए वर्ना लोगों को बनवास की तैयारी पहले करनी पड़ेगी. अमेरिका में जहां राष्ट्रपति भी 8 साल से ज्यादा नहीं रह सकता बड़े नाम वाले मंत्री भी अक्सर बदलते रहते है जबकि वहां राज्यों के मुख्यमंत्री जिन्हें गवर्नर कहा जाता है साल दर साल चलते हैं.

करण और निशा रावल को एक करेंगी राखी सावंत, सोशल मीडिया पर कही ये बात

करण मेहरा और निशा रावल की लड़ाई हर दिन एक नया मोड़ लेता नजर आ रहा है. एक समय ऐसा था जब निशा और करण टीवी जगत के आईडियल कपल के नाम में शूमार थें. लेकिन आज वह अपने 14 साल के रिश्ते को तोड़कर अलग होने जा रहे हैं.

जिस पर निशा और करण के कई दोस्तों ने खुलकर मीडिया के सामने आकर बात की है. जिसमें से कुछ लोग निशा के सपोर्ट में नजर आएं तो कुछ लोग करण के सपोर्ट में नजर आ रहे हैं.

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इसमें राखी सावंत एक ऐसी अदाकारा है जिन्होंने एक इंटरव्यू में बात करते हुए कहा है कि मैं फिर से निशा और करण को एक होते हुए देखना चाहती हूं. मुझे बहुत ज्यादा दुख हो रहा है कि निशा और करण को अलग होते हुए देखकर.

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निशा और करण एक-दूसरे के साथ जीने मरने की कसमें खाते थें लेकिन आज यह हालात हो गए हैं ऐसे में उन्हें अपने रिश्ते को एक चांस देना चाहिए. निशा रावल , करण मेहरा और राखी सावंत एक साथ में यूएस में वेकेशन मनाने जा चुके हैं.

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जिस वजह से राखी सावंत काफी ज्यादा दुखी रहती हैं. अब देखना यह है कि क्या फिर से राखी सावंत और निशा रावल एक हो पाते हैं या नहीं . उनके इस कदम से फैंस को काफी ज्यादा धक्का लगा है.

निशा और करण का एक बच्चा भी है जिसका नाम काविश है. कुछ वक्त पहले तक निशा और करण काविश को लेकर वीडियो शेयर करते रहते थें, लेकिन अंदर क्या चल रहा है इस बारे में फैंस को कुछ पता नहीं था.

Bigg Boss 15 : ‘तेरे नाम’ फेम भूमिका चावला बनेंगी सलमान खान के शो का हिस्सा

टेलीविजन दुिया का विवादित शो बिग बॉस सीजन 15 अगले महीने शुरी होने जा रहा है. शो के बारे में आई ताजा जाकारी के बारे में बात करें तो मेकर्स ने अभी से प्रतियोगी का सेलेक्शन करना शुरू कर दिया है.

जानकारी में खुलासा हुआ है कि शो के मेकर्स ने अदाकारा भूमिका चावला को भी शो के लिए अप्रोच किया है. जो कि सलमान खान के साथ फिल्म तेरे नाम में नजर आ चुकी हैं. इस फिल्म में भूमिका चावला ने सलमान खान की गर्लफ्रेंड का किरदार निभाया था.

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एक खबर में जानकारी मिली है कि मेकर्स भूमिका के लिए काफी ज्यादा अप्रोच लगा रहे हैं. देखते हैं भूमिका चावला इस शो का हिस्सा बन पाती हैं या नहीं.

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गौरतलब है कि भूमिका चावला ने अपनी डेब्यू फिल्म सलमान खान के साथ की थी और रातों रात स्टार बन गई थी. देखना यह है कि इस शो का हिस्सा बनकर भूमिका अपने पर्साालिटी को कितना निखार पाती हैं. वैसे देखा जाए तो सलमान खान भूमिका चावला के लक्की चार्म हैं.

 

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इससे पहले भी भूमिका कई सारे फिल्मों में नजर आ चुकी हैं. एस एस धोनी में उन्होंने बहन का किरदार निभाया था जिसे लोगों ने खूब पसंद किया था.

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वैसे भूमिका के फैंस इस खबर के बाद से काफी ज्यादा एक्साइटेड हैं कि वह इस शो का हिस्सा बनने जा रही हैं.

बेहद फायदेमंद है देसी सब्जी ‘कचरी’ लेकिन इन 3 बातों का रखें ध्यान

लेखक- पिंटू मीणा पहाड़ी

वैसे तो आप इस सब्जी का नाम सुनेंगे, तो मुंह में पानी आ जाएगा और गांव की यादें भी ताजा हो जाएंगी. जानें इस के औषधीय गुण कि कचरी के फल के साथ विभिन्न भाषाओं में अनेक मुहावरे जुड़े हुए हैं. कचरी राजस्थान और आसपास के प्रदेशों की एक सुपरिचित तरकारी है. कचरी से बनी हुई लौंजी (सब्जी) अत्यंत स्वादिष्ठ और रुचिकर होती है. मरु प्रदेश में बहुत ज्यादा पैदा होने के चलते कचरी का एक नाम ‘मरुजा’ भी है.

कचरी के साथ मिर्च या आलू इत्यादि का मिश्रण कर के सब्जी बनाने का चलन भी है. जब यह फल कच्चे होते हैं, तो हरे व सफेद रंग लिए हुए चितकबरे दिखते हैं और अत्यंत कड़वे होते हैं. पकने पर यही पीले पड़ जाते हैं. अधपकी व पूरी तरह कचरियों से भीनीभीनी खुशबू आती रहती है.

बहुत से लोग केवल सुगंध के लिए ही कचरियों को अपने पास रखते हैं और बारबार सूंघ कर इस की सुगंध का मजा लेते रहते हैं. कचरी को उगाया नहीं जाता है. इस की बेल बारिश के मौसम में विशेष रूप से खरीफ की फसल के समय खेतों में खुद ही उग जाती है. सितंबर व अक्तूबर महीनों में यह मिलती है.

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विभिन्न नाम
वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार, कचरी का पौधा ‘कुकुरबिटेसी’ कुल के अंतर्गत आता है. संस्कृत में कचरी को चित्रकला, मृगाक्षी, चिभट इत्यादि नामों में संबोधित किया जाता है. हिंदी में भी इसे आंचलिकता के आधार पर विविध नामों से जाना जाता हैं, जैसे काचर, कचरिया, सेंध, पेंहटा, गुराड़ी वगैरह. मारवाड़ी में कचरी को काचरी व सेंध कहा जाता है.

