लेखक-सुरेंद्र कुमार, आदित्य व जेएन भाटिया दलहनी
फसलों में मूंग की एक अहम जगह है. इस में तकरीबन 24 फीसदी प्रोटीन के साथसाथ रेशा व लौह तत्त्व भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. मूंग जल्दी पकने वाली किस्मों व ऊंचे तापमान को सहन करने वाली प्रजातियों की उपलब्धता के कारण इस की खेती लाभकारी सिद्ध हो रही है. सघन खेती, अंधाधुंध कीटनाशियों और असंतुलित खादों के इस्तेमाल से जमीनों की उर्वराशक्ति घट रही है और सभी फसलों की उत्पादकता में बेतहाशा गिरावट दर्ज की जा रही है. इन हालात से निबटने के लिए हरी खादों व दलहनी फसलों को अपनाएं व अपनी जमीनों की उर्वराशक्ति को बरकरार रखने और देश की बढ़ती हुई खाद्यान्न समस्याओं से निबटने में अपना भरपूर योगदान दें.
उन्नत किस्में : मूंग की बिजाई के लिए के-851 (70-75 दिन), मुसकान (65 दिन), एसएमएल-668 (60-65 दिन), एमएच-421 (60 दिन) व नई किस्म एमएच-1142 (63-70 दिन) की काश्त की जा सकती है, जो धान व गेहूं चक्र के लिए बहुपयोग पाई गई है. भूमि : अच्छी मूंग की फसल लेने के लिए दोमट या रेतीली दोमट भूमि अच्छी रहती है. समय पर बिजाई वाले गेहूं से खाली खेतों में ग्रीष्मकालीन मूंग ली जा सकती है. इस के अलावा धानगेहूं उगाने वाले क्षेत्रों में आलू, गन्ना व सरसों से खाली खेतों में ग्रीष्मकालीन मूंग ली जा सकती है. धानगेहूं उगाने वाले क्षेत्रों में आलू, गन्ना व सरसों से खाली खेतों में भी मूंग की खेती की जा सकती है. भूमि की तैयारी : गेहूं की कटाई के एक हफ्ते पहले रौनी/पलेवा करें और गेहूं की कटाई के तुरंत बाद 2-3 जुताई कर के खेत को अच्छी प्रकार तैयार करें.