पंजाबी में चिंभड़,

मराठी में टकमके रौंदणी, चिभूड़ बंगला में बनगोमुक, कुंदुरुकी फुटी नामों से कचरी को जाना जाता है.

इंगलिश भाषा में इसे ककुंबर, प्युबेसैंट और लेटिन में क्युक्युमिस प्युबेसैंट कहा जाता है.

चूंकि कचरी को गौपालक (ग्वाले) बहुत खाया करते हैं, इसलिए कचरी का एक नाम ‘गोपाल कर्कटी’ भी है.

आयुर्वेदिक गुण
कचरी में अनेक औषधीय गुण होते हैं. आयुर्वेदीय शास्त्रों ने इसे कर्कटी वर्ग की वनौषधि माना है. आयुर्वेदीय ग्रंथों के अनुसार, कचरी की बेल खीरे जैसी होती?है, किंतु उस से लंबाई में कुछ छोटी होती है. इस के पत्ते छोटे और 4 इंच तक लंबे व 6 इंच तक चौड़े, नरम और कोमल होते हैं.

आकार में ये बिलकुल ककड़ी के पत्तों जैसे ही होते हैं. कचरी की बेल में छोटेछोटे पीले रंग के खूबसूरत फूल लगते हैं. भाद्रपद मास में छोटेछोटे लंबे गोल फल लगने लगते हैं. यही फल कचरी कहलाते हैं.

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इन रोगों में फायदेमंद…

  1. कचरी को आयुर्वेद में मृगाक्षी कहा जाता है और काचरी बिगड़े हुए जुकाम, पित्त, कफ, कब्ज, प्रमेह समेत कई रोगों में बेहतरीन दवा मानी गई है. प्रसिद्ध आयुर्वेदीय ग्रंथ ‘राज निघंटु’ में कचरी का वर्णन करते हुए बताया गया है कि यह वातनाशक, पित्तकारक व पुराने बिगड़े हुए जुकाम को कम करने वाली दीपन और उत्तम रुचिकारक है.

2. हकीमों के अनुसार, कचरी गरम और खुश्क होती है. यह मीठी, हलकी और आमाशय को मृदु बनाने वाली, भूख बढ़ाने वाली, कामोद्दीपक व बवासीर, लकवा आदि वातकफज रोगों में आराम देती है.

3. चूंकि कचरी में सुगंध होती है, इसलिए यह दिल व दिमाग को ताकत देती है.

4. वायु रोगों में इस का सेवन सोंठ के साथ कराया जाता है.

5. भोजन पचाने और भूख बढ़ाने वाले चूर्ण में भी कचरियां मिलाई जाती हैं.

6. कचरी के सेवन करने के बाद पेशाब खुल कर आता है.

7. कचरी के उत्तम दीपनपाचन गुणों के कारण इसे दाल में भी डालने का प्रचलन है. इस से गैस के रोगियों को भी लाभ होता है.

8. बवासीर में कचरी की धूनी देना बहुत लाभदायक होता है.

9. कचरी की जड़ में पथरी नष्ट करने की क्षमता होती है.

10. बड़ी कचरी के बीज को माशे की मात्रा में ले कर चावल के धोवन के साथ पीस कर छान कर उस में थोड़ा लालचंदन घिस कर मिलाएं. पेशाब की कठिनाई वाले रोगों को पिलाने से पेशाब खुल कर आने लगता है.

11. कच्ची कचरी का साग दस्त में उपयोगी माना जाता है.

12. तंबाकू का अधिक सेवन करने वालों के लिए भी कचरी लाभप्रद है.

13. इतना ही नहीं, जो सुखाई हुई कचरियां रुचिकारक दीपन दस्तावर और भोजन में अरुचि, पेट के कीड़ों, जड़ता वगैरह को काफी हद तक दूर करने वाली होती है.

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इन बातों का रखें ध्यान… 

  1. गरम तासीर वालों को कचरी का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए, वरना बेचैनी, सिरदर्द, दस्त, बुखार हो सकते हैं. इन उपद्रवों की अवस्था में धनिए का सेवन करना लाभप्रद होता है.

2. पकी कचरी को सीधे ही बिना सब्जी बनाए ज्यादा खा लेने से मुंह में छाले हो जाते हैं और जीभ कटफट जाती है.

3. कुछ लोगों को इस से बुखार भी आ जाता है.

Best of Manohar Kahaniya : आनंद का आनंद लोक

सौजन्य- मनोहर कहानियां 

जो शादीशुदा जवान घर और पत्नी से दूर रहते हैं, उन में कई ऐसे भी होते हैं, जो घरवाली को भूल बाहर वाली ढूंढने लगते हैं. कुछ इस में कामयाब भी हो जाते हैं. लेकिन कभीकभी यह गलती इतनी भारी पड़ती है कि जान के लाले पड़ जाते हैं. किरन और आनंद के मामले में भी…   ताजनगरी आगरा. आगरा ताजमहल के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है. बस लोगों के देखने का अपनाअपना नजरिया है, क्योंकि ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो आगरा को जूतों के लिए

भी जानते हैं. बड़ी कंपनियां अपने ब्रांड के जूते यहीं बनवाती हैं. रामसिंह एक बड़ी जूता कंपनी में काम करते थे. उन का घर आगरा प्रकाश नगर पथवारी बस्ती में था. रामसिंह के परिवार में उन की पत्नी सरोज,

3 बेटियां थीं. बेटा एक ही था सागर.

2007 में राम सिंह ने बड़ी बेटी लता का विवाह फिरोजाबाद के गांव हिमायूं पुर निवासी शशि पंडित से कर दिया. एकलौता बेटा सागर जूता फैक्टरी में जूतों के लिए चमडे़ की कटिंग का काम करता था. विवाह की उम्र हो गई तो 2012 में रामसिंह ने सागर का विवाह कर दिया. विवाह के बाद उस के 2 बच्चे हुए.

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2014 में सागर का बाइक से एक्सीडेंट हो गया, जिस में उस की दांई आंख में चोट लगी, जिस से उस की आंख खराब हो गई, उसे नकली आंख लगवानी पड़ी.

अपने एकलौते बेटे सागर की ऐसी हालत देख कर राम सिंह भी  बीमार पड़ गए. वह तनाव में रहने लगे. नतीजा यह निकला कि वह हारपरटेंशन के मरीज हो गए और उन्हें घर में रहने को मजबूर होना पड़ा.

दूसरी ओर सागर ठीक हो कर काम पर जाने लगा. लेकिन बड़े परिवार में अकेले उस की आय से क्या होता. घर के खर्चे, किरन की पढ़ाई का खर्च, पिता की दवाई का खर्च अलग, ऐसे में वह धीरेधीरे कर्ज में डूबने लगा. इसी बीच राम सिंह की मृत्यु हो गई.

राम सिंह की मौत के बाद एक समय वह भी आया जब सागर को अपना घर बेचने की सोचनी पड़ी. सागर ने मकान बेच कर कर्जे चुकाए. 8 माह किराए पर रहने के बाद उस ने अपने पहले मकान के पास ही मकान ले लिया. उस मकान में 2 ही कमरे थे. जगह की कमी की वजह से सागर ने देवनगर नगला छउआ में किराए का एक और कमरा ले लिया. वहां वह अपनी पत्नी व बच्चों के साथ रहने लगा.

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सागर की मां सरोज घरों में झाड़ूपोछे का काम कर के घर का खर्च चलाने लगी.

सागर की बहन किरन ने जीजान से पढ़ाई की. बीए करने के बाद उस ने बीएड भी कर लिया.

आनंद उर्फ अतुल किरन की बड़ी बहन लता की ससुराल के पास रहता था. 35 वर्षीय अतुल न केवल शादीशुदा था बल्कि उस के 3 बच्चे भी थे. बीएससी पास आनंद खुराफाती दिमाग का था. उस ने फिरोजाबाद में फाइनेंस कंपनी खोली और लोगों को लालच दे कर खूब लूटा. जब लोग उसे तलाशने लगे तो वह आगरा भाग आया था.

आनंद ने लता के पति शशि से कहा कि उसे कहीं नौकरी पर लगवा दे. शशि उसे अच्छी तरह जानता था कि वह किस तरह का इंसान है, फिर भी उस की मदद की.

शशि ने उसे आगरा के एक डाक्टर के यहां नौकरी पर लगवा दिया. इस के बाद आनंद ने बदलबदल कर 2-3 जगह और नौकरी की. फिर वह थाना जगदीशपुरा के गढ़ी भदौरिया स्थित ‘खुशी नेत्रालय’ में बतौर कंपाउंडर काम करने लगा. नेत्रालय में बने कमरे में ही वह रहता भी था.

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आनंद की तलाश में घर में घुस  आनंद ने शशि पंडित की ससुराल यानी किरन के घर आनाजाना शुरू कर दिया. वहां वह किरन से मिलने आता था.

सांवले रंग की किरन आकर्षक नयननक्श वाली नवयुवती थी. सांचे में ढला उस का बदन किसी मूर्तिकार के हाथों का अद्भुत नमूना जान पड़ता था.

25 वर्षीय किरन पूरी तरह जवान हो गई थी. उस का पूरा यौवन खिल कर महकने लगा था. उस के ख्यालों में भी सपनों का राजकुमार दस्तक देने लगा था.

अकेले बिस्तर पर पड़ी वह उसके ख्यालों में ही खोई रहती थी. सोचतेसोचते कभी हंसने लगती थी तो कभी लजा जाती थी. वह उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जहां ऐसा होना स्वाभाविक था.

आनंद की नजर किरन पर पड़ी तो वह उस पर आसक्त हो गया. किरन के परिवार के बारे में वह सब कुछ जान गया था. ऐसे में वह किरन को अपने प्रेमजाल में फंसाने के जतन करने लगा. यह सब जानते हुए भी कि वह विवाहित है और किरन अविवाहित. आनंद ने अपने विवाहित होने की बात किरन और उस के घरवालों को नहीं बताई थी.

जब भी वह किरन के पास आता तो उस के आगे पीछे मंडराता रहता. उस की यह हरकत किरन से छिपी न रह सकी. किरन उस का विरोध नहीं कर सकी, क्योंकि कहीं न कहीं आनंद भी उसे पसंद आ गया था.

दोनों के दिलों में प्रेम की भावना जन्म ले रही थी. लेकिन दोनों ने अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं होने दिया था. एक दिन किरन जब बाजार जाने के लिए बाहर निकली तो आनंद ने रास्ते में रोक कर उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया.

किरन ने उस की दोस्ती सहर्ष स्वीकार कर ली. दोनों की दोस्ती परवान चढ़ने लगी. दोनों साथ घूमते और मटरगश्ती करते. इस से दोनों में हद से ज्यादा अपनापन और घनिष्ठता आ गई.

दोनों में से अगर कोई एक न मिलता तो दूसरे को अच्छा नहीं लगता था. चेहरे से जैसे खुशी की रेखाएं ही मिट जाती थीं. दोनों की आंखें एकदूसरे को अहसास कराने लगीं कि वे एकदूसरे से प्यार करने लगे हैं. लेकिन इस अहसास के बावजूद दोनों यह दर्शाते थे जैसे उन को कुछ पता ही नहीं है. दोनों को एकदूसरे की बहुत चिंता रहती थी. अब जरूरत थी तो इस प्यार को शब्दों में पिरो कर इजहार कर देने की.

आनंद ने अपने प्यार का इजहार करने के लिए प्रेमपत्र लिखने की सोची. वह किरन के सामने कहने से बचना चाह रहा था और मोबाइल पर प्रेम की बात कहने में मजा नहीं आता. इसलिए प्रेमपत्र में वह अपने जज्बातों को शब्दों में पिरो कर किरन तक पहुंचाना चाहता था, जिस से किरन उस के लिखे एकएक शब्द में छिपे प्रेम को दिल से समझ सके.

उस ने बड़े आराम से एक प्रेमपत्र  लिखा. जब वह किरन से मिला तो प्रेमपत्र चुपचाप उस के पर्स में रख दिया.

किरन ने जब घर जा कर पर्स खोला तो उसे पत्र रखा दिखा. उस ने पत्र पढ़ा. जैसेजैसे वह पत्र पढ़ती जा रही थी, वैसेवैसे उस के दिल में भी प्यार का जोश हिलोरे मार रहा था. वह तो इसी इंतजार में थी कि आनंद कब उस से प्यार का इजहार करे. आनंद ने प्रेम का इजहार कर दिया था लेकिन किरन यह सब उस के मुंह से सुनना चाहती थी. इसलिए उस ने पत्र का जबाव नहीं दिया.

जब पत्र का जबाव नहीं मिला तो आनंद बेचैन हो उठा. अगर किरन पत्र पढ़ कर नाराज होती तो उस से संबंध खत्म कर लेती लेकिन उस ने ऐसा भी नहीं किया.

एक दिन आनंद किरन की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘किरन, मेरा दिल तुम्हारे पास है…’’

‘‘क्या…?’’ आश्चर्य में किरन के मुंह से यह शब्द निकला तो आनंद तुरंत बात बदलते हुए बोला,‘‘मेरा मतलब है कि मेरा दिल एक फिल्म देखने का है. फिल्म की मैटिनी शो की 2 टिकटें मेरे पास हैं. आज फिल्म देखने चलते हैं…चलोगी?’’

‘‘क्यों नहीं चलूंगी. वैसे भी पहली बार फिल्म दिखाने के लिए ले जा रहे हो.’’ किरन की बात सुन कर आनंद मुसकराया. फिर दोनों फिल्म देखने सिनेमाघर पहुंच गए. फिल्म शुरू हो गई लेकिन आनंद का दिल फिल्म देखने के बजाय किरन से प्यार करने को मचल रहा था.

कुछ नहीं सूझा तो उस ने अपना हाथ किरन के हाथ पर रख दिया और उस के हाथ को धीरेधीरे सहलाने लगा. किरन ने सोचा कि शायद वह अंधेरे का फायदा उठा कर उस से प्यार का इजहार करना चाहता है, इसीलिए वह फिल्म दिखाने लाया है.

जब काफी देर तक आनंद कुछ नहीं बोला तो किरन झुंझला उठी. इंटरवल होते ही वह आनंद से बोली,‘‘अन्नू, चलो अब मेरा मन फिल्म देखने का नहीं कर रहा है, कहीं और चलते हैं.’’

आनंद को पहली बार किसी ने प्यार का नाम दिया था, अन्नू. उसे किरन पर बहुत प्यार आ रहा था. इस पर आनंद उस के साथ तुरंत बाहर आ गया. थोड़ी देर बाद दोनों एक बाग में बैठे हुए थे. किरन का धैर्य जबाव दे गया था. वह आनंद से बोली,‘‘अन्नू, मुझे न जाने क्यों लगता है कि कई दिनों से तुम मुझ से कुछ कहना चाहते हो, लेकिन संकोचवश कह नहीं पा रहे हो.’’

किरन ने यह बात आनंद की आंखों में आंखें डाल कर कही थी. इस से आनंद का हौसला बढ़ा तो वह बोला,‘‘किरन, मैं ने कई बार तुम तक अपने दिल की बात पहुंचाई लेकिन तुम ने जबाव देना उचित न समझा.’’

‘‘यह भी तो हो सकता है कि मेरा मन उस बात को तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हो.’’ यह सुन कर आनंद चौंका.

उसे उम्मीद की एक किरण दिखी तो उस ने उत्साहित हो कर किरन का हाथ थाम लिया, ‘‘किरन, मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं. यही बात मैं तुम से कहने की कोशिश कर रहा था लेकिन तुम्हारी तरफ से कोई जबाव न मिलने की वजह से मैं बेचैन था. अब मेरी मोहब्बत का आइना तुम्हारे हाथों में है, चाहो तो उस में अपना अक्स देख कर मेरी जिंदगी संवार दो या उस को चकनाचूर कर के मेरी सांसों की डोर तोड़ दो. फैसला कर लो, तुम्हें क्या करना है.’’

आनंद के प्रेम की गहराई देख कर किरन के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. वह अपना दूसरा हाथ आनंद के हाथ पर रखती हुई बोली, ‘‘अन्नू, मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूं. मैं यह बात जान चुकी थी कि तुम भी मुझ से प्यार करते हो लेकिन जुबां से प्यार का इजहार करने के बजाय तुम दूसरे तरीके अपना रहे थे. इस से मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी.’’

‘‘यह कोई जरूरी नहीं कि प्यार का इजहार जुबां से किया जाए, वह किसी भी तरीके से किया जा सकता है. यह अलग बात है कि तुम्हारे दिल में जुबां से इजहार सुनने की चाहत छिपी थी. लेकिन तुम्हारे जबाव न देने से मेरी कई रातें जागते हुए बीतीं.’’ आनंद ने एक पल में अपने दिल की तड़प को बयान कर दिया.

‘‘खैर जो हुआ सो हुआ. अब आगे से कोई गलती नहीं होगी, प्लीज मुझे माफ कर दो.’’ किरन ने इतनी मासूमियत से कहा कि आनंद ने मुस्कराते हुए उसे सीने से लगा लिया. सीने से लगते ही किरन ने भी प्यार में डूब कर अपनी आंखों के परदे गिरा दिए. दोनों एक अजीब सा सुकून महसूस कर रहे थे. वहां कुछ देर और रूक कर दोनों वापस लौट आए.

प्यार का जादू

इस के बाद तो दोनों के प्यार को मानो पंख ही लग गए. मिलने के लिए आनंद के पास वैसे ही जगह नहीं थी. जिस नेत्रालय में वह रहता था, उस के अलावा  उस का कोई ठिकाना नहीं था. एक दिन उस ने नेत्रालय के उसी कमरे में, जिस में वह रहता था, उस ने किरन के जिस्म से आनंद लेने का मन बना लिया.

वह दिन भी आ गया, जब आनंद ने प्यार के पलों में किरन को बहका लिया और उस के जिस्म से अपने जिस्म का मेल करा दिया. दोनों के मन के साथसाथ तन भी मिल गए. किरन के तन को पा कर आनंद काफी खुश था. इस के बाद तो यह मिलन बारबार दोहराया जाने लगा.

2016 में आनंद ने खुशी नेत्रालय में किरन की भी नौकरी लगवा दी. अब हर समय किरन और आनंद एकदूसरे के साथ होते. उन की मोहब्बत परवान चढ़ती रही.

एक वर्ष बीततेबीतते दोनों के संबंध की जानकारी किरन की मां सरोज को हो गई. यह पता लगते ही उन्होंने किरन की नौकरी छुड़वा दी. लेकिन किरन फिर भी आनंद से मिलती रही.

किरन तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि आनंद उस से प्यार का नाटक कर रहा है. शादी का झांसा दे कर वह उस के जिस्म से खेल रहा है.

इस बीच किरन से विवाह के लिए कई रिश्ते आए. लेकिन उस ने मना कर दिया. उस के चक्कर में उस की छोटी बहन कविता का विवाह भी नहीं हो सकता था. किरन की मां सरोज व भाई सागर को मथुरा का एक अच्छा परिवार मिल गया.

उस परिवार का लड़का दिल्ली में रह कर सोफे बनाने का काम करता था. उस लड़के व उस के परिवार को कविता पसंद आ गई. परिवार अच्छा होने की वजह से सरोज ने उस युवक से अपनी बेटी कविता की कोर्ट मैरिज करा दी. यह पिछले साल नवंबर की बात है.

इधर किरन अब जब भी आनंद से मिलती तो विवाह करने की जिद करती. अब आनंद के लिए  किरन को समझाना मुश्किल होने लगा. इसे ले कर वह तनाव में रहने लगा.

कोराना वायरस का प्रकोप पूरे विश्व में फैला हुआ था. उस से बचाने के लिए भारत सरकार ने देश में लौकडाउन कर रखा था. उत्तर प्रदेश की बात करें तो ताज नगरी आगरा में कोरोना संक्रमितों की संख्या सब से अधिक थी.

21 अप्रैल की रात 9 बजे आगरा के थाना लोहामंडी क्षेत्र के हसनपुरा में रहने वाले वरुण प्रजापति ने गजानन नगर में रहने वाली डाक्टर गरिमा बंसल के घर के पास एक कार्टन बौक्स पड़ा देखा. आश्चर्य की बात यह थी कि वह बौक्स सफेद चादर में बंधा हुआ था.

वरूण ने आसपास के लोगों को बुलाया. लोगों के आने पर तरहतरह की बातें होने लगीं. यह रहस्य जानने को सभी बेकरार थे कि बौक्स में है क्या. पता चला कि वह कार्टन बौक्स दोपहर में वहां नहीं था, शाम को अंधेरा घिरने पर किसी ने उसे वहां डाला होगा.

मामला संदिग्ध होने पर वरुण ने 112 नंबर पर काल कर के पुलिस को सूचना दे दी. सूचना मिलते ही एसपी सिटी रोत्रे बोहन प्रसाद व शाहगंज थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. जहां बाक्स मिला था, वहां से महज एक किलोमीटर की दूरी पर थाना शाहगंज था.

इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने वहां पहुंचने के बाद एक पुलिसकर्मी को पीपीई किट पहना कर 2 फुट का वह कार्टन बौक्स खुलवाया. बौक्स खुलने पर उस में एक युवती की लाश मिली. मृतका की उम्र लगभग 25-26 वर्ष रही होगी. उस के गले पर दबाने के निशान थे. मृतका ने नीले रंग का सलवारसूट पहन रखा था. उस के पैर दुपट्टे से बंधे हुए थे. दाएं हाथ पर किरन लिखा था.

बौक्स पर जो चादर बंधी थी, और वह बौक्स किसी अस्पताल के लग रहे थे. बौक्स दवाइयों में इस्तेमाल होने वाला था. चादर भी अस्पतालों में बिछाई जाने वाली थी.

इस से लगा कि हत्यारे का कनेक्शन किसी हौस्पिटल से है. एक किलोमीटर तक के अस्पतालों की जानकारी एकत्र की गई तो ऐसा कोई हौस्पिटल नहीं मिला. मृतका की लाश के फोटो भी कोई नहीं पहचान पाया. मृतका की शिनाख्त नहीं हो पाई तो इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने लाश को मार्चरी में रखवा दिया. फिर थाने आ कर उन्होंने वरुण प्रजापति से लिखित तहरीर ली और अज्ञात के विरूद्ध भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

वह अभागी किरन ही थी

अगले दिन एक महिला अपने बेटे के साथ शाहगंज थाने पहुंची और अपना नाम सरोज व बेटे का नाम सागर बताया. उन दोनों के अनुसार वे लाश मिलने की बात सुन कर थाने पहुंचे थे. सरोज की बेटी किरन घटना वाले दिन सुबह 10 बजे घर से निकली थी लेकिन वापस नहीं लौटी थी.

इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने उन्हें लाश का फोटो दिखाया तो सरोज रो पड़ी, वह लाश उस की बेटी किरन की ही थी. शिनाख्त होने पर इंसपेक्टर राघव ने उन से किरन के बारे में पूछताछ की. लेकिन सरोज ने कुछ भी ऐसा नहीं बताया जो पुलिस के काम का होता. वह किरन के प्रेमसंबंधों को बदनामी के डर से छिपा गईं.

इंसपेक्टर राघव ने बौक्स मिलने के स्थान की सीसीटीवी फुटेज खंगालनी शुरू की. सीसीटीवी फुटेज में एक व्यक्ति बाइक पर पीछे बौक्स रखे आता दिखाई दिया. उस इलाके की पूरी सीसीटीवी फुटेज देखते हुए इंसपेक्टर राघव खुशी नेत्रालय तक पहुंच गए.

लौकडाउन की वजह से नेत्रालय बंद चल था, लेकिन उन्हें यह जानकारी मिल गई कि उस नेत्रालय में कोई रहता है. वह नेत्रालय पहुंचे तो आनंद ने गेट खोला. पुलिस को वहां आया देख कर वह चौंका और भागने की कोशिश की, लेकिन पुलिस से बच कर भाग नहीं पाया.

पुलिस को उस की हीरो सुपर स्पलैंडर बाइक भी वहीं खड़ी मिल गई. यह वही बाइक थी, जिस पर आनंद बौक्स रख कर फेेंकने ले गया था. उस के पास से किरन की पासबुक और आधार कार्ड भी बरामद हो गए.

थाने ला कर जब आनंद से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया और हत्या की वजह बता दी.

किरन ने शादी करने की बात को ले कर आनंद का जीना हराम कर दिया था. दिन रात बस एक ही रट कि शादी कर लो. जबकि आनंद पहले से ही शादीशुदा था, वह तो उस के साथ खेल रहा था. ऐसे में शादी करने का तो सवाल ही नहीं उठता था.

21 अप्रैल की सुबह 10 बजे किरन घर से अपनी मां से कह कर निकली कि वह आनंद से मिलने जा रही है. किरन सीधे वहां से खुशी नेत्रालय पहुंची. लौकडाउन की वजह से नेत्रालय बंद था. लेकिन आनंद अंदर अपने कमरे में मौजूद था.

आनंद और किरन बैठ कर बात करने लगे. बात बात में ही शादी को ले कर दोनों में विवाद होने लगा.

दोपहर साढ़े 12 बजे आनंद ने प्लास्टिक की रस्सी से किरन का गला घोंट दिया, जिस से किरन की मौत हो गई.

आनंद ने किरन के पैरों को उस के दुपट्टे से बांध दिया. फिर नेत्रालय में रखे एक 2 फुट के कार्टन बौक्स और सफेद चादर को उठा लाया. कार्टन बौक्स में आंखों के लेंस आते थे.

उस बौक्स में उस ने किसी तरह किरन की लाश को ठूंसा और कार्टन बंद कर के उसे उसी प्लास्टिक की रस्सी से बांध दिया, जिस से उस ने किरन का गला घोंटा था. इस के बाद कार्टन बौक्स को सफेद चादर से बांध कर रख दिया और रात होने का इंतजार करने लगा.

वह साढ़े 7 घंटे लाश को अपने कमरे में रखे रहा. रात 8 बजे उस ने बौक्स को अपनी हीरो सुपर स्पलैंडर बाइक पर रखा और गजानन नगर में डा. गरिमा बंसल के घर के पास डाल दिया. फिर वहां से चला आया.

लेकिन उस का गुनाह छिप न सका और पकड़ा गया. इंसपेक्टर सत्येंद्र राघव ने आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद अतुल कुमार उर्फ आनंद को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

जब मैं छोटा था : केशव अपने बेटे को देखकर क्या सोच रहा था

लेखक- Ashwini Kumar Bhatnagar

केशव ने घूर कर अपने बेटे अंगद को देखा. वह सहम गया और सोचने लगा कि उस ने ऐसा क्या कह दिया जो उस के पिता को खल गया. अगर उसे कुछ चाहिए तो वह अपने पिता से नहीं मांगेगा तो और किस से मांगेगा. रानी बेटे की बात समझती है पर वह केवल उस की सिफारिश ही तो कर सकती है. निर्णय तो इस परिवार में केशव ही लेता है.

रानी ने मुसकरा कर केशव को हलकी झिड़की दी, ‘‘अब घूरना बंद करो और मुंह से कुछ बोलो.’’केशव ने रानी को मुंह सिकोड़ कर देखा और फिर सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘क्या समय आ गया है.’’  ‘‘क्यों, क्या तुम ने अपने पिता से कभी कुछ नहीं मांगा?’’ रानी ने हंस कर कहा, ‘‘बेकार में समय को दोष क्यों देते हो?’’

‘‘मांगा?’’ केशव ने तैश खा कर कहा, ‘‘मांगना तो दूर हमारा तो उन के सामने मुंह भी नहीं खुलता था. इतनी इज्जत करते थे उन की.’’‘‘इज्जत करते थे या डरते थे?’’ रानी ने व्यंग्य से कहा.

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केशव ने लापरवाही का नाटक किया, ‘‘एक ही बात है. अब हमारी औलाद हम से डरती कहां है?’’अवसर का लाभ उठाते हुए अंगद ने शरारत से पूछा, ‘‘पिताजी, क्या आप के समय में आजकल की तरह जन्मदिन मनाया जाता था?’’केशव ने व्यंग्य से हंस कर कहा, ‘‘जनाब, ऐसी फुजूलखर्ची के बारे में सोचना ही गुनाह था. ये तो आजकल के चोंचले हैं.’‘‘फिर भी पिताजी,’’ अंगद ने कहा, ‘‘कभी न कभी तो आप को जन्मदिन पर कुछ तो विशेष मिला होगा.’’

रानी ने हंसते हुए कहा, ‘‘मिला था, एक पाजामा. क्यों, ठीक है न?’’ केशव भी हंसा, ‘‘ठीक है, तुम्हें तो मेरा राज मालूम है.’’ ‘‘पाजामा?’’ अंगद ने चकित हो कर पूछा, ‘‘क्या यह भी कोई उपहार है?’’

‘‘बहुत बड़ा उपहार था, बेटे,’’ केशव ने यादों में खोते हुए कहा, ‘‘पिताजी से तो बात करने का सवाल ही नहीं था. जब मैं ने मां से हठ की तो उन्होंने अपने हाथों से नया पाजामा सिल कर दिया था. मैं बहुत खुश था. रानी, तुम भी अंगद को एक पाजामा सिल

कर दो, पर…पर तुम्हें तो सिलना आता ही नहीं.’’

‘‘सारे दरजी मर गए क्या?’’ रानी ने चिढ़ कर कहा.

‘‘पाजामावाजामा नहीं,’’ अंगद ने जोर दे कर कहा, ‘‘अगर कुछ देना है तो मोपेड दीजिए. मेरे सारे दोस्तों के पास है. सब मोपेड पर ही स्कूल आते हैं. बस, एक मैं ही हूं, खटारा साइकिल वाला.’’

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के शव ने तनिक नाराजगी से कहा, ‘‘साइकिल की इज्जत करना सीखो. उस ने 20 साल मेरी सेवा की है.’’

‘‘दहेज में जो मिली थी,’’ रानी ने टांग खींची.

‘‘क्या करता,’’ केशव चिढ़ कर बोला, ‘‘अगर स्कूटर मांगता तो तुम्हारे पिताजी को घर बेचना पड़ जाता.’’

‘‘अरे, जाओ भी,’’ रानी ने चोट खाए स्वर में कहा, ‘‘लेने वाले की हैसियत भी देखी जाती है.’’

अंगद ने महसूस किया कि बातों का रुख बदल रहा है इसीलिए बीच में पड़ कर बोला, ‘‘आप लोग तो

फिर लड़ने लगे. मेरे लिए मोपेड लेंगे या नहीं?’’

‘‘बरखुरदार,’’ केशव ने फिर से घूरते हुए कहा, ‘‘जब हम तुम्हारे बराबर थे तो पैदल स्कूल जाते थे. स्कूल भी कोई पास नहीं था. पूरे 3 मील दूर था. उन दिनों घर में बिजली भी नहीं थी इसलिए सड़क के किनारे लैंपपोस्ट के नीचे बैठ कर पढ़ते थे. जेबखर्च के पैसे भी नहीं मिलते थे. दिन भर कुछ नहीं खाते थे. घर आ कर 5 बजे तक रात का खाना निबट जाता था. समझे जनाब? आप मोपेड की बात करते हैं.’’

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रानी इस भाषण को कई बार सुनसुन कर उकता चुकी थी इसलिए ताना मार कर बोली, ‘‘तो यह है आप की सफलता का रहस्य. देखो बेटे, ऐसा करोगे तो पिताजी की तरह एक दिन किसी कारखाने के महाप्रबंधक बन जाओगे.’’

अंगद मूर्खों की तरह मांबाप को देख रहा था. उस के मन में विद्रोह की आग सुलग रही थी. बड़ी बहन मानिनी जब भी कुछ मांगती थी तो उसे तुरंत मिल जाता था. एक वही है इस घर में दलित वर्ग का शोषित प्राणी.

नाश्ता समाप्त होने पर केशव कार्यालय जाने की तैयारी में लग गया और नौकरानी के आ जाने से रानी घर की सफाई कराने में व्यस्त हो गई. अंगद कब स्कूल चला गया किसी को पता ही नहीं चला.

कार निकालते समय केशव ने रोज के मुकाबले कुछ फर्क महसूस किया, पर समझ नहीं पाया. बहुत दूर निकल जाने पर उसे ध्यान आया कि आज अंगद की साइकिल अपनी जगह पर ही खड़ी थी. वैसे अकसर साइकिल खराब होने पर अंगद साइकिल घर छोड़ कर बस से चला जाता था.

घर का काम निबट जाने के बाद रानी ने देखा कि अंगद का लंच बाक्स मेज पर ही पड़ा था. वैसे आमतौर पर वह लंच बाक्स ले जाना भूलता नहीं है क्योंकि रानी हमेशा बेटे का मनपसंद खाना ही रखती थी. खैर, कोई बात नहीं, अंगद की जेब में इतने रुपए तो होते ही हैं कि वह कुछ ले कर खा ले.

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शाम को रानी को च्ंिता हुई क्योंकि अंगद हमेशा 3 बजे तक घर आ जाता था, पर आज 5 बज रहे थे. केशव के फोन से वह जान चुकी थी कि आज अंगद साइकिल भी नहीं ले गया था, पर बस से भी इतनी देर नहीं लगती. उस वक्त 6 बज रहे थे जब अंगद ने घर में प्रवेश किया. उस का चेहरा लाल हो रहा था और जूते धूलधूसरित हो गए थे. थकान के लक्षण भी स्पष्ट थे.

‘‘इतनी देर कहां लगा दी?’’ रानी ने बस्ता संभालते हुए पूछा.

‘‘बस, हो गई देर, मां,’’ अंगद ने टालते हुए कहा, ‘‘जल्दी से खाना दो. बहुत भूख लगी है.’’

‘‘खाना क्यों नहीं ले गया?’’ रानी ने शिकायत की.

‘‘भूल गया था,’’ अंगद का झूठ पता चल रहा था.

‘‘भूल गया या ले नहीं गया?’’ रानी ने तनिक क्रोध से पूछा.

‘‘कहा न, भूल गया,’’ अंगद चिढ़ कर बोला.

रानी ने अधिक जोर नहीं दिया. बोली, ‘‘जा, जल्दी से कपड़े बदल और हाथमुंह धो कर आ. आलू के परांठे और गाजर का हलवा बना है.’’

अंगद के चेहरे पर झलकती प्रसन्नता से रानी को संतोष हुआ. उसे लगा कि वह वाकई बहुत भूखा है. अंगद के आने से पहले ही उस ने खाना मेज पर लगा दिया था.

अंगद ने भरपेट खाया. कुछ देर तक टीवी देखा और फिर पढ़ाई करने अपने कमरे में चला गया.

8 बजे केशव कार्यालय से आया.

आराम से बैठने के बाद केशव ने रानी से पूछा, ‘‘बच्चे कहां हैं? बहुत शांति है घर में.’’

‘‘मन्नू तो शालू के यहां गई है,’’ रानी ने सामने बैठते हुए कहा, ‘‘कोई पार्टी है. देर से आएगी.’’

‘‘अकेली आएगी क्या?’’ केशव ने च्ंिता से पूछा.

‘‘नहीं,’’ रानी ने उत्तर दिया, ‘‘शालू का भाई छोड़ने आएगा.’’

‘‘उफ, ये बच्चे,’’ केशव ने अप्रसन्नता से कहा, ‘‘इतनी आजादी भी ठीक नहीं. जब मैं छोटा था तो बहन को तो छोड़ो, मुझे भी देर से आने नहीं दिया जाता था. आगे से ध्यान रखना. वैसे मन्नू कब तक आएगी?’’

‘‘अब क्यों च्ंिता करते हो,’’ रानी ने कहा, पर केशव की मुद्रा देख कर बोली, ‘‘ठीक है, फोन कर के पूछ लूंगी.’’

‘‘और साहबजादे कहां हैं?’’ केशव ने पूछा.

‘‘पढ़ रहा है,’’ रानी ने उत्तर दिया.

‘‘पर मुझे तो कोई आवाज नहीं सुनाई दे रही,’’ केशव ने पुकारा, ‘‘अंगद…अंगद?’’

‘‘ओ हो, पढ़ने दो न,’’ रानी ने झिड़का, ‘‘कल परीक्षा है उस की.’’

‘‘तो जवाब नहीं देगा क्या?’’ केशव ने क्रोध से पुकारा, ‘‘अंगद?’’

अंगद का उत्तर नहीं आया. केशव अब अधिक सब्र नहीं कर सका. उठ कर अंगद के कमरे की ओर गया और झटके से अंदर घुसा.

‘‘यहां तो है नहीं,’’ केशव ने क्रोध से कहा.

‘‘नहीं है,’’ रानी को विश्वास नहीं हुआ, ‘‘थोड़ी देर पहले ही तो मैं उस के मांगने पर चाय देने गई थी.’’

केशव ने व्यंग्य से कहा, ‘‘हां, चाय का प्याला तो है, पर जनाब नहीं हैं. गया कहां?’’

‘‘मुझ से तो कुछ कह कर नहीं गया,’’ रानी ने च्ंिता से कहा, ‘‘मन्नू के कमरे में देखो.’’

‘‘मन्नू के कमरे में भी होता तो जवाब देता न,’’ केशव ने क्रोध से कहा, ‘‘बहरा तो नहीं है.’’

रानी ने तसल्ली के लिए मन्नू के कमरे में  देखा और बोली, ‘‘पता नहीं कहां गया. शायद अखिल के यहां चला गया होगा. उस के साथ ही पढ़ता है न.’’

‘‘कह कर तो जाना था,’’ केशव भी अब च्ंितित था, ‘‘अखिल का घर कहां है?’’

‘‘वह राममनोहरजी का लड़का है,’’ रानी ने कहा, ‘‘309 नंबर में रहता है.’’

‘‘ओह,’’ केशव ने कहा, ‘‘उन के यहां तो फोन भी नहीं है.’’

‘‘थोड़ी देर देख लो,’’ रानी ने अपनी च्ंिता छिपाते हुए कहा, ‘‘आ जाएगा.’’

‘‘और मन्नू…’’

केशव का वाक्य समाप्त होेने से पहले ही रानी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘अब मन्नू के पीछे पड़ गए. कभी तो चैन से बैठा करो.’’

झिड़की खा कर केशव कुरसी पर बैठ कर पत्रिका पढ़ने का नाटक करने लगा.

‘‘खाना लगाऊं क्या?’’ रानी ने कुछ देर बाद पूछा.

‘‘नहीं,’’ केशव ने कहा, ‘‘बच्चों को आने दो.’’

‘‘मन्नू तो खा कर आएगी,’’ रानी ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘अंगद बाद में खा लेगा. स्कूल से आ कर कुछ ज्यादा ही खा लिया था.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘2 की जगह पूरे 4 परांठे खा लिए,’’ रानी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘उसे आलू के परांठे अच्छे लगते हैं न.’’

कुछ और समय बीतने पर केशव उठ खड़ा हुआ, ‘‘मैं राममनोहरजी के घर हो कर आता हूं.’’

उसी समय घंटी बजी और मानिनी ने प्रवेश किया. वह बहुत प्रसन्न थी.

‘‘शालू की पार्टी में बहुत मजा आया,’’ मानिनी ने हंसते हुए पूछा, ‘‘यह अंगद सड़क के किनारे क्यों बैठा है? क्या आप ने सजा दी है?’’

‘‘सड़क के किनारे?’’ केशव और रानी ने एकसाथ पूछा, ‘‘कहां?’’

‘‘साधना स्टोर के सामने,’’ मानिनी ने उत्तर दिया, ‘‘क्या मैं उसे बुला कर ले आऊं?’’

इस से पहले कि रानी कुछ कहती केशव ने गंभीरता से कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. शायद पढ़ रहा होगा.’’

‘‘क्या घर में बिजली नहीं है?’’ मानिनी ने पूछा, पर फिर ध्यान आया कि बिजली तो है.

रानी ने खाना लगा दिया. केशव हाथ धो कर बैठने ही वाला था कि अंगद ने आहिस्ताआहिस्ता घर में प्रवेश किया.

केशव ने घूरते हुए पूछा, ‘‘इतनी दूर पढ़ने क्यों गए थे?’’

‘‘क्योंकि पास में कोई लैंपपोस्ट नहीं था,’’ अंगद ने मासूमियत से कहा.

केशव को हंसी भी आई और क्रोध भी. रानी भी हंस कर रह गई.

‘‘चलो, खाने के लिए बैठो,’’ रानी ने कहा.

‘‘स्कूल से आते ही खा तो लिया था,’’ अंगद ने कहा और अपने कमरे में चला गया.

केशव और रानी को अंगद का व्यवहार अब समझ में आ रहा था. लगता था कि नाटक की शुरुआत है.

मानिनी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. उस ने पूछा, ‘‘बात क्या है? आज अंगद के तेवर क्यों बिगड़े हुए हैं?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ रानी हंसी, ‘‘शीत- युद्ध है.’’

‘‘क्यों?’’ मानिनी ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मोपेड चाहिए जनाब को,’’ केशव ने कहा, ‘‘हमारे जमाने में…’’

‘‘ओ हो, पिताजी,’’ मानिनी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘अब मैं समझ गई. न आप कभी बदलेंगे, न आप का जमाना. ठीक है, मैं चंदा इकट्ठा करती हूं.’’

एक मानिनी ही थी जो केशव से बेझिझक हो कर बात कर सकती थी.

केशव ने उसे घूर कर देखा और फिर उठ कर चला गया.

सुबह की चाय हो चुकी थी. जब नाश्ता लगा तो अंगद जा चुका था.

उस की साइकिल पर धूल जम गई थी और हवा भी निकल गई थी.

शाम को थकामांदा अंगद 6 बजे आया.

‘‘क्यों, बस नहीं मिली क्या?’’ रानी ने क्रोध से पूछा.

‘‘बसें तो आतीजाती रहती हैं.’’

‘‘तो फिर?’’ रानी ने पूछा.

‘‘तो फिर क्या? मुझे भूख लगी है. खाना तो मिलेगा न?’’

रानी को अब क्रोध नहीं आया. जानती थी कि वह भूखा होगा. उस के लिए खीर, पूडि़यां और गोभी की सब्जी बनाई थी. अंगद ने प्रसन्न हो कर भरपेट खाया और कमरे में चला गया.

केशव जब आया तब अंगद घर में नहीं था. आते वक्त केशव ने लैंपपोस्ट के नीचे निगाह डाली थी. अंगद धुंधली रोशनी में आंखें गड़ाए पढ़ रहा था.

3 दिन तक यह नाटक चलता रहा.

आज अंगद का जन्मदिन था. हर साल इस दिन रौनक छा जाती थी. पार्टी में आने वाले मित्रों की सूची बनती थी. लजीज व्यंजन बनाए जाते थे. मानिनी कुछ दिन पहले ही से उसे छेड़ने लगती थी और इस छेड़छाड़ में लड़ाई भी हो जाती थी. वैसे अंगद को इस बात का बहुत मलाल रहता था कि मानिनी का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाता है.

नींद खुलते ही अंगद की नजर पास पड़े लिफाफे पर पड़ी. लिफाफे को उठाते ही उस में से एक चाबी गिरी. चाबी से लटका एक छोटा सा कार्ड था. उस पर लिखा था, ‘जन्मदिन पर छोटा सा उपहार.’

अंगद की आंखों में चमक आ गई. यह तो मोपेड की चाबी थी. आधी रात को वह एक चिट्ठी खाने की मेज पर छोड़ कर आया जिस में लिखा था :

पूज्य पिताजी और मां,

क्या आप मुझे क्षमा करेंगे? मोपेड के लिए हठ करना मेरी भूल थी. मुझे सिवा आप के आशीर्वाद और प्यार के कुछ नहीं चाहिए.

आप का पुत्र अंगद.

जब अंगद नीचे पहुंचा तो पत्र मां के हाथ में था और वह पढ़ कर सुना रही थीं. केशव और मानिनी हंस रहे थे.

‘‘पिताजी, आप ने भी जल्दी कर दी. बेकार में मोपेड की चपत पड़ी,’’ मानिनी हंस कर कह रही थी.

अंगद सिर झुकाए शर्मिंदा सा खड़ा था.

‘‘तो आप को मोपेड नहीं चाहिए,’’ केशव ने नकली गंभीरता से पूछा.

‘‘नहीं,’’ अंगद ने दृढ़ता से उत्तर दिया.

‘‘क्यों?’’ केशव ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘क्योंकि,’’ अंगद ने गंभीरता से शरारती अंदाज में कहा, ‘‘अब मुझे स्कूटर चाहिए.’’

‘‘क्या?’’ केशव ने मारने के अंदाज में हाथ उठाते हुए पूछा, ‘‘क्या कहा?’’

मानिनी ने बीच में आते हुए कहा, ‘‘पिताजी, छोडि़ए भी. हमारा अंगद अब छोटा नहीं है.’’

‘‘पर जब मैं छोटा था…’’

होहल्ले में केशव अपना वाक्य पूरा न कर सका.

 

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